गोनू झा की कहानियाँ : (मैथिली कहानी)
Gonu Jha Ki Kahaniyan (Maithili Stories in Hindi)
यूँ तो गोनू झा की गणना बीरबल, गोपाल भांड़, तेनाली राम तथा मुल्ला-दो पियादा के समकक्ष की जाती रही है, किन्तु कई बातों में उनका अपना अलग व्यक्तित्व भी रहा
है-और वह था उनका फक्कड़पन! आर्थिक-मानसिक परेशानियों में भी वह कभी विचलित नहीं होते थे । कठिन से कठिन परिस्थितियों को भी बड़ी सहजता से ग्रहण करना उनकी विशेषता थी ।
जनश्रुति के अनुसार गोनू झा का जन्म दरभंगा जिला (बिहार-मिथिलांचल) के अन्तर्गत 'भरौरा' गाँव में लगभग पाँच सौ वर्ष पूर्व एक गरीब किसान परिवार में ऐसे समय हुआ था
जब धर्मांधता और रूढ़िवादिता का बोलबाला था । बड़े जमींदार राजा कहलाते थे । दरबारियों के हाथ में शासन से प्रजा त्रस्त थी । चापलूस दरबारियों के चंगुल से प्रजा को बचाने में
जहाँ गोनू झा का महत्त्वपूर्ण योगदान था, वहीं उन्होंने साधुओं के वेश में ढोंगियों से भी लोहा लिया । त्रस्त जन गोनू झा को ही अपनी समस्याओं से अवगत कराते और गोनू झा बड़ी से बड़ी
समस्या को चुनौतीपूर्वक स्वीकार कर सहजता से समाधान निकाल लेते थे । उनकी हाजिरजवाबी तो लाजवाब थी ही, प्रखर प्रतिभा के साथ प्रत्युत्पन्न बुद्धिसम्पन्न व्यक्ति थे-गोनू झा ।
बिहार में गोनू झा की रोचक कथाएँ जन-जन की जुबान पर उसी प्रकार विद्यमान हैं, जिस प्रकार मिथिला-कोकिल विद्यापति के सुमधुर गीत सभी के कंठहार बने हुए हैं; गोनू झा की
कथाएँ लोगों में ऐसी रच-बस गई हैं कि लोकोक्तियों का रूप धारण कर चुकी हैं ।