पंडिताइन का सहारा (कहानी) : गोनू झा
Panditayan Ka Sahara (Maithili Story in Hindi) : Gonu Jha
जब कोई साधारण व्यक्ति असाधारण सफलता अर्जित कर लेता है तब एक ओर तो उसके प्रशंसकों की बाढ़-सी आ जाती है तो दूसरी तरफ उससे ईष्या करने वालों की संख्या भी बढ़ जाती है ।
गोनू झा जब मिथिला नरेश के दरबार के विदूषक नियुक्त हुए तब आम दरबारियों को यह अनुमान भी नहीं था कि मिथिला नरेश गोनू झा से इतना प्रभावित हो जाएँगे कि वे प्रत्येक समस्या पर उनसे सलाह -मशविरा करने लगेंगे। कुछ ही दिनों में गोनू झा ने अपनी मेधा के बूते महाराज के हृदय में अपना स्थान बना लिया और सारे समय में उनकी राय हर मुश्किल की दवा बनने लगी । एक तरह से गोनू झा सभी दरबारियों पर भारी पड़ने लगे जिससे दरबारी उनसे जलने लगे और हमेशा ऐसे अवसर की तलाश में रहने लगे कि कोई मौका मिले तो वे गोनू झा को महाराज की नजरों से गिरा दें ।
एक बार की बात है-मिथिला नरेश बीमार पड़े । उनकी चिकित्सा होती रही, लेकिन बीमारी ठीक होने में वक्त लगा । महाराज बहुत कमजोर और दुबले हो गए। अधिक देर तक बैठने से वे थक जाते । दरबार में वे आते तो थोड़ी देर बैठते , महामंत्री को कुछ निर्देश देते , फिर आराम करने महल में चले जाते ।
एक दिन गोनू से बैर रखने वाले दरबारियों ने आपस में मंत्रणा की कि महाराज अभी स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं । उनकी स्मरणशक्ति लम्बी बीमारी से क्षीण हो गई है । सामयिक बुद्धि भी मलिन पड़ गई है । महाराज अपनी बीमारी के कारण थोड़ा वहमी भी हो गए हैं । ऐसे में यदि महाराज को कोई ऐसा सुझाव दिया जाए जिसे पूरा करना टेढ़ी खीर हो , आसान तो कतई नहीं हो और किसी तरह वह मुश्किल-सा काम गोनू झा के मत्थे मढ़वा दिया जाए तो समझो कि गोनू झा की मिट्टी पलीद होनी ही है ।
इस तरह गोनू झा के विरुद्ध षड्यंत्र का बीजारोपण हो गया । धूर्त दरबारियों ने आपस में विचार किया कि महाराज से कहा जाए कि यदि वे प्रतिदिन शेर का एक गिलास दूध पीएँ तो शीघ्र हट्टे- कट्टे हो जाएंगे । जब एक दरबारी महाराज को यह सुझाव दे, तो दूसरे दरबारी उसकी हाँ में हाँ मिलाएँ। और जब महाराज इस सुझाव से प्रभावित हो जाएँ तो उनसे कहा जाए कि शेर के दूध का इंतजाम इस दरबार में केवल गोनू झा ही कर सकते हैं क्योंकि पूरे दरबार में उन जैसी सूझ-बूझ वाला व्यक्ति कोई नहीं है ।
दूसरे ही दिन जब महाराज दरबार में आए तब मंत्रणा के अनुरूप दरबारियों ने अपनी तिकड़मी योजना को अमल में लाना शुरू कर दिया । महाराज अपने आसन पर बैठे ही थे कि एक दरबारी ने अपने आसन से उठकर कहा-“महाराज, आप अपने स्वास्थ्य पर ध्यान दें , दवा -दारू ठीक से कराएँ... क्षमा करें महाराज! मैं छोटी मुँह बड़ी बात कर रहा हूँ ! मगर क्या करूँ , आपकी यह हालत मुझसे देखी नहीं जाती । आप दिनोदिन कमजोर होते जा रहे हैं ।"
उसका बोलना बन्द हुआ तो दूसरे दरबारी ने कहा-“माफ करें महाराज ! हमारे बंधु ने ठीक ही कहा है। मैं रोज सोचता था कि आपको अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देने के लिए कहूँ , मगर साहस नहीं कर पाता था । इधर मैं आपको जब भी देखता हूँ तो तरह-तरह की आशंकाएँ मन में आने लगती हैं । परमपिता परमात्मा आपको हर व्याधि से मुक्ति दिलाएँ! मगर महाराज ! क्या आपने ध्यान नहीं दिया कि इधर आपका चेहरा लगातार पीला पड़ता जा रहा है ?"
इसके बाद तीसरा दरबारी खड़ा हुआ और बोलने लगा-“महाराज ! आप प्रजा-पालक हैं । हमारे पालनहार हैं । मिथिला की आत्मा हैं । यदि आपको कुछ हो गया तो पूरी मिथिला अनाथ हो जाएगी ।” फिर उसने दरबारियों से ऊँची आवाज में कहा -"भाइयो , यदि आप में से कोई अच्छी सेहत पाने का कोई नुस्खा जानता हो तो वह महाराज को अवश्य बताएँ।"
संयोग की बात थी कि उस दिन गोनू झा तब तक दरबार में नहीं पहुँचे थे जिसके कारण दरबारियों को अपना जाल फैलाना आसान हो गया था ।
तीसरे दरबारी का आह्वान सुनने के बाद थोड़ी देर तक दरबार में सन्नाटा-सा छाया रहा ।
सब को चुप देखकर महाराज ने स्वयं कहा -"बताइए ! आप लोगों के पास कोई जानकारी हो तो आवश्य बताइए!”
तब दरबार का सबसे स्वस्थ कारिंदा बोला -"महाराज , मैं भी एक बार बहुत बीमार हो गया था । वैद्य की चिकित्सा का मेरे रोग पर कोई असर नहीं हुआ तब मेरे शिकारी मामा ने मेरे लिए शेर के दूध की व्यवस्था की । बाघ का मांस घिसकर शेर के दूध में सुबह- शाम चटाया गया जिससे मैं फिर से सेहतमंद हो गया ।"
महाराज में एक अजीब- सी उत्सुकता पैदा हो गई । उन्होंने पूछा – “मगर शेर का दूध और बाघ का मांस आएगा कहाँ से ?"
तभी एक दरबारी ने कहा-“महाराज! यह काम तो कोई सूझ-बूझवाला आदमी ही कर सकता है ।"
दूसरे ने कहा -" दरबार में गोनू झा से अधिक सूझ-बूझ वाला व्यक्ति और कोई नहीं है।
महाराज को भी यह बात ठीक लगी। वे गोनू झा की प्रतीक्षा करने लगे ।
गोन झा जैसे ही दरबार में आए, वैसे ही महाराज ने उन्हें आज्ञा दी – “पंडित जी , मेरे लिए प्रतिदिन एक गिलास शेर के दूध की व्यवस्था करें और हो सके तो थोड़े से बाघ के मांस की भी ।"
गोनू झा अचरज में पड़ गए और कुछ कहना चाहा मगर महाराज ने उन्हें कहा-“अगर मगर कुछ भी नहीं, यह व्यवस्था आपको करनी ही पड़ेगी ।"
गोनू झा चुप रह गए । कहते भी क्या ? दरबार से लौटकर घर आए तो अनमने से रहे । पंडिताइन ने उन्हें चिन्तित देखकर पूछा कि आखिर बात क्या है, तो उन्होंने पूरी बात बता दी । पंडिताइन ने उन्हें कहा कि वे चिन्तित नहीं हों । सामान्य रहें । आज रात में ही वह खुद इस समस्या का निदान कर देगी । गोनू झा ने पूछा भी कि मगर कैसे ? तो पंडिताइन ने उन्हें कहा कि इसकी चिन्ता वे नहीं करें कि कैसे, बस कल से प्रसन्नचित्त होकर समय पर दरबार जाएँ । इसके बाद गोनू झा को भोजन करा लेने के बाद पंडिताइन एक थापी और गंदे कपड़ों की एक पोटली लेकर महाराज के सरोवर पर पहुँच गई। महाराज के कमरे के निकट पड़ने वाले सरोवर के पाट पर बैठकर वह जोर-जोर से कपड़ा थापी से पीटने लगी । थापी की आवाज से महाराज की नींद खुल गई और उन्होंने पंडिताइन को पकड़वाकर अपने पास बुलवा लिया । पंडिताइन को देख महाराज अचरज में पड़ गए और पूछा -" क्या बात है ? इतनी रात को आप राज-सरोवर में कपड़ा धो रही हैं ?"
पंडिताइन ने जवाब दिया” महाराज! दरबार से लौटते ही पंडित जी ने एक बच्चा जना है । उनकी तीमारदारी के बाद गंदे कपड़े धोने इस समय यहाँ आ गईं।"
महाराज चकराए "अरे! क्या बोल रही हैं आप ? मर्द भी कहीं बच्चा देता है? असम्भव ।"
तपाक से पंडिताइन ने कहा -" जब शेर दूध दे सकता है, तो मर्द बच्चा क्यों नहीं पैदा कर सकता ?"
पंडिताइन की बात सुनकर महाराज लज्जित हुए ।
दूसरे दिन दरबार में उन दरबारियों की शामत आ गई जिन्होंने शेर के दूध की सलाह दी थी । उनकी हालत देखकर गोनू झा मन ही मन हँस रहे थे।