चार पंक्तियों में रामायण (कहानी) : गोनू झा

Char Panktiyon Mein Ramayan (Maithili Story in Hindi) : Gonu Jha

गोनू झा अभी जगे ही थे कि चार नवयुवक उनके घर पहुँचे और गोनू झा के दरवाजे पर दस्तक दी ।

गोनू झा मन ही मन भुनभुनाये न जाने कौन आ गया , इतने सबेरे !...बिस्तर से उतरकर उन्होंने दरवाजा खोला तो देखा, दरवाजे पर चार अजनबी युवक खड़े हैं । देखने से बदहवास से लग रहे युवकों पर गोनू झा ने प्रश्नसूचक दृष्टि डाली और पूछा - " क्या बात है ? "

चारों युवकों में से एक युवक ने कहा - “ हमें पंडित जी से मिलना है। "

गोनू झा ने पूछा - “ पंडित जी मतलब - गोनू झा ? "

युवक ने कहा - “ जी हाँ, जी हाँ ! ”

गोनू झा ने कहा - “मैं ही गोनू झा हूँ, कहिए , क्या काम है मुझसे ? "

इतना सुनना था कि चारों युवक दण्डवत् की मुद्रा में आ गए ।

उनके इस अभिवादन से गोनू झा ने इतना तो अवश्य भाँप लिया कि ये युवक उनसे कोई सहायता लेने आए हैं । उन्होंने युवकों को अपने कमरे में बुला लिया और उन्हें बैठने के लिए कहकर , पूछा - “ यदि मैं स्नान -ध्यान से निवृत होकर आप लोगों से बातें करूँ तो ...? "

युवकों ने विनम्रता से कहा - “ जी हाँ , पंडित जी ! हम लोग प्रतीक्षा कर लेंगे। आप स्नान ध्यान से निवृत हो लें । ”

थोड़ी देर बाद ही स्नान-ध्यान से निवृत होकर गोनू झा ने युवकों से पूछा - “ बताओ भाई! क्या बात है ? कहाँ से आए हो और मुझसे क्या चाहते हो ? "

युवकों ने उन्हें बताया “ पंडित जी हम चारों कवि हैं । हम सबके माता -पिता हम लोगों को निखटू समझते हैं । हम लोगों ने सुना था कि मिथिला नरेश कवियों का सम्मान करते हैं । इसलिए हम चारों ने मिलकर एक कविता बनाई और मिथिला नरेश को सुनाने के लिए दरबार में गए। महाराज ने हमें मिलने का अवसर तो दे दिया मगर कविता सुनने के बाद हमें डाँटकर भगा दिया । हम बेहद अपमानित होकर वहाँ से लौट आए। हम लोगों को एक दरबारी ने बताया कि आप भी कवि हैं ... और जैसी कविता आप करते हैं , वैसी ही कविता हमने भी की है । आपकी कविता सुनकर आपको महाराज ने पुरस्कृत किया था जबकि हमारी कविता सुनकर उन्होंने हमें भाग जाने को कहा । उसी दरबारी ने हमें बताया कि आप ही हमारी कविता का भाव समझ सकते हैं और महाराज को हमारी कविता के गूढार्थ समझा सकते हैं । ”

गोनू झा ने युवकों की बात ध्यान से सुनी । जब दरबारी का प्रसंग आया तो वे उत्सुक हुए कि आखिर महाराज के किस दरबारी ने उनके बारे में इन युवकों को जानकारी दी कि वे भी उनके जैसी ही कविता करते हैं ? अपनी उत्सुकता शान्त करने के लिए उन्होंने युवकों से पूछा - “ वह दरबारी कौन था ? ”

युवकों ने बताया - " हमने तो उसका नाम नहीं पूछा - हाँ , वह विचित्र ढंग से पगड़ी बाँधे हुए था । पगड़ी से उसकी एक आँख छुपी हुई थी । "

गोनू झा समझ गए कि इन युवकों को 'काना नाई' ने उनके पास भेजा है। काना नाई महाराज के दरबार में था और उन महत्त्वाकांक्षी दरबारियों की चौकड़ी में शामिल था जो गोनू झा से मिलते थे तथा उन्हें नीचा दिखाने का कोई अवसर नहीं खोना नहीं चाहते थे। गोनू झा समझ गए कि जरूर इन युवकों की कविता में कोई ऐसी बात है जो अशोभनीय है अन्यथा काना नाई उन्हें इस तरह उत्प्रेरित कर उनके पास नहीं भेजता । उन्होंने युवकों से कहा - "मुझे तुम लोग विस्तार से बताओ कि तुम लोगों ने मिलकर कविता कैसे लिखी और तुम्हारी कविता क्या है ? "

युवकों में से एक ने कहा - “ पंडित जी , अब तो कविता पढ़ने का हौसला भी जाता रहा । कहाँ हमने सोचा था कि कविता सुनाने के बाद महाराज से जो ईनाम मिलेगा उसे ले जाकर अपने माता-पिता को देंगे ताकि वे समझ सकें कि हम भी कुछ कर सकते हैं , हम निखटू नहीं हैं , हमारी भी कोई पहचान है... ” गोनू झा ने उसे बीच में ही टोककर कहा - “यह सब रहने दो ... कविता सुनाओ! ” तब युवकों में से एक ने कहा - “ पंडित जी । जब हम लोग महाराज के दरबार के लिए अपने गाँव से निकले तो रास्ते में एक गूलर का पेड़ मिला और मैंने एक गूलर पेड़ से टूटकर गिरते देखा तब कविता की पहली पंक्ति बनाई-

पककर गूलर गिर गयो।

दूसरे युवक ने कहा - “ और पंडित जी , मैंने राह में एक पीपल के पेड़ से पत्ते तोड़कर ले जाती एक महिला को उसी समय देखा तो अनायास ही मेरे मुँह से यह पंक्ति निकली:-

लायो पीपर नारी । "

तीसरे युवक ने कहा - “ पंडित जी ! मैंने जामुन का एक पेड़ देखा जिस पर अनगिनत जामुन फले हुए थे तो मैंने कविता की तीसरी पंक्ति बनाई -

जामुन अन्त न पाइयो । ”

अब चौथे युवक की बारी थी । उसने गोनू झा से कहा " हम लोग थोड़ी देर और बढ़े तो देखा कि कुछ बच्चे खेलते - खेलते झगड़ने लगे तब मैंने कविता की अन्तिम पंक्ति जोड़ी:-

बरबस ठानो रारी । ”

और इस तरह उनकी कविता पूरी हुई:-

पक कर गुलर गिर गयो ,
लायो पीपर नारी।
जामुन अन्त न पाइयो ,
बरबस ठानो रारी।

गोनू झा समझ गए कि काना नाई ने उनका उपहास उड़ाने के लिए ही इन युवकों को उनके पास भेज दिया है । उन्होंने मन ही मन सोचा कि ऐसे तो ये युवक मूर्ख हैं किन्तु उनके मन में अपने माता -पिता को प्रसन्न करने की इच्छा है । इस इच्छा के कारण ही वे महाराज के दरबार में कविता सुनाने चले गए। दूसरी तरफ कानानाई उनसे जलता है तथा उनका मजाक उड़ाने के लिए इन युवकों को उनके पास जाने के लिए प्रेरित किया है । उन्होंने मन में ठान लिया कि वे इन युवकों को महाराज से पुरस्कार दिलाकर ही रहेंगे ।

वे अपने साथ उन युवकों को लेकर दरबार में पहुँचे। महाराज ने जब दरबार में युवकों को देखा तो वे आग- बबूला हो गए और डाँटते हुए बोले - “ अरे! तुम लोग फिर यहाँ आ गए ? " गोनू झा ने विनम्रतापूर्वक हस्तक्षेप किया - “ महाराज ! इन कवियों को मैं लेकर आया हूँ । आपके पास । ” जिस समय गोनू झा यह बात कह रहे थे, उस समय उनकी दृष्टि काना नाई पर टिकी हुई थी । गोनू झा ने मुस्कुराते हुए फिर कहा - “ महाराज ! मैं तो इन युवकों की चौपाई सुनकर विस्मित - सा रह गया । मुझे आश्चर्य है कि इतनी कम उम्र में इन युवकों ने चार पंक्तियों में सम्पूर्ण रामायण! की रचना कैसे कर ली ! "

अब महाराज के चौंकने की बारी थी । महाराज के मुँह से निकला - “ सम्पूर्ण रामायण? "

“ जी हाँ , महाराज ! सम्पूर्ण रामायण ! यदि आप अनुमति दें तो मैं इन युवकों की लघु किन्तु महानतम रचना आपको सुनवाऊँ ? " गोनू झा ने महाराज से कहा।

महाराज ने अनुमति दे दी । पूरे दरबार में उत्सुकता पैदा हो चुकी थी । युवकों ने बारी बारी से अपनी - अपनी रचना दरबार में सुनाई:-

पक कर गुलर गिर गयो
लायो पीपर नारी
जामुन अन्त न पाइयो
बरबस ठानो रारी।

महाराज की समझ में कुछ नहीं आया तब उन्होंने गोनू झा की ओर देखा। गोनू झा समझ गए कि महाराज उनसे कह रहे हैं कि क्या बकवास कविता है! गोनू झा ने मुखर स्वरों में कहा - “ महाराज ! ये पंक्तियाँ सामान्य नहीं हैं ... इनसे गूढ़तम बातें ध्वनित हो रही हैं । यह तो राम - रावण के युद्ध से लेकर उसके परिणाम तक को रेखांकित करनेवाली रचना है । ‘पक कर गूलर गिर गयो।' वस्तुतः रावण की पत्नी मंदोदरी का विलाप है - करुण रस का ऐसा वर्णन किसी अन्य पंक्ति में कहाँ ? इस पंक्ति में कवि कहता है कि सम्पूर्ण सोने की लंका, जो रावण के अभिमान का प्रतीक थी , पके गूलर की तरह धराशयी हो गई । ‘लायो पी - पर -नारी।' मंदोदरी के रूदन में यह ध्वनित होता है कि पी यानी मंदोदरी का पिया ... पति , अर्थात् रावण , पर -नारी अर्थात् राम की पत्नी सीता को ले आया जिसके कारण लंका का विनाश हुआ। जा - मन , अन्त न पाइयो में भगवान श्रीराम का यशोगान है कि हे मन ! राम तो भगवान हैं - अनंत हैं । उनके सामर्थ्य को भला कैसे जाना जा सकता है...? और महाराज ! कविता की अंतिम पंक्ति का अर्थ तो अब बिलकुल साफ हो गया कि मंदोदरी विलाप करते हुए कहती है कि जिस परमेश्वर राम के मन की शक्ति की थाह कोई नहीं ले सकता उससे उसके पति रावण ने बरबस दुश्मनी मोल ले ली जिसका नतीजा हुआ कि वह आज अपने समस्त ऐश्वर्य के साथ ध्वस्त हो गया । "

महाराज उस कविता से तो नहीं, बल्कि गोनू झा द्वारा की गई विद्वतापूर्ण विवेचना से प्रभावित हुए। उन्होंने यह भी समझ लिया कि गोनू झा इन युवकों की मदद करना चाहते हैं । इसका अर्थ है कि उन्होंने इन युवकों में कोई अच्छी बात जरूर देखी है, अन्यथा वे इन्हें लेकर दरबार में नहीं आते। ऐसा विचार कर महाराज ने युवकों को इनाम दिया ।

इनाम पाकर चारों युवक प्रसन्न हुए और दरबार से विदा होते समय इन युवकों ने जब गोनू झा का चरण स्पर्श किया तब गोनू झा ने आशीष देने की शैली में कहा - “जाओ, इनाम में मिली धनराशि अपने माता -पिता को देकर प्रसन्न करो। अब घर जाकर कुछ काम की बातें सीखो। कविता से रोजी - रोटी नहीं मिलती। "

युवकों के जाने के बाद गोनू झा ने काना नाई की तरफ भरपूर दृष्टि डाली और मुस्कुराते हुए अपने आसन पर विराजमान हो गए ।

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