कोड़ों की सजा (कहानी) : गोनू झा
Kodon Ki Saja (Maithili Story in Hindi) : Gonu Jha
मिथिला नरेश कलाप्रिय व्यक्ति थे। अपने राज्य में कलाप्रेमियों को प्रोत्साहित करने के लिए वे प्रायः प्रतियोगिताओं का आयोजन कराते । विभिन्न त्योहारों के अवसर पर राजदरबार की ओर से विभिन्न तरह के मनोरंजक कार्यक्रमों का आयोजन वे कराते रहते जिसके माध्यम से कलाकारों को इतनी आमदनी हो जाती थी कि वे अपनी कला - साधना में सालों भर लगे रह सकते थे ।
कलाकारों के प्रति मिथिला नरेश की सदाशयता की चर्चा दूर - दूर तक फैली हुई थी । बाहर से आने वाले कलाकारों के लिए मिथिला नरेश का दरवाजा हमेशा खुला रहता था । प्रायः कलाकार किसी आवश्यकता के समय में राजदरबार जाते और मिथिला नरेश के समक्ष अपनी कला का प्रदर्शन कर उनसे कुछ न कुछ पारितोषिक प्राप्त कर लौट आते ।
मिथिला नरेश ने आगंतुक कलाकारों की सुविधा के लिए एक कक्ष का निर्माण कराया था । आगंतुक कलाकारों के स्वागत तथा मिथिला नरेश से उनकी मुलाकात कराने के लिए एक कक्षपाल की नियुक्ति उन्होंने की थी ।मिथिलानरेश ने बाहर से आए कलाकारों और मिथिला के जरूरतमंद कलाकारों से किसी भी क्षण मिलने की अपनी स्वीकृति दे रखी थी । लेकिन उन्होंने कक्षपाल को यह अधिकार भी दे रखा था कि वह यह जाँच- परख ले कि कलाकार वाकई कला साधक है और जरूरतमन्द है ।
इस व्यवस्था से कुछ दिनों तक तो सब कुछ ठीक चला किन्तु जब कक्ष - पाल ने देखा कि मिथिला नरेश से मिलकर लौटने वाले कलाकार तरह- तरह के उपहार प्राप्त कर वापस आते हैं तो उसने सोचा कि यदि वह इन फटीचर से दिखने वाले कलाकारों को महाराज से मिलने की स्वीकृति प्रदान नहीं करे तो क्या उन्हें ये पुरस्कार मिल सकेंगे? नहीं । फिर उसके मन में विचार आया कि क्यों न वह इन आगंतुकों से सौदा करे कि महाराज से मिलना है तो उनसे प्राप्त होने वाली पुरस्कार राशि का पच्चीस प्रतिशत वे कक्षपाल को प्रदान करेंगे। और इस निर्णय पर पहुँच जाने के बाद दूसरे ही दिन से कक्षपाल कलाकारों से उनकी पुरस्कार राशि का पच्चीस प्रतिशत वसूलने लगा ।
कुछ दिन यूँ ही बीते। कक्षपाल के रुतबे में फर्क आ गया । कहाँ उसे कलाकारों के स्वागत के लिए नियुक्त किया गया था और कहाँ वह कलाकारों से दबंगता से पेश आने लगा । उसके कर्तव्यों में यह बात शामिल थी कि मिथिला नरेश से मिलने की इच्छा रखनेवाले कलाकारों की वह जाँच- परखकर ले कि वह वाकई कला- साधक है या नहीं। मगर वह इस नीति वाक्य को भूलकर हर उस व्यक्ति को महाराज से मिलने की इच्छा पूरी करने लगा जो उसे पच्चीस प्रतिशत का भुगतान करने को तैयार हो जाता । बाद में उसका साहस और बढ़ गया जब कुछ लोगों ने मिथिला नरेश के दरबार में प्रवेश के लिए उसे अग्रिम ‘ चढ़ावा देने की पेशकश की ।
मिथिला नरेश ने महसूस किया कि उनके पास कलाकार के नाम पर कुछ ऐसे लोग भी आने लगे हैं जो कला के मर्मज्ञ नहीं हैं और न ही प्रतिभा के धनी ।
कार्तिक का महीना था । फसलें कट चुकी थीं । मिथिला नरेश हर वर्ष कार्तिकोत्सव का आयोजन कराते थे। इस साल उन्होंने कार्तिकोत्सव को भव्य रूप देने का निश्चय किया था । उन्होंने एक दिन गोनू झा से कहा - “ पंडित जी ! इस वर्ष मैं कार्तिकोत्सव का भव्य आयोजन कराना चाहता हूँ । मैं चाहता हूँ कि इस आयोजन में दूसरे राज्यों के कलाकारों को भी विशेष आमंत्रण भेजूं। मगर मुझे संकोच हो रहा है क्योंकि इस वर्ष अपने राज्य के जितने भी कलाकार मुझसे मिलने और अपनी कला का प्रदर्शन करने आए उनमें बहुत कम ऐसे लोग थे जिनमें कला के तत्त्व विद्यमान थे। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मिथिलांचल में कला की अधोगति क्यों हो रही है ? बड़े और सिद्धहस्त कलाकार इस वर्ष मुझसे मिलने क्यों नहीं आए?
जब गोनू झा ने मिथिला नरेश के मुँह से यह बात सुनी तो वे गम्भीर हो गए । उन्हें महाराज की बात चिन्ता पैदा करने वाली लगी कि इस वर्ष महाराज से मिलने राज्य का कोई भी वरिष्ठ कलाकार नहीं आया । उन्होंने सोचा कि निश्चित रूप से कोई ऐसी गम्भीर बात है जिससे कलाकार राज्य विमुख हो रहे हैं , अन्यथा कला को अपने राज्य में प्रोत्साहित करनेवाले मिथिला नरेश से कोई वरिष्ठ कलाकार मिलने भला क्यों नहीं आएगा ?
गोनू झा ने मिथिला नरेश से कहा “ महाराज ! आप कार्तिकोत्सव की तैयारियों का निर्देश जारी करें और मुझे एक हफ्ते का समय दें । मुझे नहीं लगता कि एक वर्ष में मिथिला में कला की अधोगति हो गई है । यदि राजदरबार में अच्छे कलाकार नहीं आ रहे हैं तो इसका कारण कुछ और भी हो सकता है। इस एक हफ्ते में मैं अपने ढंग से इस सम्बन्ध में जानकारी करूँगा और मेरा प्रयास होगा कि राज्य में कला के उत्थान के लिए आपके द्वारा किए जा रहे सद्प्रयासों की राह में आ रही बाधाओं को दूर कर सकूँ । मिथिला में कला और कलाकार पहले से हं और आपकी कृपा से आज भी हैं और कल भी रहेंगे। "
मिथिला नरेश से विदा लेकर गोनू झा अपने ढंग से सक्रिय हो गए । मिथिला नरेश से हई बातचीत के तीन दिन बाद ही गोनू झा दरबार में आए और उन्होंने प्रस्ताव रखा कि राज्य के हर आयु वर्ग के लिए एक मेधा परीक्षण प्रतियोगिता का आयोजन भी इस बार के कार्तिकोत्सव में होना चाहिए। ‘ कार्तिकोत्सव की चर्चा सुनते ही मिथिला नरेश ने समझ लिया कि जरूर गोनू झा को कलाकारों के राज विमुख होने का कोई सुराग मिल गया है और वे इस ‘ मेधा परीक्षण प्रतियोगिता के बहाने उनके सामने कुछ प्रकट करना चाहते हैं फिर भी उन्होंने दरबारियों से पूछा - “ आप लोगों की क्या राय है ? "
दरबारियों में ऐसे लोगों की कमी नहीं थी जो गोनू झा से जलते थे या ऐसे समय की प्रतीक्षा में रहते थे कि गोनू झा को नीचा दिखाया जा सके । ऐसे दरबारियों ने एकमत होकर मिथिला नरेश को राय दी कि कार्तिकोत्सव तो उमंग और उल्लास के लिए आयोजित होता है जबकि मेधा परीक्षण प्रतियोगिता गम्भीर प्रकृति की प्रतियोगिता है । मनोरंजन के समय गम्भीर प्रतियोगिताएँ रस -भंग की स्थिति पैदा करेंगी इसलिए इस तरह की प्रतियोगिता कार्तिकोत्सव में नहीं होनी चाहिए ।
मगर गोनू झा ने मिथिला नरेश से कहा - ”इस तरह की प्रतियोगिता के लिए कार्तिकोत्सव से अच्छा कोई दूसरा अवसर हो ही नहीं सकता । नवान्न के आगमन से ग्रामीण कार्तिक में आर्थिक समस्याओं से निश्चिन्त होते हैं । गरीब से गरीब आदमी अपने भोजन - वसन की चिन्ता से मुक्त रहता है और सबसे बड़ी बात कि ‘ कार्तिकोत्सव में राज्यभर के लोग आते हैं इसलिए राज्य की मेधा - शक्ति की पहचान के लिए इससे अच्छा अवसर दूसरा नहीं हो सकता । ”
मिथिला नरेश को गोनू झा का तर्क पसन्द आया और उन्होंने मेधा परीक्षण प्रतियोगिता के आयोजन की स्वीकृति दे दी ।
इस स्वीकृति के तुरन्त बाद गोनू झा ने मिथिला नरेश के सामने इच्छा जताई - " महाराज, मैं भी इस मेधा परीक्षण प्रतियोगिता में भाग लेना चाहता हूँ । "
दरबारियों में जैसे ही गोनू झा को महाराज से यह कहते सुना कि मेधा परीक्षण प्रतियोगिता में वह भाग लेना चाहते हैं , तो उन्होंने विरोध करना शुरू कर दिया कि इस तरह की किसी भी प्रतियोगिता में राज - दरबार का कोई भी व्यक्ति शामिल नहीं हो सकता लेकिन गोनू झा ने पुनः मिथिला नरेश से कहा - ” महाराज , मैं इस प्रतियोगिता में अपनी मेधा की वास्तविक क्षमता की पहचान के लिए भाग लेना चाहता हूँ। मुझे पारितोषिक की अभिलाषा नहीं है । उन्होंने दरबार में घोषणा की कि दरबारी यदि उन्हें इस प्रतियोगिता में शामिल होने के लिए इस शर्त पर स्वीकृति प्रदान करें कि वे कोई भी इनाम ग्रहण नहीं करेंगे तो वे उनके आभारी रहेंगे । इस पर दरबारी शान्त होकर अपने आसनों पर बैठ गए । महाराज ने गोनू झा को मेधा परीक्षण प्रतियोगिता में भाग लेने की स्वीकृति दे दी ।
इसके चार - पाँच दिन बाद मिथिला का प्रसिद्ध कार्तिकोत्सव प्रारम्भ हआ । एक पखवारे तक चलनेवाले इस आयोजन में राज्य भर के कलाकार तो आए ही , राज्य के बाहर के भी विशेष आमंत्रित कलाकारों ने अपनी कला का प्रदर्शन किया ।
कार्तिकोत्सव के समापन समारोह के दिन पुरस्कार वितरण की व्यवस्था के लिए विशेष रूप से बनवाया गया बृहत पंडाल खचाखच भरा था । मिथिला नरेश पुरस्कार वितरण के लिए स्वयं मंच पर आसीन थे। सबसे पहले मेधा परीक्षण प्रतियोगिता के परिणाम सुनाए गए। गोनू झा का प्रदर्शन सर्वश्रेष्ठ निरूपित हुआ था । लेकिन उन्होंने घोषणा कर रखी थी कि वे पुरस्कार नहीं लेंगे इसलिए उनके बाद प्रथम , द्वितीय और तृतीय स्थान पर आए लोगों को पुरस्कार दिए गए।
इस पुरस्कार वितरण के बाद मिथिला नरेश ने अपनी ओर से गोनू झा को कुछ इनाम देने की इच्छा जाहिर की तब गोनू झा ने कहा - ” यदि महाराज मुझे कुछ देना चाहते हैं तो मुझे मुँहमाँगा इनाम दें । "
उनकी बात सुनकर पंडाल में बैठे दरबारियों में काना -फूसी होने लगी । अन्ततः मिथिला नरेश ने गोनू झा से पूछा - " हाँ , पंडित जी , आप बताए कि आपको क्या इनाम चाहिए ? "
गोनू झा ने कहा ”मुझे नंगी पीठ पर एक हजार कोड़ां का इनाम दें । "
उनकी यह माँग सुनते ही पंडाल में सन्नाटा छा गया । पंडाल में बैठे ईष्यालु दरबारियों के मुँह खुले के खुले रह गए। गोनू झा की माँग इतनी अप्रत्याक्षित थी कि दरबारियों की समझ में नहीं आया कि आखिर गोनू झा इस तरह एक हजार कोड़ों की मार क्यों खाना चाहते हैं । पाँच- दस कोड़े में तो आदमी बेदम हो जाता है और गोनू झा हजार कोड़े खाएँगे ? यह आत्महत्या नहीं तो और क्या है ?
मिथिला नरेश भी हत्प्रभ थे। उन्होंने गोनू झा से कुछ और माँगने को कहा मगर गोनू झा ने कहा - “ महाराज , आपने मुझे मुँहमाँगा इनाम देने की घोषणा की है। अब उससे मुकरें नहीं! मुझे हजार कोड़ों का इनाम चाहिए - नंगी पीठ पर और कुछ भी नहीं।
अन्ततः मिथिला नरेश ने गोनू झा की पीठ पर हजार कोड़े लगाने का निर्देश दे दिया । कोड़े लेकर दो मुस्टंडे सिपाही मंच पर आ गए तब गोनू झा ने मिथिला नरेश से कहा - "पंडाल में अगली पंक्ति में बैठे 'कलाकार स्वागत कक्षपाल' को पहले मंच पर बुलाया जाए ।
मिथिला नरेश समझ चुके थे कि गोनू झा अब उनके सामने कुछ रहस्योद्घाटन करने वाले हैं । उन्होंने कक्षपाल को मंच पर लाने का निर्देश दिया । कक्षपाल जब मंच पर लाया गया तो उसके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रही थीं । कार्तिक के ठंड में भी माथे पर पसीने को बूंदें चुहचुहा आई थीं । वह डरा और सहमा - सा दिख रहा था । गोनू झा ने कक्षपाल का हाथ फैलाकर मंच पर स्वागत करते हुए कहा - " आइए कला - पारखी - कलाकार 6 स्वागत - कक्ष प्रभारी, कक्षपाल महोदय ! बिना आपकी स्वीकृति के कोई राज्य द्वारा आयोजित प्रतियोगिता में भाग नहीं ले सकता । आपसे अनुमति मिलने के एवज में अपने पारितोषिक का पच्चीस प्रतिशत भुगतान का वादा मैं सार्वजनिक रूप से पूरा कर रहा हूँ ताकि भविष्य में मेरे लिए भी आप राज दरबार में प्रवेश का मार्ग प्रशस्त रखें । "
महाराज के कान में जब गोनू झा की बातें पहुँचीं तब उन्होंने समझ लिया कि कक्षपाल किस तरह का गोरख - धन्धा चला रहा था तथा क्यों गोनू झा ने मेधा परीक्षण-प्रतियोगिता के आयोजन में शरीक होने की अनुमति ली थी । उन्होंने गोनू झा की ओर देखा, तब गोनू झा ने कहा - "महाराज, इस कक्षपाल की पीठ पर ढाई सौ कोड़े लगवाएँ । इसने मेरे साथ सौदा किया था कि जो भी पारितोषिक मुझे मिलेगा उसका पच्चीस प्रतिशत मैं इसे दे दूँगा। ऐसा नहीं करने पर इसने चेतावनी दी थी कि फिर यह भविष्य में कभी भी नरेश से मिलने का अवसर मुझे प्रदान नहीं करेगा। "
पंडाल में बैठे कलाकारों ने भी खड़े होकर कक्षपाल की शिकायत शुरू कर दी ।
महाराज ने सभी की बातें सुनीं। मंच पर ही कक्षपाल को सार्वजनिक रूप से कोड़े लगाए गए और नौकरी से बर्खास्त किए जाने की घोषणा भी कर दी गई। महाराज ने गोनू झा को ढेर सारा इनाम दिया और 'कला शिरोमणि' की उपाधि से विभूषित किया ।
कार्तिकोत्सव में भाग लेने आए कलाकारों ने मुक्त कंठ से गोनू झा की प्रशंसा की और गोनू झा से ईष्या रखने वाले दरबारी अपना- सा मुँह लिये लौट गए ।