पड़ोसी का पीढ़ा (कहानी) : गोनू झा
Padosi Ka Peedha (Maithili Story in Hindi) : Gonu Jha
मिथिलांचल में खुशियों की सौगात लेकर आम मंजराए। गाँवों में बसन्त का आगमन उस साल कुछ ऐसा हुआ कि हर चेहरे पर रौनक बढ़ गई। आसार इस बात के थे कि आम खूब फलेंगे। मंजर बौरियों में बदले फिर टिकुलों में । टिकुलों ने आम का रूप लिया ।
मिथिलांचल के हर गाँव में बस यही चर्चा थी कि इस बार आम में इतनी कमाई हो जाएगी कि साल भर के खर्चों के लिए सोचना नहीं पड़ेगा । मगर, विधि का विधान कुछ और था । आम अभी तैयार नहीं हुए थे कि जबर्दस्त ओला वृष्टि हुई और होने लगी मूसलाधार बारिश- तेज झक्कड़ के साथ। गाँव-दर- गाँव आम के बगीचों में एक मुर्दनी-सी छा चुकी थी । काले बादलों ने गाँव वालों की खुशियों को पूरी तरह बँक लिया था । बगीचों बगानों में जिन आम के पेड़ों पर हजारों आम दिखते थे, बारिश खत्म होने के बाद वे पेड़ ठूँठ बने खड़े थे।
एक साल के बाद फिर आम के पेड़ मँजरों से गदगदाए। गाँव के लोगों ने भगवान से प्रार्थना की कि इस साल आम की फसल बर्बाद न होने पाए । प्रायः सभी ने अपने-अपने ईष्ट देवों को चढ़ावा चढ़ाने की मन्नत माँगी, मगर गोनू झा मौन रहे ।
जब से गोनू झा को मिथिला नरेश के दरबार में स्थान प्राप्त हुआ था तब से मिथिलाँचल के ग्रामीणों के लिए वे आदर्श बन गए थे। उनके गाँव के लोग जब मिथिलाँचल के अन्य गाँवों में जाते तो गर्व से कहते कि वे गोनू झा के गाँव से आ रहे हैं । यहाँ तक कि गोनू झा से जलने वाले लोग भी दूसरे गाँव में जाकर उनके प्रशंसक हो जाते थे। ऐसे में गोनू झा के ग्रामीणों में यह उत्सुकता पैदा होना अचरज की बात नहीं थी कि गोनू झा ने आम की फसल को बरबादी से बचाने के लिए आखिर क्या मन्नत माँगी है ! लोग जब कभी गोनू झा से पूछते तो गोनू झा इस प्रश्न को टाल जाते ।
एक दिन गोनू झा अपने एक दूर के रिश्तेदार के घर गए थे। नदी के किनारे उनके रिश्तेदार का घर था । नदी से सटे ही उनका बड़ा-सा आम-बागान था जिसमें सैकड़ों आम के पेड़ थे। क्या कलमी और क्या बीजू ! बीजू आम के लिए उनका बागान पूरे मिथिलाँचल में मशहूर था । इस बागान में बिढ़निया, कर्पूरी, सिंदूरी, मिठुआ, सुगन्धा जैसे पच्चीसों किस्म के बीजू आम के पेड़ थे। बम्बइया आम के पेड़ों से तो उन्होंने अपने बागान की घेराबन्दी ही कर रखी थी । मालदह की कई किस्मों के कलमी आम उन्होंने अपने बागान में लगा रखे थे। गोनू झा के आने पर बहुत खुश हुए उनके रिश्तेदार और उन्हें आम के बागान में ले गए और प्रायः हर आम के पेड़ के बारे में उन्हें बताने लगे कि इसकी कलम उन्होंने कहाँ से मँगाई । अपने बगीचे में लगे आम के विभिन्न किस्मों को लेकर उनके रिश्तेदार यह गर्वोक्ति भी करने से बाज नहीं आए कि उनके बागान में जितने तरह के आम के पेड़ हैं, उतने आम की किस्में तो मिथिला नरेश के बागान में भी नहीं होंगी ।
उनकी इस गर्वोक्ति से गोनू झा खीज गए लेकिन उन्होंने कुछ भी नहीं कहा। गोनू झा को मौन देखकर उनके रिश्तेदार ने अपनी बात जारी रखी । उसने गोनू झा को बताया कि आम की फसल को वर्षा से बचाने के लिए उसने देवी माँ से मन्नत माँगी है कि आम तैयार होते ही प्रतिदिन दो आम उनके मन्दिर में चढ़ाएँगे ।
गोनू झा क्या कहते ! बस, सुधि श्रोता की तरह उनके साथ बागान में टहलते रहे।
जब गोनू झा के रिश्तेदार को यह महसूस हुआ कि वे ही लगातार बोलते जा रहे हैं और गोनू झा लगातार चुपचाप उनकी बात सुनते जा रहे हैं मगर कुछ बोलते नहीं तो उन्होंने गोनू झा से पूछा-“आप बताइए पण्डित जी ! आपने क्या मन्नत माँगी है अपने ईष्ट देव से ?"
गोनू झा ने उन्हें बताया-“मैंने अभी तक कोई मन्नत नहीं माँगी है। फसल प्रकृति पर निर्भर हैं । मौसम सामान्य रहा तो आम की पैदावार अच्छी होगी । आँधी-बारिश हुई तो आम की फसल प्रभावित होगी । इसमें नया क्या है ?"
मगर उनके रिश्तेदार ने उन्हें कहा- “क्या पण्डित जी ! राजदरबार में आप क्या पहुँच गए कि पूरे नास्तिक हो गए?"
यह बात गोनू झा को बुरी लगी। मगर उन्होंने अपनी भावना प्रकट नहीं होने दी और कहा -" मैंने तो यथार्थ कहा। इसमें नास्तिक या आस्तिक होने की बात ही नहीं है। "
“जब आस्तिक -नास्तिक की बात नहीं है तो आपको कुछ चढ़ावा चढ़ाने की मन्नत माँगनी चाहिए ताकि आपके आम की पैदावार भी अच्छी हो ।” गोनू झा से उनके रिश्तेदार ने कहा ।
गोनू झा ने उनसे पिंड छुड़ाने के लिए कह दिया-“अच्छा, चलिए ! आम की फसल अच्छी हुई तो हम भी कहीं से कुछ चढ़ा देंगे।"
गोनू झा के रिश्तेदार प्रसन्न हो गए और गोनू झा ने उनसे विदा ली ।
संयोग ऐसा हुआ कि इस बार वाकई आम की फसल बहुत अच्छी हुई । गाँव के प्रायः हर बागान में आम के पेड़ फलों से लदे हुए थे। आँधी- पानी, झक्कड़ सबसे निजात पाकर आम की तैयार पैदावार गाँव के लोगों को भविष्य के सपने बुनने में मदद कर रहे थे। अन्ततः आम पेड़ों से तोड़े गए। बाजार में पहुँचाए गए । गाँववालों को इतनी रकम मिल गई जिससे पिछले बरस हुए नुकसान की भरपाई भी हो गई यानी आम के आम और गुठलियों के दाम ।
एक दिन फिर गोनू झा अपने उसी रिश्तेदार के पास पहुँचे। उन्होंने मन ही मन विचार कर लिया था कि अपने रिश्तेदार की गर्वोक्ति की वे उनकी ही शैली में जवाब देंगे। असल में मिथिला नरेश ने गोवा से 'अल्फांसो' नाम के आम के कुछ कलम मँगवाए थे। चार -पाँच कलम गोनू झा को भी उन्होंने दे दिया था । 'दसहरी' नाम के आम के कलम भी प्रयाग से मँगाए गए थे जिनके पाँच- सात कलम गोनू झा को महाराज ने दिये थे। अब ये कलमें पेड़ बच चुकी थीं और इन पेड़ों पर आम फल रहा था । इन पेड़ों में जब आम तैयार हुआ तब दोनों प्रजातियों के एक -एक आम अपने साथ लेकर गोनू झा अपने रिश्तेदार के घर पहुँचे और उन्हें ये दोनों आम थमाते हुए कहा -” ले भाई, ये दो आम। जरा छोटा-छोटा टुकड़ा काट के घर के सभी लोगों को प्रसाद की तरह बाँट दे।"
गोनू झा के रिश्तेदार को लगा कि गोनू झा निश्चित रूप से आम की अच्छी फसल के बाद मन्नत पूरा करके आए हैं और प्रसाद बाँट रहे हैं । उन्होंने पूछा -" क्यों पण्डित जी, अपने भगवान को चढ़ावा चढ़ा लिया क्या ?" उन्हें इस बात का गर्व हो रहा था कि उन्होंने ही गोनू झा को भगवान से मन्नत माँगने के लिए प्रेरित किया था ...।
गोनू झा ने उन्हें जवाब दिया-“अभी कहाँ भाई।"
उनके रिश्तेदार ने अपने घर के लोगों को आवाज लगाई – “अरे कुछ लाओ... पण्डित जी को बैठने के लिए।”
घर से एक बच्चा हाथ में पीढ़ा लिए आया और गोनू झा के निकट रख गया । गोनू झा ने पीढ़ा हाथ में उठा लिया और रिश्तेदार की ओर देखकर लम्बी साँस छोड़ते हुए कहा-“तो आखिर कुछ मिल ही गया !" यह कहते हुए वे पीढ़ा लेकर नदी की तरफ दौड़े ।
उनका रिश्तेदार पहले तो हतप्रभ-सा रह गया मगर जब चैतन्य हुआ तो गोनू झा के पीछे वह भी दौड़ पड़ा । दौड़ते हुए उसने आवाज लगाई-“अरे क्या हुआ पण्डित जी, क्यों दौड़ रहे हैं ?"
गोनू झा ने दौड़ते-दौड़ते हुए कहा, “अरे कुछ की तलाश में था और कुछ मिल गया, अभी मन्नत पूरी करके आता हूँ...” तब तक नदी का किनारा आ गया । गोनू झा ने पीढ़ा नदी में उछाल दिया । छपाक की आवाज गोनू झा के रिश्तेदार ने सुनी, वह कुछ समझ नहीं पाया । गोनू झा के करीब आने पर हाँफते हुए उसने गोनू झा से पूछा -" क्या हुआ ?"
गोनू झा ने संयत होते हुए कहा-“आपके साथ इसी जगह पर नदी मइया से मैंने मन्नत माँगी कि कहीं से कुछ जरूर चढ़ाऊँगा। बहुत जगह गया, कहीं कुछ नहीं मिला। अब भाग्य देखिए। आपके घर आते ही आपने कुछ मँगा दिया और मैंने नदी मइया को कुछ चढ़ा दिया । इस तरह मन्नत पूरी हो गई।"
गोनू झा का रिश्तेदार उनका मुँह देखता रह गया ।