माँ काली का वरदान (कहानी) : गोनू झा

Maan Kali Ka Vardan (Maithili Story in Hindi) : Gonu Jha

सभी जानते हैं कि गोनू झा माँ काली के परम भक्त थे। गोनू झा की श्रद्धाभक्ति से माँ काली प्रसन्न हो गईं। उन्होंने गोनू झा को दर्शन देने का मन बना लिया । उन्होंने सोचा कि गोनू झा बहुत चालाक है । इसलिए दर्शन देने से पहले उसे छकाया जाए ।

गोनू झा सोये हुए थे । माँ काली ने अपना भयंकरतम रूप लिया । एक शरीर दो भुजाएँ किन्तु एक सहस्र शीर्ष वाली माँ काली प्रकट हो गईं । स्वप्न लोक में विचरण कर रहे गोनू झा माँ का यह रूप देखकर हँसने लगे। माँ काली ने उन्हें हँसता देख विस्मय से मुँह खोला । गोनू झा ठठाकर हँस पड़े । तब माँ काली ने अपना विस्मय प्रकट करते हुए पूछा-“गोनू, तुम मेरा यह रूप देखकर डरे नहीं ?" गोनू झा ने उत्तर दिया-“माँ ! मैं तो आपका पुत्र हूँ । आपकी गोद में ही खेलता रहता हूँ। आप चाहे जिस रूप में हों, मुझ बालक के लिए तो आप हर रूप में माँ हैं । और भला किसी बालक को माँ से कभी डर लगता है! चाहे वह जैसा भी रूप बना ले-बालक माँ को पहचान ही जाता है ।"

माँ काली गोनू झा के उत्तर से प्रसन्न हुईं । पुनः उन्होंने पूछा-“मेरे सहस्रमुख दर्शन कर तुम हँसे क्यों ?"

गोनू झा ने उत्तर दिया -” माते। यह सोचकर मुझे हँसी आ गई कि आपके सहस्रमुख हैं और सहस्रनाक भी । किन्तु हाथ दो ही हैं । मेरा एक मुँह एक ही नाक है और भुजाएँ दो हैं । जब मुझे जुकाम होता है तो पोंछते -पोंछते मैं परेशान हो जाता हूँ । जब आपको जुकाम होगा तो इन दो हाथों से एक हजार नाक कैसे पोछेंगी? बस, यही सोचकर मुझे हँसी आ गई।"

गोनू झा माँ काली के सामने बिलकुल निर्दोष बालक की तरह बोल रहे थे। उनकी बाल सुलभ बातें सुनकर माँ प्रसन्न हुईं तथा कहा-“पुत्र, मैं तुम्हारी बातों से प्रसन्न हुई । वर माँगो ।"

गोनू झा बोले-“माँ मैं क्या वर माँगूँ? आपका स्नेह मिलता रहे, यही मेरे लिए काफी है । आपकी कृपा-दृष्टि मुझ पर बनी रहे, इससे बड़ी उपलब्धि मेरे लिए और क्या होगी ?"

माँ काली गोनू झा की बातों, श्रद्धा और विवेकपूर्ण व्यवहार से प्रसन्न तो थी ही, उन्होंने कहा-“पुत्र ! तुमने कुछ नहीं माँगा फिर भी मैं तुम्हें वरदान देती हूँ कि कोई भी समस्या तुम्हें उलझा नहीं पाएगी । हर तरह की समस्या का समाधान तुम चुटकियों में कर लोगे। बुद्धि, विवेक, ज्ञान और वाणी-कौशल में तुम्हें कोई परास्त नहीं कर सकेगा।” ऐसा कह-कर माँ काली अन्तर्ध्यान हो गईं और गोनू झा हाथ फैलाए – माते ! माते ! कहते हुए बिस्तर पर उठकर बैठ गए ।

बहुत देर तक बैठे वे अपने स्वप्न की मीमांसा करते रहे । इसके बाद गोनू झा का बुद्धिचातुर्य और वाणी-कौशल विश्व में विख्यात हुआ ।

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