सम्पूर्ण पंचतंत्र
: पं. विष्णु शर्मा

संस्कृत नीतिकथाओं में पंचतंत्र का पहला स्थान माना जाता है। यद्यपि यह पुस्तक अपने मूल रूप में नहीं रह गयी है, फिर भी उपलब्ध अनुवादों के आधार पर इसकी रचना तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के आस- पास निर्धारित की गई है। इस ग्रंथ के रचयिता पं. विष्णु शर्मा है। पंचतंत्र को पाँच तंत्रों (भागों) में बाँटा गया है: मित्रभेद (मित्रों में मनमुटाव एवं अलगाव), मित्रलाभ या मित्रसंप्राप्ति (मित्र प्राप्ति एवं उसके लाभ), काकोलुकीयम् (कौवे एवं उल्लुओं की कथा), लब्धप्रणाश (हाथ लगी चीज (लब्ध) का हाथ से निकल जाना), अपरीक्षित कारक (जिसको परखा नहीं गया हो उसे करने से पहले सावधान रहें ; हड़बड़ी में कदम न उठायें)। पंचतंत्र की कई कहानियों में मनुष्य-पात्रों के अलावा कई बार पशु-पक्षियों को भी कथा का पात्र बनाया गया है तथा उनसे कई शिक्षाप्रद बातें कहलवाने की कोशिश की गई है।

पहला तंत्र-मित्रभेद (मित्रों में मनमुटाव एवं अलगाव)

  • प्रारंभ की कथा-मित्रभेद : पंचतंत्र
  • बन्दर और लकड़ी का खूंटा : पंचतंत्र
  • सियार और ढोल : पंचतंत्र
  • व्यापारी का पतन और उदय : पंचतंत्र
  • दुष्ट सर्प और कौवे : पंचतंत्र
  • मूर्ख साधू और ठग : पंचतंत्र
  • लड़ते बकरे और सियार : पंचतंत्र
  • बगुला भगत और केकड़ा : पंचतंत्र
  • चतुर खरगोश और शेर : पंचतंत्र
  • खटमल और बेचारी जूं : पंचतंत्र
  • रंगा सियार : पंचतंत्र
  • शेर ऊंट सियार और कौवा : पंचतंत्र
  • टिटिहरी का जोड़ा और समुद्र का अभिमान : पंचतंत्र
  • मूर्ख बातूनी कछुआ : पंचतंत्र
  • तीन मछलियां : पंचतंत्र
  • हाथी और गौरैया : पंचतंत्र
  • सिंह और सियार : पंचतंत्र
  • चिड़िया और बन्दर : पंचतंत्र
  • गौरैया और बन्दर : पंचतंत्र
  • मित्र-द्रोह का फल : पंचतंत्र
  • मूर्ख बगुला और नेवला : पंचतंत्र
  • जैसे को तैसा : पंचतंत्र
  • मूर्ख मित्र : पंचतंत्र