बात ऐसे बनी (कहानी) : गोनू झा

Baat Aise Bani (Maithili Story in Hindi) : Gonu Jha

गोनू झा का पड़ोसी था राम खेलौना । ब्राह्मण कुल में जन्मा था किन्तु आचरण से शूद्र । उसके पिता ने उसे पढ़ाने -लिखाने की बड़ी कोशिश की किन्तु वह गुरुकुल आने के स्थान पर गाछी में इस पेड़ से उस पेड़ चढ़ता-उतरता रहता । गाँव में उसके जैसे और भी बच्चे थे । लहेरागीरी करने, धमाचौकड़ी करने, धींगामस्ती करने में पूरा दिन गुजार देता । इसी तरह वह बड़ा हुआ था । न तो खेत-खलिहानी का काम जानता था और न गाय -गोरू का लालन पालन । जब तक उसके पिता जीवित रहे तब तक उसे भोजन की चिन्ता नहीं करनी पड़ी, लेकिन पिता की मृत्यु के बाद वह दाने-दाने के लिए मोहताज हो गया । उसकी हालत पर तरस खाकर गाँव के लोगों ने उसकी मदद भी की लेकिन कोई कितने दिनों तक किसी की मदद कर सकता है !

एक बार बारिश नहीं होने के कारण गाँव में सूखा पड़ा तो राम खेलौना की हालत और खराब हो गई । संयोग की बात थी कि उन्हीं दिनों गोनू झा का हरवाहा विपता बीमार पड़ गया । पहले हल्का बुखार हुआ । ठीक तरह से दवा -दारू नहीं कराने के कारण बुखार ने अपना स्वभाव बदला । वैद्य ने बताया कि उसे मियादी बुखार है। कम से कम इक्कीस दिन लगेंगे । बुखार ठीक होने के बाद भी परहेज से रहना होगा और अधिक शारीरिक श्रम नहीं करना होगा। नीरोग होने के बाद जब वह फिर से तन्दुरुस्ती हासिल कर ले, तब चाहे जो करे ।

विपता के बीमार होने से गोनू झा की परेशानी बढ़ गई थी । एक ओर तो दरबार जाना पड़ता था सही समय पर, दूसरी ओर उनके बथान में बँधी गाय -बछड़ों-बैलों की देखभाल थी । खेत की तमाई-निराई का अलग झंझट था । गोनू झा का भाई भोनू झा मनमौजी था । मन आया तो किसी काम में हाथ बँटा दिया नहीं, तो अपनी मस्ती में गाँव में मटरगश्ती करता फिरता । पंडिताइन बथान के काम में गोनू झा का हाथ जरूर बँटा देती थी मगर गाय-बछड़ों के लिए कुट्टी काटना, घास काटना, सानी- पानी तैयार करना, गाय -बछड़ों को नहलाना, दूध दूहना, गोबर से गोइठा थापना-बथान से जुड़े इतने काम थे कि अकेले पंडिताइन सँभाल ही नहीं सकती थी । आखिर घर का काम भी तो उसी पर निर्भर था । वह सुबह में सबसे पहले जागती, नहा-धोकर पूजा करती । वह जब जलपान तैयार कर रही होती तब जाकर कहीं गोनू झा की नींद खुलती । फिर शुरू होती बात-बात पर पंडिताइन की पुकार! गोनू झा अढ़ाते, पंडिताइन उसे पूरा करती । गोनू झा के दरबार जाने तक पंडिताइन को दम मारने की फुर्सत नहीं मिलती । फिर घर में कुटाई-पिसाई, गन्दे कपड़ों की धुलाई, चौका- बर्तन समय कैसे गुजर जाता, पता ही नहीं चलता । विपता था तो बथान की जिम्मेदारी से गोनू झा और पंडिताइन मुक्त थे। खेत-खलिहान की भी उन लोगों को चिन्ता नहीं करनी पड़ती थी । अभी दो दिन से विपता नहीं आ रहा था, तो गोनू झा के बथान-घर, खेत-खलिहान सबके काम आधे-अधूरे ही हो पाते । पंडिताइन कहती-विपता था तो पता ही नहीं चलता था कि काम कैसे हो गया । ठीक ही कहा गया है कि आदमी के नहीं रहने पर ही उसके गुणों की पहचान हो पाती है ।

घर में बढ़ती परेशानी और सूखे के असर से पैदा हुए चारा के अभाव से गोनू झा परेशान हो गए । पता नहीं विपता कहाँ से हरी-हरी घास लेकर आता था ! उसने कभी सूखा का रोना नहीं रोया ।

उधर सूखे की मार ने राम खेलौना को भी त्रस्त कर रखा था । पहले गाँव के लोग तरस खाकर उसे रोटी-तरकारी खिला भी देते थे लेकिन सूखे की आफत ने लोगों का जीना मुहाल कर दिया था । ऐसे में वे खुद अपनी रोटी के लिए दूसरों का मुँह ताकने पर मजबूर थे। गरज यह कि राम खेलौना का भी जीना मुहाल हो रहा था ।

एक दिन शाम को गोनू झा दरबार से लौट रहे थे तो उन्हें राह में राम खेलौना मिल गया । उन्होंने सोचा कि क्यों न राम खेलौना को बथान के काम में लगा दिया जाए! जब तक विपता स्वस्थ होकर आएगा, तब तक राम खेलौना बथान का काम सँभाल लेगा। विपता के आने पर देखेंगे कि राम खेलौना को कौन सा काम दें । उन्होंने राम खेलौना को रोका, पास बुलाया, उसका कुशल-क्षेम पूछा और जब राम खेलौना ने अपनी बदहाली का रोना रोया तो गोनू झा ने उसे बथान का काम सँभालने के लिए कहा। बदले में दो जून खाना के अलावा कुछ पैसा देने की भी बात हुई ।

राम खेलौना जो जीवन भर लहेरा की तरह रहा था, पहली बार जीवन में गम्भीर होकर काम करने की कोशिश में जुट गया । एक तो पंडिताइन का स्वभाव; दूसरा गोनू झा का व्यवहार उसे इतना अच्छा लगने लगा कि उसके काम टालने, अहमक की तरह जीने और दूसरों से माँग-चाँगकर खाने की प्रवृति में आमूल-चूल परिवर्तन हो गया और दो-तीन दिनों में ही उसने बथान का काम सँभाल लिया । गोनू झा निश्चिन्त हुए । पंडिताइन ने संतोष की साँस ली ।

विपता का बुखार एक महीने से ज्यादा रहा। उन दिनों व्याधिग्रस्त व्यक्ति को बुखार रहते, भोजन कदापि नहीं दिया जाता था । बुखार उतरने के बाद भी विपता की हालत जर्जर थी । किसी का सहारा लेकर बिस्तर से उठता और कोई सहारा देता तो बिस्तर पर लेट पाता । आठ-दस कदम चलता कि हाँफने लगता । गोनू झा, जब भी समय मिलता, उसे देखने चले जाते । उसके पथ्य की व्यवस्था करते और लौट आते । विपता की हालत ऐसी नहीं थी कि दो-तीन महीने से पहले ठीक हो जाए।

बथान का काम राम खेलौना ने सँभाल लिया था । इसलिए गोनू झा चाहते थे कि विपता पूरी तरह ठीक हो जाए तब ही काम पर लौटे ।

उधर राम खेलौना का मन पूरी तरह काम में रम गया था । उसे लगता कि काम ही क्या है ? दो घंटे सुबह और दो घंटे शाम मन लगा के काम कर लिया जाए तो पूरे दिन मटरगश्ती की छुट्टी। मटरगश्ती करते हुए जहाँ हरी घास दिख जाए – गढ़ लिया और लौट आए। दिन में भी भर पेट भोजन और रात में भी पेटभर भोजन । खाना कहाँ से आएगा, इसकी कोई चिन्ता नहीं। अब किसी से रोटी माँगने की कल्पना से भी शर्म आती राम खेलौना को । महीने भर में ही गोनू झा और पंडिताइन के साथ रहते हुए राम खेलौना के सोचने का तरीका बदल गया था । उसका स्वाभिमान जाग गया था ।

गोनू झा ने भी देखा कि राम खेलौना पूरी तरह बदल गया है । उन्होंने सोचा कि विपता आ जाए तो उसे बथान के काम में लगा देंगे और राम खेलौना को खेत-खलिहान की जिम्मेदारी सौंप देंगे । लड़का मेहनती है, जल्दी सीख जाएगा खेत-खलिहान का काम भी । विपता अभी बीमारी से उठा है, उसे खेत -पथार का काम देना ठीक नहीं होगा ।

जब विपता पूरी तरह स्वस्थ होकर गोनू झा के घर आया तब गोनू झा ने राम खेलौना से खेत का काम सँभालने और बथान का काम विपता को सौंप देने को कहा तो राम खेलौना के पाँव के नीचे से मिट्टी खिसकती महसूस हुई। वह बथान के काम में पूरी तरह निपुण हो गया था । अपना काम पूरे मनोयोग से करता था । पंडिताइन को चाची- चाची कहता था लेकिन माँ की तरह सम्मान देता था । उसे समझ में नहीं आया कि उससे कहाँ भूल हो गई कि गोनू झा उसे बथान के काम से हटाकर खेत-पथार का काम सँभालने को कह रहे हैं । उस समय तो वह चुप रहा मगर दूसरे दिन उसने गोनू झा से कहा कि वह खेत का काम नहीं करेगा । उसे मेहनताने के रूप में गोनू झा एक गाय दे दें तो वह उसकी सेवा करते हुए अपनी रोटी भी जुटा लेगा और गाय की सेवा का लाभ भी उसे मिलेगा । आखिर ब्राह्मण कोई निखिद काम तो कर नहीं सकता न !

गोनू झा ने उसे बहुत समझाने की कोशिश की मगर वह अपनी जिद पर अड़ा रहा। गोनू झा उसे खेती -किसानी का महत्त्व समझाते रहे :

उत्तम खेती, मध्यम वान
निकृष्ट चाकरी, भीख निदान।

लेकिन राम खेलौना क्षुब्ध था । उसे बस इतना लग रहा था कि गोनू झा बथान के काम से उसे अकारण हटा रहे हैं और खेत में बैल की तरह जोत रहे हैं । वह अपने को तिरस्कृत महसूस कर रहा था और इस कारण क्षुब्ध था ।

गोनू झा उसके मनोभाव को अच्छी तरह समझ रहे थे। उसमें आए सकारात्मक बदलाव से वे प्रभावित भी थे, लेकिन विपता को काम देना जरूरी था । दस साल का था विपता तब से उनके घर टहल -टिकोला में लगा था । बिलकुल घर के सदस्य की तरह हो गया था विपता ।

जब राम खेलौना की जिद बनी रही तब गोनू झा ने उससे कहा -"ठीक है, तब गाय नहीं, एक बछिया ले जाओ। जाओ, बथान में चुन लो ।"

राम खेलौना बोला-” बछिया ! मतलब गाय की बच्ची ? हम ले के क्या करेंगे ?" तब गोनू झा ने कहा -” यदि तुम्हें बछिया इसलिए नहीं चाहिए कि वह गाय की बच्ची है तो बथान में जाओ और जिस गाय की बच्ची न हो, उसे ले जाओ।"

राम खेलौना के साथ गोनू झा बथान में आए और राम खेलौना से बोले -"जाओ, चुन लो ।"

राम खेलौना ने एक सुन्दर-सी गाय की पीठ पर हाथ रखा तो गोनू झा ने पूछा, “क्या यह ऊँट की बच्ची है ?"

राम खेलौना को बात समझ में आ गई। जो भी गायें थीं, सभी तो कभी बछिया ही थीं । उदास होकर राम खेलौना बथान में एक से दूसरी गाय के पास जाता और उसे प्यार से सहलाता। गाय उसे चाटती ।

गोनू झा ने देखा कि बथान की सारी गायें राम खेलौना के स्पर्श से पुलकित हो जाती थीं । उन्होंने राम खेलौना से कहा -”मैंने तुम्हें यह थोड़े ही न कहा था कि तुम बथान में आओ ही नहीं! अरे पगले, विपता बीमारी से उठा है । खेत नहीं जा सकता, इसलिए खेत की बात तुम्हें कही थी ।"

राम खेलौना के चेहरे से उदासी के भाव हट गए । उसके चेहरे की रंगत लौट आई और उसने एक गाय का सिर सहलाते-सहलाते उसे चूम लिया ।

गोनू झा मुस्कुराते हुए बथान से बाहर निकल गए । राम खेलौना भी उनके पीछे-पीछे आया और बोला -"पहले सामने वाले खेत में हाथ लगाते हैं पंडित जी !"

गोनू झा मुस्कुराए और उसका कंधा थपथपाते हुए बोले-“तुम्हारा काम है जैसे करो! मैं उसमें दखल नहीं दूंगा ! अपनी गाय-बछिया पर भी नजर रखना !"

राम खेलौना को मानो सारा जहाँ मिल गया । गोनू झा वहाँ से चले गए और राम खेलौना बथान में एक गाय की पीठ सहलाने लगा ।

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