आँखों की तौल (कहानी) : गोनू झा

Ankhon Ki Taul (Maithili Story in Hindi) : Gonu Jha

मिथिला दरबार में गोनू झा की धूम मची रहती थी जिससे राम खेलावन मिश्र उर्फ मिसिर जी बहुत खीजे रहते थे। राम खेलावन यानी मिसिर जी की चलती तो आज और अभी गोनू झा की खाल नोच लेते। वे हमेशा गोनू झा को नीचा दिखाने की ताक में लगे रहते मगर गोनू झा थे कि उनकी एक न चलने देते ।

एक बार महाराज के दरबार में मिसिर जी पहुँचे और महाराज से कहने लगे-” महाराज ! मेरे साथ इन्साफ कीजिए ।"

महाराज ने पूछा-" कहिए राम खेलावन, क्या हो गया? कैसा इन्साफ चाहिए ?"

मिसिर जी ने महाराज से कहना शुरू किया “महाराज ! गोनू झा आज से दस साल पहले मेरे पास मदद माँगने आये थे। उन्हें एक आँख की जरूरत थी । उन्होंने मुझसे कहा मिसिर जी, मुझे अपनी एक आँख दे दीजिए । मैंने अपनी एक आँख उन्हें दे दी । अब मैं उनसे अपनी आँख माँग रहा हूँ तो वे दे नहीं रहे हैं ।

दरअसल राम खेलावन मिसिर की एक आँख बचपन में ही फूट गई थी । एक आँख वाले मिसिर जी की बात सुनकर महाराज ने पूछा “ठीक से बताइए, क्या हुआ था ...।"

गोनू झा दरबार में थे। उन्होंने समझ लिया कि जरूर मिसिर जी कोई चाल चलने वाले हैं । उनके चेहरे पर रहस्मयी मुस्कान आ गई। उन्होंने खुद आगे बढ़कर महाराज से कहा " महाराज, सच तो यह है कि मिसिर जी के पास मैं नहीं गया था । दस साल पहले मिसिर जी मेरे पास आए थे। उन्हें पैसों की जरूरत थी । वे अपनी एक आँख गिरवी रखकर मुझसे तीन हजार रुपए उधार ले गए थे। वे मेरे पैसे वापस कर दें तो मैं उनकी आँख वापस-कर दूंगा ।

मिसिर ने सोचा अब गोनू झा फँस गए। और उन्होंने महाराज से कहा “यही सही महाराज । यही सही । मुझे तीन दिन की मोहलत दीजिए। मैं आपके सामने गोनू झा को तीन हजार रुपए दूंगा और गोनू झा भी आपके सामने ही मेरी आँख वापस कर दें।"

गोनू झा मान गए।

महाराज अब तक समझ नहीं पाए थे कि आखिर यह सब हो क्या रहा है ? भला कोई अपनी आँख गिरवी कैसे रख सकता है ? और भला कोई किसी की आँख गिरवी क्यों रखेगा ? मगर जब इस बिन्दु पर दोनों रजामंद थे, महाराज भी क्या करते ? उनके सामने तो एक बेहद रोचक समस्या आई थी और वे देखना चाहते थे कि इसका समाधान क्या है ।

दरबारियों ने जब सुना तो वे आश्चर्य से दाँतों तले उँगलियाँ दबाने लगे। सबको इस बात की प्रतीक्षा थी कि कैसे तीन दिन बीतें कि वे इस रेहन की समस्या का समाधान देखें । सब सोच रहे थे कि क्या गोनू झा तीन हजार के बदले में अपनी आँख दे देंगे ?

अभी एक दिन बीता था कि गोनू झा ने एक शिकारी को बुलाकर कुछ पैसे दिए और कहा "जाओ, कल सुबह में कुछ जानवरों की आँखें चाहिएँ ।

गोनू झा दूसरे दिन दातून कर रहे थे कि शिकारी एक बर्तन में कई जानवरों की दस आँखें एक कपड़े में लपेटकर ले आया । उसने गोनू झा को वे आँखें दिखाईं तो गोनू झा बहुत खुश हुए। उन्होंने शिकारी से वे आँखें लेकर एक डिब्बे में रख लीं । इनमें कुछ आँखें बड़ी थीं, कुछ छोटी। कुछ किसी बड़े जानवर की तो कुछ छोटे जानवर की । गोनू झा इन आँखों को देखकर मुस्कुरा रहे थे। वे तैयार हुए और आँखों वाला डिब्बा लेकर दरबार में पहुंच गए।

महाराज आए । दरबारी आए। दरबार खचाखच भर गया । मिसिर जी महाराज के पास पहुँचे और कहा-"महाराज, मैं रुपये ले आया हूँ और आपके सामने गोनू झा को दे रहा हूँ । वे भी मुझे आपके सामने मेरी आँख दे दें । मिसिर जी मन ही मन खुश हो रहे थे कि आज गोनू झा की खैर नहीं । अब निकालें अपनी एक आँख । मिसिर जी सोच रहे थे कि अब उन्हें-लोग काना गोनू ही बुलाएँगे, जैसे लोग काना मिसिर कहते हैं पीठ पीछे।

गोनू झा उठे और मिसिर जी से रुपए ले लिए गिने । पूरे तीन हजार थे। अब उन्होंने आँखोंवाला डिब्बा निकाला और कहा “महाराज, मिसिर जी को अपनी आँख इस डिब्बे से निकाल लेने को कहें ।“

महाराज यह देखकर दंग थे कि डिब्बे में एक नहीं, दस आँखें थीं । मिसिर जी भी परेशान थे, अब क्या करें ? उन्होंने तो सोचा था कि नौबत गोनू झा की आँख निकालने की आएगी । अब तो माजरा ही बदल गया । मिसिर जी ने डिब्बे में रखी आँखें देखीं और अपनी अन्तिम चाल चली । कहा “इसमें मेरी आँख नहीं हैं । गोनू झा ने तुरन्त निदान सुनाया और बोले " महाराज मैं भी नहीं पहचान पा रहा हूँ कि इसमें मिसिर जी वाली आँख कौनसी है। मैंने अब तक दस आँखें गिरवी में रखी हैं । वे सारी आँखें इसी में हैं । फिर उन्होंने महाराज से कहा “महाराज, आप कृपा कर एक तुला मँगवा दें । मिसिर जी अपनी आँख निकालकर तुला के एक पलड़े पर रख दें । मैं उस आँख की तौल के बराबर की आँख उन्हें निकालकर दे दूंगा।"

मिसिर जी ने आपत्ति उठाई ‘ भला मैं अपनी आँख निकालकर कैसे तौलवाऊँ ?"

गोनू झा ने कहा “जैसे आपने आँख निकालकर गिरवी रखी थी ।"

अब मिसिर जी से कुछ भी बोलते नहीं बना तो वे मैदान छोड़कर लौटने लगे । महाराज समझ गये कि मिसिर जी गोनू झा पर झूठा आरोप मढ़कर परेशान कर रहे थे। उन्होंने भरे दरबार में राम खेलावन मिसिर को बुरी तरह फटकारा और चेतावनी दी कि अब कभी उन्होंने ऐसी हरकत की तो उनको दंड का भागी बनना पड़ेगा ।

गोनू झा अपनी रहस्यमयी मुस्कान के साथ अपने आसन पर आकर बैठ गए ।

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