गोनूक इनाम (मैथिली कहानी मैथिली में) : गोनू झा
Gonuk Inaam (Maithili Story in Maithili) : Gonu Jha
गोनू झा अपन बुद्धिमत्ता आ वाकपटुताक लेल नहि केवल मिथिले वरन् अरोस-परोसक राज्य मे सेहो मशहूर रहथि । हुनक पहुँच राज दरवार धरि रहनि आ अपन एहि गुणक लेल सभ ठाम समादृत होथि । राज दरवार मे चाहे कोनो समस्या विशेष पर चर्चा हो या कोनो आन ठामक विद्वान सँ शास्त्रार्थक गप्प, सभ ठाम हुनक उपस्थिति अनिवार्य रहनि । शास्त्रार्थ वा अन्य क्रम मे ओ बेसीकाल इनाम सेहो पाबथि आ तें कतेको दरबारी सहित आन लोक सभ हुनक उन्नति सँ जरनि । एहने स्थिति एकटा द्वारपालक छल जे राज दरवारक मुख्य द्वार पर तैनात छल । गोनू झा कें कतेको इनाम आदि भेटलनि किन्तु ओ ओहि द्वारपाल के कहियो बख्शीश नहि देलाह आ तें ओ विशेष रूप सँ गोनू सँ नाराज रह।
एकबेर एहन संजोग भेल जे कोनो दोसर राज्यक विद्वान मिथिला दरबार मे पधारलथि आ एहि ठामक विद्वान लोकनि के कोनो विषय पर शास्त्रार्थ करबाक लेल चुनौती देलनि । यद्यपि गोनू दरबार मे उपस्थित नै छलाह, तथापि हुनक चुनौती कें स्वीकार कयल गेलनि । शास्त्रार्थ शुरु तँ भेल, परन्तु गोनूक अनुपस्थिति मे मिथिलाक विद्वान लोकनि पिछड़य लगलाह । ता गोनू के कतहु सँ खबरि भेलनि जे आई मिथिलाक प्रतिष्ठा दाव पर लागल अछि, तँ ओ तुरंत राज दरवार दिस विदा भेलाह ।
राज दरवारक मुख्य द्वार बन्न छल आ दरबार मे शास्त्रार्थ होयबाक कारणें प्राय: ककरो प्रवेशक अनुमति नहि छल । आ तें मौका देखि द्वारपाल गोनू कें सेहो रोकि देलक । गोनू ओकरा बुझेबाक प्रयास कयलनि जे हमरा भीतर जाय दयह, कारण आई अपना राज्यक प्रतिष्ठा दाँव पर लागल अछि । परन्तु ओ गोनू सँ बदला चुकेबाक एहन अवसर के हाथ सँ नहि जाय देबय चाहैत छल आ तें कतबो कहलाक बाद द्वार खोलबाक लेल राजी नहि भेल । गोनू कें ई बुझबा मे भांगठ नहि रहलनि जे आखिर ई किएक द्वार नहि खोलि रहल अछि । ओ प्रसंग के बदलैत बजलाह । ठीक छै तों द्वार खोल । आई हमरा जे इनाम मे भेटत से हम तोरे देबौक । द्वारपाल प्रसन्नचित्त होईत द्वार खोलि देलक आ गोनू दरबार मे हाजिर भेलाह ।
हुनका पहुँचतहि शास्त्रार्थक रंग बदलि गेल आ पराजित होईत मिथिलाक विद्वान शास्त्रार्थ मे विजित भेलाह । वस्तुत: गोनू हारल बाजी कें पलटि देलनि आ सम्पूर्ण दर्बार मे हुनक चर्चा होमय लागल । चूँकि समय पर आबि कें गोनू मिथिलाक प्रतिष्ठाक रक्षा केलनि आ तें राजा हुनका १०० स्वर्ण मुद्रा इनाम देबाक घोषणा कयलनि । परंतु ई की? गोनू एहि इनाम कें लेबा सँ इन्कार कऽ देलनि । राजा कें भेलनि जे संभवत: राशि कम अछि आ तें गोनू इनाम नहि लय रहल छथि आ तें राजा पुन: १००० स्वर्ण मुद्रा इनामक घोषणा केलनि । परन्तु गोनू एहू बेर इनाम लेबा सँ इन्कार कऽ देलनि आ मन माफिक इनाम लेबाक बात कहलनि । राजा अपन स्वीकृति देलनि आ गोनू सँ अपन इच्छित इनामक विषय मे पुछलनि । परंतु गोनू इनाम मे २० सोंटा मारि मंगलनि । हुनक एहन इनामक मांग सूनि सभ कियो अचम्भित रहि गेल आ हुनका सँ पुनर्विचारक निवेदन कयल गेल । परन्तु गोनू अपन बात पर अडिग रहलाह । हारि कें राजा सिपाही कें हुनका २० सोंटा मारबाक आदेश देलनि ।
तखनहि गोनू बजलाह जे आई हम अपन इनाम मुख्य द्वार परहक द्वारपाल के गछने छियैक आ तें ई इनाम ओकरे देल जाय । तुरंत दूत मुख्य द्वार पर पहुँचल आ द्वारपाल सँ पुछलक जे गोनू आई तोरा अपन इनाम गछने छथुन से चलि कें लऽ ले । द्वारपाल बेस प्रसन्न भेल आ पहुँचल दरबार मे । परंतु एहि ठाम तँ दोसरे नजारा छल । ओकरा गोनू कें इनाम मे भेटल २० सोंटा खाय पड़लैक । ओहि दिन सँ ओ गोनुए नहि वरन् आन ककरो सँ बख्शीश माँगब छोड़ि देलक ।