बौराये भोनू का बचाव (कहानी) : गोनू झा
Bauraye Bhonu Ka Bachav (Maithili Story in Hindi) : Gonu Jha
भोनू झा गोनू झा के छोटे भाई थे । बड़े भाई के प्रति सम्मान भाव की कमी नहीं थी भोनू में, लेकिन उसे मलाल इस बात का था कि लोग जिस तरह गोनू झा को मानते और जानते हैं, उस तरह उसे नहीं । जो आता है वह गोनू झा से मिलने । जो भी पूछता है गोनू झा के बारे में पूछता है। कोई यदि भोनू झा से बात भी करता तो उसमें भी कहीं न कहीं गोनू झा की चर्चा आ ही जाती है। भोनू झा को लगा कि गोनू झा को यह सम्मान महज इसलिए प्राप्त है कि गोनू महाराज के दरबार में जाते हैं और महाराज को विस्मयकारी और अद्भुत बातें बताते हैं । इस निष्कर्ष पर पहुँचते ही भोनू झा ने निश्चय किया कि वह भी अपनी बुद्धि के बूते मिथिला नरेश के दरबार में जगह बनाएगा ।
इस निश्चय के साथ ही वह तरह-तरह की कल्पनाएँ करने लगा और एक दिन उसे कोई विचित्र-सी बात सूझ ही गई । फिर क्या था ! भोनू झा की कल्पना की उड़ान उसके दिमाग को सातवें आसमान पर ले गई। उसने अपना सबसे कीमती कुर्ता और रेशमी धोती निकालकर पहने। करीने से बाल सँवारे, और मिथिला नरेश के दरबार की ओर चल पड़ा । रास्ते भर वह अपने चेहरे पर तरह- तरह की भंगिमाएँ बनाता रहा । कुछ बुदबुदाता रहा । यानी वह रास्ते भर उस बात को दुहराता -तिहराता रहा जिस बात को बताने वह मिथिला नरेश के पास जा रहा था ।
जब भोनू मिथिला नरेश के दरबार के पास पहुँचा तब उसे मुख्य द्वार पर ही प्रहरी ने रोक लिया । प्रहरी की इस गुस्ताखी पर भोनू आग -बबूला हो गया । एक साधारण प्रहरी की यह मजाल कि उसे रोके? आखिर वह मिथिला नरेश के दरबार का भावी विदूषक है । प्रहरी से जिस समय भोनू झा दरबार में प्रवेश करने की हुज्जत कर रहा था उसी समय महाराज टहलते हुए उधर आए। जब महाराज ने सुना कि उनसे मिलने के लिए कोई आया है और मुख्य द्वार पर वह प्रहरी से उलझ रहा है तब उन्होंने अपने संतरी को निर्देश दिया कि जाओ, प्रहरी को बोल दो कि जो व्यक्ति मुझसे मिलना चाहता है उसे दरबार लगते ही हाजिर करे । इस निर्देश के बाद प्रहरी ने भोनू झा को आगंतुक कक्ष में ले जाकर बैठा दिया ।
आधे घंटे के बाद दरबार लगा तब भोनू झा को महाराज के सामने पेश किया गया । महाराज ने भोनू झा से पूछा -" तुम कौन हो ? और क्यों मुझसे मिलना चाहते थे, बताओ?"
भोनू झा महाराज के सामने तनकर खड़े हुए और कहा, “महाराज, मैं गोनू झा का भाई हूँ । मैं आपको एक अद्भुत जीव के बारे में जानकारी देने आया हूँ।"
भोनू झा के बोलने के अन्दाज से ही महाराज ने समझ लिया कि इस व्यक्ति में शिष्टाचार एवं सामान्य ज्ञान का अभाव है फिर भी उन्होंने भोनू झा से कहा-“बताओ, क्या जानकारी देना चाहते हो तुम ?”
“महाराज !" अपनी आँखों को फैलाते हुए भोनू झा ने कहा, मानो कोई विस्मयकारक वस्तु उसके सामने हो, और वह उसे देख रहा हो ।"मैं जब बाजार की ओर जा रहा था तब मैंने एक बहुत बड़ा खरगोश देखा। वह खरगोश कम से कम हाथी जितना बड़ा था । उसकी आँखें शेर जैसी और नाक हाथी के सूंड जैसा था । उस जीव के सिर पर कन्याओं जैसे कोमल बाल थे और उसकी आवाज कोयल जैसी थी ..."
महाराज समझ गए कि यह मूढ़ उनके सामने व्यर्थ की बकवास कर रहा है । महाराज को गुस्सा आ गया और उन्होंने उससे पूछा -" तुम वह जीव मुझे दिखा सकते हो ?"
इस सवाल का जवाब भोनू झा को देते नहीं बना और वह सिटपिटाया-सा महाराज के सामने खड़ा रहा ।
महाराज गुस्से में तो थे ही, उन्होंने आदेश दिया कि इस मूढ़ को ले जाकर कैदखाने में डाल दो !
जिस समय भोनू झा को कारावास में डालने का आदेश महाराज दे रहे थे, ठीक उसी समय गोनू झा दरबार में प्रवेश कर रहे थे। उन्होंने महाराज के आदेश को सुन लिया और महाराज के सामने खड़े भोनू झा को भी पहचान लिया । गोनू झा को समझते देर नहीं लगी कि आज भी अपनी धुनकी में भोनू झा कोई भूल कर बैठा है ।
गोनू झा को देखकर महाराज ने पूछा -" क्यों पंडित जी, यह आदमी आपका भाई है?" गोनू झा ने कहा-“जी हाँ, श्रीमान! यह मेरा भाई है। मगर बात क्या हुई है? आप इतने नाराज क्यों हैं ?”
महाराज ने गोनू झा को सारा किस्सा कह सुनाया । गोनू झा महाराज के सामने हँस पड़े और बोले-“महाराज ! भोनू ने तो बहुत बुद्धिमत्तापूर्ण बात बताई है। इसने बाजार जाते समय सड़क पर खरगोश देखा । खरगोश या खरहा यदि झाडियों में दिखे तो अचरज की बात नहीं । खरगोश शर्मीला प्राणी है। बाजार की चहल -पहल वाली सड़क पर खरगोश दिखना विस्मयकारी है । हाथी जैसा खरगोश इसने इसलिए कहा कि खरगोश उसी तरह संवेदनशील और बुद्धिमान जानवर है जिस तरह कि हाथी । शेर जैसी आँखें बताकर इसने आपको यह बताना चाहा कि शेर जैसी सूक्ष्मभेदी दृष्टिखरगोश की भी होती है। किसी भी कन्या के बाल कोमल होते हैं और खरगोश के भी ! कोयल की आवाज जैसी खरगोश की आवाज बताकर इसने आपको यह बताने की कोशिश की कि कोयल की आवाज यदा-कदा ही सुनने को मिलती है । बसंत ऋतु के समाप्त होने के बाद तो कभी कोयल की कूक सुनाई ही नहीं पड़ती । खरगोश भी मूक प्राणी है । महाराज, इसने बिम्बों के माध्यम से लाक्षणिक भाषा का उपयोग करके आपके सामने यह प्रमाणित करने की कोशिश की कि वह भी बुद्धिमान है और शब्दों को अपने ढंग से अर्थ दे सकता है।"
महाराज समझ गए कि गोनू झा अपने अनुज की तरफदारी कर रहे हैं । और भोनू झा को यह बात समझ में आ गई कि आखिर किन कारणों से महाराज गोनू झा को इतना महत्त्व देते हैं ।
महाराज ने भोनू झा को बरी कर दिया और गोनू झा की ओर देखकर मुस्कुराते हुए बोले -"बात करने की कला तो पंडित जी, कोई आप से सीखे।"
महाराज की बात सुनकर गोनू झा भी मुस्कुराने लगे।