शुद्ध मिठाई का भोज (कहानी) : गोनू झा

Shuddh Mithaai Ka Bhoj (Maithili Story in Hindi) : Gonu Jha

गोनू झा अपनी माँ से बहुत प्यार करते थे। उनकी माँ बहुत वृद्ध हो चुकी थीं । एक दिन उनकी माँ बीमार पड़ीं । वैद्य आए। उन्हें देखा। दवा दी । मगर उनकी माँ की हालत में सुधार नहीं हुआ । गोनू झा चिन्तित थे । उन्होंने वैद्य से माँ की बीमारी के बारे में पूछा तो वैद्य जी ने कहा-“सबसे बड़ी बीमारी तो बुढ़ापा की जीर्ण- शीर्ण काया है पंडित जी । इसका इलाज तो महर्षि च्यवन के पास भी नहीं था । अब जी भरकर माँ की सेवा कीजिए और उनका गोदान भी करा ही लीजिए । यह समझिए कि चल-चलंती की बेला है । मैं तो दवा इसलिए दे रहा हूँ कि जब तक साँस, तब तक आस । बाकी सब ऊपरवाले के हाथ में हैं ।"

गोनू झा समझ गए कि उनकी माँ अब बचनेवाली नहीं हैं । वे मन लगाकर अपनी माँ की सेवा करते रहे और एक दिन उनकी माँ की मौत हो गई । अपनी माँ की मौत पर फूट फूटकर रोए गोनू झा ! गाँववालों ने उन्हें समझाया-“सबकी माँ मरती है । इस तरह मन छोटा करने से नहीं चलेगा । उन्हें अब माँ के अन्तिम संस्कार और क्रियाकर्म की तैयारी में लगना चाहिए। यही दुनियादारी है।" गोनू झा शान्त हुए। गाँववालों ने उनका साथ दिया और उनकी माँ की अंत्येष्टि सम्पन्न हुई ।

अभी उनकी माँ की चिता ठंडी भी नहीं हो पाई थी कि गाँववालों ने गोनू झा को घेरकर समझाना शुरू किया कि उन्हें अभी से माँ के क्रियाकर्म और श्राद्ध के लिए तैयारी शुरू कर देनी चाहिए।

पहले तो गोनू झा शान्त रहकर ग्रामीणों की बात सुनते रहे फिर उन्होंने ग्रामीणों से कहा-“आप लोग ठीक ही कह रहे हैं मगर मैं ठहरा गरीब ब्राह्मण । कोई बड़ा इन्तजाम तो मैं कर नहीं पाऊँगा माँ के श्राद्ध पर पाँच ब्राह्मणों को भोजन करवाने से काम चल जाएगा ?"

उनकी बात सुनकर एक वृद्ध ग्रामीण बोल पड़ा-“ब्राह्मण होकर क्यों चंडालों की तरह बात कर रहे हो गोनू ? तुम्हारी माँ गाँव की सबसे वृद्ध महिला थीं । उनका सरोकार इस गाँव से तो क्या, आस-पास के सभी गाँवों से था । उनके श्राद्ध पर तो तुम्हें पच्चीस गाँव के लोगों को बड़ा भोज देना चाहिए- शुद्ध मिठाइयों का भोज, समझे।"

गोनू झा ने पूछा-“शुद्ध मिठाइयों का भोज ?"

ग्रामीणों ने कहा-“और नहीं तो क्या ?"

उस समय गोनू झा चुप रह गए ।

अंत्येष्टी सम्पन्न हो जाने के बाद सभी ग्रामीणों के साथ वे भी गाँव लौट आए । लेकिन पच्चीस गाँवों के भोज की बात उन्हें बेचैन कर रही थी । शुद्ध मिठाई का भोज... और पच्चीस गाँव के लोग !

अन्ततः गोनू झा ने नाई को बुलाया और अपनी माँ के श्राद्ध पर पच्चीस गाँवों को शुद्ध मीठा भोज के लिए आमंत्रण भेज दिया ।

अन्ततः श्राद्ध का दिन आ गया । गोनू झा ने सुबह में ही अपने खेत से ईख कटवाकर मँगवा लिए थे और ईख को छोटे टुकड़ों में कटवा लिया था ।

पाँत दर पाँत लोग बैठे । गाँव के खेतों और सड़कों तक श्राद्ध का भोज खाने आए लोगों से पट गया । पत्तल बिछ जाने के बाद गोनू झा सभी पत्तल में एक-दो ईख का टुकड़ा रखते चले गए और पाँत के अन्त में खड़े होकर हाथ जोड़कर बोले-“कृपया अब भोजन ग्रहण करें ।"

उनकी इस बात पर भोज खाने आये लोग गुस्से में आ गए और कहने लगे – “पंडित जी, यह क्या ? यह तो सरासर हमारा अपमान है । इस तरह कोई घर बुलाकर मेहमानों का अपमान करता है ? शुद्ध मिठाई के भोज की बात कहकर आपने हम लोगों को बुलाया और अब गन्ने का टुकड़ा परोस रहे हैं ?"

गोनू झा अपने दोनों हाथ जोड़कर विनम्रतापूर्वक बोले-“आगत अतिथियो, आप सबों का मैं हृदय से स्वागत कर रहा हूँ । आप सोचें, मुझ गरीब ब्राह्मण से मेरे गाँव के वृद्धजनों ने पच्चीस गाँव के लोगों को शुद्ध मिठाई का भोज देने को कहा । मैंने सबसे अपनी गरीबी का वास्ता देकर पाँच ब्राह्मणों को भोजन करवाकर श्राद्ध की प्रक्रिया पूरी कर लेने का आग्रह किया था मगर किसी ने मेरी बात नहीं मानी... अन्त में मैंने शुद्ध मीठा भोज देना स्वीकार कर लिया । आप लोग भी स्वीकार करेंगे कि गन्ने से ज्यादा शुद्ध और मीठा कोई फसल हमारे खेतों में नहीं उपजता-आप लोग इसे ग्रहण करें और मेरी माँ की आत्मा की शान्ति के लिए भगवान से प्रार्थना करें ।"

उनकी बात सुनकर पड़ोस के गाँव के लोगों ने उनकी विवशता समझी और रुचि से गन्ना चूसा और वहाँ से विदा होते समय गोनू झा से कहा -" आपने जो भी किया अच्छा किया... इससे आपके लोभी गाँववालों को भी अच्छा सबक मिल गया ... अब वे लोग किसी की मजबूरी का फायदा उठाकर अपना पेट छप्पन पकवानों से भरने की कल्पना नहीं करेंगे।"

दूसरे गाँवों से आए लोगों की प्रतिक्रिया सुनकर गोनू झा के गाँव के उन लोगों का चेहरा उतर चुका था जिन लोगों ने गोनू झा को शुद्ध मिठाइयों का भोज कराने की सलाह दी थी ।

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