समान वितरण व्यवस्था (कहानी) : गोनू झा
Samaan Vitran Vyavastha (Maithili Story in Hindi) : Gonu Jha
एक दिन मिथिला नरेश के दरबार में एक साधु आया । नरेश ने उनकी आवभगत की । श्रद्धा से कर जोड़े। आशीष ग्रहण किया ।
साधु ने बताया कि वह चारों धाम का भ्रमण करके लौटा है । मिथिला में अपने यजमानों को प्रसाद बाँटता हुआ महाराज के पास उन्हें और उनके दरबारियों को प्रसाद देने की इच्छा से वह वहाँ आया है। प्रसाद वितरण तक ही वह वहाँ रुकेगा, उसके बाद विदा हो जाएगा । साधु ने महाराज को अपनी थैली से निकालकर चार बताशे दिए और कहा -" राजन्! ये चार बताशे, चारों धाम के प्रसाद हैं । इनका समान वितरण यहाँ दरबारियों के बीच होना चाहिए । हाँ, ध्यान रहे कि प्रसाद सबसे पहले आप ही ग्रहण करेंगे।
महाराज विस्मित भाव से अपनी तलहथी पर पड़े चार बतासों को थोड़ी देर तक देखते रहे फिर उन्होंने अपने दरबारियों की तरफ देखा । उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि इन चार बताशों का सभी दरबारियों के बीच समान वितरण कैसे हो सकता है ? अन्ततः उन्होंने एक वृद्ध दरबारी को बुलाकर चारों बताशे दिए और बोले -" आप बुजुर्ग हैं । आप ही इन बताशों का समान विवरण करें ।"
वह दरबारी कुछ कह नहीं पाया । उसकी भी स्थिति महाराज जैसी ही थी । जिस तरह महाराज की समझ में कुछ नहीं आया था, उसी तरह इस वृद्ध दरबारी की समझ में कुछ नहीं आया कि आखिर कैसे इन चार बताशों को सभी दरबारियों के बीच बराबर -बराबर बाँटा जाए ?
थोड़ी देर मौन रहने के बाद साहस करके उस वृद्ध दरबारी ने महाराज से कहा -" महाराज ! मुझे ऐसी युक्ति स्मरण नहीं जिससे इन चार बताशों को सभी दरबारियों में बराबर- बराबर बाँटा जा सके। महाराज, मुझे क्षमा करें और यह कार्य किसी अन्य को सौंप दें ।"
महाराज ने कई दरबारियों को बुलाया लेकिन उनमें से कोई भी दरबारी इस काम के लिए राजी नहीं हुआ ।
दरबार में बैठा काना नाई, जो गोनू झा से बैर भाव रखता था, हठात् अपने आसन से उठा और महाराज से कहने लगा -"महाराज ! यह कार्य इस दरबार में केवल एक ही व्यक्ति कर सकता है-वह और कोई नहीं, हमारे दरबार के सबसे गुणी व्यक्ति गोनू झा जी हैं । आप यह कार्य उन्हें सौंपे... फिर कोई समस्या नहीं रहेगी।"
महाराज काना नाई की कुटिलता भाँप गए। गोनू झा ने भी समझ लिया कि काना नाई ने इस कार्य को असम्भव मानकर उन्हें नीचा दिखाने के लिए उनके नाम का प्रस्ताव किया है । इस बात को भांपते ही गोनू झा के होंठों पर मुस्कान तैर गई ।
महाराज ने गोनू झा की तरफ देखा ही था कि गोनू झा अपने आसन से उठ गए और मुस्कुराते हुए बोले-“जी हाँ, महाराज मैं इस प्रसाद का सभी दरबारियों में समान वितरण करूँगा। आप आदेश दें ।"
महाराज ने उन्हें बुलाकर बताशे दे दिए । गोनू झा ने श्रद्धापूर्वक अपनी 'अँजुरी' में बताशे लिए और महाराज से विनीत स्वरों में बोले-“महाराज ! कृपा कर एक ‘माठ' (मिट्टी का बड़ा घड़ा ) जल, दरबार में उपस्थित लोगों की गणना के बराबर मिट्टी के कुल्हड़, एक बोतल गुलाब जल और एक पसेरी चीनी की व्यवस्था यथाशीघ्र करवा दें ।"
गोनू झा की माँग तत्काल पूरी करने का निर्देश महाराज ने दे दिया । थोड़ी ही देर में सारी वस्तुएँ दरबार में आ गईं । गोनू झा ने चीनी पानी से भरे माठ में डाल दिया । फिर उसमें गुलाब जल की बोतल खोलकर सारा गुलाब जल उड़ेल दिया । फिर उन्होंने एक करछुल की माँग की । करछुल भी आया । एक आदमी को गोनू झा ने माठ के पानी में डाले गए चीनी को हिलाकर पानी में घुलाने का निर्देश दिया । दरबारीगण आँखें फाड़े सारी गतिविधियाँ देख रहे थे। किसी की भी समझ में नहीं आ रहा था कि गोनू झा आखिर करना क्या चाहते हैं ।
थोड़ी देर तक दरबारियों की विस्मित निगाहों का गोनू झा आनन्द उठाते रहे । अन्त में उन्होंने अपने हाथ से चारों बताशे को एक-एक कर पानी में डाल दिया और ऊँची आवाज में बोले – “महाराज ! अब यह पूरा माठ बताशे के शर्बत से भरा हुआ है और शर्बत, केवल शर्बत न माना जाए। यह चारों धाम का प्रसाद है। “ अपने दोनों हाथों में एक-एक कुल्हड़ शर्बत लेकर गोनू झा महाराज के पास आए और बोले -"साधु महाराज की आज्ञा के अनुसार सबसे पहले प्रसाद आप ग्रहण करें । “ दूसरा कुल्हड़ उन्होंने साधु की ओर बढ़ाया और बोले -"आप इस राज्य के शुभ की कामना रखते हैं तभी महाराज को प्रसाद देने के लिए पधारे। आप हमारे अतिथि हैं-देवता समान। इसलिए यह प्रसाद आप भी ग्रहण करें ।"
इसके बाद समस्त दरबारियों में कुल्हड़ में शर्बत बाँटा गया । गोनू झा ने भी शर्बत पीया ।
अभी शर्बत पीने -पिलाने का दौर चल ही रहा था कि साधु अपने आसन से उठ खड़ा हुआ और बोला-“राजन! जिस राज्य में ऐसा गुणी आदमी मौजूद है उस राज्य में हमेशा श्रीवृद्धि होती रहेगी ।"
साधु आशीष देता हुआ वहाँ से चला गया ।
दरबारी मुक्त कंठ से गोनू झा की प्रशंसा कर रहे थे और काना नाई जल- भुनकर खाक हुआ जा रहा था ।