गोनू झा की शरण में दरबारी (कहानी)
Gonu Jha Ki Sharan Mein Darbari (Maithili Story in Hindi)
गोनू झा अपने वाक्चातुर्य से सबका दिल जीत लेते थे। महाराज उनकी प्रतिभा के कायल थे। कठिन से कठिन अवसर पर गोनू झा का सुझाव उन्हें जंचता और वे उसे आजमाते । उलझनें सुलझ जातीं । प्रायः मिथिला नरेश भरे दरबार में गोनू झा के सुझावों की सराहना करते । समय-समय पर गोनू झा को पुरस्कृत भी करते जिसके कारण मिथिला दरबार के अधिकांश दरबारी उनसे चिढ़ते थे और ईर्ष्या वश उन्हें नीचा दिखाने का अवसर तलाशते रहते थे। गोनू झा इस स्थिति से परिचित थे मगर इन बातों पर वे ध्यान नहीं देते थे कि उन्हें कौन क्या कहता है । मस्त रहना उनके स्वभाव में शामिल था ।
मिथिला नरेश के दरबार में एक बार एक बहेलिया एक तोता लेकर आया जो समय के अनुसार उचित बातें बोल सकता था । जैसे सवेरा होने पर तोता गाता – 'सूरज निकला पूरब ओर, जागो भइया हो गई भोर।'
किसी आगंतुक की आहट पर वह पूछता-'कौन हो भाई ? कहाँ से आए हो ? थोड़ी प्रतीक्षा करो। स्वामी विश्राम कर रहे हैं ।'
किसी के प्रस्थान करने पर बोलता-'अच्छा लगा आपसे मिलकर। फिर आइएगा । शुभ विदा ।'
मिथिला नरेश को जब बहेलिए ने तोता दिखलाया तो उन्होंने उसे एक साधारण तोता समझा लेकिन बहेलिया द्वारा चुटकी बजाए जाने पर तोते ने कहा-“महाराज की जय हो ! हम आपकी सेवा में समर्पित हैं । आदेश करें महाराज!"
महाराज तोता की मुग्धकारी आवाज सुनकर चकित हुए। उन्होंने बहेलिए से पूछा, ” यह और क्या बोलता है ?"
बहेलिए के कुछ पूछने से पहले ही तोते ने जवाब दिया -"बहुत कुछ महाराज !"
महाराज को तोता पसन्द आया । बहेलिए ने महाराज को बताया कि समय के अनुसार स्थिति भाँपकर यह तोता लगभग सौ तरह के वाक्य बोल सकता है । महाराज ने बहेलिए को तोते की मुंहमांगी कीमत देकर विदा किया ।
महाराज के लिए यह तोता अद्भुत था । बड़े जतन से सिखाया-पढ़ाया गया यह तोता दरबार के लिए शोभा बन गया । महाराज ने उसके लिए अपने सिंहासन के पास ही एक मेज लगवा ली । जब महाराज दरबार में आते तो उनके साथ यह तोता भी पिंजड़े में लाया जाता । जब महाराज महल में जाते तो उनके साथ तोते का पिंजरा भी ले जाया जाता ।
समय गुजरता गया और महाराज का इस तोते के साथ लगाव भी बढ़ता गया । दूसरे राज्यों से यदि कोई विशेष अतिथि महाराज से मिलने आता तो महाराज अपने तोते की कौतुक पैदा करनेवाली पंक्तियों से उसे चमत्कृत करने में गौरव महसूस करते ।
एक दिन की बात है । महाराज को अचानक किसी कार्यवश दरबार से उठकर कहीं जाना पड़ा । जाते समय महाराज ने दरबारियों को निर्देश दिया कि वे तोते का खयाल रखें तथा चेतावनी भी दी कि तोते के साथ यदि कोई छेड़छाड़ हुई तो किसी की खैर नहीं ।
संयोग था कि उस समय तक दरबार में गोनू झा नहीं आए थे। महाराज के जाने के बाद गोनू झा दरबार में आए तो पाया कि सभी दरबारी मुँह लटकाए बैठे हैं । महाराज दरबार में नहीं हैं तथा तोता पिंजरे में मरा पड़ा है ।
गोनू झा ने एक दरबारी से पूछा “महाराज कहाँ हं ? तोते की यह हालत किसने की ?"
दरबारी ने उन्हें बताया “महाराज अचानक किसी काम से उठकर कहीं गए हैं तथा वे जाते -जाते यह कह गए थे कि तोते का खयाल रखना । महाराज ने यह चेतावनी भी दी थी कि तोते के साथ किसी ने छेड़छाड़ की तो उसकी खैर नहीं । सभी दरबारी अपने आसनों पर बैठे महाराज के आने की प्रतीक्षा करते रहे । इस बीच न जाने किधर से एक संकरा साँप पिंजरे से लिपट गया । तोता के टें -टें से हम लोगों का ध्यान उधर गया । हम लोग कुछ कर पाते इससे पहले ही साँप ने तोते को डंस लिया ।"
पूरी कहानी सुनने के बाद गोनू झा गम्भीर मुद्रा में अपने आसन पर जाकर बैठ गए । गोनू झा को चुप देखकर कुछ दरबारी उनके पास आए तथा उनसे पूछने लगे कि अब क्या होगा ? महाराज जब पूछेंगे कि तोता कैसे मरा?... इतने दरबारी एक तोता का ध्यान नहीं रख पाए... तब हम लोग क्या जवाब देंगे?
गोनू झा ने उनसे कहा- “आप लोग विद्वान हैं, मैं आपको जवाब सुझाऊँ, यह मुझे शोभा नहीं देता।"
दरबारियों ने उनका कटाक्ष भाँप लिया । फिर भी उनमें से कुछ ऐसे दरबारी गोनू झा के आसन के निकट आ गए जो वाकई गोनू झा के वाक्चातुर्य के प्रशंसक थे । उन लोगों के आग्रह पर गोनू झा ने कहा -" ठीक है, तोते की मृत्यु की सूचना मैं अपने ढंग से महाराज को दे दूंगा लेकिन आप सभी वही करेंगे जो मैं कहूँगा, तब तो यह जिम्मा मैं ले लूँगा और यदि आपमें से एक भी आदमी मेरी बात से सहमत नहीं हो तो तब मैं इस मामले में नहीं पडूंगा ।"
सभी दरबारी एक स्वर में बोले – “पंडित जी ! आप जो भी निर्देश दें, उसका पालन हम लोग करेंगे।"
तब गोनू झा ने कहा” सबसे पहले तोते का पिंजरा आप दरबार से बाहर ले जाकर रख दीजिए। महाराज जब पिंजड़े के बारे में पूछेंगे तो आप में से हर आदमी केवल यही कहेगा कि पिंजड़ा बाहर है। जब महाराज किसी को पिंजरा लाने के लिए कहें तो वह बाहर चला जाए मगर वापस नहीं आए।"
सभी ने गोनू झा का यह निर्देश मानने की स्वीकृति दे दी और बोले-" बस पंडित जी, आप जैसा कहें हम करेंगे। हम आपकी शरण में हैं । महाराज के क्रोध से बचाने का बस आप ही कोई उपाय कर सकते हैं ।"
जब महाराज दरबार में वापस आए तो पाया कि तोते का पिंजड़ा वहाँ नहीं है। उन्होंने दरबारियों से उसके बारे में पूछा तो जवाब मिला -" बाहर है ।"
महाराज ने पूछा-" क्यों बाहर है, जाइए, उसे लेकर आइए।" उन्होंने एक दरबारी को इशारा किया । दरबारी उठा बाहर चला गया । मगर लौटा नहीं।
एक के बाद एक दरबारी भेजे गए मगर उनमें से कोई वापस नहीं आया । राजा तोते के लिए बेचैन थे। अन्ततः उन्होंने गोनू झा से कहा-“क्या बात है ? क्या तोता मर गया ?"
गोनू झा ने कहा-“महाराज! मैं यह कैसे कह सकता हूँ? छोटा मुँह बड़ी बात होगी।"
" चलिए पंडित जी ! हम स्वयं देखते हैं, " मिथिला नरेश ने गोनू झा से कहा ।
गोनू झा तत्परता से उठे और महाराज के साथ चल पड़े । दरबार से बाहर निकलने पर महाराज ने दाएँ- बाएँ सिर घुमाकर तोते के पिंजड़े की खोज की तो उन्हें पास में ही रखा गया पिंजड़ा दिख गया ।
पिंजडे में तोता लुढ़का हुआ पड़ा था । उसे देखते ही महाराज विस्मित भाव में बोल पड़े– “अरे, यह तो सचमुच ही मर गया है! "
गोनू झा ने कहा “जब आप बोल रहे हैं महाराज, तो सच ही होगा।”
महाराज समझ गए कि तोते की मौत की खबर दरबारी उनके डर के कारण ही उन्हें नहीं दे पाए ।
उन्होंने दरबार में जाकर शेष रह गए दरबारियों से कहा -"तोते के मरने का मुझे बहुत दुःख है मगर मैं जानता हूँ कि इस तोते की मौत का कारण आप में से कोई नहीं है इसलिए बिना किसी भय के आप मुझे बताएँ कि तोते को क्या हो गया अचानक कि वह मर गया ।"
तब एक दरबारी ने डरते- डरते तोते को साँप के काटने की घटना बताई जिसे सुनने के कुछ देर बाद ही महाराज सिंहासन से उठ खड़े हुए और उस दिन दरबार स्थगित कर दिया गया और महाराज महल की ओर चले गए ।
यह पहला मौका था जब गोनू झा दरबार से निकल रहे थे तो राजदरबार के सभी दरबारी उनके आस- पास, या पीछे-पीछे चल रहे थे तथा उनकी सराहना कर रहे थे । गोनू झा की चाल में अलमस्ती बढ़ गई थी ।