पोथी हुई समाप्त (कहानी) : गोनू झा
Pothi Hui Samapt (Maithili Story in Hindi) : Gonu Jha
गोनू झा जब बच्चे थे तब उनका मन पढ़ाई में नहीं लगता था । उनके माता-पिता थे कि उनके पीछे हाथ -धोकर पड़े रहते थे कि वे पढ़ें । गोनू झा बातूनी भी थे और चालाक भी । स्कूल में गुरुजी की बेंत से बचने का कोई न कोई अच्छा बहाना वे निकाल ही लेते थे और सहपाठियों के साथ चुहल करने से भी वे बाज नहीं आते थे । उनकी हाजिरजवाबी मुग्धकारी थी जिसके कारण शिक्षकों का गुस्सा भी ठंडा हो जाया करता था ।
एक दिन उनके शिक्षक ने उनसे कहा - “ सुनो गोनू ! तुम बुद्धिमान हो , चालाक हो , विवेकशील हो फिर भी तुम शैतानियाँ करते रहते हो । यह अच्छी बात नहीं है। मैं देखता हूँ , तुम दिन भर कक्षा में सहपाठियों से बातें करते रहते हो । अब यह सब छोड़ो और अच्छे विद्यार्थी की तरह कक्षा में ध्यान से गुरुजनों की बातें सुनो । अपना पाठ याद करो। तुम पढ़ाई पर थोड़ा भी ध्यान दोगे तो बहुत अच्छा करोगे । "
गोनू झा हमेशा की तरह बोले - “ जी, गुरुजी ! मैं कक्षा में आपकी बातें ध्यान से सुना करूँगा। "
गुरुजी को लगा कि गोनू झा पर उनकी बातों का असर हुआ है । उन्होंने गोनू झा को चेताया - “ यदि अब से मैंने देख लिया कि तुम कक्षा में सहपाठियों से बातें कर रहे हो या सबक बनाकर नहीं आए हो तो समझ लो कि तुम्हें कठोर दंड दूंगा । "
गोनू झा ने गुरुजी की गम्भीर वाणी सुनी तो घबरा गए और कहने लगे -"नहीं गुरुजी । अब मैं कक्षा में शैतानी नहीं करूंगा। किसी से बातचीत नहीं करूँगा। आप जो सबक देंगे , उसे पूरा करूँगा। "
गुरुजी ने उस दिन गोनू झा को पाठ याद करने के लिए दिया और कहा कि कल जब विद्यालय आओगे तो यह पाठ अवश्य याद हो जाना चाहिए । गोनू झा ने हामी भर दी । स्कूल में छुट्टी की घंटी बजी । गोनू झा घर वापस आए। बस्ता ताक पर रखा और खेलने चले गए। खेलकर लौटे तो भोजन किया और सो गए । दूसरे दिन जब वे स्कूल पहुँचे तो कक्षा में शिक्षक ने पाठ सुनाने को कहा। गोनू झा बहुत शान्त होकर बोले - “ गुरुजी, आपने तो कहा था कि कल सुनाना । इसलिए आज मैं याद करके नहीं आया । कल सुना दूंगा । "
गुरुजी को गुस्सा आ गया । उन्होंने गोनू झा की कान उमेठ दी और बोले - “ कल पाठ ही नहीं, पूरी पोथी खत्म करके आओगे , नहीं तो तुम्हें ऐसा दंड दूंगा कि तुम्हारी सारी चालाकी आँसुओं में घुल जाएगी । समझ गए न? "
गोनू झा ने अपना कान सहलाते हुए कहा - 'जी , गुरुजी' ।
फिर छुट्टी हुई । गोनू झा घर लौटे और फिर पहुँच गए खेल के मैदान में । घर पहुँचे। खाना खाया । माँ से किस्से सुने और सो गए । दूसरे दिन विद्यालय जाने के लिए तैयार हुए और बस्ते में स्लेट रहने दिया और सारी किताबें निकालकर ताके पर रख दीं । फिर चल दिए स्कूल । गुरुजी ने कक्षा में हाजिरी ली और उसके बाद गोनू झा की पटरी के पास पहुँचे। उन्होंने देखा, गोनू झा के बस्ते में स्लेट तो है मगर किताबें नहीं हैं । गुरु जी गुस्से से आग बबूला हो गए। सोचने लगे कितना ढीठ है गोनू झा ! दो दिनों से डाँट सुन रहा है मगर सुधरने का नाम नहीं ले रहा है । उन्होंने पूछा - “ गोनू, क्या बात है - तुम किताब ले के नहीं आए हो ? "
गोनू झा खड़े हुए और बोले - “ गुरुजी, कल आपने ही तो कहा था कि पाठ क्या ? कल तुम पोथी खतम करके आना, तो मैं विद्यालय आने से पहले पोथी तालाब में बहाकर आया हूँ । आपके आदेशानुसार मैंने पोथी खत्म कर दी है । ”
गुरुजी को अपने शब्द याद आए तो वे सिर पर हाथ रखकर बैठ गए । गोनू को वे कहें तो क्या कहें ? वे समझ नहीं पा रहे थे और गुरुजी की यह हालत देखकर गोनू झा मन ही मन मुस्कुरा रहे थे।