गंगा का आशीर्वाद (कहानी) : गोनू झा

Ganga Ka Aashirvad (Maithili Story in Hindi) : Gonu Jha

एक बार की बात है। गोनू झा का पुत्र बीमार पड़ गया । गाँव के वैद्य की चिकित्सा चली मगर वह ठीक नहीं हुआ। राज वैद्य से परामर्श लिया गया मगर व्यर्थ। राज वैद्य के निदान भी विफल हो गए । गोनू झा और पंडिताइन दोनों अपने पुत्र के स्वास्थ्य की चिन्ता में निमग्न थे। तभी किसी ने उन्हें घौघड़ बाबा से बच्चे को झड़वा लेने की सलाह दी । गोनू झा बुद्धिजीवी थे। टोना -टोटका, जन्तर-मन्तर, झाड़-फूंक आदि में उनका विश्वास नहीं था ।

पंडिताइन मिथिलांचल की अन्य महिलाओं की तरह ही सामान्य-संस्कारोंवाली महिला थी । पूजा-पाठ, नियम-धरम पर चलने वाली। साधु-संतों का सम्मान करने वाली । एकादशी, पूरनमासी करनेवाली । सूर्य को जल दिए बिना एक दाना भी मुँह में नहीं डालती थी ।

जब घौघड़ बाबा से बच्चे की झाड़-फूंक कराने की बात आई तो गोनू झा भन्ना गए और परामर्शदाता को झिड़क दिया ।

मगर परामर्शदाता की बात पंडिताइन के मन में बैठ गई । वह सोचने लगी कि क्या पता कोई दैव-लीला ही न हो ! भगवान तरह- तरह से अपने भक्तों की परीक्षा लेते हैं क्या पता घौघड़ बाबा के झाड़ने फूंकने से ही बच्चा ठीक हो जाए! संयोग को कौन जानता है ! उसने गोनू झा को मनाने की कोशिश की, मगर गोनू झा तो गोनू झा थे, भला अपना निर्णय कैसे बदल लेते ? उन्होंने बच्चे को दवा दी और पंडिताइन से कहा कि वह इन अंध -विश्वासों से दूर रहे । इसी में बच्चे की भी भलाई है और भविष्य का संरक्षण भी ।

पत्नी को समझाकर गोनू झा दरबार चले गए और महाराज से पुत्र की बीमारी के बारे में चर्चा की । महाराज ने राज वैद्य को बुलाकर गोनू झा के बच्चे की बीमारी के बारे में पूछा तो राज वैद्य ने बीमारी के बारे में महाराज को बताया और यह भी बता दिया कि शीघ्र स्वास्थ्य लाभ देने वाली जो औषधियाँ हैं उनमें प्रवाल पिष्टि, स्वर्ण भस्म, मुक्ता पिष्टि जैसी अनेक ऐसी औषधियों का समावेश करना पड़ता है जो काफी मूल्यवान है । इस औषधि का मूल्य गोनू झा नहीं दे पाएँगे इसलिए बच्चे को जो दवा दी जा रही है, उससे वह ठीक तो हो जाएगा मगर कुछ हफ्ते लग जाएँगे ।

महाराज ने राज वैद्य की बात सुनने के बाद राज वैद्य को निर्देश दिया कि वे बच्चे के लिए तीव्र असरकारक औषधि तैयार कर लें तथा औषधि पर आने वाले खर्च का भुगतान राजकोष से करवा लें ।

गोनू झा के बच्चे के लिए आनन -फानन में औषधि तैयार हुई । औषधि कैसे दी जाती है, पथ्य-अपथ्य आदि का कैसे ध्यान रखना है, आदि जानकारी औषधि के साथ राज वैद्य ने गोनू झा को दे दी ।

उधर गोनू झा की पत्नी ने सोचा कि गोनू झा तो दरबार गए हैं, शाम तक लौटेंगे, इस बीच क्यों न घौघड़ बाबा से परामर्श ले ले । वह चुपके से घर के पिछवाड़े वाली राह से घौघड़ बाबा के पास पहुँची। घौघड़ बाबा ने उसे भभूत दिया और कहा-“जा, तेरा बच्चा ठीक हो जाए तो गंगा मैया को जोड़ा जीव की बलि देना ।"

जोड़ा जीव की बलि का मतलब था-दो खस्सी की बलि! पंडिताइन हामी भरकर लौट आई।

गोनू झा जब शाम से पहले दरबार से लौटे तो पंडिताइन मन ही मन भगवान को हाथ जोड़ने लगी कि वह समय रहते ही लौट आई, नहीं तो शामत आ जाने वाली थी । पंडिताइन कभी गोनू झा की बात काटती नहीं थी मगर पुत्र-मोह में पहली बार उसने गोनू झा के निर्देशों की अवहेलना की थी । उसका मन सशंकित हो उठा था ।

गोनू झा ने राज वैद्य से प्राप्त औषधि की एक पुड़िया निकाली और मधु में मिलाकर उन्होंने बच्चे को दवा चटा दी । उस समय पंडिताइन चौका में गोनू झा के लिए दूध गर्म कर रही थी इसलिए उसे दवा के बारे में कोई जानकारी नहीं हो पाई । गोनू झा बच्चे को दवा देने के बाद घर से बाहर आकर टहलने लगे। पंडिताइन उन्हें दूध देकर खुद घर के काम काज में लग गई ।

राज वैद्य के निर्देश के अनुसार गोनू झा ने सूरज ढलने के बाद बच्चे को दवा की दूसरी खुराक दी । रात में जब उन्होंने भोजन कर लिया और पंडिताइन चौका -बर्तन में लगी तब उन्होंने बच्चे को दवा की तीसरी खुराक दी ।

दूसरे दिन सुबह में बच्चा किलकारियाँ भरते हुए उठा और बिस्तर पर खेलने लगा जिसे देखकर पंडिताइन ने समझा कि यह घौघड़ बाबा के भभूत का चमत्कार है और गोनू झा ने समझा कि राज वैद्य की दवा का असर है। गोनू झा नहा-धोकर पूजा आदि से निवृत हुए । दरबार जाने की तैयारी में लगे तब उन्हें याद आया कि अभी उनके पास औषधि की एक पुड़िया और बची हुई है । पंडिताइन उस समय खाना पकाने में व्यस्त थी । गोनू झा ने औषधि मधु में मिलाई और बच्चे को चटा दी । भोजन आदि ग्रहण करने के बाद वे दरबार गए और वहाँ महाराज और राज वैद्य को बच्चे की कुशलता की खबर सुना दी । दोनों प्रसन्न इसके बाद गोनू झा अपनी सामान्य दिनचर्या में लग गए लेकिन पंडिताइन को लग रहा था कि घौघड़ बाबा के भभूत से ही बच्चा ठीक हुआ है इसलिए घौघड़ बाबा के निर्देश के अनुसार उसे जोड़ा जीव की बलि की व्यवस्था कर लेनी चाहिए । गोनू झा को घौघड़ बाबा वाली बात बताने की उन्हें हिम्मत ही नहीं हो रही थी । दिन-रात वे इसी गुन-धुन में लगी रहती लेकिन मन की बात पति से बता न पाती ।

एक रात बिस्तर पर अन्तरंग क्षणों में जब गोनू झा मनुहार की मुद्रा में थे तब पंडिताइन अनुनय-भरे शब्दों में बोली-“पंडित जी, मेरी एक इच्छा है-छोटी सी ! यदि पूरी हो जाती तो मेरे मन को राहत मिलती।" गोनू झा प्रसन्न थे और उन्होंने तुरन्त कहा -”बोलो न! क्या इच्छा है?"

पंडिताइन ने कहा”जब बबुआ बीमार था तब मैंने गंगा मैया से मन्नत माँगी थी कि बबुआ ठीक हो जाए तो जोड़ा बलि चढ़ाऊँगी। बबुआ को ठीक हुए महीनों हो गए मगर मेरी हिम्मत न हुई कि आपसे यह बात बताऊँ ।"

गोनू झा ने पंडिताइन को अपनी बाँहों में समेटते हुए कहा -” अच्छा, ठीक है -जोड़ा बलि की बात है तो कल ही चलते हैं । सुबह में गंगा स्नान भी हो जाएगा और तुम्हारी मन्नत भी पूरी हो जाएगी ।

सुबह गोनू झा देर तक सोते रहे । पंडिताइन ने उन्हें जगाया तो वे अपनी समान्य दिनचर्या में लग गए । पंडिताइन को लगा कि गोनू झा रात के आश्वासन को भूल गए हैं इसलिए उन्होंने गोनू झा को गंगा स्नान वाली बात याद दिलाई ।

गोनू झा भी आम पतियों की तरह ही 'रात गई-बात गई' वाली कहावत को चरितार्थ कर सकते थे परन्तु पंडिताइन के चेहरे पर अनुनय के भाव से प्रभावित होकर उन्होंने तय किया कि चलो, गंगा नहा आते हैं । पत्नी को साथ में दही -चिउड़ा, गुड़ और अचार रख लेने का निर्देश देकर कपड़ा पहनने लगे । पत्नी झटपट सारा सामान पोटली में रखकर तैयार हुई । बच्चे के साथ दोनों गंगा तट पर पहुँचे। पहले बच्चे को गंगा में नहाया । फिर दोनों ने डुबकी लगाई। कपड़ा बदलकर गोनू झा ने गंगा तट पर ही पत्तल बिछाई-अपने लिए, पत्नी के लिए और नन्हे बच्चे के लिए भी जो अब डेढ़ साल का हो चुका था और उछल-कूद करने लगा था ।

गोनू झा ने हाथ में गुड़ की ढेली लेकर उसे चिउड़ा, दही में मिलाने के लिए अँगूठे का दबाव देकर तोड़ना चाहा लेकिन गुड़ की ढेली छिटककर पत्तल से बाहर निकल गई । ढेली पर मक्खियाँ भिनभिनाने लगीं। पंडिताइन भी भन्नाकर बोलने लगी, “क्यों जी, भूल गए ? गंगा मैया को जोड़ा बलि देने की बात भूल गए ?"

गोनू झा उस समय गुड़ की ढेली पर बैठी मक्खियों पर काक दृष्टिडाले हुए थे। उन्होंने कहा -"कुछ नहीं भूला हूँ भाग्यवान । जा, एक छोटा कपड़ा का टुकड़ा निकाल । अभी करता हूँ जोड़ा जीव की बलि का इंतजाम ।

पंडिताइन ने उधर मुँह घुमाया ही था कि गोनू झा ने गुड़ की ढेली पर झपट्टा मारा और बिजली की फुर्ती से उसे अपने पंजे से ढक लिया ।

पंडिताइन जब कपड़ा लेकर आई तो गोनू झा ने गुड़ की ढेली से चिपकी मक्खियों को कपड़े पर निकाल -निकालकर रखना शुरू किया। पंखों में दही से गीला हुआ गुड़ लग जाने के कारण मक्खियाँ उड़ नहीं पा रही थीं । पूरी दस मक्खियाँ ऐसी थीं जो जीवित थीं । गोनू झा ने कपड़े के चारों किनारों को सावधानीपूर्वक पकड़ा और सिरों को मिलाकर अटका दिया जिससे मक्खियाँ कपड़े के अधर में जा लटकीं। गोनू झा उस कपड़े के साथ गंगा तट पर पहुँचे और श्रद्धापूर्वक उसे जल में प्रवाहित कर हाथ जोड़कर प्रार्थना करने लगे -" हे मैया ! मेरी पत्नी ने आपको जोड़ा जीव की बलि देने की मन्नत मांगी थी । मैं मूढ़ प्राणी हूँ । उसकी मन्नत उतारने में देरी कर दी । मुझे अज्ञानी समझकर क्षमा करना । मैं जोड़ा जीव की बलि की मन्नत पाँच जोड़ा जीव की बलि देकर पूरी कर रहा हूँ। इसमें से एक जोड़ा जीव बच्चे के स्वस्थ होने की मन्नत पूरी करने के लिए। एक जोड़ा जीव बच्चे को भविष्य में सद्बुद्धि प्रदान करने के लिए। एक जोड़ा जीवन समृद्धि के लिए और एक जोड़ा जीव हमारे दाम्पत्य जीवन को सुखमय बनाए रखने के लिए तुम्हें भेंट है । कृपया स्वीकार करो माता ।"

गोनू झा जब अपने दोनों हाथ जोड़े यह प्रार्थना कर रहे थे तब ही गंगा की लहरों में अचानक हलचल-सी मची और पंडिताइन ने देखा कि लहरों से गंगा माँ निकल आयीं और गोनू झा से कहा -" पुत्र गोनू मैं तुमसे प्रसन्न हूँ । तुमने मन्नत भी पूरी कर दी और किसी निरीह प्राणी का वध भी नहीं किया । तुमने जो कुछ भी माँगा है वह तुम्हें मिलेगा। “इतना कहकर गंगा माँ अन्तर्धान हो गईं।

गोनू झा की पत्नी की तन्द्रा भंग हुई । उस समय भी गोनू झा आँखें बन्द किए, दोनों हाथ जोड़े प्रार्थना की मुद्रा में खड़े थे। उनके चेहरे पर एक तेज था जिसे पंडिताइन पहली बार देख रही थी । अपने पति के इस रूप से पंडिताइन श्रद्धानत हो गई और आकर अपने पति का चरण -स्पर्श करने लगी।

चरण स्पर्श से गोनू झा का ध्यान भंग हुआ। उन्होंने अपनी पत्नी को चरणों में झुका देख, प्यार से उसका कंधा पकड़कर उठाया और बोले -" लो, तेरी मन्नत पूरी हो गई भाग्यवान ! जा, अब बबुआ को लेकर आ । कब से चिउड़ा-दही सना हुआ है ।

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