धान का चढ़ावा (कहानी) : गोनू झा

Dhaan Ka Chadhava (Maithili Story in Hindi) : Gonu Jha

“ईश्वर सर्वव्यापी है लेकिन वह मनुष्य के कर्म में हस्तक्षेप नहीं करता । उसे मनुष्य के भाव, मनुष्य की आस्था से ही सरोकार है...यह मन्नत और चढ़ावा की बातें मेरी समझ से परे हैं ।"

गोनू झा अपने दरवाजे पर गाँव के बड़े- बुजुर्गों को समझा रहे थे। दरअसल मिथिलांचल में उस वर्ष धान की फसल अच्छी हुई थी । खेतों में धान नहीं, सोने की बालियाँ मचल रही थीं । गोनू झा के गाँव में ही सोने-सी चमकती धान की बालियों ने ग्रामीणों को मंत्रमुग्ध कर रखा था । गाँववाले इसे ईश्वर की कृपा मान रहे थे। उन्हें लग रहा था कि भगवान गाँववालों पर प्रसन्न है जिसके कारण उनके गाँव में धान की फसल बहुत अच्छी हुई है । गाँववाले एकजुट होकर धनकटनी के समय अच्छी फसल के लिए उत्सव मनाना चाहते थे । धान की अच्छी फसल के लिए सर्वप्रथम वे भगवान से फसल की रक्षा के लिए सामूहिक रूप से मन्नत माँगना चाहते थे। प्रायः प्रत्येक ग्रामीण ने भगवान को अच्छी फसल देने के लिए कुछ न कुछ चढ़ावा चढ़ाने की मन्नत माँगी थी । कौन भगवान को क्या चढ़ाएगा, किसके घर से भगवान के लिए क्या चढ़ावा आएगा, इसकी एक सूची तैयार कर ली गई थी मगर इस सूची में गोनू झा का नाम नहीं था इसलिए गाँव के बड़े- बुजुर्गों का एक जत्था उनके पास आया हुआ था यह कहने के लिए कि वे भी अपना नाम इस सूची में दर्ज करा लें तथा वे भगवान को क्या चढ़ावा चढ़ाएंगे यह लिखा दें । मगर गोनू झा तो गोनू झा थे। वे इन बुजुर्गों की बात मानने को तैयार नहीं थे और वे ग्रामीणों को कर्मयोग की शिक्षा देने में लगे हुए थे।...

गोनू झा अपनी बात कहे जा रहे थे “देखिए ! आप सभी बड़े हैं मेरे लिए पिता समान है ! मैं आप लोगों की हर बात मानने के लिए तैयार हूँ मगर यह चढ़ावा और मन्नत वाली बात रहने दीजिए । वैसे भी पूजा और चढ़ावा तो आस्था की बात है । आपकी आस्था है आप चढ़ाएँ। लेकिन इसके लिए मुझे तो क्या, किसी और को भी बाध्य नहीं करें ।"

बुजुर्गों में से एक ने गोनू झा पर फब्ती कसी-“का हो गोनू! नास्तिक हो गए हो क्या ...?"

गोनू झा ने कहा “कौन कहता है कि मैं नास्तिक हूँ? मुझे ईश्वर में आस्था है। मैं तो इन कर्मकांडों में विश्वास नहीं करता जिसके लिए आप लोग कह रहे हैं । अभी यह आवश्यक नहीं है कि आप चढ़ावा के लिए सोचें या फसल की रक्षा के लिए मन्नत माँगे । आवश्यक यह है कि आप सभी अपने-अपने खेतों की रखवाली करें ताकि कोई जानवर इन तैयार फसलों को नुकसान नहीं पहुँचाए।”

मगर ग्रामीणों का दवाब गोनू झा पर बना रहा और उनसे पिंड छुड़ाने के लिए गोनू झा ने उनसे कहा-“ठीक है! जब आप लोगों का यही खयाल है कि मुझे कोई चढ़ावा चढ़ाना चाहिए तो मैं एक छईंटा (बाँस की टोकरी) धान चढ़ावा के रूप में चढ़ाने के लिए तैयार हूँ मगर शर्त यह है कि एक पथिया धान हो ।"

उनकी बात सुनकर ग्रामीण खुश हो गए और उन्होंने समझ लिया कि आज उन्होंने गोनू झा की अकड़ ढीली कर दी । वे प्रसन्न होकर अपने-अपने घरों की ओर लौट गए।

उनके जाने के बाद गोनू झा ने भी तय कर लिया कि उन्हें इन ग्रामीणों को सबक सिखाना है । उन्होंने अपने घर में धान रखने के लिए एक बहुत बड़ी कोठी बनवाई जिसके उपरी भाग का मुँह एक पथिया के बराबर था । उन्होंने एक पथिया का पेंदा कटवाकर कोठी के मुँह पर लगा दिया, जिससे लगे कि वहाँ पथिया ही है-कोठी नहीं ।

अन्ततः कटनी शुरू हुई । धान टोकरों में भरकर घरों तक पहुँचने लगे । गोनू झा ने भी अपनी कोठी में अपने खेत का धान सरकाना शुरू किया ।

गाँववालों को गोनू झा के चढ़ावे की याद आई। ग्रामीणों का जत्था गोनू झा के पास पहुँचा। ग्रामीण देखना चाह रहे थे कि गोनू झा चढ़ावा के लिए धान निकालते भी हैं या नहीं ।

गोनू झा ने ग्रामीणों को देखते ही उनके आने का कारण समझ लिया और धान से भरे टोकरे को उठाकर पथिया में पलटते हुए कहा-“क्या करें भाई... ई पथिया भर ही नहीं रहा है। सुबह से कोशिश कर रहा हूँ। धान पथिया में जाते ही बिला जा रहा है... यह देखिए अन्तिम टोकरा है धान का आप लोगों के सामने । यह देखिए, पथिया में डाला धान और देखिए, धान बिला गया ।"

ग्रामीणों ने देखा । हालाँकि वे कोठी की सच्चाई नहीं समझ पाए मगर इतना समझ गए कि गोनू झा से पार पाना उनके बस की बात नहीं है सो वे अपना- सा मुँह लेकर वापस लौट गए ।

इधर गोनू झा कोठी के ऊपर से पथिया निकालकर कोठी का मुँह उसके ढक्कन से बन्द करने में लग गए।

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