रात का भाव (कहानी) : गोनू झा

Raat Ka Bhaav (Maithili Story in Hindi) : Gonu Jha

गोनू झा एक रात सोए हुए थे। उनकी पत्नी गहरी नींद में उसी पलंग पर सो रही थी जिस पर गोनू झा सोए हुए थे । गोनू झा कच्ची नींद में थे। कहीं से आ रही खट- पट की आवाज से उनकी नींद उचट गई । उन्होंने ध्यान देकर इस आवाज को समझने की कोशिश की । आवाज बाहर वाले ओसारे से आ रही थी ।

गोनू झा को समझते देर न लगी कि चोर होंगे । आहट कुछ टटोले जाने से पैदा हो रही थी । ओसारे में कई ‘माठ' पड़े थे जिनमें अनाज रखे गए थे। गोनू झा ने 'अकान' कर समझा कि माठ में रखे ‘नपना' के टकराने से खट- पट की आवाज पैदा हो रही है जिससे उनकी निद्रा भंग हुई थी ।

गोनू झा के दिमाग में अचानक एक विचार कौंधा और वे झटके से उठे और पलंग पर बैठकर अपनी पत्नी को जगाने लगे । पंडिताइन के शरीर को जोरों से झकझोरते हुए गोनू झा ने आवाज लगानी शुरू कर दी - “अरे उठो भाग्यवान । जल्दी उठो । नहीं तो बड़ा अनर्थ हो जाएगा।"

पंडिताइन गहरी नींद में थी । दिन भर की थकी -माँदी। वह कच्ची नींद से जगाए जाने से झल्ला गई - “ओह , सोने क्यों नहीं देते ?"

“अरे उठ भी ! कहीं लाखों का नुकसान न हो जाए।” गोनू झा ने एक - एक शब्द चबाते हुए कहा ।

लाखों का नुकसान की बात सुनकर पंडिताइन थोड़ा सजग हुई और बिस्तर पर उठकर बैठ गई ।

उधर चोर जो 'माठ' से अनाज चुराने की ब्योंत में लगा था, गोनू झा के मुँह से निकले लाखों शब्द सुनकर आगे की बात सुनने के लिए पैर चाँपते हुए खिड़की से कान सटाकर खड़ा हो गया ।

अमावास की रात के घने अन्धकार में उसे इतना इत्मीनान था कि भीतर से कोई उसे देखना भी चाहे तो देख नहीं सकेगा ।

पंडिताइन ने सचेत होते हुए गोनू झा से पूछा - “कोई सपना देख लिए क्या कि अचानक आधी रात में लाखों का नुकसान की बात करने लगे?"

गोनू झा ने कहा - “अरे पंडिताइन । समझो कि अपने भाग्य जग गए। मैं जो एक पोटली सेंबल के बीज लाया था , वह कहाँ हैं ?"

पंडिताइन इस बेतुकी बात पर फिर झल्ला पड़ी । “ओ ! यह क्या बात हुई ? आधी रात में सोए से जगाया ? कहने लगे लाखों का नुकसान हो जाएगा , जैसे कोई हीरा - मोती, जर जेवरात की बात हो और अब पूछ रहे हो , संबल के बीज कहाँ हैं ? कहीं दिमाग तो नहीं फिर गया है ?"

गोनू झा ने पंडिताइन को डपट दिया – “अरे! फालतू बकवास में मत पड़ । यह बता कि सेंबल के बीज कहाँ हैं?"

पंडिताइन गोनू झा के तेवर देखकर सहम गई और बिसूरती हुई बोली - “बाहर ओसारे की बनेरी में बीज की पोटली बँधी हुई है।"

गोनू झा ने बिगड़ते हुए कहा - “अरे, उस पोटली को तूने इतनी लापरवाही से रखा ?"

पंडिताइन को भी गुस्सा आ गया और वह भी तेज आवाज में बोल पड़ी - “दू पाई का भी होगा वह सेंबल का बीज, मैं क्या उसे तिजोरी में रखती ? काहे आधी रात में टँटा खड़ा कर रहे हो ?"

चोर साँस रोके गोनू झा और पंडिताइन के बीच हो रही बातचीत को सुन रहा था । उसे भी समझ में नहीं आ रहा था कि एक पोटली सेंबल के बीज के लिए गोनू झा इतना तड़क क्यों रहे हैं !

तभी उसके कान में गोनू झा की आवाज पड़ी - “अरे भाग्यवान ! अब वह सेंबल का बीज तिजोरी में ही रखा जाएगा । तुम्हें कुछ दिन - दुनिया की खबर भी है ? एक यूनानी चिकित्सक ने सेंबल के बीज से जीवन रक्षक औषधि बनाई है और रातों-रात सेंबल के बीज की कीमत हीरों- जवाहरातों की तुलना में दो सौ गुना बढ़ गया है । जरा सोच, एक स्वर्ण मुद्रा में एक तोला सोना मिल जाता है कि नहीं ? एक यूनानी व्यापारी आज ही महाराज के पास आया था । वह दो सौ स्वर्ण - मुद्राओं में एक तोला के भाव से सेंबल के बीज खरीदने की बात कर रहा था । उसी ने महाराज को बताया कि इस बीज से बननेवाली दवा से मरता आदमी भी जी उठेगा। अब समझी, कि मैं सेंबल के बीजों के लिए इतना बेचैन क्यों हूँ ? कल ही बाजार जाकर इन बीजों को बेच आऊँगा और इनसे मिलनेवाले पैसों से सबसे पहले तुम्हारे लिए महल बनवाऊँगा और तुम्हें जेवर - जवाहरातों से लाद दूंगा । चल , पोटली ले आते हैं ।"

पंडिताइन ने कहा “अब रहने भी दो पंडित जी । रात भर में कौन - सी आफत आ जाएगी । जो बात सेंबल के बीज के बारे में तुमको मालूम है, वही बात अभी लोगों तक पहुँचते पहुँचेगी । अभी सो जाओ। सुबह उठकर सबसे पहले पोटली ले आऊँगी और तुम्हें दे दूंगी ।"

गोनू झा को जो सन्देश बाहर खड़े चोर को देना था , वह दे चुके थे इसलिए उन्होंने मन मारने के अन्दाज में कहा - “ठीक है भाग्यवान ! जैसा तुम कहो ! वैसे भी अभी सेंबल के बीज की कीमत महाराज के अलावा केवल मैं जानता हूँ।...अच्छा, चलो, सो ही जाते हैं ।"

और गोनू झा बिस्तर पर लेट गए । पंडिताइन ने भी राहत की साँस ली और सो गई ।

दूसरे दिन , सुबह- सुबह पंडिताइन घबराई- सी गोनू झा को झंकोरकर जगाने लगी -"उठिए पंडित जी ! गजब हो गया ! उठिए !"

गोनू झा उठे । उन्होंने घबराई सी पंडिताइन को देखा तो मुस्कुराकर पूछने लगे - “तो पोटली गायब हो गई ?"

पंडिताइन जवाब देने की बजाय सुबकने लगी। वह पछतावे से भरी हुई थी कि यदि उसने गोनू झा की बात मानकर रात को ही बनेरी से पोटली खोल ली होती तो यह हादसा नहीं होता । न जाने कौन रात में पोटली खोलकर ले गया जिसमें बहुमूल्य सेंबल के बीज थे!

गोनू झा को लगा कि चोर वाला राज अब खोल देने में भलाई है! न जाने सेंबल के बीज के सदमें में पंडिताइन पर क्या गुजरे! उन्होंने पंडिताइन की पीठ थपथपाते हुए कहा - “अब जाने भी दो , दो पाई की चीज के लिए इस तरह आँसू नहीं बहाते । “फिर उन्होंने पंडिताइन को बताया कि रात को उन्होंने चोरों की आहट सुन ली थी और उन्हें गुमराह करने के लिए सेंबल के बीज के भाव बताये थे तथा एक किस्सा गढ़ दिया था ।

गोनू झा की बात सुनकर पंडिताइन की जान में जान आई। गोनू झा बिस्तर से उठे । स्नानादि से निवृत होकर उन्होंने स्वच्छ वस्त्र धारण किए और बाजार की ओर चल पड़े । बाजार पहुँचकर उन्होंने सबसे पहला काम यह किया कि बाजार - सुरक्षा चौकी पर गए और वहाँ के चौकीदार से बताया कि बाजार में यदि कोई सेंबल का बीज बेचता नजर आए तो उसकी गतिविधियों पर नजर रखी जाए क्योंकि एक ठग कल से ही सेंबल के बीज को जीवन -रक्षक औषधि बताकर बेचने की कोशिश कर रहा है । वह सेंबल के बीज की कीमत दो सौ रुपए तोला बता रहा है । वे खुद उससे ठगाते-ठगाते बचे हैं ।

पहले तो चौकीदार को विश्चास ही नहीं हुआ कि कोई व्यक्ति इस तरह का दुस्साहस कर सकता है कि दो पाई की चीज के लिए दो सौ स्वर्ण- मुद्राओं की माँग करे लेकिन बात चूँकि गोनू झा की थी तो उसे सतर्कता दिखाने की मजबूरी हो गई ।

चौकीदार को लेकर गोनू झा बाजार का चक्कर लगाने लगे। एक जगह पर उन्होंने एक व्यक्ति को कपड़ा बिछाए सेंबल का बीज बेचते देखा । आम तौर पर सेंबल के बीज बाजार में नहीं बेचे जाते इसलिए उन्हें विश्वास हो गया कि यह व्यक्ति कोई और नहीं , वही चोर है जो रात में उनके घर से सेंबल के बीजों की पोटली चुराकर ले आया है । उन्होंने चौकीदार को इशारा कर दिया और उनके इशारे पर चौकीदार चोर के पास पहुँचा और उससे संबल के बीज की कीमत पूछा । चोर ने चौकीदार की ओर देखकर कहा - “दो सौ स्वर्ण -मुद्राएँ : प्रति तोला ।”

चौकीदार ने प्रश्न किया - “अरे , इतना महँगा ? क्या है इन बीजों में ? आखिर ये सेंबल के ही बीज हैं न ?"

चोर ने मुस्कुराते हुए कहा -” अरे ये साधारण बीज नहीं हैं ? इन बीजों में जीवन -रक्षक तत्त्व हैं ।"

तब तक गोनू झा वहाँ पहुंच चुके थे और चोर - चौकीदार संवाद का रस ले रहे थे । उन्होंने चोर से कहा - “अरे तू तो रात का भाव बता रहा है । चौकीदार जी, जरा इसे सेंबल के बीजों का दिन वाला भाव बता दीजिए?"

फिर क्या था , चोर को चौकीदार ने पकड़ा। उसकी मुस्कें चढ़ा दी और पीटता हुआ उसे लेकर चला गया ।

गोनू झा अपनी मस्त चाल से राजदरबार की ओर बढ़ने लगे ।

  • मुख्य पृष्ठ : गोनू झा की मैथिली कहानियां हिंदी में
  • मुख्य पृष्ठ : गोनू झा की मैथिली कहानियाँ मैथिली में
  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण हिंदी कहानियां, नाटक, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां