Sarveshwar Dayal Saxena सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना (15 सितम्बर 1927- 23 सितम्बर 1983) ‘नई कविता’ के चर्चित कवि एवं साहित्यकार थे। उनका जन्म उतर प्रदेश, बस्ती जिले
के पिकौरा गाँव में हुआ था। उनके पिता विश्वेश्वर दयाल और माता सौभाग्यवती दोनों अध्यापक थे। उनकी शिक्षा दीक्षा बस्ती, बनारस और
इलाहाबाद में हुई थी। कुछ समय तक वे स्कूल में अधापक रहे, क्लर्क की भी नौकरी किए। वे ‘आकाशवाणी’ समाचार में भी काम करते रहे। सक्सेना जी का
साहित्यिक जीवन काव्य से प्रारंभ हुआ। तथापि ‘चरचे और चरखे’ स्तम्भ दिनमान में छपे जो काफी लोकप्रिय थे। वे तीसरे सप्तक के महत्वपूर्ण कवियों में से एक थे।
कविता के अतिरिक्त उन्होंने कहानी, नाटक और बाल साहित्य की भी रचना की। उनकी रचनाओं का अनेक भाषाओं में अनुवाद भी हुआ। 'खूँटियों पर टँगे लोग' के
लिये उन्हें सन् 1983 में मरणोपरांत साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
कृतियाँ : काव्य रचनाएँ : तीसरा सप्तक- सं० अज्ञेय (1959), काठ की घंटियाँ (1949-57), बाँस का पुल (1957-63), एक सूनी नाव (1966), गर्म हवाएँ (1966),
कुआनो नदी (1973), जंगल का दर्द (1976) खूंटियों पर टंगे लोग (1982)।
उपन्यास : पागल कुत्तों का मशीहा (लघु उपन्यास – 1977),
सोया हुआ जल (लघु उपन्यास – 1977),
उड़े हुए रंग – यह उपन्यास 'सूने चौखटे नाम' से 1974 में प्रकाशित हुआ था,
सच्ची सड़क (1978), अँधेरे पर अँधेरा (1980)।
नाटक : बकरी 1974, लड़ाई (1979), अब गरीबी हटाओ (1981), कल भात आएगा तथा हवालात (1979), रूपमती बाज बहादुर तथा होरी धूम मचोरी मंचन (1976), हिसाब-किताब।
यात्रा संस्मरण: कुछ रंग कुछ गंध (1971)।
बाल कविता: बतूता का जूता (1971), महंगू की टाई (1974)।
बाल नाटक: भों-भों खों-खों (1975), लाख की नाक (1979)।
संपादन : शमशेर (मलयज के साथ-1971), रूपांबरा (सं० अज्ञेय जी 1980 में सहायक संपादन), अंधेरों का इतिहास (1981), नेपाली कविताएँ (1982), रक्तबीज (1977)
अन्य : दिनमान साप्ताहिक में चर्चे और चरखे नाम से चुटीली शैली का गद्य – 1969 से नियमित।
दिनमान तथा अन्य पात्र-पत्रिकाओं में साहित्य, निरित्य, रंगमंच, संस्कृति आदि के विभिन्न विषयों पर टिप्पणियाँ तथा समीक्षात्मक लेख। सर्वेश्वर की संपूर्ण गद्य रचनाओं को
चार खण्डों में किताब घर दिल्ली ने छापा है।