एक नयी बाइबिल (कहानी) : सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
Ek Nayi Bible (Hindi Kahani) : Sarveshwar Dayal Saxena
छोटे स्टेशन का दूर तक फैला हुआ शांत नीरव सोया हुआ प्लेटफार्म न जाने क्यों हमेशा मेरे थके हुए मन को एक विचित्र प्रकार की शान्ति देता है । वहाँ पहुँचकर मुझे लगता है जैसे मैं अकेला नहीं हूँ, मेरा एक बेजबान दोस्त मेरे साथ है। उस रात कोई ग्यारह बजे मैं प्लेटफार्म पर, जो मेरे घर के निकट था, सिर झुकाए एक सिरे से दूसरे सिरे तक घूम रहा था और प्रार्थना कर रहा था कि अतीत की ओर वापस न जाऊँ, जो मैं कर चुका हूँ उसके उत्तर के लिए शब्द न पा सकूँ- अपने को दोहराऊँ नहीं, इस सूखी वायु में उन पंखों को फड़फड़ाऊँ नहीं, जो छोटे होते जा रहे हैं और सूखते जा रहे हैं।
अचानक मेरा ध्यान टूटा। बड़े-बड़े उलझे बालों वाला एक मझोले कद का आदमी सर्दी में काँपता, गुड़ी-मुड़ी बना एक लैम्प - पोस्ट के नीचे बेंच पर बैठा हुआ, बड़े ध्यान से पेंसिल से एक छोटी कापी पर कुछ लिख रहा था । मैं दो-एक दफे सामने से आया गया पर उसने ध्यान नहीं दिया। अपने उस लिखने में डूबा रहा। अन्त में अपने को रोक नहीं सका। उत्सुकता के साथ-साथ अपने मन के दोझ को भी दूर करने के लिए मैं उसके समीप जा खड़ा हुआ। इस पर भी जब उसने निगाह नहीं उठायी तब मैंने पूछा-
“क्षमा कीजिएगा, क्या लिख रहे हैं ?"
"कुछ नहीं। यूँ ही एक सीक्रेट राइटिंग है।"
“सीक्रेट राइटिंग। कैसी ? किस तरह की ?"
“एक नयी बाइबिल लिख रहा हूँ। अभी मेरी शक्ति को पहचानते नहीं - मेरी पावर को नहीं जानते। मैं यदि सृष्टि कर सकता हूँ तो प्रलय भी कर सकता हूँ।”
"बड़े शक्तिशाली हैं आप। इस समय आप क्या कर रहे हैं - सृष्टि कर रहे हैं या प्रलय ?"
“दोनों ही कर देता हूँ-कभी सृष्टि कर देता हूँ तो कभी प्रलय कर देता हूँ।”
"वाह वाह !"
“यही तो मेरी पालिसी है । मैं गॉड हूँ- कोई मेरा बाप तो है नहीं । मुझे कौन पैदा कर सकता है, आप ही बतलाइए ? गॉड को कोई पैदा कर सकता है ? अभी मेरी ताकत लोग नहीं जानते। अब मेरा हण्टर उठेगा तो होश दुरुस्त हो जाएँगे।” उसने पतली लेकिन करख्त आवाज में कहा, उसका चेहरा तमतमा आया था।
मैं चुप हो गया। बड़ी आसानी से 'पागल है' कहकर मैं लौट आ सकता था, और शायद लौटने भी लगा था कि मैंने देखा वह फिर सिर झुकाए तन्मय होकर लिखने लगा है। कड़ाके की सर्दी में बिना बटन की एक फटी हुई पतली कमीज पहने होने के कारण रह-रह कर वह काँपता था और सिमट जाता था । कन्धों तक लटके हुए बड़े-बड़े बाल, हल्की दाढ़ी, माथे पर बल, दोनों घुटने समेटे उस पर फटी हुई कापी रक्खे आँख गड़ाए वह अपनी बाइबिल में जो कुछ लिख रहा था, उसे देखने का सहज कुतूहल मैं दबा नहीं सका। मैं थोड़ा उसके पास सरका। ज्यादा पास जाने की हिम्मत नहीं हुई। पागलों से मुझे यूँ ही डर लगता है फिर पढ़े-लिखे पागलों से और भी डर लगता है। वैसे अब यह डर दूर होता जा रहा है क्योंकि दिन-प्रतिदिन पढ़े-लिखे पागलों की संख्या बढ़ती जा रही है, कहीं-न-कहीं टकरा ही जाते हैं।
“बहुत सर्दी है, सिगरेट पीजिएगा ?” मैंने उसका ध्यान आकृष्ट करने के लिए एक सिगरेट निकालकर उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा ।
उसने सिगरेट ले ली। मैंने दियासलाई जलायी। उस नन्ही लौ में ईश्वर का विकृत रूप मुझे दिखाई दिया।
“लाइए, आपकी बाइबिल ।" मैंने कहा।
"अभी पूरी नहीं हुई है, सीक्रेट है।" और उसने कॉपी मोड़ कर जेब में रख ली।
दियासलाई की तीली बुझ गयी। उसकी सिगरेट सुलग गयी और वह कश लेने लगा था। मैं भी उसके पास ही बेंच पर बैठ गया। दो-एक कश लेने के बाद वह बोला, “आपके पास ओल्ड टैस्टामेंट है ?"
"नहीं।"
"ला दीजिए।"
"लेकिन आपको उसकी क्या जरूरत ?”
"देखेंगे, पहले क्या लिखा था। दुनिया का सारा हिसाब-किताब ही बदल रहा है। एटम बम का ही हण्टर बन गया है। लेकिन जब गॉड का हण्टर पड़ेगा...।"
"आपका नाम क्या है ?" बात काटते हुए मैंने पूछा ।
"गॉड, गॉड सबसे पावरफुल है।"
"रहते कहाँ हैं आप ?"
उसने आँखें तरेरकर मेरी ओर देखा जैसे कोई गलत सवाल मैंने कर दिया हो फिर बोला करत आवाज में - "यह सारी दुनिया किसकी है ?"
"गॉड की यानी आपकी ।"
वह प्रसन्न हो गया। बोला, "मूँगफली खिलाइए।"
प्लेटफार्म से बाहर ले जाकर मैंने उसे मूँगफली दिलवाईं और वह छील- छील कर खाने लगा ।
"आप क्या यहाँ अक्सर आते हैं ?"
"कल, आऊँगा। आप क्या ओल्ड टैस्टामेंट लाएँगे ?"
"अगर मिल गयी तो जरूर लाऊँगा। बाइबिल लिखने के अलावा भी आप कुछ और कर रहे हैं ?"
" सारी सृष्टि ही मैंने की है।"
वह फिर नाराज हो गया।
थोड़ी देर बाद बोला, “एक काम कर सकते हैं आप !" "कहिए।"
"मुझे एक छोटी-सी कापी बनवा दीजिए।" उसने उँगली से हथेली पर कापी का आकार बनाते हुए कहा ।
"क्या करेंगे, आपके पास कापी तो है।"
"है, लेकिन वह फट जाती है। फिर पानी वगैरह बरसता है, उसमें कहीं मैं भीगा भागा तो गीली हो जाती है, गल जाती है। आप उस कापी पर चमड़ा चढ़वा दीजिएगा ताकि अगर भीगे भी तो राइटिंग न खराब हो।"
"अच्छी बात है।"
उसने फिर कापी की नाप बताई जो करीब छः अंगुल लम्बी और तीन अंगुल चौड़ी रही होगी।
"इससे बड़ी न हो।" उसने अच्छी तरह समझाया।
“चमड़ा जरूर चढ़वा दीजिएगा।" उसने फिर कुछ सोच कर कहा ।
"जरूर ।"
मेरी इस बात से वह बहुत प्रसन्न हुआ।
“कल जरूर लेते आइएगा। इसी समय मैं यहीं मिलूँगा।"
" शाम को मिलिए।"
"जरा मुश्किल है, बहुत से काम हैं। आने-जाने में काफी समय लगता है ।"
अचानक बूँदें पड़ने लगीं। सर्दी की वर्षा । वह निश्चित मूँगफली छील छील कर खा रहा था।
मैंने उससे विदा ली, कहा, "खुले प्लेटफार्म पर क्यों बैठते हैं, मुसाफिरखाने में बैठिए, वहाँ रोशनी भी है, भीगेंगे भी नहीं, चुपचाप बैठकर लिखिए।”
वह बोला, "वहाँ भीड़ बहुत है। डिस्टरबेन्स होता है।"
मैंने तेजी से उससे विदा ली।
घर पहुँचकर मैं रजाई में दुबक गया। कुछ देर बाद ठण्डी रजाई गरमायी, शरीर में गरमी आयी और मुझे दिखाई देने लगा वह अभी भी उसी प्रकार खुले प्लेटफार्म पर सर्दी में ठिठुरा बेंच पर बैठा लैम्प - पोस्ट की रोशनी में अपनी नयी बाइबिल लिख रहा है।
दूसरे दिन काफी रात गए जब मैं प्लेटफार्म पर पहुँचा तब वह वहाँ नहीं था। गली के सामने पान की दुकान के सामने खड़ा था, शायद मेरी प्रतीक्षा में।
"कापी और ओल्ड टैस्टामेंट लाए आप ?"
"ओल्ड टैस्टामेंट तो नहीं, कापी बनवा लाया हूँ।”
"दिखाइए।"
मैंने कापी निकाली। उसकी आँखें हर्ष से चमक उठीं और वह खुशी से चिल्ला उठा, “हाँ-हाँ, बिल्कुल ठीक, बस इतनी ही बड़ी चाहिए थी।"
फिर उसने कमीज उठायी। कमर में पाजामे पर उसने एक चमड़े की पेटी बाँध रक्खी थी। पेटी में चमड़े के छोटे पर्स के आकार का, कापी के आकार से कुछ बड़ा - एक मजबूत बैग लगा हुआ था। उसने बैग खोला। उसमें मुड़े-मुड़े तमाम कागज ठुसे हुए थे और एक बहुत छोटी-सी पेन्सिल थी। उसने एक-एक करके कागज निकाले और कापी उसमें रखकर देखी । वह ठीक आ गयी थी। “अब ठीक है, अब पानी में भीगेगी भी नहीं। कागज निकालने - रखने में फट जाते थे।" कापी-पेन्सिल उसमें सँभाल कर रखते समय उसने निकले हुए सारे कागज पास ही रक्खी बेंच पर रख दिए थे । उनमें से एक कागज नीचे गिर पड़ा। उसका ध्यान उसकी ओर नहीं गया। निगाह बचाकर मैंने उसे उठाकर अपनी जेब में डाल दिया ।
"अब इन कागजों का क्या कीजिएगा ?” मैंने पूछा ।
"इन्हें इस कापी पर उतारूँगा।" फिर उसने सँभालकर सारे कागज अपनी जेब में रख लिये, फिर वहाँ से जाने के लिए तैयार हो गया । मैंने कुछ और बातचीत करनी चाही लेकिन उसे कापी पाते ही जाने की उतावली थी।
"जायेंगे क्या ?"
"हाँ, ओल्ड टैस्टामेंट आप फिर ले आइएगा।"
"गीता, उपनिषद् वगैरह आप क्यों नहीं लिखते ?"
"वह सब मेरी बाइबिल में हैं।"
फिर वह चला गया। मैंने उसकी बाइबिल का वह पृष्ठ निकाला जिसे मैंने चुरा लिया था। अपनी इस चोरी पर मैं प्रसन्न था । मुझे विश्वास था कि मेरा कुतूहल अब शान्त हो जाएगा। कागज खोलने ही मैंने देखा, वह एक पत्र है - उस पर लिखा हुआ है :
सेवा में - श्री जवाहरलाल नेहरू, प्रधानमन्त्री, स्वतन्त्र भारत, भारत सरकार
मैं अब तक आपको सैकड़ों पत्र डाल चुका हूँ लेकिन आपने कोई कार्यवाही नहीं की । सविनय निवेदन है कि ऐलनगंज में मेरी एक जूते की दुकान थी। उन लोगों ने उसमें चोरी करा दी। सारा माल चला गया। कोठरी भी छीन ली । कृपया चोरी का पता लगवाया जाय। सारा सामान मुझे दिलवाया जाय। क्योंकि वही मेरी रोजी थी। बदमाशों को सजा दी जाय । मैं बेरोजगार हूँ, मेरी बात क्यों नहीं सुनी जाती ? अफसरों को कहा जाय कि वे घूस लेकर चुप न बैठ जाएँ, मामले की ठीक से तहकीकात करें। कृपा होगी।
नकल भेजी - डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट, डिस्ट्रिक्ट जज, सुपरिण्टेण्डेण्ट पुलिस, वाइस चांसलर विश्वविद्यालय और इस सिलसिले में पूरे पृष्ठ में दोनों तरफ सभी प्रतिष्ठित नागरिकों और अधिकारियों के नाम थे ।
यह उसकी नयी बाइबिल है। मैं सोचने लगा, यह जानते हुए भी कि उसमें सोचने योग्य कुछ नहीं है ।