Anand Prakash Jain आनंद प्रकाश जैन

श्री आनंद प्रकाश जैन का जन्म उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जनपद के कस्बा शाहपुर में 15 अगस्त, 1927 को हुआ । वह हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध लेखक रहे हैं। पचास से अस्सी के दशक तक उनके नाम की खूब धूम थी। उनकी सभी सामाजिक और ऐतिहासिक रचनाओं को दिल खोलकर पाठकों ने सराहा। अपनी ऐतिहासिक कहानियों में उन्होंने ऐतिहासिक तथ्यों की सत्यता को बरकरार रखा। इनमें से ज्यादातर कहानियों में नायिकाएँ पत्नी; दासी; नर्तकी रानी या विषकन्या हर रूप में नारी अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाती नजर आती हैं। इन मार्मिक कहानियों में नारी पात्रों में अपने आदर्शों; सिद्धांतों; कर्तव्यों व अधिकारों के लिए अपने प्राणों की आहुति देते सशक्त नारी के दर्शन होते हैं।
पहली कहानी ‘जीवन नैया’ सरसावा से प्रकाशित मासिक ‘अनेकांत’ में सन् 1941 में प्रकाशित हुई। श्री जैन ने अनेक पत्र-पत्रिकाओं का कुशल संपादन किया। वे सन् 1959 से 1974 तक तत्कालीन समय की प्रसिद्ध बाल पत्रिका ‘पराग’ के संपादक रहे। इसके अतरिक्त ‘चंदर’ उपनाम से अस्सी से अधिक रोमांचकारी उपन्यासों का लेखन किया। अनेक ऐतिहासिक और सामाजिक उपन्यास लिखे जिनमें प्रमुख हैं— कठपुतली के धागे, तीसरा नेत्र, कुणाल की आँखें, पलकों की ढाल, आठवीं भाँवर, तन से लिपटी बेल, अंतर्मुखी, ताँबे के पैसे, आग और फूस।
उन्हें अपने इस सामाजिक उपन्यास ‘आग और फूस’ पर उत्तर प्रदेश सरकार का श्‍लाघनीय पुरस्कार प्राप्‍त हुआ।