श्रृंखला की कड़ियाँ : महादेवी वर्मा

Shrinkhala Ki Kariyan : Mahadevi Verma

अपनी बात
विचार के क्षणों में मुझे गद्य लिखना ही अच्छा लगता रहा है, क्योंकि उसमें अनुभूति ही नहीं बाह्य परिस्थितियों के विश्लेषण के लिए भी पर्याप्त अवकाश रहता है। मेरा सबसे पहला सामाजिक निबन्ध तब लिखा गया था जब मैं सातवीं कक्षा की विद्यार्थिनी थी अतः जीवन की वास्तविकता से मेरा परिचय कुछ नवीन नहीं है।
प्रस्तुत संग्रह में कुछ ऐसे निबन्ध जा रहे हैं जिसमें मैंने भारतीय नारी की विषम परिस्थितियों को अनेक दृष्टिबिन्दुओं से देखने का प्रयास किया है। अन्याय के प्रति मैं स्वभाव से असहिष्णु हूँ अतः इन निबन्धों में उग्रता की गन्ध स्वाभाविक है; परंतु ध्वंस के लिए ध्वंस के सिद्धान्त में मेरा कभी विश्वास नहीं रहा। मैं तो सृजन के उन प्रकाश-तत्वों के प्रति निष्ठावान हूँ जिनकी उपस्थिति में विकृति अन्धकार के समान विलीन हो जाती है। जब प्रकृति व्यक्त नहीं होती तब तक विकृति के ध्वंस में अपनी शक्तियों को उलझा देना वैसा है जैसा प्रकाश के अभाव में अंधेरे को दूध से धो-धोकर सफेद करने का प्रयास। वास्तव में अन्धकार स्वयं कुछ न होकर आलोक का अभाव है इसी से तो छोटे-से-छोटा दीपक भी उसकी सघनता नष्ट कर देने में समर्थ है।
भारतीय नारी भी जिस दिन अपने सम्पूर्ण प्राणप्रवेग से जाग सके उस दिन उसकी गति रोकना किसी के लिए सम्भव नहीं। उसके अधिकारों के सम्बन्ध में यह सत्य है कि वे भिक्षावृत्ति से न मिले हैं न मिलेगें, क्योंकि उनकी स्थिति आदान-प्रदान योग्य वस्तुयों से भिन्न है। समाज में व्यक्ति का सहयोग और विकास की दिशा में उसका उपयोग ही उसके अधिकार निश्चित करता रहता है और इस प्रकार हमारे अधिकार हमारी शक्ति और विवेक के सापेक्ष रहेंगे। यह कथन सुनने में चाहे बहुत व्यवहारिक न लगे परन्तु इसका प्रयोग निर्भ्रान्त सत्य सिद्ध होगा। अनेक बार नारी की बाह्य परिस्थितियों के परिवर्तन की ओर ध्यान न देकर उसकी शक्तियों को जाग्रत करके परिस्थितियों में साम्य लानेवाली सफलता सम्भव कर सकी हूँ। समस्या का समाधान समस्या के ज्ञान पर निर्भर है और यह ज्ञान ज्ञाता की अपेक्षा रखता है। अतः अधिकार के इच्छुक व्यक्ति को अधिकारी भी होना चाहिए। सामान्यतः भारतीय नारी में इसी विशेषता का अभाव मिलेगा। कहीं उसमें साधारण दयनीयता है और कहीं असाधारण विद्रोह है, परन्तु सन्तुलन से उसका जीवन परिचित नहीं।
प्रस्तुत निबंध किस सीमा तक सोचने की प्रेरणा दे सकेंगे, यह बता सकना मेरे लिए सम्भव नहीं। पर इनसे भारतीय नारी की विषम परिस्थियों की धुँधली रेखाएँ कुछ स्पष्ट हो सकें तो इन्हें संगृहीत करना व्यर्थ न होगा।
- महादेवी
05.05.1942
'श्रृंखला की कड़ियाँ' में निम्नलिखित 11 निबन्ध हैं-
1. हमारी श्रृंखला की कड़ियाँ [1] [2], 2. युद्ध और नारी, 3. नारीत्व का अभिशाप, 4. आधुनिक नारी [1] [2], 5. घर और बाहर [1] [2] [3], 6. हिन्दू स्त्री का पत्नीत्व, 7. जीवन का व्यवसाय [1] [2], 8. स्त्री के अर्थ - स्वातंत्र्य का प्रश्न [1] [2], 9. हमारी समस्याएँ [1] [2], 10. समाज और व्यक्ति, 11. जीने की कला।