प्लेग (फ्रेंच उपन्यास) : अल्बैर कामू; अनवादक : शिवदान सिंह चौहान, विजय चौहान
The Plague (French Novel in Hindi) : Albert Camus
पहला भाग : 5
'प्लेग का नाम अभी-अभी पहली बार लिया गया था। कहानी के इस बिन्दु पर पहुँचकर जब डॉक्टर बर्नार्द रियो अपनी खिड़की के सामने खड़ा बाहर का दृश्य देख रहा है, शायद आप हमें डॉक्टर की इस अनिश्चितता और हैरानी को उचित बताने की इजाज़त देंगे क्योंकि मामूली फ़र्क के बावजूद उसके अन्दर भी वैसी ही प्रतिक्रिया हुई थी, जैसी हमारे शहर के अधिकांश निवासियों के अन्दर। सभी जानते हैं कि दुनिया में बार-बार महामारियाँ फैलती रहती हैं, लेकिन जब नीले आसमान को फाड़कर कोई महामारी हमारे ही सिर पर आ टूटती है तब, न जाने क्यों, हमें उस पर विश्वास करने में कठिनाई होती है। इतिहास में जितनी बार युद्ध लड़े गए हैं उतनी ही बार प्लेग भी फैली है। फिर भी प्लेग और युद्ध समान रूप से लोगों को हैरत से भर देते हैं।
दरअसल बात यह है कि हमारे नगरवासियों की तरह, रियो को भी यह आशंका नहीं थी। इसलिए इस तथ्य को स्वीकार करने में उसे जो हिचकिचाहट हुई, उसे हम समझ सकते हैं। इसी तरह हम यह भी समझ सकते हैं कि परस्पर-विरोधी डरों और विश्वासों के बीच फँसकर उसके मन में कैसा द्वन्द्व मचा होगा। जब युद्ध छिड़ जाता है तो लोग कहते हैं, “यह निहायत बेवकूफ़ी की बात है; यह लड़ाई ज़्यादा दिन नहीं चल सकती।" फिर भी युद्ध चाहे 'निहायत बेवकूफ़ी की बात' ही क्यों न हो, लेकिन उसका ज़्यादा दिन तक चलना रुक नहीं जाता। बेवकूफ़ी की बात आगे बढ़ने के लिए अपना रास्ता तलाश कर लेती है, जिस तरह हमें यह देखने की कोशिश करनी चाहिए कि हम कहीं हमेशा तो अपने-आप में इतने बन्द नहीं रहे।
इस मामले में हमारे नगरवासी औरों की तरह ही थे-अपने-आप अपने में बन्द। दसरे शब्दों में वे मानववादी थे; वे महामारियों पर विश्वास नहीं करते थे। महामारियाँ मनुष्य के नाम से नहीं बनती। इसलिए हम अपनेआप से कहने लगते हैं कि महामारियाँ सिर्फ दिमागी आतंक हैं, कि वे एक बुरे सपने की तरह गुज़र जाएँगी। लेकिन वे हमेशा आसानी से नहीं गुज़र जातीं और एक बुरे सपने के बाद दूसरे बुरे सपने का सिलसिला शुरू होने की तरह, मनुष्य गुज़रते जाते हैं; उनमें से भी सबसे पहले मानववादी महामारी का शिकार होते हैं, क्योंकि वे अपने बचने के लिए सावधानी नहीं बरतते। हमारे नगरवासियों का दोष औरों से ज़्यादा नहीं था। वे सिर्फ मर्यादा भूलकर यह सोचने लगे थे कि अभी भी उनके लिए सब कुछ सम्भव हो सकेगा, जिसका मतलब था कि महामारियाँ असम्भव हैं। वे अपने काम-धंधों में पूर्ववत् लगे रहे, अपनी यात्राओं की तैयारियाँ करते रहे और दुनिया में होने वाली घटनाओं पर अपनी राय कायम करते रहे। भला प्लेग-जैसी चीज़ के बारे में वे क्योंकर सोचते, जो भविष्य को मिटा देती है, यात्राओं को स्थगित कर देती है और विचार-विनिमय को ख़ामोश कर देती है! वे सोचते थे कि वे आज़ाद हैं, लेकिन जब तक महामारियाँ हैं, तब तक कोई आज़ाद नहीं हो सकेगा।
दरअसल, इसके बाद भी डॉक्टर रियो के दिमाग में यह खतरा अवास्तविक-सा ही बना रहा, जबकि उसने अपने मित्र के सामने यह स्वीकार कर लिया था कि शहर के विभिन्न हिस्सों में कुछ लोग, किसी पूर्व सूचना के बिना ही प्लेग से मर गए थे। इसका कारण बहुत साधारण था, वह यह कि जब कोई व्यक्ति डॉक्टर बन जाता है तब मानव-पीड़ा के बारे में उसके अपने विचार बन जाते हैं और साधारण लोगों की अपेक्षा उसकी कल्पना का विस्तार अधिक हो जाता है। खिड़की से शहर को देखते हुए, बाहर से जिसमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ था, उसे भविष्य के बारे में एक हल्की-सी परेशानी, एक अस्पष्ट-सी घबराहट ही महसूस हुई।
उसने याद करने की कोशिश की कि उसने इस बीमारी के बारे में क्याक्या पढ़ा था। उसकी स्मृति में आँकड़े तैर गए, और उसे याद आया कि प्लेग की जिन तीस महामारियों का इतिहास को पता है, उन्होंने करीब दस करोड़ लोगों की जान ली है। लेकिन दस करोड़ मौतें क्या होती हैं? जो युद्ध में लड़कर आ जाता है, वह कुछ दिन बाद यह भूल जाता है कि मुर्दा आदमी क्या होता है। और चूँकि मुर्दा आदमी वास्तविक नहीं होता, जब तक कि उसको प्रत्यक्ष मरते हुए न देखा गया हो, इसलिए इतिहास में दस करोड़ व्यक्तियों के शवों की घोषणा मनुष्य की कल्पना में धुएँ के एक कश से ज़्यादा वास्तविक नहीं दिखती। डॉक्टर को कुस्तुन्तुनिया की प्लेग की याद आई, जिसके बारे में प्रोकोपियस ने लिखा था कि एक ही दिन में उससे दस हज़ार मौतें हुई थीं। दस हज़ार मृतकों की संख्या किसी बड़े सिनेमाघर के दर्शकों से लगभग पाँच गुनी हुई। हाँ, ठीक है, इसी तरह इसको समझना चाहिए। आपको चाहिए कि पाँच बड़े सिनेमाघरों के दरवाज़ों पर ही उनके दर्शकों को जमा कर लें, फिर उन्हें शहर के चौक में ले जाएँ और फिर उन्हें ढेर के ढेर मर जाने दें, अगर आप दस हज़ार मौतों का साफ़-साफ़ मतलब समझना चाहते हैं। फिर मर्दो की इस अज्ञात भीड़ में कुछ परिचितों के चेहरे भी जोड़ दें। लेकिन ज़ाहिर है कि ऐसा करना एकदम असम्भव है। इसके अलावा ऐसा कौन आदमी है जो दस हज़ार चेहरों को पहचानता हो? जो भी हो, प्रोकोपियस की तरह उन पुराने इतिहासकारों के दिये हुए आँकड़ों पर भरोसा नहीं किया जा सकता, यह आम धारणा थी। सत्तर साल पहले कैंटन शहर में प्लेग से जब चालीस हज़ार चूहे मर चुके तब जाकर बीमारी नगरवासियों में फैली थी। लेकिन कैंटन की महामारी में भी चूहों की गिनती करने का कोई प्रामाणिक तरीक़ा नहीं था। केवल मोटे तौर पर अन्दाज़ ही तो लगाया गया था, जिसमें ग़लती की काफ़ी गुंजाइश थी। “आओ, ज़रा हिसाब लगाकर देखें," डॉक्टर ने अपने-आप से ही कहा, “मान लो कि एक चूहे की लम्बाई दस इंच होती है, तो चालीस हज़ार चूहों को अगर एक-दूसरे के आगे बिछा दें तो वह क़तार कितनी लम्बी होगी..."
उसने झटका देकर अपना होश सँभाला। वह अपनी कल्पना को खिलवाड़ करने का मौक़ा दे रहा था, जिसकी इस वक़्त क़तई ज़रूरत नहीं थी। उसने अपने-आपको आश्वासन दिया कि कुछ मामलों के आधार पर इसे महामारी नहीं कहा जा सकता। ज़रूरत सिर्फ गम्भीरतापूर्वक सावधानी बरतने की है। सबसे पहले तो उसे उन लक्षणों पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए, जो उसने अपने मरीज़ों में देखे हैं-बेहोशी और बेहद थकान, काँख और जाँघ में गिल्टियाँ, भयंकर प्यास, डिलीरियम, शरीर में काले धब्बे, अन्दर-ही-अन्दर घुलना और आख़िर में...आख़िर में, डॉक्टर के दिमाग में कुछ शब्द आए, जो संयोग से उसकी मेडिकल हैंडबुक में दिये गए वर्णन के आख़िरी वाक्य में भी थे। “नाड़ी फड़फड़ाने लगती है, तेज़ रफ़्तार से और रहरहकर, और ज़रा-सी भी हरकत से मौत हो जाती है।" हाँ, आख़िर में मरीज़ की ज़िन्दगी एक धागे से लटक जाती है, और चार में से तीन मरीज़ (उसे ठीक-ठीक संख्या याद आ गई) इतने बेसब्र होते हैं कि कोई-न-कोई हल्कीसी हरकत कर बैठते हैं, जो इस धागे को तोड़ देती है।
डॉक्टर अभी भी खिड़की से बाहर देख रहा था। बाहर वसन्त के शीतल आकाश की शान्त आभा फैली थी। कमरे के अन्दर एक शब्द की प्रतिध्वनि अभी तक गूंज रही थी वह शब्द था 'प्लेग'। वह ऐसा शब्द था जिसने डॉक्टर के दिमाग में कुछ ऐसी तस्वीरें जगा दी, जो सिर्फ उन तस्वीरों से ही मेल नहीं खाती थीं जिनका वर्णन विज्ञान ने किया है, बल्कि जिनमें कुछ ऐसी हैरतअंगेज़ सम्भावनाओं का पूरा सिलसिला निहित था जो उसकी आँखों के आगे बिछे इस भूरे और पीले रंग के शहर से बिलकुल भिन्न थीं, जिसकी सड़कों से लोगों के कार्य-कलाप की हल्की-हल्की आवाजें उस तक पहुँच रही थीं; संक्षेप में, एक उदास कलरव-सा उठ रहा था न कि शोरगुलएक सुखी नगर की आवाजें, अगर एक साथ ही उदास और सुखी होना सम्भव हो तो। शहर में ऐसी आकस्मिक और विचारहीन शान्ति छाई थी जो मानो अनायास ही प्लेग की पुरानी तस्वीरों का खंडन कर रही हो। एथेंस, एक विशाल श्मशान जिससे आसमान तक सड़ांध उठ रही थी और जिसे चिड़ियाँ भी वीरान करके उड़ गई थीं; चीन के शहर प्लेग के मरीज़ों से पटे हुए, जो ख़ामोशी से अपनी यातना झेल रहे हैं; मर्साई, जहाँ पर कैदी खन्दकों में सड़ी हुई लाशों के ढेर जमा कर रहे हैं। प्रोवेंस के इलाके में प्लेग की क्रूद्ध हवाओं को रोकने के लिए एक महान दीवार का निर्माण; कुस्तुन्तुनिया के कोढ़ीगृह, बदबूदार सड़ी चटाइयाँ मिट्टी के फ़र्श में धंसी हुईं जहाँ मरीज़ों को कुदालों से ठेलकर अपने बिस्तरों से नीचे गिराया गया था; काली मौत को शान्त करने के लिए नकाबपोश डॉक्टरों का मेला; मिलान शहर के कब्रिस्तानों में स्त्रियों और पुरुषों की खुली रतिक्रियाएँ; लन्दन की पिशाचों के भय से आक्रान्त अँधेरी सड़कों से लाशों से भरी गाड़ियों का चरमरातेलड़खड़ाते हुए गुज़रना हमेशा और हर जगह मनुष्य के दर्द-भरे चिरक्रन्दन से आक्रान्त रातें और दिन। नहीं, ये दहशतें अभी तक इतनी नज़दीक नहीं पहुंची थीं कि वसन्त के उस तीसरे पहर की शान्ति को भंग कर देतीं। और खाड़ी की दिशा में टकटकी बाँधकर देखते हुए डॉक्टर रियो ने प्लेग की उस आग की याद की जिसका ज़िक्र लूक्रिशियस ने किया है-उस आग की जो एथेंस के लोगों ने समुद्र के किनारे पर जलाई थीं। रात होने पर वे मर्दो को वहाँ ले गए लेकिन वहाँ उनके लिए काफ़ी जगह नहीं थी, और ज़िन्दा लोग अपने-अपने प्रियजनों की लाशों को रखने की जगह के लिए आपस में मशालों से लड़े थे, क्योंकि वे खूनी जंग में कूदने को तैयार थे, लेकिन अपने मर्दो को समुद्र की लहरों में नहीं छोड़ना चाहते थे। रियो की आँखों के आगे शराब-जैसे काले शान्त समुद्र में प्रतिबिम्बित चिताओं से उठने वाली एक लाल रोशनी, आपस में जूझती हुई मशालों से चारों दिशाओं में छिटकती हुई चिनगारियों और ऊपर से झाँकते आसमान की ओर उठने वाले घने और सड़ांध-भरे धुएँ की एक तस्वीर कौंध गई...
लेकिन ये अतिरंजित आशंकाएँ तर्क की रोशनी में अपने-आप मिट गईं। माना कि 'प्लेग' का नाम ले लिया गया था, हो सकता है कि इस वक़्त भी एक या दो को इस बीमारी ने पकड़कर पछाड़ दिया हो। फिर भी, यह रुक सकता था या रोका जा सकता था। ज़रूरत सिर्फ इस बात की थी कि जिस तथ्य को स्वीकार लेना चाहिए था, उसे संजीदा दिल से स्वीकार लिया जाए; ऐतिहासिक स्मृतियों की काली छायाओं को दिल से निकालकर क़दम उठाए जाएँ जो उठाने चाहिए। तब प्लेग का फैलना बन्द हो जाएगा, क्योंकि यह एक अकल्पनीय बात थी या फिर लोग इसके बारे में गलत ढंग से सोचने के आदी थे। अगर, जैसा कि सम्भव था, प्लेग ख़त्म हो गई तो सब कुछ फिर ठीक हो जाएगा। अगर ख़त्म नहीं हुई, तो कम-से-कम लोगों को पता तो चल जाएगा प्लेग क्या होती है और उसका मुक़ाबला करने और आख़िर में उस पर काबू पाने के लिए क्या क़दम उठाने चाहिए।
डॉक्टर ने खिड़की खोली और फ़ौरन शहर की आवाजें तेज़ हो गईं। पास के किसी वर्कशॉप से मशीनी आरी के चलने की खरखराहट लगातार सुनाई देने लगी। रियो ने अपने-आपको सँभाला। वहाँ, उन रोज़मर्रा के कार्यों में निश्चिन्तता थी। बाकी सब बातें अनिश्चित और क्षुद्र तात्कालिक ज़रूरतों से बँधी थीं; आप उनके लिए वक़्त बरबाद नहीं कर सकते। असल बात यह थी कि अपना काम इस तरह किया जाए जिस तरह किया जाना चाहिए।
पहला भाग : 6
डॉक्टर का विचार-प्रवाह इस बिन्दु पर पहँचा ही था कि उसे जोजेफ़ ग्रान्द के आगमन की सूचना मिली। म्यूनिसिपैलिटी के क्लर्क की हैसियत से ग्रान्द को कई तरह के काम करने पड़ते थे और अक्सर उसे आँकड़े तैयार करने वाले विभाग की ओर से जन्म, विवाह और मृत्यु के आँकड़े जमा करने के काम पर तैनात कर दिया जाता था। इस तरह इस बार उसे पिछले दिनों में होने वाली मौतों की संख्या जमा करने का काम सौंपा गया था और वह चूंकि मेहरबान दिल का आदमी था, इसलिए उसने खुद ही डॉक्टर से वादा किया था कि वह मौतों की ताज़ा सूची लेकर उसके पास आएगा।
ग्रान्द के हाथ में कागज़ का एक पन्ना था और साथ में उसका पड़ोसी कोतार्द था।
"तादाद बढ़ती जा रही है, डॉक्टर! पिछले अड़तालीस घंटों में ग्यारह मौतें हुई हैं।"
रियो ने कोतार्द से हाथ मिलाकर उसकी तबीयत का हाल पूछा। ग्रान्द ने उसकी ओर से सफाई देते हुए कहा कि कोतार्द ने सोचा कि डॉक्टर का शुक्रिया अदा करना और उनको उसकी वजह से जो तकलीफ़ करनी पड़ी, उसके लिए माफ़ी माँगना उसका फ़र्ज़ है। लेकिन रियो कागज़ पर लिखी संख्या की ओर त्योरियाँ डालकर देख रहा था।
“खैर," वह बोला, “शायद अब हमें इस बीमारी को इसके सही नाम से पुकारने का निश्चय कर लेना चाहिए। अब तक हम लोग सिर्फ़ इधर-उधर की बातें ही करते रहे हैं। सुनो, मैं लेबोरेटरी तक जा रहा हूँ, मेरे साथ आना चाहते हो?"
“ज़रूर, ज़रूर,” डॉक्टर के पीछे-पीछे ज़ीने से उतरते हुए ग्रान्द ने उत्तर दिया।
“मैं भी चीज़ों को उनके सही नाम से पुकारने में ही विश्वास करता हॅ...बहरहाल, इस बीमारी का सही नाम क्या है?"
“वह मैं नहीं बताऊँगा, और फिर उसका नाम जानने से तुम्हें कोई फ़ायदा नहीं होगा।"
“देखा आपने,” ग्रान्द मुस्कराया, “आखिरकार यह मामला इतना आसान नहीं है!”
वे तीनों प्लेस द आर्मे की तरफ़ चल पड़े। कोतार्द इस वक़्त भी ख़ामोश रहा। सड़कों पर भीड़ होने लगी थी। हमारे शहर की संक्षिप्त गोधूलि की वेला रात में तब्दील हो चुकी थी और क्षितिज-रेखा से ऊपर कुछ तारे नज़र आने लगे थे। कुछ ही देर में सड़क की सारी बत्तियाँ जल गईं और सड़क की आवाजें जैसे एक स्वर-लहरी में ऊपर उठने लगीं।
"माफ़ कीजिए, लेकिन मुझे अब अपनी ट्राम पकड़नी चाहिए," प्लेस द आर्मे के कोने पर पहुँचकर ग्रान्द ने कहा। मेरी शामें...पवित्र हैं। जैसी कि हमारे इलाक़े की एक कहावत है, कल के लिए काम कभी न छोड़ो।' ।
रियो ने पहले ही लक्ष्य किया था कि ग्रान्द में अपने इलाके की किसी उक्ति का हवाला देने की आदत है (वह मॉन्तेलिमर का निवासी था) और इसके बाद वह अक्सर ऐसी टकसाली अभिव्यक्तियों का प्रयोग करता था जैसे 'सपनों में खो गया' या 'तस्वीर-जैसी खूबसूरत'।
“यह सच है," कोतार्द ने कहा, "डिनर के बाद आप इसको अपने दरबे से हिला भी नहीं सकते।"
रियो के पूछने पर कि क्या वह म्यूनिसिपैलिटी के लिए अतिरिक्त-काम कर रहा है, ग्रान्द ने उत्तर दिया कि नहीं, वह तो सिर्फ अपनी ओर से यह काम कर रहा है।
"क्या सच?" रियो ने बातचीत जारी रखने के लिए कहा, “और क्या तुम्हारा काम ठीक चल रहा है?"
"इस बात को ध्यान में रखते हुए कि मैं बरसों से ऐसा काम करता आया हूँ, यह ताज्जुब की ही बात होगी अगर मैं ठीक से काम न चला सकूँ। हालाँकि, एक अर्थ में, इस दिशा में काफ़ी प्रगति नहीं हुई।"
“क्या मैं जान सकता हूँ,” डॉक्टर ने ठहरकर पूछा, “कि तुम किस काम में लगे हो?"
ग्रान्द ने हाथ से पकड़कर हैट को अपने विशाल, बाहर को निकले हुए कानों तक खींचते हुए अस्फुट स्वर में कुछ बड़बड़ाकर कहा, जिससे रियो ने यह नतीजा निकाला कि ग्रान्द के काम का 'व्यक्तित्व के विकास' से सम्बन्ध था। फिर वह तपाक से मुड़कर तेज़ी से छोटे-छोटे क़दम रखता हुआ बुलेवार द ला' मार्ने के किनारे पर लगी अंजीरों की पाँत के नीचे-नीचे आगे बढ़ गया।
वे लोग जब लेबोरेटरी के दरवाज़े पर पहँचे तो कोतार्द ने डॉक्टर से कहा कि वह उससे मिलकर एक ज़रूरी मामले के बारे में उसकी सलाह लेना चाहता है। रियो ने, जो अपनी जेब में आँकड़ों वाले कागज़ को टटोल रहा था, कहा कि वह कन्सल्टेशन के घंटों के बीच कभी भी आ जाए। लेकिन फिर अपना इरादा बदलकर बोला कि वह कल के दिन जब उसकी बस्ती की तरफ़ आएगा, तब तीसरे पहर के बाद खुद ही उसके यहाँ आ जाएगा।
कोतार्द के जाने पर डॉक्टर ने गौर किया कि वह ग्रान्द के बारे में सोच रहा था, प्लेग फैलने के बीच ग्रान्द की मौजूदगी की कल्पना कर रहा थाऐसी मामूली प्लेग के बीच नहीं जैसी इस वक़्त फैली हुई थी, बल्कि प्राचीन युगों की भयानक प्रलयकारी प्लेगों के बीच। 'वह उस क़िस्म का आदमी है जो ऐसे मौक़ों पर ज़िन्दा बचे रहते हैं।' रियो को याद आया कि उसने कहीं पढ़ा था कि प्लेग कमज़ोर और दुर्बल शरीर के लोगों को छोड़कर मज़बूत और तन्दुरुस्त व्यक्तियों को ही आमतौर पर अपना शिकार बनाती है। ग्रान्द के बारे में सोचते हुए वह इस नतीजे पर पहुँचा कि वह अपने तुच्छ ढंग का एक रहस्यपूर्ण आदमी' है।
यह सच है कि अपने साधारण व्यवहार और बाहरी पहनावे से, पहली नज़र में यही लगता था कि वह स्थानीय म्यूनिसिपैलिटी का एक मामूली कर्मचारी है। लम्बे क़द और दुर्बल शरीर का यह आदमी हमेशा ढीले-ढाले कपड़े पहनता था, शायद इस गलत ख़याल से कि ढीले कपड़े ज़्यादा दिन चलते हैं। हालाँकि उसके निचले जबड़े के अधिकतर दाँत अभी तक सुरक्षित थे, लेकिन ऊपर के सारे दाँत गिर चुके थे। नतीजा यह था कि ऊपर के होंठ को उठाकर नीचे का होंठ अक्सर हिलता भी नहीं था जब वह मुस्कराता तो उसका मुँह उसके चेहरे में बनाए गए एक काले छेद की तरह दिखाई देता। उसकी चाल एक नौजवान शरमीले पादरी-जैसी थी, जो दीवारों से सटकर चलता है और दरवाज़ों में चूहों की तरह सरककर घुस जाता है। और उसके बदन में धुएँ और तहख़ानों की सीलन-जैसी गन्ध आती थी। संक्षेप में, तुच्छता और नगण्यता के सभी लक्षण उसमें थे। दरअसल, शहर के स्नानगृहों की चुंगी की दर के काग़ज़ों को लेकर ध्यानपूर्वक डेस्क पर झुके रहने या किसी जूनियर सेक्रेटरी के लिए सफ़ाई के नए टैक्स की सामग्री जमा करते रहने के अलावा और किसी रूप में उसकी कल्पना करना मुश्किल था। वह क्या काम करता था, यह बताए जाने से पहले ही आपको यह महसूस होने लगता था कि उसको सिर्फ इसी मकसद से इस दुनिया में पैदा किया गया है कि वह 62 फ्रांक और 30 सेंट माहवार पर म्यूनिसिपैलिटी के एक अरज़ी असिस्टेंट क्लर्क की ज़रूरी ड्यूटी अंजाम देता रहे।
दरअसल, टॉउन हॉल के स्टॉफ़ रजिस्टर में जगह जिस पर तैनात हैं' के कॉलम में वह हर महीने यही बात दर्ज किया करता था। बाईस साल पहले मैट्रिकुलेशन का सर्टिफिकेट पाने के बाद, पैसों की तंगी की वजह से वह इससे आगे तरक़्क़ी नहीं कर सका। उसे जब इस अस्थायी नौकरी पर नियुक्त किया गया, तब उसे उम्मीद हो गई थी कि उसे जल्द ही पक्का कर दिया जाएगा। शहर के प्रशासन की नाजुक समस्याओं को समझकर उनके मुताबिक़ काम करने की योग्यता दिखाने-भर की ज़रूरत थी। उसे यह भी आश्वासन दिया गया था कि एक बार पक्का होते ही उसको ऐसे ग्रेड में तरक़्क़ी पाने में दिक़्क़त नहीं होगी, जिससे वह आराम की ज़िन्दगी बसर कर सकेगा। निश्चय ही महत्त्वाकांक्षा ने जोजेफ़ ग्रान्द को मेहनत से काम करने की ऐड़ नहीं लगाई थी, सूखी मुस्कान बिखेरकर वह यह कसम खाकर कह सकता था। वह सिर्फ इतना ही चाहता था कि अपनी मेहनत के बल पर भौतिक दृष्टि से उसकी ज़िन्दगी सुरक्षित हो जाए ताकि वह अपनी फुरसत का वक़्त अपने मनपसन्द कामों में लगा सके। उसने अगर यह नौकरी मंजूर की तो सिर्फ दयानतदारी की ख़ातिर, या अगर इजाज़त दी जाए तो वह कहेगा कि एक आदर्श के प्रति अपनी वफ़ादारी की ख़ातिर।
लेकिन यह 'अस्थायी' स्थिति चलती ही चली गई, महँगाई दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती गई, मगर ग्रान्द का वेतन मामूली सालाना तरक़्क़ी के बावजूद आज भी नगण्य था। उसने रियो को यह बात बताई थी, लेकिन और कोई उसकी स्थिति के प्रति सचेत नहीं दिखाई देता था। और इसी में ग्रान्द की मौलिकता या कम-से-कम उसका संकेत छिपा है। वह ऊपर के अधिकारियों के नोटिस में अगर अपने अधिकारों को नहीं, जिनके बारे में वह स्वयं आश्वस्त नहीं था, तो उन वायदों को तो ला ही सकता था जो नौकरी देते वक़्त उससे किए गए थे। लेकिन डिपार्टमेंट के जिस अध्यक्ष ने ये वायदे किए थे, एक तो वह मर चुका था और दूसरे उसे खुद याद नहीं था कि इन वायदों की ठीक शर्ते क्या थीं। और आख़िर में सबसे बड़ी मुसीबत तो यह थी, जोजेफ़ ग्रान्द किन शब्दों में फ़रियाद करे, यह नहीं जानता था।
रियो ने देखा कि यही विशेषता हमारे इस नेक नगरवासी के व्यक्तित्व की सच्ची कुंजी थी। उसमें यही कमी थी जो उसे हमेशा हल्के प्रतिवाद का वह पत्र लिखने से, जो उसके दिमाग में छाया रहता था या इस स्थिति का मुक़ाबला करने के लिए कोई दूसरा क़दम उठाने से रोक देती थी। उसके अनुसार उसे अपने अधिकारों' के बारे में बात करने से ख़ास नफ़रत थी। यह ऐसा शब्द था जिस पर पहुँचकर वह अटक जाता था। इसी तरह वह 'वायदों' का उल्लेख करना भी पसन्द नहीं करता था, क्योंकि इसका मतलब यह लगाया जाएगा कि वह अपना जायज़ हक पाने का दावा कर रहा है जो कि एक ऐसी गुस्ताखी होती जो मामूली क्लर्क की हैसियत से मेल नहीं खाती। दूसरी ओर वह अपनी दरखास्त में आपकी कृपा', 'कृतज्ञ' या 'प्रार्थना'-जैसे शब्दों का प्रयोग करने के ख़िलाफ़ था, क्योंकि उसका ख़याल था कि ये शब्द उसके आत्म-सम्मान से मेल नहीं खाते। इस तरह उपयुक्त शब्द खोजने की क्षमता के अभाव में वह बुढ़ापे की उम्र तक अल्प वेतन वाली इस नौकरी पर काम करता आया था। इसके अलावा डॉक्टर रियो को उसने यही बताया था, एक लम्बे तजरबे के बाद वह इस नतीजे पर पहुंचा था कि वह अपनी आमदनी के भीतर गुज़ारे की हमेशा उम्मीद कर सकता था। उसके लिए सिर्फ इतना ही करना ज़रूरी था कि अपनी आमदनी के मुताबिक़ अपनी ज़रूरतों में कटौती करता जाए। इस तरह वह हमारे मेयर की, जो नगर का बड़ा पूँजीपति था, राय की पुष्टि करता था। मेयर अक्सर ज़ोर देकर कहा करता था कि अगर जाँच करके देखा जाए तो (वह अपनी इस चुनी हुई अभिव्यक्ति पर विशेष जोर देता, क्योंकि वह सचमुच उसके तर्क को सिद्ध कर देती थी) यह विश्वास करने का कोई कारण ही नहीं है कि हमारे शहर में कभी कोई व्यक्ति भूख की वजह से मरा हो। जो भी हो, अगर जाँच कर देखा जाए तो जोजेफ़ ग्रान्द की कठोर और अभावग्रस्त ज़िन्दगी इस बात की गारंटी थी कि इस बारे में चिन्ता करना व्यर्थ है...| वह उपयुक्त शब्दों की तलाश में जीये चला जा रहा था।
एक विशेष अर्थ में यह भी कहा जा सकता है कि उसकी ज़िन्दगी एक शानदार मिसाल थी। वह उन असाधारण लोगों में से था, हमारे शहर में ही नहीं बल्कि कहीं भी, जिनमें अपनी नेक भावनाओं के मुताबिक़ चलने का साहस होता है। उसने अपनी व्यक्तिगत ज़िन्दगी के बारे में थोड़ा-बहुत जो बताया था वह उसके दयालु कारनामों और उसके अन्दर प्यार और स्नेह की उस क्षमता का सबूत था जिसे हमारे ज़माने में कोई अपनाने तक की जुर्रत नहीं करता। बिना किसी शरम और हिचक के उसने क़बूल किया कि वह अपने भतीजों और बहन को हृदय से प्यार करता है। उसके नज़दीकी रिश्तेदारों में सिर्फ वे ही बचे हैं और वह उनसे मिलने के लिए हर दूसरे साल फ्रांस जाता है। उसने क़बूल किया कि उसे अपने माँ-बाप की याद करके, जिनका उसकी बाल्यावस्था में ही देहान्त हो गया था, बहुत पीड़ा होती है। उसने यह बात भी नहीं छिपाई कि उसे अपने पड़ोस के गिरजाघर की घंटी विशेष रूप से प्यारी लगती है जो रोज़ पाँच बजे शाम के क़रीब मधुर स्वर में बजना शुरू करती है। लेकिन इन सीधी-सादी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए भी उसे बहुत कठिन प्रयत्न करना पड़ता था। और अपनी अभिव्यक्ति के लिए उपयुक्त शब्दों को तलाश करने की दुर्निवार कठिनाई ही उसके जीवन का अभिशाप बन गई थी। “ओह डॉक्टर, काश मैं अपने को व्यक्त करना सीख पाता!" वह कहता। रियो से वह जब कभी मिलता, इस विषय की चर्चा ज़रूर करता।
उस शाम को ग्रान्द की दूर जाती हुई आकृति की ओर देखते हुए डॉक्टर ने एकाएक सोचा कि आख़िर वह क्या चीज़ है जिसे ग्रान्द व्यक्त करना चाहता है? ज़रूर वह कोई किताब या ऐसी ही कोई चीज़ लिख रहा होगा। और विचित्र बात यह है कि लेबोरेटरी में घुसते समय इस विचार ने रियो को फिर से आश्वस्त कर दिया। उसने महसूस किया कि यह एक ऊटपटाँग विचार है, लेकिन वह विश्वास नहीं कर पा रहा था कि एक ऐसे शहर में भी, जहाँ ग्रान्द-जैसे अज्ञात कर्मचारी अपनी विचित्र रुचियों के अनुसार काम करने में लगे हों, कोई महामारी बड़े पैमाने पर फैल सकती है। कहने का मतलब यह है कि वह इसकी कल्पना ही नहीं कर सकता था कि प्लेग से पीड़ित समाज के लोगों में कभी इस तरह की विचित्र रुचियाँ भी पाई जा सकती हैं, और वह इस नतीजे पर पहुँचा कि हमारे नगरवासियों में प्लेग को बरबादी फैलाने का ज़्यादा मौक़ा नहीं मिलेगा।
पहला भाग : 7
अगले दिन बहुत कह-सुनकर, जो कई लोगों को उचित नहीं लगा, रियो ने प्रीफ़ेक्ट के दफ्तर में 'स्वास्थ्य कमेटी' की एक मीटिंग बुलाने के लिए अधिकारियों को राजी कर लिया।
"शहर के लोग घबराने लगे हैं, यह हक़ीक़त है," डॉक्टर रिचर्ड ने स्वीकार किया, "और इसमें शक नहीं कि तरह-तरह की अफ़वाहें फैल रही हैं। प्रीफ़ेक्ट ने मुझसे कहा कि अगर तुम ज़रूरी समझो तो सख्त कार्रवाई कर सकते हो, लेकिन लोगों का ध्यान मत आकर्षित करो।' खुद उसका विश्वास यह है कि यह सब झूठा आतंक है।"
रियो अपनी कार में बिठाकर कास्तेल को प्रीफ़ेक्ट के दफ्तर ले गया।
"क्या तुम जानते हो कि सारे जिले में हमारे पास प्लेग के टीके की एक बूंद भी नहीं है?" कार में कास्तेल ने रियो से कहा।
“मुझे मालूम है, मैंने डिपो को टेलीफ़ोन किया था। डायरेक्टर जैसे सुनकर भौचक्का रह गया। टीके पेरिस से मँगाने पड़ेंगे।"
"हमें आशा करनी चाहिए कि वे इसमें जल्दी करेंगे।"
"मैंने कल एक तार भेज दिया है," रियो बोला।
प्रीफ़ेक्ट ने स्नेहपूर्वक उनका अभिवादन किया, लेकिन उसके ढंग से मालूम पड़ता था कि वह बहुत घबराया हुआ है।
“मीटिंग फ़ौरन शुरू कर दें, साहिबान! क्या आप ज़रूरी समझते हैं कि मैं पहले पूरी स्थिति पर रोशनी डालूँ?" वह बोला।
रिचर्ड की राय में इसकी ज़रूरत नहीं थी। वह और उसके साथी डॉक्टर तथ्यों से परिचित थे। प्रश्न सिर्फ एक ही था कि स्थिति का मुकाबला करने के लिए कौन-से क़दम उठाए जाएँ?
बूढ़े कास्तेल ने बीच में बात काटकर दो-ट्रक कहा, “प्रश्न यह है कि हम जानना चाहते हैं कि यह प्लेग है या नहीं।"
उपस्थित दो-तीन डॉक्टरों ने इसका प्रतिवाद किया। बाक़ी डॉक्टर हिचकिचा रहे थे। प्रीफ़ेक्ट एकदम चौंक पड़ा और उसने जल्दी से दरवाज़े की ओर देखकर अपने को आश्वस्त करना चाहा कि यह भयानक शब्द कहीं बरामदे में किसी को सुनाई तो नहीं दे गया। उसकी राय में अभी तक तो सिर्फ इतना ही कहा जा सकता था कि हमें एक विशेष प्रकार के बुख़ार का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें पेट-सम्बन्धी पेचीदगियाँ पैदा हो जाती हैं। जैसे ज़िन्दगी में, उसी तरह मेडिकल साइंस में भी जल्दी से किसी नतीजे पर कूदकर पहुँच जाना अक्लमन्दी की बात नहीं है। बूढ़े कास्तेल ने, जो शान्त मुद्रा में अपनी गन्दी, पीली मूंछों को चबा रहा था, अपनी पीली, चमकती हुई आँखें उठाकर रियो की ओर गौर से देखा। फिर कमेटी के अन्य सदस्यों पर एक मैत्रीपूर्ण दृष्टि डालकर उसने कहा कि वह खूब अच्छी तरह जानता है कि यह प्लेग है और कहने की ज़रूरत नहीं कि वह यह भी जानता था कि अगर इस बात को सरकारी तौर पर मान लिया गया तो नगर के अधिकारियों को बहुत सख़्त कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। यही वजह थी जिससे उसके साथी इस तथ्य का सामना करने से हिचकिचा रहे थे, लेकिन अगर उसके कहने-भर से उनके मन को चैन मिल सकता था तो वह यह कहने को तैयार था कि यह प्लेग नहीं है। प्रीफ़ेक्ट इस बात से परेशान हो गया और बोला कि उसकी राय में बहस का यह ढंग ही ग़लत है।
"लेकिन अहम बात यह नहीं है कि बहस का तरीक़ा ग़लत है या ठीक, बल्कि यह कि वह आपको यह सोचने के लिए मजबूर कर देती है।"
रियो से, जो अब तक चुप रहा था, अपनी राय प्रकट करने के लिए कहा गया।
"हम टाइफ़ॉयड क़िस्म के एक ऐसे बुख़ार का सामना कर रहे हैं, जिसमें उल्टी भी आती हैं और गिल्टियाँ भी सूज जाती हैं," रियो ने उत्तर दिया। “मैंने ये गिल्टियाँ चीरकर देखी हैं और उनके मवाद की जाँच भी कराई है। हमारी लेबोरेटरी के परीक्षक का पक्का ख़याल है कि उसे मवाद में प्लेग के कीटाणु मिले हैं। लेकिन मैं यह भी साफ़ कर देना चाहता हूँ कि ये कीटाणु पुस्तकों में बताये गए प्लेग के कीटाणु से कुछ भिन्न हैं।"
रिचर्ड ने राय दी कि इससे 'ठहरो और इन्तज़ार करो' की नीति ही सही साबित होती है। और फिर यह अक्लमन्दी की ही बात होगी अगर एक हफ़्ते से जो अलग-अलग जाँच-पड़ताल की जा रही थी, उसकी संख्याबद्ध रिपोर्ट का इन्तज़ार कर लिया जाए।
“मगर जब एक कीटाणु,” रियो ने कहा, “शरीर में घुसकर तीन दिन के अन्दर ही तिल्ली को बढ़ाकर चौगुना कर देता हो, अन्न-पेशी की गिल्टियों को सुजाकर नारंगी के बराबर बना देता हो और उन्हें उबलते हुए गरम मवाद से भर देता हो, तब 'ठहरो और इन्तज़ार करो' की नीति को बेअक्ली की नीति ही कहा जा सकता है। रोग का संक्रमण बढ़ता जा रहा है। बीमारी जिस रफ़्तार से फैल रही है, उसे देखते हुए अगर फ़ौरन रोकथाम न की गई, तो वह अगले दो महीनों में शहर की आधी जनसंख्या को मौत के हवाले कर देगी। ऐसा होते हुए, इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि आप इसे प्लेग के नाम से पुकारते हैं या किसी विशेष प्रकार के बुखार के नाम से। अहम बात यह है कि इस शहर की आधी जनसंख्या को मौत के हवाले करने से रोका जाए।"
रिचर्ड ने कहा कि इतनी भयंकर तस्वीर खींचना ग़लत होगा और फिर, इसका कोई सबूत नहीं मिलता कि यह छूत की बीमारी है। सच तो यह है कि मरीज़ों के रिश्तेदार, एक ही छत के नीचे साथ रहकर भी, इसके शिकार नहीं हुए।
“लेकिन और तो मरे हैं,” रियो ने कहा, “और ज़ाहिर है कि छूत कभी सर्वग्राही नहीं होती, नहीं तो बीमारों की संख्या में क्रमश: इतनी तेज़ी से बढ़ती होने लगे कि मरने वालों की तादाद आसमान को छूने लगेगी। यह भयंकर तस्वीर खींचने का सवाल नहीं है, सवाल तो बचाव के लिए क़दम उठाने का है।"
लेकिन रिचर्ड ने अन्त में स्थिति का जायजा पेश करते हुए बताया कि यह बीमारी अपने-आप बन्द नहीं हुई तो कोड में लिखे हुए छूत से बचाव के कठोर नियमों को लागू करना ज़रूरी हो जाएगा। और यह करने के लिए, सरकारी तौर पर यह स्वीकार कर लेना पड़ेगा कि प्लेग फैल गई है। लेकिन अभी तक इस बारे में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। इसलिए जल्दी में कोई कदम उठाना अनुचित होगा।
रियो अपनी बात पर अड़ा रहा, “बहस की बात यह नहीं है कि कोड में दिये गए बचाव के नियम कितने कठोर हैं, बल्कि यह कि क्या वे शहर की आधी जनसंख्या को मरने से बचाने के लिए ज़रूरी हैं। बाकी सब बातें प्रशासनिक कार्यवाही से सम्बन्ध रखती हैं और मुझे यह बताने की ज़रूरत नहीं है कि हमारे विधान में ख़तरे के मौक़ों पर प्रीफ़ेक्ट को ज़रूरी आदेश जारी करने का अधिकार दिया गया है।"
"बिलकुल ठीक," प्रीफ़ेक्ट ने सहमति प्रकट की, “लेकिन आप डॉक्टरों को बाकायदा लिखकर घोषित करना पड़ेगा कि यह बीमारी प्लेग ही है।"
हम लोग अगर लिखकर यह बयान नहीं देंगे तो ख़तरा इस बात का है कि शहर की आधी आबादी तबाह हो जाएगी," रियो ने कहा।
रिचर्ड ने किंचित् बेसब्री से बीच में दखल देते हुए कहा, “सच यह है कि हमारे दोस्त को विश्वास हो गया है कि यह प्लेग है। उन्होंने जिन लक्षणों का वर्णन किया है, उससे तो यही साबित होता है।"
रियो ने उत्तर दिया कि उसने 'लक्षणों' का वर्णन नहीं किया, बल्कि जो अपनी आँखों से देखा था वही कहा। और उसने जो देखा वे थीं सूजी हुई गिल्टियाँ, तेज़ बुखार और साथ में सरसाम और अड़तालीस घंटों के भीतर मौत। क्या डॉक्टर रिचर्ड यह घोषणा करने की जिम्मेदारी लेंगे कि छत से बचाव के लिए सख्त कार्यवाही करने के बगैर ही बीमारी अपने-आप ख़त्म हो जाएगी?
रिचर्ड पहले तो हिचकिचाया, फिर रियो को घूरते हुए बोला, “मेहरबानी करके मुझे साफ़-साफ़ लफ़्ज़ों में बताओ। क्या तुमको पक्का विश्वास है कि यह प्ले ग है?"
“तुम समस्या को गलत ढंग से पेश कर रहे हो। यह बीमारी के नाम का सवाल नहीं है। सवाल वक़्त का है।"
“तो तुम्हारी राय यह है,” प्रीफ़ेक्ट ने कहा, “अगर्चे यह प्लेग न भी हो तो भी प्लेग की छूत से बचाव करने के लिए क़ानून के मुताबिक़ जो भी कार्यवाही ज़रूरी है, वह फ़ौरन की जानी चाहिए?"
“अगर आप मेरी 'राय' पर ही ज़ोर देना चाहते हैं तो मैं कहँगा कि आपने उसे काफ़ी सही शब्दों में पेश किया है।"
डॉक्टरों में विचार-विनिमय होने लगा। रिचर्ड उनकी ओर से बोल रहा था।
"तो इसका यह मतलब निकला कि हमें इस तरह अमल करने की ज़िम्मेदारी उठा लेनी चाहिए मानो यह बीमारी सचमुच प्लेग ही हो। है न?"
आमतौर पर सभी लोग सवाल को इस ढंग से पेश किए जाने से सहमत थे।
"मेरे लिए इसकी कोई अहमियत नहीं,” रियो ने कहा, "कि आप लोग किन शब्दों में इस स्थिति को बयान करते हैं। मेरा कहना तो सिर्फ यह है कि हमें इस तरह अमल नहीं करना चाहिए मानो शहर की आधी आबादी के ख़त्म हो जाने का कोई ख़तरा ही न हो; क्योंकि तब वह ज़रूर ख़त्म हो जाएगी।"
रियो लोगों की चढ़ी त्योरियों और प्रतिवादों के बीच कमेटी-रूम से निकलकर बाहर आया। कुछ देर बाद जब वह कार ड्राइव करता हुआ पिछवाड़े की एक गली से जा रहा था, जो भुनी हुई मछलियों के टुकड़ों और पेशाब से पटी थी, पीड़ा से चीख़ती हुई एक औरत ने, जिसकी जाँघों की गिल्टियों से खून चू रहा था, उसकी ओर अपनी बाँहें फैला दीं।
पहला भाग : 8
कमेटी मीटिंग के तीसरे दिन बुख़ार ने एक और छोटी कामयाबी हासिल की। अख़बारों में भी इसने जगह पा ली, लेकिन अत्यन्त संयत शब्दों में। उसके बारे में कुछ संक्षिप्त हवाले ही दिये गए थे। उसके अगले दिन रियो ने देखा कि शहर में सरकारी नोटिस चिपके हुए थे, यद्यपि ऐसी जगहों पर जहाँ उनकी ओर लोगों का ध्यान आकर्षित न हो। इन नोटिसों से इस बात का आभास नहीं मिलता था कि अधिकारी परिस्थिति का पूरी तरह सामना कर रहे हैं। जो कार्यवाहियाँ करने का एलान किया गया था वे कठोर तो थी ही नहीं, साथ ही यह भी लगता था जैसे लोगों में आतंक न फैल जाए, इस इच्छा से अनेक रियायतें भी दी गई थीं। नोटिस में दी गई हिदायतें एक बेहदा बयान से शुरू होती थीं कि ओरान में एक बुरे क़िस्म के बुख़ार के कुछ मामलों की इत्तिला मिली है। अभी तक यह बताना सम्भव नहीं है कि यह छूत का बुख़ार है। इसके लक्षण इतने स्पष्ट नहीं हैं कि सचमुच घबराने की बात हो और अधिकारियों को विश्वास है कि नगरवासी धैर्यपूर्वक स्थिति का सामना करेंगे। फिर भी विवेक की भावना से प्रेरित होकर, जिसे लोग अन्यथा नहीं समझेंगे, प्रीफ़ेक्ट ने सावधानी बरतने की ख़ातिर कुछ नियम और प्रतिबन्ध लागू किए हैं। अगर इन नियमों को ध्यान से समझकर उन पर अच्छी तरह अमल किया गया तो उनसे किसी महामारी के फैलने का खतरा मिट जाएगा। ऐसा होने की वजह से प्रीफ़ेक्ट को पूरा भरोसा है कि हर व्यक्ति अपनी-अपनी जगह पर अपनी निजी कोशिशों में पूरे मन से सहयोग देगा।
अधिकारियों ने जो सामान्य प्रोग्राम बनाया था, नोटिस में उसकी रूपरेखा दी गई थी। इस प्रोग्राम में शहर के चूहों की कुल आबादी को नालियों में जहरीली गैस भरकर नेस्तनाबूद कर देना और पानी की सप्लाई पर सख्त निगरानी रखना शामिल था। नगरवासियों को सलाह दी गई थी कि वे पूरी सख्ती से सफ़ाई रखने की कोशिश करें और अगर किसी को अपने बदन में पिस्सू मिलें तो उसे फ़ौरन म्यूनिसिपैलिटी की डिस्पेंसरी में जाकर अपने को दिखाएँ। हर परिवार के मुखिया को हिदायत दी गई थी कि अगर डॉक्टर उसके यहाँ किसी को बुखार से पीड़ित बताए तो वह अपने परिवार के उस बीमार सदस्य को अस्पताल के स्पेशल वार्ड में रखने की इजाज़त दे। आगे यह बताया गया था कि इन स्पेशल वार्डों में मरीजों के तत्काल इलाज का पूरा इन्तज़ाम किया गया है ताकि अच्छा होने में उन्हें अधिक-से-अधिक आसानी हो सके। कुछ अतिरिक्त नियमों के द्वारा यह ज़रूरी कर दिया गया था कि बीमार के कमरे और उस गाड़ी को, जिसमें वह सफ़र करे, फ़ौरन कीटाणु-नाशक दवाइयाँ छिड़ककर शुद्ध किया जाए। नोटिस के बाक़ी हिस्से में प्रीफ़ेक्ट ने आमतौर पर एक बीमार के सम्पर्क में आने वाले हर व्यक्ति को सलाह दी थी कि वह सफ़ाई-इंस्पेक्टर से जाकर मिले और उसकी दी हुई सलाह पर पूरी तरह अमल करे।
डॉक्टर रियो तेज़ी से इस पोस्टर के आगे से हटकर अपने ऑपरेशन-रूम की ओर लौट पड़ा। ग्रान्द ने, जो उसका इन्तज़ार कर रहा था, डॉक्टर को आते देखकर नाटकीय ढंग से अपनी बाँहें उठाईं।
“हाँ, मुझे मालूम है, संख्या बढ़ती जा रही है।" रियो ने कहा।
ग्रान्द ने बताया कि पिछले दिन दस मौतों की इत्तिला मिली थी। डॉक्टर ने उससे कहा कि वह उससे शाम को मिलेगा, क्योंकि वह कोतार्द को देखने के लिए जाने का वायदा कर चुका है।
"बहुत बढ़िया ख़याल है," ग्रान्द बोला, “आपके जाने से उसको बहुत फ़ायदा होगा। दरअसल, मुझे तो उसमें काफ़ी तब्दीली नज़र आती है।"
"किस तरह की?"
"वह काफ़ी मिलनसार हो गया है।"
"क्या पहले वह मिलनसार नहीं था?"
ग्रान्द उलझन में पड़ गया। वह यह नहीं कह सकता था कि कोतार्द पहले मिलनसार नहीं था; यह कहना सही नहीं होगा। लेकिन कोतार्द एक ख़ामोश और रहस्यमय व्यक्ति था और उसके आचरण में कुछ ऐसी बात थी, जिससे ग्रान्द को एक जंगली सूअर का ख़याल हो आता था। अपने बेडरूम में बन्द रहना, सस्ते रेस्तराँ में दोनों वक़्त का खाना खाना, रहस्यमय ढंग से कभी बाहर जाना और कभी लौटकर आना-कोतार्द का दैनन्दिन कार्यक्रम सिर्फ इतना ही था। वह अपने-आपको शराब और मदिरा का यात्री कहकर पुकारता था। कभी-कभी उसके पास दो या तीन आदमी आते थे, जो शायद ग्राहक होते थे। किसी-किसी दिन शाम को सड़क के उस पार सिनेमा देखने चला जाता था। इस बारे में ग्रान्द ने एक विशेषता का जिक्र किया जो उसे नज़र आई थी। उसे ऐसा लगा था कि कोतार्द को शायद चोर और डाकुओं की फ़िल्में ज़्यादा पसन्द थीं। लेकिन उसे कोतार्द में जो बात सबसे अनोखी लगी, वह उसकी लोगों के प्रति उदासीनता थी, और उससे अगर कोई मिलता था तो वह उसे अविश्वास की दृष्टि से तो खैर देखता ही था।
लेकिन, ग्रान्द का कहना था कि अब वह बिलकुल बदल गया है।
“मैं नहीं जानता कि इस बात को किन शब्दों में व्यक्त करना चाहिए, लेकिन मैं इतना ज़रूर कह सकता हूँ, कि मुझे लगता है वह अब हरेक को खुश करना चाहता है, हरेक की नज़रों में अच्छा बनना चाहता है। आजकल वह मुझसे अक्सर बातें करता है और साथ-साथ बाहर जाने का आग्रह करता है, जिससे मैं इनकार नहीं कर पाता। बड़ी बात यह है कि मुझे वह दिलचस्प आदमी लगता है, और इसमें शक नहीं कि मैंने ही उसकी ज़िन्दगी बचाई थी।"
कोतार्द ने जब से खुदकुशी करने की कोशिश की थी, तब से उसके यहाँ कोई आदमी नहीं गया था। सड़कों पर, दुकानों में, हर जगह वह दोस्त बनाने की कोशिश करता रहता था। पंसारी के सामने वह अपनी मुस्काने बिखेरता था और तम्बाकू-फ़रोश की गपबाज़ी में अब वह सबसे ज़्यादा दिलचस्पी दिखाता था।
"इस तम्बाकू-फ़रोश से जो औरत है सभी डरते हैं," ग्रान्द ने बताया। मैंने जब कोतार्द से यह बात कही तो उसने जवाब दिया कि मेरे मन में उसके प्रति कोई द्वेष है, उसमें ऐसी कई खूबियाँ हैं, जिन्हें अगर कोई चाहे तो देख सकता है।"
दो या तीन बार कोतार्द ने ग्रान्द को शहर के बड़े और शानदार रेस्तराँ और कॉफ़ी-हाउसों में दावत खिलाई थी, जहाँ वह आजकल जाने लगा था।
“वहाँ का वातावरण खुशगवार होता है," उसने कहा था, "और फिर वहाँ आदमी ऊँचे लोगों की सोहबत में बैठता है।"
ग्रान्द ने देखा कि इन जगहों के वेटर और बैरे कोतार्द के इशारे पर नाचते थे। उसे इसका कारण भी मालूम हो गया जब उसने देखा कि उसका साथी उनको दिल खोलकर बख्शीश देता है। इस बख्शीश के बदले में उसके प्रति जो सम्मान और आदर दिखाया जाता था, उससे लगता था, कोतार्द बहुत प्रसन्न होता था। एक दिन जब हेड वेटर उसे दरवाज़े तक छोड़ने के लिए साथ आया और उसने उसे ओवरकोट पहनने में मदद की तो कोतार्द ने ग्रान्द से कहा, “यह बहुत भला आदमी है और एक अच्छे गवाह का काम देगा।"
“एक गवाह का? मैं नहीं समझा।"
उत्तर देने से पहले कोतार्द हिचकिचाया।
"हाँ, वह कह सकता है कि मैं सचमुच बुरा आदमी नहीं हूँ।"
लेकिन उसके स्वभाव में उतार-चढ़ाव भी थे। एक दिन जब पंसारी उसके प्रति अधिक खुशी से पेश नहीं आया तो वह गुस्से से लाल-पीला होता हुआ घर लौटा था।
“वह दूसरों की हिमायत कर रहा है, सूअर कहीं का।"
"किन दूसरों की?"
"उन सभी बदज़ात लोगों की।"
तम्बाकू-फ़रोश की दुकान पर ग्रान्द ने स्वयं एक विचित्र दृश्य देखा था। बड़े जोशो-खरोश से बहस चल रही थी और काउंटर के पीछे खड़ी औरत ने कल के एक मामले के बारे में, जिसने एल्जीयर्ज़ में काफ़ी सनसनी फैला दी थी, अपनी राय सुनानी शुरू कर दी थी।
“मैं तो हमेशा से कहती आ रही हँ," औरत बोली “कि वे अगर उन सब बदमाशों को जेल में बन्द कर दें तो नेक और भले लोग आज़ादी से साँस ले सकेंगे।"
लेकिन वह कोतार्द की प्रतिक्रिया से स्तम्भित हो गई और अपनी बात जारी नहीं रख सकी-कोतार्द बिना कहे ही तपाक से उठकर दनदनाता हुआ दुकान से बाहर चला गया। तम्बाकू-फ़रोश और ग्रान्द भौचक्के होकर उसकी ओर देखते रह गए।
कुछ दिनों बाद ग्रान्द ने कोतार्द के स्वभाव की और तब्दीलियों के बारे में भी डॉक्टर को इत्तिला दी। आर्थिक प्रश्नों पर 'बड़ी मछली छोटी मछली को खाती है' की नीति के ख़िलाफ़ कोतार्द हमेशा उदार विचारों का समर्थन करता था। लेकिन अब वह ओरान के जिस एकमात्र अखबार को खरीदता था वह अनुदार (कन्जर्वेटिव) दृष्टिकोण का मुख्यपत्र था और इसमें शक नहीं कि वह उसको जान-बूझकर सार्वजनिक स्थानों पर पढ़ने का उपक्रम करता होगा। रोग-शय्या से निकलने के बाद उसने कुछ ऐसा ही आग्रह ग्रान्द से भी किया था। ग्रान्द ने उसे बताया था कि वह पोस्ट ऑफ़िस तक जा रहा है। इस पर कोतार्द ने उससे कहा था कि वह मेहरबानी करके उसकी एक दूर रहने वाली बहन के नाम उसकी ओर से सौ फ्रैन्क का मनीऑर्डर करता आए। उसने यह भी बताया कि वह हर महीने अपनी बहन को मनीऑर्डर भेजता है। फिर जब ग्रान्द कमरे से बाहर जाने लगा तो कोतार्द ने उसे वापस बुलाकर कहा-
“नहीं, उसे दो सौ फ्रैन्क भेज दो। उसे 'प्लेजेंट सरप्राइज़' होगा। उसका खयाल है कि मैं उसके बारे में कभी सोचता भी नहीं। लेकिन सच यह है कि मैं उसे बहुत चाहता हूँ।"
कुछ दिनों बाद उसने बातचीत के दौरान ग्रान्द से कुछ विचित्र बातें कहीं। उसने खोद-खोदकर ग्रान्द को यह बताने के लिए मजबूर कर दिया था कि वह अपनी सारी शाम किस रहस्यमय 'निजी काम' में लगाया करता है।
"मुझे मालूम है!" कोतार्द ने विस्मय भरे स्वर में कहा, “तुम कोई किताब लिख रहे हो, बोलो नहीं लिख रहे?"
"हाँ, कुछ ऐसी ही चीज़ है, लेकिन बात इतनी आसान नहीं है।"
“आह!" कोतार्द ने ठंडी साँस भरकर कहा, “काश, मुझे भी लिखने का अभ्यास होता!"
ग्रान्द ने जब इस पर आश्चर्य प्रकट किया तो कोतार्द ने कुछ हिचकिचाते हुए कहा कि साहित्यिक व्यक्ति होने से कई बातों में बड़ी सहलियत हो जाती होगी।"
“सो क्यों?" ग्रान्द ने पूछा।
“सो क्यों? क्योंकि एक लेखक को साधारण लोगों से कहीं ज्यादा अधिकार प्राप्त होते हैं, यह सभी जानते हैं। लोग उसकी बहुत सी बातों को बर्दाश्त कर लेते हैं।"
जिस दिन सरकारी नोटिस चिपकाए गए थे, उस दिन सुबह के वक़्त रियो ने ग्रान्द से कहा, "लगता है कि चूहों के इस क़िस्से ने उसके दिमाग को झकझोर दिया है, जैसा कि और बहुत से लोगों के साथ हुआ है। या शायद 'बुख़ार' का आतंक उस पर छा गया है।"
"इसमें मुझे शक है, डॉक्टर! अगर आप मेरी राय जानना चाहते हैं तो वह..."
ग्रान्द अचानक रुक गया। इसी वक़्त नज़दीक से 'चूहों का नाश' करने वाली गाड़ी खड़खड़ाती हुई गुज़री जिसकी भाप की नली से मशीनगन-जैसी तड़-तड़ की आवाज़ आ रही थी। रियो ख़ामोश रहा। जब यह शोर कम हुआ तो उसने उत्सुकता दिखाए बगैर ग्रान्द से उसकी राय पूछी।
"वह ऐसा आदमी है जिसकी अन्तरात्मा पर किसी गम्भीर गुनाह का बोझ है।" ग्रान्द ने गम्भीरता से जवाब दिया।
डॉक्टर ने कन्धे सिकोड़ लिये। इंस्पेक्टर ने कहा था कि उसे और भी कई काम हैं।
उस दिन तीसरे पहर रियो ने कास्तेल से फिर बात की। प्लेग के टीके अभी तक नहीं आए थे।
“टीके अगर आ भी जाएँ तो उनसे शायद ही कोई फ़ायदा निकले,” रियो ने कहा, “यह कीटाणु अजब क़िस्म का है...”
“इस बारे में मैं तुमसे सहमत नहीं हूँ,” कास्तेल बोला, “ये नन्हे ज़ालिम अपने व्यवहार में हमेशा मौलिकता दिखाते हैं। लेकिन बुनियादी तौर पर, कीटाणु वही पुराना होता है।"
“खैर यह तुम्हारी थ्योरी है। लेकिन सच बात यह है कि हम लोग इस बारे में कतई कुछ नहीं जानते।"
"माना कि यह मेरी थ्योरी है, फिर भी यह सब पर लागू होती है।"
सारे दिन डॉक्टर को यह एहसास बना रहा कि प्लेग का ख़याल आते ही उसके मन में कुछ हैरानी की जो भावना उठती है वह लगातार गहरी होती जा रही है। आखिरकार उसे महसूस हुआ कि इसका क्या मतलब है, सिर्फ यह कि वह डर गया है। दो बार वह भीड़-भरे कॉफ़ी-हाउसों के भीतर घुसा। कोतार्द की तरह उसे भी दोस्ताना सम्पर्क, मानवीय गरमाई की ज़रूरत महसूस हुई। यह एक मूर्खतापूर्ण मनोवृत्ति है, रियो ने अपने आप से कहा। फिर भी इसने उसे याद दिला दी कि उसने कोतार्द से मिलने का वायदा किया था।
डॉक्टर उस दिन शाम को जब उसके कमरे में दाखिल हुआ, तब कोतार्द खाने की मेज़ के पास खड़ा था। मेज़पोश पर एक जासूसी कहानी खुली पड़ी थी। चूँकि रात हो रही थी, इसलिए बढ़ते हुए अँधेरे में पढ़ सकना मुश्किल रहा होगा। सम्भव है कि कोतार्द बैठा, गोधूलि की वेला में, कुछ सोच रहा होगा, जब उसने दरवाज़े की घंटी बजाई थी। रियो ने उसकी तबीयत का हाल पूछा। कोतार्द ने बैठते हुए चिड़चिड़े स्वर में कहा कि उसकी तबीयत काफ़ी अच्छी है, लेकिन अगर उसे विश्वास हो जाए कि उसे अकेला शान्तिपूर्वक रहने दिया जाएगा तो उसकी तबीयत और भी अच्छी हो जाएगी। रियो ने कहा कि आदमी हमेशा अकेला नहीं रह सकता।
"मेरे कहने का यह मतलब नहीं है। मैं उन लोगों के बारे में सोच रहा था जो आपके लिए मुसीबतों के बीज बोने के लिए ही आपमें दिलचस्पी दिखाते हैं।"
जब रियो ने इस पर कुछ न कहा तो उसने अपनी बात जारी रखी, “याद रखिए, मैं अपनी बात नहीं कर रहा। बात यह है कि मैं उस जासूसी कहानी को पढ़ रहा था। यह एक अभागे आदमी की कहानी है, जिसे अचानक एक दिन सुबह गिरफ़्तार कर लिया जाता है। कुछ लोग उसमें दिलचस्पी लेने लगे थे और उसे इसका पता भी नहीं था। वे दफ़्तरों में उसकी चर्चा करते रहते थे और कार्डों पर उसका नाम लिखने लगे थे। आपके ख़याल में क्या यह ठीक है? आपके ख़याल में क्या लोगों को किसी आदमी के साथ ऐसा बरताव करना चाहिए?"
“खैर यह तो बहुत-सी बातों पर निर्भर करता है," रियो ने कहा, “एक माने में मैं तुमसे सहमत हूँ, किसी को ऐसा करने का अधिकार नहीं है। लेकिन ये सब फ़ालतू बातें हैं। तुम्हारे लिए सबसे ज़रूरी बात यह है कि तुम्हें टहलने के लिए बाहर जाना चाहिए। इतनी देर तक घर में बन्द रहना गलत है।"
कोतार्द चिढ़-सा गया और बोला कि ज़रूरत पड़ने पर वह अक्सर बाहर जाता रहता है। सड़क के सभी लोग इसकी गवाही दे सकते हैं। इतना ही नहीं, वह शहर के और हिस्सों के बहुत सारे लोगों को भी जानता है।
"क्या तुम मोशिए रिगो को भी जानते हो? वह मेरा दोस्त है।"
कमरे में इस वक़्त अँधेरा छाया था। बाहर, सड़क पर, शोरगुल बढ़ता जा रहा था और जब सड़क की सारी बत्तियाँ एक ही साथ जल उठीं, तब जैसे राहत की एक कल-कल ध्वनि ने बत्तियों का स्वागत किया। रियो बालकनी पर आ गया। कोतार्द भी उसके पीछे-पीछे आया। किनारे के मुहल्लों से, जैसा कि हमारे शहर में हर शाम को होता है, हल्की वायु के झोंके कलरव की आवाज़ों, भुनते हुए गोश्त की खुशबू और दुकानों और दफ्तरों से छुट्टी पाकर सड़कों पर चलने वाले नौजवानों की खुश और महकती हुई भीड़ों का शोर बहाकर ले आते थे। रात के पहले घंटे में अदृश्य जहाज़ों के भोंपूओं के गहरे दूरागत स्वर, समुद्र से आने वाले कलरव और हर्षोन्मत्त भीड़ों के शोरगुल में रियो को हमेशा एक खास सौन्दर्य नज़र आता था, लेकिन आज उसे लगा जैसे इस वातावरण में भयानक संकट की गूंज भरी हो, क्योंकि अब उसे बहुत-सी बातों का ज्ञान हो चुका था।
"क्यों न हम भी बत्तियाँ जला लें!" जब वे कमरे में लौटे तो उसने कोतार्द से कहा।
बत्ती जलाने के बाद उस छोटे क़द के आदमी ने चौंधियाती हुई आँखों से उसकी ओर टकटकी बाँधकर देखा।
“डॉक्टर, मुझे एक बात बताइए। अगर मैं बीमार पड़ जाऊँ तो क्या आप मुझे अस्पताल में अपने वार्ड में दाखिल कर लेंगे?"
"क्यों नहीं?"
कोतार्द ने तब पूछा कि क्या कभी ऐसा हुआ है कि नर्सिंग होम में पड़े आदमी को भी गिरफ़्तार कर लिया गया हो? रियो ने उत्तर दिया कि ऐसा होना नामुमकिन नहीं है, लेकिन यह सब मरीज़ की हालत पर निर्भर करता है।
"आप जानते हैं, डॉक्टर," कोतार्द ने कहा "कि मुझे आप पर पूरा विश्वास है।" फिर उसने डॉक्टर से पूछा कि क्या वह उसे अपनी कार में 'लिफ्ट' दे सकेगा, क्योंकि वह भी शहर तक जा रहा है।
इस वक्त तक शहर के केन्द्र में लोगों की भीड़ छंटने लगी थी और बत्तियाँ कम होने लगी थीं। घरों के दरवाज़ों के सामने बच्चे खेल रहे थे। कोतार्द के आग्रह पर डॉक्टर ने बच्चों के एक समूह के सामने कार रोक दी। वे कीड़ी-काड़ा (हाप्स्कॉच) खेल रहे थे और बेहद शोर मचा रहे थे। उनमें से एक मटमैले चेहरे वाले लड़के ने, जिसके बाल करीने से कढ़े और साफ़ थे, चमकती, साहसी आँखों से रियो की ओर कठोरतापूर्वक घूरकर देखा। डॉक्टर ने अपनी नज़र फेर ली। फुटपाथ पर खड़े होकर कोतार्द ने उससे हाथ मिलाया। फिर उसने रूखी आवाज़ में, उसके कन्धों पर घबराहट-भरी दृष्टि से देखते हुए कहा-
"हर आदमी किसी महामारी की चर्चा कर रहा है। क्या इस बात में कुछ सचाई है, डॉक्टर?"
“लोग तो चर्चा करते ही रहते हैं। उनसे ऐसी ही उम्मीद की जाती है।" डॉक्टर ने उत्तर दिया।
"आप ठीक कहते हैं। अगर हमारे यहाँ दस मौतें हो जाएँ तो वे सोचेंगे कि क़यामत का दिन आ गया है। लेकिन यहाँ हमें उसकी ज़रूरत नहीं।"
कार का इंजन घरघरा रहा था। रियो का हाथ गीयर की मूठ पर था। लेकिन वह दोबारा उस लड़के की ओर देख रहा था जो अभी तक उसकी ओर एक विचित्र गम्भीरता से टकटकी बाँधे घूर रहा था। एकाएक, अप्रत्याशित रूप से, अपनी बतीसी दिखाते हुए वह बालक मुस्करा दिया।
"क्या कहा? तो हमें किस चीज़ की ज़रूरत है?" रियो भी बच्चे की तरफ़ देखकर मुस्कराया।
एकाएक कोतार्द ने कार का दरवाज़ा ज़ोर से पकड़ लिया और फिर जाने से पहले, क्रूद्ध आवेशपूर्ण स्वर में चिल्लाया।
"भूचाल चाहिए, बहुत बड़ा भूचाल-जो हर चीज़ को तोड़-फोड़ डाले!"
भूचाल नहीं आया था, और अगला सारा दिन, जहाँ तक रियो का सम्बन्ध है, कार लेकर शहर के कोने-कोने में दौड़ने, बीमारों के परिवारों को मशविरा देने और ख़ुद बीमारों से बहस करने में गुज़र गया। अपने पेशे की ज़िम्मेदारियों का इतना भार रियो पर पहले कभी नहीं पड़ा था। अब तक उसके मरीज़ उसकी ज़िम्मेदारियों को हल्का करने में मदद देते आए थे। वे खुशी से अपने-आपको उसके हाथों में सौंप देते थे। अब पहली बार डॉक्टर ने महसूस किया कि वे जैसे तटस्थ हों; एक हैरत में डालने वाली दुश्मनी की भावना से अपनी बीमारी के आवरण में जैसे अपने-आपको बन्द रखते हों। यह एक ऐसा संघर्ष था, जिसका वह अभी आदी नहीं हो सका था। और जब, रात के दस बजे अपनी आख़िरी विजिट के लिए उसने अपने पुराने दमा के मरीज़ के घर के आगे कार खड़ी की, तब उसके लिए अपनी सीट से उठ पाना भी मुश्किल हो रहा था। कुछ क्षण तक वह बैठा अँधेरी सड़क के ऊपर काले आकाश में तारों का टिमटिमाना देखता रहा।
रियो जब कमरे में दाखिल हुआ, तो बूढ़ा बिस्तर पर बैठकर हमेशा की तरह एक पतीले से सूखे मटर निकालकर दूसरे पतीले में डाल रहा था। आगन्तुक को देखकर बूढ़े ने प्रसन्न और पुलकित होकर कहा-
“कहो डॉक्टर, शहर में हैजा फैल गया है न?"
“यह ख़याल तुम्हारे दिमाग में कैसे आया?"
“अख़बार में यह ख़बर छपी है और रेडियो से भी यही मालूम हुआ।"
"नहीं, हैज़ा नहीं फैला।”
“खैर जो भी हो।" बूढ़ा उत्तेजित होकर अपने कंठ में हँसा। “मैंने सुना है मोटे-मोटे खटमलों ने आफ़त मचा दी है। वे पागल हो गए हैं न!"
"इन बातों पर बिलकुल यक़ीन मत करो।" डॉक्टर ने कहा।
बूढ़े की जाँच के बाद डॉक्टर गन्दे और छोटे डाइनिंग-रूम में बैठा था। हाँ, उसने जो भी कहा था उसके बावजूद वह आतंकित था। वह जानता था कि अकेली इसी बस्ती में आठ-दस आदमी सूजी गिल्टियों की पीड़ा से चीखते हुए कल सबेरे उसकी विज़िट की प्रतीक्षा करते होंगे। दो-तीन मामलों में ही गिल्टियों के चीरने से मामूली-सा फ़ायदा हुआ था। ज़्यादातर मरीज़ों को अस्पताल में भरती होना होगा और उसे मालूम था कि अस्पतालों के बारे में गरीब लोग कैसा महसूस करते हैं। “मैं नहीं चाहती कि वे लोग मेरे पति पर अपने प्रयोग करें," एक मरीज़ की पत्नी ने उससे कहा था। लेकिन दरअसल उस पर प्रयोग नहीं किए जाएँगे; वह मर जाएगा, बस इतनी-सी बात है। जो हिदायतें लागू की गई थीं, वे पर्याप्त नहीं थीं, यह तो साफ़ ज़ाहिर था। जहाँ तक 'विशेष व्यवस्था वाले वार्डो' का ताल्लुक है, उनकी हक़ीक़त भी उससे छिपी नहीं थी दो इमारतें थीं, जिनमें से मरीज़ों को जल्दी में हटा दिया गया था, जिनकी खिड़कियाँ कसकर बन्द कर दी गई थीं और जिनके चारों ओर सिपाही तैनात करके लोगों को अन्दर आने की मनाही कर दी गई थी। उनको सिर्फ एक ही उम्मीद थी कि बीमारी अपने-आप ख़त्म हो जाएगी। कम-सेकम यह तो निश्चित ही था कि अधिकारियों ने बीमारी का मुक़ाबला करने के लिए जो क़दम उठाए थे, उनसे वह रोकी भी नहीं जा सकती थी।
फिर भी उस रात को सरकारी विज्ञप्ति और भी ज्यादा उम्मीदों भरी थी। अगले दिन सदाक' ने घोषणा की कि स्थानीय अधिकारियों ने जो नियम लागू किए थे, उनका सार्वजनिक स्वागत हुआ है और इस वक़्त तक तीस मामलों की इत्तिला पहुँच चुकी है। कास्तेल ने रियो को फ़ोन किया।
"स्पेशल वार्डों में कितने बेड हैं?"
"अस्सी !"
"तब तो निश्चय ही शहर-भर के तीस मामलों से तो कहीं ज़्यादा हैं न?"
"यह मत भूलो कि दो तरह के मरीज़ होते हैं-एक वे जो घबरा जाते हैं और दूसरे वे-जिनकी संख्या कहीं ज़्यादा होती है जिन्हें घबराने का भी वक़्त नसीब नहीं होता।"
“हूँ, यह बात है। क्या इसकी जाँच की गई है कि कितने लोग दफ़नाए जा रहे हैं?"
“नहीं। मैंने फ़ोन पर रिचर्ड से कहा था कि प्रभावशाली क़दम उठाए जाने चाहिए, सिर्फ लफ़्ज़ों से ही काम नहीं लेना चाहिए। हमें बीमारी के ख़िलाफ़ एक मज़बूत घेरा डालना चाहिए, नहीं तो हमारा सब किया-धरा बेकार है।"
"अच्छा ! और उसने क्या कहा?"
"कुछ नहीं किया जा सकता। उसके पास इतने अधिकार नहीं हैं, वगैरह, वगैरह। मेरी राय में हालत बिगड़ती जाएगी।"
और यही हुआ भी। तीन दिन के भीतर दोनों स्पेशल वार्ड पूरे भर गए। रिचर्ड की बात से मालूम हुआ कि किसी स्कूल को अधिकार में लेकर वहाँ एक सहायक अस्पताल खोलने की बात चल रही है। इस बीच रियो सूजी हुई गिल्टियों में नश्तर लगाता रहा और प्लेग के टीकों के आने की प्रतीक्षा करता रहा। कास्तेल अपनी पुरानी पुस्तकों के अध्ययन में जुट गया और पब्लिक-लाइब्रेरी में घंटों गुज़ारने लगा।
“ये चूहे प्लेग से ही मरे थे,” अपने अध्ययन से वह इस नतीजे पर पहुंचा, "या फिर किसी बिलकुल प्लेग-जैसी ही चीज़ से। और उन्होंने शहर में लाखों पिस्सू पैदा करके छोड़ दिए हैं, जो इस रोग की छूत को तेजी से फैला देंगे, अगर ठीक वक़्त पर रोकथाम न की गई।"
रियो चुप रहा।
इन्हीं दिनों मौसम फिर अच्छा हो गया था और सूरज की किरणों ने पिछली बारिश के गढ़ों को बिलकुल सुखा दिया था। हर सुबह नीला, प्रशान्त आकाश सूर्य की सुनहली किरणों से भर जाता और कभी-कभी बढ़ती हुई गरमी के बीच हवाई जहाज़ों की आवाजें सुनाई देने लगतीं। लगता था कि दुनिया में फिर खुशी छा गई है। लेकिन अगले चार दिन में ही बुखार में चौंकाने वाली प्रगति हुई थी पहले दिन सोलह, फिर चौबीस, अट्ठाईस और बत्तीस मौतें हुई थीं। चौथे दिन शिशुओं के एक स्कूल के भीतर सहायक अस्पताल खोले जाने की घोषणा की गई। नगरवासी अब तक नुक्ताचीनी करके अपनी घबराहट को छिपाते आए थे, लेकिन अब जैसे उनकी बोलती बन्द हो गई थी और वे उदास चेहरे लिये अपने कामों पर जा रहे थे।
रियो ने प्रीफ़ेक्ट को फ़ोन करने का निश्चय किया।
"स्थिति को देखते हुए ये नियम और पाबन्दियाँ कारगर साबित नहीं हो रहीं।"
“दुरुस्त," प्रीफ़ेक्ट ने उत्तर दिया। "मैंने आँकड़ों पर गौर किया है, और जैसा कि तुम्हारा कहना है, ये आँकड़े बहुत चिन्ताजनक हैं।"
"सिर्फ चिन्ताजनक ही नहीं, उनसे पक्का नतीजा निकाला जा सकता है।"
“मैं सरकार से आदेश जारी करने की माँग करूँगा।"
कास्तेल से जब रियो अगली बार मिला तब भी उसके कानों में प्रीफ़ेक्ट के शब्द खटक रहे थे।
"आदेश!" उसने नफ़रत से कहा, “जबकि ज़रूरत आदेशों की नहीं कल्पना की है।"
“टीकों के आने की कोई ख़बर है?"
"इस हफ्ते तक आ जाएँगे।"
प्रीफ़ेक्ट ने रिचर्ड की मार्फत रियो को हिदायत भेजी कि उपनिवेश के केन्द्रीय प्रशासन के पास भेजे जाने के लिए वह वक्तव्य तैयार करके दे जिसमें क्लिनिकल जाँच-पड़ताल और महामारी के आँकड़ों को भी शामिल करे। उस दिन चालीस मौतों की इत्तिला मिली थी। प्रीफ़ेक्ट ने कहा था कि वह नए और कड़े प्रतिबन्धों और नियमों के लागू करने की ज़िम्मेदारी खुद अपने ऊपर ले रहा है। इनके अनुसार बुखार के हर मामले की रिपोर्ट करना और मरीज को सख्ती से परिवार से अलग रखना एकदम ज़रूरी करार दे दिया गया। यह भी ज़रूरी कर दिया गया कि बीमारों के घरों को बन्द कर दिया जाए और दवाई छिड़ककर उनके कीटाणु मारे जाएँ। उन घरों में रहने वाले बाक़ी सभी लोगों को चालीस दिन के लिए अलग जाकर रहने (क्वारंटाइन) के लिए कहा गया। मुर्दो को दफ़नाने की क्रिया स्थानीय अधिकारों की देखरेख में ही होनी चाहिए, इसका आदेश जारी किया गयाकिस ढंग से इसका ब्योरा बाद में दिया जाएगा। अगले दिन हवाई जहाज़ से प्लेग के टीके आ गए। ये टीके तत्काल की ज़रूरतें पूरी करने के लिए तो काफ़ी थे, लेकिन महामारी फैलने की सूरत में वे पर्याप्त नहीं थे। रियो के तार के जवाब में उसको सूचना दी गई कि आकस्मिक ज़रूरत के लिए टीकों का जो स्टॉक था वह सारा-का-सारा भेज दिया गया है, लेकिन और टीके तैयार किए जा रहे हैं।
इस बीच पड़ोस की बस्तियों से वसन्त का मौसम हमारे शहर में प्रवेश कर रहा था। बाज़ारों और सड़कों पर फेरी लगाने वाले पुष्प-विक्रेताओं की टोकरियों में गुलाब के हज़ारों फूल मुरझाए जा रहे थे और शहर की हवा उनकी भीनी गन्ध से बोझिल हो रही थी। ऊपर से देखने पर यह वसन्त भी और वर्षों के वसन्त-जैसा ही था। काम के घंटों में ट्राम-गाड़ियाँ हमेशा की ही तरह भरी रहती थीं और बाक़ी वक़्त ख़ाली और गन्दी दिखाई देती थीं। तारो उस छोटे-से बुड्ढे को गौर से देखता रहता था और वह छोटा-सा बुड्ढा बिल्लियों पर थूकता रहता था। ग्रान्द दफ़्तर का काम ख़त्म करके रोज़ की तरह शाम को अपने 'रहस्यपूर्ण कार्य' में जुटने के लिए लपकता हुआ घर की ओर बढ़ता था। कोतार्द अपने ढर्रे पर ही चलता जा रहा था और मजिस्ट्रेट ओथों अपने कुत्ते को लेकर टहलता था। स्पैनिश बूढ़ा उसी तरह अपने मटर एक पतीले से दूसरे पतीले में उलटता रहता था और कभी-कभी वह पत्रकार रैम्बर्त भी दिखाई पड़ जाता था जो हमेशा की तरह जिस चीज़ को भी देखता था उसमें दिलचस्पी दिखाने लगता था। शाम के वक़्त पुराने चेहरे सड़कों पर घूमते नज़र आते थे और सिनेमाघरों के सामने टिकट खरीदने वालों की क़तारें लम्बी होती जाती थीं। इसके अलावा ऐसा लगता था कि महामारी का ज़ोर अब घटने लगा है। किसी-किसी दिन तो दस-बारह से अधिक मौतों की सूचना प्रकाशित नहीं होती थी। लेकिन फिर एकाएक मौतों की संख्या एकदम बढ़ गई। जिस दिन यह संख्या तीस तक पहुँची, प्रीफ़ेक्ट ने डॉक्टर रियो को एक तार पढ़ने के लिए दिया और कहा, “तो अब लगता है वे लोग भी घबरा उठे हैं आख़िरकार।" तार में लिखा था : ‘प्लेग फैलने की घोषणा कर दो। शहर के फाटक बन्द कर दो।'