प्लेग (फ्रेंच उपन्यास) : अल्बैर कामू; अनवादक : शिवदान सिंह चौहान, विजय चौहान

The Plague (French Novel in Hindi) : Albert Camus

प्रमुख पात्र

डॉक्टर बर्नाद रियो : उपन्यास की कथा बयान करने वाला। नास्तिक, मानवतावादी और कर्तव्यनिष्ठ। ओरान शहर में प्लेग फैलने के बाद तमाम जोखिम उठाते हुए लोगों का उपचार करता है।

जीन तारो : अपनी डायरी में ओरान में प्लेग का ब्योरा लिखनेवाला नौजवान। हालाँकि वह ओरान का निवासी नहीं था। डॉक्टर रियो के समान सामाजिक और व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी महसूस करनेवाला।

जोजेफ़ ग्रान्द : ओरान म्युनिसिपैलिटी का अधेड़ क्लर्क। अलग हो चुकी पत्नी को पत्र लिखने की वर्षों तक कोशिश करता रहता है पर इसके लिए उचित शब्द नहीं खोज पाता। वह एक किताब भी लिखना चाहता है, पर ऐसा भी नहीं कर पाता।

रेमन्द रेम्बर्त : ओरान की अरब आबादी में स्वच्छता स्थितियों पर शोध करने आया पेरिस का पत्रकार। प्लेग फैलने के बाद ओरान से वापस पेरिस पहुँचने के लिए तमाम जुगत लगाता है।

कोतार्द : संदिग्ध, उन्माद से पीड़ित और अस्थिर। अपने एक अपराध के लिए पकड़े जाने को लेकर भयभीत। प्लेग के कारण मची अफरा-तफरी में वह भयमुक्त होकर तस्करी में शामिल हो जाता है।

फ़ादर पैनेलो : विद्वान जेसुइट पादरी। प्लेग को मनुष्य के पापों का ईश्वरीय दंड बताता है। हालांकि बाद में उसने प्लेग को आस्था की सर्वोच्च परीक्षा के रूप में देखा।

मोशिए ओथों : ओरान का मजिस्ट्रेट। रूढ़िवादी। जीन तारो की नज़रों में जनता का अव्वल दुश्मन।

जेकस ओथों : मोशिए ओथों का छोटा बेटा। प्लेग से संक्रमित होने के बाद डॉक्टर कास्तेल द्वारा निर्मित प्लेग सीरम का टीका लेने वाला पहला व्यक्ति।

डॉक्टर कास्तेल : ओरान में फैली महामारी को प्लेग बताने वाला पहला व्यक्ति।

दमे का मरीज : डॉक्टर रियो से उपचार कराने वाले इस व्यक्ति के ज़रिए महामारी के दौरान ओरान के समाज के बदलते मिजाज का पता चलता है।

डॉक्टर रिचर्ड : ओरान में मेडिकल एसोसिएशन का अध्यक्ष। शहर में फैली महामारी को प्लेग मानने और बचाव के लिए तत्काल कदम उठाने के लिए राजी नहीं होता।

प्रीफेक्ट : प्लेग की रोकथाम के लिए स्वच्छता अभियान चलाने के अनुरोध पर पैर पीछे खींचने वाला।

माइकेल : उस मकान का चौकीदार जिसमें डॉक्टर रियो काम करता था। उपन्यास में प्लेग से पीड़ित होने वाला पहला किरदार।

मर्सियर : म्युनिसिपैलिटी दफ्तर में चूहे मारने वाले महकमे का इंचार्ज।

पहला भाग : 1

इस वृत्तान्त में जिन अनोखी घटनाओं का ज़िक्र किया गया है, वे सन् 194- में, ओरान में हुई थीं। इन घटनाओं की असाधारणता को देखते हुए सभी लोग इस बात से सहमत थे कि उनके लिए ओरान उपयुक्त स्थान नहीं था, क्योंकि ओरान एक मामूली शहर है, जिसकी खूबी सिर्फ यह है कि वह अल्जीरियाई तट पर मौजूद एक बड़ा फ्रेंच बन्दरगाह है और वहाँ एक फ्रेंच 'विभाग' के प्रीफ़ेक्ट का हेडक्वार्टर है।

हमें यह क़बूल कर लेना चाहिए कि यह शहर अपने आप में निहायत बदसूरत है। यहाँ का वातावरण इतना शान्त और आत्म-सीमित है कि आपको यह पता लगाने में कुछ समय लगेगा कि आखिर वह कौन-सी बात है जिसके कारण यह शहर दुनिया के दूसरे व्यापारिक केन्द्रों से अलग है! मिसाल के लिए आप एक ऐसे शहर की कल्पना कैसे करेंगे, जिसमें कबूतर न हों, पेड़-पौधे और बाग न हों, जहाँ न तो कभी पंखों की फड़फड़ाहट सुनाई देती है न पत्तियों की सरसराहट, यानी जो पूरी तरह से एक नकारात्मक जगह हो! यहाँ पर मौसमों का फ़र्क सिर्फ आसमान में नज़र आता है। वसन्त के आगमन की सूचना आपको सिर्फ हवा के स्पर्श से मिलती है या पड़ोस की बस्तियों से फेरीवालों दवारा लाई गई फूलों की टोकरियों से। इस वसन्त की आवाजें बाज़ारों में ही लगाई जाती हैं। गर्मियों के मौसम में सूरज मकानों को सुखा देता है, हमारी दीवारों पर सलेटी रंग की धूल का छिड़काव कर देता है और आपके सामने इसके सिवा और कोई चारा नहीं रह जाता कि आप बन्द दरवाज़ों के भीतर जलने वाली आग में दिन काटकर किसी तरह जीते रहें। लेकिन पतझड़ के दिनों में हमारा शहर दलदल से आप्लावित हो जाता है। सिर्फ सर्दियाँ वास्तव में सुहाना मौसम लाती हैं।

किसी शहर से परिचित होने का शायद सबसे आसान तरीक़ा यह है कि यह जानने की कोशिश की जाए कि उसमें रहने वाले लोग काम किस तरह करते हैं, प्यार और मुहब्बत किस तरह करते हैं और मरते किस तरह हैं। हमारे इस छोटे-से शहर में (क्या मालूम यह भी यहाँ की जलवायु का ही असर हो!) ये तीनों बातें बहुत-कुछ एक ही ढंग से की जाती हैं, उसी उत्तेजनापूर्ण, किन्तु आकस्मिक ढंग से। सच तो यह है कि यहाँ हर आदमी ज़िन्दगी से ऊबा हुआ है और अच्छी आदतें डालने की कोशिश में लगा रहता है। हमारे नागरिक कठोर परिश्रम करते हैं, लेकिन उनका एकमात्र उद्देश्य धनवान बनना होता है। उनकी मुख्य दिलचस्पी व्यापार में है और जीवन में उनका मुख्य उद्देश्य, उनके ही शब्दों में कारोबार करना' है। इसलिए यह स्वाभाविक है कि वे लोग इश्क़-मुहब्बत करने, समुद्र में नहाने या सिनेमा देखने-जैसे सीधे-सादे मनोरंजनों से अपने को वंचित नहीं रखते। लेकिन बड़ी बुद्धिमानी से उन्होंने इन मनोविनोदों के लिए शनिवार की शाम और रविवार के दिन रिज़र्व कर रखे हैं, और सप्ताह के बाक़ी दिन वे ज़्यादा-सेज़्यादा पैसा कमाने में इस्तेमाल करते हैं। शाम के वक़्त दफ़्तरों से निकलकर वे एक नियत समय पर रोज़ शहर के जलपान-गृहों में जमा होते हैं, एक ही बुलेवा1 पर चहलकदमी करते हैं, या अपनी-अपनी बालकनी में बैठकर हवा खाते हैं। नौजवानों में मुहब्बत का जोश तो बहुत ज़ोर से उमड़ता है, लेकिन वह क्षणस्थायी ही होता है। बुजुर्गों के गुनाह गेंद के खेलों, दावतों और महफ़िलों में शामिल होने या क्लबों में ताश खेलने तक ही सीमित हैं, जहाँ हर बाज़ी के ख़त्म होने पर बड़ी-बड़ी रकमों की अदला-बदली होती है।

इसमें शक नहीं कि लोग कहेंगे कि ये आदतें सिर्फ हमारे शहर की ही विशेषता नहीं हैं। दरअसल हमारे सभी शहरों में समकालीन स्थिति बहुतकुछ ऐसी ही है। निश्चय ही आजकल सबसे साधारण बात जो हमें देखने को मिलती है वह यह कि लोग सुबह से लेकर शाम तक काम करते हैं और फिर ज़िन्दा रहने के लिए उनके पास जो समय बच रहता है, उसको बरबाद करने के लिए ताश खेलने की मेज़ों, जलपान-गृहों या गप्पबाजी के ठिकानों की ओर चल पड़ते हैं। इसके बावजूद, कुछेक शहर और देश आज भी ऐसे हैं, जहाँ के लोगों को कभी-कभी इससे भिन्न ज़िन्दगी का आभास मिल जाता है। आमतौर पर इससे उनकी ज़िन्दगी का ढर्रा नहीं बदलता, लेकिन उनको कुछ नया एहसास तो हो ही जाता है, और उनके लिए इतना ही काफ़ी है। खैर, ओरान एक ऐसा शहर है जिसको कभी कोई नया एहसास नहीं होता, दूसरे शब्दों में वह पूरी तरह आधुनिक है। इसलिए हमारे नगर में प्यार मुहब्बत कैसे की जाती है, इसका वर्णन करने की ज़रूरत मुझे नहीं दिखाई देती। जिसे 'प्रेम-क्रीड़ा' कहा जाता है, उसमें हमारे यहाँ के लोग या तो एकदूसरे का बहुत तेज़ी से भक्षण कर लेते हैं या फिर दाम्पत्य-सम्बन्ध की हलकी-फुलकी आदत डालकर ज़िन्दगी बसर करने लगते हैं। इन अतिवादों के बीच का जीवन हमें यहाँ अक्सर देखने को नहीं मिलता। यह भी ख़ास नहीं है। बाक़ी शहरों की तरह ओरान में भी, समय और चिन्तन की कमी के कारण लोगों को एक-दूसरे से मुहब्बत करनी पड़ती है, बिना यह जाने हुए कि मुहब्बत होती क्या है।

हमारे शहर की अगर कोई विशेषता है तो वह यह कि यहाँ आदमी को मरने में कठिनाई का अनुभव करना पड़ता है। 'कठिनाई' शायद पूरी तरह उपयुक्त शब्द नहीं है, 'परेशानी' ज़्यादा सही है। बीमार होना कभी रुचिकर नहीं होता, लेकिन कुछ शहर ऐसे होते हैं जो आपके बीमार पड़ जाने पर मानो आपसे हमदर्दी दिखाते हैं, जहाँ आप अपने प्रति लापरवाह हो सकते हैं। मरीज़ को बस मामूली देखभाल की ज़रूरत रहती है। वह चाहता है कि किसी पर भरोसा कर सके और यह बिलकुल स्वाभाविक है। लेकिन ओरान में तापमान के हिंसक अतिवाद, व्यापार-धन्धे की तात्कालिक ज़रूरतें और मन को प्रेरणा और स्फूर्ति न देने वाला वातावरण, एकाएक आ जाने वाली रातें और उनके बँधे-बँधाए मनोरंजन इस बात की माँग करते हैं कि आदमी का स्वास्थ्य बहुत अच्छा हो। मरीज़ यहाँ अपने को बेगाना महसूस करता है। ज़रा सोचिए तो कि एक मरणासन्न व्यक्ति को यहाँ कैसा लगेगा, जो गरमी से तपती हुई हज़ारों दीवारों के बीच आ फँसा हो, जबकि शहर के सारे बाशिन्दे जलपान-गृहों में बैठे हों या टेलीफ़ोन से कान लगाए सामान से लदे जहाज़ों के आने, सामान उतरवाई की उजरत और अपने कमीशनों की बहस में लगे हों। तब पता चलेगा कि मृत्यु के साथ, हर आधुनिक मृत्यु के साथ कितनी परेशानी जुड़ी हुई है जब वह एक खुश्क जगह की इन परिस्थितियों में आपको पछाड़ कर रख देती है।

इन कुछ उलटे-सीधे विचारों से शायद आप अनुमान लगा सकें कि हमारा शहर कैसा है। जो भी हो, हमें अतिरंजना से काम नहीं लेना चाहिए। दरअसल, आपको यह आभास करा देना ही हमारा उददेश्य था कि इस शहर का बाहरी रूप और इसके अन्दर की ज़िन्दगी कितनी क्षुद्र है! लेकिन अगर आपको आदत पड़ जाए तो आप यहाँ बिना किसी दिक़्क़त के अपने दिन काट सकते हैं। और चूँकि हमारे शहर आदतों को ही प्रोत्साहन देते हैं, इसलिए समझ लीजिए कि यह सब कुछ अच्छे के लिए है। इस दृष्टिकोण से देखें तो इसकी ज़िन्दगी विशेष आकर्षक नहीं है, यह मानना ही पड़ेगा। लेकिन, कम-से-कम, हमारे यहाँ सामाजिक असन्तोष-जैसी चीज़ एकदम अज्ञात है। और हमारे स्पष्टवादी, स्नेहपूर्ण और परिश्रमी नागरिक बाहर से आए आगन्तुकों के दिलों में हमेशा से उचित सम्मान का भाव जगाते आए हैं। वृक्षरहित, आकर्षणरहित, आत्मारहित ओरान शहर अन्त में शान्तिपूर्ण दिखाई देने लगता है और कुछ दिन में ही आप यहाँ निश्चिन्त भाव से गाढ़ी नींद में सोने लगते हैं।

यहाँ पर इतना और कह देना उचित होगा कि ओरान को एक अनोखी पृष्ठभूमि में स्थापित किया गया है-एक नंगे पठार के केन्द्र में, जिसके तीन ओर चमकती हुई पहाड़ियों का घेरा है और उत्तर की दिशा में खाड़ी, जिसकी आकृति अपने आप में पूर्ण है। हमें अगर किसी बात का अफ़सोस हो सकता है तो सिर्फ इसका कि यह शहर कुछ इस तरह बसाया गया है कि इसने खाड़ी की ओर अपनी पीठ कर ली है, जिससे समुद्र को देख पाना असम्भव हो गया है। समुद्र देखने के लिए आपको उस तक चलकर जाना पड़ता है।

ओरान की साधारण ज़िन्दगी चूँकि ऐसी थी, इसलिए उस साल के वसन्त में जो घटनाएँ हुईं, उनकी आशंका हमारे नागरिक क्यों नहीं कर पाए, यह बात आसानी से समझ में आ सकती है। ये घटनाएँ (जैसा कि हमने बाद में महसूस किया) उन गम्भीर और दुखदायी घटनाओं की पूर्वसूचनाएँ थीं, जिनका विवरण हम यहाँ पेश करेंगे। कुछ लोगों को ये घटनाएँ बिलकुल स्वाभाविक लगेंगी, लेकिन दूसरों को एकदम अविश्वसनीय। लेकिन स्पष्ट है कि कहानी कहने वाला लोगों के नज़रियों की इन भिन्नताओं को महत्त्व नहीं दे सकता। उसका काम तो सिर्फ यह बताना है कि “जो हुआ वह यह था," क्योंकि वह जानता है कि वास्तव में हुआ भी तो यही था, कि इसने शहर के सारे निवासियों की ज़िन्दगी को निकट से प्रभावित किया था और यह कि यहाँ के हज़ारों व्यक्तिइसके गवाह हैं जिन्होंने इन घटनाओं को अपनी आँखों से देखा था, और वे अपने दिलों में इस बात की दाद दे सकते हैं कि कहानी कहने वाला जो लिख रहा है, वह सच ही है।

जो भी हो, कहानी कहने वाला (जिसका नाम आपको वक़्त आने पर बता दिया जाएगा) इस कार्य के लिए उपयुक्त व्यक्ति न होता, अगर घटनाओं ने उसे तथ्य एकत्र करने की स्थिति में न डाल दिया होता, और अगर परिस्थितिवश वह उन सब घटनाओं में निकट से भाग लेने के लिए मजबूर न होता, जिनका वर्णन वह करना चाहता है। एक इतिहासकार की भूमिका अदा करने का उसके पास सिर्फ यही एक औचित्य है। ज़ाहिर है कि एक इतिहासकार के पास, चाहे वह इस काम को शौकिया ही क्यों न करता हो, हमेशा कुछ तथ्य होते हैं व्यक्तिगत अनुभव से हासिल या दूसरों के बताए, जो उसका पथ-प्रदर्शन करते हैं। इस कहानी को कहने वाले के पास तीन प्रकार के तथ्य हैं-सबसे पहले, जो उसने खुद अपनी आँखों से देखा; दूसरे, उन अनेक लोगों के बयान, जिन्होंने अपनी आँखों से देखा (उसने जो भूमिका निभाई थी उसकी वजह से वह उन तमाम लोगों के व्यक्तिगत अनुभवों को जान सका था, जिनका इस वृत्तान्त में ज़िक्र हुआ है); और अन्त में उसे उन दस्तावेज़ों से मदद मिली, जो बाद में उसके हाथ लगे। उसका इरादा है कि वह जहाँ भी मुनासिब समझेगा उनका सहारा लेगा और अपने मन के मुताबिक़ उनका इस्तेमाल करेगा। उसका यह भी इरादा है कि...

लेकिन शायद अब समय आ गया है कि वृत्तान्त की भूमिका और आगाह करने वाली टिप्पणियों को छोड़कर सीधा वृत्तान्त को शुरू किया जाए। शुरू के कुछ दिनों की घटनाओं को विस्तारपूर्वक बताने की ज़रूरत है।

(1. बुलेवा=चौड़ी सड़क, जिसके दोनों ओर वृक्षों की पंक्तियाँ होती हैं।)

पहला भाग : 2

16 अप्रैल की सुबह जब डॉक्टर रियो अपने ऑपरेशन-रूम से निकला तो उसे अपने पैरों के नीचे कोई नरम चीज़ महसूस हुई। जीने के बीचो-बीच एक मरा हुआ चूहा पड़ा था। डॉक्टर ने तत्काल पैर से ठोकर मारकर चूहे को एक तरफ़ हटा दिया और उसके बारे में और अधिक सोचे बगैर जीने से नीचे उतरता चला गया। लेकिन सड़क पर जाने से पहले उसे ख़याल आया कि आखिर उसके जीने पर मरा हुआ चूहा क्यों पड़ा रहे, इसलिए उसने मकान के चौकीदार को बुलाकर चूहा हटाने का आदेश दिया। इस ख़बर की बूढ़े माइकेल पर जो प्रतिक्रिया हुई, उससे डॉक्टर को एहसास हुआ कि बात इतनी मामूली नहीं है। खुद तो उसने यही सोचा था कि मरे हुए चूहे का होना एक अजीब बात ज़रूर है, पर इससे ज़्यादा कुछ नहीं। लेकिन चौकीदार सचमुच बेहद परेशान हो उठा था। एक बात के बारे में उसका दावा बिलकुल पक्का था, "इस इमारत में चूहे नहीं थे।" डॉक्टर उसे बेकार ही समझाता रहा कि एक चूहा तो था ही और वह अब शायद जीने की सीढ़ी पर मरा पड़ा है। लेकिन माइकेल अपने विश्वास पर अडिग बना रहा। "इस इमारत में चूहे थे ही नहीं,” उसने अपनी बात दुहराई, इसलिए इस चूहे को कोई बाहर से लाया होगा। शायद कोई बच्चा शरारत करने की ख़ातिर डाल गया होगा।

उस दिन शाम को, जब डॉक्टर रियो अपने फ़्लैट के जीने पर चढ़ने से पहले दरवाज़े के पास खड़े होकर जेब में चाबी टटोल रहा था कि उसने बरामदे के अँधेरे कोने की तरफ़ से एक मोटा चूहा अपनी ओर आते हुए देखा। चूहा डगमगाता हुआ चल रहा था और उसकी बालदार खाल भीगी हुई थी। उसने रुककर खुद को गिरने से बचाने की कोशिश की, डॉक्टर की ओर आगे बढ़ा, फिर रुका और एक चीख़ के साथ कलाबाजी-सी खाकर बग़ल की ओर उलट गया। चूहे का मुँह थोड़ा-सा खुला हुआ था और उसमें से खून की धार निकल रही थी। उसकी ओर एक क्षण गौर से देखने के बाद डॉक्टर जीने से ऊपर चला गया।

वह चूहे के बारे में नहीं सोच रहा था। खून की उस धार ने उसका ध्यान उस चीज़ की ओर खींचा जो सारे दिन उसके दिमाग पर हावी रही थी। उसकी पत्नी, जो एक साल से बीमार थी, अगले दिन पहाड़ के एक सेनेटोरियम में भरती होने के लिए जाने वाली थी। उसने अपनी पत्नी को सोने के कमरे में लेटकर आराम करते हुए पाया। इतनी लम्बी और कठिन यात्रा से पहले ऐसा करने की वह उसे ताकीद कर गया था। पत्नी ने उसकी ओर देखकर मुस्करा दिया।

"जानते हो, मैं आज बेहतर महसूस कर रही हूँ!"

"डॉक्टर ने उस चेहरे को गौर से देखा जो सिरहाने के लैम्प की रोशनी में उसकी ओर मुखातिब था। उसकी पत्नी की उम्र तीस बरस की थी, और इस लम्बी बीमारी ने उसके चेहरे पर अपनी छाप छोड़ दी थी। फिर भी, उसे देखकर, डॉक्टर रियो के मन में यह विचार उठा कि वह कितनी छोटी दिखाई देती है, बिलकुल एक लड़की-जैसी! लेकिन उसे ऐसा शायद उस मुस्कान के कारण लगा, जो बीमारी के सारे चिह्नों को मिटा देती थी।

“अब सोने की कोशिश करो," उसने सलाह दी। "नर्स ग्यारह बजे आएगी और तुम्हें दोपहर की ट्रेन पकड़नी है।"

उसने पत्नी का पसीने से तर माथा चूमा। पत्नी की मुस्कराहट ने दरवाजे तक डॉक्टर का साथ दिया।

अगले दिन, 17 अप्रैल के आठ बजे जब डॉक्टर बाहर जा रहा था तब पोर्टर ने उसे रोककर बताया कि कुछ निकम्मे बदमाश छोकरे हॉल में तीन मरे हुए चूहे पटक गए हैं। साफ़ ज़ाहिर है कि उन चूहों को बड़े मज़बूत स्प्रिंग वाले शिंकजे में पकड़ा गया था, क्योंकि उनमें से खून की धार बह रही थी। पोर्टर बहुत देर तक चूहों को टाँगों से पकड़कर दरवाज़े में खड़ा, सड़क से गुज़रने वाले लोगों को गौर से देखता रहा था। उसका ख़याल था कि शायद शरारती छोकरे खीसें निपोरेंगे या मज़ाक करेंगे, जिससे उनकी पोल खुल जाएगी। लेकिन उसकी यह कोशिश बेकार गई।

"लेकिन मैं उनको पकड़कर ही दम लूँगा,” माइकेल ने आशापूर्वक कहा।

इस घटना से हैरान रियो ने उस दिन पहले शहर के छोर की बस्तियों का मुआयना करने का फैसला किया, जहाँ उसके गरीब मरीज़ रहते थे। इन मोहल्लों में कूड़े-कचरे की सफ़ाई काफ़ी दिन चढ़े होती थी, और जब वह अपनी मोटर ड्राइव करते हुए सीधी, धूल-भरी सड़कों से गुज़रा तो उसने सड़क के दोनों ओर फुटपाथ के किनारे रखे कूड़े के कनस्तरों पर नज़र डाली। एक सड़क पर ही डॉक्टर ने गिना कि सब्जियों के छिलकों और दूसरे कचरे से भरे कनस्तरों के ऊपर एक दर्जन से भी ज़्यादा मरे चूहे पड़े थे।

उसे अपना पहला मरीज़, जो अर्से से दमे से पीड़ित था, सड़क की जानिब वाले उस कमरे के भीतर बिस्तर में मिला, जो डाइनिंग-रूम और बेडरूम दोनों का काम देता था। यह मरीज़ कठोर और खुरदरे चेहरे वाला एक बूढ़ा स्पेनवासी था। उसके सामने चादर पर सूखी मटर से भरे दो पतीले रखे हुए थे। जब डॉक्टर कमरे में दाख़िल हुआ उस वक़्त वह बूढ़ा बिस्तर में बैठा, अपनी गरदन को पीछे की ओर मोड़कर साँस लेने की कोशिश में हाँफते हुए हवा सुड़क रहा था। उसकी पत्नी पानी का एक कटोरा लेकर आई।

इंजेक्शन लगते वक़्त वह बोला, “हाँ तो डॉक्टर, वे अब बड़ी तादाद में निकलकर बाहर आने लगे हैं, क्या आपने भी देखा है?"

"इसका मतलब चूहों से है," उसकी पत्नी ने बताया, “पड़ोसी को अपनी दहलीज़ पर तीन चूहे मिले।"

“अरे, वे अब निकलकर बाहर आ रहे हैं, आप कड़े के कनस्तरों में उनको दर्जनों की तादाद में पड़े हुए देख सकते हैं। यह भूख है, बस भूख, जिसने उन्हें बाहर निकलने के लिए मजबूर कर दिया है।"

रियो को जल्द ही पता चल गया कि शहर के उस हिस्से में चूहे बातचीत का सबसे बड़ा विषय बन चुके थे। मरीज़ों के घरों का राउंड करने के बाद डॉक्टर मोटर में बैठकर घर आ गया।

“सर, आपका एक तार आया है, जो ऊपर रखा है," माइकेल ने उसे ख़बर दी।

डॉक्टर ने उससे पूछा कि उसे और चूहे तो नहीं दिखाई पड़े।

"नहीं, और नहीं दिखाई दिए। मैं बड़ी मुस्तैदी से निगरानी कर रहा हूँ। मेरे यहाँ रहते उन छोकरों को शरारत करने की जुर्रत नहीं होगी।" पोर्टर ने जवाब दिया।

तार में रियो की माँ ने ख़बर दी थी कि वह कल आ रही है। वह उसकी पत्नी की गैर-मौजूदगी में उसका घर सँभालेगी। अपने फ़्लैट पर पहँचकर डॉक्टर ने देखा कि नर्स पहले ही आ चुकी है। उसने अपनी पत्नी की ओर देखा। वह दरजी का सिला हुआ सूट पहने थी और उसने अपने चेहरे पर मेकअप भी किया था। डॉक्टर उसकी ओर देखकर मुस्कराया।

"बहुत खूब, तुम बड़ी अच्छी लग रही हो!" उसने कहा।

कुछ ही देर बाद वह अपनी पत्नी को ट्रेन की 'स्लीपिंग कार' में बिठा रहा था। पत्नी ने डिब्बे में चारों ओर नज़र दौड़ाकर देखा।

“यह सचमुच हमारे लिए बहुत महँगा है, है न?"

"इसकी फ़िक्र मत करो,” रियो ने उत्तर दिया, “यह तो करना ही था।"

"सुनो, यह चूहों का क्या क़िस्सा है, जिसकी हर जगह चर्चा है?"

“मैं इसकी वजह नहीं बता सकता। बड़ी अजीब-सी बात है, इसमें शक नहीं। लेकिन यह क़िस्सा जल्द ही ख़त्म हो जाएगा।"

फिर उसने बड़ी जल्दी में अपनी पत्नी से माफ़ी माँगी। उसने कहा कि उसे उसकी और अच्छी तरह देखभाल करनी चाहिए थी। वह इस बारे में बहुत लापरवाह रहा था। लेकिन जब उसकी पत्नी ने अपना सिर हिलाकर उसे ऐसा न कहने से रोकना चाहा तो वह बोला, “खैर, अब तुम जब लौटकर आओगी तो सब कुछ ठीक हो जाएगा। हम नए सिरे से ज़िन्दगी शुरू करेंगे, तुम और मैं, डियर!"

"बिलकुल ठीक!" पत्नी की आँखें चमक रही थीं। “आओ, हम लोग नए सिरे से ज़िन्दगी शुरू करें।"

लेकिन फिर उसने अपना मुँह दूसरी ओर फेर लिया और ऐसा लगा जैसे डिब्बे की खिड़की बाहर प्लेटफार्म पर जल्दी और घबराहट में एक-दूसरे से टकराते हुए लोगों को देख रही हो। इंजन की आवाज़ उनके कानों तक पहुँची। उसने प्यार से अपनी पत्नी को उसका पहला नाम लेकर पुकारा। जब उसने डॉक्टर की ओर मुँह फेरा तो डॉक्टर ने देखा कि उसका चेहरा आँसुओं से तर था।

“नहीं, रोओ नहीं,” वह बुदबुदाया। आँसुओं के पीछे मुस्कान लौट आई, किंचित कसी हुई-सी। फिर उसने एक गहरी साँस ली।

“अच्छा, अब तुम जाओ! सब ठीक हो जाएगा।"

रियो ने उसे अपनी बाँहों में भर लिया, फिर वह उतरकर प्लेटफार्म पर आ गया। अब वह उसकी मुस्कान को खिड़की से ही देख सकता था।

"प्लीज़ डियर, अपनी खूब देखभाल करना,” वह बोला।

लेकिन वह उसकी बात न सुन सकी।

प्लेटफार्म से बाहर निकलते वक़्त फाटक के पास पुलिस मजिस्ट्रेट मोशिए ओथों से उसकी मुलाक़ात हो गई, जो इस वक़्त अपने छोटे बच्चे का हाथ पकड़े खड़ा था। डॉक्टर ने पूछा कि क्या वह भी वापस जा रहा है?

लम्बे, कद्दावर और साँवले मोशिए ओथों के व्यक्तित्व में एक 'दुनियादार' और किराये के मातमी की-सी झलक मिलती थी।

"नहीं,” मजिस्ट्रेट ने उत्तर दिया, “मैं मदाम ओथों को लेने आया है, जो मेरे परिवार से मिलने गई थीं।"

इंजन ने सीटी दी।

"ये चूहे, अब..." मजिस्ट्रेट ने कहना शुरू किया।

रियो एकाएक ट्रेन की तरफ़ लपका, लेकिन फिर मुड़कर फाटक की ओर चल पड़ा।

“क्या, चूहे?" वह बोला, “यह मामूली-सी बात है।"

बाद में उसे इस क्षण के बारे में इतना ही याद रहा कि रेलवे का एक कर्मचारी मरे हुए चूहों से भरा एक डब्बा बग़ल में दबाए वहाँ से गुज़र रहा था।

उसी दिन तीसरे पहर जब मरीज़ों का आना शुरू हुआ तो एक नौजवान रियो से मिलने आया। डॉक्टर को पता चला कि वह नौजवान पेशे से पत्रकार था और सुबह भी एक बार वहाँ आ चुका था। उसका नाम रेमन्द रेम्बर्त था। उसका क़द नाटा था और कन्धे चौकोर थे। उसके चेहरे से दृढ़ता का आभास मिलता था और उसकी पैनी आँखों से अक्लमन्दी ज़ाहिर होती थी। उसके समूचे व्यक्तित्व से ऐसा लगता था कि वह बुरी-से-बुरी परिस्थितियों में अपना सन्तुलन कायम रख सकता है। उसने खिलाड़ियों-जैसी पोशाक पहनी हुई थी। आते ही उसने काम की बात शुरू कर दी। उसके अख़बार ने, जो पेरिस के अग्रणी दैनिक अखबारों में एक था, उसे फ्रांस में रहने वाले अरब लोगों के रहन-सहन की परिस्थितियों, विशेषकर सफ़ाई, के विषय पर एक रिपोर्ट लिखने के लिए तैनात किया था।

रियो ने जवाब दिया कि जिन परिस्थितियों में अरब लोग रह रहे हैं वे अच्छी नहीं हैं, लेकिन रियो कुछ और कहने से पहले यह जानना चाहता था कि उस पत्रकार को सच्ची बात कहने की इजाज़त मिलेगी भी या नहीं।

“ज़रूर मिलेगी," रेम्बर्त ने जवाब दिया।

"मेरा मतलब है कि क्या तुम्हें मौजूदा परिस्थितियों की सरासर भर्त्सना करने की इजाज़त मिल सकेगी?" डॉक्टर ने समझाया।

“सरासर! सच पूछिए तो इस हद तक मैं नहीं जा पाऊँगा। लेकिन क्या परिस्थितियाँ इतनी बुरी हैं?"

"नहीं," रियो ने शान्तिपूर्वक कहा। परिस्थितियाँ इतनी बुरी नहीं थीं, लेकिन उसने सिर्फ यह जानने के लिए रेम्बर्त से सवाल पूछा था कि क्या रेम्बर्त सचाई से विश्वासघात किए बगैर तथ्यों को पेश कर सकेगा या नहीं।

"मुझे ऐसे बयानों में क़तई दिलचस्पी नहीं है, जिनमें किसी पहल को छिपाकर रखा जाता है। इसलिए मैं तुम्हारी रिपोर्ट के लिए कोई सूचना नहीं दूंगा।" रियो ने कहा।

पत्रकार मुस्कराया। “आप तो बिलकुल न्याय-मूर्ति की भाषा बोल रहे हैं।"

रियो ने बिना उत्तेजित हुए बताया कि वह न्याय-मूर्ति है, यह तो वह नहीं जानता। यह एक ऐसे व्यक्ति की भाषा है जो दुनिया से तंग आ चुका है, हालाँकि उसे मानव-जाति से बहुत लगाव है। उसने फैसला कर रखा है कि जहाँ तक उसका सवाल है वह बेइंसाफ़ी से कोई ताल्लुक़ नहीं रखेगा और सचाई में किसी तरह की मिलावट नहीं बर्दाश्त करेगा।

रेम्बर्त ने कन्धे सिकोड़ लिए और कुछ क्षण तक ख़ामोशी से डॉक्टर की तरफ़ देखता रहा। फिर वह कुर्सी से उठ खड़ा हुआ और बोला, “मैं आपकी बात समझ गया।" डॉक्टर उसे दरवाज़े तक छोड़ने आया, “मुझे खुशी है कि तुमने मेरी बात को अन्यथा नहीं लिया," डॉक्टर ने कहा। "हाँ-हाँ, मैं समझ गया," रेम्बर्त ने दहराया, लेकिन उसकी आवाज़ में बेसब्री की झलक थी। “मुझे अफ़सोस है कि मैंने आपको परेशान किया।" हाथ मिलाते वक़्त रियो ने सुझाया कि वह अगर अपने अखबार के लिए कुछ अजीबोगरीब ‘कहानियों की तलाश में हो तो उसे चाहिए कि वह मरे हुए चूहों की उस असाधारण संख्या के बारे में लिखे जो इन दिनों शहर में हर जगह मिल रहे हैं। “आह!" रेम्बर्त ने उत्साहपूर्वक कहा, "मैं इस बात में ज़रूर दिलचस्पी ले सकता हूँ।"

अपने मरीजों को देखने के लिए डॉक्टर पाँच बजे शाम को जब दुबारा घर से निकला तो जीने पर डॉक्टर को भारी-भरकम शरीर, झुर्रियों से भरे विशाल चेहरे और घनी भौंहों वाला एक नौजवान मिला। वह उसे पहले दोएक बार सबसे ऊपर वाली मंज़िल में मिला था, जहाँ कुछ स्पेनिश नृत्यकार रहते थे। सिगरेट से कश खींचते हुए जीन तारो अपने सामने की सीढ़ी पर एक दम तोड़ते चूहे की छटपटाहट का निरीक्षण कर रहा था। उसने सिर उठाकर ऊपर की ओर देखा और कुछ देर तक उसकी नज़र डॉक्टर के ऊपर टिकी रही। फिर उसने डॉक्टर का अभिवादन करके कहा कि यह कुछ अजीब-सी बात है कि ये सब चूहे मरने के लिए अपने बिलों से निकलकर बाहर आ रहे हैं।

"बड़ी अजीब बात है,” रियो ने सहमति प्रकट की, “और इन्हें देखकर हरेक को कोफ़्त होती है।"

“एक मायने में ही डॉक्टर, एक मायने में ही। हमने पहले कभी ऐसा होते नहीं देखा, बस इसीलिए। खुद मुझे तो यह बात काफ़ी दिलचस्प लगती है, सचमुच बहुत दिलचस्प।"

तारो ने अपने माथे से लट हटाने के लिए बालों में उँगलियाँ फेरी और फिर एक बार चूहे की ओर देखा जिसकी हरकत बन्द हो रही थी। फिर वह रियो की ओर देखकर मुस्कराया।

"लेकिन डॉक्टर, दरअसल तो यह पोर्टर की जिम्मेवारी है न? क्यों?"

और संयोग से रियो को फ़ौरन पोर्टर नज़र आ गया। वह सड़क के दरवाजे के पास दीवार से पीठ सटाकर बैठा था। वह थका दिखाई दे रहा था और उसका चेहरा, जो आमतौर पर लाल रहता था, इस वक़्त पीला पड़ा हुआ था।

“हाँ, मैं जानता हूँ।" बूढ़े ने कहा। रियो ने उसे एक और चूहे के मरने की ख़बर भी दे दी थी। "मुझे एक साथ दो-दो तीन-तीन मरे चूहे मिल जाते हैं। लेकिन हमारी सड़क के बाक़ी मकानों में भी यही कुछ हो रहा है।"

पोर्टर उदास और परेशान दिखाई दे रहा था और खोया-खोया-सा अपनी गरदन खुजला रहा था। रियो ने पूछा कि उसकी तबीयत कैसी है। पोर्टर ने कहा कि वह बीमार तो नहीं है, फिर भी उसकी सेहत अच्छी नहीं है। उसके ख़याल में इसकी वजह परेशानी थी। इन कमबख्त चूहों ने उसे 'सदमा-सा' पहँचाया था। जब चूहे बिलों से निकलकर सारी इमारत में मरना बन्द कर देंगे तब जाकर कहीं उसे चैन आएगा।

अगले दिन, 18 अप्रैल की सुबह जब डॉक्टर स्टेशन से अपनी माँ को लेकर लौट रहा था तो उसने देखा कि माइकेल पहले से भी ज्यादा परेशान है। तहखाने से लेकर बरसाती तक जीने में एक दर्जन के क़रीब मरे चूहे पड़े थे। सड़क के सब मकानों के कड़े के कनस्तर चूहों से भरे थे।

डॉक्टर की माँ को इस बात से ज़रा भी परेशानी नहीं हुई।

"कभी-कभी ऐसा ही होता है।" माँ ने सन्दिग्ध स्वर में कहा। वह नाटे क़द और चाँदी जैसे सफ़ेद बालों वाली महिला थी जिसकी काली आँखों से कोमलता टपकती थी। उसने कहा, “मुझे फिर तुमसे मिलकर बेहद खुशी हुई है बर्नार्द! खैर जो भी हो, चूहे इस खुशी को नहीं बदल सकते।"

डॉक्टर ने सिर हिलाकर रज़ामन्दी ज़ाहिर की। दरअसल माँ की मौजूदगी में डॉक्टर को हर चीज़ आसान लगने लगती थी।

फिर भी उसने म्यूनिसिपैलिटी के दफ्तर में टेलीफ़ोन किया। वह चूहे मारने वाले उस महकमे के इंचार्ज से अच्छी तरह वाकिफ़ था। उसने पूछा, क्या म्यूनिसिपैलिटी को इस बात की खबर है कि चूहे बिलों से निकलनिकल कर मर रहे हैं? हाँ, मर्सियर ने जवाब दिया कि उसे मालूम है। म्यूनिसिपैलिटी के दफ्तरों में, जो बन्दरगाह के नज़दीक हैं, पचास मरे हुए चूहे पाए गए थे। दरअसल मर्सियर बहुत परेशान था। क्या डॉक्टर की राय में यह संजीदा बात थी? रियो ने कहा कि वह निश्चित रूप से तो कुछ नहीं कह सकता, लेकिन उसका ख़याल है कि सफ़ाई के महकमे को ज़रूर कोई क़दम उठाना चाहिए।

मर्सियर की भी यही राय थी। उसने कहा, “अगर तुम्हारा ख़याल है कि कुछ करना चाहिए तो मैं एक ऑर्डर जारी करवा दूंगा।"

“ज़रूर कुछ करना चाहिए।" रियो ने जवाब दिया।

डॉक्टर के घर सफ़ाई करने वाली नौकरानी ने उसे अभी बताया था कि जिस फैक्टरी में उसका पति काम करता है वहाँ सैकड़ों मरे चूहे इकट्ठे किए गए हैं।

इस वक़्त तक हमारे शहर के लोगों में घबराहट के लक्षण दिखाई देने लगे थे, क्योंकि 18 अप्रैल के बाद से फैक्टरियों और गोदामों में ढेरों मरे या मरणासन्न चूहे पाए गए थे। कई जगह तो चूहों को यंत्रणा से बचाने के लिए उन्हें जान-बूझकर मार दिया गया था। शहर के बाहर की बस्तियों से लेकर शहर के केन्द्रीय हिस्से तक तमाम उन गलियों में, जहाँ डॉक्टर अपने मरीज़ों को देखने गया था, हर सड़क पर कूड़े के कनस्तर मरे हुए चूहों से भरे थे। नालियों में भी मरे हुए चूहों की कतारें लगी थीं। उस दिन सांध्यकालीन अख़बारों ने यह समस्या उठाई और पूछा कि म्यूनिसिपैलिटी के मेम्बर कोई क़दम उठाने जा रहे हैं या नहीं, जनता को इन घृणित चूहों से जो परेशानी हो रही है उस संकटकालीन स्थिति का सामना करने के लिए कौन-से क़दम सोचे जा रहे हैं? दरअसल म्यूनिसिपैलिटी ने कुछ भी नहीं सोचा था। लेकिन अब स्थिति पर विचार करने के लिए एक मीटिंग बुलाई गई। सफ़ाई के महकमे को ऑर्डर भिजवाया गया कि हर रोज़ सुबह वे मरे हुए चूहों को जमा करा लिया करें और उन चूहों को म्यूनिसिपैलिटी की दो गाड़ियों में भरकर शहर की भट्ठी में जलाने के लिए भेज दिया जाए।

लेकिन कुछ दिनों में स्थिति और भी बिगड़ गई। सड़कों पर मरे हुए चूहों की तादाद बढ़ती गई और हर रोज़ सुबह भंगियों को पहले से भी ज्यादा गाड़ियाँ मरे हुए चूहों से भरनी पड़ती थीं। चौथे दिन चूहों ने फिर बिलों से निकलकर एक साथ मरना शुरू कर दिया। तहखानों, निचली मंज़िलों और नालियों से वे लड़खड़ाती हुई क़तारों में निकलकर दिन की रोशनी में आते, बेबस छटपटाते और फिर पैरों की उँगलियाँ सिकोड़कर सूत कातने-जैसी हरकत करके घबराए हुए दर्शकों के क़दमों पर पछाड़ खाकर मर जाते। रात के वक़्त गलियों और बरामदों में मरते समय की उनकी हलकी चीखें साफ़ सुनाई देती थीं। हर रोज़ सुबह मरे हुए चूहों की कतारें पड़ी हुई मिलती। हर चूहे की थूथनी पर लाल फूल की तरह की खून की एक गाँठ-सी जमी रहती। कुछ चूहों के फूले हुए शरीर सड़ने लग जाते थे। कुछ के शरीर अकड़े हुए होते और उनकी पूँछे सीधी खड़ी होती, यहाँ तक कि शहर के व्यस्त भागों में भी सीढ़ियों के आगे और पिछवाड़े के आँगनों में उनके छोटे-छोटे ढेर लगे रहते। कुछ चूहे अकेले में मरने के लिए दफ्तरों के कमरों, खेलने के मैदानों और जलपान-गृहों के बारजों के बीचोबीच जा पहुँचते थे। हमारे नगरवासी यह देखकर हैरान रह जाते कि प्लेस द आर्स, बलेवार और स्टैंड जैसी चहलपहल वाली जगहों पर भी मरे चूहों की वीभत्स लाशें जगह-जगह छितरी हुई हैं। सुबह सूरज निकलने के समय शहर में जो झाड़-सफ़ाई होती थी, उसके बाद कुछ देर तक तो शान्ति रहती, लेकिन फिर धीरे-धीरे चूहों का निकलना शुरू हो जाता और सारे दिन उनकी संख्या बढ़ती जाती। रात को अक्सर लोगों के पाँव के नीचे अभी ताज़े मरे हुए चूहों के गोल और गरम शरीर आ जाते। लगता था जैसे कि जिस ज़मीन पर हमारे मकान खड़े थे, उसके पेट में से बहुत दिन के जमा विषैले रस खारिज हो रहे हों और उसकी आँतों में जो घाव और पीप के फोड़े बन गए थे वे बाहर निकल आए हों। अब आप अनुमान लगा सकते हैं कि इससे हमारे छोटे-से शहर में कैसा आतंक छा गया होगा, जहाँ की ज़िन्दगी अब तक इतनी शान्तिपूर्ण थी, लेकिन जिसे एकाएक इन घटनाओं ने इतने ज़ोर से झकझोर दिया था, जैसे एक तन्दुरुस्त आदमी को एकाएक तेज़ बुखार चढ़ जाए और उसे महसूस हो कि उसके खून में आग लग गई है और दावानल की तरह उसकी लपटें उसकी रक्त-शिराओं में दौड़ रही हैं।

हालत यहाँ तक बिगड़ गई कि रेसदाक सूचना-विभाग ने (जो हर विषय पर पूछे गए प्रश्नों का तुरन्त और सही-सही उत्तर देता था और जो प्रचार के रूप में रेडियो से मुफ्त इन्फॉर्मेशन सर्विस चलाता था) 25 अप्रैल को अपनी वार्ता इस घोषणा से शुरू की कि अकेले उसी दिन 6231 मरे चूहे जमा करके जलाए गए थे। हमारी आँखों के आगे कई दिन से जो हो रहा था, उसकी सम्पूर्ण और सही तस्वीर पेश करके इस संख्या ने जैसे हमारी जनता की हिम्मत को एक ज़बरदस्त धक्का दिया। अब तक लोग एक वीभत्स दृश्य से किंचित परेशान थे और आपस में बड़बड़ाते रहते थे, लेकिन अब उन्होंने महसूस किया कि इस विचित्र घटना में, जिसका विस्तार नापना सम्भव नहीं था और जिसके मूल-स्रोत का पता नहीं लगाया जा सकता था, शायद भयानक और ख़तरनाक सम्भावनाएँ छिपी हुई हैं। सिर्फ वह बूढ़ा स्पैनिश ही, जिसके दमे का इलाज डॉक्टर रियो कर रहा था, अपने हाथ मल-मलकर इससे प्रसन्न था, “अब वे बाहर आ रहे हैं! अब वे बाहर आ रहे हैं!"

28 अप्रैल को जब रेसदाक ब्यूरो ने घोषणा की कि आज आठ हज़ार चूहे जमा किए गए हैं तो सारे शहर में डर और घबराहट की लहर-सी फैल गई। लोगों ने अधिक कारगर कदम उठाने की माँग की, अधिकारियों पर लापरवाही दिखाने का आरोप लगाया और जिन लोगों के घर समुद्रतट पर थे, उन्होंने वहाँ चले जाने की धमकी दी, यद्यपि अभी साल शुरू ही हुआ था। लेकिन अगले दिन ब्यूरो ने सूचना दी कि यह घटना एकाएक ही बन्द हो गई है और सफ़ाई-विभाग ने आज सिर्फ थोड़े-से ही मरे चूहे जमा किए हैं। इससे सब लोगों ने चैन की साँस ली।

लेकिन इसी दिन के दोपहर की बात है कि डॉक्टर रियो ने लौटकर जब अपने फ़्लैट की इमारत के सामने कार खड़ी की तो चौकीदार माइकेल को गली के सिरे से अपनी ओर आते देखा। वह अपने को घसीटते हुए चल रहा था, उसका सिर झुका हुआ था और बाँहें और टाँगें अजब ढंग से फैली हुई थीं और वह इस तरह झटके दे-देकर चल रहा था जैसे यंत्र-चालित गुड़िया हो। बूढ़ा माइकेल एक पादरी की बाँह का सहारा लेकर चल रहा था, जिसे रियो पहचानता था। वह फ़ादर पैनेलो था, विदवान और जोशीला जेसुइट पादरी, जिससे वह कई बार मिल चुका था और जिसके बारे में लोगों की बड़ी ऊँची धारणा थी-उन लोगों की भी जो धर्म के प्रति उदासीन थे। रियो कार में बैठा उनके पास आने की प्रतीक्षा करता रहा। उसने देखा कि माइकेल की आँखें बुखार से चमक रही हैं और वह बड़ी मुश्किल से साँस ले रहा है। बूढ़े ने बताया कि कुछ 'बेचैनी-सी' महसूस करने पर वह खुली हवा में साँस लेने के लिए बाहर चला गया था। लेकिन वहाँ जाकर उसे अपने शरीर में हर जगह दर्द महसूस होने लगा-गरदन में, बगलों में और जाँघों के बीच में। इसलिए मजबूर होकर वह लौट आया और उसे फ़ादर से अपनी बाँह का सहारा देने के लिए कहना पड़ा।

“इन जगहों पर सिर्फ सूजन आ गई है, लेकिन उनमें दर्द बहुत तीखा है,” उसने कहा। “ज़रूर मैंने अपने को थका लिया होगा।"

कार में से बाहर की ओर झुककर डॉक्टर ने माइकेल की गरदन पर हाथ फेरा! एक सख़्त लकड़ी की गाँठ-जैसी गिल्टी वहाँ उभर आई थी।

“फ़ौरन जाकर बिस्तर में लेट जाओ और अपना टेम्प्रेचर लो। मैं तीसरे पहर तुम्हें देखने आऊँगा।"

बूढ़े के जाने के बाद डॉक्टर रियो ने फ़ादर पैनेलो से पूछा कि चूहों की इस विचित्र घटना के बारे में उसका क्या ख़याल है?

“ओह, मेरा ख़याल है कि उनमें कोई महामारी फैल गई है।" गोल और बड़े चश्मे के पीछे से पादरी की आँखें मुस्करा रही थीं।

रियो जिस वक्त अपनी पत्नी के तार को दोबारा पढ़ रहा था, जिसमें उसने सैनेटोरियम में अपने पहँचने की सूचना दी थी कि टेलीफ़ोन की घंटी बज उठी। यह उसके एक पुराने मरीज़ का टेलीफ़ोन था, जो म्यूनिसिपैलिटी के दफ्तर में क्लर्क था। वह बहुत दिन से हृदय की रक्तनली में सिकुड़न आ जाने के रोग से पीड़ित था और चूँकि वह गरीब था, इसलिए डॉक्टर रियो ने उससे फ़ीस नहीं ली थी।

"शुक्रिया डॉक्टर कि आप मुझको भूले नहीं हैं। लेकिन मैं इस वक़्त किसी और के लिए आपको तकलीफ़ दे रहा है। हमारे बगल के मकान में जो आदमी रहता है, वह एक दुर्घटना का शिकार हो गया है। मेहरबानी करके फ़ौरन आइए; सख़्त ज़रूरत है।" उसकी आवाज़ से लगता था जैसे उसकी साँस फूल रही हो।

रियो ने तेज़ी से सोचा। ठीक है, वह चौकीदार को बाद में देख लेगा। कुछ मिनट के बाद ही उसने शहर के किनारे के मोहल्ले रू फ़ेदर्ब के एक छोटे-से मकान में प्रवेश किया। टूटे-फूटे और बदबूदार जीने के बीच में ही म्यूनिसिपल क्लर्क जोजेफ़ ग्रान्द से उसकी मुलाकात हो गई। वह करीब पचास की उम्र का आदमी था; लम्बा और झुकी कमर, दुर्बल कन्धों, पतले अंगों और पीली-सी मूंछों वाला आदमी।

“अब उसकी हालत पहले से बेहतर है," उसने डॉक्टर को बताया, "लेकिन तब मुझे लगा था कि सचमुच उसका वक़्त क़रीब आ गया है।" फिर उसने ज़ोर से अपनी नाक साफ़ की।

दूसरी मंज़िल में एक दरवाज़े पर बाईं ओर डॉक्टर ने लाल रंग की खड़िया मिट्टी से कुछ लिखा हुआ देखा-अन्दर आ जाओ। मैंने अपने आपको फाँसी दे ली है।

दोनों कमरे में दाखिल हुए। एक लैम्प के कंडे से बँधी रस्सी नीचे लटक रही थी। पास में एक कुर्सी पड़ी थी। खाने की मेज़ को सरकाकर कोने में कर दिया गया था। लेकिन रस्सी ख़ाली लटक रही थी।

“मैं ऐन वक्त पर पहँचा था।" लगता था जैसे ग्रान्द को बोलने से पहले शब्द तलाश करने पड़ते हों, हालाँकि वह अपनी बात हमेशा सीधे-सादे शब्दों में ही कहता था। “मैं घर से बाहर जा रहा था कि मुझे कुछ आवाज़ सुनाई दी। मैंने जब दरवाज़े पर लिखी वह इबारत पढ़ी तो मुझे लगा जैसे यह...मज़ाक़ हो। तभी मुझे एक अजीब किस्म की कराह सुनाई दी। मेरा खून एकदम ठंडा पड़ गया।" उसने अपना सिर खुजलाया और फिर बोला, “मेरे ख़याल में खुदकुशी करने का... यह बहुत तकलीफ़देह तरीक़ा है। सो मैं अन्दर घुस गया।"

ग्रान्द ने एक दरवाज़ा खोला और वे लोग एक साफ़-सुथरे, लेकिन मामूली तौर पर सजे हुए कमरे में दाखिल हुए। दीवार के सहारे एक पीतल के फ्रेम का पलंग रखा था, जिस पर एक छोटे क़द का गोलमटोल आदमी लेटा ज़ोर-ज़ोर से साँस ले रहा था। उसने आगन्तुकों की ओर लाल आँखों से घूरकर देखा। एकाएक रियो जहाँ-का-तहाँ खड़ा रह गया। उस आदमी की साँसों के बीच उसे चूहों की हल्की-सी चीखें सुनाई दीं। लेकिन उसे कमरे के कोनों में कोई चीज़ रेंगती हुई नहीं दिखाई दी। फिर वह पलंग के पास गया। साफ़ ज़ाहिर था कि वह आदमी ज़्यादा ऊँचाई से या तेज़ी से नीचे नहीं गिरा था, क्योंकि उसके कन्धे की हड्डियाँ टूटी नहीं थीं। दम घुटना तो खैर स्वाभाविक ही था। एक्स-रे फोटोग्राफ़ की ज़रूरत पड़ेगी। तब तक के लिए डॉक्टर ने उसे कपूर का एक इंजेक्शन दिया और उसे इत्मीनान दिलाया कि वह कुछ ही दिनों में बिलकुल ठीक हो जाएगा।

"शुक्रिया, डॉक्टर!" वह आदमी बड़बड़ाया।

रियो ने जब ग्रान्द से पूछा कि क्या उसने पुलिस को सूचना दे दी है, तो उसने अपना सिर झुका लिया।

“जी, सच तो यह है कि मैंने पुलिस को इत्तिला नहीं की। मैंने सोचा कि सबसे पहले मुझे चाहिए कि..."

"निस्सन्देह", रियो बीच में ही बोला, “मैं इसको देखता हूँ।"

लेकिन वह बीमार आदमी घबराकर बिस्तर पर बैठ गया और बोला कि अब वह बिलकुल ठीक है। दरअसल इसमें परेशान होने की तो कोई बात ही नहीं है।

"डरो नहीं," रियो ने कहा, “यह सिर्फ एक जाब्ते की कार्यवाही है। इससे अधिक नहीं। तो भी, मेरे सामने और कोई चारा नहीं। मुझे तो पुलिस को सूचना देनी ही पड़ेगी।"

"ओह!" वह आदमी फिर बिस्तर पर लुढ़क गया और धीरे-धीरे सुबकने लगा।

ग्रान्द, जो दोनों की बातचीत के बीच अपनी मूंछे ऐंठता रहा था, पलंग के पास गया।

"बस, बस, मोशिए कोतार्द! ज़रा मामले को समझने की कोशिश करो। तुम्हारे दिमाग में ऐसा करने का फितूर फिर सवार हुआ तो लोग डॉक्टर को दोषी ठहराएँगे कि उन्होंने पुलिस को इत्तिला क्यों नहीं दी।"

कोतार्द ने आँसू-भरी आँखों से उसको आश्वासन दिलाया कि अब ऐसा करने की रत्ती-भर आशंका नहीं है। उसे पागलपन का दौरा-सा आया था, लेकिन वह दौरा अब ख़त्म हो गया है और अब उसकी इच्छा है कि उसे तंग न किया जाए। रियो दवाई का नुस्खा लिख रहा था।

"बहुत अच्छा," वह बोला, "हम फ़िलहाल इस बारे में ख़ामोश रहेंगे। एक या दो दिन बाद मैं फिर आकर तुम्हें देख जाऊँगा। लेकिन याद रखना, फिर ऐसी पागलपन की हरकत न करना।"

जीने से उतरते वक्त उसने ग्रान्द को बताया कि वह पुलिस को इस मामले की सूचना देने के लिए मजबूर है, लेकिन वह पुलिस-इंस्पेक्टर से कहेगा कि वह अभी दो-तीन दिन तक इसकी जाँच-पड़ताल न करे।

"लेकिन किसी को रात के वक़्त कोतार्द पर नज़र रखनी चाहिए,” वह बोला, “क्या उसका कोई रिश्तेदार यहाँ है?"

"मेरी जानकारी में कोई नहीं है। लेकिन मैं खुद उसके पास रात को रह सकता हूँ। मैं यह तो नहीं कह सकता कि मैं उसको बखूबी जानता हूँ, लेकिन पड़ोसी की मदद तो करनी ही चाहिए, है न?"

जीने से उतरते वक़्त रियो की नज़र बरबस अँधेरे कोनों में जा पड़ती थी। उसने ग्रान्द से पूछा कि क्या शहर के इस हिस्से से चूहे एकदम गायब हो गए हैं?

ग्रान्द को इसका कुछ भी अन्दाज़ नहीं था। यह सच है कि उसने चूहों के बारे में कुछ चर्चा सुनी थी, लेकिन वह ऐसी अफ़वाहों पर ध्यान देने का आदी नहीं था। “मुझे और बातों पर सोचने से ही छुट्टी नहीं मिलती," वह बोला।

रियो जाने की जल्दी में था, इसलिए उसने फ़ौरन हाथ मिलाया और चल पड़ा। उसे अपनी पत्नी को पत्र लिखना था और सबसे पहले वह चौकीदार को देखना चाहता था।

अख़बार बेचने वाले सबसे ताज़ा ख़बर चिल्ला-चिल्लाकर सुना रहे थेचूहे एकदम गायब हो गए हैं। लेकिन रियो ने अपने मरीज़ को पलंग की पट्टी पर झुका हुआ पाया। वह एक हाथ से अपने पेट को और दूसरे हाथ से गरदन को दबा रहा था, और चिलमची में गुलाबी रंग के पित्त की उल्टी कर रहा था। कुछ देर तक उल्टी करने के बाद माइकेल बिस्तर पर लेट गया। उसका दम घुट रहा था। उसे 103 डिग्री बुख़ार था, गले, बग़ल और जाँघों की गिल्टियाँ सूज रही थी और उसकी जाँघों में दो काले धब्बे उभरने लगे थे। अब वह अन्दरूनी दर्दो की शिकायत करने लगा था।

"लगता है मेरे भीतर आग जल रही है," वह पिनपिनाया, “यह हरामज़ादी मुझे भीतर से जला रही है।"

बुखार से पपड़ी पड़े होंठों के बीच से बोलने में उसको कठिनाई हो रही थी और वह सिरदर्द और आँसुओं से बाहर को निकल आई आँखों से डॉक्टर को टकटकी बाँधकर देखने लगा। उसकी पत्नी ने चिन्तापूर्वक डॉक्टर रियो की ओर देखा, जो अभी तक चुप था।

"प्लीज़ डॉक्टर, इसे क्या हुआ है?"

“यह कुछ भी हो सकता है। अभी निश्चित रूप से इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। इसे हल्का खाना देना और खूब पानी पिलाना।"

मरीज़ न बुझने वाली प्यास की शिकायत करता रहा था।

अपने फ़्लैट में लौटकर रियो ने अपने सहयोगी रिचर्ड को टेलीफ़ोन किया, जो शहर का प्रमुख डॉक्टर था।

"नहीं, मैंने अभी तक कोई असाधारण बात नहीं देखी है," रिचर्ड ने कहा।

"क्या कोई बुखार का मामला नहीं देखा, साथ में गिल्टियाँ भी हों?"

“ज़रा ठहरो! हाँ, मेरे पास सूजी हुई गिल्टियों वाले दो मामले हैं।"

"गिल्टियाँ क्या असाधारण रूप से सूजी हुई हैं?"

“खैर, इसका फ़ैसला तो इस बात पर निर्भर करता है कि तुम ‘साधारण' का क्या मतलब लगाते हो,” रिचर्ड ने उत्तर दिया।

जो भी हो, उस रात चौकीदार का बुख़ार 104 डिग्री तक चढ़ गया और वह सरसाम में लगातार 'ये चूहे,' 'ये चूहे' की ही रट लगाए रहा। रियो ने गिल्टी का मुँह बन्द करने की कोशिश की। माइकेल को जब तारपीन की चुभन महसूस हुई तो वह चिल्लाया, “हरामज़ादे!"

गिल्टियाँ और भी सूज गई थीं और लगता था जैसे गोश्त में ठोस गाँठेंसी गड़ी हुई हों। माइकेल की पत्नी एकदम थकान से चूर हो गई थी।

“उसके साथ बैठो, और अगर ज़रूरत पड़े तो मुझे बुला लेना," डॉक्टर ने कहा।

अगले दिन 30 अप्रैल को आसमान नीला था और उस पर कोहरे की झीनी-सी चादर बिछी थी। गरम और कोमल बयार बह रही थी और शहर से बाहर की बस्तियों से फूलों की भीनी सुगन्ध ला रही थी। सड़कों पर प्रात:कालीन कलरव बाक़ी दिनों की अपेक्षा अधिक उल्लासपूर्ण और ऊँचा सुनाई दे रहा था, क्योंकि आज का दिन हमारे शहर के हर निवासी के लिए ज़िन्दगी का एक नया पैगाम लेकर आया था। एक हफ्ते से डर और आतंक का जो बादल छाया हुआ था, वह छितरा गया था। रियो भी जब चौकीदार को देखने गया, तब ऐसे ही आशावादी मूड में था। पहली डाक से उसे अपनी पत्नी का जो पत्र मिला था, उसने भी उसके हृदय में प्रसन्नता भर दी थी।

बूढ़े माइकेल का टेम्प्रेचर उतरकर 99 डिग्री पर आ गया था और यद्यपि वह बहुत कमज़ोर दिखाई दे रहा था, फिर भी वह मुस्करा रहा था।

"इसकी हालत पहले से बेहतर है, है न डॉक्टर?" उसकी पत्नी ने पूछा।

“हाँ, लेकिन अभी कुछ नहीं कहा जा सकता।"

दोपहर के समय बीमार माइकेल का टेम्प्रेचर एकाएक फिर 104 डिग्री तक चढ़ गया। अब वह लगातार सरसाम की अवस्था में था और फिर उल्टियाँ करने लगा था। गरदन की गिल्टियाँ छूने से भी दर्द करने लगी और लगता था जैसे वह दोनों हाथों से सिर पकड़कर उसे अपने शरीर से दूर रखने के लिए दमतोड़ कोशिश कर रहा हो। उसकी पत्नी मुलायम हाथों से उसके पाँव पकड़े बैठी थी। उसने याचनापूर्ण नेत्रों से रियो की ओर देखा।

"सुनो,” रियो ने कहा, "हमें इसको अस्पताल ले जाना होगा। वहाँ हम इसे एक नई दवा देकर देखेंगे। मैं एम्बुलेंस गाड़ी के लिए टेलीफ़ोन किए देता हूँ।"

" दो घंटे बाद रियो और मदाम माइकेल एम्बुलेंस गाड़ी में बैठे चिन्तापूर्वक मरीज़ की ओर देख रहे थे। माइकेल के खुले गन्दगी से भरे हुए मुँह से रह रहकर कुछ शब्द निकल रहे थे। वह बार-बार दुहरा रहा था, “ये चूहे! ये हरामज़ादे चूहे!" उसका चेहरा बेजान और सलेटी हरे रंग का हो गया था। उसके रक्तहीन होंठ सफ़ेद पड़ गए थे और हठात झटकों के साथ उसकी साँस चल रही थी। रक्त की शिराओं में गाँठें पड़ जाने से उसके हाथ-पैर फैले हुए थे। वह एम्बुलेंस की बर्थ में इस तरह घुसकर पड़ा था जैसे वह उसमें ही अपने-आपको दफ़न कर रहा हो या जैसे जमीन की गहराइयों से कोई आवाज़ उसे नीचे की ओर बुला रही हो। लगता था जैसे बेचारे का किसी अनदेखे दबाव से दम घुट रहा था। उसकी पत्नी सुबक-सुबककर रो रही थी...

"डॉक्टर, क्या कोई उम्मीद बाक़ी नहीं रही?"

“वह मर चुका है।”

पहला भाग : 3

माइकेल की मौत के साथ, कह सकते हैं कि हैरतअंगेज़ अपशकुनों का पहला दौर खत्म हुआ और दूसरा दौर शुरू हुआ, जो पहले के मुकाबले कहीं ज़्यादा मुश्किल था, क्योंकि उसमें शुरुआत के दिनों की परेशानी धीरे-धीरे भयानक डर के रूप में बदल गई। बाद की घटनाओं की रोशनी में पहले दौर का जायजा लेते समय हमारे नगरवासियों ने महसूस किया कि उन्होंने स्वप्न में भी कभी इस बात की कल्पना नहीं की थी कि दिन-दहाड़े सारे-के-सारे चूहों की मौत या अजब क़िस्म की बीमारियों से चौकीदार की मौत-जैसी वीभत्स घटनाओं के लिए हमारा शहर ही चुना जाएगा। इस बारे में उनका विचार गलत था और ज़ाहिर है कि उसको बदलने की ज़रूरत थी। फिर भी, अगर मामला यहीं पर ख़त्म हो जाता और आगे न बढ़ता तो आदतन सोचने का यह ढंग ही बना रहता। लेकिन हमारे समाज के और सदस्यों को भी,जो सिर्फ नौकर-चाकर वर्ग के या गरीब ही नहीं थे, उस रास्ते से ही जाना पड़ गया, जिस रास्ते से माइकेल मौत के मुँह में गया था। जब ऐसा हुआ तब भय और भय के साथ गम्भीर चिन्ता का दौर शुरू हुआ।

खैर, अगले दौर की घटनाओं का विस्तारपूर्वक वर्णन करने से पहले कथाकार गुज़रे हुए दौर के बारे में एक और गवाह की राय पेश करना चाहता है। जीन तारो, जिससे इस कथा के आरम्भ में ही हम परिचित हो चुके हैं, कुछ सप्ताह पहले ओरान आया था और शहर के बीच में स्थित एक बड़े होटल में ठहरा हुआ था। ज़ाहिर है कि उसके पास अपनी दौलत थी और वह किसी व्यापार में नहीं लगा था। हालाँकि वह धीरे-धीरे हमारे बीच एक परिचित व्यक्ति बन गया था, फिर भी किसी को यह नहीं मालूम था कि वह कहाँ से और क्यों ओरान आया है। वह अक्सर सार्वजनिक स्थानों पर दिखाई दे जाता था और जब से बहार का मौसम आया था, वह अक्सर किसी-नकिसी समुद्र-तट पर मौजूद रहता था। निश्चय ही उसे तैरने का शौक़ था। खुश-मिज़ाज, हमेशा मुस्कराता हुआ चेहरा लगता था जैसे वह ज़िन्दगी के सभी सामान्य सुखों का भोग करने का आदी था, लेकिन उनका गुलाम नहीं था। दरअसल लोग उसकी सिर्फ एक ही आदत के बारे में जानते थे। वह यह कि वह उन स्पैनिश नृत्यकारों और संगीतकारों की सोसाइटी से ताल्लुक पैदा करने में लगा रहता था जिनकी तादाद हमारे शहर में बेशुमार थी।

उसकी डायरियाँ शुरू के उन अजीबोगरीब दिनों का एक तरह से आँखों देखा विवरण हैं, जिनके बीच से हम सब गुज़रे थे। लेकिन यह विवरण सामान्य क़िस्म का नहीं है, क्योंकि उसको पढ़ने से लगता है जैसे लेखक जान-बूझकर बड़ी बात को भी छोटा करके देखता है, जिससे हमें पहले तो यह अनुमान होता है कि तारो में घटनाओं और लोगों को जैसे दूरबीन के उलटे छोर से देखने की आदत थी। उन अराजकतापूर्ण दिनों में उसने उन घटनाओं का इतिहास दर्ज करने का बीड़ा उठाया, जिन्हें साधारण इतिहासकार नज़रअन्दाज़ कर जाता है। स्पष्ट है कि उसके स्वभाव के इस विचित्र असन्तुलन पर हमें अफ़सोस हो सकता है और हम शक कर सकते हैं कि शायद उसमें सही भावनाओं की कमी थी। फिर भी इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि यह व्याख्यात्मक-सी डायरी उस दौर का विवरण प्रस्तुत करती है जिसमें ऐसे अनेक तुच्छ लगने वाले ब्योरे दिये गए हैं जिनका आज भी महत्त्व है और जिनकी विचित्रता से ही पाठक को यह एहसास हो जाएगा कि उस विलक्षण आदमी के बारे में झटपट कोई राय कायम कर लेना उचित नहीं है।

जीन तारो ने अपनी डायरी तभी लिखनी शुरू कर दी थी जब वह ओरान आया था। शुरू से ही डायरी के पन्नों में ओरान-जैसे बदसूरत शहर पर सन्तोष प्रकट किया गया है जिसमें विरोधाभास की झलक मिलती है। इसमें टाउन हॉल के ऊपर बनी शेरों की दो कांस्य-मूर्तियों का बारीकी से बयान किया गया है। वृक्षों की कमी पर, मकानों की बदसूरती और शहर के बेढंगे डिजाइन पर भी टीका-टिप्पणी की गई है। ट्रामों और सड़कों पर उसने जो बातचीत सुनी थी, बीच-बीच में उसके भी कुछ अंश हैं। उन पर लेखक ने अपनी तरफ से कोई टिप्पणी नहीं की है, सिवाय इस प्रसंग के जो डायरी के आख़िरी हिस्से में आता है। एक बातचीत की इस रिपोर्ट में कैम्प्स नामक एक व्यक्ति को लेकर चिन्ता जताई गई है। दो ट्राम कंडक्टर आपस में बातें कर रहे थे।

"तुम तो कैम्प्स को जानते थे न?" एक ने पूछा।

“कैम्प्स? वही लम्बा आदमी जिसकी काली मूंछे थीं?"

“हाँ, वही! जो रेल का काँटा बदलता था।"

"अरे हाँ, मुझे अब याद आया।"

“तो सुनो! वह मर गया है।"

"ओह! कब मरा?"

"चूहों के उसी क़िस्से के बाद!"

"क्या कह रहे हो! क्या बीमारी थी उसे?"

“यह तो मैं ठीक से नहीं बता सकता। कोई बुखार-खार था। वैसे तो उसमें सेहत नाम की कोई चीज़ थी ही नहीं। उसकी बग़लों के नीचे फोड़े निकल आए थे, मालूम होता है उसी से वह ख़त्म हो गया।"

"लेकिन देखने में तो वह बाक़ी सब लोगों जैसा ही था?"

"मेरे ख़याल में ऐसा नहीं था। उसके फेफड़े कमज़ोर थे और वह शहर के बैंड में तुरही बजाया करता था। तुरही बजाने का फेफड़ों पर बुरा असर पड़ता है।"

“हाँ, अगर आदमी के फेफड़े कमज़ोर हों तो ऐसे बाजे बजाना ठीक नहीं।"

इस बातचीत को नोट करने के बाद तारो ने यह अनुमान लगाने की कोशिश की है कि जब तुरही बजाना कैम्प्स के लिए इतना ख़तरनाक था, तब भी वह क्यों बैंड का सदस्य बना! किस अज्ञात प्रेरणा से उसने इतवार की सभाओं में सड़कों पर कवायद करने के लिए अपनी जान खतरे में डाली!

डायरी से पता चलता है कि तारो की खिड़की के सामने वाले घर की बालकनी पर हर रोज़ जो दृश्य दिखाई देता था, उससे तारो बहुत प्रभावित हुआ था। होटल में उसके कमरे का रुख एक छोटी-सी गली की तरफ़ था जहाँ दीवारों के साये में हर वक़्त बहुत-सी बिल्लियाँ सोई रहती थीं। हर रोज़ लंच के बाद, जब अधिकांश लोग अपने कमरों में थोड़ी देर सोते थे, एक नाटे क़द का फुर्तीला बूढ़ा, सामने की बालकनी पर आ जाता था। उसकी चाल-ढाल फ़ौजियों-जैसी थी। वह तनकर खड़ा होता था और पोशाक भी फ़ौजी ढंग की पहनता था। उसके बरफ़-जैसे सफ़ेद बाल हमेशा कायदे से सँवरे रहते थे। बालकनी से झुककर वह आवाज़ देता था, “पूसी! पूसी!" यह आवाज़ रोबीली होने के साथ-साथ स्नेहपूर्ण भी थी। बिल्लियाँ उसकी ओर उनींदी पीली आँखें झपकाकर देखतीं, लेकिन कोई हरकत न करतीं। वह इसके बाद काग़ज़ के कुछ टुकड़े फाड़ता और नीचे सड़क पर गिरा देता। सफ़ेद तितलियों की फड़फड़ाती बारिश होते देखकर बिल्लियों की दिलचस्पी एकदम जाग उठती और वे आगे बढ़कर कागज़ के आख़िरी टुकड़ों को पकड़ने के लिए अपने पंजे आगे बढ़ातीं। इस पर वह बूढ़ा ध्यान से निशाना साधकर उन बिल्लियों पर ज़ोर से थूकना शुरू करता और जैसे ही उसकी तरल गोलियाँ ठीक निशाने पर बैठतीं, उसकी आँखें खुशी से चमक उठतीं।

अन्त में, मालूम होता है कि तारो को हमारे शहर का व्यवसायी मिजाज भी बहुत आकर्षक लगा था, जिसकी शक्ल-सूरत, काम-धन्धे, यहाँ तक कि जिसके आमोद-प्रमोद भी व्यवसाय की दृष्टि से निर्धारित होते थे। यह विलक्षणता डायरी में उसने इसी शब्द का प्रयोग किया था तारो को बेहद पसन्द थी। दरअसल हमारे नगर की इस विलक्षणता की प्रशंसा में लिखे गए वाक्य को उसने विस्मयबोधक चिह्न के साथ इस प्रकार समाप्त किया था, "आख़िरकार!"

ये ही कुछ वाक्य हैं जिनमें हमारे यात्री ने उस दौर में अपनी व्यक्तिगत भावनाओं को व्यक्त किया है। इन भावनाओं का महत्त्व और उनके पीछे छिपी ईमानदारी शायद पाठकों को तत्काल स्पष्ट न हो। मिसाल के लिए, इस बात का वर्णन करने के बाद कि एक मरे चूहे का पता चलने के फलस्वरूप होटल के कैशियर ने उसका बिल किस तरह गलत बना दिया, उसने लिखा, “प्रश्न : अपना वक़्त बरबाद न करने की क्या तरकीब है? उत्तर : हर समय इसके बारे में सचेत रहना। यह कैसे किया जा सकता है, इसके तरीके दाँतों के डॉक्टर के वेटिंग-रूम में एक तकलीफ़देह कुर्सी पर बैठकर अपने दिन गुज़ार कर; इतवार की पूरी शाम अपनी बालकनी में खड़े रहकर; ऐसी भाषा में व्याख्यान सुनकर जो आती न हो; ट्रेन में सबसे लम्बे और सबसे कम आरामदेह रास्तों से सफ़र करके, जिनमें रास्ते-भर खड़े रहना पड़े; थियेटरों के टिकटघरों के आगे लगी कतार में खड़े रहें और फिर टिकट न लें, वगैरह-वगैरह।"

विचारों और शैली की इस विलक्षणता के बाद हम उस प्रसंग पर पहँचते हैं जिसमें शहर की ट्राम-सर्विस का, ट्रामकारों के ढाँचों का, उनके सन्दिग्ध रंगों का और सब ट्रामों में पाई जाने वाली गन्दगी का ज़िक्र था। अन्त में उसने लिखा था, “कैसी विलक्षण बात है!" इस टिप्पणी से कुछ समझ में नहीं आता।

'चूहों की घटना' पर तारो की टिप्पणियों की यह भूमिका है।

“सामने की बालकनी का बूढ़ा आज बहुत दुखी है। आज गली में कोई बिल्ली दिखाई नहीं देती। सड़क पर बिखरी हुई चूहों की लाशों को देखकर हो सकता है उनकी शिकार करने की प्रवृत्ति जाग उठी हो। खैर जो भी हो, सारी बिल्लियाँ गायब हो गई हैं। मेरे ख़याल में उनके लिए मरे हुए चूहे खाने का तो सवाल ही नहीं उठता। मुझे याद है कि मेरी बिल्ली मरी हुई चीज़ों को देखकर नाक-भौं सिकोड़ लेती थी। हो सकता है वे तहख़ानों में शिकार कर रही हों। इसीलिए बूढ़ा इतना परेशान था। आज उसके बाल भी पहले की तरह सँवरे हुए नहीं हैं और उसकी सतर्कता और फ़ौजीपन भी कम हो गया है। साफ़ ज़ाहिर है कि वह परेशान है। कुछ देर के बाद वह कमरे में वापस चला गया, लेकिन जाने से पहले उसने एक बार थूका खालीपन पर।

“आज शहर में एक ट्राम रुक गई, क्योंकि उसमें एक मरा हुआ चूहा पाया गया था। (सवाल : चूहा वहाँ कैसे पहुँचा?) दो या तीन औरतें फ़ौरन ट्राम से नीचे उतर गईं। चूहे को बाहर फेंक दिया गया और ट्राम चल पड़ी।

“होटल में रात की ड्यूटी के पोर्टर ने, जो ठंडे, समझदार दिमाग का आदमी है, मुझे बताया कि ये चूहे किसी भावी विपदा के सूचक हैं। आपको एक कहावत मालूम है जनाब? कहते हैं कि जब किसी जहाज़ को छोड़कर चूहे भाग जाएँ...' मैंने जवाब दिया कि यह कहावत जहाज़ों के बारे में है, लेकिन यह शहरों पर भी लागू होती है इसका सबूत अभी तक नहीं मिला। वह अपनी बात पर अड़ा रहा। मैंने उससे पूछा कि आख़िर शहर पर कौन-सी 'विपदा' आ सकती है? उसने कहा, वह तो मैं नहीं बता सकता। मुसीबतें हमेशा अचानक आती हैं। हो सकता है ज़मीन के भीतर भूचाल की तैयारियाँ हो रही हों। मैंने कहा, हो सकता है। उसने पूछा, क्या मुझे डर नहीं लगता?

“मैंने उसे बताया, 'मुझे सिर्फ एक ही चीज़ में दिलचस्पी है। वह है मानसिक शान्ति।'

"वह मेरे मन की बात समझ गया।

"इस होटल में एक परिवार खाना खाने आता है जो मुझे बहुत दिलचस्प मालूम हुआ। पिता एक लम्बा-दुबला आदमी है जो हमेशा काले रंग की पोशाक पहनता है, जिसकी कमीज़ के कॉलर हमेशा कलफ़दार होते हैं। उसकी खोपड़ी बीच से गंजी है, आसपास सफ़ेद बालों के दो गुच्छे हैं। उसकी छोटी चमकदार आँखों, तने हुए सख़्त चेहरे से मालूम होता है कि वह एक सुसंस्कृत उल्लू है। वह सबसे पहले रेस्तराँ में आता है और एक तरफ़ खड़ा हो जाता है ताकि उसकी पत्नी, जो काले चूहे की तरह है, भीतर जा सके। फिर वह एक छोटे लड़के और लड़की को साथ लेकर आता है जो सरकस के झबरे कुत्तों-जैसी पोशाकें पहनते हैं। जब वे खाने के लिए बैठते हैं तो वह तब तक खड़ा रहता है, जब तक कि उसकी पत्नी और 'झबरे' कुर्सियों पर नहीं बैठ जाते। वह अपने परिवार के सदस्यों से स्नेहपूर्ण शब्दों में बातें नहीं करता। पत्नी पर नम्र और द्वेषपूर्ण टिप्पणियाँ करता है और बच्चों के बारे में अपनी राय मुँहफट ढंग से व्यक्त करता है।

" 'निकोल, तुम बड़ा शर्मनाक व्यवहार कर रहे हो।'

"नन्ही लड़की रुआंसी हो उठी है, जैसा कि होना चाहिए।

“आज सुबह नन्हा लड़का चूहों की ख़बर से बहुत उत्तेजित दीख रहा था और उसने इस बारे में कुछ कहना चाहा।

“ 'फ़िलिप, खाने की मेज़ पर बैठकर चूहों की बातें नहीं करनी चाहिए। ख़बरदार जो कभी मैंने तुम्हारे मुँह से यह लफ़्ज़ सुना। समझ गए!'

“'तुम्हारे पिता ठीक कहते हैं।' चुहिया बोली।

“दोनों झबरों ने प्लेटों में मुँह डाल दिए और उल्लू ने गुस्ताखी से सिर को झटका देकर कृतज्ञता प्रकट की।

“इस शानदार मिसाल के बावजूद, शहर में हर शख़्स चूहों की चर्चा कर रहा है, और अब यहाँ के अख़बारों में भी यह चर्चा शुरू हो गई है। 'नगर-चर्चा' के कॉलम में पहले हर तरह के विषयों की चर्चा रहती थी, लेकिन अब उसमें सिर्फ स्थानीय अधिकारियों के ख़िलाफ़ ज़हर उगला जाता है। क्या हमारे नगर-पिताओं को पता है कि इन चूहों की सड़ी लाशों से शहर के निवासियों की ज़िन्दगी को ज़बरदस्त ख़तरा पैदा हो गया है?' होटल का मैनेजर भी अब सिर्फ इसी विषय की रट लगाए रहता है। लेकिन उसकी शिकायत का एक व्यक्तिगत पहलू भी है; उसके तीन सितारों वाले होटल की लिफ्ट में मुर्दा चूहों का मिलना उसके लिए जैसे कयामत आ जाने के बराबर है। उसका मन रखने के लिए मैंने कहा, 'लेकिन, आप तो जानते ही हैं कि इस वक़्त सब लोग एक ही नाव पर सवार हैं।'

“ 'यही तो बात है,' उसने जवाब दिया, 'अब हम भी हर किसी की तरह के हो गए।'

“उसने ही सबसे पहले मुझे इस किस्म के बुख़ार के फैलने की ख़बर दी थी, जिसने शहर में आतंक फैला रखा है। उसकी एक चेम्बर मेड को यह बुखार चढ़ा है।

“ 'लेकिन मुझे विश्वास है कि यह छूत का बुख़ार नहीं है,' उसने जल्दी से मुझे आश्वस्त करना चाहा। मैंने उससे कहा कि मेरे लिए सब बराबर हैं।

'आह, मैं जनाब को समझ गया! आप भी मेरे-जैसे ही हैं, आप भाग्यवादी हैं।'

“मैंने उससे ऐसी कोई बात नहीं कही थी, और फिर मैं भाग्यवादी क़तई नहीं है। मैंने उसे यह बात साफ़ कह दी..."

इसके बाद तारो की डायरी में विस्तार से उस विचित्र बुख़ार का ज़िक्र किया गया है जिसने आम जनता में इतनी परेशानी फैला रखी थी। यह सूचना देने के बाद कि अब चूंकि चूहों ने निकलना बन्द कर दिया था, जिससे उस छोटे क़द के आदमी ने फिर अपनी चाँदमारी के लिए बिल्लियाँ जमा कर ली थीं और वह अपनी निशानेबाज़ी को और भी अचूक बनाने में जुट गया था, तारो ने लिखा कि जहाँ तक मालूम है, इस बुखार के एक दर्जन से ऊपर मामले हो चुके हैं और उनमें से ज़्यादातर मरीज़ मर गए हैं।

आगे की कहानी पर रोशनी डालने के लिए यह ज़रूरी है कि डायरी का वह अंश यहीं पर जोड़ दिया जाए, जिसमें तारो ने डॉक्टर रियो का वर्णन किया है। कथाकार की दृष्टि में यह वर्णन काफ़ी दुरुस्त और वाजिब है।

“देखने से पैंतीस बरस की उम्र का आदमी लगता है। क़द मामूली है। कन्धे चौड़े हैं। चेहरा बिलकुल समकोण है। आँखें काली और सधी हुई हैं, लेकिन जबड़ा उभरा हुआ है। नाक कुछ बड़ी, लेकिन खूबसूरत है। काले बाल महीन कटे हुए हैं। खमदार मुँह । मोटे होंठ अक्सर भींचकर बन्द किए रहने की आदत। धूप में रंग। हाथ और बाँहें साँवली। उसे हमेशा गहरे नीले और काले रंग के, लेकिन खुब फबने वाले सूट में देखकर सिसली के किसानों का स्मरण हो आता है।

“उसकी चाल तेज़ है। सड़क पार करते वक़्त वह अपनी रफ़्तार बदले बगैर ही फुटपाथ से नीचे उतर पड़ता है। लेकिन दूसरे पार के फुटपाथ पर चढ़ने के लिए एक बार हल्के से उचकता है। लगता है कि वह बड़ा भुलक्कड़ है क्योंकि मोड़ से गुज़र जाने के बाद भी वह अपनी कार के साइड सिगनलों को नीचे नहीं गिराता। हमेशा नंगे सिर रहता है। मालूम होता है कि समझदार और ज्ञानी है।"

पहला भाग : 4

तारो के आँकड़े सही थे। स्थिति ने कितना गम्भीर मोड़ ले लिया था, इसका डॉक्टर रियो को पूरा एहसास था। चौकीदार की लाश को अलग रखवाने के बाद उसने रिचर्ड को टेलीफ़ोन करके पूछा कि गिल्टियों वाले बुखार के इन मामलों के बारे में उसकी क्या राय थी।

“मैं उनके बारे में कोई राय क़ायम नहीं कर सका,” रिचर्ड ने स्वीकारा। "मेरे दो मरीज़ों की मौत हो चुकी है—एक अड़तालीस घंटों में मरा और दूसरा तीन दिन के भीतर। और दूसरे मरीज़ में तो जब मैं उसे अगले दिन देखने गया, तब बुखार से अच्छा होने के लक्षण दिखाई दे रहे थे।"

“अच्छा, अगर तुम्हारे पास और मामले आएँ तो मेहरबानी करके मुझे इत्तिला देना,” रियो ने कहा।

उसने अपने कुछ और साथी डॉक्टरों को टेलीफ़ोन किया। इस पूछताछ के फलस्वरूप उसे पता चला कि पिछले कुछ दिनों में इसी क़िस्म के क़रीब बीस मामले हो चुके थे। और ये सभी घातक साबित हुए थे। इस पर उसने रिचर्ड को, जो स्थानीय मेडिकल एसोसिएशन का चेयरमैन था, सलाह दी कि अब जो नए मामले आएँ उन्हें छूत वाले वार्ड में रखा जाए।

"अफ़सोस है कि मैं इस बारे में कुछ नहीं कर सकता," रिचर्ड ने उत्तर दिया, "इस तरह का आदेश तो प्रीफ़ेक्ट ही जारी कर सकता है। खैर जो भी हो, तुम किस आधार पर अनुमान कर रहे हो कि इससे छूत का ख़तरा है?"

"आधार तो कोई ख़ास नहीं है। लेकिन रोग के लक्षण ज़रूर डरावने हैं।"

रिचर्ड ने फिर भी यह बात दुहराई कि “इस तरह की कार्यवाही उसकी अधिकार-सीमा में नहीं आती।" वह अधिक-से-अधिक इतना ही कर सकता था कि प्रीफ़ेक्ट के आगे यह मामला पेश कर दे।

लेकिन अभी ये बातें चल ही रही थीं कि मौसम खराब हो गया। माडकेल की मृत्यु के अगले दिन आसमान में बादल छा गए और रह-रहकर मूसलाधार बारिश होने लगी। इन बारिशों के बीच के घंटों में बेहद उमस भरी गरमी हो जाती थी। समुद्र का रंग भी बदल गया था। बादलों से भरे आसमान ने उसकी गहरी नीली पारदर्शिता मिटा दी थी और अब उसके रंग में इस्पाती या रुपहली चमक आ गई थी जो आँखों को चुभती थी। वसन्त की उमस और गरमी से तंग आकर सब लोग ग्रीष्म की आने वाली खुश्क गरमी की कामना करने लगे थे। शहर में, जो पठार पर केंचुओं की तरह फैला हुआ था और हर तरफ़ से समुद्र से ओझल था, गम्भीर बेचैनी का मूड छा गया। सफ़ेदी की हुई दीवारों की कतारों के बीच घिरकर या धूल-भरी दुकानों के बीच से गुज़रते हुए, या गन्दी पीली ट्रामों में सफर करते हुए महसूस होता था, मानो वहाँ की आबोहवा ने आपको अपने शिकंजे में जकड़ लिया हो। लेकिन रियो के बूढ़े स्पैनिश मरीज़ के मन की अवस्था ऐसी नहीं थी। उसने इस मौसम का बड़े उत्साह से स्वागत किया।

“यह मौसम आपको भून देता है,” वह बोला, “दमा के मरीज़ को तो यही चाहिए।"

इसमें शक नहीं कि यह मौसम आपको भून देता' था, लेकिन बिलकुल बुखार की तरह। दरअसल, पूरे शहर को बुखार चढ़ गया था; कम-से-कम डॉक्टर रियो की यही मानसिक प्रतिक्रिया थी, जब वह कोतार्द की खुदकुशी की कोशिश की जाँच-पड़ताल के बारे में रू फ़ेदर्ब की ओर मोटर में जा रहा था। वह जानता था कि उसके मन की यह प्रतिक्रिया सही नहीं है, और उसने सोचा कि थकान और परेशानी के कारण ही उसे ऐसा महसूस हो रहा है। सचमुच इस वक़्त उसके पल्ले में चिन्ताओं का काफ़ी बड़ा भाग था। दरअसल, समय आ गया था जब वह अपनी परेशानियों को और न बढ़ाकर अपने मन को स्थिर करने की कोशिश करे।

कोतार्द के घर पहुँचकर उसे मालूम हुआ कि पुलिस इंस्पेक्टर अभी तक वहाँ नहीं आया। ग्रान्द ने, जो उससे सीढ़ियों पर मिला था, सुझाया कि दरवाज़ा खुला छोड़कर उसके घर में बैठा जाए और इंस्पेक्टर का इन्तज़ार किया जाए। म्यूनिसिपैलिटी के क्लर्क के पास दो कमरे थे, जिनमें बहुत थोड़ा फ़र्नीचर और सामान था। ध्यान आकर्षित करने वाली सिर्फ दो ही चीजें थीं एक किताबों की रैक, जिस पर दो-तीन डिक्शनरियाँ पड़ी थीं; और एक छोटा-सा ब्लैक-बोर्ड जिस पर अध-मिटाए दो शब्द अभी भी पढ़े जा सकते थे। ये शब्द थे–'कुसुमित सड़कें'।

ग्रान्द ने बताया कि कोतार्द ने अच्छी तरह रात बिताई थी। लेकिन सुबह उठने पर उसके सिर में दर्द हो रहा था और तबीयत बहुत भारी-सी थी। ग्रान्द स्वयं काफ़ी थका और उत्तेजित दीख रहा था। वह लगातार कमरे में इधर-सेउधर टहलता रहा और मेज़ पर रखे, लूंस-ठूसकर पांडुलिपियों के पन्नों से भरे पोर्टफोलियो को बार-बार खोलता और बन्द करता रहा।

फिर भी, इस बीच उसने डॉक्टर को यह सूचना दे दी कि वह कोतार्द के बारे में सचमुच बहुत कम जानता है, लेकिन उसका ख़याल है कि उसके पास अपनी छोटी-सी पूँजी ज़रूर है। कोतार्द 'रम पियक्कड़' था। काफ़ी अरसे तक उन दोनों की जान-पहचान सिर्फ यहीं तक सीमित थी कि जीने पर भेंट हो जाने पर दोनों एक-दूसरे को दुआ-सलाम कर लेते थे।

“अब तक उससे मेरी सिर्फ दो बार बातचीत हुई है। कुछ दिन पहले मैं रंगीन चॉक का एक डिब्बा लेकर घर लौट रहा था। वह डिब्बा मेरे हाथ से छूटकर गिर पड़ा। उसमें नीले और लाल रंग की चॉकें थीं। उसी वक़्त कोतार्द अपने कमरे से निकला और उसने मुझे चॉकों को बीनने में मदद दी। उसने मुझसे पूछा कि मुझे रंगीन चॉकों की क्या ज़रूरत है?"

इस पर ग्रान्द ने उसे बताया था कि वह अपनी लैटिन भाषा की जानकारी को ताज़ा करने की कोशिश कर रहा है। उसने स्कूल में लैटिन सीखी थी, लेकिन अब उसकी याददाश्त धुंधली पड़ गई है।

“देखिए न डॉक्टर, मुझे बताया गया है कि लैटिन का ज्ञान फ्रेंच शब्दों का अर्थ समझने में सहायता देता है।"

इसलिए वह अपने ब्लैक-बोर्ड पर लैटिन के शब्द लिखता था और हर शब्द के उस हिस्से को, जो संयुक्त करने से या कारक बदलने से बदल जाता था, नीली चॉक से लिखता था और जो हिस्सा कभी नहीं बदलता था उसे लाल चॉक से लिखता था।

“मुझे विश्वास नहीं कि कोतार्द को मेरी यह बात साफ़ समझ में आ गई हो, लेकिन मुझे लगा कि इसमें वह दिलचस्पी ले रहा है। उसने मुझसे एक लाल चॉक माँगी। इससे मुझे ताज्जुब हुआ, लेकिन आख़िरकार भला मैं उस वक़्त अनुमान कर भी कैसे सकता था कि वह उस चॉक का क्या इस्तेमाल करेगा!"

रियो ने पूछा कि उनकी दूसरी बातचीत का क्या विषय था? लेकिन इसी वक़्त इंस्पेक्टर आ गया। उसके साथ एक क्लर्क था। उसने कहा कि वह सबसे पहले ग्रान्द का बयान सुनना चाहता है। डॉक्टर ने देखा कि कोतार्द के बारे में बात करते समय ग्रान्द हमेशा उसे 'अभागा आदमी' कहकर पुकारता है और एक बार तो उसने उसके कठोर निश्चय' का भी जिक्र किया।

कोतार्द ने किस मुमकिन इरादे से खुदकुशी करने की कोशिश की, इसकी बहस के वक़्त ग्रान्द ने अपने शब्दों के चुनाव में बड़ी सावधानी बरती। अन्त में उसने अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए जिन शब्दों को चुना, वे थे 'कोई पोशीदा गम'। इंस्पेक्टर ने पूछा कि क्या उसने कोतार्द के व्यवहार में कोई ऐसी बात देखी थी जिससे ज़ाहिर होता हो कि उसका इरादा ख़ुदकुशी करने का है?

“कल उसने मेरे दरवाजे पर दस्तक दी," ग्रान्द ने बताया, “और मुझसे माचिस माँगी। मैंने उसे एक डिब्बी पकड़ा दी। उसने कहा कि मेरे काम में हर्ज़ करने के लिए उसे अफ़सोस है, लेकिन चूंकि हम पड़ोसी हैं, इसलिए उसे उम्मीद है कि मैं बुरा नहीं मानूँगा। उसने मुझे इत्मीनान दिलाया कि वह मेरी डिब्बी वापस कर देगा, लेकिन मैंने कहा कि अपने पास ही रखे।"

इंस्पेक्टर ने ग्रान्द से पूछा कि क्या उसने कोतार्द के व्यवहार में कोई अजीब बात देखी थी?

“मुझे उसके व्यवहार में सिर्फ यही बात अजीब लगती थी कि वह हमेशा मुझसे बातचीत का सिलसिला शुरू करने के लिए उत्सुक दिखाई देता था। लेकिन उसे कम-से-कम इतना तो दिखाई देना ही चाहिए था कि मैं अपने काम में व्यस्त रहता हूँ।” फिर ग्रान्द ने रियो की ओर मुँह करके शरमीले अन्दाज़ में कहा, “मैं अपने एक निजी काम में व्यस्त रहता हूँ।"

इस पर इंस्पेक्टर ने मरीज़ को देखने और उसकी बात सुनने की इच्छा प्रकट की। रियो ने सोचा कि कोतार्द को पहले से इस भेंट के बारे में तैयार कर देना उचित होगा। वह जब बेड-रूम में दाखिल हुआ तो उसने देखा कि कोतार्द ग्रे फलालेन की नाइट-शर्ट पहने आतंकित भाव से दरवाज़े की ओर टकटकी बाँधे अपने बिस्तर में बैठा है।

"पुलिस आई है, है न?"

“हाँ, लेकिन घबराओ नहीं,” रियो ने दिलासा दी, “कुछ जाब्ते की कार्यवाही पूरी करने के बाद पुलिस चली जाएगी और तुम्हें शान्तिपूर्वक अकेला छोड़ दिया जाएगा।"

कोतार्द ने उत्तर दिया कि उसकी नज़र में यह सारी कार्यवाही बेकार थी और जो भी हो वह पुलिस को पसन्द नहीं करता।

रियो चिढ़ गया।

“मैं भी पुलिस से प्यार नहीं करता। सिर्फ कुछ सवालों का संक्षिप्त और सही जवाब देने-भर की बात है, उसके बाद तुम्हें पुलिस से छुट्टी मिल जाएगी।"

कोतार्द ने इस पर कुछ नहीं कहा और रियो दरवाज़े की ओर जाने को हुआ। अभी उसने एक ही क़दम उठाया होगा कि उस छोटे क़द के आदमी ने उसे वापस बुला लिया। रियो जब पलंग के पास पहुँचा तो कोतार्द ने ज़ोर से उसके हाथ थाम लिये।

“ये लोग एक बीमार के साथ सख्ती तो नहीं करेंगे ऐसे आदमी के साथ जिसने अपने को फाँसी दे ली थी, क्यों डॉक्टर?"

रियो ने एक क्षण उसकी ओर देखकर आश्वासन दिया कि इसका कोई सवाल ही नहीं उठता और अगर कुछ हो भी तो अपने मरीज़ की रक्षा करने के लिए वह मौजूद रहेगा। कोतार्द को इससे कुछ सांत्वना मिली और रियो इंस्पेक्टर को लाने के लिए बाहर चला गया।

ग्रान्द का बयान पढ़कर सुनाने के बाद इंस्पेक्टर ने कोतार्द से खुदकुशी करने का सही-सही कारण पूछा। उसने पुलिस अफ़सर को बिना देखे सिर्फ यही जवाब दिया कि 'कोई पोशीदा गम' उस कारण को सही-सही बयान कर देता है। तब इंस्पेक्टर ने कठोर स्वर में पूछा कि क्या उसका इरादा 'फिर एक बार आज़माइश करके' देखने का है? इस बार आवेशपूर्वक उसने जवाब दिया, "हरगिज़ नहीं।" उसकी सिर्फ एक ही ख़्वाहिश थी कि उसे शान्तिपूर्वक अकेला छोड़ दिया जाए।

"भले आदमी, मुझे कहना चाहिए कि इस वक़्त तो तुम्हीं ने दूसरों की शान्ति में खलल डाल रखा है," इंस्पेक्टर ने किचित चिढ़कर जवाब दिया। रियो ने उसको इशारे से और कुछ न कहने के लिए मना किया और इंस्पेक्टर चुप हो गया।

“एक अच्छा-खासा घंटा बेकार बरबाद हो गया," दरवाज़े से बाहर निकलते ही इंस्पेक्टर ने आह भरकर कहा। “आप तो अन्दाज़ कर ही सकते हैं कि हमारे पास सोचने के लिए इस वक़्त और कई मसले हैं, जैसे यह बुखार, जिसकी हर शख़्स चर्चा कर रहा है।"

फिर उसने डॉक्टर से पूछा कि क्या शहर को इससे गम्भीर खतरा पैदा हो गया है? रियो ने जवाब दिया कि वह अभी कुछ नहीं कह सकता।

“यह सब मौसम की वजह से है," पुलिस अफसर ने फैसला सुनाया, "बस यही बात है।"

इसमें शक नहीं कि मौसम ख़राब था। दिन चढ़ने के साथ-साथ हर चीज़ चिपचिपी होती गई और हर विजिट के बाद डॉक्टर रियो की चिन्ता बढ़ती गई। उस रात किनारे की बस्ती में रहने वाले उसके एक मरीज़ के पड़ोसी ने अपने पेट के निचले हिस्से को हाथों से दबाते हुए उल्टियाँ करनी शुरू कर दीं। साथ में तेज़ बुखार और सरसाम भी था। उसकी गिल्टियाँ माइकेल की गिल्टियों से कहीं ज्यादा बड़ी थीं। उनमें एक गिल्टी फूटने वाली थी और कुछ ही देर में अत्यधिक पके फल की तरह उसका मुँह फट गया। अपने फ़्लैट में लौटकर रियो ने जिले के मेडिकल स्टोर डिपो को टेलीफ़ोन किया। अपनी मेडिकल डायरी में उसने आज के दिन सिर्फ एक बात दर्ज की थी, 'नकारात्मक उत्तर'। उसे शहर के विभिन्न भागों से ऐसे ही मामलों के लिए बुलावे आने लगे। ज़ाहिर है कि घाव को तो हर शर्त में चीरना ही पड़ता था। एक चीरा इधर से और दूसरा उधर से और गिल्टी एक अंजुली भरकर खून और मवाद उगल देती। मरीज़ों के हाथ-पाँव, जितनी दूर तक सम्भव था, अकड़कर फैल जाते और खून का बहना जारी रहता। उनकी टाँगों और पेटों पर काले धब्बे उछल आते। कभी-कभी कोई गिल्टी बैठ जाती, लेकिन फिर एकाएक फूलने लगती। अक्सर मरीज़ बदबूदार सड़ान्ध के बीच दम तोड़ देते।

स्थानीय अख़बार, जो चूहों के बारे में इतनी बड़ी-बड़ी सुर्खियाँ देकर ख़बरें छापते थे, अब बिलकुल ख़ामोश हो गए थे, क्योंकि चूहे सड़कों पर मरते हैं और आदमी अपने घरों में। और अख़बार सिर्फ सड़कों में ही दिलचस्पी रखते हैं। सरकारी और म्यूनिसिपैलिटी के अफ़सर आपस में मशविरा कर रहे थे। जब तक कि एक-एक डॉक्टर के पास दो या तीन मामले ही पहुँचे थे, तब तक किसी ने इस बारे में कोई कदम उठाने की बात ही नहीं सोची। यह सिर्फ संख्याओं को जोड़ने का सवाल था, लेकिन जब ऐसा किया गया तो कुल संख्या हैरतअंगेज़ निकली। कुछ ही दिनों में मरीजों की संख्या दिन दूनी रात चौगुनी की रफ़्तार से बढ़ गई और इस विचित्र बीमारी के दर्शकों को इसमें ज़रा भी सन्देह न रहा कि ज़रूर कोई महामारी फैल गई है। स्थिति इस हद तक पहँच चुकी थी, जब रियो का एक सहयोगी डॉक्टर कास्तेल, जो उससे उम्र में काफ़ी बड़ा था, एक दिन उससे मिलने आया।

“ज़ाहिर है कि तुम तो जानते ही होगे कि यह कौन-सी बीमारी है," उसने रियो से कहा।

“मैं अभी तक पोस्टमार्टम के नतीजे का इन्तज़ार कर रहा हूँ।"

“खैर, मैं जानता हूँ। और मुझे पोस्टमार्टम के नतीजों की कोई ज़रूरत नहीं है। मैंने अपनी काफ़ी ज़िन्दगी चीन में गुज़ारी है, और बीस साल पहले पेरिस में भी मैंने इसी तरह के कुछ मामले देखे थे। हुआ यह कि उस वक़्त किसी को इस बीमारी का सही नाम लेने की जुर्रत नहीं हुई। हमने एक प्रतिबन्ध लगा रखा है कि लोगों को सही नाम बताकर दहशत न पैदा कर दें। लेकिन इस तरह काम नहीं चलेगा। इसके अलावा हमारे बीच एक अन्धविश्वास भी फैला हुआ है, जैसा कि मेरे एक साथी डॉक्टर के इस कथन से ज़ाहिर है। उसने कहा, 'यह अकल्पनीय है। हर शख्स जानता है कि यह महामारी अब पश्चिमी यूरोप के देशों से गायब हो चुकी है।' हाँ, यह ठीक है कि हर शख़्स इस बात को जानता है सिवाय उन अभागों के जो इसकी वजह से मौत के घाट उतर चुके हैं। रियो, बहानेबाज़ी छोड़ो। तुम भी उतना ही अच्छी तरह जानते हो जितना मैं कि यह बीमारी क्या है।"

रियो सोचने लगा। वह अपने ऑपरेशन-रूम की खिड़की से पहाड़ी की उस चोटी की ओर देख रहा था जो क्षितिज पर स्थित खाड़ी के आधे वृत्त को ढंक लेती थी। नीले आसमान में एक धुंधली-सी आभा थी, जो दिन ढलने के साथ उसकी नीलिमा को और मुलायम बनाती जा रही थी।

“हाँ कास्तेल! इस बात पर यकीन करना मुश्किल है। लेकिन बीमारी के सारे लक्षण इसी ओर इशारा करते हैं कि यह प्लेग है," रियो ने उत्तर दिया।

कास्तेल उठकर दरवाज़े की ओर चल पड़ा।

“तो फिर तुम यह भी जानते हो,” बूढ़े डॉक्टर ने रुककर कहा “कि वे हमसे क्या कहेंगे? यही कि यह बीमारी बीच की जलवायु वाले मुल्कों से कभी की गायब हो चुकी है।"

“गायब हो चुकी है? आख़िर इन लफ़्ज़ों का ठीक मतलब क्या है?" रियो ने अपने कन्धे हिलाए।

“हाँ। और यह भी मत भूलना कि ठीक बीस साल पहले पेरिस में भी..." ।

"अच्छा। खैर हमें उम्मीद करनी चाहिए कि इस बार उतनी तबाही नहीं फैलेगी। फिर भी इस बात पर... यक़ीन नहीं होता।"

पहला भाग : 5

'प्लेग का नाम अभी-अभी पहली बार लिया गया था। कहानी के इस बिन्दु पर पहुँचकर जब डॉक्टर बर्नार्द रियो अपनी खिड़की के सामने खड़ा बाहर का दृश्य देख रहा है, शायद आप हमें डॉक्टर की इस अनिश्चितता और हैरानी को उचित बताने की इजाज़त देंगे क्योंकि मामूली फ़र्क के बावजूद उसके अन्दर भी वैसी ही प्रतिक्रिया हुई थी, जैसी हमारे शहर के अधिकांश निवासियों के अन्दर। सभी जानते हैं कि दुनिया में बार-बार महामारियाँ फैलती रहती हैं, लेकिन जब नीले आसमान को फाड़कर कोई महामारी हमारे ही सिर पर आ टूटती है तब, न जाने क्यों, हमें उस पर विश्वास करने में कठिनाई होती है। इतिहास में जितनी बार युद्ध लड़े गए हैं उतनी ही बार प्लेग भी फैली है। फिर भी प्लेग और युद्ध समान रूप से लोगों को हैरत से भर देते हैं।

दरअसल बात यह है कि हमारे नगरवासियों की तरह, रियो को भी यह आशंका नहीं थी। इसलिए इस तथ्य को स्वीकार करने में उसे जो हिचकिचाहट हुई, उसे हम समझ सकते हैं। इसी तरह हम यह भी समझ सकते हैं कि परस्पर-विरोधी डरों और विश्वासों के बीच फँसकर उसके मन में कैसा द्वन्द्व मचा होगा। जब युद्ध छिड़ जाता है तो लोग कहते हैं, “यह निहायत बेवकूफ़ी की बात है; यह लड़ाई ज़्यादा दिन नहीं चल सकती।" फिर भी युद्ध चाहे 'निहायत बेवकूफ़ी की बात' ही क्यों न हो, लेकिन उसका ज़्यादा दिन तक चलना रुक नहीं जाता। बेवकूफ़ी की बात आगे बढ़ने के लिए अपना रास्ता तलाश कर लेती है, जिस तरह हमें यह देखने की कोशिश करनी चाहिए कि हम कहीं हमेशा तो अपने-आप में इतने बन्द नहीं रहे।

इस मामले में हमारे नगरवासी औरों की तरह ही थे-अपने-आप अपने में बन्द। दसरे शब्दों में वे मानववादी थे; वे महामारियों पर विश्वास नहीं करते थे। महामारियाँ मनुष्य के नाम से नहीं बनती। इसलिए हम अपनेआप से कहने लगते हैं कि महामारियाँ सिर्फ दिमागी आतंक हैं, कि वे एक बुरे सपने की तरह गुज़र जाएँगी। लेकिन वे हमेशा आसानी से नहीं गुज़र जातीं और एक बुरे सपने के बाद दूसरे बुरे सपने का सिलसिला शुरू होने की तरह, मनुष्य गुज़रते जाते हैं; उनमें से भी सबसे पहले मानववादी महामारी का शिकार होते हैं, क्योंकि वे अपने बचने के लिए सावधानी नहीं बरतते। हमारे नगरवासियों का दोष औरों से ज़्यादा नहीं था। वे सिर्फ मर्यादा भूलकर यह सोचने लगे थे कि अभी भी उनके लिए सब कुछ सम्भव हो सकेगा, जिसका मतलब था कि महामारियाँ असम्भव हैं। वे अपने काम-धंधों में पूर्ववत् लगे रहे, अपनी यात्राओं की तैयारियाँ करते रहे और दुनिया में होने वाली घटनाओं पर अपनी राय कायम करते रहे। भला प्लेग-जैसी चीज़ के बारे में वे क्योंकर सोचते, जो भविष्य को मिटा देती है, यात्राओं को स्थगित कर देती है और विचार-विनिमय को ख़ामोश कर देती है! वे सोचते थे कि वे आज़ाद हैं, लेकिन जब तक महामारियाँ हैं, तब तक कोई आज़ाद नहीं हो सकेगा।

दरअसल, इसके बाद भी डॉक्टर रियो के दिमाग में यह खतरा अवास्तविक-सा ही बना रहा, जबकि उसने अपने मित्र के सामने यह स्वीकार कर लिया था कि शहर के विभिन्न हिस्सों में कुछ लोग, किसी पूर्व सूचना के बिना ही प्लेग से मर गए थे। इसका कारण बहुत साधारण था, वह यह कि जब कोई व्यक्ति डॉक्टर बन जाता है तब मानव-पीड़ा के बारे में उसके अपने विचार बन जाते हैं और साधारण लोगों की अपेक्षा उसकी कल्पना का विस्तार अधिक हो जाता है। खिड़की से शहर को देखते हुए, बाहर से जिसमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ था, उसे भविष्य के बारे में एक हल्की-सी परेशानी, एक अस्पष्ट-सी घबराहट ही महसूस हुई।

उसने याद करने की कोशिश की कि उसने इस बीमारी के बारे में क्याक्या पढ़ा था। उसकी स्मृति में आँकड़े तैर गए, और उसे याद आया कि प्लेग की जिन तीस महामारियों का इतिहास को पता है, उन्होंने करीब दस करोड़ लोगों की जान ली है। लेकिन दस करोड़ मौतें क्या होती हैं? जो युद्ध में लड़कर आ जाता है, वह कुछ दिन बाद यह भूल जाता है कि मुर्दा आदमी क्या होता है। और चूँकि मुर्दा आदमी वास्तविक नहीं होता, जब तक कि उसको प्रत्यक्ष मरते हुए न देखा गया हो, इसलिए इतिहास में दस करोड़ व्यक्तियों के शवों की घोषणा मनुष्य की कल्पना में धुएँ के एक कश से ज़्यादा वास्तविक नहीं दिखती। डॉक्टर को कुस्तुन्तुनिया की प्लेग की याद आई, जिसके बारे में प्रोकोपियस ने लिखा था कि एक ही दिन में उससे दस हज़ार मौतें हुई थीं। दस हज़ार मृतकों की संख्या किसी बड़े सिनेमाघर के दर्शकों से लगभग पाँच गुनी हुई। हाँ, ठीक है, इसी तरह इसको समझना चाहिए। आपको चाहिए कि पाँच बड़े सिनेमाघरों के दरवाज़ों पर ही उनके दर्शकों को जमा कर लें, फिर उन्हें शहर के चौक में ले जाएँ और फिर उन्हें ढेर के ढेर मर जाने दें, अगर आप दस हज़ार मौतों का साफ़-साफ़ मतलब समझना चाहते हैं। फिर मर्दो की इस अज्ञात भीड़ में कुछ परिचितों के चेहरे भी जोड़ दें। लेकिन ज़ाहिर है कि ऐसा करना एकदम असम्भव है। इसके अलावा ऐसा कौन आदमी है जो दस हज़ार चेहरों को पहचानता हो? जो भी हो, प्रोकोपियस की तरह उन पुराने इतिहासकारों के दिये हुए आँकड़ों पर भरोसा नहीं किया जा सकता, यह आम धारणा थी। सत्तर साल पहले कैंटन शहर में प्लेग से जब चालीस हज़ार चूहे मर चुके तब जाकर बीमारी नगरवासियों में फैली थी। लेकिन कैंटन की महामारी में भी चूहों की गिनती करने का कोई प्रामाणिक तरीक़ा नहीं था। केवल मोटे तौर पर अन्दाज़ ही तो लगाया गया था, जिसमें ग़लती की काफ़ी गुंजाइश थी। “आओ, ज़रा हिसाब लगाकर देखें," डॉक्टर ने अपने-आप से ही कहा, “मान लो कि एक चूहे की लम्बाई दस इंच होती है, तो चालीस हज़ार चूहों को अगर एक-दूसरे के आगे बिछा दें तो वह क़तार कितनी लम्बी होगी..."

उसने झटका देकर अपना होश सँभाला। वह अपनी कल्पना को खिलवाड़ करने का मौक़ा दे रहा था, जिसकी इस वक़्त क़तई ज़रूरत नहीं थी। उसने अपने-आपको आश्वासन दिया कि कुछ मामलों के आधार पर इसे महामारी नहीं कहा जा सकता। ज़रूरत सिर्फ गम्भीरतापूर्वक सावधानी बरतने की है। सबसे पहले तो उसे उन लक्षणों पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए, जो उसने अपने मरीज़ों में देखे हैं-बेहोशी और बेहद थकान, काँख और जाँघ में गिल्टियाँ, भयंकर प्यास, डिलीरियम, शरीर में काले धब्बे, अन्दर-ही-अन्दर घुलना और आख़िर में...आख़िर में, डॉक्टर के दिमाग में कुछ शब्द आए, जो संयोग से उसकी मेडिकल हैंडबुक में दिये गए वर्णन के आख़िरी वाक्य में भी थे। “नाड़ी फड़फड़ाने लगती है, तेज़ रफ़्तार से और रहरहकर, और ज़रा-सी भी हरकत से मौत हो जाती है।" हाँ, आख़िर में मरीज़ की ज़िन्दगी एक धागे से लटक जाती है, और चार में से तीन मरीज़ (उसे ठीक-ठीक संख्या याद आ गई) इतने बेसब्र होते हैं कि कोई-न-कोई हल्कीसी हरकत कर बैठते हैं, जो इस धागे को तोड़ देती है।

डॉक्टर अभी भी खिड़की से बाहर देख रहा था। बाहर वसन्त के शीतल आकाश की शान्त आभा फैली थी। कमरे के अन्दर एक शब्द की प्रतिध्वनि अभी तक गूंज रही थी वह शब्द था 'प्लेग'। वह ऐसा शब्द था जिसने डॉक्टर के दिमाग में कुछ ऐसी तस्वीरें जगा दी, जो सिर्फ उन तस्वीरों से ही मेल नहीं खाती थीं जिनका वर्णन विज्ञान ने किया है, बल्कि जिनमें कुछ ऐसी हैरतअंगेज़ सम्भावनाओं का पूरा सिलसिला निहित था जो उसकी आँखों के आगे बिछे इस भूरे और पीले रंग के शहर से बिलकुल भिन्न थीं, जिसकी सड़कों से लोगों के कार्य-कलाप की हल्की-हल्की आवाजें उस तक पहुँच रही थीं; संक्षेप में, एक उदास कलरव-सा उठ रहा था न कि शोरगुलएक सुखी नगर की आवाजें, अगर एक साथ ही उदास और सुखी होना सम्भव हो तो। शहर में ऐसी आकस्मिक और विचारहीन शान्ति छाई थी जो मानो अनायास ही प्लेग की पुरानी तस्वीरों का खंडन कर रही हो। एथेंस, एक विशाल श्मशान जिससे आसमान तक सड़ांध उठ रही थी और जिसे चिड़ियाँ भी वीरान करके उड़ गई थीं; चीन के शहर प्लेग के मरीज़ों से पटे हुए, जो ख़ामोशी से अपनी यातना झेल रहे हैं; मर्साई, जहाँ पर कैदी खन्दकों में सड़ी हुई लाशों के ढेर जमा कर रहे हैं। प्रोवेंस के इलाके में प्लेग की क्रूद्ध हवाओं को रोकने के लिए एक महान दीवार का निर्माण; कुस्तुन्तुनिया के कोढ़ीगृह, बदबूदार सड़ी चटाइयाँ मिट्टी के फ़र्श में धंसी हुईं जहाँ मरीज़ों को कुदालों से ठेलकर अपने बिस्तरों से नीचे गिराया गया था; काली मौत को शान्त करने के लिए नकाबपोश डॉक्टरों का मेला; मिलान शहर के कब्रिस्तानों में स्त्रियों और पुरुषों की खुली रतिक्रियाएँ; लन्दन की पिशाचों के भय से आक्रान्त अँधेरी सड़कों से लाशों से भरी गाड़ियों का चरमरातेलड़खड़ाते हुए गुज़रना हमेशा और हर जगह मनुष्य के दर्द-भरे चिरक्रन्दन से आक्रान्त रातें और दिन। नहीं, ये दहशतें अभी तक इतनी नज़दीक नहीं पहुंची थीं कि वसन्त के उस तीसरे पहर की शान्ति को भंग कर देतीं। और खाड़ी की दिशा में टकटकी बाँधकर देखते हुए डॉक्टर रियो ने प्लेग की उस आग की याद की जिसका ज़िक्र लूक्रिशियस ने किया है-उस आग की जो एथेंस के लोगों ने समुद्र के किनारे पर जलाई थीं। रात होने पर वे मर्दो को वहाँ ले गए लेकिन वहाँ उनके लिए काफ़ी जगह नहीं थी, और ज़िन्दा लोग अपने-अपने प्रियजनों की लाशों को रखने की जगह के लिए आपस में मशालों से लड़े थे, क्योंकि वे खूनी जंग में कूदने को तैयार थे, लेकिन अपने मर्दो को समुद्र की लहरों में नहीं छोड़ना चाहते थे। रियो की आँखों के आगे शराब-जैसे काले शान्त समुद्र में प्रतिबिम्बित चिताओं से उठने वाली एक लाल रोशनी, आपस में जूझती हुई मशालों से चारों दिशाओं में छिटकती हुई चिनगारियों और ऊपर से झाँकते आसमान की ओर उठने वाले घने और सड़ांध-भरे धुएँ की एक तस्वीर कौंध गई...

लेकिन ये अतिरंजित आशंकाएँ तर्क की रोशनी में अपने-आप मिट गईं। माना कि 'प्लेग' का नाम ले लिया गया था, हो सकता है कि इस वक़्त भी एक या दो को इस बीमारी ने पकड़कर पछाड़ दिया हो। फिर भी, यह रुक सकता था या रोका जा सकता था। ज़रूरत सिर्फ इस बात की थी कि जिस तथ्य को स्वीकार लेना चाहिए था, उसे संजीदा दिल से स्वीकार लिया जाए; ऐतिहासिक स्मृतियों की काली छायाओं को दिल से निकालकर क़दम उठाए जाएँ जो उठाने चाहिए। तब प्लेग का फैलना बन्द हो जाएगा, क्योंकि यह एक अकल्पनीय बात थी या फिर लोग इसके बारे में गलत ढंग से सोचने के आदी थे। अगर, जैसा कि सम्भव था, प्लेग ख़त्म हो गई तो सब कुछ फिर ठीक हो जाएगा। अगर ख़त्म नहीं हुई, तो कम-से-कम लोगों को पता तो चल जाएगा प्लेग क्या होती है और उसका मुक़ाबला करने और आख़िर में उस पर काबू पाने के लिए क्या क़दम उठाने चाहिए।

डॉक्टर ने खिड़की खोली और फ़ौरन शहर की आवाजें तेज़ हो गईं। पास के किसी वर्कशॉप से मशीनी आरी के चलने की खरखराहट लगातार सुनाई देने लगी। रियो ने अपने-आपको सँभाला। वहाँ, उन रोज़मर्रा के कार्यों में निश्चिन्तता थी। बाकी सब बातें अनिश्चित और क्षुद्र तात्कालिक ज़रूरतों से बँधी थीं; आप उनके लिए वक़्त बरबाद नहीं कर सकते। असल बात यह थी कि अपना काम इस तरह किया जाए जिस तरह किया जाना चाहिए।

पहला भाग : 6

डॉक्टर का विचार-प्रवाह इस बिन्दु पर पहँचा ही था कि उसे जोजेफ़ ग्रान्द के आगमन की सूचना मिली। म्यूनिसिपैलिटी के क्लर्क की हैसियत से ग्रान्द को कई तरह के काम करने पड़ते थे और अक्सर उसे आँकड़े तैयार करने वाले विभाग की ओर से जन्म, विवाह और मृत्यु के आँकड़े जमा करने के काम पर तैनात कर दिया जाता था। इस तरह इस बार उसे पिछले दिनों में होने वाली मौतों की संख्या जमा करने का काम सौंपा गया था और वह चूंकि मेहरबान दिल का आदमी था, इसलिए उसने खुद ही डॉक्टर से वादा किया था कि वह मौतों की ताज़ा सूची लेकर उसके पास आएगा।

ग्रान्द के हाथ में कागज़ का एक पन्ना था और साथ में उसका पड़ोसी कोतार्द था।

"तादाद बढ़ती जा रही है, डॉक्टर! पिछले अड़तालीस घंटों में ग्यारह मौतें हुई हैं।"

रियो ने कोतार्द से हाथ मिलाकर उसकी तबीयत का हाल पूछा। ग्रान्द ने उसकी ओर से सफाई देते हुए कहा कि कोतार्द ने सोचा कि डॉक्टर का शुक्रिया अदा करना और उनको उसकी वजह से जो तकलीफ़ करनी पड़ी, उसके लिए माफ़ी माँगना उसका फ़र्ज़ है। लेकिन रियो कागज़ पर लिखी संख्या की ओर त्योरियाँ डालकर देख रहा था।

“खैर," वह बोला, “शायद अब हमें इस बीमारी को इसके सही नाम से पुकारने का निश्चय कर लेना चाहिए। अब तक हम लोग सिर्फ़ इधर-उधर की बातें ही करते रहे हैं। सुनो, मैं लेबोरेटरी तक जा रहा हूँ, मेरे साथ आना चाहते हो?"

“ज़रूर, ज़रूर,” डॉक्टर के पीछे-पीछे ज़ीने से उतरते हुए ग्रान्द ने उत्तर दिया।

“मैं भी चीज़ों को उनके सही नाम से पुकारने में ही विश्वास करता हॅ...बहरहाल, इस बीमारी का सही नाम क्या है?"

“वह मैं नहीं बताऊँगा, और फिर उसका नाम जानने से तुम्हें कोई फ़ायदा नहीं होगा।"

“देखा आपने,” ग्रान्द मुस्कराया, “आखिरकार यह मामला इतना आसान नहीं है!”

वे तीनों प्लेस द आर्मे की तरफ़ चल पड़े। कोतार्द इस वक़्त भी ख़ामोश रहा। सड़कों पर भीड़ होने लगी थी। हमारे शहर की संक्षिप्त गोधूलि की वेला रात में तब्दील हो चुकी थी और क्षितिज-रेखा से ऊपर कुछ तारे नज़र आने लगे थे। कुछ ही देर में सड़क की सारी बत्तियाँ जल गईं और सड़क की आवाजें जैसे एक स्वर-लहरी में ऊपर उठने लगीं।

"माफ़ कीजिए, लेकिन मुझे अब अपनी ट्राम पकड़नी चाहिए," प्लेस द आर्मे के कोने पर पहुँचकर ग्रान्द ने कहा। मेरी शामें...पवित्र हैं। जैसी कि हमारे इलाक़े की एक कहावत है, कल के लिए काम कभी न छोड़ो।' ।

रियो ने पहले ही लक्ष्य किया था कि ग्रान्द में अपने इलाके की किसी उक्ति का हवाला देने की आदत है (वह मॉन्तेलिमर का निवासी था) और इसके बाद वह अक्सर ऐसी टकसाली अभिव्यक्तियों का प्रयोग करता था जैसे 'सपनों में खो गया' या 'तस्वीर-जैसी खूबसूरत'।

“यह सच है," कोतार्द ने कहा, "डिनर के बाद आप इसको अपने दरबे से हिला भी नहीं सकते।"

रियो के पूछने पर कि क्या वह म्यूनिसिपैलिटी के लिए अतिरिक्त-काम कर रहा है, ग्रान्द ने उत्तर दिया कि नहीं, वह तो सिर्फ अपनी ओर से यह काम कर रहा है।

"क्या सच?" रियो ने बातचीत जारी रखने के लिए कहा, “और क्या तुम्हारा काम ठीक चल रहा है?"

"इस बात को ध्यान में रखते हुए कि मैं बरसों से ऐसा काम करता आया हूँ, यह ताज्जुब की ही बात होगी अगर मैं ठीक से काम न चला सकूँ। हालाँकि, एक अर्थ में, इस दिशा में काफ़ी प्रगति नहीं हुई।"

“क्या मैं जान सकता हूँ,” डॉक्टर ने ठहरकर पूछा, “कि तुम किस काम में लगे हो?"

ग्रान्द ने हाथ से पकड़कर हैट को अपने विशाल, बाहर को निकले हुए कानों तक खींचते हुए अस्फुट स्वर में कुछ बड़बड़ाकर कहा, जिससे रियो ने यह नतीजा निकाला कि ग्रान्द के काम का 'व्यक्तित्व के विकास' से सम्बन्ध था। फिर वह तपाक से मुड़कर तेज़ी से छोटे-छोटे क़दम रखता हुआ बुलेवार द ला' मार्ने के किनारे पर लगी अंजीरों की पाँत के नीचे-नीचे आगे बढ़ गया।

वे लोग जब लेबोरेटरी के दरवाज़े पर पहँचे तो कोतार्द ने डॉक्टर से कहा कि वह उससे मिलकर एक ज़रूरी मामले के बारे में उसकी सलाह लेना चाहता है। रियो ने, जो अपनी जेब में आँकड़ों वाले कागज़ को टटोल रहा था, कहा कि वह कन्सल्टेशन के घंटों के बीच कभी भी आ जाए। लेकिन फिर अपना इरादा बदलकर बोला कि वह कल के दिन जब उसकी बस्ती की तरफ़ आएगा, तब तीसरे पहर के बाद खुद ही उसके यहाँ आ जाएगा।

कोतार्द के जाने पर डॉक्टर ने गौर किया कि वह ग्रान्द के बारे में सोच रहा था, प्लेग फैलने के बीच ग्रान्द की मौजूदगी की कल्पना कर रहा थाऐसी मामूली प्लेग के बीच नहीं जैसी इस वक़्त फैली हुई थी, बल्कि प्राचीन युगों की भयानक प्रलयकारी प्लेगों के बीच। 'वह उस क़िस्म का आदमी है जो ऐसे मौक़ों पर ज़िन्दा बचे रहते हैं।' रियो को याद आया कि उसने कहीं पढ़ा था कि प्लेग कमज़ोर और दुर्बल शरीर के लोगों को छोड़कर मज़बूत और तन्दुरुस्त व्यक्तियों को ही आमतौर पर अपना शिकार बनाती है। ग्रान्द के बारे में सोचते हुए वह इस नतीजे पर पहुँचा कि वह अपने तुच्छ ढंग का एक रहस्यपूर्ण आदमी' है।

यह सच है कि अपने साधारण व्यवहार और बाहरी पहनावे से, पहली नज़र में यही लगता था कि वह स्थानीय म्यूनिसिपैलिटी का एक मामूली कर्मचारी है। लम्बे क़द और दुर्बल शरीर का यह आदमी हमेशा ढीले-ढाले कपड़े पहनता था, शायद इस गलत ख़याल से कि ढीले कपड़े ज़्यादा दिन चलते हैं। हालाँकि उसके निचले जबड़े के अधिकतर दाँत अभी तक सुरक्षित थे, लेकिन ऊपर के सारे दाँत गिर चुके थे। नतीजा यह था कि ऊपर के होंठ को उठाकर नीचे का होंठ अक्सर हिलता भी नहीं था जब वह मुस्कराता तो उसका मुँह उसके चेहरे में बनाए गए एक काले छेद की तरह दिखाई देता। उसकी चाल एक नौजवान शरमीले पादरी-जैसी थी, जो दीवारों से सटकर चलता है और दरवाज़ों में चूहों की तरह सरककर घुस जाता है। और उसके बदन में धुएँ और तहख़ानों की सीलन-जैसी गन्ध आती थी। संक्षेप में, तुच्छता और नगण्यता के सभी लक्षण उसमें थे। दरअसल, शहर के स्नानगृहों की चुंगी की दर के काग़ज़ों को लेकर ध्यानपूर्वक डेस्क पर झुके रहने या किसी जूनियर सेक्रेटरी के लिए सफ़ाई के नए टैक्स की सामग्री जमा करते रहने के अलावा और किसी रूप में उसकी कल्पना करना मुश्किल था। वह क्या काम करता था, यह बताए जाने से पहले ही आपको यह महसूस होने लगता था कि उसको सिर्फ इसी मकसद से इस दुनिया में पैदा किया गया है कि वह 62 फ्रांक और 30 सेंट माहवार पर म्यूनिसिपैलिटी के एक अरज़ी असिस्टेंट क्लर्क की ज़रूरी ड्यूटी अंजाम देता रहे।

दरअसल, टॉउन हॉल के स्टॉफ़ रजिस्टर में जगह जिस पर तैनात हैं' के कॉलम में वह हर महीने यही बात दर्ज किया करता था। बाईस साल पहले मैट्रिकुलेशन का सर्टिफिकेट पाने के बाद, पैसों की तंगी की वजह से वह इससे आगे तरक़्क़ी नहीं कर सका। उसे जब इस अस्थायी नौकरी पर नियुक्त किया गया, तब उसे उम्मीद हो गई थी कि उसे जल्द ही पक्का कर दिया जाएगा। शहर के प्रशासन की नाजुक समस्याओं को समझकर उनके मुताबिक़ काम करने की योग्यता दिखाने-भर की ज़रूरत थी। उसे यह भी आश्वासन दिया गया था कि एक बार पक्का होते ही उसको ऐसे ग्रेड में तरक़्क़ी पाने में दिक़्क़त नहीं होगी, जिससे वह आराम की ज़िन्दगी बसर कर सकेगा। निश्चय ही महत्त्वाकांक्षा ने जोजेफ़ ग्रान्द को मेहनत से काम करने की ऐड़ नहीं लगाई थी, सूखी मुस्कान बिखेरकर वह यह कसम खाकर कह सकता था। वह सिर्फ इतना ही चाहता था कि अपनी मेहनत के बल पर भौतिक दृष्टि से उसकी ज़िन्दगी सुरक्षित हो जाए ताकि वह अपनी फुरसत का वक़्त अपने मनपसन्द कामों में लगा सके। उसने अगर यह नौकरी मंजूर की तो सिर्फ दयानतदारी की ख़ातिर, या अगर इजाज़त दी जाए तो वह कहेगा कि एक आदर्श के प्रति अपनी वफ़ादारी की ख़ातिर।

लेकिन यह 'अस्थायी' स्थिति चलती ही चली गई, महँगाई दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती गई, मगर ग्रान्द का वेतन मामूली सालाना तरक़्क़ी के बावजूद आज भी नगण्य था। उसने रियो को यह बात बताई थी, लेकिन और कोई उसकी स्थिति के प्रति सचेत नहीं दिखाई देता था। और इसी में ग्रान्द की मौलिकता या कम-से-कम उसका संकेत छिपा है। वह ऊपर के अधिकारियों के नोटिस में अगर अपने अधिकारों को नहीं, जिनके बारे में वह स्वयं आश्वस्त नहीं था, तो उन वायदों को तो ला ही सकता था जो नौकरी देते वक़्त उससे किए गए थे। लेकिन डिपार्टमेंट के जिस अध्यक्ष ने ये वायदे किए थे, एक तो वह मर चुका था और दूसरे उसे खुद याद नहीं था कि इन वायदों की ठीक शर्ते क्या थीं। और आख़िर में सबसे बड़ी मुसीबत तो यह थी, जोजेफ़ ग्रान्द किन शब्दों में फ़रियाद करे, यह नहीं जानता था।

रियो ने देखा कि यही विशेषता हमारे इस नेक नगरवासी के व्यक्तित्व की सच्ची कुंजी थी। उसमें यही कमी थी जो उसे हमेशा हल्के प्रतिवाद का वह पत्र लिखने से, जो उसके दिमाग में छाया रहता था या इस स्थिति का मुक़ाबला करने के लिए कोई दूसरा क़दम उठाने से रोक देती थी। उसके अनुसार उसे अपने अधिकारों' के बारे में बात करने से ख़ास नफ़रत थी। यह ऐसा शब्द था जिस पर पहुँचकर वह अटक जाता था। इसी तरह वह 'वायदों' का उल्लेख करना भी पसन्द नहीं करता था, क्योंकि इसका मतलब यह लगाया जाएगा कि वह अपना जायज़ हक पाने का दावा कर रहा है जो कि एक ऐसी गुस्ताखी होती जो मामूली क्लर्क की हैसियत से मेल नहीं खाती। दूसरी ओर वह अपनी दरखास्त में आपकी कृपा', 'कृतज्ञ' या 'प्रार्थना'-जैसे शब्दों का प्रयोग करने के ख़िलाफ़ था, क्योंकि उसका ख़याल था कि ये शब्द उसके आत्म-सम्मान से मेल नहीं खाते। इस तरह उपयुक्त शब्द खोजने की क्षमता के अभाव में वह बुढ़ापे की उम्र तक अल्प वेतन वाली इस नौकरी पर काम करता आया था। इसके अलावा डॉक्टर रियो को उसने यही बताया था, एक लम्बे तजरबे के बाद वह इस नतीजे पर पहुंचा था कि वह अपनी आमदनी के भीतर गुज़ारे की हमेशा उम्मीद कर सकता था। उसके लिए सिर्फ इतना ही करना ज़रूरी था कि अपनी आमदनी के मुताबिक़ अपनी ज़रूरतों में कटौती करता जाए। इस तरह वह हमारे मेयर की, जो नगर का बड़ा पूँजीपति था, राय की पुष्टि करता था। मेयर अक्सर ज़ोर देकर कहा करता था कि अगर जाँच करके देखा जाए तो (वह अपनी इस चुनी हुई अभिव्यक्ति पर विशेष जोर देता, क्योंकि वह सचमुच उसके तर्क को सिद्ध कर देती थी) यह विश्वास करने का कोई कारण ही नहीं है कि हमारे शहर में कभी कोई व्यक्ति भूख की वजह से मरा हो। जो भी हो, अगर जाँच कर देखा जाए तो जोजेफ़ ग्रान्द की कठोर और अभावग्रस्त ज़िन्दगी इस बात की गारंटी थी कि इस बारे में चिन्ता करना व्यर्थ है...| वह उपयुक्त शब्दों की तलाश में जीये चला जा रहा था।

एक विशेष अर्थ में यह भी कहा जा सकता है कि उसकी ज़िन्दगी एक शानदार मिसाल थी। वह उन असाधारण लोगों में से था, हमारे शहर में ही नहीं बल्कि कहीं भी, जिनमें अपनी नेक भावनाओं के मुताबिक़ चलने का साहस होता है। उसने अपनी व्यक्तिगत ज़िन्दगी के बारे में थोड़ा-बहुत जो बताया था वह उसके दयालु कारनामों और उसके अन्दर प्यार और स्नेह की उस क्षमता का सबूत था जिसे हमारे ज़माने में कोई अपनाने तक की जुर्रत नहीं करता। बिना किसी शरम और हिचक के उसने क़बूल किया कि वह अपने भतीजों और बहन को हृदय से प्यार करता है। उसके नज़दीकी रिश्तेदारों में सिर्फ वे ही बचे हैं और वह उनसे मिलने के लिए हर दूसरे साल फ्रांस जाता है। उसने क़बूल किया कि उसे अपने माँ-बाप की याद करके, जिनका उसकी बाल्यावस्था में ही देहान्त हो गया था, बहुत पीड़ा होती है। उसने यह बात भी नहीं छिपाई कि उसे अपने पड़ोस के गिरजाघर की घंटी विशेष रूप से प्यारी लगती है जो रोज़ पाँच बजे शाम के क़रीब मधुर स्वर में बजना शुरू करती है। लेकिन इन सीधी-सादी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए भी उसे बहुत कठिन प्रयत्न करना पड़ता था। और अपनी अभिव्यक्ति के लिए उपयुक्त शब्दों को तलाश करने की दुर्निवार कठिनाई ही उसके जीवन का अभिशाप बन गई थी। “ओह डॉक्टर, काश मैं अपने को व्यक्त करना सीख पाता!" वह कहता। रियो से वह जब कभी मिलता, इस विषय की चर्चा ज़रूर करता।

उस शाम को ग्रान्द की दूर जाती हुई आकृति की ओर देखते हुए डॉक्टर ने एकाएक सोचा कि आख़िर वह क्या चीज़ है जिसे ग्रान्द व्यक्त करना चाहता है? ज़रूर वह कोई किताब या ऐसी ही कोई चीज़ लिख रहा होगा। और विचित्र बात यह है कि लेबोरेटरी में घुसते समय इस विचार ने रियो को फिर से आश्वस्त कर दिया। उसने महसूस किया कि यह एक ऊटपटाँग विचार है, लेकिन वह विश्वास नहीं कर पा रहा था कि एक ऐसे शहर में भी, जहाँ ग्रान्द-जैसे अज्ञात कर्मचारी अपनी विचित्र रुचियों के अनुसार काम करने में लगे हों, कोई महामारी बड़े पैमाने पर फैल सकती है। कहने का मतलब यह है कि वह इसकी कल्पना ही नहीं कर सकता था कि प्लेग से पीड़ित समाज के लोगों में कभी इस तरह की विचित्र रुचियाँ भी पाई जा सकती हैं, और वह इस नतीजे पर पहुँचा कि हमारे नगरवासियों में प्लेग को बरबादी फैलाने का ज़्यादा मौक़ा नहीं मिलेगा।

पहला भाग : 7

अगले दिन बहुत कह-सुनकर, जो कई लोगों को उचित नहीं लगा, रियो ने प्रीफ़ेक्ट के दफ्तर में 'स्वास्थ्य कमेटी' की एक मीटिंग बुलाने के लिए अधिकारियों को राजी कर लिया।

"शहर के लोग घबराने लगे हैं, यह हक़ीक़त है," डॉक्टर रिचर्ड ने स्वीकार किया, "और इसमें शक नहीं कि तरह-तरह की अफ़वाहें फैल रही हैं। प्रीफ़ेक्ट ने मुझसे कहा कि अगर तुम ज़रूरी समझो तो सख्त कार्रवाई कर सकते हो, लेकिन लोगों का ध्यान मत आकर्षित करो।' खुद उसका विश्वास यह है कि यह सब झूठा आतंक है।"

रियो अपनी कार में बिठाकर कास्तेल को प्रीफ़ेक्ट के दफ्तर ले गया।

"क्या तुम जानते हो कि सारे जिले में हमारे पास प्लेग के टीके की एक बूंद भी नहीं है?" कार में कास्तेल ने रियो से कहा।

“मुझे मालूम है, मैंने डिपो को टेलीफ़ोन किया था। डायरेक्टर जैसे सुनकर भौचक्का रह गया। टीके पेरिस से मँगाने पड़ेंगे।"

"हमें आशा करनी चाहिए कि वे इसमें जल्दी करेंगे।"

"मैंने कल एक तार भेज दिया है," रियो बोला।

प्रीफ़ेक्ट ने स्नेहपूर्वक उनका अभिवादन किया, लेकिन उसके ढंग से मालूम पड़ता था कि वह बहुत घबराया हुआ है।

“मीटिंग फ़ौरन शुरू कर दें, साहिबान! क्या आप ज़रूरी समझते हैं कि मैं पहले पूरी स्थिति पर रोशनी डालूँ?" वह बोला।

रिचर्ड की राय में इसकी ज़रूरत नहीं थी। वह और उसके साथी डॉक्टर तथ्यों से परिचित थे। प्रश्न सिर्फ एक ही था कि स्थिति का मुकाबला करने के लिए कौन-से क़दम उठाए जाएँ?

बूढ़े कास्तेल ने बीच में बात काटकर दो-ट्रक कहा, “प्रश्न यह है कि हम जानना चाहते हैं कि यह प्लेग है या नहीं।"

उपस्थित दो-तीन डॉक्टरों ने इसका प्रतिवाद किया। बाक़ी डॉक्टर हिचकिचा रहे थे। प्रीफ़ेक्ट एकदम चौंक पड़ा और उसने जल्दी से दरवाज़े की ओर देखकर अपने को आश्वस्त करना चाहा कि यह भयानक शब्द कहीं बरामदे में किसी को सुनाई तो नहीं दे गया। उसकी राय में अभी तक तो सिर्फ इतना ही कहा जा सकता था कि हमें एक विशेष प्रकार के बुख़ार का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें पेट-सम्बन्धी पेचीदगियाँ पैदा हो जाती हैं। जैसे ज़िन्दगी में, उसी तरह मेडिकल साइंस में भी जल्दी से किसी नतीजे पर कूदकर पहुँच जाना अक्लमन्दी की बात नहीं है। बूढ़े कास्तेल ने, जो शान्त मुद्रा में अपनी गन्दी, पीली मूंछों को चबा रहा था, अपनी पीली, चमकती हुई आँखें उठाकर रियो की ओर गौर से देखा। फिर कमेटी के अन्य सदस्यों पर एक मैत्रीपूर्ण दृष्टि डालकर उसने कहा कि वह खूब अच्छी तरह जानता है कि यह प्लेग है और कहने की ज़रूरत नहीं कि वह यह भी जानता था कि अगर इस बात को सरकारी तौर पर मान लिया गया तो नगर के अधिकारियों को बहुत सख़्त कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। यही वजह थी जिससे उसके साथी इस तथ्य का सामना करने से हिचकिचा रहे थे, लेकिन अगर उसके कहने-भर से उनके मन को चैन मिल सकता था तो वह यह कहने को तैयार था कि यह प्लेग नहीं है। प्रीफ़ेक्ट इस बात से परेशान हो गया और बोला कि उसकी राय में बहस का यह ढंग ही ग़लत है।

"लेकिन अहम बात यह नहीं है कि बहस का तरीक़ा ग़लत है या ठीक, बल्कि यह कि वह आपको यह सोचने के लिए मजबूर कर देती है।"

रियो से, जो अब तक चुप रहा था, अपनी राय प्रकट करने के लिए कहा गया।

"हम टाइफ़ॉयड क़िस्म के एक ऐसे बुख़ार का सामना कर रहे हैं, जिसमें उल्टी भी आती हैं और गिल्टियाँ भी सूज जाती हैं," रियो ने उत्तर दिया। “मैंने ये गिल्टियाँ चीरकर देखी हैं और उनके मवाद की जाँच भी कराई है। हमारी लेबोरेटरी के परीक्षक का पक्का ख़याल है कि उसे मवाद में प्लेग के कीटाणु मिले हैं। लेकिन मैं यह भी साफ़ कर देना चाहता हूँ कि ये कीटाणु पुस्तकों में बताये गए प्लेग के कीटाणु से कुछ भिन्न हैं।"

रिचर्ड ने राय दी कि इससे 'ठहरो और इन्तज़ार करो' की नीति ही सही साबित होती है। और फिर यह अक्लमन्दी की ही बात होगी अगर एक हफ़्ते से जो अलग-अलग जाँच-पड़ताल की जा रही थी, उसकी संख्याबद्ध रिपोर्ट का इन्तज़ार कर लिया जाए।

“मगर जब एक कीटाणु,” रियो ने कहा, “शरीर में घुसकर तीन दिन के अन्दर ही तिल्ली को बढ़ाकर चौगुना कर देता हो, अन्न-पेशी की गिल्टियों को सुजाकर नारंगी के बराबर बना देता हो और उन्हें उबलते हुए गरम मवाद से भर देता हो, तब 'ठहरो और इन्तज़ार करो' की नीति को बेअक्ली की नीति ही कहा जा सकता है। रोग का संक्रमण बढ़ता जा रहा है। बीमारी जिस रफ़्तार से फैल रही है, उसे देखते हुए अगर फ़ौरन रोकथाम न की गई, तो वह अगले दो महीनों में शहर की आधी जनसंख्या को मौत के हवाले कर देगी। ऐसा होते हुए, इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि आप इसे प्लेग के नाम से पुकारते हैं या किसी विशेष प्रकार के बुखार के नाम से। अहम बात यह है कि इस शहर की आधी जनसंख्या को मौत के हवाले करने से रोका जाए।"

रिचर्ड ने कहा कि इतनी भयंकर तस्वीर खींचना ग़लत होगा और फिर, इसका कोई सबूत नहीं मिलता कि यह छूत की बीमारी है। सच तो यह है कि मरीज़ों के रिश्तेदार, एक ही छत के नीचे साथ रहकर भी, इसके शिकार नहीं हुए।

“लेकिन और तो मरे हैं,” रियो ने कहा, “और ज़ाहिर है कि छूत कभी सर्वग्राही नहीं होती, नहीं तो बीमारों की संख्या में क्रमश: इतनी तेज़ी से बढ़ती होने लगे कि मरने वालों की तादाद आसमान को छूने लगेगी। यह भयंकर तस्वीर खींचने का सवाल नहीं है, सवाल तो बचाव के लिए क़दम उठाने का है।"

लेकिन रिचर्ड ने अन्त में स्थिति का जायजा पेश करते हुए बताया कि यह बीमारी अपने-आप बन्द नहीं हुई तो कोड में लिखे हुए छूत से बचाव के कठोर नियमों को लागू करना ज़रूरी हो जाएगा। और यह करने के लिए, सरकारी तौर पर यह स्वीकार कर लेना पड़ेगा कि प्लेग फैल गई है। लेकिन अभी तक इस बारे में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। इसलिए जल्दी में कोई कदम उठाना अनुचित होगा।

रियो अपनी बात पर अड़ा रहा, “बहस की बात यह नहीं है कि कोड में दिये गए बचाव के नियम कितने कठोर हैं, बल्कि यह कि क्या वे शहर की आधी जनसंख्या को मरने से बचाने के लिए ज़रूरी हैं। बाकी सब बातें प्रशासनिक कार्यवाही से सम्बन्ध रखती हैं और मुझे यह बताने की ज़रूरत नहीं है कि हमारे विधान में ख़तरे के मौक़ों पर प्रीफ़ेक्ट को ज़रूरी आदेश जारी करने का अधिकार दिया गया है।"

"बिलकुल ठीक," प्रीफ़ेक्ट ने सहमति प्रकट की, “लेकिन आप डॉक्टरों को बाकायदा लिखकर घोषित करना पड़ेगा कि यह बीमारी प्लेग ही है।"

हम लोग अगर लिखकर यह बयान नहीं देंगे तो ख़तरा इस बात का है कि शहर की आधी आबादी तबाह हो जाएगी," रियो ने कहा।

रिचर्ड ने किंचित् बेसब्री से बीच में दखल देते हुए कहा, “सच यह है कि हमारे दोस्त को विश्वास हो गया है कि यह प्लेग है। उन्होंने जिन लक्षणों का वर्णन किया है, उससे तो यही साबित होता है।"

रियो ने उत्तर दिया कि उसने 'लक्षणों' का वर्णन नहीं किया, बल्कि जो अपनी आँखों से देखा था वही कहा। और उसने जो देखा वे थीं सूजी हुई गिल्टियाँ, तेज़ बुखार और साथ में सरसाम और अड़तालीस घंटों के भीतर मौत। क्या डॉक्टर रिचर्ड यह घोषणा करने की जिम्मेदारी लेंगे कि छत से बचाव के लिए सख्त कार्यवाही करने के बगैर ही बीमारी अपने-आप ख़त्म हो जाएगी?

रिचर्ड पहले तो हिचकिचाया, फिर रियो को घूरते हुए बोला, “मेहरबानी करके मुझे साफ़-साफ़ लफ़्ज़ों में बताओ। क्या तुमको पक्का विश्वास है कि यह प्ले ग है?"

“तुम समस्या को गलत ढंग से पेश कर रहे हो। यह बीमारी के नाम का सवाल नहीं है। सवाल वक़्त का है।"

“तो तुम्हारी राय यह है,” प्रीफ़ेक्ट ने कहा, “अगर्चे यह प्लेग न भी हो तो भी प्लेग की छूत से बचाव करने के लिए क़ानून के मुताबिक़ जो भी कार्यवाही ज़रूरी है, वह फ़ौरन की जानी चाहिए?"

“अगर आप मेरी 'राय' पर ही ज़ोर देना चाहते हैं तो मैं कहँगा कि आपने उसे काफ़ी सही शब्दों में पेश किया है।"

डॉक्टरों में विचार-विनिमय होने लगा। रिचर्ड उनकी ओर से बोल रहा था।

"तो इसका यह मतलब निकला कि हमें इस तरह अमल करने की ज़िम्मेदारी उठा लेनी चाहिए मानो यह बीमारी सचमुच प्लेग ही हो। है न?"

आमतौर पर सभी लोग सवाल को इस ढंग से पेश किए जाने से सहमत थे।

"मेरे लिए इसकी कोई अहमियत नहीं,” रियो ने कहा, "कि आप लोग किन शब्दों में इस स्थिति को बयान करते हैं। मेरा कहना तो सिर्फ यह है कि हमें इस तरह अमल नहीं करना चाहिए मानो शहर की आधी आबादी के ख़त्म हो जाने का कोई ख़तरा ही न हो; क्योंकि तब वह ज़रूर ख़त्म हो जाएगी।"

रियो लोगों की चढ़ी त्योरियों और प्रतिवादों के बीच कमेटी-रूम से निकलकर बाहर आया। कुछ देर बाद जब वह कार ड्राइव करता हुआ पिछवाड़े की एक गली से जा रहा था, जो भुनी हुई मछलियों के टुकड़ों और पेशाब से पटी थी, पीड़ा से चीख़ती हुई एक औरत ने, जिसकी जाँघों की गिल्टियों से खून चू रहा था, उसकी ओर अपनी बाँहें फैला दीं।

पहला भाग : 8

कमेटी मीटिंग के तीसरे दिन बुख़ार ने एक और छोटी कामयाबी हासिल की। अख़बारों में भी इसने जगह पा ली, लेकिन अत्यन्त संयत शब्दों में। उसके बारे में कुछ संक्षिप्त हवाले ही दिये गए थे। उसके अगले दिन रियो ने देखा कि शहर में सरकारी नोटिस चिपके हुए थे, यद्यपि ऐसी जगहों पर जहाँ उनकी ओर लोगों का ध्यान आकर्षित न हो। इन नोटिसों से इस बात का आभास नहीं मिलता था कि अधिकारी परिस्थिति का पूरी तरह सामना कर रहे हैं। जो कार्यवाहियाँ करने का एलान किया गया था वे कठोर तो थी ही नहीं, साथ ही यह भी लगता था जैसे लोगों में आतंक न फैल जाए, इस इच्छा से अनेक रियायतें भी दी गई थीं। नोटिस में दी गई हिदायतें एक बेहदा बयान से शुरू होती थीं कि ओरान में एक बुरे क़िस्म के बुख़ार के कुछ मामलों की इत्तिला मिली है। अभी तक यह बताना सम्भव नहीं है कि यह छूत का बुख़ार है। इसके लक्षण इतने स्पष्ट नहीं हैं कि सचमुच घबराने की बात हो और अधिकारियों को विश्वास है कि नगरवासी धैर्यपूर्वक स्थिति का सामना करेंगे। फिर भी विवेक की भावना से प्रेरित होकर, जिसे लोग अन्यथा नहीं समझेंगे, प्रीफ़ेक्ट ने सावधानी बरतने की ख़ातिर कुछ नियम और प्रतिबन्ध लागू किए हैं। अगर इन नियमों को ध्यान से समझकर उन पर अच्छी तरह अमल किया गया तो उनसे किसी महामारी के फैलने का खतरा मिट जाएगा। ऐसा होने की वजह से प्रीफ़ेक्ट को पूरा भरोसा है कि हर व्यक्ति अपनी-अपनी जगह पर अपनी निजी कोशिशों में पूरे मन से सहयोग देगा।

अधिकारियों ने जो सामान्य प्रोग्राम बनाया था, नोटिस में उसकी रूपरेखा दी गई थी। इस प्रोग्राम में शहर के चूहों की कुल आबादी को नालियों में जहरीली गैस भरकर नेस्तनाबूद कर देना और पानी की सप्लाई पर सख्त निगरानी रखना शामिल था। नगरवासियों को सलाह दी गई थी कि वे पूरी सख्ती से सफ़ाई रखने की कोशिश करें और अगर किसी को अपने बदन में पिस्सू मिलें तो उसे फ़ौरन म्यूनिसिपैलिटी की डिस्पेंसरी में जाकर अपने को दिखाएँ। हर परिवार के मुखिया को हिदायत दी गई थी कि अगर डॉक्टर उसके यहाँ किसी को बुखार से पीड़ित बताए तो वह अपने परिवार के उस बीमार सदस्य को अस्पताल के स्पेशल वार्ड में रखने की इजाज़त दे। आगे यह बताया गया था कि इन स्पेशल वार्डों में मरीजों के तत्काल इलाज का पूरा इन्तज़ाम किया गया है ताकि अच्छा होने में उन्हें अधिक-से-अधिक आसानी हो सके। कुछ अतिरिक्त नियमों के द्वारा यह ज़रूरी कर दिया गया था कि बीमार के कमरे और उस गाड़ी को, जिसमें वह सफ़र करे, फ़ौरन कीटाणु-नाशक दवाइयाँ छिड़ककर शुद्ध किया जाए। नोटिस के बाक़ी हिस्से में प्रीफ़ेक्ट ने आमतौर पर एक बीमार के सम्पर्क में आने वाले हर व्यक्ति को सलाह दी थी कि वह सफ़ाई-इंस्पेक्टर से जाकर मिले और उसकी दी हुई सलाह पर पूरी तरह अमल करे।

डॉक्टर रियो तेज़ी से इस पोस्टर के आगे से हटकर अपने ऑपरेशन-रूम की ओर लौट पड़ा। ग्रान्द ने, जो उसका इन्तज़ार कर रहा था, डॉक्टर को आते देखकर नाटकीय ढंग से अपनी बाँहें उठाईं।

“हाँ, मुझे मालूम है, संख्या बढ़ती जा रही है।" रियो ने कहा।

ग्रान्द ने बताया कि पिछले दिन दस मौतों की इत्तिला मिली थी। डॉक्टर ने उससे कहा कि वह उससे शाम को मिलेगा, क्योंकि वह कोतार्द को देखने के लिए जाने का वायदा कर चुका है।

"बहुत बढ़िया ख़याल है," ग्रान्द बोला, “आपके जाने से उसको बहुत फ़ायदा होगा। दरअसल, मुझे तो उसमें काफ़ी तब्दीली नज़र आती है।"

"किस तरह की?"

"वह काफ़ी मिलनसार हो गया है।"

"क्या पहले वह मिलनसार नहीं था?"

ग्रान्द उलझन में पड़ गया। वह यह नहीं कह सकता था कि कोतार्द पहले मिलनसार नहीं था; यह कहना सही नहीं होगा। लेकिन कोतार्द एक ख़ामोश और रहस्यमय व्यक्ति था और उसके आचरण में कुछ ऐसी बात थी, जिससे ग्रान्द को एक जंगली सूअर का ख़याल हो आता था। अपने बेडरूम में बन्द रहना, सस्ते रेस्तराँ में दोनों वक़्त का खाना खाना, रहस्यमय ढंग से कभी बाहर जाना और कभी लौटकर आना-कोतार्द का दैनन्दिन कार्यक्रम सिर्फ इतना ही था। वह अपने-आपको शराब और मदिरा का यात्री कहकर पुकारता था। कभी-कभी उसके पास दो या तीन आदमी आते थे, जो शायद ग्राहक होते थे। किसी-किसी दिन शाम को सड़क के उस पार सिनेमा देखने चला जाता था। इस बारे में ग्रान्द ने एक विशेषता का जिक्र किया जो उसे नज़र आई थी। उसे ऐसा लगा था कि कोतार्द को शायद चोर और डाकुओं की फ़िल्में ज़्यादा पसन्द थीं। लेकिन उसे कोतार्द में जो बात सबसे अनोखी लगी, वह उसकी लोगों के प्रति उदासीनता थी, और उससे अगर कोई मिलता था तो वह उसे अविश्वास की दृष्टि से तो खैर देखता ही था।

लेकिन, ग्रान्द का कहना था कि अब वह बिलकुल बदल गया है।

“मैं नहीं जानता कि इस बात को किन शब्दों में व्यक्त करना चाहिए, लेकिन मैं इतना ज़रूर कह सकता हूँ, कि मुझे लगता है वह अब हरेक को खुश करना चाहता है, हरेक की नज़रों में अच्छा बनना चाहता है। आजकल वह मुझसे अक्सर बातें करता है और साथ-साथ बाहर जाने का आग्रह करता है, जिससे मैं इनकार नहीं कर पाता। बड़ी बात यह है कि मुझे वह दिलचस्प आदमी लगता है, और इसमें शक नहीं कि मैंने ही उसकी ज़िन्दगी बचाई थी।"

कोतार्द ने जब से खुदकुशी करने की कोशिश की थी, तब से उसके यहाँ कोई आदमी नहीं गया था। सड़कों पर, दुकानों में, हर जगह वह दोस्त बनाने की कोशिश करता रहता था। पंसारी के सामने वह अपनी मुस्काने बिखेरता था और तम्बाकू-फ़रोश की गपबाज़ी में अब वह सबसे ज़्यादा दिलचस्पी दिखाता था।

"इस तम्बाकू-फ़रोश से जो औरत है सभी डरते हैं," ग्रान्द ने बताया। मैंने जब कोतार्द से यह बात कही तो उसने जवाब दिया कि मेरे मन में उसके प्रति कोई द्वेष है, उसमें ऐसी कई खूबियाँ हैं, जिन्हें अगर कोई चाहे तो देख सकता है।"

दो या तीन बार कोतार्द ने ग्रान्द को शहर के बड़े और शानदार रेस्तराँ और कॉफ़ी-हाउसों में दावत खिलाई थी, जहाँ वह आजकल जाने लगा था।

“वहाँ का वातावरण खुशगवार होता है," उसने कहा था, "और फिर वहाँ आदमी ऊँचे लोगों की सोहबत में बैठता है।"

ग्रान्द ने देखा कि इन जगहों के वेटर और बैरे कोतार्द के इशारे पर नाचते थे। उसे इसका कारण भी मालूम हो गया जब उसने देखा कि उसका साथी उनको दिल खोलकर बख्शीश देता है। इस बख्शीश के बदले में उसके प्रति जो सम्मान और आदर दिखाया जाता था, उससे लगता था, कोतार्द बहुत प्रसन्न होता था। एक दिन जब हेड वेटर उसे दरवाज़े तक छोड़ने के लिए साथ आया और उसने उसे ओवरकोट पहनने में मदद की तो कोतार्द ने ग्रान्द से कहा, “यह बहुत भला आदमी है और एक अच्छे गवाह का काम देगा।"

“एक गवाह का? मैं नहीं समझा।"

उत्तर देने से पहले कोतार्द हिचकिचाया।

"हाँ, वह कह सकता है कि मैं सचमुच बुरा आदमी नहीं हूँ।"

लेकिन उसके स्वभाव में उतार-चढ़ाव भी थे। एक दिन जब पंसारी उसके प्रति अधिक खुशी से पेश नहीं आया तो वह गुस्से से लाल-पीला होता हुआ घर लौटा था।

“वह दूसरों की हिमायत कर रहा है, सूअर कहीं का।"

"किन दूसरों की?"

"उन सभी बदज़ात लोगों की।"

तम्बाकू-फ़रोश की दुकान पर ग्रान्द ने स्वयं एक विचित्र दृश्य देखा था। बड़े जोशो-खरोश से बहस चल रही थी और काउंटर के पीछे खड़ी औरत ने कल के एक मामले के बारे में, जिसने एल्जीयर्ज़ में काफ़ी सनसनी फैला दी थी, अपनी राय सुनानी शुरू कर दी थी।

“मैं तो हमेशा से कहती आ रही हँ," औरत बोली “कि वे अगर उन सब बदमाशों को जेल में बन्द कर दें तो नेक और भले लोग आज़ादी से साँस ले सकेंगे।"

लेकिन वह कोतार्द की प्रतिक्रिया से स्तम्भित हो गई और अपनी बात जारी नहीं रख सकी-कोतार्द बिना कहे ही तपाक से उठकर दनदनाता हुआ दुकान से बाहर चला गया। तम्बाकू-फ़रोश और ग्रान्द भौचक्के होकर उसकी ओर देखते रह गए।

कुछ दिनों बाद ग्रान्द ने कोतार्द के स्वभाव की और तब्दीलियों के बारे में भी डॉक्टर को इत्तिला दी। आर्थिक प्रश्नों पर 'बड़ी मछली छोटी मछली को खाती है' की नीति के ख़िलाफ़ कोतार्द हमेशा उदार विचारों का समर्थन करता था। लेकिन अब वह ओरान के जिस एकमात्र अखबार को खरीदता था वह अनुदार (कन्जर्वेटिव) दृष्टिकोण का मुख्यपत्र था और इसमें शक नहीं कि वह उसको जान-बूझकर सार्वजनिक स्थानों पर पढ़ने का उपक्रम करता होगा। रोग-शय्या से निकलने के बाद उसने कुछ ऐसा ही आग्रह ग्रान्द से भी किया था। ग्रान्द ने उसे बताया था कि वह पोस्ट ऑफ़िस तक जा रहा है। इस पर कोतार्द ने उससे कहा था कि वह मेहरबानी करके उसकी एक दूर रहने वाली बहन के नाम उसकी ओर से सौ फ्रैन्क का मनीऑर्डर करता आए। उसने यह भी बताया कि वह हर महीने अपनी बहन को मनीऑर्डर भेजता है। फिर जब ग्रान्द कमरे से बाहर जाने लगा तो कोतार्द ने उसे वापस बुलाकर कहा-

“नहीं, उसे दो सौ फ्रैन्क भेज दो। उसे 'प्लेजेंट सरप्राइज़' होगा। उसका खयाल है कि मैं उसके बारे में कभी सोचता भी नहीं। लेकिन सच यह है कि मैं उसे बहुत चाहता हूँ।"

कुछ दिनों बाद उसने बातचीत के दौरान ग्रान्द से कुछ विचित्र बातें कहीं। उसने खोद-खोदकर ग्रान्द को यह बताने के लिए मजबूर कर दिया था कि वह अपनी सारी शाम किस रहस्यमय 'निजी काम' में लगाया करता है।

"मुझे मालूम है!" कोतार्द ने विस्मय भरे स्वर में कहा, “तुम कोई किताब लिख रहे हो, बोलो नहीं लिख रहे?"

"हाँ, कुछ ऐसी ही चीज़ है, लेकिन बात इतनी आसान नहीं है।"

“आह!" कोतार्द ने ठंडी साँस भरकर कहा, “काश, मुझे भी लिखने का अभ्यास होता!"

ग्रान्द ने जब इस पर आश्चर्य प्रकट किया तो कोतार्द ने कुछ हिचकिचाते हुए कहा कि साहित्यिक व्यक्ति होने से कई बातों में बड़ी सहलियत हो जाती होगी।"

“सो क्यों?" ग्रान्द ने पूछा।

“सो क्यों? क्योंकि एक लेखक को साधारण लोगों से कहीं ज्यादा अधिकार प्राप्त होते हैं, यह सभी जानते हैं। लोग उसकी बहुत सी बातों को बर्दाश्त कर लेते हैं।"

जिस दिन सरकारी नोटिस चिपकाए गए थे, उस दिन सुबह के वक़्त रियो ने ग्रान्द से कहा, "लगता है कि चूहों के इस क़िस्से ने उसके दिमाग को झकझोर दिया है, जैसा कि और बहुत से लोगों के साथ हुआ है। या शायद 'बुख़ार' का आतंक उस पर छा गया है।"

"इसमें मुझे शक है, डॉक्टर! अगर आप मेरी राय जानना चाहते हैं तो वह..."

ग्रान्द अचानक रुक गया। इसी वक़्त नज़दीक से 'चूहों का नाश' करने वाली गाड़ी खड़खड़ाती हुई गुज़री जिसकी भाप की नली से मशीनगन-जैसी तड़-तड़ की आवाज़ आ रही थी। रियो ख़ामोश रहा। जब यह शोर कम हुआ तो उसने उत्सुकता दिखाए बगैर ग्रान्द से उसकी राय पूछी।

"वह ऐसा आदमी है जिसकी अन्तरात्मा पर किसी गम्भीर गुनाह का बोझ है।" ग्रान्द ने गम्भीरता से जवाब दिया।

डॉक्टर ने कन्धे सिकोड़ लिये। इंस्पेक्टर ने कहा था कि उसे और भी कई काम हैं।

उस दिन तीसरे पहर रियो ने कास्तेल से फिर बात की। प्लेग के टीके अभी तक नहीं आए थे।

“टीके अगर आ भी जाएँ तो उनसे शायद ही कोई फ़ायदा निकले,” रियो ने कहा, “यह कीटाणु अजब क़िस्म का है...”

“इस बारे में मैं तुमसे सहमत नहीं हूँ,” कास्तेल बोला, “ये नन्हे ज़ालिम अपने व्यवहार में हमेशा मौलिकता दिखाते हैं। लेकिन बुनियादी तौर पर, कीटाणु वही पुराना होता है।"

“खैर यह तुम्हारी थ्योरी है। लेकिन सच बात यह है कि हम लोग इस बारे में कतई कुछ नहीं जानते।"

"माना कि यह मेरी थ्योरी है, फिर भी यह सब पर लागू होती है।"

सारे दिन डॉक्टर को यह एहसास बना रहा कि प्लेग का ख़याल आते ही उसके मन में कुछ हैरानी की जो भावना उठती है वह लगातार गहरी होती जा रही है। आखिरकार उसे महसूस हुआ कि इसका क्या मतलब है, सिर्फ यह कि वह डर गया है। दो बार वह भीड़-भरे कॉफ़ी-हाउसों के भीतर घुसा। कोतार्द की तरह उसे भी दोस्ताना सम्पर्क, मानवीय गरमाई की ज़रूरत महसूस हुई। यह एक मूर्खतापूर्ण मनोवृत्ति है, रियो ने अपने आप से कहा। फिर भी इसने उसे याद दिला दी कि उसने कोतार्द से मिलने का वायदा किया था।

डॉक्टर उस दिन शाम को जब उसके कमरे में दाखिल हुआ, तब कोतार्द खाने की मेज़ के पास खड़ा था। मेज़पोश पर एक जासूसी कहानी खुली पड़ी थी। चूँकि रात हो रही थी, इसलिए बढ़ते हुए अँधेरे में पढ़ सकना मुश्किल रहा होगा। सम्भव है कि कोतार्द बैठा, गोधूलि की वेला में, कुछ सोच रहा होगा, जब उसने दरवाज़े की घंटी बजाई थी। रियो ने उसकी तबीयत का हाल पूछा। कोतार्द ने बैठते हुए चिड़चिड़े स्वर में कहा कि उसकी तबीयत काफ़ी अच्छी है, लेकिन अगर उसे विश्वास हो जाए कि उसे अकेला शान्तिपूर्वक रहने दिया जाएगा तो उसकी तबीयत और भी अच्छी हो जाएगी। रियो ने कहा कि आदमी हमेशा अकेला नहीं रह सकता।

"मेरे कहने का यह मतलब नहीं है। मैं उन लोगों के बारे में सोच रहा था जो आपके लिए मुसीबतों के बीज बोने के लिए ही आपमें दिलचस्पी दिखाते हैं।"

जब रियो ने इस पर कुछ न कहा तो उसने अपनी बात जारी रखी, “याद रखिए, मैं अपनी बात नहीं कर रहा। बात यह है कि मैं उस जासूसी कहानी को पढ़ रहा था। यह एक अभागे आदमी की कहानी है, जिसे अचानक एक दिन सुबह गिरफ़्तार कर लिया जाता है। कुछ लोग उसमें दिलचस्पी लेने लगे थे और उसे इसका पता भी नहीं था। वे दफ़्तरों में उसकी चर्चा करते रहते थे और कार्डों पर उसका नाम लिखने लगे थे। आपके ख़याल में क्या यह ठीक है? आपके ख़याल में क्या लोगों को किसी आदमी के साथ ऐसा बरताव करना चाहिए?"

“खैर यह तो बहुत-सी बातों पर निर्भर करता है," रियो ने कहा, “एक माने में मैं तुमसे सहमत हूँ, किसी को ऐसा करने का अधिकार नहीं है। लेकिन ये सब फ़ालतू बातें हैं। तुम्हारे लिए सबसे ज़रूरी बात यह है कि तुम्हें टहलने के लिए बाहर जाना चाहिए। इतनी देर तक घर में बन्द रहना गलत है।"

कोतार्द चिढ़-सा गया और बोला कि ज़रूरत पड़ने पर वह अक्सर बाहर जाता रहता है। सड़क के सभी लोग इसकी गवाही दे सकते हैं। इतना ही नहीं, वह शहर के और हिस्सों के बहुत सारे लोगों को भी जानता है।

"क्या तुम मोशिए रिगो को भी जानते हो? वह मेरा दोस्त है।"

कमरे में इस वक़्त अँधेरा छाया था। बाहर, सड़क पर, शोरगुल बढ़ता जा रहा था और जब सड़क की सारी बत्तियाँ एक ही साथ जल उठीं, तब जैसे राहत की एक कल-कल ध्वनि ने बत्तियों का स्वागत किया। रियो बालकनी पर आ गया। कोतार्द भी उसके पीछे-पीछे आया। किनारे के मुहल्लों से, जैसा कि हमारे शहर में हर शाम को होता है, हल्की वायु के झोंके कलरव की आवाज़ों, भुनते हुए गोश्त की खुशबू और दुकानों और दफ्तरों से छुट्टी पाकर सड़कों पर चलने वाले नौजवानों की खुश और महकती हुई भीड़ों का शोर बहाकर ले आते थे। रात के पहले घंटे में अदृश्य जहाज़ों के भोंपूओं के गहरे दूरागत स्वर, समुद्र से आने वाले कलरव और हर्षोन्मत्त भीड़ों के शोरगुल में रियो को हमेशा एक खास सौन्दर्य नज़र आता था, लेकिन आज उसे लगा जैसे इस वातावरण में भयानक संकट की गूंज भरी हो, क्योंकि अब उसे बहुत-सी बातों का ज्ञान हो चुका था।

"क्यों न हम भी बत्तियाँ जला लें!" जब वे कमरे में लौटे तो उसने कोतार्द से कहा।

बत्ती जलाने के बाद उस छोटे क़द के आदमी ने चौंधियाती हुई आँखों से उसकी ओर टकटकी बाँधकर देखा।

“डॉक्टर, मुझे एक बात बताइए। अगर मैं बीमार पड़ जाऊँ तो क्या आप मुझे अस्पताल में अपने वार्ड में दाखिल कर लेंगे?"

"क्यों नहीं?"

कोतार्द ने तब पूछा कि क्या कभी ऐसा हुआ है कि नर्सिंग होम में पड़े आदमी को भी गिरफ़्तार कर लिया गया हो? रियो ने उत्तर दिया कि ऐसा होना नामुमकिन नहीं है, लेकिन यह सब मरीज़ की हालत पर निर्भर करता है।

"आप जानते हैं, डॉक्टर," कोतार्द ने कहा "कि मुझे आप पर पूरा विश्वास है।" फिर उसने डॉक्टर से पूछा कि क्या वह उसे अपनी कार में 'लिफ्ट' दे सकेगा, क्योंकि वह भी शहर तक जा रहा है।

इस वक्त तक शहर के केन्द्र में लोगों की भीड़ छंटने लगी थी और बत्तियाँ कम होने लगी थीं। घरों के दरवाज़ों के सामने बच्चे खेल रहे थे। कोतार्द के आग्रह पर डॉक्टर ने बच्चों के एक समूह के सामने कार रोक दी। वे कीड़ी-काड़ा (हाप्स्कॉच) खेल रहे थे और बेहद शोर मचा रहे थे। उनमें से एक मटमैले चेहरे वाले लड़के ने, जिसके बाल करीने से कढ़े और साफ़ थे, चमकती, साहसी आँखों से रियो की ओर कठोरतापूर्वक घूरकर देखा। डॉक्टर ने अपनी नज़र फेर ली। फुटपाथ पर खड़े होकर कोतार्द ने उससे हाथ मिलाया। फिर उसने रूखी आवाज़ में, उसके कन्धों पर घबराहट-भरी दृष्टि से देखते हुए कहा-

"हर आदमी किसी महामारी की चर्चा कर रहा है। क्या इस बात में कुछ सचाई है, डॉक्टर?"

“लोग तो चर्चा करते ही रहते हैं। उनसे ऐसी ही उम्मीद की जाती है।" डॉक्टर ने उत्तर दिया।

"आप ठीक कहते हैं। अगर हमारे यहाँ दस मौतें हो जाएँ तो वे सोचेंगे कि क़यामत का दिन आ गया है। लेकिन यहाँ हमें उसकी ज़रूरत नहीं।"

कार का इंजन घरघरा रहा था। रियो का हाथ गीयर की मूठ पर था। लेकिन वह दोबारा उस लड़के की ओर देख रहा था जो अभी तक उसकी ओर एक विचित्र गम्भीरता से टकटकी बाँधे घूर रहा था। एकाएक, अप्रत्याशित रूप से, अपनी बतीसी दिखाते हुए वह बालक मुस्करा दिया।

"क्या कहा? तो हमें किस चीज़ की ज़रूरत है?" रियो भी बच्चे की तरफ़ देखकर मुस्कराया।

एकाएक कोतार्द ने कार का दरवाज़ा ज़ोर से पकड़ लिया और फिर जाने से पहले, क्रूद्ध आवेशपूर्ण स्वर में चिल्लाया।

"भूचाल चाहिए, बहुत बड़ा भूचाल-जो हर चीज़ को तोड़-फोड़ डाले!"

भूचाल नहीं आया था, और अगला सारा दिन, जहाँ तक रियो का सम्बन्ध है, कार लेकर शहर के कोने-कोने में दौड़ने, बीमारों के परिवारों को मशविरा देने और ख़ुद बीमारों से बहस करने में गुज़र गया। अपने पेशे की ज़िम्मेदारियों का इतना भार रियो पर पहले कभी नहीं पड़ा था। अब तक उसके मरीज़ उसकी ज़िम्मेदारियों को हल्का करने में मदद देते आए थे। वे खुशी से अपने-आपको उसके हाथों में सौंप देते थे। अब पहली बार डॉक्टर ने महसूस किया कि वे जैसे तटस्थ हों; एक हैरत में डालने वाली दुश्मनी की भावना से अपनी बीमारी के आवरण में जैसे अपने-आपको बन्द रखते हों। यह एक ऐसा संघर्ष था, जिसका वह अभी आदी नहीं हो सका था। और जब, रात के दस बजे अपनी आख़िरी विजिट के लिए उसने अपने पुराने दमा के मरीज़ के घर के आगे कार खड़ी की, तब उसके लिए अपनी सीट से उठ पाना भी मुश्किल हो रहा था। कुछ क्षण तक वह बैठा अँधेरी सड़क के ऊपर काले आकाश में तारों का टिमटिमाना देखता रहा।

रियो जब कमरे में दाखिल हुआ, तो बूढ़ा बिस्तर पर बैठकर हमेशा की तरह एक पतीले से सूखे मटर निकालकर दूसरे पतीले में डाल रहा था। आगन्तुक को देखकर बूढ़े ने प्रसन्न और पुलकित होकर कहा-

“कहो डॉक्टर, शहर में हैजा फैल गया है न?"

“यह ख़याल तुम्हारे दिमाग में कैसे आया?"

“अख़बार में यह ख़बर छपी है और रेडियो से भी यही मालूम हुआ।"

"नहीं, हैज़ा नहीं फैला।”

“खैर जो भी हो।" बूढ़ा उत्तेजित होकर अपने कंठ में हँसा। “मैंने सुना है मोटे-मोटे खटमलों ने आफ़त मचा दी है। वे पागल हो गए हैं न!"

"इन बातों पर बिलकुल यक़ीन मत करो।" डॉक्टर ने कहा।

बूढ़े की जाँच के बाद डॉक्टर गन्दे और छोटे डाइनिंग-रूम में बैठा था। हाँ, उसने जो भी कहा था उसके बावजूद वह आतंकित था। वह जानता था कि अकेली इसी बस्ती में आठ-दस आदमी सूजी गिल्टियों की पीड़ा से चीखते हुए कल सबेरे उसकी विज़िट की प्रतीक्षा करते होंगे। दो-तीन मामलों में ही गिल्टियों के चीरने से मामूली-सा फ़ायदा हुआ था। ज़्यादातर मरीज़ों को अस्पताल में भरती होना होगा और उसे मालूम था कि अस्पतालों के बारे में गरीब लोग कैसा महसूस करते हैं। “मैं नहीं चाहती कि वे लोग मेरे पति पर अपने प्रयोग करें," एक मरीज़ की पत्नी ने उससे कहा था। लेकिन दरअसल उस पर प्रयोग नहीं किए जाएँगे; वह मर जाएगा, बस इतनी-सी बात है। जो हिदायतें लागू की गई थीं, वे पर्याप्त नहीं थीं, यह तो साफ़ ज़ाहिर था। जहाँ तक 'विशेष व्यवस्था वाले वार्डो' का ताल्लुक है, उनकी हक़ीक़त भी उससे छिपी नहीं थी दो इमारतें थीं, जिनमें से मरीज़ों को जल्दी में हटा दिया गया था, जिनकी खिड़कियाँ कसकर बन्द कर दी गई थीं और जिनके चारों ओर सिपाही तैनात करके लोगों को अन्दर आने की मनाही कर दी गई थी। उनको सिर्फ एक ही उम्मीद थी कि बीमारी अपने-आप ख़त्म हो जाएगी। कम-सेकम यह तो निश्चित ही था कि अधिकारियों ने बीमारी का मुक़ाबला करने के लिए जो क़दम उठाए थे, उनसे वह रोकी भी नहीं जा सकती थी।

फिर भी उस रात को सरकारी विज्ञप्ति और भी ज्यादा उम्मीदों भरी थी। अगले दिन सदाक' ने घोषणा की कि स्थानीय अधिकारियों ने जो नियम लागू किए थे, उनका सार्वजनिक स्वागत हुआ है और इस वक़्त तक तीस मामलों की इत्तिला पहुँच चुकी है। कास्तेल ने रियो को फ़ोन किया।

"स्पेशल वार्डों में कितने बेड हैं?"

"अस्सी !"

"तब तो निश्चय ही शहर-भर के तीस मामलों से तो कहीं ज़्यादा हैं न?"

"यह मत भूलो कि दो तरह के मरीज़ होते हैं-एक वे जो घबरा जाते हैं और दूसरे वे-जिनकी संख्या कहीं ज़्यादा होती है जिन्हें घबराने का भी वक़्त नसीब नहीं होता।"

“हूँ, यह बात है। क्या इसकी जाँच की गई है कि कितने लोग दफ़नाए जा रहे हैं?"

“नहीं। मैंने फ़ोन पर रिचर्ड से कहा था कि प्रभावशाली क़दम उठाए जाने चाहिए, सिर्फ लफ़्ज़ों से ही काम नहीं लेना चाहिए। हमें बीमारी के ख़िलाफ़ एक मज़बूत घेरा डालना चाहिए, नहीं तो हमारा सब किया-धरा बेकार है।"

"अच्छा ! और उसने क्या कहा?"

"कुछ नहीं किया जा सकता। उसके पास इतने अधिकार नहीं हैं, वगैरह, वगैरह। मेरी राय में हालत बिगड़ती जाएगी।"

और यही हुआ भी। तीन दिन के भीतर दोनों स्पेशल वार्ड पूरे भर गए। रिचर्ड की बात से मालूम हुआ कि किसी स्कूल को अधिकार में लेकर वहाँ एक सहायक अस्पताल खोलने की बात चल रही है। इस बीच रियो सूजी हुई गिल्टियों में नश्तर लगाता रहा और प्लेग के टीकों के आने की प्रतीक्षा करता रहा। कास्तेल अपनी पुरानी पुस्तकों के अध्ययन में जुट गया और पब्लिक-लाइब्रेरी में घंटों गुज़ारने लगा।

“ये चूहे प्लेग से ही मरे थे,” अपने अध्ययन से वह इस नतीजे पर पहुंचा, "या फिर किसी बिलकुल प्लेग-जैसी ही चीज़ से। और उन्होंने शहर में लाखों पिस्सू पैदा करके छोड़ दिए हैं, जो इस रोग की छूत को तेजी से फैला देंगे, अगर ठीक वक़्त पर रोकथाम न की गई।"

रियो चुप रहा।

इन्हीं दिनों मौसम फिर अच्छा हो गया था और सूरज की किरणों ने पिछली बारिश के गढ़ों को बिलकुल सुखा दिया था। हर सुबह नीला, प्रशान्त आकाश सूर्य की सुनहली किरणों से भर जाता और कभी-कभी बढ़ती हुई गरमी के बीच हवाई जहाज़ों की आवाजें सुनाई देने लगतीं। लगता था कि दुनिया में फिर खुशी छा गई है। लेकिन अगले चार दिन में ही बुखार में चौंकाने वाली प्रगति हुई थी पहले दिन सोलह, फिर चौबीस, अट्ठाईस और बत्तीस मौतें हुई थीं। चौथे दिन शिशुओं के एक स्कूल के भीतर सहायक अस्पताल खोले जाने की घोषणा की गई। नगरवासी अब तक नुक्ताचीनी करके अपनी घबराहट को छिपाते आए थे, लेकिन अब जैसे उनकी बोलती बन्द हो गई थी और वे उदास चेहरे लिये अपने कामों पर जा रहे थे।

रियो ने प्रीफ़ेक्ट को फ़ोन करने का निश्चय किया।

"स्थिति को देखते हुए ये नियम और पाबन्दियाँ कारगर साबित नहीं हो रहीं।"

“दुरुस्त," प्रीफ़ेक्ट ने उत्तर दिया। "मैंने आँकड़ों पर गौर किया है, और जैसा कि तुम्हारा कहना है, ये आँकड़े बहुत चिन्ताजनक हैं।"

"सिर्फ चिन्ताजनक ही नहीं, उनसे पक्का नतीजा निकाला जा सकता है।"

“मैं सरकार से आदेश जारी करने की माँग करूँगा।"

कास्तेल से जब रियो अगली बार मिला तब भी उसके कानों में प्रीफ़ेक्ट के शब्द खटक रहे थे।

"आदेश!" उसने नफ़रत से कहा, “जबकि ज़रूरत आदेशों की नहीं कल्पना की है।"

“टीकों के आने की कोई ख़बर है?"

"इस हफ्ते तक आ जाएँगे।"

प्रीफ़ेक्ट ने रिचर्ड की मार्फत रियो को हिदायत भेजी कि उपनिवेश के केन्द्रीय प्रशासन के पास भेजे जाने के लिए वह वक्तव्य तैयार करके दे जिसमें क्लिनिकल जाँच-पड़ताल और महामारी के आँकड़ों को भी शामिल करे। उस दिन चालीस मौतों की इत्तिला मिली थी। प्रीफ़ेक्ट ने कहा था कि वह नए और कड़े प्रतिबन्धों और नियमों के लागू करने की ज़िम्मेदारी खुद अपने ऊपर ले रहा है। इनके अनुसार बुखार के हर मामले की रिपोर्ट करना और मरीज को सख्ती से परिवार से अलग रखना एकदम ज़रूरी करार दे दिया गया। यह भी ज़रूरी कर दिया गया कि बीमारों के घरों को बन्द कर दिया जाए और दवाई छिड़ककर उनके कीटाणु मारे जाएँ। उन घरों में रहने वाले बाक़ी सभी लोगों को चालीस दिन के लिए अलग जाकर रहने (क्वारंटाइन) के लिए कहा गया। मुर्दो को दफ़नाने की क्रिया स्थानीय अधिकारों की देखरेख में ही होनी चाहिए, इसका आदेश जारी किया गयाकिस ढंग से इसका ब्योरा बाद में दिया जाएगा। अगले दिन हवाई जहाज़ से प्लेग के टीके आ गए। ये टीके तत्काल की ज़रूरतें पूरी करने के लिए तो काफ़ी थे, लेकिन महामारी फैलने की सूरत में वे पर्याप्त नहीं थे। रियो के तार के जवाब में उसको सूचना दी गई कि आकस्मिक ज़रूरत के लिए टीकों का जो स्टॉक था वह सारा-का-सारा भेज दिया गया है, लेकिन और टीके तैयार किए जा रहे हैं।

इस बीच पड़ोस की बस्तियों से वसन्त का मौसम हमारे शहर में प्रवेश कर रहा था। बाज़ारों और सड़कों पर फेरी लगाने वाले पुष्प-विक्रेताओं की टोकरियों में गुलाब के हज़ारों फूल मुरझाए जा रहे थे और शहर की हवा उनकी भीनी गन्ध से बोझिल हो रही थी। ऊपर से देखने पर यह वसन्त भी और वर्षों के वसन्त-जैसा ही था। काम के घंटों में ट्राम-गाड़ियाँ हमेशा की ही तरह भरी रहती थीं और बाक़ी वक़्त ख़ाली और गन्दी दिखाई देती थीं। तारो उस छोटे-से बुड्ढे को गौर से देखता रहता था और वह छोटा-सा बुड्ढा बिल्लियों पर थूकता रहता था। ग्रान्द दफ़्तर का काम ख़त्म करके रोज़ की तरह शाम को अपने 'रहस्यपूर्ण कार्य' में जुटने के लिए लपकता हुआ घर की ओर बढ़ता था। कोतार्द अपने ढर्रे पर ही चलता जा रहा था और मजिस्ट्रेट ओथों अपने कुत्ते को लेकर टहलता था। स्पैनिश बूढ़ा उसी तरह अपने मटर एक पतीले से दूसरे पतीले में उलटता रहता था और कभी-कभी वह पत्रकार रैम्बर्त भी दिखाई पड़ जाता था जो हमेशा की तरह जिस चीज़ को भी देखता था उसमें दिलचस्पी दिखाने लगता था। शाम के वक़्त पुराने चेहरे सड़कों पर घूमते नज़र आते थे और सिनेमाघरों के सामने टिकट खरीदने वालों की क़तारें लम्बी होती जाती थीं। इसके अलावा ऐसा लगता था कि महामारी का ज़ोर अब घटने लगा है। किसी-किसी दिन तो दस-बारह से अधिक मौतों की सूचना प्रकाशित नहीं होती थी। लेकिन फिर एकाएक मौतों की संख्या एकदम बढ़ गई। जिस दिन यह संख्या तीस तक पहुँची, प्रीफ़ेक्ट ने डॉक्टर रियो को एक तार पढ़ने के लिए दिया और कहा, “तो अब लगता है वे लोग भी घबरा उठे हैं आख़िरकार।" तार में लिखा था : ‘प्लेग फैलने की घोषणा कर दो। शहर के फाटक बन्द कर दो।'

  • प्लेग (उपन्यास) दूसरा भाग : अल्बैर कामू
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