Sant Singh Sekhon
संत सिंह सेखों

पंजाबी की प्रथम कथा पीढ़ी के प्रारंभिक कथाकारों में संतसिंह सेखों का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। इनका जन्म 1907 में ज़िला-लायलपुर (अब पाकिस्तमान में) में हुआ। ये अंग्रेजी और अर्थशास्त्र में एम.ए. तक शिक्षा ग्रहण करके अध्यापन में आ गए थे। इन्हें पंजाबी 'साहित्य का बाबा बोहड़' भी कहा जाता है क्योंकि इस लेखक ने पंजाबी का एक बहु-आयामी लेखक होने के साथ-साथ पंजाबी आलोचना, पंजाबी नाटक और पंजाबी उपन्यास के क्षेत्र में एक अग्रज लेखक की ऐतिहासिक भूमिका अदा की है। पंजाबी में संतसिंह सेखों पहले ऐसे लेखक हैं जिन्होंने पंजाबी कहानी को यथार्थवादी दृष्टि दी। अपनी पहली दो कहानियों -'भत्ता' और 'कीटां अन्दर कीट' द्वारा इन्होंने 'आधुनिक पंजाबी कहानी' की नींव रखी। इनके कहानी संग्रहों के नाम इस प्रकार हैं - 'समाचार' (1943), 'कामे ते योधे'(1948), 'अद्धी वाट'(1951), 'तीजा पहर'(1956), 'सियाणपां'(1980)। 'मींह जावे, हनेरी जावे', 'मुड़ विधवा, 'पेमी दे नियाणे', 'हलवाह, इनकी बहु-चर्चित और यादगार कहानियाँ हैं। नाटक 'मित्तर पियारा' के लिए इन्हें साहित्य अकादमी, दिल्ली से भी सम्मानित किया गया।