Ram Lal राम लाल
रामलाल छाबड़ा (1 मार्च 1923 - 28 अक्टूबर, 1996) का जन्म मियाँवाली मग़रिबी पंजाब जो कि अब पाकिस्तान में है, हुआ।
उर्दू भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित कहानी–संग्रह
'पखेरू' के लिये उन्हें सन् 1993 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। राम लाल,
उर्दू के अहम अफ़साना निगार हैं।उन्होंने अफ़साने, नॉवेल, यात्रा वृतांत, रेखा-चित्र, रेडियो ड्रामे, डायरी
लिखी, तो सहाफ़त के मैदान में भी अपने हाथ आजमाये।लेकिन उनकी अहम पहचान एक अफ़साना
निगार के तौर पर ही है।उनकी मादरी ज़ुबान उर्दू नहीं, सराईकी थी पर उन्होंने उर्दू को ही अपने लेखन
का ज़रिया बनाया।एक ज़माना था, जब उर्दू अदबी दुनिया में राम लाल के अफ़सानों का ख़ासा ज़िक्र होता था,
उन्हें याद किया जाता था।लेकिन वक़्त गुज़रा, दीगर उर्दू शुअरा की तरह लोगों ने राम लाल को भी भुला दिया।
सब बड़े अदीब भी उन्हें पसंद और उनकी अफ़साना निगारी की क़द्र करते थे।राम लाल के अदबी सरमाये
की बात करें, तो उनके अफ़सानवी मजमूओं में ‘आइने’ (1945), ‘नई धरती पुराने गीत’ (1948),
‘इंक़लाब आने तक’ (1949), ‘गली गली’ (1960), ‘आवाज़ तो पहचानो’ (1962), ‘चराग़ों का सफ़र’ (1966),
‘कल की बातें’ (1967), ‘कोहरा और मुस्कराहट’ (1971), ‘मुट्ठी भर धूप’ (1972), ‘उखड़े हुए लोग’ (1972),
‘गुज़रते लम्हों की छाप’ (1974), ‘मासूम आंखों का भरम’ (1978), ‘डूबता उभरता आदमी’ (1988),
‘एक और दिन को प्रणाम’ (1990), ‘आतिश खोर’, ‘पखेरू’ (1992) हैं, तो वहीं ‘आगे पीछे’ उनके दो छोटे उपन्यास हैं।
‘ज़र्द पत्तों की बहार’ (1980) और ‘मास्को यात्रा’ (1990) राम लाल के यात्रा वृतांत हैं। ‘कूचा-ओ-क़ातिल’
उनकी आत्मकथा है। राम लाल ने बच्चों के लिए अफ़साने भी लिखे। उसी ख़़ूबी से, जितने कि बड़ों के लिए।
पत्रकारिता के मैदान में भी उनका काम था।