लोहे का कमरबंद (उर्दू कहानी हिंदी में) : रामलाल

Lohe Ka Kamarband (Urdu Story in Hindi) : Ram Lal

बहुत अर्सा गुज़रा किसी मुल्क में एक सौदागर रहता था। उसकी बीवी बहुत ख़ूबसूरत थी। इतनी कि उसकी महज़ एक झलक देखने के लिए आशिक़ मिज़ाज लोग उसकी गली के चक्कर लगाया करते थे। ये बात सौदागर को भी मालूम थी इस लिए उसने अपनी बीवी पर सख़्त पाबंदियाँ आएद कर रक्खी थीं। उसकी इजाज़त के बगै़र वो किसी से मिल नहीं सकती थी। उसके क़रीब क़रीब तमाम मुलाज़िम दर-अस्ल उस सौदागर के खु़फ़ीया जासूस थे जो उसकी बीवी की हरकतों पर कड़ी नज़र रखते थे। सौदागर को कभी भी दो दो तीन तीन साल के लिए दूर दूर के ममालिक में व्यपार के सिल्सिले में जाना पड़ता था। क्यूँकि सफ़र में कई समुंद्र भी हाएल होते थे जिन्हें उबूर करते वक़्त कई बार बहरी क़ज़्ज़ाक़ों से भी वास्ता पड़ जाता था।

एक बार वो ऐसी ही एक तिजारती मुहिम पर रवाना होने वाला था। घर छोड़ने से एक रात पहले वो अपनी बीवी की ख़्वाबगाह में गया और बोला।

जान-ए-मन! तुम से जुदा होने से पहले मैं तुम्हें एक तोहफ़ा देना चाहता हूँ। मुझे यक़ीन है ये तोहफ़ा तुम्हें हमेशा मेरी याद दिलाता रहेगा क्यूँकि ये तुम्हारे जिस्म के साथ हमेशा चिपका रहेगा।

ये कह कर सौदागर ने अपनी बीवी के चांदी से बदन पर कमर के निचले हिस्से के साथ लोहे का एक कमरबंद जोड़ दिया और कमरबंद में एक ताला भी लगा दिया। फिर ताले की चाबी अपने गले में लटकाते हुए बोला।

ये चाबी मेरे सीने पर हर वक़्त लटकी रहेगी। उसकी वजह से में भी तुम्हें याद करता रहूँगा।

सौदागर की बीवी ने लोहे के कमरबंद को ग़ौर से देखा तो समझ गई कि ये दर-अस्ल इसे बदकारी से बाज़ रखने के लिए पहनाया गया है। उसकी आँखों में आँसू आ गए और बोली।

आप को मुझ पर एतिमाद नहीं है न! इसी लिए आप ने ऐसा किया है लेकिन मैं तो आप से मोहब्बत करती हूँ। कभी आप को शिकायत का मौक़ा मिला?

सौदागर ने जवाब दिया।

मेरे दिल में तुम्हारी तरफ़ से कोई शुबा नहीं है लेकिन चूँकि ज़माना बहुत ख़राब है और मैं मर्दों की ज़ात से बख़ूबी वाक़िफ़ हूँ। वो हमेशा कमज़ोर और बेसहारा औरतों की ताक में रहते हैं। इसी ख़याल से मैंने तुम्हें महफ़ूज़ कर दिया है। अब कोई भी शख़्स तुम्हारी इस्मत नहीं लूट सकेगा।

ये कह कर सौदागर तो अपने सफ़र पर रवाना हो गया लेकिन उसकी बीवी लोहे के कमरबंद की वजह से सख़्त परेशानी महसूस करने लगी। ये तकलीफ़ जिस्मानी कम थी ज़हनी ज़्यादा।

कमरबंद की वजह से वो ख़ुद को एक क़ैदी समझने लगी। उठते बैठते उसे कमर के गिर्द कसे हुए लोहे के कमरबंद का शदीद एहसास होता था। उस कमरबंद की वजह से उसे दूसरे मर्दों का ख़्याल ज़्यादा आने लगा था जिन से बचाने के लिए उसके शौहर ने ये अनोखा तरीक़ा अपनाया था। वो उसकी ग़ुलाम तो नहीं थी लेकिन उसकी ज़िंदगी गुलामों से भी बदतर हो गई और ये सब उसके बेपनाह हुस्न की वजह से हुआ था।

वो इतनी हसीन न होती तो उसके साथ इस क़िस्म का ज़ालिमाना सुलूक भी हरगिज़ न किया जाता। अपने शौहर के ज़ुल्म को याद कर के और अपने हुस्न को आइने में देख कर वो दुखी हो जाती और कभी रोने भी लगती।। लेकिन वो कर ही क्या सकती थी। अब तो वो हर तरह से बेबस थी। बंद खिड़कियों और दरवाज़ों के बाहर उसे कितने मर्दों की सीटियाँ सुनाई देती थीं। बअज़ लोग तो उसका नाम पुकारते हुए या शेर पढ़ते हुए गली में से गुज़रते। ये शेर उसके बे-पनाह हुस्न की तारीफ़ में या ख़ुद उनकी अपनी अंदरूनी कैफ़ियतों के ग़म्माज़ होते लेकिन वो कभी दरवाज़ा या खिड़की खोल कर बाहर नहीं झाँकती थी क्यूँकि वो अपने शौहर से बहुत मोहब्बत करती थी। उसके मुलाज़िम इस क़िस्म की आवाज़ें सुन कर हमेशा चौकन्ने हो जाते थे और वो अपने दिल में कभी कभी पैदा हो जाने वाली उस ख़्वाहिश को बड़ी सख़्ती से दबा लेती थी कि वो किसी रोज़ तो खिड़की को ज़रा सा खोल कर अपने आशिकों की शक्ल ही देख ले।

उसके कानों में जो सीटियाँ गूंजती थीं और आशिक़ाना अशआर पढ़ने की जो आवाज़ें आती थीं, उनकी वजह से शकील और बहादुर मर्दों की तस्वीरें अपने आप उसकी आँखों के सामने आ जातीं।

लेकिन कभी कभी उसके ज़हन में ये ख़याल भी आता कि उसके आशिकों में एक भी ऐसा बहादुर आदमी नहीं जो मकान की ऊंची दीवार फलाँग कर उसे अग़वा कर के ले जाए।

रफ़्ता रफ़्ता अग़वा किए जाने के तसव्वुर-ए-महज़ से ही उसे तसकीन मिलने लगी। उसे लगता कि वो एक अजनबी मर्द के आगे उसके घोड़े पर सवार है। वो घोड़े को सरपट भगाए ले जा रहा है और उसे घर से सैंकड़ों कोस दूर एक घने जंगल में ले जाता है। जहाँ से उसे कोई भी वापस नहीं ले जा सकेगा। अब वो अपने शक्की मिज़ाज और ज़ालिम शौहर के पंजे से हमेशा के लिए आज़ाद हो चुकी है लेकिन जब वो अपने अजनबी आशिक़ के साथ जिस्मानी तअल्लुक़ की बात सोचने बैठती तो उसके आँसू निकल पड़ते हैं। कमर में लोहे के कमरबंद की वजह से तो वो किसी भी मर्द के काम की नहीं रही थी। जब तक उस कमरबंद को खोल न दिया जाए लेकिन उसकी चाबी तो उसके शौहर के पास थी।

एक मर्तबा सौदागर की बीवी के कानों में एक ऐसी मुग़न्नी के गाने की आवाज़ आई जिसे सुनते ही वो मुज़्तरिब हो गई। उस से रहा न गया। उसने अपने क़ीमती जे़वरात अपने नौकरों को इनाम के तौर पर दे दिए और उनसे कहा।

इस मुग़न्नी को थोड़ी देर के लिए मेरे पास ले आओ। उसका गाना सुनूँगी। उसकी आवाज़ में बड़ा सोज़ है, जिसने मेरे दिल में मेरे प्यारे शौहर की याद ताज़ा कर दी है जो एक मुद्दत से मुझ से हज़ारों कोस दूर परदेस में है और मैं उसके फ़िराक़ में दिन रात तड़पा करती हूँ।

मुलाज़िम फ़ौरन उस मुग़न्नी को बुला कर ले आए। वो इस इलाक़े का मशहूर-व-मारूफ़ मुग़न्नी था। लोग उसकी आवाज़ सुन कर वज्द में आ जाते थे। वो मर्दाना हुस्न-व-शिकवा का एक बेमिसाल नमूना था। ऊंचा क़द, मज़बूत जिस्म, लंबे लंबे बाज़ू, साँवला रंग और लहराते हुए घुंघरियाले बाल। उसकी आँखों में ग़ज़ब की कशिश थी और मोहब्बत की एक अजीब से शिद्दत भी। उसने भी सौदागर की बीवी के हुस्न के चर्चे सुन रखे थे और ग़ायबाना तौर पर उस से मुहब्बत भी करने लगा था। अब जब वो उस हसीना के सामने अचानक पहुंचा दिया गया तो मुतअज्जिब सा रह गया। पहले तो उसे एतिबार ही न रहा कि ये हक़ीक़त हो सकती है। इस लिए अपनी आँखें बार बार मलीं लेकिन जब उसे यक़ीन हो गया कि वो सचमुच अपने दिल की मल्लिका-ए-हुज़ूर के सामने खड़ा है तो पहले वो दिल ही दिल में अपनी ख़ुशनसीबी पर मालिक-ए-दो-जहाँ का शुक्र बजा लाया फिर सर झुका कर बोला।

ऐ हसीना-ए-आलम! मैं आप की कौन सी ख़िदमत सर अंजाम दे सकता हूँ?

सौदागर की बीवी मुग़न्नी के मर्दाना हुस्न पर पहली ही नज़र में फ़रेफ़्ता हो गई लेकिन अपने मुलाज़िमों की मौजूदगी में उसने अपनी कैफ़ियत का इज़हार करना मुनासिब न समझा। सिर्फ़ इतना ही कहने पर इक्तिफ़ा की।

नामवर मुग़न्नी मैं अपने प्यारे शौहर की जुदाई में तड़प रही हूँ जिस के लौटने की अभी तीन बरस तक कोई तवक़्क़ो नहीं है। तुम मुझे कोई ऐसी ग़ज़ल सुनाओ जिस से मेरे दिल को राहत नसीब हो। मुझे यक़ीन है तुम्हारी पुर-सोज़ आवाज़ मेरे ज़ख़्मी दिल पर मरहम का काम करेगी।

ये कहते कहते वो मुग़न्नी की आँखों में डूब गई लेकिन फिर फ़ौरन संभल सी गई और सर झुका कर बैठ गई। मुग़न्नी उसकी हक़ीक़ी कैफ़ियत कुछ कुछ भाँप गया। सोचने लगा कि कहीं वो उसी की मोहब्बत में गिरफ़्तार तो नहीं? मुम्किन है अपने मुलाज़िमों की मौजूदगी के सबब से इसका इज़हार न कर सकती हो! बहरहाल उसकी ख़्वाहिश के एहतिराम के लिए उसने बाहर खड़े हुए अपने रफ़ीक़ों को भी अंदर बुलवा लिया। साज़ बजने लगे। ढोल पर थाप पड़ने लगी और सौदागर की आलीशान इमारत उसकी पुर-सोज़ आवाज़ से गूँज उठी।

मुग़न्नी ने उसके सामने अपने एक पसंदीदा शायर की एक मुंतख़ब ग़ज़ल छेड़ दी जिस के ज़रिए वो अपनी अंदरोनी कैफ़ीयत का इज़हार भी कर सकता था।

ज़मीं वालों पे ये इश्क़-ए-सितम ऐ आसमान कब तक

बहुत नाज़ाँ है तू जिस पर वो दौर-ए-कामराँ कब तक

कहाँ तक बाग़बाँ का नाज़ उठाएंगे चमन वाले

रहेगा गुलशन-ए-उम्मीद बर्बाद ख़िज़ाँ कब तक

उसकी आवाज़ में एक अजीब सा जादू था जिस का उसे ख़ुद भी एहसास न था। आज तक जहाँ भी उसने अपनी आवाज़ का जादू जगाया था, वो हमेशा कामियाब-व-कामरान रहा था। अब तो उसने अपनी आवाज़ में एक नया जज़्बा शामिल कर लिया था। वो अपनी महबूबा के सामने बैठा था। उसे यक़ीन था, यहाँ भी वो कामियाब रहेगा। ये हसीना अपना दिल हार कर उसके क़दमों में रख देने के लिए ज़रूर मजबूर हो जाएगी। जब वो अशआर गा रहा था, उसकी आँखें जज़्बात की शिद्दत से लाल हो गई थीं। उधर सौदागर की बीवी की आँखें भी बार बार ग़मनाक हो जाती थीं लेकिन देखने वाले यही समझ रहे थे कि वो अपने शौहर को याद कर के आँसू बहा रही है। जब मुग़न्नी ने अगला शेर पढ़ा, तो सौदागर की बीवी की कैफ़ियत और भी ग़ैर होने लगी।

बुझाने से कहीं बुझने की है ये आतिश-ए-उलफ़त

अरे वो दीदा-ए-गिरियाँ ये मानी रायगाँ कब तक

मुग़न्नी ने पहले मिसरे को इतनी मर्तबा दोहराया, इस क़दर मस्ती से दोहराया कि हर मर्तबा उस से एक नया ही तअस्सुर उभरता चला गया। मुलाज़िमों को अब ये ख़दशा सताने लगा कि उनकी मालकिन कहीं बेहोश न हो जाए, इस लिए उन्होंने मुग़न्नी को ख़ामोश हो कर चले जाने का इशारा कर दिया लेकिन सौदागर की बीवी ने मुग़न्नी को जाने से रोक लिया और बोली।

मैं तुम से तन्हाई में कुछ बातें करना चाहती हूँ।

मुग़न्नी ने अपने सारे साथियों को वापिस भेज दिया और ख़ुद सौदागर की बीवी के क़दमों में झुक कर फिर से बैठ गया। बोला।

फ़रमइए मैं हाज़िर-ए-ख़िदमत हूँ।

सौदागर की बीवी की आँखें अभी तक आँसुओं से भरी हुई थीं। वो ख़ासी देर तक तो कुछ न कह सकी। आख़िर थरथराती हुई आवाज़ में बोली।

तुम्हारी आवाज़ में इस क़दर सोज़ क्यूँ है! क्या तुम किसी से मोहब्बत करते हो? मुग़न्नी ने जवाब दिया।

मेरे सर से मेरे वालदैन का साया बचपन से उठ गया था। मैं बहुत छोटी उम्र से जगह जगह घूम रहा हूँ। मौसीक़ी से मुझे ख़ास रग़बत है। इसी में मुझे ख़ास तसकीन मिलती है। अब से पहले मैंने किसी से मोहब्बत की है या नहीं। इसके मुतअल्लिक़ मैं यक़ीन से कुछ नहीं कह सकता। ये सही है कि मैंने औरतें बेशुमार देखी हैं। हसीन से हसीन तरीन औरतें, बादशाहों, अमीरों और सरदारों की महफ़िलों में हमेशा शरीक होता रहा हूँ। वहाँ औरतों की कमी नहीं रही है लेकिन मैं सच्चे दिल से इस बात का क़रार कर सकता हूँ कि हक़ीक़ी मोहब्बत का आग़ाज़ मुझे आप का ग़ाइबाना ज़िक्र सुन कर ही होने लगा था आज तो मुझे यूँ महसूस हुआ!

इस से आगे सौदागर की बीवी ने उसे न बोलने दिया, कहा।

बस, बस मैं समझ गई तुम क्या कहना चाहते हो लेकिन आइन्दा ऐसी बात ज़बान पर कभी मत लाना। समझ लो मैं अपने शौहर की पाक दामन बीवी हूँ। उसके अलावा मैं किसी भी दूसरे का ख़याल अपने दिल में नहीं ला सकती लेकिन तुम्हारे जज़्बात की मैं इस हद तक ज़रूर क़द्र करूंगी कि तुम कभी कभी यहाँ आ कर मुझे अपने गीत सुना जाया करो क्यूँकि इस से तुम्हारे जज़्बात को तसकीन हासिल होगी। ऐसी तसकीन यक़ीनन मुझे भी हासिल होगी क्यूँकि तुम्हारे गाने की वजह से मेरे दिल में मेरे शौहर की याद ताज़ा रहेगी। जब मेरा शौहर वापस आजाएगा तो उसे ये मालूम होगा कि उसकी ग़ैर हाज़िरी मैं तुमने अपनी मौसीक़ी के ज़रिए मेरे दिल में उसकी मोहब्बत को हमेशा जगाए रक्खा है तो वो बहुत ख़ुश होगा। बहुत मुम्किन है इस ख़िदमत के इवज़ वो तुम्हें इनामात-व-इकरामात से भी नवाज़े।

सौदागर के मुलाज़िम जो उनकी बातें पर्दों के पीछे से सुन रहे थे। अब पूरी तरह मुतमइन हो गए कि उनकी मालकिन अपने शौहर की मोहब्बत में मुकम्मल तौर पर सरशार है। इस से बे-वफ़ाई की तवक़्क़ो रखना अब बे कार होगा। चुनांचे जब मुग़न्नी ने सौदागर की बीवी की पेशकश क़ुबूल कर ली तो फिर उसके आने जाने पर किसी क़िस्म की पाबंदी न लगाई गई। मुग़न्नी क़रीब क़रीब रोज़ ही आने लगा और अब वो बड़ी आज़ादी से सौदागर की बीवी से तन्हाई में भी मिल लेता था उन्हें इस तरह एक दूसरे से मिलते हुए एक साल का अर्सा गुज़र गया लेकिन दोनों ने अभी तक एक दूसरे को नहीं छुवा था। मुग़न्नी इसी ग़म में दिन बदिन कमज़ोर होता गया। उसके चेहरे की ताज़गी रुख़्स्त होने लगी। लगता था उसे रात को कभी नींद नहीं आती है।

सौदागर की बीवी ये देख कर फ़िक्रमंद रहती थी लेकिन वो मुग़न्नी को अभी तक अपने सामने साफ़ इज़हार मोहब्बत करने की इजाज़त नहीं दे सकी थी। वो जानती थी आगे बढ़ने का नतीजा क्या होगा। जब मुग़न्नी को ये मालूम हो जाएगा कि उसके जिस्म पर पहने हुए भारी रेशमी लिबादे के नीचे उसकी कमर के निचले हिस्से पर लोहे का मज़बूत कमरबंद लगा हुआ है तो वो कितना मायूस होगा! हो सकता है उसके लिए ये सदमा नाक़ाबिल-ए-बर्दाश्त हो जाए और वो ख़ुदकुशी कर बैठे इसी लिए वो उसे अभी तक अपने जिस्म से दूर ही रखती आ रही थी।

एक दिन जब मुग़न्नी उसके साथ हसब-ए-मामूल तन्हा था और उसके सामने अपने इश्क़ का इज़्हार कर रहा था तो अचानक जज़्बात के हाथों बेक़ाबू हो गया और उसके क़दमों से लिपट कर ज़ार ज़ार रोने लगा। कहने लगा।

अब मेरे लिए ज़िंदा रहना न मुम्किन हो गया है। मैं आप को इस क़ैदख़ाने से निकाल कर ले जाने के लिए तैय्यार हूँ। बस आप के इशारे की देर है। अगर आप ने इनकार किया तो हो सकता है मैं ज़बरदस्ती उठा ले जाने की भी गुस्ताख़ी कर बैठूं।

इग़वा किए जाने का सुन कर सौदागर की बीवी अपने हसीन तरीन ख़्वाबों में खींची गई। इस क़िस्म के ख़्वाब उसने कई मर्तबा सोते जागते हुए देखे थे। उसने समझ लिया कि उसके ख़्वाबों के हक़ीक़त में बदल जाने की घड़ी आ पहुंची है लेकिन उसे फ़ौरन ही लोहे के कमरबंद का ख़याल आ गया। उस कमरबंद से छुटकारा पाना तो किसी तरह भी मुम्किन नहीं है।

मुग़नी को जब अपनी दरख़्वास्त का कोई जवाब न मिला तो वो और भी ग़मगीं हो गया। बे-खु़द स हो कर एक नई ग़ज़ल गाने पर मजबूर हो गया।

अब सहर का न इंतिज़ार करो

दामन-ए-शब को तार तार करो

ज़िंदगी रंज-व-ग़म का नाम सही

मिल गई है तो इसे प्यार करो

मौसीक़ी बड़ों बड़ों की कमज़ोरी होती है। कभी कभी तो ये अचानक ऐसा सैलाब बन जाती है जिस के सामने कई साबित क़दम भी डगमगा कर बह जाते हैं। मुग़नी समझ गया, अपनी महबूबा को वो अब अपने फ़न से ही शिकस्त दे सकेगा इस लिए उसने पूरी तरह अपने अंदर डूब कर एक लै निकाली।

हम से खो-ए-वफ़ा न छूटेगी

तुम कोई जब्र इख़्तियार करो

और चमकाओ आइना रुख़ का

ज़ुल्फ़ को और ताबदार करो

गाते गाते उसे काफ़ी देर हो गई। वो बेहाल हो गया। सौदागर की बीवी की भी यही हालत थी। आख़िर उस ने मुग़नी के सामने हथियार डाल दिए उसका हाथ पकड़ कर बोली।

मैं एतिराफ़ करती हूँ कि मैं भी तुम से मोहब्बत करती हूँ। ज़िंदगी भर करती रहूंगी लेकिन मैं किसी वजह से मजबूर भी हूँ, तुम नहीं जानते इस घर को छोड़कर भी मैं अपना आप तुम्हारे हवाले नहीं कर सकूँगी।

इसके बाद उस ने मुग़नी को लोहे के कमरबंद वाली बात भी बता दी जिस की चाबी उसका शौहर अपने साथ ले गया हुआ था। ये सुन कर मुग़नी हक्का बक्का सा रह गया उसे यक़ीन न आया जो कुछ उसकी महबूबा ने कहा था। उसने लिबास के ऊपर से नीचे के कमरबंद को छुआ तब ही उसे यक़ीन हो सका लेकिन कई लम्हों तक वो खड़ा सोचता रहा। उसके चेहरे पर कई लहरें आईं और गईं, आख़िर उसने ज़बान इस तरह खोली। मैं इस कमरबंद को काट कर फेंक दूंगा। अभी बाज़ार जा कर इतने तेज़ औज़ार लेकर आता हूँ जो पलक झपकते मैं इस ग़ैर इंसानी कमरबंद को काट देंगे।

ये सुन कर सौदागर की बीवी को ग़ुस्सा आ गया, बोली।

ये कहते हुए तुम्हें शर्म नहीं आती। क्या तुम्हारे ख़याल में जब तुम लोहे के कमरबंद को काट रहे होगे तो मैं तुम्हारे सामने कपड़े उतार कर खड़ी रहूँगी।

मुग़नी ने अपनी ग़लती के लिए फ़ौरन मअज़रत चाही लेकिन साथ ही उसने एक और तजवीज़ भी पेश कर दी। ये काम मैं अपने एक लोहार दोस्त के भी सपुर्द कर सकता हूँ। मैं उसकी आँखों पर पट्टी बांध दूँगा ताकि वो तुम्हारी हसीन कमर पर निगाह न डाल सके लेकिन वो अपने काम में इतना माहिर है कि आँखें बंद होने पर भी वो अपना काम हसब-ए-ख़्वाहिश अंजाम दे लेगा।

सौदागर की बीवी ने ये बात भी मंज़ूर न की और मुग़नी से कहा। जाओ मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो।

मुग़नी को वहाँ से जाते जाते एक एक और बात का ख़याल आया चुनांचे उसने पलट कर कहा, हसीन औरतों का सब से बड़ा दुश्मन उनका मोटापा होता है। अगर आप अपना वज़न कम करना शुरू कर दें तो आप के जिस्म की कशिश भी बरक़रार रहेगी और इस कमरबंद से भी निजात हासिल हो जाएगी।

सौदागर की बीवी अच्छी अच्छी मुर्ग़न ग़िज़ाओं की बड़ी दिलदादा थी। इस क़िस्म की तजवीज़ को वो किसी सूरत में क़ुबूल नहीं कर सकती थी। चमक कर बोली।

इस का मतलब ये होगा कि तुम्हारी ख़ातिर मैं ख़ुद को भूका मारूँ! खाना पीना छोड़ दूँ! लेकिन भूका प्यासा रहने से बीमार पड़ जाने का भी तो ख़तरा लाहक़ हो सकता है। फिर भला तुम मेरी तरफ़ नज़र उठा कर भी क्यूँ देखोगे। जाओ जाओ तुम्हारी एक भी तजवीज़ माक़ूल नहीं है।

मुग़नी का दिल भी टूट गया। बहुत अफ़्सुर्दा हो कर अब वो वहाँ से जाने वाला था कि पलट कर फिर आया और बोला।

ख़ुदा के लिए मेरी एक तजवीज़ पर ग़ौर ज़रूर फ़रमा लीजिए। क्या आप मुझे इस बात की इजाज़त दे सकती हैं कि मैं आप के सामने मुस्ल्स्ल कई रोज़ तक गाता रहूँ।? मुझे यक़ीन है अपनी मौसीक़ी की बदौलत मैं आप के बदन में एक ऐसी सनसनी पैदा कर देने में कामियाब हो जाऊँगा जिस से आप का कमरबंद ख़ुद ब-ख़ुद कमर से नीचे फिसल जाएगा। इंतिहाई हैजान के किसी भी लम्हे में ऐसा हो जाना मुम्किन है। आप को पता भी उस वक़्त लगेगा जब ये कमरबंद सरक कर आप के क़दमों में आ गिरेगा।

सौदागर की बीवी ने उसकी नई तजवीज़ को भी हंसी में उड़ा दिया। कहने लगी।

तुम पहले भी तो कई बार गाना सुना चुके हो। कभी ऐसा हो सका? मैं जानती हूँ तुम मुझे सिर्फ़ अफ़्सुर्दा बना सकते हो। किसी और बात में कामियाब नहीं हो सकते।

अब वो वहाँ से बिल्कुल ही मायूस हो कर चल दिया। फिर कई महीनों तक उसने पलट कर सौदागर की बीवी को अपनी सूरत न दिखाई लेकिन सौदागर की बीवी को अपने मुलाज़िमों के ज़रिए उसके बारे में ख़बरें मिलती रहीं कि वो गली कूचों में मारा मारा फिरता रहता है। अब उसे अपने तन बदन का होश भी नहीं रहता है। किसी की फ़र्माइश पर गाना भी नहीं गाता है। बस एक ख़ामोशी उसने इख़्तियार कर रक्खी है लोगों में ये भी मशहूर हो गया है कि वो सौदागर की बीवी के इश्क़ में मुबतिला है और वो दिन दूर नहीं जब वो बिल्कुल पागल हो जाएगा। आख़िरी बात सौदागर की बीवी के लिए ख़ासी परेशानकुन थी क्यूँकि इस से उसकी बदनामी हो रही थी लेकिन रफ़्ता रफ़्ता वो भी उसकी मोहब्बत में गिरफ़्तार होने लगी। उसे एहसास होने लगा कि मोहब्बत के मैदान में मुग़नी ज़्यादा साबित क़दम निकला और वही उस से सच्चा इश्क़ कर रहा है। अगर मर गया तो लोग हमेशा उसके चर्चे किया करेंगे लेकिन उसे कभी अच्छे नाम से याद नहीं किया जाएगा क्यूँकि मुग़नी की मौत का सबब वही बनेगी। इस मुआमले में थोड़ी सी क़ुर्बानी वो भी दे सके तो उसका नाम भी अमर हो सकता है। ये सब कुछ सोच कर सौदागर की बीवी ने फ़ाक़े करने का मंसूबा बना लिया। शुरू शुरू में तो उसने खाने पीने की मिक़दार में कमी की फिर ग़िजाइयत से भरपूर और लज़ीज़ चीज़ें तर्क कर दीं जिस से वो जल्द ही पतली हो गई। पुर-कशिश हो गई। आइने के सामने जा कर वो अपने आप को देखती तो ख़ुशी से फूले न समाती। कभी कभी उसका जी वो सारी मीठी और लज़ीज़ चीज़ें खाने को मचल उठता जो उसे हमेशा हमेशा मरगूब रह चुकी थी। वो चीज़ें उसके ख़्वाबों में भी आती थीं।

एक रोज़ वो अचानक अच्छे अच्छे ज़ाएक़ों को याद कर के रो पड़ी। उसने उसी दम अपने महबूब का ख़याल दिल से निकाल फेंका और अपने मुलाज़िमों को हुक्म दिया कि वो उसके सामने बेहतरीन क़िस्म के सारे खाने फ़ौरन हाज़िर करें। पहले तो नौकर बहुत हैरान हुए, क्यूँकि उसने एक अर्से से उम्दा क़िस्म के खानों की तरफ़ निगाह उठा कर नहीं देखा था लेकिन वो फ़ौरन ही दूध, घी, शहद और चीनी वग़ैरा से बनाए हुए क़िस्म क़िस्म के लज़ीज़ तरीन खाने लेकर हाज़िर हो गए जिन्हें देखते ही वो उन पर टूट सी पड़ी। खाते हुए वो दिल ही में ये अहद भी करती गई कि अब वो कभी भूका रहने की कोशिश नहीं करेगी। ज़िंदगी की बेहतरीन मसर्रत ऐसी ही लज़ीज़ ग़िज़ाओं के खाने में है।

कुछ ही दिनों में उसके जिस्म के कोसें फिर से भर गईं। जिन पर से ख़ुराक में कमी कर देने की वजह से गोश्त ग़ायब होने लग गया था और वो इस बात की क़ाएल हो गई कि किसी से इश्क़ करने के लिए भूका रहना क़तअन ज़रूरी नहीं है। मुग़नी भी अब शहर छोड़ कर जा चुका था। मालूम नहीं वो ज़िंदा भी था या नहीं!

एक रोज़ अचानक वही मुग़नी फिर उसके दरवाज़े पर हाज़िर हो गया। उसने मुलाक़ात की इजाज़त चाही। सौदागर की बीवी ने उसे एक मुद्दत से नहीं देखा था। उसने मुग़नी को फ़ौरन अंदर बुलवाया। मुग़नी ने आते ही उसके सामने एक नई तजवीज़ पेश कर दी।

मैं आप की ख़ातिर दूर दराज़ के इलाक़ों में फिरता रहा हूँ। मैं एक ऐसी जड़ी बूटी की तलाश में था। जिस के बारे में सुन रक्खा था कि उसके इस्तेमाल के साथ लज़ीज़ खानों से महरूम नहीं होना पड़ता लेकिन उस से बदन की फ़ालतू चर्बी भी कम होती जाती है।

सौदागर की बीवी उस वक़्त बड़े अच्छे मूड में थी। अपने सामने शकर चढ़े बादामों की एक प्लेट रखे बैठी थी। वो एक एक बादाम उठा कर मुँह में डालती और दाँतों के दरमियान आहिस्ता आहिस्ता पीसती और मुस्कुराती जाती थी।

अच्छा तो फिर तुम ने वो जड़ी बूटी हासिल कर ली?

मुग़नी ने जवाब दिया।

उस जुड़ी बूटी का सही पता एक बुढ़िया को था। उसे भी मैंने दूर उफ़्तादा एक गाँव से ढूंढ निकाला। वहाँ वो जादूगरनी के नाम से मशहूर है। उसने बे-शुमार अमीर-व-ग़रीब घरानों की ऐसी बहू बेटियों का बड़ी कामियाबी से इलाज किया है जो अच्छी ख़ुराकें खाने की वजह से बहुत फ़र्बा हो चुकी थीं और इस तरह अपनी दिलकशी से महरूम हो जाने पर अफ़्सुर्दा भी रहती थीं। उस बुढ़िया की दी हुई दवा से उन्हें अपने बदन की ख़ूबसूरती फिर से वापस मिल चुकी है और उनकी सेहत पर भी बुरा असर नहीं पड़ा है।

ये कह कर मुग़नी ने जेब में से एक छोटी सी डिबिया निकाली। सौदागर की बीवी ने ख़ुश हो कर वो डिबिया ले ली और थोड़ी सी दवा उसने उसी वक़्त चाट ली।

इसके बाद वो दिन में कई कई मर्तबा उसे इस्तेमाल करने लगी। दवा ने वाक़ई अपना असर दिखाया। वो कुछ ही रोज़ में दुबली हो गई। उसके बदन में जगह जगह भरा हुआ पिलपिला गोश्त ग़ायब हो गया।

एक दिन वो मुग़नी के साथ अपने मकान के पाइंबाग़ में तालाब के किनारे किनारे टहल रही थी कि अचानक उसकी कमर के साथ चिपा हुआ लोहे का कमरबंद सरक कर नीचे गिर पड़ा। पांव के पास गिरे हुए कमरबंद को उसने हैरत से देखा फिर मसर्रत की एक अजीब से जोश में मुब्तिला हो कर उसने कमरबंद को ज़ोर से ठोकर मारी। कमरबंद एक पेड़ के साथ जा टकराया और उसने ख़ुद को मुग़नी के हवाले कर दिया लेकिन उस वक़्त किसी ने दरवाज़े पर ज़ंजीर खटखटाई। उसके मुलाज़िम किसी ग़ैर मुल्की शहरी की आमद की ख़बर लेकर आए थे। उसने घबरा कर उस आदमी को बुलवा भेजा। पर्दे खिंचवा दिए गए। उसने पर्दे के अक़ब से उस ग़ैर मुल्की शख़्स को सर झुकाए खड़े हुए देखा जो अपने साथ कई संदूक़ भी लाया था। उसने कहा।

ये सारे संदूक़ हीरों और जवाहरात से भरे हुए हैं। इन्हें आप की ख़िदमत में पहुँचा देने का हुक्म आप के शौहर ने ही मुझे दिया था। उनका इंतिक़ाल हो चुका है। एक ज़हरीले साँप ने उन्हें डस लिया था। आप का नाम मरते दम तक उनकी ज़बान पर रहा। मरने से पहले उन्होंने एक और चीज़ भी आप तक पहुँचाने की हिदायत की थी। ये एक चाबी है।

सौदागर की बीवी ने पर्दे के पीछे से हाथ बढ़ा कर वो चाबी ले ली। ये वही चाबी थी जिस के साथ एक पर्चा भी बंधा हुआ था। जिस पर लिखा था,

मेरी प्यारी बीवी!

अब तुम आज़ाद हो

ख़ुदा हाफ़िज़!

वो चाबी सीने के साथ लगा कर ज़ोर ज़ोर से रोने लगी। मुग़नी ने जो इस ख़बर को सुन कर बहुत ख़ुश था, उसे समझाया।

अब तो आप मुकम्मल तौर पर आज़ाद हैं। कोई ख़तरा नहीं रह गया। अब हम शादी कर के हमेशा साथ रह सकते हैं।

लेकिन उसकी बात सुन कर सौदागर की बीवी को अचानक ग़ुस्सा आ गया। चिल्ला कर बोली।

निकल जाओ यहाँ से। अब कभी मत आना। मैं तुम्हारी सूरत तक देखना नहीं चाहती। मैं अपने प्यारे शौहर को कभी भुला न सकूँगी और बक़िया उम्र उसी की याद में गुज़ार दूंगी। ये मेरा एक मुक़द्दस फ़रीज़ा होगा।

ये कह कर रोते रोते उसने लोहे के कमरबंद को फिर से उठाया जिसे थोड़ी देर पहले इस ने ठोकर मार कर दूर फेंक दिया था। उस में चाबी लगा कर उसे खोला और अपनी कमर के गिर्द पहले से भी ज़्यादा सख़्ती से कस लिया और चाबी तालाब के अंदर फेंक दी।

मुग़नी दिल बर्दाश्ता हो कर वहाँ से चल दिया। उस हसीना को हासिल करने की अब उसके दिल में कोई उम्मीद नहीं रह गई थी। वो किसी दूर दराज़ के शहर में जा कर रहने लगा और वहाँ उसने कई साल गुज़ार दिए लेकिन महबूबा की याद उसके दिल से कभी न निकल सकी। वो अभी तक उसके दिल में बस्ती थी और उसे हमेशा बे-क़रार रखती थी।

एक रोज़ उसका एक शागिर्द जो उसी सौदागर की बीवी के शहर में रहता था, उस से मिलने के लिए गया तो मुग़नी ने सब से पहले अपनी महबूबा के बारे में सवाल किया।

तुम्हें सौदागर की बीवी का कुछ हाल मालूम है?

शागिर्द ने कहा,

उस्ताद क्या अर्ज़ करूँ! वो तो बड़ी अजीब-व-ग़रीब क़िस्म की औरत है। उसके मुतअल्लिक़ कई क़िस्से मशहूर हैं। मैंने तो उसे नहीं देखा है लेकिन जिन लोगों ने देखा है। वो कहते हैं कि वो पहले से बहुत ज़्यादा मोटी हो गई है और उसकी कमर में किसी वजह से बहुत शदीद दर्द रहता है लेकिन वो उसका इलाज भी नहीं कराती। अगरचे दर्द की शिद्दत से हमेशा तड़पा करती है। लोग यहाँ तक बताते हैं कि कभी कभी वो तालाब के किनारे जा बैठती है। उसने कई बार तालाब का सारा पानी ख़ारिज कर लिया है और तह में जमी हुई मिट्टी के ज़र्रे ज़र्रे को अपनी निगरानी में हटवा कर देखा है। मालूम नहीं कि वो किस चीज़ की तलाश में है। शायद कोई बहुत ही क़ीमती चीज़ होगी जो तालाब में गिर गई थी और अब उसे नहीं मिल रही है!

उसके शागिर्द ने कहा और मुग़नी की समझ में न आया कि वो हंसे या रोए।

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