Prabodh Kumar प्रबोध कुमार
प्रबोध कुमार श्रीवास्तव (8 जनवरी 1935-20 जनवरी 2021) मुंशी प्रेमचंद के दौहित्र थे। उनकी रचनाओं में उपन्यास 'निरीहों की दुनिया',कहानी संग्रह 'सी-सॉ' शामिल हैं । मानवशास्त्र में शिक्षा प्राप्त प्रबोध कुमार सागर विश्वविद्यालय एवं पंजाबी विश्वविद्यालय के साथ ही कैनबरा, पोलैंड के वारसा एवं जर्मनी के दो विश्वविद्यालयों में विजिटिंग प्रोफेसर रहे। अपने समय के जाने-माने मानवशास्त्री होने के साथ ही वे हिंदी साहित्यकारों में भी अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं। प्रबोध कुमार ने अनुशासनों के मध्य की रेखा को समाप्त करते हुए अंतरानुशासन को अपना विषय क्षेत्र बनाया। मानवशास्त्र एवं हिंदी साहित्य को एक दूसरे से पृथक करने के स्थान पर वे दोनों अनुशासनों को एक-दूसरे से सफलतापूर्वक जोड़ते हुए दिखते हैं।
जहां एक ओर जैविक मानवशास्त्र के 'जेनेटिक्स' क्षेत्र में उनका कार्य अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त है तो वहीं दूसरी ओर सामाजिक-सांस्कृतिक मानवविज्ञान की विशेषज्ञता का उपयोग अपनी साहित्यिक रचनाओं में करते हैं। इसी का परिणाम है कि वे वंचित समाज की पीड़ा एवं संघर्ष को पूरी संवेदना के साथ प्रस्तुत करते हैं। अपनी रचनाओं में गहन वर्णन एवं क्रिया को समग्रता के साथ प्रस्तुत करना उन्हें विशिष्ट बनाता है।
वे अपनी रचनाओं में कहीं भी हस्तक्षेप करते हुए नहीं दिखते बल्कि पृथक खड़े सूक्ष्म स्तर तक वर्णन करते है। उनकी कहानियों एवं उपन्यासों में मानवशास्त्र का प्रभाव गहराई तक नज़र आता है। वे दो भिन्न क्षेत्रों के मध्य सफलतापूर्वक सेतु का निर्माण करते हैं और यह निरंतरता दोनों क्षेत्रों को समृद्ध करती है।-वीरेन्द्र प्रताप यादव