Ramaswamy Krishnamurthy Kalki
रा. कृष्णमूर्ति 'कल्की'

तमिल साहित्य के ध्रुवतारा स्व. रा. कृष्णमूर्ति 'कल्की' का जन्म 1899 को तंजाऊर जिले के एक गाँव में हुआ और उनका निधन 5 दिसंबर, 1954 को हुआ। कल्की' युवावस्था से राष्ट्र प्रेमी और साहित्य सेवी रहे। वे अपने समय के सफल संपादक, साहित्यकार, कुशल समाज सेवी, सक्रिय देशभक्त और पथ-प्रदर्शक समीक्षक थे। 'कल्कीजी' ने गांधीजी की पुकार सुनकर असहयोग आंदोलन में भाग लिया, कॉलेज की पढ़ाई छोड़ दी और कांग्रेस के प्रचार कार्य में लगे। 1921 में जेल गए। 1941 में उन्होंने वैयक्तिक सत्याग्रह पर कड़ा कारावास पाया। 1923 में तमिल पत्रिका 'नवशक्ति के सह संपादक हए। 1928 में राजाजी के पत्र 'विमोचनम' के उप संपादक रहे। बाद में त मिल पत्रिका 'आनंद विकटन' के संपादक बने। 1941 में अपने मित्रवर श्री सदाशिवम् के सहयोग से निजी पत्रिका 'कल्की' (साप्ताहिक) शुरू की, जो आज उनकी अमर कीर्ति का आलोक स्तंभ है। स्वतंत्रता आंदोलन पर लिखे उनके उत्तम उपन्यास 'अलै ओशै' (लहरों की पुकार) पर साहित्य अकादेमी का पुरस्कार मिला। उनके उपन्यास, कहानी संग्रह, हास्य ग्रंथ, यात्रा संस्मरण, लेख, गांधी-गाथा (जीवनी) आदि उल्लेखनीय हैं।