जीवन परिचय और रचना संसार : रा. कृष्णमूर्ति 'कल्की' : रा. कृष्णमूर्ति 'कल्की'
Biography : Kalki Krishnamurthy
रामास्वामी कृष्णमूर्ति (९ सितम्बर १८९९ – ५ दिसम्बर १९५४), जो अपने उपनाम कल्कि (तमिल: கல்கி) से प्रसिद्ध थे, तमिलनाडु के एक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी, सामाज सुधारक, उपन्यासकार, लघुकथाकार, फ़िल्म तथा संगीत समीक्षक, पत्रकार, हास्यकार, व्यंग्यकार, पटकथालेखक, कला विशेषज्ञ तथा कवि थे। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास आलै–ओसै के लिये उन्हें सन १९५६ में साहित्य अकादमी पुरस्कार (तमिल) से मरणोपरांत सम्मानित किया गया। उनका उपनाम अपनी पत्नी (कल्याणि) और अपना (क्रिष्णमूर्ति) नामों का प्रत्ययों से लिया गया है- जिससे हमे 'कल्कि' नाम मिलता है, हिन्दु भगवान विष्णु का दसवें और अंतिम अवतार। उनका लेखन मे १२० से भी अधिक छोटी कहानियाँ, १० लघु उपन्यास, ५ उपन्यास, तीन ऐतिहासिक रोमान्स,अनेक संपादकीय और राजनीतिक लेखन तथा सैकड़ो फिल्म और संगीत समीक्षाऍ शामिल है।
प्रारंभिक जीवन
कृष्णमूर्ति के पिता रामास्वामी अय्यर, तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी के पुराने तंजौर जिले में पुट्टमंगलम गांव में एक मुनीम था। कृष्णमूर्ति का प्राथमिक शिक्षा गांव के स्कूल में हुआ था और बाद में उन्होनें मयीलाडूतुरै के नगर हाई स्कूल में भाग लिया, लेकिन १९२१ में,भारतीय असहयोग आन्दोलन मे शामिल होने के लिए महात्मा गांधी के बुलावे के जवाब, सीनियर हई स्कूल पूरा करने से पेहले ही, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से युक्त हो गये।
करियर
१९२३ में उन्होंने 'नवसक्थि', तमिल विद्वान और स्वतंत्रता सेनानी श्री वी. कल्याणसुन्दरम (जो "श्री वी. का" के रूप में जाने जाते थे) द्वारा संपादित एक तमिल पत्रिका में उप-संपादक के रूप में शामिल हो गए। कृष्णमूर्ति की पहली पुस्तक १९२८ में प्रकाशित किया गया था और १९२८ में उन्होंने नवसक्थि छोड़कर सेलम जिले में तिरुचेंगोड में गांधी आश्रम में चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के साथ रहने लगे तथा उसे 'विमोचनम' नामक एक (निषेध का प्रचार करने वाला) तमिल पत्रिका को संपादित करने मे मदद की। सन् 1931 में उन्हें फिर से छः महीने के लिए जेल में डाल दिया गया था। अगले साल कृष्णमूर्ति 'आनंद विकटन'- एस. एस वासन द्वारा संपादित और प्रकाशित एक हास्य साप्ताहिक में शामिल हो गए। राजनीति, साहित्य, संगीत और कला के अन्य रूपों पर कृष्णमूर्ति का मजाकिया, तीक्ष्ण टिप्पणियां अपने पाठकों के मध्य उन्हें प्रसिद्ध बना दिया। वह इतने पर 'कल्कि', 'रा की', 'तमिल थेनी', 'कर्नाटकम' आदि उपनामों से लिखना शुरू कर दिया। विकटन में अपनी कई छोटी कहानियों और (धारावाहिकों के रूप में) उपन्यासों प्रकाशित हुई। १९४१ में उन्होंने 'आनंद विकटन' छोड़कर आजादी की लड़ाई में फिर से शामिल हो गए और उन्हें गिरफ्तार कर दिया गया। उनकी रिहाई के तीन महीने के बाद, वह सदासिवम के साथ 'कल्कि' नामक पत्रिका शुरू किया। क्रिष्णमूर्ति अपनी मृत्यु (५ दिसंबर १९५४) तक इसके संपादक थे। साठ साल पहले, जब साक्षरता का स्तर कम था और अंग्रेजी शिक्षित तमिलों तमिल में लेखन को तुच्छ मानते थे, 'कल्कि' का संचलन 71,000 प्रतियों को छुआ- जो देश में किसी भी साप्ताहिक के लिए सबसे बड़ा था।
भले ही कल्कि के ऐतिहासिक रोमांस कथाएँ पल्लव और चोल राजवंशों की गौरवशाली तमिल जीवन को पुनः बहला कर, हज़ारों पाठकों के दिलों को कब्जा कर लिया है,पर आलोचकों की राय उनके साहित्यिक योग्यता के आधार पर विभाजित किया गया है। एक ओर, आलोचकों के अभिप्राय यह है कि कल्कि के उपन्यासों रॉयल्टी पर बहुत महत्तव देकर, आम लोगों पर ज़ोर नहीं लगाया। और उनके कथानकों मे जो अचानक घुमाव और मोड़ है, वे कहानियों को अवास्तविक बना देते है। हालांकि, हाल के वर्षों में, विशेष रूप से मार्क्सवादी आलोचकों के बीच, कल्कि के एक फिर से मूल्यांकन किया गया है। कल्कि के जन्म शताब्दी मनाने के लिए, सेम्मालर, तमिलनाडु प्रगतिशील लेखक संघ की मासिक अंग, एक विशेष नंबर प्रकाशित किये। कल्कि जी ने मीरा फिल्म की पाटकथा और उसका कुछ गीत भी लिखे थे, जिसमे एम एस सुब्बलक्ष्मी ने अभिनय किया।
तमिल संगीत के हितों के लिए कल्कि का योगदान भी उल्लेखनीय है। उन्होंने कहा कि कर्नाटक संगीतकारों उनके संगीत समारोहों में और अधिक तमिल गीने को शामिल करना है और अनेक गाने की नेतृत्व किया। गांधी की आत्मकथा, 'ध स्टोरी ऑफ मै एक्स्पेरिमेंन्टस विथ ट्रुथ' (The Story of My Experiments with Truth) उनकी तमिल अनुवाद 'सत्य सोदनै' के रूप में प्रकाशित किया गया था।
उपन्यास
कल्कि जी अपने उपन्यास 'अलै ओसै' (जो १९४८-१९४९ में कल्कि पत्रिका में धारावाहिक था और बाद में १९६३ को उपन्यास के रूप में प्रकाशित किया गया था) को अपना उच्चतम रचना मानते थे। उन्हें, उस उपन्यास के लिये, १९५६ में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। यह कहानी सामाजिक सुधारों और राजनीति के साथ आजादी की लड़ाई पर केन्द्रित है।
उनकी अन्य सामाजिक उपन्यासों में 'त्याग भूमि' (बलिदान की भूमि) और 'कल्वनिन् कादली' (दस्यु के प्रेमी) शामिल हैं; दोनों बाद में फिल्माए गए थे। 'त्याग भूमि' की पृष्ठभूमि के रूप में नमक सत्याग्रह है जहाँ महिलाओं के अधिकारों और अस्पृश्यता के बारे लिखा गया है। यह एक ही समय में आनंद विकटन पत्रिका में धारावाहिक था और फिल्माया भी जा रहा था, तथा उस फिल्म की दृश्यों के तस्वीरें चित्रण के रूप में इस्तेमाल किए गए थे। छह सप्ताह के लिए सफल रूप चलाने के बाद, के.सुब्रमणियम द्वारा निर्देशित यह फिल्म पर औपनिवेशिक सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया गया था। उसका कारण यह था कि वह फिल्म लोगों को परोक्ष रूप से स्वतंत्रता के लिए लड़ने के लिए प्रेरित कर रहा था। कल्कि के लगभग सभी उपन्यासों पहली बार धारावाहिक रूप में और उसके बाद में ही पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया।
कल्कि का 'पोंनियिन सेलवन' (पोंनि का बेठा) गौरवशाली चोल राजवंश की एक तस्वीर देता है जबकि 'पार्थीबन् कनवु' (पार्थीबन् का सपना) और 'सिवगामियिन् सभधम्' (सिवगामि की प्रतिज्ञा), सातवीं शताब्दी के महान पल्लव राजवंश पर केन्द्रित थी। दोनों अवधियों तमिलनाडु के इतिहास के कई पहलुओं का मिश्रण हैं जैसे धर्म, साहित्य, कला, स्थापत्य कला आदि। कल्कि इन पहलुओं का एक गहरी छात्र थे जिसे उन्होने उत्कीर्ण लेख संबंधी शिलालेख और सिक्का स्रोतों के माध्यम से सीखा और इतिहास के इन सभी तथ्यों के साथ अपने उपन्यासों को समृद्ध किया। कल्कि को 'पार्थीबन् कनवु' और 'सिवगामियिन् सभधम्' लिखने की प्रेरणा तब मिली जब वे रासिकमनि टि.के.सी के साथ महाबलीपुरम के समुद्र के किनारे पर घूम रहे थे; जहाँ उन्होने अपने मानसिक दृष्टि में एक तरफ योद्धाओं को ले जाने कई हज़ारों नावों और जहाजों, और दूसरे पक्ष पर अन्य लोगों, वास्तुकारों, अय्यनार, सिवगामि,महेन्द्रवर्मर और ममल्लार को देखा। उसके बारह साल के बाद सिवगामियिन् सभधम् खत्म होने तक, उसके दिल में वह दृष्टि एक गहरी और स्थायी छाप छोड़ दिया था।
कल्कि में ऐतिहासिक और गैर- ऐतिहासिक घटनाओं, ऐतिहासिक और गैर- ऐतिहासिक पात्रों और कितना उपन्यास के इतिहास के लिए बकाया वर्गीकृत करने के लिए प्रतिभा थी। सिवगामियिन् सभधम की प्रस्तावना तथा पोंनियिन सेल्वन का उपसंहार मे वह तथ्य और कल्पना का प्रतिशत बताते हैं। इतिहास में कल्कि के हित, अपने ऐतिहासिक उपन्यासों की सुविधाओं और उनके लोकप्रियता, दूसरों को इस विशाल और नए क्षेत्र में प्रवेश करने और श्रेष्ठ कृत्य योगदान करने के लिए प्रेरित किया है।
सम्मान
कल्कि क्रिष्णमूर्ति जी के सम्मान में डाक टिकट की जारी उनका शताब्दी समारोह का मुख्य आकर्षण था। तमिलनाडु सरकार कल्कि के कार्यों को राष्ट्रीयकरण करने का निर्णय लिया है, जिससे अब प्रकाशकों कल्कि जी के रचनाओं को प्रतिमुद्रण कर सकते हैं। कल्कि क्रिष्णमूर्ति को १९५३ में भारतीय फाइन आर्ट्स सोसायटी द्वारा 'संगीत कलासिखामणि' पुरस्कार प्रदान किया गया।
मृत्यु
कल्कि क्रिष्णमूर्ति का मृत्यु ५ दिसंबर १९५४ (५५ उम्र) को चेन्नै में यक्ष्मा के कारण हुई थी। यह ज़रूरी से कह सकते है कि कल्कि जी अपनी लेखनी के माध्यम से सदा अमर रहेंगे।
कृतियाँ : सामाजिक उपन्यास
कळ्वऩिऩ् कातलि (1937), तियाकपूमि (1938-1939), मकुटपति (1942), अपलैयिऩ् कण्णीर् (1947), चोलैमलै इळवरचि (1947), आलै–ओसै (1948), तेवकियिऩ् कणवऩ् (1950), मोकिऩित्तीवु (1950), पॊय्माऩ् करटु (1951), पुऩ्ऩैवऩत्तुप् पुलि (1952), अमर तारा (1954),
ऐतिहासिक उपन्यास
पार्त्तिपऩ् कऩवु (1941 - 1943), शिवगामियिन् चपतम् (1944 – 1946), पॊऩ्ऩियिऩ् चॆल्वऩ् (1951 – 1954),
लघुकथा
चुपत्तिरैयिऩ् चकोतरऩ्, ऒऱ्ऱै रोजा, तीप्पिटित्त कुटिचैकळ्, पुतु ओवर्चियर्, वस्तातु वेणु, अमर वाऴ्वु, चुण्टुविऩ् चन्नियाचम्, तिरुटऩ् मकऩ् तिरुटऩ्, इमयमलै ऎंकळ् मलै, पॊंकुमांकटल्, मास्टर् मॆतुवटै, पुष्पप् पल्लक्कु, पिरपल नट्चत्तिरम्, पित्तळै ऒट्टियाणम्, अरुणाचलत्तिऩ् अलुवल्, परिचल् तुऱै, सुचीला ऎम्. ए., कमलाविऩ् कल्याणम्, तऱ्कॊलै, ऎस्. ऎस्. मेऩका, चारतैयिऩ् तन्तिरम्, कवर्ऩर् विजयम्, नम्पर्, ऒऩ्पतु कुऴि निलम्, पुऩ्ऩैवऩत्तुप् पुलि, तिरुवऴुन्तूर् चिवक्कॊऴुन्तु, जमीऩ्तार् मकऩ्, मयिलैक् काळै, रंकतुर्क्कम् राजा, इटिन्त कोट्टै, मयिल्विऴि माऩ्, नाटकक्कारि, "तप्पिलि कप्", कणैयाऴियिऩ् कऩवु,, केतारियिऩ् तायार्, कान्तिमतियिऩ् कातलऩ्, चिरंचीविक् कतै, स्रीकान्तऩ् पुऩर्जऩ्मम्, पाऴटैन्त पंकळा, चन्तिरमति, पोलीस् विरुन्तु, कैतियिऩ् पिरार्त्तऩै, कारिरुळिल् ऒरु मिऩ्ऩल्, तन्तैयुम् मकऩुम्, पवाऩि, पि. ए, पि. ऎल्, कटितमुम् कण्णीरुम्, वैर मोतिरम्, वीणै पवाऩि, तूक्कुत् तण्टऩै, ऎऩ् तॆय्वम्, ऎजमाऩ विचुवाचम्, इतु ऎऩ्ऩ चॊर्क्कम्, कैलाचमय्यर् कापरा, लंचम् वांकातवऩ्, सिऩिमाक् कतै, ऎंकळ् ऊर् चंकीतप् पोट्टि, रंकूऩ् माप्पिळ्ळै, तेवकियिऩ् कणवऩ्, पाल जोचियर्, माटत्तेवऩ् चुऩै, कातऱाक् कळ्ळऩ्, मालतियिऩ् तन्तै, वीटु तेटुम् पटलम्, नीण्ट मुकवुरै, पांकर् विनायकराव्, तॆय्वयाऩै, कोविन्तऩुम् वीरप्पऩुम्, चिऩ्ऩत्तम्पियुम् तिरुटर्कळुम्, वितूषकऩ् चिऩ्ऩुमुतलि, अरचूर् पंचायत्तु, कवर्ऩर् वण्टि, तण्टऩै यारुक्कु?, चुयनलम्, पुलि राजा, विष मन्तिरम् ।