नहले पर दहला (कहानी) : रा. कृष्णमूर्ति 'कल्की'

Nehle Par Dehla (Tamil Story in Hindi) : Kalki Krishnamurthy

सधवाओं की मदद के लिए किसी संस्था सभा या समाज की स्थापना क्यों नहीं होती? ऐसा विचार कल अचानक ही मेरे मन में उठा । जब मैं एक पत्रिका में विधवाओं की दशा का मार्मिक चित्र जिसे किसी परोपकारी व्यक्ति ने लिखा था, लेखनुमा चिट्ठी पढ़ रहा था । तभी यह विचार मेरे मन में उदित हुआ । ऐसा नहीं है कि मैं विधवाओं की लाचारी और उनके कष्टों से वाकिफ नहीं हूँ । उनकी हालत को सोच-सोचकर ढेरों आँसू मैंने बहाए हैं परंतु जैसा मैंने पहले कहा है कल अकारण ही मुझे सधवाओं पर तरस आ गया ।

लोग विधवाओं को अस्तित्वहीन मानते हैं फिर भी क्या कभी किसी ने उनकी शक्ति के बारे में सोचा है? अगर ऐसा कहा जाए कि निर्माण एवं विनाश दोनों की अपरिमित शक्ति उनमें है तो वह सौ फीसदी सही होगा।

मान लीजिए, आपके घर में शादी होने वाली है । सगाई का सगन लिए आप एक साथ मिलकर जा रहे हैं । आपके शहर में कोई विधवा आपकी विरोधी है तो वह शादी रुकवा सकती है। उस विधवा को कोई विशेष षड्यंत्र रचाने की आवश्यकता नहीं पड़ती । सगाई के लिए जब आप निकल रहे हों तो उसका आपके सामने आ जाना ही काफी है । आपने जितनी भी मेहनत की होगी । सब पर पानी फिर जाएगा । शादी रुक जाएगी। अब आप ही कहिए सधवाओं के उद्धार के लिए एक समिति सभा या समाज की आवश्यकता है कि नहीं..?

ब्राह्मण वर्ग से संघर्ष करने वाले अब्राह्मण वर्ग को एक चेतावनी । ब्राह्मणों के साथ झगड़ा मोल लेने के पूर्व आपको तीन बार सोच लेना चाहिए। कोई भी ब्राह्मण आपके परिवार के शुभकार्य में बाधा डाल सकता है । इसके लिए उसे अपने लठैत को लाने की जरूरत नहीं पड़ती । आपके प्रस्थान का समय उसे पता हो तो यही काफी है । आपकी आशा निराशा में बदल जाएगी ।

ओ....चेट्टीयार व्यापारी तुम्हें ब्राह्मणों से जलने की आवश्यकता नहीं.. उनकी अतिरिक्त शक्ति तुम्हारे अंतर में भी है। परंतु तुम्हें तेल भरी गागर सिर पर ढोनी होगी। तुम्हारे पड़ोसी की तुमसे नहीं बनती है न...? वे आज पहली बार तिल का व्यापार करने घर से शुभमुहूर्त देखकर प्रस्थान कर रहे हैं। अपने घर के चबूतरे पर बैठ दीवार पर बने छिद्र से देखो।

हा... वे घर से चलने को उद्यत हुए है । पैरों में चप्पल और हाथ में छाता है। बस तेल भरी गागर सिर पर ढोए वहाँ चले आओ । उनका मुखमंडल क्यों इतना मुरझा गया है.. वे क्यों क्यों भीतर चले गए हैं? उन्हें अब तिल भर भी सन्देह नहीं रहा कि इस वर्ष व्यापार में हानि ही होगी।

ये मूक प्राणी हैं । इन मूक प्राणियों का मानव के जीवन यापन में कितना बड़ा हाथ है; आप जानते हैं? गरुड़ दर्शन की महिमा का बखान करने लगूं तो इसका अन्त ही न हो । परंतु एक बात का उल्लेख तो यहाँ करना ही होगा कि बिना गरुड़ दर्शन के हमारे यहाँ विवाह की रस्म कभी पूरी नहीं होती । विचारणीय यह है कि हमारे यहाँ सधवाओं से ज्यादा विधवाओं की संख्या है। उस पर, अगर कोई प्रस्थान करने के पूर्व यदि कोई बाहर आ जाए तो शक होने लगता है कि क्या यहाँ एक भी सुमंगली नहीं है। करीब आधे घंटे के इंतजार के बाद कोई अमंगली विधवा आती दिखाई न दे तो झट से दौड़ते हुए सड़क पार करनी पड़ती है ।

संसार में कर्णमधुर स्वर किसका है पूछे जाने पर मैं तो गधे की आवाज ही कहूँगा । आप जरूर हंसेंगे; परंतु क्या आप जानते हैं कि गधे की आवाज के समान अच्छा शगुन और कुछ नहीं होता । जीवन सफल बनाने में यदि गधे की आवाज कारण बनती है तो वह मधुर और संगीतमय क्यों नहीं होगी...? गर्दभ के व्यक्तित्व की महानता इसी में है। जीवन में जो अक्सर असफल होते रहते हैं वे मेरी बात ध्यान से पढ़ें । गधे पालने वाले धोबी के घर के नजदीक अपना घर बना लें । सफलता उनके कदम चूमेगी । घुड़दौड़ में अक्सर पैसे लगाकर हारने वाले तृतीया के चाँद की तरह मुँह लटकाए घर लौटने वाले मित्रों को एक नसीहत देना चाहता हूँ । आजकल कुछ धनी लोग बिल्ली का बच्चा, खरगोश का बच्चा, कुत्ते का पिल्ला आदि प्यार से पालते हैं । वे अज्ञानी हैं । आप भगीरथ प्रयत्न कर एक लोमड़ी पकड़ लाएं और उसे कटघरे में बंद कर दें । प्रतिदिन सुबह उसकी शक्ल देखकर काम प्रारंभ करें । अगर आप ऐसे में नहीं जीते तो.. मुझसे... नहीं... नहीं.. लोमड़ी से पूछे । पर एक बात का ध्यान रखें आप लोमड़ी की शक्ल देखकर घर से तो जरूर निकलें मगर, अगर बिल्ली रास्ता काट गई तो... आपकी असफलता का दोषी न तो मैं होऊँगा न लोमड़ी। अत: घर में कोई बिल्ली का बच्चा हो तो उसे तुरंत खदेड़ दें ।

इतना कुछ कह देने के बाद अगर मैं अपने व्यक्तिगत अनुभव का जिक्र न करूँ तो मेरा मन कैसे मानेगा...?

कॉलेज के दिनों में मुझे चाचा के यहाँ रहना पड़ा । उनका बेटा मणि सैकेण्ड फार्म में पड़ता था । इकलौता बेटा होने के नाते चाची को अपने बेटे से अत्यधिक लगाव था । साथ ही वह शुभ-अशुभ आदि पर खूब विश्वास करती थी । स्कूल भेजते वक्त भी शगुन देखकर ही उसे भेजती । आम दिनों में ऐसा व्यवहार था तो सोचकर देखिए कि परीक्षा के दिनों में क्या हाल होता होगा । पहले दिन अंग्रेजी का पर्चा था । मेरी की थी सो मैं घर पर ही था । चाची ने हुतगति से घर को झाड़ा-बुहारा, खाना बनाया बेटे को तैयार किया और उसे खाना भी खिला दिया । तब तक दस बज गए । बेटे को घर के भीतर ठहरने को कहकर स्वयं बाहर जाकर देखने लगी । सारा वातावरण अपने शगुन के अनुकूल पाकर उसने झट बेटे को बुलाया ‘जल्दी आ बेटे.. बाहर कोई नहीं... दौड़कर आ...।'

बेटा जरा सुस्त तबीयत का था । जब तक वह बाहर आया चाची ने कहा.... भीतर चला जा । थोड़ा पानी पी ले...।'

जब मैं बाहर आया तो मैंने देखा कि एक विधवा गली के मोड़ पर मुड़ रही थी। थोड़ी देर बाद बेटा जब बाहर आया तो एक ब्राह्मण सामने से आ रहा था । यूँ तो मेरी चाची ब्राह्मणों का बहुत सम्मान करती है पर उस दिन चाची ने उस ब्राह्मण को इतने शाप दिए कि उनमें से एक भी शाप उसे लग जाए तो जिस कंपनी में उन्होंने जीवन बीमा करवाया होगा उस कंपनी का तो दिवाला ही निकल जाएगा । तब तक दस बजकर बीस मिनट हो गए थे । अंत में चाची ने पुकार लगाई...'जल्दी आ बेटे..' । पानी का घड़ा उठाए सुमंगली आ रही है... अच्छा शगुन है ।

बेटा जल्दी-जल्दी बाहर आया । वह सहर्ष बोली...

'मेरा बेटा सौ में से सौ अंक लाएगा।'

मेरे मन में शंका बनी रही । मैंने कतई यह नहीं सोचा था कि शगुन का फल ऐसा होता होगा । थोड़ी देर में ही लड़का उल्टे पैरों लौट आया । हम दोनों भी चौंक पड़े । हम दोनों ने एक साथ पूछा, 'क्या हुआ है...?'

'मेरे पहुँचने तक घंटी बजे पन्द्रह मिनट हो चुके थे । इसलिए मुझे परीक्षा में बैठने की इजाजत नहीं दी गई । बेटे ने कहा । चाची नाराज हो जाएगी इसका एहसास होते हुए भी मैं अपनी हंसी नहीं रोक पाया । इस सत्य घटना का ब्यौरा देने के बाद एक पुरानी घटना का उल्लेख न करूँ यह कैसे हो सकता है..?

“किसी ने एक राजा को सूचना दी थी कि पौ फटने के पहले कौवे का जोड़ा देखा जाए तो अच्छा शगुन होता है । राजा ने सेवक को आज्ञा दी कि उसे ऐसे स्थान की सूचना दे जहाँ कौवे का जोड़ा बैठा हो । सेवक ने पौ फटने के पूर्व कौवे का एक जोड़ा एक स्थान पर देखा और दौड़ता हुआ राजा के पास जाकर सूचना दी । राजा वहाँ पर पहुँचे कि इससे पहले कौवे का जोड़ा उड़ गया । राजा ने उस सेवक की खूब पिटाई की । पिटे हुए सेवक ने राजा से कहा- 'महाराज, पौ फटने से पहले मैंने कौवे का जोड़ा देखा और उसका फल उसे मिल गया है। आज का जमाना होता तो राजा उसके कथन को 'अभद्र व्यवहार' कहकर नौकरी से बर्खास्त कर देता, निकाल देता, परंतु यह घटना उन दिनों घटी थी; राजा शर्मिंदा हुआ और उसने सेवक से माफी मांगी।

मेरे कहने का मतलब यह कदापि नहीं है कि शगुन मानना अज्ञानता है । जरा सब कीजिए । हड़बड़ी करने वाले औवेयार या किसी अन्य व्यक्ति के मुँह से सुनी बात याद आती है । मेरा विचार यह है कि शगुन देखना ही काफी नहीं होता दिन नक्षत्र; तिथि बार, राहुकाल उस घड़ी का बुरा समय... आदि पर भी गौर करना होगा।

मैं अपने पूर्वजों की दिशा (दिशा का ज्ञान नहीं) की ओर उन्मुख हो हाथ जोड़ नमन करता हूँ । उन्होंने हमारा कितना भला किया है। 365 दिनों में 300 दिनों की छुट्टी दिलवाई है। आज तो सप्ताह में एक रविवार को भी स्त्री मिलनी मुश्किल होती है। लेकिन हमारे पूर्वजों ने कितना बढ़िया काम किया था देखिए न ।

एक महीने में अमावस्या नवमी तिथि आदि में शुभकार्य करना वर्जित है । फिर बरणी, कार्तिकेय नक्षत्र तथा शुक्र, शनि तथा मंगलवार.. आह... मंगलवार को अमंगल दिवस करते हुए आपने नहीं सुना...? इसके अलावा श्राद्ध, अशुभ, दिन महीना नक्षत्र वार, योग सिद्धि सब मिल जाएँ तो उसमें भी राहुकाल त्याज्य माना जाता है । इतनी बाधाओं के बावजूद अगर कोई शुभकार्य प्रारंभ करे और काम शुरू होते ही कोई छींक दे तो सोच लो कि सब गुड गोबर हो गया । उस दिन तो छुट्टी ही समझो । इस तरह के जंजालों से भरा था हमारा अतीत । इसकी याद आने पर मुँह से लार टपकती है।

एक बात का मुझे शक है । आज से करीब एक सौ साठ वर्ष पूर्व क्लाइव नामक एक बदमाश लड़का हुआ करता था । रोजगार की तलाश में इंग्लैंड से भारत आया था । क्या उसने दिन, नक्षत्र राहुकाल आदि देखकर प्रस्थान किया होगा? क्या उसने भारत में ब्रिटिश राज्य की मजबूती से स्थापना नहीं की? उसके लगाए उस वृक्ष को जड़ से उखाड़ फेंकने का काम विरोधी और उग्रवादी परिश्रमी वर्ग, जाति भेदभाव को मानने वाला वर्ग कांग्रेस के वीर खिलाफत आंदोलन बम बनाने वाला वर्ग और ऐसे अन्य कई लोगों ने कितना प्रयास किया पर क्या वे उसे हिला पाए? क्यों नहीं इस देश के राष्ट्रप्रेमी नृप हर रोज या तो पंचांग देखते या कौवे का शगुन देखते रहे...? वे अपना देश परायों को सौंपकर क्यों सड़क पार आ गए । क्या उनके दरबार में शास्त्री पंडित ज्योतिषी पारम्परिक रूप से आश्रय प्राप्त करते हुए बड़ी संख्या में नहीं जी रहे थे?

पाठक इस लेख की इतनी प्रशंसा करते हैं तो इसका एक प्रमुख कारण है । वह यह है कि ये लेख कोई उपदेश नहीं देता । अत: आप जो कृतज्ञता ज्ञापित कर रहे है उसे मैं तहे दिल से स्वीकारता हूँ। उसके लिए शगुन रुकावट नहीं बन सकता।

(अनुवाद : डॉ कमला विश्वनाथन)