प्लेग (फ्रेंच उपन्यास) : अल्बैर कामू; अनवादक : शिवदान सिंह चौहान, विजय चौहान
The Plague (French Novel in Hindi) : Albert Camus
दूसरा भाग : 5
दूसरे लोग भी, मिसाल के लिए रेम्बर्त, इस बढ़ती हुई परेशानी के वातावरण से मुक्ति पाने की कोशिशें कर रहे थे, लेकिन ज्यादा चतुराई और धैर्य के साथ। हालाँकि उन्हें भी अपनी कोशिशों में ज्यादा कामयाबी नहीं मिली थी। कुछ दिन तक रेम्बर्त लगातार अफ़सरों से संघर्ष करता रहा। हमेशा से उसका ख़याल था कि धैर्य और सहनशीलता से ही कामयाबी हासिल हो सकती है और एक माने में संकट के मौके पर रसूख और पहुँच ही काम आती है। इसलिए वह लगातार सभी तरह के अफ़सरों और ऐसे लोगों से मिलता रहा जिनके रसूख से साधारण परिस्थितियों में बहुत से काम हो सकते थे। लेकिन संकट के इन दिनों में ऐसे रसूख का कोई फायदा नहीं था। अफ़सरों में से अधिकांश लोग ऐसे थे जिनके विचार सिर्फ निर्यात, बैंकिंग, फलों और शराब के व्यापार के बारे में बुदधिमत्तापूर्ण और सुनिश्चित थे। जहाँ तक बीमों, गलत ढंग से लिखे गए समझौतों की व्याख्या और ऐसे कई मामलों का सवाल था उनकी योग्यता साबित हो चुकी थी; उनके पास ऊँची योग्यताएँ थीं और उनके इरादे भी नेक मालूम होते थे। दरअसल उनकी यही चीज़ मिलने वालों को सबसे ज़्यादा प्रभावित करती थी-उनकी नेकनीयती। लेकिन जहाँ तक प्लेग का सम्बन्ध था, उनकी योग्यता और कार्य-कुशलता न होने के बराबर थी।
खैर, रेम्बर्त को जब भी मौक़ा मिला वह इन सब लोगों से मिला और अपना मामला पेश किया। उसकी दलीलों का एक ही सारांश था; वह हमारे शहर में परदेसी था इसलिए उसकी प्रार्थना पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाना चाहिए था। आमतौर पर सब लोग फ़ौरन उसकी इस दलील का समर्थन करते थे, लेकिन वे साथ ही यह भी कहते थे कि रेम्बर्त-जैसे कई और लोग भी शहर में मौजूद हैं इसलिए उसकी स्थिति में कोई ऐसी विशेषता नहीं है जैसा कि वह सोचता है। इसके जवाब में रेम्बर्त कह सकता था कि इससे उसकी दलील पर कोई असर नहीं पड़ता। इस पर रेम्बर्त को बताया जाता था कि इस बात का असर ज़रूर पड़ता है क्योंकि अधिकारियों की परिस्थिति पहले से ही कठिन है, और वे किसी के प्रति पक्षपात नहीं करना चाहते, वरना उन्हें डर है कि एक 'मिसाल' कायम हो जाएगी इस शब्द को वे बड़ी नफ़रत से इस्तेमाल करते थे।
डॉक्टर रियो से बातचीत के दौरान रेम्बर्त ने बताया कि वह किन-किन लोगों से मिल चुका है। रेम्बर्त ने उन्हें कई श्रेणियों में बाँटा था। जो लोग ऊपर लिखी हुई दलीलें देते थे उन्हें वह ज़िद्दी कहता था। इस श्रेणी के अलावा तसल्ली देने वालों की श्रेणी थी जो उसे यक़ीन दिलाते थे कि मौजूदा स्थिति ज़्यादा दिन तक नहीं चल सकती। जब रेम्बर्त ने उनसे ठोस सुझाव देने के लिए कहा तो उन्होंने यह कहकर उसे टरका दिया कि वह क्षणिक असुविधा के कारण व्यर्थ ही इतनी हाय-तौबा मचा रहा है। कुछ बहुत बड़े लोग थे जिन्होंने रेम्बर्त से कहा कि वह संक्षेप में अपना मसला लिखकर छोड़ जाए, उचित समय पर उसकी अरजी पर फैसला किया जाएगा। कुछ अफ़सर उसके साथ खिलवाड़ करते थे और असली सवाल का जवाब देने के बजाय उसे ख़ाली मकानों का पता बताते थे और कहते थे कि वे पुलिस की मदद से उसके लिए रहने की जगह दिला सकते हैं। कुछ अफ़सर तो जैसे लाल फीते के व्यापारी थे, जिन्होंने रेम्बर्त से फ़ॉर्म भरवाकर उसे फ़ौरन फ़ाइल में रख दिया; काम के बोझ से पीड़ित अफ़सर भी थे जो बार-बार आसमान की तरफ़ बाँहें उठाते थे, और जनता से दुखी अफ़सर थे जो बात सुनकर दूसरी तरफ़ मुँह फेर लेते थे। सबसे ज़्यादा तादाद परम्परावादियों की थी, जिन्होंने रेम्बर्त की अरजी किसी दूसरे दफ्तर में भेज दी थी या उसे काम निकलवाने का नया ढंग बताया था।
इन बेमानी मुलाक़ातों ने पत्रकार को थका दिया था। इन मुलाक़ातों का इतना फ़ायदा ज़रूर हुआ था कि उसे म्यूनिसिपल कमेटी के दफ्तर और प्रीफ़ेक्ट के हेडक्वार्टर के काम-काज के अन्दरूनी तरीकों का पता चल गया था, क्योंकि उसे घंटों तक नकली चमड़े के सोफ़ों पर बैठे रहना पड़ा था, सामने दीवारों पर लगे पोस्टर उसे इनकम टैक्स से मुक्त सेविंग बॉण्ड खरीदने की अपील करते थे या फ्रांस की औपनिवेशिक फ़ौज में भरती होने की ताकीद करते थे। उसे दफ्तरों का खासा अनुभव हो गया था जहाँ इनसानों के चेहरे भी फ़ाइल रखने की अलमारियों और उनके पीछे रखे धूल-भरे रिकॉर्डों की तरह भाव-शून्य थे। इतनी ताक़त ख़र्च करने के बाद रेम्बर्त को सिर्फ एक ही फ़ायदा हुआ, जैसा कि उसने रियो को कटुता-भरे स्वर में बताया कि इससे उसका मन अपनी दुर्दशा से हटकर और बातों में उलझ गया था। दरअसल प्लेग के तेज़ विकास की तरफ़ उसका ध्यान ही नहीं गया था। उसके दिन जल्दी से गुज़रने लगे और जिन परिस्थितियों से शहर गुज़र रहा था उन्हें देखते हुए यह कहा जा सकता था कि उन लोगों के लिए जो ज़िन्दा बच जाते थे। हर रोज़ कठिन परीक्षा में से चौबीस घंटे कम हो जाते थे, रियो इस दलील की सचाई को क़बूल तो करता था लेकिन उसके ख़याल में यह सचाई ज़रूरत से कुछ ज़्यादा व्यापक थी।
एक बार रेम्बर्त को क्षण-भर के लिए आशा की किरण दिखाई दी थी। प्रीफ़ेक्ट के दफ़्तर से उसे एक फ़ॉर्म भेजा गया था जिसमें उसे हिदायत की गई थी कि वह सावधानी से सारे ख़ाली ख़ानों की पूर्ति करे। फ़ॉर्म में उसके हलिये, परिवार, मौजूदा और भूतपूर्व आमदनी के ज़रियों के बारे में पूछताछ की गई थी। दरअसल उससे ज़िन्दगी के तथ्यों की पूरी सूची मांगी गई थी। उसे लगा कि यह पूछताछ उन लोगों की सूची बनाने के लिए की जा रही है जिन्हें शहर छोड़कर अपने घरों में लौटने का आदेश दिया जाएगा। एक दफ़्तर के कर्मचारी से कुछ अस्पष्ट-सी जानकारी मिली जिससे रेम्बर्त के विचार की पुष्टि हो गई। लेकिन जब उसने और गहरी छानबीन की तो उसे उस दफ्तर से जहाँ से फ़ॉर्म आया था, पता चला कि यह जानकारी विशेष प्रयोजन से इकट्ठी की जा रही है।
“कौन-सा प्रयोजन?" उसने पूछा।
बाद में उसे पता चला कि हो सकता है वह बीमार होकर मर जाए। इस जानकारी से अधिकारियों को उसके परिवार के सदस्यों को सूचित करने में और यह फैसला करने में मदद मिलेगी कि अस्पताल का ख़र्च म्यूनिसिपल कमेटी को उठाना चाहिए या उसके रिश्तेदारों से वसूल हो सकता है। ऊपर से देखने पर ऐसा लगता था कि रेम्बर्त का सम्पर्क उस औरत से पूरी तरह नहीं टूटा था जो उसके लौटने का इन्तज़ार कर रही थी, क्योंकि अधिकारी-वर्ग स्पष्ट रूप से उन दोनों की ओर ध्यान दे रहा था। लेकिन इस बात से उसे कोई तसल्ली नहीं मिल सकी। सबसे बड़ी बात, जिससे रेम्बर्त अत्यन्त प्रभावित हुआ था, यह थी कि किस तरह मुसीबत के बीच भी दफ्तरों का काम-काज बिना किसी बाधा के चल रहा था और वे ऐसे क़दम उठा रहे थे जिनका न बड़े-से-बड़े अधिकारियों को पता था, न ही उन क़दमों का कोई तात्कालिक महत्त्व था। ये क़दम सिर्फ इसलिए उठाए गए थे, क्योंकि उन दफ्तरों को इसी मकसद के लिए खोला गया था।
अगला दौर रेम्बर्त के लिए सबसे ज़्यादा आसान होते हुए भी सबसे अधिक कठिन था। यह अतीव आलस्य का दौर था। रेम्बत दफ़्तरों के चक्कर काट चुका था और भरसक सारे क़दम उठा चुका था। अब उसे एहसास हुआ था कि इस क़िस्म के सारे रास्ते उसके लिए बन्द हो गए थे। इसलिए अब वह निरुदेश्य एक रेस्तराँ से दूसरे रेस्तराँ में भटकता रहता था। सुबह का वक़्त वह रेस्तराँ की बालकनी में गुज़ारता और इस उम्मीद से अख़बार पढ़ता था कि शायद महामारी के प्रकोप के कुछ कम होने की ख़बर मिले। वह सड़क पर चलने वालों के चेहरों की तरफ़ देखता रहता और अक्सर उन चेहरों के नीरस अवसाद को देखकर वह ग्लानि से मुँह फेर लेता था। फिर सड़क के सामने लगे दुकानों के बोर्डों को, लोकप्रिय शराबों के इश्तहारों को जो, अब अप्राप्य थीं, पढ़ने के बाद वह उठकर किसी कॉफ़ीहाउस या रेस्तराँ की तरफ़ चल देता था। इन इश्तहारों को वह असंख्य बार पहले पढ़ चुका था। एक दिन शाम को रियो ने उसे एक कॉफ़ी-हाउस के दरवाज़े के पास मँडराते देखा। वह भीतर जाए या न जाए, इसका निश्चय नहीं कर पा रहा था। आख़िरकार उसने भीतर जाने का फैसला किया और कमरे के पीछे वाली एक मेज़ के पास बैठ गया। इस दौर में कॉफ़ी-हाउसों के मालिकों को सरकारी हक्म था कि वे ज़्यादा-से-ज्यादा देर बाद रात को बत्ती जलाया करें। मटमैली साँझ कमरे में फैल रही थी। सूर्यास्त की गुलाबी आभा से दीवारों पर लगे शीशे आलोकित हो उठे थे। साँझ के झुटपुटे में सफ़ेद संगमरमर की टॉप वाली मेजें चमक रही थीं। ख़ाली कॉफ़ी-हाउस में बैठा रेम्बर्त अँधेरे की परछाइयों में एक 'खोयी हुई' परछाईं की तरह नज़र आ रहा था जिसे देखकर मन में करुणा उपजती थी। रियो ने अनुमान लगा लिया कि रेम्बर्त इसी वक़्त अपने को अकेला और परित्यक्त महसूस करता है। इसी वक़्त शहर में कैद सब लोगों को अपने एकाकीपन का एहसास होता था और हर आदमी यही सोचता था कि चाहे कोई भी तरीक़ा अपनाना पड़े, इस कैद से छूटने की कोशिश ज़रूर करनी चाहिए। रियो जल्द ही वहाँ से चला गया।
रेम्बर्त कुछ वक़्त रेलवे स्टेशन पर भी गुज़ारता था। किसी को प्लेटफार्म पर जाने की इजाज़त नहीं थी। लेकिन वेटिंग रूम खुले थे और बाहर से उनमें लोग दाख़िल हो सकते थे। जब बहुत गरमी पड़ती थी तो भिखारी इन ठंडे और अँधेरे कमरों में आ जाते थे। रेम्बर्त टाइम-टेबल, थूकने पर लगाई पाबन्दियों और यात्रियों के लिए छपे सरकारी नियमों को बहुत देर तक पढ़ता रहता था, फिर एक कोने में बैठ जाता था। कमरे के बीचोबीच एक पुरानी लोहे की अँगीठी, जो कई महीनों से ठंडी पड़ी थी, विशिष्ट चिह्न बनकर खड़ी थी। फ़र्श पर आठ की संख्या के आकार के बेलबूटे बने थे जो बहुत वर्ष पहले बनाए गए थे। दीवारों पर लगे पोस्टर सैलानियों को केन्ज़ या बन्दोल में निश्चिन्त छुट्टी मनाने का उल्लासपूर्ण निमंत्रण दे रहे थे। इस कोने में बैठकर रेम्बर्त को आज़ादी का कड़वा स्वाद मिलता था जो पूर्ण वंचना से आता है। उसने रियो को बताया कि उसके मन में उस वक़्त जो विचार उठते थे उनमें पेरिस के विचार प्रमुख थे। उसकी आँखों के आगे, बिना बुलाए ही पेरिस की तस्वीर उभरने लगती थी, पत्थरों की बनी प्राचीन सड़कें, नदी के तट, पेले-रॉयल के कबूतर, गेरे दूनोर्द, पेन्थियोन के आसपास की प्राचीन ख़ामोश गलियाँ, और शहर के अनेक और ऐसे दृश्य। वह पेरिस को इतना ज़्यादा चाहता है, यह उसे पहले मालूम नहीं था। मन में उभरने वाली इन तस्वीरों ने कुछ करने की तमाम इच्छाओं को ख़त्म कर दिया। रियो को यक़ीन था कि वह इन दृश्यों दवारा अपने प्यार की स्मृतियों को ताज़ा कर रहा है। एक दिन जब रेम्बर्त ने रियो को बताया कि उसे सुबह चार बजे उठकर अपने प्रिय पेरिस को याद करना बहुत अच्छा लगता है, तो डॉक्टर आसानी से समझ गया कि रेम्बर्त अपने अनुभव के आधार पर ऐसा कर रहा है, क्योंकि इसी वक़्त उसे मन में बिछुड़ी प्रेयसी की तस्वीरें बनाना अच्छा लगता है। दरअसल सारे दिन में सिर्फ यही ऐसा वक़्त था जब वह सोच सकता था कि उसकी प्रेयसी पूरी तरह से उसकी है। तड़के चार बजे इनसान कोई काम नहीं करता, चाहे रात बेवफ़ाई में भी गुज़री हो तब भी सुबह आदमी नींद में बेख़बर रहता है। हाँ, दुनिया के सभी लोग इस वक़्त सोए रहते हैं। इस विचार से बड़ी सांत्वना मिलती है, क्योंकि बेचैन दिल की सबसे बड़ी ख़्वाहिश यह होती है कि वह लगातार सचेत रूप से अपने प्रियजन को पाता रहे। अगर यह सम्भव न हो सके तो अपने प्रियतम या प्रेयसी को जुदाई के क्षणों में एक ऐसी गहरी नींद में सुला दे, जिसमें न सपने आएँ और जो तब तक न टूटे, जब तक फिर से उनका मिलन नहीं हो जाए।
दूसरा भाग : 6
गरमी फ़ादर पैनेलो के प्रवचन के बाद से ही बेहद बढ़ गई थी। जिस इतवार को बेमौसमी बारिश हुई थी, उससे अगले दिन घरों के ऊपर झुलसती हुई गरमी छा गई। पहले तो दिन-भर तेज़, तपती हुई लू चली जिससे घरों की दीवारें सूख गईं। इसके बाद सूरज ने आसमान पर क़ब्ज़ा जमा लिया और दिन-भर गरमी और तेज़ रोशनी शहर पर छाई रही। सिर्फ मेहराबदार गलियाँ और घरों के कमरे ही इस गरमी से बचे थे, बाक़ी सारी जगहों पर तेज़ चौंधिया देने वाली रोशनी पड़ रही थी। सूरज हमारे शहर के लोगों का हर गली, हर कोने में पीछा कर रहा था और जब वे क्षण-भर के लिए धूप में रुकते थे तो उन्हें सरसाम हो जाता था।
चूँकि गरमी के हमले के साथ-ही-साथ प्लेग के मरीज़ों की तादाद भी बढ़ गई थी। अब हफ़्ते में क़रीब सात सौ मौतें होने लगी थीं। शहर में गहरी निराशा छा गई। शहर की बाहरी बस्तियों की लम्बी, सपाट सड़कों और घरों के छज्जों पर हमेशा रहने वाली रौनक़ गायब हो गई। आमतौर पर इलाक़ों में रहने वाले लोग दिन का काफ़ी समय अपने दरवाज़ों की सीढ़ियों पर बैठकर गुज़ारते थे, लेकिन अब हर दरवाज़ा बन्द था, कोई आदमी दिखाई नहीं देता था, यहाँ तक कि खिड़कियाँ और परदे भी बन्द रहते थे। यह जानना मुश्किल था कि लोगों ने प्लेग के डर से खिड़कियाँ बन्द की थीं या गरमी की वजह से। कुछ घरों से कराहने की आवाजें आ रही थीं। शुरू में तो लोग जिज्ञासा या करुणा से प्रेरित होकर बाहर जमा हो जाते थे, लेकिन अब लगातार तनाव छाए रहने के कारण ऐसा लगता था कि लोगों के दिल भी सख्त हो गए थे; लोग कराहटों के आसपास इस तरह रहते थे और उनके नज़दीक से इस तरह गुज़र जाते थे जैसे आहे और कराहटें ही लोगों की साधारण और स्वाभाविक भाषा हों।
फाटकों पर हुई मारपीट के फलस्वरूप, जिसमें पुलिस को रिवॉल्वर इस्तेमाल करने पड़े थे, अराजकता की भावना चारों ओर फैल गई थी। पुलिस के साथ हुई मुठभेड़ में कुछ लोग ज़ख्मी भी हो गए थे लेकिन शहर में गरमी और आतंक के सम्मिलित प्रभाव के कारण हर बात बढ़ा-चढ़ाकर कही जाने लगी थी और लोगों का कहना था कि मुठभेड़ में कुछ लोग मर भी गए हैं। लेकिन जो भी हो, एक बात निश्चित थी कि असन्तोष सचमुच बढ़ रहा था और इस डर से कि कहीं स्थिति बिगड़ न जाए, स्थानीय अफ़सर बहुत दिन तक बहस करते रहे कि अगर महामारी से तंग आकर लोग पागलपन पर उतारू हो गए और स्थिति काबू से बाहर हो गई तो कौन-से क़दम उठाने उचित होंगे। अख़बार में नए सरकारी नियम प्रकाशित हुए जिनमें फिर कहा गया था कि कोई आदमी शहर छोड़ने की कोशिश न करे। नियम का उल्लंघन करने वालों को चेतावनी दी गई कि उन्हें लम्बी कैद की सज़ा मिलेगी।
शहर में पुलिस गश्त लगाने लगी और अक्सर खाली, पसीजी हुई गलियों के पत्थरों पर घोड़ों की टाप सुनाई देती और घुड़सवार पुलिस का एक दल सड़क के दोनों ओर कसकर बन्द की हुई खिड़कियों की कतारों के बीच से गुज़र जाता। कभी-कभी बन्दूक की आवाज़ भी सुनाई देती थी। हाल ही में चूहों और कुत्तों को ख़त्म करने के लिए एक स्पेशल ब्रिगेड बनाई गई थी ताकि वे छूत न फैला सकें। ख़ामोशी को चौंका देने वाली इन कोड़ों-जैसी आवाज़ों ने शहर के स्नायविक तनाव को और भी बढ़ा दिया था।
गरमी, ख़ामोशी और परेशानी ने हमारे शहर के लोगों को इतना संवेदनशील बना दिया था कि ज़रा-सी आवाज़ भी उन्हें बहुत महत्त्वपूर्ण मालूम होती थी। लोगों ने पहली बार आसमान के बदलते हुए रंगों और धरती से उठती हुई गन्धों पर, जो हर बार मौसम बदलने पर उठती हैं, ध्यान दिया। लोगों को यह क्षोभपूर्ण एहसास हुआ कि गरमी से महामारी और भी फैल जाएगी, और साफ़ ज़ाहिर था कि गरमी का मौसम शुरू हो गया था। शाम के वक़्त घरों के ऊपर चहकने वाले पक्षियों की आवाजें पहले से तेज़ होती जा रही थीं। आसमान का वह विस्तार अब नहीं रहा था जैसा कि जून की शामों में होता है जब तारे टिमटिमाते हैं ऐसे में हमारे क्षितिज अनन्त दूर तक फैले नज़र आते हैं। बाज़ारों में अब कलियों के बजाय खिले हुए फूल बिकने आते थे और सुबह की खरीदारी के बाद, धूल से सने फुटपाथ पैरों तले रौंदी हुई पंखुड़ियों से भर जाते थे। साफ़ ज़ाहिर था कि बहार ख़त्म हो चुकी थी, उसने असंख्य फूलों पर अपना उत्साह लुटा दिया था, हर जगह वे खिले दिखाई देते थे और जो अब गरमी और प्लेग के दोहरे हमले से मुरझा रहे थे। हमारे शहर के लोगों के लिए वह गरमी का आकाश, धूल से सनी सड़कें, जो लोगों की मौजूदा ज़िन्दगी की तरह धूसरित और नीरस थीं, इन दिनों हर रोज़ होने वाली सौ मौतों की तरह अमंगलपूर्ण थीं। अब वे दिन बीत चुके थे जब धूप लोगों को दोपहर के सोने और छुट्टी मनाने के लिए आमंत्रित करती थी और लोग समुद्र-तट पर जाकर विनोद और प्रेम-क्रीड़ाएँ करते थे। अब बन्द शहर में धूप बेमानी और खोखली हो गई थी। उसमें गरमी के सुखद मौसम का सुनहरा जादू नहीं रहा था। प्लेग ने सब रंगों को तबाह कर दिया था, और अपने विशेषाधिकार से खुशी पर पाबन्दी लगा दी थी।
महामारी से यही सबसे बड़ा परिवर्तन हुआ था। इससे पहले हम ख़ुशी-खुशी गरमी के मौसम का इन्तज़ार करते थे। शहर समुद्र-तट पर बसा था और नौजवान लोग समुद्र-तट पर आज़ादी से घूमते थे। लेकिन इस बार गरमी में नज़दीक होते हुए भी समुद्र तक पहुँचना मुश्किल था। नौजवानों को समुद्र की खुशियाँ नसीब नहीं थीं। ऐसी परिस्थितियों में हम क्या कर सकते थे? इन दिनों की ज़िन्दगी की सच्ची तस्वीर फिर तारो ने ही बयान की है। यह कहने की ज़रूरत नहीं कि उसने प्लेग की बढ़ती का खाका खींचा है, तारो ने यह भी नोट किया है कि जब से रेडियो ने मौतों के हफ़्तावार आँकड़े बताने के बजाय यह बताना शुरू किया कि हर रोज़ बानबे, एक सौ सात या एक सौ तीस मौतें होने लगी हैं तब से महामारी के इतिहास में एक नया दौर शुरू हुआ है। अख़बार और सरकारी अफ़सर प्लेग के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। उनका ख़याल है कि वे प्लेग पर जीत पा रहे हैं, क्योंकि नौ सौ दस के मुक़ाबले एक सौ तीस छोटी संख्या है। उसने उन करुण और आश्चर्यजनक घटनाओं का भी बयान किया है जो उसके देखने में आई थीं। मिसाल के लिए जब वह एक सुनसान गली से गुज़र रहा था तो एक औरत तिमंज़िले के सोने के कमरे की खिड़की खोलकर दो बार ज़ोर से चिल्लाई और उसने फिर खिड़की बन्द कर ली। तारो ने यह भी नोट किया है कि दवाई की दुकानों में पिपरमेंट की गोलियाँ ख़त्म हो गई थीं, क्योंकि लोगों का ख़याल था कि जब तक ये गोलियाँ मुँह में रहती हैं तब तक प्लेग की छूत नहीं लग सकती।
वह लगातार सामने की बालकनी पर अपने प्रिय अजूबे को देखा करता था। मालूम होता था कि बूढ़े शिकारी पर भी मुसीबत आ गई थी। एक दिन सुबह सड़क पर बन्दूक की आवाज़ सुनाई दी थी, या तारो के शब्दों में, "सीसे की थूक ने अधिकांश बिल्लियों को मार डाला था और बाक़ियों को डराकर भगा दिया था।” खैर, जो भी हो अब बिल्लियाँ आसपास कहीं नज़र आती नहीं थीं, उस दिन नाटा बूढ़ा हमेशा की तरह निश्चित समय पर बालकनी पर आया, और उसने हैरानी ज़ाहिर की। फिर रेलिंग पर झुककर वह गौर से सड़क के कोनों को देखने लगा और बैठकर दाएँ हाथ से बालकनी की सलाखों पर कुढ़ता हुआ उँगलियों से तबला बजाने लगा। कुछ देर रुकने के बाद उसने कुछ कागज़ फाड़े और अपने कमरे में चला गया। थोड़ी देर बाद वह फिर लौट आया। बहुत देर तक बालकनी पर इन्तज़ार करने के बाद वह फिर कमरे में चला गया और उसने ज़ोर से खिड़कियाँ बन्द कर लीं। एक हफ्ते तक वह लगातार यही हरकतें करता रहा। उसके बूढ़े चेहरे पर दिन-ब-दिन उदासी और हैरत बढ़ती जाती थी। आठवें दिन तारो बूढ़े का इन्तज़ार करता रहा, लेकिन बूढ़ा नहीं आया; खिड़कियाँ मज़बूती से बन्द रहीं। उनके भीतर एक गहरा अवसाद बन्द था जिसे तारो आसानी से समझ सकता था। यहाँ अन्त में तारो ने लिखा है, "प्लेग के दिनों में बिल्लियों पर थूकना मना है।"
एक और प्रसंग में तारो ने नोट किया है कि शाम को जब वह लौटता तो रात की ड्यूटी का चौकीदार सन्तरियों की तरह चहलकदमी करता नज़र आता था। वह सब लोगों से यही कहता था कि उसने इन घटनाओं की कल्पना बहुत पहले से कर ली थी। तारो ने कहा कि उस आदमी ने किसी मुसीबत की भविष्यवाणी तो ज़रूर की थी, लेकिन उसका ख़याल था कि भूचाल आएगा। इस पर बूढ़े ने जवाब दिया, “काश भूचाल ही आता। एक ज़ोर का धक्का लगता और क़िस्सा ख़त्म हो जाता। लाशों और ज़िन्दा लोगों की गिनती की जाती, बस! लेकिन यह कमबख्त बीमारी-जिन्हें इसकी छूत नहीं लगी वे भी हर वक़्त इसके सिवा और कोई बात नहीं सोचते।
होटल का मैनेजर भी हताश था। शुरू के दिनों में बाहर से आए मुसाफ़िर अपने कमरों में टिके रहे थे, क्योंकि वे शहर छोड़कर नहीं जा सकते थे। लेकिन जब उन्हें महामारी के घटने के कोई लक्षण न दिखाई दिए तो वे एकएक करके अपने दोस्तों के घरों में चले गए। जिस कारण से कमरों में लोग टिके हुए थे उसी कारण से अब कमरे ख़ाली हो गए थे, क्योंकि अब शहर में और नए मुसाफ़िर नहीं आ रहे थे। तारो उन बहुत कम लोगों में से था जो होटल में अभी भी टिके हुए थे। हर मौके पर मैनेजर उन्हें यह बताए बगैर नहीं रहता था कि वह अपने मेहमानों को तकलीफ़ नहीं देना चाहता, वरना वह कभी का होटल बन्द कर देता। वह अक्सर तारो से पूछता था कि उसकी राय में महामारी अभी और कितने दिन तक चलेगी। तारो ने उसे बताया, "सूना है कि सर्दी के आते ही इस किस्म की बीमारियाँ ख़त्म हो जाती हैं।" मैनेजर हक्का-बक्का रह गया और बोला, “लेकिन जनाब इस इलाके में तो सचमुच की सर्दी कभी नहीं पड़ती। खैर जो भी हो, इसका मतलब है कि अभी यह बीमारी कुछ और महीनों तक चलेगी।" इसके अलावा मैनेजर को यक़ीन था कि भविष्य में भी बहुत दिन तक सैलानी इस शहर से दूर-दूर रहेंगे, और पर्यटन कारोबार तबाह हो जाएगा।
कुछ दिन तक गायब रहने के बाद मोशिए ओथों, उल्लू की शक्ल वाला गृहपति फिर डाइनिंग रूम में दिखाई दिया, लेकिन इस बार उसके साथ सिर्फ सरकस के 'झबरे कुत्ते' यानी उसके बच्चे थे। पूछताछ से पता चला कि मदाम ओथों को छूत वाले वार्ड में क्वारंटाइन कर दिया गया था। वह अपनी माँ की देखभाल करती रही थी, जिसकी प्लेग में मौत हो गई थी।
"मुझे यह बात क़तई पसन्द नहीं है," मैनेजर ने तारो से कहा।
"मदाम ओथों छूत के वार्ड में क्वारंटाइन है या नहीं, लेकिन डॉक्टरों को छूत का शक ज़रूर है। इसका मतलब है कि उसके सारे परिवार को छूत हो सकती है।"
तारो ने समझाया कि अगर इस दृष्टि से सोचा जाए तो सभी लोगों को छूत हो सकती है। लेकिन मैनेजर की अपनी राय थी जिसे छोड़ने के लिए वह राज़ी नहीं था।
“नहीं जनाब, आप और हम पर छूत का शक नहीं हो सकता, लेकिन इन लोगों पर ज़रूर है।"
खैर, मोशिए ओथों पर इन बातों का बिलकुल असर नहीं हुआ और न ही प्लेग की वजह से उसकी आदतों में रत्ती-भर फ़र्क आया था। वह हमेशा की तरह शालीनता से डाइनिंग रूम में आता, अपने बच्चों के सामने बैठकर बीच-बीच में शिष्ट, किन्तु अप्रिय टिप्पणियाँ करता। सिर्फ छोटा लड़का कुछ बदल गया था; वह भी अपनी बहन की तरह काले रंग की पोशाक पहनता था, लेकिन वह पहले से दुबला हो गया था और हबह अपने बाप की संक्षिप्त अनुकृति मालूम होता था। रात के चौकीदार ने, जो मोशिए ओथों को नापसन्द करता था, तारो से कहा, “देख लेना, यह छैला इसी तरह कपड़े पहने-पहने मर जाएगा। लगता है, इसने परलोक जाने की पूरी तैयारी कर ली है, इसलिए इसे दफ़नाने में ज्यादा खर्च नहीं आएगा।"
तारो ने फ़ादर पैनेलो के प्रवचन पर भी कुछ टिप्पणियाँ की हैं। “मैं इस तरह के धार्मिक उत्साह को अच्छी तरह समझता हूँ और मुझे यह बुरा नहीं लगता। किसी भी महामारी के शुरू और अन्त में धुआँधार व्याख्यानों की काफ़ी गुंजाइश रहती है। शुरू में इसलिए क्योंकि लोगों की आदतें पूरी तरह से मिटती नहीं, और अन्त में इसलिए क्योंकि पुरानी आदतें फिर से लौटने लगती हैं। जब इनसान किसी मुसीबत में गले तक डूब जाता है तो उसका दिल सचाई के प्रति कठोर हो जाता है, यानी वह ख़ामोश हो जाता है। अच्छा, देखें क्या होता है!”
उसने यह भी नोट किया है कि डॉक्टर रियो से उसकी लम्बी बातचीत हुई। उसे सिर्फ इतना ही याद है कि उस बातचीत का अच्छा असर' पड़ा था, इस सिलसिले में उसने मदाम रियो के रंग, डॉक्टर की माँ की आँखों के पारदर्शी भूरे रंग पर भी गौर किया है। और एक विलक्षण टिप्पणी दी है कि ऐसी निगाहें, जिनमें हृदय की इतनी पवित्रता झलकती है, हमेशा प्लेग पर विजय पाती रहेंगी।
उसने रियो के दमे के मरीज़ के बारे में भी बहुत कुछ लिखा है। बातचीत के फ़ौरन बाद वह डॉक्टर के साथ उस मरीज़ को देखने के लिए गया था। बूढ़े ने विनोदपूर्ण हँसी से और खुशी से हथेलियाँ रगड़कर तारो का स्वागत किया। वह हमेशा की तरह बिस्तर पर बैठा था और उसके आगे सूखे मटर से भरे दो पतीले रखे थे। तारो को देखते ही उसने कहा, “आह! एक और आ गया! यह उलटी दुनिया है जिसमें मरीजों के बजाय डॉक्टर ज़्यादा हैं, क्योंकि दुनिया उन्हें दिन-ब-दिन घास की तरह काटे जा रही है। क्यों, ठीक है न? उस पादरी की बात सही है। हम लोगों ने खुद ही यह मुसीबत बुलाई है।" अगले दिन तारो बिना ख़बर किए उसे देखने चला आया।
तारो की टिप्पणियों से पता चलता है कि उस बूढ़े ने, जो पेशे से बजाज था, पचास बरस की उम्र में तय किया कि वह जितनी मेहनत कर चुका है, वह ज़िन्दगी-भर के लिए काफ़ी है। वह बीमार पड़ गया और फिर बिस्तर से कभी नहीं उठा। इसका कारण दमा नहीं था, क्योंकि दमे की वजह से उसे चलने-फिरने में कोई दिक़्क़त नहीं हो सकती थी। उसकी थोड़ी-सी बँधी हुई आमदनी थी जिससे वह पचहत्तर बरस की उम्र तक गुज़ारा करता आया था। बुढ़ापे का उसकी खुशमिज़ाजी पर कोई असर नहीं हुआ था। वह घड़ी देखना बर्दाश्त नहीं कर सकता था और उसके घर में एक भी घड़ी नहीं थी। वह कहता था, “घड़ी बहुत बेहूदा चीज़ है और फिर क़ीमती भी है।" वह वक़्त यानी खाने के वक़्त का पता अपने दो पतीलों से लगा लेता था। जब वह सुबह सोकर उठता था तो एक पतीला सूखे मटरों से भरा रहता था। वह बड़ी सावधानी से लगातार नियमित ढंग से दूसरे पतीले में एक-एक मटर का दाना डालता जाता था। इस तरह वह इन पतीलों की मदद से वक़्त का अन्दाज़ लगाया करता था और दिन में किसी वक़्त भी बता सकता था कि कितने बजे हैं। वह कहता था, “जब पन्द्रह बार पतीला भर जाता है तो खाने का वक़्त आ जाता है। वक़्त जानने का इससे आसान तरीक़ा और क्या हो सकता है?"
उसकी पत्नी का कहना था कि इस सनक के लक्षण उसमें बहुत पहले से दिखाई देने लगे थे। दरअसल उसे किसी चीज़ में दिलचस्पी नहीं थी। वह काम-काज, दोस्तों, कॉफ़ी-हाउसों, औरतों, पिकनिकों के प्रति हमेशा से उदासीन था। वह ज़िन्दगी में सिर्फ एक बार अपने शहर से बाहर गया था। जब उसे अपने किसी घरेलू काम से एल्जीयर्ज़ जाना पड़ा था, उस वक़्त भी वह ओरान के बाद वाले स्टेशन से लौट आया था, क्योंकि उसके लिए इस दुःसाहसपूर्ण काम को जारी रखना असम्भव था।
तारो ने बूढ़े की इस एकान्तपूर्ण ज़िन्दगी पर हैरत जताई थी। उसके जवाब में बूढ़े ने जो कहा था उसका सारांश इस प्रकार है इनसान की शुरू की आधी ज़िन्दगी पहाड़ की चढ़ाई की तरह होती है और दूसरा आधा हिस्सा ढलान की तरह होता है। इस काल में उसका ज़िन्दगी के ऊपर कोई दावा नहीं होता, उसके हक़ किसी भी वक़्त उससे छीने जा सकते हैं। वह उनका कोई इस्तेमाल नहीं कर सकता और सबसे अच्छी बात यही है कि वह उनसे छेड़ छाड़ न करे। साफ़ ज़ाहिर था कि बूढ़े को अपनी बात काटने में कोई संकोच नहीं होता था, क्योंकि कुछ ही मिनट के बाद उसने तारो से कहा कि वह ईश्वर के अस्तित्व को नहीं मानता, अगर ईश्वर होता तो दुनिया में पादरियों की कोई ज़रूरत न रह जाती। इसके बाद की घटनाओं पर गौर करने के बाद तारो को एहसास हुआ कि उस इलाके में लगातार दीन-दुखियों की सहायता के लिए घर-घर घूमकर चन्दा इकट्ठा किया जा रहा था। बूढ़े को उससे सख़्त चिढ़ होती थी। उसकी फ़िलॉसफी का इस चिढ़ से गहरा सम्बन्ध था। बूढ़े ने कई बार यह दिली ख़्वाहिश ज़ाहिर की थी कि वह बहुत लम्बी उम्र भोगकर मरना चाहता है। बूढ़े के चरित्र की तस्वीर इस बात से पूरी हो जाती है।
'क्या वह सन्त है?' तारो ने अपने-आप से यह सवाल पूछा और जवाब दिया, “हाँ, अगर आदतें इकट्ठा करना ही सन्तों का गुण है तो सचमुच बूढ़ा एक सन्त था।"
उधर तारो प्लेग-पीड़ित शहर की एक दिन की ज़िन्दगी का एक लम्बासा विवरण तैयार कर रहा था, ताकि उस साल के गरमी के मौसम में हमारे नागरिकों की ज़िन्दगी की सही तस्वीर पेश की जा सके। तारो ने लिखा है, “शहर में शराबियों के सिवा कोई नहीं हँसता और शराबी ज़रूरत से ज़्यादा हँसते हैं।" इसके बाद वह प्लेग का वर्णन शुरू करता है।
“पौ फटने पर हवा के हल्के झोंके ख़ाली सड़कों पर पंखा झलते हैं-रात की मौतों और आने वाले दिन की मृत्यु की यंत्रणा में तड़पने वालों के बीच के वक़्त में ऐसा लगता है जैसे कुछ देर के लिए प्लेग ने अपना हाथ रोक लिया हो और वह साँस लेने के लिए रुक गई हो। सारी दुकानें बन्द रहती हैं, लेकिन कुछ दुकानों पर लगे नोटिसों-'दुकान प्लेग के कारण बन्द है' से ज़ाहिर होता है कि जब और दुकानें खुलेंगी तब भी ये दुकानें बन्द रहेंगी। अख़बार बेचने वाले लड़के अभी नहीं चिल्ला रहे क्योंकि उनकी आँखें अभी अधमँदी हैं, लेकिन वे नींद में चलने वाले लोगों की तरह सड़क के कोनों पर बने बिजली के खम्भों की तरफ़ अपने अख़बार बढ़ा रहे थे। जल्द ही तड़के चलने वाली ट्रामों के शोर से ये लड़के जाग जाएँगे और शहर भर में फैल जाएँगे। इनके बढ़े हुए हाथों में अख़बार होंगे जिन पर बड़े अक्षरों में 'प्लेग' लिखा होगा। क्या पतझड़ के मौसम में भी प्लेग जारी रहेगी? प्रोफ़ेसर बी की राय है 'नहीं'। प्लेग के 14वें दिन हुई मौतों की संख्या एक सौ चौबीस।
“कागज़ की दिनों-दिन बढ़ती कमी से मजबूर होकर कुछ दैनिक अख़बारों ने अपने पृष्ठ कम कर दिए हैं। एक नया अख़बार शुरू हुआ है, 'प्लेग समाचार'। इसका उददेश्य है 'सचाई और ईमानदारी से शहर के लोगों को बीमारी के घटने या बढ़ने की सूचना देना; प्लेग के भविष्य के बारे में विशेषज्ञों की राय को छापना; हर किसी को, चाहे वह जीवन के किसी भी क्षेत्र से सम्बद्ध हो, और जो इस महामारी का मुकाबला करना चाहे, लिखने के लिए खुला निमंत्रण देना; जनता के साहस और विश्वास को बनाए रखना; अधिकारियों के नवीनतम आदेशों को प्रकाशित करना और उन तमाम शक्तियों को इकट्ठा करना जो इस मुसीबत में लोगों की सक्रिय सहायता करना चाहती हैं।' दरअसल कुछ दिन बाद ही इस अख़बार के कॉलमों में प्लेग से बचने के नए और अचूक' तरीकों के विज्ञापन छपने लगे।
“तड़के छह बजे ये अख़बार दुकानों के खुलने के एक घंटा पहले से खड़े लोगों की कतारों को बेचे जाते हैं; फिर बाहर की बस्तियों से आने वाली ट्रामों से उतरने वाले लोगों में ये अख़बार बेचे जाते हैं। ट्रामें खचाखच भरी रहती हैं। आजकल ट्रामें आने-जाने का एकमात्र साधन हैं। लोग फुटबोर्डों पर खड़े रहते हैं और इंडों को पकड़कर लटके रहते हैं, इसलिए ट्रामों की चाल भी धीमी हो गई है। एक और अजब बात देखने में आई है कि मुसाफ़िर अपने साथियों की तरफ़ पीठ करके खड़े होते हैं और अपने शरीर को हास्यास्पद रूप से टेढ़ामेढ़ा करते हैं। इन सब बातों के पीछे एक ही मतलब है छूत से बचना। हर स्टॉप पर जलप्रपात की तरह नर-नारियों की एक भारी भीड़ ट्राम से निकलती है। हर व्यक्ति अपने को दूसरे के स्पर्श से बचाने की कोशिश करता है।
"जब तड़के की ट्रामें गुज़र जाती हैं तो धीरे-धीरे शहर जागता है। कुछ कॉफ़ी-हाउस सुबह जल्दी ही अपने दरवाज़े खोल देते हैं। काउंटर पर ऐसे वाक्यों की भरमार रहती है, कॉफ़ी नहीं है, अपने साथ चीनी लाइए इत्यादि। इसके बाद दुकानें खुलती हैं और सड़कें सजीव हो उठती हैं। इस बीच धूप तेज़ हो जाती है और सुबह के वक़्त भी आसमान गरमी से तपते हुए शीशे-जैसा हो जाता है। यही वह वक़्त है जब निकम्मे लोग बुलेवारों में टहलने निकलते हैं। उनमें से अधिकांश तो जैसे विलासिता के प्रदर्शन से ही प्लेग का सामना करने पर तुले नज़र आते हैं। रोज़ ग्यारह बजे के क़रीब नौजवान लड़के और लड़कियों की ड्रेस-परेड-सी नज़र आती है, जिसे देखकर एहसास होता है कि हर तरह की मुसीबत के बीच इनसान के दिल में ज़िन्दगी की कितनी ज़बरदस्त ख़्वाहिश पलती रहती है। अगर महामारी और ज़्यादा फैल गई तो लोगों के चरित्र भी काबू से बाहर हो जाएँगे और हमें मिलान के सैटरनेलिया1-जैसे दृश्य फिर दिखाई देंगे और मर्द और औरतें क़ब्रों के गिर्द मस्ती में नाचेंगे।
"दोपहर को देखते-ही-देखते सारे रेस्तराँ भर जाते हैं। दरवाज़ों के बाहर फ़ौरन ऐसे लोगों के छोटे-छोटे समूह इकट्ठा हो जाते हैं जिन्हें बैठने के लिए जगह नहीं मिलती। तेज़ तपिश की वजह से आसमान की चमक कम हो जाती है। खाना खाने के लिए आए लोग बड़े-बड़े शामियानों के नीचे इन्तज़ार करते हैं। दोपहर की गरमी से झुलसती हुई सड़कों के किनारे लोगों की कतारें लगी रहती हैं। रेस्तराँ में इतनी भीड़ इसलिए रहती है क्योंकि वे बहुत से लोगों की खाने की समस्या को हल कर देते हैं। लेकिन छूत का डर कम करने के लिए वे भी कोई क़दम नहीं उठाते। बहुत से खाने वाले कई मिनट तक कायदे से अपनी प्लेटें साफ़ करते हैं। कुछ दिन पहले रेस्तराँ ने यह नोटिस लगाया था 'ग्राहकों को आश्वासन दिया जाता है कि हमारी प्लेटें, छुरियाँ और काँटे कीटाणुरहित हैं।' लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने इस क़िस्म का प्रचार बन्द कर दिया, क्योंकि ग्राहक हर सूरत में वहाँ आते थे। इसके अलावा आजकल लोग दिल खोलकर ख़र्च करते हैं। बढ़िया शराबों या उन शराबों पर, जिन्हें रेस्तराँ वाले बढ़िया बताते हैं, तथा क़ीमती फुटकर चीज़ों पर पैसा खूब उड़ाते हैं। लोग बिना सोचे-समझे फ़िजूलखर्ची करने के मूड में हैं। मालूम होता है कि एक रेस्तराँ में घबराहट का वातावरण छाया था, क्योंकि एक ग्राहक अचानक बीमार पड़ गया, उसका चेहरा सफ़ेद हो गया और वह फ़ौरन लड़खड़ाते हुए क़दमों से दरवाज़े की तरफ़ चल पड़ा।
“दो बजे के क़रीब धीरे-धीरे शहर ख़ाली होने लगता है। इस वक़्त सड़कों पर ख़ामोशी, धूप, मिट्टी और प्लेग को मनमानी छुट रहती है। ऊँचे भूरे रंग के मकानों के सामने वाले हिस्सों से इन लम्बी, क्लान्त घड़ियों में लगातार गरमी की तरंगें उठती रहती हैं। इस तरह से दोपहर थकी-माँदी चाल से धीरे-धीरे शाम में मिल जाती थी और शाम शहर के भीड़युक्त कोलाहल पर कफ़न की लाल चादर बनकर लिपट जाती थी। जब तेज़ गरमी शुरू हुई तो किसी अज्ञात कारण से सड़कें वीरान रहने लगीं। लेकिन अब ठंडी हवा का ज़रा-सा झोंका आते ही यदि लोगों के दिलों में उम्मीद के पंख नहीं फड़फड़ाते तो कम-से-कम उनके दिल का बोझ तो ज़रूर हल्का हो जाता है। जन-समुद्र घरों से बाहर निकल आता है, बातों के नशे में अपने को बेसुध कर लेता है, बहसें और प्रेम-लीलाएँ शुरू हो जाती हैं, और सूर्यास्त की अन्तिम लालिमा, जो प्रेमियों के जोड़ों से बोझिल हो जाती है और लोगों की आवाज़ों से मुखरित हो उठती हैं, बिना पतवार के जहाज़ की तरह, धड़कते हुए अँधेरे में भटकने लगती है। सिर पर फेल्ट हैट लगाए और फहराती हुई टाई बाँधे एक धर्मप्रचारक व्यर्थ में ही लगातार यह चिल्लाता हुआ बढ़ता है, ‘परमेश्वर नेक और महान है। उसी की शरण में आओ!' बल्कि सब लोग फ़ौरन ऐसे क्षुद्र उद्देश्यों की तरफ़ बढ़ते हैं जिनका तात्कालिक महत्त्व उनकी दृष्टि में परमेश्वर से कहीं ज्यादा है।
“शुरू के दिनों में जब लोगों का ख़याल था कि यह महामारी भी दूसरी महामारियों की तरह है, धर्म का काफ़ी ज़ोर रहा, लेकिन ज्योंही लोगों को तत्काल ख़तरा नज़र आया तो वे ऐयाशी की तरफ़ ध्यान देने लगे। दिन के वक़्त लोगों के चेहरों पर जिन घृणित आशंकाओं की मोहर लगी रहती है वे डर, धूल-भरी प्रचंड रातों में एक विक्षिप्त हर्षोन्माद में बदल जाते हैं और उनके खून में एक रूखी स्वच्छन्दता दौड़ते लगती है।
"और मैं भी दूसरे लोगों से अलग नहीं हैं। लेकिन उससे क्या फ़र्क पड़ता है? मुझ-जैसे लोगों को मौत की परवाह नहीं। घटनाएँ और नतीजे ही उन्हें सही साबित करते हैं।"
(1. आनन्दोत्सव।)
दूसरा भाग : 7
तारो ने अपनी डायरी में जिस मुलाक़ात का जिक्र किया है, रियो से यह मुलाक़ात तारो के आग्रह पर ही हुई थी। उस रोज़ शाम को ऐसा संयोग हुआ कि तारो के आने से पहले डॉक्टर कुछ क्षण तक अपनी माँ को देखता रहा था जो बीमार थी और निहायत ख़ामोशी से डाइनिंग रूम के एक कोने में बैठी थी। घर के काम-काज से फुरसत पाकर वह अपना अधिकांश समय उसी कुर्सी में बिताती थी। गोद में हाथ रखकर वह इन्तज़ार में बैठा करती थी। रियो को ठीक से मालूम नहीं था कि उसकी माँ उसी का इन्तज़ार करती है, लेकिन जब रियो घर में दाखिल होता था तो उसकी माँ के चेहरे का भाव हमेशा बदल जाता था। मेहनत की ज़िन्दगी की वजह से उसके चेहरे पर जो मूक असहायता का भाव आ गया था, फ़ौरन खुशी की दमक में बदल जाता था। इसके बाद उसके व्यक्तित्व में पहले की-सी शान्ति आ जाती थी। उस रोज़ शाम को वह खिड़की से बाहर सुनसान सड़क की तरफ़ देख रही थी। सड़कों पर अब सिर्फ दो-तिहाई रोशनी रह गई थी और शहर के गहन अँधेरे में बहुत देर बाद लैम्प की टिमटिमाती रोशनी दीखती थी।
"जब तक प्लेग रहेगी, क्या बत्तियों का भी यही हाल रहेगा?" मदाम रियो ने पूछा।
"हाँ, मेरे ख़याल से।"
"उम्मीद करनी चाहिए कि जाड़ों तक प्लेग ख़त्म हो जाए, वरना बड़ी उदासी फैल जाएगी।"
“हाँ,” रियो ने कहा।
रियो ने देखा कि उसकी माँ की नज़रें रियो के माथे पर लगी थीं। वह जानता था कि पिछले कुछ दिन की सख़्त मेहनत और परेशानी उसके माथे पर अपनी निशानी छोड़ गई है।
"आज क्या काम-काज ठीक से नहीं हुआ?" रियो की माँ ने पूछा।
"ओह, वैसा ही जैसा हमेशा चलता है।"
हमेशा जैसा! इसका मतलब था कि पेरिस से प्लेग की जो सीरम भेजी गई थी वह पहले वाली सीरम से कम कारगर थी। इसका मतलब था कि मरने वालों की तादाद बढ़ रही थी। अभी तक सिवाय उन परिवारों के, जहाँ प्लेग फैल चुकी थी, प्लेग से बचाव के लिए लोगों को टीका लगाना नामुमकिन था। इस आन्दोलन को लोकप्रिय बनाने के लिए यह ज़रूरी था कि बहुत बड़ी तादाद में टीके मँगवाए जाएँ। अधिकांश मरीज़ों की गिल्टियाँ फटने में ही नहीं आती थीं। लगता था कि वे भी मौसम के साथ सख़्त हो गई थीं। -प्लेग के मरीजों को बहुत तकलीफ़ सहनी पड़ती थी। पिछले चौबीस घंटों में महामारी की एक नई किस्म के दो मामले आए थे। प्लेग न्यूमोनिक हो गई थी। उसी दिन एक मीटिंग में डॉक्टरों ने, जो बेहद थके और परेशान थे, प्रीफ़ेक्ट को नए हक्म जारी करने के लिए मजबूर किया। बेचारे प्रीफ़ेक्ट के होश-हवास गायब थे। साँस के ज़रिये छूत को रोकने के हक्म जारी किए गए, क्योंकि न्यूमोनिक प्लेग की छूत साँस के ज़रिये ही फैलती है। प्रीफ़ेक्ट ने वैसा ही किया जैसा कि डॉक्टर चाहते थे, लेकिन वे लोग हमेशा की तरह कमोबेश अज्ञान के अँधेरे में भटक रहे थे।
माँ को देखते ही रियो के मन में बचपन की अधबिसरी भावुकता जाग उठी। माँ की कोमल भूरी आँखें बेटे पर गड़ी थीं।
“माँ, तुम्हें कभी डर नहीं लगता?"
“ओह इस उम्र में डरने के लिए बहुत कम बातें रह जाती हैं।"
“आजकल दिन बहुत लम्बे हो गए हैं और अब मैं बहुत कम घर पर रहता हूँ।"
“अगर मुझे मालूम हो कि तुम घर लौटकर आओगे तो मुझे इन्तज़ार करना बुरा नहीं लगता, और जब तुम घर पर नहीं रहते तो मैं सोचती रहती हूँ कि तुम क्या कर रहे होगे। कोई नई खबर है?"
"हाँ, अगर पिछले तार पर विश्वास किया जाए तो उससे यही ज़ाहिर होता है कि उसकी तबीयत बिलकुल ठीक है। लेकिन मैं जानता हूँ उसने मेरी परेशानी कम करने के लिए यह बात लिखी है।"
दरवाज़े की घंटी बजी, डॉक्टर माँ की ओर देखकर मुस्कराया और दरवाज़ा खोलने गया। जीने की मदधम रोशनी में तारो एक बड़े सफ़ेद भालूजैसा दिखाई दे रहा था। रियो ने आगन्तुक को अपनी डेस्क के सामने की कुर्सी पर बिठाया और खुद अपनी कुर्सी के पीछे खड़ा रहा। दोनों के बीच डेस्क का लैम्प था। सारे कमरे में सिर्फ यही एक रोशनी थी। तारो ने फ़ौरन काम की बात शुरू की-“मैं जानता हूँ कि तुमसे मैं बिना किसी संकोच के बातें कर सकता हूँ।"
रियो ने सिर हिलाकर हामी भरी।
“पन्द्रह दिन में या ज़्यादा-से-ज़्यादा एक महीने बाद यहाँ तुम्हारा कोई काम नहीं रहेगा। स्थिति काबू से बाहर हो जाएगी।"
"मान लिया!"
“सफ़ाई का महकमा ठीक से काम नहीं कर रहा-वहाँ बहुत कम कर्मचारी हैं इसके अलावा आपने बहुत मेहनत की है।"
रियो ने इस बात को क़बूल किया।
तारो ने कहा, “खैर मैंने सुना है कि अधिकारी ज़बरन भरती की बात सोच रहे हैं। तमाम स्वस्थ लोगों को प्लेग से लड़ने के लिए भरती किया जाएगा।"
“तुम्हारी ख़बर तो सही है लेकिन अधिकारी वैसे ही बदनाम हैं और प्रीफ़ेक्ट अभी कोई फैसला नहीं कर पा रहा।"
“अगर वह लोगों को मजबूर करने का जोख़िम नहीं उठाना चाहता तो लोगों से यह क्यों नहीं कहा जाता कि वे स्वेच्छा से इस काम में मदद करें?"
"उन्हें कहा जा चुका है। लेकिन बहुत कम लोगों ने सहयोग दिया था।"
"यह काम सरकारी अफ़सरों की मार्फत हुआ था और आधे मन से किया गया था। अफ़सरों में कल्पना और दूरदर्शिता की कमी है। वे कभी किसी असल मुसीबत का मुकाबला नहीं कर सकते और वे जो तरीके सोचते हैं, उनसे मामूली जुकाम को भी नहीं रोका जा सकता। अगर हमने अफ़सरों को इसी तरह काम करने दिया तो जल्द ही वे भी मर जाएँगे और हम भी मौत का शिकार हो जाएँगे।"
“इसकी आशंका बहुत ज़्यादा है, लेकिन मैं तुम्हें बताना चाहता हूँ कि वे जेल के कैदियों को इस 'भारी काम' में लगाने की बात सोच रहे हैं।" रियो ने कहा।
“मैं चाहूँगा कि इस काम में आज़ाद आदमी लगाए जाएँ।"
“चाहूँगा तो मैं भी यही... लेकिन क्या मैं पूछ सकता हूँ कि तुम्हारे मन में यह बात क्यों उठी?"
"मैं नहीं चाहता कि किसी भी आदमी को मौत के मुंह में धकेला जाए। मुझे इससे सख़्त नफ़रत है।"
रियो ने तारो की आँखों में आँखें डालकर देखा।
“तो... क्या?" उसने पूछा।
“मैं यह कहना चाहता हूँ कि मैंने स्वयंसेवकों के समूह बनाने की एक योजना तैयार की है। आप मुझे अफ़सरों के अधिकार दिलवाएँ ताकि इस योजना को चलाया जा सके, इससे हम अफ़सरशाही से छुट्टी पा लेंगे। वैसे भी अफ़सर आजकल बेहद व्यस्त हैं। हर पेशे में मेरे दोस्त हैं, वे इकट्ठा होकर इस आन्दोलन को शुरू करेंगे। मैं खुद भी इसमें हिस्सा लूँगा।” तारो ने कहा।
रियो ने जवाब दिया, “यह बताने की ज़रूरत नहीं कि मैं तुम्हारे सुझाव को ख़ुशी से क़बूल करता हूँ। विशेषकर इन परिस्थितियों में और मेरे काम में तो जितने मदद करने वाले हों उतना ही अच्छा है। मैं अधिकारियों से तुम्हारी योजना पास कराने का जिम्मा लेता हैं। लेकिन...” रियो गहरे सोच में डूब गया, "लेकिन मेरे ख़याल में तुम जानते ही हो कि इस किस्म के काम से जान का ख़तरा है। मेरा फ़र्ज़ है कि मैं तुमसे एक सवाल पूछं। क्या तुमने सब खतरों पर गौर किया है?"
तारो की भूरी आँखें शान्त भाव से डॉक्टर पर टिक गईं।
“फ़ादर पैनेलो के प्रवचन के बारे में तुम्हारी क्या राय थी, डॉक्टर?"
सवाल बड़े मामूली ढंग से पूछा गया था। रियो ने भी इसी ढंग से जवाब दिया, “मैंने ज़िन्दगी में इतने ज़्यादा अस्पताल देखे हैं कि मुझे सामूहिक सज़ा का विचार पसन्द नहीं आ सकता। लेकिन जैसा कि तुम जानते हो, कई बार ईसाई लोग बिना सोचे ही ऐसी बातें कह जाते हैं। वे जैसे नज़र आते हैं, वे उससे कहीं बेहतर हैं।"
“खैर, तुम भी फ़ादर पैनेलो की तरह सोचते हो कि प्लेग का एक अच्छा पहलू भी है। इसने लोगों की आँखें खोल दी हैं और उन्हें सोचने पर मजबूर कर दिया है।"
डॉक्टर ने बेचैनी से सिर हिलाया।
“यह काम तो हर बीमारी करती है। जो बात दुनिया की और बुराइयों पर लागू होती है, वह प्लेग पर भी लागू होती है। इससे इनसान को अपने से ऊपर उठने में मदद मिलती है। इसके बावजूद जब आप इन मुसीबतों को देखते हैं, जो प्लेग से पैदा होती हैं, तो कोई पागल, डरपोक या बिलकुल अन्धा आदमी ही प्लेग के आगे घुटने टेकने की सलाह देगा।"
रियो ने बिना अपनी आवाज़ ऊँची किए यह बात कही थी, लेकिन तारो ने शायद रियो को शान्त करने के लिए हाथ से इशारा किया। वह मुस्करा रहा था।
रियो ने अपने कन्धे सिकोड़कर कहा, "हाँ, लेकिन तुमने अभी तक मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया। क्या तुमने इसके नतीजों पर विचार किया है?"
तारो ने अपने कन्धों को कुर्सी की पीठ से सटाकर अपना सिर रोशनी में आगे बढ़ाया।
"तुम परमेश्वर में यक़ीन करते हो, डॉक्टर?" फिर यह सवाल मामूली लहजे में पूछा गया था, लेकिन इस बार रियो को जवाब सोचने में ज़्यादा देर लगी।
"नहीं लेकिन दरअसल इसका मतलब क्या है? मैं अँधेरे में कुछ पाने की कोशिश में भटक रहा हूँ, लेकिन मुद्दत से मुझे इसमें कोई मौलिकता नहीं दिखाई देती...”
"क्या यह क्या तुम्हारे और फ़ादर पैनेलो के बीच की खाई यही नहीं है?"
“मुझे इसमें शक है। पैनेलो पढ़ा-लिखा विदवान आदमी है। वह कभी मौत के सम्पर्क में नहीं आया। इसीलिए वह सचाई के ऐसे विश्वास से सचाई के 'स' पर जोर देकर यह बात कह सकता है। लेकिन हर देहाती पादरी, जो अपने इलाके में आता-जाता है और जिसने किसी इनसान को मृत्यु-शैया पर छटपटाते हुए देखा है, मेरी ही तरह सोचता है। वह इनसान के दुख-दर्द की अच्छाई बताने के बजाय दुख को दूर करने की कोशिश करेगा।" रियो उठ खड़ा हुआ। अब उसका चेहरा अँधेरे में था। उसने कहा, “तुम मेरे सवाल का जवाब नहीं दोगे, इसलिए इस विषय पर हम और अधिक बात नहीं करेंगे।"
तारो अपनी कुर्सी पर बैठा रहा। वह फिर मुस्करा रहा था।
“मान लो मैं भी जवाब में तुमसे एक सवाल पूछूँ?"
अब डॉक्टर भी मुस्कुराया ।
"तुम्हें रहस्यमय होना अच्छा लगता है। क्यों, ठीक है न?... अच्छा, फ़ौरन पूछो क्या पूछना चाहते हो?”
“मेरा सवाल यह है कि तुम अपने कर्तव्य के प्रति इतनी निष्ठा क्यों दिखाते हो जबकि तुम परमेश्वर में यक़ीन नहीं करते? मेरा ख़याल है तुम्हारे मुझे अपना जवाब देने में मदद मिलेगी । " तारो ने कहा ।
रियो का चेहरा अभी भी अँधेरे में था, उसने कहा कि वह इस सवाल का जवाब पहले ही दे चुका है। अगर उसका किसी सर्वशक्तिमान परमेश्वर में होता तो वह बीमारों का इलाज करना छोड़ देता और उन्हें उसके रहम पर छोड़ देता। लेकिन दुनिया में कोई भी आदमी इस क़िस्म के परमेश्वर पर की नहीं करता; यहाँ तक कि पैनेलो भी नहीं जिसका ख़याल है कि वह ऐसे परमेश्वर में यकीन रखता है। इसका सबूत यह है कि कभी किसी आदमी ने पूरी तरह अपने को भाग्य पर नहीं छोड़ा। ख़ैर, जो भी हो, इस मामले में रियो समझता था कि वह सही रास्ते पर है- सृष्टि को जिस हालत देखता है उससे संघर्ष करता है।
तारो ने कहा, “आह! तो अपने पेशे के बारे में तुम्हारे ऐसे विचार हैं।”
“कमोबेश !” डॉक्टर रोशनी में वापस आ गया।
तारो ने होंठों से मद्धम आवाज़ में सीटी बजाई और डॉक्टर उसकी तरफ़ आँखें फाड़कर देखने लगा ।
“हाँ, तुम्हारा ख़याल है कि मैं अहंकार की वजह से ऐसा सोचता हूँ । लेकिन मैं तुम्हें यकीन दिलाता हूँ कि मुझमें अहंकार की सिर्फ़ उतनी ही मात्रा है जो ज़िन्दा रहने के लिए ज़रूरी है। मेरे भविष्य में क्या है और इस हालत के ख़त्म होने पर क्या होगा इसका अनुमान मैं नहीं लगा सकता। फ़िलहाल तो मैं बस इतना ही जानता हूँ कि मेरे सामने बीमार लोग हैं, जिनका इलाज होना चाहिए। बाद में शायद वे सारी बातों पर गौर करेंगे और मैं करूँगा, लेकिन अभी ज़रूरत है उन्हें ठीक करने की । मैं उन्हें बचाने की भरसक कोशिश करता हूँ, बस !”
" किससे बचाने की?"
रियो खिड़की की तरफ़ मुड़ा । क्षितिज पर एक छाया - रेखा समुद्र के वहाँ होने की सूचना दे रही थी । उसे सिर्फ़ अपनी थकान का एहसास हो रहा था । साथ ही उसके मन में अपने साथी के सामने अपना दिल खोलकर रखने की अचानक एक बेतुकी, तीव्र इच्छा उठ रही थी, जिसे दबाने की वह कोशिश कर रहा था। उसका साथी शायद एक विलक्षण व्यक्ति था, लेकिन डॉक्टर का ख़याल था कि वह उसके ही वर्ग का था।
“मैं बिलकुल नहीं जानता, तारो! यक़ीन करो, मैं बिलकुल नहीं जानता । मैं इस पेशे में बिना किसी विशेष प्रयोजन के ऐसे ही दाख़िल हुआ था, क्योंकि मेरी नज़रों में यह एक कामयाब पेशा था जिसकी आकांक्षा अक्सर बहुत से नौजवान करते हैं। शायद इसलिए भी क्योंकि मुझ जैसे जैसे मज़दूर के बेटे के लिए इतनी तरक़्क़ी करना भी बहुत बड़ी बात थी... फिर मैंने लोगों को मरते हुए देखा। क्या तुम्हें मालूम है कि कुछ लोग आख़िरी दम तक मरने से इनकार करते हैं? क्या तुमने किसी औरत को आख़िरी साँस में 'हरगिज़ नहीं मरूंगी' कहते सुना है? मैंने सुना है । और मैंने देखा कि इन दृश्यों के प्रति मेरा दिल कभी कठोर नहीं हो सकता। उस वक़्त मैं नौजवान था और संसार के विधान को देखकर मेरी अन्तरात्मा को चोट लगती थी। बाद में मैं अधिक विनम्र हो गया। बस मैं लोगों को मरते हुए देखने का आदी नहीं हो सका। मैं सिर्फ़ इतना ही जानता हूँ। फिर भी चाहे जो हो..."
रियो ख़ामोश होकर बैठ गया । उसका मुँह सूख रहा था।
" फिर भी... क्या?” तारो ने कोमल स्वर में पूछा ।
“फिर भी,” डॉक्टर ने अपनी बात दुहराई और फिर उसे हिचकिचाहट महसूस हुई। उसने तारो पर नज़रें गड़ाकर कहा, “यह एक ऐसी बात है जिसे तुम्हारी क़िस्म का आदमी ज़रूर समझ सकता है, लेकिन संसार का विधान निश्चित होता है, इसलिए क्या यह परमेश्वर के हक में बेहतर नहीं होगा अगर हम उसमें यकीन करना छोड़ दें और अपनी पूरी ताक़त से मौत के ख़िलाफ़ लड़ें, आसमान की तरफ़ नज़रें उठाए बग़ैर जहाँ वह ख़ामोश बैठा है?”
तारो ने सिर हिलाया ।
“हाँ, लेकिन इस हालत में तुम्हारी जीत बहुत दिन तक नहीं टिक पाएगी; बस, मुझे इतना ही कहना है । "
रियो के चेहरे पर विषाद छा गया।
“हाँ, मुझे यह मालूम है। लेकिन इसी वजह से तो हम संघर्ष करना नहीं छोड़ सकते।"
“वजह तो नहीं हो सकती, यह मैं मानता हूँ... मैं सिर्फ़ अब यह कल्पना कर सकता हूँ कि इस प्लेग का तुम्हारे लिए क्या अर्थ है।"
“हाँ, कभी न ख़त्म होने वाली हार ।”
तारो ने पल भर के लिए डॉक्टर की तरफ़ देखा और फिर भारी क़दमों से दरवाज़े की ओर चल पड़ा। रियो उसके पीछे-पीछे आया और उसकी बग़ल में पहुँचा ही था कि तारो ने, जो फ़र्श की तरफ़ देख रहा था, अचानक पूछा:
"तुम्हें ये बातें किसने सिखाईं, डॉक्टर ?”
तुरन्त जवाब आया:
"पीड़ा ने । "
रियो ने ऑपरेशन रूम का दरवाज़ा खोला और तारो से कहा कि वह भी बाहर जा रहा है। उसे शहर से बाहर एक बस्ती में किसी मरीज़ को देखने जाना है। तारो ने सुझाव दिया कि दोनों एक साथ चलें। डॉक्टर राज़ी हो गया। हॉल में उन्हें मदाम रियो मिली। रियो ने माँ से तारो का परिचय करवाया।
"यह मेरा दोस्त है", उसने कहा ।
“सचमुच मुझे तुमसे मिलकर बहुत ख़ुशी हुई।" मदाम रियो ने कहा ।
जब मदाम रियो चली गई तो तारो मुड़कर उनकी तरफ़ देखता रहा ।
ज़ीने पर पहुँचकर डॉक्टर ने बत्ती जलाने के लिए स्विच दबाया, लेकिन ज़ीने में अँधेरा छाया रहा। शायद बिजली की बचत करने के लिए कोई नया ऑर्डर पास किया गया था। लेकिन निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता था। पिछले कुछ दिनों से सड़कों और घरों में भी गड़बड़ हो रही थी। हो सकता है शहर के क़रीब क़रीब सभी लोगों की तरह इस इमारत का पोर्टर भी अपने फ़र्ज़ को पूरा नहीं कर रहा हो। इससे आगे सोचने का डॉक्टर को वक़्त ही नहीं मिला। पीछे से तारो की आवाज़ सुनाई दी।
“एक बात और है डॉक्टर, चाहे यह तुम्हें बेवकूफ़ी ही मालूम हो। तुम पूरी तरह ठीक सोचते हो ।”
डॉक्टर ने अपने कन्धे सिकोड़ लिए। अँधेरे में उसकी यह मुद्रा तारो नहीं देख सका।
"सच पूछो तो, यह मेरे दायरे से बाहर की चीज़ है। लेकिन तुम... तुम इस बारे में क्या जानते हो?"
“आह!” तारो ने शान्त स्वर में उत्तर दिया, “मेरे पास सीखने को बहुत कम बचा है। "
रियो रुक गया और उसके पीछे ही एक सीढ़ी पर तारो का पैर फिसल गया। तारो ने डॉक्टर के कन्धे का सहारा लेकर अपना सन्तुलन ठीक किया।
“क्या तुम सचमुच सोचते हो कि तुम्हें जीवन के बारे में सारा ज्ञान प्राप्त हो गया है?"
अँधेरे में उसी शान्त, विश्वासपूर्ण स्वर में जवाब सुनाई दिया।
“हाँ।”
बाहर सड़क पर पहुँचकर उन्हें एहसास हुआ' कि बहुत देर हो गई है। शायद ग्यारह का वक़्त हो गया था। शहर में सिवाय अज्ञात सरसराहटों की आवाज़ के, पूरी ख़ामोशी छाई थी। दूर एम्बुलेंस की मद्धम घंटी सुनाई दी। दोनों जने कार में बैठ गए और रियो ने कार स्टार्ट की ।
तुम कल अस्पताल में इंजेक्शन लेने ज़रूर आना,” रियो ने कहा, “लेकिन इस तरह का...दुस्साहसपूर्ण काम शुरू करने से पहले तुम्हें यह ज़रूर मालूम होना चाहिए कि तुम्हारे ज़िन्दा रहने की कितनी सम्भावना है। हर तीन में से सिर्फ़ एक के बचने की उम्मीद है। "
“इस तरह के हिसाब से कोई फ़ायदा नहीं; तुम इस बात को मेरी तरह समझते हो डॉक्टर! सौ बरस पहले प्लेग ने ईरान के एक शहर की पूरी आबादी का सफाया कर दिया था, सिर्फ़ एक आदमी बच गया था। वह आदमी लाशें ढोने का काम करता था और जब तक प्लेग फैली रही, उसने यह काम जारी रखा।"
"उसे तीन में से एक वाला मौक़ा मिल गया था, बस यही समझो,” रियो ने अपनी आवाज़ धीमी कर ली थी। “लेकिन तुम ठीक कहते हो। इस बारे में हमारा ज्ञान नगण्य ही है।"
वे बस्ती में दाख़िल हो रहे थे। कार के सामने की बत्तियों से ख़ाली सड़कें आलोकित हो रही थीं। कार खड़ी हो गई। रियो ने कार के सामने खड़े होकर तारो से पूछा कि क्या वह अन्दर चलना चाहेगा। तारो ने कहा, “हाँ।”
आसमान की झिलमिलाती हुई रोशनी उनके चेहरों पर पड़ी। अचानक रियो हँस पड़ा। इस संक्षिप्त हँसी में बहुत मैत्री भाव था ।
“साफ़-साफ़ बताओ तारो! आख़िर तुम्हें इस काम में हिस्सा लेने के लिए किसने प्रेरणा दी?"
"मैं नहीं जानता । शायद मेरे... नैतिक सिद्धान्तों ने ।”
“नैतिक सिद्धान्तों ने? क्या मैं पूछ सकता हूँ कि वे सिद्धान्त क्या हैं?"
"बोध!"
तारो मरीज़ के घर की तरफ मुड़ गया। इसके बाद रियो ने उसका चेहरा तब देखा जब वे दमे के बूढ़े मरीज़ के कमरे में पहुँचे।
दूसरा भाग : 8
अगले दिन तारो ने अपना काम शुरू कर दिया और काम करने वालों की पहली टुकड़ी के नाम लिखे। इसके बाद और बहुत से लोगों ने अपने नाम लिखाए ।
ख़ैर, यहाँ कथाकार का मकसद सफ़ाई करने वाली इन टुकड़ियों को ज़रूरत से ज़्यादा महत्त्व देना नहीं है। इसमें शक नहीं कि आजकल हमारे अधिकांश नागरिक इस टुकड़ी की सेवाओं की अतिरंजित प्रशंसा करने के मोह को नहीं छोड़ सकते। लेकिन कथाकार का ख़याल है कि प्रशंसनीय कामों को ज़रूरत से ज़्यादा महत्त्व देने का अर्थ है इनसान की प्रकृति के सबसे बुरे पहलू को प्रच्छन्न, लेकिन सशक्त रूप से श्रद्धांजलि अर्पित करना। इस दृष्टिकोण को अपनाने का अर्थ है कि ऐसे काम अनुपम और दुर्लभ हैं जबकि क्रूरता और उदासीनता अधिक सहज और स्वाभाविक हैं। कथाकार इस दृष्टिकोण को नहीं मानता। दुनिया में जो बुराई है वह हमेशा अज्ञान से पैदा होती है। और अगर नेकनीयती में विवेक नहीं है तो वह भी उतना ही नुकसान पहुँचा सकती है जितना कि मानव-द्रोह और दुर्भावना। अगर सम्पूर्णता में देखा जाए तो इनसानों में बुराई के बजाय अच्छाई ज़्यादा होती है, लेकिन असली बात यह नहीं है। इनसान कमोबेश अज्ञान के शिकार हैं, इसी को हम अच्छाई या बुराई कहते हैं। सबसे बड़ा पाप, जिसका प्रतिकार नहीं किया जा सकता, ऐसे क़िस्म का अज्ञान है जो सोचता है कि वह सब कुछ जानता है इसलिए उसे हत्या का अधिकार है। हत्यारे की आत्मा अन्धी होती है; सच्ची नेकी या सच्चा प्यार परम स्पष्टदर्शिता के बग़ैर सम्भव नहीं है।
इसलिए सफ़ाई करने वाली इन टुकड़ियों को, जिन्हें बनाने का समूचा श्रेय तारो को था, समर्थन प्राप्त होना चाहिए और इन्हें वस्तुपरक दृष्टि से देखना चाहिए । इसीलिए कथाकार लच्छेदार भाषा में उनके साहस और सेवा-भाव को बयान नहीं करता, बल्कि अपेक्षाकृत उतना ही महत्त्व देता है जितना कि मिलना चाहिए। लेकिन वह प्लेग से पीड़ित हमारे नगरवासियों के विद्रोही और आहत दिलों का इतिहासकार बना रहेगा ।
जिन लोगों ने 'सैनेटरी स्क्वैड' में नाम लिखाया था, वे किसी उदात्त आदर्श से प्रेरित नहीं हुए थे, क्योंकि उन्हें मालूम था कि उनके सामने सिर्फ़ यही रास्ता है, इसके विपरीत जाने की वे कल्पना तक नहीं कर सकते थे। इन टुकड़ियों ने हमारे नगरवासियों को महामारी से लड़ने में मदद की और उन्हें यकीन दिला दिया कि जब प्लेग उनके सिर पर आ ही पड़ी है तो उससे लड़ने की जिम्मेवारी भी उन्हीं के ऊपर है। जब से प्लेग से लड़ना कुछ लोगों का फ़र्ज़ बन गया, तब से वह अपने असली रूप में प्रकट हुई अर्थात वह हम सब लोगों का सरोकार बन गई।
ख़ैर, जो हुआ अच्छा हुआ ! लेकिन हम किसी स्कूल टीचर को इस बधाई नहीं देते कि वह बच्चों को 'दो और दो चार होते हैं' सिखाता है, हालाँकि हम शायद उसे इस बात की बधाई दे सकते हैं कि उसने एक प्रशंसनीय पेशा चुना है। तो फिर आइए हम कहें कि तारो और अनेक दूसरे लोगों ने 'दो और दो चार होते हैं' सिद्ध करने का जिम्मा लिया था इसलिए वे बधाई के पात्र हैं। उन्होंने इससे उलटी बात सिद्ध करने की कोशिश नहीं की। लेकिन हम यह भी कहेंगे कि उनकी यह सद्भावना स्कूल मास्टरों में और स्कूल- मास्टरों की तरह सोचने वाले अनेक लोगों में पाई जाती है। मानव जाति के पक्ष में यह कहा जा सकता है कि ऐसे लोगों की संख्या हमारी उम्मीद से कहीं ज़्यादा है। कम-से-कम कथाकार का तो यही विश्वास है। कहना न होगा कि उसके ख़िलाफ़ जो इल्ज़ाम लगाया जा सकता है वह कथाकार को मालूम है, वह यह है कि तारो और उसके साथी अपनी जान को जोख़िम में डाल रहे थे। लेकिन इतिहास में ऐसा मौक़ा बार-बार आता है जब 'दो और दो चार होते हैं' कहने का साहस करने वाले आदमी को मौत की सज़ा दी जाती है। स्कूल- टीचर इस बात को अच्छी तरह जानता है। सवाल यह नहीं है कि इस गिनती के फलस्वरूप क्या इनाम या सज़ा मिलती है। सवाल यह है कि 'दो और दो चार होते हैं' यह बात किसी को मालूम है या नहीं। हमारे जो नगरवासी इस मुसीबत में अपनी जान जोख़िम में डाल रहे थे, उनके सामने सवाल यह था कि प्लेग उनके बीच मौजूद थी या नहीं, और उससे लड़ना उन लोगों का फ़र्ज़ था या नहीं।
उन दिनों बहुत से नए नैतिकतावादी पैदा हुए थे जो हमारे शहर में इस बात का प्रचार करते घूमते थे कि प्लेग पर कोई बस नहीं चल सकता और हमें विधाता की मरज़ी के आगे सिर झुका देना चाहिए। तारो, रियो और उनके दोस्त चाहे जैसे जवाब देते, लेकिन वे सब एक ही नतीजे पर पहुँचे थे, उन्हें यकीन था कि किसी-न-किसी तरीके से प्लेग के ख़िलाफ़ संघर्ष ज़रूर करना चाहिए और हरगिज़ झुकना नहीं चाहिए। सबसे ज़रूरी बात यह थी कि ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को मरने और अन्तहीन बिछोह से बचाया जाए। इसे करने का सिर्फ़ एक ही साधन था - प्लेग से जूझना । इस दृष्टिकोण में प्रशंसा की कोई विशेष बात नहीं थी, यह तर्कसंगत ही था ।
इसलिए यह स्वाभाविक ही था कि बूढा डॉक्टर कॉस्तेल अटल विश्वास से, लगातार मेहनत करके थोड़े सामान और वक़्त में ही प्लेग की सीरम तैयार कर रहा था। रियो को भी यक़ीन था कि प्लेग के ताज़ा कीटाणुओं से तत्काल बनी सीरम बाहर से मँगाई जाने वाली सीरम से ज़्यादा जल्दी असर करेगी, क्योंकि ट्रॉपिकल रोगों की पाठ्य पुस्तकों में प्लेग के जिन जीवाणुओं का ज़िक्र पाया जाता है वे हमारी प्लेग के जीवाणुओं से कुछ अलग क़िस्म के थे, कॉस्तेल को उम्मीद थी कि वह बहुत कम वक्त में सीरम की शुरू की सप्लाई तैयार कर लेगा ।
इसलिए यह भी स्वाभाविक था कि ग्रान्द, जिसे किसी माने में 'हीरो' नहीं कहा जा सकता था, इस वक़्त सैनेटरी स्क्वैडों का जनरल सेक्रेटरी था। तारो द्वारा संगठित की गई टुकड़ियों के कुछ हिस्से शहर के अधिक आबादी वाले इलाक़ों में काम कर रहे थे ताकि वहाँ सफ़ाई की हालत सुधारी जा सके। उनका काम घरों की सफ़ाई देखना और उन तहख़ानों और बरसातियों की सूची बनाना था जिनकी सफ़ाई सरकार के सफ़ाई विभाग ने अभी तक नहीं की थी। स्वयंसेवकों के जत्थे डॉक्टरों के साथ एक-एक घर में जाकर प्लेग की छूत वाले लोगों को घरों से निकालकर अस्पताल पहुँचाते थे। चूँकि ड्राइवरों की कमी थी इसलिए वे मरीज़ों और मुर्दों की गाड़ियों को भी चलाते थे। इन सारे कामों में बाकायदा आँकड़े और रजिस्टर रखने पड़ते थे। यह काम ग्रान्द ने सँभाला।
इस लिहाज़ से कथाकार का ख़याल है कि रियो और तारो से भी ज्यादा ग्रान्द सफ़ाई की टुकड़ियों के साहस का सच्चा प्रतीक था। उसने अपने स्वभाव के अनुसार बिना किसी हिचकिचाहट के सहृदयतापूर्वक फ़ौरन अपनी स्वीकृति दे दी थी। उसने सिर्फ़ यह माँग की थी कि उसे हल्का काम सौंपा जाए, क्योंकि बुढ़ापे में वह इससे ज्यादा भारी काम नहीं कर सकता था। हर रोज़ शाम को वह छह से लेकर आठ बजे तक का वक़्त देने के लिए राज़ी हो गया। जब रियो ने उत्साहपूर्वक उसे धन्यवाद दिया तो ग्रान्द ने आश्चर्य प्रकट किया “क्यों, यह भी कोई मुश्किल काम है? प्लेग हमारे बीच में मौजूद है और यह साफ़ है कि हमें कोई क़दम उठाना ही पड़ेगा। काश! हर चीज़ सीधी और आसान होती!” और उसने फिर अपना प्रिय मुहावरा इस्तेमाल किया। कई बार शाम को अपनी रिपोर्ट लिखने और आँकड़े तैयार करने के बाद ग्रान्द और रियो गपशप किया करते थे। कुछ दिन में तारो भी उनकी बातचीत में शामिल होने लगा। अपने दोनों साथियों के सामने अपने दिल का बोझ हल्का करने में ग्रान्द को बेहद ख़ुशी होती । उसके साथी उसके कठिन साहित्यिक प्रयास में सच्ची दिलचस्पी लेने लगे, जिसमें वह प्लेग के बावजूद जुटा था। इस चर्चा से उनकी मानसिक थकान भी कम हो जाती थी।
"तुम्हारी घुड़सवार महिला का क़िस्सा कैसा चल रहा है?" तारो पूछता और ग्रान्द हमेशा तिरछी मुस्कान के साथ कहता, “दुलकी चाल से चल रही है चल रही है !" एक दिन शाम को ग्रान्द ने एलान किया कि वह घुड़सवार महिला के लिए 'शानदार' शब्द इस्तेमाल नहीं करेगा, बल्कि उसे 'इकहरे बदन वाली' कहेगा। "यह शब्द अधिक ठोस और वास्तविक है।" उसने समझाया। इसके बाद उसने दोनों दोस्तों को वाक्य का नया रूप सुनाया ।
"मई के महीने की एक सुहानी सुबह एक इकहरे बदन वाली घुड़सवार तरुणी बोये द बोलोन के फूलों से सुसज्जित रास्तों में ललछौंहे भूरे रंग की एक ख़ूबसूरत घोड़ी पर देखी जा सकती थी ।
"इस तरह से बेहतर तस्वीर बनती है न! और मैंने मई के महीने की जगह 'मई के महीने की एक सुहानी सुबह' लिखा है, क्योंकि पहले वाक्य से घोड़ी की चाल वाला अंश कुछ लम्बा हो जाता था, आप मेरा मतलब समझ गए हैं न?"
इसके बाद ग्रान्द ने 'ख़ूबसूरत' विशेषण पर कुछ परेशानी ज़ाहिर की । उसकी राय में यह विशेषण उसकी भावनाओं को पूरी तरह व्यक्त करने में असमर्थ था, इसलिए वह किसी ऐसे विशेषण की तलाश में था जो फ़ौरन और साफ़ ढंग से उस शानदार जानवर की तस्वीर खींच सके, जिसकी तस्वीर उसके मन में थी। 'गदराया हुआ' शब्द ठोस होते हुए भी ठीक नहीं था, बल्कि इसमें हिकारत और बेहूदगी की मात्रा थी। कुछ क्षण के लिए उसे 'खरहरा किया' शब्द मोहक लगा था, लेकिन यह भारी और फूहड़ था, जिससे लय में शिथिलता आ गई थी। फिर एक दिन उसने विजेता भाव से घोषित किया कि उसे सही शब्द मिल गया, 'काली, ललछौंही भूरी घोड़ी।' उसने कहा कि 'काली' से ऐश्वर्य और सुन्दरता का आभास मिलता है।
"इससे काम नहीं चलेगा?"
"क्यों नहीं?"
"क्योंकि 'ललछौंही भूरी' घोड़े की नस्ल नहीं बल्कि एक रंग है।"
"कौन-सा रंग?"
"ख़ैर... जो भी हो, यह काला रंग नहीं है। "
ग्रान्द बेहद परेशान दीख रहा था।
“धन्यवाद,” उसने उत्साह से कहा, “कितनी ख़ुशकिस्मती की बात है कि आप मेरी मदद कर रहे हैं! लेकिन आप लोगों ने देखा यह कितना मुश्किल काम है!"
"चमकदार' कैसा रहेगा?” तारो ने सुझाव दिया।
ग्रान्द ने सोच में डूबी नज़रों से उसकी तरफ़ देखा और कहा, “हाँ, यह अच्छा शब्द है।” और धीरे-धीरे उसके होंठों पर एक मुस्कान खिल उठी ।
कुछ दिन बाद उसने बताया कि 'फूलों से सुसज्जित' शब्द उसे काफ़ी परेशान कर रहा है। वह सिर्फ़ दो शहरों, ओरान और मोतेलीमार से परिचित है। कई बार वह अपने दोस्तों से कहता कि वे उसे बोये द बोलोन की वृक्षों से ढकी सड़कों के बारे में बताएँ-वहाँ फल किस क़िस्म के होते हैं और किस तरतीब में लगाए जाते हैं? दरअसल रियो और तारो में से किसी को कभी यह अन्दाज़ नहीं था कि वे सड़कें 'फूलों से सुसज्जित' थीं। लेकिन ग्रान्द की अटल आस्था ने उन्हें अपनी स्मृतियों पर अविश्वास करने के लिए मजबूर कर दिया। ग्रान्द को उन लोगों के अविश्वास पर ताज्जुब हुआ। वह इस नतीजे पर पहुँचा कि सिर्फ़ कलाकार ही अपनी आँखों का इस्तेमाल करना जानते हैं। लेकिन एक दिन शाम को रियो ने उसे उत्तेजित हालत में पाया, क्योंकि 'फूलों से सुसज्जित' के बजाय उसने 'बिखरे हुए फूल' लिख दिया था। वह बार-बार अपनी हथेलियाँ रगड़ रहा था। “अब मैं उन फूलों को देख सकता हूँ, सूँघ सकता हूँ । हैट्स ऑफ, जेंटलमैन!" फिर उसने विजेता भाव से वाक्य पढ़कर सुनाया ।
"मई के महीने की एक सुहानी सुबह एक छरहरे बदन की नौजवान घुड़सवार लड़की बोये द बोलोन के वृक्षों से ढके मार्ग पर एक चमकदार ललछौंही भूरी घोड़ी पर सवार देखी जा सकती थी। रास्ते में फूल बिखरे हुए थे।"
लेकिन जब यह वाक्य ऊँचे स्वर में पढ़ा गया तो बहुवचन के 'ओं' अप्रिय मालूम हुए। ग्रान्द की आवाज़ बीच-बीच में अटक गई और मन्द हो गई। ग्रान्द हताश भाव से बैठ गया और उसने डॉक्टर से जाने की इजाज़त माँगी। उसे अब कठिन चिन्तन करना था।
बाद में पता चला कि इन्हीं दिनों दफ्तर में काम करते हुए ग्रान्द में लापरवाही और भुलक्कड़पन के लक्षण दिखाई देने लगे थे। अधिकारियों ने इस मामले को गम्भीर समझा था। म्यूनिसिपल के पास बहुत कम स्टाफ़ रह गया था और उन पर काम का बोझ बढ़ गया था। इसके अलावा लगातार उन्हें नई ज़िम्मेदारियाँ सँभालनी पड़ रही थीं। ग्रान्द की लापरवाही का असर उसके विभाग की कार्यकुशलता पर पड़ा। उसके अफ़सर ने उसकी ख़ूब ख़बर ली और कहा कि उसे काम करने के लिए तनख़्वाह मिलती है और वह अपने काम को ठीक से नहीं कर रहा । "मुझे पता चला है कि तुमने सफ़ाई करने वाले स्वयंसेवकों की टुकड़ी में भी अपना नाम लिखाया है। खैर, तुम दफ़्तर की ड्यूटी के बाद के समय में यह काम करते हो, इसलिए मुझे इससे कोई सरोकार नहीं। लेकिन ऐसे मुसीबत के वक़्त समाज-सेवा का एक ही तरीक़ा है। वह यह कि सब लोग अपना काम ठीक से करें। बाक़ी सब बातें बेकार हैं।”
"वह ठीक कहता है," ग्रान्द ने रियो से कहा ।
“हाँ, वह ठीक कहता है।" डॉक्टर ने सहमति जताई।
"लेकिन मैं अपने विचारों को सन्तुलित नहीं कर पाता। वाक्य का अन्तिम हिस्सा मुझे परेशान किए रहता है। मैं ठीक शब्दों का चुनाव नहीं कर पा रहा । "
बार-बार बहुवचन के 'ओं' की ध्वनि ग्रान्द को अब भी कर्णकटु मालूम होती थी, लेकिन उन्हें सुधारने के लिए उसके सामने सिवा घटिया पर्यायवाची शब्दों का इस्तेमाल करने के और कोई चारा नहीं था । 'बिखरे हुए फूल' का प्रयोग जब पहली बार उसके दिमाग़ में आया था तो उसे बेहद ख़ुशी हुई थी, लेकिन अब इससे उसे सन्तोष नहीं हो रहा था। यह कैसे कहा जा सकता था कि फूल बिखरे हुए हैं जबकि वे रास्ते के दोनों ओर लगाए गए होंगे या अपने आप ही उग आए होंगे। किसी-किसी शाम को तो वह रियो से भी ज़्यादा थका हुआ दिखाई देता था।
सचमुच लगातार इस व्यर्थ खोज ने उसके मन को थका दिया था, फिर भी वह रजिस्टर में पूर्ववत आँकड़े जमा करता और लिखता था, जिनकी ज़रूरत सफ़ाई की टुकड़ियों को थी। धैर्यपूर्वक हर शाम वह आँकड़ों का नए सिरे से योग करता था और उसे स्पष्ट करने के लिए ग्राफ़ भी तैयार करता था। वह अपने ‘तथ्यों' को बिलकुल साफ़ और सही रूप में पेश करने की कोशिश में अपने दिमाग़ को झकझोर डालता था। अक्सर वह किसी अस्पताल में रियो से मिलने जाता था कि किसी दफ़्तर या डिस्पेंसरी में उसके लिए मेज़-कुर्सी का प्रबन्ध कर दिया जाए। फिर वह एकाग्रतापूर्वक काम करने बैठ जाता था, ठीक उसी तरह जैसे वह म्यूनिसिपल कमेटी में अपनी मेज़ के आगे बैठकर काम करता था। हर बार काग़ज़ लिखकर वह स्याही सुखाने के लिए गरम हवा में हिलाता था जिसमें कीटाणुनाशक दवाइयों और बीमारी की गन्ध बसी थी। ऐसे मौकों पर ईमानदारी से कोशिश करता था कि वह 'घुड़सवार महिला' के बारे में न सोचे और अपना ध्यान काम पर केन्द्रित करे।
हाँ, अगर यह सच है कि लोग चाहते हैं कि उनके सामने उन लोगों की मिसालें रखी जाएँ जिन्हें वे 'बहादुर' कहते हैं और अगर यह नितान्त आवश्यक है कि इस कहानी में 'हीरो' हो, तो कथाकार अपने पाठकों से उस अज्ञात और मामूली 'हीरो' का परिचय कराता है जिसके पास सिर्फ़ एक नेक दिल और एक ऐसा आदर्श है जो देखने में हास्यास्पद मालूम होता है। कथाकार का विचार है कि वह पाठकों के साथ पूरा इंसाफ़ कर रहा है। इससे सचाई के प्रति भी उसका फ़र्ज़ पूरा हो जाएगा। दो और दो मिलकर चार हो जाएँगे और बहादुरी को ख़ुशी के मुक़ाबले दूसरे नम्बर की जगह मिलेगी जो कि हमेशा मिलनी चाहिए, क्योंकि पहली जगह पाने का हक़ ख़ुशी को है। इससे इस इतिहास में भी व्यक्तित्व पैदा हो जाएगा, जिसका उद्देश्य कहानी में अच्छी भावनाओं का अर्थात उन भावनाओं का समावेश करना है जो न तो बुराई का प्रदर्शन करती हैं, न ही जिनमें स्टेज के नाटक की तरह सस्ती और कुरूप भावुकता है।
कम-से-कम डॉक्टर रियो की तो यही राय थी जब उसने अख़बारों में वे सन्देश और प्रोत्साहन के शब्द पढ़े और रेडियो पर सुने जो बाहर की दुनिया के लोगों ने प्लेग-ग्रस्त नगरवासियों को भेजे थे। हवाई जहाज़ या सड़कों के रास्ते उन्होंने सामान तो भेजा ही था, इसके अलावा दुनिया से कटे हुए उस शहर से अख़बारों के लेखों और रेडियो वार्ताओं में भी स्नेह और प्रशंसा व्यक्त की जाती थी। हर बार उन लेखों और वार्ताओं की लच्छेदार भाषा सुनकर, जैसी कि इनाम पाने के लिए दिये गए भाषणों में लिखी जाती है, डॉक्टर को बहुत बुरा लगता था। यह कहने की ज़रूरत नहीं कि डॉक्टर को यह अच्छी तरह मालूम था कि यह हमदर्दी सच्ची है। लेकिन इसे सिर्फ़ परम्परागत भाषा में ही व्यक्त किया जा सकता था, जिसमें लोग उस भावना को व्यक्त करने की कोशिश करते हैं जो उन्हें मानव मात्र से जोड़ती है; मिसाल के लिए यह शब्दावली ग्रान्द की रोज़मर्रा की छोटी-छोटी कोशिशों को व्यक्त करने में तो नाकाम थी ही, प्लेग की परिस्थितियों में भी ग्रान्द के क्या आदर्श थे, यह बयान करने में भी वह असमर्थ थी ।
कई बार आधी रात को नींद में सोए शहर के विशाल मौन में, सोने से पहले डॉक्टर रेडियो सुनता था। इन दिनों वह अपने को बहुत कम सोने था। धरती के सुदूर छोरों से, ज़मीन और समुद्र के हज़ारों मील पार सहृदय और दयावान वक्ता सहानुभूति की अपनी भावनाओं को व्यक्त करने की कोशिशें कर रहे थे, लेकिन उन्होंने यह भी साबित कर दिया कि कोई भी व्यक्ति ऐसी किसी अदृश्य पीड़ा का साझीदार नहीं बन सकता। 'ओरान! ओरान!' व्यर्थ में ही यह आवाज़ समुद्र पार से गूँज रही थी और व्यर्थ में ही रियो दिल में उम्मीद लेकर रेडियो सुनता था। हर बार सुवचनों का ज्वार उठता था जिससे वक्ता और ग्रान्द के बीच कभी न पटने वाली खाई का एहसास और बढ़ जाता था। वे लोग भावुक स्वर में आवाज़ देते थे, “ओरानवासियो, हम तुम्हारे साथ हैं!” लेकिन, डॉक्टर ने मन-ही-मन कहा, लेकिन प्यार और मौत में वे हमारे साथी नहीं और साथ देने का यही एक तरीका है। वे लोग हमसे बहुत दूर हैं।
दूसरा भाग : 9
और, उस ज़माने में जब प्लेग अपनी तमाम ताक़तें इकट्ठी करके शहर पर धावा बोल रही थी और उसे बरबाद कर रही थी, उसका ज़िक्र करने से पहले प्रसंगवश हमें रेम्बर्त जैसे हठीले लोगों के लम्बे और हृदय विदारक, नीरस संघर्ष का ज़िक्र करना होगा। वे अपनी खोई ख़ुशी के लिए लड़ रहे थे और प्लेग को अपने व्यक्तित्व के उस हिस्से से वंचित रखना चाहते थे जिसे बचाने के लिए वे अन्तिम क्षण तक जूझने को तैयार थे। गुलामी की जंज़ीरों से लड़ने का उन्होंने यही तरीक़ा सोचा था। हालाँकि उनका संघर्ष सक्रिय नहीं था, फिर भी ( कथाकार की दृष्टि में) उसमें अपनी एक महानता थी। इसके अलावा अपनी निरर्थकता और असंगतियों में भी यह संघर्ष एक कल्याणकारी अहंकार का साक्षी था।
रेम्बर्त प्लेग से इसलिए लड़ रहा था ताकि प्लेग उस पर काबू न पा सके। जब उसे यकीन हो गया कि वह किसी जायज़ तरीके से शहर से बाहर नहीं निकल सकता तो उसने तय किया, जैसा कि उसने रियो को बताया कि वह दूसरे तरीके अपनाएगा। सबसे पहले उसने कॉफ़ी हाउसों के वेटरों से साँठ-गाँठ की। आमतौर पर वेटरों को अन्दरूनी बातों का पता रहता है। लेकिन पहले जिस वेटर से उसने बात की उससे तो यही पता चला कि शहर से भागने की कोशिश करने वालों को सख़्त जुर्माने होते हैं और सजाएँ दी जाती हैं। एक कॉफ़ी हाउस में तो सचमुच उसे भेदिया समझकर खदेड़ दिया गया । जब रियो के यहाँ उसकी मुलाक़ात कोतार्द से हुई तब जाकर मामला कुछ आगे बढ़ा। उस रोज़ उसमें और रियो में फिर बातचीत हो रही थी कि किस तरह अफ़सरों ने उसकी प्रार्थना पर कोई ध्यान नहीं दिया। कोतार्द ने उनकी बातचीत का आख़िरी हिस्सा सुना ।
कुछ दिन बाद रेम्बर्त की कोतार्द से सड़क पर मुलाक़ात हो गई। इन दिनों कोतार्द सबसे तपाक से मिलता था।
उसने पूछा, "हेलो रेम्बर्त! अभी तक कामयाबी नहीं मिली?"
“बिलकुल नहीं।”
"इन लाल फीते के व्यापारियों पर भरोसा करने से कोई फ़ायदा नहीं । चाहकर भी वे तुम्हारी बात नहीं समझ सकते । "
“मैं जानता हूँ और अब मैं कोई दूसरा तरीक़ा तलाश कर रहा हूँ। यह टेढ़ा मामला है।"
“हाँ, टेढ़ा तो है ही, लेकिन..." कोतार्द ने कहा ।
उसे एक तरकीब मालूम थी और उसने वह तरकीब रेम्बर्त को समझाई। रेम्बर्त को बहुत ताज्जुब हुआ । पिछले कुछ दिन से वह कॉफ़ी - हाउसों के चक्कर काटता रहा था, उसका कई नए लोगों से परिचय हुआ था और उसे पता चला था कि ऐसे मामलों के लिए एक 'संस्था' थी। दरअसल कोतार्द, जो इन दिनों अपनी हैसियत से कहीं ज़्यादा ख़र्च करने लगा था, चोरी से राशन की चीज़ों को बाहर से मँगवाता था। वह ऊँचे दामों पर चोरी से मँगवाए सिगरेट और घटिया शराबें बेचता था, जिससे उसने अच्छी-खासी रकम जमा कर ली थी।
“क्या तुम विश्वासपूर्वक कह सकते हो कि यह सम्भव है?" रेम्बर्त ने पूछा।
“बिलकुल । अभी कुछ दिन पहले किसी ने मुझसे यह प्रस्ताव किया था।”
“लेकिन तुमने इसे स्वीकार नहीं किया । "
"छोड़ो भी, इसमें शक की कोई बात नहीं । ” कोतार्द के लहजे में मैत्री - भाव था। "मैंने इसलिए स्वीकार नहीं किया, क्योंकि मुझे यहाँ से जाने की कोई इच्छा नहीं। इसके कई कारण हैं।” थोड़ी देर ख़ामोश रहने के बाद उसने कहा, “देखता हूँ कि तुम्हें इन कारणों में कोई दिलचस्पी नहीं है । ”
"मैं समझता हूँ कि उन कारणों से मुझे कोई सरोकार नहीं ।" रेम्बर्त ने जवाब दिया।
“एक माने में यह सही है, लेकिन दूसरे लिहाज से स्थिति यूँ है कि जब से शहर में प्लेग फैली है, मैं ज़्यादा आराम से रहने लगा हूँ।”
रेम्बर्त ने कोई टिप्पणी नहीं की, फिर उसने पूछा, “अच्छा इस तथाकथित 'संस्था' से कैसे सम्पर्क किया जा सकता है?"
“आह! यह आसान बात नहीं है।... मेरे साथ आओ,” कोतार्द ने कहा ।
शाम के चार बजे थे। जलते हुए आसमान तले शहर जैसे उबल रहा था। आसपास कोई नज़र नहीं आता था। सब दुकानों के दरवाज़े बन्द थे। कोतार्द और रेम्बर्त मेहराबों के नीचे से कुछ दूर तक चुपचाप चलते गए। इस वक़्त प्लेग का प्रकोप कुछ कम रहता था। महामारी की तरह तेज़ रोशनी की वजह से भी सारे रंग मुरझा जाते थे और लोगों का आना-जाना बन्द हो जाता था । यह कहना मुश्किल था कि हवा में ख़तरे का भारीपन था या सिर्फ़ धूल और गरमी का ध्यान से देख और सोचकर ही किसी को वहाँ प्लेग की मौजूदगी का एहसास हो सकता था। सिर्फ़ नकारात्मक इशारों से ही प्लेग अपनी मौजूदगी का पता देती थी । कोतार्द ने, जिसकी आजकल प्लेग से दोस्ती थी, रेम्बर्त का ध्यान कुत्तों की अनुपस्थिति की तरफ दिलाया जो आमतौर पर यहाँ दरवाज़ों की छाँह में लेटकर हाँफते हुए, ठंडी ज़मीन के टुकड़े को तलाश करने का निरर्थक प्रयास करते हुए देखे जा सकते थे।
वे बुलेवार द पामीयर्ज़ से होते हुए प्लेस द आर्मे से गुज़रे और फिर बन्दरगाह की ओर मुड़े। बाईं तरफ़ एक कॉफ़ी-हाउस था जिस पर हरे रंग की सफ़ेदी की गई थी और पीले रंग की खुरदरी कैनवस की कनात फुटपाथ तक फैली हुई थी। कॉफी-हाउस में घुसते वक़्त कोतार्द और रेम्बर्त ने अपना- अपना माथा पोंछा । भीतर लोहे की छोटी-छोटी मेजें थीं, जिन पर हरे रंग का रोगन किया गया था। बन्द होने वाली कुर्सियाँ भी थीं। कमरा खाली था, हवा में मक्खियों की भिनभिनाहट सुनाई दे रही थी। शराब के काउंटर पर पीले रंग के पिंजड़े में एक तोता अपने अड्डे पर बैठा था। उसके सारे पंख ढलके हुए थे। दीवारों पर कुछ सैनिक दृश्यों की तस्वीरें थीं जो मिट्टी और मकड़ी के जालों से ढकी हुई थीं। मेज़ों पर पक्षियों की बीटें सूख रही थीं- उस मेज़ पर भी, जिसके आगे रेम्बर्त बैठा था। उसे ताज्जुब हुआ कि ये बीटें कहाँ से आईं। इतने में किसी के पंख फड़फड़ाने की आवाज़ आई और एक खूबसूरत मुर्गा अँधेरे कोने से निकलकर फुदकता हुआ आया, जहाँ वह छिपा बैठा था।
इसी वक़्त गरमी कई दरजे ज़्यादा बढ़ गई। कोतार्द ने अपना कोट उतार दिया और मेज़ पर ज़ोर से मुट्ठी मारकर आवाज़ की। एक बेहद नाटा आदमी नीले रंग का लम्बा एप्रन पहनकर, जो उसकी गरदन तक उठा हुआ था, पीछे के दरवाज़े से आया। उसने कोतार्द को अभिवादन किया और ज़ोर से मुर्गे को अपने रास्ते से हटाता हुआ मेज़ के पास पहुँचा। मुर्गे की गुस्से-भरी कें-कें को डुबोने के लिए उसने ऊँची आवाज़ में दोनों जनों से पूछा कि वे क्या पसन्द करेंगे? कोतार्द ने सफ़ेद शराब का ऑर्डर दिया और पूछा, "गार्सिया कहाँ है?" बौने ने जवाब दिया कि गार्सिया बहुत दिन से कॉफ़ी - हाउस में दिखाई नहीं दिया।
"क्या ख़याल है, वह आज शाम को आएगा ?”
"खैर, वह मुझे अपने राज़ तो नहीं बताता। लेकिन आप तो जानते ही हैं कि अक्सर वह किस वक़्त यहाँ आता है।”
“हाँ, कोई खास ज़रूरी बात नहीं है। लेकिन मैं उसे अपने इस दोस्त से मिलवाना चाहता हूँ।”
शराब वाले ने अपने गीले हाथ एप्रन के सामने के हिस्से से पोंछते हुए पूछा, "आह! तो ये सज्जन भी बिजनेस में शामिल हैं?"
"हाँ," कोतार्द ने कहा । ठिगने आदमी ने नकियाते हुए कहा, "अच्छी बात शाम को आइएगा। मैं लड़के को भेजकर उसे ख़बर करा दूँगा।”
जब वे बाहर आए तो रेम्बर्त ने पूछा कि किस बिजनेस का ज़िक्र हो रहा था।
"अरे वाह, स्मगलिंग! ये लोग फाटकों से सन्तरियों के देखते-देखते माल भीतर ले आते हैं। इस बिजनेस में बहुत आमदनी है। "
"समझ गया । " रेम्बर्त एक क्षण की ख़ामोशी के बाद बोला, “मेरा ख़याल है कि कचहरी में भी उनके दोस्त होंगे। "
"तुमने सही बात भाँप ली है।"
शाम के वक़्त कनात को लपेट दिया गया। तोता अपने पिंजरे में टैं-टॅ करने लगा। छोटी मेज़ों के इर्द-गिर्द लोग जमा हो गए। उन्होंने सिर्फ़ कमीजें और पतलूनें पहन रखी थीं। जब कोतार्द दाख़िल हुआ तो एक आदमी, जिसकी सफ़ेद कमीज़ में से ईंट जैसे लाल रंग का सीना चमक रहा था और जिसने स्ट्रॉ हैट पहन रखा था, उठकर खड़ा हो गया। उसका चेहरा धूप में तपा हुआ था, नाक-नक्श चौकस थे, काले रंग की छोटी-छोटी आँखें थीं, दाँत बहुत सफ़ेद थे, उँगलियों में दो या तीन अँगूठियाँ थीं, उसकी उम्र तीस के करीब मालूम होती थी।
"खुश रहो प्यारे !" उसने रेम्बर्त की तरफ़ ध्यान न देकर कोतार्द से कहा, "आओ बार में चलकर एक-एक पिएँ ।”
उन्होंने ख़ामोशी से शराब के तीन दौर चलाए ।
"चलो ज़रा टहलें," गार्सिया ने सुझाव दिया।
वे बन्दरगाह की तरफ़ चल पड़े। गार्सिया ने पूछा कि वह उनकी क्या खिदमत कर सकता है। कोतार्द ने बताया कि वह अपने दोस्त मोशिए रेम्बर्त का बिज़नेस के लिए नहीं, बल्कि 'भागने के लिए' परिचय कराना चाहता है। सिगरेट का कश खींचते हुए गार्सिया आगे बढ़ता गया। उसने कुछ सवाल पूछे जिनमें वह 'यह आदमी' कहकर रेम्बर्त की उपस्थिति की तरफ़ ध्यान दिए बग़ैर रेम्बर्त के बारे में बात करने लगा।
"यह यहाँ से क्यों जाना चाहता है?"
"इसकी पत्नी फ्रांस में है। "
"आह ! " फिर थोड़ी देर ख़ामोश रहने के बाद गार्सिया ने पूछा “यह क्या काम करता है?"
"यह पत्रकार है।"
“क्या अभी भी ? पत्रकारों की जीभ बहुत लम्बी होती है।"
“मैं तुम्हें बता चुका हूँ कि यह मेरा दोस्त है," कोतार्द ने जवाब दिया ।
वे घाटों तक ख़ामोशी से चलते रहे। अब घाटों के गिर्द तारों की बाड़ लगा दी गई थी। वे एक छोटे-से रेस्तरों की तरफ़ मुड़े जिसके अन्दर से तली हुई मछली की सुगन्ध आ रही थी ।
गार्सिया ने निश्चयपूर्वक कहा, “जो भी हो, यह मेरे बस की बात नहीं, सिर्फ़ राओल ही ऐसा आदमी है जो यह काम कर सकता है। मुझे उससे सम्पर्क करना पड़ेगा। यह आसान काम नहीं है । "
"सचमुच? वह दुबका बैठा है, क्यों?" कोतार्द ने दिलचस्पी ज़ाहिर की।
गार्सिया ने कोई जवाब न दिया। शराबखाने के दरवाज़े के पास जाकर वह रुक गया और पहली बार उसने रेम्बर्त से सीधे बात की।
"परसों ग्यारह बजे, अपर टाउन में कस्टम की बैरकों के पास मिलना।” फिर वह भीतर जाने लगा। अचानक तभी मानो उसे कुछ ख़याल आया। उसने लापरवाही से कहा, “इस काम में कुछ ख़र्च करना पड़ेगा । "
रेम्बर्त ने सिर हिलाकर सम्मति प्रकट की, “सो तो होगा ही।”
लौटते वक्त रास्ते में पत्रकार ने कोतार्द को धन्यवाद दिया ।
“इसमें धन्यवाद की कोई बात नहीं मेरे दोस्त! तुम्हारी मदद करके मुझे ख़ुशी ही होगी। और फिर तुम पत्रकार हो । कभी-न-कभी तुम मेरे बारे में भी एकाध शब्द लिख दोगे।”
दो दिन बाद रेम्बर्त और कोतार्द शहर के ऊपरी हिस्से को जाने वाली चौड़ी छायाहीन सड़क को पार कर रहे थे। कस्टम अफ़सरों की बैरकों के एक हिस्से को अस्पताल में बदल दिया गया था और मुख्य फाटक के सामने बहुत से लोग खड़े थे। कुछ किसी मरीज़ से मिलने की आशा लेकर आए थे- यह आशा निरर्थक थी, क्योंकि मरीज़ों से मुलाक़ात करने की सख़्त मनाही थी। कुछ लोग किसी बीमार की ख़बर पाने की उम्मीद से आए थे, हालाँकि घंटे भर में इस ख़बर का महत्त्व ख़त्म हो जाता था। इन कारणों से हमेशा अस्पताल के बाहर भीड़ जमा रहती थी और आवाजाही नज़र आती थी; इसीलिए शायद गार्सिया ने रेम्बर्त से मिलने के लिए यह जगह चुनी थी ।
कोतार्द ने कहा, “मेरी समझ में नहीं आता कि तुम यहाँ से जाने के लिए क्यों इतने उतावले हो रहे हो? शहर में जो घटनाएँ हो रही हैं मुझे तो वे सचमुच दिलचस्प मालूम होती हैं।”
“मुझे नहीं,” रेम्बर्त ने जवाब दिया।
“हाँ, यह मैं मानता हूँ कि लोगों को बहुत जोख़िम उठानी पड़ रही है, भी अगर तुम ग़ौर से सोचो तो इस नतीजे पर पहुँचोगे कि प्लेग से पहले किसी काफी अधिक ट्रैफिक वाली सड़क को पार करने में भी इतनी ही जोख़िम रहती थी ।"
इसी वक़्त रियो की कार आकर उनके बराबर खड़ी हो गई। तारो ड्राइव कर रहा था और रियो की आँखें नींद से मुँदी जा रही थीं। रियो ने जगकर दोनों का अभिवादन किया।
तारो ने कहा, "हम एक-दूसरे को जानते हैं। हम एक ही होटल में हैं। " फिर उसने रेम्बर्त से कहा कि वह उसे कार में बिठाकर शहर के केन्द्र तक ले जा सकता है।
"नहीं, धन्यवाद! हमने यहाँ किसी को मिलने के लिए वक़्त दिया है। "
रियो ने कठोर दृष्टि से रेम्बर्त की तरफ़ देखा।
"हाँ," रेम्बर्त ने कहा ।
कोतार्द को ताज्जुब हुआ, “क्या माज़रा है? क्या डॉक्टर को यह बात मालूम है?"
"वह रहा मजिस्ट्रेट," तारो ने आँख के इशारे से कोतार्द को चेतावनी दी।
कोतार्द के चेहरे का भाव बदल गया। मजिस्ट्रेट ओथों सड़क पर उनकी तरफ़ बढ़ा आ रहा था। उसकी चाल में तेजी के साथ-साथ शालीनता भी थी। उन लोगों के पास पहुँचकर उसने अपना हैट उतार लिया।
"गुड मॉर्निंग, मौशिए आर्थो,” तारो ने कहा।
मजिस्ट्रेट ने कार में बैठे लोगों के अभिवादन का जवाब दिया और फिर रेम्बर्त और कोतार्द की तरफ़ देखकर ख़ामोशी से सिर हिलाया जो पीछे की तरफ़ खड़े थे। तारो ने कोतार्द और पत्रकार का परिचय कराया। मजिस्ट्रेट कुछ देर तक आँखें फाड़-फाड़कर आसमान की ओर देखता रहा, फिर उसने ठंडी साँस लेकर कहा कि सचमुच बड़ी मुसीबत का वक़्त आ गया है।
"मैंने सुना है, मोशिए तारो, कि आप लोगों को प्लेग से बचने के तरीके सिखा रहे हैं। यह कहने की ज़रूरत नहीं कि आप सचमुच कितना प्रशंसनीय काम कर रहे हैं, कितनी शानदार मिसाल कायम कर रहे हैं... डॉक्टर रियो, क्या ख़याल है, क्या महामारी और ज़्यादा बढ़ेगी?"
रियो ने जवाब दिया कि आदमी सिर्फ़ उम्मीद ही कर सकता है कि हालत बिगड़ेगी नहीं। मजिस्ट्रेट ने कहा कि इनसान को कभी उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए, क़िस्मत के खेल निराले हैं।
तारो ने पूछा, “क्या मौजूदा परिस्थितियों के फलस्वरूप मजिस्ट्रेट महोदय का काम बढ़ गया है?"
"ठीक इससे उलटी बात हुई है। जिन मामलों को हम पहली बार फ़ौजदारी मामले कहते हैं वे दिन-ब-दिन दुर्लभ होते जा रहे हैं। दरअसल अब मेरा काम सिर्फ़ नई धाराओं के गम्भीर उल्लंघन की जाँच करना रह गया है। हमारे साधारण कानूनों की कभी इतनी इज़्ज़त नहीं की गई जितनी कि लोग आजकल कर रहे हैं। "
"क्योंकि आज के मुक़ाबले पहले के क़ानून बहुत अच्छे मालूम होते हैं, " तारो ने कहा ।
मजिस्ट्रेट ने, जो आसमान से नज़रें हटाने में असमर्थ दिखाई देता था, अचानक अपनी कोमल चिन्तनशीलता छोड़कर तारो की तरफ़ घूरकर देखा।
"इससे क्या फ़र्क पड़ता है? असली चीज़ क़ानून नहीं, बल्कि सज़ा है... और यह एक ऐसी चीज़ है जिसे हम सबको क़बूल करना चाहिए।"
जब मजिस्ट्रेट कुछ दूर चला गया तो कोतार्द ने कहा, “यह आदमी पहले नम्बर का दुश्मन है। "
तारो ने स्टार्टर दबाया।
कुछ देर बाद रेम्बर्त और कोतार्द ने गार्सिया को आते देखा। यह दिखाए बग़ैर कि वह उन्हें जानता है, वह सीधा उनके पास आया और दुआ सलाम करने के बजाय बोला, “तुम्हें कुछ इन्तज़ार करना पड़ेगा।”
उनके आसपास भीड़ में बिलकुल ख़ामोशी छाई थी। भीड़ में अधिकतर औरतें ही थीं। सबके हाथों में पुलिन्दे थे। वे इस निरर्थक उम्मीद से वहाँ आई थीं कि किसी-न-किसी तरह वे यह सामान अपने बीमार रिश्तेदारों तक पहुँचा सकेंगी। सबसे ज़्यादा ग़लतफ़हमी उन्हें इस बात की थी कि शायद उनके रिश्तेदार उनकी भेजी हुई चीजें खाएँगे। फाटक पर हथियारबन्द सन्तरियों का पहरा था और रह-रहकर फाटक और बैरकों के बीच के सहन पैशाचिक चीख़ों की आवाजें सुनाई देती थीं, जिन्हें सुनकर परेशान आँखें बीमारों के वार्डों की तरफ़ उठ जाती थीं।
तीनों जने खड़े इस दृश्य को देख रहे थे, कि पीछे से किसी ने तपाक से 'गुड मॉर्निंग' कहा। तीनों ने पीछे मुड़कर देखा । गरमी के बावजूद राओल गहरे रंग का सूट पहने था, जिसकी काट बहुत शानदार थी। उसके सिर पर फेल्ट हैट था, जिसका सिरा ऊपर की ओर मुड़ा था। वह लम्बा-तड़ंगा आदमी था। उसके चेहरे पर कुछ पीलापन था । अपने होंठ हिलाए बग़ैर : उसने साफ़ आवाज़ में फ़ौरन कहा,
“चलो, केन्द्र की तरफ़ पैदल चलें... और गार्सिया, तुम्हारे आने की कोई ज़रूरत नहीं। "
गार्सिया ने एक सिगरेट सुलगाया और वह वहीं रह गया । बाक़ी के लोग आगे चले गए। रेम्बर्त और कोतार्द के बीचोबीच राओल बहुत तेज़ चाल से चलने के लिए सबको प्रेरित कर रहा था।
"गार्सिया ने मुझे सारा मामला समझा दिया है। हम इसे तय कर सकते हैं। लेकिन मैं तुम्हें आगाह कर देना चाहता हूँ कि इसमें तुम्हारे पूरे दस हज़ार लग जाएँगे।”
रेम्बर्त ने कहा कि उसे ये शर्तें मंजूर हैं।
“कल घाटों के पास स्पेनिश रेस्तराँ में मेरे साथ लंच लेना । "
रेम्बर्त ने कहा, “ठीक है।” राओल ने उससे हाथ मिलाया। वह पहली बार मुस्करा रहा था। जब वह चला गया तो कोतार्द ने कहा कि वह कल लंच के वक़्त नहीं आ सकेगा, क्योंकि उसे किसी से मिलना है। ख़ैर, रेम्बर्त को अब उसकी मदद की ज़रूरत भी नहीं है।
अगले दिन जब रेम्बर्त स्पेनिश रेस्तराँ में दाख़िल हुआ तो सब लोग गरदन घुमाकर उसकी तरफ़ देखने लगे। ऐसा मालूम होता था कि उस अँधेरे तहखाने - जैसे कमरे में जो छोटी पीली सड़क से भी नीचा था, सिर्फ़ मर्द ही आते थे जिनमें अधिकांश स्पेनिश थे। उनकी शक्लों से तो यही ज़ाहिर होता था। राओल कमरे के पीछे दीवार के पास की मेज़ के आगे बैठा था। जब राओल ने पत्रकार को इशारे से बुलाया और रेम्बर्त उसकी तरफ़ जाने लगा तो सब लोगों के चेहरों पर से उत्सुकता गायब हो गई और वे फिर अपनी तश्तरियों पर सिर झुकाकर खाना खाने लगे। राओल की बग़ल में एक लम्बा, दुबला आदमी बैठा था जिसने हजामत ठीक से नहीं बनवाई थी। उसके कन्धे बेहद चौड़े थे, चेहरा घोड़े जैसा था और सिर के बाल झड़ने लगे थे। उसने कमीज़ की आस्तीनें ऊपर चढ़ा रखी थीं और उसकी लम्बी, काले बालों से भरी दुबली बाँहें नज़र आ रही थीं। जब रेम्बर्त का उससे परिचय कराया गया तो उसने तीन बार धीरे से सिर हिलाया । राओल ने उसका नाम नहीं बताया। वह हमारा दोस्त' कहकर उसके बारे में बात कर रहा था।
“हमारे दोस्त का ख़याल है कि वह तुम्हारी मदद कर सकता है । वह..” ओल ने वाक्य अधूरा छोड़ दिया क्योंकि इसी वक़्त वेट्रेस राओल का ऑर्डर लेने आई थी। “वह तुम्हें हमारे दो दोस्तों से मिलाएगा, जो कुछ सन्तरियों से तुम्हारा परिचय कराएँगे, जिन्हें हम लोगों ने राज़ी कर लिया है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि तुम फ़ौरन जा सकोगे। इसका फ़ैसला सन्तरियों पर छोड़ना पड़ेगा। वे ही तय करेंगे कि कौन-सा वक़्त सबसे अच्छा रहेगा। सबसे आसान बात यह होगी कि तुम कुछ रातें उनमें से एक के घर बिताओ। उसका घर फाटक के बहुत नज़दीक है। सबसे पहले हमारा यह दोस्त तुम्हारा कुछ लोगों से परिचय कराएगा जिनकी हमें ज़रूरत है। फिर जब सब ठीक हो जाएगा तो खर्च की बात तय कर लेना ।
फिर 'दोस्त' ने, जो लगातार टमाटर और मसालेदार सलाद मुँह में डालता जा रहा था, धीरे से अपना घोड़े जैसा मुँह ऊपर-नीचे हिलाया, उसके बाद उसने स्पेनिश लहजे में बोलना शुरू किया। उसने रेम्बर्त से कहा कि वह एक दिन छोड़कर अगले दिन गिरजे के पोर्च में आठ बजे उसे मिले।
"दो दिन और इन्तज़ार करना पड़ेगा।" रेम्बर्त ने कहा ।
"देखो, यह इतना आसान मामला नहीं है। वे छोकरे कुछ तहकीकात करेंगे।" राओल ने कहा ।
घोड़े जैसे चेहरे वाले आदमी ने एक बार फिर समर्थन में सिर हिलाया । बातचीत के लिए कोई विषय तलाश करने में कुछ देर लगी। यह समस्या बड़ी आसानी से हल हो गई, जब रेम्बर्त ने मालूम कर लिया कि घोड़े जैसे मुँह वाला वह शख़्स फुटबॉल का जोशीला खिलाड़ी है। उसे भी फुटबाल एसोसिएशन में बड़ी दिलचस्पी थी। दोनों फ्रेंच चैम्पियनशिप, पेशेवर अंग्रेज़ खिलाड़ियों की टीमों के गुणों और बॉल फेंकने के तरीकों पर बातचीत करते रहे।
खाना ख़त्म होते-होते घोड़ा मुँह ख़ूब ख़ुश नज़र आने लगा और उसने रेम्बर्त को 'अमाँ यार' कहना शुरू कर दिया। उसने रेम्बर्त को यह यकीन दिलाने की कोशिश की कि फुटबॉल के मैदान में खिलाड़ी के लिए सबसे अच्छी जगह सेंटर हॉफ़ की है। “अमाँ यार, देखो सेंटर हॉफ़ वाला ही दूसरे लोगों को दौड़ाता है। इस खेल का सारा आर्ट इसी में है, क्यों?" रेम्बर्त को यह बात माननी ही पड़ी हालाँकि वह खुद खेल में हमेशा सेंटर फॉरवर्ड ही रहा था। बातचीत शान्तिपूर्वक चलती रही। फिर किसी ने रेडियो चला दिया। कुछ देर तक भावुक क़िस्म के गीत बजते रहे, फिर यह ख़बर सुनाई गई कि प्लेग से एक सौ सैंतीस मौतें हुई थीं। किसी के चेहरे पर कोई भी भाव प्रकट नहीं हुआ। घोड़ा-मुँह ने सिर्फ़ अपने कन्धे सिकोड़े और उठ खड़ा हुआ । ओल और रेम्बर्त भी उसकी देखा-देखी उठ खड़े हुए।
जब वे रेस्तराँ से बाहर निकल रहे थे तो सेंटर हॉफ़ ने ज़ोर से रेम्बर्त से हाथ मिलाकर कहा, "मेरा नाम गोन्ज़ेल्ज़ है।" रेम्बर्त को आगामी दो दिन अनन्तकाल के समान मालूम हुए। वह रियो से मिलने गया और उसने सभी ताज़ा ख़बरें उसे बताईं। वह डॉक्टर के साथ एक मरीज़ को भी देखने गया । उसने एक घर की दहलीज़ से ही डॉक्टर से विदा ली जहाँ एक मरीज़, जिसके बारे में शक था कि उसे प्लेग हो गई है, खड़ा डॉक्टर का इन्तज़ार कर रहा था। हॉल में लोगों की आवाज़ें और कदमों की आहटें सुनाई दे रही थीं, परिवार के लोगों को डॉक्टर के आने की चेतावनी दी जा रही थी ।
"मेरा ख़याल है तारो वक़्त पर आएगा,” रियो बुदबुदाया। वह थका-माँदा नज़र आ रहा था।
“क्या महामारी काबू से बाहर होती जा रही है?" रेम्बर्त ने पूछा ।
रियो ने कहा कि ऐसी स्थिति नहीं है, बल्कि मौतों के ग्राफ की उठान पहले से कम गहरी होती जा रही है। सिर्फ़ उनके पास बीमारी से लड़ने के लिए पर्याप्त साधन नहीं हैं।
हमारे पास सामान की कमी है। दुनिया की सारी फ़ौजों में आमतौर पर सामान की कमी काम करने वालों की संख्या से पूरी हो जाती है, लेकिन हमारे पास लोगों की भी कमी है।
"क्या दूसरे शहरों से डॉक्टर और ट्रेंड असिस्टेंट नहीं भेजे गए ?"
"हाँ, दस डॉक्टर और सौ के क़रीब मददगार भेजे गए हैं। सुनने में यह संख्या बहुत बड़ी मालूम होती है, लेकिन मौजूदा हालत में मुश्किल से इन लोगों से काम चल रहा है और अगर हालत बिगड़ गई तो इतनी संख्या पर्याप्त नहीं होगी ।" रियो ने कहा ।
रेम्बर्त ने, जो घर के भीतर से आने वाली आवाजें सुन रहा था, एक दोस्ती-भरी मुस्कराहट के साथ डॉक्टर की तरफ़ देखा ।
"हाँ, तुम जल्द ही अपनी लड़ाई जीतने की कोशिश करो,” फिर उसके चेहरे पर एक परछाईं आकर चली गई। उसने धीमे स्वर में कहा, "मैं यह बात इसलिए नहीं कह रहा क्योंकि मैं यहाँ से जा रहा हूँ।”
रियो ने जवाब दिया कि उसे यह अच्छी तरह मालूम है। लेकिन रेम्बर्त ने कहा, “मैं डरपोक हूँ, मैं ऐसा नहीं सोचता । कम-से-कम साधारण तौर पर तो डरपोक नहीं हूँ-मुझे इस बात को कसौटी पर कसने के कई मौके मिल चुके हैं। सिर्फ़ कुछ विचार ऐसे हैं जिन्हें मैं बर्दाश्त नहीं कर सकता।
डॉक्टर ने उसकी आँखों में झाँककर कहा, “तुम उस लड़की से फिर मिलोगे?"
"हो सकता है, लेकिन मैं यह सोचना बर्दाश्त नहीं कर सकता कि यह स्थिति हमेशा इसी तरह जारी रहेगी और मेरी महबूबा की उम्र दिन-ब-दिन बढ़ती जाएगी। तीस बरस की उम्र में इनसान का बुढ़ापा शुरू हो जाता है और उसे ज़िन्दगी में से भरसक ख़ुशी पाने की कोशिश करनी पड़ती है....लेकिन मुझे यह शक है कि तुम्हारी समझ में शायद यह बात नहीं आएगी । "
रियो जवाब में कह रहा था कि उसकी समझ में सब कुछ आ रहा है। इतने में तारो वहाँ आ गया। वह बहुत उत्तेजित दिखाई दे रहा था।
"मैंने अभी पैनेलो को यहाँ आने के लिए कहा है।"
"अच्छा?”
"उसने थोड़ी देर सोचने के बाद 'हाँ' कर दी। "
"यह अच्छी बात है। मुझे यह जानकर ख़ुशी हुई कि वह अपने प्रवच बेहतर आदमी है। "
अधिकांश लोग ऐसे ही होते हैं। सिर्फ़ उन्हें मौक़ा देने का सवाल है।” तारो ने मुस्कराकर कहा और फिर रियो की तरफ़ देखकर आँख मारी, “यही तो ज़िन्दगी में मेरा काम है लोगों को मौक़ा देना।"
"माफ़ कीजिए, मुझे जाना है, " रेम्बर्त ने कहा ।
गुरुवार को जब मुलाकात होनी तय हुई थी, आठ बजने से पाँच मिनट पहले रेम्बर्त गिरजे के पोर्च में दाख़िल हुआ। हवा अभी तक अपेक्षाकृत ठंडी थी। छोटे-छोटे रोएँदार बादल आसमान में इकट्ठा हो रहे थे, जिन्हें फ़ौरन ही सूरज एक ही बार में निगलने वाला था। हरी घास की लॉनों से सीलन की हल्की गन्ध उठ रही थी, हालाँकि वे धूप से सूख गई थीं। सूरज अभी पूर्व में बने मकानों से ढका हुआ था। इसलिए वह सिर्फ़ जोन ऑफ़ आर्क के कवच को ही गरम कर रहा था। केथीड्रल स्क्वेयर में धूप का एक ही टुकड़ा नज़र आ रहा था। जब घड़ी ने आठ बजाए तो रेम्बर्त ख़ाली पोर्च में 'कुछ क़दम आगे बढ़ा। भीतर से गाने की मद्धम आवाज़ें, सीली हवा और अगरबत्तियों की बासी गन्ध आ रही थी । फिर आवाज़ें रुक गईं। काले रंग की दस आकृतियाँ इमारत से बाहर निकलीं और तेज़ी से शहर के केन्द्र की तरफ़ बढ़ गईं। रेम्बर्त बेचैन हो उठा। कुछ और काली आकृतियाँ सीढ़ियों पर चढ़कर पोर्च में दाख़िल हुईं। रेम्बर्त एक सिगरेट सुलगाने ही वाला था कि सहसा उसके मन में यह ख़याल उठा कि शायद इस जगह सिगरेट पीना बुरा समझा जाता हो ।
सवा आठ बजे गिरजे का ऑर्गन बहुत धीमी आवाज़ में बजने लगा । पहले तो मद्धम रोशनी में उसे कुछ दिखाई न दिया, लेकिन अगले ही क्षण उसे उन लोगों की छोटी-छोटी काली आकृतियाँ नज़र आने लगीं जो उसके आगे-आगे गिरजे के बीच वाले हिस्से में जमा थे। वे सब अस्थायी रूप से निर्मित चबूतरे के एक कोने में एक साथ बैठे थे। चबूतरे पर सन्त रोश की एक मूर्ति थी जिसे जल्दी में हमारे शहर के एक मूर्तिकार ने तैयार किया था। घुटनों के बल बैठे हुए वे लोग पहले से भी ज़्यादा छोटे नज़र आ रहे थे। वे जमे हुए अँधेरे के टुकड़े मालूम होते थे। लगता था कि वे भूरे धुएँ-भरे कुहासे में तैर रहे थे; उनकी आकृतियाँ भी उस कुहासे की तरह धुँधली थीं। उनके ऊपर ऑर्गन की अन्तहीन धुन सुनाई दे रही थी।
जब रेम्बर्त गिरजे से बाहर निकला तो उसने गोन्ज़ेल्ज़ को सीढ़ियों से उतरकर शहर की तरफ़ जाते देखा ।
गोन्ज़ेल्ज़ ने कहा, “मेरा ख़याल था दोस्त कि तुम यहाँ से चले गए हो, क्योंकि बहुत देर हो गई है।"
उसने बताया कि वह तय स्थान पर अपने दोस्तों से मिलने गया था। वह स्थान बिलकुल पास ही था। आठ बजकर दस मिनट पर वह वहाँ पहुँ और बीस मिनट तक इन्तज़ार करने के बाद भी उसे कोई नहीं मिला।
“ज़रूर किसी वजह से वे रुक गए होंगे। हमारे बिज़नेस में बहुत क़िस्म अड़चनें आती हैं, यह तो तुम जानते ही हो ।”
गोन्ज़ेल्ज़ ने कहा कि वह अगले दिन युद्ध-स्मारक के पास रेम्बर्त से मिलेगा। रेम्बर्त ने एक ठंडी साँस लेकर सिर पर फिर से अपना हैट सरका लिया।
"अपने दिल को इतनी तकलीफ़ मत दो,” गोन्ज़ेल्ज़ ने हँसकर कहा, “ज़रा सोचो कि फुटबॉल में एक गोल बनाने के लिए कितना दौड़ना पड़ता है और कितनी बार बॉल अपने साथियों की तरफ़ फेंकनी पड़ती है ! "
"यह तो ठीक है, लेकिन फुटबॉल का खेल तो डेढ़ ही घंटे में ख़त्म हो जाता है।"
ओरान में युद्ध-स्मारक ऐसी जगह बना है जहाँ से समुद्र दिखाई देता है। बन्दरगाह के सामने बनी चट्टानों तक सैर करने की एक सड़क बनी है। अगले दिन रेम्बर्त फिर वक़्त से पहले ही निश्चित स्थान पर पहुँच गया और वक़्त काटने के लिए उन लोगों के नामों की सूची पढ़ने लगा जिन्होंने देश की ख़ातिर अपने प्राणों का बलिदान दिया था। कुछ मिनट बाद दो आदमी वहाँ आए और रेम्बर्त पर सरसरी नज़र डालकर सैरगाह की मुंडेर पर कुहनियाँ टिकाकर सूने निर्जीव बन्दरगाह की तरफ़ गौर से देखने लगे। दोनों ने नीले रंग की पतलूनों के ऊपर छोटी आस्तीनों वाले स्वेटर पहन रखे थे। दोनों का क़द भी करीब-करीब एक जैसा था। पत्रकार कुछ दूर हटकर पत्थर की एक बेंच पर बैठ गया और आराम से उन लोगों के हुलिये का निरीक्षण करने लगा। वे दोनों छोकरे थे, बीस बरस से ज्यादा उनकी उम्र नहीं थी । उसी वक़्त गोन्ज़ेल्ज़ उधर आता दिखाई दिया।
उसने देरी से आने के लिए माफ़ी माँगी और कहा, "यह हमारे दोस्त हैं।" फिर वह रेम्बर्त को दोनों छोकरों के पास ले गया और उसने बताया कि उनमें एक का नाम मार्सल और दूसरे का लुई है। उनकी शक्लें आपस में इतनी मिलती थीं कि रेम्बर्त को यक़ीन हो गया कि वे दोनों सगे भाई हैं।
"ठीक है, अब आप लोगों का परिचय हो गया है, आप काम-काज की बातें शुरू कर सकते हैं। " गोन्ज़ेल्ज़ ने कहा ।
मार्सेल या लुई, दोनों में से किसी एक ने कहा कि दो दिन बाद पहरे पर उनकी एक हफ़्ते की ड्यूटी लगने वाली है। वे पहले यह देखेंगे कि कौन-सी रात इस काम के लिए सबसे ज़्यादा अच्छी रहेगी। मुसीबत यह थी कि पश्चिमी फाटक पर उन दोनों के अलावा दो सन्तरी और भी थे जो बाकायदा फ़ौज के सिपाही थे । उन दोनों को इस मामले से दूर ही रखना पड़ेगा, उन पर भरोसा नहीं किया जा सकता। इसके अलावा बेकार में ही ख़र्च बढ़ जाएगा। लेकिन कई बार ये सन्तरी नज़दीक के एक शराबख़ाने के पिछले कमरे में कई घंटे गुज़ारते हैं। मार्सेल या लुई ने कहा कि रेम्बर्त के लिए सबसे अच्छा तरीका यही होगा कि वह उन लोगों के घर रहे जो कि फाटक से कुछ ही मिनट की दूरी पर है। जब रास्ता साफ़ होगा तो उनमें से एक जाकर उसे ख़बर कर देगा। इस स्थिति में रेम्बर्त के लिए 'भागना' काफ़ी आसान हो जाएगा। लेकिन वक़्त बहुत कम है। सुना है कि फाटकों के बाहर दूर तक एक और सन्तरी चौकी बनने वाली है।
रेम्बर्त राज़ी हो गया और उसने अपनी बची हुई सिगरेटों में से 'कुछ सिगरेटें उन्हें पेश कीं। दोनों में से जो अभी तक ख़ामोश रहा था, उसने गोन्ज़ेल्ज़ से पूछा कि इस काम के लिए रकम तय हो चुकी है या नहीं, कुछ पेशगी भी मिलेगी या नहीं?
"नहीं,” गोन्ज़ेल्ज़ ने कहा, “तुम्हें इस बात की चिन्ता करने की कोई ज़रूरत नहीं। यह मेरा दोस्त है, जाने के वक़्त रकम अदा कर देगा।”
तय हुआ कि वे लोग फिर मिलेंगे। गोन्ज़ेल्ज़ ने कहा कि वे लोग परसों रात स्पेनिश रेस्तराँ में उसके साथ खाना खाएँ । वह जगह उन नौजवानों के घर के बहुत क़रीब थी जहाँ से वे पैदल भी वहाँ पहुँच सकते थे। गोन्ज़ेल्ज़ कहा, "दोस्त, पहली रात मैं तुम्हारा साथ दूँगा ।"
अगले दिन जब रेम्बर्त अपने सोने के कमरे में जा रहा था तो होटल की सीढ़ियों पर उसकी मुलाक़ात तारो से हुई जो नीचे आ रहा था।
"मेरे साथ आना चाहेगे? मैं रियो से मिलने जा रहा हूँ।” तारो ने कहा ।
रेम्बर्त ने हिचकिचाहट ज़ाहिर की और कहा, “मुझे हमेशा ऐसा लगता है कि मैं उसके काम में दखल दे रहा हूँ।"
"मेरे विचार से तुम्हें इसकी चिन्ता करने की कोई ज़रूरत नहीं है। वह तुम्हारे बारे में बहुत सी बातें करता है।"
पत्रकार ने कुछ देर तक सोचने के बाद कहा, “देखो, अगर डिनर के बाद तुम्हारे पास कुछ वक़्त ख़ाली हो तो क्यों न तुम और रियो आकर मेरे साथ शराब पियो? अगर देर भी हो जाए तो भी कोई परवाह नहीं ।"
"यह तो रियो पर निर्भर करेगा और प्लेग पर भी ।" तारो के स्वर में संशय था।
ख़ैर, रात के ग्यारह बजे रियो और तारो होटल के छोटे और तंग शराबख़ाने में दाख़िल हुए। वहाँ क़रीब तीस लोग जमा थे और सब-के-सब ऊँची आवाज़ में पूरी ताक़त से बोल रहे थे। प्लेग से घिरे हुए शहर की ख़ामोशी से रेस्तराँ में आने वाले ग्राहक अचानक इतना शोर सुनकर चौंक उठे और दहलीज़ पर ही रुक गए। जब उन्होंने देखा कि अभी भी होटल में शराब मिलती है तो वे फ़ौरन इस शोर का कारण समझ गए। रेम्बर्त ने, जो
(अधूरी रचना)