The Diary of a Young Girl (Hindi) Anne Frank
द डायरी ऑफ़ ए यंग गर्ल : ऐनी फ्रैंक - हिन्दी अनुवाद : नीलम भट्ट
रविवार, 27 सितंबर, 1942
प्यारी किटी,
माँ और मेरे बीच आज तथाकथित ‘चर्चा’ हुई, लेकिन सबसे खिझाने वाली बात यह थी कि मेरे आँसू निकल गए। मैं कुछ नहीं कर सकती। पापा मेरे साथ हमेशा अच्छी तरह पेश आते हैं और वे मुझे बेहतर समझते हैं। ऐसे पलों में मैं माँ को नहीं झेल सकती। यह साफ़ है कि मैं उनके लिए अजनबी हूँ; वे इतना भी नहीं जानती कि सामान्य चीज़ों को लेकर मेरी क्या राय है।
हम नौकरानियों के बारे में बात कर रहे थे और यह बात कि उन्हें ‘घरेलू सहायिका’ कहा जाना चाहिए। माँ का कहना था कि लड़ाई ख़त्म हो जाने पर वे वही कहलाना पसंद करेंगी। मैंने उस बात को वैसे नहीं देखा। फिर उन्होंने कहा कि मैं ‘बाद में’ के बारे में अक्सर बोलती हूँ और मैं किसी लेडी की तरह बर्ताव करती हूँ, जबकि मैं हूँ नहीं, लेकिन मुझे नहीं लगता कि ख़याली पुलाव पकाना इतनी बुरी बात है, अगर उसे बहुत गंभीरता से न लिया जाए। ख़ैर, पापा अक्सर मेरे बचाव के लिए आ जाते हैं। उनके बिना तो मैं शायद यहाँ नहीं टिक पाती।
मारगोट से भी मेरी ज़्यादा नहीं पटती। हालाँकि हमारे परिवार में वह सब नहीं होता, जो ऊपर चलता है, फिर भी मुझे यह उतना ख़ुशनुमा नहीं लगता। मारगोट और माँ के व्यक्तित्व मुझे इतने अजनबी लगते हैं। मैं अपनी सहेलियों को अपनी माँ से बेहतर समझती हूँ। क्या यह शर्म की बात नहीं है?
मिसेज़ फ़ॉन डान हज़ारवीं बार नाराज़ हो रही हैं। वे बहुत बदमिज़ाज हैं और लगातार अपने ज़्यादा से ज़्यादा सामान को निकालकर बंद कर रही हैं। यह बहुत बुरी बात है कि माँ फ़ॉन डान की इन हरकतों का सही जवाब नहीं दे पाती।
फ़ॉन डान जैसे कुछ लोगों को न सिर्फ़ अपने बच्चों की परवरिश करने में ख़ुशी मिलती है, बल्कि इस काम में दूसरों की मदद करने में भी। मारगोट को इसकी ज़रूरत नहीं है, क्योंकि वह सहज रूप से अच्छी, दयालु, चतुर और पूरी तरह से संपूर्ण, लेकिन शायद दोनों के बदले मैं काफ़ी शरारती हूँ। हमारे यहाँ का वातावरण फ़ॉन डान परिवार की झिड़कियों और मेरे गुस्ताख़ जवाबों से भरा है। मम्मी-पापा हमेशा बहुत ज़बरदस्त तरीक़े से मेरा बचाव करते हैं। उनके बिना मैं अपने सामान्य संतुलन के साथ फिर से मोर्चा नहीं सँभाल पाती। वे मुझे कम बात करने, अपने काम से काम रखने और ज़्यादा विनम्र बने रहने के लिए कहते रहते हैं, लेकिन शायद मुझे नाकाम ही होना है। अगर पापा इतने धीरज वाले नहीं होते, तो मैं अपने माँ-बाप की सामान्य सी आशाओं पर खरा उतरने की उम्मीद कब की छोड़ चुकी होती।
अगर मैं नापसंद आने वाली सब्ज़ी कम लूँ और उसके बजाय आलू खाऊँ तो फ़ॉन डान परिवार, ख़ासकर मिसेज़ फ़ॉन डान यह कहते नहीं चूकती कि मैं कितनी बिगड़ी हुई हूँ। वे कहती हैं, ‘अरे ऐन, और सब्ज़ियाँ लो।’
‘नहीं, शुक्रिया, मैडम,’ मेरा जवाब होता है। ‘आलू काफ़ी हैं।’
‘सब्ज़ियाँ तुम्हारे लिए अच्छी हैं; तुम्हारी माँ भी कहती हैं। थोड़ी और लो,’ वे तब तक अड़ी रहती हैं जब तक कि पापा बीच में पड़कर मेरी पसंद-नापसंद के अधिकार की बात न कर लें।
फिर मिसेज़ फ़ॉन डान आगबबूला हो जाती हैं: ‘तुम्हें हमारे घर में होना चाहिए था, जहाँ बच्चों की वैसे ही परवरिश होती है, जैसी कि होनी चाहिए। मैं इसे सही पालन-पोषण नहीं कहती। ऐन बहुत बिगड़ी हुई है। मैं कभी ऐसा नहीं होने देती। अगर यह मेरी बेटी होती तो…’
उनकी बात हमेशा ऐसे ही शुरू और ख़त्म होती है: ‘अगर ऐन मेरी बेटी होती तो…’ शुक्र है कि मैं उनकी बेटी नहीं हूँ।
बच्चों के पालन-पोषण की बात पर जाएँ, तो कल मिसेज़ फ़ॉन डी का छोटा सा भाषण पूरा होने पर ख़ामोशी छा गई थी। पापा ने जवाब दिया, ‘मेरे ख़याल से ऐन की परवरिश बहुत अच्छी हुई है। कम से कम उसने आपके लगातार चलते भाषणों पर चुप रहना सीख लिया है। जहाँ तक सब्ज़ियों का सवाल है, तो देखिए कि कौन उसे यह उपदेश दे रहा है।’
मिसेज़ फ़ॉन डान को मुँह की खानी पड़ी। यहाँ पापा का इशारा ख़ुद मैडम की तरफ़ था, क्योंकि वे शाम को कोई भी फली या किसी भी तरह की गोभी बर्दाश्त नहीं होती, क्योंकि उससे उन्हें गैस होती है। मैं भी यही कह सकती हूँ। कितनी बेवकूफ़ी की बात है, है न? ख़ैर, उम्मीद करते हैं कि वे मुझसे बात करना बंद कर दें।
यह देखना बहुत मज़ेदार होता है कि मिसेज़ फ़ॉन डान कितनी जल्दी तमतमा जाती हैं, मैं ऐसा नहीं करती और इससे मन ही मन उन्हें बहुत चिढ़ होती है।
तुम्हारी, ऐन
सोमवार, 28 सितंबर 1942
प्यारी किटी,
मुझे कल लिखना बंद करना पड़ा, हालाँकि बातें बहुत थीं। मैं तुम्हें अपनी एक और मुठभेड़ के बारे में बताने को बेताब हूँ, लेकिन उसे बताने से पहले मैं यह कहना चाहती हूँ: मुझे यह अजीब लगता है कि बड़े लोग अक्सर इतनी आसानी से छोटी-छोटी बातों पर लड़ लेते हैं। अब तक मैं सोचती थी कि छोटी-छोटी बातों पर बच्चे झगड़ा करते हैं और फिर उससे आगे बढ़ जाते हैं। कभी-कभार ‘असली’ लड़ाई की कोई वजह ज़रूर होती है, लेकिन यहाँ जिस तरह की बातें कही जाती हैं, वे बस कहासुनी होती हैं। मुझे भी अब इस बात का आदी हो जाना चाहिए कि इस तरह की तकरार अब रोज़मर्रा की बात है, लेकिन मैं नहीं हूँ और तब तक नहीं हो सकती, जब तक कि मैं लगभग हर बातचीत का विषय हूँ। (वे ‘झगड़े’ के बजाय उन्हें ‘बातचीत’ कहते हैं, लेकिन जर्मन लोगों को उनके बीच का अंतर नहीं पता!) वे हर चीज़ की आलोचना करते हैं और मेरा मतलब है कि मेरे बारे में हर चीज़ की: मेरे बर्ताव, मेरे व्यक्तित्व, मेरी आदतों, मेरी हर चीज़ की, सिर से पैर तक, मेरी हर बात गपशप व चर्चा का विषय होती है। मुझ पर कठोर शब्दों और चीख़-चिल्लाहटों की बौछार की जाती है। हालाँकि मुझे अब तक इसकी आदत बिलकुल नहीं पड़ी है। मुझसे उम्मीद की जाती है कि मैं मुस्कराकर सब कुछ झेल लूँ। लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकती! इन अपमानों को चुपचाप झेलने का मेरा कोई इरादा नहीं है। मैं उन्हें दिखा दूँगी कि मैं कल की पैदा हुई छोकरी नहीं हूँ। उन्हें अच्छी तरह देखना-समझना होगा और अपने मुँह बंद रखने होंगे, जब मैं उन्हें बताऊँगी कि उन्हें मेरे शिष्टाचार के बजाय अपनी आदतों पर ध्यान देना चाहिए। वे आख़िर वैसा बर्ताव कैसे कर सकते हैं! वे बहुत बर्बर हैं। ऐसी अशिष्टता और मूर्खता (मिसेज़ फ़ॉन डान) पर मैं हर बार हैरान रह जाती हूँ। जैसे ही मैं इसकी आदी हो जाऊँगी और उसमें ज़्यादा वक़्त नहीं लगेगा, मैं उनके ही अंदाज़ में जवाब दूँगी और उन्हें अपना सुर बदलना पड़ेगा! क्या मैं अशिष्ट, ज़िद्दी, अकडू, आक्रामक, मूर्ख, आलसी, वगैरह-वगैरह हूँ, जैसा कि फ़ॉन डान परिवार का कहना है? नहीं, बिलकुल नहीं। मैं जानती हूँ कि मुझमें भी कमियाँ व कमज़ोरियाँ हैं, लेकिन वे उन्हें बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते हैं! काश, तुम जान पाती किटी कि मुझे कितना ग़ुस्सा आता है, जब वे मुझे डाँटते और मेरा मज़ाक उड़ाते हैं। वह दिन दूर नहीं जब मेरे सब्र का बाँध टूट जाएगा।
बस, अब बहुत हुआ। मैंने अपने झगड़ों से तुम्हें काफ़ी उबा दिया है, लेकिन फिर भी मैं रात के खाने के समय हुई एक बेहद दिलचस्प बातचीत बताने से ख़ुद को नहीं रोक पा रही हूँ।
हम पिम के अत्यधिक संकोची होने पर बात कर रहे थे। उनकी विनम्रता जानी-पहचानी बात है, जिस पर मूर्ख से मूर्ख इंसान भी सवाल नहीं उठा सकता। अचानक हर बातचीत में कूद पड़ने की आदत वाली मिसेज़ फ़ॉन डान ने टिप्पणी की, ‘मैं भी बहुत विनम्र और संकोची हूँ, अपने पति से कहीं ज़्यादा!’
क्या तुमने कभी इससे ज़्यादा अजीब बात सुनी है? उनकी बात ही साफ़ तौर पर बताती है कि उन्हें विनम्र तो हरगिज़ नहीं कहा जा सकता!
मि. फ़ॉन डान को लगा कि ‘पति से कहीं ज़्यादा’ वाली बात पर उन्हें जवाब देना चाहिए और उन्होंने बहुत शांतिपूर्वक कहा, ‘विनम्र और संकोची होने की मेरी कोई इच्छा नहीं है। मेरा तजुर्बा है कि आक्रामक होने से आप काफ़ी आगे पहुँचते हैं!’ फिर मेरी तरफ़ मुड़ते हुए उन्होंने कहा, ‘नरम और संकोची मत बनना, ऐन। उससे तुम कहीं नहीं पहुँच पाओगी।’
माँ उनके दृष्टिकोण से पूरी तरह सहमत थीं। लेकिन जैसी कि मिसेज़ फ़ॉन डान की आदत थी, उन्हें कुछ तो कहना था ही। इस बार हालाँकि मुझसे सीधे बात करने के बजाय उन्होंने मेरे माता-पिता से कहा, ‘ज़िंदगी को लेकर आपका नज़रिया कुछ अजीब ही होगा, तभी आप ऐन से ऐसा कह सकते हैं। मेरे बचपन में हालात अलग थे। आपके आधुनिक घर को छोड़ दें, तो शायद ही उनमें कुछ ख़ास बदलाव आया होगा!’
यह बच्चों की परवरिश को लेकर माँ के आधुनिक तौर-तरीक़ों पर सीधा निशाना था, जिनका बचाव वे कई बार कर चुकी थीं। मिसेज़ फ़ॉन डान इतनी नाराज़ थीं कि उनका चेहरा लाल हो गया। जो लोग बहुत जल्दी आवेग में आ जाते हैं, वे उसे महसूस करते हुए और भी आंदोलित हो जाते हैं और अपने विरोधी के सामने जल्दी हार जाते हैं।
शांत माँ अब जल्द से जल्द बात को ख़तम कर देना चाहती थीं, एक पल कुछ सोचने के लिए रुकीं और जवाब दिया, ‘मिसेज़ फ़ॉन डान, मैं इस बात से सहमत हूँ कि इंसान को बहुत ज़्यादा विनम्र नहीं होना चाहिए। मेरे पति, मारगोट और पीटर ज़रूरत से ज़्यादा विनम्र हैं। आपके पति, ऐन और मैं हालाँकि उनके बिलकुल उलट नहीं हैं, फिर भी हम किसी को ख़ुद को परेशान नहीं करने देते।’
मिसेज़ फ़ॉन डान: ‘ओह, लेकिन मिसेज़ फ़्रैंक, मैं आपका मतलब नहीं समझ पा रही हूँ! मैं तो अति विनम्र और संकोची हूँ। आप कैसे कह सकती हैं कि मैंआक्रामक हूँ?’
माँ: ‘मैंने ऐसा तो नहीं कहा, लेकिन आपको कोई संकोची भी नहीं कह सकता।’
मिसेज़ फ़ॉन डी: ‘मैं जानना चाहती हूँ कि मैं कैसे आक्रामक हूँ! अगर मैं अपना ध्यान न रखूँ, तो कोई और नहीं रखेगा, जल्दी ही मैं भूखी मर जाऊँगी, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मैं आपके पति जितनी विनम्र और संकोची नहीं हूँ।’
माँ के पास इस अजीबोग़रीब तर्क पर हँसने के सिवा कोई और चारा नहीं था, जिससे मिसेज़ फ़ॉन डान चिढ़ गइंर्। वे बहुत अच्छी बहस करने वाली नहीं हैं, वे जर्मन व डच को मिलाकर तब तक बोलती रहीं, जब तक कि वे अपने शब्दों में ख़ुद ही इतना उलझ गईं कि कुर्सी से उठने लगीं और वे कमरे से निकलना चाहती थीं कि तभी उनकी नज़र मुझ पर पड़ गई। तुम्हें उन्हें देखना चाहिए था! जिस पल उन्होंने मेरी तरफ़ देखा, मैं करुणा व विडंबना में अपना सिर हिला रही थी। मैं वैसा जानबूझकर नहीं कर रही थी, लेकिन मैं उनकी बात को इतने ध्यान से सुन रही थी कि मेरी प्रतिक्रिया पूरी तरह से अनायास थी। मिसेज़ फ़ॉन डी मुड़ी और मुझे कड़ी फटकार लगाई। वे इतनी कठोरता से घटिया व भद्दी बातें कर रही थीं, जैसे कि मोटी, लाल चेहरे वाली कोई मछली बेचने वाली कोई महिला ही कर सकती है। उन्हें देखना बहुत मज़ेदार था। अगर मैं तसवीर बना सकती, तो उनकी उस समय की तसवीर बनाती। वे मुझे बहुत हास्यास्पद लगीं, वे अस्तव्यस्त थीं! मैंने एक चीज़ सीखी: आप किसी इंसान को झगड़े के बाद ही सही मायने में जान पाते हैं। तभी आप उनके असली चरित्र को जान पाते हैं!
तुम्हारी, ऐन
मंगलवार, 29 सितंबर, 1942
प्रिय किटी,
जब आप छिपे होते हैं, तो आपके साथ अजीब सी बातें होती हैं! ज़रा कल्पना करो। चूँकि हमारे पास ग़ुसलखाना नहीं हैं, इसलिए हम लोग टिन के टब में नहाते हैं। गर्म पानी सिर्फ़ दफ़्तर (मेरा मतलब है कि नीचे की पूरी मंज़िल पर) में होता है, इसलिए हम सातों बारी-बारी से इस मौक़े का फ़ायदा उठाते हैं। अब हम सब एक जैसे नहीं हैं और सबकी अपनी-अपनी सीमाएँ हैं, इसलिए परिवार के हर सदस्य ने अपनी सफ़ाई के लिए अलग जगह तय कर ली है। पीटर दफ़्तर के रसोईघर में नहाता है, हालाँकि उसका दरवाज़ा काँच का है। जब उसके नहाने की बारी आती है, तो वह बारी-बारी से हम सबके पास आता है और घोषणा करता है कि अगले आधे घंटे में हम रसोईघर के पास न जाएँ। उसके मुताबिक़ इतना करना काफ़ी है। मि. फ़ॉन डी ऊपर वाली मंज़िल पर ही नहाते हैं और उनका तर्क है कि उनके कमरे की सुरक्षा गर्म पानी ऊपर लाने की मुश्किल से ज़्यादा अहम है। मिसेज़ फ़ॉन डी का नहाना अभी बाक़ी है; वे देख रही हैं कि कौन सी जगह सबसे बेहतर है। पापा प्राइवेट ऑफ़िस में नहाते हैं और माँ फ़ायरगार्ड के पीछे रसोईघर में, जबकि मारगोट और मैंने फ़्रंट ऑफ़िस को अपने नहाने की जगह तय की है। शनिवार दोपहर को पर्दे लगे होते हैं, इसलिए हम अँधेरे में अपनी सफ़ाई करते हैं, जो नहा नहीं रहा होता, वह पर्दे के बीच से खिड़की के बाहर देखता है और आते-जाते दिलचस्प लोगों को अचरज से घूरता है।
एक हफ़्ते पहले मैंने फ़ैसला किया कि मुझे यह जगह पसंद नहीं और मैं ज़्यादा आरामदेह जगह की तलाश में हूँ। पीटर ने मुझे ऑफ़िस के बड़े से शौचालय में अपना टब लगाने का विचार सुझाया। मैं बैठ सकती हूँ, लाइट जला सकती हूँ, दरवाज़ा बंद कर सकती हूँ, बिना किसी की मदद के पानी डाल सकती हूँ और इस डर के बिना कि कोई देख लेगा, सब काम कर सकती हूँ। रविवार को पहली बार मैंने अपने बाथरूम का इस्तेमाल किया और भले यह अजीब लगे, लेकिन मुझे यह किसी भी जगह से बेहतर लगी।
बुधवार को प्लम्बर नीचे काम कर रहा था, वह ऑफ़िस के शौचालय से पानी के पाइपों और नालियों को गलियारे तक ले जा रहा था, ताकि सर्दियों में पाइप जम न जाएँ। उसका आना बिलकुल भी अच्छा नहीं था। हम दिन भर पानी नहीं चला सकते थे और शौचालय भी नहीं जा सकते थे। मैं तुम्हें बताती हूँ कि इस समस्या से हम कैसे निबटे। तुम्हें इसके बारे में मेरा बताना कुछ अनुचित लग सकता है, लेकिन मैं इस तरह के मामलों को लेकर शर्म से चुप नहीं रह सकती। जिस दिन हम यहाँ पहुँचे थे, उसी दिन पापा और मैंने एक मर्तबान से एक चेम्बर पॉट यानी मूत्र पात्र बनाया था। जब तक प्लम्बर का काम जारी रहा, हमने दिन में उनका इस्तेमाल किया। दिन भर चुप बैठे रहना मेरे लिए ज़्यादा मुश्किल काम नहीं था। तुम कल्पना कर सकती हो कि लगातार भाषण देने वाली महिला का क्या हाल हुआ होगा। सामान्य दिनों में हमें फुसफुसा कर बात करनी होती है, लेकिन बिलकुल चुप रहना और न हिलना-डुलना उससे दस गुना बदतर है।
तीन दिन तक लगातार बैठे रहने से मेरी पीठ अकड़ गई और उसमें दर्द होने लगा। रात को हल्की-फुल्की कसरत काम आई।
तुम्हारी, ऐन
बृहस्पतिवार, 1 अक्टूबर, 1942
प्रिय किटी,
कल मेरा भयानक झगड़ा हुआ। आठ बजे अचानक दरवाज़े की घंटी बजी। मुझे तो बस लगा कि कोई हमें पकड़ने आया है, मेरा मतलब तुम समझ रही हो, न। लेकिन मैं तब शांत हो गई, जब सबने कहा कि या तो किसी ने शरारत की है या फिर डाकिया आया होगा।
यहाँ दिन बहुत ख़ामोश हैं। छोटे क़द के यहूदी केमिस्ट मि. लेविंसन रसोईघर में मि. कुगलर के लिए कुछ प्रयोग कर रहे हैं। वे पूरी इमारत से परिचित हैं, इसलिए हमें लगातार डर बना रहता है कि कहीं उनके दिमाग़ में प्रयोगशाला की हालत देखने का ख़याल न आ जाए। हम बिलकुल शांत हैं। तीन महीने पहले कौन अंदाज़ा लगा सकता था कि लगातार हिलने-डुलने वाली ऐन को कई घंटे चुपचाप बैठना होगा या फिर वह ऐसा कर सकती है?
उनतीस तारीख़ को मिसेज़ फ़ॉन डान का जन्मदिन था। हमने उसे बड़े पैमाने पर नहीं मनाया। उन्हें फूल, कुछ साधारण से उपहार दिए गए और बढ़िया खाना खिलाया गया। उनके पति की ओर से लाल कार्नेशन दिया जाना शायद उनके परिवार की परंपरा है।
मिसेज़ फ़ॉन डान की बात पर मैं थोड़ा रुकती हूँ और तुम्हें बताती हूँ कि पापा के साथ हँसी-ठिठोली करने की उनकी कोशिशों से मुझे कितनी चिढ़ होती है। वे उनके गाल व सिर पर थपकी देती हैं, अपनी स्कर्ट खींचती हैं और पिम का ध्यान अपनी तरफ़ खींचने के लिए तथाकथित मज़ाकिया टिप्पणियाँ करती हैं। ख़ुशक़िस्मती से उन्हें वे न तो प्यारी और न ही आकर्षक लगती हैं, इसलिए वे उनकी हरकतों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं करते। जैसा कि तुम जानती हो, मैं थोड़ी ईर्ष्यालु क़िस्म की हूँ और मैं उनके बर्ताव को स्वीकार नहीं कर सकती। माँ तो मि. फ़ॉन डी के साथ वैसा बर्ताव नहीं करती और वही मैंने मिसेज़ फ़ॉन डी के मुँह पर कह दिया।
कभी-कभार पीटर बहुत मज़ेदार लगता है। उसके और मेरे बीच एक बात साझा है: हमें तैयार होना पसंद है और उसकी वजह से सभी हँसते हैं। एक शाम हम अलग रूप में सामने आए, पीटर ने अपनी माँ की कसी हुई पोशाक पहनी और मैंने उसका सूट। उसने हैट पहना, जबकि मैंने एक टोपी। सभी बड़े लोग हँसते-हँसते दोहरे हो गए और हम दोनों को बहुत मज़ा आया।
बेप मारगोट और मेरे लिए नई स्कर्ट्स लाई हैं, बेनकोर्फ़ से। कपड़ा आलू के बोरों जैसा है। पुराने दिनों में दुकानों में ऐसा कपड़ा नहीं बिक सकता था, लेकिन अब यह 24 गिल्डर (मारगोट का) और 7.75 गिल्डर (मेरा) में बिक रहा है।
हमारे लिए एक और अच्छी चीज़ होने वाली है। बेप ने मारगोट, पीटर और मेरे लिए डाक के ज़रिये शॉर्टहैंड कोर्स मँगवाया है। बस अब देखती जाओ, अगले साल इस समय तक हम अच्छी तरह शॉर्टहैंड में लिख सकेंगे। वैसे भी उस तरह किसी गुप्त भाषा में लिखना काफ़ी दिलचस्प होगा।
बाएँ हाथ की मेरी तर्जनी में बहुत दर्द है, इसलिए मैं कपड़े इस्तरी नहीं कर सकती। क्या क़ि स्मत है!
मि. फ़ॉन डान चाहते हैं कि मेज़ पर मैं उनके साथ बैठूँ, क्योंकि मारगोट उनके हिसाब से कम खाती है। ठीक है, मुझे बदलाव पसंद है। अहाते में हमेशा एक छोटी सी काली बिल्ली घूमती रहती है और वह मुझे मेरी प्यारी मोर्ते की याद दिलाती है। बदलाव का स्वागत करने का एक और कारण यह है कि माँ हमेशा ख़ासकर मेज़ पर मेरी ग़लतियाँ निकालती रहती हैं। अब मारगोट को वह सब झेलना पड़ेगा। या शायद नहीं भी, क्योंकि माँ उस पर व्यंग्यात्मक टिप्पणियाँ नहीं करतीं। वे सद्गुणों के नमूने को कैसे कह सकती हैं! मैं मारगोट को हमेशा अच्छाई का नमूना कहकर चिढ़ाती हूँ और उसे यह बिलकुल अच्छा नहीं लगता। शायद मैं ही उसे सिखाऊँगी कि कैसे शराफ़त का पुतला न बना जाए। अब समय आ गया है कि उसे सीख ही लेना चाहिए।
मि. फ़ॉन डान का मज़ेदार चुटकुला सुनाते हुए मैं ख़बरों की इस खिचड़ी को पूरा करती हूँ:
निन्यानबे बार कौन चलता है खटखट करके और एक बार कड़ाके से?
ख़राब पैरों वाला कनखजूरा।
विदा!
तुम्हारी, ऐन
शनिवार, 3 अक्टूबर, 1942
प्यारी किटी,
कल मुझे सबने चिढ़ाया, क्योंकि मैं मि. फ़ॉन डान के बिस्तर पर उनकी बग़ल में लेटी थी। ‘तुम्हारी उम्र में! यह भयानक है!’ इन बेवकूफ़ाना बातों के अलावा अन्य टिप्पणियाँ की गई। ज़ाहिर है कि यह बेवकूफ़ी है। मैं कभी मि. फ़ॉन डान के साथ नहीं सोना चाहूँगी, जैसा कि उनका मतलब है।
कल माँ और मेरे बीच फिर से झड़प हुई और उन्होंने काफ़ी बवाल खड़ा कर दिया। उन्होंने मेरी सभी बुराइयों को पापा को बताया और रोने लगी, जिससे मुझे भी रोना आ गया, मुझे पहले से सिरदर्द भी हो रहा था। आख़िरकार मैंने डैडी से कहा कि मैं उन्हें माँ से ज़्यादा प्यार करती हूँ और उनका कहना था कि समय के साथ यह बीत जाएगा, मैं ऐसा नहीं सोचती। मैं माँ को बर्दाश्त नहीं कर सकती और मुझे शांत रहने और उन पर हर समय चिढ़ने से ख़ुद को ज़बरदस्ती रोकना पड़ता है, जबकि मैं उनके चेहरे पर तमाचा मारना चाहती हूँ। मैं नहीं जानती कि मुझे वे इतनी सख़्त नापसंद क्यों हैं। डैडी कहते हैं कि अगर माँ की तबियत ठीक न हो या फिर उन्हें सिरदर्द हो तो मुझे उनकी मदद करने की पेशकश करनी चाहिए, लेकिन मैं ऐसा नहीं करने वाली, क्योंकि मुझे उनसे प्यार नहीं और मुझे काम में मज़ा भी नहीं आता। माँ की तो किसी दिन मौत होगी, लेकिन डैडी की मृत्यु के बारे में कल्पना भी नहीं की जा सकती। मैं बहुत घटिया बात कर रही हूँ, लेकिन मुझे ऐसा ही लगता है। उम्मीद है कि माँ यह बात या फिर मेरी लिखी कोई और बात कभी न पढ़ें।
पिछले कुछ समय से मुझे बड़े लोगों की कुछ किताबें पढ़ने की अनुमति मिल गई है। आजकल मैं निको फ़ॉन सश्टेलेन की ईवाज़ यूथ पढ़ रही हूँ। मुझे नहीं लगता कि इस किताब और किशोरियों के लिए लिखी बाक़ी किताबों में कोई बड़ा अंतर है। ईवा को लगता था कि सेब की तरह बच्चे पेड़ पर उगते हैं और उनके पक जाने पर सारस उन्हें तोड़ लेते हैं और माँओं के पास ले आते हैं। लेकिन उसकी सहेली की बिल्ली के बच्चे थे और ईवा ने उन्हें बिल्ली के शरीर से निकलते देखा, इसलिए उसने सोचा कि बिल्लियाँ अंडे देती हैं और चूज़ों की तरह वे उनमें से निकलते हैं और जिन माँओं को बच्चे चाहिए होते हैं, अंडे देने से कुछ दिन पहले वे ऊपर जाती हैं और फिर अंडों को सेती हैं। बच्चों के आने के बाद माँएँ पालथी मारकर बैठने के कारण बहुत कमज़ोर हो जाती हैं। एक दिन ईवा को भी बच्चे की चाह होती है। वह ऊनी स्कार्फ़ निकाल कर उसे ज़ मीन पर बिछाती है, ताकि अंडे उसमें गिरें और फिर वह बैठकर ज़ोर लगाने लगती है। मुर्गी की तरह आवाज़ निकालते हुए वह इंतज़ार करने लगी, लेकिन कोई अंडा नहीं निकला। आख़िरकार बहुत देर तक बैठे रहने के बाद कुछ निकला ज़रूर, लेकिन वह अंडा नहीं, बल्कि एक सॉसेज था। ईवा झेंप गई। उसे लगा कि वह बीमार थी। मज़ेदार बात है, न? ईवाज़ यूथ में सड़कों पर बहुत सारे पैसे के बदले औरतों के देह बेचने की बात भी की गई है। उस तरह के आदमी के सामने मैं तो शर्म से गड़ जाऊँगी। इसके अलावा इसमें ईवा के मासिक धर्म की बात भी की गई है। मैं भी इंतज़ार कर रही हूँ, तभी मैं वाक़ई बड़ी हो जाऊँगी।
डैडी फिर से कुड़कुड़ाने लगे हैं और मेरी डायरी छीनने की धमकी दे रहे हैं। यह तो बहुत डरावनी बात है! अबसे मुझे इसे छिपाकर रखना होगा।
तुम्हारी, ऐन
बुधवार, 7 अक्टूबर, 1942
मैं कल्पना करती हूँ कि…
मैं स्विट्ज़रलैंड गई हूँ। मैं और डैडी एक कमरे में सोते हैं, जबकि लड़कों के अध्ययन कक्ष को बैठक में बदल दिया गया है, जहाँ मैं मेहमानों से मिल सकती हूँ। मेरे लिए नया फ़र्नीचर लाया गया है, जिसमें चाय की मेज़, एक डेस्क, हत्थे वाली कुर्सी और दीवान शामिल है। सब कुछ बहुत शानदार है। कुछ दिन बाद डैडी मुझे 150 गिल्डर्स देते हैं और कहते हैं कि मैं अपनी ज़रूरत की चीज़ें उनसे ख़रीद लूँ, ज़ाहिर है कि वे मुझे स्विस मुद्रा देते हैं, लेकिन मैं उन्हें गिल्डर्स ही कहूँगी। (बाद में मुझे एक हफ़्ते में एक गिल्डर मिलता है, जिससे मैं जो चाहे ख़रीद सकती हूँ।) मैं बर्न्ड के साथ जाकर ये चीज़ें ख़रीदती हूँ:
3 सूती बनियानें 0.50 की एक = 1.50
3 सूती निकर 0.50 की एक = 1.50
3 ऊनी बनियानें 0.75 की एक = 2.25
3 ऊनी निकर 0.75 की एक = 2.25
2 पेटीकोट 0.50 का एक = 1.00
2 ब्रा (सबसे छोटा साइज़) 0.50 की एक = 1.00
5 पाजामे 1.00 का एक = 5.00
1 हल्का ड्रेसिंग गाउन 2.50 का एक = 2.50
1 मोटा ड्रेसिंग गाउन 3.00 का एक = 3.00
2 बेड जैकेट 0.75 की एक = 1.50
1 छोटा तकिया 1.00 का एक = 1.00
एक जोड़ी हल्की चप्पलें 1.00 प्रति जोड़ा = 1.00
एक जोड़ी गर्म चप्पलें 1.50 प्रति जोड़ा = 1.50
1 जोड़ी गर्मी के जूते (स्कूली) 1.50 प्रति जोड़ा = 1.50
1 जोड़ी गर्मी के जूते (बढ़िया) 2.00 प्रति जोड़ा = 2.00
1 जोड़ी सर्दी के जूते (स्कूली) 2.50 प्रति जोड़ा = 2.50
1 जोड़ी सर्दी के जूते (बढ़िया) 3.00 प्रति जोड़ा = 3.00
2 ऐप्रन 0.50 का एक = 1.00
25 रूमाल 0.05 का एक = 1.25
4 जोड़े सिल्क मोज़े 0.75 का एक = 3.00
4 जोड़े घुटनों तक के मोज़े 0.50 का एक = 2.00
4 जोड़े मोज़े 0.25 का एक = 1.00
2 जोड़े मोटे मोज़े 1.00 का एक = 2.00
3 लच्छे सफ़ेद ऊन (अंतर्वस्त्र, टोपी) = 1.50
3 लच्छे नीला सूत (स्वेटर, स्कर्ट) = 1.50
3 लच्छे रंगबिरंगा सूत = 1.50
स्कार्फ़, बेल्ट, कॉलर, बटन = 1.25
इनके अलावा 2 स्कूल वर्दियाँ (ग्रीष्म), 2 स्कूल वर्दियाँ (सर्दी), 2 अच्छी पोशाकें (ग्रीष्म), 2 अच्छी पोशाकें (सर्दी), 1 गर्मी की स्कर्ट, 1 अच्छी सर्दियों की स्कर्ट, 1 स्कूल स्कर्ट सर्दी के लिए, 1 रेनकोट, 1 समर कोट, 1 विंटर कोट, 2 हैट्स, 2 टोपियाँ। कुल 108 गिल्डर्स।
2 हैंडबैग, 1 आईस-स्केटिंग पोशाक, 1 जोड़ी स्केट्स, एक डिब्बा (जिसमें पाउडर, स्किन क्रीम, फ़ाउंडेशन क्रीम, क्लेनज़िंग क्रीम, सनटैन लोशन, रुई, फ़र्स्ट-एड किट, लाली, लिपस्टिक, आईब्रो पेंसिल, बाथ सॉल्ट्स, बाथ पाउडर, यू डी कोलोन, साबुन, पाउडर पफ़ हों)।
इनके अलावा 4 स्वेटर्स, एक 1.50 का, 4 ब्लाउज़ एक 1.00 का, कई तरह की चीज़ें 10.00 की और उपहार 4.50 के।
शुक्रवार, 9 अक्टूबर, 1942
प्यारी किटी,
आज मेरे पास बताने के लिए केवल निराशाजनक और उदास बातें हैं। हमारे बहुत से यहूदी दोस्तों व परिचितों को झुंडों में ले जाया जा रहा है। गेस्टापो यानी नाज़ी पार्टी की ख़ुफ़िया पुलिस उनके साथ बहुत बुरा बर्ताव कर रही है और उन्हें मवेशियों के ट्रक में लादकर द्रेंथ के बड़े शिविर वेस्टरबर्क ले जा रहे हैं, जहाँ वे सभी यहूदियों को भेज रहे हैं। मीप ने मुझे वहाँ से बचकर निकलने वाले किसी आदमी के बारे में बताया। ज़रूर वेस्टरबर्क में बुरी हालत होगी। लोगों को खाने के लिए न के बराबर मिलता है, उससे भी कम पानी, क्योंकि एक दिन में सिर्फ़ एक घंटा पानी आता है, हज़ारों लोगों के लिए केवल शौचालय व सिंक है। स्त्री-पुरुष एक ही कमरे में सोते हैं, महिलाओं व बच्चों के सिर मुँडवा दिए जाते हैं। वहाँ से बचकर निकलना नामुमकिन है; कई लोग यहूदी दिखते हैं और कतरे हुए बालों से उनकी पहचान होती है।
अगर हॉलैंड में हालत इतनी ख़राब है, तो बाक़ी दूर-दराज़ और ऐसी जगहों पर क्या हाल होगा, जहाँ सभ्यता का नामोनिशान नहीं है और जहाँ जर्मन उन्हें भेज रहे हैं? हम मानकर चल रहे हैं कि उनमें से अधिकतर की हत्या की जा रही है। इंग्लिश रेडियो में कहा जा रहा है कि उन्हें गैस छोड़कर मारा जा रहा है। शायद वह मारने का सबसे तेज़ तरीक़ा है।
मुझे बहुत बुरा लग रहा है। मीप के ये डरावने विवरण दिल दहला देते हैं और मीप भी बहुत परेशान हैं। मिसाल के तौर पर एक दिन गेस्टापो ने एक विकलांग वृद्ध महिला को मीप के दरवाज़े पर छोड़ दिया और कार की तलाश में चले गए। बूढ़ी महिला चमकती रोशनी और हवा में इंग्लिश विमानों पर चल रही गोलीबारी से बहुत डरी हुई थी। फिर भी मीप की हिम्मत नहीं हुई कि उस महिला को अंदर बुला लें। किसी की हिम्मत नहीं थी। सज़ा देने के मामले में जर्मन बहुत उदार हैं।
बेप भी बहुत बुझी हुई हैं। उनके बॉयफ़्रेड को जर्मनी भेजा जा रहा है। हर बार हवाई जहाज़ के उड़ने पर वे डरती हैं कि कहीं सारे के सारे बम वे बेरतुस के सिर पर न गिरा दें। इस स्थिति में मज़ाक में यह कहना, ‘अरे चिंता मत करो, वे भी उस पर नहीं गिर सकते’ या ‘जान लेने के लिए एक बम काफ़ी है,’ बिलकुल भी सही नहीं है। बेरतुस ही अकेला नहीं है, जिसे जर्मनी में काम करने के लिए मजबूर किया जा रहा है। रेल में भरकर नौजवान रोज़ विदा लेते हैं। उनमें से कुछ किसी छोटे से स्टेशन पर रेल के रुकने पर चुपके से निकल जाने की कोशिश करते हैं, लेकिन कुछ ही निकलने और छिपने की जगह खोज पाने में कामयाब होते हैं।
लेकिन मेरा यह दुख यहीं ख़त्म नहीं होता। क्या तुमने कभी ‘बंधक’ शब्द सुना है? देशद्रोहियों के लिए सबसे नई सज़ा यही है। इससे ख़तरनाक चीज़ की कल्पना तुम कर भी नहीं सकती। प्रमुख नागरिकों, मासूम नागरिकों को बंदी बनाया जा रहा है और वे अपनी मौत का इंतज़ार कर रहे हैं। गैस्टापो को अगर कोई देशद्रोही नहीं मिलता, तो वे बस पाँच बंधकों को पकड़कर उन्हें दीवार के सामने एक पंक्ति में खड़ा कर देते हैं। उनकी मौत की ख़बर अख़बारों में छपती है, जिनमें उसे ‘घातक दुर्घटना’ कहा जाता है।
ज़रा सोचो, वे जर्मन मानवता के बेहतरीन नमूने हैं। मैं उनमें से एक हूँ! नहीं, वह सही नहीं है, हिटलर ने हमारी राष्ट्रीयता काफ़ी पहले छीन ली थी। इसके अलावा इस धरती पर जर्मन व यहूदियों से बढ़कर कोई दुश्मन नहीं है।
तुम्हारी, ऐन
बुधवार, 14 अक्टूबर, 1942
प्यारी किटी,
मैं बहुत व्यस्त हूँ। कल मैंने ला बेले निवेने के एक पाठ के अनुवाद से शुरुआत की और नए शब्द लिखे। फिर मैंने गणित के एक कठिन सवाल को हल किया और उसके अलावा फ़्रेंच व्याकरण के तीन पन्नों का अनुवाद दिया। आज फ़्रेंच व्याकरण और इतिहास। मुझे हर रोज़ घिनौना गणित करना पसंद नहीं है। डैडी को भी ऐसा ही लगता है। मैं उसमें उनसे बेहतर हूँ, हालाँकि असल में हम दोनों ही उसमें अच्छे नहीं हैं, इसलिए हम हमेशा मदद के लिए मारगोट को बुलाते हैं। मैं अपने शॉर्टहैंड पर भी काम कर रही हूँ, जिसमें मुझे मज़ा आता है। हम तीनों में से मैंने सबसे ज़्यादा प्रगति की है।
मैंने द स्टॉर्म फ़ैमिली पढ़ी। यह काफ़ी अच्छी है, लेकिन जूप त हयल जितनी अच्छी नहीं। वैसे दोनों किताबों में एक जैसे शब्द हैं, जो समझ में आते हैं, क्योंकि दोनों की लेखक एक हैं। सिसी फ़ॉन मार्क्सवेल्ड बहुत बढ़िया लेखक हैं। मैं तो अपने बच्चों को भी उनकी किताबें ज़रूर पढ़ने दूँगी।
मैंने कर्नर के भी बहुत से नाटक पढ़े हैं। मुझे उनके लिखने का तरीक़ा पसंद है। उदाहरण के तौर पर, हिडविग, कज़िन फ़्रॉम ब्रीमेन, द गवर्नेस, द ग्रीन डोमिनो, आदि।
माँ, मारगोट और मैं फिर से अच्छे दोस्त बन गए हैं। दरअसल, इस तरह से यह बेहतर है। कल रात मैं और मारगोट मेरे बिस्तर पर एक साथ लेटे हुए थे। हम दोनों बहुत सिकुड़कर सोए थे, लेकिन उसकी वजह से ही मज़ा आता है। उसने पूछा कि क्या वह कभी-कभार मेरी डायरी पढ़ सकती है।
‘कुछ हिस्से,’ मैंने कहा और उससे उसकी डायरी के बारे में पूछा। उसने भी मुझे अपनी डायरी पढ़ने की इजाज़त दे दी।
हम भविष्य के बारे में बातचीत करने लगे और मैंने उससे पूछा कि वह बड़े होकर क्या बनना चाहती है। लेकिन उसने कुछ नहीं कहा और उसे लेकर बहुत रहस्यमय बनी रही। मैंने अंदाज़ा लगाया कि ज़रूर उसके काम का पढ़ाने से कुछ लेना-देना होगा; हालाँकि मैं पूरी तरह से निश्चित नहीं हूँ, लेकिन मुझे लगता है कि ऐसा ही कुछ होगा। मुझे इतनी दख़लअंदाज़ी नहीं करनी चाहिए।
आज सुबह मैं पीटर के बिस्तर पर लेटी थी, उससे पहले मैंने उसे वहाँ से भगाया था। वह बहुत गु़स्से में था, लेकिन मैंने कोई परवाह नहीं की। उसे कभी-कभी मेरे साथ थोड़ा दोस्ताना बर्ताव करने की बात सोचनी चाहिए। मैंने कल रात ही उसे एक सेब दिया था।
मैंने एक बार मारगोट से पूछा कि क्या उसे लगता है कि मैं भद्दी हूँ। उसने कहा कि मैं ठीकठाक हूँ और मेरी आँखें अच्छी हैं। यह थोड़ी अस्पष्ट सी बात है, है न?
अगली बार तक इंतज़ार करो!
तुम्हारी, ऐन
पुनःश्च। आज सुबह हम सबने अपना वज़न नापा। मारगोट 9 स्टोन 6 पाउंड की है, माँ 9 स्टोन 10, पापा 11 स्टोन 1, ऐन 6 स्टोन 12, पीटर 10 स्टोन 1, मिसेज़ फ़ॉन डान 8 स्टोन 5, मि. फ़ॉन डान 11 स्टोन 11। यहाँ आने के तीन महीनों में मेरा वज़न 19 पाउंड बढ़ गया है। काफ़ी ज़्यादा है, उफ़?
मंगलवार, 20 अक्टूबर, 1942
प्रिय किटी,
मेरा हाथ अब भी काँप रहा है, जबकि उस बात को दो घंटे हो चुके हैं। विस्तार से बताती हूँ, हमारी इमारत में पाँच अग्निशमन यंत्र हैं। ऑफ़िस के लोग हमें चेतावनी देना भूल गए कि कारपेंटर (बढ़ई) या फिर जो भी वह कहलाता है, वह हमारे यंत्रों को भरने आ रहा है। नतीजा यह हुआ कि हमने तब तक शांत रहने की बात नहीं सोची, जब तक कि हमें किताबों की अलमारी पर हथौड़े की आवाज़ नहीं सुनाई दी। मैंने तुरंत अनुमान लगा लिया कि वह कारपेंटर होगा और मैं बेप को चेतावनी देने पहुँच गई, जो उस समय खाना खा रही थी, ताकि वह नीचे न चली जाए। मैं और डैडी दरवाज़े के पास तैनात हो गए, ताकि हम उस आदमी के जाने की आहट सुन सकें। लगभग पंद्रह मिनट काम करने के बाद उसने अपना हथौड़ा और बाक़ी औज़ार हमारी अलमारी पर रखे (या ऐसा हमें लगा!) और हमारे दरवाज़े पर आवाज़ करने लगा। हम सभी डर से सुन्न हो गए। क्या उसने कोई आवाज़ सुनी थी और अब इस अजीबोग़रीब अलमारी को देखना चाहता था? ऐसा ही लगा, क्योंकि वह उसे खटखटाता, खींचता, धक्का देता व झटके देता रहा।
मैं यहाँ सोचकर इतना डर गई थी कि वह अजनबी हमारी इस बढ़िया सी छिपने की जगह को खोजने में कामयाब रहेगा। जैसे ही मैंने सोचा कि अब बस हम पकड़े ही जाने वाले हैं, तो हमें मि. क्लेमन की आवाज़ सुनाई दी, ‘खोलो, मैं हूँ।’
हमने तुरंत दरवाज़ा खोल दिया। क्या हुआ था? किताबों की अलमारी को टिकाने वाला हुक फँस गया था, इसलिए कोई हमें बढ़ई के बारे में नहीं बता पाया। उस आदमी के जाने के बाद मि. क्लेमन बेप को लेने आए, लेकिन किताबों की अलमारी को नहीं खोल सके। मैं तुम्हें नहीं बता सकती कि मुझे कितनी राहत मिली। हमारी छिपने की जगह में घुसने की कोशिश कर रहा वह आदमी मेरी कल्पना में इतना बड़ा होता जा रहा था कि न सिर्फ़ वह एक दैत्य, बल्कि दुनिया में सबसे बेरहम फ़ासिस्ट बन गया था। ख़ुशक़िस्मती से सब कुछ ठीक रहा, कम से कम इस बार तो।
सोमवार को हमने बहुत मज़े किए। मीप और यान हमारे साथ रात को रहने आए। मारगोट और मैं पापा और मम्मी के कमरे में सोए, ताकि वे दोनों हमारे बिस्तर पर सो सकें। उनके सम्मान में खाना बनाया और वह बहुत स्वादिष्ट था। उत्सव में थोड़ी रुकावट आई, जब पापा के लैम्प का शॉर्ट सर्किट हो गया और अचानक अँधेरा छा गया। हम क्या कर सकते थे? हमारे पास फ़्यूज़ थे, लेकिन उनका बक्सा गोदाम के पीछे था, जिससे रात के समय यह काम बहुत अप्रिय हो गया था। फिर भी पुरुष सामने आए और दस मिनट बाद हमने मोमबत्तियाँ बुझा दीं।
मैं आज सुबह जल्दी उठ गई। यान पहले से तैयार थे। उन्हें साढ़े आठ बजे निकलना था, इसलिए वे ऊपर आठ बजे तक नाश्ता कर रहे थे। मीप भी तैयार होने में व्यस्त थी, जब मैं वहाँ पहुँची तो वह बनियान में थी। वह साइकिल चलाते हुए उसी तरह का लंबा अंडरवियर पहनती है, जैसा कि मैं पहनती हूँ। मारगोट और मैंने भी बहुत तेज़ी से कपड़े पहने और सामान्य समय से पहले ऊपर पहुँच गए। अच्छे से नाश्ते के बाद मीप नीचे चली गई। बारिश हो रही थी और वह ख़ुश थी कि उसे साइकिल चलाकर काम पर नहीं जाना पड़ा। डैडी और मैंने बिस्तर ठीक किए और बाद में पाँच अनियमित फ़्रेंच क्रियाएँ सीखी। काफ़ी मेहनती हूँ, तुम्हें नहीं लगता?
मारगोट और पीटर हमारे कमरे में पढ़ रहे थे, मूशी दीवान पर मारगोट के साथ सिमटी हुई थी। अपनी अनियमित फ़्रेंच क्रियाओं के बाद मैं भी उनके पास चली गई और द वुड्स आर सिंगिंग फ़ॉर आल एटर्निटी पढ़ी। यह बहुत ख़ूबसूरत किताब है, लेकिन काफ़ी अलग है। मैं उसे लगभग पूरा कर चुकी हूँ।
अगले हफ़्ते बेप की बारी हमारे यहाँ सोने की है।
तुम्हारी, ऐन
बृहस्पतिवार, 29 अक्टूबर, 1942
मेरी प्यारी किटी,
मैं बहुत चिंतित हूँ। पापा बीमार हैं। उनके शरीर पर चकत्ते हैं और उन्हें तेज़ बुख़ार है। चेचक जैसा दिखता है। ज़रा सोचो, हम डॉक्टर तक नहीं बुला सकते! माँ चाहती हैं कि उन्हें पसीना आए, ताकि बुख़ार उतर जाए।
आज सुबह मीप ने हमें बताया कि ज़ायडर-आमस्तलान पर फ़ॉन डान परिवार के अपार्टमेंट से फ़र्नीचर हटाया गया है। हमने अभी तक मिसेज़ फ़ॉन डी को नहीं बताया है। पिछले कुछ दिनों से वे इतनी घबराई हुई हैं कि हमें नहीं लगता कि हम फिर से ख़ूबसूरत चीनी मिट्टी के बर्तनों और प्यारी कुर्सियों को लेकर उनकी आहों को सुनना चाहते हैं, जो उन्हें छोड़नी पड़ी थीं। हमें भी अपनी अधिकतर प्यारी चीज़ों को छोड़कर आना पड़ा। अब उस पर बड़बड़ाने से क्या फ़ायदा है?
पापा चाहते हैं कि अब मैं हेबल और अन्य प्रसिद्ध जर्मन लेखकों की किताबें पढ़ना शुरू कर दूँ। अब मैं जर्मन काफ़ी अच्छी तरह पढ़ सकती हूँ, इसके सिवा कि मैं शब्दों को चुपचाप पढ़ने के बजाय उन्हें बुदबुदाकर पढ़ती हूँ। लेकिन वह भी ठीक हो जाएगा। पापा ने किताबों की बड़ी सी अलमारी से गोएठ और शिलर के नाटकों को निकाला है और वे मुझे हर शाम उन्हें पढ़कर सुनाना चाहते हैं। हमने डॉन कार्लोस से शुरुआत की। पापा के अच्छे उदाहरण से प्रोत्साहित होकर, माँ ने अपनी प्रार्थना पुस्तिका मेरे हाथों में थमा दी। लिहाज़ के तौर पर मैंने जर्मन में कुछ प्रार्थनाएँ पढ़ीं। वे सुनने में अच्छी थीं, लेकिन मेरे लिए उनके कुछ ख़ास मायने नहीं थे। वे मुझे इतनी धार्मिक व भक्तिमय बनाने पर क्यों तुली हैं?
कल हम पहली बार अंगीठी जलाने वाले हैं। बहुत समय से चिमनी की सफ़ाई नहीं हुई है, इसलिए कमरे में धुँआ तो भरेगा ही। उम्मीद है कि वह कुछ धुँआ तो खींचेगी!
तुम्हारी, ऐन
सोमवार, 2 नवंबर, 1942
प्रिय किटी,
बेप हमारे साथ शुक्रवार शाम को रही। मज़ा आया, लेकिन वह सो नहीं पाई, क्योंकि उसने वाइन नहीं पी थी। बाक़ी बताने के लिए कुछ ख़ास है नहीं। कल मुझे भयंकर सिरदर्द था, इसलिए मैं जल्दी सो गई। मारगोट फिर से अजीब बर्ताव कर रही है।
आज सुबह मैंने ऑफ़िस के इंडेक्स कार्ड फ़ाइल को करीने से लगाना शुरू किया, क्योंकि वह गिर गई थी और सब कुछ गड़बड़ हो गया था। थोड़ी देर बार ही मैं पगला गई। मैंने मारगोट और पीटर से मदद माँगी, लेकिन दोनों बहुत आलस दिखा रहे थे, तो मैंने भी काम छोड़ दिया। मैं इतनी पागल भी नहीं कि सारा काम ख़ुद करूँ?
ऐन फ़्रैंक
पुनःश्च। मैं एक बहुत महत्त्वपूर्ण जानकारी देना भूल गई कि शायद मेरा मासिक धर्म जल्दी ही शुरू होने वाला है। मैं इसलिए कह सकती हूँ कि मेरे अंतर्वस्त्रें में मुझे कुछ सफ़ेद से धब्बे दिखते हैं और माँ ने कहा है कि जल्दी ही वह शुरू हो जाएगा। अब इंतज़ार मुश्किल है। बहुत बुरी बात है कि मैं सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल नहीं कर सकती, अब उनका मिलना मुश्किल है और मम्मी के टैम्पन्स का इस्तेमाल सिर्फ़ वही महिलाएँ कर सकती हैं, जिनका बच्चा हो चुका हो।
बृहस्पतिवार, 5 नवंबर, 1942
प्यारी किटी,
आख़िरकार ब्रिटिशों को अफ़्रीका में कुछ सफलता मिली और स्टालिनग्राद में अब तक उन्हें जीत नहीं मिली है, इसलिए पुरुष ख़ुश हैं और हमने आज सुबह कॉफ़ी व चाय पी। इसके अलावा बताने के लिए कुछ ख़ास नहीं है।
इस हफ़्ते मैं पढ़ ज़्यादा रही हूँ और बहुत कम काम कर रही हूँ। ऐसा ही होना चाहिए। यह रास्ता सफलता की ओर ले जाता है।
पिछले कुछ समय से माँ और मेरी अच्छी पट रही है, लेकिन हम बहुत क़रीब नहीं हैं। पापा अपनी भावनाओं को खुले तौर पर ज़ाहिर नहीं करते, लेकिन वे उतने ही प्यारे हैं, जैसे हमेशा थे। कुछ दिन पहले हमने अंगीठी जलाई थी और पूरा कमरा अब भी धुँए से भरा है। मुझे सेंट्रल हीटिंग पसंद है और शायद मैं अकेली नहीं हूँ। मारगोट बहुत बदमाश (इसके अलावा कोई और शब्द नहीं) है और दिन-रात चिड़चिड़ाहट पैदा करती है।
ऐन फ़्रैंक
शनिवार, 7 नवंबर, 1942
प्रिय किटी,
माँ आजकल बहुत चिड़चिड़ी रहती हैं और वह मेरे लिए अच्छा शकुन नहीं है। क्या यह सिर्फ़ संयोग ही है कि माँ और पापा मारगोट को कभी नहीं डाँटते और हमेशा हर चीज़ के लिए मुझे ही दोषी मानते हैं? उदाहरण के लिए, कल रात मारगोट बहुत सुंदर चित्रों वाली एक किताब पढ़ रही थी, वह उठी और किताब को एक तरफ़ रख दिया। मैं कुछ नहीं कर रही थी, इसलिए मैंने उसे उठा लिया और तसवीरें देखने लगी। मारगोट आई तो उसने मुझे उसकी किताब पढ़ते देख लिया, उसने अपनी भौंहें चढ़ाकर मुझसे चिड़चिड़ाकर किताब वापस माँगी। मैं थोड़ी देर और उसे देखना चाहती थी। मारगोट की नाराज़ गी बढ़ती गई और माँ बीच में कूद पड़ी: ‘मारगोट किताब पढ़ रही थी, उसे वापस लौटाओ।’
पापा आए और बिना यह जाने कि क्या हो रहा है, उन्होंने देखा कि मारगोट के साथ अन्याय हो रहा है, वे मुझ पर चिल्लाए, ‘मैं देखूँगा अगर मारगोट तुम्हारी किताब देख रही हो तो तुम क्या करोगी!’
मैंने तुरंत हथियार डाल दिए, किताब को नीचे रखा और उनके मुताबिक़ ताव में आकर कमरे से बाहर निकल गई। मैं न तो आवेश में थी और न ही चिढ़ी हुई थी, बस दुखी थी।
बात को जाने बिना पापा का इस तरह फ़ैसला देना सही नहीं था। मैं ख़ुद ही मारगोट को किताब दे देती और जल्दी दे देती, अगर माँ और पापा बीच में न पड़ते और मारगोट की तरफ़ दारी करने के लिए आगे न आते, जैसे कि उसके साथ कोई बड़ा अन्याय हो रहा था।
यह ज़रूर है कि माँ ने मारगोट का पक्ष लिया; वे हमेशा एक-दूसरे की तरफ़ दारी करती हैं। मैं तो अब इसकी इतनी आदी हो गई हूँ कि माँ की झिड़कियों और मारगोट के चिड़चिड़ेपन का मुझ पर कोई असर नहीं पड़ता। मैं उन्हें प्यार करती हूँ, लेकिन सिर्फ़ इसलिए कि वे मेरी माँ और बहन हैं। व्यक्ति के तौर पर मुझे उनकी कोई परवाह नहीं है। मेरी बला से वे पानी में कूद जाएँ। पापा की बात और है। मैं जब उन्हें मारगोट की तरफ़ दारी करते हुए देखती हूँ, उसके हर काम को सही मानते हुए, उसकी तारीफ़ करते हुए, उसे गले लगते हुए देखती हूँ, तो मेरे भीतर एक दर्द सा उठता है। मैं उन्हें लेकर पागल हूँ। मैं उनके जैसा बनना चाहती हूँ और दुनिया में मैं उनसे ज़्यादा किसी और को प्यार नहीं करती। वे नहीं समझ पाते कि वे मारगोट से मुझसे अलग बर्ताव करते हैं। मारगोट सबसे चतुर, सबसे दयालु, सबसे प्यारी और सबसे अच्छी है। लेकिन मुझे भी अधिकार है कि सब मुझे गंभीरता से लें। मैं हमेशा से परिवार की मसखरी और शरारत करने वाली हूँ; मुझे हमेशा से अपनी ग़लतियों का दोहरा दंड भुगतना पड़ता है: एक बार डाँट के रूप में और दूसरी बार अपनी हताशा के रूप में। मैं अब बेकार के स्नेह या कथित गंभीर बातों से संतुष्ट नहीं होती। मुझे अपने पिता से कुछ चाहिए, जो वे दे सकते हैं। मैं मारगोट से नहीं जलती; मैं कभी नहीं जली। मुझे उसकी बुद्ध या उसकी सुंदरता से कोई ईर्ष्या नहीं है। बात बस इतनी सी है कि मैं महसूस करना चाहूँगी कि पापा मुझसे प्यार करते हैं, इसलिए नहीं कि मैं उनकी बेटी हूँ, बल्कि इसलिए कि मैं, मैं ऐन हूँ।
मैं पापा से चिपकती हूँ, क्योंकि माँ के प्रति मेरी नफ़रत रोज़ बढ़ती जा रही है और पापा के माध्यम से ही मैं परिवार से जुड़े होने की भावना को बनाए रख पाई हूँ। वे नहीं समझते कि कभी-कभी मुझे माँ के प्रति अपनी भावनाओं को निकालना पड़ता है। वे इस पर बात नहीं करना चाहते और माँ की कमज़ोरियों पर बात नहीं करना चाहते।
फिर भी माँ की तमाम कमियों के बावजूद उनसे निपटना मेरे लिए काफ़ी मुश्किल है। मैं नहीं जानती कि उनसे कैसा बर्ताव करना चाहिए। मैं उनकी लापरवाही, उनके व्यंग्य और उनकी बेरहमी का जवाब उसी तरह से नहीं दे सकती, फिर भी मैं हर चीज़ का दोष अपने ऊपर लगातार नहीं ले सकती।
मैं माँ से उलट हूँ, इसलिए हमारा टकराव तो होगा ही। मेरा मक़सद उन्हें आँकना नहीं है; मुझे वह अधिकार नहीं है। मैं तो बस उन्हें माँ के तौर पर देख रही हूँ। वे मेरे साथ माँ का बर्ताव नहीं करतीं, मुझे अपनी माँ ख़ुद बनना पड़ता है। मैंने ख़ुद को उनसे काट लिया है। मैं अपना रास्ता ख़ुद तय कर रही हूँ और देखें कि वह मुझे कहाँ ले जाता है। मेरे पास कोई विकल्प नहीं है, क्योंकि मैं कल्पना कर सकती हूँ कि किसी माँ और पत्नी को कैसा होना चाहिए और उस तरह की कोई भी बात मुझे उस महिला में नहीं दिखती, जिन्हें मुझे ‘माँ’ कहना चाहिए।
मै ख़ुद से बार-बार माँ के बुरे उदाहरण की अनदेखी करने को कहती हूँ। मैं सिर्फ़ उनकी अच्छी बातें देखना चाहती हूँ और अपने भीतर देखना चाहती हूँ कि मुझमें क्या कमी है। लेकिन यह काम नहीं आता और सबसे बुरी बात यह है कि पापा और मम्मी अपनी कमियों को नहीं देख पाते और यह भी कि मुझे निराश करने के लिए मैं उन्हें कितना दोषी मानती हूँ। क्या कोई ऐसे माता-पिता हैं, जो अपने बच्चों को पूरी तरह ख़ुश रख सकते हैं?
इतनी कई बार मुझे लगता है कि ईश्वर मेरी परीक्षा ले रहा है, अभी और भविष्य में। मुझे ख़ुद ही अच्छा इंसान बनना होगा, बिना किसी आदर्श के या किसी की सलाह के, लेकिन इससे मैं आख़िरकार मज़बूत बनूँगी।
मेरे अलावा और कौन यह सब पढ़ने वाला है? मेरे अलावा कौन है, जो सुकून के लिए इसे खोलेगा? मुझे अक्सर सांत्वना की ज़रूरत पड़ती है। मैं अक्सर कमज़ोर महसूस करती हूँ और अक्सर ही मैं उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पाती। मैं यह जानती हूँ और हर रोज़ बेहतर करने का प्रण लेती हूँ।
वे मेरे साथ एक जैसा बर्ताव नहीं करते। एक दिन कहते हैं कि ऐन समझदार लड़की है और उसे सब कुछ जानना चाहिए और फिर अगले दिन कहेंगे कि ऐन तो बेवकूफ़ है, जिसे कुछ नहीं आता और फिर भी कल्पना करती है कि उसने किताबों से वह सब कुछ जान लिया है, जो उसे जानना चाहिए! मैं अब छोटी सबकी प्यारी बिगड़ैल बच्ची नहीं हूँ, जिसकी हर हरकत पर हँसा जाना चाहिए। मेरे अपने विचार, योजनाएँ और आदर्श हैं, लेकिन अभी उन्हें बता पाने के क़ाबिल नहीं हुई हूँ।
ठीक है। रात को अकेले बैठने पर मेरे दिमाग़ में इतनी बातें आती हैं या फिर दिन में जब मुझे ऐसे लोगों को झेलना पड़ता है, जिन्हें मैं सहन नहीं कर सकती या फिर जो मेरी मंशा को ग़लत समझते हैं। इसी कारण मैं वापस अपनी डायरी पर आती हूँ, मैं यहीं से बात शुरू कर यहीं ख़त्म करती हूँ, क्योंकि किटी हमेशा धीरज से काम लेती है। उससे मेरा वादा है कि मैं बढ़ती रहूँगी, अपना रास्ता खोजूँगी और अपने आँसुओं को दबा दूँगी। मैं यही चाहती हूँ कि मुझे नतीजे मिलें या फिर एक बार किसी ऐसे से प्रोत्साहन मिले, जो मुझे प्यार करता हो।
मेरी भर्त्सना मत करो, लेकिन मुझे एक ऐसे इंसान के रूप में देखा, जो कभी-कभी फटने के कगार पर पहुँचता हो!
तुम्हारी, ऐन
सोमवार, 9 नवंबर, 1942
प्यारी किटी,
कल पीटर का सोलहवाँ जन्मदिन था। मैं आठ बजे तक ऊपर रही और मैंने व पीटर ने उसके उपहार देखे। उसे मोनोपॉली का खेल, एक रेज़ र और एक सिगरेट लाइटर मिला। वह इतना धूम्रपान नहीं करता, बिलकुल भी नहीं, बस यह बहुत ख़ास दिखता है।
सबसे बड़ी आश्चर्यजनक बात मि. फ़ॉन डान से सुनने को मिली, जिन्होंने एक बजे बताया कि अंग्रेज़ ट्यूनिस, अल्जीयर्स, कासाब्लांका और ओरान पहुँच गए हैं।
‘यह अंत की शुरुआत है,’ सभी कह रहे थे, ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल ने भी इंग्लैंड में इसी बात को दोहराए जाते सुना होगा, उन्होंने घोषणा की, ‘यह अंत नहीं है। यह अंत की शुरुआत भी नहीं है। लेकिन शायद यह शुरुआत का अंत है।’ क्या तुम्हें कुछ फ़र्क़ नज़ र आता है? हालाँकि आशावादी होने का कुछ कारण है। तीन महीने से आक्रमण झेल रहा रूसी शहर स्तालिनग्राद अब भी जर्मनी के हाथ नहीं आया है।
अनेक्स की असली भावना के मुताबिक़ मुझे तुम्हें खाने के बारे में बताना चाहिए (मुझे बताना चाहिए कि ऊपर वाली मंज़िल पर रहने वाले कितने पेटू हैं।)
मि. क्लेमन के एक दोस्त, बहुत अच्छे बेकर हर रोज़ डबलरोटी दे जाते हैं। वह उतनी नहीं होती, जितनी कि हमारे घर पर होती है, फिर भी वह काफ़ी है। हम ब्लैक मार्केट से राशन बुक्स लेते हैं। क़ीमत बढ़ती जा रही है: वह पहले ही 27 से 33 गिल्डर्स हो चुकी है। वह भी छपे हुए काग़ज़ के लिए!
हमने यहाँ खाने के काफ़ी टिन जमा किए हैं, उनके अलावा अपने पोषण के लिए हमने तीन सौ पाउंड बीन्स ख़रीदी हैं। न सिर्फ़ अपने लिए, बल्कि दफ़्तर में काम करने वालों के लिए भी। हमने बीन्स के बोरे अपने गुप्त प्रवेशद्वार के अंदर गलियारों में टाँगे थे, लेकिन वज़न के कारण कुछ सिलाइयाँ खुल गईं। इसलिए हमने उन्हें अटारी में ले जाने का फ़ैसला किया और पीटर को वज़न उठाने का काम सौंपा गया। वह छह में से पाँच बोरों को सही-सलामत ऊपर ले गया और आख़िरी बोरे को ले जा रहा था कि वह फट गया और हवा में बिखर गई भूरी बीन्स की बाढ़ या बरसात सी हो गई, जो सीढ़ियों तक फैल गई। उस बोरे में पचास पाउंड बीन्स होने के कारण इतनी ज़ोरदार आवाज़ हुई कि मुर्दे भी जाग जाएँ। नीचे मौजूद लोगों को लगा कि घर गिरने वाला है। पीटर भौंचक्का रहा गया, लेकिन फिर खिलखिलाकर हँस पड़ा, जब उसने मुझे सीढ़ियों में खड़ा देखा, बीन्स के समुद्र में भूरी लहरों के बीच मैं किसी द्वीप जैसी दिख रही थी। हमने तुरंत उन्हें उठाना शुरू किया, लेकिन बीन्स इतनी छोटी और फिसलन भरी थीं कि वे हर कोने व छेद में घुस रही थीं। हर बार ऊपर जाते हुए हम झुककर कोशिश कर रहे थे कि मिसेज़ फ़ॉन डान को मुट्ठी भर बीन्स दे सकें।
मैं यह बताना तो भूल ही गई कि पापा ठीक हो गए हैं।
तुम्हारी, ऐन
पुनःश्च। रेडियो में अभी घोषणा हुई है कि अल्जीयर्स हार गया है। मोरक्को, कासाब्लांका और ओरान कई दिनों से ब्रिटिश कब्जे़ में हैं। अब हमें ट्यूनिश का इंतज़ार है।
मंगलवार, 10 नवंबर, 1942
प्रिय किटी,
बढ़िया ख़बर है! हमारे साथ छिपने के लिए आठवाँ व्यक्ति आ रहा है!
हाँ, सचमुच। हमें हमेशा लगता था कि हमारे पास एक और व्यक्ति के लिए पर्याप्त जगह व खाना है, लेकिन हमें डर था कि कहीं मि. कुगलर और मि. क्लेमन पर अतिरिक्त बोझ न पड़े। लेकिन यहूदियों के साथ बढ़ते अत्याचार की घटनाओं के कारण पापा ने इन दो महाशयों की राय जानने की कोशिश की और उन्हें यह योजना बहुत अच्छी लगी। ‘लोग चाहें सात हों या आठ, उतना ही ख़तरनाक है,’ उन्होंने सही कहा। एक बार बात हो जाने पर हम सभी ने मिलकर अपनी जान-पहचान के लोगों पर विचार किया और एक ऐसे इंसान के बारे में सोचने की कोशिश की, जो हमारे विस्तृत परिवार में अच्छी तरह घुलमिल सके। यह मुश्किल नहीं था। पापा ने फ़ॉन डान परिवार के सभी सदस्यों को नकार दिया, उसके बाद हमने एक डेंटिस्ट अल्फ़्रेड डुसल को चुना। वे एक आकर्षक ईसाई महिला के साथ रहते हैं, जो उनसे कम उम्र की हैं। शायद उनकी शादी नहीं हुई है, लेकिन यह और बात है। वे शांत और शिष्ट इंसान के रूप में जाने जाते हैं और ऊपरी तौर पर उनके साथ मेरे परिचय से लगता है कि वे अच्छे हैं। मीप भी उन्हें जानती है, इसलिए वह आवश्यक व्यवस्था कर सकती है। अगर मि. दुसे आते हैं, तो मारगोट के कमरे के बजाय उन्हें मेरे कमरे में सोना होगा और फ़ोल्डिंग बिस्तर से काम चलाना होगा। हम उन्हें अपने साथ कुछ लाने को कहेंगे, जिससे कैविटीज़ यानी दाँतों में हुए छेदों को भरा जा सके।
तुम्हारी, ऐन
बृहस्पतिवार, 12 नवंबर, 1942
प्रिय किटी,
मीप हमें बताने आई कि वह डॉ. दुसे से मिलने गई थी। जैसे ही वह कमरे में घुसी, उन्होंने उससे पूछा कि क्या वह छिपने की किसी जगह के बारे में जानती है और जब मीप ने बताया कि कोई जगह है, तो वे बहुत ख़ुश हुए। मीप ने कहा कि उन्हें जितनी जल्दी हो सके, छिपने चले जाना चाहिए, हो सके तो शनिवार को, लेकिन उन्होंने सोचा कि यह तो असंभव है, क्योंकि उन्हें अपने रिकॉर्ड ठीक करने करने हैं, अपने हिसाब-किताब की व्यवस्था करनी है और कुछ मरीज़ देखने हैं। मीप ने सुबह हमें वही सब बता दिया। हमें नहीं लगा कि इतना इंतज़ार करना अक्लमंदी है। इन सभी तैयारियों के लिए हमें कई ऐसे लोगों को सफ़ाई देनी पड़ती है, हमारे मुताबिक़ जिन्हें अँधेरे में रखा जाना चाहिए। मीप डॉ. दुसे से यह पूछने गई कि क्या वे शनिवार को नहीं आ सकते, लेकिन उन्होंने मना कर दिया और अब उन्हें सोमवार को आना है।
मेरे ख़याल से यह अजीब है कि उन्होंने हमारे प्रस्ताव को तुरंत स्वीकार नहीं किया। अगर उन्हें सड़क से उठा लिया गया, तो उनके रिकॉर्ड्स या उनके मरीज़ कोई काम नहीं आएँगे। तो फिर देरी क्यों? अगर मुझसे पूछो तो मेरे ख़याल से उनकी बात मानना पापा की बेवकूफ़ी है।
वरना, कोई और ख़बर नहीं है।
तुम्हारी, ऐन
मंगलवार, 17 नवंबर, 1942
प्रिय किटी,
मि. दुसे पहुँच गए हैं। सब कुछ सही रहा। मीप ने उनसे डाकघर के आगे सुबह 11 बजे एक निश्चित स्थान पर रहने को कहा, जहाँ एक आदमी उन्हें मिलेगा, जो नियत समय पर नियत जगह पर होगा। मि. क्लेमन उसके पास जाकर कहेंगे कि जिस आदमी से उन्हें मिलना था, वह नहीं आ पाया और उससे कहेंगे कि वह दफ़्तर जाकर मीप से मिल ले। मि. क्लेमन ट्राम से वापस दफ़्तर चले गए, जबकि दुसे पैदल ही उनके पीछे चले।
ग्यारह बजकर बीस मिनट पर मि. दुसे ने हमारे दरवाज़े पर दस्तक दी। मीप ने उन्हें कोट उतारने को कहा, ताकि पीला सितारा न दिखे और उन्हें प्राइवेट ऑफ़िस में ले आई, जहाँ पर मि. क्लेमन ने उन्हें तब तक व्यस्त रखा, जब तक कि सफ़ाई करने वाली महिला नहीं चली गई। यह बहाना बनाकर कि प्राइवेट ऑफ़िस किसी और काम के लिए चाहिए, मीप मि. दुसे को ऊपर ले आई, किताबों की अलमारी खोली और अंदर आई, जबकि मि. दुसे हैरानी से देखते रहे।
इस बीच हम सातों डाइनिंग टेबल पर कॉफ़ी व कॉनियाक लेकर अपने परिवार में आने वाले व्यक्ति का इंतज़ार करने लगे। मीप पहले उन्हें फ़्रैक परिवार के कमरे में ले गई। उन्होंने तुरंत हमारे फ़र्नीचर को पहचान लिया, लेकिन उन्हें यह ख़याल नहीं आया कि हम ठीक उनके सिर के ऊपर वाली मंज़िल पर मौजूद थे। जब मीप ने उन्हें बताया, तो वह इतने हैरान हुए कि बेहोश होते-होते बचे। शुक्र है कि मीप ने उन्हें ज़्यादा देर अनिश्चितता में नहीं रखा और उन्हें ऊपर ले आई। मि. दुसे कुर्सी पर बैठे और हमें भौंचक्के होकर ख़ामोशी से घूरते रहे, जैसे कि वे हमारे चेहरों पर सच पढ़ सकते हों। फिर वे अटकते हुए बोले, 'अरे... लेकिन आपको तो बेल्जियम में होना था? अफ़सर, कार, वे नहीं आए? आपके निकल जाने की योजना कारगर नहीं रही?'
हमने उन्हें पूरी बात बताई कि कैसे हमने जानबूझकर अफ़सर और कार की अफ़वाह फैलाई, ताकि जर्मन या फिर हमारी तलाश में आने वाले किसी भी व्यक्ति को हमारा पता न चल सके। मि. दुसे इस चतुराई से अवाक रह गए और हमारे प्यारे और बहुत ही व्यावहारिक अनेक्स के बाक़ी हिस्सों में घूमते हुए हैरानी से देखते रहे। फिर हम सबने एक साथ खाना खाया। फिर उन्होंने एक झपकी ली और फिर उठकर हमारे चाय पी, मीप उनका कुछ सामान पहले से ले आई थी, वे उसे रखने लगे और सहज महसूस करने लगे। ख़ासकर तब जब हमने उन्हें सीक्रेट अनेक्स के नियमक़ायदों की टाइप की गई सूची (फ़ॉन डान की प्रस्तुति) पकड़ाई: सीक्रेट अनेक्स की जानकारी और मार्गदर्शक
यहूदियों और अन्य बेदख़ल लोगों के लिए
अस्थायी आवास की अनोखी सुविधा
पूरे साल खुला है: ऐम्स्टर्डम के बीचोंबीच सुंदर, शांत, जंगल से घिरा हुआ। आसपास कोई निजी आवास नहीं। ट्राम 13 व 17 से पहुँचा जा सकता है और कार व साइकिल से भी। जिन लोगों को जर्मन सत्ता द्वारा इस प्रकार के परिवहन का इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं है, वे पैदल भी यहाँ पहुँच सकते हैं। यहाँ साज़ - सामान सहित व उसके बिना और भोजन व उसके बिना भी कमरे व अपार्टमेंट्स उपलब्ध हैं।
क़ीमत: निःशुल्क।
भोजन: कम वसा वाला।
स्नानघर में लगातार पानी (माफ़ कीजिए, नहा नहीं सकते) और कई अंदरूनी व बाहरी दीवारों पर भी, गर्मी के लिए आरामदेह अंगीठी।
कई तरह की चीजें रखने के लिए पर्याप्त जगह। दो बड़ी, आधुनिक तिजोरियाँ।
निजी रेडियो, जिसकी डायरेक्ट लाइन लंदन, न्यू यॉर्क, तेल अवीव और अन्य कई स्टेशनों से जुड़ी हैं। शाम छह बजे के बाद सभी निवासियों के लिए उपलब्ध। कुछ अपवादों को छोड़कर निषिद्ध प्रसारण नहीं सुन सकते, यानी कुछ जर्मन स्टेशनों को क्लासिकल संगीत के लिए सना जा सकता है। जर्मन समाचार प्रसारणों को सुनना (चाहे वे कहीं से भी प्रसारित हो) और उन्हें दूसरों तक पहुँचना पूरी तरह निषिद्ध है।
आराम के घंटेः रात दस बजे से सुबह साढ़े सात बजे तक; रविवार को सवा दस बजे सुबह तक। परिस्थितियों के अनुसार रहने वालों को दिन के समय भी आराम के घंटों का पालन करना होगा, जब भी प्रबंधन द्वारा उन्हें निर्देश दिया जाए। सभी की सुरक्षा के लिए आराम के घंटों का सख्ती से पालन किया जाए!!!
खाली समय में गतिविधियाँ: घर के बाहर किसी गतिविधि की अनुमति नहीं, जब तक कि आगे कोई नोटिस नहीं आता।
भाषा का इस्तेमाल: हर समय बहुत धीरे से बात करना ज़रूरी है। केवल सभ्य लोगों की भाषा बोली जाए, इसलिए जर्मन नहीं बोली जाएगी।
पढ़ना व आराम: क्लासिकल और विद्वतापूर्ण किताबों को अलावा कोई जर्मन किताब न पढ़ी जाए। अन्य किताबें वैकल्पिक हैं।
व्यायाम: प्रतिदिन।
गाना: बहुत धीमे स्वर में, शाम छह बजे के बाद।
फ़िल्में: पहले से व्यवस्था करना ज़रूरी है।
पढ़ाई: शॉर्टहैंड में साप्ताहिक पत्रचार पाठ्यक्रम। अंग्रेज़ी, फ्रेंच, गणित और इतिहास दिन या रात में किसी भी समय। भुगतान अध्यापन के रूप में, उदाहरण, डच।
अलग विभाग छोटे घरेलू पालतुओं की देखभाल के लिए (कीटों के अलावा, जिनके लिए ख़ास परमिट की ज़रूरत है)।
भोजन का समय:
नाश्ता: प्रतिदिन सुबह 9 बजे, सार्वजनिक अवकाश व रविवार को छोड़कर; रविवार व सार्वजनिक अवकाश के दिनों में सुबह करीब 11:30 बजे।
दिन का भोजन: हल्का भोजन। 11:15 से 11:45 तक।
रात्रि भोजन: गर्म हो सकता है या फिर नहीं भी। खाने का समय समाचार प्रसारण पर निर्भर करता है।
आपूर्ति कोर के संदर्भ में दायित्व: निवासियों को दफ़्तर के काम में मदद के लिए हमेशा तैयार रहना होगा।
स्नान: रविवार सुबह 9 बजे के बाद सभी निवासियों को वाशटब उपलब्ध होगा। निवासी चाहें तो अपनी इच्छानुसार निचली मंज़िल पर मौजूद शौचालय, रसोईघर, प्राइवेट ऑफ़िस या फ्रंट ऑफ़िस का इस्तेमाल कर सकते हैं।
ऐल्कोहल: केवल चिकित्सा उद्देश्य के लिए।
समाप्त।
तुम्हारी, ऐन