The Diary of a Young Girl (Hindi) Anne Frank

द डायरी ऑफ़ ए यंग गर्ल : ऐनी फ्रैंक - हिन्दी अनुवाद : नीलम भट्ट

बृहस्पतिवार, 19 नवंबर, 1942

प्रिय किटी,

जैसा कि हमने सोचा था, मि. दुसे बहुत अच्छे आदमी हैं। यह ज़रूर है कि उन्हें मेरे साथ एक कमरे में रहना बुरा नहीं लगता; ईमानदारी से कहूँ तो मुझे किसी अजनबी का मेरी चीजें इस्तेमाल करना बहुत पसंद नहीं, लेकिन किसी अच्छे काम के लिए आपको त्याग करने पड़ते हैं और मुझे ख़ुशी है कि मैं इतनी छोटी सी कुर्बानी कर सकती हूँ। 'अगर हम अपने एक भी दोस्त को बचा सकते हैं, तो बाक़ी किसी बात से फ़र्क नहीं पड़ता,' पापा ने कहा और वे बिलकुल सही हैं।

पहले दिन मि. दुसे ने मुझसे हर तरह के सवाल पूछे - मिसाल के तौर पर, ऑफ़िस में महिला सफ़ाईकर्मी किस समय आती है, गुसलखाने के इस्तेमाल का क्या इंतज़ाम है और हम शौचालय किस समय जा सकते हैं। तुम्हें हँसी आ सकती है, लेकिन छिपे रहने के दौरान यह सब आसान नहीं है। दिन के समय हम ऐसी कोई आवाज़ नहीं निकाल सकते, जिसे नीचे सुना जा सके और जब वहाँ कोई और, जैसे कि सफ़ाई करने वाली औरत हो तो हमें ज़्यादा ध्यान रखना पड़ता है। मैंने बहुत धीरज से यह सब मि. दुसे को बताया, लेकिन मुझे यह देखकर हैरानी हुई कि उन्हें कितनी देर में बात समझ आती है। वे हर बात दो बार पूछते हैं और फिर भी आपकी बात उन्हें याद नहीं रहती ।

हो सकता है कि अचानक आए इस बदलाव से वे थोड़े असमंजस में हों और इससे उबर जाएँ। वरना, बाक़ी सब ठीक है।

मि. दुसे ने बाहर की दुनिया के बारे में काफ़ी कुछ बताया, जिससे हम काफ़ी लंबे समय से दूर हैं। उन्होंने दुखद समाचार दिए। अनगिनत दोस्तों और परिचितों को एक भयानक नियति की ओर ले जाया जा रहा है। हर रात हरे व स्लेटी सैन्य गाड़ियाँ सड़कों पर गश्त करती हैं। वे हर दरवाज़ा खटखटाकर पूछते हैं कि क्या वहाँ कोई यहूदी रहते हैं। अगर हाँ, तो वे उस पूरे परिवार को ले जाते हैं। अगर नहीं, तो वे अगले घर की तरफ़ बढ़ जाते हैं। अगर आप कहीं छिपने नहीं जाते, तो उनके पंजे से बचना नामुमकिन है। वे अक्सर सूचियाँ लेकर घूमते हैं, उन्हीं दरवाज़ों पर दस्तक देते हैं, जहाँ उन्हें लोगों के मिलने की उम्मीद होती है। वे अक्सर इनाम की पेशकश करते हैं, हर इंसान पर काफ़ी बड़े इनाम की। ये पुराने दिनों में गुलामों की खोज जैसा है। मैं इस बात को हल्का नहीं कर रही हूँ, उस लिहाज़ से तो यह बहुत दुःखदायक है। शाम को अँधेरा होने पर मैं अक्सर अच्छे, मासूम लोगों की कतारें देखती हूँ, जिनके साथ बच्चे होते हैं जो चलते रहते हैं, मुट्ठी भर आदमी उन्हें आदेश देते हैं और तब तक धमकाते व पीटते हैं, जब तक कि वे गिर न जाएँ। किसी को भी बख़्शा नहीं जाता। बीमार, बूढ़े, बच्चे, शिशु और गर्भवती औरतें - सबको मौत की तरफ़ ले जाया जाता है।

हम बहुत ख़ुशकिस्मत हैं कि हलचल से दूर हैं। हम इस कष्ट पर एक पल भी ध्यान नहीं देते, अगर हम अपने प्रिय लोगों को लेकर इतने चिंतित न होते, जिनकी हम मदद नहीं कर सकते। मुझे गर्म बिस्तर पर सोना बुरा लगता है, जबकि बाहर कहीं मेरे सबसे प्यारे दोस्त थककर गिर रहे हैं या फिर ज़मीन पर गिराए जा रहे हैं।

मैं भी तब डर जाती हूँ, जब उन नज़दीकी दोस्तों के बारे में सोचती हूँ जो इस धरती पर चलने वाले सबसे क्रूर राक्षसों की दया पर हैं।

और सिर्फ़ इसलिए कि वे यहूदी हैं।

तुम्हारी, ऐन

शुक्रवार, 20 नवंबर, 1942

प्यारी किटी,

हमें नहीं पता कि कैसे प्रतिक्रिया करें। अब तक हमारे पास यहूदियों की बहुत कम ख़बरें पहुँची थीं और हमें लगा कि अच्छा रहेगा कि जितना हो सके हम ख़ुश रहें। कभी-कभी मीप बताती थी कि किसी दोस्त के साथ क्या हुआ और माँ व मिसेज़ फ़ॉन डान रोने लगती थीं, इसलिए उसने फ़ैसला किया कि कुछ और न कहा जाए। लेकिन हमने मि. दुसे पर प्रश्नों की झड़ी लगा दी और जो कहानियाँ उन्होंने सुनाई, वे इतनी ख़ौफ़ नाक थीं कि हम उन्हें अपने दिमाग़ से नहीं निकाल पाए। एक बार जब हम इन ख़बरों को पचा लेंगे, तो शायद हम फिर से हँसी-मज़ाक करने लगेंगे। अगर हम अभी की तरह उदास बने रहे, तो इससे न तो हमारा और न ही बाहर वालों का कोई भला होगा। वैसे भी सीक्रेट अनेक्स को उदासी भरी जगह बनाने का क्या फ़ायदा है?

कुछ भी करते समय मैं उन लोगों के बारे में सोचना बंद नहीं कर सकती, जो चले गए हैं। जब भी मैं ख़ुद को हँसते हुए पाती हूँ, तो मुझे याद आता है कि इतना ख़ुश होना कितनी शर्म की बात है। तो क्या मुझे पूरा दिन रोते हुए बिताना चाहिए ? नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकती। यह उदासी गुज़र जाएगी।

इसमें एक और तकलीफ़ जुड़ गई है, जो थोड़ी व्यक्तिगत है और उस कष्ट की तुलना में यह कुछ भी नहीं, जिसके बारे में मैंने तुम्हें अभी बताया। फिर भी मैं तुम्हें यह बताना चाहती हूँ कि पिछले कुछ समय से मैं बहुत अकेला महसूस करने लगी हूँ। मेरे आसपास एक बड़ा सा ख़ालीपन है। मैंने कभी उसके बारे में ज़्यादा नहीं सोचा, क्योंकि मैं दोस्तों के साथ थी और मज़े कर रही थी। अब मैं या तो बुरी चीज़ों के बारे में सोचती हूँ या अपने बारे में। इस बात को समझने में थोड़ा समय लगा, लेकिन मैं अब समझ गई हूँ कि पापा चाहे कितने भी दयालु हों, वे मेरी पुरानी दुनिया की जगह नहीं ले सकते। मेरी भावनाओं का जहाँ तक सवाल है, माँ और मारगोट की अहमियत काफ़ी पहले ख़त्म हो चुकी है।

लेकिन तुम क्यों इस बेवकूफ़ी को झेलो? मैं जानती हूँ कि मैं बहुत कृतघ्न हूँ, किटी, लेकिन जब मुझे अनगिनत बार डाँटा जाएगा और मेरे पास कई और परेशानियाँ भी हों, तो मेरा सिर घूमने लगता है!

तुम्हारी, ऐन

शनिवार, 28 नवंबर, 1942

प्रिय किटी,

हम काफ़ी बिजली का इस्तेमाल करते रहे हैं और हम अपने हिस्से से ज़्यादा ख़र्च कर चुके हैं। नतीजा यह है कि अब बिजली कट जाने के डर से हमें बहुत कंजूसी से उसका इस्तेमाल करना पड़ रहा है। एक पखवाड़े तक कोई रोशनी नहीं, यह सुखद सोच है, है न? लेकिन कौन जानता है कि इतने दिन न हां! चार या साढ़े चार बजे के बाद इतना अँधेरा हो जाता है कि पढ़ना मुश्किल हो जाता है, तो हम हर तरह की पागलपन भरी गतिविधियों में लगे रहते हैं: पहेलियाँ बुझाना, अँधेरे में कसरत करना, अंग्रेज़ी या फ्रेंच बोलना, किताबों की समीक्षा करना, थोड़ी देर बाद सब ऊब जाते हैं। कल मैंने मनोरंजन का एक नया तरीक़ा ढूँढ़ा : पड़ोसियों के रोशन घरों में अच्छी दूरबीन से झाँकना । दिन के समय हम परदे नहीं हटा सकते, ज़रा सा भी नहीं, लेकिन अँधेरा होने पर ऐसा करने में कोई हर्ज़ नहीं ।

मैं नहीं जानती थी कि पड़ोसी इतने दिलचस्प हो सकते हैं। हमारे तो हर लिहाज़ से हैं। मैंने एक परिवार को खाना खाते देखा, एक को फ़िल्म बनाते और सामने एक डेंटिस्ट को एक डरी हुई बूढ़ी महिला का इलाज करते देखा ।

मि. दुसे, जिनके बारे में कहा जाता था कि बच्चों के साथ उनकी बहुत पटती है और वे बच्चों को बहुत पसंद करते हैं, वे काफ़ी पुराने क़िस्म के अनुशासन का पालन करवाने वाले निकले, जो शिष्टाचार पर न झेले जाने वाले लंबे उपदेश देते हैं। मुझे जनाब के साथ अपना छोटा सा कमरा बाँटने का एकमात्र सुख मिला है और क्योंकि मैं तीनों बच्चों में से मुझे ही सबसे अशिष्ट माना जाता है, मैं पुरानी झिड़कियों और डाँट फटकार से बचने के लिए बस यही कर सकती हूँ कि उन्हें न सुनने का दिखावा करूँ । यह उतना बुरा नहीं होता अगर मि. दुसे उतने चुगलखोर न होते और अपनी ख़बरें देने के लिए माँ को न चुनते। मि. दुसे ने मुझे झिड़की लगाई ही होती है कि माँ मुझे फिर से भाषण देने लगती हैं और आरोपों की जैसे झड़ी लगा देती हैं। अगर मैं सचमुच ख़ुशक़िस्मत रहती हूँ, तो मिसेज़ फ़ॉन डी मुझे पाँच मिनट बाद बुलाती हैं और निर्देश जारी करती हैं।

नुक्ताचीनी करने वाले परिवार का बुरे तौर पर अपनी तरफ़ ध्यान खींचने वाला होना वाक़ई आसान नहीं है। रात को सोते समय जब मैं अपने पापों और बढ़ा-चढ़ाकर कही गई कमियों के बारे में सोचती हूँ, तो मैं उन बातों के बोझ में इतनी ज़्यादा उलझ जाती हूँ कि अपने मूड के मुताबिक़ या तो मैं हँसने लगती हूँ या फिर रोने। फिर मैं अपने से अलग होने की चाह या फिर मैं जो चाहती हूँ, उससे अलग होने या शायद अलग सा बर्ताव करने की एक अजीब से ख़याल के साथ सो जाती हूँ।

अरे, अब मैं तुम्हें भी उलझाने लगी हूँ। मुझे माफ़ करना, लेकिन मुझे चीज़ों को काटना पसंद नहीं और ऐसे अभाव के समय में काग़ज़ के किसी टुकड़े को फेंक देना बहुत ही बुरी बात है। तो मैं तुम्हें बस यही सलाह दे सकती हूँ कि ऊपर लिखे अनुच्छेद को फिर से न पढ़ना और न ही उसके मर्म तक जाने की कोशिश करना, क्योंकि तुम फिर उससे बाहर कभी नहीं निकल पाओगी!

तुम्हारी, ऐन

सोमवार, 7 दिसंबर, 1942

प्रिय किटी,

इस साल ऑनेका और सेंट निकोलस डे लगभग साथ-साथ बस एक दिन के अंतर पर आए। हमने ऑनेका पर कुछ ख़ास नहीं किया, कुछ छोटे-मोटे उपहार का लेन-देन हुआ और मोमबत्तियाँ जलाई गई। मोमबत्तियाँ कम थीं, इसलिए हमने उन्हें सिर्फ़ दस मिनट के लिए जलाया, लेकिन हमने ख़ूब गाने गाए, तो उससे ज़्यादा फर्क नहीं पड़ा। मि. फ़ॉन डान ने लकड़ी से मेनोआ बनाया।

शनिवार को सेंट निकोलस डे में ज़्यादा मज़ा आया। रात के भोजन के दौरान बेप और मीप पापा से इतना फुसफुसाकर बात कर रही थीं कि हमारी उत्सुकता जागी और हमें शक हुआ कि वे कोई योजना बना रहे हैं। आठ बजे हम घुप्प अँधरे में गलियारे से होते हुए (मुझे कँपकँपी छूट गई और मैं बस चाह रही थी कि हम सुरक्षित ऊपर पहुँच जाएँ!) नीचे के कमरे में पहुँचे। हम यहाँ पर रोशनी कर सकते थे, क्योंकि उसमें कोई खिड़की नहीं थी। जब रोशनी हो गई तो हमने बड़ी अलमारी खोली।

'वाह! क्या बात है!' हम सबने कहा ।

कोने में रंगीन काग़ज़ से सजी एक टोकरी थी और ब्लैक पीटर का मुखौटा था।

हम तेज़ी से उस टोकरी को अपने साथ ऊपर ले गए। उसके अंदर हर किसी के लिए एक उपहार था, जिसके साथ कुछ उपयुक्त पंक्तियाँ भी थीं। तुम्हें पता है कि सेंट निकालेस डे पर लोग किस तरह की कविताएँ लिखते हैं, इसलिए मैं वह सब नहीं लिखूँगी।

मुझे गुड़िया मिली, पापा को बुकऐंड यानी कताबों को सहारा देने वाला खाँचा । जो भी हो, यह अच्छा विचार था और हम आठों ने पहले कभी सेंट निकोलस डे नहीं मनाया था, इसलिए यह अच्छी शुरुआत थी ।

तुम्हारी, ऐन

पुनःश्च । हमने नीचे वाले लोगों को भी उपहार दिए, पुराने अच्छे दिनों की कुछ चीज़े बची थीं; मीप और बेप पैसे के लिए हमेशा कृतज्ञ रहते हैं।

आज हमें पता चला कि मि. फ़ॉन डान की राखदानी, मि. डुसल का पिक्चर फ्रेम और पापा के बुकऐंड को और किसी ने नहीं, बल्कि मि. वुश्कल ने बनाया था। यह मेरे लिए रहस्य ही है कि कोई अपने हाथों का इतना बढ़िया इस्तेमाल कैसे कर सकता है!

बृहस्पतवार, 10 दिसंबर, 1942

प्रिय किटी,

मि. फ़ॉन डान मांस, सॉसेज और मसालों के व्यापार में थे। उन्हें मसालों के उनके ज्ञान के लिए काम पर रखा गया था और अब हमें इस बात से बहुत ख़ुशी होती है कि सॉसेज से जुड़े उनके कौशल से अब हमें फ़ायदा हो रहा है।

हमने बहुत सारा मांस (ज़ाहिर है कि गुप्त रूप से) मँगवाया था, और उसे संरक्षित करने की हमारी योजना थी, ताकि वह आने वाले मुश्किल दिनों में काम आ सके। मि. फ़ॉन डान ने ख़ातवस्त, सॉसेजेस और मेटवत बनाने का फ़ैसला किया। उन्हें कीमा बनाने की मशीन में कई बार मांस डालते देखने में मुझे मज़ा आया। फिर उन्होंने बची-खुची सामग्री को कीमे में डाला और एक लम्बे से पाइप का इस्तेमाल करते हुए उस मिश्रण को आवरण में डाला। हमने दिन के भोजन में ख़ातवस्त और जावरकॉट खाया, लेकिन संरक्षित किए जाने वाले सॉसेज को पहले सुखाना था, इसलिए हमने उन्हें छत से लटके एक डंडे पर टाँग दिया। कमरे में घुसने वाला हर इंसान छत से लटके सॉसेज को देखकर हँसने लगता । बहुत हास्यजनक दृश्य था ।

रसोईघर अस्तव्यस्त था। अपनी पत्नी का ऐप्रन लगाए मि. फ़ॉन डान पहले से मोटे लग रहे थे और मांस पर काम कर रहे थे। हाथों पर लगे ख़ून, लाल चेहरे और धब्बेदार ऐप्रन में वे असली कसाई जैसे दिख रहे थे। मिसेज़ फ़ॉन डी सब कुछ एक साथ करने की कोशिश कर रही थीं: किताब से डच सीख रही थीं, सूप हिला रही थीं, मांस को देख रही थीं, अपनी टूटी पसली को लेकर कराह रही थीं। ऐसा ही होता है, जब बूढ़ी महिलाएँ अपनी चर्बी से छुटकारा पाने के लिए बेवकूफ़ाना कसरतें करती हैं! दुसे की आँख में संक्रमण हो गया था और वे अंगीठी के पास बैठकर अपनी आँख पर कैमोमिल चाय का सेक लगा रहे थे। पिम खिड़की से आती रोशनी की किरण के सामने बैठे हुए थे और उन्हें बार-बार अपनी कुर्सी हटानी पड़ रही थी, ताकि वे उसके रास्ते में न आएँ । उनका गठिया शायद उन्हें परेशान कर रहा था, क्योंकि वे झुके हुए थे और मि. फ़ॉन डान को देखते हुए उनके चेहरे पर दर्द के भाव थे। उन्हें देखकर मुझे उन बूढ़े अपाहिज लोगों का ध्यान आ रहा था, जो निर्धन गृहों में दिखते हैं। पीटर कमरे में मूशी के साथ उछल-कूद कर रहा था, जबकि माँ, मारगोट और मैं उबले हुए आलू छील रहे थे। अगर ध्यान से देखो, तो हममें से कोई भी अपने काम को सही तरीक़े से नहीं कर रहा था, क्योंकि हम सभी मि. फ़ॉन डान को देखने में व्यस्त थे।

दुसे ने अपनी प्रैक्टिस शुरू कर दी है। मैं मज़े लेने के लिए उनके पहले मरीज़ का विवरण देती हूँ ।

माँ कपड़े इस्तरी कर रही थीं और पहली शिकार मिसेज़ फ़ॉन डी कमरे के बीचोंबीच एक कुर्सी पर बैठी। दुसे ने बड़ी गंभीरता से अपना बक्सा खोला, यू डी कोलोन माँगा, जिसका इस्तेमाल कीटाणुनाशक के रूप में किया जा सकता है और वैसलीन भी, जिसका इस्तेमाल वैक्स की जगह किया जा सकता है। उन्होंने मिसेज़ फ़ॉन डी के मुँह में देखा और उन दो दाँतों को देखा, जो उनके दर्द की वजह थे और हर बार उन्हें छुए जाने पर वे चिल्लाने लगती थीं। काफ़ी लंबे समय तक (मिसेज़ फ़ॉन डी के हिसाब से लंबा, जबकि असल में दो मिनट से ज़्यादा का वक़्त नहीं लगा) देखने के बाद दुसे ने एक कैविटी को निकालना शुरू किया। लेकिन मिसेज़ फ़ॉन डान का उन्हें ऐसा करने देने का इरादा नहीं था। वे तब तक अपने हाथ-पाँव हिलाती रहीं, जब तक कि दुसे ने अपने औज़ार को रोक नहीं दिया और... वह मिसेज़ फ़ॉन डी के दाँत में ही अटक गया। फिर क्या था ! मिसेज़ फ़ॉन डी सभी दिशाओं में (उस तरह के औज़ार को मुँह में रखकर जितना चिल्लाया जा सकता है) चीखती-चिल्लाती रहीं, उसे निकालने की कोशिश करती रहीं, लेकिन ऐसा करते हुए उसे और अंदर धकेल दिया। मि. दुसे अपने कूल्हों पर हाथ रखते हुए शांति से उस दृश्य को देखते रहे, जबकि बाक़ी लोग ठहाके लगा रहे थे। ज़ाहिर है, वह नीच क़िस्म का बर्ताव था। अगर उनकी जगह मैं होती, तो निश्चित ही उनसे ज़्यादा चीखती-चिल्लाती। काफ़ी छटपटाने, हाथ-पाँव चलाने, चीखने- चिल्लाने के बाद मिसेज़ फ़ॉन डी उस चीज़ को निकालने में कामयाब रहीं और मि. दुसे फिर से अपने काम में ऐसे लग गए, जैसे कि कुछ न हुआ हो। उन्होंने इतनी तेज़ी से काम किया कि मिसेज़ फ़ॉन डी को कोई और हरकत करने का मौक़ा ही नहीं मिला। लेकिन उनके पास तब इतने मददगार मौजूद थे, जितने कि पहले कभी नहीं रहे होंगे उनके पास मि. फ़ॉन डी और मेरे जैसे दो सहायक थे, जिन्होंने अपने काम को बखूबी अंजाम दिया। पूरा दृश्य मध्य युग के किसी खुदे हुए दृश्य जैसा लग रहा था, जिसका शीर्षक था, 'काम पर लगा नीम-हकीम।' इस बीच मरीज़ आतुर हो रहा था, क्योंकि उसे अपने सूप और अपने भोजन की भी निगरानी करनी थी । एक बात तो पक्की है कि अब मिसेज़ फ़ॉन डी डेंटिस्ट से अगली मुलाक़ात सोच-समझकर रखेंगी!

तुम्हारी, ऐन

शनिवार, 13 दिसंबर, 1942

प्यारी किटी,

मैं फ्रंट ऑफ़िस में आराम से बैठकर भारी परदों की दरार के बीच से झाँक रही हूँ। अँधेरा है, लेकिन लिखने लायक़ रोशनी है।

बाहर लोगों को आते-जाते देखना काफ़ी अजीब है। वे सभी इतनी जल्दी में लगते हैं कि उनके क़ दम ख़ुद ही उलझ जाते हैं। साइकिल पर सवार लोग इतनी तेज़ी से निकलते हैं कि बताना मुश्किल होता है कि उस पर कौन सवार है। आसपास के लोग इतने आकर्षक नहीं हैं कि उन्हें देखा जाए। बच्चे तो ख़ासकर इतने गंदे हैं कि आप उन्हें डंडे से भी न छूना चाहें। गंदी बस्ती में रहने वाले बहती नाक वाले बच्चे । मैं उनका बोला हुआ एक भी शब्द समझ नहीं पाती।

कल दोपहर जब मारगोट और मैं नहा रहे थे, तो मैंने कहा, 'क्या हो अगर हम मछली पकड़ने की बंसी लेकर उनमें से हर बच्चे को अंदर खींच लें, टब में अच्छी तरह नहलाकर, उनके कपड़े ठीक करके फिर....'

' और कल फिर वे पहले जितने ही गंदे हो जाएँगे,' मारगोट ने जवाब दिया।

मैं बकबक कर रही हूँ। और भी चीजें देखने लायक हैं: कारें, नाव और बारिश । मैं ट्राम व बच्चों की आवाज़ सुन सकती हूँ और अपने में मस्त हूँ ।

हमारे विचारों में भी हमारी तरह कम तेज़ी से बदलाव आते हैं। वे हिंडोले की तरह हैं, यहूदियों से भोजन की तरफ़, फिर भोजन से राजनीति की ओर । यहूदियों की बात आई तो बताती हूँ कि कल बाहर झाँकते समय मैंने दो यहूदियों को देखा। मुझे लगा जैसे कि मैं दुनिया के सात आश्चर्यों में से एक को देख रही हूँ । मुझमें इतना मज़ेदार भाव आया जैसे कि मैं अधिकारियों को उनके बारे में बता दूँगी और अभी उनकी जासूसी कर रही हूँ।

हमारे ठीक सामने एक हाउसबोट है। वहाँ कप्तान अपनी पत्नी व बच्चों के साथ रहते हैं। उनके पास ज़ोर से भौंकने वाला एक कुत्ता है। उस छोटे से कुत्ते को हम उसके भौंकने व उसकी पूँछ से ही जानते हैं, जो उसके डेक पर घूमते हुए दिखती है। ओह, कितनी शर्म की बात है कि अभी बारिश शुरू हुई है और अधिकतर लोग अपनी छतरियों के नीचे छिपे हैं। मुझे बस रेनकोट दिखाई दे रहे हैं और ढँके हुए सिर, दरअसल मुझे देखने की भी ज़रूरत नहीं है। अब मैं एक नज़र में औरतों को पहचान लेती हूँ; आलू खाकर मोटी हो चुकी महिलाएँ, लाल या हरे कोट व घिस चुके जूतों में सजी, बाँहों में लटके बैग, उनके चेहरे या तो सख़्त हैं या फिर ख़ुशनुमा, जो उनके पतियों के मनोभावों पर जो निर्भर हैं।

तुम्हारी, ऐन

मंगलवार, 22 दिसंबर, 1942

प्यारी किटी,

अनेक्स में सभी को यह जानकर खुशी हुई कि हमें क्रिसमस के लिए एक- चौथाई पाउंड अतिरिक्त मक्खन मिलेगा। अख़बार के मुताबिक़ हर किसी को आधा पाउंड मक्खन मिलेगा, लेकिन उनका मतलब उन ख़ुशक़िस्मत लोगों से है, जिन्हें सरकार से राशन बुक मिलती है, न कि हमारे जैसे यहूदियों से जो काले बाज़ार से आठ के बजाय सिर्फ़ चार राशन बुक ही ले सकते हैं। हममें से हर एक मक्खन से कुछ न कुछ बेक करेगा। आज सुबह मैंने दो केक और कुछ बिस्किट बनाए। ऊपर सब व्यस्त हैं और माँ ने मुझे बताया है कि घर के सभी काम ख़त्म होने तक मुझे कोई पढ़ाई-लिखाई नहीं करनी है।

मिसेज़ फ़ॉन डान अपनी चोट खाई पसली के साथ बिस्तर पर पड़ी हैं। वे दिन भर शिकायत करती रहती हैं, लगातार पट्टियाँ बदलने को कहती हैं और सब चीज़ों से असंतुष्ट रहती हैं। उनके ठीक हो जाने और अपना काम ख़ुद करने पर मुझे ख़ुशी होगी, क्योंकि मुझे यह मानना पड़ेगा कि वे काफ़ी मेहनती और साफ़ सुथरी हैं और अगर वे शारीरिक व मानसिक तौर पर सही रहें, तो वे काफ़ी ख़ुशमिज़ाज हैं।

दिन भर में काफ़ी शोर मचाने के कारण जैसे मुझे 'शांत रहो, चुप रहो' ज़्यादा सुनाई नहीं देता, तो मेरे कमरे के प्यारे साथी ने रात भर 'चुप रहो' कहने का नया तरीक़ा निकाला है। उनके अनुसार, मुझे करवट भी नहीं बदलनी चाहिए। मैं उन पर ध्यान नहीं देती और अगली बार उन्होंने मुझे ख़ामोश करने की कोशिश की तो मैं उन्हें ही चुप करा दूँगी।

दिन बीतने के साथ वे ज़्यादा चिढ़ाने वाले और अहंवादी होते जा रहे हैं। पहले हफ़्ते की बात छोड़ दें, तो मुझे बहुत उदारता से किए गए बिस्किट का एक टुकड़ा भी अब तक नहीं दिखा है। रविवार को वे ज़्यादा गुस्सा दिलाते हैं, जब बिलकुल सुबह दस मिनट कसरत करने के लिए वे लाइट जला देते हैं।

मेरे हिसाब से तो अत्याचार कई घंटे चलता लगता है, क्योंकि जिन कुर्सियों का इस्तेमाल मैं अपने बिस्तर को लंबा करने के लिए करती हूँ, वे लगातार मेरे उनींदे सिर के नीचे झूलती रहती हैं। ज़ोर-ज़ोर से अपनी बाँहें झुलाकर कसरत पूरी करने के बाद महाशय कपड़े पहनना शुरू करते हैं। उनका जाँघिया हुक पर लटक रहा है, तो पहले वे मेरे बिस्तर के ऊपर से उसे लेते हैं। उनकी टाई मेज़ पर है, तो एक बार फिर वे कुर्सियों को धकेलकर उनके बीच से जाते हैं।

मुझे बेकार के बूढ़े आदमियों की शिकायत करके तुम्हारा समय बर्बाद नहीं करना चाहिए। उससे वैसे भी कुछ नहीं होने वाला। मुझे शांति बनाए रखने के लिए बल्ब के पेंच ढीले करने, दरवाज़े पर ताला लगाने और उनके कपड़े छिपाने जैसी उनसे बदला लेने की योजनाओं को बदक़िस्मती से छोड़ना पड़ा।

अरे, मैं तो काफ़ी समझदार होने लगी हूँ! हमें पढ़ने, सुनने, अपनी जुबान पर क़ाबू रखने, बाक़ी लोगों की मदद करने, दयालु होने, समझौते करने और भी न जाने क्या-क्या करने को लेकर तर्कसंगत होना पड़ेगा। मुझे डर है कि मेरी सामान्य बुद्धि जो पहले ही कम है, वह इतनी जल्दी इस्तेमाल हो जाएगी कि लड़ाई ख़त्म होने तक शायद मेरे पास कुछ भी न बचे ।

तुम्हारी, ऐन

बुधवार, 13 जनवरी, 1943

प्रिय किटी,

आज सुबह मुझे इतनी बार टोका गया कि मैं अपना एक भी काम पूरा नहीं कर पाई।

अब हमारे पास एक नया काम है और वह है, पैकेजेस में ग्रेवी पाउडर भरना। यह ग्रेवी गीज़ ऐंड कंपनी के उत्पादों में से एक है। मि. कुगलर को पैकेज भरने के लिए कोई नहीं मिला है और अगर हम यह काम करें तो सस्ता भी पड़ेगा। जेल में इस तरह का काम करवाया जाता है। यह बहुत उबाऊ काम है और इससे हमारा सिर घूमने लगता है।

बाहर बहुत भयावह कृत्य हो रहे हैं। रात और दोपहर के किसी भी समय बेचारे असहाय लोगों को उनके घरों से घसीटकर निकाला जाता है। उन्हें सिर्फ़ एक झोला और थोड़ी नक़दी अपने साथ ले जाने की इजाज़त है और उसके बावजूद ये चीजें भी रास्ते में उनसे लूट ली जाती हैं। परिवार अलग किए जा रहे हैं; पुरुष, स्त्रियाँ और बच्चे बिछड़ रहे हैं। बच्चे स्कूल से घर लौटकर पाते हैं कि उनके माता-पिता ग़ायब हो गए हैं। ख़रीदारी करके लौटती महिलाएँ अपने घर बंद पाती हैं और उनके परिवार वहाँ नहीं होते । हॉलैंड के ईसाई भी डर के साये में जी रहे हैं, क्योंकि उनके बेटों को जर्मनी भेजा जा रहा है। हर कोई डरा हुआ है। हर रात हॉलैंड के ऊपर से सैकड़ों विमान जर्मन शहरों की ओर बढ़ते हुए जर्मनी की धरती पर बम फेंकने के लिए जाते हैं। रूस और अफ्रीका में हर घंटे, सैकड़ों या शायद हज़ारों लोग मारे जा रहे हैं। कोई भी इस टकराव से बाहर नहीं रह सकता, पूरी दुनिया युद्ध में शामिल है और हालाँकि मित्र देश बेहतर कर रहे हैं, फिर भी अंत कहीं नहीं दिखाई दे रहा ।

जहाँ तक हमारा सवाल है, हम काफ़ी ख़ुशक़िस्मत हैं। लाखों लोगों से बेहतर क़िस्मत वाले । यहाँ शांति व सुरक्षा है और हम अपने धन का इस्तेमाल खाना ख़रीदने के लिए कर रहे हैं। हम इतने स्वार्थी हैं कि हम 'युद्ध के बाद' की बातें करते हैं और नए कपड़े- जूतों की उम्मीद करते हैं, जबकि असल में हमें एक-एक पाई बचानी चाहिए, ताकि हम लड़ाई ख़त्म हो जाने पर बाक़ी लोगों की मदद कर सकें और जो कुछ भी हो, बचा सकें।

यहाँ आसपास बच्चे पतली कमीज़ों और लकड़ी के जूते पहनकर उछल-कूद करते हैं। उनके पास कोट, टोपी, मोज़े नहीं हैं और कोई मदद करने वाला भी नहीं है। गाजर कुतरकर अपनी भूख को शांत करते हुए वे अपने ठंडे घरों से सर्द सड़कों पर होते हुए अपनी और भी ठंडी कक्षाओं में जाते हैं। हॉलैंड में हालात इतने ख़राब हो गए हैं कि बच्चों के झुंड आते- जाते लोगों को रोक कर उनसे डबलरोटी का टुकड़ा माँगते हैं।

मैं घंटों तुम्हें लड़ाई की वजह से आने वाले कष्टों के बारे में बता सकती लेकिन उससे मैं और ज़्यादा दुखी हो जाऊँगी। हम सब, जहाँ तक मुमकिन हो, इसके ख़त्म होने का शांत रहकर इंतज़ार कर सकते हैं । यहूदी व ईसाई इंतज़ार कर रहे हैं, पूरी दुनिया इंतज़ार कर रही है और कई लोग मौत का इंतज़ार कर रहे हैं।

तुम्हारी, ऐन

शनिवार, 30 जनवरी, 1943

प्रिय किटी,

मैं गुस्से में उबल रही हूँ, लेकिन मैं उसे दिखा नहीं सकती। मैं चिल्लाना, अपने पैर पटकना, अपनी माँ को झकझोरना, रोना चाहती हूँ और नहीं जानती कि क्या-क्या करना चाहती हूँ, क्योंकि उनके द्वारा कहे गए कठोर शब्द, मज़ाक उड़ाने के ढंग से देखना और हर रोज़ मुझ पर आरोप लगाना मुझे चुभते तीरों जैसा लगता है, जिन्हें मैं अपने शरीर से निकाल नहीं पाती। मैं माँ, मारगोट, फ़ॉन डान परिवार, दुसे और पापा पर भी चिल्लाना चाहती हूँ: 'मुझे अकेला छोड़ दो, कम से कम मुझे रात को अकेला छोड़ दो, ताकि मैं रोते हुए, जलती आँखों और फटते सिर के साथ न सोऊँ !' लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकती। मैं नहीं चाहती कि वे मेरी दुविधा या फिर मेरे घावों को देखें, जो उन्होंने मुझे दिए हैं। मैं उनकी सहानुभूति या उनके नेकदिल उपहास को नहीं झेल सकती। उससे मेरी इच्छा और चिल्लाने की होती है।

हर किसी को लगता है कि जब मैं बात करती हूँ, तो मैं दिखावा कर रही होती हूँ, ख़ामोश रहती हूँ, तो हास्यास्पद हूँ, जवाब देती हूँ, तो बदतमीज़ हूँ, कोई अच्छा विचार आए तो मैं धूर्त हूँ, थकी हूँ, तो सुस्त हूँ, एक अतिरिक्त निवाला भी लूँ तो स्वार्थी हूँ, मूर्ख, डरपोक, षड्यंत्रकारी, वगैरह, वगैरह । दिन भर बस मुझे यही सुनाई देता है कि मैं कितनी परेशान करने वाली लड़की हूँ, हालाँकि मैं वह सब हँसी में उड़ा देती हूँ और दिखावा करती हूँ कि मुझे कोई परवाह नहीं, लेकिन मुझे परवाह है। काश! मैं भगवान से एक और व्यक्तित्व माँग पाती, ऐसा जो किसी से दुश्मनी मोल न लेता ।

लेकिन वह तो नामुमकिन है। मैं उसी चरित्र में हूँ, जिसके साथ पैदा हुई हूँ और फिर भी मुझे पक्का नहीं पता कि मैं वाक़ई बुरी हूँ। मैं अपनी तरफ़ से सबको ख़ुश रखना चाहती हूँ, जितना कि लाखों वर्षों में भी न हों। जब मैं ऊपर होती हूँ, तो उस सबको हँसी में उड़ा देती हूँ, क्योंकि मैं नहीं चाहती कि वे मेरी मुश्किलें देखें।

कई बार ऐसा हो चुका है कि बेकार की झिड़कियों के बाद मैं माँ पर चिल्लाती हूँ: 'मुझे आपके कहने की कोई परवाह नहीं। आप मुझसे छुटकारा क्यों नहीं पा लेती - मैं तो बिलकुल निकम्मी हूँ।' वे मुझे ज़बान न चलाने को कहती हैं और दो दिन तक पूरी तरह से मेरी अनदेखी करती हैं। फिर अचानक सब कुछ भुला दिया जाता है और वे फिर से मुझसे वैसा बर्ताव करती हैं, जैसा कि बाक़ी लोगों से करती हैं।

मेरे लिए एक दिन मुस्कराते रहना और फिर अगले ही दिन ज़हर उगलने लगना नामुमकिन है। मैं सुनहरा तरीक़ा चुनना ज़्यादा पसंद करुँगी, जो उतना सुनहरा तो नहीं है, अपने विचार ख़ुद तक ही रखूँगी। शायद किसी दिन मैं लोगों से उतनी ही हिकारत से बर्ताव करूँ, जितना कि वे मुझसे करते हैं। काश, मैं ऐसा कर पाती!

तुम्हारी, ऐन

शुक्रवार, 5 फरवरी, 1943

प्रिय किटी,

मैंने काफ़ी समय से तुम्हें झगड़ों के बारे में नहीं बताया है, लेकिन अब तक उनमें कोई बदलाव नहीं आया है। शुरुआत में मि. दुसे ने जल्दी ही भुला देने वाले टकरावों को काफ़ी गंभीरता से लिया, लेकिन अब वे उनके आदी हो गए हैं और बीचबचाव करने की कोशिशें नहीं करते।

मारगोट और पीटर को आप 'नौजवान' नहीं कह सकते, क्योंकि वे दोनों बहुत चुप्पे से और नीरस हैं। उनके बीच मैं बिलकुल अलग दिखती हूँ और मुझे हमेशा कहा जाता है, 'मारगोट और पीटर ऐसा नहीं करते। तुम अपनी बहन से क्यों नहीं सीखतीं!' मुझे वह बात सख़्त नापसंद है।

मैं मानती हूँ कि मेरी इच्छा मारगोट जैसी बनने की बिलकुल भी नहीं हैं। मेरे हिसाब से वह बहुत कमज़ोर संकल्प वाली और दब्बू है; वह बाक़ी लोगों की बातों में आ जाती है और दबाव पड़ने पर झुक जाती है। मुझे उत्साह पसंद है! मैं इस तरह के ख़यालों को ख़ुद तक रखती हूँ। अगर मैं अपने बचाव में यह सब कहूँ, तो वे मेरा मज़ाक उड़ाएँगे ।

भोजन के दौरान माहौल में तनाव होता है। सौभाग्य से कई बार 'सूप पीने वाले' आवेग को नियंत्रित कर देते हैं, ये वे लोग होते हैं, जो लंच के दौरान सूप पीने ऊपर आते हैं।

आज दोपहर मि. फ़ॉन डान ने फिर वही बात उठाई कि मारगोट कितना कम खाती है। 'मुझे लगता है कि तुम अपना फ़िगर बनाए रखने के लिए ऐसा करती हो,' उन्होंने मज़ाक उड़ाने के अंदाज़ में कहा।

हमेशा मारगोट के बचाव में आगे आने वाली माँ ने ऊँची आवाज़ में कहा, 'मैं आपकी बेवकूफ़ाना बकबक को और बर्दाश्त नहीं कर सकती।'

मिसेज़ फ़ॉन डान गुस्से में लाल-पीली हो गईं। मि. फ़ॉन डान ने घूरकर देखते हुए कुछ नहीं कहा।

इसके बावजूद हम ख़ूब हँसते भी हैं। कुछ समय पहले ही मिसेज़ फ़ॉन डा बेतुकी बातों से हमारा मनोरंजन कर रही थीं। वे बीते समय की बात कर रही थीं, कैसे उनके अपने पिता के साथ अच्छी पटती थी और वे किस तरह की चुहलबाज़ थीं। 'और पता है,' बात जारी रखते हुए वे बोलीं, 'मेरे पिता ने कहा कि अगर कोई भद्र पुरुष कभी शिष्टता से न पेश आए, तो मुझे कहना चाहिए, “याद रखिए सर कि मैं एक भद्र महिला हूँ,” और वह जान जाएगा कि मैं क्या कहना चाहती हूँ।' हम हँसते-हँसते ऐसे लोटपोट हो गए, जैसे कि उन्होंने हमें कोई चुटकुला सुनाया हो ।

अक्सर चुप रहने वाला पीटर भी कभी-कभी चुहलबाज़ी करता है। मुसीबत यह है कि उसे विदेशी शब्दों से बहुत प्यार है और बिना उनका मतलब समझे वह उन्हें बोलता है। एक दोपहर हम शौचालय का इस्तेमाल नहीं कर पा रहे थे, क्योंकि ऑफ़िस में कुछ लोग आए हुए थे। वह इंतज़ार नहीं कर पाया और शौचालय चला गया, लेकिन उसे फ़्लश नहीं किया। हमें दुर्गंध की चेतावनी देने के लिए उसने दरवाज़े पर एक साइन बोर्ड टाँग दिया: 'आरएसवीपी (उत्तराकांक्षी) - गैस', जबकि उसका मतलब था 'ख़तरा - गैस !' लेकिन उसे लगा कि 'आरएसवीपी' ज़्यादा शालीन है। उसे ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि उसका मतलब होता है, 'कृपया जवाब दें।'

तुम्हारी, ऐन

शनिवार, 27 फ़रवरी, 1943

प्रिय किटी,

पिम को किसी भी दिन आक्रमण की आशंका है: चर्चिल को निमोनिया हो गया था, लेकिन वे अब ठीक हो रहे हैं। भारतीय स्वतंत्रता के समर्थक गाँधी अनगिनत भूख हड़तालों में से एक कर रहे हैं।

मिसेज़ फ़ॉन डी का दावा है कि वे भाग्यवादी हैं। लेकिन गोली चलने पर कौन सबसे ज़्यादा डरता है? और कोई नहीं, पेट्रोनेला फ़ॉन डान ।

यान अपने साथ बिशप का एक पत्र लेकर आए थे, जो उन्होंने लोगों के लिए लिखा था। वह ख़ूबसूरत और प्रेरणादायक था । 'नीदरलैंड के लोगों, उठो और काम करो। हममें से हरेक को अपने देश की, अपने लोगों की और अपने धर्म की आज़ादी की लड़ाई के लिए अपने हथियार चुनने होंगे! अपनी सहायता और समर्थन दो तुरंत क़दम उठाओ ! ' धर्मोपदेशक द्वारा यह शिक्षा दी जा रही है। क्या इससे कोई फ़ायदा होगा? निश्चित तौर पर अपने साथी यहूदियों की मदद करने में काफ़ी देर हो गई है।

ज़रा सोचो कि हमारे साथ क्या हुआ है? हमारी इमारत के मालिक ने मि. कुगलर और मि. क्लेमन को बताए बिना इसे बेच दिया। एक सुबह नया मकान मालिक एक वास्तुकार को जगह दिखाने ले आया । शुक्र है कि मि. क्लेमन ऑफ़िस में थे। उन्होंने उन लोगों को सीक्रेट अनेक्स के अलावा बाक़ी दिखाने लायक़ जगह दिखाई। उन्होंने कहा कि वे चाबी घर पर भूल आए हैं और नए मालिक ने उनसे आगे सवाल नहीं किए। बस, अब वह अनेक्स देखने की फ़रमाइश करते हुए फिर वापस न आ जाएँ। वैसा होने पर हम बड़ी मुश्किल में फँस जाएँगे!

पापा ने मारगोट और मेरे लिए एक कार्ड फ़ाइल ख़ाली की और उसे इन्डेक्स कार्ड्स से भर दिया, जो कि एक तरफ़ ख़ाली हैं। उसमें हमारे द्वारा पढ़ी गई किताबों का लेखा-जोखा रखा जाएगा, हमें पढ़ी गई किताबों, उनके लेखक और तारीख़ उसमें भरनी होगी। मैंने दो नए शब्द सीखे: 'ब्रॉथेल' और 'क्रॉकेट।' मैंने नए शब्दों के लिए एक अलग नोटबुक रखी है।

मक्खन और मार्जरिन के बँटवारे के लिए अब नया नियम है। हर इंसान को उसकी अपनी प्लेट में उसका हिस्सा मिलेगा। यह तरीक़ा बहुत अन्यायपूर्ण है। सबके लिए नाश्ता बनाने वाला फ़ॉन डान परिवार ख़ुद को बाक़ी लोगों से डेढ़ गुना ज़्यादा मक्खन देता है। मेरे माता-पिता झगड़े के डर से कुछ नहीं कहते, जो कि शर्मनाक है, क्योंकि मेरे हिसाब से वैसे लोगों पर उनकी ही तरकीब आज़मानी चाहिए।

तुम्हारी, ऐन

बृहस्पतिवार, 4 मार्च, 1943

प्रिय किटी,

मिसेज़ फ़ॉन डी का अब एक नया नाम है हमने उन्हें मिसेज़ बीवरब्रुक कहकर पुकारना शुरू किया है। ज़ाहिर है कि तुम्हें यह बात समझ नहीं आएगी, तो मैं तुम्हें बताती हूँ। कोई मि. बीवरब्रुक हैं, जो इंग्लिश रेडियो पर अक्सर जर्मनी पर होने वाली बमबारी को काफ़ी नरमी भरा मानते हैं। मिसेज़ फ़ॉन डान जो हमेशा चर्चिल और ख़बरों का भी विरोध करती हैं, वे भी मि. बीवरब्रुक से सहमत रहती हैं। इसलिए हमने सोचा कि मि. बीवरब्रुक से उनकी शादी करना सही रहेगा और चूँकि वे भी इस ख़याल से काफ़ी ख़ुश थीं, तो हमने अब से उन्हें मिसेज़ बीवरब्रुक पुकारने का फ़ैसला कर लिया है।

गोदाम के पुराने कर्मचारी को जर्मनी भेजा जा रहा है, इसलिए वहाँ एक नया कर्मचारी आ रहा है। उसके लिए यह बुरा है, लेकिन हमारे लिए अच्छा है क्योंकि वह इमारत से परिचित नहीं होगा। हम अब भी गोदाम में काम करने वालों से डरते हैं।

गाँधी फिर से भोजन करने लगे हैं।

काला बाज़ार ख़ूब फल-फूल रहा है। अगर हमारे पास बेतुकी क़ीमत चुकाने लायक़ पैसा होता, तो हम भी ख़ूब सामान भर लेते। हमारा सब्ज़ीवाला 'वेयरमाख़्त' से आलू ख़रीदकर उन्हें बोरों में भरकर प्राइवेट ऑफ़िस में लाता है। उसे हमारे यहाँ छिपे होने का शक है, इसलिए वह भोजन अवकाश के दौरान आता है, जब गोदाम के कर्मचारी बाहर होते हैं।

नीचे इतनी ज़्यादा काली मिर्च पीसी जा रही है कि हम हर साँस के साथ छींकते - खाँसते हैं। जो भी ऊपर आता है वह छींक के साथ हमारा अभिवादन करता है। मिसेज़ फ़ॉन डी क़सम खाती हैं कि वे नीचे नहीं जाएँगी; मिर्च का एक झोंका और वे बीमार पड़ जाएँगी।

मुझे नहीं लगता कि पापा का काम अच्छा चल रहा है। पेक्टिन और काली मिर्च के अलावा कुछ और नहीं। अगर आप खाद्य व्यापार में हैं, तो क्यों न कुछ मीठा बनाया जाए?

आज सुबह फिर मुझे फिर कड़क आवाज़ में डाँट पड़ी। हवा में इतनी अशिष्ट बातें फैली हुई थीं कि मेरे कानों में 'ऐन बुरी है' और 'फ़ॉन डान अच्छे हैं,' जैसे जुमले गूँज रहे थे। लानतों का दौर चल रहा था !

तुम्हारी, ऐन

बुधवार, 10 मार्च, 1943

प्रिय किटी,

कल रात शॉर्ट सर्किट हो गया था और उसके अलावा सुबह तक बंदूकों की आवाज़ आ रही थी। मैं अब भी जहाज़ों और गोलीबारी के डर से उबर नहीं पाई हूँ और लगभग हर रात दिलासे के लिए पापा के बिस्तर में घुस जाती हूँ। मैं जानती हूँ कि यह बचकानी बात है, लेकिन जब तुम पर गुज़रेगी, तुम तभी जानोगी! बंदूकें इतनी आवाज़ करती हैं कि तुम अपनी आवाज़ तक नहीं सुन सकते। भाग्यवादी मिसेज़ बीवरब्रुक के हर बार आँसू निकलने लगते हैं और घबराई आवाज़ में वे कहती हैं, 'यह बहुत भयानक है। बंदूकें कितनी आवाज़ करती हैं!' - जो यह कहने का दूसरा तरीक़ा है, 'मैं काफ़ी डरी हुई हूँ।'

मोमबत्ती की रोशनी में इतना बुरा नहीं लग रहा था, जितना कि अँधेरे में। मैं ऐसे काँप रही थी जैसे कि मुझे बुख़ार हो और मैंने पापा से विनती की कि वे मोमबत्ती को फिर से जला दें। वे अड़े हुए थे: कोई रोशनी नहीं होगी। अचानक हमें मशीनगन की आवाज़ सुनाई दी, जो कि ऐंटी- एयरक्राफ़्ट गन से दस गुना बदतर होती है। माँ बिस्तर से बाहर निकल गईं और पिम को बहुत चिढ़ हुई कि उन्होंने मोमबत्ती जला दी। उनकी बड़बड़ाहट के जवाब में माँ ने इतना ही कहा, 'ऐन कोई पूर्व सैनिक तो नहीं है!' और बस बात वहीं ख़त्म हो गई!

क्या मैंने तुम्हें मिसेज़ फ़ॉन डी के बाक़ी डरों के बारे में बताया है? मुझे नहीं लगता कि मैंने बताया है। सीक्रेट अनेक्स के सबसे नए रोमांच के बारे में तुम्हें नवीनतम जानकारी देने के लिए मुझे उसके बारे में बताना चाहिए। एक रात मिसेज़ फ़ॉन डी को लगा कि उन्होंने अटारी पर किसी के चलने की आवाज़ सुनी और वे चोरों से इतना डर गईं कि उन्होंने अपने पति को जगा दिया। ठीक उसी पल चोर ग़ायब हो गए और मि. फ़ॉन डी को बस अपनी पत्नी के दिल की तेज़ धड़कनों के सिवा कुछ नहीं सुना दिया। 'ओह, पुत्ती!' वे बोलीं । (मिसेज़ फ़ॉन डी अपने पति को यही कहकर बुलाती हैं।) 'वे हमारे सभी सॉसेज और सूखी बीन्स ले गए होंगे पीटर का क्या हुआ होगा? क्या तुम्हें लगता है कि पीटर अब भी अपने बिस्तर पर सुरक्षित होगा?'

'मुझे यक़ीन है कि उन्होंने पीटर को तो नहीं चुराया होगा । इतनी बेवकूफ़ मत बनो और मुझे सोने दो!'

असंभव। मिसेज़ फ़ॉन डी इतनी डरी हुई थीं कि वे सो नहीं सकीं।

कुछ ही दिन बाद एक रात पूरा फ़ॉन डी परिवार भुतहा आवाज़ों से जग गया। पीटर अटारी पर टॉर्च लेकर गया और सर, सर्र तुम्हें क्या लगता है कि उसने किसे भागते देखा होगा? बड़े से चूहों के झुंड को ।

एक बार यह जानने पर कि चोर कौन थे, हमने मूशी को अटारी पर छोड़ दिया और हमें अपने अनचाहे मेहमान फिर कभी नहीं दिखे... कम से कम रात को तो नहीं।

कुछ दिन पहले शाम को (साढ़े सात बजे थे, लेकिन रोशनी थी) पीटर कुछ पुराने अख़बार लेने ऊपर गया। सीढ़ी से नीचे उतरने के लिए उसे ट्रैप डोर को बहुत कसकर पकड़ना पड़ा। उसने बिना देखे अपना हाथ नीचे रखा और झटके व दर्द से सीढ़ी से गिरते-गिरते रह गया। उसने देखे बिना अपना हाथ एक बड़े से चूहे पर रख दिया था, जिसे उसकी बाँह पर काट लिया। जब तक डरते - काँपते वह हम तक पहुँचा उसका पाजामा ख़ून से भीग चुका था । हैरत नहीं कि वह काफ़ी डरा हुआ था, चूहे पर हाथ फेरना कोई खेल नहीं था, ख़ासकर तब जब उसने आपके बाज़ू में काट लिया हो।

तुम्हारी, ऐन

शुक्रवार, 12 मार्च, 1943

प्रिय किटी,

मैं तुम्हें मिलवाती हूँ, मामा फ़्रैंक से, बच्चों की हिमायती ! बच्चों के लिए अतिरिक्त मक्खन और आज के युवाओं की समस्याएँ, कुछ भी बात हो, माँ युवा पीढ़ी के बचाव में आ जाती हैं। एक-आध हल्की सी झड़प के बाद हमेशा उनकी बात ही मानी जाती है।

अचार के एक मर्तबान का ढक्कन निकल गया है। मूशी और बॉश की तो दावत हो गई।

तुम बॉश से अभी तक नहीं मिली हो, जबकि वह हमारे छिपने से पहले से यहाँ मौजूद थी। वह गोदाम और ऑफ़िस की बिल्ली है, जो चूहों को वहाँ से दूर रखती है। उसके अजीब से राजनीति नाम की सफ़ाई दी जा सकती है। कुछ समय के लिए गीज़ ऐंड कंपनी में दो बिल्लियाँ थीं : एक गोदाम के लिए और दूसरी अटारी के लिए। वे एक-दूसरे के आड़े आती थीं, जिससे झगड़ा हो जाता था। गोदाम की बिल्ली हमेशा आक्रामक रहती थी, जबकि अटारी वाली बिल्ली अंत में जीतती थी, ठीक जैसा कि राजनीति में होता है। इस कारण गोदाम का नाम जर्मन में 'बॉश' रखा गया और अटारी की बिल्ली को अंग्रेज़ या 'टॉमी' कहा गया। कुछ समय बाद टॉमी वहाँ नहीं रही, लेकिन बॉश वहीं है और जब भी हम नीचे जाते हैं, हमारा मन बहलाती है।

हमने इतनी ब्राउन व सफ़ेद बीन्स खा ली हैं कि अब मैं उनकी तरफ़ देखना भी नहीं चाहती। उनके बारे में सोचने पर भी मुझे उबकाई आने लगती है।

एक शाम डबलरोटी नहीं परोसी गई।

डैडी ने बस कह दिया कि वे बहुत अच्छे मूड में नहीं हैं। उनकी आँखें फिर से बहुत उदास लग रही हैं, बेचारे !

मैं ख़ुद को ईना बकर बुडुआर की किताब अ नॉक ऐट द डोर किताब से अलग नहीं कर सकती। यह पारिवारिक गाथा बहुत अच्छी तरह लिखी गई है, लेकिन लड़ाई व लेखकों से जुड़े और महिलाओं की मुक्ति से जुड़े हिस्से अच्छे नहीं हैं। ईमानदारी से कहूँ, तो ये विषय मुझे ज़्यादा दिलचस्प नहीं लगते।

जर्मनी पर भयावह बमबारी हो रही है। मि. फ़ॉन डान चिड़चिड़े हो गए हैं। कारण है, सिगरेट की कमी।

डिब्बाबंद खाना शुरू किया जाए या नहीं, इस विवाद की समाप्ति हमारे पक्ष में हुई।

मैं स्की बूट्स के अलावा कोई और जूते नहीं पहन सकती और घर के अंदर उन्हें पहनना व्यावहारिक नहीं है। 6.50 गिल्डर्स में ख़रीदे गए फीते वाले जूते एक हफ़्ते में बुरी तरह घिस गए हैं। शायद मीप काले बाज़ार से कुछ जुगाड़ कर सके।

पापा के बाल काटने का समय आ गया है। मैं इतनी अच्छी तरह यह काम करती हूँ कि युद्ध के बाद वे कभी किसी नाई के पास नहीं जाएँगे। काश, मैं इस दौरान उनके कानों पर खरोंच न लगाती !

तुम्हारी, ऐन

बृहस्पतिवार, 18 मार्च, 1943

प्रिय किटी,

तुर्की भी लड़ाई में शामिल हो गया है। बहुत उत्तेजना है। बेचैनी से रेडियो की ख़बरों का इंतज़ार है।

शुक्रवार, 19 मार्च, 1943

प्रिय किटी,

एक घंटे से भी कम समय में ख़ुशी की जगह निराशा ने ले ली। तुर्की अभी तक लड़ाई में शामिल नहीं हुआ है। सिर्फ़ एक मंत्री ने तुर्की द्वारा तटस्थ न रहने की बात की थी । दाम स्क्वैयर में अख़बार बेचने वाला चिल्ला रहा था, 'तुर्की इंग्लैंड के पक्ष में!' और उसके हाथ से लोग अख़बार झपट रहे थे। इस तरह से हमने यह 'उम्मीद दिलाने वाली' अफ़वाह सुनी।

हज़ार गिल्डर के नोटों को अमान्य घोषित किया जा रहा है। वह काला बाज़ारी करने वालों और उनके जैसे बाक़ी लोगों के लिए बड़ा झटका होंगी, बल्कि उन लोगों के लिए और भी बड़ा झटका जो छिपे हुए हुए हैं या फिर जिनके पास ऐसा धन है जिसका कहीं हिसाब नहीं। हज़ार गिल्डर के नोट को सौंपते हुए आपको बताना होगा कि आपको वह कैसे मिला और उसका सबूत देना होगा। कर चुकाने के लिए अब भी उनका इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन सिर्फ़ अगले हफ़्ते तक । पाँच सौ के नोट भी तभी रद्द हो जाएँगे। गीज़ ऐंड कंपनी के पास अब भी ग़ैर-हिसाबी हज़ार गिल्डर्स के नोट हैं, जिनका इस्तेमाल उन्होंने आगामी वर्षों के लिए अपने अनुमानित कर चुकाने में कर दिया, इसलिए सब कुछ साफ़ लगता है।

दुसे को पुराने तरीके का पैर से चलाने वाला डेंटिस्ट ड्रिल है मिला है। इसका मतलब है कि शायद जल्दी ही मेरी पूरी जाँच हो सकेगी।

घर के नियमों का पालन करने के मामले में दुसे काफ़ी ढीलेढाले हैं। वे न सिर्फ़ शार्लोट को पत्र लिखते हैं, बल्कि बाक़ी कई लोगों के साथ भी अनौपचारिक रूप से पत्र-व्यवहार करते हैं। अनेक्स की डच टीचर मारगोट उनके पत्रों को सुधारती हैं। पापा ने उन्हें ऐसा करने से मना किया है और मारगोट ने उनकी चिट्ठियों को सुधारना बंद कर दिया है, लेकिन मुझे लगता है कि वे जल्दी ही वह सब शुरू कर देंगे ।

फ़्यूहर घायल सिपाहियों से बात करते हैं। हमने रेडियो पर उसे सुना और वह बहुत दयनीय थी। प्रश्नोत्तर कुछ इस तरह थे: 'मेरा नाम हेनरिक शेप है।'
'आप कहाँ घायल हुए?'
'स्तालिनग्राद के पास ।'
'यह कैसा घाव है?'
'दोनों पैरों में शीतदंश है और बाई बाँह टूट गई है। '

रेडियो पर चलाए गए घिनौने कठपुतली नाटक में यही सब था । घायल अपने घावों को लेकर इतने गौरवान्वित थे कि जितना ज़्यादा हो, उतना अच्छा। एक तो फ़्यूहर से हाथ ( मैं मान रही हूँ कि उसके पास वह है) मिलाने के ख़याल से ही इतना प्रभावित था कि वह एक भी शब्द नहीं बोल पाया।

मुझसे दुसे का साबुन फ़र्श पर गिर गया और मेरा पैर उस पर पड़ गया। अब एक पूरा हिस्सा ग़ायब है। मैंने पापा को उस नुक़सान की भरपाई करने को कह दिया है, ख़ासकर जब दुसे को महीने में एक बार बेकार से युद्धकालीन साबुन की टिकिया मिलती है।

तुम्हारी, ऐन

बृहस्पतिवार, 25 मार्च, 1943

प्रिय किटी,

कल रात माँ, पापा, मारगोट और मैं बहुत ख़ुशी से साथ बैठे थे कि अचानक पीटर आया और पापा के कान में कुछ फुसफुसाकर कहा। मेरे कानों में 'गोदाम में एक बैरल गिर रहा है' और 'कोई दरवाज़े से छेड़छाड़ कर रहा है,' जैसे शब्द पड़े।

मारगोट ने भी सुन लिया था, लेकिन वह मुझे शांत करने की कोशिश कर रही थी, क्योंकि मैं बिलकुल सफ़ेद पड़ गई थी और काफ़ी घबरा गई थी। पापा और पीटर नीचे गए और हम तीनों इंतज़ार करते रहे। एक- दो मिनट बाद मिसेज़ फ़ॉन डान वहाँ आ गई, वे रेडियो सुन रही थीं और उन्होंने हमें बताया कि पिम ने उन्हें रेडियो बंद करके चुपचाप ऊपर आने को कहा था। लेकिन तुम जानती हो कि अगर चुप रहने की कोशिश करो तो क्या होता है- पुरानी सीढ़ियाँ दोगुनी आवाज़ करती हैं। पाँच मिनट बाद बिलकुल सफ़ेद चेहरों के साथ पीटर और पिम आए और उन्होंने अपने अनुभव बताए ।

वे सीढ़ियों के नीचे खड़े होकर इंतज़ार करने लगे। कुछ नहीं हुआ । फिर अचानक उन्हें कुछ आवाजें सुनाई दी, जैसे कि घर के अंदर दो दरवाज़े ज़ोर से बंद किए गए हों। पिम ऊपर आए, जबकि पीटर दुसे को चेतावनी देने पहुँचा, जो आख़िरकार काफ़ी तमाशे और शोर मचाने के बाद ऊपर पहुँचे। फिर हम सब दबे क़दमों से अगली मंज़िल पर फ़ॉन डान दंपत्ति तक पहुँचे। मि. फ़ॉन डी को बहुत बुरी तरह से जुकाम हो गया था और वे सोने चले गए थे, इसलिए हम उनके बिस्तर के पास इकट्ठा हुए और अपने संदेहों पर फुसफुसाकर बात की। हर बार मि. फ़ॉन डी के ज़ोर से खाँसने पर मुझे और मिसेज़ फ़ॉन डी को घबराहट के मारे जैसे दौरा सा पड़ जाता। वे तब तक खाँसते रहे, जब तक कि किसी को उन्हें कोडीन देने का बढ़िया ख़याल नहीं आ गया। उनकी खाँसी तुरंत कम हो गई।

एक बार फिर हम इंतज़ार करने लगे, लेकिन हमें कुछ नहीं सुनाई दिया । आख़िरकार हम इस नतीजे पर पहुँचे कि बिलकुल ख़ामोश पड़ी इमारत में क़दमों की आहट सुनकर चोर नौ दो ग्यारह हो गए थे। अब परेशानी यह थी कि प्राइवेट ऑफ़िस में रेडियो के आसपास बहुत करीने से कुर्सियाँ रखी थीं और रेडियो इंग्लैंड पर लगा था। अगर चोरों ने दरवाज़े पर ज़ोर लगाया और एयर रेड वॉर्डन ने उसे देखकर पुलिस को बुला लिया, तो उसके बहुत गंभीर परिणाम हो सकते थे। इसलिए मि. फॉन डान उठे अपना कोट-पैंट पहना, हैट लगाया और सावधानी से पापा के पीछे नीचे गए, उनके ठीक पीछे पीटर (सुरक्षा की दृष्टि से भारी हथौड़ा लेकर ) था । महिलाएँ (मेरे और मारगोट समेत) अनिश्चितता में इंतज़ार करती रही, जब तक कि पाँच मिनट बाद पुरुष नहीं लौट आए और ख़बर दी कि इमारत में कहीं किसी गतिविधि का नामोनिशान नहीं था। हम इस बात को लेकर सहमत थे कि पानी या शौचालय में फ़्लश नहीं चलाएँगे, तनाव से हर किसी के पेट में मरोड़ उठ रही थी, तो तुम कल्पना कर सकती हो कि सबके शौचालय जाने के बाद बदबू से क्या हाल रहा होगा।

इस तरह की घटनाओं के साथ कई अन्य मुसीबतें भी आती हैं और इस बार भी ऐसा ही हुआ। एक तो वेस्टरटोरेन की घंटियाँ बजना बंद हो गईं और वे मुझे बहुत दिलासा देने वाली लगती थीं। दूसरे, मि. वुश्कल उस रात जल्दी चले गए और हमें पक्का नहीं पता था कि उन्होंने बेप को चाबी दी थी और वह दरवाज़े पर ताला लगाना भूल गई थी।

लेकिन अब उसकी कोई अहमियत नहीं। रात तभी शुरू हुई थी और हमें नहीं पता था कि क्या होने वाला है। हम इस बात से थोड़ा आश्वस्त थे कि रात सवा आठ बजे जब चोर पहली बार इमारत में घुसे और हमारी ज़िंदगियों को जोखिम में डाल दिया, उसके बाद से साढ़े दस बजे तक हमने कोई भी आवाज़ नहीं सुनी। हम जितना ज़्यादा उसके बारे में सोचते, उतनी ही इस बात की आशंका हमें कम लगती कि शाम के उस समय कोई चोर दरवाज़ा खोलने की कोशिश कर सकता था, जब सड़कों पर लोगों की आवाजाही थी। इसके अलावा हमारा ध्यान इस बात पर भी गया कि हो सकता है कि हमारे पड़ोस में केग कंपनी के गोदाम मैनेजर तब भी काम पर लगे हों। उत्तेजना और पतली दीवारों के कारण आवाज़ पहचानने में ग़लती हो सकती है। इसके अलावा ख़तरे के पलों में हमारी कल्पना भी हमारे साथ छल करती है।

तो हम बिस्तर पर चले गए, हालाँकि हम सोने नहीं गए थे। पापा, माँ और मि. दुसे रात के ज़्यादातर समय जगे रहे और मैं बढ़ा-चढ़ाकर नहीं कर रही, लेकिन मैं रात भर मुश्किल से कोई झपकी ले पाई। आज सुबह पुरुष नीचे यह देखने गए कि बाहरी दरवाज़े पर ताला है या नहीं और सब कुछ ठीक था !

हमने ऑफ़िस के सभी लोगों को इस घटना का पूरा ब्योरा दिया, जो बिलकुल भी ख़ुशनुमा नहीं थी। ऐसी घटनाओं के हो जाने के बाद उन पर हँसना बहुत आसान होता है और सिर्फ़ बेप ने ही हमारी बात को गंभीरता से लिया था।

तुम्हारी, ऐन

पुनःश्च । आज सुबह शौचालय बंद हो गया और पापा को लकड़ी के एक लंबे से डंडे को उसमें डालना पड़ा और उन्होंने कई पाउंड मल और स्ट्रॉबेरी रेसिपीज़ के पन्नों (इन दिनों हम टॉयलेट पेपर की जगह हम इसी का इस्तेमाल कर रहे हैं) को निकाला। बाद में हमने उस डंडे को जला दिया।

शनिवार, 27 मार्च, 1943

प्रिय किटी,

हमने अपना शॉर्टहैंड कोर्स पूरा का लिया है और अब हम अपनी रफ़्तार बेहतर करने पर काम कर रहे हैं। हम कितने चतुर हैं! मैं तुम्हें अपने 'टाइम किलर्स' यानी समय काटने वाली चीज़ों के बारे में बताती हूँ (मैं अपने कोर्सेज़ को यही कहती हूँ, क्योंकि हम सब कोशिश करते हैं कि दिन जल्द से जल्द बीतें, ताकि हमारा यहाँ रहने का समय पूरा हो जाए)। मुझे माइथॉलोजी बहुत पसंद है, ख़ासकर ग्रीक व रोमन देवताओं की । यहाँ सभी सोचते हैं कि मेरी यह दिलचस्पी थोड़े समय के लिए है, क्योंकि उन्होंने कभी किसी ऐसी किशोरी के बारे में नहीं सुना, जो माइथॉलोजी को पसंद करती हो। तो फिर मुझे लगता है कि मैं पहली हूँ!

मि. फ़ॉन डान को जुकाम है। या यूँ कहें कि उनका गला ख़राब है, लेकिन उन्होंने उसका बतंगड़ बना दिया है। वे केमोमिल चाय से गरारे करते हैं, अपने तालू पर लोबान का घोल लगाते हैं और अपनी छाती, नाक, मसूड़ों व जीभ पर विक्स मलते हैं। उस पर उनका मूड ख़राब रहता है!

एक बड़े जर्मन आदमी हॉउटिए ने हाल ही में एक भाषण दिया। '1 जुलाई से पहले सभी यहूदियों को जर्मन अधिकृत क्षेत्रों से बाहर होना होगा। 1 अप्रैल व 1 मई के बीच उतरेख़्त प्रांत और 1 मई व 1 जून के बीच उत्तर व दक्षिण हॉलैंड से यहूदियों (जैसे कि वे तिलचट्टे हों) को साफ़ कर दिया जाएगा।' बीमार व उपेक्षित पशुओं की तरह इन बेचारे लोगों को गंदे बूचड़खानों तक ले जाया जा रहा है। मैं अब इस विषय पर ज़्यादा कुछ नहीं कहूँगी। मेरे अपने विचार मुझे दुःस्वप्न देते हैं!

एक अच्छी ख़बर यह है कि लेबर एक्सचेंज को जला दिया गया। कुछ दिन बार रजिस्टर ऑफ़िस को भी आग लगा दी गई। जर्मन पुलिस के वेश में आए कुछ आदमियों ने पहरेदारों को बाँध दिया और कुछ अहम दस्तावेज़ जलाने में कामयाब रहे।

तुम्हारी, ऐन

बृहस्पतिवार, 1 अप्रैल 1943

प्रिय किटी,

मैं शरारतों के मूड में बिलकुल नहीं हूँ (तारीख़ देखो ) । उसके उलट मैं बेखटके इस कहावत का हवाला दे सकती हूँ, 'दुर्भाग्य कभी अकेले नहीं आते।'

पहले तो हमारे लिए ख़ुशियों की किरण मि. क्लेमन को फिर से गैस्ट्रोइन्टेस्टाइनल हैमरेज हुआ और उन्हें कम से कम तीन सप्ताह बिस्तर पर रहना होगा। मैं तुम्हें बताऊँ कि उनका पेट उन्हें काफ़ी परेशान कर रहा था और उसका कोई इलाज नहीं है। दूसरा यह कि बेप को फ़्लू हो गया। तीसरे, मि. वुश्कल को अगले हफ़्ते अस्पताल जाना होगा। शायद उन्हें अल्सर है और उन्हें ऑपरेशन करवाना पड़े। चौथे, पॉमोसिन इंडस्ट्रीज़ के मैनेजर्स फ़्रैंकफ़र्ट से ओपेक्टा के नए डिलीवरीज़ पर बातचीत करने के लिए आए। पापा ने मि. क्लेमन के साथ महत्त्वपूर्ण बिंदुओं पर बात की और मि. कुगलर को विस्तार से बताने के लिए पर्याप्त समय नहीं था।

वे लोग फ़्रैंकफ़र्ट से आए और पापा यह सोचकर पहले ही काँप रहे थे कि बातचीत कैसी रहेगी । 'काश! मैं वहाँ होता, काश! मैं नीचे होता,' उन्होंने कहा ।

'नीचे लेटकर अपने कान फ़र्श पर लगा दीजिए। उन्हें प्राइवेट ऑफ़िस में लाया जाएगा और आप सब कुछ सुन सकेंगे।'

कल सुबह साढ़े दस बजे मारगोट और पिम (एक से भले दो) फ़र्श पर तैनात हो गए। दोपहर तक बातचीत ख़त्म नहीं हुई थी, लेकिन पापा अपने सुनने के अभियान को जारी रखने की हालत में नहीं थे। अजीब और असहज सी स्थिति में कई घंटे लेटे रहने के बाद पापा कष्ट में थे। ढाई बजे हमें गलियारे में आवाजें सुनाई दी और मैंने पापा की जगह ले ली; मारगोट ने मेरा साथ दिया। बातचीत इतनी लंबी और उबाऊ थी कि मैं ठंडे, सख़्त फ़र्श पर सो गई। मारगोट ने मुझे छूने की हिम्मत नहीं की कि कहीं वे हमारी आवाज़ न सुन लें और ज़ाहिर है कि वह चिल्ला भी नहीं सकती थी । मैं आधे घंटे तक सोती रही और जब उठी तो मुझे महत्त्वपूर्ण बातचीत का एक भी शब्द याद नहीं था । शुक्र है कि मारगोट ने ज़्यादा ध्यान दिया था।

तुम्हारी, ऐन

शुक्रवार, 2 अप्रैल 1943

प्रिय किटी,

मेरी ग़लतियों की सूची में एक और बात जुड़ गई है। कल रात जब मैं बिस्तर पर पड़े हुए प्रार्थना करने के लिए पापा का इंतज़ार कर रही थी, तो माँ कमरे में आकर मेरे बिस्तर पर बैठ गईं और बड़े आराम से पूछा, 'ऐन, पापा अभी तैयार नहीं हैं। तो क्यों न आज रात मैं तुम्हारी प्रार्थना सुनूँ ?'

'नहीं, माँ,' मैंने जवाब दिया।

माँ उठीं, मेरे बिस्तर के पास एक पल को खड़ी हुईं और धीरे-धीरे दरवाज़े की तरफ़ बढ़ीं। अचानक वे मुड़ीं, उनके चेहरे पर दर्द था, उन्होंने कहा, 'मैं तुमसे नाराज़ नहीं होना चाहती। मैं तुम्हें ख़ुद से प्यार करने पर मजबूर नहीं कर सकती।' बाहर निकलते हुए उनके गाल पर आँसू ढुलक रहे थे।

मैं स्थिर लेटे रहकर सोचती रही कि इतनी क्रूरता से उन्हें झटकना कितनी घटिया बात थी, लेकिन मैं यह भी जानती थी कि मैं और किसी तरह से उन्हें जवाब नहीं दे सकती थी। मैं ढोंग नहीं कर सकती थी और उनके साथ प्रार्थना नहीं कर सकती थी, क्योंकि मेरी ऐसा करने की कोई इच्छा नहीं थी । ऐसा नहीं होता। मुझे माँ के लिए बहुत, बहुत, बहुत ही बुरा लगा, क्योंकि अपनी ज़िंदगी में पहली बार मैंने गौर किया कि मेरे रूखेपन को लेकर वे उदासीन नहीं थीं। मैंने उनके चेहरे पर तब दुख देखा, जब वे अपने प्रति मेरे मन में प्यार न होने की बात कर रही थीं। सच कहना मुश्किल है, लेकिन सच यही है कि उन्होंने मुझे ठुकराया था। कई चीज़ों पर, जो मुझे बिलकुल भी मज़ेदार नहीं लगती थीं, उनकी अभद्र टिप्पणियों और चुटकुलों ने मुझे उनकी तरफ़ से प्यार के किसी भी भाव के प्रति असंवेदनशील बना दिया। हर बार उनके कटु शब्द सुनकर जिस तरह मेरा दिल बैठता है, ठीक वैसे ही उनका भी बैठा, जब उन्हें महसूस हुआ कि हमारे बीच अब प्यार मौजूद नहीं है।

वे आधी रात तक रोती रहीं और उन्हें नींद नहीं आई। पापा मुझे अनदेखा करते रहे, जब भी उनकी नज़रें मुझसे मिलतीं, तो मैं उनके अनकहे शब्दों को पढ़ सकती थी : 'तुम इतनी निर्दयी कैसे हो सकती हो? तुम अपनी माँ को इतना दुखी कैसे कर सकती हो !'

हर कोई अपेक्षा करता है कि मैं माफ़ी माँगूँगी, लेकिन यह कोई ऐसी चीज़ नहीं है कि जिसके लिए मैं क्षमा माँग सकती हूँ, क्योंकि मैंने सच कहा और कभी न कभी तो माँ को पता लग ही जाता। मैं माँ के आँसुओं और पापा की नज़रों के प्रति उदासीन लगती हूँ और मैं हूँ भी, क्योंकि वे दोनों अब वही महसूस कर रहे हैं, जो मैं हमेशा से महसूस करती आई हूँ। माँ के लिए मैं अफ़सोस ही कर सकती हूँ, जिन्हें खुद ही फ़ैसला करना होगा कि उनका रवैया कैसा होना चाहिए। जहाँ तक मेरा सवाल है, मैं ख़ामोश और अलग-थलग रहूँगी और मेरा इरादा सच से पीछे हटने का नहीं है, क्योंकि उसे जितना टालेंगे, उतना ही सुनने पर उनके लिए उसे स्वीकार करना मुश्किल होगा!

तुम्हारी, ऐन

मंगलवार, 27 अप्रैल 1943

प्रिय किटी,

घर अब भी झगड़ों के असर से काँप रहा है। हर कोई दूसरे पर नाराज़ है: माँ और मैं, मि. फ़ॉन डान और पापा, माँ और मिसेज़ फ़ॉन डी। क्या बढ़िया वातावरण है, तुम्हें नहीं लगता? एक बार फिर ऐन की कमियों की सूची को विस्तार से बताया जा रहा है।

पिछले शनिवार हमारे जर्मन मेहमान फिर आए। वे छह बजे तक रहे। हम सभी ऊपर रहे और ज़रा सा भी हिलने की हिम्मत नहीं की। अगर इमारत में या फिर पड़ोस में कोई काम न कर रहा हो, तो प्राइवेट ऑफ़िस में हर पदचाप को सुना जा सकता है। इतनी देर चुपचाप बैठे रहने से मैं फिर से घबरा गई।

मि. वुश्कल अस्पताल में हैं, लेकिन मि. क्लेमन दफ़्तर आ गए हैं। उनके पेट में होने वाला रक्तस्राव रुक गया है। उन्होंने हमें बताया कि रजिस्टर ऑफ़िस को अतिरिक्त नुक़सान हुआ, क्योंकि फ़ायरमेन ने केवल आग बुझाने के बजाय पूरी इमारत को पानी से भर दिया। मुझे यह सुनकर अच्छा लगा!

कार्ल्टन होटल तबाह हो गया है। बम ले जा रहे दो ब्रिटिश विमान सीधे जर्मन ऑफ़िसर्स क्लब पर उतरे । वेज़लस्त्रात और सिंगल आग में जल गए। जर्मन शहरों पर हो रहे हवाई हमले दिन ब दिन बढ़ते जा रहे हैं। हमें लंबे समय से रात को आराम नहीं मिला है, नींद की कमी से मेरी आँखें सूज फूल गई हैं।

हमारा खाना भयावह है। नाश्ते में हम बिना मक्खन के सादा डबलरोटी और कृत्रिम कॉफ़ी लेते हैं। पिछले दो सप्ताहों में दिन के भोजन में या तो पालक होता है या पके हुए लेटस (सलाद के पत्ते) और साथ में बड़े-बड़े आलू, जिनका स्वाद सड़ा व मीठा सा होता है। अगर कोई पतला होना चाहता है, तो यहाँ रहे ! ऊपर वे बहुत कटुता से शिकायत करते हैं, लेकिन हमें नहीं लगता कि यह इतना दुःखद है।

1940 में जिन डच पुरुषों ने लड़ाई की थी या तैयारी की थी, उन सभी को युद्धबंदियों के शिविरों में काम करने के लिए बुलाया गया है। मुझे यक़ीन है कि हमले की वजह से वे यह सावधानी बरत रहे हैं।

तुम्हारी, ऐन

शनिवार, 1 मई, 1943

प्रिय किटी,

कल दुसे का जन्मदिन था। पहले उन्होंने ऐसे जताया जैसे कि वे जन्मदिन नहीं मनाना चाहते हों, लेकिन जब मीप उपहारों से भरा एक बड़ा सा शॉपिंग बैग लेकर पहुँची, तो वे किसी छोटे बच्चे की तरह रोमांचित हो गए। उनकी प्रिय 'लॉजे' ने उनके लिए अंडे, मक्खन, बिस्किट, लेमोनेड, डबलरोटी, कोनिएक, स्पाइस केक, फूल, संतरे, चॉकलेट, किताबें और लिखने के लिए काग़ज़ भेजे थे। उन्होंने मेज़ पर सभी तोहफ़ों का ढेर लगा दिया और तीन दिन उसका प्रदर्शन किया, बेवकूफ़ कहीं के!

तुम्हें यह नहीं लगना चाहिए कि वे भूखे हैं। हमें उनकी अलमारी में डबलरोटी, चीज़, जैम और अंडे मिले। यह बहुत ही शर्मनाक है कि जिस दुसे के साथ हम इतने रहम से पेश आए और जिन्हें हमने बर्बाद होने से बचाया, वही हमारी पीठ पीछे हँसकर खाते हैं और हमें कुछ नहीं देते। हमने भी तो अपनी सारी चीजें उनके साथ बाँटी थी। लेकिन हमारी राय में उससे भी बुरा यह है कि मि. क्लेमन, मि. वुश्कल और बेप के साथ भी वे कंजूसी बरतते हैं। उन्हें कुछ भी नहीं देते। दुसे की नज़र में संतरे उनके पेट को ज्यादा फ़ायदा पहुँचाएँगे, जबकि क्लेमन को अपने पेट के लिए उनकी सख़्त ज़रूरत है।

आज बंदूकों की आवाज़ इतनी ज़्यादा आ रही है कि मुझे चार बार अपना सामान समेट लेना पड़ा। कहीं भागने की स्थिति में आज मैंने अपने सूटकेस में अपनी ज़रूरत का सारा सामान पैक किया, लेकिन जैसा कि माँ का सही कहना है कि जाएँगे कहाँ?

कामगारों की हड़ताल के लिए पूरे हॉलैंड को सज़ा दी जा रही है। मार्शल लॉ की घोषणा कर दी गई है और हर किसी को एक बटर कूपन कम मिलेगा। क्या शरारती बच्चे हैं।

आज शाम मैंने माँ के बाल धोए, जो आजकल के समय में आसान काम नहीं है। हमें साफ़ करने वाले काफ़ी चिपचिपे तरल का इस्तेमाल करना पड़ता है, क्योंकि हमारे पास शैम्पू नहीं बचा है। इसके अलावा माँ को अपने बालों में कंघी करने में भी काफ़ी दिक्कत हो रही है, क्योंकि हमारी कंघी में सिर्फ़ दस दाँत बचे हैं।

तुम्हारी, ऐन

रविवार, 2 मई, 1943

प्रिय किटी,

जब मैं यहाँ की अपनी ज़िंदगी के बारे में सोचती हूँ, तो मैं अक्सर इस नतीजे पर पहुँचती हूँ कि हम उन यहूदियों के मुक़ाबले बहुत बेहतर जगह में हैं, जो कहीं छिपे नहीं हुए हैं। साथ ही बाद में जब सब कुछ सामान्य हो जाएगा, तो मैं शायद यह सोचकर हैरान हो जाऊँगी कि हमेशा आरामदायक स्थिति में रहने वाले हम लोग कैसे इतना 'नीचे' गिरे। मेरा मतलब आदतों से है। उदाहरण के लिए, हम जबसे यहाँ आए हैं, तब से हमारी डायनिंग टेबल पर वही मोमजामा बिछा है। इतने इस्तेमाल के बाद उसे बेदाग़ कहना बड़ा मुश्किल है। मैं उसे साफ़ करने की पूरी कोशिश करती हूँ, लेकिन सफ़ाई करने वाला कपड़ा भी यहाँ छिपने आने से पहले ख़रीदा गया था और उसमें भी काफ़ी छेद हो चुके हैं, इसलिए यह बेकार का ही काम है। फ़ॉन डान परिवार पूरी सर्दियों में एक ही सूती चादर पर सोते रहे हैं, जिसे साबुन की नियंत्रित पूर्ति और कम आपूर्ति के कारण धोया नहीं जा सकता। ख़राब क्वालिटी का होने के कारण वैसे भी वह पाउडर बेकार है। पापा घिसी हुई पतलून में घूमते हैं और उनकी टाई की भी हालत ख़राब है । मम्मी का कॉर्सेट आज टूट गया और अब उसकी मरम्मत नहीं की जा सकती, जबकि मारगोट अपने नाप से दो नंबर कम की ब्रा पहन रही है। पूरी सर्दी माँ और मारगोट ने वही तीन बनियानें साझा कीं और मेरी तो इतनी छोटी हैं कि मेरा पेट तक नहीं ढँकता। इन सब चीज़ों पर तो क़ाबू पाया जा सकता है, लेकिन कई बार मैं सोचती हूँ कि हमारी सभी चीजें, मेरे अंतर्वस्त्रों से लेकर पापा के शेविंग ब्रश तक, इतनी पुरानी हो चुकी हैं कि हम यह उम्मीद कर सकते हैं कि हम युद्ध से पहले की स्थिति में कभी वापस पहुँच सकेंगे?

रविवार, 2 मई, 1943

युद्ध के प्रति अनेक्स निवासियों का रवैया

मि. फ़ॉन डान: हम सबकी राय है कि इन सज्जन को राजनीति की काफ़ी समझ है। उनका पूर्वानुमान है कि हमें 1943 के अंत तक यहाँ रहना होगा। यह काफ़ी लंबा समय है, लेकिन फिर भी यहाँ बने रहना संभव है। लेकिन हमें यह आश्वासन कौन देगा कि इतना दुःख-दर्द लाने वाली लड़ाई तब तक ख़त्म हो चुकी होगी ? इतने लंबे समय तक हमें या हमारे सहायकों को कुछ नहीं होगा? कोई नहीं! यही वजह है कि हमारा हर दिन तनाव से भरा होता है। अपेक्षा और आशा से तनाव पैदा होता है और भय भी । उदाहरण के लिए, जब कभी हमें घर के अंदर या बाहर कोई आवाज़ सुनाई देती है, बंदूकें चलती हैं, अख़बार में हम नईं 'उद्घोषणाएँ' पढ़ते हैं, तो हमें डर लगता है, क्योंकि हमें लगता है कि हमारे सहायकों को भी कभी छिपने के लिए मजबूर किया जा सकता है। इन दिनों हर कोई छिपने की बात कर रहा है। हमें नहीं पता कि कितने लोग असल में छिपे हुए हैं; ज़ाहिर है कि आम जनसंख्या के लिहाज़ से यह संख्या कम है, लेकिन बाद में हमें हैरानी होगी कि हॉलैंड में कितने अच्छे लोग यहूदियों व ईसाइयों को पैसा लेकर या उसके बिना अपने घर में रखने के इच्छुक हैं। नक़ली पहचान के काग़ज़ात रखने वाले लोगों की संख्या भी अविश्वसनीय रूप से बहुत अधिक है।

मिसेज़ फ़ॉन डान: जब इस ख़ूबसूरत लड़की (यह उनका कहना है) को लगा कि इन दिनों नक़ली पहचानपत्र रखना आसान हो रहा है, तो उन्होंने तुरंत यह प्रस्ताव रखा कि हम सबको पहचानपत्र बनवा लेने चाहिए। जैसे कि उसमें कोई बात नहीं थी और जैसे कि पापा और मि. फ़ॉन डान पैसे से बने थे।

मिसेज़ फ़ॉन डान हमेशा अजीबोगरीब बातें करती हैं और उनके पुत्ती अक्सर उससे भड़क जाते हैं। लेकिन इसमें आश्चर्य नहीं, क्योंकि एक दिन केर्ली घोषणा करती हैं, 'जब यह सब ख़त्म हो जाएगा, तो मैं अपना बपतिस्मा करवा लूँगी;' फिर वे कहती हैं, 'जहाँ तक मुझे याद है, मैं येरुशलम जाना चाहती थी। मुझे सिर्फ़ बाक़ी यहूदियों के साथ सहज महसूस होता है!'

पिम काफ़ी आशावादी हैं, लेकिन उनके पास हमेशा अपने कारण होते हैं।

मि. दुसे अपने हिसाब से चलते हैं और जिस किसी को भी उनका विरोध करने की इच्छा हो, बेहतर है कि वह दो बार सोचे । अल्फ्रेड दुसे के घर पर उनकी कही बात ही कानून है, लेकिन ऐन फ़्रैंक को इससे बिलकुल भी फ़र्क नहीं पड़ता ।

अनेक्स परिवार के बाक़ी सदस्य युद्ध के बारे में क्या सोचते हैं, उससे कोई अंतर नहीं पड़ता । राजनीति की बात होने पर यही चार हैं, जो अहमियत रखते हैं। दरअसल, उनमें से दो ही महत्त्वपूर्ण हैं, लेकिन मैडम फ़ॉन डान और दुसे ख़ुद को उनमें शामिल कर लेते हैं।

मंगलवार, 18 मई, 1943

प्रिय किटी,

मैंने हाल ही में जर्मन व इंग्लिश पायलट के बीच ज़बरदस्त हवाई लड़ाई देखी। बदक़िस्मती से मित्र राष्ट्रों के विमानकर्मियों को अपने जलते विमान कूदना पड़ा। ऑफ़वे में रहने वाले हमारा दूधवाले ने सड़क किनारे चार कनाडाई लोगों को देखा, उनमें से एक धाराप्रवाह डच बोल रहा था। उसने दूधवाले से सिगरेट जलाने के लिए कुछ माँगा और बताया कि उसके दल में छह लोग थे। पायलट जलकर मर गया था और पाँचवें सदस्य ने ख़ुद को कहीं छिपा लिया था। जर्मन सिक्योरिटी पुलिस बचे हुए इन चार लोगों को लेने आई थी, जो घायल नहीं थे। जलते विमान से निकलने के बाद किसी का दिमाग़ इतनी तेज़ी से कैसे काम कर सकता है?

अभी काफ़ी गर्मी है, लेकिन फिर भी हमें हर रोज़ सब्ज़ियों के छिलकों व कचरे को फूँकने के लिए आग जलानी पड़ती है। हम कुछ भी कूड़े में नहीं डाल सकते, क्योंकि गोदाम के कर्मचारी उसे देख सकते हैं। ज़रा सी असावधानी और हमारा खेल ख़त्म!

विश्वविद्यालय के सभी छात्रों को एक आधिकारिक वक्तव्य पर हस्ताक्षर करने को कहा गया है कि वे 'जर्मनों के साथ सहानुभूति रखेंगे और न्यू ऑर्डर को मानेंगे।' अस्सी प्रतिशत छात्रों ने अपनी अंतरात्मा की बात मानने का फ़ैसला किया है, लेकिन दंड काफ़ी कठोर होगा। जो भी छात्र दस्तख़त करने से मना करेगा, उसे जर्मन श्रम शिविर में भेज दिया जाएगा। हमारे देश के नौजवानों का क्या होगा, अगर उन्हें जर्मनी में हाड़तोड़ मेहनत करने के लिए भेज दिया जाएगा?

कल रात गोलियों की इतनी आवाज़ आ रही थी कि माँ ने खिड़की बंद कर दी ; मैं पिम के बिस्तर पर थी। अचानक ठीक हमारे सिर के ऊपर हमें मिसेज़ फ़ॉन डी के कूदने की आवाज़ सुनाई दी, जैसे कि उन्हें मूशी ने काट लिया हो। उसके बाद ज़ोर की आवाज़ आई, ऐसा लगा कि मेरे बिस्तर के पास कोई बम गिरा हो । 'बत्ती जलाओ ! ' मैं चिल्लाई ।

पिम ने लैम्प जला दिया। मुझे लगा कि पूरा कमरा आग की लपट में आ जाएगा। कुछ नहीं हुआ। हम सब ऊपर देखने के लिए भागे कि क्या हो रहा था। मि. और मिसेज़ फ़ॉन डी ने खुली खिड़की से लाल चमक देखी थी और मि. फ़ॉन डी को लगा कि कहीं आसपास आग लगी है, जबकि मिसेज़ फ़ॉन डी निश्चित थी कि हमारे घर में आग लगी है। मिसेज़ फ़ॉन डी आवाज़ आने से पहले ही अपने बिस्तर के पास खड़ी थीं । दुसे सिगरेट पीने के लिए ऊपर गए थे और हम सभी अपने बिस्तर में घुस गए। पंद्रह मिनट से भी कम समय बाद फिर से गोलीबारी शुरू हो गई। मिसेज़ फ़ॉन डी अपने बिस्तर से बाहर निकलीं और दुसे के कमरे में वह दिलासा पाने पहुँचीं, जो उनके जीवनसाथी उन्हें नहीं दे पा रहे थे। दुसे ने यह कहकर उनका स्वागत किया, 'मेरे बिस्तर पर आ जाओ, बच्चे! '

हम सबने ठहाके लगाए और बंदूकों की गर्जना से अब हमें फ़र्क नहीं पड़ रहा था, हमारे सभी डर दूर हो गए थे।

तुम्हारी, ऐन

रविवार, 13 जून, 1943

प्रिय किटी,

पापा ने मेरे जन्मदिन पर जो कविता लिखी है, वह इतनी अच्छी है कि उसे सिर्फ़ अपने तक सीमित रख पाना संभव नहीं है।

पिम अपनी कविता केवल जर्मन में लिखते हैं, इसलिए मारगोट ने डच में उसका अनुवाद करने का काम लिया। तुम खुद ही देखो कि मारगोट ने अच्छा काम किया है या नहीं। इसकी शुरुआत साल में होने वाली घटनाओं के सारांश से होती है और इस तरह आगे चलती है:

हममें सबसे कम उम्र, पर नहीं रही अब छोटी
ज़िंदगी हो सकती दूभर, हमारे पास है काम
तुम्हें सिखाने-पढ़ाने का, नहीं है आराम।
'हमारे पास तजुर्बा है! सीखो हमसे!'
'हम यह सब पहले कर चुके हैं तुमसे!'
हमें हैं जानकारियाँ तमाम
सदियों से चल रहा ऐसे ही काम।
अपनी कमियाँ नहीं दिखतीं किसी को
दूसरों की कमियाँ लगतीं बड़ी सबको।
ऐसे हालात में कमियाँ निकालना है आसान,
माँ-बाप के लिए है काफ़ी मुश्किल काम,
निष्पक्षता, दयालुता से पेश आना तुम्हारे साथ;
मीनमेख निकालने की आदत छोड़ना है मुश्किल
जब तुम बूढ़े लोगों के साथ हो तो करना बस इतना
चुपचाप बस उनकी बड़बड़ाहट को झेलना ।
कड़वी कितनी भी हो यह गोली बस इसको गटकना,
इससे अमन-चैन रहता है सदा बना ।
यहाँ गुज़रे ये महीने नहीं गए बेकार
वक़्त बर्बाद करना नहीं तुम्हारा स्वभाव ।
तुम दिन भर करती पढ़ाई ढेर सारी
ताकि दिमाग़ में न रहे ऊब भरी।
ज़्यादा मुश्किल सवाल जिसे झेलना है कठिन
'क्या पहनना होगा मुझे, हे ईश्वर?
निकर नहीं मेरे पास, मेरे कपड़े हैं तंग,
बनियान हो गई छोटी, यह तो नहीं कोई ढंग !
जूते हो गए छोटे, उन्हें पहनना है कठिन
मेरी तकलीफें बढ़ रहीं, दिन ब दिन!'

मारगोट को खाने में तुकबंदी करने में मुश्किल हुई, इसलिए उसे मैं छोड़ रही हूँ। लेकिन उसके अलावा तुम्हें नहीं लगता कि यह अच्छी कविता है?

मुझे बहुत दुलार मिला और मेरे प्रिय विषय ग्रीक व रोमन माइथॉलोजी पर एक बड़ी सी किताब समेत काफ़ी प्यारे उपहार मिले। मैं मिठाई की कमी की शिकायत भी नहीं कर सकती, क्योंकि हर किसी ने अपने भंडार में से कुछ न कुछ निकाला। अनेक्स में सबसे छोटी होने के कारण मुझे इतनी ज़्यादा चीजें मिलीं, जिनके शायद मैं लायक़ नहीं ।

तुम्हारी, ऐन

मंगलवार, 15 जून, 1943

प्रिय किटी,

काफ़ी कुछ हो चुका है, लेकिन अक्सर मैं सोचती हूँ कि मैं तुम्हें अपने नीरस बातचीत से उबा रही हूँ और जल्दी ही तुम्हें कम चिट्ठियाँ मिलेंगी। तो मैं घटनाओं को संक्षेप में रखूँगी ।

मि. वुश्कल का आख़िरकार अल्सर का ऑपरेशन नहीं हुआ। ऑपरेटिंग टेबल पर उनका पेट खोलने पर डॉक्टरों को पता लगा कि उन्हें कैंसर था। वह इतना आगे बढ़ चुका था कि ऑपरेशन करने का कोई फ़ायदा नहीं था। उन्होंने उनके पेट को फिर से सिला और तीन हफ़्ते तक उन्हें अस्पताल में रखकर खूब खिलाया पिलाया और फिर वापस घर भेज दिया। लेकिन उन्होंने एक अक्षम्य अपराध किया कि उन्होंने बेचारे मि. वुश्कल को सब कुछ बता दिया। वे अब काम नहीं कर पा रहे, बस घर में अपने आठ बच्चों से घिरे हुए बैठे रहते हैं और आने वाली मौत की चिंता में डूबे रहते हैं। मुझे उनके लिए बहुत बुरा लगता है और यह भी कि मैं बाहर नहीं जा सकती; वरना मैं उनके पास जाती और उनके दिमाग़ को उस चिंता से दूर रखने में उनकी मदद करती । अब वे हमें नहीं बता सकते कि गोदाम में क्या कहा जा रहा है या क्या हो रहा है, जो कि हमारे लिए परेशानी है। हमारे सुरक्षा के मामले में मि. वुश्कल हमारी मदद व सहारे का सबसे बड़ा ज़रिया थे। उनकी कमी हमें खलती है।

अगले महीने हमारी बारी है, अधिकारियों को अपने रेडियो सौंपने की। मि. क्लेमन ने एक छोटा सा रेडियो सेट अपने घर में छिपाया है, वे हमारे ख़ूबसूरत फ़िलिप्स के बदले उसे हमें देंगे। बहुत बुरी बात है कि हमें अपना बड़ा फ़िलिप्स देना पड़ रहा है, लेकिन जब आप छिपे हुए हों, तो आप नहीं चाहते कि प्रशासन को आपकी भनक हो । ज़ाहिर है कि अपने 'बेबी' रेडियो को हम ऊपर रखेंगे। जब यहूदी होना ग़ैरकानूनी हो गए हैं, धन ग़ैरकानूनी हो गया है, तो रेडियो की क्या बिसात है?

पूरे देश में लोग कोई पुराना रेडियो पाने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि उन्हें ‘मनोबल बढ़ाने वाले' अपने सेट को न देना पड़े। यह सच है कि जैसे- जैसे बाहर से आने वाली ख़बरें बद से बदतर होती जा रही हैं, वैसे-वेसे रेडियो अपनी हैरतअंगेज़ आवाज़ से उम्मीद बनाए रखने में हमारी मदद करता है और हमें कहता है, 'ख़ुश रहो, हौसला बनाए रखो, हालात बेहतर होंगे !'

तुम्हारी, ऐन

रविवार, 11 जुलाई, 1943

प्रिय किटी,

बच्चों की परवरिश की बात पर (अनगिनत बार) तुम्हें बताऊँ कि मैं अपनी तरफ़ से मददगार, दोस्ताना और दयालु बनने और साथ ही ऐसे काम करने की पूरी कोशिश कर रही हूँ, जिनसे झिड़कियों की बरसात हल्की हो सके। ऐसे लोगों के साथ आदर्श बच्चा बनने की कोशिश करना आसान नहीं है, जिन्हें आप बर्दाश्त नहीं कर सकते और ऐसे शब्द कहने में भी मुश्किल आती है, जब आप वास्तव में उन पर ख़ुद यक़ीन नहीं करते। लेकिन मैं देख सकती हूँ कि मन की बात साफ़-साफ़ कह देने के तरीक़े के बजाय थोड़े से पाखंड से मेरा काम बन रहा है (हालाँकि कोई भी मेरी राय नहीं पूछता या किसी भी तरीक़े से उन्हें फ़र्क पड़ता है)। हाँ, मैं अक्सर अपनी भूमिका तब भूल जाती हूँ और अपने गुस्से पर काबू पाना मेरे लिए नामुमकिन हो जाता है, जब वे अन्याय करते हैं और फिर अगला महीना वे यह कहते हुए बिता देते हैं कि मैं दुनिया की सबसे बदतमीज़ लड़की हूँ । तुम्हें नहीं लगता कि मुझ पर भी कभी तरस खाया जाना चाहिए? अच्छी बात यह है कि मैं अफ़सोस करने वालों में से नहीं हूँ, क्योंकि मैं फिर चिड़चिड़ी और बदमिज़ाज हो जाऊँगी। मैं अक्सर उनकी डपट का मज़ाकिया पहलू देख सकती हूँ, लेकिन यह तब अपेक्षाकृत आसान होता है, जब किसी और पर यह गुज़र रही हो । मैंने फ़ैसला किया है ( काफ़ी सोच-विचार के बाद) कि मैं शॉर्टहैंड छोड़ दूँगी । उससे मुझे बाक़ी विषयों के लिए अधिक समय मिलेगा और दूसरा कारण मेरी आँखें हैं। बहुत दुःख भरी कहानी है। मेरी नज़र कमज़ोर हो गई है और मुझे काफ़ी पहले चश्मा लगा लेना चाहिए था। (मैं बेवकूफ़ लगूँगी!) लेकिन जैसा कि तुम जानती हो, छिपे हुए लोग....

कल यहाँ सभी लोग ऐन की आँखों के बारे में बात कर रहे थे, क्योंकि माँ का सुझाव था कि मुझे मिसेज़ क्लेमन के साथ किसी विशेषज्ञ के पास जाना चाहिए। यह बात सुनकर ही मुझे घबराहट होने लगी, क्योंकि यह कोई छोटी बात नहीं है। बाहर जाना! ज़रा सोचो कि सड़क पर चलना ! मैं उसकी कल्पना भी नहीं कर सकती। पहले मैं डर गई, फिर ख़ुश हुई। लेकिन यह इतनी सीधी सी बात नहीं है; जिन बड़े लोगों को इस तरह के क़दम की अनुमति देनी है, वे किसी फ़ैसले पर नहीं पहुँच पाए। उन्हें पहले सभी मुश्किलों व ख़तरों का जायज़ा लेना होगा, हालाँकि मीप तुरंत मेरे साथ जाने को तैयार हो गईं। इस दौरान, मैंने अलमारी से अपना कोट निकाला, लेकिन वह इतना छोटा था कि लगता था कि मेरी किसी छोटी बहन का कोट रहा होगा। हमने किनारे को नीचे किया, लेकिन मैं उसके बटन नहीं लगा पाई। मैं काफ़ी उत्सुक हूँ कि वे क्या फ़ैसला करते हैं, वैसे मुझे लगता है कि वे शायद ही कोई योजना बना पाएँ, क्योंकि ब्रिटिश सेना सिसली पहुँच चुकी है और पापा के मुताबिक़ 'तेज़ी से ख़त्म करने' के लिए तैयार है।

बेप मारगोट और मुझे ऑफ़िस का काफ़ी काम देती रही हैं। उससे हमें अपना महत्त्व महसूस होता है और उन्हें काफ़ी मदद मिल जाती है। पत्रों को फ़ाइल में लगाने और सेल्स बुक में प्रविष्टियाँ कोई भी लिख सकता है, लेकिन हम इसे काफ़ी सटीकता के साथ करते हैं।

मीप को इतना ज़्यादा सामान ढोना होता है कि वे खच्चर जैसी दिखती हैं। वे तपती दुपहरी में ख़रीदारी करने जाती हैं और फिर सारा सामान लेकर लौटती हैं। वे हर शनिवार को अपने साथ पुस्तकालय से पाँच किताबें लाती हैं। हमें शनिवार का इंतज़ार रहता है, क्योंकि उसका मतलब किताबें होता है। हम उन छोटे बच्चों की तरह होते हैं, जिनके पास उपहार होते हैं। सामान्य लोग नहीं जानते कि कहीं छिपकर रहने वाले लोगों के लिए किताबों के क्या मायने हैं। पढ़-लिखकर, रेडियो सुनकर हम अपना ध्यान बँटाते हैं।

तुम्हारी, ऐन

मंगलवार, 13 जुलाई, 1943

बेहतरीन छोटी मेज़

कल दोपहर पापा ने मुझे मि. दुसे से यह पूछने की अनुमति (देखा, मैं कितनी विनम्र हूँ!) दे दी कि क्या वे हफ़्ते में दो दिन, चार बजे से साढ़े पाँच बजे तक मुझे हमारे कमरे की मेज़ का इस्तेमाल करने की इजाज़त देंगे। पहले ही मि. दुसे के झपकी लेने के दौरान ढाई बजे से चार बजे तक उस पर बैठती हूँ, लेकिन बाक़ी समय कमरा व मेज़ मेरी पहुँच से दूर होते हैं। दोपहर में दूसरे कमरे में पढ़ना असंभव है, क्योंकि वहाँ काफ़ी कुछ चल रहा होता है। इसके अलावा, पापा कभी-कभार दोपहर में डेस्क पर बैठते हैं।

तो यह काफ़ी तर्कसंगत बात थी और मैंने बहुत विनम्रता से मि. दुसे से पूछा । तुम्हें क्या लगता है कि जनाब का जवाब क्या रहा होगा? 'नहीं।' बस, 'नहीं!'

मैं चिढ़ गई और उस तरह टाला जाना नहीं चाहती थी, तो मैंने उनसे उनके 'नहीं' का कारण पूछा, लेकिन उससे कोई फ़ायदा नहीं हुआ। उनके जवाब का सार यही था : 'मुझे भी पढ़ना होता है, अगर मैं दिन में नहीं पढ़ पाया, तो मैं तालमेल नहीं बिठा पाऊँगा। मैंने अपने लिए जो काम निर्धारित किया है, उसे पूरा करना होगा, वरना उसे शुरू करने का कोई फ़ायदा नहीं। इसके अलावा, तुम अपनी पढ़ाई को लेकर गंभीर नहीं हो । माइथॉलोजी, यह किस तरह का शब्द है? पढ़ने और बुनाई करने को भी नहीं माना जाएगा। मैं मेज़ का इस्तेमाल करता हूँ और उसे मैं छोड़ने वाला नहीं हूँ !'

मैंने जवाब दिया, 'मि. दुसे मैं अपने काम को गंभीरता से लेती हूँ। मैं दोपहर में बग़ल के कमरे में नहीं बैठ सकती और मैं बहुत आभारी रहूँगी अगर आप मेरे निवेदन पर फिर से विचार करें!"

यह कहकर अपमानित ऐन मुड़ी और उसने ऐसे दिखाया कि जैसे डॉक्टर वहाँ मौजूद ही नहीं थे। मैं गुस्से में उबल रही थी और मुझे लगा कि दुसे बहुत ही अशिष्ट थे (जो वे थे) और मैं काफ़ी विनम्रता से पेश आती रही थी ।

उस शाम जब मुझे पिम मिले, तो मैंने उन्हें बताया कि क्या हुआ था और फिर हमने मेरे अगले क़दम पर बातचीत की, क्योंकि मेरी हार मानने की इच्छा नहीं थी और उस मामले से ख़ुद ही निपटना चाहती थी। पिम ने मुझे मोटे तौर पर दुसे से निपटने का तरीक़ा बताया और आगाह किया कि मैं अगले दिन तक इंतज़ार करूँ, क्योंकि तब मैं काफ़ी उत्तेजित थी। मैंने उनकी आख़िरी सलाह को अनदेखा किया और बर्तन धोने के बाद दुसे का इंतज़ार करने लगी। पिम बग़ल के कमरे में थे और उससे मुझ पर ठंडक भरा असर पड़ा।

मैंने कहा, 'मि. दुसे आप ऐसा मान रहे हैं कि इस मामले पर बात करना बेकार है, लेकिन मेरी विनती है कि आप फिर से विचार करें।'

दुसे बड़े आकर्षक ढंग से मुस्कराए और कहा, 'मैं हमेशा बातचीत करने के लिए तैयार हूँ, चाहे मामला ख़त्म ही क्यों न हो गया हो।'

दुसे के बार-बार टोकने के बावजूद मैं बोलती रही। मैंने कहा, 'जब आप पहली बार यहाँ आए थे, तो हमारे बीच सहमति हुई थी कि हम दोनों कमरे का इस्तेमाल करेंगे। अगर हमें इसे न्यायपूर्ण तरीक़े से साझा करना हो, तो आपके पास पूरी सुबह होगी और मेरे पास पूरी दोपहर ! मैं आपसे उतना नहीं माँग रही हूँ, लेकिन सप्ताह में दो दोपहर मेरे हिसाब से काफ़ी तर्कसंगत है।'

दुसे अपनी कुर्सी से ऐसे उछले, जैसे वे किसी पैनी चीज़ पर बैठ गए हो । 'तुम्हें कमरे पर अपने अधिकार को लेकर बात करने का कोई हक़ नहीं है। मैं कहाँ जाऊँगा? शायद मुझे मि. फ़ॉन डान से अटारी में कमरा बनवाने को कहना होगा। सिर्फ़ तुम ही नहीं हो, जिसे काम के लिए कोई शांत जगह नहीं मिल पाती। तुम हमेशा लड़ने के लिए तैयार रहती हो। अगर तुम्हारी बहन मारगोट, जिसे तुमसे ज़्यादा काम की जगह का अधिकार है, यही बात कहती तो मैं न कहने की बात सोचता भी नहीं, लेकिन तुम....'

एक बार फिर उन्होंने माइथॉलोजी व बुनाई की बात उठाई और फिर ऐन का अपमान हुआ। फिर भी मैंने उसे जताया नहीं और दुसे को उनकी बात पूरी करने दी : 'लेकिन नहीं, तुमसे बात करना तो नामुमकिन है। तुम बेशर्मी की हद तक आत्मकेंद्रित हो। तुम्हें किसी और की परवाह नहीं, बस तुम्हारी बात मानी जानी चाहिए। मैंने कभी ऐसा बच्चा नहीं देखा। ख़ैर यह सब कहने-सुनने के बाद मैं तुम्हारी बात मान रहा हूँ, क्योंकि मैं नहीं चाहता कि बाद में लोग कहें कि दुसे द्वारा मेज़ न दिए जाने के कारण ऐन फ्रैंक परीक्षाओं में असफल रही!'

वे बोलते चले गए और कुछ देर में तो मेरे लिए उनकी बात समझना तक मुश्किल हो गया। एक पल को मैंने सोचा, 'ये और इनके झूठ। मैं इनकी भद्दी शक्ल पर इतनी ज़ोर से मारूँगी कि वे दीवार से टकराकर वापस आ जाएँगे!' लेकिन अगले ही पल मेरे मन में ख़याल आया, 'शांत रहो, वे इतने महत्त्वपूर्ण नहीं हैं कि तुम इतना परेशान हो जाओ!'

आख़िरकार मि. दुसे का सारा गुस्सा बाहर निकल गया और वे कमरे से बाहर निकले, उनके चेहरे पर जीत व नाराज़गी के मिले-जुले भाव थे और उनके कोट की जेब खाने की चीज़ों से फूली हुई थी।

मैं दौड़कर पापा के पास गई और उन्हें पूरी कहानी बताई या कम से कम उन हिस्सों को बताया, जो वे खुद नहीं सुन पाए थे। पिम ने उसी शाम दुसे से बात करने का मन बनाया और उन्होंने आधे घंटे से अधिक समय तक बातचीत की। पहले उन्होंने इस पर बातचीत की कि ऐन को मेज़ के इस्तेमाल की इजाज़त दी जाए या नहीं। पापा ने कहा कि वे और दुसे पहले भी इस पर बातचीत कर चुके हैं और उस समय पापा ने दुसे के साथ सहमति जताई थी, क्योंकि पापा नहीं चाहते थे कि छोटे सदस्य के सामने बड़े का विरोध किया जाए और उस समय भी उन्हें यह बात सही नहीं लगी थी। दुसे को लगा कि मुझे उन्हें घुसपैठिया समझने और हर चीज़ पर दावा करने का कोई हक़ नहीं था। लेकिन पापा ने उनकी बात का ज़ोरदार विरोध किया, क्योंकि उन्होंने खुद यह सुना था कि मैंने इस तरह की कोई बात नहीं की थी। तो बातचीत आगे-पीछे होती रही, पापा मेरी 'स्वार्थपरता' और 'बेकार की गतिविधियों' का बचाव करते रहे और दुसे सारा समय बड़बड़ाते रहे।

आख़िरकार दुसे को हथियार डालने पड़े और मुझे सप्ताह में दो दोपहर बेरोकटोक काम करने का अवसर मिल गया। दुसे खिन्न लग रहे थे, दो दिन तक उन्होंने मुझसे बात नहीं की और पाँच से साढ़े पाँच तक मेज़ पर जमे रहे - यह सब काफ़ी बचकाना था।

शुक्रवार, 16 जुलाई, 1943

प्रिय किटी,

इस बार फिर से सेंध लगी और इस बार वह सचमुच की थी! सुबह सात बजे पीटर गोदाम में था और उसने देखा कि गोदाम के दोनों दरवाज़े खुले थे, उसने तुरंत पिम को बताया और वे प्राइवेट ऑफ़िस में गए, जर्मन स्टेशन पर रेडियो लगाया और दरवाज़ा बंद कर दिया। फिर वे दोनों ऊपर गए। ऐसे मामलों में हमारे लिए आदेश होते हैं, 'नहाना-धोना नहीं या फिर पानी का इस्तेमाल नहीं करना, ख़ामोश रहना, आठ बजे तक तैयार हो जाना और शौचालय नहीं जाना,' और हमेशा की तरह हमने इन सभी का पूरी तरह से पालन किया। हम सब ख़ुश थे कि हम अच्छी तरह सोए और हमने कुछ नहीं सुना। कुछ देर के लिए हम नाराज़ भी रहे कि पूरी सुबह नीचे ऑफ़िस से कोई भी ऊपर नहीं आया। मि. कलेमन ने साढ़े ग्यारह बजे तक हमारी बेचैनी बनाए रखी। उन्होंने हमें बताया कि चोरों ने बाहरी दरवाज़े और गोदाम के दरवाज़े को लोहे के डंडे से खोल दिया था, लेकिन जब उन्हें चुराने लायक़ कुछ नहीं मिला, तो उन्होंने अगली मंज़िल पर कोशिश की। उन्होंने कैशबॉक्स चुरा लिया, जिसमें 40 गिल्डर, ख़ाली चेकबुक्स और हमारे लिए आवंटित 330 पाउंड चीनी के कूपन थे। नए कूपन जुटा पाना आसान नहीं होगा।

मि. कुगलर का मानना है कि चोर उसी गिरोह के थे, जिन्होंने छह हफ़्ते पहले सभी दरवाज़ों (गोदाम दरवाज़ा और दो बाहरी दरवाज़े) को खोलने की नाकाम कोशिश की थी।

सेंधमारों ने फिर से हलचल मचा दी थी, लेकिन अनेक्स तो उत्तेजना पर पलती हुई लगती है। हमें ख़ुशी थी कि हमने कैश रजिस्टर और टाइपराइटर्स अपने अलमारियों में सुरक्षित रखे थे।

तुम्हारी ऐन

पुनःश्च । सिसली में पहुँच गए। एक और क़दम ....!

सोमवार, 19 जुलाई, 1943

प्रिय किटी,

उत्तरी ऐम्स्टर्डम रविवार को भारी बमबारी हुई। उससे काफ़ी नुक़सान पहुँचा। सभी सड़कें तबाह हो गई हैं और मृतकों को खोदकर निकालने में समय लगेगा। अब तक दो सौ मृतक हैं और अनगिनत घायल; अस्पताल खचाखच भरे हैं। हमें बताया गया है कि बच्चे बहुत लाचारी से तबाही में अपने मृतक माता-पिता को खोज रहे हैं। आने वाले विनाश के प्रतीक धुंधले, सुदूर ड्रोन के बारे में सोचते ही मेरी कँपकँपी छूट जाती है।

शुक्रवार, 23 जुलाई, 1943

बेप कुछ अभ्यास-पुस्तिकाएँ, विशेषकर डायरियाँ और बहीखाते, जो कि मेरी हिसाब-किताब रखने वाली बहन के लिए काम की हैं! बाक़ी क़िस्म की भी बिक रही हैं, लेकिन यह मत पूछना कि वे कैसी हैं या कितनी देर तक चलेंगी। फ़िलहाल तो उन सब पर लिखा है, 'कूपन्स की ज़रूरत नहीं है!' बाक़ी चीज़ों की तरह जिन्हें आप राशन स्टैम्प्स के बिना ख़रीद सकते हैं, वे पूरी तरह बेकार हैं। उनमें धूसर काग़ज़ के 12 पन्ने हैं, जिनमें तिरछी सँकरी रेखाएँ हैं। मारगोट कैलिग्राफ़ का कोर्स करने की सोच रही है; मैंने उसे ऐसा करने की सलाह दी है। माँ मेरी आँखों के कारण मुझे उसकी इजाज़त नहीं देंगी, लेकिन मुझे यह बेकार की बात लगती है। मैं चाहे वह करूँ या कुछ और, सब कुछ उसी पर आकर टिकता है।

किटी तुमने कभी युद्ध का अनुभव नहीं किया है, इसलिए मेरे पत्रों के बावजूद तुम्हें छिपे रहकर जीने के बारे में बहुत कम जानकारी है। तो तुम्हें सिर्फ़ मज़े के लिए मैं बताना चाहती हूँ कि अगर हमें फिर से बाहर जाने का मौक़ा मिले, तो हममें से हरेक सबसे पहले क्या करना चाहेगा।

मारगोट और मि. फ़ॉन डान सबसे पहले गर्म पानी से लबालब भरे टब में नहाना चाहेंगे, जिसमें वे आधे घंटे से ज्यादा देर तक पड़े रह सकें। मिसेज़ फ़ॉन डान केक पसंद करेंगी, दुसे को और कुछ नहीं बस अपनी शार्लोट से मुलाक़ात का ख़याल है और माँ को असली कॉफ़ी पीने की तलब है । पापा मि. वुश्कल से मिलने जाना चाहेंगे, पीटर शहर जाना चाहेगा और जहाँ तक मेरी बात है, मैं तो इतनी ज्यादा ख़ुश हो जाऊँगी कि समझ ही नहीं पाऊँगी कि कहाँ से शुरुआत करूँ ।

मुझे सबसे ज्यादा तड़प अपने घर की होती है, कहीं भी आज़ादी से आने जाने की और मेरे गृहकार्य में किसी की मदद लेने की इच्छा होती है। अन्य शब्दों में कहूँ, तो स्कूल जाना चाहती हूँ!

बेप ने हमारे लिए तथाकथित कम क़ीमत पर फल लाने की पेशकश की है : अंगूर 2.50 गिल्डर्स प्रति पाउंड, गूज़बेरी 70 सेंट प्रति पाउंड, एक आडू 50 सेंट, तरबूज़ 75 सेंट प्रति पाउंड । कोई आश्चर्य नहीं कि हर शाम अख़बारों में बड़े, मोटे अक्षरों में लिखा होता है: 'ईमानदार रहें और क़ीमतें कम रखें!'

सोमवार, 26 जुलाई, 1943

प्रिय किटी,

कल का दिन बहुत हलचल भरा रहा और हम अब भी तनाव में हैं। दरअसल, तुम्हें हैरानी हो सकती है कि हमारा शायद ही कोई दिन बिना किसी उत्तेजना के बीतता हो ।

पहली बार सुबह हमारे नाश्ता करते समय चेतावनी के सायरन बजे, लेकिन हमने ध्यान नहीं दिया, क्योंकि उसका मतलब था कि विमान तट को पार कर रहे थे। मुझे भयानक सिरदर्द हो रहा था, इसलिए नाश्ते के बाद मैं एक घंटा लेट गई और क़रीब दो बजे मैं दफ़्तर चली गई। ढाई बजे मारगोट ने अपना काम ख़त्म किया और वह अपना सामान समेट रही थी कि सायरन की आवाज़ फिर से गूंजने लगी। मैं और वह जल्दी से ऊपर गए। जल्दी ही, शायद पाँच मिनट बाद ही, बंदूकें इतनी तेज़ी से गरजने लगीं कि हम जाकर गलियारे में खड़े हो गए। घर हिलने लगा और बम गिरते रहे। मैं अपने 'एस्केप बैग' यानी साथ लेकर जाने वाले थैले को पकड़ रखा था, क्योंकि भागने के बजाय उस समय मैं किसी चीज़ को पकड़े रखना चाहती थी। मैं जानती हूँ कि हम इस जगह को नहीं छोड़ सकते, लेकिन अगर हमें जाना ही पड़े तो सड़कों पर देखा जाना भी उतना ही ख़तरनाक होगा, जितना कि हवाई हमले में फँसना। आधे घंटे बाद इंजनों की आवाज़ हल्की पड़ गई और घर में फिर चहलपहल शुरू हो गई। पीटर आगे की अटारी पर बनी अपनी चौकी से बाहर आ गया, दुसे फ्रंट ऑफ़िस में ही रहे, मिसेज़ फ़ॉन डी को प्राइवेट ऑफ़िस में सबसे सुरक्षित महसूस हो रहा था, मि. फ़ॉन डान ऊपर से देख रहे थे और बंदरगाह से उठते धुएँ को देखते हुए नीचे मौजूद थे। थोड़ी ही देर में आग की गंध सब तरफ़ थी और बाहर देखकर लगता था कि पूरा शहर धुंध की मोटी परत से घिरा था ।

इस तरह की बड़ी आग अच्छा नज़ारा नहीं है, लेकिन ख़ुशकिस्मती से हमारे लिए वह गुज़र चुकी थी और हम सब अपने कामों में लग गए। जब हम रात का खाना खा रहे थे, तो फिर से हवाई हमले की चेतावनी आई। खाना अच्छा था, लेकिन सायरन सुनते ही मेरी भूख मर गई। हालाँकि कुछ हुआ नहीं और पैंतालीस मिनट बाद सब कुछ साफ़ होने का संकेत आ गया। बर्तन धुलने के बाद एक और हवाई हमले की चेतावनी, गोलीबारी और जहाज़ों की आवाजें आने लगीं। 'हे भगवान, एक दिन में दो बार,' हमने सोचा, 'दो बार काफ़ी ज्यादा है।' एक बार फिर बमबारी हुई, इस बार शहर के दूसरे हिस्से में हुई। ब्रिटिश रिपोर्टों के अनुसार, स्किपहोल हवाई अड्डे पर बमबारी की गई। जहाज़ों ने गोते खाए और ऊपर उठे, हवा में इंजनों की आवाज़ गूँज रही थी। यह बहुत डरावना था और सारा समय मैं सोचती रही, 'यह आया, यही है।'

मैं तुम्हें बता सकती हूँ कि जब मैं नौ बजे सोने गई तो मेरी टाँगें काँप रही थीं। आधी रात को मैं फिर से जग गई; और जहाज़ थे! दुसे कपड़े बदल रहे थे, लेकिन मैंने गौर नहीं किया और गोली की पहली आवाज़ पर ही उछलकर उठी। एक बजे तक मैं पापा के बिस्तर पर रही, फिर डेढ़ बजे तक अपने बिस्तर पर और दो बजे वापस पापा के पास पहुँच गई। लेकिन विमान आते रहे। आखिरकार उन्होंने गोलीबारी बंद की और मैं फिर से अपने बिस्तर पर जा सकी। अंत में मैं ढाई बजे सो पाई।

सात बजे । मैं चौंककर जागी और बिस्तर पर बैठ गई। मि. फ़ॉन डान पापा के साथ थे। मुझे पहला ख़याल चोरी का आया। मैंने मि. फ़ॉन डान को 'सब कुछ' कहते सुना और सोचा कि सब कुछ चोरी हो गया है। लेकिन इस बार तो ख़बर अच्छी थी, कई महीनों में सबसे अच्छी ख़बर, शायद लड़ाई शुरू होने के बाद की सबसे अच्छी ख़बर । मुसोलिनी ने इस्तीफ़ा दे दिया है और इटली के राजा ने सत्ता सँभाल ली है।

हम ख़ुशी से उछल पड़े। कल की भयानक घटनाओं के बाद, आखिर में कुछ अच्छा हुआ और हमारे लिए लाया... उम्मीद ! लड़ाई ख़त्म होने की आशा, शांति की आशा ।

मि. कुगलर आए और उन्होंने बताया कि फुकर एयरक्राफ़्ट फ़ैक्टरी को बहुत नुक़सान हुआ है। इस बीच, आज सुबह एक और हवाई हमले की चेतावनी आई, विमान हवा में थे और एक और चेतावनी आई। अलार्म सुनकर मैं थक चुकी हूँ। मैं मुश्किल से सो पाई थी और काम तो मैं बिलकुल भी नहीं करना चाहती। लेकिन अब इटली को लेकर अनिश्चय की स्थिति और साल के अंत तक युद्ध समाप्त होने की आशा हमें जगाकर रखे हुए है....

तुम्हारी ऐन

बृहस्पतिवार, 29 जुलाई, 1943

प्रिय किटी,

मिसेज़ फ़ॉन डान और मैं बर्तन धो रहे थे और मैं बहुत ख़ामोश थी। यह मेरे लिए काफ़ी असामान्य है और बाक़ी सब उस पर गौर करते, इसलिए सवालों से बचने के लिए मैंने तुरंत अपने दिमाग़ पर किसी तटस्थ से विषय के बारे में सोचने के लिए ज़ोर डाला। मैंने सोचा कि हेनरी फ़ॉम अक्रॉस द स्ट्रीट पुस्तक सही रहेगी, लेकिन मैं उससे ज्यादा ग़लत नहीं हो सकती थी। अगर मिसेज़ फ़ॉन डान मुझे न डाँटें तो मि. दुसे वह काम कर देंगे। दरअसल, बात यह हुई कि मि. दुसे ने मारगोट और मुझे बढ़िया लेखन के उदाहरण के तौर पर वह किताब पढ़ने की सलाह दी थी। हमें वैसा नहीं लगा। नन्हें लड़के का वर्णन अच्छा था, लेकिन बाक़ी चीजें... उनके बारे में जितना कम कहा जाए, बेहतर होगा। बर्तन धोते हुए मैंने कुछ इसी तरह की बात की और दुसे बस शुरू हो गए।

'तुम किसी पुरुष का मनोविज्ञान कैसे समझ सकती हो? बच्चे की समझना उतना मुश्किल नहीं है! लेकिन उस तरह की किताब पढ़ने के लिहाज़ से तुम काफ़ी छोटी हो । यहाँ तक कि बीस साल का पुरुष भी उसे नहीं समझ पाएगा।' (तो फिर उन्होंने मारगोट और मुझे वह किताब पढ़ने की सलाह क्यों दी?)

मिसेज़ फ़ॉन डी और दुसे ने अपना ज़ोरदार हमला जारी रखा: 'तुम उन बातों के बारे में भी जानती हो, जो तुम्हें नहीं जाननी चाहिए। तुम्हारी परवरिश बहुत ग़लत ढंग से हुई है। बाद में बड़ी हो जाने पर तुम किसी भी चीज़ का आनंद नहीं ले सकोगी। तुम कहोगी, “अरे, यह तो मैंने बीस साल पहले किसी किताब में पढ़ा था। ” बेहतर है कि पति चुनने या प्यार में पड़ने के मामले में तुम जल्दी करो, क्योंकि हर किसी चीज़ से तुम निराश ही होगी । सिद्धांत के तौर पर तुम सब कुछ जानती हो । लेकिन व्यावहारिक तौर पर ? वह तो बिलकुल अलग बात है!'

क्या तुम कल्पना कर सकती हो कि मुझे कैसा लगा होगा? मैं तब ख़ुद ही हैरान रह गई, जब मैंने शांति से उन्हें जवाब दिया : 'आपको लग सकता है कि मेरी परवरिश सही ढंग से नहीं हुई, लेकिन कई लोग इस बात से असहमत होंगे! '

उनका शायद मानना है कि बच्चे की अच्छी परवरिश में मुझे मेरे माता-पिता के ख़िलाफ़ खड़ा करने की कोशिश शामिल है, क्योंकि वे हमेशा ऐसा ही करते। मेरी उम्र की लड़की को बड़ों से जुड़ी बातें न बताना ठीक है। हम सब देख सकते हैं जब ऐसे लोगों की वैसी परवरिश होती है।

उस पल मैं उन दोनों को मेरा मज़ाक उड़ाने के लिए तमाचा लगा सकती थी । मैं आपे से बाहर हो गई थी और अगर मुझे पता होता कि उनके साथ मुझे कितने दिन और झेलना है, तो दिन गिनना शुरू कर देती ।

मिसेज़ फ़ॉन डान से बात करना तो अलग ही है! वे अपने आप में एक नमूना हैं और वह भी बहुत बुरा नमूना ! वे बहुत आक्रामक, अहंकारी, कपटी, धूर्त और हमेशा असंतुष्ट रहने वाली के तौर पर जानी जाती हैं। इसमें घमंड और नख़रेबाज़ी जोड़ दें तो इस बात में कोई शक नहीं कि वे पूरी तरह से घृणित इंसान हैं। मैं मोहतरमा फ़ॉन डान पर एक पूरी किताब लिख सकती हूँ और कौन जानता है कि शायद किसी दिन लिख भी दूँ । कोई चाहे तो बाहर से आकर्षक मुखौटा लगा सकता है। मिसेज़ फ़ॉन डी अजनबियों, ख़ासकर, पुरुषों के साथ काफ़ी दोस्ताना हैं, इसलिए उनसे पहली बार मिलने पर ग़लती हो सकती है।

माँ सोचती हैं कि मिसेज़ फ़ॉन डी इतनी बेवकूफ़ हैं कि कहा नहीं जा सकता, मारगोट के मुताबिक वे महत्त्वहीन हैं, पिम को लगता है कि वे बहुत भद्दी (शाब्दिक व लाक्षणिक तौर पर !) हैं और काफ़ी समय तक देखने के बाद ( मैं शुरू में पूर्वाग्रह ग्रस्त नहीं होती) मैं भी इस नतीजे पर पहुँची हूँ कि उनमें ऊपर कही गई तीनों बातें हैं और इनके अलावा भी काफ़ी कुछ है। उनमें इतनी ख़ामियाँ हैं कि मैं केवल एक को ही अलग क्यों करूँ?

तुम्हारी, ऐन

पुनःश्च । क्या पाठक कृपया इस बात का ध्यान रखेंगे कि यह कहानी लेखिका के गुस्से के ठंडे होने से काफ़ी पहले लिखी गई थी।

मंगलवार, 3 अगस्त 1943

प्रिय किटी,

राजनीतिक मोर्चे पर हालात अच्छे हैं। इटली ने फ़ासिस्ट पार्टी को प्रतिबंधित कर दिया है। कई जगहों पर लोग फ़ासीवादियों से लड़ रहे हैं यहाँ तक कि सेना भी इस लड़ाई में शामिल हो गई है। ऐसा देश इंग्लैंड के ख़िलाफ़ लड़ाई कैसे जारी रख सकता है?

हमारे ख़ूबसूरत रेडियो को पिछले हफ़्ते हमसे छीन लिया गया। दुसे इस बात पर मि. कुगलर से बहुत नाराज़ थे कि उन्होंने उस दिन रेडियो चलाया। दुसे मेरी नज़रों में गिरते जा रहे हैं और वे शून्य पर पहुँच चुके हैं। राजनीति, इतिहास, भूगोल या किसी भी विषय पर वे जो कहते हैं, वह इतना अजीब होता है कि मैं उसे दोहराने की हिम्मत नहीं कर सकती: हिटलर इतिहास से लुप्त हो जाएगा; रोत्तरदाम का बंदरगाह हैमबर्ग की तुलना में बड़ा है; अंग्रेज़ बेवकूफ़ हैं, जो मौके का फायदा उठाकर इटली की धज्जियाँ उड़ाने के लिए बमबारी नहीं कर रहे हैं, वगैरह, वगैरह ।

अभी तीसरा हवाई हमला हुआ। मैंने अपने दाँत भींचने और साहसी बनने का अभ्यास करने का फ़ैसला किया।

हमेशा 'उन्हें गिरने दो' और 'समाप्त न होने के बजाय आवाज़ के साथ समाप्त होना बेहतर है,' जैसी बातें हमेशा कहने वाली मिसेज़ फ़ॉन डान हममें सबसे कायर हैं। आज सुबह वे पत्ते की तरह काँप रही थीं और आँसू तक बहाने लगी थीं। उनके पति ने उन्हें सांत्वना दी, जिनके साथ हफ़्ते भर चली तकरार के बाद उन्होंने हाल ही में समझौता किया था; उस नज़ारे को देखकर मैं भावुक होने लगी थी।

मूशी ने निस्संदेह अब यह साबित कर दिया है कि बिल्ली के होने से फ़ायदे भी हैं और नुकसान भी। पूरे घर में पिस्सू हो गए हैं और हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। मि. क्लेमन हर कोने में पीला पाउडर छिड़क रहे हैं, लेकिन पिस्सुओं पर उसका कोई असर नहीं हुआ है। इससे हम सब घबराए हुए हैं; हमें हर समय लगता है कि हमारी बाँहों, टाँगों या शरीर के बाक़ी हिस्सों पर कुछ काट रहा है और इसलिए हम उछलकर कसरत करने लगते हैं, क्योंकि उससे हम अपनी बाँहों या गरदन को अच्छी तरह देख सकते हैं। लेकिन अब हमें शारीरिक व्यायाम न करने हर्जाना भुगतना पड़ रहा है; हम इतने अकड़ गए हैं कि अपने सिर तक नहीं घुमा सकते। असली कसरत तो कब की छूट चुकी है।

तुम्हारी, ऐन

बुधवार, 4 अगस्त, 1943

प्रिय किटी,

हमें छिपते हुए एक साल से अधिक समय हो गया है, इसलिए तुम हमारी ज़िंदगी के बारे में काफ़ी कुछ जान चुकी हो। फिर भी मैं तुम्हें शायद सब कुछ नहीं बता सकती, क्योंकि सामान्य समय और सामान्य लोगों की तुलना में यह काफ़ी अलग है। इसके बावजूद अपनी ज़िंदगी को और क़रीब से दिखाने के लिए मैं एक आम दिन के हिस्से बारे में तुम्हें बताऊँगी। मैं शाम और रात से शुरू करूँगी।

शाम के नौ बजे: एनेक्स में सोने का समय हमेशा बहुत चहल-पहल के साथ शुरू होता है। कुर्सियाँ हटाई जाती हैं, बिस्तर निकाले जाते हैं, कम्बल खोले जाते हैं - कोई भी चीज़ उस जगह पर नहीं रहती, जहाँ दिन में होती है। मैं एक छोटे से दीवान पर सोती हूँ, जो सिर्फ़ पाँच फ़ीट लंबा है और इसलिए उसे लम्बा करने के लिए हमें उसके साथ कुर्सियाँ लगानी पड़ती हैं। रजाई गद्दे, चादरें, तकिए, कम्बल, सभी को दुसे के पलंग से निकालना पड़ता है, जहाँ उन्हें दिन में रखा जाता है।

बग़ल के कमरे में भयानक चरचराहट की आवाज़ आ रही है; मारगोट का फ़ोल्डिंग बेड लगाया जा रहा है। ज्यादा कम्बल, तकिए और ऐसा कुछ भी जिनसे लकड़ी की पट्टियों को ज्यादा आरामदेह बनाया जा सके। ऊपर से गड़गड़ाहट की आवाज़ आ रही है, क्योंकि मिसेज़ फ़ॉन डी के पलंग को खिड़की के पास धकेला जा रहा है, ताकि गुलाबी बेड जैकेट पहने हुए मोहतरमा अपनी नाजुक नाक से रात की हवा का मज़ा ले सकें।

नौ बजे: पीटर के आने के बाद अब गुसलखाने जाने की बारी मेरी है। मैं ख़ुद को सिर से पाँव तक साफ़ करती हूँ और अक्सर मुझे सिंक में कोई छोटा सा पिस्सू तैरता मिलता है (सिर्फ़ गर्मी के महीनों, हफ़्तों या दिनों में)। मैं दाँत साफ़ करती हूँ, अपने बाल मोड़ती हूँ, अपने नाख़ून साफ़ करती हूँ और अपने होंठों के ऊपर के बालों को ब्लीच करने के लिए पेरोऑक्साइड लगाती हूँ। यह सब मैं आधे घंटे में कर लेती हूँ।

साढ़े नौ बजे : मैं अपना गाउन पहनती हूँ। एक हाथ में साबुन और दूसरे टिन कैन, बालों की पिन्स, निकर्स, कर्लर्स और रुई लेकर मैं तेज़ी से गुसलखाने से निकलती हूँ। मेरे बाद जाने वाला मुझे सिंक में पड़े मेरे उन घुँघराले बालों को हटाने के लिए कहता है, जो मैं वहीं छोड़ आई थी।

दस बजे : ब्लैक-आउट स्क्रीन लगाने और शुभरात्रि कहने का समय है। कम से कम अगले पंद्रह मिनट तक घर में पलंगों के चरमराने और टूटे स्प्रिंग्स की आवाज़ें भरी होंगी और उसके बाद शांति होगी, बशर्ते हमारे ऊपर वाले पड़ोसी झगड़ा न करें।

साढ़े ग्यारह बजे गुसलखाने का दरवाज़ा चरमराता है। कमरे में थोड़ी सी रोशनी आती है। जूतों की आवाज़, एक बड़ा सा कोट, उसे पहने हुए आदमी से भी बड़ा... दुसे मि. कुगलर के ऑफ़िस से अपने रात के काम से लौट रहे हैं। मुझे दस मिनट तक उनके आगे-पीछे पैर घसीटकर चलने की, काग़ज़ की सरसराहट (अलमारी में खाना रखने) और बिस्तर लगाने की आवाज़ आती है । फिर वह आकृति ग़ायब हो जाती है और उसके बाद शौचालय से संदेहजनक आवाज़ें ही सुनाई पड़ती हैं।

लगभग तीन बजे: मुझे अपने बिस्तर के नीचे रखे डिब्बे यानी पॉटी का इस्तेमाल करने के लिए उठना पड़ेगा, उसके नीचे रबड़ का मैट लगा है, ताकि उसमें से कुछ बाहर न निकल जाए। उसका इस्तेमाल करते हुए मैं अपनी साँस रोककर रखती हूँ, क्योंकि उस समय किसी पहाड़ से गिरते झरने जैसी आवाज़ आती है। पॉटी अपनी जगह पर रख दी जाती है और सफ़ेद नाइट गाउन ( उसे देखकर हर शाम मारगोट कहती है, 'ओह, वही भद्दी नाइटी !') पहने वह आकृति वापस बिस्तर पर चढ़ जाती है। एक शख़्स है, जो रात की आवाज़ें सुनते हुए लगभग पंद्रह मिनट तक जगा रहता है। कहीं नीचे सेंधमारों की आवाज़ें तो नहीं और फिर यह जानने के लिए कि बाक़ी लोग सो रहे हैं या अधजगे हैं, वह ऊपर, बग़ल के कमरे और मेरे कमरे के पलंगों की आवाज़ों पर कान लगाता है। यह मज़ेदार नहीं है, ख़ासकर जब बात परिवार के दुसे नामक सदस्य से जुड़ी हो। पहले साँस लेती मछली की आवाज़ आती है और ऐसा नौ या दस बार होता है । फिर होंठ नम किए जाते हैं। उसके बाद थोड़ी चपत मारने की आवाज़ आती है, फिर काफ़ी देर तक तकियों के उलटने-पलटने व उन्हें लगाने की आवाज़ें आती हैं। पाँच मिनट की ख़ामोशी के बाद वही क्रम तीन बार और दोहराया जाता है और शायद उसके बाद वे थोड़ी देर के लिए सो जाते हैं।

कई बार एक और चार बजे के बीच गोलियाँ चलती हैं। उसके होने से पहले मुझे पता नहीं होता, लेकिन मैं अचानक आदतवश अपने बिस्तर के पास खड़ी हो जाती हूँ। कई बार मैं (फ्रेंच की अनियमित क्रियाओं या ऊपर के झगड़ों के) सपने देखने में इतनी डूबी होती हूँ कि मुझे उसके पूरा होने पर ही पता चलता है कि गोलीबारी रुक गई है और मैं ख़ामोशी से अपने कमरे में रही हूँ। लेकिन आमतौर पर मैं उठ जाती हूँ। फिर मैं अपना तकिया व रूमाल उठाती हूँ, अपना ड्रेसिंग गाउन व चप्पल पहनकर बग़ल में पापा के कमरे में चली जाती हूँ, ठीक उसी तरह जिस तरह मारगोट ने जन्मदिन की कविता में लिखा था:

रात के अँधेरे में जब चलती हैं गोलियाँ
दरवाज़ा खुलता है और दिखते हैं
रूमाल, तकिया और सफ़ेद कपड़ों में एक आकृति....

बड़े बिस्तर पर पहुँचने के बाद, अगर गोलीबारी बहुत तेज़ न हो, तो सब ठीक हो जाता है।

पौने सात बजे: अलार्म बजता है, जो दिन-रात किसी भी समय तेज़ आवाज़ करता है, आप चाहें या न चाहें। चर... ढम... मिसेज़ फ़ॉन डी उसे बंद करती हैं। चीं की आवाज़... मि. फ़ॉन डी उठते हैं और पानी पीकर तेज़ी से बाथरूम की तरफ़ बढ़ते हैं।

सवा सात बजे: फिर दरवाज़े की आवाज़ आती है। दुसे बाथरूम जा सकते हैं। आख़िरकार मैं अकेली हूँ, मैं ब्लैकआउट स्क्रीन हटाती हूँ और अनेक्स में एक नया दिन शुरू होता है।

तुम्हारी, ऐन

बृहस्पतिवार, 5 अगस्त, 1943

प्रिय किटी,

आज हम दोपहर के भोजन अवकाश की बात करते हैं।

साढ़े बारह बजे हैं। हम सभी राहत की साँस लेते हैं: मि. ड कॉक और संदेहात्मक अतीत वाले मि. फ़ॉन मारन खाने के लिए घर जा चुके हैं।

ऊपर आप मिसेज़ फ़ॉन डी के ख़ूबसूरत व एकमात्र कालीन पर वैक्यूम क्लीनर की आवाज़ सुन सकते हैं। मारगोट कुछ किताबें बग़ल में दबाकर 'स्लो लर्नर्स', जो कि दुसे हैं, की क्लास के लिए निकल पड़ती है । पिम अपने हमेशा के साथी डिकन्स के साथ कोने में बैठ जाते हैं इस उम्मीद में कि उन्हें थोड़ी ख़ामोशी और सुकून मिल सकेगा। माँ व्यस्त घरेलू महिला की मदद के लिए जल्दी से ऊपर जाती हैं और मैं बाथरूम व ख़ुद को एक साथ साफ़ करती हूँ ।

पौने एक: एक-एक करके वे आते हैं: मि. गीज़ और फिर या तो मि. क्लेमन या मि. कुगलर और उनके बाद बेप और कई बार मीप भी।

एक: रेडियो के आसपास जमा सभी लोग ध्यान से बीबीसी सुनते हैं। यही वह समय होता है, जब अनेक्स परिवार के सदस्य एक-दूसरे को नहीं टोकते, क्योंकि मि. फ़ॉन डान भी वक्ता के साथ बहस नहीं कर सकते।

सवा एक: खाना बँटता है। नीचे वाले सभी लोगों को एक कप सूप और पुडिंग, अगर हो तो, मिलती है। संतुष्ट मि. गीज़ दीवान पर बैठते हैं या फिर डेस्क पर टिककर अपने अख़बार व कप के साथ बैठते हैं और अक्सर उनके साथ बिल्ली भी होती है। अगर इन तीनों में से कोई एक न हो, तो वे अपना विरोध दर्ज कराने में संकोच नहीं करते। मि. क्लेमन शहर से ताज़ा ख़बर देते हैं और वे ख़बरों का बेहतरीन ज़रिया हैं। मि. कुगलर तेजी से सीढ़ियाँ चढ़ते हैं, दरवाज़े पर छोटी, लेकिन ठोस दस्तक देते हैं और हाथ ऐंठते हुए या ख़ुशी से उन्हें मलते हुए अंदर पहुँचते हैं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि वे बुरे मूड में शांत हैं या फिर बातूनी हैं और अच्छे मूड में हैं।

पौने दो सब लोग मेज से खड़े होते हैं और अपने काम में लग जाते हैं। मारगोट व माँ बर्तन धोने लगती हैं, मि. व मिसेज़ फ़ॉन डी दीवान की तरफ़, पीटर अटारी की ओर, पापा व दुसे भी अपने दीवान की ओर चल पड़ते हैं और ऐन अपना होमवर्क करने लगती है।

अगला घंटा दिन भर का सबसे शांत घंटा होता है; जब वे सभी सो जाते हैं, तो कोई व्यवधान नहीं होता । चेहरे से पता चल रहा है कि दुसे खाने का सपना देख रहे हैं। मैं उन्हें ज्यादा देर तक नहीं देखती, क्योंकि वक़्त तेज़ी से बीत जाता है और चार बज जाते हैं। समय को लेकर सतर्क डॉ. दुसे हाथ में घड़ी लेकर खड़े होंगे, क्योंकि मैंने मेज साफ़ करने में एक मिनट की देरी कर दी है।

तुम्हारी, ऐन

शनिवार, 7 अगस्त, 1943

प्रिय किटी,

कुछ हफ़्ते पहले, मैंने एक कहानी लिखनी शुरू की, जो शुरू से आखिर तक मेरी कल्पना थी। मुझे इतना मज़ा आया कि अब मैं काफ़ी कुछ लिख चुकी हूँ।

तुम्हारी, ऐन

सोमवार, 9 अगस्त, 1943

प्रिय किटी,

अब हम अनेक्स के आम दिन की बात जारी रखेंगे। हम खाना खा चुके हैं, इसलिए अब रात के खाने का समय है।

मि. फ़ॉन डान: उन्हें सबसे पहले खाना मिलता है और वे अपनी पसंद की चीज़ का बड़ा सा हिस्सा लेते हैं। अक्सर बातचीत में भाग लेते हैं और अपनी राय देने से बाज़ नहीं आते। उनकी बात पत्थर की लकीर है। अगर कोई दूसरा सुझाव देता है, तो मि. फ़ॉन डी उससे भिड़ सकते हैं। वे बिल्ली की तरह गुर्राते हैं... लेकिन बेहतर है कि वे ऐसा न करें। एक बार आपने देखा हो, तो आप दोबारा नहीं देखना चाहेंगे। उनकी राय सबसे अच्छी है. वे हर चीज़ के बारे में सबसे ज्यादा जानते हैं। माना कि उनका दिमाग़ अच्छा है, लेकिन काफ़ी अहंकार से भरा है।

मैडम: सबसे अच्छा यही है कि कुछ न कहा जाए। जिन दिनों उनका मूड ख़राब होता है, उन दिनों उनके चेहरे का पढ़ पाना मुश्किल होता है। अगर आप बातचीत का विश्लेषण करें, तो आप पाएँगे कि वे उसका विषय नहीं होती, बल्कि कसूरवार पक्ष होती हैं! एक ऐसा तथ्य, जिसे हर कोई नज़रअंदाज़ करना पसंद करता है। फिर भी, आप उन्हें भड़काने वाली कह सकते हैं। झगड़े को हवा देना उनके मुताबिक़ मज़ाक है। मिसेज़ फ़्रैंक और ऐन के बीच क्लेश करवाना। मारगोट और मि. फ़्रैंक के बीच ऐसा करना आसान नहीं है।

हम वापस मेज़ की तरफ़ चलते हैं। मिसेज़ फ़ॉन डी को लग सकता है कि उन्हें हमेशा पर्याप्त नहीं मिलता, लेकिन ऐसा है नहीं। सबसे अच्छे आलू, सबसे स्वादिष्ट निवाला, वहाँ मौजूद सबसे स्वादिष्ट चीज़ लेना मैडम का लक्ष्य होता है। बाक़ी अपनी बारी में जो चाहे लें, बशर्ते मुझे सबसे अच्छी चीज़ मिले। (ठीक यही आरोप वे ऐन फ्रैंक पर लगाती हैं।) उनका दूसरा नारा है: बात करते रहो। कोई सुनने वाला होना चाहिए, लेकिन इस बात की उन्हें परवाह नहीं होती कि सुनने वाले की दिलचस्पी उनकी बात में है भी या नहीं। वे तो सोचती हैं कि मिसेज़ फ़ॉन डान की बात में हर कोई दिलचस्पी लेगा।

नखरे से मुस्कराना, यह दिखाना कि आप सब कुछ जानते हैं, हर किसी को सलाह देना और उनकी माँ बनना उससे निश्चय ही अच्छा प्रभाव पड़ता है। लेकिन ध्यान से देखने पर अच्छा प्रभाव फीका पड़ने लगता है। एक, वे मेहनती हैं; दो, हँसमुख हैं; तीसरे, नखरेबाज़ हैं - कभी- कभार एक प्यारा चेहरा भी। यही पेट्रोनेला फ़ॉन डान हैं।

भोजन करने वाले तीसरे व्यक्तिः बहुत कम बात करते हैं। युवा मि. फ़ॉन डान अक्सर चुप रहते हैं और शायद ही कभी अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते हैं। जहाँ तक उनकी खुराक का सवाल है, तो वह डैनाइडियन (ग्रीक माइथॉलोजी में इनॉस की बेटियों को अपने पिता के कहने पर अपने पतियों को मारने के बदले यह सज़ा मिली थी कि वे एक छेद वाले बर्तन में पानी डालती रहें) बर्तन की तरह है, जो कभी नहीं भरता। बड़ी मात्र में भोजन के बाद भी वे बहुत आराम से कह सकते हैं कि वे उससे दोगुना भी खा सकते थे।

चौथी शख़्स - मारगोट: चिड़िया की तरह खाती है और बिलकुल बात नहीं करती। वह सिर्फ़ फल-सब्ज़ियाँ खाती है। फ़ॉन डान परिवार की राय में वह 'बिगड़ी' हुई है। हमारी राय यह है कि उसका कारण 'बहुत कम व्यायाम और ताज़ा हवा न पाना' है।

उसके बग़ल में - माँ हैं: उनकी ख़ुराक अच्छी है और वे बातें भी करती हैं। मिसेज़ फ़ॉन डान की तरह उनका घरेलू महिला के तौर पर कोई प्रभाव नहीं है। दोनों के बीच क्या फ़र्क़ है? यही कि मिसेज़ फ़ॉन डी खाना बनाती हैं, जबकि माँ बर्तन धोती हैं और फ़र्नीचर को पॉलिश करती हैं।

छह और सात: मैं पापा और अपने बारे में ज्यादा कुछ नहीं कहूँगी। पापा मेज़ पर मौजूद सबसे विनम्र व्यक्ति हैं। वे हमेशा ध्यान रखते हैं कि बाक़ी लोगों को पहले खाना मिले। उन्हें अपने लिए कुछ भी नहीं चाहिए; सबसे अच्छी चीज़ें बच्चों के लिए हैं। वे अच्छाई का साकार रूप हैं। उनकी बग़ल में अनेक्स की सबसे घबराई हुई इंसान बैठी है।

दुसे: अपना हिस्सा लो। खाने पर नज़र रखो, खाओ और बात मत करो। अगर कुछ कहना भी है, तो बस खाने की बात करो। उससे झगड़ा नहीं होता, लेकिन शेखी बघारने का मौका मिलता है। वे काफ़ी खाना खाते हैं और 'न' शब्द उनकी शब्दावली में नहीं है, चाहे खाना अच्छा हो या बुरा।

छाती तक पहुँचने वाली पतलून, लाल जैकेट, चमड़े की काली चप्पल और सींग की कमानी वाला चश्मा, अपनी मेज पर काम करते हुए वे ऐसे ही दिखते हैं, हमेशा पढ़ते हुए, लेकिन कभी आगे न बढ़ते हुए । बीच में दिन की झपकी, खाना और उनका प्रिय काम शौचालय जाना होता है। दिन में तीन, चार या पाँच बार शौचालय के दरवाज़े पर बड़ी मुश्किल से रोकने की कोशिश करते हुए कोई न कोई इंतज़ार कर रहा होता है। लेकिन दुसे को क्या परवाह है ? रत्ती भर भी नहीं। सवा सात से साढ़े सात, साढ़े बारह से एक, दो से ढाई, चार से सवा चार, छह से सवा छह, साढ़े ग्यारह से बारह बजे तक। आप अपनी घड़ी मिला सकते हैं, ये उनका 'नियमित' समय है। वे कभी इससे नहीं डिगते और न ही बाहर से उनसे जल्दी आने की विनती करने या किसी मुसीबत की आशंका व्यक्त करने वाली आवाज़ों का उन पर कोई असर पड़ता है।

नौंवा व्यक्ति: हमारे अनेक्स परिवार का हिस्सा नहीं है, हालाँकि वह हमारे घर व हमारी मेज़ की साझीदार है। बेप अच्छी तरह खाती हैं। अपनी प्लेट साफ़ करती हैं और नखरे नहीं करतीं। बेप को ख़ुश करना आसान है और उससे हमें ख़ुशी मिलती है। उनका वर्णन इस तरह किया जा सकता है: खुशमिज़ाज, नेकदिल, दयालु और मदद के लिए हमेशा तैयार ।

मंगलवार, 10 अगस्त, 1943

प्रिय किटी,

खाने के दौरान एक नया ख़याल आया है कि मैं बाक़ी लोगों के बजाय ख़ुद से बात करूँ, जिससे दो फ़ायदे हैं। एक, वे ख़ुश रहेंगे कि उन्हें मेरी लगातार बकबक नहीं सुननी पड़ रही है और दूसरे, मुझे उनकी राय से कोई चिढ़ नहीं होगी। मुझे नहीं लगता कि मेरे ख़याल बेवकूफ़ी भरे हैं, लेकिन बाक़ियों को ऐसा लगता है, इसलिए उन्हें अपने तक रखना बेहतर है। मैं तब भी यही तरीका अपनाती हूँ, जब मुझे एकसा कुछ खाना हो, जो मुझे सख़्त नापसंद हो। मैं उसे अपने सामने रखती हूँ, उसके स्वादिष्ट होने का दिखावा करती हूँ, उसकी तरफ़ देखने से बचती हूँ और मेरे समझने से पहले ही वह ख़त्म हो जाता है। सुबह का समय भी मेरे लिए अप्रिय होता है, जब मैं उठती हूँ। मैं बिस्तर से निकलती हूँ और ख़ुद से कहती हूँ, 'तुम जल्दी फिर से बिस्तर में घुस जाओगी,' खिड़की तक जाती हूँ, ब्लैक-आउट स्क्रीन हटाती हूँ, दरार से थोड़ी सी ताज़ा हवा लेती हूँ और जग जाती हूँ। मैं बहुत तेज़ी से बिस्तर उठाती हूँ, ताकि मुझे फिर सोने का लालच न हो। क्या तुम जानती हो कि माँ इस तरह के काम को क्या कहती हैं? जीने की कला। क्या ये अजीब सी बात नहीं है?

हम भी पिछले हफ़्ते थोड़े असमंजस में रहे, क्योंकि हमारी प्यारी वेस्टरटोरेन घंटियों को युद्ध में इस्तेमाल के लिए पिघलाने ले जाया गया है। इस कारण हमें दिन या रात के सही समय का पता नहीं चल रहा। मुझे अब भी उम्मीद है कि वे टिन या ताँबे या किसी और चीज़ का इस्तेमाल करेंगे, ताकि यहाँ के लोगों को घड़ी की याद रह सके।

मैं ऊपर-नीचे कहीं भी जाती हूँ, तो सभी लोग मेरे पैरों की ओर प्रशंसा भरी दृष्टि से देखते हैं, जिन पर बहुत ही ख़ूबसूरत (ख़ासकर ऐसे समय में!) जूते हैं। मीप ने 27.50 गिल्डर्स में उन्हें ख़रीदा। गहरे जामुनी रंग के चमड़े की मध्यम आकार की एड़ी वाले जूते । मुझे लगा कि मैं जैसे डंडों पर चल रही थी और मैं काफ़ी लंबी लग रही थी ।

कल मेरा बुरा दिन था। एक बड़ी सी सुई का भोथरा सिरा मेरे दाएँ अँगूठे में चुभ गया। नतीजतन, मारगोट को मेरी जगह आलू छीलने पड़े (अच्छे के साथ बुरे को भी अपनाना पड़ेगा) और मेरी लिखावट अजीब सी हो गई। उसके बाद मैं अलमारी के दरवाज़े से इतनी ज़ोर से टकराई कि मैं गिरते-गिरते बची और धमाचौकड़ी मचाने के लिए मुझे डाँट भी पड़ी। अपने माथे को धोने के लिए उन्होंने मुझे पानी तक नहीं चलाने दिया और अब मैं दाईं आँख के ऊपर बड़ा सा गूमड़ लेकर घूम रही हूँ। हालात और भी बदतर हो गए, जब मेरे दाएँ पैर की छोटी अँगुली वैक्यूम क्लीनर में फँस गई। उससे चोट लगी और ख़ून निकला, लेकिन मेरी बाक़ी तकलीफ़ें मुझे इतना परेशान कर रही थीं कि मैंने इस पर ध्यान नहीं दिया, जो कि बहुत बड़ी मूर्खता थी। अब मेरी वही अँगुली संक्रमित हो गई है। मरहम-पट्टी और टेप के कारण मैं अपने ख़ूबसूरत जूते नहीं पहन पा रही हूँ।

दुसे ने फिर एक बार हमें ख़तरे में डाल दिया। उन्होंने मीप से मुसोलिनी विरोधी एक किताब मँगवाई, जो कि प्रतिबंधित है। रास्ते में उन्हें एक एसएस मोटरबाइक ने टक्कर मारी। गुस्से में आकर वे चिल्लाईं, 'अरे जानवरों !' और अपने रास्ते चली गईं। मैं यह सोचने की जुर्रत भी नहीं कर सकती कि अगर उन्हें मुख्यालय ले जाया जाता, तो क्या कुछ हो सकता था।

तुम्हारी, ऐन

हमारे छोटे से समुदाय में एक दैनिक काम: आलू छीलना!

एक व्यक्ति कुछ अख़बार लेने जाता है; दूसरा छुरियाँ (ज़ाहिर है, सबसे अच्छी अपने लिए रखता है); तीसरा, आलू लेने और चौथा जाता है पानी लेने ।

मि. दुसे शुरू करते हैं। वे उन्हें बहुत अच्छी तरह भले न छीलें, लेकिन लगातार छीलते हैं और साथ ही दाएँ-बाएँ देखते हैं कि सभी उनकी तरह काम कर रहे हैं या नहीं। नहीं, वे नहीं करते!

'देखो, ऐन, मैं इस तरह छीलनी अपने हाथ में ले रहा हूँ और ऊपर से नीचे ले जाता हूँ! नहीं, ऐसे नहीं... ऐसे ! '

'मेरे ख़याल से मेरा तरीक़ा आसान है, मि. दुसे,' मैं अंदाज़ से कहती हूँ।

'लेकिन यही सबसे अच्छा तरीका है, ऐन। तुम ऐसा कर सकती हो। लेकिन अगर नहीं, तो अपने तरीक़े से करो । '

हम अपना काम करते रहते हैं। मैं कनखियों से दुसे की तरफ़ देखती हूँ। ख़यालों में डूबे हुए वे अपना सिर हिलाते (निस्संदेह मेरी किसी बात पर) हैं, लेकिन कुछ नहीं कहते।

मैं छीलने में लगी रहती हूँ। फिर मैं अपने दूसरी ओर बैठे पापा की तरफ़ देखती हूँ। उनके लिए आलू छीलना उबाऊ काम नहीं है, बल्कि सूक्ष्म काम है। जब वे पढ़ते हैं, तो उनके सिर के पीछे गहरी शिकन बन जाती है। लेकिन आलू, फली या कोई अन्य सब्ज़ी की तैयारी करते हुए वे उसमें पूरी तरह डूब जाते हैं। वे आलू छीलने वाला चेहरा लगा लेते हैं और उस ख़ास तरह की स्थिति में वे बेहतरीन ढंग से आलू छीलते हैं।

मैं काम करती रहती हूँ। मैं एक सेकेंड के लिए ऊपर देखती हूँ और मुझे बस उतने ही समय की ज़रूरत होती है। मिसेज़ फ़ॉन डी दुसे का ध्यान अपनी तरफ़ खींचने की कोशिश कर रही हैं। वे उनकी तरफ़ घूरती हैं, लेकिन दुसे गौर न करने का दिखावा करते हैं। वे पलकें झपकाती हैं, लेकिन दुसे छीलने में लगे रहते हैं। वे हँसती हैं, लेकिन दुसे फिर भी ऊपर नहीं देखते। फिर माँ भी हँसती हैं, लेकिन दुसे उनकी तरफ़ ध्यान नहीं देते। अपना लक्ष्य पाने में असफल रहने पर मिसेज़ फ़ॉन डी को अपने तरीक़े बदलने पड़ते हैं। थोड़ी देर ख़ामोशी रहती है, फिर वे कहती हैं, 'पुत्ती, आप ऐप्रन क्यों नहीं लगा लेते? वरना मुझे कल का पूरा दिन आपके सूट से धब्बे छुड़ाने में लगाना पड़ेगा!

'मैं इसे गंदा नहीं कर रहा । '

फिर छोटी सी ख़ामोशी । 'पुत्ती, आप बैठ क्यों नहीं जाते?'

'मैं ऐसे ही ठीक हूँ !'

खामोशी ।

'पुत्ती, ध्यान से, आपने छींटे उड़ा दिए !'

'जानता हूँ, मम्मी, लेकिन मैं सावधानी से कर रहा हूँ।'

मिसेज़ फ़ॉन डी दूसरा विषय खोजती हैं। 'पुत्ती, ब्रिटिश आज कोई हवाई हमला क्यों नहीं कर रहे?'

'क्योंकि मौसम ख़राब है, केर्लि! '

'लेकिन कल तो बहुत अच्छा मौसम था और कल भी वे नहीं उड़ रहे थे। '

'इस विषय को छोड़ देते हैं। '

'क्यों? क्या कोई इंसान उस पर बात नहीं कर सकता या अपनी राय नहीं दे सकता?'

'नहीं!'

'लेकिन क्यों?'

'अरे, चुप हो जाओ, मम्मी!'

'मि. फ्रैंक हमेशा अपनी पत्नी के सवालों का जवाब देते हैं।'

मि. फ़ॉन डी ख़ुद पर नियंत्रण करने की कोशिश कर रहे हैं। यह टिप्पणी उन पर उल्टा असर करती है, लेकिन मिसेज़ फ़ॉन डी हार मानने वाली नहीं हैं: 'ओह, कोई आक्रमण नहीं होगा ! '

मि. फ़ॉन डी फक पड़ जाते हैं और जब मिसेज़ फ़ॉन डी देखती हैं तो वे लाल हो जाती हैं, लेकिन उन्हें डिगाना आसान नहीं : 'ब्रिटिश कुछ भी नहीं कर रहे !'

बम फूट जाता है। 'बस अब मुँह बंद करो, इतना मत चिल्लाओ!'

माँ मुश्किल से अपनी हँसी दबाती हैं और मैं बस सामने घूरती हूँ।

अगर दोनों के बीच कोई भयानक झगड़ा न हुआ हो, तो इस तरह के दृश्य लगभग रोज़ दोहराए जाते हैं। झगड़ा होने पर दोनों ही कुछ नहीं बोलते।

मैं थोड़े और आलू लेने के लिए अटारी पर जाती हूँ, जहाँ पीटर बिल्ली के पिस्सू निकालने में लगा है। वह ऊपर देखता है, बिल्ली गौर करती है और सीधे निकल जाती है। खिड़की के बाहर बारिश की नाली में ।

पीटर गाली देता है; मैं हँसते हुए कमरे से बाहर निकल जाती हूँ।

अनेक्स में आज़ादी

साढ़े पाँच बजे : बेप का आना हमारी रात की आज़ादी का संकेत है। हर कोई सक्रिय हो जाता है। मैं बेप के साथ ऊपर जाती हूँ, जो अक्सर हमसे पहले अपनी पुडिंग ले लेती है। जैसे ही वे बैठती हैं, मिसेज़ फ़ॉन डी अपनी इच्छाएँ व्यक्त करने लगती हैं। उनकी सूची अक्सर इस तरह शुरू होती है, 'अरे, बेप वैसे मैं कुछ और चाहती....' बेप मुझे आँख मारती हैं। जो कोई भी ऊपर आता है, मिसेज़ फ़ॉन डी उसे अपनी इच्छाएँ बताने का कोई मौका नहीं चूकती। शायद यही एक वजह होगी कि उनमें से कोई भी ऊपर नहीं जाना चाहता।

पौने छह बजे : बेप चली जाती हैं। मैं दो मंज़िल नीचे जाकर निरीक्षण करती हूँ। पहले रसोईघर, फिर प्राइवेट ऑफ़िस और फिर कोयला भंडार जाकर मूशी के लिए छोटा दरवाज़ा खोलती हूँ।

अपने लंबे निरीक्षण दौरे के बाद मैं मि. कुगलर के दफ़्तर पहुँचती हूँ। मि. फ़ॉन डान आज की डाक के लिए सभी दराज़ों व फ़ाइलों की छानबीन रहे हैं। पीटर बॉश और गोदाम की चाबी उठाता है; पिम टाइपराइटर्स ऊपर ले जाते हैं; मारगोट अपने दफ़्तर का काम करने के लिए कोई शांत कोना ढूँढ़ती है; मिसेज़ फ़ॉन डी गैस पर पानी की केतली रखती हैं; माँ आलुओं का बर्तन लेकर नीचे आती हैं; हम सभी अपना काम जानते हैं।

जल्दी ही पीटर गोदाम से वापस आ जाता है। उससे पहला प्रश्न यह पूछा जाता है कि क्या उसे ब्रेड लाना याद रहा। नहीं, उसे याद नहीं रहा। वह फ्रंट ऑफ़िस जाने वाले दरवाज़े के सामने खुद को सिकोड़कर झुकता है, अपने हाथों व घुटनों के बल रेंगता हुआ स्टील कैबिनेट तक पहुँचता है, ब्रेड निकालता है और जाने लगता है। वह यही करना चाहता है, लेकिन इससे पहले कि वह जाने कि क्या हुआ है, मूशी उस पर से कूदकर डेस्क के नीचे बैठने चली जाती है।

पीटर अपने आसपास देखता है। वह रही बिल्ली ! वह रेंगकर वापस कार्यालय में जाता है और बिल्ली की पूँछ पकड़ लेता है। मूशी गुर्राती है, पीटर गहरी साँस लेता है। उसने क्या हासिल किया? मूशी अब खिड़की पर बैठी ख़ुद को चाट रही है और पीटर के चंगुल से निकल भागने पर बहुत ख़ुश है। पीटर के पास ब्रेड दिखाकर उसे लुभाने के सिवा कोई और चारा नहीं है। मूशी लालच में आकर उसके पीछे आती है और दरवाज़ा बंद हो जाता है।

मैं दरवाज़े की दरार से पूरा दृश्य देखती हूँ।

मि. फ़ॉन डान गुस्से में दरवाज़ा धड़ाम से बंद करते हैं। मारगोट और मेरी नज़रें मिलती हैं और हम एक ही बात सोचते हैं: मि. कुगलर की किसी ग़लती के कारण वे आगबबूला हो रहे हैं और बग़ल में मौजूद केग कंपनी के बारे में बिलकुल भूल गए हैं।

गलियारे में क़दमों की आवाज़ आती है। दुसे अंदर आते हैं, अपने अंदाज़ में खिड़की की तरफ़ बढ़ते हैं, साँस खींचते हैं... खाँसते हैं, छींकते हैं और अपना गला साफ़ करते हैं। उनकी बदकिस्मती से वह काली मिर्च थी। वे फ्रंट ऑफ़िस की तरफ़ बढ़ते हैं। परदे खुले हैं, जिसका मतलब है कि वे अपने काग़ज़ नहीं ले सकते। वे त्योरियाँ चढ़ाकर ग़ायब हो जाते हैं।

मारगोट और मैं फिर एक-दूसरे को देखते हैं। 'उनकी प्रिया के लिए कल एक काग़ज़ कम होगा,' मारगोट कहती है। मैं सहमति में सिर हिलाती हूँ।

सीढ़ियों पर हाथी की पदचाप जैसी आवाज़ आती है। ये दुसे हैं, अपनी पसंदीदा जगह पर सुकून पाने की कोशिश कर रहे हैं।

हम काम में लगे रहते हैं। खट खट खट... तीन बार दस्तक का मतलब है, रात के खाने का समय!

सोमवार, 23 अगस्त, 1943

जब घड़ी साढ़े आठ बजाती है!

मारगोट और माँ घबराई हुई हैं। 'श्श्श्श्... पापा । चुप रहिए, ऑटो । श्श्श्श्... पिम! साढ़े आठ हो गए हैं। यहाँ आइए, आप अब पानी नहीं चला सकते। धीरे चलिए!' पापा को गुसलखाने में कही जाने वाली बातों का एक नमूना है यह। साढ़े आठ बजने पर उन्हें बैठक में होना चाहिए। पानी नहीं चलाना, फ़्लश नहीं करना, कोई चहलकदमी नहीं, किसी तरह की कोई आवाज़ नहीं । जब तक दफ़्तर के कर्मचारी नहीं आ जाते, तब तक आवाज़े आसानी से गोदाम तक पहुँचती हैं।

आठ बीस पर ऊपर का दरवाज़ा खुलता है और उसके बाद दरवाज़े पर तीन बार हल्की दस्तक दी जाती है... ऐन का दलिया । मैं सीढ़ियों पर चढ़कर अपना कटोरा लेने जाती हूँ।

नीचे सब कुछ बहुत तेज़ी से किया जाना है: मैं अपने बाल बनाती हूँ, पॉटी को रखती हूँ, बिस्तर को उसकी जगह पर वापस रखती हूँ। शांत ! घड़ी साढ़े आठ बजा रही है! मिसेज़ फ़ॉन डी अपने जूते बदलती हैं और चप्पलें रगड़ते हुए कमरे में चलती हैं; मि. फ़ॉन डी भी असली चार्ली चैपलिन । सब कुछ शांत है।

आदर्श परिवार का दृश्य अब अपने चरम पर पहुँच चुका है। मैं पढ़ना चाहती हूँ और मारगोट भी। पापा और माँ भी। पापा लटके हुए, चरमराते पलंग के किनारे पर (डिकेन्स और शब्दकोश को लेकर) बैठे हैं, जिस पर ढंग के गद्दे तक नही हैं। दो गोल तकिए एक-दूसरे पर रखे जा सकते हैं। 'मुझे इनकी ज़रूरत नहीं है,' वे सोचते हैं। 'मैं इनके बिना काम चला लूँगा ! '

एक बार पढ़ना शुरू करने पर वे ऊपर नहीं देखते। वे बीच-बीच में हँसते हैं और माँ को भी कहानी पढ़ाने की कोशिश करते हैं।

'मेरे पास अभी समय नहीं है!'

वे निराश दिखते हैं, लेकिन फिर पढ़ना जारी रखते हैं। थोड़ी देर बाद किसी अच्छे अंश के आने पर वे फिर से कोशिश करते हैं: 'तुम्हें यह पढ़ना चाहिए, माँ ! '

माँ फ़ोल्डिंग बेड पर बैठकर पढ़ रही होती हैं, सिलाई-बुनाई या फिर वह काम कर रही होती हैं, जो उनकी सूची में हो । अचानक उन्हें कोई ख़याल आता है,क्योंकि वे इतनी तेज़ी से बोलती हैं कि कहीं भूल न जाएँ, 'ऐन, याद रखना... मारगोट इसे लिख लो...'

थोड़ी देर बाद फिर सब कुछ शांत हो जाता है। मारगोट ज़ोर से अपनी किताब बंद करती है; पापा के माथे पर बल पड़ते हैं, उनकी भौंहें अजीब सा वक्र बनाती हैं और उनके सिर के पीछे तन्मयता की सिलवट फिर से बन जाती है और वे फिर से किताब में डूब जाते हैं। माँ मारगोट से बातचीत करने लगती है और मैं भी उत्सुकतावश सुनने लगती हूँ । पिम भी बातचीत में शामिल हो जाते हैं... नौ बज गए। नाश्ता!

शुक्रवार, 10 सितंबर, 1943

प्रिय किटी,

जब भी मैं तुम्हें लिखती हूँ, कुछ ख़ास हो चुका होता है, जो कि ख़ुशनुमा होने के बजाय बुरा ज्यादा होता है। इस बार, हालाँकि कुछ अच्छा हो रहा है।

बुधवार, 8 सितंबर को हम सात बजे के समाचार सुन रहे थे कि हमने एक घोषणा सुनी: 'अब है, लड़ाई की अब तक की सबसे बेहतरीन ख़बर : इटली ने हथियार डाल दिए हैं।' इटली ने बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दिया है ! इंग्लैंड से सवा आठ बजे से होने वाला डच प्रसारण इस समाचार के साथ शुरू हुआ: 'श्रोताओं, सवा घंटे पहले जैसे ही मैंने अपनी दैनिक रिपोर्ट लिखनी समाप्त की, हमें इटली के आत्मसमर्पण का अनोखा समाचार मिला। मैं आपको बताऊँ कि मैंने कभी इतनी ख़ुशी से अपने नोट्स कचरे के डिब्बे में नहीं डाले, जितने कि आज!'

'गॉड सेव द किंग,' अमेरिकी राष्ट्रगान और रूसी 'इंटरनेशनल' बजाए गए। हमेशा की तरह डच कार्यक्रम अत्यधिक आशावादी न होते हुए भी प्रेरक था।

ब्रिटिश नेपल्स में पहुँच चुके हैं। उत्तरी इटली पर जर्मनी का कब्ज़ा है। शुक्रवार, 3 सितंबर को, ब्रिटिश के इटली पहुँचने के दिन युद्धविराम पर हस्ताक्षर किए गए। बदॉलियो और इटली के राजा के छल को लेकर जर्मनों की चीख़-चिल्लाहट सभी अख़बारों में भरी है।

फिर भी बुरी ख़बर भी है। यह मि. क्लेमन के बारे में है। जैसा कि तुम जानती हो कि वे हम सबको बहुत अच्छे लगते हैं। वे इस तथ्य के बावजूद कि वे हमेशा बीमार व दर्द में रहते हैं और ज्यादा नहीं खा सकते या फिर चल नहीं सकते, वे हमेशा खुश रहते हैं और आश्चर्यजनक तौर पर बहादुर हैं। 'जब मि. क्लेमन किसी कमरे में पहुँचते हैं, तो सूरज चमकने लगता है,' हाल ही में माँ ने कहा और वे बिलकुल सही थीं। अब लगता है कि उन्हें पेट के जटिल से ऑपरेशन के लिए अस्पताल जाना होगा और कम से कम चार हफ़्ते वहाँ रहना होगा। तुम्हें उन्हें देखना चाहिए था, जब वे हमें विदा कह रहे थे । वे बहुत सामान्य बर्ताव कर रहे थे, जैसे कि किसी काम के लिए जा रहे हों।

तुम्हारी, ऐन

बृहस्पतिवार, 16 सितंबर, 1943

प्रिय किटी,

यहाँ अनेक्स में रिश्ते ख़राब होते जा रहे हैं। हम खाने के समय अपना मुँह खोलने की जुर्रत नहीं (सिर्फ़ खाना खाने के लिए अलावा) करते, क्योंकि हम चाहे जो कुछ कहें, कोई न कोई उसका विरोध करेगा या फिर उसे ग़लत ढंग से समझेगा। मि. वुश्कल कभी-कभार हमसे मिलने आते हैं। बदकिस्मती से उनकी हालत अच्छी नहीं है। उनके परिवार के लिए भी यह आसान नहीं है, क्योंकि उनका रवैया ऐसा लगता है कि जैसे वे कह रहे हों, मुझे परवाह नहीं है, मैं ऐसे भी मरने ही वाला हूँ! मैं सोचती हूँ कि यहाँ जब सभी लोग इतने संवेदनशील हैं, तो वुश्कल परिवार में क्या स्थिति होगी।

मैं बेचैनी और विषाद के लिए हर रोज़ वेलिरियान ले रही हूँ, लेकिन इससे मुझे कोई फ़ायदा नहीं हो रहा और मैं अगले दिन ज्यादा दुखी महसूस करती हूँ। दिल खोलकर हँसना वेलिरियान की दस बूँदों से ज्यादा मददगार होगा, लेकिन हम हँसना तो जैसे भूल चुके हैं। कई बार मैं डरती हूँ कि कहीं इस दुख से मेरा चेहरा ढीला न पड़ जाए और मेरे मुँह के कोने हमेशा के लिए लटक न जाएँ। बाक़ी लोगों का भी हाल बुरा है। हर कोई ठंड के आतंक से भयभीत है।

एक और तथ्य हमारे लिए उत्साहजनक नहीं है और वह यह कि गोदाम में काम करने वाले मि. फ़ॉन मारन अनेक्स को लेकर शंकालु हो रहे हैं। दिमाग़ वाला कोई भी इंसान अब तक इस बात पर गौर कर चुका होगा कि कई बार मीप कहती है कि वह लैब जा रही है, बेप फ़ाइल रूम में, मि. क्लेमन ओपेक्टा सप्लायज़ जा रहे हैं, जबकि मि. कुगलर का दावा है कि अनेक्स इस इमारत की नहीं है, बल्कि दूसरी इमारत की है।

हम परवाह भी नहीं करते कि मि. फ़ॉन मारन इस स्थिति के बारे में क्या सोचते हैं, लेकिन उन पर भरोसा नहीं किया जा सकता और वे काफ़ी उत्सुक क़िस्म के भी हैं। उन्हें इधर-उधर के बहानों से नहीं बहलाया जा सकता।

एक दिन मि. कुगलर ज्यादा सावधानी बरतना चाहते थे, तो बारह बजकर बीस मिनट पर उन्होंने कोट पहना और नज़दीकी दवा की दुकान पर गए। पाँच मिनट से भी कम समय बाद वे लौटे और चोरों की तरह चुपके से हमसे मिलने आए। सवा एक बजे वे चलने लगे, लेकिन बेप उन्हें उतरते हुए मिल गईं और उन्हें चेतावनी दी कि फ़ॉन मारन ऑफ़िस में हैं। मि. कुगलर वापस लौटे और डेढ़ बजे तक हमारे पास रहे। फिर उन्होंने जूते उतारे और जुराब पहने हुए (जुकाम होने के बावजूद ) आगे वाली जगह से दूसरी तरफ़ की सीढ़ियों से चरमराहट की आवाज़ से बचने के लिए एक- एक क़दम करके उतरे। सीढ़ियों से उतरने में उन्हें पंद्रह मिनट लगे, लेकिन वे बाहर से घुसते हुए कम से कम सुरक्षित रूप से ऑफ़िस में पहुँच गए।

इस दौरान मेप फ़ॉन मारन से छुटकारा पा चुकी थी और मि. कुगलर को लेने अनेक्स पहुँची। लेकिन वे पहले ही निकल चुके थे और उस समय सीढ़ियों पर पंजों के बल चल रहे थे। मैनेजर को बाहर जूते पहनते देखकर वहाँ से गुज़रने वालों ने क्या सोचा होगा? हाँ, उन्होंने केवल जुराब पहने हुए थे!

तुम्हारी, ऐन

बुधवार, 29 सितंबर, 1943

प्रिय किटी,

मिसेज़ फ़ॉन डान का जन्मदिन है। चीज़, मांस और ब्रेड के लिए एक-एक राशन स्टैम्प के अलावा उन्हें हमसे जैम का डिब्बा मिला। उनके पति, दुसे और ऑफ़िस के कर्मचारियों ने उन्हें फूलों व खाने के अलावा कुछ और नहीं दिया। हम ऐसे ही समय में जी रहे हैं!

पिछले हफ़्ते बेप को घबराहट का दौरा पड़ा, क्योंकि उनके पास बहुत काम थे। दिन भर में दस बार लोग उन्हें किसी न किसी काम से बाहर भेज रहे थे और हर बार उन्हें तुरंत जाने को कहते या फिर काम के ग़लत हो जाने पर उन्हें फिर से जाने को कहते। आपको लगेगा कि बेप के पास करने को दफ़्तर का सामान्य काम है, लेकिन मि. क्लेमन बीमार हैं, मीप जुकाम के कारण घर पर है और ख़ुद उनके टखने में मोच आ गई है, बॉयफ्रेंड से जुड़ी परेशानियाँ हैं और चिड़चिड़े पिता हैं, ऐसे में उनके धीरज का जवाब दे जाना स्वाभाविक है। हमने उन्हें दिलासा दिया और कहा कि अगर वे एक- दो बार मना करेंगी और कहेंगी कि उनके पास समय नहीं है, तो ख़रीदारी की सूची अपने आप छोटी हो जाएगी।

शनिवार को इतना बड़ा नाटक हुआ, जैसा यहाँ पहले कभी नहीं देखा गया। फ़ॉन मारन पर बातचीत के साथ शुरुआत हुई और आम बहस और आँसुओं के साथ ख़त्म हुई। दुसे ने माँ से शिकायत की कि उनके साथ कोढ़ियों जैसा बर्ताव किया जा रहा है, उनके साथ किसी का रवैया दोस्ताना नहीं है और उन्होंने तो ऐसा कुछ भी नहीं किया है कि उनके साथ ऐसा व्यवहार हो। इसके बाद काफ़ी खुशामदी बातें हुई, ख़ुशकिस्मती से माँ इस बार झाँसे में नहीं आईं। उन्होंने दुसे से कहा कि हम सभी उनसे निराश हुए हैं और वे कई बार हमारी झुंझलाहट का कारण बने हैं। दुसे ने लम्बे-चौड़े वादे किए, लेकिन जैसा कि अक्सर होता है, हमें उनमें कोई भी सच्चाई नहीं दिखाई दी।

फ़ॉन डान परिवार में भी कुछ चल रहा है, मैं देख सकती हूँ! पापा बहुत गुस्से में हैं, क्योंकि वे हमें धोखा दे रहे हैं: वे मांस और अन्य चीजें रख रहे हैं। अब क्या धमाका होने वाला है? काश, मैं इस सबमें शामिल न होती ! काश, मैं इस जगह को छोड़कर कहीं जा सकती! वे हमें पागल कर रहे हैं!

तुम्हारी, ऐन

रविवार, 17 अक्टूबर, 1943

प्रिय किटी,

शुक्र है कि मि . क्लेमन वापस आ गए हैं! वे थोड़े मुरझाए लगते हैं, लेकिन इसके बावजूद वे ख़ुशी ख़ुशी मि. फ़ॉन डान के लिए कुछ कपड़े बेचने चल दिए । अजीब बात यह है कि मि. फ़ॉन डान के पैसे ख़त्म हो गए हैं। उनके आख़िरी सौ गिल्डर्स गोदाम में खो गए, जो अब भी हमारे लिए मुसीबत का कारण हैं: सभी हैरान हैं कि सोमवार की सुबह आख़िर सौ गिल्डर्स गोदाम में कहाँ गायब हो सकते हैं। सभी शक से भरे हैं। इस बीच सौ गिल्डर्स चोरी हो गए हैं। चोर कौन है?

मैं धन की कमी की बात कर रही थी। मिसेज़ फ़ॉन डी के पास कपड़ों, कोटों और जूतों का ढेर है, लेकिन उनमें से किसी के भी बगैर उनका गुज़ारा नहीं । मि. फ़ॉन डी के सूट को ले जा पाना मुश्किल है और पीटर की बाइक को भी बेचने के लिए रखा गया था, लेकिन वह वापस आ गई है, क्योंकि वह किसी को नहीं चाहिए। लेकिन कहानी यहीं ख़त्म नहीं होती । मिसेज़ फ़ॉन डी को अपने फर के कोट से अलग होना पड़ेगा। उनकी राय में कंपनी को हमारे पालन-पोषण का खर्चा उठाना चाहिए, लेकिन यह बेतुकी बात है। अभी उनके बीच इसे लेकर झगड़ा हुआ है और अब वे फिर से मेल- मिलाप के 'अरे, मेरे प्यारे पुत्ती' और 'प्रिय केर्ली' के दौर में पहुँच चुके हैं।

पिछले महीने इस सम्मानजनक घर को जिस अभद्रता को झेलना पड़ा है, उससे मेरा दिमाग़ भन्ना गया है। पापा होंठ भींचकर घूमते हैं और जब भी उन्हें अपना नाम सुनाई पड़ता है, वे चौंककर देखते हैं, जैसे कि उन्हें किसी नाजुक परेशानी को सुलझाने के लिए बुला लिया जाएगा। माँ इतनी उत्तेजित हो गई हैं कि उनके गाल लाल हो गए हैं, मारगोट सिरदर्द की शिकायत करती है, दुसे सो नहीं पाते, मिसेज़ फ़ॉन डी दिन भर तिलमिलाती रहती हैं और मैं पूरी तरह से पागल हो गई हूँ। सच बताऊँ तो कभी मैं भूल जाती हूँ कि हम किसके विरोध में हैं और किसके नहीं। इन बातों से ध्यान हटाने का एकमात्र उपाय पढ़ाई करना है और पिछले कुछ समय से मैं वह काफ़ी कर रही हूँ ।

तुम्हारी, ऐन

शुक्रवार, 29 अक्टूबर, 1943

प्रिय किटी,

मि. क्लेमन फिर से अनुपस्थित हैं; उनका पेट उन्हें चैन से नहीं जीने देता। उन्हें यह तक नहीं पता कि खून का बहना बंद हुआ भी है या नहीं। वे हमें यह बताने आए कि उन्हें अच्छा महसूस नहीं हो रहा और वे घर जा रहे हैं। पहली बार वे वाक़ई उदास लगे।

मि. और मिसेज़ फ़ॉन डी के बीच ज्यादा भयंकर झगड़े हो रहे हैं। कारण सीधा-सादा है: उनके पास पैसा नहीं है। वे मि. फ़ॉन डी का एक ओवरकोट और सूट बेचना चाहते थे, लेकिन उन्हें कोई ख़रीदार नहीं मिल पाया। उन्होंने क़ीमत कुछ ज्यादा ही रखी थी।

कुछ समय पहले मि. क्लेमन फ़र का व्यापार करने वाले अपने एक परिचित के बारे में बात कर रहे थे। इससे मि. फ़ॉन डी को अपनी पत्नी का फर कोट बेचने का ख़याल आया। वह ख़रगोश के चमड़े से बना है और उनके पास यह सत्रह साल से है । मिसेज़ फ़ॉन डी को उसके लिए 325 गिल्डर्स मिले, जो कि काफ़ी बड़ी रकम थी। वे उसे अपने पास रखना चाहती थीं, ताकि युद्ध के बाद अपने लिए नए कपड़े ले सकें। मि. फ़ॉन डी को उन्हें यह समझाने में काफ़ी समय लगा कि घर चलाने के लिए उस पैसे की उन्हें कितनी ज़रूरत थी ।

तुम कल्पना भी नहीं कर सकती कि कितनी हाय-तौबा मची, चीख़ना - चिल्लाना, पैर पटकना और अपशब्द । कितना भयावह था । मेरा परिवार साँस रोक सीढ़ियों पर नीचे खड़ा था कि कहीं उनमें से किसी को अलग करने की नौबत न आ जाए। पूरी कहा-सुनी, आँसुओं और तनाव से मेरे लिए इतनी मुश्किल हो जाती है कि मैं रोते हुए बिस्तर पर पड़ती हूँ और शुक्र मनाती हूँ कि मेरे पास अपने लिए आधा घंटा है।

मैं ठीक हूँ, बस मेरी भूख जैसे मर गई है। मैं सुनती रहती हूँ: 'तुम कितनी ख़राब लग रही हो !' मैं यह ज़रूर स्वीकारूँगी कि वे मुझे चुस्त- दुरुस्त रखने के लिए सब कुछ कर रहे हैं: वे मुझे डेक्सट्रोज़, कॉड लिवर ऑयल, ब्रूअर्स यीस्ट और कैल्शियम देते हैं। मेरी बेचैनी मेरे क़ाबू से बाहर हो जाती है, ख़ासकर रविवार को जब मैं बहुत बुरा महसूस करती हूँ। माहौल दमघोंटू, सुस्त और भारी हो जाता है। बाहर आप किसी परिंदे तक की आवाज़ नहीं सुनते और घर पर मौत की सी ख़ामोशी छाई होती है, जो मुझसे ऐसे चिपक जाती है कि मुझे लगता है कि वह मुझे पाताल की गहरी दुनिया में घसीटकर ले जाएगी। ऐसे समय में मेरे लिए पापा, माँ और मारगोट के कोई मायने नहीं रह जाते । मैं एक कमरे से दूसरे कमरे में घूमती हूँ, सीढ़ियों पर ऊपर-नीचे जाती हूँ और उस गाने वाली चिड़िया जैसा महसूस करती हूँ जिसके पंख नोच दिए गए हों और जो अपने अँधेरे पिंजरे के सींखचों पर टकराती हो। 'मुझे बाहर ले चलो, जहाँ ताज़ा हवा और हँसी हो !' मेरे अंदर से कोई आवाज़ चीख़ती है। मैं अब जवाब नहीं देती, बस दीवान पर लेट जाती हूँ। नींद से वह ख़ामोशी और भयानक डर तेज़ी से चले जाते हैं, समय बीतने में मदद मिलती है, क्योंकि उसे मार पाना नामुमकिन है।

तुम्हारी, ऐन

बुधवार, 3 नवंबर, 1943

प्रिय किटी,

फ़ालतू चीज़ों से हमारा दिमाग़ हटाने और उसे विकसित करने के लिए पापा ने एक पत्रचार स्कूल से हमारे लिए पुस्तक-सूची मँगवाई। मारगोट ने तीन बार उसे गौर से देखा, लेकिन उसे अपनी पसंद और अपने बजट में कुछ भी नहीं मिला। पापा आसानी से संतुष्ट हो गए और और उन्होंने 'प्रारंभिक लैटिन' में नमूने के तौर पर एक अध्याय मँगवाने का फ़ैसला किया। जल्दी ही यह काम हो गया। अध्याय आ गया, मारगोट उत्साहपूर्वक काम में जुट गई और उसने पाठ्यक्रम लेने का फ़ैसला किया। मेरे लिए काफ़ी मुश्किल है, हालाँकि मैं सचमुच लैटिन सीखना चाहती हूँ।

मुझे भी नया काम देने के लिए पापा ने मि. क्लेमन से बच्चों की बाइबल लाने को कहा, ताकि मैं आख़िरकार न्यू टेस्टामेंट के बारे में कुछ सीख सकूँ।

'क्या आप ऐन को ऑनेका पर बाइबल देने वाले हैं?' मारगोट ने कुछ बेचैनी से पूछा ।

'हाँ... वैसे सेंट निकोलस डे बेहतर रहेगा,' पापा ने जवाब दिया।

ईसा मसीह और ऑनेका का आपस में कोई मेल नहीं।

वैक्यूम क्लीनर के टूट जाने के कारण मुझे पुराने ब्रश से कालीन को साफ़ करना पड़ता है। खिड़की बंद है, बत्ती जली है, अंगीठी जल रही है और मैं कालीन को ब्रश से साफ़ कर रही हूँ। 'यह तो निश्चित तौर पर समस्या है,' पहली बार मैंने सोचा । 'इससे तो सबको शिकायतें होंगी । ' मैं सही थी: कमरे में घूमते धूल के गुबार से माँ को सिरदर्द हो गया, मारगोट के नए लैटिन शब्दकोश पर धूल की मोटी परत जम गई और पिम की शिकायत थी कि फ़र्श वैसे भी कुछ अलग नहीं लग रहा था। मेरे छोटे से कष्ट के लिए छोटा सा आभार ।

हमने फ़ैसला किया है कि हम अब रविवार सुबह साढ़े पाँच के बजाय साढ़े सात बजे अंगीठी जलाएँगे। मेरे ख़याल से यह जोखिम भरा है। पड़ोसी हमारी चिमनी से निकलते धुएँ के बारे में क्या सोचेंगे?

ऐसा ही परदों के मामले में भी है। जब से हम छिपे हैं, तब से ही परदे खिड़कियों पर लगे हुए हैं। कई बार महिलाओं या पुरुषों में से कोई बाहर झाँकने के लालच से नहीं बच पाता और नतीजतन झिड़कियों की झड़ी लग जाती है। प्रतिक्रिया होती है, 'कोई गौर नहीं करेगा।' असावधानी का कोई भी काम इसी तरह शुरू और ख़त्म होता है। कोई नहीं गौर करेगा, कोई नहीं सुनेगा, कोई ज़रा सा भी ध्यान नहीं देगा। कहना आसान है, लेकिन क्या यह सच है?

इस समय तूफ़ानी झगड़े शांत हो गए हैं; दुसे और फ़ॉन डान परिवार अब भी टकराव की स्थिति में हैं। मिसेज़ फ़ॉन डी के बारे में बात करते हुए दुसे उन्हें 'वह बूढ़ी चमगादड़' या 'वह बेवकूफ़ बुढ़िया' कहकर पुकारते हैं और मिसेज़ फ़ॉन डी हमारे विद्वान सज्जन को 'बूढ़ी नौकरानी' या 'चिड़चिड़ा पागल कुँवारा', आदि कहती हैं।

कौन किस पर इल्ज़ाम लगा रहा है!

तुम्हारी, ऐन

सोमवार शाम, 8 नवंबर, 1943

प्रिय किटी,

अगर तुम मेरे सभी पत्र एक बार में पढ़ोगी, तो तुम देखोगी कि वे अलग- अलग मनोभावों में लिखे गए हैं। मुझे इस बात से चिढ़ होती है कि मैं यहाँ अनेक्स में मनोभावों पर इतनी निर्भर हूँ, लेकिन मैं इसमें अकेली नहीं हूँ और हम सभी इससे प्रभावित हैं। अगर मैं किसी किताब में डूबी हुई हूँ, तो बाक़ी लोगों के साथ मिलने-जुलने से पहले मुझे अपने विचारों को फिर से व्यवस्थित करना पड़ता है, वरना उन्हें लग सकता है कि मैं अजीब हूँ। जैसा कि तुम देख सकती हो, मैं अभी अवसाद में हूँ। मैं तुम्हें नहीं बता सकती कि वह किस चीज़ से शुरू हुआ, लेकिन मुझे लगता है कि यह मेरी कायरता से जन्मा है, जिससे हर मोड़ पर मेरा सामना होता है। आज शाम जब बेप यहीं थी, तो दरवाज़े की घंटी काफ़ी देर तक और ज़ोर से बजी। मैं तुरंत सफ़ेद पड़ गई, मेरे पेट में मरोड़ उठने लगी और मेरा दिल ज़ोरों से धड़कने लगा और इसका कारण यही था कि मैं डरी हुई थी ।

रात को बिस्तर में मैं ख़ुद को पापा और माँ के बिना अकेले एक तहखाने में देखती हूँ। या फिर मैं सड़कों पर घूम रही होती हूँ या फिर देखती हूँ कि अनेक्स में आग लग गई है या फिर आधी रात को हमें ले जाने के लिए लोग आए हैं और मैं हताश होकर अपने बिस्तर के नीचे रेंगकर जाती हूँ। मैं सब कुछ ऐसे देखती हूँ जैसे कि वह सचमुच हो रहा है। और यह सोचना कि ऐसा हो भी सकता है!

मीप अक्सर कहती हैं कि उन्हें हमसे जलन होती है, क्योंकि यहाँ काफ़ी सुकून व शांति है। हो सकता है कि यह सच हो, लेकिन ज़ाहिर है कि वे हमारे डर के बारे में नहीं सोच रही हैं।

मैं यह कल्पना भी नहीं कर सकती कि दुनिया कभी हमारे लिए सामान्य होगी। मैं 'युद्ध के बाद' की बात करती हूँ, लेकिन लगता है कि जैसे मैं हवाई किले की बात कर रही हूँ, ऐसा कुछ जो कभी सच नहीं हो सकता।

मैं अनेक्स में हम आठों को डरावने काले बादलों से घिरे नीले आसमान के टुकड़े के रूप में देखती हूँ। पूरी तरह से गोल इस जगह पर हम अभी तक सुरक्षित हैं, लेकिन बादल हमारी तरफ़ बढ़ रहे हैं और हमारे व आने वाले ख़तरे के बीच का दायरा ज्यादा कसता जा रहा है। हम अँधेरे व ख़तरे से घिरे हुए हैं और बाहर जाने का रास्ता खोजने की हताशा में हम एक-दूसरे से टकराते हैं। हम नीचे होने वाली लड़ाई और ऊपर मौजूद शांति व सुंदरता को देखते हैं। इस बीच, हमें काले बादलों का झुंड काट देता है और इस कारण हम न ऊपर जा सकते हैं और न नीचे। वह हमारे सामने अभेद्य दीवार की तरह मँडरा रहा है, हमें कुचलने की कोशिश कर रहा है, लेकिन अभी तक कर नहीं पाया है। मैं सिर्फ़ चिल्लाकर यही विनती कर सकती हूँ, 'भँवर, खुल जाओ और हमें बाहर निकलने दो!'

तुम्हारी, ऐन

बृहस्पतिवार, 11 नवंबर, 1943

प्रिय किटी,

इस हिस्से के लिए मेरे पास विशेष शीर्षक है:

मेरे प्रिय पेन की याद में

मेरा फ़ाउंटेन पेन हमेशा से मेरी क़ीमती चीज़ों में से एक था; मेरे लिए वह काफ़ी मूल्यवान था, खासकर इसलिए कि उसकी निब बहुत मोटी थी और मैं मोटी निब से अच्छी तरह लिख सकती हूँ। उसकी ज़िंदगी काफ़ी लंबी व दिलचस्प थी, जिसके बारे में मैं बताऊँगी।

जब मैं नौ साल की थी, तो मेरा फ़ाउंटेन पेन (रुई में पैक होकर) आचेन से ‘बिना किसी वाणिज्यिक मूल्य के नमूने' के रूप में आया, जहाँ मेरी नानी (दयालु दानी) रहती थी। मैं फ़्लू से पीड़ित होकर बिस्तर पर पड़ी थी, फ़रवरी की हवा हमारे घर के आसपास चीख़ रही थी। यह शानदार फ़ाउंटेन पेन चमड़े के लाल डिब्बे में था और पहला मौक़ा मिलते ही इसे मैंने अपनी सहेली को दिखाया। मैं, ऐन फ्रैंक, इस फ़ाउंटेन पेन की मालिक थी।

दस साल की होने पर मुझे पेन को स्कूल ले जाने की अनुमति मिल गई और मुझे हैरानी तब हुई जब अध्यापक ने मुझे उससे लिखने भी दिया। ग्यारह साल की होने पर मेरे इस ख़ज़ाने को दूर रख दिया गया, क्योंकि मेरी छठी कक्षा के शिक्षक हमें केवल स्कूल के पेन और स्याही का इस्तेमाल करने की इजाज़त देते थे। बारह की होने पर मैं यहूदी स्कूल चली गई और इस ख़ास मौके पर मेरे फ़ाउंटेन पेन को नया डिब्बा मिला। उसमें न सिर्फ़ पेंसिल रखने की जगह थी, बल्कि उसमें ज़िप लगी थी, जो कि काफ़ी प्रभावशाली थी। जब मैं तेरह साल की हुई, तो फ़ाउंटेन पेन मेरे साथ अनेक्स में आया और हमने मिलकर अनगिनत डायरियाँ और रचनाएँ लिखीं। मैं चौदह साल की हुई, तो मेरा फ़ाउंटेन पेन अपनी ज़िंदगी के आख़िरी साल के मज़े ले रहा था, जब ...

शुक्रवार पाँच बजे के बाद का समय था । मैं अपने कमरे से बाहर निकली और कुछ लिखने के लिए मेज़ पर बैठने ही वाली थी कि लैटिन का अभ्यास करने आए मारगोट व पापा के लिए जगह बनाने के लिए मुझे एक तरफ़ धकेला गया। फ़ाउंटेन पेन मेज़ पर बिना इस्तेमाल के पड़ा रहा, जबकि आह भरती उसकी मालकिन को मेज़ के छोटे से किनारे से काम चलाना पड़ा, जहाँ बैठकर वह बीन्स को पोंछने लगी। हम इसी तरह से बीन्स से फफूँद साफ़ करके उसे उनके मूल स्वरूप में वापस लाते हैं। पौने छह बजे मैंने फ़र्श साफ़ किया, कचरे व सड़ी बीन्स को एक अख़बार में डाला और उन्हें अंगीठी में फेंक दिया। बड़ी सी लपट उठी और मैंने सोचा कि अपनी आख़िरी साँस लेती अंगीठी में चमत्कारपूर्ण ढंग से फिर से जान आ गई।

फिर से शांति छा गई। लैटिन के विद्यार्थी जा चुके थे और मैं फिर से अपने काम में लग गई। लेकिन मेरे बहुत खोजने के बाद भी मुझे अपना फ़ाउंटेन पेन कहीं नज़र नहीं आया। मैंने फिर से देखा । मारगोट ने ढूँढ़ा, माँ ने तलाश किया और पापा ने भी देखा। लेकिन वह ग़ायब हो चुका था।

'शायद वह अंगीठी में चला गया होगा, बीन्स के साथ !' मारगोट ने कहा।

'नहीं, ऐसा नहीं हो सकता!' मैंने जवाब दिया।

लेकिन उस शाम जब मेरा पेन मुझे नहीं मिला, तो मैंने मान लिया कि वह जल चुका होगा, क्योंकि सेललॉयड काफ़ी ज्वलनशील होता है। हमारे सबसे भयानक डर की पुष्टि अगले दिन तब हो गई, जब पापा सुबह अंगीठी को खाली करने गए और उन्हें राख में उसकी चिमटी दिखाई दी, जिससे उसे जेब में रखा जाता था। सुनहरी निब का कोई निशान तक नहीं बचा था। 'वह पिघलकर पत्थर बन गया होगा,' पापा ने अंदाज़ा लगाया। मेरे पास एक छोटी सी सांत्वना यही बची कि मेरे फ़ाउंटेन पेन को दफ़ना दिया गया था, जैसे कि मैं किसी दिन दफ़ना दी जाऊँगी !

तुम्हारी, ऐन

बुधवार, 17 नवंबर 1943

प्रिय किटी,

हाल की घटनाओं ने घर की बुनियाद हिला दी है। बेप के यहाँ डिप्थीरिया फैलने के कारण उन्हें छह हफ़्ते तक हमारे संपर्क में आने की अनुमति नहीं है । उनके बिना खाना पकाना और ख़रीदारी करना बहुत मुश्किल होगा, उनके साथ की कमी भी हमें खलेगी। मि. क्लेमन अब भी बिस्तर में हैं और तीन सप्ताह से उन्होंने दलिए के अलावा कुछ ओर नहीं खाया है। मि. कुगलर काम में डूबे हुए हैं।

मारगोट अपने लैटिन सबक़ एक अध्यापक को भेजती है, जो उन्हें सुधार कर वापस भेजते हैं। मारगोट ने बेप के नाम से पंजीकरण करवा रखा है। अध्यापक बहुत अच्छे और मज़ाकिया भी हैं। मैं कह सकती हूँ कि इतनी चतुर शिष्या पाकर वे भी ख़ुश होंगे।

दुसे बेचैन हैं और हमें उसका कारण नहीं पता है। इसकी शुरुआत ऊपर उनके कुछ न कहने से हुई; उन्होंने मि. या मिसेज़ फ़ॉन डान से कोई बातचीत नहीं की। हम सबने इस पर गौर किया। कुछ दिन तक ऐसा ही चलता रहा और फिर माँ ने एक दिन उन्हें चेतावनी दी कि किस तरह मिसेज़ फ़ॉन डी उनकी ज़िंदगी को तकलीफ़देह बना सकती हैं। दुसे ने कहा कि मि. फ़ॉन डान ने पहले चुप्पी ओढ़ी और वे उसे तोड़ना नहीं चाहते।

मैं तुम्हें बता दूँ कि कल तारीख़ 16 नवंबर थी, अनेक्स में रहने की उनकी पहली वर्षगाँठ । इस मौके पर माँ को एक पौधा मिला, लेकिन मिसेज़ फ़ॉन डान को कुछ भी नहीं मिला, जो कई हफ़्ते से इस तारीख़ का ज़िक्र कर रही थीं और जता रही थीं कि उन्हें लगा कि दुसे उन्हें रात की दावत देंगे। इस मौके का फ़ायदा उठाकर हमें इस बात के लिए धन्यवाद देने के बजाय कि हमने निःस्वार्थ उन्हें अपने यहाँ रखा, पहली बार था कि उन्होंने एक शब्द तक नहीं कहा। सोलह की सुबह जब मैंने उनसे पूछा कि मैं उन्हें बधाई दूँ या सांत्वना, तो उनका कहना था कि कुछ भी चलेगा। शांति स्थापित कराने की भूमिका निभाने वाली माँ भी इस मामले में कुछ नहीं कर सकीं और स्थिति बेनतीजा रही।

मैं बिना किसी अतिशयोक्ति के कह सकती हूँ कि दुसे का कोई पेंच ढीला ज़रूर है। हम आपस में हँसते हैं, क्योंकि उनकी कोई स्मृति, कोई निश्चित राय और व्यावहारिक बुद्ध नहीं है। उन्होंने कई बार उसी समय सुने समाचार बताकर हमें हँसाया है, क्योंकि हम तक पहुँचते-पहुँचते संदेश अस्पष्ट हो जाता है। इसके अलावा, वे हर झिड़की या आरोप के जवाब में कई वादे करते हैं, जिन्हें वे कभी पूरा नहीं कर पाते।

“इस आदमी का हौसला तो बड़ा है
लेकिन उसकी हरकतें बहुत छोटी हैं!"

तुम्हारी, ऐन

शनिवार, 27 नवंबर, 1943

प्रिय किटी,

कल रात, जब मैं सोने वाली थी, तो हनेली अचानक मेरे सामने आ गई।

मैंने उसे देखा, चीथड़े पहने हुए, उसका चेहरा दुबला-पतला और थका हुआ था। अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से उसने इतने दुःख और तिरस्कार के साथ मुझे देखा कि मैं उनमें यह संदेश पढ़ सकती थी : 'ओह, ऐन ! तुमने मुझे क्यों छोड़ दिया ? मेरी मदद करो, मुझे इस नर्क से बचाओ !'

मैं उसकी मदद नहीं कर सकती। मैं सिर्फ़ खड़े होकर देख सकती हूँ, जबकि बाक़ी लोग कष्ट झेलकर मर रहे हैं। मैं बस ईश्वर से इतनी प्रार्थना ही कर सकती हूँ कि वे उसे हमारे पास वापस ले आएँ। मैंने और किसी को नहीं, सिर्फ़ हनेली को देखा और मैं समझ सकती हूँ कि क्यों । मैंने उसे ग़लत समझा, मैं इतनी परिपक्व नहीं थी कि समझ सकूँ कि उसके लिए यह कितना मुश्किल था। वह अपनी दोस्त के प्रति समर्पित थी और उसे लगा होगा कि मैं उसे उससे दूर ले जा रही हूँ । बेचारी को कितना बुरा लगा होगा! मैं जानती हूँ, क्योंकि मैं अपने भीतर इसे महसूस कर सकती हूँ! मुझे कभी-कभार यह बात एक झटके में समझ आती थी, लेकिन फिर मैं स्वार्थी होकर अपनी समस्याओं और खुशियों में खो जाती थी ।

उसके साथ वैसा बर्ताव करना बहुत घटिया बात थी और अब वह मेरी तरफ़ मुरझाया चेहरा लिए हुए विनती करती नज़रों से इतनी असहाय होकर देख रही है। काश, मैं उसकी कोई मदद कर पाती ! ईश्वर, मेरे पास वह सब कुछ है, जो मैंने चाहा, जबकि उसका चेहरा जानलेवा शिकंजे में है। वह भी मेरी तरह श्रद्धालु थी, शायद मुझसे भी ज्यादा और वह भी सही काम करना चाहती थी। फिर मुझे जीने का मौक़ा क्यों मिला, जबकि वह शायद मरने जा रही है? हमारे बीच क्या अंतर है? अब हम इतनी दूर और अलग क्यों हैं?

ईमानदारी से कहूँ, तो मैंने कई महीनों, नहीं बल्कि एक साल से उसके बारे में नहीं सोचा। मैं उसे पूरी तरह नहीं भूली थी, लेकिन जब मैंने उसे अपने सामने देखा, तभी मुझे उसकी तकलीफ़ों का ख़याल आया ।

ओह, हनेली, मैं उम्मीद करती हूँ कि तुम युद्ध समाप्त होने तक ज़िंदा रहो और हमारे पास लौट आओ, मैं तुम्हें अपनाऊँगी और जो कुछ बुरा मैंने तुम्हारे साथ किया है, उसकी भरपाई कर दूँगी।

लेकिन अगर मैं उसकी मदद करने की स्थिति में भी होती, तब भी उसे उस समय के बजाय उसकी आज ज्यादा ज़रूरत है। मैं सोचती हूँ कि क्या उसे मेरा ख़याल आता होगा और वह कैसा महसूस करती होगी?

हे दयालु ईश्वर, उसे दिलासा दो, ताकि वह कम से कम अकेली तो न पड़े। काश! तुम उसे बता पाते कि मैं करुणा व प्रेम के साथ उसे याद कर रही हूँ, शायद उसे इससे कुछ मदद मिल जाती।

मुझे इस पर विचार करना छोड़ना होगा। उससे कोई फ़ायदा नहीं । मैं उसकी बड़ी-बड़ी आँखें देखती हूँ और वे मुझे याद आती हैं। क्या हली वाक़ई सचमुच ईश्वर में विश्वास रखती है या फिर धर्म को उस पर ज़बरदस्ती थोप दिया गया है? मैं यह नहीं जानती। मैंने कभी पूछने की ज़हमत भी नहीं उठाई।

हनेली, हनेली, काश! मैं तुम्हें वहाँ से ले आती, तुम्हारे साथ सब कुछ साझा करती। अब बहुत देर हो गई है। मैं कुछ नहीं कर सकती या ग़लतियों को सुधार नहीं सकती। लेकिन मैं उसे फिर से नहीं भूलूँगी और हमेशा उसके लिए प्रार्थना करूँगी!

तुम्हारी, ऐन

सोमवार, 6 दिसंबर, 1943

प्रिय किटी,

जैसे-जैसे सेंट निकोलस डे नज़दीक आता जा रहा है, वैसे-वैसे हमें पिछले साल की सजी हुई टोकरी याद आ रही है। मुझे लगता है कि इस साल उत्सव न मनाना काफ़ी बुरा होगा। काफ़ी सोच-विचार के बाद मुझे एक विचार आया, जो थोड़ा मज़ाकिया था। मैंने पिम से सलाह ली और एक हफ़्ता पहले हम हर सदस्य के लिए एक छंद लिखने में जुट गए।

रविवार रात पौने आठ बजे हम कपड़ों की बड़ी टोकरी लेकर ऊपर पहुँचे, जिसे गुलाबी व नीले कार्बन पेपर से बनी आकृतियों से सजाया गया था। उसमें सबसे ऊपर भूरे काग़ज़ का बड़ा सा टुकड़ा लगा था, जिस पर टिप्पणी जुड़ी थी। हर कोई उपहार के आकार को देखकर हैरान था । मैंने उस टिप्पणी को निकाला और ऊँची आवाज़ में उसे पढ़ा:

'एक बार फिर आया सेंट निकोलस डे
हमारे छिपे ठिकाने पर;
डर है कि यह होगा नहीं उतना मज़ेदार
जितना कि था यह पिछले साल ।
उम्मीद थी, संदेह नहीं था कोई
आशावाद ही जीतेगा भाई,
अगले साल जब यह वक़्त आए फिर
हम होंगे आज़ाद, नहीं रहेगी कोई फ़िक्र ।
हम न भूलें सेंट निकोलस डे है आज
जबकि हमारे पास बचा कुछ नहीं ख़ास ।
खोजना होगा कुछ और करने को
तो हर कोई कृपया खोजे जूते को!'

हर व्यक्ति ने जब टोकरी में अपने जूते को देखा, तो हँसी के फव्वारे फूट पड़े। हर जूते के अंदर उसके मालिक के लिए कुछ लिखा था।

तुम्हारी, ऐन

बुधवार, 22 दिसंबर, 1943

प्रिय किटी,

आज तक फ़्लू होने के कारण मैं तुम्हें कुछ नहीं लिख पाई । यहाँ बीमार होना काफ़ी भयानक है। हर बार खाँसी आने पर मुझे कम्बल के नीचे घुसना पड़ता था, एक, दो, तीन बार और फिर खाँसी को रोकने की कोशिश करनी पड़ती थी। अधिकतर समय वह हल्की सी गुदगुदी जाती नहीं थी; इसलिए मुझे दूध के साथ शहद, चीनी या खाँसी की दवाई लेनी पड़ती थी। इन सभी इलाजों के बारे में सोचने भर से ही मेरा सिर चकराने लगता है। मुझे बुख़ार में पसीना लाने, भाप के इलाज, गीली पट्टियों, गर्म पेय, गले को साफ़ करने, चुपचाप पड़े रहने, हीटिंग पैड, गर्म पानी की बोतलें, नींबू पानी और हर दो घंटे में थर्मामीटर झेलना पड़ा। क्या ये इलाज आपको सचमुच बेहतर महसूस करवाते हैं? सबसे बुरी बात यह थी कि मि. दुसे ने डॉक्टर बनने का फ़ैसला किया और अपना पोमेड चुपड़ा सिर मेरी छाती पर आवाज़ें सुनने के लिए रख दिया। उनके बालों से गुदगुदी हुई और मुझे थोड़ी झेंप भी हुई, हालाँकि तीस साल पहले वे स्कूल गए थे और उन्होंने कोई मेडिकल डिग्री भी ली थी। लेकिन उन्हें मेरे दिल पर अपना सिर रखने की क्या ज़रूरत थी? वे मेरे बॉयफ्रेंड तो नहीं हैं! वैसे भी वे स्वस्थ या अस्वस्थ आवाज़ के बीच अंतर नहीं कर सकते। उन्हें पहले अपने कान साफ़ करवाने चाहिए, क्योंकि उन्हें सुनने में दिक्कत होती है। मेरी बीमारी के बारे में काफ़ी हुआ। अब मैं बिलकुल स्वस्थ हूँ। मेरी लंबाई आधा इंच बढ़ गई है और वज़न में दो पाउंड की बढ़ोतरी हुई है। मैं थोड़ी कुम्हला गई हूँ, लेकिन अपनी किताबें पढ़ने के लिए बेचैन हूँ।

वैसे अपवाद (यहाँ यही शब्द काम आएगा) के तौर पर हम सभी में अच्छी पट रही है। कोई लड़ाई-झगड़ा नहीं, हालाँकि यह शायद ज्यादा दिन न चले। छह महीने से घर में इतनी शांति, इतना सुकून नहीं रहा है।

बेप अब भी अलग रह रही हैं, लेकिन कुछ ही दिन में उनकी बहन संक्रामक नहीं रहेंगी।

क्रिसमस के लिए हमें अतिरिक्त खाना पकाने का तेल, मिठाइयाँ और शीरा मिल रहा है। ऑनेका के लिए मि. दुसे ने मिसेज फ़ॉन डान और माँ को एक बढ़िया केक दिया, जिसे बेक करने के लिए उन्होंने मीप को कहा। इतने काम पर यह और बड़ा काम ! मारगोट और मुझे सिक्कों से बना चमकदार ब्रूच मिला। मैं बता नहीं सकती, लेकिन वह ख़ूबसूरत है।

मेरे पास मीप और बेप के लिए क्रिसमस उपहार है। अपने दलिए में पड़ने वाली चीनी को मैंने महीने भर बचाकर रखा और मि. क्लेमन ने फुन्डॉन (गाढ़ी चीनी से बनाया गया केक) में उसका इस्तेमाल किया है।

मौसम हल्की बारिश वाला है और बादल घिरे हैं, अंगीठी से बदबू आ रही है, खाने से हमारे पेट भारी हैं, जिसके कारण अजीब सी आवाज़ें आ रही हैं।

युद्ध गतिरोध की स्थिति में हैं और हमारा उत्साह मंद है।

तुम्हारी, ऐन

शुक्रवार, 24 दिसंबर, 1943

प्रिय किटी,

जैसे कि मैं तुम्हें पहले भी कई बार लिख चुकी हूँ, मनोभाव यहाँ पर हमें बहुत प्रभावित करते हैं और मेरे मामले में पिछले कुछ समय से यह बदतर होता जा रहा है। कभी बहुत ज्यादा ख़ुश होना और कभी निराशा के गर्त में गिर जाना,' मुझ पर निश्चित ही लागू होता है। मैं तब बहुत ख़ुश होती हूँ, जब मैं सोचती हूँ कि बाक़ी यहूदी बच्चों के मुकाबले हम काफ़ी सौभाग्यशाली हैं और तब बहुत मायूस हो जाती हूँ, जब मि. क्लेमन आकर योपी के हॉकी क्लब, डोंगी के सफ़र, स्कूल के नाटकों और दोस्तों के साथ चाय के बारे में बात करते हैं।

मुझे नहीं लगता कि मुझे योपी से जलन होती है, लेकिन मैं भी मज़े करना चाहती हूँ और इतना हँसना चाहती हूँ कि पेट दुखने लगे। हम इस घर में कोढ़ियों की तरह फँसे हुए हैं, ख़ासकर सर्दियों, क्रिसमस और नए साल की छुट्टियों में। दरअसल, मुझे यह सब नहीं लिखना चाहिए, क्योंकि इससे लगता है कि मैं कितनी कृतघ्न हूँ, लेकिन मैं यह सब अपने तक नहीं रख सकती, इसलिए मैं वहीं बात दोहराऊँगी, जो मैंने शुरू में कही थी: 'काग़ज़ में लोगों के मुकाबले ज्यादा धीरज होता है। '

जब कभी कोई बाहर से आता है, उनके कपड़ों में हवा और गालों में ठंडक होती है, तो मुझे लगता है कि मैं कम्बल में सिर डालकर यह सोचने से बचूँ कि हम कब ताज़ा हवा ले पाएँगे? मैं वैसा नहीं कर सकती, बल्कि ठीक उसके उलट मुझे अपना सिर ताने रहना होता है और निडर दिखना होता है, लेकिन ख़याल तो आते ही रहते हैं। एक बार नहीं, कई बार ।

यक़ीन मानो, अगर तुम कहीं डेढ़ साल के लिए बंद हो, तो कई बार ये काफ़ी मुश्किल हो जाता है। लेकिन भावनाएँ चाहे जितनी भी अनुचित या कृतघ्न लगें, उन्हें नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। मैं साइकिल चलाना चाहती हूँ, नाचना, सीटी बजाना, दुनिया को देखना, बचपन महसूस करना चाहती हूँ और यह जानना चाहती हूँ कि मैं आज़ाद हूँ, लेकिन फिर भी मैं इसे दिखा या जता नहीं सकती। ज़रा सोचो, अगर हम आठों को हमेशा अपने लिए बुरा लगता रहे या हम चेहरों पर साफ़ तौर पर असंतोष लेकर घूमते रहें, तो क्या होगा । उससे हमें क्या मिलेगा? मैं कई बार सोचती हूँ कि क्या कभी कोई मेरी बात समझ पाएगा, क्या कभी मेरी कृतघ्नता को कोई नज़रअंदाज़ कर पाएगा और यह नहीं देखेगा कि मैं यहूदी हूँ या नहीं और मुझे सिर्फ़ एक किशोरी के रूप में देख पाएगा, जो बस जीवन का आनंद लेने के लिए तरस रही है? मुझे नहीं मालूम और मैं किसी से इस बारे में बात भी नहीं कर पाऊँगी, क्योंकि मैं जानती हूँ कि मैं रोने लगूँगी । अगर आप अकेले न रो रहे हों, तो रोने से चैन मिलता है। अपनी सभी मान्यताओं व कोशिशों के बावजूद हर रोज़, हर घंटे मुझे एक ऐसी माँ की कमी खलती है, जो मुझे समझती हो । यही वजह है कि मैं जो कुछ भी करती हूँ या लिखती हूँ, मैं कल्पना करती हूँ कि मैं बाद में अपने बच्चों के लिए किस तरह की माँ बनना चाहूँगी । ऐसी माँ जो लोगों की सभी बातों को बहुत गंभीरता से नहीं लेती, लेकिन मुझे गंभीरता से लेती है। यह बताने में मुझे मुश्किल हो रही है कि मैं क्या कहना चाहती हूँ, लेकिन 'मम यानी माँ' शब्द सब कुछ कह देता है। तुम्हें पता है कि मैंने क्या किया है? अपनी माँ को 'मम' कहने से बचने के लिए मैं अक्सर उन्हें 'मम्सी' कहकर पुकारती हूँ। कई बार मैं उसे 'मम्स' कर देती हूँ। काश ! मैं अतिरिक्त 'एस' हटाकर उनका सम्मान कर पाती। यह अच्छी बात है कि वे इसे नहीं जान पाई हैं, क्योंकि वैसा होने पर वे दुखी हो जातीं।

अब इस पर काफ़ी बात हो गई। मेरे लिखने ने मुझे निराशा की गहराइयों से निकाल दिया है।

तुम्हारी, ऐन

क्रिसमस का अगला दिन है और मैं पिम और उनके द्वारा मुझे पिछले साल सुनाई गई कहानी से अपना ध्यान नहीं हटा पा रही हूँ। मैं उस समय उनकी बातों के मायने वैसे नहीं समझ पाई थी, जैसे कि अब समझ रही हूँ। कितना अच्छा हो कि वे फिर से उसकी बात करें, ताकि मैं उन्हें दिखा सकूँ कि मैं उनकी बात समझ गई हूँ!

मुझे लगता है कि पिम ने मुझे बताया, क्योंकि बहुत से लोगों के 'अंदरूनी रहस्य' जानने वाले पिम को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने की ज़रूरत थी; वे कभी अपने बारे में बात नहीं करते और मुझे नहीं लगता कि मारगोट को इस बात की ज़रा सी भी भनक है कि वे किन चीज़ों से गुज़रे हैं। बेचारे पिम, वे मुझे बेवकूफ़ नहीं बना सकते कि मैं सोचूँ कि वे उस लड़की को भूल गए हैं। वे कभी नहीं भूलेंगे। इससे वे काफ़ी उदार बन गए हैं और वे माँ की ग़लतियों से भी परिचित हैं। मैं उम्मीद करती हूँ कि मैं उनके जैसी बनूँ, लेकिन उस सबसे न गुज़रूँ, जिससे वे गुज़रे हैं!

ऐन

सोमवार, 27 दिसंबर, 1943

प्रिय किटी,

शुक्रवार की शाम अपनी जिंदगी में पहली बार मुझे क्रिसमस का उपहार मिला। मि. क्लेमन, मि. कुगलर और लड़कियों ने हमारे लिए कुछ शानदार तैयार किया था। मीप ने एक स्वादिष्ट केक तैयार किया था, जिस पर 'पीस 1944' यानी शांति 1944 लिखा था और बेप बिस्किट लाई थी, जो युद्ध से पहले के दौर जैसे बढ़िया थे।

पीटर, मारगोट और मेरे लिए योगर्ट थी, जबकि बड़ों के लिए बीयर की बोतलें थीं। एक बार फिर सब कुछ बहुत अच्छी तरह पैक किया गया था और बहुत प्यारी तसवीरें उन पर चिपकाई गईं थीं। हमारे लिए छुट्टियाँ तेज़ी से गुज़र गई।

ऐन

बुधवार, 29 दिसंबर, 1943

प्रिय किटी,

कल रात मैं फिर से बहुत दुखी हो गई। नानी माँ और हनेली फिर से मेरे पास आईं। मेरी प्यारी नानी । उनके कष्ट को हम कितना समझे थे, वे हमेशा कितनी दयालु थीं और हमसे जुड़ी बातों में कितनी दिलचस्पी लेती थीं। उस पर ज़रा सोचो कि उन्होंने कितनी सावधानी से अपने भयानक रहस्य को छिपाकर रखा था। नानी हमेशा ही बहुत निष्ठावान और अच्छी थीं। उन्होंने हमें कभी निराश नहीं किया। जो कुछ भी हो, मैं चाहे कितनी भी बदतमीज़ी करूँ, नानी हमेशा मेरी ढाल बन जाती थीं। नानी, क्या आपने मुझसे प्यार किया या आप भी मुझे नहीं समझ पाईं ? मैं नहीं जानती। हम सबके होने के बावजूद नानी कितनी अकेली रही होंगी? कई लोगों द्वारा प्यार किए जाने के बाद भी आप अकेले हो सकते हैं, क्योंकि तब भी आप किसी के 'अकेले और एकमात्र' नहीं होते ।

और हनेली? क्या वह अब भी ज़िंदा है? क्या कर रही है? हे ईश्वर, उसकी रक्षा करना और उसे हमारे पास वापस ले आना। हनेली, तुम याद दिलाती हो कि मेरी नियति क्या हो सकती थी । मैं तुम्हारी जगह पर ख़ुद को देखती रहती हूँ। तो फिर मैं यहाँ के हालात से बुरा क्यों महसूस करती हूँ? हनेली और उसके साथ कष्ट झेल रहे लोगों के बारे में सोचने के अलावा क्या मुझे खुश, संतुष्ट और आनंदित नहीं होना चाहिए? मैं स्वार्थी और कायर हूँ। मैं क्यों हमेशा सबसे भयानक चीज़ों के बारे में सोचती और उनका सपना देखती हूँ और क्यों डरकर चिल्लाना चाहती हूँ? क्योंकि सब कुछ होने के बावजूद ईश्वर में मेरी पर्याप्त श्रद्धा नहीं है। उसने मुझे इतना दिया है, जिसके लायक़ मैं नहीं हूँ और फिर भी हर दिन मैं इतनी ग़लतियाँ करती हूँ!

अपने प्रिय लोगों की तकलीफ़ों के बारे में सोचकर आपके आँसू निकल सकते हैं; आप पूरे दिन रोते रह सकते हैं। ज्यादा से ज्यादा आप यह कर सकते हैं कि ईश्वर से प्रार्थना करें कि वे कोई चमत्कार कर दें और कम से कम उनमें से कुछ को बचा लें। मुझे उम्मीद है कि मैं उतना कर रही हूँ !

ऐन

बृहस्पतिवार 30 दिसंबर, 1943

प्रिय किटी,

पिछली ज़ोरदार लड़ाइयों के बाद से स्थिति शांत हो गई है, न सिर्फ़ हमारे बीच, दुसे व 'ऊपरवालों' के बीच, बल्कि मि. और मिसेज़ फ़ॉन डी के बीच भी सब कुछ ठीक है। हालाँकि कुछ काले तूफ़ानी बादल इस तरफ़ आते लग रहे हैं और वह भी खाने की वजह से। मिसेज़ फ़ॉन डी को एक अजीब सा ख़याल आया कि हमें सुबह कम आलू खाने चाहिए और उन्हें बाद में खाना चाहिए। माँ, दुसे और हम बाक़ी लोग उनसे सहमत नहीं थे, तो अब हम आलू भी बाँट रहे हैं। लगता है कि चर्बी और तेल का बँटवारा भी उचित ढंग से नहीं हो रहा है और माँ इसे रोकने का काम करेंगी। इस दिशा में कोई दिलचस्प बात होने पर मैं तुम्हें बताऊँगी। पिछले कुछ महीनों सेहम मांस का ( उनका चर्बी के साथ, हमारा उसके बिना), सूप का (वे पीते हैं, हम नहीं), आलुओं का (उनके छिले हुए, हमारे नहीं), अतिरिक्त चीज़ों और अब तले हुए आलुओं का भी बँटवारा कर रहे हैं।

काश, हम पूरी तरह अलग हो पाते !

तुम्हारी, ऐन

पुनःश्च । बेप ने मेरे लिए पूरे शाही परिवार के पिक्चर पोस्टकार्ड की प्रति तैयार की। जूलियाना काफ़ी युवा लगती हैं और रानी भी। तीनों छोटी लड़कियाँ बहुत प्यारी हैं। बेप ने आश्चर्यजनक रूप से बहुत अच्छा किया, तुम्हें नहीं लगता?

रविवार, 2 जनवरी, 1944

प्रिय किटी,

आज सुबह जब मेरे पास करने को कुछ नहीं था, तो मैंने अपनी डायरी के पन्ने पलटे और पाया कि कितने सारे पन्नों पर 'माँ' विषय पर इतनी कठोरता से लिखा गया था कि मैं हक्की-बक्की रह गई। मैंने ख़ुद से कहा, 'ऐन, क्या तुम सचमुच नफ़रत की बात कर रही हो? ओह, ऐन, तुम ऐसा कैसे कर सकती हो?"

हाथों में खुली डायरी लेकर मैं बैठी रही और सोचने लगी कि मैं इतने गुस्से व घृणा से क्यों भरी थी कि मुझे तुम्हें वह सब बताना पड़ा। मैंने पिछले साल की ऐन को समझने की कोशिश की और उसकी तरफ़ से माफ़ी माँगी, क्योंकि अगर मैं तुम्हारे सामने सिर्फ़ आरोप रखूँ और यह नहीं बताऊँ कि वे किस वजह से लगाए गए थे, तो मेरी अंतरात्मा साफ़ नहीं हो पाएगी। मैं उस समय ऐसे मनोभावों से गुज़र रही थी (अब भी गुज़र रही हूँ) कि मुझे लगता था कि मेरा सिर पानी के नीचे (प्रतीकात्मक रूप से) था और उस वजह से मुझे हालात सिर्फ़ अपने नज़रिये से दिखाई देते थे और मैं बाक़ी लोगों द्वारा कही गई बातों पर शांति से विचार नहीं करती थी, उन लोगों को मैंने अपने तेज़ ग़ुस्से से चोट पहुँचाई और फिर ऐसे जताया जैसे कि उन्होंने वही सब किया हो।

मैं अपने अंदर छिप गई, मैंने अपने अलावा किसी और के बारे में नहीं सोचा और बस अपनी खुशियों, कटाक्षों व दुखों को अपनी डायरी में लिखा । यह डायरी एक तरह की स्क्रैपबुक बन गई है और यह मेरे लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है, लेकिन मैं आसानी से इसके कई पन्नों पर 'पूरा हुआ और गुज़र गया' लिख सकती हूँ।

मैं माँ से बहुत नाराज़ थी और अब भी कई बार रहती हूँ) । यह सच है कि वे मुझे नहीं समझतीं, लेकिन मैं भी उन्हें नहीं समझती। मुझे प्यार करने के कारण वे बहुत कोमल और स्नेही थीं, लेकिन उन्हें मुश्किल हालात में डालने और उनकी अपनी दुःखद परिस्थितियों के कारण वे परेशान और चिड़चिड़ी हो गईं, इसलिए अब मैं समझ सकती हूँ कि वे अक्सर मुझ पर क्यों बरस पड़ती थीं ।

मैं चोट खाए हुए थी, उसे मैंने दिल पर ले लिया और उनके प्रति मैं अशिष्ट और बेरहम थी, जिसने उन्हें दुःखी कर दिया। हम वैमनस्य और दुःखों के दुष्चक्र में फँस गए थे। हम दोनों के लिए ही वह अच्छा समय नहीं था, लेकिन कम से कम वह ख़त्म होने को है। मैं हालात को नहीं देखना चाहती थी और अपने लिए बुरा महसूस करती थी, लेकिन उसे भी समझा जा सकता है।

काग़ज़ पर वे तीव्र आवेग मेरे क्रोध की अभिव्यक्ति थे, सामान्य जीवन में ऐसा होने पर मैं ख़ुद को अपने कमरे में बंद कर देती, अपने पैर पटकती और माँ की पीठ पीछे उन्हें कुछ भला-बुरा कहती।

रोकर माँ के बारे में अपनी राय देना अब पुरानी बात हो चुकी है। अब मैं पहले से समझदार हो गई हूँ और माँ भी पहले से ज्यादा संतुलित हो गई हैं। परेशान होने की हालत में ज्यादातर बार मैं अपनी ज़बान पर क़ाबू कर लेती हूँ और वे भी ऐसा ही करती हैं; तो कम से कम ऊपर से लगता है कि हमारी अच्छी निभ रही है। बस, एक चीज़ मैं नहीं कर सकती कि माँ से बच्चे की श्रद्धा से प्यार नहीं कर सकती।

मैं अपनी अंतरात्मा को यह सोचकर तसल्ली देती हूँ कि माँ अपने दिल में कठोर शब्द रखे, उससे बेहतर है कि काग़ज़ पर उन्हें लिख लिया जाए।

तुम्हारी, ऐन

बृहस्पतिवार, 6 जनवरी, 1944

प्रिय किटी,

आज मुझे दो बातें क़बूल करनी हैं। इसमें बहुत समय लगेगा, लेकिन मुझे किसी को तो बताना होगा और तुम उनमें सबसे ज्यादा सही हो, क्योंकि मैं जानती हूँ कि तुम किसी भी हालत में उस बात को गुप्त रखोगी।

पहली बात माँ के बारे में है। जैसा कि तुम जानती हो मैंने अक्सर उनके बारे में शिकायत की है और फिर अच्छा होने की पूरी कोशिश की है। मुझे अचानक समझ में आ गया है कि उनमें क्या गड़बड़ी है। माँ कहती हैं कि वे हमें बेटियों के बजाय दोस्त के रूप में ज्यादा देखती हैं। यह सब बहुत बढ़िया है, लेकिन दोस्त कभी माँ की जगह नहीं ले सकते। मुझे मेरी माँ चाहिए, जो मेरे सामने अच्छा उदाहरण रखे और ऐसी इंसान बने, जिसकी मैं इज़्ज़त कर सकूँ, लेकिन अधिकांश मामलों में वे उसका उदाहरण रही हैं, जो नहीं किया जाना चाहिए। मुझे लगता है कि मारगोट इन चीज़ों के बारे में बहुत अलग ढंग से सोचती है और इसलिए वह इन बातों को कभी नहीं समझेगी, जो मैंने अभी तुम्हें बताई हैं। पापा हैं कि माँ से जुड़ी हर बातचीत से बचते हैं।

मैं ऐसी माँ की कल्पना करती हूँ, जिसमें सबसे पहला गुण चतुराई का होता है, ख़ासकर अपने किशोर बच्चों के प्रति। माँ जैसी नहीं, जो मेरे रोने पर मेरा मज़ाक उड़ाती हैं। मैं दर्द की वजह से नहीं, बल्कि बाक़ी बातों की वजह से रो रही होती हूँ।

यह बात बहुत मामूली लग सकती है, लेकिन एक घटना है, जिसके लिए मैं उन्हें कभी माफ़ नहीं कर पाई। एक दिन मुझे दाँतों के डॉक्टर के पास जाना था। माँ और मारगोट भी मेरे साथ चलने को तैयार हुई और इस बात को भी मान लिया कि मैं अपनी साइकिल साथ ले जाऊँ। डॉक्टर के यहाँ काम होने के बाद हम बाहर निकले और माँ व मारगोट ने मुझे बहुत प्यार से बताया कि वे कुछ ख़रीदने या देखने के लिए शहर मुख्य हिस्से की ओर जा रही हैं। मुझे याद नहीं कि वह क्या चीज़ थी, लेकिन ज़ाहिर था कि मैं भी उनके साथ जाना चाहती थी। लेकिन उनका कहना था कि मेरे पास साइकिल होने की वजह से मैं उनके साथ नहीं जा सकती थी । गुस्से के कारण मेरी आँखें आँसुओं से भर आईं और मारगोट व माँ मुझ पर हँसने लगी। मुझे इतना गुस्सा आया कि मैंने उन दोनों को जीभ निकालकर चिढ़ा दिया। छोटे क़द की एक बूढ़ी महिला वहाँ से गुज़र रही थी और वे काफ़ी सदमे में लग रही थी। मैं साइकिल से घर गई और घंटों रोई । अजीब बात है कि माँ ने मुझे हज़ारों बार चोट पहुँचाई होगी, लेकिन यह घाव आज भी दुखता है, जब मैं सोचती हूँ कि मैं उस समय कितनी नाराज़ थी ।

दूसरी बात को स्वीकारने में मुझे ज्यादा मुश्किल हो रही है, क्योंकि वह मेरे बारे में है। मैं पाखंडी नहीं हूँ, किटी, फिर भी हर बार शौचालय जाने पर बाक़ी लोगों द्वारा हर पल की ख़बर देने पर मेरे मन में घृणा पैदा होती है।

कल मैंने शर्माने पर सिस हेस्टर का लेख पढ़ा। ऐसा लग रहा था जैसे कि वह मेरे लिए है। ऐसा नहीं कि मैं आसानी से शर्मा जाऊँ, लेकिन बाक़ी का लेख मुझ पर लागू होता है। उनका कहना है कि किशोरावस्था के दौरान लड़कियाँ ख़ुद में सिमट जाती हैं और अपने शरीर में होने वाले आश्चर्यजनक बदलावों के बारे में सोचना शुरू करती हैं। मैं भी वैसा ही महसूस करती हूँ और शायद यही मारगोट, माँ और पापा को लेकर मेरी झेंप की वजह है। दूसरी तरफ़, मारगोट मुझसे कहीं ज्यादा शर्मीली है, लेकिन फिर भी वह झेंपती नहीं।

मेरे ख़याल से मुझमें जो कुछ हो रहा है, वह काफ़ी अनोखा है और इससे मेरा मतलब सिर्फ़ बाहरी शारीरिक बदलावों से नहीं है, बल्कि अंदर होने वाले परिवर्तनों से भी है। इनमें से किसी भी चीज़ पर मैं लोगों से बात नहीं करती, इसीलिए मुझे उनके बारे में ख़ुद से बात करनी पड़ती है। जब भी मुझे माहवारी (अभी तक तीन बार हो चुकी है) होती है, तो सारे दर्द, असहजता और परेशानी के बावजूद मुझे लगता है कि मेरे भीतर एक छोटा सा रहस्य है। इसके थोड़ा मुश्किल भरा होने के बावजूद मैं उस समय की राह देखती हूँ, जब मैं फिर से इस रहस्य को अपने अंदर महसूस करूँगी।

सिस हेस्टर का यह भी कहना है कि मेरी उम्र की लड़कियाँ ख़ुद को लेकर असुरक्षित महसूस करती हैं और यह समझना शुरू करती हैं कि वे अलग व्यक्ति हैं, जिनके अपने विचार, सोच और आदतें हैं । यहाँ आने से ठीक पहले मैं तेरह साल की हुई थी, तो मैंने अपने बारे में सोचना शुरू कर दिया था और महसूस किया कि अधिकतर लड़कियों की तुलना में ज्यादा जल्दी मैं एक 'स्वतंत्र व्यक्ति' बन गई हूँ। कई बार जब मैं बिस्तर में लेटी होती हूँ, तो मुझे अपनी छातियों को छूने और अपने दिल की शांत, सधी हुई धड़कनों को सुनने की तीव्र इच्छा होती है।

अवचेतन तौर पर यह सब मेरे अंदर यहाँ आने से पहले से था। एक बार जब मैं यैक के यहाँ रात को ठहरी थी, तो उसके शरीर को लेकर अपनी उत्सुकता को मैं क़ाबू नहीं कर सकी, जिसे उसने हमेशा मुझसे छिपाया और जिसे मैंने कभी नहीं देखा था। मैंने उससे पूछा कि हमारी दोस्ती के सबूत के रूप में क्या हम एक-दूसरे का वक्ष छू सकते हैं, तो उसने मना कर दिया। मुझे उसे चूमने का भी दिल किया और मैंने उसे चूमा भी । जब कभी मैं किसी नारी की नग्न मूर्ति देखती हूँ, जैसे कि अपनी इतिहास की किताब में वीनस की मूर्ति, तो मैं बहुत आनंदित हो जाती हूँ। कई बार वे मुझे इतनी बेहतरीन लगती हैं कि मुझे अपने आँसू रोकने पड़ते हैं। काश, मेरी कोई सहेली होती!

बृहस्पतिवार, 6 जनवरी, 1944

प्रिय किटी,

किसी से बात करने की मेरी इच्छा इतनी असहनीय हो गई है कि मैंने इस काम के लिए पीटर के बारे में सोचा। कभी-कभार दिन में जब मैं उसके कमरे में गई हूँ, तो मुझे हमेशा लगा कि वह कमरा अच्छा और आरामदायक है। लेकिन पीटर इतना विनम्र है कि अगर कोई उसे परेशान भी कर रहा हो, तब भी वह उसे जाने के लिए नहीं कहेगा, इसलिए मैं कभी भी उसके कमरे में ज्यादा देर तक नहीं रुकी। मुझे डर था कि कहीं वह मुझे चिपकू न समझे। मैं उसके कमरे में मँडराते रहने और उसके ख़याल में आए बिना उससे बात करवाने का मौक़ा खोज रही थी और कल मुझे वह मिल भी गया। आजकल पीटर वर्ग पहेली की दीवानगी में है और दिन भर वह उसके अलावा कुछ नहीं करता। मैं उसकी मदद कर रही थी और जल्दी ही हम उसकी मेज़ के आमने-सामने बैठ गए, वह कुर्सी पर था और मैं दीवान पर।

उसकी गहरी नीली आँखों में झाँककर मुझे बहुत अच्छा लगा और मैंने देखा कि मेरे अचानक आ जाने से वह कितना झेंप गया है। मैं उसके अंदर की भावनाओं को पढ़ सकती थी और उसके चेहरे पर लाचारी व अनिश्चितता का भाव था कि वह कैसा बर्ताव करे और साथ ही अपने मर्दानगी को लेकर सचेत होने की झलक भी थी। उसके शर्मीलेपन को देखकर मैं पिघल गई। मैं कहना चाहती थी, 'अपने बारे में बताओ। मेरे बातूनी बाहरी रूप के भीतर झाँको।' लेकिन मैंने पाया कि सवाल पूछने से ज्यादा आसान है उनके बारे में सोचना ।

शाम बीत गई और कुछ भी नहीं हुआ, बस मैंने शर्माने पर पढ़े लेख के बारे में उसे बताया। जाहिर है कि वह नहीं, जो मैंने तुम्हें लिखा, सिर्फ़ यही कि उम्र बढ़ने पर वह ज्यादा सुरक्षित महसूस करेगा।

उस रात बिस्तर पर लेटकर मैं ख़ूब रोई, यह भी ध्यान रखा कि कोई आवाज़ न सुन ले । मुझे पीटर के एहसान की ज़रूरत पड़ी, यह ख़याल भी बहुत घिनौना था। लेकिन अपनी हसरतों को पूरा करने के लिए लोग कुछ भी करेंगे, उदाहरण के तौर पर मैंने सोच लिया कि मैं पीटर के पास अक्सर जाया करूँगी और किसी तरह उसे बात करने को तैयार करूँगी।

तुम यह मत सोचना कि मुझे पीटर से प्यार हो गया है, क्योंकि ऐसा है नहीं। अगर फ़ॉन डान परिवार में लड़के के बजाय कोई लड़की होती, तो शायद मैं उससे दोस्ती करने की कोशिश कर सकती थी ।

आज सुबह मैं सात बजे से पहले उठी और मुझे तुरंत याद आ गया कि मैं क्या सपना देख रही थी। मैं कुर्सी पर बैठी थी और दूसरी तरफ़ पीटर.... पीटर शिफ़ था । हम मेरी बूस के चित्रों की किताब देख रहे थे। सपना इतना साफ़ था कि मुझे कुछ चित्र अब भी याद थे। इतना ही नहीं, सपना आगे भी था। पीटर की नज़रें अचानक मुझसे मिली और मैं काफ़ी देर तक उसकी मखमली भूरी आँखों में देखती रही। फिर उसने बहुत कोमलता से कहा, 'अगर मुझे पता होता, तो मैं बहुत पहले तुम्हारे पास आ जाता !' भावुक होकर अचानक दूर हो गई। फिर मुझे पीटर का नर्म, ठंडा गाल हौले से अपने गाल पर महसूस हुआ और मुझे बहुत अच्छा लगा....

उस पल मैं उठ गई, उसका गाल मेरे गाल पर तब भी महसूस हो रहा था और उसकी भूरी आँखें मेरे दिल की गहराई में झाँक रही थी, इतने गहरे कि वह पढ़ सकता था कि मैं उसे कितना प्यार करती थी और अब भी करती हूँ। मेरी आँखें फिर से भर गईं और मैं दुखी थी, क्योंकि मैंने एक बार फिर उसे खो दिया था और साथ ही मैं ख़ुश थी कि मैं निश्चित तौर पर जानती थी कि अब भी पीटर ही है, जो मेरा है।

यह अजीब है, लेकिन अक्सर मेरे सपने काफ़ी स्पष्ट होते हैं। एक रात मैंने ग्रैमी यानी दादी को इतनी स्पष्टता से देखा कि मैं नर्म, मुलायम, झुर्रीदार मखमली त्वचा को महसूस कर सकती थी। एक बार मैंने नानी को फ़रिश्ते के रूप में देखा। उसके बाद हनेली को देखा, जो अब भी मेरे दोस्तों और सभी यहूदियों की तकलीफ़ों का प्रतीक है, और जब मैं उसके लिए प्रार्थना करती हूँ, तो मैं सभी यहूदियों व ज़रूरतमंदों के लिए भी प्रार्थना करती हूँ।

अब पीटर, मेरा प्यारा पीटर। मेरे दिमाग़ में उसकी इतनी साफ़ छवि कभी नहीं रही। मुझे किसी तसवीर की ज़रूरत नहीं, मैं उसे इतनी अच्छी तरह देख सकती हूँ।

तुम्हारी, ऐन

शुक्रवार, 7 जनवरी, 1944

प्रिय किटी,

मैं कितनी बेवकूफ़ हूँ। मैं भूल गई कि मैंने तुम्हें अपने सच्चे प्यार की कहानी तो अब तक बताई ही नहीं ।

जब मैं छोटी थी और नर्सरी स्कूल में पढ़ती थी, तो मुझे सैली किमल पसंद था। उसके पिता नहीं थे और वह अपनी माँ के साथ रहता था । सैली का एक भाई ख़ूबसूरत, छरहरा और काले बालों वाला ऐपी था, जो बाद में एक फ़िल्मी सितारे जैसा दिखने लगा था और गोल-मटोल सैली से कहीं ज्यादा तारीफ़ पाता था। काफ़ी लंबे समय तक हम कहीं भी एक साथ जाते थे, लेकिन उसे छोड़ दें तो मेरा तब तक एकतरफ़ा था, जब तक पीटर और मेरी राहें नहीं मिली थीं। मैं उस पर फ़िदा थी। वह भी मुझे पसंद करता था और पूरी गर्मी हम एक-दूसरे से अलग नहीं हुए। मैं अब भी हम दोनों को हाथ पकड़े टहलते देख सकती हूँ, पीटर सफ़ेद सूती कपड़ों में था और मैं गर्मियों की पोशाक पहने हुई थी। गर्मियों की छुट्टियों में वह दूसरे स्कूल में अगली कक्षा में चला गया, जबकि मैं छठी में रही। घर जाते हुए वह मुझे साथ ले लेता या फिर मैं उसके पास चली जाती। पीटर आदर्श लड़का था : लंबा, छरहरा और ख़ूबसूरत, जिसका चेहरा गंभीर, शांत व समझदारी भरा था। उसके बाल काले थे, आँखें भूरी थी, गाल गुलाबी थे और लंबी नुकीली नाक थी। उसकी मुस्कान को लेकर मैं पागल थी, जिसके कारण वह लड़कपन से भरा व शरारती लगता था ।

गर्मी की छुट्टियों में मैं ग्रामीण इलाक़े में गई थी और जब मैं वापस लौटी तो पीटर अपने पुराने पते पर नहीं था; वह दूसरी जगह चला गया था, जहाँ पर वह अपने से बड़े लड़के के साथ था और उसने शायद पीटर से कहा कि मैं बच्ची हूँ, क्योंकि पीटर ने मुझसे मिलना छोड़ दिया था। मैं उससे इतना प्यार करती थी कि सच का सामना नहीं करना चाहती थी। मैं उससे तब तक लटकी रही, जब तक कि मैंने आख़िरकार यह नहीं समझ लिया कि अगर मैं उसका पीछा करती रही, तो लोग कहेंगे कि मैं लड़कों के पीछे पागल थी ।

वक्त गुज़रता गया । पीटर अपनी उम्र की लड़कियों के साथ घूमता रहा और उसने मुझे हैलो कहने तक की ज़रूरत नहीं समझी। मैं यहूदी स्कूल चली गई और मेरी कक्षा के कई लड़के मेरे प्यार में थे। मुझे वह अच्छा लगा और उनका ध्यान आकर्षित करने से मुझे महत्त्वपूर्ण महसूस हुआ। बाद में हलो मुझे पसंद करने लगा, लेकिन जैसा कि मैं पहले तुम्हें बता चुकी हूँ, मुझे फिर से प्यार नहीं हुआ।

एक कहावत है: 'वक़्त सभी ज़ख़्म भर देता है।' मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ । मैंने ख़ुद से कहा कि मैं पीटर को भूल चुकी हूँ और उसे अब पसंद नहीं करती। लेकिन उसे लेकर मेरी यादें इतनी गहरी थीं कि मुझे यह क़बूल करना पड़ा कि उसे पसंद न करने का एकमात्र कारण यह था कि मैं बाक़ी लड़कियों से जलती थी। आज सुबह मैंने महसूस किया कि कुछ भी नहीं बदला है; बल्कि मैं बड़ी व परिपक्व हो गई हूँ, मेरा प्यार मेरे साथ ही बड़ा हो गया है। अब मैं समझ सकती हूँ कि पीटर मुझे बचकाना समझता था और फिर भी यह सोचकर चोट पहुँचती है कि वह मुझे पूरी तरह भूल गया है। मैंने उसके चेहरे को बहुत साफ़-साफ़ देखा; मैं यह जानती थी कि पीटर के अलावा कोई और इस तरह मेरे दिमाग़ में नहीं अटका रह सकता।

आज मैं भ्रम की स्थिति में हूँ। आज सुबह जब पापा ने मुझे चूमा, तो मैं चिल्लाना चाहती थी, 'काश, आप पीटर होते!' मैं लगातार उसके बारे में सोचती रही हूँ और दिन भर मैं ख़ुद से बार-बार कहती रही हूँ, 'ओह, पीटल, मेरे प्रिय, मेरे प्रिय पीटल...'

मुझे कहाँ से मदद मिल सकती है? मुझे बस यूँ ही ज़िंदा रहना होगा और ईश्वर से प्रार्थना करनी होगी कि अगर कभी हम यहाँ से निकले, तो पीटर मुझे फिर मिले और मेरी आँखों में देखकर उनमें मौजूद प्यार को पढ़ ले और कहे, 'ओह, ऐन, काश! मुझे पता होता, तो मैं बहुत पहले तुम्हारे पास आ गया होता । '

एक बार जब पापा और मैं सेक्स के बारे में बात कर रहे थे, तो उनका कहना था कि उस तरह की इच्छा को समझने के लिए अभी मैं छोटी हूँ । लेकिन मुझे लगा कि मैं उसे समझती थी और अब तो पक्का समझती हूँ। अब मुझे कुछ भी उतना प्रिय नहीं है, जितना कि पीटल है!

मैंने आईने में अपना चेहरा देखा और वह बहुत अलग लगा। मेरी आँखें साफ़ और गहरी थीं, मेरे गाल गुलाबी थे, जो कई हफ़्ते से वैसे नहीं थे, मेरा मुँह काफ़ी कोमल लग रहा था। मैं ख़ुश दिख रही थी और फिर भी मेरे भावों में कोई दुख था कि मेरे होंठों से तुरंत मुस्कान ग़ायब हो गई। मैं ख़ुश नहीं हूँ, क्योंकि पीटल मेरे बारे में नहीं सोच रहा और फिर भी मैं अपनी ओर देखती उसकी ख़ूबसूरत आँखों और उसके ठंडे, नर्म गालों को अपने गालों पर महसूस कर सकती हूँ... ओह, पीटल, पीटल मैं कब ख़ुद को तुम्हारी छवि से अलग कर पाऊँगी ? तुम्हारी जगह लेने वाला कोई और क्या तुम्हारा बुरा विकल्प नहीं होगा? मैं तुमसे प्यार करती हूँ, वह प्यार जो इतना महान है कि वह बस मेरे दिल में ही नहीं बढ़ता रह सकता, बल्कि बाहर निकलकर खुद को सबके सामने जाहिर करना चाहता है।

एक हफ़्ते या फिर एक दिन भी पहले अगर तुमने मुझसे पूछा होता, 'तुम अपने दोस्तों में से किससे शादी करना चाहोगी, तो मेरा जवाब होता, 'सैली, क्योंकि उसके साथ मैं ख़ुश, शांत व सुरक्षित महसूस करती हूँ !' लेकिन अब मैं कहूँगी, 'पीटल, क्योंकि मैं दिलोजान से उसे चाहती हूँ। मैं पूरी तरह से समर्पण करती हूँ!' बस, एक बात को छोड़कर : वह सिर्फ़ मेरा चेहरा छू सकता है।

आज सुबह मैंने कल्पना की कि मैं आगे वाली अटारी में पीटल के साथ खिड़की के पास फ़र्श पर बैठी हूँ और थोड़ी देर बातचीत के बाद हम दोनों रोने लगे। कुछ देर बाद मैंने उसके मुँह व उसके शानदार गालों को महसूस किया ! ओह, पीटल, मेरे पास आओ। मेरे बारे में सोचो, मेरे प्यारे पीटल !

बुधवार, 12 जनवरी, 1944

प्रिय किटी,

दो सप्ताह पहले बेप वापस आ गई है, हालाँकि उसकी बहन को अगले हफ़्ते तक स्कूल आने की इजाज़त नहीं है। बेप दो दिन तक जुकाम के कारण बिस्तर पर रही। मीप और यान भी दो दिन तक पेट ख़राब होने के कारण नहीं आए।

फ़िलहाल मैं नाच और बैले की दीवानगी से गुज़र रही हूँ और हर शाम बहुत मेहनत से अभ्यास करती हूँ। मैंने माँ के हल्के बैंगनी जालीदार पेटीकोट से अपने लिए एक बहुत आधुनिक पोशाक बनवाई है। उसके ऊपरी हिस्से पर फीता लगा है और उसे ठीक छाती के ऊपर बाँधते हैं। गुलाबी रिबन से पोशाक पूरी हो गई। मैंने अपने व्यायाम के जूतों को नृत्य के जूते बनाने की नाकाम कोशिश की। मेरे कठोर हाथ-पैर अब लचीले बन रहे हैं, जैसे वे पहले थे। फ़र्श पर बैठना बहुत बढ़िया कसरत है, हाथों में एड़ियाँ रखें और दोनों टाँगें हवा में उठाएँ। मुझे गद्दी पर बैठना पड़ता है, वरना मेरी पीठ दुखने लगती है।

यहाँ हर कोई अ क्लाउडलेस मॉर्निंग किताब पढ़ रहा है। माँ को लगा कि यह बहुत बढ़िया किताब है, क्योंकि इसमें किशोरों की कई समस्याओं का वर्णन किया गया है। मैंने थोड़ा व्यंग्यात्मक ढंग से सोचा, 'आप अपने किशोर बच्चों में ज्यादा दिलचस्पी क्यों नहीं लेतीं?'

मेरे ख़याल से माँ सोचती हैं कि पूरी दुनिया में मारगोट और मेरा अपने माँ-बाप के साथ बेहतर रिश्ता है और कोई भी माँ अपने बच्चों की ज़िंदगी से उतनी नहीं जुड़ी है, जितनी कि वे उनके दिमाग़ में ज़रूर मेरी बहन रही होगी, क्योंकि मुझे लगता है कि मारगोट की समस्याएँ और विचार मेरे जैसे नहीं हैं। मैं माँ से यह नहीं कह सकती कि उनकी एक बेटी वैसी नहीं है, जैसा कि वे समझती हैं। वे पूरी तरह घबरा जाएँगी और वैसे भी वे कभी बदलने वाली नहीं हैं; मैं उन्हें तकलीफ़ नहीं पहुँचा सकती, ख़ासकर जब मैं जानती हूँ कि सब कुछ वैसा ही रहेगा। माँ को महसूस तो होता है कि मारगोट उन्हें मुझसे ज्यादा प्यार करती है, लेकिन उन्हें लगता है कि मैं किसी दौर से गुज़र रही हूँ।

मारगोट पहले से ज्यादा अच्छी है। वह अब काफ़ी अलग लगती है। वह अब पहले जैसी चालाक नहीं लगती और असली दोस्त जैसी बनती जा रही है। वह मुझे ऐसा छोटा बच्चा नहीं समझती, जिसकी कोई अहमियत न हो। यह अजीब है, लेकिन कई बार मैं ख़ुद को वैसे देखती हूँ, जैसा कि वे मुझे देखते हैं। मैं 'ऐन फ्रैक' नाम की लड़की को आराम से देखती हूँ और उसकी ज़िंदगी के पन्नों को ऐसे पलटती हूँ, जैसे कि वह कोई अजनबी हो ।

यहाँ आने से पहले जब मैं चीज़ों के बारे में उतना नहीं सोचती थी, जितना कि अब सोचती हूँ, कई बार मुझे लगता था कि मैं माँ, पिम और मारगोट से नहीं जुड़ी हूँ और यह कि मैं हमेशा बाहरी इंसान रहूँगी। कई बार छह महीने तक मैं ऐसा दिखाती थी जैसे कि मैं कोई अनाथ हूँ। फिर मैं बेचारी बनने के लिए ख़ुद को सज़ा देती थी, जबकि सच बात यह थी कि मैं काफ़ी ख़ुशक़िस्मत थी। उसके बाद कुछ समय के लिए मैं खुद को दोस्ताना बनाने की कोशिश करती थी। हर सुबह सीढ़ियों पर क़दमों की आहट सुनते हुए मैं उम्मीद करती थी कि मेरी माँ मुझे सुप्रभात कहने के लिए आ रही हो। मैं उनसे गर्मजोशी से मिलूँगी, क्योंकि ईमानदारी से मैं उनके प्यार भरी निगाह पाने की आस लगाती थी। लेकिन वे मेरी किसी टिप्पणी या किसी अन्य बात पर मुझे झिड़क देतीं और मैं स्कूल जाते हुए पूरी तरह हतोत्साहित हो जाती। घर आते हुए मैं उनके लिए बहाने बनाती, ख़ुद से कहती कि उनके सामने बहुत परेशानियाँ होती हैं। मैं पूरे जोश के साथ घर पहुँचती, तब तक ख़ूब गप्पें लगाती, जब तक कि सुबह की घटना फिर न हो जाती और मैं हाथों में बस्ता लेकर और चेहरे पर उदासी के भाव लेकर कमरे से बाहर न चली जाती। कई बार मैं नाराज़ रहने का फ़ैसला करती, लेकिन स्कूल के बारे में इतना कुछ बताने को होता कि मैं अपना इरादा भूल जाती और माँ का काम रुकवाकर उन्हें सारी बातें बताती। फिर ऐसा समय आता, जब मैं सीढ़ियों पर पदचाप पर कान नहीं लगाती और अकेला महसूस करते हुए रात को ख़ूब रोती ।

सब कुछ यहाँ बदतर हो गया है। लेकिन तुम यह पहले से जानती हो । अब ईश्वर ने किसी को, पीटर को मेरी मदद के लिए भेजा है। मैं अपने पेंडेंट के साथ खेलती हूँ, उसे होंठों तक ले जाती हूँ और सोचती हूँ, 'मुझे क्या है! पीटर मेरा है और कोई यह नहीं जानता!' ऐसा सोचकर मैं हर तरह की कठोर टिप्पणी से ऊपर उठ सकती हूँ। यहाँ कौन सोच सकता है कि एक किशोरी के मन में इतना कुछ चल रहा है?

शनिवार, 15 जनवरी, 1944

प्रिय किटी,

यहाँ के सभी झगड़ों और बहसों की विस्तार से चर्चा करना ज़रूरी नहीं है । तुम्हें यह बताना काफ़ी होगा कि हम मांस, चर्बी और तेल का बँटवारा कर चुके हैं और अपने आलू अलग तलते हैं। हाल ही में हमने थोड़ी ज्यादा राइ ब्रेड खाना शुरू किया है, क्योंकि चार बजे तक हमें इतनी भूख लग जाती है कि हम अपने पेट की गड़गड़ाहट पर मुश्किल से क़ाबू पाते हैं।

माँ का जन्मदिन आने वाला है। उन्हें मि. कुगलर से कुछ अतिरिक्त चीनी मिली, जिससे फ़ॉन डान परिवार को जलन हुई, क्योंकि मिसेज़ फ़ॉन डी को उनके जन्मदिन पर वह नहीं मिली थी। लेकिन कठोर शब्दों, ईर्ष्यालु बातचीत और आँसुओं से तुम्हें उबाने क्या कोई ज़रूरत है, जबकि हम जानते हैं कि उससे हम और भी ज्यादा ऊब जाते हैं। माँ ने एक इच्छा जताई है, जो बहुत जल्दी तो पूरी होने वाली नहीं है और वह है, मि. फ़ॉन डान का चेहरा पूरे दो हफ़्ते तक न देखना। मैं सोचती हूँ कि क्या एक ही घर में रहने वाले लोग क्या कभी न कभी एक-दूसरे से लड़ने लगते हैं। या फिर हम लोग कुछ बदक़िस्मत हैं? खाने के समय जब दुसे आधे शोरबे का बड़ा हिस्सा खुद ले लेते हैं और हम सबके लिए ज्यादा कुछ नहीं बचता, तो मेरी भूख मर जाती है और मेरी इच्छा होती है कि खड़े होकर मैं उन्हें कुर्सी से गिरा दूँ और दरवाज़े से बाहर फेंक दूँ।

क्या अधिकतर लोग इतने कंजूस और स्वार्थी होते हैं? यहाँ आने के बाद से मुझे मानव स्वभाव के बारे में जानकारी हुई है, जो कि अच्छा है, लेकिन फ़िलहाल काफ़ी हो चुका है। पीटर भी यही कहता है।

हमारे झगड़ों और आज़ादी व ताज़ा हवा की हमारी इच्छा के बावजूद युद्ध चलता रहेगा, इसलिए हमें यहाँ रहने का फ़ायदा उठाना चाहिए। मैं सीख दे रही हूँ, लेकिन मैं यह भी मानती हूँ कि अगर मैं यहाँ ज्यादा लंबे समय तक रही, तो मैं फलियों के सूखे तने की तरह हो जाऊँगी। मैं सिर्फ़ एक ईमानदार, अच्छी किशोरी बनना चाहती हूँ!

तुम्हारी, ऐन

बुधवार शाम, 19 जनवरी, 1944

प्रिय किटी,

मैं ( मैं फिर शुरू हो गई!) नहीं जानती कि क्या हुआ, लेकिन सपने के बाद से मैंने गौर किया कि मैं बदल गई हूँ। वैसे, कल रात मैंने फिर से पीटर का सपना देखा और फिर से मैंने उसकी आँखों को अपनी आँखों को भेदते देखा, लेकिन यह सपना उतना साफ़ नहीं था और पिछले सपने जैसा ख़ूबसूरत भी नहीं था ।

तुम जानती हो कि मैं हमेशा से मारगोट के पापा से रिश्ते को लेकर जलती थी। अब मुझमें उस जलन का कुछ भी शेष नहीं है; मुझे अब भी बुरा लगता है जब पापा मेरे प्रति अविवेकी हो जाते हैं, लेकिन फिर मैं सोचती हूँ, 'मैं आपको आपके बर्ताव के लिए दोषी नहीं मान सकती। आप बच्चों व किशोरों के दिमाग़ों की इतनी बात करते हैं, लेकिन आप उनके बारे में कुछ भी नहीं जानते !' मुझे पापा के स्नेह, उनके प्यार-दुलार से कहीं ज्यादा चाहिए। क्या मेरा सिर्फ़ ख़ुद पर केंद्रित रहना बुरा नहीं है? क्या मुझे, जो अच्छी व दयालु बनना चाहती है, उन्हें माफ़ नहीं कर देना चाहिए? मैं माँ को माफ़ कर देती हूँ, लेकिन हर बार जब वे व्यंग्यात्मक टिप्पणी करती हैं या मुझ पर हँसती हैं, तो मैं ख़ुद पर काबू करने के लिए यही कर पाती हूँ।

मैं जानती हूँ कि जो मुझे होना चाहिए, मैं उससे बहुत दूर हूँ; क्या मैं कभी वैसी बन पाऊँगी?

तुम्हारी, ऐन

पुनःश्च । पापा ने पूछा कि क्या मैंने तुम्हें केक के बारे में बताया। माँ को जन्मदिन पर दफ़्तर से युद्ध से पहले जैसी क्वालिटी का असली मोका

केक मिला। बहुत अच्छा दिन था ! लेकिन इस समय मेरे दिमाग़ में ऐसी चीज़ों के लिए कोई जगह नहीं है।

शनिवार, 22 जनवरी, 1944

प्रिय किटी,

क्या तुम मुझे बता सकती हो कि लोग अपने असली रूप को छिपाने के लिए इतनी मेहनत क्यों करते हैं? या फिर मैं जब दूसरों के साथ होती हूँ, तो इतना अलग बर्ताव क्यों करती हूँ? लोगों का एक-दूसरे पर इतना कम विश्वास क्यों है? मुझे मालूम है कि कोई कारण होगा, लेकिन कई बार मैं सोचती हूँ कि यह कितना भयानक है कि आप कभी किसी पर भरोसा नहीं कर सकते, उन पर भी नहीं, जो आपके बहुत क़रीब होते हैं।

लगता है कि उस सपने के बाद से मैं बड़ी हो गई हूँ, जैसे कि मैं अधिक स्वतंत्र हो गई हूँ। तुम्हें यह जानकर हैरानी होगी कि फ़ॉन डान परिवार के प्रति भी मेरा रवैया बदल गया है। सभी बातचीतों व बहसों को मैंने अपने परिवार के दृष्टिकोण से देखना छोड़ दिया है। आख़िर इतना क्रांतिकारी बदलाव आया कैसे? मुझे अचानक लगा कि अगर माँ अलग ढंग की होती, वे सचमुच की माँ होती, तो हमारा रिश्ता काफ़ी अलग होता । मिसेज़ फ़ॉन डान किसी भी तरह से बढ़िया इंसान नहीं हैं, फिर भी आधी बहसों से बचा जा सकता था, अगर किसी पेचीदा विषय के आने पर माँ से निपटना मुश्किल न होता। मिसेज़ फ़ॉन डान में एक अच्छी बात तो है और यह कि आप उनसे बात कर सकते हैं। वे स्वार्थी, कंजूस और कपटी हो सकती हैं, लेकिन अगर आप उन्हें न उकसाएँ और हद से ज्यादा न बढ़ें, तो वे पीछे हट जाती हैं। यह तरकीब हमेशा काम नहीं आती, लेकिन अगर आपमें धीरज है, तो आप कोशिश करते रह सकते हैं और देख सकते हैं कि आप कहाँ तक पहुँच पाते हैं।

हमारी परवरिश, बच्चों से लाड़-प्यार करने, खाने और सभी चीज़ों को लेकर हमारे टकराव शायद अलग मोड़ ले लेते अगर हम खुला दिल- दिमाग़ रखते और हमेशा बुरा पक्ष देखने के बजाय दोस्ताना रवैया रखते।

मैं जानती हूँ कि तुम क्या कहोगी, किटी । 'लेकिन ऐन, क्या ये शब्द वाक़ई तुम्हारे मुँह से निकल रहे हैं? तुम, जिसे ऊपरवाले लोगों से इतने कठोर शब्द सुनने पड़े? तुमसे, जो सारे अन्याय के बारे में जानती हो ?'

फिर भी मेरे मुँह से ये शब्द निकल रहे हैं। मैं चीज़ों को नए ढंग से और अपने नज़रिये से देखना देखना चाहती हूँ, न कि अपने माँ-बाप की नक़ल करना चाहती हूँ, जैसा कि कहावत है, 'बच्चों में माँ-बाप के गुण आते ही हैं।' मैं फ़ॉन डान परिवार को फिर से समझना चाहती हूँ और ख़ुद तय करना चाहती हूँ कि क्या सही है और किस चीज़ को ज़रूरत से ज्यादा बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया। अगर मैं उनसे निराश होती हूँ, तो मैं मम्मी- पापा का पक्ष ले सकती हूँ। अगर नहीं, तो मैं उनके रवैये में बदलाव लाने की कोशिश कर सकती हूँ। अगर वह काम नहीं आता, तो मैं अपनी राय व रवैये पर क़ायम रहूँगी। मैं बिना किसी डर के अपने मतभेदों पर खुले तौर पर मिसेज़ फ़ॉन डी से बात करूँगी और बहुत ज्यादा होशियार होने की अपनी नेकनामी के बावजूद अपनी निष्पक्ष राय दूंगी। मैं अपने परिवार के बारे में कुछ भी नकारात्मक नहीं कहूँगी, हालाँकि उसका यह मतलब नहीं कि किसी के द्वारा ग़लत बात कहे जाने पर मैं उनका पक्ष नहीं लूँगी। आज की स्थिति यही है कि बेकार की बकवास करना अब पुरानी बात हो गई है।

अब तक मैं पूरी तरह आश्वस्त थी कि फ़ॉन डान परिवार ही सभी लड़ाइयों का दोषी है, लेकिन अब मुझे यक़ीन है कि ग़लती हमारी थी। जहाँ तक मुद्दों का सवाल है, हम सही थे, लेकिन बुद्धमान लोगों (जैसे कि हम हैं!) को मालूम होना चाहिए कि बाक़ी लोगों से कैसे निपटा जाता है।

मुझे उम्मीद है कि मुझे यह बात समझ आई होगी और मुझे उसका इस्तेमाल करने का कोई मौका मिलेगा।

तुम्हारी, ऐन

सोमवार, 24 जनवरी, 1944

प्रिय किटी,

मेरे साथ एक बहुत अजीब बात हुई। (दरअसल, होना भी बिलकुल सही शब्द नहीं है। )

यहाँ आने से पहले, जब कभी घर या स्कूल में कोई सेक्स के बारे में बात करता था, तो वे या तो बहुत रहस्यात्मक ढंग से या फिर घृणास्पद तरीक़े से बात करते थे। सेक्स से जुड़े किसी भी शब्द को इतना धीरे फुसफुसाकर बोला जाता था कि जो जानकार नहीं थे, उन पर सब हँसते थे। वे मुझे अलग मानते थे, क्योंकि मुझे अक्सर हैरानी होती थी कि इस विषय पर बात करने के मामले में लोग इतने रहस्यात्मक या अजीब से क्यों होते हैं। लेकिन मैं क्योंकि चीज़ों को नहीं बदल सकती थी, तो मैं जितना हो सके, कम बोलती थी या फिर जानकारी के लिए अपनी सहेलियों से पूछती थी।

काफ़ी कुछ सीखने के बाद एक बार माँ ने मुझे कहा, 'ऐन, मैं तुम्हें कुछ अच्छी सलाह देती हूँ। लड़कों से कभी इस पर बात मत करना और अगर वे उन बातों को उठाएँ, तो जवाब मत देना।'

मुझे अपना जवाब अब तक याद है। 'बिलकुल नहीं, माँ।' 'ज़रा सोचिए !' इसके बाद कुछ नहीं कहा गया।

जब हम पहली बार छिपने के लिए आए, तो पापा अक्सर मुझे ऐसी बातें बताते थे, जो मुझे माँ से सुननी चाहिए थी और बाक़ी मैंने किताबों से या बातचीत के दौरान सीखा।

पीटर फ़ॉन डान इस विषय को लेकर उतना अजीब नहीं था, जितना कि स्कूल के लड़के थे। या हो सकता है कि शुरू में एक या दो बार, हालाँकि वह मुझसे बात निकलवाने की कोशिश नहीं कर रहा था। एक बार मिसेज़ फ़ॉन डान ने मुझे बताया था कि वे कभी भी इस तरह की बातें पीटर से नहीं करेंगी और जहाँ तक उन्हें पता था, उनके पति भी ऐसा नहीं करते। उन्हें यह भी नहीं पता था कि पीटर कितना जानता था या फिर उसे जानकारी कहाँ से मिली।

कल जब मारगोट, पीटर और मैं आलू छील रहे थे, तो बातचीत किसी तरह से बॉश की तरफ़ मुड़ गई। 'हमें अभी तक पक्का नहीं पता कि बॉश बिल्ला है या बिल्ली, क्या हमें पता है?' मैंने पूछा।

'हाँ, हमें पता है,' पीटर ने कहा । 'वह बिल्ला है । '

मैं हँसने लगी । 'हाँ, अगर उसके बच्चे होने वाले हैं। '

पीटर और मारगोट भी हँसने लगे। पता है एक या दो महीने पहले पीटर ने हमें बताया था कि बॉश के बच्चे होने वाले हैं, क्योंकि उसका पेट तेज़ी से फूल रहा है। बाद में पता चला कि उसके फूले हुए पेट का राज़ चुराई हुई हड्डियाँ थीं। उसके अंदर कोई बच्चे थे ही नहीं, पैदा होना तो दूर की बात है।

पीटर को लगा कि उसे मेरे आरोप का जवाब देना चाहिए। 'मेरे साथ आओ। तुम खुद देख सकती हो। एक दिन मैं उसके साथ हुड़दंग मचा रहा था, तो मैंने जान लिया कि वह “लड़का" है । '

अपनी उत्सुकता न दबा पाने के कारण मैं उसके साथ गोदाम चली गई । बॉश हालाँकि उस समय किसी मेहमान के इंतज़ार में नहीं था और उसका कहीं अता-पता नहीं था । हमने थोड़ा इंतज़ार किया, लेकिन ठंड महसूस होने पर हम वापस ऊपर चले गए।

बाद में मैंने सुना कि पीटर फिर से नीचे गया था। मैं हिम्मत करके ख़ामोश घर से होते हुए गोदाम में पहुँची। बॉश पैकिंग टेबल पर था और पीटर के साथ खेल रहा था, जो उसका वज़न लेने के लिए उसे मशीन पर रखने की तैयारी में था ।

'हैलो, क्या तुम देखना चाहती हो?' उसने सीधे बॉश को उठाकर उसे उल्टा किया, उसके सिर व पंजों को पकड़े रखा और अपना सबक़ शुरू किया। 'यह नर यौन अंग है, ये कुछ बाल हैं और ये उसका पिछला हिस्सा है। '

बॉश ने पलटी मारी और अपने पैरों पर खड़ा हो गया।

अगर किसी और लड़के ने 'नर यौन अंग' के बारे में मुझे बताया होता, तो मैं उसे दोबारा नहीं देखती। लेकिन पीटर सामान्य तौर पर ऐसे विषय पर बात करता रहा, जो काफ़ी अटपटा हो। न ही उसके इरादे ख़राब थे। उसकी बात पूरी होने तक मैं काफ़ी सहज महसूस करने लगी थी और सामान्य बर्ताव करने लगी थी। हम बॉश के साथ खेलने लगे, हमें मज़ा आया, हमने थोड़ी बातचीत की और फिर लंबे से गोदाम से होकर हम दरवाज़े की तरफ़ बढ़े।

'तुम वहीं थे, जब मूशी की नसबंदी कर रहे थे?'

'हाँ, वहीं था। उसमें ज्यादा वक़्त नहीं लगता। वे बिल्ली को बेहोश करने की दवा देते हैं । '

'क्या वे कुछ निकालते हैं?'

'नहीं, नली को सिर्फ़ काट देते हैं। बाहर से कुछ नहीं दिखाई देता ।

मुझे एक सवाल पूछने के लिए काफ़ी हिम्मत जुटानी पड़ी, क्योंकि वह उतना 'सामान्य' नहीं था जितना कि मैंने सोचा था। 'पीटर जर्मन शब्द गेशलेक्श्टायल का मतलब है, “यौन अंग", है न? लेकिन नर व मादा के अंगों के नाम अलग हैं।'

'मैं जानता हूँ। '

'मैं जानती हूँ कि मादा अंग योनि है, लेकिन नरों के अंग का नाम नहीं जानती । '

'हम्मम ।'

'अच्छा', मैंने कहा । 'हम इन शब्दों को कैसे जान सकते हैं? अधिकतर समय बस, अचानक ही वे हमारे सामने आ जाते हैं।

'इंतज़ार क्यों करें? मैं अपने माता-पिता से पूछता हूँ। वे मुझसे ज्यादा जानते हैं और मुझसे ज्यादा अनुभवी हैं।'

हम सीढ़ियों पर पहुँच चुके थे, इसलिए और कुछ नहीं कहा गया।

हाँ, ऐसा सचमुच हुआ। मैं किसी लड़की से इतने सामान्य तौर पर इस बारे में बात नहीं कर सकती थी। मैं कह सकती हूँ कि माँ के कहने का भी यह मतलब नहीं था, जब उन्होंने मुझे लड़कों को लेकर चेतावनी दी थी।

मैं पूरे दिन भर सामान्य नहीं रह पाई। जब मैंने अपनी बातचीत के बारे में सोचा, तो वह मुझे अजीब लगी। लेकिन मैंने कम से कम एक बात तो सीखी: कुछ युवा हैं और लड़कों में भी कुछ ऐसे हैं, जो बिना मज़ाक उड़ाए इन बातों पर सहज रूप से चर्चा कर सकते हैं। क्या पीटर अपने माँ-बाप बहुत सारे सवाल पूछने वाला है? क्या वह ऐसा ही है, जैसा कि कल लगा था ?

ओह, मुझे क्या मालूम? !!!

तुम्हारी, ऐन

शुक्रवार, 28 जनवरी, 1944

प्रिय किटी,

हाल के हफ़्तों में शाही परिवारों के वंशवृक्षों और वंशक्रम में मेरी दिलचस्पी बढ़ गई है। मैं इस नतीजे पर पहुँची हूँ कि एक बार जब आप अपनी खोज शुरू करते हैं, तो आपको अतीत में गहरे और गहरे जाना होता है, जिससे आप ज्यादा दिलचस्प चीज़ों तक पहुँच जाते हैं।

जहाँ मेरे स्कूल के काम का सवाल है, तो मैं काफ़ी मेहनती हूँ और रेडियो पर बीबीसी होम सर्विस को भी अच्छी तरह समझती हूँ, फिर भी मैं रविवार अपने फ़िल्मी सितारों के संग्रह को देखने और सहेजने में लगाती हूँ। यह संग्रह अब काफ़ी बड़ा हो चुका है। मि. कुगलर हर सोमवार को सिनेमा ऐंड थियेटर की प्रति लाकर मुझे खुश कर देते हैं। हमारे घर के कुछ कम दुनियावी सदस्य मेरे इस छोटे से शौक को पैसे की बर्बादी मानते हैं, फिर भी वे हर बार इस बात से हैरान होते हैं कि मैं एक साल बाद भी किसी भी फ़िल्म के कलाकारों को कितनी सटीकता से बात कर सकती हूँ। छुट्टी के दिन बेप अक्सर अपने बॉयफ्रेंड के साथ फ़िल्म देखने जाती है और शनिवार को मुझे बताती है कि वे कौन सा शो देखने जा रहे हैं और फिर मैं उसे धड़ल्ले से प्रमुख कलाकारों के नाम लेती हूँ व फ़िल्म की समीक्षा के बारे में बताती हूँ। माँ ने हाल में टिप्पणी की कि मुझे बाद में फ़िल्में देखने जाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी, क्योंकि सभी कहानियाँ, सितारों के नाम और समीक्षाएँ मुझे अच्छी तरह याद हैं।

जब भी कोई नया हेयरस्टाइल अपनाती हूँ, तो उनके चेहरे पर नापसंदगी साफ़ पढ़ सकती हूँ और मुझे पता होता है कि अब वे पूछेंगे कि मैं कौन से फ़िल्मी सितारे की नक़ल करने की कोशिश कर रही हूँ। मेरा यह जवाब कि वह मेरी खोज है, को शक से देखा जाता है। जहाँ तक बालों की शैली का सवाल है, वह आधे घंटे से ज्यादा नहीं टिकती। तब तक उनकी टिप्पणियों से मैं इतनी परेशान हो जाती हूँ कि गुसलखाने में जाकर अपने बालों को फिर से उनके घुँघराले रूप में वापस ले आती हूँ।

तुम्हारी, ऐन

शुक्रवार, 28 जनवरी, 1944

प्रिय किटी,

आज सुबह मैं यह सोचते हुए उठी कि क्या कभी तुम्हें गाय जैसा महसूस हुआ है, जिसे बार-बार मेरी बासी ख़बर को तब तक इतना चबाना पड़ता है कि ऊब हो जाती है और तुम मन ही मन यह माँगती हो कि ऐन कुछ नया लेकर आए।

माफ़ी चाहती हूँ कि तुम्हें यह सब जमा पानी जैसा उबाऊ लगता है, लेकिन ज़रा सोचो कि मैं वही सब बातें सुनकर कितना थक चुकी हूँ। अगर खाने के समय राजनीति या बढ़िया खाने की बात नहीं होती, तो माँ या मिसेज़ फ़ॉन डी अपने बचपन की कहानियाँ दोहरानी लगती हैं, जिन्हें हम पहले भी हज़ार बार सुन चुके होते हैं। या फिर दुसे दौड़ के ख़ूबसूरत घोड़ों, अपनी शार्लोट के कपड़ों, चूने वाली नावों, चार साल की उम्र में तैराकी करने वाले लड़कों, दुखती मांसपेशियों और डरे हुए मरीज़ों पर बोलते चले जाते हैं। हम आठों में से जब भी कोई मुँह खोलता है, तो यही होता है कि बाक़ी सात उसकी बात पूरी कर सकते हैं। किसी भी चुटकुले के सुनाए जाने से पहले हमें उसका सार पता होता है और सुनाने वाला ही उस पर अकेला हँसने के लिए रह जाता है। इन दोनों गृहिणियों के कई दूधवालों, दुकानदारों और कसाइयों की इतनी तारीफ़ें या फिर इतनी बुराइयाँ की गई हैं कि हमारी कल्पना में वे मेथ्यूसिलाह जितने बूढ़े हो गए हैं; अनेक्स में किसी नए इंसान पर बातचीत होने की अब कोई संभावना ही नहीं है।

यह सब सहने लायक़ होता, अगर सभी बड़े लोगों को मि. क्लेमन, यान या मीप से सुनी गई कहानियों को दोहराने की आदत नहीं होती, हर बार वे उसमें अपनी कोई बात जोड़ देते हैं और अक्सर मुझे उत्साही कहानी सुनाने वाले को सही रास्ते पर लाने से बचने के लिए मेज़ के नीचे अपनी बाँह पर चिकोटी काटनी पड़ती है। ऐन जैसे छोटे बच्चों को कभी भी बड़ों को नहीं टोकना चाहिए, चाहे वे कितनी भी ग़लतियाँ करें या फिर अपनी कल्पना के घोड़े कहीं भी दौड़ाते रहें।

यान और मि. क्लेमन को उन लोगों की बातें करना अच्छा लगता है, जो भूमिगत हो चुके हैं या फिर कहीं छिपे हैं; वे जानते हैं कि हम हमारे जैसी स्थिति में लोगों के बारे में सुनने को उत्सुक हैं और हम सचमुच ऐसे लोगों के कष्टों के प्रति सहानुभूति रखते हैं, जिन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया हो या आज़ाद हो चुके क़ैदियों की ख़ुशी भी समझते हैं।

भूमिगत हो जाना और छिपना अब इतनी सामान्य दिनचर्या हो गई है, जैसे कि दिन भर के काम के बाद घर के मालिक का इंतज़ार करते पाइप व चप्पलें हुआ करती थीं। फ़्री नीदरलैंड्स जैसे कई प्रतिरोधी समूह भी हैं, जो नक़ली पहचान पत्र बनाते हैं, छिपे हुए लोगों को आर्थिक सहायता देते हैं, छिपने की जगहों का इंतज़ाम करते हैं और भूमिगत हुए युवा ईसाइयों के लिए काम का इंतज़ाम करते हैं। यह आश्चर्यजनक है कि ये उदार व निःस्वार्थी लोग कितना कुछ करते हैं, अन्य लोगों की मदद व उन्हें बचाने के लिए अपनी ज़िंदगी को ख़तरे में डालते हैं।

हमारी मदद करने वाले लोग इसका सबसे अच्छा उदाहरण हैं, जिन्होंने अब तक ज़िंदा रहने में हमारी मदद की है और उम्मीद है कि हमें हालात से सुरक्षित निकाल पाएँगे, वरना उनकी नियति भी वही हो सकती है, जो उनकी है, जिन्हें वे बचाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कभी हमारे बोझ होने की बात पर कुछ नहीं कहा है, उन्होंने कभी यह शिकायत नहीं की है कि हम कितनी बड़ी मुसीबत हैं। वे हर रोज़ ऊपर आते हैं, पुरुषों से कामकाज व राजनीति की बात करते हैं, महिलाओं से खाने-पीने व युद्ध की मुश्किलों की बात करते हैं और बच्चों से किताबों व अख़बारों की चर्चा करते हैं। वे चेहरे पर ख़ुशनुमा भाव रखते हैं, जन्मदिन व ख़ास मौकों पर फूल व सौगातें लाते हैं और हमेशा वह सब करने के लिए तैयार रहते हैं, जो वे कर सकते हैं। हमें यह बात कभी नहीं भूलनी चाहिए; बाक़ी लोग जब युद्ध या जर्मनों के ख़िलाफ़ अपनी बहादुरी दिखाते हैं, हमारे मददगार हर रोज़ अपने उत्साह व प्रेम से अपनी वीरता साबित करते हैं।

बहुत अजीब सी बातें सुनने को मिल रही हैं और उनमें से अधिकतर सच हैं। उदाहरण के लिए, मि. क्लेमन ने इस सप्ताह बताया कि गेल्डरलैंड क्षेत्र में एक फुटबॉल मैच हुआ, जिसमें एक टीम में भूमिगत हो चुके लोग थे और दूसरी में मिलिट्री पुलिसमैन । इल्फ़र्शम में नए पंजीकरण कार्ड जारी किए गए। गुप्त रूप से रह रहे लोगों को राशन (अपनी राशन बुक पाने के लिए आपको इस कार्ड को दिखाना पड़ता है या फिर हर बुक के लिए 60 गिल्डर्स देने होंगे) मिल सके, इसलिए रजिस्ट्रार ने एक ज़िले में छिपे लोगों को एक निश्चित समय पर अपने कार्ड लेने के लिए कहा, जब एक अलग मेज़ पर दस्तावेज़ लिए जा सकते थे।

इसके अलावा यह सावधानी बरतना भी ज़रूरी है कि इस तरह के करतबों की ख़बर जर्मनों के कानों तक न पहुँचे।

तुम्हारी, ऐन

रविवार, 30 जनवरी, 1944

प्रिय किटी,

एक और रविवार आ गया; उनके आने से मुझे उतना फ़र्क़ नहीं पड़ता, जितना कि पहले पड़ता था, लेकिन फिर भी वे उबाऊ हैं।

मैं अभी गोदाम नहीं गई हूँ, लेकिन शायद जल्दी ही जाऊँगी। कल रात मैं अँधेरे में अकेले नीचे गई, कुछ समय पहले मैं पापा के साथ गई थी। जर्मन जहाज़ उड़ रहे थे और मैं सीढ़ियों पर ऊपर खड़ी थी और मैं जानती थी कि मैं अकेली हूँ और किसी पर मदद के लिए निर्भर नहीं कर सकती । मेरा डर ग़ायब हो गया। मैंने आसमान की तरफ़ देखा और ईश्वर में विश्वास जताया।

मुझमें अकेले रहने की गहरी इच्छा थी। पापा ने गौर किया कि मैं अपने आपे में नहीं थी, लेकिन मैं उन्हें नहीं बता सकती कि मुझे कौन सी चिंता खाए जा रही है। मैं बस चिल्लाना चाहती थी, 'मुझे अकेला छोड़ दो!'

कौन जानता है कि शायद ऐसा कोई दिन आए, जब मुझे अकेला छोड़ दिया जाएगा।

तुम्हारी, ऐन

बृहस्पतिवार, 3 फ़रवरी, 1944

प्रिय किटी,

पूरे देश में हमले का बुख़ार बढ़ता जा रहा है। अगर तुम यहाँ होती, तो यह बात पक्की है कि तुम भी तैयारियों को देखकर मेरी तरह ही प्रभावित होती, हालाँकि तुम हमारे गड़बड़झाले पर भी ज़रूर हँसती हो सकता है कि कुछ भी न हो !

अख़बार हमले की ख़बरों से भरे हैं और इस तरह के वक्तव्यों से हर किसी को पागल कर रहे हैं: 'हॉलैंड में ब्रिटिश के आने से जर्मन वह सब करेंगे, जो अपने देश को बचाने के लिए किया जा सकता हैं, अगर ज़रूरी हो तो बाढ़ भी लाई जा सकती है।' उन्होंने हॉलैंड के नक्शे छापे हैं, जिनमें संभावित बाढ़ वाले इलाके चिन्हित किए गए हैं। ऐम्स्टर्डम के बड़े हिस्सों को चिन्हित किया गया है, इसलिए हमारा पहला सवाल था कि अगर हमारे यहाँ पानी कमर तक आ पहुँचे तो हमें क्या करना चाहिए। इस पेचीदा सवाल पर कई तरह की प्रतिक्रियाएँ आई ।

'चलना या फिर साइकिल चलना नामुमकिन हो जाएगा, इसलिए हमें पानी से होकर गुज़रना होगा। '

'बेवकूफ़ी की बात मत करो। हमें कोशिश करनी होगी और तैरना होगा। हम सबको अपनी तैराकी की पोशाक पहननी होगी और जितना हो सके, पानी के नीचे तैरना होगा, ताकि कोई देख न ले कि हम यहूदी हैं । '

'बकवास ! मैं कल्पना कर सकता हूँ कि महिलाएँ तैर रही होंगी और चूहे उनकी टाँगें काट रहे होंगे!' (ज़ाहिर है कि किसी पुरुष ने ऐसी बात कही होगी; हम देखेंगे कि कौन सबसे ज्यादा चीख़ेगा!)

'हम लोग घर से भी नहीं निकल पाएँगे। गोदाम इतना अस्थिर है कि बाढ़ आने पर वह बर्बाद हो जाएगा।'

'सभी बात सुनिए, मज़ाक की बात छोड़ दें, तो हमें वाक़ई कोशिश करनी होगी और नाव प्राप्त करनी होगी।'

'फ़िक्र क्यों करें? मेरे पास बेहतर विचार है। हम सभी अटारी से लकड़ी की एक-एक पेटी ले लेंगे और लकड़ी के चम्मच से उसे पानी में चलाएँगे।'

'मैं तो शहतीरों पर चलूँगा। मैं बचपन में इसमें माहिर था । '

'यान गीज़ को को ज़रूरत नहीं होगी। वे अपनी पत्नी को पीठ पर लादेंगे और फिर मीप शहतीरों पर होंगी।'

तो अब तुम्हें समझ आ गया होगा कि यहाँ क्या चल रहा है, है न, किट ? यह हल्का-फुल्का मज़ाक काफ़ी मनोरंजक है, लेकिन असलियत इससे अलग होगी। हमले को लेकर यह दूसरा सवाल उठना स्वाभाविक है: अगर जर्मन ऐम्स्टर्डम को खाली कराएँगे, तो हमें क्या करना चाहिए?

'बाक़ी लोगों के साथ शहर छोड़ देंगे। जितना संभव हो, अपना रूप बदल लेंगे। '

'जो भी हो, बाहर मत जाना! बेहतर होगा कि हम अंदर रहें! जर्मन हॉलैंड के सभी लोगों को जर्मनी में जमा करने की क्षमता रखते हैं, जहाँ वे सभी मर जाएँगे।'

'हम तो यहीं रहेंगे। यह सबसे सुरक्षित जगह है। हम क्लेमन और उनके परिवार को यहाँ आकर रहने को कह सकते हैं। हम किसी तरह से लकड़ी की छीलन के बोरे का इंतज़ाम कर सकते हैं, ताकि हम फ़र्श पर सो सकें। ज़रूरत पड़ने पर मीप व क्लेमन को हम कुछ कम्बल लाने के लिए कह सकते हैं। हम अतिरिक्त अनाज भी मँगवा सकते हैं, जो हमारे पैंसठ पाउंड के भंडार में जमा हो जाएगा। यान कुछ और बीन्स लाने की कोशिश कर सकते हैं। फ़िलहाल हमारे पास पैंसठ पाउंड बीन्स हैं और दस पाउंड मटर की दाल। हमारे पास सब्ज़ियों के पचास टिन भी हैं।'

'बाक़ी का क्या, माँ? हमें नए आँकड़े चाहिए।

'मछली के दस, दूध के चालीस टिन, बीस पाउंड पाउडर दूध, तेल की तीन बोतलें, मक्खन के चार डिब्बे, मांस के चार मर्तबान, स्ट्रॉबेरी के दो बड़े मर्तबान, दो रसभरी के, टमाटर के बीस मर्तबान, दस पाउंड ओटमील, नौ पाउंड चावल । बस, इतना ही। '

हमारे पास अच्छी व्यवस्था है। इसके अलावा हमें दफ़्तर के कर्मचारियों को भी भोजन करवाना होता है, जिसका मतलब है कि हमारे भंडार हर सप्ताह कम होते जा रहे हैं, इसलिए ये इतना नहीं है जितना कि लगता है। हमारे पास पर्याप्त कोयला, ईंधन की लकड़ी और मोमबत्तियाँ भी हैं।

'हम अपने कपड़ों में छिपाने के लिए पैसे रखने के छोटे बटुए बना लेते हैं, ताकि यहाँ से जाने की स्थिति में हम अपने साथ अपना पैसा ले जा सकें।'

'यहाँ से भागने की स्थिति में ले जाने लायक़ सामान की हमें सूची बना लेनी चाहिए और अपने थैले तैयार रखने चाहिए।'

'समय आने पर हम दो लोगों को पहरे पर लगा देंगे, एक, घर के आगे के हिस्से में और दूसरा, पीछे वाले हिस्से में । '

'ज़रा ठहरो, इतने खाने का क्या फ़ायदा अगर हमारे पास पानी, गैस या बिजली न हो ?'

'हमें अंगीठी में खाना बनाना होगा। पानी को छानकर उबालना होगा। हमें बड़े जग साफ़ करके उनमें पानी भरकर रख देना चाहिए। हमें संरक्षण के काम आने वाले तीन कड़ाहों और टिन के बाथटब में भी पानी जमा कर देना चाहिए।'

'इसके अलावा हमारे पास अभी भी मसालों के भंडारगृह में दो सौ तीस पाउंड सर्दी के आलू भी हैं।'

दिन भर मैं यही सब सुनती हूँ। आक्रमण, आक्रमण, और कुछ भी नहीं। भूखे रहने, मरने, बमों, अग्निशमन, स्लीपिंग बैग, पहचान पत्र, ज़हरीली गैस, वगैरह, वगैरह के बारे में बहस। कोई भी हँसी-ख़ुशी की बात नहीं ।

पुरुषों की टुकड़ी की स्पष्ट चेतावनी का एक बढ़िया उदाहरण यान से उनकी बातचीत है:

अनेक्स: 'हमें डर है कि अगर जर्मन पीछे हटे, तो वे अपने साथ सभी लोगों को ले जाएँगे।'

यानः 'वह नामुमकिन है। उनके पास पर्याप्त रेलगाड़ियाँ नहीं हैं।'

अनेक्स: 'रेलगाड़ियाँ? क्या आपको लगता है कि वे आम नागरिकों को रेलगाड़ियों में ले जाएँगे? बिलकुल भी नहीं। हर किसी को चलकर जाना होगा।' (या जैसे कि दुसे कहते हैं, प्रचारकों का अनुसरण करना होगा । )

यानः 'मुझे यक़ीन नहीं आता। आप हमेशा बुरे पक्ष को देखते हैं। सभी नागरिकों को इकट्ठा करने व साथ ले जाने का वे क्या कारण देंगे?'

अनेक्स: 'क्या आपने गबेत्स की वह कहावत नहीं सुनी कि अगर जर्मनों को जाना होगा, तो वे अपने पीछे सभी कब्ज़े वाले क्षेत्रों के लिए दरवाज़े बंद कर देंगे?'

यान: ‘उन्होंने तो काफ़ी कुछ कहा है। '

अनेक्स: 'क्या आपको लगता है कि जर्मन इतने अच्छे या इंसानियत भरे हैं? उनका तर्क है: अगर हम डूबेंगे, तो सभी को लेकर डूबेंगे।'

यान: ‘आपको जो अच्छा लगे, आप कहें, मुझे तो विश्वास नहीं है । '

अनेक्स: 'वही घिसी-पिटी कहानी है। ख़तरे के बिलकुल सामने आ जाने तक कोई उसे देखना नहीं चाहता।'

यान: 'लेकिन आप पक्के तौर पर कुछ नहीं कह सकते। आप सिर्फ़ एक धारणा बना रहे हैं। '

अनेक्सः 'क्योंकि हम ख़ुद इन सबसे गुज़र चुके हैं। पहले जर्मनी में और फिर यहाँ पर आपको क्या लगता है कि रूस में क्या हो रहा है?'

यानः 'आपको यहूदियों को शामिल नहीं करना चाहिए। मुझे नहीं लगता कि कोई भी रूस के बारे में जानता है। शायद जर्मनों की तरह ही ब्रिटिश और रूसी प्रचार के लिए बढ़ा-चढ़ाकर कह रहे हैं।

अनेक्स: 'बिलकुल भी नहीं। बीबीसी हमेशा सच बताता है। अगर ख़बर थोड़ी अतिशयोक्ति भी है, तब भी तथ्य तो मौजूद हैं। आप इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि पोलैंड और रूस में शांतिप्रिय नागरिकों की हत्या की जा रही है या ज़हरीली गैस से मारा जा रहा है।'

मैं तुम्हें बाक़ी की बातचीत नहीं बताऊँगी। मैं काफ़ी शांत हूँ और इस सारे झंझट पर गौर नहीं करती। मैं ऐसे मोड़ पर पहुँच गई हूँ, जहाँ मुझे इस बात की परवाह नहीं कि मैं ज़िंदा रहूँ या मर जाऊँ। दुनिया मेरे बिना भी चलती रहेगी और मैं वैसे भी हालात को बदलने के लिए कुछ भी नहीं कर सकती। मैं तो घटनाओं को होने दूँगी और पढ़ाई पर ध्यान लगाऊँगी और उम्मीद करूँगी कि आख़िर में सब कुछ ठीक हो जाए।

मंगलवार, 8 फ़रवरी, 1944

प्रिय किटी,

मैं तुम्हें बता नहीं सकती कि मैं कैसा महसूस कर रही हूँ। एक पल को मैं शांति व सुकून की चाह करती हूँ और अगले ही पल थोड़ी मस्ती करना चाहती हूँ। हम हँसना भूल गए हैं, मेरा मतलब है कि ऐसी हँसी, जो रोके न रुक पाए।

आज सुबह मैं खिलखिलाई, ठीक वैसे ही जैसे स्कूल में खिलखिलाती थी। मैं और मारगोट किशोरियों की तरह हँसे ।

कल रात माँ के साथ फिर एक घटना हुई। मारगोट ऊनी कम्बल लपेट रही थी कि अचानक वह बिस्तर से बाहर उछली और कम्बल को ध्यान से देखने लगी। तुम्हें क्या लगता है कि उसे क्या मिला? एक सुई ! माँ ने कम्बल को सिला था और सुई निकालना भूल गई थीं। पापा ने अर्थपूर्ण ढंग से सिर हिलाया और माँ के लापरवाह होने पर टिप्पणी की। थोड़ी देर में माँ गुसलखाने से बाहर निकलीं और उन्हें छेड़ने के लिए मैंने कहा, 'ओह, आप बेरहम हैं।'

ज़ाहिर है कि वे जानना चाहती थीं कि मैंने वैसा क्यों कहा और हमने उन्हें बताया कि उन्होंने सुई छोड़ दी थी। उन्होंने तुरंत अहंकारी भाव अपनाते हुए कहा, 'तुम तो बात ही मत करो। जब तुम सिलाई कर रही होती हो, तो पूरे फ़र्श पर सुइयाँ बिखरी होती हैं। तुमने मैनिक्योर सेट फिर ऐसे ही छोड़ दिया। वैसे भी तुम उसे वापस रखती ही कहाँ हो !'

मैंने कहा कि मैंने उसका इस्तेमाल नहीं किया और मारगोट ने मेरा साथ दिया, क्योंकि वह उसकी ही ग़लती थी। माँ बोलती चली गई कि मैं कितनी अव्यवस्थित हूँ और तब तक बोलती गईं जब तक कि मैं उकता नहीं गई और रूखे शब्दों में कहा, 'मैंने तो आपको लापरवाह तक नहीं कहा। मुझ पर हमेशा बाक़ी लोगों की ग़लतियों का इल्ज़ाम लगता है!'

माँ चुप हो गईं और एक मिनट से भी कम समय के बाद मुझे उन्हें शुभरात्रि कहकर चूमना पड़ा। यह घटना बहुत महत्त्वपूर्ण न भी रही हो, फिर भी आजकल मैं हर चीज़ से चिढ़ जाती हूँ।

ऐन मैरी फ़्रैंक

शनिवार, 12 फ़रवरी, 1944

प्रिय किटी,

सूरज चमक रहा है, आसमान गहरा नीला है, अच्छी हवा चल रही है और मैं चाह रही, सचमुच चाह रही हूँ, हर चीज़ बातचीत, आज़ादी, दोस्त, अकेले रहना। मैं... रोना चाहती हूँ! मुझे लगता है कि जैसे मैं फट पहूँगी। मैं जानती हूँ कि रोने से मदद मिलेगी, लेकिन मैं रो नहीं सकती। मैं बेचैन हूँ। मैं एक कमरे से दूसरे कमरे में जाती हूँ, खिड़की की चौखट की दरार से साँस लेती हूँ, अपने दिल की धड़कन महसूस करती हूँ जैसे कि कह रही हूँ, 'मेरी मुराद पूरी कर दो...'

मुझे लगता है कि मेरे भीतर बंसत है। बसंत के जागने को महसूस करती हूँ। मैं उसे अपने पूरे शरीर और आत्मा में महसूस करती हूँ । मुझे सामान्य बर्ताव करना पड़ता है। मैं बहुत असमंजस में हूँ, नहीं जानती कि क्या पढ़ना है, क्या लिखना है, क्या करना है। मैं बस जानती हूँ कि मुझे किसी चीज़ की चाह है....

तुम्हारी, ऐन

सोमवार, 14 फ़रवरी, 1944

प्रिय किटी,

शनिवार के बाद से मेरे लिए काफ़ी कुछ बदल गया है। कुछ ऐसा हुआ: मुझे किसी चीज़ की चाह थी (अब भी है), लेकिन... समस्या का एक छोटा सा, बहुत छोटा सा हिस्सा सुलझ गया है।

रविवार सुबह मुझे यह गौर करके ख़ुशी (मैं तुम्हारे साथ ईमानदारी बरतूँगी) हुई कि पीटर लगातार मेरी तरफ़ देख रहा था। वह कुछ अलग था। मैं नहीं जानती, मैं बता भी नहीं सकती, लेकिन अचानक मुझे महसूस हुआ कि उसे मारगोट से प्रेम नहीं था, जैसा कि मैं सोचती थी। मैं दिन भर कोशिश करती रही कि उसकी तरफ़ ज्यादा न देखूँ, लेकिन जब भी मैंने उसकी ओर देखा, उसे अपनी तरफ़ देखते हुए पाया और फिर, मुझे असल में अंदर से बहुत अच्छा लगा, ऐसा मुझे अक्सर महसूस नहीं होता ।

रविवार की शाम मुझे और पिम को छोड़कर बाक़ी सब रेडियो आसपास 'जर्मन उस्तादों का अमर संगीत सुनने के लिए जमा थे। दुसे रेडियो के बटन घुमाते रहे, जिससे पीटर व बाक़ी लोग चिढ़ गए। आधे घंटे तक संयम रखने के बाद पीटर ने कुछ चिढ़कर दुसे से कहा कि क्या वे रेडियो के साथ छेड़छाड़ करना बंद करेंगे। दुसे ने अपने अहंकारी अंदाज़ में कहा, 'उसका फ़ैसला मैं करूँगा ! ' पीटर नाराज़ हो गया और उसने ढिठाई भरी टिप्पणी की। मि. फ़ॉन डान ने उसका पक्ष लिया और दुसे को पीछे हटना पड़ा। बस, इतना ही हुआ।

असहमति का कारण अपने आप में बहुत दिलचस्प नहीं था, लेकिन लगता है कि पीटर ने मामले को दिल पर ले लिया, क्योंकि आज सुबह जब मैं अटारी में किताबों के डिब्बे की खोजबीन में लगी थी, तो पीटर ऊपर आकर मुझे बताने लगा कि क्या हुआ था । मैं उसके बारे में कुछ भी नहीं जानती थी, लेकिन पीटर ने जल्दी ही महसूस कर लिया कि उसे बात ध्यान से सुनने वाला श्रोता मिल गया है और गर्मजोशी से बात बताने लगा।

'दरअसल हुआ यूँ,' उसने कहा । 'मैं अक्सर ज्यादा बात नहीं करता, क्योंकि मैं जानता हूँ कि जल्दी ही मैं चुप हो जाऊँगा। मैं हकलाने व शर्माने लगता हूँ और मैं अपने शब्द इतने घुमाता हूँ कि मुझे आख़िरकार रुकना पड़ता है, क्योंकि मुझे सही शब्द नहीं मिल पाते। कल भी ऐसा ही हुआ। मैं कुछ और कहना चाहता था, लेकिन एक बार बात शुरू होने पर सब कुछ उलझ गया। यह बहुत बुरा है। मेरी एक बुरी आदत थी और मुझे लगता है कि अब भी होती: जब भी मैं किसी पर गुस्सा होता था, तो मैं उसके साथ बहस करने के बजाय उसकी पिटाई कर दिया करता था । मैं जानता हूँ कि यह तरीक़ा मुझे कहीं नहीं ले जाएगा, इसलिए मैं तुम्हें सराहता हूँ । तुम्हारे पास कभी शब्दों की कमी नहीं होती: तुम ठीक वही कहती हो, जो कहना चाहती हो और बिलकुल भी नहीं झिझकती । '

'अरे, इस बारे में तुम ग़लत हो,' मैंने जवाब दिया। 'मैं अधिकतर जो कुछ कहती हूँ, वह उस बात से बहुत अलग होता है, जो मैं बोलने की सोचती हूँ। इसके अलावा मैं बहुत और काफ़ी लंबे समय तक बोलती हूँ और वह भी उतना ही बुरा है।

'शायद, लेकिन तुम्हें यह फ़ायदा है कि कोई नहीं देख सकता कि तुम झेंप गई हो। तुम शर्माती नहीं हो या फिर घबरा नहीं जाती हो ।'

उसकी बात सुनकर मैं भीतर ही भीतर हँसने से ख़ुद को नहीं रोक पाई। लेकिन मैं चाहती थी कि वह अपने बारे में बात करता रहे, इसलिए मैंने अपनी हँसी को छिपा लिया, फ़र्श पर कुशन पर बैठ गई, अपने घुटनों पर बाँहें लपेट ली और उसकी तरफ़ देखने लगी।

मुझे खुशी है कि इस घर में कोई और हैं, जिसे मेरी तरह ही गुस्सा आता है। मैं समझ गई कि पीटर इस बात को लेकर राहत में था कि बिना डरे वह दुसे की आलोचना कर पाया। जहाँ तक मेरा सवाल है, मैं भी ख़ुश थी, क्योंकि मुझे किसी के साथ का एक ज़बरदस्त एहसास हुआ, जो मेरा अपनी सहेलियों के साथ था।

तुम्हारी, ऐन

मंगलवार, 15 फ़रवरी, 1944

दुसे के साथ छोटे से टकराव के कई प्रभाव हुए, जिसके लिए वे ख़ुद ही दोषी थे। सोमवार शाम को दुसे माँ से मिलने आए और बड़े विजयी भाव से उन्हें बताया कि पीटर ने सुबह उनसे हालचाल पूछे और कहा कि रविवार शाम की घटना को लेकर उसे काफ़ी अफ़सोस है कि उसका मतलब वह नहीं था, जो उसने कहा । दुसे ने उसे आश्वस्त किया कि उन्होंने बात को दिल पर नहीं लिया है। सब कुछ बिलकुल ठीक है। माँ ने यह कहानी मुझे सुनाई और मैं इस बात पर हैरान थी कि दुसे से काफ़ी नाराज़ पीटर अपने तमाम आश्वासनों के ठीक उलट आख़िरकार झुक गया।

मैं इस पर पीटर से बात करने से ख़ुद को नहीं रोक पाई और उसने तुरंत कहा कि दुसे झूठ बोल रहे थे। तुम्हें पीटर का चेहरा देखना चाहिए था। काश, उस समय मेरे पास कैमरा होता ! उसके चेहरे पर तेज़ी से एक के बाद एक नाराज़गी, रोष, अनिर्णय, आवेश और कई अन्य भाव दिखाई दिए।

उस शाम मि. फ़ॉन डान व पीटर ने वाक़ई दुसे के सामने अपनी नाराज़गी व्यक्त की। लेकिन यह सब उतना बुरा नहीं हो सकता था, क्योंकि आज पीटर को दाँत दिखाने के लिए डॉक्टर से मिलना था ।

वे फिर कभी एक-दूसरे से बात नहीं करना चाहते थे।

बुधवार, 16 फ़रवरी, 1944

बस, थोड़े से निरर्थक शब्दों के अलावा पीटर और मैंने दिन भर ज्यादा बात नहीं की। ठंड इतनी थी कि मैं अटारी तक नहीं गई और वैसे भी मारगोट का जन्मदिन था। साढ़े बारह बजे वह उपहारों को देखने आया और ज़रूरत से ज्यादा लंबे समय तक बातचीत करने के लिए रुका रहा, जैसा कि उसने पहले कभी नहीं किया था। लेकिन मुझे दोपहर में अवसर मिला । मैं मारगोट को उसके जन्मदिन पर ख़ास महसूस करवाना चाहती थी, इसलिए मैं उसके लिए कॉफ़ी लाई और बाद में आलू भी। जब मैं पीटर के कमरे में पहुँची, तो उसने सीढ़ियों से तुरंत अपने काग़ज़ उठा लिए और मैंने उससे पूछा कि मुझे अटारी का चोर दरवाज़ा बंद कर देना चाहिए या नहीं।

'बिलकुल, ' उसने कहा, 'कर दो। जब तुम नीचे जाने के लिए तैयार होगी, तब दस्तक देना, मैं तुम्हारे लिए खोल दूँगा ।'

मैंने उसका धन्यवाद किया, ऊपर गई और कम से कम दस मिनट तक पीपे में सबसे छोटे आलू खोजती रही। मेरी पीठ दुखने लगी, अटारी में काफ़ी ठंड थी। ज़ाहिर है कि मैंने दस्तक देने के बजाय ख़ुद ही चोर दरवाज़ा खोल लिया। लेकिन वह उठा और उसने मेरे हाथ से बर्तन ले लिया।

'मैंने काफ़ी खोजा, लेकिन मुझे इससे छोटे आलू नहीं मिले। '

'क्या तुमने बड़े पीपे में देखा ?'

'हाँ, सबको छान मारा।'

तब तक मैं सीढ़ियों पर नीचे पहुँच चुकी थी, उसने बर्तन को ध्यान से देखा । 'ये भी ठीक हैं,' उसने कहा और जैसे ही मैंने उससे बर्तन लिया, वह बोला, 'मेरी शुभकामनाएँ!'

यह कहते हुए उसने इतनी गर्मजोशी व नर्मी से मुझे देखा कि मैं अंदर से दमकने लगी। मैं देख सकती थी कि वह मुझे ख़ुश करना चाहता था, लेकिन क्योंकि वह लंबी बात नहीं कर सकता था, इसलिए उसने सब कुछ अपनी आँखों से कह दिया। मैं उसे इतनी अच्छी तरह समझ गई और भीतर से बहुत कृतज्ञ हो गई। उन शब्दों व उस नज़र को याद करके मैं अब भी ख़ुश हो जाती हूँ!

जब मैं नीचे गई, तो माँ ने कहा कि उन्हें रात के खाने के लिए और आलू चाहिए, इसलिए मैंने यह काम करने की ज़िम्मेदारी ली। पीटर के कमरे में पहुँचने पर मैंने उसे फिर से परेशान करने के लिए माफ़ी माँगी। जैसे ही सीढ़ियों से ऊपर जाने लगी, तो वह उठा और सीढ़ियों व दीवार के बीच खड़ा हो गया, मेरी बाँह पकड़ी और मुझे रोकने की कोशिश की।

'मैं जाऊँगा,' उसने कहा । 'मुझे वैसे भी ऊपर जाना है।'

मैंने कहा कि उसकी ज़रूरत नहीं है और यह कि मुझे इस बार सिर्फ़ छोटे आलू ही नहीं लाने हैं। मेरी बात से आश्वस्त होकर उसने मेरी बाँह छोड़ दी। वापस आते समय उसने चोर दरवाज़ा खोला और एक बार फिर मुझसे बर्तन ले लिया। दरवाज़े पर खड़े-खड़े मैंने उससे पूछा, 'तुम क्या पढ़ाई कर रहे हो?'

'फ्रेंच की, ' उसका जवाब था ।

मैंने पूछा कि क्या मैं उसके सबक़ देख सकती हूँ। फिर मैं हाथ धोने गई और दीवान पर उसके सामने बैठ गई ।

फ्रेंच के बारे में कुछ समझाने के बाद हमने बात शुरू की। उसने मुझे बताया कि युद्ध के बाद वह डच ईस्ट इंडीज़ जाना चाहता है और रबड़ के बागान में रहना चाहता है। उसने घर की अपनी ज़िंदगी, काला बाज़ार के बारे में बताया और यह भी कि वह कितना बेकार का लड़का है। मैंने उसे बताया कि उसमें हीन भावना है। उसने युद्ध की बात की, यहूदियों की बात की और कहा कि रूस व इंग्लैंड एक-दूसरे के ख़िलाफ़ लड़ाई करेंगे। उसने कहा कि अगर वह ईसाई होता, तो जिंदगी काफ़ी आसान होती और लड़ाई के बाद वह ईसाई बन सकता है। मैंने उससे पूछा कि क्या वह बपतिस्मा करवाना चाहता है, लेकिन उसका मतलब वह भी नहीं था। उसने कहा कि वह कभी भी ईसाई जैसा महसूस नहीं कर पाएगा, लेकिन युद्ध के बाद वह यह ज़रूर करेगा कि कोई न जान पाए कि वह यहूदी है। पल भर के लिए मेरे मन में टीस उठी। यह शर्मनाक है कि उसमें अब भी थोड़ी सी बेईमानी बाक़ी है।

पीटर ने आगे कहा, 'यहूदी हमेशा से चुनिंदा लोग थे और हमेशा रहेंगे!'

मैंने जवाब दिया, 'मुझे उम्मीद है कि वे किसी अच्छे काम के लिए चुने जाएँगे!'

हम पापा, मानव चरित्र को आँकने व कई तरह के विषयों पर अच्छी तरह बात करते रहे, बातें इतनी थी कि मुझे सब याद भी नहीं हैं।

मैं सवा पाँच बजे निकली, क्योंकि बेप आ चुकी थी ।

उस शाम उसने कुछ और भी कहा था, जो मुझे अच्छा लगा था। हम एक फ़िल्मी सितारे की तसवीर की बात कर रहे थे, जो मैंने कभी उसे दी थी और वह तसवीर पिछले डेढ़ साल से उसके कमरे में टँगी थी। उसे वह इतनी पसंद आई कि मैंने उसे और तसवीरें देने की पेशकश की।

'नहीं, ' उसने कहा, 'मैं बस इसे रखूँगा। मैं इसे हर रोज़ देखता हूँ और इसमें मौजूद लोग अब मेरे दोस्त बन चुके हैं।'

अब मुझे बेहतर ढंग से समझ आता है कि वह क्यों मूशी को इतना कसकर गले लगाता है। ज़ाहिर है कि उसे भी स्नेह चाहिए। मैं एक और बात बताना भूल गई, जो वह कह रहा था। उसने कहा, 'नहीं, मैं डरता नहीं हूँ । बस, जब ख़ुद से जुड़ी बात आती है तो गड़बड़ हो जाती है, उसे बेहतर बनाने पर मैं काम कर रहा हूँ ।

पीटर में हीन भावना बहुत है। उदाहरण के लिए, उसे लगता है कि वह बहुत बेवकूफ़ है और हम काफ़ी चतुर हैं। जब मैं फ्रेंच में उसकी मदद करती हूँ, तो वह मुझे हज़ार बार शुक्रिया कहता है। किसी भी दिन मैं उससे कहने वाली हूँ, 'अरे, बस भी करो ! तुम अंग्रेज़ी व भूगोल में बहुत बेहतर हो !'

तुम्हारी, ऐन फ्रैंक

बृहस्पतिवार, 17 फ़रवरी, 1944

प्रिय किटी,

आज सुबह मैं ऊपर थी, क्योंकि मैंने मिसेज़ फ़ॉन डी से वादा किया था कि मैं उन्हें अपनी कुछ कहानियाँ सुनाऊँगी। मैंने 'ईवा के सपने' से शुरुआत की, जो उन्हें बहुत अच्छी लगी और फिर मैंने 'सीक्रेट ऐनेक्स' से कुछ पढ़कर सुनाया, जिसमें वे कहीं-कहीं थीं। पीटर ने भी थोड़ी देर ( आख़िरी हिस्सा) सुना और मुझसे पूछा कि क्या मैं थोड़ा और पढ़ने उसके कमरे में आ सकती हूँ।

मैंने सोच लिया था कि मुझे तुरंत इस मौक़े को लपकना होगा, इसलिए मैंने अपनी पुस्तिका ली और उसे उस हिस्से को पढ़ने दिया, जिसमें केडी और हान्स ईश्वर के बारे में बात करते हैं। मैं नहीं कह सकती कि उस पर उसका क्या असर पड़ा। उसने कुछ कहा था, जो मुझे याद नहीं, उसने उसके अच्छा होने की नहीं, बल्कि उसके पीछे मौजूद विचार की बात की थी। मैंने उसे कहा कि मैं उसे बस दिखाना चाहती थी कि मैं सिर्फ़ मज़ाकिया बातें नहीं लिखती । उसने सिर हिलाया और मैं कमरे से चली गई। देखते हैं कि कुछ और सुनने को मिलता है या नहीं!

तुम्हारी, ऐन फ्रैंक

शुक्रवार, 18 फ़रवरी, 1944

मेरी प्रिय किटी,

जब भी मैं ऊपर जाती हूँ, ताकि 'उसे' देख सकूँ। अब मेरे पास कोई उम्मीद है, इसलिए मेरी जिंदगी बहुत बेहतर हो गई है।

मेरा दोस्त यहीं मौजूद है और मुझे प्रतिद्वंद्वियों (मारगोट को छोड़कर) से कोई डर नहीं है। यह मत सोचो कि मुझे प्यार हो गया है, क्योंकि ऐसा नहीं है, लेकिन मुझे यह एहसास ज़रूर है कि पीटर और मेरे बीच कुछ ख़ूबसूरत सी चीज़ पनपेगी, एक तरह की दोस्ती और एक विश्वास की भावना । जब भी मुझे मौक़ा मिलता है, मैं उसे मिलने जाती हूँ और यह पहले की तरह नहीं हैं, जब उसे नहीं पता था कि मेरे साथ कैसा बर्ताव करना चाहिए। उसके उलट, मेरे दरवाज़े से बाहर निकलने तक वह बात करता रहता है। माँ को मेरा ऊपर जाना पसंद नहीं है। वे हमेशा कहती हैं कि मैं पीटर को परेशान कर रही हूँ और मुझे उसे अकेला छोड़ देना चाहिए। क्या वे मेरी सहज प्रवृत्ति को थोड़ा भाव नहीं दे सकतीं ? जब भी मैं पीटर के कमरे में जाती हूँ, तो वे मुझे अजीब ढंग से देखती हैं। मेरे नीचे आने पर वे मुझसे पूछती हैं कि मैं कहाँ गई थी। यह बहुत बुरा है, लेकिन मुझे उनसे नफ़रत होने लगी है!

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

शनिवार, 19 फ़रवरी, 1944

प्यारी किटी,

आज फिर शनिवार है और इससे तुम्हें काफ़ी पता चल जाना चाहिए। आज सुबह बहुत शांति थी। मैंने लगभग एक घंटा ऊपर मीटबॉल बनाने में बिताया, लेकिन मैंने 'उससे' सिर्फ़ सरसरी तौर पर बात की।

जब सभी लोग ढाई बजे पढ़ने या फिर झपकी लेने ऊपर चले गए, तो मैं कम्बल वगैरह लेकर नीचे गई, ताकि डेस्क पर बैठकर लिख या पढ़ सकूँ। थोड़ी ही देर में मैं ख़ुद पर काबू नहीं रख पाई। मैंने सिर अपनी बाँहों पर रखा और ख़ूब रोई । मेरे गालों पर आँसू गिरने लगे और मुझे बहुत दुख महसूस हुआ। काश ! 'वह' मुझे दिलासा देने आ पाता।

मेरे ऊपर जाने तक चार बज चुके थे। पाँच बजे मैं कुछ आलू लेने गई, इस उम्मीद में कि शायद फिर हमारी मुलाक़ात हो, लेकिन जब मैं गुसलखाने में अपने बाल बना रही थी, तो वह बॉश को देखने चला गया।

साढ़े नौ बजे : अँगीठियाँ जलाई जाती हैं, ब्लैक-आउट स्क्रीन हटा ली जाती है और मि. फ़ॉन डान गुसलखाने जाते हैं। रविवार सुबह का मेरा सबसे बड़ा कटु अनुभव बिस्तर पर लेटे-लेटे प्रार्थना करते हुए दुसे की पीठ को देखना है । यह अजीब लग सकता है, लेकिन प्रार्थना करते दुसे को देखना एक बहुत बुरा नज़ारा होता है। ऐसा नहीं है कि वे रोते हैं या फिर भावुक हो जाते हैं, बिलकुल भी नहीं, लेकिन वे पूरे पंद्रह मिनट प्रार्थना करने में लगाते हैं और ऐसा करते हुए वे पंजे व एड़ी को आगे-पीछे करते हैं। पीछे व आगे पीछे व आगे। यह चलता रहता है और अगर मैं अपनी आँखें कसकर बंद न करूँ, तो मेरा सिर घूमने लगता है।

सवा दस बजे : फ़ॉन डान परिवार सीटी बजाता है; गुसलखाना ख़ाली है। फ़्रैंक परिवार के हिस्से में नींद से उठते हुए चेहरे दिखाई देने लगते हैं। फिर सब कुछ तेज़ी से होने लगता है। मारगोट और मैं बारी-बारी से धुलाई करते हैं। नीचे काफ़ी ठंड है, इसलिए हम पतलून व सिर पर स्कार्फ़ पहन लेते हैं। इस बीच, पापा गुसलखाने में होते हैं। ग्यारह बजे मैं या फिर मारगोट नहाने के लिए जाते हैं और फिर हम सभी साफ़-सुथरे हो जाते हैं।

साढ़े ग्यारह बजे: नाश्ता । मैं इस पर कुछ नहीं कहूँगी, क्योंकि मैं चाहे कुछ न भी कहूँ, तब भी खाने पर काफ़ी बातचीत हो ही जाती है।

सवा बारह बजे सभी अपने रास्ते चले जाते हैं। ओवरऑल पहने पापा अपने घुटनों व हाथों के बल झुकते हैं और कालीन को इतने ज़ोर से रगड़ते हैं कि पूरे कमरे में धूल का गुबार छा जाता है। मि. दुसे बिस्तर लगाते हैं ( हमेशा ग़लत ही) और अपना काम करते हुए हमेशा बीथोवन की वही वायलिन संगीत रचना सीटी में बजाते हैं। माँ अटारी पर कपड़े डाल रही होती हैं और उनके पैरों की आहट सुनाई देती है। मि. फ़ॉन डान अपना हैट लगाते हैं और निचले हिस्से में ग़ायब हो जाते हैं, अक्सर पीटर व मूशी उनके पीछे होते हैं। मिसेज़ फ़ॉन डी बड़ा सा ऐप्रन, काली ऊनी जैकेट, ओवरशूज़ पहनती हैं और अपने सिर पर लाल ऊनी स्कार्फ़ लपेटती हैं। वे गंदे कपड़ों के ढेर को निकालती हैं और एक अनुभवी कपड़े धोनेवाली की तरह सिर हिलाते हुए नीचे जाती हैं। मारगोट और मैं बर्तन साफ़ करते हैं और कमरे की सफ़ाई करते हैं।

बुधवार, 23 फ़रवरी, 1944

मेरी प्रिय किटी,

कल से मौसम बहुत अच्छा है और मैं थोड़ा उत्साहित महसूस कर रही हूँ। मेरी सबसे अच्छी चीज़ मेरा लेखन भी बढ़िया चल रहा है। मैं लगभग हर सुबह अपने फेफड़ों से बासी हवा बाहर निकालने के लिए ऊपर अटारी पर जाती हूँ। आज सुबह जब मैं ऊपर गई, तो पीटर सफ़ाई में लगा था। उसने तेज़ी से काम पूरा किया और फ़र्श पर मेरी पसंदीदा जगह पर पहुँच गया। हम दोनों ने नीले आसमान की तरफ़ देखा, नंगे चेस्टनट पेड़ ओस से चमक रहे थे, हवा में उड़ान भर रहे सीगल व अन्य पक्षी रुपहले चमक रहे थे और हम वह सब देखते हुए इतने अभिभूत व मोहित हो गए कि हम कुछ नहीं कह सके। वह एक मोटी सी बीम पर सिर टिकाए खड़ा था और मैं बैठी हुई थी। हम हवा में साँस ले रहे थे, बाहर देख रहे थे और हम दोनों को लग रहा था कि उस जादू को शब्दों से नहीं तोड़ा जाना चाहिए था । हम काफ़ी समय तक वैसे ही रहे और जब वह लकड़ी काटने गया, तब तक मैं जान गई थी कि वह एक अच्छा, शिष्ट लड़का है। वह सीढ़ी पर चढ़कर ऊपर गया और मैं उसके पीछे-पीछे गई; पंद्रह मिनट तक वह लकड़ी काटता रहा और हमने कोई बात नहीं की। मैं अपने खड़े होने की जगह से उसे देखती रही और मैं देख सकती थी कि वह सही तरीक़े से लकड़ी काटने की बेहतरीन कोशिश कर रहा था और अपनी ताक़त दिखा रहा था। लेकिन मैं खुली खिड़की से बाहर भी देख रही थी और ऐम्स्टर्डम के बड़े से हिस्से पर भी नज़र डाल रही थी, छतों पर, क्षितिज पर, एक नीली पट्टी, जो इतनी हल्की थी कि लगभग अदृश्य थी।

'जब तक यह मौजूद है, ' मैंने सोचा, 'यह धूप और यह साफ़ आसमान, जब मैं इसका आनंद ले सकती हूँ, मैं दुखी कैसे हो सकती हूँ?'

जो लोग डरे हुए, अकेले या दुखी हैं, उनके लिए सबसे अच्छा इलाज बाहर जाना है, कहीं जहाँ वे आसमान, प्रकृति और ईश्वर के साथ अकेले समय बिता सकें। तभी और सिर्फ़ तभी आप महसूस कर सकते हैं कि सब कुछ वैसा ही है, जैसा होना चाहिए और ईश्वर चाहता है कि सभी लोग प्रकृति की सुंदरता व सादगी के बीच ख़ुश रहें।

जब तक यह है और यह हमेशा रहना चाहिए, मैं जानती हूँ कि हर कष्ट के लिए तसल्ली रहेगी, चाहे हालात जो भी हों। मेरा दृढ़ विश्वास है कि प्रकृति उन सभी लोगों को दिलासा दे सकती है, जो तकलीफ़ में हैं।

कौन जानता है कि शायद जल्दी ही मैं इस ख़ुशी के ज़बरदस्त एहसास को किसी ऐसे इंसान के साथ साझा करूँ, जो ऐसा ही महसूस करता हो।

पुनःश्च । पीटर के लिए कुछ ख़याल ।

तुम्हारी, ऐन

हमारे पास यहाँ काफ़ी कुछ नहीं है, काफ़ी कुछ और वह भी लंबे समय से। मैं भी चीज़ों का न होना तुम्हारे जितना ही महसूस करती हूँ। मैं बाहरी चीज़ों की बात नहीं कर रही, क्योंकि उस मायने में वे तो मौजूद हैं; मेरा मतलब भीतरी चीज़ों से है। तुम्हारी तरह मैं भी आज़ादी, ताज़ा हवा की इच्छा रखती हूँ, लेकिन मुझे लगता है कि उस नुक़सान की भरपाई होती रही है। मेरा मतलब है कि भीतर से ।

आज सुबह जब मैं खिड़की के पास बैठ कर जब बाहर ईश्वर व प्रकृति को गहराई से देख रही थी, तो मैं ख़ुश थी, बस ख़ुश थी। पीटर, जब तक लोग अपने भीतर उस तरह की ख़ुशी, प्रकृति का आनंद, स्वास्थ्य और उनके अलावा बहुत कुछ महसूस करते रहेंगे, तब तक वे ख़ुशी को हमेशा फिर से पाने में कामयाब रहेंगे।

धन-दौलत, यश, सब कुछ खो सकता है। लेकिन आपके अपने दिल की ख़ुशी सिर्फ़ मंद पड़ सकती है; वह आपको फिर से ख़ुश करने के लिए हमेशा वहाँ रहेगी, जब तक कि आप ज़िंदा हैं।

जब कभी तुम अकेले या दुखी महसूस करो, किसी ख़ूबसूरत दिन ऊपर जाना और बाहर देखने की कोशिश करना। घरों व छतों को नहीं, बल्कि आसमान को । जब तक तुम निडर होकर आसमान देख सकोगे, तब तक तुम जान पाओगे कि तुम भीतर से निर्मल हो और तुम्हें फिर से ख़ुशी मिल जाएगी।

रविवार, 27 फ़रवरी, 1944

मेरी प्रिय किटी,

सुबह से लेकर देर रात तक मैं बस पीटर के बारे में ही सोचती रहती हूँ। मैं अपनी आँखों में उसकी छवि लेकर सोती हूँ, उसके सपने देखती हूँ और उसके अपनी तरफ़ देखने के साथ उठती हूँ।

मैं ज़बरदस्त ढंग से महसूस करती हूँ कि पीटर और मैं असल में उतने अलग नहीं हैं, जितने कि ऊपर से दिखते हैं और मैं बताती हूँ कि ऐसा क्यों है: न पीटर की और न ही मेरी कोई माँ हैं। उसकी माँ बहुत सतही क़िस्म की है, उन्हें छेड़छाड़ पसंद है और उन्हें परवाह नहीं है कि पीटर के दिमाग़ में क्या कुछ चल रहा है। मेरी माँ मेरी ज़िंदगी में काफ़ी दिलचस्पी लेती हैं, लेकिन उनमें कौशल, संवेदनशीलता या माँ जैसी समझ नहीं है।

मैं और पीटर, हम दोनों ही अपने भीतरी एहसास से जद्दोजहद कर रहे हैं। हम अभी तक खुद को लेकर आश्वस्त नहीं हैं और भावनात्मक तौर पर इतने कच्चे हैं कि हमसे रुखाई से पेश नहीं आया जा सकता। जब कभी वैसा होता है, तो मैं बाहर भाग जाना चाहती हूँ या फिर अपनी भावनाओं को छिपाना चाहती हूँ। लेकिन वैसा करने के बजाय मैं बर्तन पटकती हूँ, पानी गिराती हूँ और आमतौर पर काफ़ी आवाज़ करती हूँ, ताकि हर कोई चाहे कि मैं उनसे मीलों दूर होती । पीटर की प्रतिक्रिया ख़ुद में सिमट जाने, कम बोलने, चुपचाप बैठ जाने और दिन में सपने देखने की होती है, इस बीच वह अपने वास्तविक रूप को सावधानी से छिपाकर रखता है।

लेकिन हम दोनों आख़िरकार एक-दूसरे तक पहुँचेंगे कैसे?

मैं नहीं जानती कि और कितना मैं उसके लिए अपनी ललक को क़ाबू में रख पाऊँगी।

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

सोमवार, 28 फरवरी, 1944

मेरी प्रिय किटी,

यह बुरे सपने की तरह है, ऐसा सपना जो जगने के बाद भी चलता रहता है। मैं लगभग हर रोज़ उसे देखती हूँ और फिर भी मैं उसके साथ नहीं हो सकती। मैं नहीं चाहती कि बाक़ी लोग गौर करें, मुझे ख़ुश होने का दिखावा करना पड़ता है, जबकि मेरा दिल दुख रहा होता है।

पीटर शिफ़ व पीटर फ़ॉन डान मिलकर एक पीटर बन गए हैं, जो अच्छा, नेक है और मुझे जिसकी गहरी लालसा है। माँ भयावह हैं, पापा अच्छे हैं, जिसके कारण वे और भी बुरे हो जाते हैं और मारगोट सबसे ख़राब है। वह मेरे मुस्कराते हुए चेहरे का फ़ायदा उठाती है और मुझ पर अपना दावा करती है, जबकि मैं अकेले रहना चाहती हूँ।

पीटर मेरे साथ अटारी पर नहीं था, वह लकड़ी का कुछ काम करने के लिए ऊपर चला गया। चोट की हर आवाज़ के साथ मेरी हिम्मत टूट रही थी और मैं ज्यादा नाख़ुश हो रही थी। कहीं दूर एक घड़ी घंटा बजा रही थी, 'दिल-दिमाग़ में निष्कपट रहो!'

मैं जानती हूँ कि मैं भावुक हूँ। मैं मायूस और बेवकूफ़ हूँ, मैं वह भी जानती हूँ। मेरी मदद करो!

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

बुधवार, 1 मार्च 1944

प्रिय किटी,

मेरे अपने मामले... चोरी की एक घटना से पृष्ठभूमि में चले गए। मैं तुम्हें यहाँ होने वाली चोरी की घटनाओं से उबा देती हूँ, लेकिन क्या करूँ चोरों को गीज़ ऐंड कंपनी में बार-बार आने में मज़ा आता है। यह घटना जुलाई, 1943 में हुई घटना से थोड़ी जटिल है।

कल रात साढ़े सात बजे मि. फ़ॉन डान रोज़ की तरह मि. कुगलर के दफ़्तर की तरफ़ जा रहे थे कि उन्होंने देखा कि काँच का और दफ़्तर का दरवाज़ा, दोनों खुले थे। उन्हें हैरानी हुई, लेकिन वे आगे बढ़े और उन्हें यह देखकर हैरानी हुई कि फ्रंट ऑफ़िस में खुलने वाले दरवाज़े भी बंद नहीं थे और ऑफ़िस अस्तव्यस्त था ।

चोरी होने की बात उनके दिमाग़ में कौंधी, लेकिन फिर भी पुष्टि करने के लिए वे नीचे सामने के दरवाज़े तक गए, ताला देखा और पाया कि सब कुछ बंद था । 'बेप और पीटर ने शाम को ज़रूर लापरवाही बरती होगी,' मि. फ़ॉन डी इस नतीजे पर पहुँचे। वे थोड़ी देर मि. कुगलर के दफ़्तर में रुके, लैम्प का स्विच बंद किया और खुले दरवाज़ों व अस्तव्यस्त दफ़्तर के बारे में ज्यादा चिंतित हुए बिना ऊपर चले गए।

आज सुबह पीटर ने हमारे दरवाज़े पर दस्तक देकर हमें बताया कि सामने का दरवाज़ा पूरी तरह खुला था और प्रोजेक्टर व अलमारी से मि. कुगलर का नया ब्रीफकेस ग़ायब था। पीटर को दरवाज़े पर ताला लगाने का निर्देश दिया गया। मि. फ़ॉन डान ने पिछली रात के बारे में बताया और हम सब काफी चिंतित हुए। यही कहा जा सकता है कि चोर के पास ज़रूर दूसरी चाबी होगी, क्योंकि ज़बरदस्ती घुसने के निशान मौजूद नहीं थे। वह शाम को जल्दी घुसा होगा, दरवाज़ा बंद किया होगा, मि. फ़ॉन डान के आने पर छिप गया होगा और उनके ऊपर जाने के बाद लूटपाट करके भाग गया होगा, जल्दबाज़ी में वह दरवाज़ा बंद करना भूल गया होगा।

किसके पास हमारी चाबी हो सकती है? चोर गोदाम में क्यों नहीं गया? क्या वह हमारे गोदाम का कोई कर्मचारी था, जिसने मि. फ़ॉन डान की आवाज़ सुनी या हो सकता है कि उन्हें देखा भी हो ? वह को हमारे बारे में बता सकता है।

यह सब बहुत डरावना है, क्योंकि हमें नहीं पता कि वह चोर फिर से यहाँ आने की कोशिश कर सकता है या नहीं। या फिर इमारत में किसी की आवाज़ सुनकर वह इतना चौंक गया कि वह अब यहाँ से दूर ही रहेगा?

तुम्हारी, ऐन

पुनःश्च । हमें ख़ुशी होगी अगर तुम हमारे लिए किसी अच्छे जासूस का पता कर दो। ज़ाहिर है कि इसमें एक शर्त होगी और वह यह कि उस पर इतना भरोसा किया जा सके कि वह छिपे हुए लोगों के बारे में किसी को न बताए ।

बृहस्पतिवार, 2 मार्च 1944

प्रिय किटी,

आज मैं और मारगोट अटारी में साथ थे। मुझे उसके साथ वहाँ उतना अच्छा नहीं लगता, जितना कि पीटर ( या किसी और के साथ। मुझे पता है कि वह भी अधिकतर चीज़ों के बारे में वैसा ही महसूस करती है, जैसा कि मैं ।

बर्तन धोते हुए बेप ने माँ और मिसेज़ फ़ॉन डान को बताया कि वह कितना हतोत्साहित महसूस करती है। ये दोनों उसे किस तरह की मदद की पेशकश कर सकती हैं? एक अकुशल माँ, जिसने ख़ासकर हालात को बद से बदतर बनाया है। तुम्हें पता है कि उन्होंने क्या सलाह दी ? यही कि उसे दुनिया के उन लोगों के बारे में सोचना चाहिए, जो तकलीफ़ में हैं ! अगर आप ख़ुद परेशान हैं, तो बाक़ी दुखी लोगों के बारे में सोचकर क्या मदद मिल सकती है? मैंने भी कुछ कहा। उनकी प्रतिक्रिया यही थी कि मुझे इस तरह की बातचीत से अलग रहना चाहिए।

ये बड़े लोग वाक़ई मूर्ख होते हैं! जैसे कि पीटर, मारगोट, बेप और मेरी एक जैसी भावनाएँ न हों। सिर्फ़ एक चीज़ मदद कर सकती है, वह है, माँ का प्यार या फिर किसी बहुत गहरे दोस्त का । लेकिन ये दोनों माँएँ हमारे में कुछ भी नहीं समझतीं । काश, मैं बेचारी बेप को कह सकती, कुछ ऐसा जो मैं अपने अनुभव से जानती हूँ और जिससे उसे मदद मिलती। लेकिन पापा हमारे बीच आ गए और मुझे एक तरफ़ कर दिया। वे सभी बहुत बेवकूफ़ हैं!

मैं मारगोट से पापा और माँ के बारे में बात करती हूँ कि कितना अच्छा होता अगर वे हालात बिगाड़ने वाले नहीं होते। हम ऐसी शामां का आयोजन करते, जिनमें हर कोई किसी विषय पर बारी-बारी से अपनी राय रखता। लेकिन हम उस सबसे गुज़र चुके हैं। यहाँ पर बात करना मेरे लिए नामुमकिन है ! मि. फ़ॉन डान बचाव की मुद्रा में आ जाते हैं, माँ व्यंग्यात्मक हो जाती हैं और सामान्य आवाज़ में बात नहीं कर सकतीं, पापा को भाग लेना अच्छा नहीं लगता और ना ही मि. दुसे को, मिसेज़ फ़ॉन डी पर इतनी बार हमला किया जाता है कि वे बस वहाँ पर चेहरा लाल किए बैठी रहती हैं और किसी बात का विरोध मुश्किल से ही कर पाती हैं। और हमारा क्या ? हमें कोई राय रखने की इजाज़त नहीं है! क्या वे प्रगतिशील नहीं हैं! कोई राय नहीं ! लोग आपको चुप रहने को कह सकते हैं, लेकिन वे आपको कोई राय न रखने को नहीं कह सकते। आप किसी को मना नहीं कर सकते कि वे कोई मत रखें, चाहे वे कितने ही छोटे क्यों न हो ! बेप, मारगोट, पीटर और मेरे लिए सबसे मददगार चीज़ होती ढेर सारी प्यार- मोहब्बत, जो हमें यहाँ नहीं मिलती। यहाँ पर कोई नहीं, कोई भी नहीं, ख़ासकर बेवकूफ़ बड़े लोग हमें समझने के लायक़ नहीं हैं, क्योंकि हम उनसे ज्यादा संवेदनशील और अपने विचारों में उनसे कहीं ज्यादा आगे हैं, इतना कि वे कभी सोच भी नहीं सकते !

प्रेम, क्या है प्रेम ? मुझे नहीं लगता कि आप उसे शब्दों में बयान कर सकते हैं। प्यार किसी को समझना, उसकी परवाह करना, उसके ग़म व खुशियों को बाँटना है। आख़िरकार इसमें शारीरिक प्रेम शामिल होता है। आप कुछ बाँटते हैं, कुछ देते हैं और बदले में कुछ पाते हैं, आप चाहे शादीशुदा हों या नहीं या फिर आपका बच्चा हो या नहीं। अपनी नैतिकता खोना मायने नहीं रखता, आपको पता होना चाहिए कि जब तक आप ज़िंदा हैं आपके साथ कोई होगा, जो आपको समझता है और जिसे आपको किसी और के साथ नहीं बाँटना है !

तुम्हारी, ऐन एम फ्रैंक

इस पल माँ मुझ पर फिर गुर्रा रही हैं; साफ़ तौर पर उन्हें जलन हो रही है कि मैं उनसे ज्यादा मिसेज़ फ़ॉन डान से बात करती हूँ। मुझे कोई परवाह नहीं !

आज दोपहर मुझे पीटर मिल गया और हम लोगों ने कम से कम पैंतालीस मिनट तक बातें की। वह मुझे अपने बारे में कुछ बताना चाहता था, लेकिन उसे मुश्किल हो रही थी । आख़िरकार उसने कहा, हालाँकि उसे काफ़ी वक़्त लगा। ईमानदारी से कहूँ, तो मैं नहीं जानती थी कि मुझे वहाँ रहना बेहतर है या फिर वहाँ से जाना। लेकिन मैं उसकी मदद करना चाहती थी ! मैंने उसे बेप के बारे में बताया ओर यह भी कि हमारी माँएँ कितनी अनाड़ी हैं। उसने मुझे बताया कि उसके माता-पिता हमेशा लड़ते रहते हैं, राजनीति पर, सिगरेट पर और सब तरह की चीज़ों पर। जैसा कि मैं पहले तुम्हें बता चुकी हूँ, पीटर बहुत शर्मीला है, लेकिन इतना भी नहीं कि यह स्वीकार न कर सके कि उसे बहुत ख़ुशी होगी अगर वह एक या दो साल तक अपने माँ-बाप को न देखे। 'मेरे पिता उतने अच्छे नहीं, जितने कि दिखते हैं,' उसने कहा । 'लेकिन सिगरेटों के मामले में माँ बिलकुल सही हैं। '

मैंने भी उसे अपनी माँ के बारे में बताया। लेकिन वह पापा के बचाव में आ गया। उसके मुताबिक़ वे 'शानदार इंसान' थे।

आज रात जब मैं बर्तन धोकर अपना ऐप्रन फैला रही थी, तो उसने मुझे बुलाया और कहा कि मैं नीचे किसी को नहीं बताऊँ कि उसके माँ- बाप में फिर से झगड़ा हुआ और वे आपस में बात नहीं कर रहे हैं। मैंने उससे वादा किया, हालाँकि मैं पहले ही मारगोट को बता चुकी थी। लेकिन मुझे विश्वास है कि मारगोट यह बात किसी और को नहीं बताएगी।

'अरे, नहीं पीटर,' मैंने कहा, 'तुम्हें मेरी तरफ़ से निश्चिंत रहना चाहिए। मैं अब सीख चुकी हूँ कि सुनी गई हर चीज़ के बारे में बकबक करने की ज़रूरत नहीं । तुमने जो कुछ मुझे बताया, मैं उसे कहीं नहीं दोहराऊँगी । '

उसे यह सुनकर ख़ुशी हुई। मैंने उसे यह भी बताया कि हम कितने बुरे चुगलखोर हैं और कहा, 'मारगोट सही है, जब वह कहती है कि मैं ईमानदार नहीं हूँ, क्योंकि मैं जितना भी चाहूँ, मैं ख़ुद को बकबक करने से नहीं रोक पाती, मुझे मि. दुसे के बारे में बात करने से बेहतर कुछ भी नहीं लगता । '

'यह अच्छी बात है कि तुमने इसे क़बूल कर लिया,' उसने कहा। वह शर्माया और उसकी सच्ची प्रशंसा से मैं भी झेंप गई।

फिर हमने 'ऊपर' और 'नीचे' की थोड़ी और बात की। पीटर यह बात सुनकर हैरान हुआ कि मुझे उसके माँ-बाप अच्छे नहीं लगते। 'पीटर' मैंने कहा, 'मैं हमेशा से ईमानदार रही हूँ, तो मुझे तुम्हें इस बारे में भी क्यों नहीं बताना चाहिए? हम उनकी ग़लतियाँ भी देख सकते हैं।'

मैंने साथ ही यह भी कहा, 'पीटर, मैं सचमुच तुम्हारी मदद करना चाहती हूँ। क्या तुम मुझे ऐसा करने दोगे ? तुम एक अजीब सी स्थिति में हो और मैं जानती हूँ कि हालाँकि तुम कुछ नहीं कहते, लेकिन इससे तुम परेशान तो होते हो। '

'तुम्हारी मदद का हमेशा ही स्वागत है !

'शायद पापा से बात करना तुम्हारे लिए बेहतर होगा। तुम उन्हें कुछ भी बता सकते हो, वे किसी को नहीं बताएँगे । '

'मैं जानता हूँ, वे बहुत अच्छे हैं।'

'तुम्हें वे बहुत पसंद हैं, है न?'

पीटर ने सिर हिलाया और मैं बोलती रही, 'पता है, वे भी तुम्हें पसंद करते हैं!'

उसने ऊपर देखा और शर्माया । यह देखना बहुत मार्मिक था कि इन कुछ शब्दों से वह कितना ख़ुश हो गया था। 'तुम्हें ऐसा लगता है?' उसने पूछा ।

'हाँ,' मैंने कहा । 'उनकी छोटी-छोटी बातों से तुम समझ सकते हो। '

फिर मि. फ़ॉन डान कुछ कहने के लिए आए। पीटर बिलकुल मेरे पापा की तरह 'ज़बरदस्त लड़का' है।

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

शुक्रवार, 3 मार्च 1944

मेरी प्रिय किटी,

आज रात जब मैंने मोमबत्ती को देखा, तो मुझे फिर से सुकून व ख़ुशी महसूस हुई। ऐसा लगता है कि नानी उस मोमबत्ती में हैं, जो मेरा ध्यान रखती हैं व मेरी रक्षा करती हैं और मुझे फिर से ख़ुशी का एहसास देती हैं। लेकिन... कोई और है, जो मेरे सभी मनोभावों को नियंत्रित करता है और वह है... पीटर। आज मैं आलू लेने गई और जब मैं आलू भरे बर्तन को लेकर सीढ़ियों पर खड़ी थी, तो उसने पूछा, 'तुमने दिन के भोजन अवकाश के दौरान क्या किया?'

मैं सीढ़ियों पर बैठ गई और हम बात करने लगे। सवा पाँच बजे तक (एक घंटा पहले मैं उन्हें लेने गई थी) आलू रसोई तक नहीं पहुँचे। पीटर ने अपने माँ-बाप के बारे में ज्यादा कुछ नहीं कहा; बस हम किताबों व पुराने दिनों के बारे में बात करते रहे। वह मुझे गर्मजोशी भरी नज़रों से देखता है; मुझे लगता है कि जल्दी ही मुझे उससे प्यार हो जाएगा।

उसने आज शाम यही विषय उठाया। मैं आलू छीलने के बाद उसके कमरे में गई और कहा कि कितनी गर्मी है । 'तुम मुझे व मारगोट को देखकर तापमान का पता लगा सकते हो, क्योंकि ठंड होने पर हम सफ़ेद हो जाते हैं और गर्मी होने पर लाल,' मैंने कहा ।

'क्या प्यार में?' उसने पूछा।

'मुझे प्यार क्यों होगा?' यह काफ़ी बेवकूफ़ी भरा जवाब ( या फिर सवाल ) था ।

'क्यों नहीं?' उसने कहा और फिर रात के खाने का समय हो गया।

उसका क्या मतलब था? आज मैंने आख़िरकार उससे पूछ ही लिया कि क्या मेरी बातों से उसे परेशानी होती है। उसने बस इतना ही कहा, 'अरे, मेरे हिसाब से सब ठीक है!' मैं नहीं कह सकती कि उसका जवाब कितने शर्मीलेपन की वजह से था।

किटी, मैं ऐसे इंसान की तरह बात कर रही हूँ, जिसे प्यार हो गया है और अपने सबसे प्यारे इंसान के अलावा किसी और की बात ही नहीं कर सकती। पीटर बहुत प्यारा है। क्या मैं कभी उसे बता पाऊँगी? अगर वह भी मेरे बारे में वैसा ही सोचता है, लेकिन मैं यह भी जानती हूँ कि मैं ऐसी इंसान हूँ, जिसके साथ बहुत सावधानी से पेश आना होगा।

उसे अकेले रहना पसंद है, इसलिए मैं नहीं जानती कि वह मुझे कितना पसंद करता है। ख़ैर, हम लोग एक-दूसरे को पहले से बेहतर ढंग से समझ रहे हैं। मैं चाहती हूँ कि हम थोड़ा ज्यादा बोलने की हिम्मत करें। लेकिन कौन जानता है, हो सकता है कि वह समय जल्दी ही आ जाए! दिन में एक या दो बार वह मुझे अर्थपूर्ण नज़रों से देखता है, मैं भी पलकें झपकाती हूँ और हम दोनों ख़ुश होते हैं। उसके ख़ुश होने की बात पर कुछ कहना पागलपन लगता है और फिर भी मुझे यह एहसास होता है कि वह भी मेरी तरह ही सोचता है।

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

शनिवार, 4 मार्च 1944

प्रिय किटी,

कई महीनों में यह पहला शनिवार है, जो थका देने वाला, निराशाजनक और नीरस नहीं रहा है। पीटर उसका कारण है। आज सुबह जब मैं अपना ऐप्रन डालने अटारी पर जा रही थी, तो पापा ने मुझसे पूछा कि क्या मैं थोड़ी देर रुककर फ़्रेंच का अभ्यास करूँगी और मैंने हाँ कहा। हमने कुछ देर फ्रेंच में बात की और मैंने पीटर को कुछ बताया, फिर हमने अंग्रेज़ी का काम किया। पापा ने डिकेन्स से कुछ पढ़कर सुनाया और मैं जैसे सातवें आसमान पर थी, क्योंकि मैं पीटर के नज़दीक पापा की कुर्सी पर बैठी थी।

पौने ग्यारह बजे मैं नीचे गई। पीटर पहले से ही सीढ़ियों पर मेरा इंतज़ार कर रहा था । हमने पौने एक बजे तक बातें की। जब भी मैं कमरे से बाहर निकलती हूँ, जैसे कि खाने के बाद और कोई न सुन रहा हो, तो मौक़ा पाकर पीटर कहता है, 'विदा ऐन, बाद में मिलते हैं। '

मैं कितनी ख़ुश हूँ! मुझे लगता है कि क्या वह मुझसे प्रेम करेगा? वैसे वह भला लड़का है और तुम नहीं जानती कि उसके साथ बात करके कितना अच्छा लगता है!

मिसेज़ फ़ॉन डी को पीटर से मेरा बात करना सही लगता है, लेकिन आज उन्होंने मुझे चिढ़ाने के अंदाज़ से पूछा, 'क्या मैं ऊपर तुम्हारे साथ रहने पर विश्वास कर सकती हूँ?'

'बिलकुल ! ' मैंने विरोध किया। 'मैं इस बात को अपमान के रूप में लेती हूँ!'

सुबह, दोपहर, रात मैं पीटर से बात करने की राह देखती हूँ।

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

पुनःश्च । इससे पहले कि मैं भूल जाऊँ, तुम्हें बता दूँ कि कल रात सब तरफ़ बर्फ़ की चादर बिछी थी। अब बर्फ पिघल गई है और थोड़ी सी भी नहीं बची है।

सोमवार, 6 मार्च 1944

प्रिय किटी,

जबसे पीटर ने मुझे अपने माँ-बाप के बारे में बताया है, तब से मुझे उसके प्रति एक तरह की ज़िम्मेदारी का एहसास होने लगा है, तुम्हें नहीं लगता कि यह कुछ अजीब है ? जैसे कि उनके झगड़े अब मेरे भी उतने ही मामले हैं, जितने कि उसके, फिर भी मैं अब उन पर बात नहीं कर सकती, क्योंकि मुझे लगता है कि उससे पीटर असहज हो जाएगा। मैं किसी भी क़ीमत पर दख़ल नहीं देना चाहूँगी।

पीटर का चेहरा देखकर मैं समझ जाती हूँ कि वह भी उतनी ही गहराई से सोचता है, जितनी कि मैं कल रात मैं तब चिढ़ गई थी, जब मिसेज़ फ़ॉन डान ने ताना कसा, 'विचारक ! ' पीटर का चेहरा लाल हो गया है और वह झेंप गया, मैं बस अपना आपा खोने ही वाली थी।

ये लोग अपना मुँह बंद क्यों नहीं रख सकते?

तुम कल्पना भी नहीं कर सकती कि किनारे खड़े रहकर यह देखना कैसा लगता है कि वह कितना अकेला है और कुछ किया भी नहीं जा सकता। मैं सोच सकती हूँ कि अगर मैं उसकी जगह पर होती, तो जानती कि झगड़े होने पर वह कितना हताश महसूस करता होगा। जहाँ तक प्यार का सवाल है, तो बेचारे पीटर को बहुत-बहुत प्यार की ज़रूरत है !

उसका स्वर तब बहुत ठंडा था, जब उसने कहा कि उसे दोस्तों की ज़रूरत नहीं है। वह कितना गलत था ! मुझे नहीं लगता कि उसका यही मतलब था। वह अपने पौरुष पर, अपने अकेलेपन और अपनी उदासीनता से चिपका रहता है, ताकि वह अपनी भूमिका बनाए रख सके, ताकि उसे कभी भी अपनी भावनाओं को व्यक्त न करना पड़े। बेचारा पीटर, कब तक वह ऐसा कर पाएगा? क्या वह अपने अतिमानवीय प्रयास से फट नहीं पड़ेगा?

काश, मैं तुम्हारी मदद कर पाती, पीटर, तुम मुझे ऐसा करने देते ! साथ मिलकर हम अपने, तुम्हारे व मेरे अकेलेपन को ख़त्म कर देंगे !

मैं काफी सोच-विचार करती रही हूँ, लेकिन ज्यादा बोल नहीं रही। मैं उसे देखकर ख़ुश हो जाती हूँ और तब और भी ख़ुश हो जाती हूँ, जब धूप हो और हम दोनों साथ हों। कल मैंने अपने बाल धोए और क्योंकि मुझे पता था कि वह बगल वाले कमरे में है, तो मैं काफ़ी जोश में थी, मैं ख़ुद को नहीं रोक पाई; मैं भीतर से जितनी शांत व गंभीर होती हूँ, बाहर उतना ही शोर मचाती हूँ!

मेरी इस कमज़ोरी को सबसे पहले कौन खोज पाएगा?

फ़ॉन डान परिवार में कोई बेटी भी नहीं है। मेरी विजय इतनी चुनौतीपूर्ण, इतनी ख़ूबसूरत और इतनी अच्छी नहीं होती, अगर कोई लड़की होती !

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

पुनःश्च । तुम जानती हो कि मैं तुम्हारे साथ ईमानदार हूँ, इसलिए तुम्हें बताती हूँ कि मैं एक मुलाक़ात से दूसरी मुलाक़ात के बीच जीती हूँ। मैं उम्मीद करती रहती हूँ कि यह पता लगा लूँ कि वह भी मुझे देखने के लिए बेकरार है और मैं जब उसकी शर्मीली कोशिशें देखती हूँ, तो मुझमें उमंग जागती है। मेरे ख़याल से वह खुद को उतनी आसानी से व्यक्त कर पाएगा, जितना कि मैं करती हूँ; वह नहीं जानता कि उसका अटपटापन मुझे छू लेता है।

मंगलवार, 7 मार्च 1944

प्रिय किटी,

जब मैं 1942 की अपनी ज़िंदगी को याद करती हूँ, तो वह सब मुझे काल्पनिक लगता है। उस सुखद अस्तित्व का आनंद लेने वाली ऐन फ़्रैंक इस ऐन से पूरी तरह अलग थी, जो इन दीवारों के बीच बड़ी होकर समझदार हो चुकी है। हाँ, वह बहुत ख़ूबसूरत था। हर गली के किनारे पर पाँच प्रशंसक, बीस या उसके लगभग दोस्त, अपनी अधिकतर शिक्षकों की प्रिय विद्यार्थी, पापा व माँ के लाड़-प्यार में डूबी और ढेर सारा जेबखर्च | इससे ज्यादा कोई क्या चाहेगा?

तुम शायद सोच रही होगी कि मैंने कैसे इतने लोगों को लुभाया होगा। पीटर कहता है कि इसका कारण है कि मैं 'आकर्षक' हूँ, लेकिन यही पूरी बात नहीं है। अध्यापक मेरे चतुर जवाबों, हाज़िरजवाब टिप्पणियों, मेरे मुस्कराते चेहरे और विवेचनात्मक मस्तिष्क से प्रसन्न होते थे। मैं एक ज़बरदस्त चुहलबाज़, नख़रेबाज़ और दिलचस्प थी। मुझमें कुछ ख़ूबियाँ थी, जिनके कारण मैं सबकी प्रिय थी: मैं मेहनती, ईमानदार और उदार थी। जो भी मेरे उत्तर देखना चाहता था, मैं उसे मना नहीं करती थी। मैं अपनी टॉफ़ी - चॉकलेट्स के मामले में बहुत उदार थी और मैं घमंडी नहीं थी ।

क्या सबकी तारीफ़ों ने मुझे अतिआत्मविश्वासी बना दिया था? यह अच्छी बात है कि अपनी कीर्ति के चरम पर मुझे अचानक सच्चाई का सामना करना पड़ा। मुझे तारीफ़ के बिना जीने का आदी होने में एक साल से ज्यादा का समय लगा।

वे मुझे स्कूल मैं कैसे देखते थे? कक्षा की हँसाने वाली लड़की, हमेशा अगुवा रहने वाली, कभी बुरे मूड में न रहने वाली, कभी न रोने वाली के रूप में। क्या इसमें कोई ताज्जुब था कि हर कोई मेरे साथ साइकिल चलाते हुए स्कूल जाना चाहता था या मेरा कोई काम करना चाहता था।

मैं उस ऐन फ्रैंक को ख़ुशनुमा, दिलचस्प, लेकिन सतही लड़की के रूप में देखती हूँ, जिसका मुझसे कोई लेना-देना नहीं है। पीटर ने मेरे बारे में क्या कहा? 'मैंने जब भी तुम्हें देखा, तुम लड़कियों के झुंड और कम से कम दो लड़कों से घिरी दिखीं, तुम हमेशा हँसती रहती थीं और तुम हमेशा सबसे आकर्षण का केंद्र होती थीं!' वह सही था ।

उस ऐन फ्रैंक का क्या हुआ? मैं हँसना या कोई टिप्पणी करना अब भी नहीं भूली हूँ, मैं बेहतर न भी हूँ, तब भी ठीक हूँ, मैं चाहूँ तो अब भी लोगों की हालत बिगाड़ सकती हूँ, उनके साथ हल्के-फुल्के मज़ाक कर सकती हूँ और दिलचस्प हो सकती हूँ...

लेकिन यह थोड़ा पेचीदा है। मैं एक शाम, कुछ दिनों व किसी हफ़्ते के लिए बेफ़िक्र व ख़ुशनुमा लगती ज़िंदगी जी सकती हूँ। लेकिन उस हफ़्ते के आख़िर तक मैं थक जाऊँगी और उस पहले इंसान के प्रति बहुत कृतज्ञ हो जाऊँगी, जो मुझसे कोई सार्थक बात करेगा। मैं दोस्त चाहती हूँ, न कि प्रशंसक | लोग मेरी चापलूसी भरी मुस्कराहट के लिए नहीं, बल्कि मेरे चरित्र और मेरे काम की वजह से मेरी इज़्ज़त करें। मेरे इर्दगिर्द लोग कम होंगे, लेकिन अगर वे सच्चे हों तो उससे फ़र्क़ नहीं पड़ता ।

सब कुछ होने के बावजूद मैं 1942 में पूरी तरह ख़ुश नहीं थी; मुझे अक्सर महसूस होता था कि मुझे छोड़ दिया गया था, मैं पूरे दिन भर व्यस्त रहती थी, इसलिए मैंने कभी इसके बारे में नहीं सोचा। मैं ख़ूब मज़े से रहती थी, चेतन या अचेतन तौर पर ख़ालीपन को चुटकुलों से भरती थी।

अब पीछे देखने पर महसूस करती हूँ कि मेरी ज़िंदगी का वह दौर अब ख़त्म हो चुका है; स्कूल के मेरे मस्तमौला, बेफ़िक्र दिन हमेशा के लिए बीत चुके हैं। मुझे अब उनकी कमी भी महसूस नहीं होती। मैं उनसे आगे बढ़ चुकी हूँ। मैं अब सिर्फ़ बचपने में नहीं रह सकती, क्योंकि मेरा गंभीर पक्ष भी हमेशा मौजूद रहेगा।

ऐसा लगता है कि 1944 के नए साल तक की अपनी ज़िंदगी को मैं किसी आवर्धक लेंस से देख रही हूँ। जब मैं घर पर थी तो मेरी ज़िंदगी धूप से भरी थी । फिर 1942 के मध्य तक रातोंरात सब कुछ बदल गया। झगड़े, आरोप ... मैं यह सब बर्दाश्त नहीं कर सकी। मैं अचानक जैसे फँस गई और मेरे पास वापस जवाब देने के सिवा कोई चारा नहीं बचा था।

1943 के शुरू के छह महीने रोने के दौर, अकेलापन और मेरी ग़लतियों व कमियों का क्रमिक आभास लेकर आए, जो काफ़ी थीं और काफ़ी ज्यादा लगती थीं, इसलिए दिन भर बकबक करके मैं पिम को अपने क़रीब लाना चाहती थी, लेकिन मैं नाकाम रही। इससे ख़ुद को बेहतर बनाने का मुश्किल काम मुझ पर ही आ पड़ा, ताकि मुझे उनकी झिड़कियाँ न सुननी पड़ें, क्योंकि उनसे मैं हताश हो जाती थी ।

साल के अगले छह महीने थोड़े बेहतर थे। मैं किशोर हो गई और मुझे बड़ों की तरह समझा जाने लगा। मैं चीज़ों के बारे में सोचने लगी और कहानियाँ लिखने लगी, आख़िरकार इस नतीजे पर पहुँची कि किसी का अब मुझसे कोई लेना-देना नहीं होगा। उन्हें घड़ी के पेंडुलम की तरह मुझे आगे-पीछे करने का कोई अधिकार नहीं था । मैं ख़ुद को अपने तरीक़े से बदलना चाहती थी। मैंने महसूस किया कि मैं अपनी माँ के बिना पूरी तरह से अपने आप काम कर सकती थी और उससे मुझे चोट पहुँची। लेकिन मुझ पर जिस चीज़ ने ज्यादा असर डाला वह था, यह समझना कि मैं कभी पापा पर विश्वास नहीं कर पाऊँगी। मैं अपने अलावा किसी पर विश्वास नहीं कर सकती।

नए साल के बाद दूसरा बड़ा अवसर सामने आया: मेरा सपना, जिसके माध्यम से मैंने... किसी लड़के; किसी लड़की के लिए नहीं, बल्कि लड़के दोस्त के लिए अपनी इच्छा को जाना। मैंने अपने सतही व खुशमिज़ाज बाहरी रूप के नीचे एक आंतरिक प्रसन्नता को भी खोजा । समय-समय पर मैं चुप रही। अब मैं सिर्फ़ पीटर के लिए जीती हूँ, क्योंकि भविष्य में मेरे साथ क्या होता है, वह ज्यादा उसी पर निर्भर करता है!

मैं रात को इन शब्दों के साथ अपनी प्रार्थना पूरी करके बिस्तर पर लेटती हूँ 'आभार, ईश्वर, उस सबके लिए जो अच्छा, प्यारा व ख़ूबसूरत है,' तो मैं आनंद से भर जाती हूँ। मैं पनाह लेने, अपनी सेहत, अपने पूरे अस्तित्व को अच्छे के रूप में, पीटर के प्रेम (जो अब भी बहुत नया व नाजुक है और जिसके बारे में हम दोनों ज़ोर से कुछ नहीं कह सकते), भविष्य, प्रसन्नता व प्रेम को प्यारे रूप में, दुनिया, प्रकृति और हर चीज़ की अनोखी सुंदरता, जो कुछ शानदार है, उसे ख़ूबसूरत के रूप में देखती हूँ।

ऐसे पलों में मैं तकलीफ़ों के बारे में नहीं, बल्कि अब भी बची ख़ूबसूरती के बारे में सोचती हूँ। इस बात पर मेरे व माँ के बीच गहरा मतभेद है। मुश्किल का सामना होने पर उनकी सलाह होती है: 'दुनिया भर की तकलीफ़ों के बारे में सोचो और शुक्र करो कि तुम उसका हिस्सा नहीं हो।' मेरी सलाह होती है: 'बाहर निकलो, गाँव-देहात में जाओ, धूप का और प्रकृति की नेमतों का मज़ा लो। बाहर निकलो और अपने भीतर मौजूद ख़ुशी को फिर से पा लो; अपने अंदर और अपने आसपास मौजूद सारी ख़ूबसूरती के बारे में सोचो और ख़ुश हो जाओ। '

मुझे नहीं लगता कि माँ की सलाह सही हो सकती है, क्योंकि अगर आप उस कष्ट का हिस्सा बन भी जाते हैं, तो आप क्या करेंगे? आप तो पूरी तरह खो जाएँगे। इसके ठीक विपरीत, ख़ूबसूरती मौजूद रहती है, बदकिस्मती में भी। अगर आप उसे खोजते हैं, तो आपको और भी ज्यादा ख़ुशी मिलेगी और आप अपना संतुलन फिर से पा सकेंगे। ख़ुश इंसान बाक़ी लोगों को भी प्रसन्न कर सकता है; जिस इंसान के पास हिम्मत व आस्था है, वह कभी कष्ट में नहीं मरेगा!

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

बुधवार, 8 मार्च 1944

मारगोट व मैं मज़े के लिए एक-दूसरे को कुछ लिखकर देते रहते हैं।

ऐन: यह अजीब है, लेकिन एक रात पहले की घटना मुझे उसके अगले दिन याद रहती है। मिसाल के तौर पर, मुझे अचानक याद आया कि कल रात मि. दुसे बहुत ज़ोर से खर्राटे भर रहे थे। (अभी बुधवार की दोपहर के पौने तीन बज रहे हैं और मि. दुसे फिर से खर्राटे ले रहे हैं, इसी वजह से मुझे वह सब याद आया ।) मुझे जब पॉटी का इस्तेमाल करना होता है, तो मैं जानबूझकर ज्यादा आवाज़ करती हूँ, ताकि खटि रुक जाएँ।

मारगोट: क्या बेहतर है, खर्राटे या साँस लेने के लिए संघर्ष करना ?

ऐनः खर्राटे लेना बेहतर है, क्योंकि मेरे आवाज़ करने पर वे रुक जाते हैं और उन्हें लेने वाला इंसान जागता भी नहीं है।

मैंने मारगोट को यह नहीं लिखा, लेकिन प्रिय किटी, मैं तुम्हारे सामने क़बूल करूँगी कि मैं पीटर के सपने काफ़ी देखने लगी हूँ। परसों रात मैंने देखा कि मैं यहाँ बैठक में अपोलो आईस स्केटिंग रिंग के लड़के के साथ स्केटिंग कर रही हूँ; उसके साथ पतली-लंबी टाँगों वाली उसकी बहन नीली पोशाक में थी, जो वह हमेशा पहना करती थी। मैंने अपना परिचय दिया, थोड़ी अति कर दी और उसका नाम पूछा। उसका नाम पीटर था । सपने में मैंने सोचा कि मैं कितने पीटरों को जानती थी!

फिर मैंने सपना देखा कि हम पीटर के कमरे में सीढ़ियों के पास आमने-सामने खड़े थे। मैंने उसे कुछ कहा; उसने मुझे चूमा, लेकिन जवाब दिया कि वह मुझे उतना प्यार नहीं करता और मुझे छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए | निराश व याचना भरे स्वर में मैंने कहा, 'मैं ऐसा नहीं कर रही, पीटर !'

उठने पर मैं ख़ुश थी कि पीटर ने वह सब नहीं कहा था। कल रात मैंने सपना देखा कि हम एक-दूसरे को चूम रहे थे, लेकिन पीटर के गाल बिलकुल बेकार थे, वे उतने मुलायम नहीं थे, जितने कि दिखते थे। वे पापा के गालों की तरह थे, दाढ़ी बनाने वाले आदमी के गालों जैसे ।

शुक्रवार, 10 मार्च 1944

मेरी प्यारी किटी,

'आफ़त कभी अकेले नहीं आती,' यह कहावत आज के दिन पर पूरी तरह लागू होती है। पीटर ने अभी यही कहा । मैं तुम्हें बताती हूँ कि आज क्या कुछ हुआ और वह अभी हमारे सिर पर लटका है।

पहला, हेंक और आश्य की शादी के कारण मीप बीमार है। शादी में वेस्टरकेर्क में उसे जुकाम हो गया। दूसरे, मि. क्लेमन के पेट में हुए रक्तस्राव के बाद से वे काम पर नहीं लौटे हैं, इसलिए बेप को अकेले मोर्चा सँभालना पड़ रहा है। तीसरे, पुलिस से एक आदमी (जिसका नाम मैं नहीं लिखूँगी) को गिरफ़्तार किया है। यह उसके लिए ही बुरा नहीं है, बल्कि हमारे लिए भी है, क्योंकि वह हमें आलू, मक्खन व जैम मुहैया करा रहा था। मैं उसे मि. एम कहूँगी, उसके तेरह साल से कम उम्र के पाँच बच्चे हैं और छठा होने वाला है।

कल रात को हम फिर डर गए थे। खाना खाते हुए अचानक किसी ने बग़ल के दरवाज़े पर दस्तक दी। बाक़ी समय हम लोग काफ़ी घबराए हुए व दुखी रहे।

पिछले कुछ समय से यहाँ की घटनाओं पर लिखने का मेरा मन नहीं है । मैं खुद में ज्यादा डूबी हुई हूँ। मुझे ग़लत मत समझना । बेचारे, दयालु मि. एम के साथ जो कुछ हुआ, मैं उससे बहुत ज्यादा परेशान हूँ, लेकिन मेरी डायरी में उनके लिए ज्यादा जगह नहीं है।

मंगलवार, बुधवार और बृहस्पतिवार मैं साढ़े चार से सवा पाँच बजे तक पीटर के कमरे में रही । हमने फ्रेंच की पढ़ाई की और कई चीज़ों पर बात की। मैं उस एक घंटे की राह देखती हूँ, लेकिन उससे भी अच्छी बात यह है कि पीटर भी मुझे देखकर उतना ही ख़ुश होता है।

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

शनिवार, 11 मार्च, 1944

प्यारी किटी,

पिछले कुछ दिन से मैं शांत नहीं बैठ पा रही हूँ। मैं हर समय ऊपर-नीचे जाती रहती हूँ। मुझे पीटर से बात करना पसंद है, लेकिन मुझे डर रहता है कि कहीं मैं उसे परेशान तो नहीं कर रही। उसने मुझे अतीत के बारे में, अपने माँ-बाप के बारे में और ख़ुद के बारे में थोड़ा-बहुत बताया है, लेकिन वह काफ़ी नहीं है और हर पाँच मिनट में मैं सोचती हूँ कि क्यों मुझे ज्यादा जानने की लालसा लगी रहती है। वह सोचा करता था कि मैं काफ़ी परेशान करने वाली लड़की हूँ और हम दोनों ही ऐसा सोचते थे। मैंने अपनी सोच बदल ली है, लेकिन मैं यह कैसे जानूँगी कि वह भी ऐसा ही कर चुका है? मेरे ख़याल से वह कर चुका है, लेकिन उसका यह मतलब कतई नहीं कि हमें अच्छा दोस्त बनना है, वैसे मेरा मानना है कि ऐसा करने से यहाँ वक़्त गुज़ारना आसान हो जाएगा। लेकिन मैं इस बात को ख़ुद पर हावी नहीं होने दे सकती। मैं काफ़ी समय उसके बारे में सोचते हुए बिताती हूँ और नहीं चाहती कि तुम पर भी वही सब थोप दूँ, सिर्फ़ इसलिए कि मैं इतनी दयनीय दशा में हूँ !

रविवार, 12 मार्च, 1944

प्यारी किटी,

दिन ब दिन यहाँ हालात अजीब होते जा रहे हैं।

कल से पीटर ने मेरी तरफ़ नहीं देखा है। वह ऐसा बर्ताव कर रहा है कि जैसे वह मुझसे नाराज़ है। मैं पूरी कोशिश कर रही हूँ कि उसका पीछा न करूँ और उससे कम से कम बात करूँ, लेकिन यह इतना आसान नहीं है! क्या चल रहा है, ऐसी क्या बात है कि एक पल तो वह मुझसे फ़ासला बनाए रखता है और दूसरे ही पल मेरे पास भागा चला आता है? शायद मैं बदतर की कल्पना कर रही हूँ, जो कि असल में है नहीं। शायद वह मेरी तरह ही मूडी हो और कल सब कुछ ठीक हो जाए!

बहुत परेशान होने की स्थिति में बाहरी रूप से सामान्य बने रहना मेरे लिए सबसे मुश्किल काम होता है। मुझे बात करनी होती है, घर के काम में मदद करनी होती है, बाक़ी लोगों के साथ बैठना होता है और सबसे बड़ी बात कि ख़ुश होने का दिखावा करना होता है! ऐसे में मुझे बाहर न जा पाना और ऐसी जगह का न होना सबसे ज्यादा खलता है, जहाँ कितनी भी देर अकेली बैठ सकूँ! मैं सब कुछ गड़बड़ कर रही हूँ, किटी, लेकिन मैं खुद बहुत उलझी हुई हूँ: एक तरफ़ मैं उसकी चाहत के पीछे पागल हूँ, उसकी तरफ़ देखे बिना एक कमरे में रहना मुश्किल लगता है और दूसरी तरफ़, मैं सोचती हूँ कि वह मेरे लिए क्यों इतने मायने रखता है और मैं फिर से शांत क्यों नहीं हो जाती !

दिन-रात, सोते-जागते मैं कुछ और नहीं करती, बस ख़ुद से पूछती हूँ, 'क्या तुमने उसे अकेले रहने का पर्याप्त अवसर दिया? क्या तुम ऊपर ज़रूरत से ज्यादा वक्त गुज़ारती हो? क्या तुम ऐसे गंभीर विषयों पर इतनी ज्यादा बात करती हो कि जिन पर बात करने के लिए वह अभी तैयार नहीं ? हो सकता है कि वह तुम्हें पसंद न करता हो ? क्या यह सब तुम्हारी कल्पना थी? लेकिन फिर उसने क्यों तुम्हें अपने बारे में इतना कुछ बताया ? क्या उसे इस बात का अफ़सोस है ?' इसी तरह की और भी बातें ।

कल दोपहर मैं बाहर से मिले दुखद समाचार से भीतर से इतनी थक गई थी कि मैं झपकी लेने के लिए अपने दीवान पर लेट गई। मैं कुछ नहीं सोचना चाहती थी, बस सो जाना चाहती थी। मैं चार बजे तक सोई, लेकिन फिर मुझे बग़ल के कमरे में जाना पड़ा। माँ के सभी सवालों का जवाब देना और अपनी झपकी का कोई बहाना पापा को देना आसान नहीं था। मैंने कहा कि मुझे सिरदर्द है, जो कि झूठ नहीं था, क्योंकि मुझे था... लेकिन अंदर !

आम लोग, सामान्य लड़कियाँ, मेरी जैसी किशोरियाँ सोचेंगे कि आत्मदया थोड़ा पागलपन है। बस, यही बात है। मैं अपने दिल की सभी बातें तुम्हें बताती हूँ, लेकिन बाक़ी समय पर मैं जहाँ तक हो सके बेपरवाह, ख़ुशमिज़ाज व आत्मविश्वासी बनी रहती हूँ और ख़ुद पर ही चिढ़ने से बचती हूँ।

मारगोट बहुत रहमदिल है और चाहती है कि मैं उसे सब कुछ बताऊँ, लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकती। वह मुझे बहुत गंभीरता से लेती है, काफ़ी गंभीरता से और काफ़ी वक़्त अपनी बावली बहन के बारे में सोचते हुए बिताती है, मैं जब भी अपना मुँह खोलती हूँ, तो मुझे ध्यान से देखते हुए सोचती है, 'यह अभिनय कर रही है या फिर इसके कहने का यही मतलब है?'

कारण यह है कि हम हमेशा साथ रहते हैं, मैं नहीं चाहती कि जिस इंसान को मैं सब कुछ बताऊँ, वह हर समय मेरे आसपास रहे। मैं अपने उलझे विचारों को कब सुलझाऊँगी? मैं फिर से कब भीतरी शांति पाऊँगी?

तुम्हारी, ऐन

मंगलवार, 14 मार्च, 1944

प्यारी किटी,

हमारे आज के खाने के बारे में सुनना शायद तुम्हारे लिए ( हालाँकि मेरे लिए नहीं है) दिलचस्प हो सकता है। महिला सफ़ाईकर्मी नीचे काम कर रही है, इसलिए अभी मैं फ़ॉन डान परिवार के मोमजामा बिछी मेज़ पर एक रूमाल से अपने नाक-मुँह ढँककर बैठी हूँ, जिस पर युद्ध - पूर्व का इत्र छिड़का हुआ है। तुम्हें शायद ज़रा सा भी अंदाज़ा नहीं है कि मैं किस बारे में बात कर रही हूँ, तो फिर मैं 'शुरू से शुरुआत' करती हूँ। हमें खाने के कूपन मुहैया करवाने वाले लोग गिरफ़्तार हो चुके हैं, तो अब हमारे पास काले बाज़ार की सिर्फ़ पाँच राशन पुस्तिकाएँ हैं, कोई कूपन नहीं, कोई चर्बी व तेल नहीं। मीप व मि. क्लेमन फिर से बीमार पड़ गए हैं, बेप ख़रीदारी नहीं कर पा रही हैं। खाना बुरी स्थिति में है और हम भी। कल के लिए हमारे पास ज़रा सी भी चर्बी, मक्खन या मार्जरीन नहीं है। हम नाश्ते में तले हुए आलू नहीं खा सकते (जो हम डबलरोटी बचाने के लिए खा रहे थे), इसलिए उसकी जगह हम दलिया खा रहे हैं और क्योंकि मिसेज़ फ़ॉन डी को लगता है कि हम भूख मर रहे हैं, इसलिए हमने कुछ दूध व मलाई ख़रीदी।

आज दिन के खाने में मसले हुए आलू और केल का अचार था। इससे मुँह पर रूमाल रखने का ऐहतियाती क़दम समझ में आता है। तुम विश्वास नहीं करोगी कि कुछ साल पुराना केल कैसी सड़ी गंध देता है! रसोई से ख़राब आलूबुखारों, सड़े हुए अंडों और खारे पानी की मिली-जुली गंध आ रही है। उस गंदी चीज़ को खाने के ख़याल से ही मुझे उल्टी आ रही है! इसके अलावा हमारे आलुओं को कोई अजीब सी बीमारी हो गई है, जिसके कारण हर दो बाल्टी आलू में से एक हमें कचरे में फेंकनी पड़ती है। उन आलुओं की बीमारी के बारे में अटकलें लगाकर हम अपना मनोरंजन करते हैं और इस नतीजे पर पहुँचे हैं कि उन्हें कैंसर, चेचक और खसरा हो गया है।

ईमानदारी से कहूँ, तो लड़ाई के चौथे साल छिपे रहकर जीना कोई मज़े का काम नहीं है। काश, यह सड़ाँध ख़त्म हो जाती !

सच बताऊँ तो मुझे खाने से उतना फ़र्क नहीं पड़ता, अगर यहाँ ज़िंदगी दूसरे मामलों में थोड़ी खुशनुमा होती । लेकिन है ऐसा ही: इस उबाऊ अस्तित्व से हम सब झगड़ालू होते जा रहे हैं। वर्तमान स्थिति पर पाँच वयस्कों के विचार इस प्रकार हैं (बच्चों को राय रखने की अनुमति नहीं है और पहली बार मैं नियमों को मान रही हूँ):

मिसेज़ फ़ॉन डान: 'मैंने काफ़ी समय पहले ही रसोई की रानी बनने की इच्छा छोड़ दी थी। ख़ाली बैठे रहना काफ़ी नीरस था, इसलिए मैंने खाना बनाना फिर से शुरू कर दिया। फिर भी मैं शिकायत ज़रूर करूँगी: बिना तेल के खाना बनाना नामुमकिन है और उन सभी घिनौनी बदबुओं से मुझे उबकाई जैसा लगता है। इसके अलावा, मुझे अपनी कोशिशों के बदले में क्या मिलता है ? कृतघ्नता और रूखी टिप्पणियाँ। मैं हमेशा से कलंकित रही हूँ; मुझ पर हर चीज़ का आरोप लगाया जाता है। मेरी राय है कि युद्ध बहुत धीमी गति से बढ़ रहा है। अंत में जर्मनों की विजय होगी। मुझे डर है कि हम भूखे मरेंगे और जब भी मैं ख़राब मूड में होती हूँ, तो अपने आसपास फटकने वाले हर इंसान को जैसे काट खाने दौड़ती हूँ ।'

मि. फ़ॉन डानः 'मैं बस धूम्रपान करता हूँ। उसके बाद खाना, राजनीतिक हालात और केर्ली का मूड उतने बुरे नहीं लगते। केर्ली बहुत प्यारी है। अगर मेरे पास धूम्रपान करने को न हो, तो मैं बीमार पड़ जाता हूँ, फिर मुझे मांस चाहिए, जिंदगी असहनीय हो जाती है, कुछ भी अच्छा नहीं लगता और फिर दहकते हुए शब्द निकलते हैं। मेरी केर्ली बेवकूफ़ है।'

मिसेज़ फ़्रैंक: 'खाना बहुत महत्त्वपूर्ण नहीं है, लेकिन अभी मैं राई ब्रेड का एक टुकड़ा खाना चाहूँगी, क्योंकि मुझे बहुत भूख लगी है। अगर मैं मिसेज़ फ़ॉन डान की जगह होती, तो काफ़ी पहले ही मि. फ़ॉन डान के धूम्रपान पर रोक लगा देती। लेकिन अभी मुझे सिगरेट की बहुत ज़रूरत है, क्योंकि मेरा सिर घूम रहा है। फ़ॉन डान परिवार बहुत बुरा है; ब्रिटिश ने भले काफ़ी ग़लतियाँ की हों, लेकिन युद्ध आगे बढ़ रहा है। मुझे अपना मुँह बंद रखना चाहिए और शुक्र मनाना चाहिए कि मैं पोलैंड में नहीं हूँ । '

मि. फ़्रैंक: 'सब कुछ ठीक है। मुझे किसी बात से फ़र्क नहीं पड़ता । शांत रहो, हमारे पास काफ़ी वक़्त है। बस, मुझे थोड़े आलू दे दो, तो मैं चुप रहूँगा। बेहतर होगा मेरे राशन के कुछ हिस्से को बेप के लिए रख दो। राजनीतिक स्थिति बेहतर हो रही है, मैं काफ़ी आशावादी हूँ।'

मि. दुसे: 'अपने लिए तय काम को मुझे पूरा करना ही होगा, क्योंकि सब कुछ समय पर पूरा होना चाहिए। राजनीतिक स्थिति “अच्छी” लग रही है, हमारा पकड़ा जाना “ नामुमकिन” है। मैं, मैं, मैं... ! '

तुम्हारी, ऐन

बृहस्पतिवार, 16 मार्च, 1944

प्यारी किटी,

उफ़! कुछ पलों के लिए मैं निराशा व उदासी से बाहर निकली हूँ! मैं आज बस यही सब सुन रही हूँ: 'अगर ऐसा और वैसा होता है, तो हम मुश्किल में हैं और अगर वह बीमार हो जाता है, तो हमें अपना इंतज़ाम खुद ही करना होगा, और अगर...'

वैसे, बाक़ी तो तुम जानती हो या फिर मैं यह मान सकती हूँ कि तुम अनेक्स के निवासियों से काफ़ी परिचित हो चुकी हो और इसलिए यह अंदाज़ा लगा सकती हो कि वे किस बारे में बात कर रहे होंगे।

सभी 'अगर' का कारण यह है कि मि. कुगलर को छह दिन के काम के विवरण के लिए बुलाया गया है, बेप को जुकाम हुआ है और शायद उसे कल घर पर ही रहना पड़े, मीप का फ़्लू अभी ठीक नहीं हुआ है और मि. क्लेमन के पेट से इतना रक्तस्राव हुआ कि वे बेहोश हो गए। कितनी दुख भरी कहानी है !

हमें लगता है कि मि. कुगलर को किसी विश्वसनीय डॉक्टर के पास जाकर बीमारी का मेडिकल सर्टिफ़िकेट बनवाना चाहिए, जिसे वे इल्वर्ज़म में सिटी हॉल में दिखा सकते हैं। गोदाम के कर्मचारियों को कल की छुट्टी दी गई है, इसलिए बेप दफ़्तर में अकेली होंगी। अगर (फिर से एक और 'अगर ' ) बेप को घर पर रहना पड़ा, तो दरवाज़ा बंद रहेगा और हमें बिलकुल ख़ामोशी से रहना होगा, ताकि केग कंपनी तक हमारी आवाज़ें न पहुँचें। एक बजे यान आधे घंटे के लिए हम बेचारे परित्यक्त लोगों को देखने आएँगे, जैसे कोई चिड़ियाघर का संरक्षक आता है।

आज दोपहर, लंबे समय के बाद पहली बार यान ने हमें बाहरी दुनिया की कोई ख़बर दी । तुम्हें देखना चाहिए था कि हम लोग कैसे उन्हें घेरकर खड़े थे, वैसे ही जैसे बच्चे अपनी 'दादी-नानी के पास कहानी सुनने को' जमा होते हैं। उन्होंने अपने कृतज्ञ श्रोताओं को खाने की बातों से ख़ुश कर दिया। मीप की एक दोस्त मिसेज़ पी उनके लिए खाना बनाती हैं। परसों यान ने मटर के साथ गाजर खाई, कल बचा खुचा खाना खाया, आज वे उनके लिए सूखे मटर बनाने वाली हैं और कल बचे हुए गाजर व आलू को मिलाकर बनाएँगी।

'डॉक्टर ?' यान ने कहा । 'कौन डॉक्टर? मैंने आज सुबह उसे फ़ोन किया और उसकी रिसेप्शनिस्ट ने बात की। मैंने फ़्लू की दवा की पर्ची के बारे में पूछा और मुझे बताया गया कि मैं कल सुबह आठ से नौ बजे तक उसे ले लूँ। अगर आपकी हालत बहुत ख़राब हो, तो डॉक्टर ख़ुद आकर आपसे बात करता है और कहता है, “जीभ बाहर निकालकर 'आह' कहें। मैं उसे सुन सकता हूँ, आपके गले में संक्रमण है। मैं पर्ची लिख दूँगा और आप दवा की दुकान पर उसे ला सकते हैं। आपका दिन शुभ हो।” बस, हो गया। उसका काम आसान है, फ़ोन पर बता दो। लेकिन मुझे डॉक्टरों को दोष नहीं देना चाहिए। हर इंसान के दो ही हाथ होते हैं और आजकल मरीज़ों की तादाद बहुत ज्यादा है, जबकि डॉक्टरों की संख्या बहुत कम है।'

यान की फ़ोन की बात पर हम सभी ख़ूब हँसे । मैं कल्पना कर सकती हूँ कि डॉक्टर का वेटिंग रूम आजकल कैसा लगता होगा। डॉक्टर अब ग़रीब मरीज़ों को देखकर नाक-भौं नहीं सिकोड़ते, बल्कि हल्की बीमारी वालों को देखकर ऐसा करते हैं। 'अरे, आप यहाँ क्या कर रहे हैं?' वे सोचते हैं। 'कतार में आख़िर में चले जाइए; असली मरीज़ ज्यादा ज़रूरतमंद हैं!'

तुम्हारी, ऐन

बृहस्पतिवार, 16 मार्च, 1944

प्यारी किटी,

मौसम बहुत अच्छा है, इतना ख़ूबसूरत कि बयान नहीं किया जा सकता। मैं थोड़ी देर में अटारी पर जाऊँगी।

मैं अब जानती हूँ कि मैं पीटर से ज्यादा बेचैन क्यों हूँ। उसका अपना कमरा है, जहाँ वह काम कर सकता है, सपने देख सकता है, सोच सकता है और सोता है। मुझे लगातार एक कोने से दूसरे कोने में भगाया जाता है। मैं दुसे के साथ साझा किए गए कमरे में कभी भी अकेली नहीं होती, जबकि अकेली रहना चाहती हूँ। अटारी में पनाह लेने की यह एक और वजह है। जब मैं वहाँ पर या तुम्हारे साथ होती हूँ, तो मैं अपने असली रूप में होती हूँ, कम से कम थोड़ी देर के लिए ही सही । फिर भी मैं शिकायत नहीं करना चाहती। इसके उलट, मैं बहादुर होना चाहती हूँ!

शुक्र है कि बाक़ी लोग मेरी सबसे आंतरिक भावनाओं पर ज़रा भी ध्यान नहीं देते, यही कि मैं हर रोज़ माँ को लेकर बेपरवाह और तिरस्कारपूर्ण होती जा रही हूँ, पापा के प्रति कम स्नेही और मारगोट के साथ कोई भी विचार साझा नहीं करना चाहती; मैं बस अपने में सिमटती जा रही हूँ। इससे भी ज्यादा मुझे अपना आत्मविश्वास बनाए रखना होता है। किसी को भनक भी नहीं लगनी चाहिए कि मेरे दिल-दिमाग़ में हमेशा जद्दोजहद चलती रहती है। अब तक हमेशा तर्क ही लड़ाई जीता है, लेकिन क्या मेरी भावनाएँ कभी सशक्त स्थिति में होंगी? कभी मैं डरती हूँ कि वे होंगी, लेकिन अक्सर मैं उम्मीद करती हूँ कि ऐसा हो !

पीटर के साथ इन चीज़ों के बारे में बात न करना बहुत मुश्किल है, लेकिन मैं जानती हूँ कि मुझे उसे शुरुआत करने देनी होगी; दिन के समय ऐसे दिखाना बहुत मुश्किल है कि जैसे मेरे सपनों में मैंने जो भी किया व कहा, असल में वह कभी हुआ ही नहीं! किटी, ऐन पागल है, लेकिन यह समय ही ऐसा है और हालात तो और भी पागलपन भरे हैं।

सबसे अच्छी बात यह है कि मैं अपने सभी विचारों व भावनाओं को लिख सकती हूँ; वरना मेरा दम घुट जाता। मैं सोचती हूँ कि पीटर की इस सब पर क्या राय होगी ? मैं एक दिन इस सब पर उससे बात कर सकूँगी । उसने ज़रूर मेरे भीतर की लड़की के बारे में कुछ तो अंदाज़ा लगाया होगा, क्योंकि जिस बाहरी ऐन को उसने अब तक जाना है, उसे तो वह शायद प्यार नहीं कर सकता! शांति व सुकून पसंद करने वाला पीटर जैसा इंसान आख़िर कैसे मेरी हलचल व मेरे शोर को बर्दाश्त कर सकता है? क्या वही पहला और अकेला इंसान होगा, जो मेरे सख़्त मुखौटे के नीचे देख सकेगा? क्या उसे इसमें वक़्त लगेगा? क्या ऐसी पुरानी कहावत नहीं है, जो प्यार को तरस खाने के जैसा मानती है? क्या यहाँ भी ऐसा ही तो नहीं हो रहा? मैं अक्सर उस पर भी उतना ही तरस खाती हूँ, जितना कि खुद पर !

मैं नहीं जानती कि कहाँ से शुरू करूँ, सचमुच नहीं जानती, तो मैं पीटर से कैसे अपेक्षा कर सकती हूँ, जबकि उसके लिए बात करना काफ़ी मुश्किल है ? काश, मैं उसे लिख पाती, तब कम से कम वह जानता तो कि मैं क्या कहना चाह रही हूँ, क्योंकि ज़ोर से बोल पाना तो काफ़ी मुश्किल है!

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

शुक्रवार, 17 मार्च, 1944

मेरी प्यारी-दुलारी,

आख़िरकार सब कुछ अच्छा रहा; बेप का गला ख़राब था, उसे फ़्लू नहीं हुआ था और मि. कुगलर को मेडिकल सर्टिफ़िकेट मिल गया था, ताकि उन्हें काम के विवरण से छूट मिल जाए। पूरे अनेक्स ने बड़ी राहत की साँस ली। यहाँ सब कुछ ठीक है! बस, मैं व मारगोट अपने माँ-बाप से परेशान हैं।

मुझे ग़लत मत समझना, मैं पापा से अब भी प्यार करती हूँ और मारगोट माँ व पापा, दोनों से प्यार करती है, लेकिन जब आप हमारे जितने बड़े होते हैं, तो आप अपने लिए कुछ निर्णय लेना चाहते हैं, उनके शासन से निकलना चाहते हैं। जब भी मैं ऊपर जाती हूँ, तो वे मुझसे पूछते हैं कि मैं क्या करने जा रही हूँ। वे मुझे अपने खाने में नमक नहीं मिलाने देते। माँ हर शाम सवा आठ बजे मुझसे पूछती हैं कि क्या मेरा नाइटी पहनने का वक़्त नहीं हुआ, मुझे व उन्हें मेरे द्वारा पढ़ी जाने वाली हर किताब को मंजूरी देनी पड़ती है। मैं मानती हूँ कि वे उसे लेकर बहुत सख़्त नहीं हैं और मुझे लगभग सब कुछ पढ़ने देते हैं, लेकिन मारगोट व मैं दिन भर उनकी टिप्पणियाँ व सवाल सुनकर परेशान हो चुके हैं।

कुछ और भी है जो उन्हें नाराज़ करता है: मुझे अब सुबह, दोपहर और रात को उन्हें चूमना अच्छा नहीं लगता। वे सभी प्यारे से उपनाम बहुत बनावटी लगते हैं और पापा का गैस और शौचालय के बारे में बात करना मुझे घिनौना लगता है। संक्षेप में कहूँ, तो मैं कुछ दिन उनके बिना बिताना पसंद करुँगी, लेकिन वे इस बात को नहीं समझते। मारगोट और मैंने उनसे कभी इस तरह की बात नहीं की। उससे क्या फ़ायदा होगा? वे समझने नहीं वाले हैं।

कल रात मारगोट ने कहा, 'मुझे यह बात बहुत परेशान करती है कि अगर आप अपने हाथों में सिर लेकर बैठे हों और एक या दो गहरी साँसें भरें, तो वे तुरंत पूछेंगे कि कहीं तुम्हें सिरदर्द तो नहीं या फिर तुम्हारी तबियत ख़राब तो नहीं!'

हम दोनों के लिए एक बड़ा झटका यह समझना रहा कि घर में हम जिस तरह का जुड़ा हुआ व सामंजस्यपूर्ण परिवार हुआ करते थे, उसके बस अब थोड़े से अवशेष ही बच पाए हैं! इसका कारण यह है कि यहाँ पर सब कुछ तरतीब से बाहर है। इससे मेरा मतलब है कि बाहरी मामलों को लेकर हमें बच्चा समझा जाता है, जबकि अंदर से हम अपनी उम्र की बाक़ी लड़कियों से काफ़ी बड़ी हैं। मैं सिर्फ़ चौदह साल की हूँ, मैं जानती हूँ कि कौन सही है और कौन ग़लत, मेरे अपने विचार, अपनी राय व सिद्धांत हैं और हो सकता है कि किसी किशोरी से यह सुनना अजीब लगे कि मुझे लगता है कि मैं कोई बच्ची नहीं बल्कि बड़ी इंसान हूँ, मैं पूरी तरह से स्वतंत्र हूँ। मैं जानती हूँ कि माँ के मुक़ाबले मैं बहस करने या किसी बातचीत में हिस्सा लेने में बेहतर हूँ, मैं जानती हूँ कि मैं ज्यादा निष्पक्ष हूँ, मैं ज्यादा बढ़ा-चढ़ाकर बात नहीं करती, मैं ज्यादा साफ़-सुथरी हूँ और बेहतर काम करती हूँ और उसके कारण मुझे लगता है कि (हो सकता है कि इस बात से तुम्हें हँसी आज जाए) मैं माँ से कई तरह से बेहतर हूँ। किसी से प्यार करने के लिए ज़रूरी है कि मैं उसकी प्रशंसा करूँ, उसका सम्मान करूँ, लेकिन माँ के लिए तो मेरे मन में न इज़्ज़त है और न ही तारीफ़ !

सब कुछ ठीक हो जाए, अगर मेरे पास पीटर हो, क्योंकि मैं कई तरह से उसे पसंद करती हूँ। वह इतना भला व चतुर है!

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

शनिवार, 18 मार्च, 1944

प्यारी किटी,

मैंने तुम्हें अपने व अपने एहसास के बारे में किसी भी ज़िंदा इंसान के मुक़ाबले ज्यादा बताया है, तो फिर उसमें सेक्स क्यों शामिल नहीं होना चाहिए?

सेक्स के मामले में माता-पिता और आम तौर पर लोग बहुत अजीब होते हैं। बारह साल की उम्र में अपने बेटे-बेटियों को सब कुछ बताने के बजाय इस विषय की बात उठने पर वे बच्चों को कमरे से बाहर भेज देते हैं और उन्हें सब कुछ अपने आप जानने के लिए छोड़ देते हैं। बाद में जब माता-पिता गौर करते हैं कि उनके बच्चे किसी तरह जानकारी हासिल कर चुके हैं और मान लेते हैं कि वे ज्यादा (या कम) जान चुके हैं, जबकि असल में वे उतना नहीं जानते। तो फिर वे उसकी कमी को पूरा करने के लिए बच्चों से जानने की कोशिश क्यों नहीं करते?

वयस्कों के लिए सबसे बड़ी रुकावट, मेरी राय में जो बहुत छोटी सी बात है वह यह कि वे डरते हैं कि उनके बच्चे शादी को उतना पवित्र नहीं मानेंगे, जब उन्हें महसूस होगा, अधिकतर मामलों में कि यह पवित्रता की बात बकवास है। जहाँ तक मेरी राय है, थोड़े अनुभव से कुछ नहीं बिगड़ने वाला । आख़िरकार, इसका शादी से कुछ लेना-देना नही हैं, है न?

ग्यारह साल की होने के बाद उन्होंने मुझे मासिक धर्म के बारे में बताया। लेकिन तब भी मुझे नहीं पता था कि ख़ून कहाँ से निकलता था और उसका क्या काम था। जब मैं साढ़े बारह साल की हुई, तो मैंने यैक से थोड़ी और जानकारी ली, जो मेरी तरह अनजान नहीं थी। मेरे सहज ज्ञान ने मुझे बताया कि स्त्री-पुरुष जब साथ होते हैं, तो क्या करते हैं और वह पहली नज़र में मुझे बहुत पागलपन भरा विचार है, लेकिन जब यैक ने उसकी पुष्टि की, तो मुझे खुद पर गर्व हुआ कि मैंने अपने आप उसका पता लगा लिया था!

यैक ही थी जिसने मुझे बताया कि बच्चे माँ के पेट से नहीं निकलते । उसका कहना था, ‘जहाँ पर कच्चा माल जाता है, वहीं से तैयार माल भी निकलता है !' यैक और मैंने यौन शिक्षा की एक किताब से योनिच्छद के बारे में जाना और बाक़ी अन्य जानकारी भी ली। मैंने यह भी जाना कि किस तरह से बच्चे पैदा न हों, लेकिन आपके शरीर में वह कैसे काम करता है, वह रहस्य ही बना रहा। जब मैं यहाँ आई, तो पापा ने मुझे वेश्या, आदि के बारे में बताया, लेकिन कुल मिलाकर अब भी कई सवाल ऐसे हैं, जिनके जवाब नहीं मिले हैं।

अगर माँएँ अपने बच्चों को सब कुछ नहीं बतातीं, तो वे इधर-उधर से जानकारी लेंगे, जो सही नहीं हो सकती।

आज शनिवार है, लेकिन मैं फिर भी ऊब नहीं रही हूँ। इसका कारण यह है कि मैं पीटर के साथ थी। मैं वहाँ पर आँखें बंद कर सपने देख रही थी, वह अद्भुत था ।

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

रविवार, 19 मार्च, 1944

प्यारी किटी,

कल का दिन मेरे लिए बहुत अहम था। दिन के खाने के बाद सब कुछ सामान्य था। पाँच बजे मैंने आलू चढ़ाए और माँ ने मुझे पीटर के लिए ले जाने के लिए कुछ ब्लड सॉसेज दिए। पहले मैं नहीं जाना चाहती थी, लेकिन आख़िरकार मैं चली गई। वह सॉसेज नहीं लेगा और मुझे लगता है कि अविश्वास पर हुई बहस के कारण ऐसा हो सकता है। अचानक मैं उस बात को सहन नहीं कर पाई और मेरी आँखें भर आईं। बिना कुछ कहे मैंने प्लेट माँ को पकड़ाई और जी भरकर रोने के लिए शौचालय में चली गई। उसके बाद मैंने पीटर से बात करने का फ़ैसला किया। रात के खाने से पहले हम चारों वर्ग पहेली भरने में उसकी मदद कर रहे थे, इसलिए मैं कुछ कह नहीं पाई। जैसे ही हम खाने के लिए बैठे, मैंने फुसफुसाकर उसे कहा, 'आज रात शॉर्टहैंड का अभ्यास करोगे, पीटर?'

'नहीं, ' उसने जवाब दिया।

'मैं बाद में तुमसे बात करना चाहूँगी।

वह राज़ी हो गया।

बर्तन धोने के बाद मैं उसके कमरे में गई और उससे पूछा कि क्या उसने हमारी पिछली लड़ाई के कारण सॉसेज लेने से मना कर दिया था। ख़ुशकिस्मती से कारण वह नहीं था; उसने सोचा कि किसी चीज़ को लपक लेना शिष्टाचार नहीं था। नीचे बहुत गर्मी थी और मेरा चेहरा लाल हो गया था। मारगोट के लिए नीचे पानी ले जाने के बाद मैं ताज़ा हवा लेने वापस ऊपर चली गई। पीटर के कमरे में जाने से पहले दिखावे के लिए पहले मैं फ़ॉन डान दंपत्ति की खिड़की के पास खड़ी हो गई। वह खुली खिड़की के बाईं ओर खड़ा था, इसलिए मैं दाईं तरफ़ चली गई। दिन के उजाले के बजाय हल्की रोशनी में खुली खिड़की के पास बात करना ज्यादा आसान होता है और मुझे लगता है कि पीटर भी यही सोचता है।

हमने एक-दूसरे को इतना कुछ बताया, इतना कुछ कि मैं उसे दोहरा नहीं सकती। लेकिन ऐसा करके अच्छा लगा; अनेक्स में मेरी अब तक यह सबसे बढ़िया शाम थी। मैं तुम्हें उन विषयों के बारे में संक्षेप में बताऊँगी, जिन पर हमने बात की थी।

पहले हमने लड़ाइयों के बारे में बात की और कैसे मैं आजकल उन्हें बिलकुल अलग ढंग से देखती हूँ और फिर इस बारे में कि हम किस तरह से अपने माता-पिता से दूर हो गए हैं। मैंने पीटर को मम्मी- पापा, मारगोट और अपने बारे में बताया। बातचीत के दौरान उसने पूछा, 'तुम हमेशा एक- दूसरे को शुभरात्रि कहते हुए चूमते हो, है न?'

'एक बार ? दर्जनों बार । तुम नहीं करते?'

'नहीं, मैंने कभी सचमुच किसी को नहीं चूमा।'

'अपने जन्मदिन पर भी नहीं?'

'हाँ, जन्मदिन पर तो चूमा है।'

हमने बात की कि कैसे हम दोनों ही अपने माँ-बाप पर भरोसा नहीं करते और कैसे उसके माँ-बाप एक-दूसरे को बहुत प्यार करते हैं और इच्छा व्यक्त की कि वह उन्हें अपनी बातें बता पाता, लेकिन वह ऐसा नहीं करना चाहता । कैसे मैं जी भरकर रोती हूँ और कैसे वह ऊपर जाकर बुरा-भला है। कैसे मारगोट व मैं हाल ही में एक-दूसरे को जानने लगे हैं और फिर भी एक-दूसरे को कितना कम बताते हैं, क्योंकि हम हमेशा साथ रहते हैं । हमने हर संभव चीज़ पर बात की, भरोसे, भावनाओं और ख़ुद के बारे में। किटी, वह वैसा ही है, जैसा मैंने उसके बारे में सोचा था।

फिर हमने साल 1942 के बारे में बात की और तब हम कितने अलग थे; हम उस ज़माने के अपने रूप को पहचानते तक नहीं हैं। कैसे हम एक- दूसरे को बर्दाश्त नहीं कर पाते थे। वह सोचता था कि मैं बहुत शोर मचाती हूँ और मैं भी तुरंत इस नतीजे पर पहुँच गई थी कि वह कुछ ख़ास नहीं है। मुझे तब समझ नहीं आया था कि वह मेरे साथ हँसी-मज़ाक क्यों नहीं करता और अब मैं ख़ुश हूँ कि उसने ऐसा नहीं किया। उसने इस बात का भी ज़िक्र किया कि कैसे वह अपने कमरे में पनाह ले लेता था। मैंने कहा कि मेरा शोर-शराबा व चुलबुलापन और उसकी ख़ामोशी एक ही सिक्के के दो पहलू थे, यह कि मुझे भी शांति व सुकून पसंद थे, लेकिन मेरे पास अपने लिए कुछ भी नहीं था, बस एक डायरी को छोड़कर और यह भी कि हर किसी को मेरे पीछे देखना चाहिए, शुरुआत मि. दुसे से होनी चाहिए और मैं हमेशा अपने माँ-बाप के साथ नहीं बैठना चाहती। हमने इस पर भी बात की कि वह कितना ख़ुश है कि मेरे माँ-बाप के बच्चे हैं और मैं भी कितनी ख़ुश हूँ कि वह यहाँ है। मैं अब उसके अपने में सिमटने की बात को, उसके माँ-बाप के साथ उसके रिश्ते को समझने लगी हूँ और उनके बहस करने पर मैं उसकी मदद करना चाहती हूँ।

'तुम तो हमेशा से मेरी मददगार रही हो !' उसने कहा ।

'कैसे?' हैरानी से मैंने पूछा।

'खुश रहकर । '

सारी शाम वही सबसे अच्छी बात उसने कही। उसने यह भी कहा कि उसे मेरा उसके कमरे में आना पहले की तरह बुरा नहीं लगता; असल में उसे वह पसंद है। मैंने उसे यह भी बताया कि पापा व माँ के सभी उपनाम बेकार थे और यह कि चूमने से स्वाभाविक रूप से विश्वास पैदा नहीं होता। हमने अपने तरीके से काम करने, डायरी, अकेलेपन, लोगों के बाहरी व भीतर रूप में अंतर, मेरे मुखौटे आदि पर भी बात की।

वह बस बहुत बढ़िया था। वह ज़रूर अब मुझसे एक दोस्त की तरह प्यार करने लगा होगा और फ़िलहाल वह काफ़ी है। मैं इतनी कृतज्ञ व प्रसन्न हूँ कि मुझे शब्द नहीं मिल रहे। मैं माफी चाहूँगी, किटी कि आज मेरा तरीक़ा मेरे अपने सामान्य दर्जे के अनुसार नहीं है। जो कुछ मेरे दिमाग़ में आया, मैंने वही लिख दिया!

मुझे लगता है कि पीटर व मेरे बीच एक गुप्त बात है। जब भी वह मुझे उन नज़रों से, उस मुस्कराहट व इशारे से देखता है, लगता है जैसे कि मेरे अंदर कोई रोशनी जा रही हो। मुझे उम्मीद है कि हालात ऐसे ही रहें और हम ऐसे ही कई ख़ुशनुमा घंटे साथ बिता सकें।

तुम्हारी कृतज्ञ व प्रसन्न ऐन

सोमवार, 20 मार्च, 1944

प्यारी किटी,

आज सुबह पीटर ने मुझसे पूछा कि क्या मैं किसी शाम फिर से आऊँगी। उसने क़सम खाई कि मैं उसे परेशान नहीं करती और अगर एक के लिए जगह है, तो दूसरे के लिए भी हो सकती है। मैंने कहा कि मैं हर शाम उससे नहीं मिल सकती, क्योंकि मेरे माता-पिता को यह बात सही नहीं लगती, लेकिन उसका कहना था कि मुझे उससे परेशान नहीं होना चाहिए। मैंने उसे कहा कि मैं किसी शनिवार की शाम आऊँगी और उससे यह भी कहा कि क्या वह मुझे बताएगा कि चाँद को कब देखा जा सकता है।

'बिलकुल,' उसने कहा । 'हम नीचे जाकर वहाँ से चाँद देख सकते हैं।' मैं राज़ी हो गई; मुझे चोरों से डर नहीं लगता ।

इस बीच मेरी ख़ुशी पर एक छाया पड़ गई है। काफ़ी लंबे समय तक मुझे लगता था कि मारगोट पीटर को पसंद करती है। कितना, मैं नहीं जानती, लेकिन पूरी स्थिति ख़ुशनुमा नहीं है। अब हर बार जब भी मैं पीटर से मिलने जाती हूँ, तो न चाहते हुए भी मैं उसे चोट पहुँचाती हूँ। सबसे मज़ेदार बात यह है कि वह ऐसा दिखाती नहीं है। मैं जानती हूँ कि मैं तो काफ़ी जलन महसूस करती, लेकिन मारगोट का कहना है कि मुझे उसके लिए अफ़सोस नहीं होना चाहिए।

'मेरे ख़याल से यह बहुत बुरा है कि तुम अकेली पड़ गई हो,' मैंने कहा।

'मुझे आदत पड़ गई है,' उसने थोड़ी कड़वाहट से जवाब दिया।

मैं पीटर को नहीं बता सकती। शायद बाद में बताऊँ, लेकिन उसे और मुझे अभी कई चीज़ों पर बात करनी है।

कल रात मुझे माँ ने चेतावनी भरी थपकी दी, जो मुझे दी जानी चाहिए थी। मुझे उनके प्रति अपनी उदासीनता और नफ़रत को बहुत दूर नहीं ले जाना चाहिए। सब चीज़ों के बावजूद मुझे फिर से दोस्ताना बनने की कोशिश करनी चाहिए और अपनी टिप्पणियों को अपने तक ही रखना चाहिए!

पिम भी उतने अच्छे नहीं रहे, जितने कि पहले थे। वे कोशिश करते रहे हैं कि मेरे साथ बच्चे की तरह बर्ताव न करें, लेकिन अब वे बहुत भावनारहित लगते हैं। अब देखना है कि इसका क्या नतीजा होता है ! उन्होंने मुझे चेतावनी दी है कि अगर मैं अपना बीजगणित नहीं करती, तो मुझे युद्ध के बाद अतिरिक्त ट्यूशन नहीं मिलेगी। मैं बस इंतज़ार करूँगी कि क्या होता है, लेकिन मैं फिर से शुरू करना चाहूँगी, बशर्ते मुझे नई किताब मिलें ।

अभी के लिए इतना ही। मैं पीटर को निहारने के सिवा कुछ और नहीं करती और मैं भर गई हूँ, ऊपर तक !

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

मारगोट की अच्छाई का सबूत। यह मुझे आज 20 मार्च, 1944 को मिला:

ऐन, कल जब मैंने कहा था कि मैं तुसमे नहीं जलती, तो मैं पूरी तरह ईमानदार नहीं थी। हालत इस तरह है: मैं तुमसे या पीटर से ईर्ष्या नहीं करती। मुझे बस अफ़सोस है कि मुझे ऐसा कोई नहीं मिला, जिसके साथ मैं अपने विचार, अपनी भावनाएँ बाँट सकूँ और भविष्य में भी इसकी संभावना नहीं है। इसी वजह से मैं अपने दिल की गहराइयों से कामना करती हूँ कि तुम दोनों एक-दूसरे पर विश्वास कर सको। तुम पहले ही कितना कुछ नहीं कर पा रहे हो, जिसकी अहमियत लोग नहीं समझ पाते।

दूसरी ओर, यह बात पक्की है कि मैं पीटर के साथ इतनी दूर तक नहीं जा सकती थी, क्योंकि किसी के साथ अपने विचार साझा करने से पहले मेरे लिए ज़रूरी है कि मैं उसके साथ नज़दीकी महसूस करूँ। मैं ऐसा एहसास चाहती हूँ कि मेरे एक शब्द बोले बिना भी वह मुझे पूरी तरह समझ जाए। इस वजह से उस इंसान को ऐसा होना चाहिए, जो बौद्धिक रूप से मुझसे श्रेष्ठतर हो और पीटर के मामले में ऐसा नहीं है। मैं उसके प्रति तुम्हारी भावनाओं को समझ सकती हूँ।

इसलिए तुम्हें ख़ुद को कोसने की कोई ज़रूरत नहीं है क्योंकि तुम्हें लगता है कि तुम ऐसा कुछ ले रही हो, जो मेरा था, जबकि यह बात सच से कोसों दूर है। तुम्हें व पीटर को इस दोस्ती से फ़ायदा होगा।

मेरा जवाब:

प्रिय मारगोट,

तुम्हारी चिट्ठी बहुत उदारता भरी थी, लेकिन फिर भी इस स्थिति को लेकर मैं पूरी तरह ख़ुशी महसूस नहीं करती और मुझे नहीं लगता कि मैं कभी ऐसा कर पाऊँगी।

फ़िलहाल पीटर और मैं एक-दूसरे पर उतना भरोसा नहीं करते, जितना कि तुम्हें लगता है। बात बस यही है कि जब आप शाम के वक़्त खुली खिड़की के सामने खड़े हों, तो आप एक-दूसरे से ज्यादा कुछ कह सकते हैं, जबकि चमकती धूप में शायद न कह पाएँ। अपने एहसास को छत पर खड़े होकर चिल्लाने के मुक़ाबले फुसफुसाकर कहना कहीं ज्यादा आसान होता है। मुझे लगता है कि तुम्हारे मन में पीटर के प्रति बहन के जैसा स्नेह पनपने लगा है और तुम भी उसकी वैसे ही मदद करना चाहती हो, जैसे कि मैं करना चाहूँगी। शायद किसी दिन तुम ऐसा कर पाओ, हालाँकि हमारे मन में उस तरह के विश्वास की बात नहीं है। मेरा विश्वास है कि भरोसा दोनों तरफ़ से आता है। मेरा यह भी ख़याल है कि यही कारण है कि पापा और मैं कभी बहुत क़रीब नहीं आ पाए। लेकिन अब इसके बारे में और बात नहीं करते। अगर अब भी तुम कोई चर्चा करना चाहती हो, तो मुझे लिखना, क्योंकि मेरे लिए अपने मन की बात काग़ज़ पर कहना बोलने के मुक़ाबले ज्यादा आसान है। तुम जानती हो कि मैं तुम्हें कितना सराहती हूँ और सिर्फ़ उम्मीद कर सकती हूँ कि कुछ तुम्हारी व कुछ पापा की अच्छाई मुझ पर भी आ जाए, उस मायने में तुम दोनों काफ़ी कुछ एक से हो।

तुम्हारी, ऐन

बुधवार, 22 मार्च, 1944

प्यारी किटी,

मुझे कल रात मारगोट का यह पत्र मिला:

प्रिय ऐन,

कल की तुम्हारी चिट्ठी पढ़ने के बाद मेरे मन में यह अप्रिय भावना है कि जब कभी तुम पीटर से काम के लिए या फिर बातचीत के लिए मिलती हो, तो तुम्हारी अंतरात्मा तुम्हें परेशान करती है; जबकि उसका कोई वास्तविक कारण नहीं है। अपने दिल में मैं जानती हूँ कि कोई है, जो मेरे विश्वास के लायक़ है (और जैसे मैं उसके) और उस जगह पर मैं पीटर को बर्दाश्त नहीं कर सकती।

लेकिन जैसा कि तुमने लिखा, मैं पीटर को भाई जैसा मानती हूँ... छोटे भाई जैसा; हम एक-दूसरे को अपने एहसास का अंदाज़ा देते रहे हैं और आने वाले समय में भाई-बहन का स्नेह विकसित हो सकता है या नहीं भी, लेकिन अब तक यह उस चरण तक नहीं पहुँचा है। इसलिए तुम्हें मेरे लिए अफ़सोस करने की ज़रूरत नहीं है। अब जबकि तुम्हें साथ मिल गया है, तुम जितना हो सके उसका आनंद लो।

इस बीच, यहाँ हालात अच्छे होते जा रहे हैं। मुझे लगता है किटी कि अनेक्स में शायद सच्चा प्यार परवान चढ़ रहा है। यहाँ लंबे समय तक रहने की स्थिति में पीटर से शादी करने के चुटकुले शायद उतने मूर्खतापूर्ण भी नहीं थे। ऐसा नहीं है कि मैं उससे शादी करने की सोच रही हूँ। मैं यह तक नहीं जानती कि बड़ा होने पर वह कैसा इंसान बनेगा। या फिर हमें एक- दूसरे से इतना प्यार होगा कि हम शादी कर लें।

अब मुझे निस्संदेह लगता है कि पीटर भी मुझसे प्यार करता है; मैं बस नहीं जानती कि किस तरह से। मैं नहीं जान पा रही हूँ कि उसे सिर्फ़ अच्छे दोस्त की ज़रूरत है या फिर वह मेरी तरफ़ एक लड़की या बहन के तौर पर आकर्षित है। जब उसने मुझसे कहा कि उसके माता-पिता के लड़ने पर मैंने हमेशा उसकी मदद की है, तो मैं बहुत खुश हुई; वह उसकी दोस्ती की तरफ़ मेरे भरोसे का पहला क़दम था। कल मैंने उससे पूछा कि अगर दर्जनों ऐन उसे मिलने के लिए आती रहीं, तो वह क्या करेगा। उसका जवाब था: 'अगर वे तुम्हारी तरह हों, तो कोई बात नहीं।' वह बहुत ध्यान रखने वाला है और मुझे लगता है कि उसे मुझसे मिलना पसंद है। इस बीच वह फ़्रेंच सीखने में कड़ी मेहनत कर रहा है और रात सवा दस बजे तक बिस्तर पर भी पढ़ता रहता है।

जब भी मैं शनिवार रात के अपने शब्दों, अपनी आवाज़ों बारे में सोचती हूँ, तो मैं पहली बार अपने आपको ख़ुद से ही संतुष्ट पाती हूँ; मेरा मतलब है कि मैं अब भी वही कहूँगी और कुछ भी बदलना नहीं चाहूँगी, जैसा कि अक्सर मैं करती हूँ। वह बहुत ख़ूबसूरत है, चाहे वह मुस्करा रहा हो या फिर ऐसे ही बैठा हो। वह बहुत प्यारा, अच्छा व सुंदर है। मेरे ख़याल से वह तब सबसे ज्यादा हैरान हुआ, जब उसे पता चला कि मैं बिलकुल भी बनावटी, दुनियावी ऐन नहीं हूँ, जैसी कि दिखती हूँ, बल्कि उसकी तरह ही सपने देखने वाली और उतनी ही परेशानियों से घिरी हुई हूँ!

कल रात बर्तन धोने के बाद मैं इंतज़ार करने लगी कि वह मुझे ऊपर आने के लिए कहेगा। लेकिन कुछ भी नहीं हुआ; मैं चली गई। वह नीचे दुसे को यह कहने आया कि रेडियो सुनने का समय है और थोड़ी देर गुसलखाने के आसपास मँडराया, लेकिन जब दुसे ने ज्यादा वक़्त लगाया, तो वह वापस ऊपर चला गया। उसने अपने कमरे में चहलकदमी की और जल्दी सोने चला गया।

मैं पूरी शाम इतनी बेचैन रही कि अपने चेहरे पर ठंडा पानी डालने के लिए गुसलखाने जाती रही। मैंने थोड़ा पढ़ा, दिन में थोड़े और सपने देखे, घड़ी की तरफ़ देखा और इंतज़ार, बस इंतज़ार करती रही और उसके क़दमों की आवाज़ सुनती रही। मैं थककर जल्दी सोने चली गई।

आज रात मुझे नहाना है, कल का क्या? कल अभी बहुत दूर है !

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

मेरा जवाब:

प्यारी मारगोट,

मेरे ख़याल से सबसे अच्छा यही रहेगा कि हम इंतज़ार करें। कुछ समय बाद मुझे और पीटर को यह फ़ैसला करना होगा कि हम जिस तरह थे, वैसे ही रहें या फिर कुछ और होगा। मैं नहीं जानती कि क्या होगा; मैं बहुत दूर तक नहीं देख सकती।

लेकिन एक बात को लेकर मैं निश्चित हूँ: अगर पीटर और मैं दोस्त बने, तो मैं उसे बताऊँगी कि तुम भी उसे पसंद करती हो और अगर उसे ज़रूरत हो, तो उसकी मदद करने के लिए तैयार हो। मैं जानती हूँ कि तुम ऐसा नहीं चाहोगी, लेकिन मुझे परवाह नहीं है; मुझे नहीं पता कि पीटर तुम्हारे बारे में क्या सोचता है, लेकिन वक़्त आने पर मैं उससे पूछूंगी। इसमें कुछ भी बुरा नहीं, बल्कि उसके उलट है!

तुम चाहो तो हमारे साथ अटारी पर या हम जहाँ भी हों, आ सकती हो। तुम हमें परेशान नहीं करोगी, क्योंकि हमारे बीच एक अनकहा समझौता है कि हम शाम को अँधेरे में ही बात करते हैं।

अपना उत्साह बनाए रखो ! मैं अपनी तरफ़ से पूरी कोशिश कर रही हूँ, हालाँकि यह आसान नहीं है। जल्दी ही तुम्हारा समय भी आएगा।

तुम्हारी, ऐन

बृहस्पतिवार, 23 मार्च, 1944

प्यारी किटी,

हालात यहाँ कमोबेश सामान्य होने लगे हैं। शुक्र है कि हमारे लिए कूपन लाने वाले लोग जेल से छूट गए हैं!

मेप भी कल काम पर वापस आ गई हैं, लेकिन आज बिस्तर पर पड़ने की बारी उनके पति की है - कँपकँपी, बुखार, उनमें फ़्लू के सामान्य लक्षण हैं। बेप बेहतर हैं, हालाँकि उन्हें अब भी खाँसी है और मि. कुगलर को अभी काफ़ी लंबे समय तक घर पर रहना होगा।

कल नज़दीक ही एक विमान टकराकर गिर गया। चालक दल के लोग समय पर पैराशूट से उतर गए। वह स्कूल के ऊपर टकराया, लेकिन ख़ुशकिस्मती से अंदर बच्चे नहीं थे। थोड़ी आग लगी थी और कुछ लोग मारे गए। जैसे ही लोग पैराशूट से उतरे, जर्मनों ने उन पर गोलियाँ चला दी। ऐसी कायरतापूर्ण हरकत पर ऐम्स्टर्डम काफ़ी रोष में था। हम महिलाएँ भी काफ़ी डर गई थीं। मुझे गोलियों की आवाज़ से नफ़रत है।

अब कुछ मेरे बारे में।

कल मैं पीटर के साथ थी और ईमानदारी से कहूँ तो पता नहीं कैसे हम लोग सेक्स पर बात करने लगे। मैंने काफ़ी पहले उससे कुछ चीजें पूछने के बारे में सोचा था। वह सब कुछ जानता है; जब मैंने उसे बताया कि मैं व मारगोट उतनी अच्छी तरह नहीं जानते, तो उसे हँसी आ गई।

मैंने उसे मारगोट व अपने और मम्मी-पापा के बारे में काफ़ी कुछ बताया और कहा कि मैं उनसे पूछने की हिम्मत नहीं कर सकती। उसने मुझे समझाने की पेशकश की और मैंने उसे कृतज्ञता से स्वीकार कर लिया: उसने मुझे बताया कि गर्भनिरोधक कैसे काम करते हैं और मैंने बहुत बेधड़क होकर उससे पूछा कि लड़के कैसे जानते हैं कि वे बड़े हो चुके हैं। उस पर उसे सोचना पड़ा; उसने कहा कि वह मुझे आज रात बताएगा। मैंने उसे यैक के साथ जो कुछ हुआ, उसके बारे में बताया और कहा कि मज़बूत लड़कों के सामने लड़कियाँ असहाय हो जाती हैं । 'तुम्हें मुझसे डरने की ज़रूरत नहीं है, ' उसने कहा ।

जब मैं उस शाम वापस गई, तो उसने मुझे लड़कों के बारे में बताया। थोड़ी झेंप हुई, लेकिन फिर भी उसके साथ वह सब बात करना बहुत अच्छा था । न उसने और न मैंने ही कभी यह कल्पना की थी कि हम इतने खुले तौर पर किसी लड़की या लड़के से इतने अंतरंग विषयों पर इस तरह बातचीत कर पाएँगे। मुझे लगता है कि अब मुझे सब कुछ पता है। उसने मुझे गर्भनिरोधकों के बारे में काफ़ी कुछ बताया।

उस रात गुसलख़ाने में मैं व मारगोट ने उसकी दो दोस्तों ब्रेम और ट्रीज़ के बारे में बात कर रहे थे।

आज सुबह एक अप्रिय बात हुई: नाश्ते के बाद पीटर ने मुझे इशारे से ऊपर बुलाया। 'तुमने मेरे साथ एक गंदी चाल चली,' उसने कहा । 'मैंने सुना, कल रात गुसलखाने में तुम व मारगोट बात कर रहे थे। मेरे ख़याल से बस तुम जानना चाहती थी कि पीटर को कितनी जानकारी है और फिर मेरी हँसी उड़ाना चाहती थी!'

मैं हैरान रह गई ! मैंने सब कुछ किया, ताकि उसे उस अजीब से ख़याल से बाहर निकाल सकूँ; मैं समझ सकती थी कि उसे कैसा लगा होगा, लेकिन वह सच नहीं था!

'अरे नहीं, पीटर,' मैंने कहा । 'मैं इतनी घटिया नहीं हो सकती। मैंने तुम्हें कहा था कि मैं किसी को नहीं बताऊँगी और मैंने ऐसा नहीं किया। उस तरह की हरकत जानबूझकर करना बहुत नीचता भरी बात है... नहीं, पीटर, मज़ाक से मेरा मतलब वह बिलकुल नहीं है। यह ठीक नहीं है। ईमानदारी से कहूँ तो मैंने कुछ भी नहीं कहा। क्या तुम मेरा विश्वास नहीं करोगे?'

उसने आश्वासन दिया कि वह करेगा, लेकिन मुझे लगता है कि मुझे फिर से कभी उस पर बात करनी होगी। मैंने दिन भर कुछ नहीं किया, बस उसकी ही फ़िक्र करती रही। शुक्र है कि उसने सब कुछ साफ़-साफ़ बता दिया। अगर वह मेरे बारे में वैसा सोचता रहता, तो कितना बुरा होता। वह बहुत प्यारा है!

अब मुझे उसे सब कुछ बताना होगा !

तुम्हारी, ऐन

शुक्रवार, 24 मार्च, 1944

प्यारी किटी,

मैं आजकल अक्सर रात के खाने के बाद ताज़ा हवा लेने के लिए पीटर के कमरे में जाती हूँ। सूरज की रोशनी के मुकाबले अँधेरे में आप तुरंत सार्थक बातचीत कर सकते हैं। उसके बग़ल में कुर्सी पर बैठकर बाहर देखना सुखद व आरामदेह लगता है। मैं जब कभी उसके कमरे में जाती हूँ, तो फ़ॉन डान दंपति और दुसे बहुत मूर्खतापूर्ण टिप्पणियाँ करते हैं। वे कहते हैं, 'ऐन का दूसरा घर,' या फिर 'क्या किसी भद्रजन के लिए यह उचित है कि वह रात को अँधेरे में लड़कियों को अपने कमरे में आने दे ?' इस तथाकथित हाज़िरजवाबी के उत्तर में पीटर के पास ग़ज़ब का दिमाग़ है। वैसे मेरी माँ भी बेताबी से भरी हैं और यह जानने के लिए मरी जा रही हैं कि हम बात क्या करते हैं, बस चुपके से उनके मन में यह डर भी है कि मैं जवाब देने से इनकार कर दूँगी। पीटर कहता है कि बड़े लोग जलते हैं, क्योंकि हम छोटे हैं और हमें उनकी बेकार की टिप्पणियों को दिल पर नहीं लेना चाहिए।

कई बार वह मुझे लेने के लिए नीचे आता है, लेकिन वह भी अजीब लगता है, क्योंकि उसकी सभी सावधानियों के बावजूद उसका चेहरा लाल हो जाता है और उसके मुँह से मुश्किल से ही शब्द निकल पाते हैं। मुझे ख़ुशी है कि मैं शर्माती नहीं; वह बहुत बुरा होता होगा।

इसके अलावा मुझे यह भी बुरा लगता है कि मारगोट नीचे बिलकुल अकेली होती है, जबकि मैं पीटर के साथ होती हूँ। लेकिन मैं इस बारे में कर क्या सकती हूँ? उसके आने से मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा, लेकिन वह चुपचाप बैठी रहेगी और उसे अलग-थलग लगेगा।

मुझे हमारी अचानक हुई दोस्ती पर अनगिनत टिप्पणियाँ सुनने को मिलती रहती हैं। मैं तुम्हें बता नहीं सकती कि कितनी ही बार खाना खाते समय यह बात होती है कि अगर लड़ाई अगले पाँच साल और चली तो अनेक्स में शादी हो सकती है। क्या हम माता-पिता की इस तरह की बातचीत पर गौर करते हैं? बहुत कम, क्योंकि यह सब बहुत बेवकूफ़ाना है। क्या मेरे माता-पिता भूल गए हैं कि वे भी कभी छोटे थे? शायद वे भूल चुके हैं। कुछ भी हो, हमारे गंभीर होने पर वे हम पर हँसते हैं और हम जब मज़ाक करते हैं, तो वे संजीदा हो जाते हैं।

मैं नहीं जानती कि आगे क्या होगा या फिर हमारे पास कहने के लिए बातें नहीं रहेंगी। लेकिन अगर इसी तरह चलता रहा तो अंततः हम बिना बात किए भी साथ हो सकते हैं। बस, उसके माता-पिता अजीब ढंग से बर्ताव करना छोड़ दें तो । शायद इसका कारण यह है कि उन्हें मुझे अक्सर देखना पसंद नहीं है; पीटर और मैं उन्हें नहीं बताते कि हम किस बारे में बात करते हैं। अगर उन्हें पता चल जाए कि हम कितनी निजी बातें करते हैं, तो क्या होगा।

मैं पीटर से पूछना चाहूँगी कि क्या वह जानता है कि लड़कियाँ नीचे से कैसे दिखती हैं। मुझे नहीं लगता कि लड़के, लड़कियों जितने जटिल होते हैं। तुम आसानी से तसवीरों या फिर पुरुषों के नग्न चित्रों में देख सकते हो कि लड़के कैसे दिखते हैं, लेकिन महिलाओं के मामले में यह काफ़ी अलग होता है। महिलाओं में जननांग या उन्हें जो कुछ भी कहा जाता है, वे उनकी टाँगों के बीच छिपे होते हैं। पीटर ने शायद कभी किसी लड़की को इतनी नज़दीकी से नहीं देखा होगा। सच बताऊँ तो मैंने भी नहीं देखा। लड़कों के मामले में यह काफ़ी आसान है। लेकिन लड़कियों के अंगों के बारे में बता पाना काफ़ी मुश्किल है। उसने कहा कि वह नहीं जानता कि यह सब एक साथ कैसे फ़िट होता है। वह गर्भाशय ग्रीवा की बात कर रहा था, लेकिन वह तो अंदर होती है, जहाँ उसे देखा नहीं जा सकता। हम औरतों में सब कुछ अच्छी तरह व्यवस्थित होता है। ग्यारह या बारह साल की उम्र तक मैं नहीं जानती थी कि अंदर भी योनि की मुड़ी हुई त्वचा का एक और हिस्सा यानी भगोष्ठ का दूसरा हिस्सा भी होता है, क्योंकि वह दिखाई नहीं देता। इससे भी ज्यादा मज़ेदार यह है कि मैं सोचती थी कि पेशाब क्लाइटॉरिस या भग- शिश्न से निकलती है। एक बार मैंने माँ से पूछा था कि वह उठी हुई चीज़ क्या है, तो उन्होंने जवाब दिया कि वे नहीं जानतीं। यदि वे चाहें तो एकदम मूर्ख होने का दिखावा कर सकती हैं!

अब विषय पर वापस लौटते हैं। किसी मॉडल के बिना आप अंदरूनी जानकारी कैसे दे सकते हैं?

क्या मैं कोशिश करूँ? ठीक है, तो यह इस तरह होता है !

जब आप खड़े होते हैं, तो बाहर से आप सामने के बाल देख सकते हैं। टाँगों के बीच में दो कोमल गुदगुदी चीजें होती हैं, जिन पर बाल होते हैं और खड़े होने पर जो आपस में दबती हैं, इसलिए आप अंदर नहीं देख सकते । बैठे रहने की स्थिति में वे अलग होती हैं और अंदर से वे बहुत लाल और मांसल होती हैं। ऊपर के हिस्से में, बाहरी भगोष्ठ में त्वचा की एक परत होती है, वह किसी छाले की तरह दिखती है। वह भग शिश्न है। फिर अंदरूनी भगोष्ठ है, जो मिलकर एक सिलवट बनाता है। जब वे खुलते हैं, तो आप छोटे से मांसल उभार को देख सकते हैं, जो कि मेरे अँगूठे के ऊपरी हिस्से से बड़ा नहीं होता। ऊपरी हिस्से में थोड़े छेद होते हैं, वहीं से मूत्र बाहर आता है। नीचे वाला हिस्सा लगता है कि जैसे सिर्फ़ त्वचा हो, लेकिन वहीं पर योनि होती है। उसका पता मुश्किल से लगाया जा सकता है, क्योंकि त्वचा की परतें उसके छेद को छिपा देती हैं। वह इतना छोटा होता है कि मेरे लिए कल्पना करना मुश्किल है कि कोई आदमी उसमें कैसे प्रवेश कर सकता है, इससे भी कम यह कि शिशु कैसे बाहर आ सकता है। उसमें अपनी तर्जनी डालना तक मुश्किल होता है। बस यही सब है, फिर भी यह कितनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है!

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

शनिवार, 25 मार्च, 1944

प्यारी किटी,

हम तब तक नहीं समझ पाते कि हम कितना बदले हैं, जब तक वैसा होता नहीं है। मैं काफ़ी ज़बरदस्त रूप से बदल चुकी हूँ, मुझसे जुड़ा सब कुछ अब अलग है: मेरी राय, मेरे विचार, आलोचनात्मक दृष्टिकोण। अंदर से, बाहर से अब कुछ भी पहले जैसा नहीं रहा। मैं आराम से कह सकती क्योंकि यह सच भी है कि मैं बेहतर के लिए बदली हूँ। मैंने एक बार तुम्हें बताया था कि कई साल तक लाड़-प्यार में रहने के बाद मेरे लिए बड़े लोगों व डाँट फटकार की कठोर सच्चाइयों के बीच तालमेल बिठना मुश्किल था। मुझे इतना जो कुछ झेलना पड़ा, उसके लिए बड़े पैमाने पर मम्मी-पापा ज़िम्मेदार हैं। घर पर वे चाहते थे कि मैं जीवन का आनंद लूँ, जो कि ठीक था, लेकिन यहाँ पर उन्हें मुझे उनके साथ सहमत होने के लिए प्रोत्साहित नहीं करना चाहिए था और सभी झगड़ों व बेकार की बातचीत में सिर्फ़ मुझे 'उनका अपना' पक्ष नहीं दिखाना चाहिए था। मैं काफ़ी देर बाद यह बात समझी कि दोनों ही पक्ष ज़िम्मेदार थे। मैं अब जानती हूँ कि यहाँ बड़ों व बच्चों द्वारा काफ़ी भयंकर ग़लतियाँ हुई हैं। फ़ॉन डान परिवार के मामले में मम्मी-पापा की सबसे बड़ी ग़लती यह है कि वे उनके साथ कभी खुलकर पेश नहीं आए व दोस्ताना नहीं रहे (यह मानना पड़ेगा कि दोस्ती भरे रवैये का दिखावा भी करना पड़ता है)। सबसे बड़ी बात यह है कि मैं चाहती हूँ कि शांति बनी रहे और झगड़ा व बेकार की बात न हो । पापा व मारगोट के साथ वह मुश्किल नहीं है, लेकिन माँ के साथ है, इसलिए मुझे खुशी है कि कभी-कभार वे मुझे फटकार लगा देती हैं।

मि. फ़ॉन डान को अपनी तरफ़ करने के लिए बस आपको उनकी हाँ में हाँ मिलानी होती है, उनकी बात चुपचाप सुननी होती है, ज्यादा कुछ नहीं कहना होता और सबसे बड़ी बात यह कि .... उनके घटिया से चुटकुलों के जवाब में अपना कोई चुटकुला सुना देना होता है । मिसेज़ फ़ॉन डी का दिल जीतने के लिए उनसे खुलकर बात करनी होती है और अपनी ग़लती को मान लेना होता है। वे भी खुलकर अपनी ग़लतियाँ क़बूल कर लेती हैं, जो कि उनमें भरी पड़ी हैं। मैं अब यह अच्छी तरह जान चुकी हूँ कि वह मुझे अब उतना बुरा नहीं समझती, जितना कि पहले समझा करती थीं।

इसका सीधा सा कारण यह है कि मैं ईमानदार हूँ और मुझे जो सही लगता है, उसे लोगों के मुँह पर कह देती हूँ, अब चाहे वह बात बुरी ही क्यों न हो। मैं ईमानदार रहना चाहती हूँ; मेरे ख़याल से इससे आप दूर तक जा सकते हैं और आपको अपने बारे में बेहतर महसूस होता है।

कल मिसेज़ फ़ॉन डी उस चावल की बात कर रही थी, जो हमने मि. क्लेमन को दिए थे। 'हम बस देते रहते हैं। लेकिन कभी मैं सोचती हूँ कि बस, अब बहुत हो गया। थोड़ी जहमत उठाते, तो मि. क्लेमन को अपने चावल मिल जाते। हम उन्हें अपना सामान क्यों दें? हमें भी उसकी उतनी ही ज़रूरत है । '

'नहीं, मिसेज़ फ़ॉन डान,' मैंने कहा 'मैं आपसे सहमत नहीं हूँ। हो सकता है कि मि . क्लेमन को थोड़ा चावल मिल जाए, लेकिन उन्हें उसकी चिंता करना पसंद नहीं। यहाँ पर हमें अपने मददगार लोगों की आलोचना नहीं करनी चाहिए। अगर मुमकिन हो, तो जैसे भी हो हमें उनकी मदद करनी चाहिए। हफ़्ते में एक प्लेट कम चावल से उतना फ़र्क़ नहीं पड़ेगा; हम उसके बजाय बीन्स खा सकते हैं।

मिसेज़ फ़ॉन डी मेरे नज़रिये को नहीं समझ पाई, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि असहमत होने के बावजूद वे अपनी बात से पीछे हटने को तैयार हैं और वह बिलकुल अलग मामला था।

मैंने काफ़ी कुछ कह दिया। कई बार मैं अपनी स्थिति जानती हूँ और कई बार मुझे संदेह होते हैं, लेकिन आख़िरकार मैं अपने मुकाम तक पहुँच जाऊँगी ! ख़ासकर अब जब मेरे पास कोई मदद करने वाला है, क्योंकि उतार-चढ़ाव में पीटर मेरी मदद करता है।

मैं सचमुच नहीं जानती कि वह मुझे कितना प्यार करता है और हम किसी चुंबन तक भी पहुँच सकेंगे या नहीं; ख़ैर मैं इस मामले पर ज़ोर नहीं देना चाहती। मैंने पापा से कहा कि मैं अक्सर पीटर से मिलने जाती हूँ और उनसे उनकी मंजूरी के बारे में पूछा और उन्होंने स्वीकृति दी !

अब पीटर को वे बातें बताना ज़्यादा आसान है, जो मैं आमतौर पर ख़ुद तक ही रखती थी; उदाहरण के लिए, मैंने उसे बताया कि बाद में मैं लिखना चाहती हूँ और अगर मैं लेखक नहीं बन सकी, तो अपने काम के साथ-साथ लिखना ज़रूर चाहूँगी।

पैसे या दुनियावी चीज़ों के मामले में मेरे पास कुछ ख़ास नहीं है, मैं सुंदर, बुद्धमान या चतुर नहीं हूँ, लेकिन मैं ख़ुश हूँ और ऐसे ही रहना चाहती हूँ! मैं ख़ुश पैदा हुई थी, मुझे लोगों से प्यार है, मैं लोगों पर भरोसा करती हूँ और चाहती हूँ कि बाक़ी लोग भी ख़ुश रहें।

तुम्हारी निष्ठावान दोस्त, ऐन एम फ़्रैंक

साफ़ चमकीला दिन भी अगर हो ख़ाली
उसकी चमक भी होगी रात जितनी काली।

(मैंने कुछ हफ़्ते पहले यह लिखा था और अब यह सही नहीं है, लेकिन मैंने इसे इसलिए शामिल किया, क्योंकि मेरी कविताएँ काफ़ी कम हैं।)

सोमवार, 27 मार्च, 1944

प्यारी किटी,

छिपकर रहने की हमारी ज़िंदगी का कम से कम एक लंबा अध्याय राजनीति पर होना चाहिए, लेकिन मैं इस विषय से बचने की कोशिश करती रही हूँ, क्योंकि इसमें मेरी दिलचस्पी बहुत कम है। आज हालाँकि मैं पूरा एक पत्र इसी को समर्पित करूँगी।

इस विषय पर बहुत सी अलग-अलग राय हैं और युद्ध के समय इस पर बातचीत होते सुनना हैरानी की बात नहीं है, लेकिन... राजनीति पर इतनी बहस करना बिलकुल मूर्खता है! वे हँसें, चाहें गालियाँ दें, शर्त लगाएँ, बड़बड़ाएँ और चाहे जो कुछ भी करें, जब तक कि उनकी बातों का असर उन तक ही सीमित रहे। लेकिन उन्हें बहस मत करने दो, क्योंकि उससे हालात बदतर हो जाते हैं। हमारे पास बाहर से आने वाले लोग काफ़ी ख़बरें लेकर आते हैं, जो बाद में झूठी साबित होती हैं; हालाँकि अब तक हमारे रेडियो ने कभी झूठ नहीं बोला है। यान, मीप, मि. क्लेमन, बेप और मि. कुगलर के राजनीतिक मूड ऊपर-नीचे होते रहते हैं, यान के सबसे कम होते हैं।

यहाँ अनेक्स में मनोभाव कभी नहीं बदलते। आक्रमण, हवाई हमलों, भाषणों, आदि, आदि पर होने वाली अंतहीन बहसों में 'नामुमकिन !' 'ईश्वर के लिए', जैसे अनगिनत विस्मयबोधक शब्द कहे जाते हैं। अगर वे तभी शुरुआत कर रहे होते हैं, तो यह कितनी देर चलेगा ! यह बढ़िया चल रहा है!

आशावादी व निराशावादी और यथार्थवादियों की बात करें, तो सभी अपनी पूरी ऊर्जा के साथ अपनी राय देते हैं और हर मामले को लेकर वे इतने आश्वस्त होते हैं कि सच पर बस, उनका एकाधिकार है। एक महिला को इस बात से चिढ़ होती है कि उनके पति को ब्रिटिश पर गहरी आस्था है, जबकि एक पति अपनी पत्नी पर इसलिए हमला बोलता है कि वह उसके प्रिय राष्ट्र पर चिढ़ाने वाली व अपमानजक टिप्पणियाँ करती है !

इस तरह सुबह से देर रात तक यह सिलसिला चलता रहता है; मज़ेदार बात यह है कि वे कभी उससे थकते नहीं है। मैंने एक तरकीब निकाली है और उसका असर ज़बरदस्त है, यह ठीक वैसा ही जैसे कि आप किसी को कोई पिन चुभोकर फिर उसे उछलता देखें । यह इस तरह काम करता है: मैं राजनीति पर बात करने लगती हूँ। केवल एक प्रश्न पूछती हूँ, एक शब्द या फिर एक वाक्य और ज़रा सी देर में तो पूरा परिवार उसमें शामिल हो जाता है!

जर्मन 'वेयरमाट न्यूज़' और अंग्रेज़ी में बीबीसी ही काफ़ी नहीं थे कि अब हवाई हमलों से जुड़ी विशेष उद्घोषणाएँ भी जोड़ दी गई हैं। बहुत बढ़िया है। लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि ब्रिटिश वायु सेना तो चौबीसों घंटे काम करती है। जर्मन प्रचार तंत्र की तरह नहीं, जो कि दिन भर बस तेज़ी से झूठ ही फैलाता रहता है!

तो हर सुबह आठ बजे (अगर उससे पहले नहीं) रेडियो शुरू हो जाता है और रात ग्यारह बजे तक हर घंटे सुना जाता है। यह इस बात का सबसे अच्छा सबूत है कि बड़े लोगों में कितना असीमित धैर्य होता है, लेकिन इस बात का भी कि उनके दिमाग़ की लुगदी बन चुकी है (मेरा मतलब है कि उनमें से कुछ की, क्योंकि मैं उनमें से किसी का अपमान नहीं करना चाहती । दिन भर में एक या फिर ज़्यादा से ज़्यादा दो प्रसारण पूरे दिन के लिए काफ़ी होने चाहिए। लेकिन नहीं, वे बूढ़े बेवकूफ़ ... कोई बात नहीं, मैं पहले ही सब कुछ बोल चुकी हूँ! 'काम के दौरान संगीत, ' इंग्लैंड से होने वाला डच प्रसारण, फ्रैंक फिलिप्स या क्वीन विल्हेल्मिना, उन सबको एक उत्सुक श्रोता मिल ही जाता है। अगर वयस्क खाना नहीं खा रहे होते या फिर सो नहीं रहे होते, तो वे खाने, सोने और राजनीति की चर्चा करते हुए रेडियो के आसपास जमा रहते हैं। उफ़! यह सब बहुत उबाऊ होता जा रहा है और मैं खुद को नीरस बुढ़िया बनने से बचाने के लिए यही सब कर सकती हूँ! अपने आसपास बूढ़े लोगों के होते हुए यह विचार बुरा नहीं है!

हमारे प्रिय विन्स्टन चर्चिल द्वारा दिए गए भाषण का यह बढ़िया उदाहरण है।

रविवार रात नौ बजे । ढँकी हुई चाय की केतली मेज़ पर रखी है और सभी लोग कमरे में आते हैं। दुसे रेडियो के बाईं ओर बैठते हैं, मि. फ़ॉन डी उसके सामने और पीटर बग़ल में है। मि. फ़ॉन डी के साथ माँ हैं, जबकि मिसेज़ फ़ॉन डी उनके पीछे हैं। मैं और मारगोट आख़िरी कतार में हैं और पिम मेज़ पर हैं। मैं जान रही हूँ कि यह हमारे बैठने की व्यवस्था का बहुत स्पष्ट विवरण नहीं है, लेकिन इससे फ़र्क नहीं पड़ता । पुरुष धूम्रपान करते हैं, सुनने पर ज़ोर लगाने के कारण पीटर की आँखें बंद हैं, मम्मी ने अपना लंबा, गहरे रंग का गाउन पहना है, मिसेज़ फ़ॉन डी विमानों के कारण काँप रही हैं, जिन्हें भाषण से कोई मतलब नहीं है और वे ऐसेन की तरफ़ बढ़ रही हैं। पापा चाय पी रहे हैं, मारगोट और मैं बहनों के स्नेह से जुड़कर सोती हुई मूशी के साथ बैठे हैं, जो हम दोनों के घुटनों पर पसरी है। मारगोट के बालों में कर्लर लगे हैं और मेरी रात की पोशाक बहुत छोटी, कसी हुई है। यह सब बहुत अंतरंग, आरामदेह व शांत दिख रहा है और यह है भी। फिर भी मैं डरते हुए भाषण के अंत की प्रतीक्षा कर रही हूँ। वे बेसब्र हैं और अगली बहस के लिए तत्पर हैं! ठीक वैसे ही जैसे कि कोई बिल्ली किसी चूहे को उसके बिल से ललचा रही है, वे भी एक-दूसरे को लड़ाइयों व असहमतियों के लिए कोंच रहे हैं।

तुम्हारी, ऐन

मंगलवार, 28 मार्च, 1944

प्यारी किटी,

मैं चाहे कितना भी राजनीति पर ज़्यादा लिखना चाहूँ, मेरे पास बाक़ी बहुत सी बातें बताने को हैं। पहली यह कि माँ ने मुझे ऊपर पीटर के कमरे में जाने से मना कर दिया है, क्योंकि उनके मुताबिक मिसेज़ फ़ॉन डान जलती हैं। दूसरे, पीटर ने मारगोट को हमारे साथ ऊपर आने का निमंत्रण दिया है। मुझे नहीं पता कि वह सचमुच ऐसा चाहता है या फिर सिर्फ़ विनम्रता के कारण ऐसा कर रहा है। तीसरे, मैंने पापा से पूछा है कि क्या मुझे मिसेज़ फ़ॉन डान की ईर्ष्या पर ध्यान देना चाहिए और उनका कहना है कि नहीं देना चाहिए।

अब मैं क्या करूँ? माँ नाराज़ हैं, वे नहीं चाहती कि मैं ऊपर जाऊँ और वे चाहती हैं कि मैं दुसे के साथ साझा किए जाने वाले अपने कमरे में जाकर अपना काम करूँ। हो सकता है कि ख़ुद उन्हें ही जलन हो रही हो । पापा को तो उन कुछ घंटो से फ़र्क नहीं पड़ता और उन्हें लगता है कि यह अच्छी बात है कि हमारे बीच पट रही है। मारगोट को भी पीटर पसंद है, लेकिन उसे लगता है कि तीन लोग एक सी बातों पर वैसे बात नहीं कर सकते, जैसे कि दो लोग कर सकते हैं।

इसके अलावा माँ को लगता है कि पीटर को मुझसे प्यार है। सच बताऊँ, तो काश ऐसा कुछ होता ! फिर हम बराबरी पर होते और एक- दूसरे को जानना कहीं ज़्यादा आसान होता। माँ का दावा है कि वह हमेशा मुझे देखता रहता है। हाँ, हम एक-दूसरे को कभी-कभार देखते हैं। लेकिन अगर वह मेरे गाल के गड्ढों को पसंद करता है, तो मैं क्या कर सकती हूँ?

मैं मुश्किल हालत में हूँ। माँ मेरे ख़िलाफ़ हैं और मैं उनके । मेरी और माँ की ख़ामोश लड़ाई के प्रति पापा अनजान बने रहते हैं। माँ दुखी हैं, क्योंकि अब भी वे मुझे प्यार करती हैं, लेकिन मैं बिलकुल भी दुखी नहीं हूँ, क्योंकि वे मेरे लिए अब कोई मायने नहीं रखती ।

जहाँ तक पीटर का सवाल है... मैं उसे छोड़ना नहीं चाहती। वह बहुत प्यारा है और मुझे बहुत ही अच्छा लगता है। उसके व मेरे बीच वाक़ई ख़ूबसूरत रिश्ता हो सकता है, तो फिर ये बूढ़े लोग हमारे मामले में फिर से टाँग क्यों अड़ा रहे हैं? ख़ुशक़िस्मती से मुझे अपनी भावनाएँ छिपाने की आदत है, इसलिए मैं उसके प्रति अपनी दीवानगी छिपाने में कामयाब रहती हूँ। क्या वह कभी कुछ कहेगा? क्या मैं फिर से उसके गाल को अपने गाल पर महसूस कर सकूँगी, जैसा कि पीटल के गाल को मैंने अपने सपने में महसूस किया था? ओह, पीटर व पीटल, तुम एक ही हो ! वे हमें नहीं समझते; वे कभी नहीं समझेंगे कि हम बिना एक शब्द बोले एक-दूसरे के साथ बैठकर ही संतुष्ट हैं। उन्हें ज़रा भी अंदाज़ा नहीं कि क्या हमें एक साथ खींचता है? क्या हम कभी इन मुश्किलों से पार पाएँगे? फिर भी अच्छी बात है कि हमें उन पर जीत पानी होगी, तभी नतीजा ज़्यादा ख़ूबसूरत हो सकेगा। अपने बाजुओं पर सिर रखकर जब वह अपनी आँखें बंद करता है, तो वह बच्चा है; जब वह मूशी के साथ खेलता है या फिर उसके बारे में बात करता है, तो वह स्नेहिल है; जब वह आलू या फिर कोई और भारी चीज़ उठाता है, तो वह मज़बूत है; जब वह गोलीबारी देखने जाता है या चोरों की तलाश में अँधेरे घर में चलता है, तो वह बहादुर है; जब वह अटपटा व ढीला-ढाला लगता है, तो वह बहुत - बहुत प्यारा लगता है। उसके द्वारा मुझे कुछ बताया जाना, उसे मेरे द्वारा कुछ सिखाए जाने से कहीं अच्छा लगता है। अच्छा होता कि वह लगभग हर चीज़ में मुझसे बेहतर होता!

हमें अपनी माँओं की क्या परवाह? काश, वह कुछ कहता!

पापा हमेशा कहते हैं कि मैं घमंडी हूँ, जबकि मैं हूँ नहीं। मैं बस निरर्थक हूँ! एक लड़के के सिवा जिसने मुझे कहा था कि मुस्कराने पर मैं प्यारी लगती हूँ, मुझे सुंदर कहने वाले लोगों की तादाद ज़्यादा नहीं है। कल पीटर ने मेरी सच्ची तारीफ़ की थी और चलो मज़े के लिए मैं तुम्हें अपनी बातचीत का थोड़ा ब्योरा देती हूँ। पीटर अक्सर कहता है, 'मुस्कराओ ! ' मुझे यह अजीब लगता था, इसलिए मैंने कल उससे पूछा, 'तुम मुझे हमेशा मुस्कराने को क्यों कहते हो ?'

'क्योंकि मुस्कराने पर तुम्हारे गालों पर गड्ढे पड़ते हैं । तुम वैसा कैसे कर लेती हो?'

'ये जन्म से ही हैं। मेरी ठोढ़ी पर भी एक है। मेरे पास सुंदरता की यही एक निशानी है। '

'नहीं, यह सच नहीं है!'

'यही सच है। मैं जानती हूँ कि मैं ख़ूबसूरत नहीं हूँ। मैं कभी नहीं रही और कभी नहीं रहूँगी!'

'मैं नहीं मानता। मुझे लगता है कि तुम प्यारी हो ।'

'मैं नहीं हूँ।'

'मैं कह रहा हूँ कि तुम हो और तुम्हें मेरी बात माननी होगी। '

ज़ाहिर है कि मैंने भी फिर उसके बारे में वही कहा।

तुम्हारी, ऐन एम फ्रैंक

बुधवार, 29 मार्च, 1944

प्यारी किटी,

लंदन से होने वाले डच प्रसारण में मंत्री मि. बोल्कश्टाइन ने कहा कि युद्ध के बाद उससे जुड़ी डायरियों व पत्रों का एक संग्रह तैयार किया जाएगा। सब मेरी डायरी पर टूट पड़ेंगे। ज़रा कल्पना करो कि कितना मज़ा आए अगर मुझे सीक्रेट अनेक्स पर कोई उपन्यास छापना हो। उसके शीर्षक से ही लोगों को लगेगा कि यह कोई जासूसी कहानी है।

गंभीरता से देखें तो युद्ध के दस साल बाद लोगों को यह पढ़ना दिलचस्प लगेगा कि छिपे रहने के दौरान हम यहूदी कैसे रहते थे, क्या खाते थे और किन विषयों पर बात करते थे। तुम्हें मैं अपनी ज़िंदगी के बारे में इतना कुछ बताती हूँ, फिर भी तुम हमारे बारे में बहुत कम जानती हो । हमलों के दौरान महिलाएँ कितना डर जाती हैं; उदाहरण के तौर पर पिछले रविवार को 350 ब्रिटिश विमानों ने इमूइडिन पर 550 टन बम बरसाए, जिसके कारण घर हवा में घास के तिनकों के जैसे काँपने लगा था। या फिर यहाँ पर कितनी महामारियाँ सिर उठा रही हैं।

तुम इन बातों के बारे में कुछ भी नहीं जानती और हर बात विस्तार से बताने में मुझे पूरा दिन लग जाएगा। लोगों को सब्ज़ियाँ व हर तरह का सामान ख़रीदने के लिए कतार में खड़ा होना पड़ता है; डॉक्टर अपने मरीज़ों को देखने नहीं जा सकते, क्योंकि उनके मुड़ते ही उनकी कार या साइकिलें चोरी हो जाती हैं; सेंधमारी, चोरी अब इतनी आम हो गई है कि तुम जानना चाहोगी कि आख़िर डच हाथ की सफ़ाई में इतने माहिर कैसे हो गए। आठ और ग्यारह साल के छोटे से बच्चे लोगों के घरों की खिड़कियों के काँच तोड़कर जो हाथ आता है, उसे चोरी कर लेते हैं। लोग पाँच मिनट के लिए भी अपने घर छोड़ने की हिम्मत नहीं कर सकते, क्योंकि वापस आने पर उनका सारा सामान ग़ायब हो जाता है। हर रोज़ अख़बार चुराए हुए टाइपराइटरों, फ़ारसी कालीनों, इलेक्ट्रिक घड़ियों, कपड़ों आदि को लौटाने पर दिए जाने वाले इनामों के नोटिस से भरे रहते हैं। सड़क के कोनों पर लगीं इलेक्ट्रिक घड़ियों को खोल दिया जाता है, सार्वजनिक फ़ोन का आख़िरी तार तक खोल दिया जाता है।

डच लोगों का हौसला बुलंद नहीं है। हर कोई भूखा है; एरसाट्ज़ कॉफ़ी के अलावा हफ़्ते भर का राशन दो दिन नहीं चलता। हमले होते जा रहे हैं, पुरुषों को जर्मनी भेजा जा रहा है, बच्चे बीमार व कुपोषित हैं, हर किसी ने पुराने कपड़े व घिसे हुए जूते पहने हुए हैं। काले बाज़ार में नए जूते की कीमत 7.50 गिल्डर्स है। इसके अलावा, जूता बनाने वाले बहुत कम लोग ही उनकी मरम्मत कर रहे हैं, अगर वे करें भी तो आपको अपने जूतों के लिए चार महीने का इंतज़ार करना होगा, जो हो सकता है कि इस दौरान ग़ायब ही हो जाएँ।

इस सबसे बस एक ही अच्छी बात सामने आई है: जैसे-जैसे खाना बदतर और निर्णय कड़े होते जाते हैं, व्यवस्था के ख़िलाफ़ क्रियाकलाप भी बढ़ते जाते हैं। खाद्य कार्यालय, पुलिस, अधिकारी- वे सभी या तो अपने साथी नागरिकों की मदद कर रहे हैं या फिर उन पर आरोप लगाकर उन्हें जेल भेज रहे हैं। ख़ुशकिस्मती से डच लोगों की बहुत कम तादाद ग़लत पक्ष में है।

तुम्हारी, ऐन

शुक्रवार, 31 मार्च 1944

प्यारी किटी,

ज़रा सोचो कि अब भी सर्दी है, फिर भी अधिकतर लोगों के पास लगभग एक महीने से कोयला नहीं है। बहुत भयावह लगता है, है न? रूसी मोर्चे को लेकर आमतौर पर आशावाद है, क्योंकि वह अच्छा चल रहा है! मैं अक्सर राजनीतिक स्थिति पर नहीं लिखती, लेकिन मैं तुम्हें ज़रूर बताऊँगी कि इस समय रूसी कहाँ पर हैं। वे पोलिश सीमा और रोमानिया में प्रत नदी पर पहुँच चुके हैं। वे ओडेसा के पास हैं और उन्होंने टर्नोपिल को घेर लिया है। हर रात हम स्टालिन से अतिरिक्त शासकीय सूचना की उम्मीद कर रहे हैं।

मॉस्को में इतनी तोपें चल रही हैं कि शहर दिन भर आवाज़ करता व काँपता होगा। पता नहीं कि उन्हें यह दिखाना अच्छा लगता है कि लड़ाई कहीं नज़दीक हो रही है या फिर उनके पास अपनी ख़ुशी ज़ाहिर करने का कोई और तरीक़ा नहीं है!

हंगरी पर जर्मन सेनाओं का कब्ज़ा हो गया है। वहाँ अब भी लाखों यहूदी हैं; उनकी मौत तय है।

यहाँ कुछ ख़ास नहीं हो रहा है। आज मि. फ़ॉन डान का जन्मदिन है। उन्हें तंबाकू के दो पैकेट, एक बार की कॉफ़ी, जो उनकी पत्नी ने बचाकर रखी थी, मिकुगलर से नींबू का पेय, मीप से कुछ सार्डीन, हमसे यू डी कोलोन, हल्के बैंगनी फूल, ट्यूलिप और रस्पबेरी भरा हुआ केक भी मिला, जो मैदे की ख़राब क्वालिटी व बटर की कमी के कारण थोड़ा चिपचिपा होने के बावजूद स्वादिष्ट था।

मेरे व पीटर के बारे में बातचीत आजकल थोड़ी कम हो गई है। वह आज रात मुझे लेने आ रहा है। तुम्हें नहीं लगता कि वह बहुत अच्छा है, क्योंकि उसे ऐसा करना पसंद नहीं! हम बहुत अच्छे दोस्त हैं। हम काफ़ी वक़्त साथ गुजारते हैं और हर संभव विषय पर बात करते हैं। कितना अच्छा लगता है कि किसी संवेदनशील विषय पर बात करने के मामले में ख़ुद को नहीं रोकना पड़ता, जैसा कि मैं बाक़ी लड़कों के साथ करती । उदाहरण के लिए, हम ख़ून पर बात कर रहे थे और किसी तरह से बातचीत मासिक धर्म की ओर मुड़ गई। उसे लगता है कि हम औरतें काफ़ी मज़बूत होती हैं कि ख़ून बहना बर्दाश्त कर पाती हैं और मैं भी हूँ। ताज्जुब है कि क्यों?

मेरी जिंदगी बेहतर, बहुत बेहतर हो गई है। ईश्वर मुझे नहीं भूला है और कभी भूलेगा भी नहीं।

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

शनिवार, 1 अप्रैल, 1944

मेरी प्यारी किटी,

फिर भी सब कुछ बहुत मुश्किल है। तुम समझ रही हो न कि मेरा क्या मतलब है? मैं चाहती हूँ कि वह मुझे चूमे, लेकिन उसमें बहुत वक़्त लग रहा है। क्या वह अब भी मुझे दोस्त ही समझता है? क्या मैं उससे कुछ ज़्यादा मायने नहीं रखती?

तुम और मैं जानते हैं कि मैं बहुत मज़बूत हूँ और काफ़ी ज़िम्मेदारियाँ अपने आप उठा सकती हूँ। मुझे किसी के साथ अपनी परेशानियाँ बाँटने की आदत नहीं रही है और मैं कभी माँ से कभी बँधी नहीं रही, लेकिन मैं उसके कंधे पर सिर रखकर बस चुपचाप बैठना चाहती हूँ।

मैं नहीं भूल सकती, मैं पीटर के गाल छूने का सपना बिलकुल नहीं भूल सकती, जब सब कुछ कितना अच्छा था ! क्या उसकी भी यही चाहत है ? क्या वह इतना शर्मीला है कि कह नहीं सकता कि वह मुझसे प्यार करता है? वह मुझे अपने पास क्यों चाहता है? ओह, वह कुछ क्यों नहीं कहता ?

मुझे रुकना होगा, मुझे शांत होना होगा। मैं फिर से मज़बूत बनने की कोशिश करूँगी और अगर मैं धीरज से रही, तो सब कुछ ठीक हो जाएगा। लेकिन, सबसे बुरी बात यह है कि लगता है कि जैसे मैं उसके पीछे पड़ी हूँ। मुझे ही ऊपर जाना होता है; वह मुझ तक कभी नहीं आता। लेकिन वैसा कमरों की वजह से है और वह समझता है कि मैं क्यों आपत्ति करती हूँ। मुझे यक़ीन है कि वह मेरी सोच से कहीं ज़्यादा कुछ समझता है।

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

सोमवार, 3 अप्रैल, 1944

मेरी प्यारी किटी,

आमतौर पर लिखे जाने वाले तरीक़े से उलट आज मैं खाद्य पदार्थों की स्थिति पर विस्तार से लिखने वाली हूँ, क्योंकि यह कुछ मुश्किल भरा व महत्त्वपूर्ण विषय बन गया है, न केवल यहाँ अनेक्स में, बल्कि पूरे हॉलैंड, पूरे यूरोप और यहाँ तक कि उसके भी परे ।

यहाँ रहने के इक्कीस महीने के दौरान हम कई अच्छे 'खाद्य चक्रों' से गुज़रे, इस शब्द का अर्थ तुम्हें अभी पता चल जाएगा। 'खाद्य चक्र' एक ऐसी अवधि है, जिसमें हमें एक ही तरह की चीज़ या सब्ज़ी खानी पड़ी। लंबे समय तक हमें केवल पत्तेदार सब्ज़ी खानी पड़ी। कभी रेत के साथ, कभी रेत के बिना कभी मसले आलुओं के साथ, कभी आलू कैसरोल के साथ। उसके बाद पालक आया, फिर गाँठ गोभी, कचालू, खीरे, टमाटर, खट्टी गोभी, वगैरह, वगैरह ।

अगर आपको खट्टी गोभी दिन व रात के खाने में हर रोज़ खानी पड़े, तो वह बिलकुल भी मज़ेदार नहीं होता, लेकिन जब आप भूखे हों तो बहुत कुछ करते हैं। फिलहाल तो हम बहुत अच्छे दौर से गुज़र रहे हैं, क्योंकि सब्ज़ियाँ हैं ही नहीं ।

हमारे दोपहर की साप्ताहिक भोजन सूची में ब्राउन बीन्स, मटर का सूप, आलू डमप्लिंग, आलू कुग्ल (नूडल्स व आलू से बना व्यंजन), ईश्वर की कृपा से शलगम के पत्ते या सड़ी गाजर और फिर से ब्राउन बीन्स शामिल हैं। डबलरोटी की कमी के कारण हम नाश्ते से शुरू करके हर भोजन में आलू खाते हैं, लेकिन फिर हम उसे थोड़ा तल लेते हैं। सूप बनाने के लिए हम ब्राउन बीन्स, सफ़ेद फलियों, आलू, सब्ज़ियों के सूप का पैकेट, चिकन सूप व बीन सूप के पैकेट्स का इस्तेमाल करते हैं। डबलरोटी समेत हर चीज़ में ब्राउन बीन्स होती हैं। रात के खाने में हमेशा आलू होते हैं, रसेदार और शुक्र है कि चुकंदर का सलाद अब भी है। तुम्हें मैं इमप्लिंग के बारे में बताती हूँ। हम उन्हें सरकारी आटे, पानी व ख़मीर से बनाते हैं। वे इतने चिपचिपे व सख़्त होते हैं कि लगता है कि पेट में पत्थर हैं, लेकिन ठीक है ! सप्ताह में एक बार लिवर सॉसेज और बिना मक्खन लगी डबलरोटी पर जैम हमारे खाने की ख़ास चीज़ हैं। लेकिन हम अब भी ज़िंदा हैं और अधिकतर समय खाना स्वादिष्ट लगता है!

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

बुधवार, 5 अप्रैल, 1944

मेरी प्यारी किटी,

लंबे समय तक मैं नहीं जान सकी कि मैं स्कूल का काम कर क्यों रही हूँ। लड़ाई ख़त्म होने में लगता है कि अभी और समय लगेगा। यह बात परीकथा की कल्पना की तरह लगती है। अगर सितंबर तक यह युद्ध समाप्त नहीं हुआ, तो मैं स्कूल वापस नहीं जाऊँगी, क्योंकि मैं दो साल पीछे नहीं रहना चाहती।

मेरे दिन पीटर से भरे हैं, सिर्फ़ पीटर से, उसके सपनों व ख़यालों से, लेकिन शनिवार रात मुझे बहुत तकलीफ़ हुई; बहुत बुरा लग रहा था। जब मैं पीटर के साथ थी, तो मैंने किसी तरह अपने आँसुओं को रोके रखा, फ़ॉन डान परिवार के साथ नींबू पेय पीते हुए ख़ूब हँसी और मैं ख़ुशमिज़ाज व उत्साहित थी, लेकिन जैसे ही मैं अकेली हुई, मुझे पता था कि मैं फूट- फूटकर रोने वाली हूँ। गाउन पहने हुए मैं फ़र्श पर झुकी और उत्साहित होकर प्रार्थना करने लगी। फिर अपने घुटने छाती तक लाकर अपनी बाँहों पर सिर रखा और फ़र्श पर ही पड़े हुए रोने लगी।

एक ज़ोर की सिसकी मुझे जैसे धरती पर वापस ले आई और मैंने अपने आँसुओं को दबा दिया, क्योंकि मैं नहीं चाहती थी कि बग़ल के कमरे से कोई मेरी आवाज़ सुने। फिर मैंने बार-बार यह कहते हुए ख़ुद को सँभालने की कोशिश की, 'मुझे ऐसा करना होगा....।' इस अजीब सी स्थिति में बैठकर अकड़ने के कारण मैं पलंग से टकराकर पीछे की तरफ़ गिर गई और साढ़े दस बजे तक ऐसे ही रहा और फिर मैं बिस्तर पर गई । फिर वह ख़त्म हो गया!

अब वह सचमुच बीत चुका है। मैंने आख़िरकार महसूस किया कि मुझे अज्ञानी बनने से बचने, जीवन में आगे बढ़ने, पत्रकार बनने के लिए स्कूल का काम करना होगा, क्योंकि मैं वही चाहती हूँ ! मैं जानती हूँ कि मैं लिख सकती हूँ। मेरी कुछ कहानियाँ अच्छी हैं, सीक्रेट अनेक्स के मेरे विवरण हास्यजनक हैं, मेरी अधिकांश डायरी बहुत सुस्पष्ट व जीवंत है, लेकिन.... यह देखना अभी बाक़ी है कि वास्तव में मुझमें प्रतिभा है या नहीं।

'ईवा का सपना' मेरी सबसे अच्छी परी कथा है और अजीब बात यह है कि मुझे बिलकुल भी अंदाज़ा नहीं है कि वह ख़याल आया कहाँ से । 'केडी की ज़िंदगी' के कुछ हिस्से भी अच्छे हैं, लेकिन कुल मिलाकर वह कुछ ख़ास नहीं है। मैं सबसे अच्छी और सबसे कठोर आलोचक हूँ। मैं जानती हूँ कि क्या अच्छा है और क्या नहीं है। जब तक आप ख़ुद नहीं लिखते, आप नहीं जान पाते कि यह कितना अनोखा होता है। मुझे हमेशा इस बात का अफ़सोस होता था कि मैं चित्र नहीं बना सकती, लेकिन अब मैं काफ़ी ख़ुश हूँ कि कम से कम मैं लिख तो सकती हूँ। अगर मुझे किताबें या अख़बारों के लेख लिखने की प्रतिभा नहीं हुई, तब भी मैं अपने लिए तो लिख ही सकती हूँ। लेकिन मैं उससे कहीं ज़्यादा हासिल करना चाहती हूँ।

मैं माँ, मिसेज़ फ़ॉन डान और उन सभी औरतों की तरह जीने की कल्पना नहीं कर सकती, जो अपना काम करती हैं और फिर भुला दी जाती हैं। मुझे पति व बच्चों के अलावा भी कुछ चाहिए, जिसके प्रति मैं समर्पित हो सकूँ। मैं अधिकतर लोगों की तरह व्यर्थ ही नहीं जीना चाहती।

मैं उपयोगी होना चाहती हूँ या फिर लोगों के जीवन में आनंद लाना चाहती हूँ, उनके भी जिनसे मैं कभी नहीं मिली। मैं मरने के बाद भी जीते रहना चाहती हूँ ! यही वजह है कि मैं ईश्वर की बहुत आभारी हूँ कि उसने मुझे यह उपहार दिया, जिसका इस्तेमाल मैं अपने विकास में और अपने भीतर मौजूद भावनाओं को व्यक्त करने में कर सकती हूँ ! जब मैं लिखती हूँ, तो अपनी परेशानियों को दूर झटक सकती हूँ। मेरा दुख ग़ायब हो जाता है, मेरा उत्साह फिर से जाग जाता है! लेकिन एक बड़ा सवाल यह है कि क्या मैं कुछ बड़ा लिख पाऊँगी, क्या मैं कभी पत्रकार या लेखक बन पाऊँगी? मुझे उम्मीद है कि ऐसा होगा, क्योंकि लिखने से मैं अपने विचारों, आदर्शों व कल्पनाओं को दर्ज कर सकती हूँ।

मैंने काफ़ी समय से 'केडी की जिंदगी' पर कुछ नहीं किया। अपने दिमाग़ में मैंने सोच लिया है कि आगे क्या होगा, लेकिन कहानी उतनी जम नहीं रही है। हो सकता है कि वह कभी ख़त्म ही न हो और वह रद्दी की टोकरी या आग के हवाले हो जाए । यह विचार ही बहुत भयावह है, लेकिन फिर मैं ख़ुद से कहती हूँ, 'चौदह साल की उम्र में इतने कम अनुभव के साथ आप दर्शन के बारे में नहीं लिख सकते । '

नए उत्साह के साथ आगे और आगे बढ़ना है। सब कुछ ठीक हो जाएगा, क्योंकि लिखने को लेकर मेरा निश्चय दृढ़ है।

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

गुरुवार, 6 अप्रैल, 1944

प्यारी किटी,

तुमने मुझसे मेरे शौक व दिलचस्पियों के बारे में पूछा था और मैं बताना चाहूँगी, लेकिन मैं तुम्हें आगाह कर दूँ कि मेरे बहुत से शौक हैं, इसलिए तुम हैरान मत होना।

सबसे पहले लिखना, लेकिन मैं उसे शौक के रूप में नहीं देखती।

दूसरा: वंशावली विवरण | मैं फ्रेंच, जर्मन, स्पैनिश, इंग्लिश, ऑस्ट्रियन, रूसी, नॉर्वेजियाई और डच शाही परिवारों के वंशवृक्षों को मैं हर अख़बार और दस्तावेज़ में खोजती रहती हूँ । उनमें से कई में मैंने काफ़ी सफलता पाई है, क्योंकि लंबे समय से मैं जीवनियाँ या इतिहास की किताबें पढ़ते हुए उनके बारे में जानकारी को दर्ज करती रही हूँ। मैं इतिहास के कई अंशों को उतारती भी रही हूँ।

तो मेरा तीसरा शौक इतिहास है और पापा पहले से ही मेरे लिए काफ़ी किताबें ख़रीद चुके हैं। मैं उस दिन का बेसब्री से इंतज़ार कर रही हूँ जब मैं सार्वजनिक पुस्तकालय में जाकर अपनी ज़रूरत की जानकारी निकाल पाऊँगी।

चौथे क्रम पर ग्रीक व रोमन माइथॉलोजी है। इस विषय पर भी मेरे पास कई किताबें हैं। मैं नौ वाग्देवियों और ज्यूस की सात प्रेमिकाओं के नाम बता सकती हूँ। मुझे हरक्यूलिस की पत्नियों के नाम भी याद हैं।

मेरे बाक़ी शौक फ़िल्मी सितारे व पारिवारिक फ़ोटो हैं। पढ़ने व किताबों को लेकर मुझे जुनून है। मुझे कलाओं का इतिहास बहुत पसंद है, ख़ासकर जब वह लेखकों, कवियों व चित्रकारों से जुड़ा हो; संगीतकार उसके बाद आ सकते हैं। मुझे बीजगणित, ज्यामिति व अंकगणित नापसंद हैं। मुझे अपने स्कूल के सभी विषय अच्छे लगते हैं, लेकिन इतिहास मुझे सबसे प्रिय है।

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

मंगलवार, 11 अप्रैल, 1944

मेरी प्यारी किटी,

मेरा सिर घूम रहा है, मैं सचमुच नहीं जानती कि कहाँ से शुरू करूँ । बृहस्पतिवार ( आख़िरी बार जब तुम्हें लिखा था ) को सब कुछ सामान्य था। शुक्रवार (गुड फ़्राइडे) दोपहर को हमने मोनोपॉली खेला; शनिवार दोपहर को भी। दिन बहुत तेज़ी से गुज़रे । शनिवार दो बजे के क़रीब भारी गोलीबारी शुरू हुई, पुरुषों के मुताबिक़ मशीनगन चल रही थी। बाक़ी समय, सब कुछ शांत था।

रविवार दोपहर पीटर मेरे कहने पर साढ़े चार बजे मुझसे मिलने आया। सवा पाँच बजे हम आगे की अटारी पर गए, जहाँ पर हम छह बजे तक रहे। छह बजे से सवा सात बजे तक रेडियों पर मोजार्ट का ख़ूबसूरत संगीत कार्यक्रम चल रहा था; मैंने ख़ासकर क्लेन नाख़्तम्यूज़िक का आनंद उठाया। रसोई में संगीत सुनना मुझे मुश्किल लगता है, क्योंकि सुंदर संगीत मेरी आत्मा की गहराइयों में उतर जाता है। रविवार शाम को पीटर नहा नहीं सका, क्योंकि टब नीचे ऑफ़िस के रसाईघर में था और उसमें गंदे कपड़े भरे थे। हम दोनों साथ आगे की अटारी पर गए और आराम से बैठने के लिए मैं अपने कमरे में मिला एकमात्र कुशन लेकर गई। हम पैकिंग क्रेट पर बैठे। क्रेट और कुशन दोनों ही बहुत सँकरे थे, इसलिए हम काफ़ी नज़दीक बाक़ी दो क्रेट्स के सहारे बैठे थे। मूशी हमारे साथ थी, इसलिए हमारी चौकसी करने के लिए कोई मौजूद था। अचानक पौने नौ बजे मि. फ़ॉन डान ने सीटी बजाई और पूछा कि हमारे पास मि. दुसे का कुशन तो नहीं। हम तेज़ी से उठे और कुशन, बिल्ली व मि. फ़ॉन डान के साथ नीचे गए। कुशन के कारण काफ़ी परेशानी खड़ी हो गई। दुसे नाराज़ थे, क्योंकि मैं उनके द्वारा तकिए के रूप में इस्तेमाल किए जाने वाले उनके कुशन को ले गई थी और उन्हें डर था कि कहीं उसमें पिस्सू न हो गए हों; एक कुशन के कारण उन्होंने पूरे घर को सिर पर उठा लिया था। बदला लेने के लिए पीटर व मैंने उनके बिस्तर पर दो सख़्त ब्रश फँसा दिए, लेकिन उन्हें वापस निकालना पड़ा, क्योंकि अचानक दुसे ने अपने कमरे में बैठने का फ़ैसला किया। इस छोटे से हल्के-फुल्के व्यवधान पर हम ख़ूब हँसे ।

लेकिन हमारा मज़ा बहुत कम समय के लिए था। साढ़े नौ बजे पीटर ने हमारे दरवाज़े पर हल्की सी दस्तक दी और पापा से पूछा कि क्या वे ऊपर आकर मुश्किल अंग्रेज़ी वाक्य में उसकी मदद कर सकते हैं।

'यह कुछ संदेहास्पद लगता है,' मैंने मारगोट से कहा । 'साफ़ तौर पर यह कोई बहाना है। जिस तरह से पुरुष बात कर रहे हैं, उससे लगता है कि कोई घुसा है!' मैं सही थी। ठीक उसी समय गोदाम में में कोई घुसा था। पापा, मि. फ़ॉन डान और पीटर तुरंत नीचे पहुँचे। मारगोट, माँ, मिसेज़ फ़ॉन डान और मैं इंतजार करते रहे। चार डरी हुई औरतों को बात करनी होती है, इसलिए हम तब तक बात करते रहे, जब तक कि हमें नीचे ज़ोर की आवाज़ नहीं सुनाई दी। उसके बाद सन्नाटा छा गया। घड़ी ने पौने दस बजाए। हमारे चेहरों का रंग उड़ गया, लेकिन हम शांत रहे, जबकि हम काफ़ी डरे हुए थे । पुरुष कहाँ थे? वह आवाज़ कैसी थी ? क्या वे चोरों के साथ लड़ रहे थे? हम इतने डरे हुए थे कि कुछ भी सोच नहीं पा रहे थे; हम बस इंतज़ार कर सकते थे।

दस बजे सीढ़ियों पर पदचाप सुनाई दी। पापा घबराए हुए अंदर आए और उनके पीछे मि. फ़ॉन डान थे। 'बत्ती बुझा दो, चुपचाप ऊपर चलो, पुलिस आ सकती है ! ' डरने का समय ही नहीं था । बत्तियाँ बुझा दी गई, मैंने जैकेट ली और हम ऊपर जाकर बैठ गए।

'क्या हुआ? जल्दी से बताओ!"

हमें बताने वाला कोई नहीं था; पुरुष वापस नीचे चले गए थे। दस बजकर दस मिनट तक वे ऊपर नहीं आए। उनमें से दो ने पीटर की खुली खिड़की पर नज़र रखी। नीचे चौकी तक जाने वाला दरवाज़े पर ताला था, किताबों की अलमारी बंद थी। हमने रात की लाइट पर एक स्वेटर लपेटा और फिर उन्होंने हमें बताया कि क्या हुआ था ।

पीटर नीचे चौकी पर था, जब उसने दो ज़ोर की आवाज़ें सुनी। वह नीचे गया और देखा कि गोदाम के दरवाज़े के बाएँ हिस्से में मौजूद बड़ा पैनल ग़ायब था। वह ऊपर गया, 'होम गार्ड' को चौकन्ना किया और वे चारों नीचे गए। जब वे गोदाम में पहुँचे तो उन्होंने चोरों को चोरी करते देखा। बिना कुछ सोचे-समझे मि. फ़ॉन डान 'पुलिस ! ' चिल्लाए ! तेज़ी से बाहर जाने की आवाजें आई और चोर भाग गए। बोर्ड को वापस दरवाज़े पर लगा दिया गया, ताकि पुलिस को बीच की जगह न दिखाई दे, लेकिन फिर बाहर से की गई एक चोट से वह ज़मीन पर गिर गया। पुरुष चोरों के दुस्साहस से हैरान थे। पीटर और मि. फ़ॉन डान तो गुस्से से उबल रहे थे। मि. फ़ॉन डान ने फ़र्श पर एक कुल्हाड़ी दे मारी और फिर सब कुछ शांत हो गया। फिर से पैनल को बदल दिया गया और फिर एक और कोशिश नाकाम कर दी गई। बाहर एक पुरुष व महिला उस खुली जगह से फ़्लैशलाइट चमका रहे थे, जो पूरे गोदाम को रोशन कर रही थी । 'क्या है...' एक पुरुष बुदबुदाया, लेकिन अब उनकी भूमिका बदल गई थी। पुलिस के बजाय अब वे चोर थे। चारों पुरुष ऊपर भागे। दुसे और मि. फ़ॉन डान ने दुसे की किताबें ली, पीटर ने रसोई व प्राइवेट ऑफ़िस के दरवाज़े व खिड़कियाँ खोली, फ़ोन को नीचे गिराया और चारों किताबों की अलमारी के पीछे पहुँच गए।

पहला भाग समाप्त

  • द डायरी ऑफ़ ए यंग गर्ल (भाग-3) : ऐनी फ्रैंक
  • द डायरी ऑफ़ ए यंग गर्ल (भाग-1) : ऐनी फ्रैंक
  • ऐनी फ्रैंक की रचनाएँ हिंदी में
  • जर्मन कहानियां और लोक कथाएं
  • भारतीय भाषाओं तथा विदेशी भाषाओं की लोक कथाएं
  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण हिंदी कहानियां, नाटक, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां