The Diary of a Young Girl (Hindi) Anne Frank

द डायरी ऑफ़ ए यंग गर्ल : ऐनी फ्रैंक - हिन्दी अनुवाद : नीलम भट्ट

हो सकता है कि फ़्लैशलाइट लिए स्त्री व पुरुष ने पुलिस को सचेत कर दिया हो। वह रविवार की रात थी, ईस्टर सन्डे था। अगले दिन ईस्टर मन्डे था, दफ़्तर बंद रहने वाला था, जिसका मतलब था कि हम मंगलवार सुबह तक यहाँ-वहाँ नहीं घूम सकते। ज़रा सोचो, एक दिन और दो रातों तक डर के मारे बैठे रहना! हमने कुछ नहीं सोचा, बस बिलकुल अँधेरे में बैठे रहे, डर के मारे मिसेज़ फ़ॉन डान ने लैम्प बंद कर दिया। हम फुसफुसाते रहे, हर बार ज़रा सी भी चरचराहट होते ही कोई कहता, 'श्श्श, श्श्श । '

साढ़े दस बजे, फिर ग्यारह बज गए। कोई आवाज़ नहीं । पापा और मि. फ़ॉन डान बारी-बारी से हमारे पास ऊपर आए। फिर सवा ग्यारह बजे नीचे एक आवाज़ हुई । ऊपर पूरे परिवार की साँसों की आवाज़ सुनी जा सकती थी। कोई ज़रा सा भी नहीं हिला । घर में, प्राइवेट ऑफ़िस में, रसोई में, फिर... सीढ़ियों पर पदचाप । साँसों की आवाज़ें भी रुक गई, आठ दिल धड़कने लगे। सीढ़ियों पर क़दमों की आवाज़ें, फिर किताब की अलमारी पर तेज़ आवाज़। इस पल को बयान नहीं किया जा सकता।

'अब तो बस हो गया, ' मैंने कहा और कल्पना की कि उस रात गेस्टापो हम पंद्रह लोगों को घसीटकर ले जा रही है।

किताबों की अलमारी पर फिर से चोट मारने की दो बार आवाज़ें आई। फिर टीन के डिब्बे के गिरने की आवाज़ आई और पदचाप हल्की पड़ गई। हम ख़तरे से बाहर थे, तब तक तो थे ही! हर किसी के शरीर में सरसराहट सी दौड़ गई। मैंने दाँत किटकिटाने की आवाज़ें सुनी, लेकिन किसी ने कुछ नहीं कहा। साढ़े ग्यारह बजे तक हम वैसे ही बैठे रहे।

घर से अब कोई आवाज़ नहीं आ रही थी, लेकिन किताबों की अलमारी के ठीक सामने से हमारी चौकी पर रोशनी चमक रही थी। क्या उसकी वजह यह थी कि पुलिस को शक हो गया था या फिर पुलिस उसे भूल गई थी? क्या कोई आकर उसे बंद करने वाला था ? हमारी आवाज़ फिर से लौट आई थी। अब इमारत में कोई भी नहीं था, लेकिन शायद बाहर कोई था । हमने फिर तीन चीजें कीं: यह अंदाज़ा लगाने की कोशिश की कि क्या चल रहा था, डर से काँपे और शौचालय चले गए। बाल्टियाँ अटारी पर थीं, इसलिए हमें पीटर की धातु से बनी कचरे की टोकरी का इस्तेमाल करना पड़ा। पहले मि. फ़ॉन डान गए, फिर पापा, लेकिन माँ बहुत संकोच में थीं। पापा बग़ल वाले कमरे में टोकरी ले आए और फिर मारगोट, मिसेज़ फ़ॉन डान तथा मैंने उसका इस्तेमाल किया। माँ को आख़िर झुकना पड़ा। काग़ज़ की बहुत ज़रूरत थी और ख़ुशकिस्मती से मेरी जेब में कुछ काग़ज़ थे।

कचरे की टोकरी से बदबू आ रही थी, हम लोग फुसफुसाते रहे और थक चुके थे। आधी रात हो चुकी थी।

'फ़र्श पर लेटकर सो जाओ!' मारगोट और मुझे एक-एक तकिया व कम्बल दिया गया। मारगोट खाना रखने की अलमारी के पास लेटी और मैंने मेज़ की टाँगों के बीच अपने लिए जगह बनाई। फ़र्श पर लेटकर बदबू उतनी तेज़ नहीं लग रही थी, लेकिन मिसेज़ फ़ॉन डान चुपचाप कुछ पाउडर ब्लीच लाई और सावधानी के लिए एक छोटे तौलिए को पॉटी पर बाँध दिया।

बातें, फुसफुसाहटें, डर, बदबू, अधोवायु छोड़ना और लोगों का लगातार गुसलखाने जाते रहना; ऐसे में सोने की कोशिश! हालाँकि ढाई बजे तक मैं इतनी थक चुकी थी कि सो गई और साढ़े तीन बजे तक मुझे कुछ सुनाई नहीं दिया । मिसेज़ फ़ॉन डी के मेरे पैरों पर सिर रखने से मैं उठ गई।

'मुझे कुछ पहनने के लिए दो !' मैंने कहा। मुझे कुछ कपड़े पकड़ाए गए, लेकिन पूछो मत कि क्या पकड़ा गया ! अपने पाजामे पर मैंने ऊनी पाजामी, लाल जम्पर, काली स्कर्ट, सफ़ेद स्लैक्स और फटे-पुराने मोज़े पहन लिए ।

मिसेज़ फ़ॉन डी वापस कुर्सी पर पर बैठ गईं और मि. फ़ॉन डी मेरे पैरों पर सिर रखकर लेट गए। साढ़े तीन बजे के बाद से मैं सोच में डूबी रही और इतना काँपती रही कि मि. फ़ॉन डी सो नहीं पाए। मैं पुलिस के लौटने की स्थिति के लिए खुद को तैयार कर रही थी। हम उन्हें बता देंगे कि हम छिपे हुए हैं; अगर वे अच्छे लोग हुए तो हम सुरक्षित रहेंगे और अगर वे नाज़ी समर्थक हुए तो हम उन्हें रिश्वत देने की कोशिश करेंगे!

'हमें वायरलेस सेट छिपा लेना चाहिए,' मिसेज़ फ़ॉन डी ने कहा ।

'हाँ, अंगीठी में,' मि. फ़ॉन डी ने जवाब दिया । 'अगर उन्हें हम मिल गए, तो वे वायरलेस तो खोज ही लेंगे!'

'फिर तो उन्हें ऐन की डायरी भी मिल जाएगी,' पापा ने कहा ।

'तो उसे जला दो,' सबसे डरे हुए इंसान ने सुझाया।

इस पल और जब पुलिसवाले लकड़ी की अलमारी पर चोट मार रहे थे मैं सबसे ज़्यादा डरी हुई थी। मेरी डायरी नहीं; अगर मेरी डायरी गई, तो मैं भी ख़त्म हो जाऊँगी ! शुक्र है कि पापा ने कुछ और नहीं कहा।

बातचीत याद करने का कोई फ़ायदा नहीं है; काफ़ी कुछ कहा गया। मिसेज़ फ़ॉन डान बहुत डरी हुई थीं और मैंने उन्हें दिलासा दिया। हमने बच निकलने, गेस्टापो द्वारा पूछताछ किए जाने, मि. क्लेमन को फ़ोन करने और हिम्मत बनाए रखने पर बात की।

'हमें सिपाहियों की तरह बर्ताव करना चाहिए, मिसेज़ फ़ॉन डान । अगर हमारा समय आ गया है, तो ठीक है हमारा बलिदान महारानी, देश, स्वतंत्रता, सत्य और न्याय के लिए होगा, जैसा कि वे हमें रेडियो पर बताते रहते हैं। एक बुरी बात सिर्फ़ यही होगी कि हमारे साथ और लोग भी फँसेंगे! '

एक घंटे के बाद मि. फ़ॉन डान ने अपनी पत्नी के साथ फिर से जगह बदल ली और पापा आकर मेरे पास बैठ गए। पुरुष सिगरेट पीते रहे और कभी-कभार आह भरने की आवाज़ आती रही, कोई फिर से पॉटी गया और सब कुछ फिर से शुरू हो गया।

चार, पाँच, साढ़े पाँच । मैं जाकर पीटर के साथ खिड़की पर बैठकर गई, हम इतने नज़दीक बैठे थे कि एक-दूसरे की कँपकँपी महसूस कर सकते थे; बीच-बीच में हम कुछ बोलते और फिर ध्यान से आवाज़ पर कान लगाते । बग़ल में उन्होंने ब्लैक आउट स्क्रीन हटा दी। उन्होंने फ़ोन पर मि. क्लेमन को बताई जाने वाली बातों की सूची बनाई, क्योंकि वे उन्हें सात बजे फ़ोन करके किसी को भेजने के लिए कहने वाले थे। वे बहुत बड़ा ख़तरा लेने वाले थे, क्योंकि दरवाज़े पर या गोदाम में बैठा पुलिस वाला उनकी आवाज़ सुन सकता था, लेकिन उससे भी बड़ा ख़तरा पुलिस के लौट आने का था । मैं उनकी सूची यहाँ साथ लगा रही हूँ, लेकिन स्पष्टता के लिए उसे यहाँ उतार रही हूँ।

चोरी : इमारत में पुलिस है, किताब की अलमारी तक, लेकिन उससे आगे नहीं । शायद चोरों ने रुकावट डाल दी, गोदाम का दरवाज़ा खोला, बगीचे से होकर भागे। प्रमुख प्रवेशद्वार पर ताला है; कुगलर दूसरे दरवाज़े से निकले होंगे।

टाइपराइटर और कैलकुलेटर प्राइवेट ऑफ़िस की काली तिजोरी में सुरक्षित हैं।

मीप या बेप के धोने के कपड़े रसोई में हैं।

केवल बेप या कुगलर के पास दूसरे दरवाज़े की चाबी है; हो सकता है कि ताला टूटा हो ।

यान को आगाह करने की कोशिश करें, दफ़्तर में जायज़ा लें; बिल्ली को खाना खिला दें।

बाकी सब योजना के अनुसार हुआ। मि. क्लेमन को फ़ोन किया गया, दरवाज़ों से डंडे हटाए गए, टाइपराइटर को तिजोरी में रखा गया। फिर हम सब मेज़ के इर्दगिर्द बैठे और यान या पुलिस का इंतज़ार करने लगे।

पीटर सो गया और मि. फ़ॉन डान और मैं फ़र्श पर थे, जब हमने नीचे तेज़ पदचाप सुनी। मैं तेज़ी से उठी, 'ये यान हैं!'

'नहीं, नहीं, पुलिस है!' बाक़ी सबने कहा ।

हमारी किताबों की अलमारी पर दस्तक हुई। मीप ने सीटी बजाई। मिसेज़ फ़ॉन डान के लिए अब बर्दाश्त करना मुश्किल था, वे बिलकुल सफ़ेद पड़ गई थीं और अपनी कुर्सी में पड़ी रही। अगर एक पल और भी तनाव बना रहता, तो वे बेहोश हो जातीं।

यान और मीप अंदर आए और उनके सामने अजीबोगरीब नज़ारा था। अकेली मेज़ की तसवीर ही काफ़ी थी: सिनेमा ऐंड थियेटर की एक प्रति पड़ी थी, नाचती लड़कियों की तसवीर वाला पन्ना खुला था और उस पर जैम व पेक्टिन लगा था, जिसे हम डायरिया से निपटने के लिए काम में ले रहे थे, दो जैम के जार, आधा ब्रेड रोल, एक-चौथाई ब्रेड रोल, पेक्टिन, आईना, कंघी, राख, सिगरेटें, तंबाकू, राखदानी, किताबें, पतलून, फ़्लैशलाइट, मिसेज़ फ़ॉन डान की कंघी, टॉयलेट पेपर, वगैरह ।

यान और मीप का स्वागत ऊँची आवाज़ों व आँसुओं से हुआ। यान ने चीड़ की लकड़ी की एक चौखट दरवाज़े की दरार पर ठोक दी थी और फिर मीप के साथ पुलिस को सूचना देने चले गए थे। मीप को गोदाम के दरवाज़े के नीचे रात के चौकीदार स्लीगर्स का लिखा एक काग़ज़ मिला, जिसने छेद देखा था और पुलिस को सावधान किया था । यान स्लीगर्स के मिलने का भी सोच रहे थे।

तो हमारे पास पूरे घर व ख़ुद को ठीक करने के लिए आधा घंटा था। मैंने जैसा बदलाव उस आधे घंटे में देखा, वैसा कभी नहीं देखा था । मारगोट व मैंने नीचे बिस्तर ठीक किए, गुसलखाने जाकर अपने दाँत, हाथ साफ़ किए, कंघी की । फिर मैंने कमरा थोड़ा ठीक किया और वापस ऊपर चली गई। मेज़ पहले ही साफ़ की जा चुकी थी, हमने थोड़ा पानी लिया, कॉफ़ी व चाय बनाई, दूध उबाला और मेज़ लगाई। पापा व पीटर ने हमारी कामचलाऊ पॉटी यानी मलमूत्र पात्र को ख़ाली किया और उसे गुनगुने पानी व ब्लीच पाउडर से साफ़ किया। बड़ी वाली पॉटी तो ऊपर तक भरी होने के कारण इतनी भारी थी कि उसे उठाने में उन्हें काफ़ी मुश्किल हुई। वह टपक भी रही थी, इसलिए उन्हें उसे बाल्टी में रखना पड़ा।

ग्यारह बजे यान वापस आ गए और हम सबके साथ मेज़ पर बैठे, फिर धीरे-धीरे सभी को चैन आया। यान ने हमें यह कहानी सुनाई:

मि. स्लीगर्स सोए हुए थे, लेकिन उनकी पत्नी ने बताया कि चक्कर लगाते हुए उनके पति को दरवाज़े पर एक छेद दिखाई दिया। उन्होंने एक पुलिसवाले को बुलाया और उन दोनों ने इमारत की तलाशी ली। रात का चौकीदार होने के नाते मि. स्लीगर्स रात को इलाके में अपने दो कुत्तों के साथ गश्त लगाते हैं। उनकी पत्नी ने कहा कि बाक़ी बातें वे मि. कुगलर को मंगलवार को आकर बताएँगे। पुलिस स्टेशन पर किसी को भी सेंधमारी की जानकारी नहीं थी, लेकिन उन्होंने यह बात दर्ज की कि वे मंगलवार सुबह आकर देखेंगे।

वापस आते हुए यान को मि. फ़ॉन हूवन मिले, जो हमारे लिए आलू लाते हैं। यान ने उन्हें घटना के बारे में बताया, तो उन्होंने बहुत शांति से जवाब दिया, 'मुझे मालूम है।' 'कल रात जब मैं व मेरी पत्नी आपकी इमारत के सामने से गुज़र रहे थे, तो हमने दरवाज़े में छेद देखा । मेरी पत्नी आगे बढ़ना चाहती थी, लेकिन मैंने फ़्लैशलाइट लेकर अंदर झाँका और हो सकता है तभी चोर भाग गए हों। लेकिन सावधानी के लिहाज़ से मैंने पुलिस को जानकारी नहीं दी। मैंने सोचा कि आपके मामले में ऐसा करना समझदारी नहीं होगी। मैं कुछ नहीं जानता, लेकिन मुझे थोड़ा संदेह है।' यान ने उनका धन्यवाद किया और आगे बढ़ गए। मि. फ़ॉन हूवन को शक है कि हम यहाँ पर हैं, क्योंकि वे हमेशा भोजन अवकाश के समय आलू पहुँचाते हैं। बहुत अच्छे इंसान हैं!

एक बजे यान चले गए और हमने बर्तन वगैरह धोए। हम आठों सोने चले गए। पौने तीन बजे मेरी आँख खुली तो मैंने देखा कि मि. दुसे पहले से जगे हुए हैं। मैं अभी नींद में ही थी और नीचे आकर गुसलखाने में जाते हुए पीटर से मेरा सामना हुआ। हमने दफ़्तर में मिलने की बात की। मैं तरोताज़ा होकर नीचे गई।

'इतना सब होने के बावजूद तुम सामने की अटारी पर जाने की हिम्मत कर सकती हो ?' उसने पूछा। मैंने सिर हिलाया, अपना तकिया उठाया, उस पर एक कपड़ा लपेटा हुआ था और हम दोनों साथ ऊपर गए। मौसम बहुत बढ़िया था, हालाँकि जल्दी ही हवाई हमलों के सायरन बजने लगे, लेकिन हम अपनी जगह पर ही रहे। पीटर ने मेरे कंधे पर अपनी बाँह रखी, मैंने उसके कंधे पर और इसी तरह चार बजे तक हम दोनों ख़ामोश बैठे रहे, जब तक कि मारगोट हमारे लिए कॉफ़ी नहीं ले आई।

हमने डबलरोटी खाई, नींबू पानी पिया और हँसी-मज़ाक ( आख़िरकार हम फिर से ऐसा कर पाए ) करने लगे और इस तरह बाक़ी सब कुछ फिर से सामान्य हो गया। उस शाम मैंने पीटर का धन्यवाद किया, क्योंकि वह हम सबमें से सबसे बहादुरी से पेश आया था।

हममें से कोई भी कभी उतने बड़े ख़तरे में नहीं पड़ा था, जितना कि उस रात था। ईश्वर सचमुच हमारी रक्षा कर रहा था। ज़रा सोचो कि पुलिस किताबों की अलमारी तक पहुँच गई थी, बत्ती जली हुई थी और फिर भी किसी को हमारे छिपने की जगह का पता नहीं चला! 'बस, अब तो हमारा काम तमाम!' उस पल मैं फुसफुसाई थी, लेकिन एक बार फिर हम बच गए थे। हमला होने पर और बमों के गिरने पर हर किसी को अपनी हिफ़ाज़त करनी होती है, लेकिन इस बार हमें उन अच्छे, निर्दोष ईसाइयों के लिए आशंका थी, जो हमारी मदद कर रहे हैं।

'हम बच गए हैं, हमें बचाते रहें!' बस, यही हम कह सकते हैं।

इस घटना से काफ़ी बदलाव आए हैं। फ़िलहाल दुसे को अपना काम गुसलखाने में करना होगा और पीटर रात साढ़े आठ बजे से साढ़े नौ बजे तक घर में गश्त लगाएगा। पीटर को अब अपनी खिड़की खोलने की अनुमति नहीं है, क्योंकि केग के किसी आदमी ने उसे खुला हुआ देख लिया था। रात साढ़े नौ बजे के बाद हम फ़्लश नहीं चला सकते। मि. स्लीगर्स को रात के चौकीदार के रूप में रखा गया है और आज रात एक बढ़ई हमारी सफ़ेद फ़्रैंकफ़र्ट चारपाई से एक आड़ बनाने आ रहा है। अनेक्स में लगातार बहस चल रही है। मि. कुगलर ने हमें हमारी लापरवाही के लिए डाँट लगाई। यान ने भी कहा कि हमें नीचे बिलकुल नहीं जाना चाहिए। अब हमें यह पता लगाना है कि स्लीगर्स पर भरोसा किया जा सकता है या नहीं, दरवाज़े के पीछे से आवाजें सुनकर क्या कुत्ते भौकेंगे, आड़ कैसे बनानी है, बहुत तरह की बातें हैं।

हमें बहुत ज़बरदस्त ढंग से यह बात याद दिलाई जाती रही है कि हम ज़ंजीरों में बँधे यहूदी हैं, जो एक जगह से बँधे हैं, हमारे कोई अधिकार नहीं हैं, लेकिन हमारे हज़ारों दायित्व हैं। हमें अपनी भावनाओं को एक तरफ़ करना होगा; हमें बहादुर व मज़बूत बनना होगा, बिना किसी शिकायत के तकलीफ़ों को सहना होगा, जो कुछ हमारे बस में है, उसे करना होगा और ईश्वर पर भरोसा करना होगा। एक दिन यह भयावह युद्ध समाप्त हो जाएगा। ऐसा समय आएगा, जब हम फिर से इंसान होंगे, सिर्फ़ यहूदी नहीं !

इसे किसने हम पर थोपा है? किसने हमें बाक़ी लोगों से अलग किया है ? किसने हमें इतने कष्टों में धकेला है? हमें ईश्वर ने ऐसा बनाया है, लेकिन ईश्वर ही हमें फिर से उठाएगा। दुनिया की नज़र में हम अभिशप्त लेकिन अगर इन सभी कष्टों के बाद भी अगर यहूदी बचे रहे, तो यहूदी लोगों को एक उदाहरण के तौर पर देखा जाएगा। हो सकता है कि हमारा धर्म दुनिया को और उसमें रहने वाले सभी लोगों को अच्छाई के बारे में सिखाए और यही कारण है, यही एकमात्र कारण है कि हमें परेशानियाँ झेलनी पड़ रही हैं। हम केवल डच, अंग्रेज़ या जो कोई भी नहीं हो सकते, हम उसके साथ-साथ यहूदी भी रहेंगे। हमें यहूदी बने रहना होगा और हम यहूदी बने रहना चाहेंगे।

बहादुर बनो! हम अपना कर्तव्य याद रखें और बिना किसी शिकायत के उसे पूरा करें। कोई न कोई रास्ता निकलेगा। ईश्वर ने कभी हमारे लोगों को नहीं त्यागा। कई युगों तक यहूदियों को तकलीफें झेलनी पड़ी हैं, लेकिन कई युगों तक वे ज़िंदा रहे हैं और सदियों के कष्टों ने उन्हें और मज़बूत बनाया है। कमज़ोरों का विनाश होगा और मज़बूत जीवित रहेंगे और हारेंगे नहीं!

उस रात मैंने वाक़ई सोचा था कि मैं मरने वाली हूँ। मैं पुलिस का इंतज़ार कर रही थी और मौत के लिए तैयार थी, जैसे कोई सिपाही युद्धक्षेत्र में होता है। मैं ख़ुशी से देश के लिए अपनी जान दे देती। लेकिन अब जबकि मैं बच गई हूँ, तो युद्ध समाप्त हो जाने के बाद मेरी पहली इच्छा डच नागरिक बनने की है। मैं अपने देश से प्यार करती हूँ, मैं अपनी भाषा से प्यार करती हूँ और मैं यहाँ काम करना चाहती हूँ। इसके लिए अगर मुझे महारानी को भी लिखना पड़े, तो लिखूँगी और अपना लक्ष्य पाने तक हार नहीं मानूँगी!

मैं अब स्वावलंबी होती जा रही हूँ। इस उम्र में मैं ज़्यादा हिम्मत से ज़िंदगी का सामना कर सकती हूँ और माँ के मुक़ाबले मुझे न्याय की बेहतर व अधिक सच्चे अर्थ में समझ है। मैं जानती हूँ कि मुझे क्या चाहिए, मेरा एक लक्ष्य है, मेरे अपने विचार हैं, धर्म है, प्रेम है। अगर मैं ख़ुद जैसी बनी रह सकी, तो मैं संतुष्ट रहूँगी। मैं जानती हूँ कि मैं एक औरत हूँ, एक औरत जिसके अंदर ताक़त है और काफ़ी हिम्मत भी!

अगर ईश्वर ने मेरी ज़िंदगी बनाए रखी, तो मैं माँ से ज्यादा कुछ पा सकूँगी, मैं अपनी आवाज़ दुनिया तक पहुँचाऊँगी और मनुष्यता के लिए काम करूँगी!

अब मैं जानती हूँ कि सबसे पहले साहस और प्रसन्नता की आवश्यकता होती है!

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

शुक्रवार, 14 अप्रैल, 1944

प्यारी किटी,

हर कोई यहाँ अब भी तनाव में है। पिम का पारा तो बहुत चढ़ गया है; मिसेज़ फ़ॉन डी जुकाम के कारण बिस्तर पर हैं और बड़बड़ा रही हैं; मि. फ़ॉन डी अपनी सिगरेटों के बिना पीले पड़ते जा रहे हैं; अपने कई आराम छोड़ने के कारण दुसे सबके मीनमेख निकालते रहते हैं; वगैरह, वगैरह । पिछले कुछ समय से हमारी क़िस्मत ख़राब चल रही है। शौचालय रिस रहा है, नल बंद है। शुक्र है कि हमारे काफ़ी संपर्क हैं, इसलिए इनकी मरम्मत हो जाएगी।

जैसा कि तुम जानती हो, मैं कई बार भावुक हो जाती हूँ, लेकिन अक्सर उसका कोई न कोई कारण होता है: जब पीटर और मैं कबाड़ व धूल के बीच लकड़ी की सख़्त पेटियों पर एक-दूसरे के कंधे पर बाँहें डाले साथ बैठे होते हैं, पीटर मेरे बालों से खेल रहा होता है; जब बाहर पंछी अपने गीत गा रहे होते हैं, जब पेड़ों पर कोंपले निकल रही होती हैं, जब सूरज इशारे करता है और आसमान बहुत नीला होता है, तो मैं बहुत सी ख़्वाहिशें करती हूँ!

अपने आसपास मुझे असंतुष्ट व चिड़चिड़े चेहरे दिखाई देते हैं, मुझे बस आहों व घुटी हुई शिकायतों की आवाजें सुनाई देती हैं । तुम्हें लगेगा कि हमारी जिंदगियों ने अचानक बुरा मोड़ ले लिया है। ईमानदारी से कहूँ तो हालात उतने ही बुरे होते हैं, जितना कि आप उन्हें बनाते हैं। यहाँ अनेक्स में कोई भी अच्छी मिसाल रखने की परवाह नहीं करता। हममें से हरेक को ख़ुद ही अपने बुरे मूड से निकलने का रास्ता खोजना होगा।

हर दिन यही सुनने को मिलता है, 'काश, यह सब ख़त्म हो जाता!'

काम, प्यार, साहस और आशा
मदद करे मेरी, बनाए मुझे अच्छा!

किट, मुझे सचमुच यक़ीन है कि आज मैं थोड़ी झक्की हो रही हूँ और मुझे नहीं पता कि ऐसा क्यों हो रहा है। मेरा लेखन आज उलझ रहा है। मैं एक बात से दूसरी बात पर जा रही हूँ और कई बार मुझे संदेह होता है कि क्या कभी कोई इस बकवास में दिलचस्पी लेगा। शायद वे इसे 'एक बदसूरत लड़की का चिंतन' कहेंगे। यह बात तो पक्की है कि मेरी डायरियाँ शायद ही मि. बोकस्टाइन या मि. ज़ेरबूंडी के किसी काम आएँगी।

तुम्हारी, ऐन एम फ्रैंक

शनिवार, 15 अप्रैल, 1944

प्यारी किटी,

'एक के बाद एक बुरा होता जा रहा है। यह सब कब ख़त्म होगा?' आप इसे बार-बार कहते रह सकते हैं। ज़रा अंदाज़ा लगाओ कि अब क्या हुआ होगा। पीटर सामने के दरवाज़े का ताला खोलना भूल गया। नतीजतन, मि. कुगलर और गोदाम के अन्य कर्मचारी अंदर नहीं आ पाए। वे केग गए, हमारे दफ़्तर की खिड़की को तोड़ा और उस रास्ते से अंदर आए। अनेक्स की खिड़कियाँ खुली हुई थीं और केग के लोगों ने उसे भी देखा। वे क्या सोच रहे होंगे? और फ़ॉन मारन ? मि. कुगलर आगबबूला हैं। हम दरवाज़ों को मज़बूत बनाने के लिए कुछ न करने का उन्हें दोष देते हैं और फिर ऐसी बेवकूफ़ी भरी हरकत करते हैं! पीटर बहुत परेशान है। मेज़ पर माँ ने कहा कि उन्हें किसी भी चीज़ से ज़्यादा अफ़सोस पीटर के लिए है, यह सुनकर उसे रोना आने लगता है। हम भी बराबर के दोषी हैं, क्योंकि हम रोज़ उससे पूछते हैं कि उसने दरवाज़े का ताला खोला या नहीं और मि. फ़ॉन डान भी। शायद मैं बाद में उसे कुछ दिलासा देने जाऊँ। मैं उसकी मदद करना चाहती हूँ !

पिछले कुछ हफ़्ते में सीक्रेट अनेक्स की ज़िंदगी के बारे में कुछ नई ख़बरें इस प्रकार हैं:

एक सप्ताह पहले बॉश अचानक बीमार पड़ गया। वह बिलकुल स्थिर बैठा रहा और उसकी लार बहने लगी। मीप ने उसे तुरंत उठाया, तौलिए में लपेटा और अपने शॉपिंग बैग में रखकर जानवरों के क्लीनिक ले गई। बॉश को आँत की कोई परेशानी थी, इसलिए डॉक्टर ने उसे दवा दी। पीटर ने उसे समय-समय पर दवा दी और फिर जल्दी ही बॉश का दिखना कम हो गया। पक्की बात है कि वह अपनी प्रेमिका के पास चला गया होगा। लेकिन अब उसकी नाक सूज गई है और उसे उठाने पर वह आवाज़ करने लगता है। शायद वह कहीं खाना चुराने की कोशिश कर रहा होगा और किसी ने उसे मारा होगा। कुछ दिनों के लिए मूशी की आवाज़ चली गई थी। जैसे ही हमने सोचा कि उसे डॉक्टर के पास ले जाना होगा, वह ठीक होने लगी।

अब हम हर रात अटारी की खिड़की को ज़रा सा खोलते हैं। पीटर और मैं अक्सर शाम को वहीं पर बैठते हैं।

रबर सीमेंट और ऑयल पेंट की वजह से हमारे शौचालय की तेज़ी से मरम्मत हो पाई। टूटे हुए नल को भी बदल दिया गया है।

अच्छी बात यह है कि मि. क्लेमन अब बेहतर महसूस कर रहे हैं। वे जल्दी ही किसी विशेषज्ञ के पास जाएँगे। हम सिर्फ़ यह उम्मीद कर सकते हैं कि उन्हें किसी ऑपरेशन की ज़रूरत न हो।

इस महीने हमें आठ राशन बुक्स मिली हैं। बदकिस्मती से अगले दो हफ़्ते तक हमें बीन्स के बजाय ओटमील या दलिया खाना पड़ेगा। हमारा सबसे नया पकवान पिकालिली है। अगर आपकी क़िस्मत ख़राब है तो आपको खीरे व मस्टर्ड सॉस का जार ही मिलेगा।

सब्ज़ियाँ मिलनी मुश्किल हैं। सिर्फ़ लेटस (सलाद के पत्ते) और बस पत्ते ही हैं। हमारे खाने में मुख्य तौर पर आलू व माँस के स्वाद से मिलता- जुलता सालन होता है।

रूसियों का आधे से ज़्यादा क्रीमिया पर कब्ज़ा हो चुका है। ब्रिटिश कैस्सिनो से आगे नहीं बढ़ पाए हैं। हमें वेस्टर्न वॉल का ही सहारा है। कुछ अविश्वसनीय रूप से बड़े हवाई हमले हुए हैं। हेग के सेंट्रल रजिस्टर ऑफ़िस पर बम गिराया गया। सभी डच लोगों को नए राशन पंजीकरण कार्ड जारी किए जाएँगे ।

आज के लिए इतना ही।

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

रविवार, 16 अप्रैल, 1944

मेरी प्यारी किटी,

कल की तारीख़ याद रखना, क्योंकि वह मेरे लिए ऐतिहासिक दिन था। क्या किसी लड़की के लिए वह दिन अहम नहीं होता, जब उसे पहला चुंबन मिलता है? तो फिर यह भी मेरे लिए कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। ब्रैम द्वारा मेरे दाएँ गाल को चूमना या मि. वाडस्ट्रा का मेरे हाथ को चूमना इसमें शामिल नहीं है। यह चुंबन मुझे अचानक कैसे मिला? मैं तुम्हें बताती हूँ ।

कल रात आठ बजे मैं पीटर के साथ उसके दीवान पर बैठी थी और थोड़ी ही देर में उसने अपनी बाँहें मुझ पर डाल दीं। (शनिवार होने के कारण उसने अपना ओवरॉल नहीं पहना था ।) 'तुम थोड़ा इधर क्यों नहीं आ जाते,' मैंने कहा, 'ताकि मेरा सिर बार-बार अलमारी से न टकराए। '

वह इतना ज़्यादा खिसक गया कि कोने पर पहुँच गया। मैंने उसकी बाँह में अपनी बाँह डाली और उसने मेरे कंधों पर उसे रख दिया, जिससे मैं पूरी तरह उससे घिर गई। हम कई बार ऐसे बैठे हैं, लेकिन कल रात जितना नज़दीक हम कभी नहीं बैठे थे। उसने मुझे कसकर पकड़ रखा था; मेरा दिल बहुत तेज़ी से धड़कने लगा था, लेकिन अभी और भी कुछ बाक़ी था । वह तब संतुष्ट नहीं हुआ, जब तक कि मेरा सिर उसके कंधों पर नहीं आया और फिर उस पर उसने अपना सिर रख दिया। पाँच मिनट बाद मैं फिर से बैठ गई, लेकिन जल्दी ही उसने मेरे सिर को अपने हाथों में लेकर उसे फिर से अपने क़रीब खींच लिया। बहुत अच्छा लग रहा था। मैं मुश्किल से बात कर पा रही थी, मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था; उसने थोड़े ढीले- ढाले अंदाज़ में मेरे गाल व बाँह को सहलाया और मेरे बालों से खेलने लगा। हमारे सिर ज़्यादातर वक़्त एक-दूसरे को छू रहे थे।

किटी, मैं तुम्हें बता नहीं सकती कि मुझे क्या एहसास हो रहा था। मैं इतनी ख़ुश थी कि कुछ नहीं बोल सकती थी और मेरे ख़याल से वह भी बहुत ख़ुश था।

साढ़े नौ बजे हम उठे। पीटर ने अपने टेनिस शूज़ पहने, ताकि रात को इमारत में गश्त लगाते हुए ज़्यादा आवाज़ न हो और मैं उसके बग़ल में खड़ी थी। अचानक मैंने कैसे सही हरकत की, मुझे पता नहीं, लेकिन नीचे जाने से पहले उसने मुझे बालों के बीच से चूमा, आधा मेरे बाएँ गाल पर और आधा मेरे कान पर । मैं पीछे देखे बिना नीचे की तरफ़ भागी और अब मुझे आज का बेसब्री से इंतज़ार है।

रविवार सुबह, ठीक ग्यारह बजे से पहले।

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

सोमवार, 17 अप्रैल, 1944

प्यारी किटी,

क्या तुम्हें लगता है कि पापा और माँ मेरी उम्र की लड़की को साढ़े सत्रह साल के लड़के के साथ दीवान पर बैठने व चूमने को मंजूरी देंगे? मुझे नहीं लगता कि ऐसा होगा, लेकिन इस मामले में मुझे अपने विवेक का इस्तेमाल करना होगा। उसकी बाँहों में सपने देखते हुए इतनी शांति मिलती है, इतना सुरक्षित महसूस होता है, अपने गाल पर उसके गाल को महसूस करने में रोमांच होता है, यह जानना कितना अच्छा है कि कोई है, जो मेरा इंतज़ार कर रहा है। लेकिन फिर एक लेकिन है कि क्या पीटर इसे यहीं छोड़ देगा? मैं उसका वादा नहीं भूली हूँ, लेकिन... वह तो लड़का है !

मैं जानती हूँ कि मैं काफ़ी छोटी उम्र में शुरुआत कर रही हूँ। अभी पंद्रह की भी नहीं हूँ और इतनी आत्मनिर्भर हूँ, यह लोगों के लिए समझना थोड़ा मुश्किल है। मारगोट कभी किसी लड़के को तब तक नहीं चूमेगी, जब तक कि उससे उसका रिश्ता तय न हो या फिर शादी न हो गई हो। न तो पीटर की और न ही मेरी ऐसी कोई योजना है। मुझे पक्का यक़ीन है कि माँ ने भी पापा से मिलने से पहले किसी पुरुष को कभी नहीं छुआ होगा। अगर पता लग गया कि मैं पीटर की बाँहों में थी, मेरा दिल उसकी छाती पर धड़क रहा था, मेरा सिर उसके कंधों पर था और उसका सिर व चेहरा ठीक मेरे सामने था, तो मेरी सहेलियाँ या यैक क्या बोलेंगे !

ओह, ऐन, यह तो बहुत चौंकाने वाला है! लेकिन मुझे तो नहीं लगता कि यह इतना चौंकाने वाला है; हम यहाँ बाक़ी दुनिया से कटकर रह रहे हैं, बेचैन व डरे हुए हैं, ख़ासकर पिछले कुछ दिनों से। तो फिर जब हम एक- दूसरे से प्यार करते हैं, तो हम अलग क्यों रहें? इस तरह के समय में हम एक-दूसरे को क्यों न चूमें? हम सही उम्र तक पहुँचने का इंतज़ार क्यों करें? हम किसी से इजाज़त क्यों लें?

मैंने अपना ध्यान ख़ुद रखने का फ़ैसला किया है। वह कभी मुझे चोट पहुँचाना या दुखी नहीं करना चाहेगा। मैं अपने दिल की क्यों न सुनूँ, ख़ासकर जब उससे हम दोनों को ख़ुशी मिलती है ?

फिर भी मुझे लगता है किटी कि तुम मेरी शंका को महसूस कर सकती हो। आसपास छिपकर बातें करने वाले लोगों के ख़िलाफ़ यह मेरी ईमानदारी की बगावत है। क्या तुम्हें लगता है कि मुझे पापा को बताना चाहिए कि मैं क्या कर रही हूँ? क्या तुम्हें लगता है कि हमारे इस रहस्य को किसी तीसरे इंसान को बताया जाना चाहिए? उसकी ज़्यादातर ख़ूबसूरती ख़त्म हो जाएगी, लेकिन क्या उससे मुझे अंदर से बेहतर महसूस होगा? मैं इस बारे में उनसे बात करूँगी।

हाँ, मेरे पास अब भी बहुत बातें हैं, जो मैं उसके साथ बाँटना चाहती हूँ, क्योंकि सिर्फ़ गले लगने के कोई मायने नहीं हैं। एक-दूसरे के साथ अपने विचार साझा करने के लिए काफ़ी भरोसे की ज़रूरत होती है, लेकिन उसके कारण हम और भी मज़बूत होंगे।

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

पुनःश्च । सुबह हम छह बजे उठ गए थे, क्योंकि पूरे परिवार ने फिर से सेंधमारी की आवाज़ें सुनी थी। इस बार हमारे पड़ोसियों में से कोई शिकार बना होगा। सात बजे जब हमने अपने दरवाज़ों का जायज़ा लिया, तो शुक्र है कि वे कसकर बंद थे !

मंगलवार, 18 अप्रैल, 1944

प्यारी किटी,

यहाँ सब कुछ ठीक है । कल रात बढ़ई फिर से आया था और उसने दरवाज़ों के पैनलों पर लोहे के पत्तर लगाए थे। पापा ने अभी कहा कि उम्मीद है कि 20 मई से पहले रूस व इटली और पश्चिम में बड़े पैमाने पर कार्रवाई होगी; युद्ध जितना लंबा खिंचता है, उतनी ही इस जगह से मुक्त होने की कल्पना करना मुश्किल हो जाता है।

कल पीटर और मैं आख़िरकार उस बातचीत पर पहुँच गए, जिसे हम पिछले दस दिनों से टालते आ रहे थे। मैंने उसे लड़कियों के बारे में सब कुछ, यहाँ तक कि बहुत अंतरंग बातें भी बताई। मुझे यह बात अजीब लगी कि उसे लगता था किकिसी स्त्री के शरीर के प्रवेशद्वार को तसवीरों में नहीं दिखाया जाता था। वह समझ नहीं पाया कि दरअसल वह उसकी टाँगों के बीच होता है। शाम का अंत मुँह के पास एक पारस्परिक चुंबन के साथ हुआ। यह बहुत प्यारा एहसास है!

मैं किसी दिन अपने पसंदीदा उद्धरणों की किताब पीटर को दिखाऊँगी और मैं बातों की अधिक गहराई में जा सकती हूँ। मुझे नहीं लगता कि हर रोज़ एक-दूसरे की बाँहों में पड़े रहना संतोषजनक है और मुझे उम्मीद है कि वह भी ऐसा ही महसूस करता होगा।

हल्की सर्दियों के बाद अब ख़ूबसूरत बहार का वक़्त है। अप्रैल शानदार है, कभी-कभार हल्की बौछारों के साथ न ज़्यादा गर्म, न ज़्यादा ठंडा। हमारा चेस्टनट पेड़ पत्तों से भरा है और कहीं-कहीं कुछ छोटी-छोटी कलियाँ दिख जाती हैं।

बेप शनिवार को हमारे लिए चार गुलदस्ते लेकर आई : तीन डैफोडिल और एक मेरे लिए ग्रेप हाइसिंथ का । मि. कुगलर हमें ज़्यादा से ज़्यादा अख़बार मुहैया करवा रहे हैं।

अब मेरा गणित पढ़ने का समय है, किटी । विदा !

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

बुधवार, 19 अप्रैल 1944

डियरेस्ट डार्लिंग,

(यह एक फ़िल्म का शीर्षक है जिसका मतलब है मेरी सबसे प्यारी। इसमें डोरिट क्रेज़लर, ईडा वुस्ट और हारल्ड हाउलज़ेन थे । )

इससे अच्छा क्या हो सकता है कि खुली खिड़की के सामने बैठकर प्रकृति का आनंद लिया जाए, परिंदों का संगीत सुनें, गालों पर सूरज को महसूस करें और बाँहों में आपका प्रिय हो? अपने इर्दगिर्द उसकी बाजुओं मैं मैं बहुत शांत व सुरक्षित महसूस करती हूँ, यह जानते हुए कि वह पास है, फिर भी कुछ बोलने की ज़रूरत न हो; यह बुरा कैसे हो सकता है, जबकि इससे मुझे इतना अच्छा लगता है? काश, हमें कोई तंग न करें, यहाँ तक कि मूशी भी नहीं!

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

शुक्रवार, 21 अप्रैल, 1944

मेरी प्यारी किटी,

कल गला ख़राब होने के कारण मैं बिस्तर पर ही रही और क्योंकि मैं पहली ही दोपहर ऊब गई थी और मुझे बुख़ार भी नहीं था, तो मैं आज उठ गई । मेरे गले की तकलीफ़ भी लगभग ग़ायब हो गई है। कल, जैसा कि तुमने भी जाना होगा, हमारे फ़्यूहर का पचपनवाँ जन्मदिन था। आज यॉर्क की राजकुमारी एलिज़ाबेथ का जन्मदिन है। बीबीसी का कहना है कि उन्होंने अभी तक अपनी उम्र की औपचारिक घोषणा नहीं की है, हालाँकि शाही बच्चे अक्सर कर देते हैं। हम सोच रहे हैं कि इस ख़ूबसूरत राजकुमारी की शादी किस राजकुमार से होगी, लेकिन किसी उपयुक्त उम्मीदवार के बारे में हम नहीं सोच पा रहे हैं; शायद उनकी बहन राजकुमारी मारग्रेट रोज़ का विवाह बेल्जियम के युवराज बूदूँ से हो सकता है!

यहाँ हम एक मुसीबत के बाद दूसरी मुसीबत का सामना कर रहे हैं। बाहर के दरवाज़े को जैसे ही मज़बूत किया गया, फ़ॉन ने फिर से अपना सिर उठा लिया। यह संभावना है कि उन्होंने ही शायद आलू का पाउडर चुराया और अब वे बेप पर इल्ज़ाम लगाने की कोशिश कर रहे हैं। इसमें हैरानी नहीं कि अनेक्स में एक बार फिर हंगामा मचा है। बेप अपने आपे में नहीं हैं। शायद मि. कुगलर आख़िरकार इस संदेहपूर्ण व्यक्ति को ठीक करेंगे।

आज सुबह बीथोवनस्ट्रीट से एक आदमी आया था और उसने हमारी तिजोरी की क़ीमत 400 गिल्डर्स आँकी थी; हमारी राय में बाक़ी आकलन भी काफ़ी कम हैं।

मैं द प्रिंस पत्रिका से यह पूछना चाहती हूँ कि क्या वे मेरी कोई परी कथा लेंगे, ज़ाहिर है कि उसके साथ मेरा असली नाम नहीं होगा। लेकिन अब तक की मेरी परीकथाएँ काफ़ी लंबी रही हैं, इसलिए मुझे नहीं लगता कि मुझे कोई मौक़ा मिलेगा।

अगली सुबह तक के लिए, विदा ।

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

मंगलवार, 25 अप्रैल, 1944

प्यारी किटी,

पिछले दस दिन से दुसे मि. फ़ॉन डान से बात नहीं कर रहे और इसकी वजह सेंधमारी के बाद उठाए गए नए सुरक्षा क़दम हैं। इनमें से एक तो यह है कि उन्हें शाम को नीचे जाने की इजाज़त नहीं है। रात साढ़े नौ बजे पीटर व मि. फ़ॉन डान आख़िरी चक्कर लगाते हैं और उसके बाद कोई भी नीचे नहीं जा सकता। रात को आठ बजे के बाद और सुबह आठ बजे के बाद हम लोग फ़्लश नहीं चला सकते। खिड़कियों को भी सुबह मि. कुगलर के ऑफ़िस में बत्तियाँ जलने के बाद खोला जा सकता है और उन्हें रात को अब डंडे से नहीं खोला जा सकता। मि. दुसे के नाराज़ होने की यही वजह है। उनका दावा है कि मि. फ़ॉन डान ने उन्हें परेशान किया है, लेकिन उसके लिए वे खुद दोषी हैं। उनका कहना है कि वे खाने के बिना रह सकते हैं, लेकिन हवा के बिना नहीं और उन्हें खिड़कियाँ खुली रखने का कोई न कोई उपाय ढूँढ़ना होगा।

'मुझे इस बारे में मि. कुगलर से बात करनी होगी, उन्होंने मुझसे कहा।

मेरा जवाब था कि हम इस तरह की बातें मि. कुगलर से नहीं करते, सिर्फ़ हमारे समूह में ही ये सब बातें हो सकती हैं।

'सब कुछ मेरी पीठ पीछे होता है। मुझे इस बारे में तुम्हारे पापा से बात करनी होगी। '

अब शनिवार दोपहर या रविवार को उन्हें मि. कुगलर के दफ़्तर में बैठने की अनुमति नहीं है, क्योंकि अगर केग के मैनेजर बग़ल की इमारत में हुए तो वे उनकी आवाज़ सुन सकते हैं। दुसे फिर भी वहाँ जाकर बैठे। मि. फ़ॉन डान बहुत गुस्से में थे और पापा दुसे से बात करने नीचे गए। दुसे कोई बेकार सा बहाना बनाया, लेकिन इस बार पापा उनकी बातों में नहीं आए। अब पापा दुसे से कम से कम बातचीत करते हैं क्योंकि दुसे ने उनका अपमान किया। हममें से कोई नहीं जानता कि उन्होंने क्या कहा, लेकिन वह ज़रूर बहुत बुरा रहा होगा।

ऊपर से बात यह है कि अगले सप्ताह उस घटिया से आदमी का जन्मदिन आने वाला है। आप जब नाराज़ हों, तो अपना जन्मदिन कैसे मना सकते हैं और कैसे उन लोगों से उपहार ले सकते हैं, जिनसे आप बातचीत तक नहीं कर रहे?

मि. वुश्कल की हालत ख़राब होती जा रही है। दस दिन से ज़्यादा समय से उन्हें लगभग एक सौ चार डिग्री बुख़ार है। डॉक्टरों का कहना है कि उनकी हालत बहुत निराशाजनक है; उनका मानना है कि कैंसर उनके फेफड़ों तक पहुँच चुका है। बेचारे, हम उनकी मदद करना चाहते हैं, लेकिन अब तो केवल ईश्वर ही उनकी सहायता कर सकते हैं!

मैंने एक मज़ेदार कहानी, 'खोजी ब्लरी' लिखी है, जो मेरे तीन श्रोताओं को काफ़ी पसंद आई।

मुझे अब भी जुकाम है और मैंने उसे मारगोट, माँ और पापा तक पहुँचा दिया है। पीटर को न हो। उसने चूमने पर ज़ोर दिया और मुझे अपनी एल डोराडो कहा । बुध्दू लड़के, आप किसी इंसान को वह नहीं कह सकते ! लेकिन वह प्यारा तो है !

तुम्हारी, ऐन एम फ्रैंक

गुरुवार, 27 अप्रैल, 1944

प्यारी किटी,

मिसेज़ फ़ॉन डान आज सुबह बहुत बुरे मूड में थीं। वे बस शिकायत कर रही थीं, पहले अपने जुकाम को लेकर, खाँसी की दवा पर्याप्त मात्र में न मिलने पर और हर वक़्त अपनी नाक साफ़ करने की तकलीफ़ को लेकर। फिर वे बड़बड़ाने लगीं कि सूरज नहीं चमक रहा, आक्रमण शुरू नहीं हो रहा, हमें खिड़कियों से बाहर देखने की इजाज़त नहीं है, वगैरह, वगैरह। हम उन पर हँसने के सिवा कुछ नहीं कर सकते थे, और वह बुरा नहीं था, क्योंकि वे भी हमारे साथ शामिल हो गई थीं।

आलू कूगेल बनाने की हमारी विधि, प्याज़ न होने के कारण इसमें बदलाव किए गए हैं:

छिले हुए आलुओं को महीन कसें और फिर उसमें सरकार द्वारा मुहैया करवाया गया आटा व नमक डालें। किसी साँचे या ओवनप्रूफ़ बर्तन में पैराफ़िन वैक्स या स्टियरिन लगाकर उसे चिकना करें और दो-ढाई घंटे तक बेक करें। स्ट्रॉबेरी मुरब्बे के साथ पेश करें। (प्याज़ उपलब्ध नहीं हैं। साँचे या गुंथे हुए आटे के लिए तेल भी नहीं है!)

इस समय मैं ऐम्परर चार्ल्स पंचम पढ़ रही हूँ, जिसे गटिंगन के एक प्रोफ़ेसर ने लिखा है; इस किताब पर काम करने में उन्हें चालीस साल लगे। पचास पन्ने पढ़ने में मुझे पाँच दिन लगे। मैं उससे ज़्यादा नहीं पढ़ सकती। इस किताब के 598 पन्ने हैं, तो तुम समझ सकती हो कि मुझे कितना समय लगेगा। मैं अभी दूसरे खंड की बात भी नहीं कर रही हूँ । लेकिन.... काफ़ी दिलचस्प है!

एक दिन में स्कूल में पढ़ने वाली लड़की को क्या-क्या करना पड़ता है! मेरा ही उदाहरण लो। पहले मैंने डच में लिखे नेल्सन के अंतिम युद्ध का अंग्रेज़ी में अनुवाद किया। फिर मैंने नॉर्दर्न वॉर (1700-21) के बारे में पढ़ा, जिसमें पीटर महान, चार्ल्स XII, ऑगस्टस, श्टानिसलॉस लेकजिंस्की, मज़ेपा, फ़ॉन गात्ज़, ब्रैंडनबर्ग, पश्चिमी पॉमेरानिया, पूर्वी पॉमेरानिया और डेनमार्क शामिल थे, इसके अलावा सामान्य तारीखें थीं। फिर मैं ब्राज़ील पहुँची, जहाँ मैंने बाहया तंबाकू, कॉफ़ी की प्रचुरता, रियो द जेनेरियो के पाँच लाख निवासियों, साओ पाउलो और अमेज़न नदी के बारे में पढ़ा। फिर नीग्रो, मुलाटो, मेस्टिज़ा, श्वेत लोगों, निरक्षरता की दर, जो कि पचास प्रतिशत से अधिक है और मलेरिया के बारे में पढ़ा। मेरे पास थोड़ा समय बचा था, इसलिए मैंने वंशवृक्ष चार्ट पर नज़र दौड़ाई: विलियम लुई, अर्नेस्ट केज़िमिर I, हेनरी केज़िमिर II से लेकर नन्ही मार्गरीत फ्रांसिस्का (1943 में ओटावा में जन्मी ) को भी देख लिया ।

बारह बजे: मैंने अटारी में फिर से पढ़ाई शुरू की, डीन, पादरियों, पोप के बारे में पढ़ा... और एक बज गया!

दो बजे बेचारी बच्ची फिर से काम पर लग गई। पुरानी दुनिया और नई दुनिया के बंदर अगले थे। किटी, मुझे जल्दी से बताओ कि दरियाई घोड़े के पैरों में कितनी अँगुलियाँ होती हैं?

फिर बारी आई बाइबल, नोह की नौका, शेम, हैम और जेयफ़ेथ की। उसके बाद चार्ल्स | फिर पीटर के साथ अंग्रेज़ी में कर्नल के बारे में लिखी थाकरे की किताब पढ़ी। फ्रेंच की परीक्षा दी और फिर मिसीसिपी और मिसूरी के बीच तुलना !

आज के लिए इतना ही । विदा !

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

शुक्रवार, 28 अप्रैल, 1944

प्यारी किटी,

मैं पीटर शिफ़ के अपने सपने (जनवरी की शुरुआत में) को कभी नहीं भूल सकी। अब भी मैं उसके गाल को अपने गाल पर महसूस कर सकती हूँ और उस शानदार चमक को भी जिसने बाक़ी सारी कमी को पूरा कर दिया था। कभी-कभार इस पीटर के साथ मुझे वैसा ही एहसास होता है, लेकिन उतना ज़ोरदार नहीं... कल रात तक नहीं। हम दीवान पर बैठे थे, रोज़ की तरह एक-दूसरे की बाँहों में। अचानक रोज़मर्रा की ऐन जैसे चुपके से निकल गई और दूसरी ऐन ने उसकी जगह ले ली। दूसरी ऐन, जो अतिआत्मविश्वासी या मज़ेदार नहीं है, लेकिन प्यार करना चाहती है और सौम्य रहना चाहती है।

मैं उसके साथ बैठी थी और मुझे अचानक एक भावनात्मक लहर सी महसूस हुई। मेरी आँखों में आँसू आ गए; बाईं आँख से आँसू उसके ओवरॉल पर गिरे, जबकि दाईं तरफ़ से मेरी नाक तक, हवा में और फिर पहले के पास पहुँच गए। क्या उसने गौर किया? उसने ऐसी कोई हरकत नहीं की कि जिससे पता चले कि उसने ध्यान दिया। क्या उसे भी वैसा ही महसूस हुआ? उसने कुछ नहीं कहा। क्या उसने महसूस किया कि उसके पास दो ऐन हैं? मेरे प्रश्न अनुत्तरित रह गए।

साढ़े आठ बजे मैं खड़ी हुई और खिड़की के पास पहुँची, जहाँ हम हमेशा विदा लेते हैं। मैं तब भी काँप रही थी, मैं तब भी दूसरी ऐन थी । वह मेरे पास आया और मैंने उसके गले में बाँहें डालकर उसके बाएँ गाल को चूमा। मैं उसके दूसरे गाल को चूमने वाली थी कि मेरा मुँह उसके मुँह से मिल गया और हमारे होंठ आपस में जुड़ गए। विस्मित होकर हम गले लगे, बार-बार और यह सिलसिला चलता रहा!

पीटर को कोमलता चाहिए। अपनी ज़िंदगी में पहली बार उसने एक लड़की को जाना; पहली बार उसने देखा कि बड़े से बड़े खीझ दिलाने वाले इंसानों का भी अंदरूनी रूप होता है, दिल होता है और एक बार आपके साथ अकेले होने पर वे बिलकुल बदल जाते हैं। उसने अपनी ज़िंदगी में पहली बार खुद को, अपनी दोस्ती को किसी और इंसान को सौंपा था। इससे पहले उसका कोई दोस्त नहीं था, न लड़का और न ही कोई लड़की। अब हमने एक-दूसरे को पा लिया है। मैं भी उसे नहीं जानती थी, मेरे पास भी कोई नहीं था, जिसे मैं सब कुछ बता सकती और उससे यह सब हुआ....

मुझे एक सवाल बार-बार परेशान कर रहा है: 'क्या यह सही है?' क्या मेरा इतनी जल्दी समर्पित हो जाना सही है, क्या मेरा इतना भावुक होना, पीटर के प्रति इतने आवेग से भर जाना और उसकी इतनी कामना करना सही है? क्या मैं एक लड़की ख़ुद को इतना दूर जाने दे सकती हूँ?

इसका एक ही संभावित जवाब हो सकता है: 'मुझे इतनी चाह है... और वह इतने लंबे समय से रही है। मैं बहुत अकेली हूँ और अब मुझे सुकून मिल गया है!'

सुबह हम सामान्य बर्ताव करते हैं, दिन में भी, बस कभी-कभार ऐसा नहीं होता। लेकिन शाम को दिन भर की दबाई गई चाह पहले की ख़ुशी व आनंद जैसे तेज़ी से ऊपर आने लगता है और हम बस एक-दूसरे के बारे में ही सोच सकते हैं। हर रात हमारे आख़िरी चुंबन के बाद मुझे लगता है कि मैं वहाँ से दौड़ जाऊँ और फिर से उसकी आँखों में कभी न देखूँ । दूर, कहीं दूर अँधेरे में अकेली !

उन चौदह सीढ़ियों के नीचे क्या है, जो मेरा इंतज़ार कर रहा होता है? चमकीली रोशनी, सवाल और हँसी । मुझे सामान्य बर्ताव करना होता है और यह उम्मीद कि उन्होंने किसी चीज़ पर ध्यान न दिया हो।

मेरा दिल अब भी बहुत नाजुक है और कल रात के झटके से उबरने में उसे समय लगेगा। सौम्य ऐन कभी-कभार सामने आती है और वह आते ही ख़ुद को इतनी आसानी से दरवाज़े के बाहर धकेलने नहीं देना चाहती। पीटर मेरे उस हिस्से तक पहुँच गया है, जहाँ अब तक कोई नहीं पहुँचा था, मेरे सपने के सिवाय ! उसने मुझे पकड़ लिया है और मुझे पूरी तरह उलट दिया है। क्या हर किसी को अपने लिए थोड़े शांत समय की ज़रूरत नहीं होती? पीटर, तुमने क्या कर दिया है? तुम मुझसे क्या चाहते हो?

यह सब हमें कहाँ ले जाएगा? अब मैं बेप को समझ गई हूँ। अब जबकि मैं ख़ुद उससे गुज़र रही हूँ, तो मैं उसकी दुविधा को समझ सकती हूँ; अगर मैं थोड़ी बड़ी होती और वह मुझसे शादी करना चाहता, तो मेरा जवाब क्या होता? ऐन, ईमानदारी से जवाब दो ! तुम उससे शादी नहीं कर पातीं! लेकिन उसे जाने देना भी मुश्किल है। पीटर का चरित्र अभी उतना मज़बूत नहीं है, उसकी इच्छाशक्ति कम है, उसमें हिम्मत व ताक़त भी कम है। वह अब भी बच्चा है, भावनात्मक तौर पर मुझसे ज़्यादा बड़ा नहीं है; उसे सिर्फ़ ख़ुशी व सुकून चाहिए। क्या मैं सचमुच सिर्फ़ चौदह साल की हूँ? क्या मैं वाक़ई स्कूल जाने वाली एक बुद्धू सी लड़की हूँ? क्या मैं हर चीज़ में बहुत कच्ची हूँ? अधिकतर लोगों से मेरा अनुभव अधिक है; मैंने इतना कुछ देखा है कि मेरी उम्र के किसी बच्चे ने शायद ही देखा हो ।

मैं ख़ुद से डरी हुई हूँ, मुझे डर है कि मेरी चाहत के कारण मैं इतनी जल्दी समर्पण कर रही हूँ। बाद में बाक़ी लड़कों के साथ यह कभी कैसे सही हो सकता है? यह बहुत मुश्किल है, दिल और दिमाग़ की हमेशा चलने वाली लड़ाई। दोनों के लिए सही समय व जगह है, लेकिन मैं पक्के तौर पर कैसे कह सकती हूँ कि मैंने सही समय चुना है?

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

मंगलवार, 2 मई, 1944

प्यारी किटी,

शनिवार रात को मैंने पीटर से पूछा कि उसे क्या लगता है कि मुझे, पापा को हम दोनों के बारे में बता देना चाहिए। इस पर बातचीत करने के बाद उसने कहा कि उसे लगता है कि मुझे बता देना चाहिए। मुझे खुशी हुई कि इससे पता चलता है कि वह समझदार व संवेदनशील है। जैसे ही मैं नीचे आई, पापा के साथ पानी लेने चली गई। जब हम सीढ़ियों पर थे, तो मैंने कहा, 'पापा, आप यह तो समझ गए होंगे कि जब मैं व पीटर साथ होते हैं, तो हम कमरे के दो कोनों पर एक-दूसरे के सामने नहीं बैठते । क्या आपको लगता है कि यह ग़लत है?'

जवाब देने से पहले पापा रुके: 'नहीं, मुझे नहीं लगता कि यह ग़लत है। लेकिन जैसे कि हमारी स्थिति है, जब हम एक-दूसरे के इतना नज़दीक रह रहे हों, तो हमें सावधान रहना चाहिए।' उन्होंने वैसा ही कुछ और भी कहा और फिर हम ऊपर चले गए।

रविवार सुबह उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया और कहा, 'ऐन, मैं तुम्हारी कही बात पर सोचता रहा हूँ।' (मैं जानती हूँ कि वे अब क्या कहने वाले हैं!) 'यहाँ अनेक्स में यह कोई अच्छा ख़याल नहीं है। मैंने सोचा कि तुम बस दोस्त हो। क्या पीटर को तुमसे प्यार है?"

'बिलकुल नहीं, ' मेरा जवाब था ।

'मैं तुम दोनों को समझता हूँ। लेकिन तुम्हें थोड़ा संयम बरतना होगा; अक्सर ऊपर मत जाया करो, उसे ज़रूरत से ज़्यादा बढ़ावा मत दो। इस तरह के मामलों में पुरुष सक्रिय भूमिका निभाते हैं और यह महिला पर है कि वह सीमाएँ तय करे। बाहर जब तुम आज़ाद हो, तो हालात अलग होते हैं। तुम लड़के-लड़कियों को देखते हो, तुम बाहर जा सकते हो, खेलों व बाक़ी तमाम गतिविधियों में हिस्सा ले सकते हो। लेकिन यहाँ अगर तुम ज़रूरत से ज़्यादा साथ रहते हो और फिर दूर जाना चाहते हो, तो तुम ऐसा नहीं कर सकते। तुम हर घंटे पूरे समय एक-दूसरे को देखते हो, सावधान रहो, ऐन और इसे बहुत गंभीरता से मत लो !'

'मैं नहीं लेती, पापा, लेकिन पीटर एक अच्छा, एक भला लड़का है। '

'है तो, लेकिन उसका चरित्र अभी बहुत मज़बूत नहीं है। उसे कुछ अच्छा करने या फिर कुछ बुरा करने के लिए बहकाया जा सकता है। उसकी भलाई के लिए ही मैं चाहता हूँ कि वह अच्छा बना रहे, क्योंकि वह बुनियादी रूप से अच्छा इंसान है।'

हमने थोड़ी और बात की और इस बात पर राज़ी हुए कि पापा उससे बात करेंगे।

रविवार दोपहर जब हम आगे की अटारी पर थे, तो पीटर ने पूछा, 'क्या तुमने अपने पापा से बात की, ऐन ?'

'हाँ,' मैंने जवाब दिया, 'मैं तुम्हें सब कुछ बताऊँगी। उन्हें यह ग़लत नहीं लगता, लेकिन उनका कहना है कि यहाँ पर जब हम इतने नज़दीक रहते हैं, तो उससे टकराव हो सकता है। '

'हम तो पहले ही बात कर चुके हैं कि हम लड़ाई नहीं करेंगे और मेरा इरादा अपना वादा निभाने का है।'

'मेरा भी, पीटर। लेकिन पापा को नहीं लगता कि हम गंभीर हैं, उन्हें लगा कि हम बस दोस्त हैं। क्या तुम्हें लगता है कि हम अब भी रह सकते हैं?'

'बिलकुल लगता है। तुम्हारा क्या ख़याल है?'

'मेरा भी यही है। मैंने पापा को बताया कि मुझे तुम पर भरोसा है। मैं तुम पर विश्वास करती हूँ, पीटर, जितना कि पापा पर करती हूँ। मुझे लगता है कि तुम मेरे भरोसे के क़ाबिल हो। तुम हो, है न?'

'उम्मीद करता हूँ।' (वह बहुत शरमाया ।)

'मैं तुम पर विश्वास रखती हूँ,' मैंने अपनी बात जारी रखी। 'मेरा विश्वास है कि तुम्हारा चरित्र अच्छा है और तुम दुनिया में आगे बढ़ोगे । '

उसके बाद हमने बाक़ी चीज़ों पर बात की। बाद में मैंने कहा, 'अगर हम कभी यहाँ से बाहर निकले, तो मैं जानती हूँ कि तुम मेरे बारे में सोचोगे भी नहीं।

वह गुस्से में आ गया। 'यह सही नहीं है, ऐन । अरे नहीं, मैं तुम्हें अपने बारे में ऐसा सोचने भी नहीं दूँगा ! '

तभी किसी ने हमें बुला लिया।

पापा ने उससे बात की, उसने मुझे सोमवार को बताया । 'तुम्हारे पापा को लगता है कि हमारी दोस्ती शायद प्यार में बदल जाएगी, उसने कहा, 'लेकिन मैंने उनसे कहा कि हम खुद पर काबू रखेंगे।

पापा चाहते हैं कि मैं ऊपर ज़्यादा न जाऊँ, लेकिन मैं जाना चाहती हूँ। सिर्फ़ इसलिए नहीं कि मुझे पीटर के साथ रहना अच्छा लगता है, बल्कि इसलिए कि मैंने कहा कि मुझे उस पर भरोसा है। मैं उस पर विश्वास करती हूँ और मैं यह साबित करना चाहती हूँ, लेकिन अगर मैं अविश्वास के कारण नीचे ही रही, तो कभी ऐसा नहीं कर पाऊँगी।

नहीं, मैं जाऊँगी !

इस बीच दुसे की नौटंकी सुलझ गई। शनिवार शाम को खाने के समय उन्होंने ख़ूबसूरत डच बोलते हुए माफ़ी माँगी। मि. फ़ॉन डान तुरंत मान गए। दुसे ने अपने भाषण का बहुत अभ्यास किया होगा।

रविवार को उनका जन्मदिन बिना किसी हादसे के गुज़र गया। हमने उन्हें 1919 की बनी वाइन दी, फ़ॉन डान परिवार (अब वे उन्हें उपहार दे सकते हैं) ने उन्हें पिकालिली का एक जार और रेज़र ब्लेड का पैकेट दिया, मि. कुगलर ने उन्हें नींबू का शीरा (नींबू का पेय बनाने के लिए) दिया, मीप ने लिट्ल मार्टिन किताब दी और बेप ने उन्हें पौधा दिया। उन्होंने सबको अंडा खिलाया।

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

बुधवार, 3 मई, 1944

प्यारी किटी,

सबसे पहले साप्ताहिक समाचार ! हमें राजनीति से छुट्टी मिल गई है। ऐसा कुछ भी, हाँ कुछ भी नहीं है, जिसे बताया जा सके। मैं भी धीरे-धीरे मानने लगी हूँ कि हमला होगा। आख़िर वे नहीं चाहेंगे कि रूसी ही सारा बुरा काम करें, वैसे अभी रूसी भी कुछ नहीं कर रहे हैं।

अब मि. क्लेमन हर रोज़ दफ़्तर आते हैं। वे पीटर के दीवान के लिए नए स्प्रिंग लेकर आए हैं, इसलिए अब पीटर को सब कुछ ठीक करना होगा। हैरानी की बात नहीं कि यह काम करने का उसका बिलकुल भी मन नहीं है। मि. क्लेमन बिल्लियों के लिए पिस्सू मारने का पाउडर भी लाए हैं।

क्या मैंने तुम्हें बताया कि बॉश ग़ायब हो गया है? पिछले बृहस्पतिवार से हमने उसका कोई नामोनिशान नहीं देखा है। हो सकता है कि वह बिल्लियों के स्वर्ग में पहुँच गया हो, जानवरों से प्रेम करने वाले किसी इंसान ने उसे स्वादिष्ट व्यंजन में बदल दिया हो। शायद किसी लड़की ने बॉश के फ़र से बनी टोपी पहनी हो । पीटर का दिल टूट गया है।

पिछले दो हफ़्तों से हम दिन का खाना साढ़े ग्यारह बजे खा रहे हैं; सुबह हमें दलिए से काम चलाना पड़ता है। कल से हर रोज़ ऐसा ही होने वाला है; इससे हमारे खाने की बचत होती है। सब्ज़ियाँ मिलने में अब भी मुश्किल हो रही है। आज दोपहर हमने उबले हुए लेटस के पत्ते खाए । सामान्य लेटस, पालक और उबला हुआ लेटस, बस यही कुछ है। उसके साथ सड़े हुए आलू और फिर आपके पास राजा जैसी दावत है!

दो महीने से ज़्यादा वक़्त से मेरा मासिक धर्म नहीं आया, लेकिन पिछले रविवार को हो गया। सारी परेशानी के बावजूद मुझे खुशी है कि उसने मुझे नहीं छोड़ा।

इसमें कोई शक नहीं कि तुम कल्पना कर सकती हो कि हम अक्सर निराशा में कहते हैं, 'युद्ध का आख़िर क्या मतलब है? लोग क्यों शांति से नहीं रह सकते? इतना विनाश आख़िर क्यों ?'

इस सवाल को समझा जा सकता है, लेकिन अब तक किसी को भी संतोषजनक जवाब नहीं मिला है। इंग्लैंड एक तरफ़ क्यों बड़े व बेहतर विमान और बम बना रहा है, जबकि दूसरी तरफ़ वह पुनर्निर्माण के लिए नए घर तैयार कर रहा है? हर दिन क्यों युद्ध पर लाखों ख़र्च किए जाते हैं, जबकि चिकित्सा विज्ञान, कलाकारों व ग़रीब लोगों को एक पैसा तक नसीब नहीं होता? लोगों को भूखा क्यों रहना पड़ता है, जबकि दुनिया के कई हिस्सों में भोजन के ढेर सड़ रहे हैं? ओह, लोग इतने पागल क्यों हैं?

मैं नहीं मानती कि युद्ध केवल नेताओं और पूँजीवादियों की कारस्तानी है। नहीं, आम आदमी भी उतना ही दोषी है; वरना लोग व राष्ट्र बहुत पहले ही विद्रोह कर चुके होते! लोगों में एक विनाशक इच्छा होती है, गुस्से, क़त्ल व मारने की इच्छा। जब तक पूरी मानवता का कायापलट नहीं होती, तब तक लड़ाइयाँ होती रहेंगी और जो सब कुछ बहुत सावधानी से बनाया गया है, पाला-पोसा गया है, उसे काटकर नष्ट कर दिया जाएगा और फिर से शुरुआत होगी!

मैं अक्सर दुखी रही हूँ, लेकिन मैं कभी निराश हताश नहीं होती । मैं छिपकर बिताई जा रही अपनी ज़िंदगी को एक दिलचस्प साहसिक कारनामे के रूप में देखती हूँ, जिसमें ख़तरा है, रोमांस है और जिसकी हर असुविधा मेरी डायरी में कुछ दिलचस्प आयाम जोड़ती है। मैंने सोच लिया है कि मुझे बाक़ी लड़कियों से अलग ज़िंदगी बितानी है और बाद में एक सामान्य गृहिणी नहीं बनना है। मैं यहाँ जो अनुभव कर रही हूँ, वह एक मज़ेदार ज़िंदगी की अच्छी शुरुआत है, और यही कारण है, एकमात्र कारण है कि क्यों मुझे सबसे ख़तरनाक पलों के मज़ाकिया पहलू पर हँसना होता है।

मैं छोटी हूँ और मुझमें कई छिपे हुए गुण हैं; मैं छोटी व मज़बूत हूँ और एक बड़े कारनामे से गुज़रते हुए जी रही हूँ; मैं ठीक उसमें हूँ और पूरा दिन शिकायत करते नहीं बिता सकती, क्योंकि ऐसा करने पर मज़ा आना नामुमकिन है ! मेरे पास कई चीजें हैं: ख़ुशी, हँसमुख स्वभाव और ताक़त । हर दिन मुझे लगता है कि मैं परिपक्व हो रही हूँ, मुझे मुक्ति नज़दीक आती लग रही है। मैं प्रकृति की सुंदरता और अपने आसपास के लोगों की अच्छाई को महसूस करती हूँ। हर दिन मैं सोचती हूँ कि यह कितना लुभावना व मज़ेदार जोखिम है ! इस सबके होते हुए मैं निराश क्यों हो जाऊँ?

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

शुक्रवार, 5 मई, 1944

प्यारी किटी,

पापा मुझसे नाखुश हैं। रविवार को हुई हमारी बातचीत के बाद उन्हें लगा कि मैं हर शाम ऊपर जाना छोड़ दूँगी। वे इस तरह गले मिलने को पसंद नहीं करेंगे। मुझे वह शब्द पसंद नहीं है। उसके बारे में बात करना ही काफ़ी बुरा था, अब उन्हें मुझे बुरा क्यों महसूस करवाने की क्या ज़रूरत है ! आज मैं उनसे बात करूँगी। मारगोट ने मुझे कुछ अच्छी सलाह दी।

मैं यही सब कहना चाहूँगी:

मुझे लगता है कि आपको मुझसे स्पष्टीकरण चाहिए, पापा, तो मैं आपको वही देती हूँ। आप मुझसे निराश हैं, आपको मुझसे संयम की आशा थी, इसमें कोई शक नहीं कि आप चाहते हैं कि मैं किसी चौदह साल की लड़की तरह बर्ताव करूँ। लेकिन यहीं पर आप ग़लत हैं!

जुलाई, 1942 से हम यहाँ हैं ओर कुछ हफ़्ते पहले तक मेरे लिए कुछ भी आसान नहीं था। काश! आप जान पाते कि मैं रात को कितना रोती थी, मैं कितनी दुखी व मायूस थी, मैं कितना अकेला महसूस करती थी, तब आप समझेंगे कि मैं क्यों ऊपर जाना चाहती हूँ! मैं अब उस मोड़ पर पहुँच गई हूँ, जहाँ पर मुझे माँ या किसी और के सहारे की ज़रूरत नहीं है । यह रातोंरात नहीं हुआ। मैंने काफ़ी संघर्ष किया है और अभी जितना स्वावलंबी होने के लिए काफ़ी आँसू भी बहाए हैं। आप हँस सकते हैं और मेरी बात का विश्वास नहीं कर सकते, लेकिन मुझे परवाह नहीं है। मैं जानती हूँ कि मैं आज़ाद इंसान हूँ और मुझे नहीं लगता कि मुझे आपको अपने कामों की सफ़ाई देने की ज़रूरत है। मैं आपको सिर्फ़ इसलिए बता रही हूँ, क्योंकि मैं नहीं चाहती कि आपको लगे कि मैं आपकी पीठ पीछे कुछ कर रही हूँ। लेकिन मैं एक इंसान के प्रति जवाबदेह हूँ और वह मैं ख़ुद हूँ।

जब मैं परेशानियों से गुज़र रही थी, तो सबने, आपने भी जैसे आँख - कान बंद किए हुए थे और मेरी कोई मदद नहीं की। उसके उलट, मुझे झिड़कियाँ सुननी पड़ी कि मैं उतना क्यों बोलती हूँ। मैं शोर इसलिए मचाती थी, ताकि हर समय परेशान न रहूँ। मैं ज़रूरत से ज़्यादा आत्मविश्वासी इसलिए थी कि कोई मेरे भीतर की आवाज़ न सुन ले । पिछले डेढ़ साल, हर दिन मैं नाटक करती रही। मैंने कभी शिकायत नहीं की या अपना मुखौटा नहीं हटाया, वैसा कुछ भी नहीं किया, लेकिन अब ... अब जंग ख़त्म हुई। मैं जीत गई! मैं शरीर व दिमाग़ से स्वतंत्र हूँ। मुझे अब माँ की ज़रूरत नहीं रही और मैं उस संघर्ष से ज़्यादा ताक़तवर इंसान बनकर उभरी हूँ।

अब जबकि वह ख़त्म हो चुका है, अब जबकि मैं जानती हूँ कि मैं युद्ध जीत चुकी हूँ, मैं अपने रास्ते जाना चाहती हूँ, उस रास्ते पर जो मुझे सही लगता है। मुझे किसी चौदह साल की बच्ची तरह न देखें, क्योंकि इन सभी मुश्किलों ने मुझे ज़्यादा बड़ा बना दिया है; मैं अपने काम पर अफ़सोस नहीं करूँगी, मैं वैसा ही बर्ताव करूँगी, जो मुझे लगता है कि मुझे करना चाहिए।

आराम से मना करने से मैं ऊपर जाना बंद नहीं करूँगी। आपको या तो उसकी मनाही करनी होगी या फिर मुझ पर पूरा भरोसा करना होगा। आप जो चाहे करें, बस मुझे अकेला छोड़ दें!

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

शनिवार 6 मई, 1944

प्यारी किटी,

कल रात खाने से पहले मैंने अपनी चिट्ठी पापा की जेब में डाल दी। मारगोट के मुताबिक़ पापा ने उसे पढ़ा और काफ़ी परेशान रहे। (मैं ऊपर बर्तन धोने में लगी थी !) बेचारे पिम, मुझे पता होना चाहिए था कि इस तरह के पत्र का क्या असर हो सकता था। वे बहुत संवेदनशील हैं! मैंने तुरंत पीटर से कहा कि वह कोई और सवाल न पूछे या फिर कुछ और न कहे। पिम ने उस मामले में मुझे कुछ और नहीं कहा। क्या वे कहने वाले हैं?

यहाँ सब कुछ कमोबेश सामान्य है। हमें यान, मि. कुगलर और मि. क्लेमन द्वारा क़ीमतों व बाहर के लोगों के बारे में बताई गई बातों पर यक़ीन नहीं आ रहा; आधा पाउंड चाय की क़ीमत 350 गिल्डर्स, आधा पाउंड कॉफ़ी की क़ीमत 80 गिल्डर्स है, आधा पाउंड मक्खन 35 गिल्डर्स और एक अंडा 1.45 गिल्डर्स का है। एक औंस बल्गेरियाई तंबाकू के लिए लोग 14 गिल्डर्स दे रहे हैं! हर कोई काला बाज़ारी कर रहा है; हर छोटे-मोटे काम करने वाले के पास कुछ न कुछ पेश करने को है। बेकरी से सामान लाने वाले लड़के ने हमें रफ़ू करने वाली ऊन, उसका बस एक लच्छा 90 सेंट में लाकर दिया है। दूध वाले के पास राशन बुक्स हैं, मृतक क्रिया करने वाला चीज़ बेच रहा है। चोरी सेंधमारी, क़त्ल रोज़मर्रा की घटनाएँ हो गई हैं। पुलिस व रात के चौकीदार तक इस तरह के काम कर रहे हैं। हर कोई अपने पेट की आग बुझाना चाहता है और तनख़्वाह रोके जाने के कारण लोगों को धोखाधड़ी का सहारा लेना पड़ रहा है। पुलिस को हर रोज़ पंद्रह, सोलह, सत्रह वर्ष तथा उससे बड़ी लड़कियों के ग़ायब होने के कई मामलों की छानबीन करनी पड़ रही है।

मैं परी ऐलेन की अपनी कहानी को ख़त्म करना चाहती हूँ। मज़े के लिए, ताकि पापा को उनके जन्मदिन पर उसके सभी कॉपीराइट्स के साथ भेंट कर सकूँ।

बाद में मिलते हैं! (दरअसल, यह सही वाक्य नहीं है। इंग्लैंड से होने वाले जर्मन प्रसारण में वे हमेशा अंत में कहते हैं, 'ऑफ़ वीडरहॉरना' यानी अगली बार बात करने तक। तो मेरे ख़याल से मुझे कहना चाहिए, 'जब तक हम फिर लिखते हैं । ')

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

रविवार सुबह, 7 मई, 1944

प्यारी किटी,

कल दोपहर पापा औरे मेरे बीच लंबी बातचीत हुई। मैं ख़ूब रोई और वे भी बहुत रोए । किटी, तुम जानती हो कि उन्होंने मुझसे क्या कहा?

'अपनी ज़िंदगी में मुझे बहुत से पत्र मिले हैं, लेकिन कोई भी इतना चोट पहुँचाने वाला नहीं था। तुम्हें अपने माता-पिता से इतना प्यार मिला । तुम्हारे माता-पिता हमेशा तुम्हारी मदद के लिए तैयार रहे, जिन्होंने हमेशा तुम्हारी हिफ़ाज़त की, चाहे कुछ भी हो। तुम अपने कामों के लिए हमारे प्रति ज़िम्मेदार न होने की बात करती हो ! तुम्हें लगता है कि तुम्हारे साथ गलत हुआ है और तुम्हें तुम्हारे हाल पर छोड़ दिया गया था। नहीं, ऐन, तुमने हमारे साथ बहुत अन्याय किया है!'

'शायद तुम्हारा वह मतलब नहीं था, लेकिन तुमने लिखा तो वही था। नहीं, ऐन इस तरह हमने ऐसा कुछ नहीं किया, जिसके लिए हमें यह उलाहना सुनना पड़े!'

मैं बुरी तरह से नाकाम रही हूँ। अपनी पूरी जिंदगी में मैंने कोई इससे बुरी चीज़ नहीं की। मैंने अपने आँसुओं का इस्तेमाल दिखावे के लिए किया, ख़ुद को महत्त्वपूर्ण दिखाने के लिए किया, ताकि वे मेरी इज़्ज़त करें। यह ज़रूर है कि मुझे तकलीफ़ हुई है और माँ के बारे में मैंने जो कहा, वह सच है। लेकिन पिम पर इल्ज़ाम लगाना, जो कि इतने अच्छे रहे हैं और जिन्होंने मेरे सब कुछ किया है, नहीं वह तो बेरहमी वाली बात है।

यह अच्छी बात है कि किसी ने मुझे मेरी जगह दिखा दी है, मेरे घमंड को तोड़ दिया है, क्योंकि मैं बहुत दंभी हो गई थी । मिस ऐन जो भी करती हैं, ज़रूरी नहीं कि वह सही ही हो ! कोई भी, जो किसी प्यार करने वाले को जानबूझकर तकलीफ़ पहुँचाता हो, वह निंदनीय है, वह नीचों का नीच है!

सबसे ज़्यादा शर्म इस बात पर है, जिस तरह पापा ने मुझे माफ़ कर दिया है; उन्होंने कहा कि वे चिट्ठी को आग के हवाले कर देंगे, वे मेरे साथ बहुत अच्छी तरह पेश आ रहे हैं, जैसे कि उन्होंने ही कुछ ग़लत किया हो। ऐन, तुम्हें अब भी काफ़ी कुछ सीखना है। समय आ गया है कि तुम एक शुरुआत करो, न कि सबको नीचा दिखाओ और हमेशा उन पर आरोप लगाती रहो!

मैंने काफ़ी तकलीफें झेली हैं, लेकिन मेरी उम्र में किसने नहीं झेली होंगी? मैं नाटक कर रही थी और मुझे उसका पता तक नहीं था। मैंने अकेलेपन को महसूस किया है, लेकिन मैं कभी हताश नहीं रही ! पापा की तरह नहीं, जो एक बार सड़क पर चाकू लेकर निकल गए थे, ताकि वह परेशानी का अंत कर सकें। मैं कभी उस हद तक नहीं पहुँची।

मुझे ख़ुद पर शर्म आनी चाहिए और मुझे आ भी रही है। जो हो चुका, अब उसे बदला नहीं जा सकता, लेकिन उसे फिर से होने से तो बचाया जा सकता है। मैं फिर से शुरुआत करना चाहूँगी और उसमें मुश्किल भी नहीं होनी चाहिए, अब मेरे पास पीटर है। वह मेरी मदद के लिए मेरे साथ है, तो मैं कर सकती हूँ! मैं अब अकेली नहीं हूँ। वह मुझसे और मैं उसे प्यार करती हूँ, मेरे पास मेरी किताबें, मेरा लेखन और मेरी डायरी है। मैं उतनी बदसूरत नहीं हूँ या फिर उतनी बेवकूफ़ भी नहीं हूँ, मैं आशावादी हूँ और मैं अच्छा चरित्र विकसित करना चाहती हूँ!

हाँ, ऐन, तुम अच्छी तरह जानती थी कि तुम्हारा पत्र बेरहम व कुटिल था, लेकिन तुम्हें तो उस पर गर्व था! मैं पापा की मिसाल लेकर एक बार फिर ख़ुद को बेहतर बनाने की कोशिश करूँगी।

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

सोमवार 8 मई, 1944

प्यारी किटी,

क्या मैंने कभी तुम्हें अपने परिवार के बारे में कुछ बताया है? मुझे नहीं लगता है कि मैंने कुछ बताया है, तो इसलिए मैं बताती हूँ । पापा का जन्म फ़्रैंकफ़र्ट अम मान में बहुत धनी माता-पिता के यहाँ हुआ था। माइकल फ़्रैंक एक बैंक के मालिक थे और लखपति बने । एलिस स्टर्न के माता- पिता भी प्रतिष्ठित व संपन्न थे। माइकल फ़्रैंक पहले से अमीर नहीं थे, उन्होंने अपनी मेहनत से पैसा कमाया। अपनी जवानी के दिनों में पापा ने एक अमीर आदमी के बेटे की जिंदगी जी। हर हफ़्ते पार्टियाँ, नाच, दावतें, सुंदर लड़कियाँ, वॉल्ट्ज़, रात का खाना, एक बड़ा सा घर, आदि। दादाजी के मरने के बाद अधिकतर पैसा ख़त्म हो गया और पहले विश्व युद्ध व मुद्रास्फीति के बाद कुछ भी नहीं बचा। युद्ध होने तक फिर भी कुछ रईस रिश्तेदार बचे थे। तो पापा की परवरिश बहुत अच्छी तरह हुई थी और कल उन्हें हँसी आई, जब उन्हें पचपन साल की अपनी ज़िंदगी में पहली बार मेज़ पर बर्तन को खुरचना पड़ा।

माँ का परिवार बहुत धनी नहीं था, लेकिन फिर भी संपन्न था और निजी नाच, रात्रिभोजों व 250 मेहमानों वाली दावतों के बारे में सुनकर हमें आश्चर्य होता था।

हम अब तो अमीरी से बहुत दूर हैं, लेकिन मैंने अपनी सारी उम्मीदें युद्ध के बाद वाले समय पर लगाई हैं। मैं तुम्हें पक्के तौर पर कह सकती हूँ कि मैं माँ व मारगोट जैसी बुर्जुआ जिंदगी बिताना पसंद नहीं करूँगी। मैं पेरिस व लंदन में भाषाएँ सीखते व कला का इतिहास पढ़ते हुए साल बिताना चाहती हूँ। अब इसकी तुलना मारगोट से करो, जो फ़िलीस्तीन में शिशुओं का पालन-पोषण करना चाहती है। मैं बढ़िया पोशाकों व शानदार लोगों की कल्पना करती हूँ। जैसा कि मैं पहले भी कई बार तुम्हें बता चुकी हूँ, मैं दुनिया देखना चाहती हूँ और हर तरह की रोमांचक चीजें करना चाहती हूँ, पैसा होने में कोई बुराई नहीं है!

आज सुबह मीप ने हमें अपनी चचेरी बहन की सगाई की पार्टी के बारे में बताया, जिसमें वह शनिवार को गई थी। उसके रिश्तेदार धनी हैं और लड़के वाले का परिवार उनसे भी धनी है। मीप ने हमें कई तरह के व्यंजनों के बारे में बताया तो हमारे मुँह में पानी आ गया। मीटबॉल वाले सब्ज़ियों के सूप, चीज़, मांस के रोल, अंडे व भुने मांस से बने हॉदेवूज़, चीज़ रोल्स, गेटो थे, वाइन व सिगरेटें थीं और आप जितना चाहे खा सकते थे।

मीप ने दस श्नप्स पिए व तीन सिगरेंटें फूँकी, क्या यही संयम की हिमायती हमारी मीप थीं? अगर मीप ने इतना पिया तो उनके पति का क्या हाल रहा होगा? ज़ाहिर है कि पार्टी में हर कोई थोड़ा नशे में रहा होगा । मर्डर स्क्वॉड के दो अफ़सर भी थे, जिन्होंने जोड़े की तसवीर भी ली। तुम देख सकती हो कि मीप को हमेशा हमारा ख़याल रहता है, क्योंकि उसने उनके नाम व पते तुरंत लिखे, अगर कभी कुछ हो जाए और हमें अच्छे डच लोगों के संपर्क की ज़रूरत पड़े, तो वे काम आ सकें।

हमारे मुँह में इतना पानी आ रहा था कि पूछो मत! हम, जिन्हें नाश्ते में सिर्फ़ दो चम्मच दलिया मिला था और जो पूरी तरह से भूखे थे; जिन्हें हर रोज़ आधा पका हुआ पालक (विटामिनों के लिए!) और सड़े हुए आलू के सिवा कुछ और नहीं मिलता था, हम, जो अपने ख़ाली पेट को सिर्फ़ उबले लेटस, कच्चे लेटस, पालक, पालक और ज़्यादा पालक से भरते थे। हो सकता है कि हम पॉपेई जितने ताक़तवर बन जाएँ, लेकिन अब तक तो इसका कोई लक्षण नहीं दिखाई दे रहा !

अगर मीप हमें दावत में साथ ले जाती, तो बाक़ी मेहमानों के लिए तो रोल्स बचते ही नहीं। अगर हम वहाँ होते, तो हम हर दिखने वाली चीज़ यहाँ तक कि फ़र्नीचर को भी चट कर जाते । मैं तुम्हें बताऊँ कि हम तो जैसे उसके मुँह से शब्द निकाल रहे थे। हम उसके इर्दगिर्द ऐसे बैठे थे, मानो हमने अपनी सारी ज़िंदगी में स्वादिष्ट खाने या शिष्ट लोगों के बारे में कभी सुना भी न हो ! और ये हाल था एक जाने-माने लखपति की पोतियों का। दुनिया वाक़ई पागलपन भरी जगह है !

तुम्हारी, ऐन एम फ्रैंक

मंगलवार, 9 मई, 1944

प्यारी किटी,

मैंने परी ऐलन की अपनी कहानी पूरी कर ली है। मैंने बढ़िया काग़ज़ पर उसे लिख लिया है, लाल स्याही से सजाया है और सभी पन्नों को साथ सिल दिया है। सब कुछ प्यारा लग रहा है, लेकिन मैं यह नहीं जानती कि यह अपने आप में जन्मदिन का पर्याप्त उपहार है या नहीं। मारगोट व माँ ने कविताएँ लिखी हैं।

मि. कुगलर आज दोपहर ऊपर यह ख़बर लेकर आए कि सोमवार से हर दोपहर मिसेज़ ब्रोक्स दो घंटे ऑफ़िस में बिताएँगी। ज़रा सोचो! ऑफ़िस के लोग ऊपर नहीं आ पाएँगे, आलू नहीं पहुँच सकेंगे। बेप को रात का खाना नहीं मिलेगा, हम शौचालय का इस्तेमाल नहीं कर सकेंगे, हम हिल-डुल नहीं पाएँगे और बाक़ी कई तरह की असुविधाएँ होंगी । हमने उनसे छुटकारा पाने के कई तरीके सुझाए । मि. फ़ॉन डान का ख़याल था कि उनकी कॉफ़ी में विरेचक दवा मिलाने से शायद काम बन जाए। 'नहीं, ' मि. क्लेमन ने कहा, 'ऐसा न करें, वरना हम उन्हें कभी भी बॉंग यानी शौचालय से निकाल नहीं पाएँगे!'

हँसी की लहर दौड़ पड़ी। 'बॉग?' मिसेज़ फ़ॉन डान ने पूछा। 'उसका क्या मतलब है?' उन्हें जवाब दिया गया। 'क्या इस शब्द का इस्तेमाल करना सही है?' उन्होंने बहुत मासूमियत के साथ पूछा । 'ज़रा सोचो, ' बेप खिलखिलाते हुए बोली, 'तुम बेयनकॉर्फ़ में ख़रीदार कर रहे हो और बॉग जाने का रास्ता पूछते हो। उन्हें पता भी नहीं चलेगा कि तुम किस बारे में बात कर रहे हो!'

अगर इस अभिव्यक्ति का प्रयोग करूँ, तो दुसे अभी 'बॉग' पर बैठे हैं, हर रोज़ ठीक साढ़े बारह बजे । आज दोपहर मैंने बेधड़क होकर गुलाबी काग़ज़ का एक टुकड़ा लेकर उस पर लिखा:

मि. दुसे की शौचालय समय-सारणी

सुबह 7:15 से 7:30

दोपहर 1 बजे

बाक़ी समय, जब आवश्यकता हो!

जब वे अंदर थे, तो मैंने शौचालय के हरे दरवाज़े पर उसे लगा दिया। मुझे यह भी जोड़ देना चाहिए था, 'हदें पार करने वाले को क़ैद होगी!'

मि. फ़ॉन डान का सबसे नया चुटकुलाः

आदम व हव्वा के बारे में बाइबल में पढ़कर तेरह साल के एक लड़के ने अपने पिता से पूछा, 'पापा, मुझे बताइए कि मैं कैसे पैदा हुआ ?'

'देखो,' उसके पिता ने जवाब दिया, 'एक सारस ने तुम्हें सागर से उठाया, माँ के बिस्तर पर रखा और उनकी टाँग पर काटा, इतनी ज़ोर से कि उन्हें हफ़्ते भर बिस्तर पर रहना पड़ा।'

इस जवाब से पूरी तरह संतुष्ट न होने पर लड़का अपनी माँ के पास गया और पूछा, 'माँ, मुझे बताइए कि आप कैसे पैदा हुई और मैं कैसे पैदा हुआ ?'

उसकी माँ ने भी उसे वही कहानी सुनाई। आख़िरकार सही बात सुनने की उम्मीद में वह अपने नाना के पास गया, 'नानाजी, मुझे बताइए कि आप कैसे पैदा हुए और आपकी बेटी कैसे पैदा हुई ?' तीसरी बार उसे वही कहानी सुनाई गई।

रात को उसने अपनी डायरी में लिखा, 'काफ़ी छानबीन के बाद मैं इस नतीजे पर पहुँचा हूँ कि हमारे परिवार में पिछली तीन पीढ़ियों से कोई यौन संसर्ग नहीं हुआ !'

मुझे अब भी काफ़ी काम करना है; तीन बज चुके हैं।

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

पुनःश्च । मेरे ख़याल से मैंने तुम्हें एक नई सफ़ाई कर्मचारी के बारे में बताया है। मैं यह बताना चाहती हूँ कि वे शादीशुदा हैं, साठ साल की हैं और उन्हें ऊँचा सुनाई देता है। यह इस लिहाज़ से बहुत सुविधाजनक है कि छिपकर रहने वाले आठ लोग कितनी आवाज़ कर सकते हैं।

ओह, किट, इतना प्यारा मौसम है। काश, मैं बाहर जा पाती!

बुधवार, 10 मई, 1944

प्यारी किटी,

कल दोपहर में जब हम अटारी में बैठकर अपना फ्रेंच का काम कर रहे थे, तो अचानक मुझे अपने पीछे पानी छिड़कने की आवाज़ सुनाई दी। मैंने पीटर से पूछा कि वह क्या हो सकता है। जवाब देने के लिए रुकने के बजाय वह ऊपर पहुँचा और मूशी को सही जगह पर धकेलने लगा, जो अपने गीले मलमूत्र के डिब्बे की बग़ल में बैठी हुई थी। उसके बाद चीखने- चिल्लाने की आवाज़ें आने लगी और फिर मूशी, जो कि तब तक मूत्र त्याग कर चुकी थी, सीधे नीचे भाग गई। अपने डिब्बे जैसी किसी चीज़ की तलाश में मूशी को लकड़ी की छीलन का एक ढेर मिल गया, जो फ़र्श की दरार के ठीक ऊपर था। उसका वहाँ इकट्ठा हुआ मूत्र तुरंत अटारी पर टपकने लगा और क़िस्मत देखो कि आलू के पीपे की बग़ल में गिरा । छत टपक रही थी और क्योंकि अटारी के फ़र्श पर काफ़ी दरारें थीं, तो छोटी- छोटी पीली बूँदें छत से होकर खाने की मेज़ पर जमा चीज़ों व किताबों के बीच गिरने लगीं। मैं हँसते-हँसते दोहरी हो गई, वह इतना मज़ेदार नज़ारा था । मूशी कुर्सी के नीचे दुबकी थी और पानी, ब्लीच पाउडर और कपड़ा लिए हुए पीटर था व मि. फ़ॉन डान सबको शांत करा रहे थे। कमरे को जल्दी ही ठीक कर लिया गया, लेकिन यह जाना-माना तथ्य है कि बिल्ली के मूत्र से भयंकर दुर्गंध आती है। आलुओं ने यही साबित किया और लकड़ी की छीलन ने भी। बाद में पापा ने छीलन को बाल्टी में भरा और उसे जलाने के लिए नीचे ले आए। बेचारी मूशी ! उसे कैसे पता कि उसके डिब्बे के लिए ईंधन लाना नामुमकिन है?

ऐन

बृहस्पतिवार, 11 मई, 1944

प्यारी किटी,

तुम्हें हँसाने के लिए एक नया चित्रण:

पीटर के बाल काटे जाने थे और हमेशा की तरह उसकी माँ को यह काम करना था। सात बजकर पच्चीस मिनट पर पीटर अपने कमरे में घुस गया और फिर साढ़े सात बजे कमरे से बाहर निकला, उसने तैराकी के लिए पहने जाने वाला नीला जाँघिया और टेनिस खेलने के लिए पहने जाने वाले जूते पहने थे।

'क्या आप आ रही हैं?' उसने अपनी माँ ने पूछा।

‘हाँ, मैं बस एक मिनट में आई, लेकिन मुझे कैंची नहीं मिल रही!'

पीटर ने तलाश में उनकी मदद की और उनकी प्रसाधन सामग्री के दराज़ को छान मारा। 'अब इतनी अव्यवस्था मत फैलाओ, पीटर, उसकी माँ बड़बड़ाई ।

मुझे पीटर का जवाब नहीं सुनाई दिया, लेकिन वह ज़रूर गुस्ताख़ी भरा होगा, क्योंकि उन्होंने पीटर की बाँह पर चोट मारी। उसने उसका जवाब वैसे ही दिया, उसकी माँ ने पूरी ताक़त लगाकर उसे मुक्का मारा और पीटर ने झूठमूठ के डर के भाव के साथ अपनी बाँह खींच ली। 'आ जाओ, लड़की!'

मिसेज़ फ़ॉन डान अपनी जगह पर खड़ी रह गईं। पीटर ने उनकी कलाइयाँ पकड़ी और उन्हें पूरे कमरे में घुमा दिया। वे हँसी, रोईं, उसे डाँटा, हाथ-पैर चलाए, लेकिन कुछ भी नहीं हुआ। पीटर अपनी क़ैदी को अटारी की सीढ़ियों तक ले गया, जहाँ उसे उन्हें छोड़ना पड़ा। मिसेज़ फ़ॉन डी कमरे में वापस आईं और एक गहरी आह निकालकर कुर्सी पर बैठ गईं।

'माँ का अपहरण, ' मैंने मज़ाक में कहा।

'हाँ, लेकिन उसने मुझे चोट पहुँचाई।'

मैंने उनके पास गई और उनकी गर्म, लाल कलाइयों को पानी से ठंडा किया। पीटर सीढ़ियों के पास था और फिर से अधीर हो रहा था, वह शेर को पालतू बनाने वाले की तरह बेल्ट अपने हाथ में लिए कमरे में आया। मिसेज़ फ़ॉन डी अपनी जगह से नहीं हिली और डेस्क के पास अपना रुमाल खोजती रहीं । 'तुम्हें पहले माफ़ी माँगनी होगी। '

'ठीक है, मैं माफ़ी माँगता हूँ, लेकिन इसका कारण यह है कि अगर मैंने माफ़ी नहीं माँगी, तो हम आधी रात तक यहीं रहेंगे।'

मिसेज़ फ़ॉन डी को भी हँसना पड़ा। वे उठकर दरवाज़े की तरफ़ गईं, जहाँ पर उन्हें लगा कि उन्हें हमें (यानी पापा, माँ और मुझे; हम लोग काम में व्यस्त थे ।) 'यह घर पर ऐसा नहीं था, उन्होंने कहा 'मैं उसे इतनी ज़ोर से बेल्ट से मारती कि वह सीधे सीढ़ियों पर गिरता ! वह कभी इतना ढीठ नहीं रहा। यह पहली बार नहीं है कि इसने सज़ा पाने का काम किया है । आधुनिक बच्चों की आधुनिक परवरिश का यही नतीजा होता है। मैं अपनी माँ को कभी इस तरह नहीं पकड़ सकती थी । मि. फ़्रैंक, क्या आपने कभी अपनी माँ से ऐसा बर्ताव किया था?' वे बहुत नाराज़ थीं, आगे-पीछे घूमते हुए उनके मन में जो आ रहा था, वे कह रही थीं और वे तब तक ऊपर नहीं गई थीं । आख़िरकार वे बाहर निकलीं ।

पाँच मिनट से भी कम समय में वे वापस आईं, उनके गाल फूले हुए थे और आकर उन्होंने अपना ऐप्रन कुर्सी पर फेंक दिया। मैंने जब उनसे पूछा कि उनका काम हो गया, तो उनका कहना था कि वे नीचे जा रही हैं। वे तूफ़ान की तरह सीढ़ियों से उतरीं, शायद वे सीधे अपने पुत्ती की बाँहों में जाकर गिरीं।

आठ बजे तक वे ऊपर नहीं आईं, उसके बाद अपने पति के साथ आईं। पीटर को खींचकर निकाला गया, बेरहमी से डाँटा गया और उस पर गालियों की बौछार की गई: बदतमीज़ नाकारा बिगड़ा हुआ लड़का, ख़राब मिसाल, ऐन ऐसी है, मारगोट वैसी है, बाक़ी मैं सुन नहीं सकी। आज फिर से सब कुछ शांत हो गया लगता है!

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

पुनःश्च । मंगलवार और बुधवार को हमारी प्रिय महारानी ने देश को संबोधित किया। वे छुट्टी पर जा रही हैं, ताकि नीदरलैंड लौटने पर उनकी सेहत अच्छी रहे। उन्होंने 'जल्दी ही जब मैं हॉलैंड लौटूंगी', 'तेज़ी से मुक्ति,' 'पराक्रम' और 'भारी बोझ' जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया।

उसके बाद प्रधानमंत्री शेरब्रूडी का भाषण हुआ। उनकी आवाज़ किसी छोटे बच्चे की तरह है, जिसे सुनते ही माँ ने कहा, 'ऊह ।' एक पादरी, जिन्होंने ज़रूर मि. ईडल से आवाज़ उधार ली होगी, ने बात समाप्त करते हुए कहा कि ईश्वर सभी यहूदियों की रक्षा करे, जो यातना शिविरों में, जेल में हैं और उन सबकी भी, जो जर्मनी में काम कर रहे हैं।

बृहस्पतिवार, 11 मई, 1944

प्यारी किटी,

मैंने अपने कबाड़ के डिब्बे को, जिसमें मेरा फ़ाउंटेन पेन भी शामिल है, ऊपर छोड़ दिया है और मुझे बड़े लोगों की झपकी (ढाई बजे तक) में रुकावट डालने की अनुमति नहीं है, इसलिए तुम्हें पेंसिल से लिखी चिट्ठी से काम चलाना पड़ेगा ।

अब चाहे यह सुनकर तुम्हें कितना भी अजीब लगे, लेकिन इस पल मैं बहुत व्यस्त हूँ। मेरे पास अपने काम को पूरा करने के लिए पर्याप्त समय नहीं है। क्या तुम्हें बताऊँ कि मेरे पास करने का क्या कुछ है? कल तक मुझे गैलीलियो गैलीलि की जीवनी का पहला खंड पूरा करना है, क्योंकि उसे पुस्तकालय को लौटाना है। मैंने कल उसे पढ़ना शुरू किया और 320 पन्नों में से मैं 220 तक पहुँच गई हूँ, तो मैं उसे पूरा कर ही लूँगी। अगले हफ़्ते मुझे पैलेस्टाइन ऐट द क्रॉसरोड्स और गैलीलि का दूसरा खंड पढ़ना है। उसके अलावा मैंने सम्राट चार्ल्स की जीवनी के पहले खंड को कल पूरा पढ़ लिया था और अब भी मुझे अपने जमा किए गए कई वंशावली चार्ट्स व दर्ज की गई जानकारी पर काम करना है। मुझे अपनी कई किताबों से लिए गए विदेशी शब्दों के तीन पन्नों को लिखना, याद करना और उन्हें ज़ोर-ज़ोर से पढ़ना है। फिर मुझे अपने बिखरे हुए फ़िल्मी सितारों को तरतीब से लगाना है, लेकिन क्योंकि उस काम में कई दिन लग सकते हैं और प्रोफ़ेसर ऐन तो काम के समंदर में गले तक डूबी हैं, तो उन्हें कुछ और दिन बेतरतीबी में ही बिताने होंगे उसके बाद थिसॉइस, पीलियस, ऑफ़ियस, जेसन और हरक्यूलिस हैं, जो सुलझने का इंतज़ार कर रहे हैं, क्योंकि उनके कारनामे मेरे दिमाग़ में आड़े-तिरछे घूम रहे हैं, जैसे किसी पोशाक में कई रंग के धागों का ताना-बाना होता है। मायरॉन और फ़िडियस पर भी तुरंत ध्यान दिए जाने की ज़रूरत है, वरना मैं पूरी तरह से भूल जाऊँगी कि पूरी तसवीर में वे कहाँ सही बैठते हैं। यही बात सेवन ईयर्स वॉर और नाइन ईयर्स वॉर पर भी लागू होती है। अब सब कुछ घालमेल हो रहा है। मेरी जैसी याददाश्त के साथ और क्या हो सकता है! ज़रा सोचो कि अस्सी साल की होने पर मैं कितनी भुलक्कड़ हो जाऊँगी !

एक और बात, बाइबल से जुड़ी नहाती हुई सुज़ाना की कहानी तक पहुँचने में मुझे कितना समय लगेगा? इसके अलावा सोडॉम और गमोरा से उनका क्या मतलब है? कितना कुछ सीखने और जानने को है। इस बीच, मैंने शार्लोट और पैलेटिन को मुश्किल हालात में छोड़ दिया है।

तुम देख सकती हो, किटी कि मैं कितनी अधिक व्यस्त हूँ !

अब कुछ और। तुम तो काफ़ी समय से जानती हो कि मेरी सबसे बड़ी इच्छा पत्रकार बनने और बाद में एक मशहूर लेखिका बनने की है। हमें इंतज़ार करना होगा और देखना होगा कि ये भव्य भ्रम कभी सच होंगे भी या नहीं, लेकिन फ़िलहाल अब तक मेरे पास विषयों की कोई कमी नहीं है। वैसे भी युद्ध समाप्त हो जाने के बाद मैं सीक्रेट अनेक्स नामक एक किताब छपवाना चाहूँगी। यह देखना बाक़ी है कि मैं सफल होती हूँ या नहीं, लेकिन मेरी डायरी उसकी बुनियाद का काम करेगी।

मुझे 'केडी की जिंदगी' पूरी करनी है। मैंने कहानी का बाक़ी हिस्सा सोच लिया है। सैनेटोरियम में ठीक हो जाने के बाद केडी घर वापस जाती है और हान्स को लिखना जारी रखती है। 1941 का समय है और उसे यह पता लगाने में देर नहीं लगती कि हान्स नाज़ियों से सहानुभूति रखता है और चूँकि केडी यहूदियों और अपनी दोस्त मरियाना की हालत को लेकर बहुत चिंतित होती है, वे दोनों दूर होने लगते हैं। वे मिलते हैं और फिर साथ आ जाते हैं, लेकिन उनके बीच संबंध टूट जाता है, जब हान्स किसी और लड़की के साथ घुलने-मिलने लगता है। केडी बिखर जाती है, लेकिन अच्छी नौकरी की चाह रखने के कारण वह नर्सिंग की पढ़ाई करती है। पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने पिता के दोस्त के कहने पर वह स्विट्ज़रलैंड में एक टीबी सैनेटोरियम में नर्स के रूप में काम करने लगती है। अपनी पहली छुट्टी के दौरान वह लेक कोमो जाती है, जहाँ उसकी मुलाक़ात हान्स से होती है। वह उसे बताता है कि दो साल पहले उसने केडी के बाद ज़िदंगी में आई लड़की के साथ शादी कर ली, लेकिन विषाद में आकर उसकी पत्नी ने आत्महत्या कर ली। अब केडी को देखने के बाद उसे महसूस हो रहा है कि वह केडी को कितना चाहता है और एक बार फिर वह शादी का प्रस्ताव रखता है। केडी मना कर देती है, जबकि इतना कुछ होने के बावजूद वह उसे चाहती है। लेकिन उसका स्वाभिमान उसे रोक देता है। हान्स चला जाता है और कई साल बाद केडी को पता चलता है कि वह इंग्लैंड में है, जहाँ वह अपनी बीमारी से लड़ रहा होता है।

सत्ताईस साल की उम्र में केडी एक संपन्न व्यक्ति साइमन से शादी करती है। वह उसे चाहने लगती है, लेकिन उतना नहीं, जितना कि वह हान्स को चाहती थी। उसकी दो बेटियाँ व एक बेटा है, लिलियन, ज्यूडिथ और निको। साइमन और वह एक साथ ख़ुश हैं, लेकिन उसके दिल-दिमाग़ में कहीं हान्स हमेशा मौजूद रहता है। एक रात वह उसका सपना देखती है और उसे हमेशा के लिए विदा कह देती है।

यह भावनात्मक बकवास नहीं है: यह पापा के जीवन पर आधारित है।

तुम्हारी, ऐन एम फ्रैंक

शनिवार, 13 मई, 1944

मेरी प्यारी किटी,

कल पापा का जन्मदिन और मम्मी-पापा की शादी की उन्नीसवीं सालगिरह थी, महिला सफ़ाईकर्मी नहीं आई थी... सूरज ऐसे चमक रहा था, जैसे 1944 के साल में पहले कभी न चमका हो। हमारे चेस्टनट पेड़ पर बहार आई हुई है। वह पत्तियों से भरा है और पिछले साल के मुक़ाबले ज़्यादा ख़ूबसूरत लग रहा है।

पापा को मि. कुगलर से लिन्नैउस की जीवनी, मि. कुगलर से प्रकृति पर एक किताब, दुसे से ऐम्स्टर्डम की नहरों पर एक पुस्तक मिली। फ़ॉन डान परिवार ने उन्हें एक बड़ा सा बॉक्स दिया (उसे इतनी अच्छी तरह लपेटा गया था कि किसी पेशेवर इंसान का काम है), उसमें तीन अंडे, एक बियर की बोतल, योगर्ट का जार और एक हरे रंग की टाई थी। उसके मुक़ाबले हमारा शीरे का जार बहुत मामूली लग रहा था । मीप और बेप के कारनेशन्स के मुक़ाबले मेरे गुलाबों की ख़ुशबू बहुत अच्छी थी। उनके नाज़ - नखरे उठाए गए। सीमोन्स की बेकरी से पेटिफ़र (छोटे आकार के मिष्ठान्न) आए, बहुत स्वादिष्ट थे! पापा ने हमें स्पाइस केक खिलाया, पुरुषों को बियर मिली और महिलाओं को योगर्ट । सब कुछ बहुत शानदार था !

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

मंगलवार 16 मई, 1944

मेरी प्यारी किटी,

कुछ अलग करते हुए (कई दिनों से हमने ऐसा नहीं किया) मैं मि. और मिसेज़ फ़ॉन डी के बीच कल रात हुई छोटी सी बातचीत का वर्णन कर रही हूँ:

मिसेज़ फ़ॉन डी: 'जर्मनों के पास अटलांटिक वॉल को मज़बूत करने के लिए काफ़ी वक़्त है और वे ब्रिटिश को रोकने के लिए कुछ न कुछ ज़रूर करेंगे। ग़ज़ब की बात है कि जर्मन कितने ताक़तवर हैं!'

मि. फ़ॉन डी: 'हाँ, वह तो है!'

मिसेज़ फ़ॉन डी: 'हाँ है!'

मि. फ़ॉन डी: 'वे इतने शक्तिशाली हैं कि आख़िर में लड़ाई वही जीतेंगे, तुम यही कहना चाहती हो?'

मिसेज़ फ़ॉन डी: 'हो सकता है। मैं आश्वस्त नहीं हूँ कि वे नही जीतेंगे। ' मि. फ़ॉन डी: ‘मैं तो उसका जवाब नहीं दूँगा।'

मिसेज़ फ़ॉन डी: 'तुम हमेशा आख़िर में ऐसा ही करते हो। हर बार भावनाओं में बह जाते हो।

मि. फ़ॉन डी: 'नहीं, मैं ऐसा नहीं करता। मैं हमेशा अपने जवाबों को न्यूनतम रखता हूँ।'

मिसेज़ फ़ॉन डी: 'लेकिन तुम्हारे पास हमेशा जवाब होता है और तुम्हें हमेशा सही होना होता है! तुम्हारे पूर्वानुमान शायद ही कभी सच होते हों!'

मि. फ़ॉन डी : 'अब तक वे हुए हैं। '

मिसेज़ फ़ॉन डी: 'नहीं, बिलकुल नहीं हुए हैं। तुमने कहा था कि चढ़ाई पिछले साल शुरू हो जाएगी, फ़िनलैंड को तो अब तक युद्ध से बाहर हो जाना चाहिए था, इटली के अभियान को तो पिछली सर्दी में ख़त्म हो जाना चाहिए था और रूसियों को तो अब तक लेमबर्ग पर कब्ज़ा कर लेना चाहिए था। मुझे तुम्हारे पूर्वानुमानों से ज़्यादा उम्मीद नहीं रहती । '

मि. फ़ॉन डी (उछलकर खड़े होते हुए): 'तुम अपना मुँह बंद क्यों नहीं करतीं? मैं तुम्हें दिखा दूँगा कि कौन सही है; किसी दिन तुम मुझे ताने मारते-मारते थक जाओगी। मैं अब एक मिनट और तुम्हारी शिकायतें बर्दाश्त नहीं कर सकता। देखना, एक दिन तुम्हें अपनी बातें वापस लेनी होंगी !'

(पहला अंक समाप्त। )

दरअसल, मैं अपनी हँसी नहीं रोक पाई। माँ भी नहीं और यहाँ तक कि पीटर भी अपनी हँसी रोकने के लिए अपने होंठ काट रहा था। ये बेवकूफ़ बड़े लोग । युवा पीढ़ी पर इतनी टिप्पणियाँ करने से पहले उन्हें कुछ चीजें ख़ुद सीखनी चाहिए!

शुक्रवार से हम अपनी खिड़कियाँ रात को फिर से खोलने लगे हैं।

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

हमारे अनेक्स परिवार की दिलचस्पी किसमें हैं

(पाठ्यक्रमों व पठन सामग्री से जुड़ा एक सुनियोजित सर्वेक्षण)

मि. फ़ॉन डान कोई पाठ्यक्रम नहीं; नॉर एनसाइक्लोपीडिया और लेक्सिकॉन में कई चीजें खोजते हैं; जासूसी कहानियाँ, चिकित्सा किताबें, रोमांचक या घिसी-पिटी प्रेम कहानियाँ पढ़ना पसंद करते हैं।

मिसेज़ फ़ॉन डान: अंग्रेज़ी में पत्राचार पाठ्यक्रम; जीवनी पर आधारित उपन्यास और कभी-कभार अन्य प्रकार के उपन्यास पढ़ना पसंद करती हैं।

मि. फ़्रैंक: अंग्रेज़ी (डिकन्स) व थोड़ी लैटिन सीख रहे हैं; कभी उपन्यास नहीं पढ़े, लेकिन लोगों व जगहों के गंभीर, बल्कि शुष्क विवरण पसंद करते हैं।

मिसेज़ फ़्रैंक: अंग्रेज़ी में पत्राचार पाठ्यक्रम; जासूसी कहानियों के अलावा सब कुछ पढ़ती हैं।

मि. दुसे: अंग्रेज़ी, स्पैनिश और डच सीख रहे हैं, लेकिन उसका कोई उल्लेखनीय नतीजा दिखाई नहीं देता; सब कुछ पढ़ते हैं; बहुसंख्यक लोगों की राय के साथ चलते हैं।

पीटर फ़ॉन डान: अंग्रेज़ी, फ्रेंच (पत्राचार पाठ्यक्रम) सीख रहा है, डच, अंग्रेज़ी व जर्मन में शॉर्टहैंड, अंग्रेज़ी में वाणिज्यिक पत्रचार, लकड़ी का काम, अर्थशास्त्र व कभी-कभार गणित; शायद ही कभी पढ़ता है, कभी- कभार भूगोल ।

मारगोट फ़्रैंक: अंग्रेज़ी, फ्रेंच व लैटिन में पत्राचार पाठ्यक्रम, अंग्रेज़ी, जर्मन व डच में शॉर्टहैंड, त्रिकोणिमिति, ज्यामिति, यांत्रिकी, भौतिकी, रसायन शास्त्र, बीजगणित, अंग्रेज़ी साहित्य, फ्रेंच साहित्य, जर्मन साहित्य, डच साहित्य, बहीखाता लिखना, भूगोल, आधुनिक इतिहास, जीव विज्ञान, अर्थशास्त्र; सब कुछ पढ़ती है, धर्म व चिकित्सा को प्राथमिकता देती है।

ऐन फ्रैंक: अंग्रेज़ी, जर्मन व डच में शॉर्टहैंड, ज्यामिति, बीजगणित, इतिहास, भूगोल, कला इतिहास, माइथॉलोजी, जीव विज्ञान, बाइबल इतिहास, डच साहित्य; इतिहास व जीवनी पढ़ना पसंद है, चाहे वे नीरस हों या फिर रोमांचक (कभी-कभार उपन्यास और हल्की-फुल्की किताबें ) ।

शुक्रवार, 19 मई, 1944

प्यारी किटी,

कल मुझे बहुत गंदा लगा । उल्टी ( वह भी मुझे !), सिरदर्द, पेटदर्द और बाक़ी जिस चीज़ की भी तुम कल्पना कर सकती हो। आज मैं बेहतर महसूस कर रही हूँ। मैं भूखी हूँ, लेकिन मेरे ख़याल से मैं रात के खाने के लिए तैयार ब्राउन बीन्स नहीं खाऊँगी।

मेरे व पीटर के बीच सब कुछ सही चल रहा है। बेचारे लड़के को मेरे मुक़ाबले कोमलता की बहुत ज़्यादा ज़रूरत है। रात का चुंबन पाते हुए वह अब भी शर्माता है और फिर एक बार और चाहता है। क्या मैंने बॉश की जगह ले ली है? मुझे फ़र्क नहीं पड़ता। वह यह जानकर ही बहुत ख़ुश है कि कोई उसे प्यार करता है।

अपनी कठिन विजय के बाद मैंने ख़ुद को स्थिति से थोड़ा अलग कर लिया है, लेकिन तुम यह मत समझना कि मेरा प्यार ठंडा पड़ गया है। पीटर बहुत प्यारा है, लेकिन मैंने अपने अंदरूनी रूप का दरवाज़ा बंद कर दिया है; अगर कभी वह उस ताले का तोड़ना चाहे, तो उसे ज़्यादा कोशिश करनी होगी!

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

शनिवार, 20 मई, 1944

प्यारी किटी,

कल रात जब मैं अटारी से नीचे आई, तो मैंने गौर किया कि जैसे ही मैं कमरे में पहुँची, तो कारनेशन्स का गुलदान गिरा हुआ था। माँ नीचे झुककर अपने हाथों से पानी साफ़ कर रही थीं ओर मारगोट फ़र्श से मेरे काग़ज़ों को उठा रही थी। 'क्या हुआ ?' मैंने अनिष्ट की आशंका में बेचैनी से पूछा और उनके जवाब देने से पहले मैंने कमरे में हुए नुक़सान का जायज़ा ले लिया। मेरा वंशवृक्ष का पूरा फ़ोल्डर, मेरी अभ्यास पुस्तिकाएँ, मेरी पाठ्यपुस्तकें, सब कुछ पानी में था । मैं रोने को हो आई और इतनी परेशान हो गई कि मैंने जर्मन में बोलना शुरू कर दिया। मुझे अब एक शब्द भी याद नहीं, लेकिन मारगोट के मुताबिक़ मैंने बेहिसाब नुक़सान, भयानक, अपूरणीय क्षति और कई अन्य शब्द कहें पापा की हँसी छूट गई और माँ व मारगोट भी उनके साथ शामिल हो गए, लेकिन मुझे रोने का मन हुआ क्योंकि मेरा पूरा काम व विस्तृत नोट्स बरबाद हो गए थे।

मैंने नज़दीक से देखा, तो पाया कि ख़ुशक़िस्मती से 'बेहिसाब नुक़सान' इतना बुरा नहीं था, जितनी कि मैंने अपेक्षा की थी। मैंने आपस में चिपके पन्नों को सावधानी से अलग किया और फिर उन्हें कपड़े सुखाने वाले तार पर सूखने के लिए टाँग दिया। वह नज़ारा इतना मज़ेदार था कि मुझे भी हँसना पड़ा। मारिया द मेदची, चार्ल्स V, ऑरेंज के विलियम और मेरी ऑन्तोयनेत एक साथ सूख रहे थे।

'यह जातिगत शुद्धता के विपरीत है,' मि. फ़ॉन डान ने मज़ाक किया।

अपने काग़ज़ पीटर को सौंपकर मैं वापस नीचे चली गई।

'कौन सी किताबें ख़राब हुई हैं, ' मैंने मारगोट से पूछा जो, उन्हें देख रही थी । 'बीजगणित' मारगोट ने कहा। लेकिन क़िस्मत देखो कि मेरी बीजगणित किताब पूरी तरह ख़राब नहीं हुई थी । मैं तो चाहती थी कि वह सीधे गुलदान में गिरे। मुझे कोई किताब कभी उतनी बुरी नहीं लगी, जितनी कि वह लगती थी। आवरण के अंदर के पन्ने पर कम से बीस लड़कियों के नाम लिखे थे, जिन्होंने मुझसे पहले यह किताब ली थी। वह पुरानी, पीली, विभिन्न लिखावटों से भरी थी, जिसमें शब्द काटे हुए थे और कई तरह के सुधार किए गए थे। अगली बार जब मैं बुरे मूड में हुई तो मैं उसके टुकड़े कर दूँगी!

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

सोमवार, 22 मई, 1944

प्यारी किटी,

20 मई को पापा शर्त हार गए और उन्हें मिसेज़ फ़ॉन डान को योगर्ट के पाँच जार देने पड़े: हमला अब तक शुरू नहीं हुआ था। मैं यह कह सकती हूँ कि सारा ऐम्स्टर्डम, समूचा हॉलैंड, बल्कि यूरोप का पूरा पश्चिमी तट, स्पेन तक, सभी रोज़ हमले की बात, उस पर विवाद कर रहे थे, शर्त लगा रहे थे और... उम्मीद कर रहे थे।

यह असमंजस उत्तेजना के चरम पर पहुँच गया है; जिन्हें हम 'अच्छा' डच समझते हैं, ज़रूरी नहीं कि उन सबने ब्रिटिशों में अपना विश्वास बनाए रखा हो और न ही हर कोई यह जो यह ब्रिटिश दिखावा कोई कुशल कूटनीतिक कदम है। लोग महान कृत्यों की अपेक्षा करते हैं- महान, वीरतापूर्ण कार्य ।

कोई भी बहुत दूर तक नहीं देख सकता, किसी ने भी इस तथ्य पर विचार नहीं किया कि ब्रिटिश अपने देश के लिए लड़ रहे हैं; हर कोई सोचता है कि यह इंग्लैंड का फ़र्ज़ है कि वह जितनी जल्दी हो सके, हॉलैंड को बचाए । ब्रिटिश की हमारे प्रति क्या बाध्यता है? डच लोगों ने ऐसा क्या किया है कि वे किसी उदार सहायता की अपेक्षा कर रहे हैं? डच लोग ग़लत समझ रहे हैं। अपने दिखावे के बावजूद यह साफ़ है कि युद्ध के लिए ब्रिटिश को उन छोटे-बड़े देशों से अधिक दोषी नहीं माना जा सकता, जिन पर जर्मनी का कब्ज़ा है। ब्रिटिश भी अपनी तरफ़ से कोई सफ़ाई नहीं देने वाले; सच है कि जब जर्मनी खुद को फिर से हथियारबंद कर रहा था, तो वे सो रहे थे, लेकिन उनके साथ-साथ जर्मनी की सीमा से लगे अन्य देश भी सो रहे थे। ब्रिटेन व बाक़ी दुनिया को पता चल चुका है कि शुतुरमुर्ग की तरह रेत में सिर गाड़ने से काम नहीं होता, अब उनमें से हरेक, ख़ासकर इंग्लैंड को शुतुरमुर्ग की अपनी नीति का भारी ख़ामियाजा भुगतना पड़ रहा है।

कोई भी देश अपने लोगों का बलिदान बिना किसी कारण नहीं करता और दूसरे के हित में तो बिलकुल भी नहीं और ब्रिटेन भी इसका अपवाद नहीं है। हमला होगा, मुक्ति व स्वतंत्रता भी किसी दिन आएगी; फिर भी कब्ज़े के क्षेत्र नहीं, बल्कि ब्रिटेन उस पल को चुनेगा ।

यह बात सुनकर बहुत दुख व निराशा हुई है कि कई लोगों ने हम यहूदियों के प्रति अपना रवैया बदल दिया है। हमें बताया गया है कि कई ऐसी जगहों में यहूदी विरोधी भावना पनप गई है, जहाँ हम कल्पना भी नहीं कर सकते थे। इस तथ्य ने हम सबको बहुत गहरे प्रभावित किया है। नफ़रत की वजह को समझा जा सकता है, हो सकता है कि यह इंसान से जुड़ी है, लेकिन इससे यह सही नहीं हो जाती । ईसाइयों के मुताबिक, यहूदी अपने रहस्यों को जर्मनों को बता रहे हैं, अपने मददगारों को बदनाम कर रहे हैं और उनकी भयावह नियति और दंडों का कारण बन रहे हैं, जो कि कई लोगों को दिए जा चुके हैं। यह सब सही है। लेकिन जैसा कि हर चीज़ में होता है, उन्हें इस बात को दोनों पक्षों की ओर देखना चाहिए: अगर ईसाई हमारी जगह होते, तो क्या वे अलग ढंग से बर्ताव करते? जर्मन दबाव पड़ने पर क्या कोई भी, चाहे वह ईसाई हो या फिर यहूदी, ख़ामोश रह सकता है? हर कोई जानता है कि व्यावहारिक तौर पर यह असंभव है, तो फिर वे यहूदियों से नामुमकिन की उम्मीद कैसे कर सकते हैं?

भूमिगत दायरों में यह कहा जा रहा है कि जो जर्मन यहूदी युद्ध से पहले हॉलैंड चले गए थे और जिन्हें अब पोलैंड भेजा जा रहा है, उन्हें अब यहाँ वापस आने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। उन्हें हॉलैंड में शरण का अधिकार दिया गया था, लेकिन हिटलर के जाने के बाद उन्हें वापस जर्मनी चले जाना चाहिए।

जब आप ऐसा कुछ सुनते हैं, तो आपको हैरानी होने लगती है कि वे इतनी लंबी और भयानक लड़ाई क्यों लड़ रहे हैं। हमें हमेशा यह बताया जाता है कि हम स्वतंत्रता, सत्य और न्याय के लिए लड़ रहे हैं ! युद्ध अभी समाप्त नहीं हुआ है और उससे पहले ही फूट पड़ चुकी है और यहूदियों को कमतर समझा जा रहा है। यह बहुत दुखद, बहुत ही दुखद है कि पुरानी कहावत की अनगिनत बार पुष्टि होती रही है : 'एक ईसाई जो करता है, वह उसका अपना दायित्व है, एक यहूदी जो करता है, वह सभी यहूदियों को दर्शाता है।'

ईमानदारी से कहूँ, तो मैं नहीं समझ पाती कि कैसे अच्छे, ईमानदार, सच्चे लोगों का राष्ट्र हमारे प्रति इस तरह की राय रखता है। हम, जो कि सबसे अधिक दमित, अभागे और दयनीय लोग हैं। मुझे सिर्फ़ एक उम्मीद है कि यह यहूदी विरोधी भावना क्षणिक है; कि डच अपने सच्चे रूप में आएँगे कि वे न्याय के रास्ते से कभी नहीं डिगेंगे, क्योंकि वह अन्याय होगा!

अगर वे इस भयावह धमकी को अमल में आएँगे, तो हॉलैंड में बचे- खुचे मुट्ठी भर यहूदियों को जाना होगा। हमें कंधों पर अपनी गठरी टाँगकर आगे बढ़ना होगा, इस ख़ूबसूरत देश से दूर जाना होगा, जिसने कभी हमें पनाह दी थी और जो अब हमसे मुँह मोड़ चुका है।

मुझे हॉलैंड से प्यार है। मुझे कभी उम्मीद थी कि यह मेरा वतन बनेगा, क्योंकि मैं अपना देश खो चुकी थी। मुझे अब भी वही आशा है !

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

बृहस्पतिवार, 25 मई, 1944

प्यारी किटी,

बेप की सगाई हो गई है ! यह ख़बर बहुत हैरान कर देने वाली नहीं है, हालाँकि हममें से कोई भी इस बात से उतना ख़ुश नहीं है। हो सकता है कि बेरतुस एक अच्छा, गंभीर, मज़बूत नौजवान है, लेकिन बेप उसे प्यार नहीं करती और मेरे ख़याल से यह पर्याप्त कारण है उसे बेरतुस से शादी के ख़िलाफ़ सलाह देने का ।

बेप दुनिया में आगे बढ़ना चाहती है और बेरतुस उसे पीछे खींच रहा है; वह एक श्रमिक है, जिसकी कुछ बड़ा करने की कोई ख़्वाहिश नहीं है और मुझे नहीं लगता कि इस बात से बेप ख़ुश होगी। अपने अनिर्णय को समाप्त करने की बेप की इच्छा को मैं समझ सकती हूँ; चार हफ़्ते पहले उसने बेरतुस को नकारने का फ़ैसला किया, लेकिन फिर उसे और भी बुरा लगा। इसलिए उसने एक चिट्ठी लिखी और अब उसकी सगाई हो गई है।

इसमें कई कारक शामिल हैं। पहला, बेप के बीमार पिता, जिन्हें बेरतुस बहुत पसंद है। दूसरे, वह वुश्कल परिवार की सबसे बड़ी लड़की है और उसकी माँ उसे अविवाहित होने का ताना देती है। तीसरे, वह अभी चौबीस साल की हुई है और बेप के लिए वह काफ़ी बड़ी बात है।

माँ का कहना था कि बेहतर होता अगर बेप का बेरतुस से प्रेम संबंध होता। पता नहीं क्यों, लेकिन मुझे बेप के लिए अफ़सोस होता है और मैं उसके अकेलेपन को समझ सकती हूँ। ख़ैर जो भी हो, उनकी शादी तो युद्ध के बाद ही हो सकती है, क्योंकि बेरतुस छिपा हुआ है या फिर भूमिगत हो गया है। इसके अलावा उनके पास एक पैसा तक नहीं है और दुल्हन का कुछ भी सामान नहीं है। बेप के लिए बहुत अफ़सोसनाक स्थिति है, हमारी शुभकामनाएँ उसके साथ हैं। मैं सिर्फ़ इतनी उम्मीद कर सकती हूँ कि उसके प्रभाव में बेरतुस बेहतर बने या फिर बेप को कोई और लड़का मिल जाए, जो जानता हो कि उसे कैसे सराहा जाए !

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

उसी दिन

हर रोज़ कुछ न कुछ होता है। आज सुबह मि. फ़ॉन हूवन गिरतार हो गए। उन्होंने दो यहूदियों को अपने घर में छिपाया हुआ था। हमारे लिए यह बहुत बड़ा धक्का है, सिर्फ़ इसलिए नहीं कि वे बेचारी यहूदी फिर से नर्क के कगार पर हैं, बल्कि इसलिए भी यह मि. फ़ॉन हूवन के लिए भी बहुत भयावह है।

दुनिया पूरी तरह से उलट गई है। सबसे भद्र लोगों को यातना शिविरों, जेलों व एकांतवास में भेजा जा रहा है, जबकि घटिया से भी घटिया लोग जवान, बूढ़े, अमीर व ग़रीब लोगों पर राज कर रहे हैं। एक काला बाज़ारी के लिए पकड़ा जाता है, तो दूसरा यहूदियों या अन्य अभागे लोगों को पनाह देने के लिए। अगर आप नाज़ी नहीं हैं, तो आप नहीं जानते कि अगले दिन आपके साथ क्या होने वाला है।

मि. फ़ॉन हूवन हमारे लिए भी बहुत बड़ा नुक़सान हैं। बेप अकेले इतने सारे आलू यहाँ तक नहीं ला सकती, न ही उन्हें ऐसा करना चाहिए, तो ऐसे में अब हमारे पास यही एक रास्ता है कि हम कम आलू से काम चलाएँ। मैं बताती हूँ कि मेरे दिमाग़ में क्या चल रहा है, लेकिन इससे यहाँ की ज़िंदगी बेहतर तो नहीं हो पाएगी। माँ का कहना है कि हम नाश्ता नहीं करेंगे, दिन के खाने में दलिया और डबलरोटी खाएँगे और तले हुए आलुओं को रात के खाने में खाएँगे और अगर मुमकिन हो तो हफ़्ते में एक या दो बार सब्ज़ियाँ या लेटस खाएँगे । बस, यही सब है। हम भूखे रहेंगे, लेकिन पकड़े जाने से बदतर तो कुछ भी नहीं है।

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

शुक्रवार, 26 मई, 1944

मेरी प्यारी किटी,

आख़िरकार मैं खिड़की के फ्रेम की दरार के सामने अपनी मेज़ पर बैठ सकती हूँ और तुम्हें वह सब कुछ लिख सकती हूँ, जो मैं कहना चाहती हूँ।

मैं काफ़ी परेशान महसूस कर रही हूँ, जितना कि इतने महीनों में नहीं रही। सेंधमारी के बाद भी मैंने बाहर व भीतर से इतना टूटा हुआ महसूस नहीं किया था। एक तरफ़, मि. फ़ॉन हूवन की गिरतारी की ख़बर, यहूदी सवाल (घर में हर कोई इस पर बात करता है), हमला (जिसकी आशंका बहुत समय से है), ख़राब खाना, तकलीफ़देह माहौल, पीटर को लेकर मेरी निराशा है। दूसरी तरफ़, बेप की सगाई, व्हिट्सन रिसेप्शन, फूल, मि. कुगलर का जन्मदिन, केक, कैबरे, फ़िल्मों व संगीत समारोहों की कहानियाँ हैं। वह फ़ासला, वह बड़ा सा फ़ासला हमेशा रहता है। एक दिन हम छिपकर जीने के हास्यपूर्ण पक्ष पर हँस रहे होते हैं, तो अगले ही दिन (ऐसे दिन काफ़ी हैं) हम डरे हुए होते हैं और भय, तनाव व निराशा को हमारे चेहरों पर पढ़ा जा सकता है।

मीप व मि. कुगलर हमारा व छिपे हुए सभी लोगों का बोझ सबसे ज़्यादा सहन करते हैं। मीप हर काम करके उसे उठा रही हैं और मि. कुगलर हम आठों की ज़िम्मेदारी लेकर यह काम कर रहे हैं, कई बार यह सब इतना अधिक होता है कि दबे हुए तनाव और थकान से उनके लिए कुछ बोलना तक मुश्किल हो जाता है। मि. क्लेमन और बेप हमारा इतनी अच्छी तरह ध्यान भी रखते हैं, लेकिन वे चाहे कुछ घंटों या कुछ दिनों के लिए ही सही, लेकिन अनेक्स को अपने दिलो-दिमाग़ से हटा पाने में कामयाब होते हैं। उनकी अपनी चिंताएँ हैं, मि. क्लेमन की सेहत से जुड़ी और बेप की अपनी सगाई की, जो फ़िलहाल तो आशाजनक नहीं लगती। लेकिन घूमने भी जाते है, दोस्तों से मिलते हैं, सामान्य लोगों की तरह उनकी अपनी रोज़मर्रा की जिंदगी है, इसलिए कभी-कभार उन्हें तनाव से राहत मिल जाती है, चाहे वह बहुत कम समय के लिए हो, जबकि हमें तनाव से कभी राहत नहीं मिलती, कभी नहीं मिली, दो साल के हमारे यहाँ रहने के दौरान तो एक बार भी नहीं मिली । यह बढ़ता दमन, न झेला जा सकने वाला बोझ हम पर कब तक रहेगा?

नालियाँ फिर से बंद हो गई हैं। हम पानी नहीं चला सकते, या अगर चलाना भी हो तो बस बूँद-बूँद; हम फ़्लश नहीं कर सकते, इसलिए हमें ब्रश का इस्तेमाल करना पड़ता है; हम अपना गंदा पानी एक बड़े से मिट्टी के मटके में रखते हैं। हम आज का काम तो चला सकते हैं, लेकिन अगर प्लम्बर उसे ठीक नहीं कर सकता, तो क्या होगा। मंगलवार तक नाली ठीक करने कोई नहीं आ सकेगा।

मीप ने हमें किशमिश डबलरोटी भेजी, जिस पर 'खुश व्हिट्सन' लिखा था। ऐसा लगा जैसे कि वह हमारा मज़ाक उड़ा रही हो, क्योंकि हमारे मनोभाव और हमारी परेशानियाँ 'खुशी' से काफ़ी दूर थीं।

फ़ॉन हूवन की घटना के बाद हम सभी काफ़ी डर गए हैं। एक बार फिर आप हर तरफ़ से 'श्श्श' सुन सकते हैं और हम सभी काम ख़ामोशी से कर रहे हैं। पुलिस ने वहाँ दरवाज़ा ज़बरदस्ती खोल लिया था, वह यहाँ भी आसानी से ऐसा कर सकती है! हम क्या करेंगे, अगर कभी... नहीं, मुझे वह सब नहीं लिखना चाहिए। लेकिन यह सवाल मेरे दिमाग़ से निकलने वाला नहीं है; बल्कि इसके उलट, कभी महसूस किए जाने वाले सभी डर आज भयावह रूप से मेरे सामने मँडरा रहे हैं।

आज आठ बजे मुझे नीचे शौचालय अकेले जाना पड़ा। वहाँ पर कोई नहीं था, क्योंकि सभी रेडियो सुन रहे थे। मैं बहादुर बनना चाहती थी, लेकिन वह काम मुश्किल था । मुझे हमेशा से उस बड़े, ख़ामोश से घर के बजाय ऊपर ज़्यादा सुरक्षित महसूस होता है; जब मैं ऊपर से आने वाली उन रहस्मय दबी आवाज़ों और सड़क पर बजने वाले हॉर्न की आवाज़ के साथ अकेली होती हूँ, मुझे जल्दी से काम करना होता है और काँपने से बचने के लिए खुद को याद दिलाना पड़ता है कि मैं कहाँ पर हूँ।

पापा के साथ बातचीत के करके मीप का रवैया हमारी तरफ़ बहुत अच्छा हो गया है। लेकिन मैंने तो तुम्हें उसके बारे में अभी तक बताया ही नहीं। एक दोपहर मीप काफ़ी उत्तेजित होकर ऊपर आई और पापा से सीधे पूछा कि कहीं हमें तो नहीं लगता कि वे भी यहूदी विरोधी भावनाओं से ग्रस्त हैं। पापा भौंचक्के रह गए और तुरंत उसक मन से उस धारणा को निकाला, लेकिन मीप के मन में थोड़ा संदेह बना रहा। वे अब हमारे लिए पहले से ज़्यादा काम करते हैं और हमारी परेशानियों में पहले से ज़्यादा दिलचस्पी लेते हैं, हालाँकि हम नहीं चाहते कि उन्हें अपनी तकलीफ़ों से और परेशान करें। वे कितने अच्छे, कितने भले लोग हैं!

मैं ख़ुद से बार-बार यही पूछती हूँ कि क्या यह बेहतर होता कि हम छिपते नहीं, अब तक मर चुके होते और हमें इतनी परेशानियों से न गुज़रना पड़ता, बाक़ी लोग भी हमारे बोझ से बच जाते। लेकिन इस ख़याल से हम सब बचते हैं। हम अब भी ज़िंदगी से प्यार करते हैं, हम अब तक कुदरत की आवाज़ को नहीं भूले हैं और हम उम्मीद करते रहते हैं... सब कुछ की।

जल्दी कुछ हो जाए, चाहे हवाई हमला ही हो। इस बेचैनी से ज़्यादा हताशा भरा कुछ भी नहीं है। अंत आ जाए, चाहे वह कितना ही क्रूर क्यों न हो; कम से कम हमें यह तो पता चल जाएगा कि हम विजयी हैं या फिर हार गए हैं।

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

बुधवार, 31 मई, 1944

प्यारी किटी,

शनिवार, रविवार, सोमवार और मंगलवार इतनी गर्मी थी कि मैं अपना फ़ाउंटेन पेन तक नहीं पकड़ पाई, इसी वजह से तुम्हें कुछ नहीं लिख सकी। शुक्रवार को नालियाँ बंद थीं, शनिवार को उन्हें ठीक किया गया। मिसेज़ क्लेमन दोपहर में हमसे मिलने आई और हमें योपी के बारे में बताया, वह और जैक फ़ॉन मार्सन एक ही हॉकी क्लब में हैं। रविवार को बेप हमसे मिलने आए, यह सुनिश्चित करने कि कोई सेंधमारी नहीं हुई है और नाश्ते के लिए रुके। व्हिट मन्डे यानी पवित्र आत्मा के सोमवार के दिन मि. गीज़ ने अनेक्स के पहरेदार की भूमिका निभाई और मंगलवार को हमें अंततः खिड़कियाँ खोलने की अनुमति मिली। हमने कभी -कभार ही ऐसा व्हिट सप्ताहांत देखा हो, जो इतना ख़ूबसूरत और गुनगुना हो। या फिर 'गर्म' बेहतर शब्द होगा। गर्म मौसम अनेक्स में भयावह होता है। अनगिनत शिकायतों की बानगी देने के लिए मैं संक्षेप में इन तपते दिनों का वर्णन करती हूँ:

शनिवार: 'बहुत बढ़िया, कितना अच्छा मौसम है,' हम सबने सुबह कहा । 'काश, इतनी गर्मी न होती,' दोपहर में हमारा ख़याल था, जब खिड़कियों को बंद करना पड़ा।

रविवार : 'गर्मी बर्दाश्त से बाहर है, मक्खन पिघल रहा है, घर में कोई भी ठंडी जगह नहीं है, डबलरोटी सूख रही है, दूध ख़राब हो रहा है, खिड़कियाँ नहीं खोली जा सकतीं। हम बेचारे बहिष्कृत लोग यहाँ घुटकर जी रहे हैं, जबकि बाक़ी सभी लोग अपनी व्हिट्सन छुट्टियों का मज़ा ले रहे हैं।' (मिसेज़ फ़ॉन डी के अनुसार ।)

सोमवार: 'मेरे पैर दुख रहे हैं, मेरे पास कुछ ठंडा पहनने को नहीं है, मैं इस गर्मी में नहा नहीं सकती!' सुबह-सवेरे से लेकर देर रात तक यही भुनभुनाहट । वह बहुत बुरा था ।

मुझसे गर्मी बर्दाश्त नहीं हो रही है। मुझे ख़ुशी है कि आज हवा चल रही है, लेकिन सूरज भी चमक रहा है।

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

शुक्रवार, 2 जून, 1944

प्यारी किटी,

'अगर तुम अटारी पर जा रही हो, तो एक छतरी, हो सके तो एक बड़ी सी छतरी लेकर जाना!' इससे तुम 'घर से आने वाली बौछारों' से सुरक्षित रहोगी। एक डच कहावत है: 'पानी से बाहर, पूरी तरह से सुरक्षित', ज़ाहिर है यह युद्ध के समय (बंदूकें !) और छिपे हुए लोगों (कूड़ेदान !) पर लागू नहीं होता । मूशी को कुछ अख़बारों या फिर फ़र्श पर बनी दरारों पर मूत्रत्याग करने की आदत पड़ गई है, तो इसलिए छींटों और उससे भी बदतर गंध से डरने का हमारे पास पर्याप्त कारण है। गोदाम की नई मोर्ते को भी यही समस्या है। अगर किसी के पास कभी कोई ऐसी बिल्ली रही हो, जो प्रशिक्षित न हो, तो वह काली मिर्च व थाइम के अलावा किसी अन्य गंध की कल्पना कर सकती है, जो घर में फैली हुई है।

मेरे पास गोलीबारी से घबराने बचने का एक बिलकुल नया नुस्खा है: जब आवाज़ तेज़ हो जाए, तो सबसे नज़दीकी लकड़ी की सीढ़ियों पर चले जाएँ। कुछ देर ऊपर-नीचे दौड़ें और यह सुनिश्चित करें कि कम से कम एक बार तो आप लड़खड़ाएँ । चर चर की आवाज़ और दौड़ने व गिरने से होने वाली आवाज़ों से आप गोलीबारी की आवाज़ सुन तक नहीं पाएँगे, उससे चिंतित होना तो दूर की बात है। तुम्हारी अपनी दोस्त ने इस जादुई तरीक़े को कामयाबी के साथ अपनाया है!

तुम्हारी, ऐन एम फ्रैंक

सोमवार, 5 जून, 1944

प्यारी किटी,

अनेक्स में नई समस्याएँ हैं। दुसे और फ़्रैंक परिवार के बीच मक्खन के बँटवारे को लेकर झगड़ा है। दुसे ने हार मान ली है। दुसे और मिसेज़ फ़ॉन डान के बीच दोस्ती, चुहलबाज़ियाँ, चुंबन और दोस्ताना मुस्कानें । दुसे को महिला साथी की चाहत होने लगी है।

फ़ॉन डान परिवार नहीं समझ पा रहा है कि हमें मि. कुगलर के जन्मदिन पर स्पाइस केक क्यों बनाना चाहिए, जबकि हम अपने लिए नहीं बना सकते। बहुत घटिया बात है। ऊपर का मूड: मिसेज़ फ़ॉन डी को जुकाम है। दुसे के पास यीस्ट की गोलियाँ मिलीं, जबकि हमारे पास नहीं हैं।

फ़िफ़्थ आर्मी ने रोम पर कब्ज़ा कर लिया है। शहर को न तो नष्ट किया गया है और न ही उस पर बमबारी की गई है। हिटलर के लिए एक बड़ा प्रचार ।

आलू व सब्ज़ियाँ बहुत कम मात्र में बची हैं। डबलरोटी के एक टुकड़े पर फफूँद लगी थी।

शार्मिनकेल्ट्श (गोदाम की बिल्ली का नाम) काली मिर्च बर्दाश्त नहीं कर सकती। वह कूड़ेदान में सोती है और लकड़ी की छीलन पर अपना नित्यकर्म करती है। उसे रखना नामुमकिन है।

बुरा मौसम | पद कैले और फ्रांस के पश्चिमी तट पर लगातार बमबारी हो रही है। कोई डॉलर नहीं ख़रीद रहा। सोने में भी दिलचस्पी कम हो गई है। हमारे काले धन के बक्से की भी तली दिखने लगी है। अगले महीने हमारा गुज़ारा कैसे होगा?

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

मंगलवार 6 जून, 1944

मेरी प्यारी किटी,

बारह बजे बीबीसी ने घोषणा की, 'यही ख़ास दिन है'। 'यही वह दिन है।' हमला शुरू हो गया है!

आज सुबह आठ बजे कैले, बुलन, लाव और शेर्बूर के साथ-साथ पद कैले पर (सामान्य की तरह) भारी बमबारी हुई। इसके अलावा कब्ज़े के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों, तट के बीस मील के दायरे के इलाक़े में रहने वालों के लिए ऐहतियाती क़दम के तौर पर बमबारी के लिए तैयार रहने की चेतावनी दी गई। जहाँ संभव हो, ब्रिटिश बमबारी से एक घंटा पहले पर्चे गिराएँगे ।

जर्मन समाचारों के अनुसार, ब्रिटिश पैराट्रूपर फ़्रांस के तट पर उतर गए हैं। 'ब्रिटिश लैंडिंग क्राफ़्ट जर्मन नौसेना इकाइयों से मुठभेड़ में लगे हैं,' बीबीसी ने ख़बर दी है।

सुबह नौ बजे नाश्ता करते हुए अनेक्स में इस नतीजे पर पहुँचा गया कि यह तो प्रयोग के तौर पर किया गया है, जैसा कि एक-दो साल पहले दिएप में हुआ था।

दस बजे जर्मन, डच, फ्रेंच और अन्य भाषाओं में बीबीसी प्रसारण: हमला शुरू हो गया है ! तो यह 'वास्तविक' आक्रमण है। ग्यारह बजे जर्मन में बीबीसी का प्रसारण: सुप्रीम कमांडर जनरल ड्वाइट आइजनहावर का भाषण ।

अंग्रेज़ी में बीबीसी प्रसारण: 'यह डी-डे है।' जनरल आइजनहावर ने फ़ासीसी लोगों से कहा: 'अब ज़ोरदार लड़ाई होगी, लेकिन इसके बाद विजय होगी। 1944 का साल संपूर्ण जीत का साल है। गुड लक !'

एक बजे अंग्रेज़ी में बीबीसी प्रसारण: 11,000 विमान आवाजाही कर रहे हैं या थल सेना की टुकड़ियों की सहायता के लिए खड़े हैं और दुश्मनों पर बमबारी कर रहे हैं; शेर्बूर और लाव के बीच के इलाके में 4,000 लैंडिंग क्राफ्ट्स और छोटी नौकाएँ लगातार पहुँच रही हैं । इंग्लिश और अमेरिकी टुकड़ियाँ पहले ही ज़ोरदार मुठभेड़ में लगी हैं। ख़रबूंडी, बेल्जियम के प्रधानमंत्री, नॉर्वे के किंग हॉकोन, फ़्रांस के द गॉल, इंग्लैंड के किंग और चर्चिल के भाषण ।

अनेक्स में भारी खलबली मची है ! क्या यह वाक़ई लंबे समय से प्रतीक्षित मुक्ति की शुरुआत है? जिस मुक्ति की हम बात करते रहे थे, जो अब भी काफ़ी अच्छी लगती है, जो काफ़ी कुछ परीकथा जैसी है, कभी सच होगी? क्या साल 1944 हमारे लिए जीत लेकर आएगा? हम अभी तक नहीं जानते। लेकिन जहाँ उम्मीद है, वहीं जिंदगी है। यह हमें नई हिम्मत से भरती है और फिर से मज़बूत बनाती है। हमें इतना बहादुर बनना होगा कि हम उन डरों, मुश्किलों और तकलीफ़ों को झेल सकें, जो अभी सामने आनी बाक़ी हैं। अब यह शांत व अडिग रहने, दाँत पीसने और संयम रखने का मामला है! फ्रांस, रूस, इटली और यहाँ तक कि जर्मनी तक दुखी होकर रो सकते हैं, लेकिन हमें अभी तक यह अधिकार नहीं है!

ओह, किटी, इस हमले की सबसे अच्छी बात यह है कि मुझे यह लग रहा है कि हमारे दोस्त आने वाले हैं। इन भयानक जर्मनों ने हमें इतने लंबे समय तक दमित किया और डराया है कि दोस्तों व मुक्ति का सिर्फ़ ख़याल भी हमारे लिए सब कुछ है! अब यह सिर्फ़ यहूदियों का ही नहीं, बल्कि हॉलैंड और कब्ज़े वाले यूरोप का भी है। मारगोट कहती है कि हो सकता है मैं अक्टूबर या सितंबर में स्कूल जा सकूँ।

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

पुनःश्च । मैं तुम्हें ताज़ातरीन ख़बरें बताती रहूँगी!

आज सुबह और कल रात फूस व रबड़ के पुतले जर्मन इलाक़ों में गिराए गए और ज़मीन पर आते ही उनमें विस्फोट हो गया। अँधेरे में दिखने से बचने के लिए चेहरे पर कालिख पोते हुए कई पैराट्रूपर भी नीचे आए। फ्रांसीसी तट पर रात को 5,500 बम गिराए गए और फिर सुबह छह बजे तट पर लैंडिंग क्राफ़्ट उतरा। आज 20,000 विमान हरकत में थे। जर्मन तटीय समूहों को वहाँ पहुँचने से पहले ही नष्ट कर दिया गया; एक छोटा मोर्चा पहले ही तैयार किया जा चुका है। ख़राब मौसम के बावजूद सब कुछ सही चल रहा है। फ़ौज व जनता का 'एक निश्चय और एक उम्मीद' है।

शुक्रवार, 9 जून, 1944

मेरी प्यारी किटी,

हमले की अच्छी ख़बर ! मित्र राष्ट्रों ने फ्रांस के तट पर स्थित बेयू नामक एक गाँव पर कब्ज़ा कर लिया है और अब हम कॉन के लिए लड़ रहे हैं। वे साफ़ तौर पर प्रायद्वीप से संपर्क काटना चाहते हैं जहाँ पर शेर्बूर स्थित है। हर शाम युद्ध संवाददाता सेना की मुश्किलों, उनके साहस व जुझारू जज़्बे के बारे में ख़बर देते हैं। अपनी ख़बरें पाने के लिए वे हैरतअंगेज़ कारनामों को अंजाम देते हैं। इंग्लैंड पहुँच चुके कुछ घायल सैनिकों ने रेडियो पर बात की। तकलीफ़ देह मौसम के बावजूद विमानों की आवाजाही जारी है। हमने बीबीसी पर सुना कि चर्चिल डी-डे पर टुकड़ियों के साथ उतरना चाहते थे, लेकिन आइजनहावर और बाक़ी जनरलों ने उन्हें ऐसा न करने के लिए मना लिया। ज़रा सोचो कि इतने बूढ़े आदमी में इतनी हिम्मत ! वे कम से कम सत्तर साल के तो होंगे ही।

यहाँ उत्साह मंद पड़ गया है; हम सभी को उम्मीद है कि इस साल के अंत तक आख़िरकार लड़ाई ख़त्म हो जाएगी। यह वक़्त की बात है! मिसेज़ फ़ॉन डान का लगातार शिकायती लहजा अब बर्दाश्त से बाहर हो गया है; अब वे हमें हमले की बात से पागल नहीं कर सकतीं, तो वे दिन भर ख़राब मौसम को लेकर अफ़सोस करती रहती हैं। काश, हम उन्हें ठंडे पानी की बाल्टी में पटक सकते!

मि. फ़ॉन डान और पीटर के अलावा अनेक्स में सबने संगीतकार, महान पियानो वादक और अद्भुत बाल प्रतिभा फ्रांज़ लिस्ट की जीवनी हंगेरियन रैप्सडी पढ़ी है। यह बहुत दिलचस्प है, हालाँकि मुझे लगता है कि उसमें महिलाओं पर कुछ ज़्यादा ही ज़ोर दिया गया है; लिज़्ट न सिर्फ़ अपने समय के सबसे महान व सबसे मशहूर पियानो वादक थे, बल्कि वे सत्तर साल की उम्र में भी सबसे बड़े महिला प्रेमी थे। उनके काउंटेस मारी देगॉल, प्रिंसेस कैरोलिन सायन विंटेगश्टीन, नर्तकी लोला मोन्टेज़, पियानो वादक ऐग्नेस किंगवर्थ, सोफ़ी मेंटर करकेशियन राजकुमारी ओल्या यनिना, बैरोनेस ओल्या माइंडॉर्फ, अभिनेत्री लिला, वगैरह, वगैरह, इसका कोई अंत नहीं। संगीत व अन्य कलाओं से जुड़े किताब के हिस्से इस सबसे कहीं ज़्यादा दिलचस्प हैं। उनमें जिन लोगों का उल्लेख है, वे हैं: शुमान, क्लारा वीक, हेक्टर बर्लियोज़, योहानस ब्राम्स, बीथोवन, योहाकिम, रिचर्ड वैगनर, हान्स फ़ॉन बिलो, आंटन रूबिनश्टाइन, फ्रेडरिख शोपन, विक्टर ह्यूगो, ओनेए द बाल्ज़ाक, हिलर, उमेल, चेर्नी, रॉसिनी, केरुबीनि, पैगानीनि, मेंडलसोन, आदि, आदि ।

लिज़्ट एक भले इंसान लगते हैं, बहुत उदार और विनम्र, हालाँकि असाधारण रूप से खोखले । उन्होंने लोगों की मदद की, कला को सबसे ऊपर रखा, कोनिऐक और महिलाओं को बहुत पसंद करते थे, आँसू बर्दाश्त नहीं कर सकते थे, भद्र पुरुष थे, किसी की मदद से मना नहीं करते थे, पैसे में दिलचस्पी नहीं रखते थे और धार्मिक स्वतंत्रता और दुनिया की परवाह करते थे।

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

मंगलवार 13 जून, 1944

मेरी प्यारी किटी,

एक और जन्मदिन चला गया और अब मैं पंद्रह की हो गई हूँ। मुझे कुछ उपहार मिले: स्प्रिंगर की पाँच खंडों वाली कला इतिहास की किताब, अंतर्वस्त्र का जोड़ा, दो बेल्ट, एक रूमाल, योगर्ट के दो डिब्बे, जैम का एक डिब्बा, शहद के दो बिस्किट (छोटे), पापा व माँ से वनस्पतिशास्त्र की एक किताब, मारगोट से एक सोने का कंगन, फ़ॉन डान परिवार से एक स्टिकर एलबम, दुसे से बायोमॉल्ट और मटर, मीप से मिठाई, बेप से मिठाई व अभ्यास-पुस्तिकाएँ और सबसे बड़ी बात, मि. कुगलर से मरिया टेरिज़ा और फुल क्रीम चीज़ के तीन टुकड़े मिले। पीटर ने मुझे पियोनीज़ का एक बहुत प्यारा सा गुलदस्ता दिया; बेचारे लड़के को उपहार खोजने में बहुत मेहनत करनी पड़ी, लेकिन कुछ हो नहीं पाया।

हमला अब भी ज़ोरदार ढंग से चल रहा है, जबकि मौसम काफ़ी बुरा है - बारिश, तूफ़ानी हवाओं और ज्वार।

कल चर्चिल, स्मट्स, आइजनहावर और आर्नोल्ड ने उन फ़ासीसी गाँवों का दौरा किया, जिन्हें ब्रिटिशों ने अपने कब्ज़े में करके मुक्त कर दिया । चर्चिल टॉपडो बोट में थे, जिसने तट पर गोले बरसाए थे। अधिकतर पुरुषों की तरह वे डर को नहीं जानते लगे एक ईर्ष्यायोग्य गुण !

यहाँ अनेक्स के किले से डच मूड को भाँप पाना मुश्किल है । निस्संदेह कई लोग इस बात से ख़ुश हैं कि आलसी (!) ब्रिटिश आख़िरकार सक्रिय हुए और अपने काम में लग गए। जो दावा करते रहे हैं कि वे ब्रिटिश कब्ज़ा नहीं चाहते, वे नहीं जानते कि वे कितना बड़ा अन्याय कर रहे हैं। उनका तर्क यह है: ब्रिटेन को हॉलैंड व कब्ज़े वाले अन्य देशों को मुक्त करने के लिए लड़ाई, संघर्ष व बलिदान करने चाहिए। उसके बाद ब्रिटिश को हॉलैंड में नहीं रहना चाहिए: उन्हें सभी कब्ज़े वाले देशों से क्षमा माँगनी चाहिए, डच ईस्ट इंडीज़ को उसके असली स्वामी को सौंप देना चाहिए और फिर कमज़ोर व दरिद्र होकर ब्रिटेन लौट जाना चाहिए। कितने बेवकूफ़ हैं! और इसके बावजूद जैसा कि मैं पहले कह चुकी हूँ, कई डच लोगों की गिनती इसमें की जा सकती है। हॉलैंड और उसके पड़ोसी देशों का क्या होता, अगर ब्रिटेन जर्मनी के साथ शांति समझौता कर लेता, जैसा कि उसके पास पर्याप्त मौक़ा था? हॉलैंड जर्मन बन जाता और फिर बस उसका खात्मा हो जाता!

जो डच लोग अब भी ब्रिटिशों को नीचा देखते हैं, ब्रिटेन, उसकी सरकार और उसके बूढ़े कुलीनों का मज़ाक उड़ाते हैं, उन्हें कायर कहते हैं, फिर भी जर्मनी से नफ़रत करते हैं, उन्हें अच्छी तरह हिलाया जाना चाहिए, जैसे कि तकिये में हवा भरते हैं। शायद उससे उनके बेतरतीब दिमाग़ थोड़े ठीक हो जाएँ !

मेरे सिर में इच्छाएँ, विचार, आरोप और झिड़कियाँ घूम रही हैं। मैं असल में उतनी अभिमानी नहीं हूँ, जितना कि बहुत से लोग सोचते हैं; मैं किसी अन्य की तुलना में अपनी कई कमियों व ख़ामियों को बेहतर ढंग से समझती हूँ, लेकिन एक अंतर है: मैं यह भी जानती हूँ कि मैं बदलना चाहती हूँ, बदलूँगी और पहले ही काफ़ी बदल चुकी हूँ!

मैं अक्सर ख़ुद से पूछती हूँ किर हर कोई अब भी ऐसा क्यों सोचता है कि मैं आक्रामक तौर पर महत्त्वाकांक्षी और सर्वज्ञ हूँ? क्या मैं वाक़ई इतनी घमंडी हूँ? क्या मैं ऐसी हूँ या फिर वे ही अभिमानी हैं? यह अजीब लगता है। मैं जानती हूँ, लेकिन मैं उस अंतिम वाक्य को नहीं काटने वाली क्योंकि यह उतना पागलपन भरा नहीं है, जितना कि लगता है। मेरे दो प्रमुख सलाहकारों मिसेज़ फ़ॉन डान व दुसे को पूरी तरह से नासमझ के रूप में जाना जाता है और सामान्य शब्दों में कहूँ तो वे दोनों बस 'बेवकूफ' हैं! मूर्ख लोग अक्सर इस बात को बर्दाश्त नहीं कर पाते कि बाक़ी लोग उनसे बेहतर काम करें; इसकी बेहतरीन मिसाल वे दोनों काठ के उल्लू हैं। मिसेज़ फ़ॉन डान व दुसे । मिसेज़ फ़ॉन डान को लगता है कि मैं बेवकूफ़ हूँ, क्योंकि मुझे यह बीमारी उनके जितनी नहीं है, वे सोचती हैं कि मैं आक्रामक हूँ, क्योंकि वे मुझसे ज़्यादा हैं, वे सोचती हैं कि मेरी पोशाकें बहुत छोटी हैं, क्योंकि उनकी तो मुझसे भी छोटी हैं और उन्हें लगता है कि मैं इतना कुछ जानती हूँ, क्योंकि वे खुद उन विषयों पर दोगुना बोलती हैं, जिनके बारे में वे कुछ नहीं जानती। यही बात दुसे पर भी लागू होती है। लेकिन मेरी पसंदीदा कहावतों में से एक है: 'जहाँ धुआँ होता है, वहाँ आग भी होती है,' मैं यह स्वीकार करती हूँ कि मैं सब कुछ जानती हूँ।

मेरे व्यक्तित्व के बारे में मुश्किल बात यह है कि मैं किसी और के मुक़ाबले ख़ुद को बहुत ज़्यादा डाँटती व कोसती हूँ; अगर माँ अपनी सलाह भी जोड़ दें तो उपदेशों का ढेर इतना बड़ा हो जाता है कि मुझे लगता है कि मैं कभी उससे निकल भी पाऊँगी या नहीं। फिर मैं पलट कर जवाब देती हूँ और तब तक हर किसी का इतना विरोध करती रहती हूँ, जब तक कि पुरानी ऐन फिर से सामने न आ जाए। 'मुझे कोई भी नहीं समझता !'

यह वाक्यांश मेरा हिस्सा है और चाहे कितना भी असामान्य लगे, लेकिन इसमें सच्चाई का तत्व है। कई बार मैं आत्म-निंदा के बोझ के नीचे इतना दब जाती हूँ कि मुझे दिलासे के बोल की ज़रूरत होती है, ताकि मैं खुद को बाहर निकाल सकूँ। काश! मेरे पास कोई होता, जो मेरी भावनाओं को गंभीरता से ले सकता। अफ़सोस कि मुझे अब तक कोई ऐसा इंसान नहीं मिला, इसलिए खोज जारी रहेगी।

मैं जानती हूँ कि तुम पीटर के बारे में सोच रही होगी, है न, किट ? यह सच है कि पीटर मुझसे प्यार करता है, गर्लफ्रेंड की तरह नहीं, बल्कि सिर्फ़ एक दोस्त की तरह। उसका स्नेह दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है, लेकिन कोई रहस्यमय ताक़त हमें रोके हुए है और मुझे नहीं पता कि वह क्या है।

कई बार मैं सोचती हूँ कि उसके लिए मेरी चाहत थोड़ी अतिशयोक्ति थी। लेकिन वह सच नहीं है, क्योंकि मैं अगर उसके कमरे में एक या दो दिन न जा पाऊँ, तो मैं उसके लिए तड़पने लगती हूँ, जैसा कि हमेशा होता है। पीटर दयालु व अच्छा है और फिर भी मैं इस बात से इनकार नहीं कर सकती कि उसने कई मामलों में मुझे बहुत निराश किया है। मुझे धर्म के मामले में उसकी नापसंद, खाने व बाक़ी कई चीज़ों को लेकर उसकी बातचीत से कोई फ़र्क नहीं पड़ता। फिर भी मैं इस बात को लेकर आश्वस्त हूँ कि हम अपने इस समझौते पर टिके रहेंगे कि हम कभी झगड़ा नहीं करेंगे। पीटर शांतिप्रिय, सहनशील और मस्तमौला क़िस्म का लड़का है। वह मुझे बहुत सी ऐसी बातें कहने देता है, जिन्हें वह अपनी माँ से बिलकुल नहीं सुन सकता। वह अपनी तरफ़ से पूरी कोशिश कर रहा है कि वह कोई ऐसा काम न करे, जिससे उसकी इज़्ज़त कम हो और वह अपने मामलों को चुस्त-दुरुस्त कर रहा है। इसके बावजूद वह अपने सबसे भीतरी स्वरूप को छिपाकर क्यों रखता है और क्यों मुझे वहाँ तक पहुँचने नहीं देता? यह ज़रूर है कि वह मुझसे ज़्यादा बंद है, लेकिन मैं ( हालाँकि मुझे लगातार सिद्धांत के रूप में, व्यवहार में नहीं जो भी जानने योग्य है, उसकी जानकारी रखने का दोषी ठहराया जाता है) अपने तजुर्बे से कह सकती हूँ कि समय के साथ ऐसा वाला इंसान भी बदलता है, जो मिलनसार न हो और वह भी चाहता है कि वह किसी से अपनी बातें कह सके।

पीटर और मैंने अपने विचारशील वर्ष अनेक्स में बिताए हैं। हम अक्सर भविष्य, अतीत और वर्तमान पर बातचीत करते हैं, लेकिन जैसा कि मैं पहले ही बता चुकी हूँ, मुझे वास्तविक चीज़ की कमी खलती है और फिर भी मैं जानती हूँ कि उसका अस्तित्व है !

मैं इतने लंबे समय से बाहर नहीं गई हूँ और क्या यही वजह है कि मैं प्रकृति को लेकर इतनी जुनूनी हो गई हूँ? मुझे ऐसा समय याद है, जब नीला आसमान, चहचहाते पक्षी, चाँदनी और फूटती कोंपलें मुझे इतना मंत्रमुग्ध नहीं करते थे। मेरे यहाँ आने के बाद से हालात बदल गए हैं। उदाहरण के लिए, व्हिट्सन के दौरान एक रात जब बहुत गर्मी थी, मुझे साढ़े ग्यारह बजे तक अपनी आँखें खुली रखने की कोशिश करने में मुझे बहुत मेहनत करनी पड़ी, ताकि मैं चाँद को अपने आप देख सकूँ। लेकिन मेरी यह कुर्बानी बेकार गई, क्योंकि बहुत तेज़ चमक होने के कारण मैं खिड़की खोलने का जोखिम नहीं उठा सकती थी। कुछ महीने पहले एक रात मैं ऊपर थी और खिड़की खुली थी। मैं तब तक नीचे नहीं गई, जब तक कि उसे बंद करने का समय नहीं आया। अँधेरी, बारिश की शाम, हवा, भागते बादलों ने मुझे मंत्रमुग्ध कर दिया; तब डेढ़ साल में पहली बार मैंने रात को आमने-सामने देखा था। उस रात को फिर से देखने की मेरी इच्छा मेरे चोरों के, चूहों से भरे अँधेरे घर या लूटपाट के डर से कहीं ज़्यादा बड़ी थी। मैं अकेले नीचे गई और रसोई व प्राइवेट ऑफ़िस की खिड़कियों से बाहर देखा । बहुत से लोग सोचते हैं कि कुदरत ख़ूबसूरत है, कई लोग कभी-कभार सितारों भरे आसमान के नीचे सोते हैं और अस्पतालों व जेलों में कई लोग ऐसे दिन की राह देखते हैं, जब वे प्रकृति का आनंद ले सकेंगे। लेकिन बहुत कम लोग हैं, जो प्रकृति के आनंद से हमारी तरह एकाकी और कटे हुए होते हैं, जिस आनंद को अमीर-गरीब सब ले सकते हैं।

यह सिर्फ़ मेरी कल्पना ही नहीं है, आसमान, बादल, चाँद व तारे मुझे सचमुच शांत करते हैं और उम्मीद बनाए रखते हैं। यह वेलिरियान या ब्रोमाइड से काफ़ी बेहतर दवा है। प्रकृति मुझे विनम्र महसूस करवाती है और मैं हर वार का सामना हिम्मत से कर सकती हूँ !

लेकिन बदकिस्मती से मैं बहुत कम मौक़ों पर ही कुदरत का नज़ारा देख पाती हूँ; इससे निहारने का मज़ा ख़त्म हो जाता है। प्रकृति की जगह कोई नहीं ले सकता !

मुझे अक्सर परेशान करने वाले कई सवालों में से एक यह है कि औरतों को पुरुषों से कमतर क्यों समझा जाता रहा है और अब भी समझा जाता है। यह कहना आसान है कि यह अन्यायपूर्ण है, लेकिन मेरे लिए यह काफ़ी नहीं है; मैं इस घोर अन्याय का कारण जानना चाहूँगी।

हो सकता है कि शुरू से पुरुषों ने महिलाओं पर अपना वर्चस्व इसलिए बनाए रखा, क्योंकि वे शारीरिक रूप से ज़्यादा ताक़तवर हैं; पुरुष जीविका कमाते हैं, बच्चों के जनक होते हैं और अपनी मर्जी से काम करते हैं... हाल तक महिलाएँ चुपचाप यह सब सहन करती रहीं, जो कि बेवकूफ़ाना बात थी, क्योंकि जितनी देर तक उसे क़ायम रखा जाएगा, वह उतनी ही गहरी जड़ें जमाता रहेगा।

खुशकिस्मती से शिक्षा, कामकाज और प्रगति ने महिलाओं की आँखें खोल दी हैं। कई देशों में उन्हें बराबर के अधिकार दिए गए हैं; कई लोग, मुख्य तौर पर महिलाएँ और पुरुष भी अब यह महसूस कर रहे हैं कि इतने लंबे समय तक इस तरह की बातों को सहन करना कितना ग़लत था। आधुनिक महिलाएँ पूरी तरह स्वतंत्र होने का अधिकार चाहती हैं।

लेकिन इतना ही काफ़ी नहीं है। महिलाओं की इज़्ज़त भी की जानी चाहिए ! सामान्य तौर पर दुनिया के सभी हिस्सों में पुरुषों को बहुत सम्मान दिया जाता है, तो महिलाओं को उनका हिस्सा क्यों न मिले? सैनिकों व युद्धवीरों का सम्मान व गुणगान किया जाता है, अन्वेषकों हमेशा के लिए प्रसिद्ध हो जाते हैं, शहीदों को पूजा जाता है, लेकिन कितने लोग हैं, जो औरतों को भी सैनिकों की तरह देखते हैं?

मेन अगेन्स्ट डेथ पढ़ते हुए मुझे इस बात ने बहुत प्रभावित किया कि सिर्फ़ बच्चे को जन्म देने में महिलाओं को किसी साहसी योद्धा के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा दर्द, अस्वस्थता और तकलीफ़ का सामना करना पड़ता है। यह सब सहन करने का उसे क्या इनाम मिलता है? जब बच्चे को जन्म देने के बाद उसकी देहयष्टि ख़राब हो जाती है, तो उसे एक तरफ़ धकेल दिया जाता है, उसके बच्चे चले जाते हैं, उसकी सुंदरता चली जाती है। मानव जाति के सिलसिले को बनाए रखने में औरतें संघर्ष करती हैं, दर्द सहती हैं, वे सभी बड़बोले स्वतंत्रता सेनानियों से कहीं ज़्यादा सख़्तजान और हिम्मतवाली होती हैं!

मेरा यह आशय नहीं कि महिलाओं को बच्चे पैदा नहीं करने चाहिए; बल्कि इसके उलट मैं तो कहूँगी कि कुदरत ने उन्हें इसके लिए बनाया है और ऐसा ही रहना चाहिए। मैं हमारे मूल्यों व पुरुषों की भर्त्सना करती हूँ, जो इस बात को नहीं मानते कि समाज में इस ख़ूबसूरत महिलाओं का योगदान कितना बड़ा व कठिन है।

मैं इस किताब के लेखक पॉल दे केराफ़ से पूरी तरह सहमत हूँ, जब वे कहते हैं कि पुरुषों को यह समझना होगा कि दुनिया के जिन हिस्सों को हम सभ्य समझते हैं, वहाँ जन्म को अटल और अपरिहार्य नहीं माना जाता । पुरुषों के लिए बात करना आसान है, उन्हें कभी वह सब सहन नहीं करना होगा, जो महिलाएँ झेलती हैं!

मुझे यक़ीन है कि अगली सदी तक इस धारणा में बदलाव आएगा कि बच्चों को जन्म देना स्त्री का कर्तव्य है और सभी महिलाओं के लिए सम्मान व सराहना के रास्ते खुलेंगे, जो बिना किसी शिकवे- शिकायत या आडंबरपूर्ण शब्दों के अपने बोझ को ढोती हैं!

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

शुक्रवार, 16 जून, 1944

प्यारी किटी,

नई समस्याएँ: मिसेज़ फ़ॉन डी बहुत परेशान हैं। वे गोली लगने, जेल में डालने, फाँसी चढ़ाए जाने और ख़ुदकुशी की बातें कर रही हैं। वे जलती हैं कि पीटर मुझे अपनी बातें बताता है, उन्हें नहीं, उन्हें बुरा लगता है कि उनकी चुहलबाज़ी पर दुसे कोई प्रतिक्रिया नहीं देते और डर है कि उनके पति उनके फ़र कोट से मिलने वाले पैसे को तम्बाकू पर उड़ा देंगे। वे लड़ती-झगड़ती, गालियाँ देती, चीखती-चिल्लाती हैं, अपने लिए अफ़सोस करती हैं, हँसती हैं और फिर से पूरा दौर चलता है।

इंसानियत के ऐसे बेवकूफ़ और रिरियाते रहने वाले नमूने का आप क्या कर सकते हैं? उन्हें कोई भी गंभीरता से नहीं लेता, उनका चरित्र बिलकुल भी मज़बूत नहीं है, वे सबसे शिकायत करती हैं और उन्हें देखना चाहिए कि वे कैसी लगती हैं, जैसे कि अपनी उम्र से कम दिखना चाहती हों। इससे भी बदतर बात यह है कि पीटर ढीठ होता जा रहा है, मि. फ़ॉन डी चिड़चिड़े और माँ मीनमेख निकालने वालीं । हर कोई देखने लायक़ है ! बस, एक नियम याद रखने की ज़रूरत है: हर चीज़ पर हँसो और बाक़ी लोगों को भूल जाओ! यह बहुत अहंवादी लगता है, लेकिन आत्मदया के शिकार लोगों का दरअसल यही एकमात्र इलाज है।

मि. कुगलर को काम के लिए चार हफ़्ते के लिए अल्कमार जाना है। वे डॉक्टर के सर्टिफ़िकेट और ओपेक्टा के पत्र की मदद से इससे बचना चाहते हैं। मि. क्लेमन को उम्मीद है कि जल्दी ही उनके पेट का ऑपरेशन होगा। कल रात से सभी प्राइवेट फ़ोनों का संपर्क काट दिया गया है।

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

शुक्रवार, 23 जून, 1944

मेरी प्यारी किटी,

यहाँ कुछ ख़ास नहीं हो रहा है। ब्रिटेन ने शेर्बूर पर जी-जान से हमला शुरू कर दिया है। पिम और मि. फ़ॉन डान के मुताबिक 10 अक्टूबर से पहले हम निश्चित तौर पर आज़ाद हो जाएँगे। रूसी अभियान में हिस्सा ले रहे हैं; कल उन्होंने विटेब्स्क के पास हमला शुरू किया, ठीक तीन साल पहले इसी दिन जर्मनी ने रूस पर चढ़ाई की थी।

बेप का हौसला काफ़ी कम हो गया है। हमारे पास आलू बस ख़त्म होने को हैं; अब हमें हर इंसान के लिए आलुओं की गिनती शुरू करनी होगी, फिर हर कोई जैसे चाहे, वैसे उसका इस्तेमाल करे। सोमवार से मीप हफ़्ते भर की छुट्टी ले रही हैं। मि. क्लेमन के डॉक्टरों को उनके एक्स-रे में कुछ भी नहीं मिला है। वे ऑपरेशन करवाने और हालात को समय पर छोड़ने के बीच फँसे हैं।

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

बृहस्पतिवार, 27 जून, 1944

मेरी प्यारी किटी,

मूड बदल गया है, अब सब कुछ अच्छा चल रहा है। शेर्बूर, विटेब्स्क और ज़लोबिन ने आज समर्पण कर दिया। उन्होंने ज़रूर बहुत से आदमियों व साज़-सामान पर कब्ज़ा किया होगा । शेर्बूर के नज़दीक पाँच जर्मन जनरल मारे गए और दो को बंदी बना लिया गया। अब ब्रिटिश बंदरगाह होने के कारण वे जो चाहें, तट पर ला सकते हैं। समूचा कॉन्तेनतिन प्रायद्वीप हमले के बस तीन हफ़्ते बाद कब्ज़े में आ गया है! क्या कमाल है!

डी-डे के बाद के तीन सप्ताहों में यहाँ या फ़्रांस में कोई दिन ऐसा नहीं बीता, जब बारिश न हुई हो या तूफ़ान न आया हो, लेकिन इसके बावजूद ब्रिटिश व अमेरिकी फौजें अपनी ताक़त दिखा रही हैं। वह भी कैसे! जर्मनी ने अपने वंडर वेपन यानी ख़ास हथियार का इस्तेमाल किया, लेकिन उस तरह के छोटे से पटाखे से कुछ ख़ास नहीं हुआ, बस इंग्लैंड में बहुत थोड़ा सा नुक़सान और जेरी यानी जर्मन अख़बारों में बड़ी सुर्ख़ियाँ । ख़ैर, जब 'जेरीलैंड' यानी जर्मनी में पता चलेगा कि बोलशेविक वाक़ई नज़दीक आ रहे हैं, तो वे पत्ते की तरह काँपने लगेंगे।

सेना के लिए काम न करने वाली महिलाओं को उनके बच्चों के साथ तटीय क्षेत्रों से श्रोनिनेन, फ्रीज़ लैंड और गेल्डरलैंड प्रांतों में ले जाया जा रहा है। मुशरेट ने घोषणा की है कि अगर आक्रमणकारी हॉलैंड तक पहुँच गए, तो वे सूची बनाएँगे। क्या वह मोटा सूअर लड़ने की योजना बना रहा है ? उसे काफ़ी समय पहले रूस में ऐसा कर लेना चाहिए था। कुछ समय पहले फ़िनलैंड ने शांति प्रस्ताव ठुकरा दिया था और अब बातचीत फिर टूट गई है। वे बेवकूफ़, अब पछताएँगे !

तुम्हारे ख़याल से 27 जुलाई तक हम कितनी दूर होंगे?

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

शुक्रवार, 30 जून, 1944

प्यारी किटी,

एक से तीस जून तक ख़राब मौसम का सिलसिला लगातार बना हुआ है।

मैंने कितनी अच्छी तरह यह लिखा, है न? मैं अब थोड़ी अंग्रेज़ी जानती हूँ; इसे साबित करने के लिए तुम्हें बताऊँ कि मैं ऐन आइडियल हज़्बेंड शब्दकोश की मदद से पढ़ रही हूँ। हम बहुत अच्छी तरह आगे बढ़ रहे हैं: बॉबरुस्क, मॉगिलेव और ओशा ने आत्मसमर्पण कर दिया है, बहुत से लोग बंदी बनाए गए हैं।

यहाँ सब कुछ ठीक है। हमारे हौसले पहले से बेहतर हैं, हमारे अतिआशावादी बहुत ख़ुश हैं, फ़ॉन डान परिवार चीनी ग़ायब कर रहा है, बेप ने अपना हेयरस्टाइल बदला है और मीप ने एक सप्ताह की छुट्टी ली है । यही सबसे नई ख़बर है!

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

पुनःश्च । बासेल बर्ड का समाचार मिला, उसने मिना फ़ॉन बार्नहेल्म में सराय वाले की भूमिका निभाई थी। माँ कहती हैं, उसका 'कलात्मक झुकाव' है।

बृहस्पतिवार 6 जुलाई, 1944

प्यारी किटी,

पीटर जब अपराधी बनने या फिर सट्टेबाज़बनने की बात करता है, तो मैं बहुत डर जाती हूँ, ज़ाहिर है कि वह मज़ाक करता है, लेकिन मुझे अब भी लगता है कि वह अपनी कमज़ोरी से डरता है। मारगोट और पीटर हमेशा मुझसे कहते हैं, 'अगर मुझमें तुम्हारे जैसी हिम्मत व ताक़त होती, अगर तुम्हारे जैसा उत्साह और अथक ऊर्जा होती तो मैं भी....'

क्या यह वाक़ई इतनी तारीफ़ करने लायक़ ख़ासियत है कि मुझे बाक़ी लोगों से प्रभावित नहीं होना चाहिए? क्या अपने विवेक के अनुसार चलकर मैं सही कर रही हूँ?

ईमानदारी से कहूँ, तो मैं इस बात की कल्पना नहीं कर सकती कि कोई यह कहे कि 'मैं कमज़ोर हूँ' और फिर वैसा ही बना रहे। अगर आप अपने बारे में यह बात जानते हैं, तो उसके लिए लड़ते क्यों नहीं, अपने चरित्र का विकास नहीं करते? उनका जवाब हमेशा से यही रहा है: 'क्योंकि ऐसा न करना ज़्यादा आसान है!' इस जवाब से मैं हतोत्साहित महसूस करती हूँ। आसान ? क्या इसका मतलब है कि कपट और कामचोरी भी आसान है? नहीं, यह सच नहीं हो सकता। यह सच नहीं हो सकता कि लोग आराम और... पैसे से इतनी तत्परता से ललचा जाते हैं। मेरा जवाब क्या होना चाहिए इस पर मैंने काफ़ी विचार किया है, मैं कैसे पीटर को ख़ुद में विश्वास करने के लिए मना सकती हूँ और सबसे बड़ी बात यह कि उसे बेहतर के लिए बदल सकती हूँ। मैं नहीं जानती कि मैं सही रास्ते पर हूँ या नहीं।

मैंने अक्सर कल्पना की है कि कितना अच्छा हो कि कोई मुझे अपना राज़दार बनाए। अब उस जगह पर पहुँचने के बाद मैं महसूस कर रही हूँ कि ख़ुद को किसी और की स्थिति में रखना और फिर सही जवाब पाना कितना मुश्किल है। ख़ासकर इसलिए कि ' आसान' और 'पैसा' मेरे लिए बिलकुल नई व पूरी तरह से अजनबी अवधारणाएँ हैं।

पीटर मुझ पर निर्भर रहने लगा है और मैं किसी भी हालत में वैसा नहीं चाहती। अपने दो पैरों पर खड़े हो पाना ही काफ़ी मुश्किल है, अगर आपको अपने चरित्र, अपनी आत्मा के प्रति सच्चा रहना हो, तो यह और भी मुश्किल है।

मैं अथाह सागर में हूँ, ‘आसान' जैसे भयावह शब्द का कोई असरदार उपाय ढूँढ़ रही हूँ। मैं उसे यह कैसे स्पष्ट करूँ कि यह बहुत आसान व बढ़िया लग सकता है, लेकिन उसे वह ऐसी गहराइयों में ले जाएगा, जहाँ उसे दोस्त, कोई सहारा या ख़ूबसूरती नहीं मिलेगी, वह इतना नीचे चला जाएगा कि वह शायद फिर से सतह पर वापस न आ सके।

हम सभी ज़िंदा हैं, लेकिन हम यह नहीं जानते कि क्यों या फिर किसके लिए; हम सभी ख़ुशी की तलाश में हैं; हम सभी ऐसी ज़िंदगियाँ जी रहे हैं, जो अलग हैं और फिर भी एक जैसी हैं। हम तीनों की परवरिश अच्छे परिवारों में हुई है, हमें शिक्षा पाने और कुछ करने का अवसर मिला। ख़ुशी की उम्मीद करने के हमारे पास कई कारण हैं, लेकिन... हमें उसे अर्जित करना होगा। वह कुछ ऐसा है, जिसे आप आसान रास्ता अपनाकर नहीं पा सकते। ख़ुशी पाने का मतलब है अच्छा करना और काम करना, न कि अंदाज़े लगाना और आलसी होना। आलस्य भले ही बहुत लुभावना लगे, लेकिन केवल काम ही सच्ची संतुष्टि दे सकता है।

मैं ऐसे लोगों को नहीं समझ सकती, जो काम करना पसंद नहीं करते, लेकिन पीटर की समस्या वह भी नहीं है। बस, उसके पास कोई लक्ष्य नहीं है और उसके अलावा वह सोचता है कि वह इतना मूर्ख और बाक़ी लोगों से कमतर है कि वह कभी कुछ भी हासिल नहीं कर सकता। बेचारा लड़का, उसने कभी यह जाना ही नहीं कि किसी और को ख़ुश करने से कैसा महसूस होता है और मैं उसे यह नहीं सिखा सकती। वह धार्मिक नहीं है, वह ईसा मसीह का उपहास करता है और ईश्वर के नाम को व्यर्थ समझता है, हालाँकि मैं भी कट्टर नहीं हूँ, फिर भी उसे उतना अकेला, उतना नफ़रत से भरा और दुखी देखकर मुझे बुरा लगता है।

जो लोग धार्मिक होते हैं, उन्हें ख़ुश होना चाहिए, क्योंकि हर किसी में अपने से ऊँची ताक़त में विश्वास रखने की क़ाबिलियत नहीं होती। आपको शाश्वत दंड के डर में नहीं जीना होता; पाप की शुद्ध, स्वर्ग-नर्क जैसी अवधारणाओं को स्वीकार करना कई लोगों के लिए मुश्किल हो सकता है, फिर भी धर्म स्वयं, कोई भी धर्म इंसान को सही रास्ते पर रखता है। ईश्वर को डर से नहीं, बल्कि गौरव की अपनी समझ को बनाए रखना चाहिए और अपने विवेक के अनुसार चलना चाहिए। अगर दिन के ख़त्म होने पर हर कोई अपने बर्ताव की समीक्षा करे और अपनी सही-ग़लत बातों का आकलन करे, तो सभी लोग कितने अच्छे व महान बन जाएँगे। हर नए दिन पर वे स्वतः ही बेहतर करने की कोशिश करेंगे और कुछ समय बाद निश्चित तौर पर काफ़ी कुछ हासिल कर लेंगे। इस नुस्खे को अपनाने के लिए हर किसी का स्वागत है; इसमें कोई लागत नहीं और यह काफ़ी उपयोगी है। जो नहीं जानते, उन्हें अपने अनुभव से यह पता लगाना होगा, 'मौन विवेक आपको ताक़त देता है!'

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

शनिवार, 8 जुलाई, 1944

प्यारी किटी,

मि. ब्रोक्स बेवरवेक में थे और कृषि उत्पादन की नीलामी से वे हमारे लिए स्ट्रॉबेरी लाने में कामयाब रहे। हमारे पास जो स्ट्रॉबेरी पहुँची, वह काफ़ी धूल व रेत भरी थी। ऑफ़िस और हमारे लिए चौबीस पेटियाँ आईं। उसी शाम हमने पहले छह जार डिब्बाबंद किए और जैम के आठ जार बनाए । अगली सुबह मीप ने ऑफ़िस के लिए जैम बनाना शुरू किया।

साढ़े बारह बजे बाहर के दरवाज़े पर ताला लगा दिया गया, पीटर, पापा और मि. फ़ॉन डान सीढ़ियों पर से पेटियों को घसीटकर रसोईघर में लाए । ऐन को वॉटर हीटर से गर्म पानी मिला, मारगोट बाल्टी लाई, सभी लोग काम पर जुट गए! एक अजीब से एहसास के साथ मैं भीड़ भरी रसोई में घुसी। मीप, बेप, मि. क्लेमन, यान, पापा, पीटर: अनेक्स की टुकड़ी और आपूर्ति दल सभी एक साथ जुटे थे और वह भी दिन दहाड़े ! खिड़कियाँ, परदे खुले थे, ऊँची आवाज़ें थीं, दरवाज़े भड़भड़ाए जा रहे थे मैं उत्तेजना से काँप रही थी। मैं सोचती जा रही थी, 'क्या हम सचमुच छिपे हुए हैं?' ज़रूर ऐसा ही महसूस होता होगा, जब आप आख़िरकार दुनिया में बाहर निकलें। कड़ाही भरी थी, मैं ऊपर गई, जहाँ पर परिवार के बाक़ी लोग रसोई की मेज़ पर जमा होकर स्ट्रॉबेरी छील रहे थे। कम से कम उन्हें यही करना था, लेकिन बाल्टी में जाने के बजाय ज़्यादा स्ट्रॉबेरी उनके मुँह में जा रही थी। उन्हें जल्दी ही दूसरी बाल्टी की ज़रूरत थी। पीटर नीचे गया, लेकिन फिर दरवाज़े की घंटी दो बार बजी। बाल्टी को वहीं पर छोड़कर पीटर ऊपर की तरफ़ भागा और अपने पीछे किताबों की अलमारी को बंद किया। हम बेचैनी से इंतज़ार करते रहे; स्ट्रॉबेरी धुलने के इंतज़ार में थीं, लेकिन हमने घर के नियम का पालन किया: 'नीचे अजनबियों के होने की स्थिति में पानी न चलाया जाए वे नालियों की आवाज़ सुन सकते हैं।'

यान हमें बताने ऊपर आए कि डाकिया आया था, पीटर तेज़ी से फिर से नीचे गया । डिंग-डॉग... दरवाज़े की घंटी, वह फिर से पलटा । मैं सुनने लगी कि कोई आ तो नहीं रहा, पहले किताबों की अलमारी के पास और फिर सीढ़ियों पर ऊपर खड़ी हो गई । आख़िरकार पीटर और मैं रेलिंग के सहारे खड़े हो गए और नीचे से आने वाली आवाज़ों पर ध्यान लगाने लगे। कोई अपरिचित आवाज़ें नहीं। पीटर पंजों के बल सीढ़ियों पर आधी दूरी तक गया और आवाज़ लगाई, 'बेप!' एक बार और: 'बेप!' उसकी आवाज़ रसोई के शोर-शराबे में डूब गई। इसलिए वह रसोईघर की तरफ़ भागा, जबकि मैं घबराते हुए ऊपर से पहरेदारी करती रही। 'तुरंत ऊपर जाओ, पीटर, यहाँ पर अकाउंटेंट है, तुम्हें जाना होगा ! ' वह मि. कुगलर की आवाज़ थी । आह भर कर पीटर ऊपर आया और किताबों की अलमारी बंद कर दी।

मि. कुगलर अंततः डेढ़ बजे ऊपर आए । 'हे भगवान, पूरी दुनिया स्ट्रॉबेरी में डूब गई है। मैंने नाश्ते में स्ट्रॉबेरी खाई, यान दोपहर के खाने में उसे ले रहे हैं, क्लेमन नाश्ते के तौर पर स्ट्रॉबेरी खा रहे हैं, मीप उन्हें उबाल रही है, बेप उन्हें छील रही है और मैं जहाँ भी जाऊँ, मुझे स्ट्रॉबेरी की ख़ुशबू आ रही है। उस लाल चीज़ से बचने के लिए मैं ऊपर आया और यहाँ क्या देखता हूँ? लोग स्ट्रॉबेरी धो रहे हैं!'

बची हुई स्ट्रॉबेरी को डिब्बाबंद कर दिया गया। उस शाम दो जारों की सील खुल गई और पापा ने तुरंत उसे जैम में बदल दिया। अगली सुबह दो और ढक्कन खुल गए और दोपहर में चार मि. फ़ॉन डान ने रोगाणुओं मारने की प्रक्रिया में जारों को पर्याप्त गर्म नहीं किया, इसलिए पापा को हर शाम जैम बनाना पड़ा। हमने स्ट्रॉबेरी के साथ दलिया खाया, छाछ के साथ स्ट्रॉबेरी ली, डबलरोटी के साथ उसे खाया, मीठे में स्ट्रॉबेरी खाई, चीनी के साथ स्ट्रॉबेरी खाई और रेत के साथ भी। दो दिन तक स्ट्रॉबेरी के सिवा कुछ नहीं था, स्ट्रॉबेरी, स्ट्रॉबेरी और फिर उसके बाद हमारी आपूर्ति या तो ख़त्म हो गई या फिर वह डिब्बों में बंद हो गई।

'ऐन,' एक दिन मुझे मारगोट ने पुकारा, 'मिसेज़ फ़ॉन हूवन ने हमारे लिए मटर भेजे हैं, बीस पाउंड मटर !'

'बहुत अच्छा किया, उन्होंने,' मेरा जवाब था । सचमुच अच्छी बात थी, लेकिन काम बहुत था... उफ़ !

'शनिवार को आप सबको मटर छीलने होंगे,' माँ ने मेज़ पर घोषणा की।

आज सुबह नाश्ते के बाद हमारा सबसे बड़ा बरतन मेज़ पर था, जिसमें मटर भरे थे। अगर तुम्हें लगता है कि मटर छीलना उबाऊ काम है, तो तुम्हें उसकी अंदर की परत को हटाने का काम करना चाहिए। मुझे नहीं लगता कि कई लोग यह नहीं जान पाते कि जब आप परत निकालते हैं, तो फलियाँ कोमल, स्वादिष्ट और विटामिनों से भरपूर होती हैं। इससे भी बड़ा फ़ायदा यह है कि जब आप सिर्फ़ मटर खाते हैं, तो आपको उसका तीन गुना मिलता है।

फली खोलना बहुत सूक्ष्म और कुशलता भरा काम है, जो किसी रूढ़िवादी दंतचिकित्सक या फिर नुक्ताचीनी करने वाले मसाला विशेषज्ञ के लिए मुनासिब हो सकता है, लेकिन एक मेरे जैसी किसी उतावली किशोरी के लिए यह भयानक है। हमने साढ़े नौ बजे काम शुरू किया; साढ़े दस बजे मैं बैठी, फिर से ग्यारह बजे उठी, साढ़े ग्यारह बजे फिर से बैठ गई । मेरे कानों में यह सब गूँज रहा था : किनारे को तोड़ो, फली खोलो, लड़ी को खींचो, फली बरतन में, किनारे को तोड़ो, फली खोलो, लड़ी को खींचो, फली बरतन में, वगैरह, वगैरह। मेरी आँखों के आगे यही नज़ारा था: हरी, हरी, कीड़ा, लड़ी, सड़ी हुई फली, हरी, हरी । नीरसता से जूझने और कुछ करने के लिए मैं सारी सुबह बकबक करती रही, जो भी मेरे मन में आया, बोलती रही और हर किसी को हँसाती रही । एकरसता मुझे मार रही थी । हर बार मटर छीलते हुए मेरे मन में यह निश्चय और दृढ़ होता जा रहा था कि मैं कभी भी सिर्फ़ एक गृहिणी नहीं बनना चाहूँगी!

बारह बजे आख़िरकार हमने नाश्ता किया, लेकिन साढ़े बारह बजे से सवा एक बजे तक हमें फिर से मटर छीलने पड़े। रुकने पर मुझे थोड़े चक्कर आने लगे, बाक़ी लोगों को भी ऐसा ही लगा। मैंने चार बजे तक झपकी ली, फिर भी मटर की वजह से अजीब सा महसूस कर रही थी ।

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

शनिवार, 15 जुलाई, 1944

प्यारी किटी,

हमें पुस्तकालय से व्हाट डु यू थिंक ऑफ़ द मॉडर्न यंग गर्ल ? शीर्षक से एक चुनौतीपूर्ण किताब मिली है। मैं इस विषय पर आज बातचीत करूँगी।

लेखिका 'आज के युवा' की हर तरह से आलोचना करती है, हालाँकि वह उन्हें निकम्मा मानकर उसे पूरी तरह ख़ारिज नहीं करती। इसके उलट, उसका मानना है कि युवा ज़्यादा बड़ी, बेहतर और ज़्यादा ख़ूबसूरत दुनिया बनाने की ताक़त रखते हैं, लेकिन वे छिछली चीज़ों में व्यस्त रहते हैं और असली सुंदरता पर ध्यान नहीं देते। कई जगहों पर मुझे लगा कि लेखिका का इशारा मेरी तरफ़ है, इसीलिए मैं अंततः खुद को तुम्हारे सामने पूरी तरह खोलकर रख रही हूँ और इस हमले के ख़िलाफ़ अपना बचाव कर रही हूँ।

मुझे जानने वाले मेरे चरित्र की एक अनोखी ख़ासियत से वाकिफ़ हैं: मुझमें बहुत आत्मज्ञान है। मैं जो कुछ करती हूँ, उसमें ख़ुद को ऐसे देख सकती हूँ, जैसे कि मैं अजनबी हूँ। मैं रोज़मर्रा की ऐन से दूर खड़े होकर उसे बिना किसी पक्षपात या बहाने के देख सकती हूँ, उसके अच्छे या बुरे पक्ष को देख सकती हूँ। आत्मचेतना मुझसे कभी दूर नहीं होती और हर बार जब मैं अपना मुँह खोलती हूँ, तो सोचती हूँ, 'तुम्हें उस बात को अलग तरह से कहना चाहिए था' या 'वह जैसा है, ठीक है।' मैं अपनी भर्त्सना इतने तरीक़ों से करती हूँ कि मैं पापा की इस कहावत को समझने लगी हूँ: 'हर बच्चे को ख़ुद ही ऊँचा उठना होता है।' माँ-बाप अपने बच्चों को बस सलाह ही दे सकते हैं या फिर उन्हें सही दिशा दिखा सकते हैं। आख़िरकार लोगों को अपने चरित्र का विकास ख़ुद ही करना होता है। इसके अलावा, मैं जिंदगी का सामना असाधारण साहस के साथ करती हूँ। मैं काफ़ी ताक़तवर महसूस करती हूँ और बोझ को उठाने के क़ाबिल हूँ, छोटी हूँ और आज़ाद हूँ! जब मुझे पहली बार यह महसूस हुआ, तो मैं ख़ुश थी, क्योंकि इसका मतलब है कि मैं ज़िंदगी के झटकों का सामना ज़्यादा आसानी से कर सकती हूँ।

मैंने इन चीज़ों पर अक्सर बात की है। अब मैं 'पापा और माँ मुझे नहीं समझते,' इस अध्याय पर लौटना चाहूँगी। मेरे माँ-बाप ने मुझे बहुत लाड़- प्यार दिया, मुझसे रहमदिली से पेश आए, फ़ॉन डान परिवार के ख़िलाफ़ मेरा बचाव किया और वह सब किया, जो माता-पिता कर सकते हैं। इसके बावजूद काफ़ी लंबे समय से मैंने ख़ुद को बहुत अकेला, उपेक्षित पाया है और मुझे ग़लत समझा गया है। पापा ने मेरी क्रांतिकारी प्रकृति को काबू करने की पूरी कोशिश की, लेकिन उससे कोई फ़ायदा नहीं हुआ। मैंने अपने बर्ताव का विश्लेषण किया और देखा कि मैं क्या ग़लत कर रही थी।

पापा ने इस संघर्ष में मेरी मदद क्यों नहीं की? मेरी तरफ़ मदद का हाथ बढ़ाने की कोशिश में उनकी तरफ़ से क्या कमी रह गई ? जवाब यह है कि उन्होंने ग़लत तरीक़ों का इस्तेमाल किया। वे मुझसे हमेशा ऐसे बातें करते थे, जैसे कि मैं कोई बच्चा हूँ, जो मुश्किल हालात से गुज़र रहा है। यह अजीब लगता है, लेकिन पापा ही हैं, जिन्होंने मुझे आत्मविश्वास की समझ दी और मुझे ऐसा महसूस करवाया कि मैं समझदार इंसान हूँ। लेकिन उन्होंने एक चीज़ नज़रअंदाज़ कर दी: वे यह देखने में नाकाम रहे कि मेरे लिए मुश्किलों पर जीत पाने का मेरा संघर्ष किसी भी चीज़ से ज़्यादा अहम था । मैं 'किशोरां की आम समस्याओ' या 'बाक़ी लड़कियां' या 'तुम इससे निकल आओगी,' जैसा कुछ नहीं सुनना चाहती थी। मैं बाक़ी लड़कियों के जैसा बर्ताव नहीं चाहती थी, बल्कि मैं तो ऐन जैसा समझा जाना चाहती थी और पिम उस बात को नहीं समझ सके। इसके अलावा मैं किसी को तब तक अपना राज़दार नहीं बना सकती, जब तक कि वह मुझे अपने बारे में काफ़ी कुछ न बताए और क्योंकि मैं पापा के बारे में बहुत कम जानती हूँ, तो मैं उनसे नज़दीकी नहीं बना सकी। पिम ने हमेशा बुजुर्ग पिता के जैसा बर्ताव किया, जो ख़ुद भी कभी उन आवेगों से गुज़रे थे, लेकिन जो अब मुझसे एक दोस्त की तरह नहीं जुड़ पाते, चाहे वे कितनी भी कोशिशें कर लें। नतीजतन, मैंने कभी जिंदगी के प्रति अपने नज़रिये या सोचे-विचारे सिद्धांतों को किसी के साथ नहीं, बल्कि अपनी डायरी के साथ साझा किया और कभी-कभार मारगोट के साथ उन्हें बाँटा । मैंने अपने से जुड़ी हर बात को पापा से छिपाया, अपने आदर्श उनके साथ कभी साझा नहीं किए, जानबूझकर उन्हें अपने से दूर करके पराया कर दिया।

यह और किसी तरीक़े से मुमकिन नहीं था। मैंने खुद को पूरी तरह से अपनी भावनाओं के मुताबिक़ चलने दिया । यह अहंवादी बात थी, लेकिन मैंने वही किया जो मेरी मानसिक शांति के लिए सबसे सही था। अगर मुझे आलोचना का सामना करना पड़ता, तो मैं उस शांति को खो देती और उसके साथ ही आत्मविश्वास को भी, जिसे मैंने कड़ी मेहनत से पाया था। यह थोड़ा कठोरता भरा लग सकता है, लेकिन मैं पिम से भी आलोचना बर्दाश्त नहीं कर सकती, क्योंकि मैंने न केवल कभी उनके साथ अपनी सबसे अंदरूनी भावनाएँ नहीं बाँटीं, बल्कि अपने चिड़चिड़ेपन से उन्हें अपने से और भी दूर कर दिया।

इस बात पर मैं अक्सर विचार करती हूँ: कई बार ऐसा क्यों होता है कि पिम मुझे इतना चिढ़ा देते हैं? मैं उनका पढ़ाना मुश्किल से बर्दाश्त कर पाती हूँ और उनका स्नेह मुझे थोपा हुआ लगता है। मैं अकेले छोड़ दिया जाना चाहती हूँ और चाहती हूँ कि वे तब तक मुझ पर ध्यान न दें, जब तक कि मैं ख़ुद को लेकर आश्वस्त न हो जाऊँ! मुझे अब तक उस घटिया सी चिट्ठी को लिखने का अपराधबोध है, जो मैंने परेशान होकर उन्हें लिखी थी। हर तरह से मज़बूत और हिम्मतवाला होना बहुत मुश्किल काम है!

फिर भी वह मेरी सबसे बड़ी मायूसी नहीं है। नहीं, मैं पापा से ज़्यादा पीटर के बारे में सोचती हूँ। मैं यह अच्छी तरह जानती हूँ कि वह मेरी जीत था, मैं उसकी नहीं। मैंने अपने दिमाग़ में उसकी एक छवि बना ली थी, उसकी कल्पना एक शांत, प्यारे, संवेदनशील लड़के के रूप में की थी, जिसे दोस्ती व प्यार की बहुत ज़रूरत थी! मैं किसी जीते-जागते इंसान के सामने अपना दिल खोलकर रखना चाहती थी। मैं एक ऐसा दोस्त चाहती थी, जो मुझे मेरा रास्ता फिर से पाने में मेरी मदद करे। मैं जो पाने निकली थी, उसे मैंने हासिल कर लिया, मैंने धीरे-धीरे लेकिन यक़ीनन उसे अपनी तरफ़ खींच लिया। जब मैंने उसे दोस्त बनाने में कामयाबी पा ली, तो वह सहज ही अंतरंगता में बदल गई, अब सोचने पर वह मुझे घृणित लगती है । हमने बहुत निजी चीज़ों पर बात की, लेकिन फिर भी उन चीज़ों पर बात नहीं कर पाए, जो मेरे दिल के सबसे क़रीब थीं। मैं कभी पीटर को नहीं समझ पाई। क्या वह बनावटी है या फिर उसका शर्मीलापन उसे रोकता है, मेरे साथ भी ? लेकिन उस सबको एक तरफ़ रख भी दूँ, तो मैंने एक ग़लती की: मैंने अंतरंगता का इस्तेमाल उसके नज़दीक जाने के लिए किया और ऐसा करते हुए दोस्ती के बाक़ी स्वरूपों को अलग कर दिया। वह प्यार की चाह रखता है और मैं देख सकती हूँ कि दिन ब दिन वह मुझे ज़्यादा पसंद करने लगा है। साथ गुज़रे हमारे वक़्त से वह तृप्त महसूस करता है, लेकिन मेरे अंदर फिर से शुरुआत करने की इच्छा जागती है। जिन विषयों को खुले में लाना चाहती हूँ, उन पर मैं कभी चर्चा नहीं करती। मैंने पीटर को मजबूर किया कि वह मेरे क़रीब आए, और अब वह जीजान से लगा है। ईमानदारी से कहूँ तो मुझे ऐसा कोई तरीका नहीं दिख रहा कि मैं उसे अपने से दूर झटक सकूँ और उसे उसके अपने पैरों पर खड़ा कर सकूँ। मुझे जल्दी ही महसूस हो गया था कि वह कभी भी आत्मीय नहीं बन सकता, लेकिन फिर भी मैंने उसे उसकी सँकरी दुनिया से निकालने और उसके युवा क्षितिज का विस्तार करने की कोशिश की।

'कहीं गहरे में युवा बूढ़ों से कहीं ज़्यादा अकेले हैं।' मैंने किसी किताब में पढ़ा था और यह बात मेरे दिमाग़ में अटकी रही। मेरे हिसाब से यह सच है।

अगर तुम सोच रही हो कि यहाँ बड़ों के लिए बच्चों से ज़्यादा मुश्किल है, तो जवाब है, नहीं, निश्चित तौर पर नहीं। बड़े लोगों की हर चीज़ को लेकर एक राय होती है और वे ख़ुद को लेकर व अपनी गतिविधियों को लेकर काफ़ी आश्वस्त होते हैं। हम बच्चों के लिए यह दोगुना मुश्किल होता है कि हम ऐसे समय में अपनी राय पर क़ायम रहें, जब आदर्श चकनाचूर हो रहे हों, नष्ट हो रहे हों, जब मानव स्वभाव का सबसे बुरा पक्ष हावी होता है, जब हर कोई सत्य, न्याय और ईश्वर पर संदेह करने लगता है।

जो भी यह दावा करता है कि यहाँ अनेक्स में बड़े लोगों को ज़्यादा मुश्किल हो रही है, वह यह नहीं समझता कि समस्याओं का हम पर ज़्यादा बड़ा असर पड़ता है। इन समस्याओं से निपटने के लिहाज़ से हम बहुत छोटे हैं, लेकिन वे हम पर पड़ती जाती हैं और तब तक हम पर हावी रहती हैं, जब तक कि हम कोई हल निकालने के लिए मजबूर न हो जाएँ, हालाँकि अधिकतर समय हमारे समाधान तथ्यों के बोझ तले चूर हो जाते हैं। ऐसे समय में बहुत मुश्किल है, जब आदर्श, सपने और उम्मीदें हमारे भीतर उठती हैं, लेकिन कठोर सच से वे कुचली जाती हैं। यह आश्चर्य ही है कि मैंने अपने सभी आदर्शों को अब तक नहीं छोड़ा है, जबकि वे बहुत निरर्थक और अव्यावहारिक लगते हैं।

मेरे लिए यह सरासर नामुमकिन है कि मैं अव्यवस्था, तकलीफ़ और मौत की नींव पर अपनी ज़िंदगी की इमारत बनाऊँ। मैं देख रही हूँ कि दुनिया धीरे-धीरे निर्जन होती जा रही है, मैं आने वाले तूफ़ान को सुन सकती हूँ और एक दिन वह हम सबको ख़त्म कर देगा, मैं लाखों की तकलीफ़ को महसूस कर सकती हूँ। फिर भी मैं जब आसमान की तरफ़ देखती हूँ, तो मुझे पता नहीं क्यों महसूस होता है कि सब कुछ बेहतरी के लिए बदलेगा कि यह निर्दयता भी समाप्त होगी कि शांति व सुकून एक बार फिर लौटेगा। इस बीच, मुझे अपने आदर्शों पर टिके रहना होगा। शायद एक दिन आएगा, जब मैं उन्हें साकार कर पाऊँगी !

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

शुक्रवार, 21 जुलाई, 1944

प्यारी किटी,

मैं अंततः आशावादी हो रही हूँ। अब आख़िरकार हालात अच्छे हैं! सचमुच अच्छे हैं ! बढ़िया ख़बर है! हिटलर को मारने की कोशिश हुई है और यह कोशिश यहूदी साम्यवादियों या अंग्रेज़ पूँजीवादियों द्वारा नहीं की गई, बल्कि एक जर्मन जनरल ने ऐसा किया, जो खुद एक कुलीन और युवा है। फ़्यूहर की जान ईश्वर ने बचाई: बदक़िस्मती से वे बच गए और उन्हें बस जलने से थोड़ी चोट लगी व खरोंचें आईं। उनके नज़दीक मौजूद कई अफ़सर व जनरल मारे से गए या फिर घायल हो गए। मुख्य षड्यंत्रकारी को गोली मार दी गई।

यह इस बात का बेहतरीन सबूत है कि किस तरह से कई अफ़सर व जनरल युद्ध से उकता गए हैं और चाहते हैं कि हिटलर एक अथाह गर्त में गिर जाए, ताकि वे सैन्य तानाशाही स्थापित कर सकें, मित्र राष्ट्रों के साथ समझौता कर लें, फिर से हथियारबंद हों और कुछ दशक बाद नई लड़ाई शुरू कर सकें। शायद ईश्वर हिटलर को जानबूझकर मोहलत दे रहा है, क्योंकि मित्र राष्ट्रों के लिहाज़ से यह ज़्यादा आसान व सस्ता है कि जर्मन आपस में लड़ मरें। इससे रूसियों व ब्रिटिश के लिए काम कम हो जाएगा और वे जल्द से जल्द अपने शहरों का पुनर्निर्माण कर सकेंगे। लेकिन अभी हम उस बिंदु तक नहीं पहुँचे हैं और मैं उस गौरवशाली घटना का पूर्वानुमान करना पसंद नहीं करती। फिर भी तुमने ज़रूर गौर किया होगा कि मैं बस सच बता रही हूँ, केवल सच और सच के सिवाय कुछ भी नहीं। इस समय मैं ऊँचे आदर्शों की दुहाई नहीं दे रही हूँ।

हिटलर इतने दयालु हैं कि अपने निष्ठावान, समर्पित लोगों के लिए घोषणा कर रहे हैं कि आज की स्थिति में सभी सैनिक गेस्टापो के तहत हैं और जिस भी सैनिक को पता हो कि उसका कोई वरिष्ठ अधिकारी फ़्यूहर को मारने की कायराना कोशिश में शामिल था, तो वह देखते ही उसे गोली मार सकता है!

अजीब सी स्थिति हो जाएगी। लंबी दूरी तक चलने के बाद एक सिपाही के पैर तकलीफ़ में हैं और उसका कमान अधिकारी उस पर चिल्लाता है, सिपाही अपनी राइफ़ल उठाकर चीख़ता है, 'तुमने, तुमने फ़्यूहर को मारने की कोशिश की। अब यह लो !' एक गोली में उसे डाँटने की हिमाकत करने वाला घमंडी अफ़सर हमेशा के लिए मौत की नींद सो जाता है। अंततः हर बार जब कोई अफ़सर किसी सैनिक को देखता है या फिर उसे कोई आदेश देता है, तो उसकी घिग्घी बँध जाती है, क्योंकि सिपाही के पास उससे ज़्यादा ताक़त है।

क्या तुमने यह ग़ौर किया कि मैं फिर से एक विषय से दूसरे विषय पर आ-जा रही हूँ? मैं कुछ नहीं कर सकती, अक्टूबर में फिर से स्कूल जा पाने की संभावना से मैं इतनी ख़ुश हूँ कि व्यवस्थित ढंग से सोच भी नहीं पा रही हूँ! मेरी प्रिय, क्या मैंने अभी तुम्हें नहीं बताया कि मैं घटनाओं का पूर्वानुमान नहीं लगाना चाहती ? मुझे माफ़ करना, किटी, मुझे विरोधाभासों की पोटली ऐसे ही नहीं कहा जाता!

तुम्हारी, ऐन एम फ्रैंक

मंगलवार 1 अगस्त, 1944

प्यारी किटी,

पिछली चिट्ठी के आख़िर में मैंने 'विरोधाभासों की पोटली' लिखा था और इसकी शुरुआत भी मैं उसी से कर रही हूँ। क्या तुम मुझे बता सकती हो कि आख़िर इसका मतलब क्या होता है? 'विरोधाभास' का क्या अर्थ है ? बहुत से शब्दों की तरह इसकी व्याख्या भी दो तरह से की जा सकती है: एक विरोधाभास, जो बाहर से लगाया गया हो और एक जो भीतर से हो । पहले वाले का मतलब है कि अन्य लोगों की राय को स्वीकार न करना, सबसे अच्छी तरह जानना, अपनी बात ऊपर रखना; संक्षेप में, वे सभी अप्रिय विशेषताएँ, जिनके लिए मैं जानी जाती हूँ। दूसरे के लिए मैं नहीं जानी जाती और वही मेरा रहस्य है।

जैसा कि मैं तुम्हें कई बार बता चुकी हूँ कि मैं दो हिस्सों में बँटी हुई हूँ। एक हिस्से में मेरा अपार उत्साह है, मेरा हल्कापन, ज़िंदगी की मेरी ख़ुशी और सबसे अहम हालात के उजले आयाम को देखना। उससे मेरा मतलब है कि मुझे चुहलबाज़ियों, चुंबन, गले लगने, गुस्ताख़ किस्म के चुटकुलों में कोई ख़राबी नहीं दिखती। मेरा यह पहलू अक्सर दूसरे पक्ष पर हमला करने की ताक में रहता है, जो अधिक निष्कपट, गहरा और शिष्ट है। ऐन के बेहतर पहलू को कोई नहीं जानता और यही वजह है कि अधिकतर लोग मुझे बर्दाश्त नहीं कर सकते। मैं किसी दोपहर मज़ेदार जोकर हो सकती हूँ, लेकिन उसके बाद लोगों के लिए काफ़ी हो जाता है। दरअसल, मैं वैसी ही हूँ, जैसे किसी गंभीर विचारक के लिए कोई रोमांटिक फ़िल्म होती है - मात्र एक विषयांतर, एक हास्यप्रद अंतराल, कुछ ऐसा जिसे जल्दी ही भुला दिया जाएगा: बुरा नहीं, लेकिन ख़ास अच्छा भी नहीं। मुझे तुम्हें यह बताना अच्छा नहीं लगता, लेकिन मुझे यह क्यों नहीं स्वीकार करना चाहिए, जबकि मैं जानती हूँ कि यह सच है? मेरा हल्का, सतही पहलू हमेशा मेरे गहरे पक्ष से आगे बढ़ेगा और इसलिए हमेशा जीत जाएगा। तुम नहीं जानती कि मैं इस ऐन को कितना धक्का देने की कोशिश करती हूँ, जो कि जानी-पहचानी ऐन का सिर्फ़ आधा ही हिस्सा है, उसे हराना, छिपाना चाहती हूँ। लेकिन यह कारगर नहीं होता और मैं जानती हूँ कि क्यों ।

मैं डरती हूँ कि मुझे मेरे सामान्य स्वरूप में जानने वाले लोग मेरे बेहतर व शिष्ट पक्ष को जान लेंगे। मुझे डर है कि वे मेरा मज़ाक उड़ाएँगे, सोचेंगे कि मैं अजीब व भावुक हूँ और वे मुझे गंभीरता से नहीं लेंगे। मुझे आदत है कि लोग मुझे गंभीरता से न लें, बस सिर्फ़ हल्के-फुल्के मिज़ाज का समझें । ऐन को इसकी आदत है और वह उसे बर्दाश्त कर लेगी; ज़्यादा 'गहरी' ऐन बहुत कमज़ोर है। अगर मैंने अच्छी ऐन को पंद्रह मिनट भी सबके सामने खड़ा कर दिया, तो उसे जैसे ही बोलने के लिए बुलाया जाएगा, वह सीपी की तरह बंद हो जाएगी और बात करने का काम पहली वाली ऐन करेगी। मेरे जानने-बूझने से पहले ही वह ग़ायब हो जाएगी।

अच्छी ऐन कभी साथ नहीं दिखाई देती। वह कभी सामने नहीं आती, हालाँकि जब मैं अकेली होती हूँ, तो वह अहम जगह ले लेती है। मैं जानती हूँ कि मैं कैसी बनना चाहती हूँ, मैं अंदर से ... कैसी हूँ। लेकिन बदकिस्मती से मैं अपने साथ ही बस वैसी हूँ। शायद यही वजह है, शायद नहीं, पक्के तौर पर यही वजह है कि मैं अंदर से ख़ुश महसूस करती हूँ और बाक़ी लोग सोचते हैं कि मैं बाहर से ख़ुश हूँ। अंदर की निर्मल ऐन मुझे राह दिखाती है, लेकिन बाहर से मैं एक छोटी ज़िंदादिल बकरी की तरह हूँ, जो अपनी रस्सी को झटका देती रहती है।

जैसा कि मैं तुम्हें बता चुकी हूँ कि जो मैं कहती हूँ, उसे महसूस नहीं करती, इसलिए मेरी छवि लड़कों का पीछा करने वाली, चुहलबाज़, होशियार और रोमांटिक कहानियाँ पढ़ने वाली लड़की की है। यह निश्चिंत क़िस्म की ऐन हँसती है, छिछोरे जवाब देती है, कंधे उचकाती है और दिखाती है जैसे कि उसे किसी चीज़ की कोई परवाह नहीं। ख़ामोश ऐन ठीक उसके उलट करती है। अगर मैं पूरी ईमानदारी बरतते हुए कहूँ, तो मुझे यह मानना पड़ेगा कि मुझे इस बात से फ़र्क पड़ता है, मैं ख़ुद को बदलने की काफ़ी कोशिश कर रही हूँ और यह कि मैं हमेशा ज़्यादा ताक़तवर दुश्मन से जूझती हूँ।

मेरे भीतर कोई आवाज़ सुबक रही है। 'देखो, तुम्हारा क्या हाल हो गया है। तुम नकारात्मक राय, निराशाजनक दृष्टियों और मज़ाक उड़ाते चेहरों, लोगों से घिरी हो, जो तुम्हें नापसंद करते हैं और सिर्फ़ इसलिए क्योंकि तुम अपने दूसरे बेहतर पक्ष की सलाह नहीं सुनती।' यक़ीन करो, मैं सुनना चाहती हूँ, लेकिन वह काम नहीं करता, क्योंकि मेरे ख़ामोश व गंभीर रहने पर सबको लगता है कि मैं कोई नया नाटक कर रही हूँ और फिर मुझे ख़ुद को बचाने के लिए किसी चुटकुले का सहारा लेना पड़ता है, मैं अपने परिवार की बात तक नहीं कर रही, जो मान लेते हैं कि मैं ज़रूर बीमार हूँ, वे ऐस्प्रिन और दर्दनाशक दवाइयाँ हँस देते हैं, मेरी गर्दन व माथे को छूकर देखते हैं कि मुझे बुख़ार तो नहीं, मेरे शौच के बारे में पूछते हैं और ख़राब मूड में होने के कारण मुझे फटकारते हैं, यह तब तक होता है, जब तक कि मैं परेशान नहीं हो जाती, सब के सब मेरे चारों ओर मँडराने लगते हैं, तो मैं चिढ़ जाती हूँ, फिर दुखी हो जाती हूँ और आख़िरकार अपने दिल को पूरी तरह से उलट देती हूँ, बुरे हिस्से को बाहर व अच्छे हिस्से को अंदर कर देती हूँ और वह तरीक़ा खोजने की कोशिश करती हूँ, जिससे वैसी बन सकूँ जैसा कि मैं चाहती हूँ और जैसी मैं हो सकती हूँ... अगर दुनिया में और लोग न हों।

तुम्हारी, ऐन एम फ़्रैंक

(ऐन की डायरीं यहाँ समाप्त हो जाती है।)

-उन लोगों के आद्याक्षर दिए गए हैं, जो गुमनाम रहने के इच्छुक थे।

उपसंहार

4 अगस्त, 1944 को सुबह दस व साढ़े दस बजे के बीच 263 प्रिंसग्राफ़्त में एक कार रुकती है। कई आकृतियाँ सामने आती हैं: वर्दी में एक एसएस सार्जेंट कार्ल योज़फ़ सिल्बरबावर और सुरक्षा पुलिस के कम से कम तीन डच सदस्य, सशस्त्र लेकिन सादे वेश में। किसी ने ज़रूर उन्हें ख़बर दी होगी।

उन्होंने अनेक्स में छिपे आठ लोगों और उनके दो मददगारों विक्टर कुगलर और योहान्स क्लेमन को गिरफ़्तार कर लिया, हालाँकि मीप गीज़ और एलिज़ाबेथ (बेप) वुश्कल को नहीं पकड़ा गया। अनेक्स में बरामद सभी क़ीमती चीज़ों व नक़दी को भी ले लिया गया।

गिरफ़्तारी के बाद कुगलर और क्लेमन को ऐम्स्टर्डम की एक जेल में ले जाया गया। 11 सितंबर, 1944 को उन्हें बिना किसी सुनवाई के आमर्शफूर्त (हॉलैंड) के एक शिविर में भेज दिया गया। ख़राब सेहत के कारण क्लेमन को 18 सितंबर, 1944 को रिहा कर दिया गया। वे 1959 में अपनी मृत्यु तक ऐम्स्टर्डम में रहे।

28 मार्च, 1945 को कुगलर जेल की सज़ा से बचने में कामयाब रहे, जब उन्हें व उनके साथी क़ैदियों को जबरन मज़दूरी कराने के लिए जर्मनी भेजा जा रहा था। वे 1955 में कनाडा चले गए और 1989 में टोरंटो में उनकी मृत्यु हुई।

एलिज़ाबेथ (बेप) वुश्कल की मृत्यु 1983 में ऐम्स्टर्डम में हुई।

मीप संत्रोशिट्ज़ गीज़ की मृत्यु 2010 में हुई। उनके पति यान का निधन 1993 में हुआ।

गिरफ़्तारी के बाद अनेक्स के आठों निवासियों को पहले ऐम्स्टर्डम की जेल में लाया गया और फिर उन्हें उत्तरी हॉलैंड में यहूदियों के लिए बने वेस्टरबोर्क के शरणार्थी शिविर में भेज दिया गया। 3 सितंबर, 1944 को वेस्टरबोर्क से जाने वाली आख़िरी सवारी में उन्हें रवाना किया गया और वे तीन दिन बाद ऑशवित्ज़ (पोलैंड) पहुँचे।

ऑटो फ़्रैंक के कथन के अनुसार, हेमन फ़ॉन पेल्स (फ़ॉन डान) को अक्टूबर या नवंबर 1944 में ऑशवित्ज़ में विषैली गैस से मार दिया गया, इसके कुछ ही दिन बाद इन गैस चेम्बर्स को तोड़ दिया गया था।

ऑगुस्ते फ़ॉन पेल्स (पेट्रोनेला फ़ॉन डान) को ऑशवित्ज़ से बेर्गन- बेल्सन ले जाया गया, फिर वहाँ से बूख़नवाल्ड और फिर 9 अप्रैल, 1945 को थरिज़ियनश्टाइट ले जाया गया और शायद उसके बाद किसी और बंदी शिविर में उन्हें ले जाया गया। यह निश्चित है कि वे जिंदा नहीं बचीं, हालाँकि उनकी मौत क तारीख़ के बारे में जानकारी नहीं है।

पीटर फ़ॉन पेल्स (फ़ॉन डान) को 16 जनवरी, 1945 को ऑशवित्ज़ से माउटहाउज़न तक 'मौत की परेड' में हिस्सा लेने को विवश किया गया, जहाँ शिविर को मुक्त करवाए जाने के सिर्फ़ तीन दिन पहले 5 मई, 1945 को उसकी मौत हो गई।

फ़ित्ज़ फ़ेफ़र (ऐल्बर्ट दुसे) की नोयनगामे के बंदी शिविर में 20 दिसंबर, 1944 को मृत्यु हो गई, जहाँ उन्हें बूख़नवाइल्ड या ज़ैक्सनहाउज़न से ले जाया गया था।

6 जनवरी, 1945 को ऑशवित्ज़ - बियकनाउ में भूख व थकावट से एडिथ फ़्रैंक की मौत हो गई।

मारगोट व ऐन फ़्रैंक को अक्टूबर के अंत में ऑशवित्ज़ से हनोफ़र (जर्मनी) के निकट बेर्गन बेल्सन बंदी शिविर में ले जाया गया। 1944-45 की सर्दियों में भयानक गंदगी के कारण टाइफ़स की महामारी फैल गई, जिससे हज़ारों बंदी मारे गए, उनमें मारगोट भी थी, उसके कुछ दिन बाद ऐन की भी मौत हो गई। फ़रवरी के आख़िर में या फिर मार्च की शुरुआत में उसकी मृत्यु हुई होगी। दोनों लड़कियों के शव को संभवतः बेगन- बेल्सन की सामूहिक कब्रों में दफ़नाया गया होगा। इस शिविर को ब्रिटिश टुकड़ियों द्वारा 12 अप्रैल, 1945 को मुक्त कराया गया।

उन आठ लोगों में से ऑटो फ़्रैंक ही एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे, जो बंदी शिविरों से जीवित बच पाए। ऑशवित्ज़ के शिविर को रूसी सेना द्वारा मुक्त कराए जाने के बाद उन्हें ओडेसा और मार्से होते हुए ऐम्स्टर्डम भेज दिया गया। 3 जून, 1945 को वे ऐम्स्टर्डम पहुँचे, 1953 तक वहाँ रहे और फिर वे बासल (स्विट्ज़रलैंड) चले गए, जहाँ उनकी बहन व उसका परिवार था और बाद में उनका भाई भी वहाँ रहने लगा। उन्होंने एल्फ़ीडा मार्कोवित्स गायरिना से शादी की, जो मूलतः वियेना की थीं और ऑश्वित्ज़ से जीवित बची थीं और उनका पति व बेटा माउटहाउज़न में मारे गए थे। 19 अगस्त, 1980 में मृत्यु होने तक ऑटो फ़्रैंक बासल के बाहर बिर्सफ़ेडन में रहे, जहाँ अपनी बेटी की डायरी के संदेश को समूची दुनिया से साझा करने के काम के प्रति उन्होंने खुद को समर्पित कर दिया।

  • द डायरी ऑफ़ ए यंग गर्ल (भाग-2) : ऐनी फ्रैंक
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