The Diary of a Young Girl (Hindi) Anne Frank

द डायरी ऑफ़ ए यंग गर्ल : ऐनी फ्रैंक - हिन्दी अनुवाद : नीलम भट्ट

परिचय

नीदरलैंड में एक लड़की को उसके जन्मदिन पर एक डायरी उपहार में मिलती है। दो दिन बाद वह डायरी लिखना शुरू करती है। वह डायरी किसी किशोरी की आम सी डायरी हो सकती थी, लेकिन वह 1942 का जून का महीना था। एडॉल्फ़ हिटलर यूरोप के यहूदियों के ख़िलाफ़ एक आक्रामक अभियान शुरू कर चुका था। उसकी सेना पहले ही यूरोप के काफ़ी बड़े हिस्से पर कब्ज़ा कर चुकी थी, ऑस्ट्रिया, चेकोस्लोवाकिया और पोलैंड, एक के बाद एक सभी देश हार रहे थे।

जब जर्मन सेना नीदरलैंड पहुँची, तो यह नन्ही यहूदी लड़की अपने पिता ऑटो फ़्रैंक, माँ एडिथ, बहन मारगोट और तीन सदस्यों के एक अन्य परिवार के साथ ऐम्स्टर्डम की उस इमारत के ऊपरी हिस्से में किताबों की अलमारी के पीछे मौजूद जगह में छिपने चली गई, जहाँ उसके पिता काम करते थे। दो साल तक वह वहीं छिपी रही और फिर किसी के द्वारा उनके ठिकाने की सूचना दिए जाने के बाद उन सबको जर्मन सैनिक एक बंदी शिविर में ले जाया गया, जहाँ टाइफ़स से उसकी मौत हो गई। अगर वह उस बीमारी से बच जाती, तो दो हफ़्ते बाद बाक़ी लोगों के साथ ब्रिटिश टुकड़ियों द्वारा आज़ाद करा ली जाती। ऐन फ़्रैंक पंद्रह साल की थी, जब 1945 के शुरुआती मार्च में बेर्गन-बेल्सन के उस बंदी शिविर में उसकी मौत हुई, एक विकृत उन्मादी विचारधारा ने समय से पहले उसकी ज़िंदगी की लौ को बुझा दिया।

जून 1929 में जन्मी ऐन फ़्रैंक की ज़िंदगी शायद गुमनाम ही रहती, अगर उसके पिता 1947 में उसकी डायरी प्रकाशित न करते। वह एक ऐसी सरकारी फ़ाइल में एक संख्या, एक बेचेहरा आँकड़ा बनकर रह जाती, जिसमें दूसरे विश्व युद्ध के इंसानी पहलू को दर्ज किया जाना था। लेकिन नियति शायद ऐसा नहीं चाहती थी। उसने 1942 की गर्मियों में अपनी डायरी लिखनी शुरू कर दी थी, लेकिन उसका इरादा छिपे हुए यहूदी के तौर पर अपने अनुभव दर्ज करना कतई नहीं था।

ऐन की डायरी उसके लिए अपने आप को बहुत ईमानदारी और साफ़ दिल से अभिव्यक्त करने की जगह थी। उसने निस्संकोच सब कुछ लिखा, कुछ भी नहीं छिपाया और डायरी के पन्नों पर ख़ुद को खोलकर रख दिया। मार्च 1944 में ऐन ने लंदन में निर्वासित डच सरकार के एक सदस्य का रेडियो प्रसारण सुना, जिसने जर्मन शासन के अंतर्गत डच लोगों के दमन के अनुभवों का सार्वजनिक अभिलेख तैयार करने की बात की थी। उसमें लोगों से अपने सभी पत्रों, डायरियों, पत्रिकाओं और तसवीरों को बचाए रखने की बात की गई थी, क्योंकि इस परियोजना के लिए वे अनमोल साबित हो सकते थे। उससे प्रेरित होकर ऐन ने इस इरादे से अपनी डायरी का संपादन करना शुरू किया कि युद्ध की समाप्ति के बाद उसे वह प्रकाशित होने के लिए दे सके। वह दो साल तक इस दिशा में लेखन करके आगे बढ़ती रही और उसने वह सब लिखा, जो उसने देखा व जिसका अनुभव किया।

आज ऐन फ़्रैंक की डायरी उन सबसे अहम दस्तावेज़ों में से है, जो हिटलर के पागलपन के बावजूद बचे रह गए। आधिकारिक अभिलेखों व राजनीतिक भाषणों से अलग केवल पीड़ित व बचे हुए लोगों की आवाज़ों के ज़रिये ही ऐतिहासिक त्रासदियों से मानवीय कथा का ताना-बाना बुना जा सकता है और ऐन की डायरी यही करती है। लिखना शुरू करने के समय वह तेरह साल की थी। उसे कुछ भी साबित नहीं करना था, उसका कोई गुप्त लक्ष्य नहीं था, उसे किसी क़िस्म का कोई प्रचार नहीं करना था। उसने बस लिखा, क्योंकि वह लिखना चाहती थी। उसने बहुत मासूमियत और सच्चाई से लिखा, जो सिर्फ़ बच्चों में हो सकती है, लेकिन जो कुछ उसने लिखा, वह उतना मासूम नहीं था, जितनी कि वह ख़ुद थी।

होलोकोस्ट यानी यहूदियों के सामूहिक संहार को लेकर हुए विवादों व विचार-विमर्श के बीच ऐन की डायरी पीड़ित के पक्ष से आने वाले बहुत सतर्कतापूर्वक तैयार किए गए और सारगर्भित दस्तावेज़ों में से एक है और यह उस संहार का प्रतीकात्मक विषय बन चुका है। बच्चे अपने अकादमिक पाठ्यक्रम के एक भाग के रूप में इस डायरी के संक्षिप्त संस्करणों को पढ़ते हैं, ताकि वे यह जान सकें कि 1940 के दशक के भयावह समय में उनकी ही उम्र की एक लड़की ने क्या कुछ सहा था।

शिक्षाविद और इतिहासकार इस डायरी का इस्तेमाल ऐतिहासिक सत्य के प्रामाणिक स्रोत के रूप में करते हैं। इस डायरी के बारे में डच पत्रकार व इतिहासकार यान रोमेन ने 1946 में कहा था कि हालाँकि यह ‘एक बच्चे की आवाज़ में सामने आई है,’ फिर भी यह ‘फ़ासीवाद के समूचे भयावह स्वरूप की अभिव्यक्ति है, जो न्यूरेमबर्ग के सभी साक्ष्यों से कहीं अधिक है।’

ऐन की आवाज़ महाद्वीपों व पीढ़ियों के पार पहुँची है। उसकी डायरी ने होलोकोस्ट के पीड़ितों को गुमनाम होने से बचाए रखा है। उसने अपने जैसे बाक़ी लोगों को एक चेहरा और एक ज़िंदगी दी है। उसने उस यंत्रणा में जीने वाले लोगों व उसके बाद आने वाले हमारे जैसे लोगों के लिए उसे वास्तविक बनाया है। कहा जाता है कि तकलीफ़ें झेलने वाले लोगों के ज़हन में बना ज़ख़्म उसे बंद कर देने से ठीक नहीं होता। उस घाव की याद को बनाए रखकर, उसे याद करके व साझा करके ही लोगों को सही मायने में उस तकलीफ़ से छुटकारा मिलता है। द डायरी ऑफ़ ए यंग गर्ल को कितनी ही बार पढ़ा जाए व उस पर चर्चा की जाए, वह संवाद और ऐतिहासिक वाद-विवाद को प्रेरित कर इस मुक्ति को नज़दीक लाती है।

द डायरी ऑफ़ ए यंग गर्ल : ऐनी फ्रैंक

12 जून, 1942

मुझे उम्मीद है कि मैं तुम्हें सब कुछ बता पाऊँगी, क्योंकि मैं अब तक किसी पर इतना भरोसा नहीं कर पाई हूँ और मुझे पूरी आशा है कि तुम मेरे लिए राहत और सहारे का ज़रिया बनोगी।

रविवार, 14 जून, 1942

मैं उस पल से शुरू करूँगी, जब तुम मुझे मिली, जब मैंने तुम्हें मेज़ पर अपने जन्मदिन के बाक़ी तोहफ़ों के साथ रखा देखा। (तुम्हें ख़रीदने के लिए मैं साथ गई थी, लेकिन उसे नहीं माना जाएगा।)

शुक्रवार, 12 जून को सुबह छह बजे मेरी नींद खुल गई, उसमें हैरत की कोई बात नहीं, क्योंकि उस दिन मेरा जन्मदिन था। लेकिन मुझे उस समय उठने की अनुमति नहीं है, इसलिए मुझे अपनी उत्सुकता को पौने सात बजे तक दबाए रखना पड़ा। जब मुझसे और ज़्यादा इंतज़ार नहीं हुआ, तो मैं भोजन कक्ष में चली गई, जहाँ मोर्च (बिल्ली) ने मेरी टाँगों से लिपटकर मेरा स्वागत किया।

सात बजे के थोड़ी देर बाद मैं डैडी और मम्मी के पास गई, फिर बैठक में अपने उपहारों को खोलने के लिए गई, तुम्हें मैंने सबसे पहले देखा, तुम शायद मेरे सबसे अच्छे तोहफ़ों में से थी। फिर मैंने गुलाब, पियोनी का गुच्छा और गमले में लगा एक पौधा देखा। डैडी और मम्मी से मुझे एक नीला ब्लाउज़ मिला, एक गेम, अंगूर के रस की बोतल, उसका स्वाद मुझे वाइन जैसा लगा (वाइन भी तो अंगूर से ही बनाई जाती है), एक पहेली, कोल्ड क्रीम का जार, 2.50 गिल्डर्स और दो किताबों के लिए गिफ़्ट टोकन। मुझे एक और किताब मिली, कैमेरा ऑबस्क्यूरा (मारगोट के पास यह किताब पहले से है, इसलिए मैंने उसके बदले कुछ और ले लिया), घर में बने बिस्किट (जिन्हें मैंने बनाया, अब मैं बिस्किट बनाने में काफ़ी माहिर जो हो गई हूँ), बहुत सी मिठाइयाँ और माँ से एक स्ट्रॉबेरी टार्ट। उसी समय जर्मनी से एक चिट्ठी आई, ज़ाहिर है कि वह एक संयोग ही था।

हनेली मुझे लेने आई और हम दोनों स्कूल गए। भोजन अवकाश के दौरान मैंने अपने अध्यापकों व साथियों को बिस्किट दिए और फिर हम अपनी पढ़ाई में लग गए। मैं पाँच बजे तक घर नहीं गई, क्योंकि मैं अपनी कक्षा के बाक़ी बच्चों के साथ जिम जो चली गई थी। (मुझे उसमें हिस्सा लेने की इजाज़त नहीं थी, क्योंकि उसमें मेरे कंधे व कूल्हे अपनी जगह से सरक जाते हैं।) मेरा जन्मदिन था, इसलिए मैंने तय किया कि मेरे साथी कौन सा खेल खेलेंगे और मैंने उनके लिए वॉलीबॉल चुना। उसके बाद सब मेरे चारों ओर घूमकर नाचे और ‘हैप्पी बर्थडे’ गाना गया। जब मैं घर पहुँची, तो सने लेडरमान वहाँ पहले से मौजूद थी। इल्स वागनर, हनेली गॉस्लार और जैकलिन फ़ॉन मार्सन जिम के बाद मेरे साथ घर आए, क्योंकि हम सभी एक ही क्लास में पढ़ते हैं। हनेली और सने मेरी दो सबसे अच्छी दोस्त हुआ करती थीं। हमें साथ जाते हुए देखकर लोग कहते, ‘वो जा रही हैं, ऐन, हाने और सने।’ जैकलिन मार्सन से मेरी मुलाकात यहूदी स्कूल जाने पर हुई और अब वह मेरी सबसे अच्छी दोस्त है। इल्स, हनेली की सबसे अच्छी दोस्त है और हाने दूसरे स्कूल जाती है, जहाँ उसकी सहेलियाँ हैं।

उन्होंने मुझे ख़ूबसूरत किताब दी, डच सागाज़ ऐंड लेजेंड्स, लेकिन उन्होंने ग़लती से मुझे दूसरा खंड दे दिया, इसलिए मैंने बाक़ी दो किताबों के बदले पहला खंड ले लिया। हेलेन आंटी मेरे लिए एक पहेली लाईं, प्यारी स्टेफ़नी आंटी ने जड़ाऊ पिन और लेनी आंटी ने मुझे एक बहुत ज़बरदस्त किताब दी: डेज़ी गोज़ टु द माउन्टेन्स।

सुबह बाथटब में लेटे हुए मैं सोच रही थी कि कितना मज़ा आता, अगर मेरे पास रिन टिन टिन जैसा कुत्ता होता। मैं भी रिन टिन टिन कहकर ही पुकारती, उसे स्कूल ले जाती, जहाँ पर वह केयरटेकर के कमरे में रहता या मौसम अच्छा रहने पर वह साइकिल स्टैंड पर रहता।

सोमवार, 15 जून, 1942

रविवार दोपहर को मेरे जन्मदिन की दावत हुई। रिन टिन टिन फ़िल्म मेरे सहपाठियों को बहुत पसंद आई। मुझे दो जड़ाऊ पिन, एक बुकमार्क और दो किताबें मिलीं।

मैं शुरुआत अपने स्कूल व अपनी क्लास के बारे में कुछ कहकर करूँगी, लेकिन उससे पहले बाक़ी बच्चों के बारे में कुछ बताऊँगी।

बेट्टी ब्लूमंडाल ग़रीब दिखती है और मुझे लगता है कि वह है भी। वेस्ट ऐम्स्टर्डम की किसी अनजानी सी गली में रहती है और हममें से कोई भी नहीं जानता कि वह है कहाँ। वह पढ़ाई में अच्छी है, लेकिन वह इसलिए कि वह बहुत मेहनत करती है, न कि इसलिए कि वह होशियार है। वह ख़ामोश रहती है।

जैकलिन फ़ॉन मार्सन को शायद मेरी सबसे अच्छी सहेली माना जाता है, लेकिन मेरी कभी कोई असली दोस्त नहीं रही। पहले मुझे लगा कि जैक होगी, लेकिन मैं ग़लत थी।

डी क्यू+ बहुत घबराई रहती है और हमेशा कुछ न कुछ भूल जाती है, इसलिए शिक्षक उसे सज़ा के तौर पर अतिरिक्त होमवर्क देते रहते हैं। वह बहुत दयालु है, ख़ासकर जी ज़ेड के लिए। ई एस बहुत बोलती है, जो कि अच्छी बात नहीं है। उसे जब भी कुछ पूछना होता है, वह आपके बाल छूती है या फिर आपके बटनों के साथ खेलने लगती है। लोग कहते हैं, वह मुझे पसंद नहीं करती, लेकिन मुझे उसकी परवाह नहीं है, क्योंकि मैं भी उसे नापसंद करती हूँ।

हेनी मेट्स अच्छी,ख़ुशमिज़ाज लड़की है, बस वह बहुत ऊँची आवाज़ में बात करती है और जब भी हम बाहर खेलते हैं, तो बहुत बचकाना बर्ताव करती है। बदक़िस्मती से हेनी की एक दोस्त है, बेपी और गंदी व भद्दी होने के कारण वह हेनी के लिए सही नहीं है।

जे आर के बारे में पूरी एक किताब लिख सकती हूँ। जे घिनौनी, डरपोक, घमंडी, दोहरी बातें करने वाली लड़की है, जो ख़ुद को बहुत बड़ा समझती है। उसने जैक पर जैसे जादू सा कर रखा है, जो बहुत शर्म की बात है। जे बहुत जल्दी बुरा मान जाती है और ज़रा सी बात पर रोने लगती है और उस पर वह बहुत दिखावा भी करती है। मिस जे को हमेशा सही होना होता है। वह बहुत अमीर है और उसकी अलमारी इतनी प्यारी पोशाकों से भरी है, जो कि उसके हिसाब से बड़ी हैं। उसे लगता है कि वह बहुत आकर्षक है, लेकिन वह है नहीं। जे और मैं एक-दूसरे को फूटी आँख नहीं भाते।

इल्स वागनर अच्छी हँसमुख लड़की है, लेकिन वह बहुत तुनकमिज़ाज है और किसी न किसी चीज़ को लेकर कराहती-कलपती रहती है। इल्स मुझे बहुत पसंद करती है। वह बहुत होशियार, लेकिन सुस्त भी है।

हनेली गॉसलर या लाइज़, जैसा कि उसे स्कूल में पुकारा जाता है, थोड़ी अजीब सी है। वह आमतौर पर शर्मीली है, घर में मुँहफट, लेकिन बाक़ी लोगों के साथ वह संकोच करती है। उसे जो कुछ कहो, वह अपनी माँ को जाकर बता देती है। लेकिन वह जो सोचती है, वही कहती है और पिछले कुछ समय से मुझे वह अच्छी लगने लगी है।

नैनी फ़ॉन प्राग-सिगार छोटी, मज़ाकिया और अक्लमंद है। मेरे ख़याल से वह अच्छी है। वह काफ़ी चतुर है। इसके अलावा नैनी के बारे में ज़्यादा कुछ नहीं कहा जा सकता।

मेरे ख़याल से एफ़िया द यॉन्ग ज़बरदस्त है। वह सिर्फ़ बारह साल की है, लेकिन वह किसी लेडी जैसी है। वह मुझे बच्चा समझती है। वह सबकी मदद करती है और मुझे वह पसंद है।

जी ज़ेड हमारी क्लास की सबसे प्यारी लड़की है। उसका चेहरा अच्छा है, लेकिन थोड़ी बेवकूफ़ है। मुझे लगता है कि उसे क्लास में एक साल और रोका जाएगा, लेकिन मैंने उसे बताया नहीं है।

जी ज़ेड की बग़ल में हम बारह लड़कियों में से आख़िरी यानी मैं बैठती हूँ।

लड़कों के बारे में काफ़ी कुछ कहा जा सकता है, या फिर शायद कुछ ख़ास नहीं।

मॉरिस कोस्टर मेरे प्रशंसकों में से एक है, लेकिन वह बहुत खिझाता है।

सैली स्प्रिंगर गंदे दिमाग़ वाला है और अफ़वाह तो यह है कि वह सब कुछ कर चुका है। फिर भी मुझे वह ज़बरदस्त लगता है, क्योंकि वह बहुत मज़ाकिया है।

एमिल बोनविट जी ज़ेड को पसंद करता है, लेकिन उसे परवाह नहीं। वह बहुत उबाऊ है।

रॉब कोहन को कभी मुझसे भी प्यार था, लेकिन मुझे वह अब फूटी आँख नहीं भाता। वह घिनौना, दोहरे चरित्र वाला, झूठा और पिनपिना ढोंगी लड़का है, जो ख़ुद को बहुत महान समझता है।

माक्स फ़ॉन ड वेल्डे मेडेम्ब्लिक के किसान का बेटा है, मारगोट के मुताबिक़ वह भला लड़का है।

हरमन कूपमैन भी जोपी द बियर की तरह गंदे दिमाग़ वाला है, जो लड़कियों के पीछे लगने वाला चालू लड़का है।

लियो ब्लोम, जोपी द बियर का सबसे अच्छा दोस्त है, लेकिन बियर के गंदे दिमाग़ ने उसे भी बिगाड़ दिया है।

ऐल्बर्ट ड मिस्किटा मॉन्टेसरी स्कूल का है और उसने एक साल में दो कक्षाएँ पास की हैं। वह सचमुच होशियार है।

लियो श्लेगर भी उसी स्कूल से है, लेकिन वह उतना चतुर नहीं है।

रू स्टॉपलमॉन अल्मेलो का रहने वाला एक ठिगना, नासमझ सा लड़का है, जो साल के बीच में दूसरे स्कूल से आया है।

सी एन वही सब करता है, जो उसे नहीं करना चाहिए।

ज़ाक कॉकरनॉट हमारे पीछे सी की बग़ल में बैठता है और (जी और मैं) उस पर ख़ूब हँसते हैं।

हैरी शाप हमारी क्लास का सबसे भला लड़का है। वह अच्छा है।

वेर्नर जोसफ़ भी अच्छा है, लेकिन पिछले कुछ समय में हुए बदलाव से वह बहुत ख़ामोश हो गया है, इसलिए वह उबाऊ लगता है।

सैम सोलोमन शहर के अशांत इलाके से आने वाला सख़्त क़िस्म का लड़का है। वह बिगड़ैल है। (प्रशंसिका!)

एपी रीम काफ़ी दकियानूसी है, लेकिन वह भी बिगड़ैल है।

शनिवार, 20 जून, 1942

मेरे जैसे किसी इंसान के लिए डायरी लिखना सचमुच अजीब सा अनुभव है। सिर्फ़ इसलिए नहीं कि मैंने इससे पहले कभी कुछ नहीं लिखा, बल्कि इसलिए भी कि मुझे लगता है कि बाद में शायद मुझे और न ही किसी और को तेरह साल की लड़की के ख़यालों में कोई दिलचस्पी होगी। वैसे इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। मेरा लिखने का मन है और मुझे अपने दिल से बातों के बोझ को कम करना है।

‘काग़ज़ में लोगों से ज़्यादा धीरज होता है।’ यह कहावत मुझे उन दिनों याद आई, जब मैं थोड़ी उदास थी और हाथों में ठोड़ी थामे हुए, ऊबती हुई, बेचैन थी और सोच रही थी कि बाहर जाऊँ या घर में रहूँ। आख़िरकार मैं वहीं अपनी सोच में डूबी बैठी रही। हाँ, काग़ज़ में ज़्यादा धीरज होता है और चूँकि मैं नहीं चाहती कि ‘डायरी’ कहे जाने वाली इस नोटबुक को कोई पढ़े और तब तक इसे लिखती रहूँ जब तक कि मेरे पास कोई सचमुच की दोस्त नहीं आ जाती, तो शायद इससे कोई फ़र्क़ भी नहीं पड़ता।

अब मैं फिर से उसी मुद्दे पर आ गई हूँ, जिसने मुझे डायरी लिखने को प्रेरित किया है: मेरी कोई दोस्त नहीं है।

मैं इस बात को अधिक स्पष्टता से रखती हूँ, वैसे कोई भी इस बात पर विश्वास नहीं करेगा कि तेरह साल की कोई लड़की इस दुनिया में बिलकुल अकेली है। और मैं हूँ भी नहीं। मेरे पास प्यार करने वाले माता-पिता हैं और सोलह साल की एक बड़ी बहन है, इसके अलावा लगभग तीस लोग हैं, जिन्हें मैं दोस्त कहती हूँ। मेरे आसपास प्रशंसकों का जमघट है, जो अपनी नज़रें मुझसे नहीं हटा सकते और जो कभी-कभार क्लासरूम में मुझे देखने के लिए जेब में रखे टूटे आईने का सहारा लेते हैं। मेरे पास एक परिवार हैं, प्यार करने वाली आंटियाँ हैं और अच्छा-ख़ासा घर है। ऊपरी तौर पर देखने पर लगता है कि मेरे पास सब कुछ है, सिवाय एक सच्ची दोस्त के। जब कभी मैं दोस्तों के साथ होती हूँ, तो बस मैं मज़े करना चाहती हूँ। मैं उनसे रोज़मर्रा की आम बातों के सिवाय कोई और बात नहीं कर पाती। हम एक-दूसरे के ज़्यादा नज़दीक आते नहीं लगते और वही समस्या है। शायद यह मेरी ग़लती है कि हम एक-दूसरे पर उतना भरोसा नहीं कर पाते। अब जो है, यही है और बदक़िस्मती से कुछ भी बदलने नहीं वाला है। इसलिए मैंने डायरी लिखना शुरू किया है।

मेरी कल्पना में लंबे समय से एक दोस्त की छवि बनी हुई है, मैं अधिकतर लोगों की तरह डायरी में बस आँकड़े ही नहीं लिखना चाहती, बल्कि मैं चाहती हूँ कि वह मेरी दोस्त बने, इसीलिए मैं अब तुम्हें किटी कहकर पुकारूँगी।

अगर मैं अभी से शुरू हो जाऊँ, तो किटी से कही गई बातों को क्योंकि कोई नहीं समझेगा, इसलिए बेहतर है कि मैं अपनी ज़िंदगी के बारे में कुछ बताऊँ, हालाँकि वैसा करना मुझे अच्छा नहीं लगता।

मेरे पिता जितना प्यारा इंसान मैंने कभी नहीं देखा। उन्होंने 36 साल की उम्र में मेरी माँ से शादी की, जो उस समय 25 साल की थीं। मेरी बहन मारगोट का जन्म जर्मनी के फ़्रैंकफ़र्ट अम माइन में हुआ। मेरा जन्म 12 जून 1929 को हुआ। मैं चार साल की उम्र तक फ़्रैंकफ़र्ट में रही। हम यहूदी हैं, इसलिए मेरे पिता 1933 में हॉलैंड चले गए, जब वे जैम बनाने में इस्तेमाल होने वाले उत्पाद बनाने वाली डच ओपेक्ता कंपनी में मैनेजिंग डायरेक्टर बने। मेरी माँ एडिथ हॉलेंडर फ़्रैंक सितंबर में उनके साथ हॉलैंड गई, जबकि मुझे व मारगोट को हमारी नानी के पास आशेन भेज दिया गया। मारगोट दिसंबर में हॉलैंड गई और मैं फ़रवरी में, जब मुझे मेज़ पर मारगोट के जन्मदिन के उपहार के रूप में रख दिया गया था।

मैं वहाँ सीधे मॉन्टेसरी नर्सरी स्कूल में गई और छह साल की उम्र तक वहीं रही, तब मैं पहली कक्षा में पहुँच गई थी। छठी कक्षा में मिसेज़ कूपरूस मेरी टीचर थीं। साल के आख़िर में विदा लेते हुए हम दोनों की आँखें नम थीं, मेरा दाख़िला यहूदी स्कूल में हो गया था, जहाँ मारगोट भी जाती थी।

हमारी ज़िंदगी में काफ़ी बेचैनी थी, क्योंकि जर्मनी में रहने वाले हमारे रिश्तेदार हिटलर के यहूदी विरोधी कानूनों के कारण परेशानी में थे। 1938 के सामूहिक नरसंहार के बाद मेरे दो मामा जर्मनी से भाग गए और उन्होंने नॉर्थ अमेरिका में शरण ले ली। मेरी बूढ़ी नानी हमारे साथ आकर रहने लगीं। उस समय वे 73 साल की थीं।

मई 1940 के बाद अच्छा समय कभी-कभार ही रहा: पहले युद्ध हुआ, फिर आत्मसमर्पण और उसके बाद जर्मन आ गए, तभी से यहूदियों के लिए परेशानी शुरू हो गई। यहूदी विरोधी कानूनों के कारण हमारी आज़ादी पर कड़ी रोक-टोक लग गई। यहूदियों को पीला सितारा लगाना होता था; यहूदियों को साइकिलों पर चलना होता था; यहूदियों को ट्राम पर चढ़ने की मनाही थी; यहूदी कार में नहीं बैठ सकते थे, चाहे वे उनकी अपनी क्यों न हों; यहूदियों को 3 बजे से 5 बजे के बीच अपनी ख़रीदारी करनी होती थी; यहूदियों को सिर्फ़ यहूदी सैलूनों में जाना होता था; यहूदियों को रात 8 बजे से सुबह 6 बजे तक सड़कों पर चलने की मनाही थी; यहूदी थिएटर नहीं जा सकते थे या किसी अन्य मनोरंजन की जगहों पर नहीं सकते थे; यहूदियों को स्विमिंग पूल, टेनिस कोर्ट्स, हॉकी के मैदानों या अन्य खेलों के मैदानों का इस्तेमाल करने की मनाही थी; यहूदी नौकायन नहीं कर सकते थे; यहूदी सार्वजनिक तौर पर किसी खेल गतिविधि में भाग नहीं ले सकते थे; यहूदियों को अपने व अपने दोस्तों के बगीचों में रात 8 बजे के बाद बैठने की मनाही थी; यहूदी ईसाइयों के घर नहीं जा सकते थे; यहूदियों को सिर्फ़ यहूदी स्कूल जाना होता था, आदि। आप यह नहीं कर सकते, वह नहीं कर सकते, लेकिन ज़िंदगी चलती रही। जैक मुझसे हमेशा कहती, ‘मेरी कुछ भी करने की हिम्मत नहीं होती, क्योंकि मुझे डर लगता है कि कहीं उस पर पाबंदी न हो।’

1941 की गर्मियों में मेरी नानी बीमार पड़ गईं, उनका ऑपरेशन करवाना पड़ा, इसलिए मेरा जन्मदिन नहीं मनाया गया। 1940 की गर्मियों में भी मेरे जन्मदिन पर कुछ ख़ास नहीं हुआ, क्योंकि तभी हॉलैंड में लड़ाई ख़त्म हुई थी। जनवरी 1942 में नानी की मौत हो गई। कोई नहीं जानता कि मैं उनके बारे में कितना सोचती हूँ और अब भी उन्हें प्यार करती हूँ। 1942 में आए इस जन्मदिन पर हमने बाक़ी जन्मदिनों की कमी पूरी करनी चाही और बाक़ी मोमबत्तियों के साथ नानी माँ की मोमबत्ती भी जलाई गई।

हम चारों अब भी मजे़ में हैं और अब मैं फिर से आज के दिन 20 जून, 1942 पर वापस आती हूँ और अपनी डायरी से औपचारिक निवेदन करती हूँ।

शनिवार, 20 जून, 1942

प्यारी किटी!

तो मैं सीधे शुरू हो जाती हूँ; अभी ख़ामोशी है। मम्मी-पापा बाहर गए हैं और मारगोट अपनी दोस्त ट्रीज़ के घर अपनी बाक़ी दोस्तों के साथ पिंग-पॉन्ग खेलने गई है। पिछले कुछ समय से मैं भी काफ़ी पिंग-पॉन्ग खेलने लगी हूँ। इतना ज़्यादा कि हम पाँच लड़कियों ने एक क्लब बना लिया है। उसका नाम है, ‘लिट्ल डिपर माइनस टू।’ यह वाकई बेवकूफ़ों जैसा नाम है, लेकिन यह एक ग़लती की वजह से पड़ा। हम अपने क्लब को ख़ास नाम देना चाहते थे और चूँकि हम पाँच थे, इसलिए हमें लिट्ल डिपर नाम का ख़याल आया। हमें लगा कि उसमें पाँच तारे होते हैं, लेकिन हम ग़लत थे। बिग डिपर (सप्तऋषि) की तरह उसमें भी सात तारे हैं, बस ‘माइनस टू’ इसकी वजह से ही हुआ। इल्स वागनर के पास पिंग-पॉन्ग सेट है और उसके माँ-बाप हमें अपने बड़े से भोजन कक्ष में खेलने देते हैं। हम पाँचों को ही आईसक्रीम पसंद है, ख़ासकर गर्मियों में और पिंग-पॉन्ग खेलते हुए गर्मी लगती है, इसलिए हमारा खेल अक्सर सबसे नज़दीकी आईसक्रीम पार्लर में जाकर ख़त्म होता है, जो यहूदियों को आईसक्रीम बेचते हैं: ओएसिस या डेल्फ़ी। काफ़ी समय से हमने पैसे के लिए अपने बटुओं या जेबों को टटोलना छोड़ दिया है। ओएसिस में अधिकतर समय इतनी भीड़ रहती है कि हमें अपनी जान-पहचान का कोई लड़का या कोई प्रशंसक मिल ही जाता है, जो हमें इतनी आईसक्रीम दिला देता है कि पूरे हफ़्ते के लिए काफ़ी होती है।

आपको इतनी छोटी उम्र में मेरे मुँह से प्रशंसकों की बात सुनकर शायद थोड़ी हैरानी हो रही होगी। बदक़िस्मती से या फिर कुछ भी कहो, यह बुराई हमारे स्कूल में बहुत फैली हुई है। जैसे ही कोई लड़का पूछता है कि क्या वह मेरे साथ-साथ साइकिल पर घर चल सकता है और हम बात करने लगते हैं तो दस में से नौ बार मुझे पक्के तौर पर पता होता है कि वह मुझ पर मोहित हो जाएगा और मुझे एक पल के लिए भी अपनी नज़रों से ओझल नहीं होने देगा। उसका उत्साह आख़िरकार ठंडा पड़ जाता है, ख़ासकर तब जब मैं उसकी जुनून भरी नज़रों को अनदेखा करते हुए अपने रास्ते चलते रहती हूँ। अगर बात यहाँ तक पहुँच जाती है कि वे ‘पिता की अनुमति’ लेने की बात करने लगते हैं, तो मैं अपनी साइकिल थोड़ा मोड़ लेती हूँ, मेरा बस्ता गिर जाता है और लड़के को अपनी साइकिल से उतरकर उसे उठाकर मुझे देना पड़ता है, तो तब तक मैं बातचीत का विषय बदल देती हूँ। ये तो सबसे मासूम क़िस्म के होते हैं। हाँ, कुछ ऐसे भी होते हैं, जो आपको हवाई चुंबन देते हैं, या आपकी बाँह थामना चाहते हैं, लेकिन वे ग़लत दरवाज़े पर दस्तक दे रहे होते हैं। मैं अपनी साइकिल से उतर जाती हूँ और या तो आगे उनका साथ नहीं चाहती या फिर ऐसे दिखाती कि जैसे मेरा अपमान हुआ हो और उन्हें साफ़-साफ़ अकेले घर जाने को कह देती।

तो यह हुई न बात! अब हमारी दोस्ती की बुनियाद पड़ गई है। अब कल मिलेंगे।

तुम्हारी, ऐन

रविवार, 21 जून, 1942

प्यारी किटी,

हमारी पूरी क्लास काँप रही है। इसकी वजह आने वाली बैठक है, जिसमें शिक्षक यह फ़ैसला करेंगे कि कौन अगली क्लास में जाएगा और किसे रोक लिया जाएगा। आधी क्लास शर्तें लगा रही है। मैं और जी ज़ेड हमारे पीछे बैठने वाले सी एन और जैक कॉकरनॉट पर ज़ोरों से हँस रहे हैं, क्योंकि उन्होंने छुट्टियों की अपनी पूरी बचत शर्त में लगा दी है। सुबह से शाम तक बस यही सब सुनाई देता है, ‘तुम पास हो जाओगे,’ ‘नहीं, मैं नहीं,’ ‘हाँ, तुम हो जाओगे,’ ‘नहीं, मैं नहीं।’ यहाँ तक कि जी की याचनाभरी दृष्टि और मेरी नाराज़गी भरी बातें भी उन्हें शांत नहीं कर सकतीं। अगर मुझसे पूछो, तो इतने सारे बेवकूफ़ हैं कि लगभग एक-चौथाई क्लास को तो पीछे ही रखा जाना चाहिए, लेकिन शिक्षक ऐसे प्राणी हैं, जिनके बारे में अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता। शायद इस बार उनका यह स्वभाव सही दिशा में अप्रत्याशित हो।

मुझे अपनी सहेलियों और अपनी उतनी फ़िक्र नहीं है। हम सब कामयाब होंगे सिर्फ़ गणित को लेकर मुझे उतना विश्वास नहीं है। ख़ैर, हम सब इंतज़ार ही कर सकते हैं। तब तक हम एक-दूसरे को हिम्मत न हारने की बात कहते रहते हैं।

मेरी सभी शिक्षकों से अच्छी पटती है। वे नौ हैं, सात पुरुष और दो महिलाएँ। गणित पढ़ाने वाले बूढ़े मि. कीसिंग काफ़ी लंबे समय तक मुझे चिढ़े रहे, क्योंकि मैं बहुत बात करती थी। कई चेतावनियों के बाद उन्होंने मुझे घर के लिए अतिरिक्त काम दिया। ‘बातूनी’ विषय पर मुझे निबंध लिखना था। बातूनी पर आप क्या लिख सकते हैं? मैंने फ़ैसला किया कि उस पर मैं बाद में सोचूँगी। मैंने अपनी नोटबुक में विषय लिखा, उसे अपने बस्ते में रखा और चुप रहने की कोशिश की।

उस शाम को अपना सारा काम ख़त्म करने के बाद मेरा ध्यान निबंध वाले नोट पर गया। मैं अपने फ़ाउंटेन पेन के सिरे को चबाते हुए उस विषय के बारे में सोचने लगी। शब्दों के बीच जगह छोड़ते हुए बेमतलब की बातें तो कोई भी लिख सकता था, लेकिन तरकीब तो यह थी बातचीत करने की ज़रूरत को साबित करने के लिए कुछ ठोस तर्क रखे जाएँ। मैंने बहुत सोचा, सोचती रही और फिर मुझे एक विचार आया। मि. कीसिंग के दिए विषय पर मैंने तीन पन्ने लिखे और संतुष्ट हो गई। मेरा तर्क था कि बात करना महिलाओं का गुण है और मैं पूरी कोशिश करूँगी कि उसे क़ाबू में रख सकूँ, लेकिन मैं कभी उस आदत से छुटकारा नहीं पा सकूँगी, क्योंकि मेरी माँ भी अगर ज़्यादा नहीं, तो मेरे जितनी बातें तो करती हैं और माँ-बाप से मिले गुणों को लेकर आप ज़्यादा कुछ नहीं कर सकते।

मेरे तर्कों पर मि. कीसिंग दिल खोलकर हँसे, लेकिन जब मैंने अगले पाठ की बात की तो उन्होंने मुझे दूसरा निबंध दे दिया। इस बार का विषय था, ‘कभी न सुधरनेवाली बातूनी।’ मैंने वह निबंध उन्हें दे दिया और फिर दो पाठों तक मि. कीसिंग को कोई शिकायत नहीं थी। लेकिन तीसरे पाठ के दौरान उनका धीरज जवाब दे गया। “ऐन फ़्रैंक, क्लास में बात करने के लिए अब ‘मिस बातूनी की शेख़ियाँ’ पर निबंध लिखो।”

पूरी क्लास ठहाकों से गूँज उठी। मुझे भी हँसना पड़ा, हालाँकि मैं बातूनी विषय पर अपनी सारी चतुराई का इस्तेमाल कर चुकी थी। अब कुछ और सोचने का समय आ गया था, कुछ मौलिक। मेरी दोस्त सने कविता करने में अच्छी है, उसने मेरी मदद की पेशकश की और कहा कि शुरू से आख़िर तक हम पद्य में निबंध लिखेंगे। मैं ख़ुशी से उछल पड़ी। बेतुका विषय देकर कीसिंग मेरी टाँग खींचने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन मैं ठीक उससे उलट करना चाहती थी। मैंने अपनी कविता पूरी की और वह बहुत सुंदर थी! वह एक माँ बतख़, पिता और उनके तीन बच्चों की के बारे में थी, जिन्हें पिता ने काट-काटकर इसलिए मार डाला क्योंकि वे बहुत शोर मचाते थे। ख़ुशक़िस्मती से कीसिंग ने उसे सही मायने में लिया। उन्होंने कविता पूरी क्लास को पढ़कर सुनाई, उसमें अपनी टिप्पणियाँ जोड़ी और बाक़ी कक्षाओं में भी उसे पढ़ा। अब मुझे बात करने की अनुमति है और मुझे कोई अतिरिक्त होमवर्क भी नहीं दिया जाता। अब ठीक उलट आजकल कीसिंग चुटकुले सुनाते हैं।

तुम्हारी, ऐन

बुधवार, 24 जून, 1942

प्यारी किटी,

तपते हुए दिन हैं। हर कोई इस गर्मी में हाँफ रहा है और मुझे हर जगह पैदल जाना है। अब मुझे लग रहा है कि ट्राम कितनी आरामदेह होती है, लेकिन हम यहूदियों को अब इस सुविधा के इस्तेमाल की इजाज़त नहीं है, हमारे लिए हमारे दो पैर ही काफ़ी हैं। कल भोजन अवकाश के दौरान मुझे यान ल्यूकनश्ट्राट में दाँत के डॉक्टर के पास जाना था। वह स्टाट्समिरट्यूनन के हमारे स्कूल से बहुत दूर है। दोपहर में मैं अपने डेस्क पर सो ही गई थी। ख़ुशक़िस्मती से लोग ख़ुद ही आपको कुछ पीने को दे देते हैं। डॉक्टर की असिस्टेंट बहुत दयालु हैं।

अब हमारे पास सिर्फ़ नाव का साधन ही बचा है। योजेफ़ इज़रेलकाडे का नाविक हमारे कहने पर हमें पार ले गया। डच लोगों का इसमें क्या कसूर है कि हम यहूदियों का वक़्त इतना बुरा चल रहा है।

काश, मुझे स्कूल न जाना होता! ईस्टर की छुट्टियों के दौरान मेरी साइकिल चोरी हो गई और मेरे पिता ने माँ की साइकिल कुछ ईसाई दोस्तों को सँभालकर रखने के लिए दे दी। शुक्र है कि गर्मी की छुट्टियाँ आने वाली हैं, एक हफ़्ते के बाद हमारी मुसीबत दूर हो जाएगी।

कल सुबह कुछ अप्रत्याशित हुआ। जब मैं साइकिल रैक के पास से गुज़र रही थी, तो मैंने किसी को अपना नाम पुकारते सुना। पीछे मुड़ने पर मैंने देखा कि वहाँ वही शालीन लड़का खड़ा था, जिसे मैं अपनी दोस्त विल्मा के यहाँ मिली थी। वह विल्मा का रिश्ते का भाई था। मुझे लगता था कि विल्मा अच्छी थी, जो कि वह है भी, लेकिन वह हमेशा लड़कों की बात करती रहती है और वह थोड़ा उबाऊ हो जाता है। वह मेरी तरफ़ बढ़ा, थोड़ा शर्माते हुए और अपना नाम हलो ज़िल्बरबर्ग बताते हुए अपना परिचय दिया। मैं थोड़ी हैरान थी और नहीं जानती थी कि वह क्या चाहता था, लेकिन मुझे वह जानने में देर नहीं लगी। उसने मुझसे पूछा कि क्या वह मेरे साथ स्कूल चल सकता है। ‘बिलकुल, अगर तुम भी उसी रास्ते पर जा रहे हो, तो मैं तुम्हारे साथ चलूँगी,’ मैंने कहा। हम दोनों साथ चल पड़े। हलो सोलह साल का है और हर तरह की मज़ेदार कहानियाँ सुनाने में माहिर है।

आज सुबह भी वह मेरा इंतज़ार कर रहा था और मुझे उम्मीद है कि अब से वह इंतज़ार करता मिलेगा।

ऐन

बुधवार, 1 जुलाई, 1942

प्यारी किटी,

ईमानदारी से कहूँ, तो आज से पहले मुझे तुम्हें लिखने का वक़्त ही नहीं मिला। बृहस्पतिवार को मैं पूरा दिन दोस्तों के साथ रही, शुक्रवार को भी हम लोग साथ रहे और आज तक यही सब चलता रहा।

पिछले हफ़्ते मैं और हलो एक-दूसरे को अच्छी तरह जान पाए और उसने मुझे ज़िंदगी के बारे में काफ़ी कुछ बताया। वह गेल्ज़किरशेन का है और अपने दादा-दादी के साथ रहता है। उसके माता-पिता बेल्जियम में हैं, लेकिन वह उनके पास नहीं जा सकता। हलो की उज़ूला नाम की एक गर्लफ़्रेंड हुआ करती थी। मैं भी उसे जानती हूँ। वह बहुत प्यारी और बहुत नीरस भी है। जबसे वह मुझे मिला है, वह जान गया है कि वह उज़ूला से बोर होता जा रहा है। तो मैं एक तरह से जोश बढ़ाने का काम कर रही हूँ। वाक़ई आप नहीं जान पाते कि आप किस काम में अच्छे हैं!

शनिवार रात को जैक यहीं थी। रविवार दोपहर वह हनेली के यहाँ रही और मैं बहुत बोर हुई।

हलो को शाम को आना था, लेकिन उसने लगभग छह बजे फ़ोन किया। मैंने फ़ोन उठाया तो उसने कहा, ‘मैं हेल्मुथ ज़िल्बरबर्ग बोल रहा हूँ। क्या मैं ऐन से बात कर सकता हूँ?’

‘अरे, हलो। मैं ऐन बोल रही हूँ।’

‘हलो, ऐन। कैसी हो?’

‘अच्छी हूँ, शुक्रिया।’

‘मैं बस यही कहना चाहता था कि मुझे माफ़ करना मैं आज रात नहीं आ पाऊँगा, हालाँकि मैं तुमसे बात करना चाहता हूँ। अगर मैं दस मिनट में आकर तुम्हें ले जाऊँ, तो ठीक रहेगा?’

‘हाँ, ठीक है। बाय!’

‘ठीक है, मैं अभी आता हूँ। बाय-बाय!’

फ़ोन रखकर मैंने तेज़ी से कपड़े बदले और बाल सँवारे। मैं इतनी घबराई थी कि उसे देखने के लिए खिड़की से झाँकने लगी। आख़िरकार वह दिखाई दिया। चमत्कार यह था कि मैं सीढ़ियों की तरफ़ नहीं भागी, बल्कि दरवाज़े की घंटी बजने तक चुपचाप इंतज़ार करती रही। मैंने नीचे जाकर दरवाज़ा खोला और वह सीधे मुद्दे पर आ गया।

‘ऐन, मेरी दादी को लगता है कि उम्र के लिहाज़ से तुम मुझसे बहुत छोटी हो और मुझे तुमसे नियमित रूप से नहीं मिलना चाहिए। वे कहती हैं कि मुझे लोवेनबाख़ के यहाँ जाना चाहिए, लेकिन शायद तुम जानती हो कि मैं अब उज़ूला के साथ नहीं घूमता।’

‘नहीं, मैं नहीं जानती। क्या हुआ? क्या तुम दोनों के बीच कोई झगड़ा हुआ है?’

‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं। मैंने उज़ूला से कह दिया कि हम एक-दूसरे के लायक़ नहीं हैं और इसलिए बेहतर होगा कि हम साथ न घूमे-फिरें, लेकिन वह मेरे घर आ सकती है और उम्मीद है कि उसके घर में भी मेरा स्वागत होगा। दरअसल, मुझे लगा कि उज़ूला किसी और लड़के के साथ घूमती है और मैंने उसके साथ वैसा ही बर्ताव किया, जैसा कि वह कर रही थी। लेकिन वह सच नहीं था। फिर मेरे चाचा ने कहा कि मुझे उससे माफ़ी माँगनी चाहिए, लेकिन मुझे वैसा करना ठीक नहीं लगा और इसीलिए मैंने उससे रिश्ता तोड़ दिया। लेकिन वह सिर्फ़ एक कारण था।

‘अब मेरी दादी चाहती हैं कि मैं तुमसे नहीं, उज़ूला से मिलूँ, लेकिन मैं उनसे सहमत नहीं हूँ और मैं वैसा नहीं करूँगा। कई बार बूढ़े लोगों के विचार बहुत ही दक़ियानूसी होते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मुझे उनके मुताबिक़ चलना चाहिए। मुझे अपने दादा-दादी की ज़रूरत है, लेकिन कुछ मायनों में उन्हें भी मेरी ज़रूरत है। आज के बाद से मैं बुधवार शाम को ख़ाली रहूँगा। मेरे दादा-दादी मुझे लकड़ी पर नक्काशी का काम सीखने के लिए भेजना चाहते हैं, लेकिन मैं ज़ियोनवादियों के क्लब में जाना चाहता हूँ। मेरे दादा-दादी नहीं चाहते कि मैं वहाँ जाऊँ, क्योंकि वे ज़ियोन विरोधी हैं। मैं कट्टर ज़ियोनवादी नहीं हूँ, लेकिन मेरी दिलचस्पी उसमें है। वैसे वहाँ भी काफ़ी गड़बड़ हो गई है, इसलिए मैं क्लब छोड़ने की सोच रहा हूँ। अगले बुधवार मेरी अख़िरी बैठक होगी। इसका मतलब है कि मैं तुमसे बुधवार शाम, रविवार दोपहर, शनिवार शाम, रविवार दोपहर और बाक़ी दिन भी मिल सकता हूँ।’

‘लेकिन अगर तुम्हारे दादा-दादी नहीं चाहते, तो तुम्हें उनसे छिपकर नहीं मिलना चाहिए?’

‘प्रेम और युद्ध में सब कुछ जायज़ है।’

तभी हम ब्लैंकवूर्त बुकस्टोर के पास से गुज़रे और वहाँ पर पीटर शिफ़ दो और लड़कों के साथ खड़ा था, बहुत लंबे समय के बाद पहली बार उसने मुझे हैलो कहा और उससे मुझे बहत अच्छा लगा।

सोमवार शाम को हलो मेरे माता-पिता से मिलने आया। मैं केक और कुछ मिठाइयाँ लाई थी, हमने चाय व बिस्किट लिए, लेकिन न तो हलो और न ही मुझे अपनी कुर्सियों पर बैठना पसंद आ रहा था। हम टहलने के लिए निकले, लेकिन वापस लौटते-लौटते आठ बजकर दस मिनट हो चुके थे। पापा बहुत गु़स्से में थे। उन्होंने कहा कि घर समय पर न आना बहुत ग़लत बात है। मुझे उनसे वादा करना पड़ा कि आगे से मैं आठ बजने में दस मिनट पहले ही घर पहुँच जाऊँगी। मुझे शनिवार को हलो ने बुलाया था।

विल्मा ने मुझे बताया कि एक रात हलो उसके घर था, तो उसने उससे पूछा, ‘तुम्हें उज़ूल पसंद है या ऐन?’

उसने कहा, ‘इससे तुम्हारा कोई लेना-देना नहीं।’

लेकिन बाहर निकलते हुए (बाक़ी शाम उन्होंने कोई बात नहीं की) उसने कहा, ‘मुझे ऐन ज़्यादा अच्छी लगती है, लेकिन किसी को मत बताना। बाय!’ और वह तेज़ी से बाहर निकल गया।

हलो की हर बात, उसकी हरकतों से लगता है कि वह मेरे प्यार में है और मुझे यह बात अच्छी लगती है। मारगोट कहती है कि वह भला है। मुझे भी ऐसा ही लगता है, लेकिन वह उससे कहीं ज़्यादा है। माँ भी उसकी तारीफ़ करते नहीं थकती, ‘ख़ूबसूरत लड़का। शालीन और विनम्र।’ मुझे ख़ुशी है कि सब उसे पसंद करते हैं। मेरी सहेलियों को छोड़कर। उसे लगता है कि वे बहुत बचकानी हैं और वह सही भी है। जैक अब भी उसका नाम लेकर मुझे चिढ़ाती है, लेकिन मुझे उससे प्यार नहीं है। सचमुच नहीं। लड़कों से दोस्ती में कोई बुराई नहीं। किसी को भी आपत्ति नहीं है।

माँ मुझसे हमेशा पूछती है कि मैं बड़ी होने पर किससे शादी करूँगी, लेकिन मैं शर्त लगा सकती हूँ कि वे कभी अंदाज़ा नहीं लगा पाएँगी कि वह पीटर है, क्योंकि मैं पलक झपकाए बिना उन्हें उसके ख़िलाफ़ अपनी राय दे चुकी हूँ। मैं पीटर को इतना प्यार करती हूँ, जैसा मैंने किसी को भी नहीं किया और मैं ख़ुद से कहती हूँ कि वह मेरे लिए अपनी भावनाएँ छिपाने के लिए बाक़ी लड़कियों के साथ घूमता है। शायद उसे लगता है कि मैं और हलो एक-दूसरे से प्यार करते हैं, जबकि ऐसा नहीं है। वह बस एक दोस्त है या फिर जैसा कि माँ कहती है, वह शादी करने का इच्छुक लड़का।

तुम्हारी, ऐन

रविवार, 5 जुलाई, 1942

प्यारी किटी,

यहूदी थिएटर में शुक्रवार को परीक्षा परिणाम घोषित किए गए। मेरा रिपोर्ट कार्ड बहुत बुरा नहीं था। मुझे बीजगणित में एक डी और एक सी माइनस मिला और बाक़ी सबमें बी मिला, दो में बी प्लस और दो में बी माइनस मिला। मेरे माता-पिता ख़ुश हैं, लेकिन ग्रेड्स के मामले में वे बाक़ी माँ-बाप जैसे नहीं हैं। वे कभी परिणामों की चिंता नहीं करते, चाहे वे अच्छे हों या बुरे। जब तक मैं सेहतमंद हूँ, ख़ुश हूँ और ज़्यादा शरारत नहीं करती, वे संतुष्ट रहते हैं। अगर ये तीन चीज़ें ठीक हों, तो बाक़ी सब कुछ अपने आप ठीक रहेगा।

मैं ठीक उलट हूँ। मैं बुरी विद्यार्थी नहीं बनना चाहती। मुझे यहूदी स्कूल में कुछ शर्तों पर लिया गया था। मुझे मॉन्टेसरी स्कूल में रहना था, लेकिन जब यहूदी बच्चों के लिए यहूदी स्कूलों में जाना ज़रूरी हो गया, तो काफ़ी मिन्नतें करने के बाद मि. एल्टे मुझे और लाइज़ गॉसलर को स्कूल में लेने के लिए तैयार हो गए। लाइज़ भी इस साल पास हो गई है, हालाँकि उसे ज्यामिति की परीक्षा फिर से देनी होगी।

बेचारी लाइज़। उसके लिए घर पर पढ़ाई करना आसान नहीं है; उसकी दो साल की छोटी बिगड़ैल बहन उसके कमरे में हर समय खेलती रहती है। अगर उसकी बात न मानो, वह चिल्लाने लगती है और अगर लाइज़ उसका ध्यान न रखे, तो मिसेज़ गॉसलर चीख़ने लगती हैं। इसलिए लाइज़ को अपना होमवर्क करने में बहुत मुश्किल होती है और जब तक यह सब चलता रहेगा, अतिरिक्त ट्यूशन से उसे कोई फ़ायदा नहीं होने वाला है। उसका घर देखने लायक़ जगह है। मिसेज़ गॉसलर के माँ-बाप पड़ोस में रहते हैं, लेकिन उनके साथ ही खाना खाते हैं। वहाँ एक नौकरानी है, एक बच्ची, अपने ख़यालों में खोए और वहाँ मौजूद न रहने वाले मि. गॉसलर और हमेशा घबराई हुई व चिड़चिड़ी मिसेज़ गॉसलर हैं, जो फिर से माँ बनने वाली हैं। इस हलचल के बीच अनाड़ी लाइज़ कहीं खो जाती है।

मेरी बहन मारगोट का भी परीक्षाफल मिला है।

हमेशा की तरह उसका प्रदर्शन शानदार रहा है। अगर हमारे यहाँ ख़ास तरह डिग्री भी होती, तो वह उसमें भी अव्वल आती, वह बहुत होशियार है।

पापा आजकल ज़्यादातर घर में रहते हैं। उनके लिए दफ़्तर में करने को कुछ ख़ास नहीं है; यह एहसास बहुत बुरा है कि किसी को आपकी ज़रूरत नहीं। मि. क्लेमन ने ओपेक्टा को अपने हाथ में ले लिया है और मि. कुगलर ने मसालों व उनसे जुड़े विकल्पों की गीज़ ऐंड कंपनी का अधिग्रहण कर लिया है, जिसकी स्थापना 1941 में हुई थी।

कुछ दिन पहले हम अपने घर के नज़दीक चौराहे पर चहलक़दमी कर रहे थे कि पापा ने कहीं छिपकर रहने के बारे में बात शुरू की। उन्होंने कहा कि बाक़ी दुनिया से कटकर रहना हमारे लिए बहुत मुश्किल होगा। मैंने उनसे पूछा कि वे उस बात को तब क्यों उठा रहे थे।

उनका जवाब था, ‘देखो, ऐन, तुम जानती हो कि एक साल से ज़्यादा समय से हम अपने कपड़े, खाने-पीने की चीज़ें और फ़र्नीचर बाक़ी लोगों को भेजते रहे हैं। हम नहीं चाहते कि हमारे सामान पर जर्मन कब्ज़ा कर लें। न ही हम ख़ुद उनके शिकंजे में फँसना चाहते हैं। इसलिए हम अपनी मर्ज़ी से निकलेंगे, न कि किसी के द्वारा निकाले जाने का इंतज़ार करेंगे।’

‘लेकिन कब, पापा?’ वे इतने गंभीर लग रहे थे कि मुझे डर लगा।

‘तुम फ़िक्र मत करो। हम सब चीज़ों का ध्यान रखेंगे। तुम तब तक अपनी बेफ़िक्री के दिनों का मज़ा लो।’

बस वही बात थी। काश, ये गंभीर शब्द जहाँ तक मुमकिन हो सके, सही साबित न हों!

दरवाज़े की घंटी बज रही है। हलो आ गया है, अब रुकने का वक़्त है।

तुम्हारी, ऐन

बुधवार, 8 जुलाई, 1942

प्यारी किटी,

लग रहा है कि रविवार सुबह के बाद से कई साल गुज़र गए हैं। इस दौरान इतना कुछ हो गया है कि लगता है कि जैसे अचानक पूरी दुनिया ही उलट गई है। लेकिन जैसा कि तुम देख सकती हो, किटी, मैं अब भी ज़िंदा हूँ और पापा कहते हैं कि यही बात मायने रखती है। मैं ज़िंदा तो हूँ? लेकिन यह मत पूछो कि कहाँ और कैसे। शायद तुम्हें आज मेरी कही कोई बात समझ नहीं आ रही, इसलिए मैं रविवार दोपहर की घटना से बात शुरू करती हूँ।

तीन बजे (हलो जा चुका था और उसे बाद में आना था) दरवाज़े की घंटी बजी। मैं बालकनी में धूप में बैठकर किताब पढ़ रही थी, इसलिए मैंने घंटी नहीं सुनी। थोड़ी देर बाद रसोईघर के

दरवाज़े पर परेशान मारगोट दिखी। ‘पापा को एसएस से नोटिस मिला है,’ वह फुसफसाई। ‘माँ मि. फ़ॉन डान से मिलने गई हैं।’ (मि. फ़ॉन डान पापा के बिज़नेस व्यावसायिक साझेदार हैं और अच्छे दोस्त भी।)

मैं सन्न रह गई। नोटिस का मतलब हर कोई जानता है। यातना शिविर और सुनसान कोठरियों के नज़ारे मेरे दिमाग़ में घूमने लगे। हम कैसे अपने पिता को वैसी हालत में जाने दे सकते हैं? ‘वे नहीं जा रहे हैं, बिलकुल नहीं,’ बैठक में माँ का इंतज़ार करते हुए मारगोट ने कहा। माँ मि. फ़ॉन डान से यह पूछने गई हैं कि क्या हम कल छिपने की जगह पर जा सकते हैं। फ़ॉन डान परिवार भी हमारे साथ जा रहा है। कुल मिलाकर हम सात लोग होंगे ख़ामोशी है। हम कुछ नहीं बोल पा रहे। यहाँ के घटनाक्रम से पूरी तरह अनजान यहूदी अस्पताल में किसी को देखने गए पापा का ख़याल, माँ का लंबा इंतज़ार, गर्मी, अनिश्चय - इन सबसे हम बिलकुल ख़ामोश हो गए हैं।

अचानक फिर से दरवाज़े की घंटी बजी। ‘हलो होगा,’ मैंने कहा।

‘दरवाज़ा मत खोलना!’ मारगोट ने मुझे रोकते हुए कहा। लेकिन वह ज़रूरी नहीं था, क्योंकि हमने मि. फ़ॉन डान को हलो से बात करते हुए सुन लिया था और फिर वे दोनों अंदर आए और दरवाज़ा बंद कर दिया। हर बार घंटी बजने पर मारगोट या मुझे नीचे जाकर देखना होता था कि कहीं पापा तो नहीं, हम किसी और को अंदर नहीं आने देते थे। मारगोट और मुझे कमरे से बाहर भेज दिया गया, क्योंकि मि. फ़ॉन डान माँ से अकेले में बात करना चाहते थे।

जब मैं और मारगोट हमारे बेडरूम में बैठे थे, तो मारगोट ने मुझे बताया कि कॉल अप नोटिस पापा के लिए नहीं, बल्कि उसके लिए था। इस दूसरे झटके से मैं रोने लगी। मारगोट सोलह साल की है, शायद वे उसकी उम्र की लड़कियों को अकेले अपने बलबूते भेजना चाहते थे। लेकिन शुक्र है कि उसे नहीं जाना होगा; ख़ुद माँ ने ऐसा कहा था, यानी यही वजह थी कि पापा ने मुझसे छिपने के बारे में बात की थी। छिपना… हम कहाँ छिपेंगे? शहर में? देहात में? किसी घर में? किसी झोपड़ी में? कब, कहाँ, कैसे…? मुझे ये सवाल पूछने की इजाज़त नहीं थी, लेकिन वे तब भी मेरे दिमाग़ में घूम रहे थे।

मारगोट और मैंने अपनी सबसे अहम चीज़ों को एक झोले में रखना शुरू किया। सबसे पहले मैंने इस डायरी को रखा और फिर कलर्स, रूमाल, स्कूल की किताबें, कंघी और कुछ पुरानी चिट्ठियाँ रखी। छिपने की बात में डूबे हुए मैंने थैले में अजीबोग़रीब चीज़ें रखी। मैं माफ़ी चाहती हूँ। यादें मेरे लिए कपड़ों से ज़्यादा मायने रखती हैं।

पापा आख़िरकार क़रीब पाँच बजे घर पहुँचे और हमने मि. क्लेमन को यह पूछने के लिए फ़ोन किया कि क्या वे शाम को आ सकते हैं। मि. फ़ॉन डान मीप को लेने चले गए। मीप आई और अगले दिन आने का वादा करके अपने साथ एक थैले में जूते, कपड़े, जैकेट्स, अंतर्वस्त्र और जुराबें भरकर ले गईं। उसके बाद हमारे घर में शांति छा गई; किसी का भी खाने का मन नहीं कर रहा था। अब भी गर्मी थी और सब कुछ बहुत अजीब लग रहा था।

हमने अपना ऊपर का कमरा मि. गल्डश्मिट को किराए पर दे दिया था, वे तीस साल की उम्र के तलाक़शुदा आदमी थे, उस शाम शायद उनके पास कुछ करने को नहीं था, इसलिए हमारे बहुत विनम्र इशारों के बावजूद वे दस बजे तक हमारे आसपास ही मँडराते रहे।

मीप और यान गीज़ ग्यारह बजे आए। मीप पापा की कंपनी में 1933 से काम करती रही थीं, इसलिए वे और उनके पति हमारे अच्छे दोस्त बन गए थे। एक बार फिर जूते-जुराब, किताबें और अंतर्वस्त्र मीप के थैले और यान की गहरी जेबों में समा गए। साढ़े ग्यारह बजे वे भी ग़ायब हो गए।

मैं थक गई थी और यह जानते हुए भी कि वह मेरे बिस्तर पर मेरी आख़िरी रात थी, मैं तुरंत सो गई और सुबह साढ़े पाँच बजे माँ के पुकारने पर ही उठी। ख़ुशक़िस्मती से दिन रविवार की तरह गर्म नहीं था; दिन भर बारिश होती रही। हम चारों ने इतने कपड़े पहने हुए थे कि लग रहा था कि हम रात किसी रेफ़्रिजरेटर में गुज़ारने वाले थे, हमने अपने साथ ज़्यादा से ज़्यादा कपड़े ले जाने के लिए वैसा किया था। हमारे जैसे हालात में फँसा कोई भी यहूदी घर से सूटकेस में भरकर कपड़े ले जाने की जुर्रत नहीं कर सकता था। मैंने दो बनियानें, तीन पैंट्स, एक ड्रेस और उसके ऊपर एक स्कर्ट, एक जैकेट, एक रेनकोट पहन रखा था, फिर भारी जूतों के अंदर दो जोड़े मोज़े थे, एक टोपी, एक स्कार्फ़ और काफ़ी कुछ था। घर से निकलने से पहले ही मेरा दम घुटने लगा था, लेकिन किसी ने भी यह पूछने की ज़हमत नहीं की कि मुझे कैसा महसूस हो रहा था।

मारगोट ने अपने स्कूल के बस्ते में अपनी किताबें भरी, अपनी साइकिल लेने गई और मीप के पीछे-पीछे किसी अनजानी जगह पर चली गई। कुछ भी हो, मैंने यही सोचा था, क्योंकि मुझे अब भी नहीं पता कि हमारे छिपने की जगह कहाँ थी।

साढ़े सात बजे हमने भी घर छोड़ दिया; मोर्ते ही अकेली ऐसी प्राणी थी, जिसे मैंने अलविदा कहा। एक नोट के मुताबिक हम मि. गल्डश्मिट के यहाँ गए थे, बिल्ली को पड़ोसियों के पास ले जाना था, जो उसे पनाह देते।

बिखरे हुए बिस्तर, मेज़ पर नाश्ते की चीज़ें, रसोई में बिल्ली के लिए मांस का टुकड़ा - इन सबसे यही लगा कि हमने जल्दबाज़ी में घर छोड़ा है। लेकिन हमें दिखाने में कोई दिलचस्पी नहीं थी। हम बस वहाँ से निकलना चाहते थे, वहाँ से निकलकर सुरक्षित स्थान पर पहुँचना चाहते थे। कुछ और मायने भी नहीं रखता था।

बाक़ी कल।

तुम्हारी, ऐन

गुरुवार, 9 जुलाई, 1942

प्रिय किटी,

तो हम वहाँ पहुँच गए, पापा, माँ और मैं, बारिश में चलते हुए, हम सबके पास एक बड़ा व एक छोटा थैला था, जिनमें कई तरह की चीज़ें ठूँस-ठूँसकर भरी थी। उस सुबह अपने काम पर जाते हुए लोग हमें सहानुभूति भरी नज़रों से देख रहे थे; उनके चेहरे देखकर अंदाज़ा लगाया जा सकता था कि उन्हें बुरा लग रहा था कि वे हमें किसी तरह की सवारी की पेशकश नहीं कर सकते थे, साफ़ तौर पर दिखने वाला पीला सितारा ख़ुद ही सब कुछ कह रहा था।

आगे बढ़ने के साथ-साथ पापा और माँ ने धीरे-धीरे उजागर किया कि योजना क्या है। कई महीनों से हम जहाँ तक मुमकिन हो, अपना अधिकांश फ़र्नीचर व सामान निकालते रहे थे। हम इस बात पर राज़ी थे कि 16 जुलाई को छिपने के लिए जाएँगे। मारगोट के कॉल अप नोटिस के कारण योजना को दस दिन आगे करना पड़ा, जिसका मतलब था कि हमें कम व्यवस्थित कमरों से काम चलाना था।

छिपने की जगह पापा के दफ़्तर की इमारत में थी। किसी बाहरी इंसान के लिए उसे समझना मुश्किल होगा, इसलिए मैं समझाती हूँ। पापा के दफ़्तर में बहुत ज़्यादा लोग काम नहीं करते, सिर्फ़ मि. कुगलर, मि. क्लेमन, मीप और 23 साल की एक टाइपिस्ट बेप वुश्कल हैं, जिन्हें हमारे आने के बारे में बताया गया था। बेप के पिता मि. वुश्कल दो सहायकों के साथ गोदाम में काम करते हैं, सहायकों को कुछ नहीं बताया गया।

इमारत का वर्णन इस प्रकार है। भूतल पर मौजूद विशाल गोदाम का इस्तेमाल काम करने और सामान रखने के लिए किया जाता है और उसे कई हिस्सों में बाँटा गया है, जैसे कि माल रखने की जगह और मसाले पीसने की जगह, जहाँ दालचीनी, लौंग और काली मिर्च की जगह इस्तेमाल होने वाली चीज़ों को पीसा जाता है।

गोदाम के दरवाज़े की बग़ल में एक और बाहरी दरवाज़ा है, दफ़्तर में घुसने का एक और प्रवेशद्वार। दफ़्तर के दरवाज़े के ठीक अंदर दूसरा दरवाज़ा है और उसके बाद सीढ़ियाँ हैं। सीढ़ियों के ऊपर एक और दरवाज़ा है, जिसकी खिड़की पर काले अक्षरों में ऑफ़िस लिखा है। यह सामने का बड़ा सा ऑफ़िस है — बहुत विशाल, रोशन और भरा-पूरा। दिन में बेप, मीप और मि. क्लेमन वहाँ काम करते हैं। तिजोरी, अलमारी और स्टेशनरी की बड़ी सी अलमारी वाले आले को पार करके आप एक छोटे, अँधेरे, घुटन भरे पीछे के ऑफ़िस में पहुँचते हैं। पहले यह मि. कुगलर और मि. फ़ॉन डान का साझा कमरा था, लेकिन अब यहाँ पर केवल मि. कुगलर ही काम करते हैं। मि. कुगलर के दफ़्तर में गलियारे से भी पहुँचा जा सकता है, लेकिन तभी जब आप काँच के दरवाज़े से उसमें घुसें, जिसे अंदर से खोला जा सकता है, लेकिन बाहर से आसानी से नहीं खोला जा सकता। अगर आप मि. कुगलर के दफ़्तर से कोयले के स्टोर से होकर लंबे, सँकरे गलियारे से निकलें और चार सीढ़ियाँ चढ़ें, तो आप ख़ुद को एक प्राइवेट ऑफ़िस में पाएँगे, जो पूरी इमारत की सबसे देखने लायक़ जगह है। बढ़िया महोगनी फ़र्नीचर, कालीन से ढँका फ़र्श, ख़ूबसूरत लैम्प, सब कुछ बेहतरीन है। उसके बग़ल में बड़ा सा रसोईघर है, जिसमें दो वॉटर हीटर और दो गैस रिंग्स हैं, उसके बाद शौचालय है। वह पहली मंज़िल है।

नीचे के गलियारे से लकड़ी की सीढ़ियों से दूसरी मंज़िल पर पहुँचा जा सकता है। सीढ़ियों में सबसे ऊपर एक प्लेटफ़ार्म है, जिसके दोनों तरफ़ दरवाज़े हैं। बाईं ओर का दरवाज़ा आपको घर के अगले हिस्से में मौजूद मसाले रखने की जगह, परछत्ती और अटारी तक ले जाता है। घर के सामने के हिस्से से एक डच शैली की सीधी खड़ी सीढ़ियाँ गली में खुलने वाले दरवाज़े तक जाती हैं।

प्लेटफ़ार्म के दाईं ओर का दरवाज़ा घर के पिछले हिस्से में मौजूद गुप्त जगह तक ले जाता है। किसी को भी शक नहीं होगा कि सादे धूसर से दरवाज़े के पीछे इतने सारे कमरे होंगे दरवाज़े से बस एक क़दम बढ़ाते ही आप अंदर पहुँच जाते हैं। आपके ठीक सामने सीधी खड़ी सीढ़ियाँ हैं। बाईं ओर एक सँकरा गलियारा है, जो एक कमरे में खुलता है, जो फ़्रैंक परिवार की बैठक और सोने का कमरा है। उसके बग़ल में एक छोटा कमरा है, जो परिवार की दो लड़कियों का शयन व अध्ययन कक्ष है। सीढ़ियों के दाईं तरफ़ एक बिना खिड़की वाला बाथरूम है, जिसमें सिर्फ़ एक सिंक है। किनारे के दरवाज़े से शौचालय तक जा सकते हैं और दूसरे से मेरे व मारगोट के कमरे में। अगर आप सीढ़ियों से ऊपर जाते हैं और सबसे ऊपर का दरवाज़ा खोलते हैं, तो इस पुराने से घर में एक बड़ा सा, रोशन कमरा देखकर हैरान रह जाएँगे। इसमें एक गैस कुकर (यह कभी मि. कुगलर की प्रयोगशाला हुआ करता था) और एक सिंक है। यह मि. और मिसेज़ फ़ॉन डान का रसोईघर और शयनकक्ष होगा, इसके अलावा यह हम सबके लिए सामान्य बैठक, भोजनकक्ष और अध्ययनकक्ष होगा। किनारे पर मौजूद छोटा सा कमरा पीटर फ़ॉन डान का सोने का कमरा होगा। ठीक इमारत के अगले हिस्से की तरह यहाँ पर भी एक अटारी और परछत्ती है। तो तुम अब समझ गई। मैंने अपनी प्यारी सी जगह के बारे में तुम्हें बता दिया है।

तुम्हारी ऐन

शुक्रवार, 10 जुलाई, 1942

प्यारी किटी,

शायद मैंने अपने घर का विस्तृत विवरण देकर तुम्हें उबा दिया होगा, लेकिन फिर भी मुझे लगता है कि तुम्हें पता होना चाहिए कि मैं कहाँ आ पहुँची हूँ; कैसे पहुँची, इसका अंदाज़ा तुम्हें बाद में होगा।

लेकिन पहले मैं अपनी कहानी जारी रखती हूँ, क्योंकि तुम जानती हो कि मेरी बात अभी ख़त्म नहीं हुई है। 263 प्रिंसग्राख़्त पहुँचते ही मीप हमें तेज़ी से लंबे से गलियारे से होते हुए लकड़ी की सीढ़ियों पर से ऊपर की मंज़िल पर मौजूद उपभवन तक ले गई। उन्होंने निकलते हुए दरवाज़ा बंद किया और हमें वहाँ अकेला छोड़ दिया। मारगोट पहले ही अपनी साइकिल से वहाँ पहुँच चुकी थी और हमारा इंतज़ार कर रही थी।

हमारी बैठक और बाक़ी सभी कमरों में इतना सामान भरा पड़ा था कि मैं उसके बारे में बयाँ नहीं कर सकती। पिछले कुछ महीनों में जो भी गत्ते के डिब्बे दफ़्तर में भेजे गए थे, फ़र्श पर और बिस्तर पर उनका ढेर लगा था। छोटे कमरे में फ़र्श से लेकर छत तक चादरों का ढेर लगा था। अगर हमें उस रात करीने से लगे बिस्तर पर सोना था, तो हमें तुरंत काम पर लगकर उस बेतरतीबी को ठीक करना था। माँ और मारगोट तो हाथ तक नहीं हिला पाईं। वे थकी-हारी अपने ख़ाली गद्दे पर ऐसे ही सो गईं। लेकिन परिवार के दो सफ़ाईपसंद लोग, पापा और मैं, तुरंत काम में जुट गए।

दिन भर हम डिब्बे खोलते रहे, अलमारियों में सामान भरते रहे, सारे सामान को तब तक करीने से लगाते रहे, जब तक कि हम थक कर अपने साफ़ बिस्तर पर नहीं पड़ गए। दिन भर हमने एक बार भी गर्मागर्म खाना नहीं खाया, लेकिन हमें परवाह नहीं थी। माँ और मारगोट बहुत थकी हुई और परेशान थीं, जबकि मैं और पापा बहुत व्यस्त थे।

मंगलवार की सुबह हमने रात को छोड़े हुए काम से शुरुआत की। बेप और मीप हमारे राशन कूपन लेकर ख़रीदारी करने गईं, पापा ने ब्लैकआउट स्क्रीन यानी कमरे अँधेरा रखने वाली जाली पर काम किया। हमने रसोईघर के फ़र्श की सफ़ाई की और एक बार फिर हम सुबह से लेकर रात तक काम में व्यस्त रहे। बुधवार तक मुझे अपनी ज़िंदगी में आए इतने बड़े बदलाव के बारे में सोचने का मौक़ा तक नहीं मिला। इस गुप्त जगह में आने के बाद पहली बार मुझे वक़्त मिला कि मैं तुम्हें उसके बारे में सब कुछ बताऊँ और यह समझूँ कि मेरे साथ क्या हुआ था और क्या कुछ आगे होने वाला था।

तुम्हारी ऐन

शनिवार, 11 जुलाई, 1942

प्यारी किटी,

माँ, पापा और मारगोट अब भी वेस्टरटोरेन घड़ी के घंटे के आदी नहीं हुए हैं, जो हर पंद्रह मिनट में बजते हैं। लेकिन मेरे साथ ऐसा नहीं है, मुझे वह शुरू से ही पसंद थी; उसकी आवाज़ ख़ासकर रात को बहुत आश्वस्त करने वाली लगती है। बेशक तुम यह जानना चाहती हो कि छिपकर रहने को लेकर मैं क्या सोचती हूँ। मैं इतना ही कह सकती हूँ कि अब तक मैं ख़ुद ठीक से नहीं जान पाई हूँ। मुझे नहीं लगता कि मैं कभी इस घर में सहज महसूस कर सकूँगी, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि मुझे इससे नफ़रत है। यह किसी अजीब सी जगह में छुट्टी बिताने की तरह है। छिपकर जीने को देखने का यह अजीब तरीक़ा है, लेकिन हालात ऐसे ही हैं। यह छिपने की आदर्श जगह है। यह नम और असंतुलित हो सकती है, लेकिन शायद पूरे ऐम्स्टर्डम में छिपने की इससे ज़्यादा आरामदेह जगह नहीं हो सकती। नहीं, पूरे हॉलैंड में नहीं हो सकती।

अब तक सूनी दीवारों वाला हमारा बेडरूम बहुत ख़ाली सा था। शुक्र है पापा का, जो पहले से ही यहाँ मेरा पूरा पोस्टकार्ड और फ़िल्मी सितारों का संग्रह ले आए और ब्रश व गोंद की वजह से मैं दीवारों पर तसवीरें लगा सकी। अब यह ख़ुशनुमा लगता है। फ़ॉन डान परिवार के आने पर हम अटारी पर मौजूद लकड़ी से अलमारियाँ और कई तरह की चीज़ें बना सकेंगे।

मारगोट और माँ काफ़ी हद तक सँभल चुकी हैं। कल माँ की तबियत इतनी ठीक थी कि उन्होंने पहली बार मटर का सूप बनाया, लेकिन वे नीचे बातचीत में इतनी मशगूल हो गईं कि उसे बिलकुल भूल गईं। मटर सूखकर काले हो गए और बहुत खुरचने पर भी पैन से अलग नहीं हुए।

बीती रात हम चारों ने नीचे की मंज़िल पर प्राइवेट ऑफ़िस में जाकर वायरलेस पर इंग्लैंड को सुना। मैं इतनी डर गई थी कि कहीं कोई सुन न ले कि मैंने पापा से विनती की कि वे मुझे ऊपर ले जाएँ। मेरी बेचैनी को माँ समझ गईं और वे मेरे साथ आईं। कोई भी काम करते हुए हमें डर लगता है कि कहीं कोई पड़ोसी हमारी बात न सुन ले या हमें देख न ले। पहले ही दिन हमने पर्दे सिले। वैसे उन्हें पर्दे कहना मुश्किल है, क्योंकि वे और कुछ नहीं अलग-अलग आकार, क्वालिटी व डिज़ाइन के कपड़ों के टुकड़े हैं, जिन्हें पापा और मैंने अनगढ़ तरीक़े से एक साथ जोड़कर सिला है। कला के इन नमूनों को खिड़कियों पर टाँग दिया गया, जहाँ वे हमारे छिपने तक रहेंगे।

हमारे दाईं ओर की इमारत केग कंपनी की एक शाखा है, जो ज़ानदाम की है और हमारे बाईं ओर एक फ़र्नीचर वर्कशॉप है। वहाँ काम करने वाले लोग हालाँकि काम के बाद वहाँ नहीं होते हैं, लेकिन हमारी किसी भी तरह की आवाज़ दीवारों के पार पहुँच सकती है। हमने मारगोट को रात को खाँसने से मना किया है, जबकि उसे काफ़ी जुकाम है, हम उसे बड़ी मात्रा में कोडीन दे रहे हैं।

मैं फ़ॉन डान परिवार की राह देख रही हूँ, वे मंगलवार को आने वाले हैं। उनके आने से ज़्यादा मज़ा आएगा और इतनी ख़ामोशी भी नहीं रहेगी। पता है, यही ख़ामोशी शाम व रात को मुझे घबराहट से भर देती है और मैं अपने किसी मददगार को यहाँ सोने देने के लिए कुछ भी कर सकती हूँ।

यहाँ उतना बुरा भी नहीं है, क्योंकि हम अपना खाना बना सकते हैं और डैडी के ऑफ़िस में रेडियो सुन सकते हैं। मि. क्लेमन, मीप और बेप वुश्कल ने हमारी बहुत मदद की है। हम अब तक काफ़ी रूबार्ब, स्ट्रॉबेरी और चेरी संरक्षित कर चुके हैं, इसलिए फ़िलहाल तो मुझे नहीं लगता कि हम ऊब जाएँगे। हमारे पास पढ़ने के लिए भी काफ़ी कुछ है और हम बहुत सारे गेम्स भी ख़रीदने वाले हैं। हाँ, हम कभी खिड़की से बाहर नहीं देख सकते या बाहर नहीं जा सकते। हमें शांत रहना पड़ता है, ताकि नीचे के लोग हमें न सुन सकें।

कल तो हमें बहुत काम था। हमें दो क्रेट्स चेरी के बीज निकालने थे, ताकि उन्हें मि. कुगलर के लिए संरक्षित कर सकें। ख़ाली क्रेट्स से हम किताबों के आले बनाएँगे।

कोई मुझे पुकार रहा है।

तुम्हारी, ऐन

रविवार, 12 जुलाई, 1942

एक महीना पहले मेरे जन्मदिन के कारण उन सबका बर्ताव मेरे साथ बहुत अच्छा था और अब हर दिन मुझे लगता है कि मैं माँ और मारगोट से दूर होती जा रही हूँ। आज मैंने बहुत मेहनत की और उन्होंने मेरी तारीफ़ भी की, लेकिन पाँच मिनट बाद ही उन्होंने मीन-मेख निकालना शुरू कर दिया।

तुम आसानी से देख सकती हो कि वे मुझसे अलग तरह का बर्ताव करते हैं और मारगोट से अलग। जैसे मारगोट ने वैक्यूम क्लीनर तोड़ दिया और उसकी वजह से दिन भर हमें लाइट के बिना रहना पड़ा। माँ ने कहा, ‘मारगोट, पता चल रहा है कि तुम्हें काम करने की आदत नहीं है; वरना तुम्हें पता होता था कि प्लग को झटके से नहीं खींचना चाहिए।’ मारगोट ने जवाब में कुछ कहा और बस कहानी ख़त्म हो गई।

लेकिन आज दोपहर जब मैं माँ की ख़रीदारी की सूची पर कुछ लिखना चाहती थी, क्योंकि उनकी लिखाई पढ़ना मुश्किल है, तो उन्होंने मुझे ऐसा नहीं करने दिया। उन्होंने मुझे फिर से डाँटा और फिर पूरा परिवार उसमें शामिल हो गया।

उनके साथ मेरा मेल नहीं बैठता और पिछले कुछ हफ़्तों में मैंने यह बहुत साफ़ तौर पर महसूस किया है। वे सब मिलकर भावुक हो जाते हैं, लेकिन मैं अपने आप में भावुक होना पसंद करूँगी। वे हमेशा कहते हैं कि हम चारों का साथ होना कितना अच्छा है और हम कैसे मिलकर रहते हैं, वे एक पल को भी यह नहीं सोचते कि मुझे वैसा महसूस नहीं होता।

सिर्फ़ डैडी ही हैं, जो कभी-कभी मुझे समझते हैं, हालाँकि वे अक्सर माँ या मारगोट का पक्ष लेते हैं। उनकी एक और बात मुझे पसंद नहीं कि वे बाहर के लोगों के सामने मेरे बारे में बात करें, उन्हें बताएँ कि मैं कैसे रोई या फिर मैं कितनी अच्छी तरह बर्ताव कर रही हूँ। यह बुरी बात है। और कई बार वे मोर्ते की बात करते हैं, जिसे मैं बर्दाश्त नहीं कर सकती। मोर्ते मेरी कमज़ोरी है। मैं हर पल उसे याद करती हूँ और कोई नहीं जानता कि मैं उसे कितना याद करती हूँ, जब भी मैं उसे याद करती हूँ, तो मेरी आँखें भर आती हैं। मोर्ते इतनी प्यारी है और मैं उसे इतना प्यार करती हूँ कि मैं सपना देखती हूँ कि वह हमारे पास वापस आ जाएगी।

मेरे बहुत से सपने हैं, लेकिन सच्चाई यही है कि हमें लड़ाई के ख़त्म होने तक यहीं रहना होगा। हम कभी बाहर नहीं जा सकते, और हमारे पास मीप, उनके पति यान, बेप वुश्कल, मि. वुश्कल, मि. कुगलर, मि. क्लेमन और मिसेज़ क्लेमन ही आ सकते हैं, हालाँकि मिसेज़ क्लेमन यहाँ नहीं आईं, क्योंकि उन्हें लगता है कि यहाँ आना बहुत ख़तरनाक है।

शुक्रवार, 14 अगस्त, 1942

प्यारी किटी,

मैं पूरे एक महीने तुमसे दूर रही, लेकिन इस दौरान ऐसा कुछ नहीं हुआ, जिस पर रोज़ कुछ बताया जाए। फ़ॉन डान परिवार 13 जुलाई को पहुँचा। हमें लगा कि वे चौदह को आएँगे, लेकिन तेरह से सोलह के बीच जर्मन लगातार नोटिस भेज रहे थे, जिनसे बहुत बेचैनी फैल रही थी, इसलिए उन्होंने एक दिन देर करने के बजाय एक दिन पहले आने का फ़ैसला किया।

पीटर फ़ॉन डान सुबह साढ़े नौ बजे (जब हम नाश्ता कर रहे थे) पहुँचा। सोलह का पीटर एक शर्मीला, अनाड़ी लड़का है, जिसकी संगत ज़्यादा मायने नहीं रखती। मि. और मिसेज़ डान आधे घंटे बाद आए। हमें यह देखकर बहुत कौतुक हुआ कि मिसेज़ फ़ॉन डान एक हैटबॉक्स में बड़ा सा चेम्बर पॉट यानी मूत्रपात्र लेकर आई थीं। ‘इसके बिना मुझे अपने घर जैसा नहीं लगता,’ उन्होंने कहा और वह पहली चीज़ थी, जिसे दीवान के नीचे स्थायी जगह मिली थी। मि. फ़ॉन चेम्बर पॉट के बजाय सिमटने वाली टी टेबल दबाए हुए थे।

पहले दिन हम सबने साथ खाना खाया और तीन दिन बाद हमें लगा कि जैसे हम सातों एक बड़ा सा परिवार बन गए थे। ज़ाहिर था कि फ़ॉन डान के पास उस हफ़्ते के बारे में बताने के लिए काफ़ी कुछ था, जब हम सभ्यता से दूर थे। हमारी दिलचस्पी ख़ासतौर पर इस बात में थी कि हमारे मकान और मि. गल्डश्मिट का क्या हुआ।

मि. फ़ॉन डान ने बताया: ‘सोमवार की सुबह नौ बजे मि. गल्डश्मिट ने फ़ोन करके मुझे अपने पास बुलाया। मैं सीधे वहाँ गया और परेशान गल्डश्मिट से मुलाक़ात हुई। उन्होंने मुझे फ़्रैंक परिवार द्वारा छोड़ा गया एक नोट दिखाया। निर्देश के अनुसार वे कार को पड़ोसियों के पास ले जाने वाले थे, जो मेरे हिसाब से सही विचार था। उन्हें डर था कि घर की तलाशी ली जा सकती थी, इसलिए हम सभी कमरों में गए, यहाँ-वहाँ सफ़ाई की और मेज़ से नाश्ते की चीज़ों को हटा दिया। अचानक मुझे मिसेज़ फ़्रैंक के डेस्क पर एक नोटपैड दिखाई दिया, जिस पर मासत्रिख़्त का पता लिखा था। हालाँकि मैं जानता था कि मिसेज़ फ़्रैंक ने उसे जानबूझकर छोड़ा था, फिर भी मैंने हैरान और डरे होने का दिखावा किया और मि. गल्डश्मिट से उस फँसाने वाले काग़ज़ के टुकड़े को जला देने की प्रार्थना की। मैंने क़सम खाई कि मुझे आपके ग़ायब होने के बारे में कोई जानकारी नहीं थी, लेकिन उस नोट से मुझे एक ख़याल आया। मैंने कहा, “मि. गल्डश्मिट, मैं जानता हूँ कि उस पते का क्या मतलब है। क़रीब छह महीने पहले एक बड़ा अफ़सर दफ़्तर में आया था। लगता था कि मि. फ़्रैंक और वह साथ पले-बढ़े थे। उसने ज़रूरत पड़ने पर मि. फ़्रैंक की मदद करने का वादा किया था। जहाँ तक मुझे याद है, वह मासत्रिख़्त में था। लगता है कि उस अफ़सर ने अपना वादा पूरा किया है और किसी तरह से बेल्जियम पार कर स्विट्ज़रलैंड तक पहुँचने में उनकी मदद करने की योजना बना रहा है। फ़्रैंक परिवार के बारे में पूछताछ करने वाले उनके दोस्तों को यह बात बताने में कोई हर्ज़ नहीं है। आपको बस मासत्रिख़्त का ज़िक्र करने की ज़रूरत नहीं है।” उसके बाद मैं चला गया। आपके अधिकतर मित्रों को यही कहानी बताई गई है, क्योंकि बाद में कई लोगों से मैंने यह बात सुनी।’

हमें वह बात बहुत मज़ाकिया लगी, लेकिन हमें तब बहुत ज़्यादा हँसी आई, जब मि. फ़ॉन डान ने हमें बताया कि कुछ लोगों की कल्पनाशक्ति ज़बरदस्त होती है। उदाहरण के लिए, हमारे इलाके में रहने वाले एक परिवार का दावा था कि उन्होंने हम चारों को सुबह साइकिल पर जाते देखा, जबकि एक महिला इस बात को लेकर आश्वस्त थी कि हमें आधी रात को किसी फ़ौजी गाड़ी में ले जाया गया था।

तुम्हारी, ऐन

शुक्रवार, 21 अगस्त, 1942

प्यारी किटी,

अब हमारी गुप्त जगह वाक़ई बहुत गुप्त बन गई है। छिपी हुई साइकिलों की तलाश में कई घरों की तलाश हो रही है, इसलिए मि. कुगलर ने सोचा कि बेहतर होगा कि हमारी छिपने की जगह के प्रवेशद्वार पर किताबों की एक अलमारी बना दी जाए। यह कब्ज़ों पर हिलती है और दरवाज़े की तरह खुलती है। मि. वुश्कल ने लकड़ी का काम किया। (मि. वुश्कल को बताया गया है कि हम सातों यहाँ छिपे हुए हैं और वे काफ़ी मददगार रहे हैं।)

अब हमें नीचे जाते हुए सिर झुकाना होता है और फिर छलाँग लगानी होती है। शुरुआती तीन दिनों में तो निचली चौखट पर सिर लगने से हम सभी के सिर पर गूमड़ निकल आए थे। पीटर ने फिर एक तौलिए में लकड़ी की छीलन भरकर उसे चौखट पर लगा दिया। देखते हैं कि उससे मदद मिलती है या नहीं!

आजकल मैं स्कूल का काम ज़्यादा नहीं करती। मैंने सितंबर तक ख़ुद को छुट्टी दे दी है। पापा मुझे पढ़ाना शुरू करना चाहते हैं, लेकिन हमें उससे पहले किताबें ख़रीदनी होंगी।

हमारी ज़िंदगी में कुछ ख़ास नहीं बदला है। पीटर के बाल आज धुले, लेकिन उसमें कुछ भी ख़ास नहीं है। मैं और मि. फ़ॉन डान हमेशा एक-दूसरे से असहमत रहते हैं। मम्मी मुझे छोटे बच्चे जैसा समझती है, जो मुझे कतई पसंद नहीं। बाक़ी लोगों के लिए हालात बेहतर हैं। मुझे नहीं लगता कि पीटर पहले से अच्छा हुआ है। वह बेकार लड़का है, जो दिन भर बिस्तर पर लेटा रहता है और सिर्फ़ थोड़ा-बहुत लकड़ी का काम करने के लिए उठता है और फिर से झपकी लेने चला जाता है। वह बहुत बेढंगा है!

आज सुबह मम्मी ने अपनी एक बेकार सी सीख दी। हमारे विचार एक-दूसरे से बिलकुल उलट हैं। पापा बहुत अच्छे हैं, वे मुझ पर नाराज़ होते हैं, लेकिन उनकी नाराज़गी पाँच मिनट से ज़्यादा नहीं रहती।

बाहर दिन ख़ूबसूरत है, अच्छा और गर्म, लेकिन उसके बावजूद ऐसा मौसम हम अटारी पर बिस्तर में पड़े रहकर गुज़ार देते हैं।

तुम्हारी, ऐन

बुधवार, 2 सितंबर, 1942

प्यारी किटी,

मि. और मिसेज़ फ़ॉन डान में भयानक झगड़ा हुआ। मैंने ऐसा पहले कभी नहीं देखा, क्योंकि मम्मी-डैडी एक-दूसरे पर इस तरह से चिल्लाने की बात सोच भी नहीं सकते। उनका झगड़ा इतनी मामूली सी बात पर था कि जिस पर कुछ भी कहने की ज़रूरत नहीं थी। लेकिन हर किसी का अपना नज़रिया है। ओह हाँ, प्रत्येक का अपना।

पीटर के लिए यह वाक़ई बहुत मुश्किल है, जो कि बीच में फँस जाता है, लेकिन अब उसे कोई गंभीरता से नहीं लेता, क्योंकि वह बहुत संवेदनशील और आलसी है। कल वह ख़ुद ही बहुत परेशान था, क्योंकि उसकी जीभ गुलाबी के बजाय नीली हो गई थी। यह अनोखी बात जितनी तेज़ी से हुई थी, उतनी ही तेज़ी से ग़ायब भी हो गई। आज वह गर्दन पर मोटा स्कार्फ़ डालकर घूम रहा है, क्योंकि वह अकड़ गई है। महाशय कमर-दर्द की शिकायत भी करते रहे हैं। उसके दिल, गुर्दों व फेफड़ों में भी दुःख-तकलीफ़ है। वह पूरी तरह रोगभ्रमी यानी रोगों के वहम से पीड़ित (यही सही शब्द है, है न?) है!

माँ और मिसेज़ फ़ॉन डान में पट नहीं रही है। टकराव की काफ़ी वजहें हैं। एक छोटा सा उदाहरण तुम्हें देती हूँ। मिसेज़ फ़ॉन डान ने हमारी सामूहिक अलमारी में से अपनी तीन चादरों को छोड़कर बाक़ी सभी चादरें हटा ली हैं। उन्हें लगता है कि माँ की चादरें दोनों परिवारों के लिए इस्तेमाल की जा सकती हैं। उन्हें जब पता चलेगा कि माँ ने भी वैसा ही किया है, तो उन्हें बहुत झटका लगेगा।

इसके अलावा मिसेज़ फ़ॉन डी इस बात को लेकर चिढ़ी हुई हैं कि हम चीनी मिट्टी के उनके बर्तनों का इस्तेमाल कर रहे हैं। वे अब भी यह जानने की कोशिश में हैं कि हमने अपनी प्लेट्स का क्या किया; वे उनकी कल्पना से ज़्यादा नज़दीक हैं, क्योंकि उन्हें अटारी में ओपेक्टा की विज्ञापन सामग्री के पीछे गत्ते के डिब्बों में पैक किया गया था। जब तक हम छिपे हुए हैं, तब तक प्लेट्स तो उनकी पहुँच से दूर रहंगी। चूँकि मैं हमेशा हादसों में शामिल होती हूँ, तो ऐसा ही हुआ! कल मैंने मिसेज़ फ़ॉन डी का सूप का एक प्याला तोड़ दिया।

वे गु़स्से में बोलीं, ‘ओह! क्या थोड़ी सावधानी नहीं बरत सकती? वह आख़िरी था।’

ग़ौरतलब यह है किटी कि दोनों महिलाएँ (पुरुषों पर टिप्पणी की जुर्रत नहीं कर सकतीं, वे अपमानित महसूस करेंगे) बहुत ख़राब डच बोलती हैं। अगर तुम उनकी गड़बड़ कोशिशों को सुन लो, तो हँसते-हँसते लोटपोट हो जाओगी। हमने उनकी ग़लतियाँ निकालना छोड़ दिया है, क्योंकि उससे कोई फ़ायदा भी नहीं होने वाला है। जब भी मैं माँ या मिसेज़ फ़ॉन डान की बात लिखूँगी, तो सही डच लिखूँगी, न कि उनकी नक़ल करूँगी।

पिछले हफ़्ते हमारे एकरसता वाली दिनचर्या में थोड़ी हलचल हुई। यह पीटर और उसके पास औरतों के बारे में मौजूद एक किताब से हुई। मैं तुम्हें बता दूँ कि मारगोट और पीटर को मि. क्लेमन द्वारा दी गई सभी किताबें पढ़ने की इजाज़त है। लेकिन वयस्क लोग इस ख़ास किताब को अपने पास रखना पसंद करते थे। उससे पीटर की उत्सुकता बढ़ गई। आख़िर उसमें छिपाने लायक़ ऐसा क्या था? जब उसकी माँ नीचे बात करने में मशगूल थी, तो उसने चुपके से किताब उठाई और उसे लेकर ऊपर चला गया। दो दिन तक सब कुछ ठीक रहा। मिसेज़ फ़ॉन डान उसकी करतूत के बारे में जानती थीं, लेकिन चुप रहीं और यह बात तब सामने आई, जब मि. फ़ॉन डान को उसका पता चला। वे आगबबूला हो गए, उससे किताब छीन ली और मान लिया कि बात वहीं ख़त्म हो गई होगी। लेकिन उन्हें अपने बेटे की उत्सुकता का ध्यान नहीं था। पीटर पर अपने पिता की इस कार्रवाई का कोई असर नहीं पड़ा, बल्कि वह उस बेहद दिलचस्प किताब के बचे हुए पन्ने पढ़ने की तरकीब लगाने में जुट गया।

इस बीच मिसेज़ फ़ॉन डान ने माँ की राय माँगी। माँ को नहीं लगता कि वह किताब मारगोट के लिए सही है, लेकिन उन्हें बाक़ी अधिकतर किताबें पढ़ने की इजाज़त देने में कोई बुराई नहीं लगी।

‘देखिए, मिसेज़ फ़ॉन डान। मारगोट व पीटर में बहुत अंतर है। सबसे पहले तो मारगोट एक लड़की है और लड़कों के मुक़ाबले लड़कियाँ हमेशा ज़्यादा परिपक्व होती हैं। दूसरे, वह पहले ही काफ़ी गंभीर किताबें पढ़ चुकी है और उन किताबों की तलाश में नहीं रहती, जो अब निषिद्ध नहीं रही। तीसरे, एक बेहतरीन स्कूल में चार साल पढ़ने के कारण मारगोट काफ़ी समझदार व बौद्धिक रूप से विकसित है।’

मिसेज़ फ़ॉन डान उनसे सहमत थीं, लेकिन उन्हें लगा कि बड़ों के लिए लिखी गई किताबों को बच्चों को पढ़ने देना सैद्धांतिक रूप से ग़लत था।

इस दौरान पीटर ने किसी ऐसे सही समय के बारे में सोच लिया था, जब उसमें या किताब में किसी की दिलचस्पी न हो। शाम साढ़े सात बजे जब पूरा परिवार निजी दफ़्तर में वायरलेस सुन रहा था, तब उसने अपना ख़ज़ाना उठाया और फिर से ऊपर चला गया। उसे साढ़े आठ बजे तक वापस आ जाना चाहिए था, लेकिन वह किताब में इतना खो गया था कि उसे वक़्त का पता ही नहीं चला और वह सीढ़ियों से नीचे उतर ही रहा था कि उसके पिता कमरे में पहुँचे। उसके बाद का दृश्य हैरान करने वाला नहीं था: एक थप्पड़, ज़ोर की चोट और रस्साकशी के बाद किताब मेज़ पर थी और पीटर वापस ऊपर।

खाना खाने के समय हालात इस तरह थे। पीटर ऊपर ही रहा। उसके बारे में किसी ने भी नहीं सोचा; उसे खाना खाए बिना सोना था। हम खाना खाते रहे, बातचीत करते रहे, तभी हमें अचानक सीटी की तेज़ आवाज़ सुनाई दी। हमने अपने काँटे-छुरी नीचे रखे और एक-दूसरे को देखा, हमारे मुरझाए हुए चेहरों पर दहशत साफ़ तौर पर दिख रही थी।

फिर हमें चिमनी से पीटर की आवाज़ सुनाई दी: ‘मैं नीचे नहीं आऊँगा!’

तेज़ी से उठते हुए मि. फ़ॉन डान का नैपकिन फ़र्श पर गिर गया और वे गु़स्से में चिल्लाए, ‘अब बहुत हो गया!’

पापा ने किसी आशंका को देखते हुए उनकी बाँह पकड़ ली और दोनों ऊपर चले गए। काफ़ी जद्दोजहद और डाँट-फटकार के बाद पीटर अपने कमरे में गया और दरवाज़ा बंद कर लिया, हम लोग खाना खाते रहे।

मिसेज़ फ़ॉन डान डबलरोटी का एक टुकड़ा अपने प्यारे बेटे के लिए रखना चाहती थीं, लेकिन मि. फ़ॉन डी अड़े हुए थे। ‘अगर उसने अभी माफ़ी नहीं माँगी, उसे ऊपर ही सोना पड़ेगा।’

हमने यह कहते हुए विरोध किया कि सज़ा के तौर पर खाने के बिना सोना ही काफ़ी है। अगर पीटर को ठंड लग गई तो? हम डॉक्टर को भी नहीं बुला पाएँगे।

पीटर ने माफ़ी नहीं माँगी और वापस अटारी पर चला गया। मि. फ़ॉन डान ने उसे अकेला छोड़ना ठीक समझा, हालाँकि उन्होंने सुबह गौर किया कि पीटर के बिस्तर पर कोई सोया था। सात बजे पीटर वापस चला गया, लेकिन पापा द्वारा नर्मी से बात करने के बाद वह नीचे आ गया। तीन दिन तक उदास दिखने और अड़ियल ख़ामोशी के बाद सब कुछ सामान्य हो गया।

तुम्हारी, ऐन

सोमवार, 21 सितंबर, 1942

प्यारी किटी,

आज मैं यहाँ की सामान्य बातें तुम्हें बताऊँगी। मेरे बिस्तर के ऊपर एक लैम्प लगा दिया गया है, ताकि भविष्य में गोलियों की आवाज़ सुनकर मैं तार खींचकर उसे ऑन कर सकूँ। मैं अभी इसका इस्तेमाल नहीं कर सकती, क्योंकि हम आजकल दिन-रात अपनी खिड़की थोड़ी खुली रखते हैं।

फ़ॉन डान परिवार के पुरुष सदस्यों ने एक अलमारी बनाई है। अब तक यह शानदार अलमारी पीटर के कमरे में रही थी, लेकिन ताज़ा हवा के लिए इसे बाहर लगा दिया गया। इसकी जगह पर एक आला लगा दिया गया। मैंने पीटर को उसके नीचे अपनी मेज़ लगाने, एक अच्छा सा गलीचा रखने और अपनी अलमारी रखने को कहा। उससे उसका कमरा थोड़ा आरामदेह बन जाता, हालाँकि मैं तो वहाँ पर सोना पसंद नहीं करती।

मिसेज़ फ़ॉन डान को झेलना मुश्किल है। मैं जब ऊपर होती हूँ, तो मुझे मेरी लगातार बातचीत के लिए डाँट पड़ती रहती है। मैं तो बस शब्दों को मुँह से निकलने देती हूँ! मोहतरमा ने बर्तन धोने से बचने की एक तरकीब निकाली है। अगर किसी बर्तन में ज़रा सा भी खाना रह जाता है, तो वे उसे किसी काँच के किसी बर्तन में रखने के बजाय वहीं सड़ने देती हैं। फिर जब दोपहर में मारगोट बर्तन धो रही होती है, तो वे कहती हैं, ‘अरे, बेचारी मारगोट, तुम्हें कितना काम करना होता है!’

किसी न किसी हफ़्ते मि. क्लेमन मेरी उम्र की लड़कियों के लिए लिखी गई कुछ किताबें ले आते हैं। यूप ते होयुल शृंखला लेकर मैं बहुत उत्साहित हूँ। मैंने सिसी फ़ॉन मार्क्सवेल्ड की सभी किताबों का मज़ा लिया है। मैंने जैनिएस्ट समर को चार बार पढ़ा है और बेतुके हालात पर अब भी मुझे हँसी आती है।

पापा और मैं फ़िलहाल अपने वंशवृक्ष पर काम कर रहे हैं और वे आगे बढ़ते हुए मुझे हर व्यक्ति के बारे में बताते जाते हैं।

मैंने अपना स्कूल का काम शुरू कर दिया है। मैं फ़्रेंच में बहुत मेहनत कर रही हूँ और हर रोज़ पाँच अनियमित क्रियाओं को रटती हूँ। लेकिन स्कूल में सीखी हुई अधिकांश चीज़ों को मैं भूल चुकी हूँ।

पीटर ने अंग्रेज़ी की पढ़ाई बहुत अनिच्छा से शुरू की। कुछ स्कूली किताबें अभी आई हैं और मैं घर से बहुत सी अभ्यास-पुस्तिकाएँ, पेंसिल, रबर और लेबल ले आई थी। पिम (हम पापा को प्यार से यही बुलाते हैं) चाहते हैं कि मैं डच में उनकी मदद करूँ। मैं उन्हें पढ़ाना चाहती हूँ, बशर्ते वे फ़्रेंच और अन्य विषयों की पढ़ाई में मेरी मदद करें। लेकिन वे तो बहुत ही अविश्वसनीय ग़लतियाँ करते हैं!

मैं कभी-कभी लंदन से होने वाले डच प्रसारण को सुनती हूँ। प्रिंस बर्नार्ड ने हाल ही में घोषणा की कि राजकुमारी जूलियाना जनवरी में बच्चे को जन्म देने वाली हैं, जो कि बहुत बढ़िया ख़बर है। यहाँ कोई नहीं समझता कि मैं शाही परिवार में इतनी दिलचस्पी क्यों लेती हूँ!

कुछ समय पहले मैं चर्चा का विषय थी और हम सबने फ़ैसला किया कि मैं मूर्ख थी। नतीजतन, मैंने अगले ही दिन से ख़ुद को स्कूल की पढ़ाई में झोंक दिया, क्योंकि मैं बिलकुल भी नहीं चाहती कि चौदह या पंद्रह साल की उम्र में मैं पहली कक्षा में रहूँ। इस बात पर भी चर्चा हुई कि मुझे शायद ही कुछ पढ़ने की अनुमति मिलती है। माँ आजकल जेंटलमेन, वाइव्स ऐंड सर्वेंट्स पढ़ रही हैं और ज़ाहिर है कि मुझे उसे पढ़ने की इजाज़त नहीं है (हालाँकि मारगोट को है!)। पहले मुझे अपनी प्रतिभाशाली बहन की तरह बौद्धिक रूप से अधिक विकसित होना होगा। फिर दर्शन, मनोविज्ञान और शरीरविज्ञान (मैंने तुरंत शब्दकोश में इन भारी-भरकम शब्दों को खोजा!) को लेकर मेरी अज्ञानता पर बातचीत हुई। सच है कि मुझे इन विषयों की कोई जानकारी नहीं है। लेकिन हो सकता है कि मैं अगले साल तक कुछ सीख लूँ!

मैं इस चौंकाने वाले परिणाम तक पहुँची हूँ कि मेरे पास सर्दियों में पहनने के लिए पूरी बाँह की सिर्फ़ एक पोशाक है और तीन कार्डिगन्स हैं। पापा ने मुझे एक सफ़ेद जम्पर बुनने की अनुमति दे दी है; ऊन बहुत अच्छी नहीं है, लेकिन वह गर्म तो होगी और वही ज़रूरी भी है। हमारे कुछ कपड़े दोस्तों के यहाँ छूटे थे, लेकिन बदक़िस्मती से लड़ाई के बाद ही वे हमें मिल सकते हैं, बशर्ते वे तब भी वहाँ हों।

मिसेज़ फ़ॉन डान के बारे में मैंने कुछ लिखना ख़त्म ही किया था कि वे कमरे में आ गईं। उनकी आहट सुनते ही मैंने डायरी बंद कर दी।

‘ऐन, मैं ज़रा सा भी नहीं देख सकती?’

‘नहीं, मिसेज़ फ़ॉन डान।’

‘आख़िरी पन्ना भी नहीं?’

‘नहीं, आख़िरी पन्ना भी नहीं, मिसेज़ फ़ॉन डान।’

मेरी तो जान ही निकलने वाली थी, क्योंकि उसे पन्ने पर तो मैंने उनके बारे में कुछ लिखा था, जो अच्छा नहीं था।

हर रोज़ कुछ न कुछ होता रहता है, लेकिन मैं बहुत थक गई हूँ और लिखने में आलस आ रहा है।

तुम्हारी, ऐन

शुक्रवार, 25 सितंबर, 1942

प्यारी किटी,

पापा के एक दोस्त हैं, 75 के आसपास के मि. द्रेअर, जो बीमार, ग़रीब और सुनने में नाकाम। उनके साथ पूँछ की तरह लगी रहती हैं उनकी 27 साल छोटी पत्नी, जो उनके जैसी ग़रीब हैं, उनकी बाँहें व टाँगें असली व नक़ली कंगनों व अँगूठियों से भरी रहती हैं, जो कि उनके अच्छे दिनों की निशानी हैं। मि. द्रेअर हमेशा से ही पापा के लिए सिरदर्द रहे हैं और पापा संतों की तरह जिस धीरज से वे उनसे पेश आते हैं, मैं हमेशा से उसकी कायल रही हूँ। जब हम अपने घर पर रहते थे, तो माँ उनसे रिसीवार के सामने एक ग्रामोफ़ोन लगाने को कहती थीं, जो हर तीन मिनट में दोहराए, ‘जी, मि. द्रेअर’ और ‘नहीं, मि. द्रेअर,’ क्योंकि बूढ़े सज्जन को पापा के लंबे जवाबों का एक भी शब्द समझ नहीं आता था।

आज मि. द्रेअर ने ऑफ़िस में फ़ोन किया और मि. कुगलर को मिलने आने को कहा। मि. कुगलर की इच्छा नहीं थी और उन्होंने मीप को भेजने की बात कही, लेकिन मीप ने भी मुलाक़ात रद्द कर दी। मिसेज़ द्रेअर ने तीन बार दफ़्तर में फ़ोन किया, लेकिन उन्हें बताया गया कि मीप दिन भर बाहर रहने वाली थी, तो मीप को बेप की आवाज़ की नक़ल करनी पड़ी। नीचे दफ़्तर में और ऊपर के हिस्से में भी चुहलबाज़ी का माहौल था। हर बार फ़ोन की घंटी बजने पर बेप कहती हैं, ‘द्रेअर हैं!’ और मीप को हँसना पड़ता है, ताकि लाइन के दूसरी ओर मौजूद लोगों को खिलखिलाने की आवाज़ सुनाई दे। क्या तुम कल्पना नहीं कर सकती? यह पूरी दुनिया का सबसे बेहतरीन दफ़्तर होगा। बॉस और ऑफ़िस गर्ल्स ख़ूब मज़े करते हैं!

कभी किसी शाम मैं फ़ॉन डान परिवार के साथ बातचीत करने जाती हूँ। हम ‘मॉथबॉल बिस्किट्स’ (उन्हें उस अलमारी में रखा गया था, जहाँ नेफ़्थलीन बॉल्स थीं) खाते हैं और मज़े करते हैं। हाल ही में पीटर के बारे में बात हुई। मैंने कहा कि वह अक्सर मेरे गालों पर थपकी देता है, जो मुझे बिलकुल पसंद नहीं। उन्होंने बिलकुल बड़े लोगों के अंदाज़ में मुझे पूछा कि क्या कभी मैं पीटर को भाई की तरह प्यार करना सीखूँगी, क्योंकि वह मुझे बहन की तरह चाहता है। ‘अरे नहीं!’ मैंने कहा, लेकिन मैं सोच रही थी, ‘ओह, छी!’ ज़रा कल्पना करो! मैंने यह भी कहा कि वह थोड़ा रूखा है, क्योंकि वह शर्मीला है। जिन लड़कों को लड़कियों के साथ रहनेकी आदत नहीं होती, वे वैसे ही होते हैं।

मैं यह ज़रूर कहूँगी कि अनेक्सकमेटी (पुरुषों वाला भाग) बहुत रचनात्मक है। ज़रा सुनो कि ओपेक्टा कंपनी के सेल्स रिप्रेंज़ेंटेटिव मि. ब्रोक्स को संदेश देने की उनकी क्या योजना है, उनके पास हमारा कुछ सामान चुपके से छिपाया गया है। वे दक्षिणी ज़ीलैंड में एक दुकान के मालिक के लिए एक चिट्ठी टाइप करेंगे, जो अप्रत्यक्ष रूप से ओपेक्टा का एक ग्राहक है और उसे एक फ़ॉर्म भरकर पता लिखे लिफ़ाफ़े में वापस भेजने को कहेंगे। पापा उस लिफ़ाफ़े पर ख़ुद पता लिखेंगे। चिट्ठी के ज़ीलैंड से एक बार लौटने पर फ़ॉर्म को हटा दिया जाएगा और पापा के ज़िंदा होने का संदेश हाथ से लिखा जाएगा और उसे लिफ़ाफ़े में डाल दिया जाएगा। इस तरह मि. ब्रोक्स बिना संदेह जगाए पत्र पढ़ सकते हैं। उन्होंने ज़ीलैंड का इलाक़ा इसलिए चुना, क्योंकि वह बेल्जियम (पत्र को सीमा के पार आसानी से भेजा जा सकता है) के पास है और क्योंकि स्पेशल परमिट के बिना किसी को भी वहाँ जाने की अनुमति नहीं है। मि. ब्रोक्स जैसे सामान्य सेल्समैन को कभी भी परमिट नहीं मिल सकता।

कल पापा ने एक और कारनामा किया। नींद में वे बिस्तर से गिर पड़े। उनके पैर इतने ठंडे थे कि मैंने उन्हें जुराब दिए। पाँच मिनट बाद उन्होंने जुराब को फ़र्श पर फेंक दिया। फिर उन्होंने कंबल को सिर तक खींच लिया, क्योंकि रोशनी से उन्हें परेशानी हो रही थी। लैम्प बंद कर दिया गया और फिर उन्होंने डरते-डरते अपना सिर बाहर निकाला। वह सब बहुत मज़ेदार था। हम बात कर रहे थे कि कैसे पीटर कहता है कि मारगोट ‘बिज़ी बी’ है। अचानक कहीं गहराई से पापा की आवाज़ सुनाई दी: ‘तुम्हारा मतलब है, बिज़ी बॉडी (जो हमेशा व्यस्त रहे)।’

समय बीतने के साथ मूशी बिल्ली मेरे साथ अच्छी तरह रहने लगी है, लेकिन फिर भी मुझे उससे थोड़ा डर लगता है।

तुम्हारी, ऐन

रविवार, 27 सितंबर, 1942

प्यारी किटी,

माँ और मेरे बीच आज तथाकथित ‘चर्चा’ हुई, लेकिन सबसे खिझाने वाली बात यह थी कि मेरे आँसू निकल गए। मैं कुछ नहीं कर सकती। पापा मेरे साथ हमेशा अच्छी तरह पेश आते हैं और वे मुझे बेहतर समझते हैं। ऐसे पलों में मैं माँ को नहीं झेल सकती। यह साफ़ है कि मैं उनके लिए अजनबी हूँ; वे इतना भी नहीं जानती कि सामान्य चीज़ों को लेकर मेरी क्या राय है।

हम नौकरानियों के बारे में बात कर रहे थे और यह बात कि उन्हें ‘घरेलू सहायिका’ कहा जाना चाहिए। माँ का कहना था कि लड़ाई ख़त्म हो जाने पर वे वही कहलाना पसंद करेंगी। मैंने उस बात को वैसे नहीं देखा। फिर उन्होंने कहा कि मैं ‘बाद में’ के बारे में अक्सर बोलती हूँ और मैं किसी लेडी की तरह बर्ताव करती हूँ, जबकि मैं हूँ नहीं, लेकिन मुझे नहीं लगता कि ख़याली पुलाव पकाना इतनी बुरी बात है, अगर उसे बहुत गंभीरता से न लिया जाए। ख़ैर, पापा अक्सर मेरे बचाव के लिए आ जाते हैं। उनके बिना तो मैं शायद यहाँ नहीं टिक पाती।

मारगोट से भी मेरी ज़्यादा नहीं पटती। हालाँकि हमारे परिवार में वह सब नहीं होता, जो ऊपर चलता है, फिर भी मुझे यह उतना ख़ुशनुमा नहीं लगता। मारगोट और माँ के व्यक्तित्व मुझे इतने अजनबी लगते हैं। मैं अपनी सहेलियों को अपनी माँ से बेहतर समझती हूँ। क्या यह शर्म की बात नहीं है?

मिसेज़ फ़ॉन डान हज़ारवीं बार नाराज़ हो रही हैं। वे बहुत बदमिज़ाज हैं और लगातार अपने ज़्यादा से ज़्यादा सामान को निकालकर बंद कर रही हैं। यह बहुत बुरी बात है कि माँ फ़ॉन डान की इन हरकतों का सही जवाब नहीं दे पाती।

फ़ॉन डान जैसे कुछ लोगों को न सिर्फ़ अपने बच्चों की परवरिश करने में ख़ुशी मिलती है, बल्कि इस काम में दूसरों की मदद करने में भी। मारगोट को इसकी ज़रूरत नहीं है, क्योंकि वह सहज रूप से अच्छी, दयालु, चतुर और पूरी तरह से संपूर्ण, लेकिन शायद दोनों के बदले मैं काफ़ी शरारती हूँ। हमारे यहाँ का वातावरण फ़ॉन डान परिवार की झिड़कियों और मेरे गुस्ताख़ जवाबों से भरा है। मम्मी-पापा हमेशा बहुत ज़बरदस्त तरीक़े से मेरा बचाव करते हैं। उनके बिना मैं अपने सामान्य संतुलन के साथ फिर से मोर्चा नहीं सँभाल पाती। वे मुझे कम बात करने, अपने काम से काम रखने और ज़्यादा विनम्र बने रहने के लिए कहते रहते हैं, लेकिन शायद मुझे नाकाम ही होना है। अगर पापा इतने धीरज वाले नहीं होते, तो मैं अपने माँ-बाप की सामान्य सी आशाओं पर खरा उतरने की उम्मीद कब की छोड़ चुकी होती।

अगर मैं नापसंद आने वाली सब्ज़ी कम लूँ और उसके बजाय आलू खाऊँ तो फ़ॉन डान परिवार, ख़ासकर मिसेज़ फ़ॉन डान यह कहते नहीं चूकती कि मैं कितनी बिगड़ी हुई हूँ। वे कहती हैं, ‘अरे ऐन, और सब्ज़ियाँ लो।’

‘नहीं, शुक्रिया, मैडम,’ मेरा जवाब होता है। ‘आलू काफ़ी हैं।’

‘सब्ज़ियाँ तुम्हारे लिए अच्छी हैं; तुम्हारी माँ भी कहती हैं। थोड़ी और लो,’ वे तब तक अड़ी रहती हैं जब तक कि पापा बीच में पड़कर मेरी पसंद-नापसंद के अधिकार की बात न कर लें।

फिर मिसेज़ फ़ॉन डान आगबबूला हो जाती हैं: ‘तुम्हें हमारे घर में होना चाहिए था, जहाँ बच्चों की वैसे ही परवरिश होती है, जैसी कि होनी चाहिए। मैं इसे सही पालन-पोषण नहीं कहती। ऐन बहुत बिगड़ी हुई है। मैं कभी ऐसा नहीं होने देती। अगर यह मेरी बेटी होती तो…’

उनकी बात हमेशा ऐसे ही शुरू और ख़त्म होती है: ‘अगर ऐन मेरी बेटी होती तो…’ शुक्र है कि मैं उनकी बेटी नहीं हूँ।

बच्चों के पालन-पोषण की बात पर जाएँ, तो कल मिसेज़ फ़ॉन डी का छोटा सा भाषण पूरा होने पर ख़ामोशी छा गई थी। पापा ने जवाब दिया, ‘मेरे ख़याल से ऐन की परवरिश बहुत अच्छी हुई है। कम से कम उसने आपके लगातार चलते भाषणों पर चुप रहना सीख लिया है। जहाँ तक सब्ज़ियों का सवाल है, तो देखिए कि कौन उसे यह उपदेश दे रहा है।’

मिसेज़ फ़ॉन डान को मुँह की खानी पड़ी। यहाँ पापा का इशारा ख़ुद मैडम की तरफ़ था, क्योंकि वे शाम को कोई भी फली या किसी भी तरह की गोभी बर्दाश्त नहीं होती, क्योंकि उससे उन्हें गैस होती है। मैं भी यही कह सकती हूँ। कितनी बेवकूफ़ी की बात है, है न? ख़ैर, उम्मीद करते हैं कि वे मुझसे बात करना बंद कर दें।

यह देखना बहुत मज़ेदार होता है कि मिसेज़ फ़ॉन डान कितनी जल्दी तमतमा जाती हैं, मैं ऐसा नहीं करती और इससे मन ही मन उन्हें बहुत चिढ़ होती है।

तुम्हारी, ऐन

सोमवार, 28 सितंबर 1942

प्यारी किटी,

मुझे कल लिखना बंद करना पड़ा, हालाँकि बातें बहुत थीं। मैं तुम्हें अपनी एक और मुठभेड़ के बारे में बताने को बेताब हूँ, लेकिन उसे बताने से पहले मैं यह कहना चाहती हूँ: मुझे यह अजीब लगता है कि बड़े लोग अक्सर इतनी आसानी से छोटी-छोटी बातों पर लड़ लेते हैं। अब तक मैं सोचती थी कि छोटी-छोटी बातों पर बच्चे झगड़ा करते हैं और फिर उससे आगे बढ़ जाते हैं। कभी-कभार ‘असली’ लड़ाई की कोई वजह ज़रूर होती है, लेकिन यहाँ जिस तरह की बातें कही जाती हैं, वे बस कहासुनी होती हैं। मुझे भी अब इस बात का आदी हो जाना चाहिए कि इस तरह की तकरार अब रोज़मर्रा की बात है, लेकिन मैं नहीं हूँ और तब तक नहीं हो सकती, जब तक कि मैं लगभग हर बातचीत का विषय हूँ। (वे ‘झगड़े’ के बजाय उन्हें ‘बातचीत’ कहते हैं, लेकिन जर्मन लोगों को उनके बीच का अंतर नहीं पता!) वे हर चीज़ की आलोचना करते हैं और मेरा मतलब है कि मेरे बारे में हर चीज़ की: मेरे बर्ताव, मेरे व्यक्तित्व, मेरी आदतों, मेरी हर चीज़ की, सिर से पैर तक, मेरी हर बात गपशप व चर्चा का विषय होती है। मुझ पर कठोर शब्दों और चीख़-चिल्लाहटों की बौछार की जाती है। हालाँकि मुझे अब तक इसकी आदत बिलकुल नहीं पड़ी है। मुझसे उम्मीद की जाती है कि मैं मुस्कराकर सब कुछ झेल लूँ। लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकती! इन अपमानों को चुपचाप झेलने का मेरा कोई इरादा नहीं है। मैं उन्हें दिखा दूँगी कि मैं कल की पैदा हुई छोकरी नहीं हूँ। उन्हें अच्छी तरह देखना-समझना होगा और अपने मुँह बंद रखने होंगे, जब मैं उन्हें बताऊँगी कि उन्हें मेरे शिष्टाचार के बजाय अपनी आदतों पर ध्यान देना चाहिए। वे आख़िर वैसा बर्ताव कैसे कर सकते हैं! वे बहुत बर्बर हैं। ऐसी अशिष्टता और मूर्खता (मिसेज़ फ़ॉन डान) पर मैं हर बार हैरान रह जाती हूँ। जैसे ही मैं इसकी आदी हो जाऊँगी और उसमें ज़्यादा वक़्त नहीं लगेगा, मैं उनके ही अंदाज़ में जवाब दूँगी और उन्हें अपना सुर बदलना पड़ेगा! क्या मैं अशिष्ट, ज़िद्दी, अकडू, आक्रामक, मूर्ख, आलसी, वगैरह-वगैरह हूँ, जैसा कि फ़ॉन डान परिवार का कहना है? नहीं, बिलकुल नहीं। मैं जानती हूँ कि मुझमें भी कमियाँ व कमज़ोरियाँ हैं, लेकिन वे उन्हें बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते हैं! काश, तुम जान पाती किटी कि मुझे कितना ग़ुस्सा आता है, जब वे मुझे डाँटते और मेरा मज़ाक उड़ाते हैं। वह दिन दूर नहीं जब मेरे सब्र का बाँध टूट जाएगा।

बस, अब बहुत हुआ। मैंने अपने झगड़ों से तुम्हें काफ़ी उबा दिया है, लेकिन फिर भी मैं रात के खाने के समय हुई एक बेहद दिलचस्प बातचीत बताने से ख़ुद को नहीं रोक पा रही हूँ।

हम पिम के अत्यधिक संकोची होने पर बात कर रहे थे। उनकी विनम्रता जानी-पहचानी बात है, जिस पर मूर्ख से मूर्ख इंसान भी सवाल नहीं उठा सकता। अचानक हर बातचीत में कूद पड़ने की आदत वाली मिसेज़ फ़ॉन डान ने टिप्पणी की, ‘मैं भी बहुत विनम्र और संकोची हूँ, अपने पति से कहीं ज़्यादा!’

क्या तुमने कभी इससे ज़्यादा अजीब बात सुनी है? उनकी बात ही साफ़ तौर पर बताती है कि उन्हें विनम्र तो हरगिज़ नहीं कहा जा सकता!

मि. फ़ॉन डान को लगा कि ‘पति से कहीं ज़्यादा’ वाली बात पर उन्हें जवाब देना चाहिए और उन्होंने बहुत शांतिपूर्वक कहा, ‘विनम्र और संकोची होने की मेरी कोई इच्छा नहीं है। मेरा तजुर्बा है कि आक्रामक होने से आप काफ़ी आगे पहुँचते हैं!’ फिर मेरी तरफ़ मुड़ते हुए उन्होंने कहा, ‘नरम और संकोची मत बनना, ऐन। उससे तुम कहीं नहीं पहुँच पाओगी।’

माँ उनके दृष्टिकोण से पूरी तरह सहमत थीं। लेकिन जैसी कि मिसेज़ फ़ॉन डान की आदत थी, उन्हें कुछ तो कहना था ही। इस बार हालाँकि मुझसे सीधे बात करने के बजाय उन्होंने मेरे माता-पिता से कहा, ‘ज़िंदगी को लेकर आपका नज़रिया कुछ अजीब ही होगा, तभी आप ऐन से ऐसा कह सकते हैं। मेरे बचपन में हालात अलग थे। आपके आधुनिक घर को छोड़ दें, तो शायद ही उनमें कुछ ख़ास बदलाव आया होगा!’

यह बच्चों की परवरिश को लेकर माँ के आधुनिक तौर-तरीक़ों पर सीधा निशाना था, जिनका बचाव वे कई बार कर चुकी थीं। मिसेज़ फ़ॉन डान इतनी नाराज़ थीं कि उनका चेहरा लाल हो गया। जो लोग बहुत जल्दी आवेग में आ जाते हैं, वे उसे महसूस करते हुए और भी आंदोलित हो जाते हैं और अपने विरोधी के सामने जल्दी हार जाते हैं।

शांत माँ अब जल्द से जल्द बात को ख़तम कर देना चाहती थीं, एक पल कुछ सोचने के लिए रुकीं और जवाब दिया, ‘मिसेज़ फ़ॉन डान, मैं इस बात से सहमत हूँ कि इंसान को बहुत ज़्यादा विनम्र नहीं होना चाहिए। मेरे पति, मारगोट और पीटर ज़रूरत से ज़्यादा विनम्र हैं। आपके पति, ऐन और मैं हालाँकि उनके बिलकुल उलट नहीं हैं, फिर भी हम किसी को ख़ुद को परेशान नहीं करने देते।’

मिसेज़ फ़ॉन डान: ‘ओह, लेकिन मिसेज़ फ़्रैंक, मैं आपका मतलब नहीं समझ पा रही हूँ! मैं तो अति विनम्र और संकोची हूँ। आप कैसे कह सकती हैं कि मैंआक्रामक हूँ?’

माँ: ‘मैंने ऐसा तो नहीं कहा, लेकिन आपको कोई संकोची भी नहीं कह सकता।’

मिसेज़ फ़ॉन डी: ‘मैं जानना चाहती हूँ कि मैं कैसे आक्रामक हूँ! अगर मैं अपना ध्यान न रखूँ, तो कोई और नहीं रखेगा, जल्दी ही मैं भूखी मर जाऊँगी, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मैं आपके पति जितनी विनम्र और संकोची नहीं हूँ।’

माँ के पास इस अजीबोग़रीब तर्क पर हँसने के सिवा कोई और चारा नहीं था, जिससे मिसेज़ फ़ॉन डान चिढ़ गइंर्। वे बहुत अच्छी बहस करने वाली नहीं हैं, वे जर्मन व डच को मिलाकर तब तक बोलती रहीं, जब तक कि वे अपने शब्दों में ख़ुद ही इतना उलझ गईं कि कुर्सी से उठने लगीं और वे कमरे से निकलना चाहती थीं कि तभी उनकी नज़र मुझ पर पड़ गई। तुम्हें उन्हें देखना चाहिए था! जिस पल उन्होंने मेरी तरफ़ देखा, मैं करुणा व विडंबना में अपना सिर हिला रही थी। मैं वैसा जानबूझकर नहीं कर रही थी, लेकिन मैं उनकी बात को इतने ध्यान से सुन रही थी कि मेरी प्रतिक्रिया पूरी तरह से अनायास थी। मिसेज़ फ़ॉन डी मुड़ी और मुझे कड़ी फटकार लगाई। वे इतनी कठोरता से घटिया व भद्दी बातें कर रही थीं, जैसे कि मोटी, लाल चेहरे वाली कोई मछली बेचने वाली कोई महिला ही कर सकती है। उन्हें देखना बहुत मज़ेदार था। अगर मैं तसवीर बना सकती, तो उनकी उस समय की तसवीर बनाती। वे मुझे बहुत हास्यास्पद लगीं, वे अस्तव्यस्त थीं! मैंने एक चीज़ सीखी: आप किसी इंसान को झगड़े के बाद ही सही मायने में जान पाते हैं। तभी आप उनके असली चरित्र को जान पाते हैं!

तुम्हारी, ऐन

मंगलवार, 29 सितंबर, 1942

प्रिय किटी,

जब आप छिपे होते हैं, तो आपके साथ अजीब सी बातें होती हैं! ज़रा कल्पना करो। चूँकि हमारे पास ग़ुसलखाना नहीं हैं, इसलिए हम लोग टिन के टब में नहाते हैं। गर्म पानी सिर्फ़ दफ़्तर (मेरा मतलब है कि नीचे की पूरी मंज़िल पर) में होता है, इसलिए हम सातों बारी-बारी से इस मौक़े का फ़ायदा उठाते हैं। अब हम सब एक जैसे नहीं हैं और सबकी अपनी-अपनी सीमाएँ हैं, इसलिए परिवार के हर सदस्य ने अपनी सफ़ाई के लिए अलग जगह तय कर ली है। पीटर दफ़्तर के रसोईघर में नहाता है, हालाँकि उसका दरवाज़ा काँच का है। जब उसके नहाने की बारी आती है, तो वह बारी-बारी से हम सबके पास आता है और घोषणा करता है कि अगले आधे घंटे में हम रसोईघर के पास न जाएँ। उसके मुताबिक़ इतना करना काफ़ी है। मि. फ़ॉन डी ऊपर वाली मंज़िल पर ही नहाते हैं और उनका तर्क है कि उनके कमरे की सुरक्षा गर्म पानी ऊपर लाने की मुश्किल से ज़्यादा अहम है। मिसेज़ फ़ॉन डी का नहाना अभी बाक़ी है; वे देख रही हैं कि कौन सी जगह सबसे बेहतर है। पापा प्राइवेट ऑफ़िस में नहाते हैं और माँ फ़ायरगार्ड के पीछे रसोईघर में, जबकि मारगोट और मैंने फ़्रंट ऑफ़िस को अपने नहाने की जगह तय की है। शनिवार दोपहर को पर्दे लगे होते हैं, इसलिए हम अँधेरे में अपनी सफ़ाई करते हैं, जो नहा नहीं रहा होता, वह पर्दे के बीच से खिड़की के बाहर देखता है और आते-जाते दिलचस्प लोगों को अचरज से घूरता है।

एक हफ़्ते पहले मैंने फ़ैसला किया कि मुझे यह जगह पसंद नहीं और मैं ज़्यादा आरामदेह जगह की तलाश में हूँ। पीटर ने मुझे ऑफ़िस के बड़े से शौचालय में अपना टब लगाने का विचार सुझाया। मैं बैठ सकती हूँ, लाइट जला सकती हूँ, दरवाज़ा बंद कर सकती हूँ, बिना किसी की मदद के पानी डाल सकती हूँ और इस डर के बिना कि कोई देख लेगा, सब काम कर सकती हूँ। रविवार को पहली बार मैंने अपने बाथरूम का इस्तेमाल किया और भले यह अजीब लगे, लेकिन मुझे यह किसी भी जगह से बेहतर लगी।

बुधवार को प्लम्बर नीचे काम कर रहा था, वह ऑफ़िस के शौचालय से पानी के पाइपों और नालियों को गलियारे तक ले जा रहा था, ताकि सर्दियों में पाइप जम न जाएँ। उसका आना बिलकुल भी अच्छा नहीं था। हम दिन भर पानी नहीं चला सकते थे और शौचालय भी नहीं जा सकते थे। मैं तुम्हें बताती हूँ कि इस समस्या से हम कैसे निबटे। तुम्हें इसके बारे में मेरा बताना कुछ अनुचित लग सकता है, लेकिन मैं इस तरह के मामलों को लेकर शर्म से चुप नहीं रह सकती। जिस दिन हम यहाँ पहुँचे थे, उसी दिन पापा और मैंने एक मर्तबान से एक चेम्बर पॉट यानी मूत्र पात्र बनाया था। जब तक प्लम्बर का काम जारी रहा, हमने दिन में उनका इस्तेमाल किया। दिन भर चुप बैठे रहना मेरे लिए ज़्यादा मुश्किल काम नहीं था। तुम कल्पना कर सकती हो कि लगातार भाषण देने वाली महिला का क्या हाल हुआ होगा। सामान्य दिनों में हमें फुसफुसा कर बात करनी होती है, लेकिन बिलकुल चुप रहना और न हिलना-डुलना उससे दस गुना बदतर है।

तीन दिन तक लगातार बैठे रहने से मेरी पीठ अकड़ गई और उसमें दर्द होने लगा। रात को हल्की-फुल्की कसरत काम आई।

तुम्हारी, ऐन

बृहस्पतिवार, 1 अक्टूबर, 1942

प्रिय किटी,

कल मेरा भयानक झगड़ा हुआ। आठ बजे अचानक दरवाज़े की घंटी बजी। मुझे तो बस लगा कि कोई हमें पकड़ने आया है, मेरा मतलब तुम समझ रही हो, न। लेकिन मैं तब शांत हो गई, जब सबने कहा कि या तो किसी ने शरारत की है या फिर डाकिया आया होगा।

यहाँ दिन बहुत ख़ामोश हैं। छोटे क़द के यहूदी केमिस्ट मि. लेविंसन रसोईघर में मि. कुगलर के लिए कुछ प्रयोग कर रहे हैं। वे पूरी इमारत से परिचित हैं, इसलिए हमें लगातार डर बना रहता है कि कहीं उनके दिमाग़ में प्रयोगशाला की हालत देखने का ख़याल न आ जाए। हम बिलकुल शांत हैं। तीन महीने पहले कौन अंदाज़ा लगा सकता था कि लगातार हिलने-डुलने वाली ऐन को कई घंटे चुपचाप बैठना होगा या फिर वह ऐसा कर सकती है?

उनतीस तारीख़ को मिसेज़ फ़ॉन डान का जन्मदिन था। हमने उसे बड़े पैमाने पर नहीं मनाया। उन्हें फूल, कुछ साधारण से उपहार दिए गए और बढ़िया खाना खिलाया गया। उनके पति की ओर से लाल कार्नेशन दिया जाना शायद उनके परिवार की परंपरा है।

मिसेज़ फ़ॉन डान की बात पर मैं थोड़ा रुकती हूँ और तुम्हें बताती हूँ कि पापा के साथ हँसी-ठिठोली करने की उनकी कोशिशों से मुझे कितनी चिढ़ होती है। वे उनके गाल व सिर पर थपकी देती हैं, अपनी स्कर्ट खींचती हैं और पिम का ध्यान अपनी तरफ़ खींचने के लिए तथाकथित मज़ाकिया टिप्पणियाँ करती हैं। ख़ुशक़िस्मती से उन्हें वे न तो प्यारी और न ही आकर्षक लगती हैं, इसलिए वे उनकी हरकतों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं करते। जैसा कि तुम जानती हो, मैं थोड़ी ईर्ष्यालु क़िस्म की हूँ और मैं उनके बर्ताव को स्वीकार नहीं कर सकती। माँ तो मि. फ़ॉन डी के साथ वैसा बर्ताव नहीं करती और वही मैंने मिसेज़ फ़ॉन डी के मुँह पर कह दिया।

कभी-कभार पीटर बहुत मज़ेदार लगता है। उसके और मेरे बीच एक बात साझा है: हमें तैयार होना पसंद है और उसकी वजह से सभी हँसते हैं। एक शाम हम अलग रूप में सामने आए, पीटर ने अपनी माँ की कसी हुई पोशाक पहनी और मैंने उसका सूट। उसने हैट पहना, जबकि मैंने एक टोपी। सभी बड़े लोग हँसते-हँसते दोहरे हो गए और हम दोनों को बहुत मज़ा आया।

बेप मारगोट और मेरे लिए नई स्कर्ट्स लाई हैं, बेनकोर्फ़ से। कपड़ा आलू के बोरों जैसा है। पुराने दिनों में दुकानों में ऐसा कपड़ा नहीं बिक सकता था, लेकिन अब यह 24 गिल्डर (मारगोट का) और 7.75 गिल्डर (मेरा) में बिक रहा है।

हमारे लिए एक और अच्छी चीज़ होने वाली है। बेप ने मारगोट, पीटर और मेरे लिए डाक के ज़रिये शॉर्टहैंड कोर्स मँगवाया है। बस अब देखती जाओ, अगले साल इस समय तक हम अच्छी तरह शॉर्टहैंड में लिख सकेंगे। वैसे भी उस तरह किसी गुप्त भाषा में लिखना काफ़ी दिलचस्प होगा।

बाएँ हाथ की मेरी तर्जनी में बहुत दर्द है, इसलिए मैं कपड़े इस्तरी नहीं कर सकती। क्या क़ि स्मत है!

मि. फ़ॉन डान चाहते हैं कि मेज़ पर मैं उनके साथ बैठूँ, क्योंकि मारगोट उनके हिसाब से कम खाती है। ठीक है, मुझे बदलाव पसंद है। अहाते में हमेशा एक छोटी सी काली बिल्ली घूमती रहती है और वह मुझे मेरी प्यारी मोर्ते की याद दिलाती है। बदलाव का स्वागत करने का एक और कारण यह है कि माँ हमेशा ख़ासकर मेज़ पर मेरी ग़लतियाँ निकालती रहती हैं। अब मारगोट को वह सब झेलना पड़ेगा। या शायद नहीं भी, क्योंकि माँ उस पर व्यंग्यात्मक टिप्पणियाँ नहीं करतीं। वे सद्गुणों के नमूने को कैसे कह सकती हैं! मैं मारगोट को हमेशा अच्छाई का नमूना कहकर चिढ़ाती हूँ और उसे यह बिलकुल अच्छा नहीं लगता। शायद मैं ही उसे सिखाऊँगी कि कैसे शराफ़त का पुतला न बना जाए। अब समय आ गया है कि उसे सीख ही लेना चाहिए।

मि. फ़ॉन डान का मज़ेदार चुटकुला सुनाते हुए मैं ख़बरों की इस खिचड़ी को पूरा करती हूँ:

निन्यानबे बार कौन चलता है खटखट करके और एक बार कड़ाके से?

ख़राब पैरों वाला कनखजूरा।

विदा!

तुम्हारी, ऐन

शनिवार, 3 अक्टूबर, 1942

प्यारी किटी,

कल मुझे सबने चिढ़ाया, क्योंकि मैं मि. फ़ॉन डान के बिस्तर पर उनकी बग़ल में लेटी थी। ‘तुम्हारी उम्र में! यह भयानक है!’ इन बेवकूफ़ाना बातों के अलावा अन्य टिप्पणियाँ की गई। ज़ाहिर है कि यह बेवकूफ़ी है। मैं कभी मि. फ़ॉन डान के साथ नहीं सोना चाहूँगी, जैसा कि उनका मतलब है।

कल माँ और मेरे बीच फिर से झड़प हुई और उन्होंने काफ़ी बवाल खड़ा कर दिया। उन्होंने मेरी सभी बुराइयों को पापा को बताया और रोने लगी, जिससे मुझे भी रोना आ गया, मुझे पहले से सिरदर्द भी हो रहा था। आख़िरकार मैंने डैडी से कहा कि मैं उन्हें माँ से ज़्यादा प्यार करती हूँ और उनका कहना था कि समय के साथ यह बीत जाएगा, मैं ऐसा नहीं सोचती। मैं माँ को बर्दाश्त नहीं कर सकती और मुझे शांत रहने और उन पर हर समय चिढ़ने से ख़ुद को ज़बरदस्ती रोकना पड़ता है, जबकि मैं उनके चेहरे पर तमाचा मारना चाहती हूँ। मैं नहीं जानती कि मुझे वे इतनी सख़्त नापसंद क्यों हैं। डैडी कहते हैं कि अगर माँ की तबियत ठीक न हो या फिर उन्हें सिरदर्द हो तो मुझे उनकी मदद करने की पेशकश करनी चाहिए, लेकिन मैं ऐसा नहीं करने वाली, क्योंकि मुझे उनसे प्यार नहीं और मुझे काम में मज़ा भी नहीं आता। माँ की तो किसी दिन मौत होगी, लेकिन डैडी की मृत्यु के बारे में कल्पना भी नहीं की जा सकती। मैं बहुत घटिया बात कर रही हूँ, लेकिन मुझे ऐसा ही लगता है। उम्मीद है कि माँ यह बात या फिर मेरी लिखी कोई और बात कभी न पढ़ें।

पिछले कुछ समय से मुझे बड़े लोगों की कुछ किताबें पढ़ने की अनुमति मिल गई है। आजकल मैं निको फ़ॉन सश्टेलेन की ईवाज़ यूथ पढ़ रही हूँ। मुझे नहीं लगता कि इस किताब और किशोरियों के लिए लिखी बाक़ी किताबों में कोई बड़ा अंतर है। ईवा को लगता था कि सेब की तरह बच्चे पेड़ पर उगते हैं और उनके पक जाने पर सारस उन्हें तोड़ लेते हैं और माँओं के पास ले आते हैं। लेकिन उसकी सहेली की बिल्ली के बच्चे थे और ईवा ने उन्हें बिल्ली के शरीर से निकलते देखा, इसलिए उसने सोचा कि बिल्लियाँ अंडे देती हैं और चूज़ों की तरह वे उनमें से निकलते हैं और जिन माँओं को बच्चे चाहिए होते हैं, अंडे देने से कुछ दिन पहले वे ऊपर जाती हैं और फिर अंडों को सेती हैं। बच्चों के आने के बाद माँएँ पालथी मारकर बैठने के कारण बहुत कमज़ोर हो जाती हैं। एक दिन ईवा को भी बच्चे की चाह होती है। वह ऊनी स्कार्फ़ निकाल कर उसे ज़ मीन पर बिछाती है, ताकि अंडे उसमें गिरें और फिर वह बैठकर ज़ोर लगाने लगती है। मुर्गी की तरह आवाज़ निकालते हुए वह इंतज़ार करने लगी, लेकिन कोई अंडा नहीं निकला। आख़िरकार बहुत देर तक बैठे रहने के बाद कुछ निकला ज़रूर, लेकिन वह अंडा नहीं, बल्कि एक सॉसेज था। ईवा झेंप गई। उसे लगा कि वह बीमार थी। मज़ेदार बात है, न? ईवाज़ यूथ में सड़कों पर बहुत सारे पैसे के बदले औरतों के देह बेचने की बात भी की गई है। उस तरह के आदमी के सामने मैं तो शर्म से गड़ जाऊँगी। इसके अलावा इसमें ईवा के मासिक धर्म की बात भी की गई है। मैं भी इंतज़ार कर रही हूँ, तभी मैं वाक़ई बड़ी हो जाऊँगी।

डैडी फिर से कुड़कुड़ाने लगे हैं और मेरी डायरी छीनने की धमकी दे रहे हैं। यह तो बहुत डरावनी बात है! अबसे मुझे इसे छिपाकर रखना होगा।

तुम्हारी, ऐन

बुधवार, 7 अक्टूबर, 1942

मैं कल्पना करती हूँ कि…

मैं स्विट्ज़रलैंड गई हूँ। मैं और डैडी एक कमरे में सोते हैं, जबकि लड़कों के अध्ययन कक्ष को बैठक में बदल दिया गया है, जहाँ मैं मेहमानों से मिल सकती हूँ। मेरे लिए नया फ़र्नीचर लाया गया है, जिसमें चाय की मेज़, एक डेस्क, हत्थे वाली कुर्सी और दीवान शामिल है। सब कुछ बहुत शानदार है। कुछ दिन बाद डैडी मुझे 150 गिल्डर्स देते हैं और कहते हैं कि मैं अपनी ज़रूरत की चीज़ें उनसे ख़रीद लूँ, ज़ाहिर है कि वे मुझे स्विस मुद्रा देते हैं, लेकिन मैं उन्हें गिल्डर्स ही कहूँगी। (बाद में मुझे एक हफ़्ते में एक गिल्डर मिलता है, जिससे मैं जो चाहे ख़रीद सकती हूँ।) मैं बर्न्ड के साथ जाकर ये चीज़ें ख़रीदती हूँ:

3 सूती बनियानें 0.50 की एक = 1.50

3 सूती निकर 0.50 की एक = 1.50

3 ऊनी बनियानें 0.75 की एक = 2.25

3 ऊनी निकर 0.75 की एक = 2.25

2 पेटीकोट 0.50 का एक = 1.00

2 ब्रा (सबसे छोटा साइज़) 0.50 की एक = 1.00

5 पाजामे 1.00 का एक = 5.00

1 हल्का ड्रेसिंग गाउन 2.50 का एक = 2.50

1 मोटा ड्रेसिंग गाउन 3.00 का एक = 3.00

2 बेड जैकेट 0.75 की एक = 1.50

1 छोटा तकिया 1.00 का एक = 1.00

एक जोड़ी हल्की चप्पलें 1.00 प्रति जोड़ा = 1.00

एक जोड़ी गर्म चप्पलें 1.50 प्रति जोड़ा = 1.50

1 जोड़ी गर्मी के जूते (स्कूली) 1.50 प्रति जोड़ा = 1.50

1 जोड़ी गर्मी के जूते (बढ़िया) 2.00 प्रति जोड़ा = 2.00

1 जोड़ी सर्दी के जूते (स्कूली) 2.50 प्रति जोड़ा = 2.50

1 जोड़ी सर्दी के जूते (बढ़िया) 3.00 प्रति जोड़ा = 3.00

2 ऐप्रन 0.50 का एक = 1.00

25 रूमाल 0.05 का एक = 1.25

4 जोड़े सिल्क मोज़े 0.75 का एक = 3.00

4 जोड़े घुटनों तक के मोज़े 0.50 का एक = 2.00

4 जोड़े मोज़े 0.25 का एक = 1.00

2 जोड़े मोटे मोज़े 1.00 का एक = 2.00

3 लच्छे सफ़ेद ऊन (अंतर्वस्त्र, टोपी) = 1.50

3 लच्छे नीला सूत (स्वेटर, स्कर्ट) = 1.50

3 लच्छे रंगबिरंगा सूत = 1.50

स्कार्फ़, बेल्ट, कॉलर, बटन = 1.25

इनके अलावा 2 स्कूल वर्दियाँ (ग्रीष्म), 2 स्कूल वर्दियाँ (सर्दी), 2 अच्छी पोशाकें (ग्रीष्म), 2 अच्छी पोशाकें (सर्दी), 1 गर्मी की स्कर्ट, 1 अच्छी सर्दियों की स्कर्ट, 1 स्कूल स्कर्ट सर्दी के लिए, 1 रेनकोट, 1 समर कोट, 1 विंटर कोट, 2 हैट्स, 2 टोपियाँ। कुल 108 गिल्डर्स।

2 हैंडबैग, 1 आईस-स्केटिंग पोशाक, 1 जोड़ी स्केट्स, एक डिब्बा (जिसमें पाउडर, स्किन क्रीम, फ़ाउंडेशन क्रीम, क्लेनज़िंग क्रीम, सनटैन लोशन, रुई, फ़र्स्ट-एड किट, लाली, लिपस्टिक, आईब्रो पेंसिल, बाथ सॉल्ट्स, बाथ पाउडर, यू डी कोलोन, साबुन, पाउडर पफ़ हों)।

इनके अलावा 4 स्वेटर्स, एक 1.50 का, 4 ब्लाउज़ एक 1.00 का, कई तरह की चीज़ें 10.00 की और उपहार 4.50 के।

शुक्रवार, 9 अक्टूबर, 1942

प्यारी किटी,

आज मेरे पास बताने के लिए केवल निराशाजनक और उदास बातें हैं। हमारे बहुत से यहूदी दोस्तों व परिचितों को झुंडों में ले जाया जा रहा है। गेस्टापो यानी नाज़ी पार्टी की ख़ुफ़िया पुलिस उनके साथ बहुत बुरा बर्ताव कर रही है और उन्हें मवेशियों के ट्रक में लादकर द्रेंथ के बड़े शिविर वेस्टरबर्क ले जा रहे हैं, जहाँ वे सभी यहूदियों को भेज रहे हैं। मीप ने मुझे वहाँ से बचकर निकलने वाले किसी आदमी के बारे में बताया। ज़रूर वेस्टरबर्क में बुरी हालत होगी। लोगों को खाने के लिए न के बराबर मिलता है, उससे भी कम पानी, क्योंकि एक दिन में सिर्फ़ एक घंटा पानी आता है, हज़ारों लोगों के लिए केवल शौचालय व सिंक है। स्त्री-पुरुष एक ही कमरे में सोते हैं, महिलाओं व बच्चों के सिर मुँडवा दिए जाते हैं। वहाँ से बचकर निकलना नामुमकिन है; कई लोग यहूदी दिखते हैं और कतरे हुए बालों से उनकी पहचान होती है।

अगर हॉलैंड में हालत इतनी ख़राब है, तो बाक़ी दूर-दराज़ और ऐसी जगहों पर क्या हाल होगा, जहाँ सभ्यता का नामोनिशान नहीं है और जहाँ जर्मन उन्हें भेज रहे हैं? हम मानकर चल रहे हैं कि उनमें से अधिकतर की हत्या की जा रही है। इंग्लिश रेडियो में कहा जा रहा है कि उन्हें गैस छोड़कर मारा जा रहा है। शायद वह मारने का सबसे तेज़ तरीक़ा है।

मुझे बहुत बुरा लग रहा है। मीप के ये डरावने विवरण दिल दहला देते हैं और मीप भी बहुत परेशान हैं। मिसाल के तौर पर एक दिन गेस्टापो ने एक विकलांग वृद्ध महिला को मीप के दरवाज़े पर छोड़ दिया और कार की तलाश में चले गए। बूढ़ी महिला चमकती रोशनी और हवा में इंग्लिश विमानों पर चल रही गोलीबारी से बहुत डरी हुई थी। फिर भी मीप की हिम्मत नहीं हुई कि उस महिला को अंदर बुला लें। किसी की हिम्मत नहीं थी। सज़ा देने के मामले में जर्मन बहुत उदार हैं।

बेप भी बहुत बुझी हुई हैं। उनके बॉयफ़्रेड को जर्मनी भेजा जा रहा है। हर बार हवाई जहाज़ के उड़ने पर वे डरती हैं कि कहीं सारे के सारे बम वे बेरतुस के सिर पर न गिरा दें। इस स्थिति में मज़ाक में यह कहना, ‘अरे चिंता मत करो, वे भी उस पर नहीं गिर सकते’ या ‘जान लेने के लिए एक बम काफ़ी है,’ बिलकुल भी सही नहीं है। बेरतुस ही अकेला नहीं है, जिसे जर्मनी में काम करने के लिए मजबूर किया जा रहा है। रेल में भरकर नौजवान रोज़ विदा लेते हैं। उनमें से कुछ किसी छोटे से स्टेशन पर रेल के रुकने पर चुपके से निकल जाने की कोशिश करते हैं, लेकिन कुछ ही निकलने और छिपने की जगह खोज पाने में कामयाब होते हैं।

लेकिन मेरा यह दुख यहीं ख़त्म नहीं होता। क्या तुमने कभी ‘बंधक’ शब्द सुना है? देशद्रोहियों के लिए सबसे नई सज़ा यही है। इससे ख़तरनाक चीज़ की कल्पना तुम कर भी नहीं सकती। प्रमुख नागरिकों, मासूम नागरिकों को बंदी बनाया जा रहा है और वे अपनी मौत का इंतज़ार कर रहे हैं। गैस्टापो को अगर कोई देशद्रोही नहीं मिलता, तो वे बस पाँच बंधकों को पकड़कर उन्हें दीवार के सामने एक पंक्ति में खड़ा कर देते हैं। उनकी मौत की ख़बर अख़बारों में छपती है, जिनमें उसे ‘घातक दुर्घटना’ कहा जाता है।

ज़रा सोचो, वे जर्मन मानवता के बेहतरीन नमूने हैं। मैं उनमें से एक हूँ! नहीं, वह सही नहीं है, हिटलर ने हमारी राष्ट्रीयता काफ़ी पहले छीन ली थी। इसके अलावा इस धरती पर जर्मन व यहूदियों से बढ़कर कोई दुश्मन नहीं है।

तुम्हारी, ऐन

बुधवार, 14 अक्टूबर, 1942

प्यारी किटी,

मैं बहुत व्यस्त हूँ। कल मैंने ला बेले निवेने के एक पाठ के अनुवाद से शुरुआत की और नए शब्द लिखे। फिर मैंने गणित के एक कठिन सवाल को हल किया और उसके अलावा फ़्रेंच व्याकरण के तीन पन्नों का अनुवाद दिया। आज फ़्रेंच व्याकरण और इतिहास। मुझे हर रोज़ घिनौना गणित करना पसंद नहीं है। डैडी को भी ऐसा ही लगता है। मैं उसमें उनसे बेहतर हूँ, हालाँकि असल में हम दोनों ही उसमें अच्छे नहीं हैं, इसलिए हम हमेशा मदद के लिए मारगोट को बुलाते हैं। मैं अपने शॉर्टहैंड पर भी काम कर रही हूँ, जिसमें मुझे मज़ा आता है। हम तीनों में से मैंने सबसे ज़्यादा प्रगति की है।

मैंने द स्टॉर्म फ़ैमिली पढ़ी। यह काफ़ी अच्छी है, लेकिन जूप त हयल जितनी अच्छी नहीं। वैसे दोनों किताबों में एक जैसे शब्द हैं, जो समझ में आते हैं, क्योंकि दोनों की लेखक एक हैं। सिसी फ़ॉन मार्क्सवेल्ड बहुत बढ़िया लेखक हैं। मैं तो अपने बच्चों को भी उनकी किताबें ज़रूर पढ़ने दूँगी।

मैंने कर्नर के भी बहुत से नाटक पढ़े हैं। मुझे उनके लिखने का तरीक़ा पसंद है। उदाहरण के तौर पर, हिडविग, कज़िन फ़्रॉम ब्रीमेन, द गवर्नेस, द ग्रीन डोमिनो, आदि।

माँ, मारगोट और मैं फिर से अच्छे दोस्त बन गए हैं। दरअसल, इस तरह से यह बेहतर है। कल रात मैं और मारगोट मेरे बिस्तर पर एक साथ लेटे हुए थे। हम दोनों बहुत सिकुड़कर सोए थे, लेकिन उसकी वजह से ही मज़ा आता है। उसने पूछा कि क्या वह कभी-कभार मेरी डायरी पढ़ सकती है।

‘कुछ हिस्से,’ मैंने कहा और उससे उसकी डायरी के बारे में पूछा। उसने भी मुझे अपनी डायरी पढ़ने की इजाज़त दे दी।

हम भविष्य के बारे में बातचीत करने लगे और मैंने उससे पूछा कि वह बड़े होकर क्या बनना चाहती है। लेकिन उसने कुछ नहीं कहा और उसे लेकर बहुत रहस्यमय बनी रही। मैंने अंदाज़ा लगाया कि ज़रूर उसके काम का पढ़ाने से कुछ लेना-देना होगा; हालाँकि मैं पूरी तरह से निश्चित नहीं हूँ, लेकिन मुझे लगता है कि ऐसा ही कुछ होगा। मुझे इतनी दख़लअंदाज़ी नहीं करनी चाहिए।

आज सुबह मैं पीटर के बिस्तर पर लेटी थी, उससे पहले मैंने उसे वहाँ से भगाया था। वह बहुत गु़स्से में था, लेकिन मैंने कोई परवाह नहीं की। उसे कभी-कभी मेरे साथ थोड़ा दोस्ताना बर्ताव करने की बात सोचनी चाहिए। मैंने कल रात ही उसे एक सेब दिया था।

मैंने एक बार मारगोट से पूछा कि क्या उसे लगता है कि मैं भद्दी हूँ। उसने कहा कि मैं ठीकठाक हूँ और मेरी आँखें अच्छी हैं। यह थोड़ी अस्पष्ट सी बात है, है न?

अगली बार तक इंतज़ार करो!

तुम्हारी, ऐन

पुनःश्च। आज सुबह हम सबने अपना वज़न नापा। मारगोट 9 स्टोन 6 पाउंड की है, माँ 9 स्टोन 10, पापा 11 स्टोन 1, ऐन 6 स्टोन 12, पीटर 10 स्टोन 1, मिसेज़ फ़ॉन डान 8 स्टोन 5, मि. फ़ॉन डान 11 स्टोन 11। यहाँ आने के तीन महीनों में मेरा वज़न 19 पाउंड बढ़ गया है। काफ़ी ज़्यादा है, उफ़?

मंगलवार, 20 अक्टूबर, 1942

प्रिय किटी,

मेरा हाथ अब भी काँप रहा है, जबकि उस बात को दो घंटे हो चुके हैं। विस्तार से बताती हूँ, हमारी इमारत में पाँच अग्निशमन यंत्र हैं। ऑफ़िस के लोग हमें चेतावनी देना भूल गए कि कारपेंटर (बढ़ई) या फिर जो भी वह कहलाता है, वह हमारे यंत्रों को भरने आ रहा है। नतीजा यह हुआ कि हमने तब तक शांत रहने की बात नहीं सोची, जब तक कि हमें किताबों की अलमारी पर हथौड़े की आवाज़ नहीं सुनाई दी। मैंने तुरंत अनुमान लगा लिया कि वह कारपेंटर होगा और मैं बेप को चेतावनी देने पहुँच गई, जो उस समय खाना खा रही थी, ताकि वह नीचे न चली जाए। मैं और डैडी दरवाज़े के पास तैनात हो गए, ताकि हम उस आदमी के जाने की आहट सुन सकें। लगभग पंद्रह मिनट काम करने के बाद उसने अपना हथौड़ा और बाक़ी औज़ार हमारी अलमारी पर रखे (या ऐसा हमें लगा!) और हमारे दरवाज़े पर आवाज़ करने लगा। हम सभी डर से सुन्न हो गए। क्या उसने कोई आवाज़ सुनी थी और अब इस अजीबोग़रीब अलमारी को देखना चाहता था? ऐसा ही लगा, क्योंकि वह उसे खटखटाता, खींचता, धक्का देता व झटके देता रहा।

मैं यहाँ सोचकर इतना डर गई थी कि वह अजनबी हमारी इस बढ़िया सी छिपने की जगह को खोजने में कामयाब रहेगा। जैसे ही मैंने सोचा कि अब बस हम पकड़े ही जाने वाले हैं, तो हमें मि. क्लेमन की आवाज़ सुनाई दी, ‘खोलो, मैं हूँ।’

हमने तुरंत दरवाज़ा खोल दिया। क्या हुआ था? किताबों की अलमारी को टिकाने वाला हुक फँस गया था, इसलिए कोई हमें बढ़ई के बारे में नहीं बता पाया। उस आदमी के जाने के बाद मि. क्लेमन बेप को लेने आए, लेकिन किताबों की अलमारी को नहीं खोल सके। मैं तुम्हें नहीं बता सकती कि मुझे कितनी राहत मिली। हमारी छिपने की जगह में घुसने की कोशिश कर रहा वह आदमी मेरी कल्पना में इतना बड़ा होता जा रहा था कि न सिर्फ़ वह एक दैत्य, बल्कि दुनिया में सबसे बेरहम फ़ासिस्ट बन गया था। ख़ुशक़िस्मती से सब कुछ ठीक रहा, कम से कम इस बार तो।

सोमवार को हमने बहुत मज़े किए। मीप और यान हमारे साथ रात को रहने आए। मारगोट और मैं पापा और मम्मी के कमरे में सोए, ताकि वे दोनों हमारे बिस्तर पर सो सकें। उनके सम्मान में खाना बनाया और वह बहुत स्वादिष्ट था। उत्सव में थोड़ी रुकावट आई, जब पापा के लैम्प का शॉर्ट सर्किट हो गया और अचानक अँधेरा छा गया। हम क्या कर सकते थे? हमारे पास फ़्यूज़ थे, लेकिन उनका बक्सा गोदाम के पीछे था, जिससे रात के समय यह काम बहुत अप्रिय हो गया था। फिर भी पुरुष सामने आए और दस मिनट बाद हमने मोमबत्तियाँ बुझा दीं।

मैं आज सुबह जल्दी उठ गई। यान पहले से तैयार थे। उन्हें साढ़े आठ बजे निकलना था, इसलिए वे ऊपर आठ बजे तक नाश्ता कर रहे थे। मीप भी तैयार होने में व्यस्त थी, जब मैं वहाँ पहुँची तो वह बनियान में थी। वह साइकिल चलाते हुए उसी तरह का लंबा अंडरवियर पहनती है, जैसा कि मैं पहनती हूँ। मारगोट और मैंने भी बहुत तेज़ी से कपड़े पहने और सामान्य समय से पहले ऊपर पहुँच गए। अच्छे से नाश्ते के बाद मीप नीचे चली गई। बारिश हो रही थी और वह ख़ुश थी कि उसे साइकिल चलाकर काम पर नहीं जाना पड़ा। डैडी और मैंने बिस्तर ठीक किए और बाद में पाँच अनियमित फ़्रेंच क्रियाएँ सीखी। काफ़ी मेहनती हूँ, तुम्हें नहीं लगता?

मारगोट और पीटर हमारे कमरे में पढ़ रहे थे, मूशी दीवान पर मारगोट के साथ सिमटी हुई थी। अपनी अनियमित फ़्रेंच क्रियाओं के बाद मैं भी उनके पास चली गई और द वुड्स आर सिंगिंग फ़ॉर आल एटर्निटी पढ़ी। यह बहुत ख़ूबसूरत किताब है, लेकिन काफ़ी अलग है। मैं उसे लगभग पूरा कर चुकी हूँ।

अगले हफ़्ते बेप की बारी हमारे यहाँ सोने की है।

तुम्हारी, ऐन

बृहस्पतिवार, 29 अक्टूबर, 1942

मेरी प्यारी किटी,

मैं बहुत चिंतित हूँ। पापा बीमार हैं। उनके शरीर पर चकत्ते हैं और उन्हें तेज़ बुख़ार है। चेचक जैसा दिखता है। ज़रा सोचो, हम डॉक्टर तक नहीं बुला सकते! माँ चाहती हैं कि उन्हें पसीना आए, ताकि बुख़ार उतर जाए।

आज सुबह मीप ने हमें बताया कि ज़ायडर-आमस्तलान पर फ़ॉन डान परिवार के अपार्टमेंट से फ़र्नीचर हटाया गया है। हमने अभी तक मिसेज़ फ़ॉन डी को नहीं बताया है। पिछले कुछ दिनों से वे इतनी घबराई हुई हैं कि हमें नहीं लगता कि हम फिर से ख़ूबसूरत चीनी मिट्टी के बर्तनों और प्यारी कुर्सियों को लेकर उनकी आहों को सुनना चाहते हैं, जो उन्हें छोड़नी पड़ी थीं। हमें भी अपनी अधिकतर प्यारी चीज़ों को छोड़कर आना पड़ा। अब उस पर बड़बड़ाने से क्या फ़ायदा है?

पापा चाहते हैं कि अब मैं हेबल और अन्य प्रसिद्ध जर्मन लेखकों की किताबें पढ़ना शुरू कर दूँ। अब मैं जर्मन काफ़ी अच्छी तरह पढ़ सकती हूँ, इसके सिवा कि मैं शब्दों को चुपचाप पढ़ने के बजाय उन्हें बुदबुदाकर पढ़ती हूँ। लेकिन वह भी ठीक हो जाएगा। पापा ने किताबों की बड़ी सी अलमारी से गोएठ और शिलर के नाटकों को निकाला है और वे मुझे हर शाम उन्हें पढ़कर सुनाना चाहते हैं। हमने डॉन कार्लोस से शुरुआत की। पापा के अच्छे उदाहरण से प्रोत्साहित होकर, माँ ने अपनी प्रार्थना पुस्तिका मेरे हाथों में थमा दी। लिहाज़ के तौर पर मैंने जर्मन में कुछ प्रार्थनाएँ पढ़ीं। वे सुनने में अच्छी थीं, लेकिन मेरे लिए उनके कुछ ख़ास मायने नहीं थे। वे मुझे इतनी धार्मिक व भक्तिमय बनाने पर क्यों तुली हैं?

कल हम पहली बार अंगीठी जलाने वाले हैं। बहुत समय से चिमनी की सफ़ाई नहीं हुई है, इसलिए कमरे में धुँआ तो भरेगा ही। उम्मीद है कि वह कुछ धुँआ तो खींचेगी!

तुम्हारी, ऐन

सोमवार, 2 नवंबर, 1942

प्रिय किटी,

बेप हमारे साथ शुक्रवार शाम को रही। मज़ा आया, लेकिन वह सो नहीं पाई, क्योंकि उसने वाइन नहीं पी थी। बाक़ी बताने के लिए कुछ ख़ास है नहीं। कल मुझे भयंकर सिरदर्द था, इसलिए मैं जल्दी सो गई। मारगोट फिर से अजीब बर्ताव कर रही है।

आज सुबह मैंने ऑफ़िस के इंडेक्स कार्ड फ़ाइल को करीने से लगाना शुरू किया, क्योंकि वह गिर गई थी और सब कुछ गड़बड़ हो गया था। थोड़ी देर बार ही मैं पगला गई। मैंने मारगोट और पीटर से मदद माँगी, लेकिन दोनों बहुत आलस दिखा रहे थे, तो मैंने भी काम छोड़ दिया। मैं इतनी पागल भी नहीं कि सारा काम ख़ुद करूँ?

ऐन फ़्रैंक

पुनःश्च। मैं एक बहुत महत्त्वपूर्ण जानकारी देना भूल गई कि शायद मेरा मासिक धर्म जल्दी ही शुरू होने वाला है। मैं इसलिए कह सकती हूँ कि मेरे अंतर्वस्त्रें में मुझे कुछ सफ़ेद से धब्बे दिखते हैं और माँ ने कहा है कि जल्दी ही वह शुरू हो जाएगा। अब इंतज़ार मुश्किल है। बहुत बुरी बात है कि मैं सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल नहीं कर सकती, अब उनका मिलना मुश्किल है और मम्मी के टैम्पन्स का इस्तेमाल सिर्फ़ वही महिलाएँ कर सकती हैं, जिनका बच्चा हो चुका हो।

बृहस्पतिवार, 5 नवंबर, 1942

प्यारी किटी,

आख़िरकार ब्रिटिशों को अफ़्रीका में कुछ सफलता मिली और स्टालिनग्राद में अब तक उन्हें जीत नहीं मिली है, इसलिए पुरुष ख़ुश हैं और हमने आज सुबह कॉफ़ी व चाय पी। इसके अलावा बताने के लिए कुछ ख़ास नहीं है।

इस हफ़्ते मैं पढ़ ज़्यादा रही हूँ और बहुत कम काम कर रही हूँ। ऐसा ही होना चाहिए। यह रास्ता सफलता की ओर ले जाता है।

पिछले कुछ समय से माँ और मेरी अच्छी पट रही है, लेकिन हम बहुत क़रीब नहीं हैं। पापा अपनी भावनाओं को खुले तौर पर ज़ाहिर नहीं करते, लेकिन वे उतने ही प्यारे हैं, जैसे हमेशा थे। कुछ दिन पहले हमने अंगीठी जलाई थी और पूरा कमरा अब भी धुँए से भरा है। मुझे सेंट्रल हीटिंग पसंद है और शायद मैं अकेली नहीं हूँ। मारगोट बहुत बदमाश (इसके अलावा कोई और शब्द नहीं) है और दिन-रात चिड़चिड़ाहट पैदा करती है।

ऐन फ़्रैंक

शनिवार, 7 नवंबर, 1942

प्रिय किटी,

माँ आजकल बहुत चिड़चिड़ी रहती हैं और वह मेरे लिए अच्छा शकुन नहीं है। क्या यह सिर्फ़ संयोग ही है कि माँ और पापा मारगोट को कभी नहीं डाँटते और हमेशा हर चीज़ के लिए मुझे ही दोषी मानते हैं? उदाहरण के लिए, कल रात मारगोट बहुत सुंदर चित्रों वाली एक किताब पढ़ रही थी, वह उठी और किताब को एक तरफ़ रख दिया। मैं कुछ नहीं कर रही थी, इसलिए मैंने उसे उठा लिया और तसवीरें देखने लगी। मारगोट आई तो उसने मुझे उसकी किताब पढ़ते देख लिया, उसने अपनी भौंहें चढ़ाकर मुझसे चिड़चिड़ाकर किताब वापस माँगी। मैं थोड़ी देर और उसे देखना चाहती थी। मारगोट की नाराज़ गी बढ़ती गई और माँ बीच में कूद पड़ी: ‘मारगोट किताब पढ़ रही थी, उसे वापस लौटाओ।’

पापा आए और बिना यह जाने कि क्या हो रहा है, उन्होंने देखा कि मारगोट के साथ अन्याय हो रहा है, वे मुझ पर चिल्लाए, ‘मैं देखूँगा अगर मारगोट तुम्हारी किताब देख रही हो तो तुम क्या करोगी!’

मैंने तुरंत हथियार डाल दिए, किताब को नीचे रखा और उनके मुताबिक़ ताव में आकर कमरे से बाहर निकल गई। मैं न तो आवेश में थी और न ही चिढ़ी हुई थी, बस दुखी थी।

बात को जाने बिना पापा का इस तरह फ़ैसला देना सही नहीं था। मैं ख़ुद ही मारगोट को किताब दे देती और जल्दी दे देती, अगर माँ और पापा बीच में न पड़ते और मारगोट की तरफ़ दारी करने के लिए आगे न आते, जैसे कि उसके साथ कोई बड़ा अन्याय हो रहा था।

यह ज़रूर है कि माँ ने मारगोट का पक्ष लिया; वे हमेशा एक-दूसरे की तरफ़ दारी करती हैं। मैं तो अब इसकी इतनी आदी हो गई हूँ कि माँ की झिड़कियों और मारगोट के चिड़चिड़ेपन का मुझ पर कोई असर नहीं पड़ता। मैं उन्हें प्यार करती हूँ, लेकिन सिर्फ़ इसलिए कि वे मेरी माँ और बहन हैं। व्यक्ति के तौर पर मुझे उनकी कोई परवाह नहीं है। मेरी बला से वे पानी में कूद जाएँ। पापा की बात और है। मैं जब उन्हें मारगोट की तरफ़ दारी करते हुए देखती हूँ, उसके हर काम को सही मानते हुए, उसकी तारीफ़ करते हुए, उसे गले लगते हुए देखती हूँ, तो मेरे भीतर एक दर्द सा उठता है। मैं उन्हें लेकर पागल हूँ। मैं उनके जैसा बनना चाहती हूँ और दुनिया में मैं उनसे ज़्यादा किसी और को प्यार नहीं करती। वे नहीं समझ पाते कि वे मारगोट से मुझसे अलग बर्ताव करते हैं। मारगोट सबसे चतुर, सबसे दयालु, सबसे प्यारी और सबसे अच्छी है। लेकिन मुझे भी अधिकार है कि सब मुझे गंभीरता से लें। मैं हमेशा से परिवार की मसखरी और शरारत करने वाली हूँ; मुझे हमेशा से अपनी ग़लतियों का दोहरा दंड भुगतना पड़ता है: एक बार डाँट के रूप में और दूसरी बार अपनी हताशा के रूप में। मैं अब बेकार के स्नेह या कथित गंभीर बातों से संतुष्ट नहीं होती। मुझे अपने पिता से कुछ चाहिए, जो वे दे सकते हैं। मैं मारगोट से नहीं जलती; मैं कभी नहीं जली। मुझे उसकी बुद्ध या उसकी सुंदरता से कोई ईर्ष्या नहीं है। बात बस इतनी सी है कि मैं महसूस करना चाहूँगी कि पापा मुझसे प्यार करते हैं, इसलिए नहीं कि मैं उनकी बेटी हूँ, बल्कि इसलिए कि मैं, मैं ऐन हूँ।

मैं पापा से चिपकती हूँ, क्योंकि माँ के प्रति मेरी नफ़रत रोज़ बढ़ती जा रही है और पापा के माध्यम से ही मैं परिवार से जुड़े होने की भावना को बनाए रख पाई हूँ। वे नहीं समझते कि कभी-कभी मुझे माँ के प्रति अपनी भावनाओं को निकालना पड़ता है। वे इस पर बात नहीं करना चाहते और माँ की कमज़ोरियों पर बात नहीं करना चाहते।

फिर भी माँ की तमाम कमियों के बावजूद उनसे निपटना मेरे लिए काफ़ी मुश्किल है। मैं नहीं जानती कि उनसे कैसा बर्ताव करना चाहिए। मैं उनकी लापरवाही, उनके व्यंग्य और उनकी बेरहमी का जवाब उसी तरह से नहीं दे सकती, फिर भी मैं हर चीज़ का दोष अपने ऊपर लगातार नहीं ले सकती।

मैं माँ से उलट हूँ, इसलिए हमारा टकराव तो होगा ही। मेरा मक़सद उन्हें आँकना नहीं है; मुझे वह अधिकार नहीं है। मैं तो बस उन्हें माँ के तौर पर देख रही हूँ। वे मेरे साथ माँ का बर्ताव नहीं करतीं, मुझे अपनी माँ ख़ुद बनना पड़ता है। मैंने ख़ुद को उनसे काट लिया है। मैं अपना रास्ता ख़ुद तय कर रही हूँ और देखें कि वह मुझे कहाँ ले जाता है। मेरे पास कोई विकल्प नहीं है, क्योंकि मैं कल्पना कर सकती हूँ कि किसी माँ और पत्नी को कैसा होना चाहिए और उस तरह की कोई भी बात मुझे उस महिला में नहीं दिखती, जिन्हें मुझे ‘माँ’ कहना चाहिए।

मै ख़ुद से बार-बार माँ के बुरे उदाहरण की अनदेखी करने को कहती हूँ। मैं सिर्फ़ उनकी अच्छी बातें देखना चाहती हूँ और अपने भीतर देखना चाहती हूँ कि मुझमें क्या कमी है। लेकिन यह काम नहीं आता और सबसे बुरी बात यह है कि पापा और मम्मी अपनी कमियों को नहीं देख पाते और यह भी कि मुझे निराश करने के लिए मैं उन्हें कितना दोषी मानती हूँ। क्या कोई ऐसे माता-पिता हैं, जो अपने बच्चों को पूरी तरह ख़ुश रख सकते हैं?

इतनी कई बार मुझे लगता है कि ईश्वर मेरी परीक्षा ले रहा है, अभी और भविष्य में। मुझे ख़ुद ही अच्छा इंसान बनना होगा, बिना किसी आदर्श के या किसी की सलाह के, लेकिन इससे मैं आख़िरकार मज़बूत बनूँगी।

मेरे अलावा और कौन यह सब पढ़ने वाला है? मेरे अलावा कौन है, जो सुकून के लिए इसे खोलेगा? मुझे अक्सर सांत्वना की ज़रूरत पड़ती है। मैं अक्सर कमज़ोर महसूस करती हूँ और अक्सर ही मैं उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पाती। मैं यह जानती हूँ और हर रोज़ बेहतर करने का प्रण लेती हूँ।

वे मेरे साथ एक जैसा बर्ताव नहीं करते। एक दिन कहते हैं कि ऐन समझदार लड़की है और उसे सब कुछ जानना चाहिए और फिर अगले दिन कहेंगे कि ऐन तो बेवकूफ़ है, जिसे कुछ नहीं आता और फिर भी कल्पना करती है कि उसने किताबों से वह सब कुछ जान लिया है, जो उसे जानना चाहिए! मैं अब छोटी सबकी प्यारी बिगड़ैल बच्ची नहीं हूँ, जिसकी हर हरकत पर हँसा जाना चाहिए। मेरे अपने विचार, योजनाएँ और आदर्श हैं, लेकिन अभी उन्हें बता पाने के क़ाबिल नहीं हुई हूँ।

ठीक है। रात को अकेले बैठने पर मेरे दिमाग़ में इतनी बातें आती हैं या फिर दिन में जब मुझे ऐसे लोगों को झेलना पड़ता है, जिन्हें मैं सहन नहीं कर सकती या फिर जो मेरी मंशा को ग़लत समझते हैं। इसी कारण मैं वापस अपनी डायरी पर आती हूँ, मैं यहीं से बात शुरू कर यहीं ख़त्म करती हूँ, क्योंकि किटी हमेशा धीरज से काम लेती है। उससे मेरा वादा है कि मैं बढ़ती रहूँगी, अपना रास्ता खोजूँगी और अपने आँसुओं को दबा दूँगी। मैं यही चाहती हूँ कि मुझे नतीजे मिलें या फिर एक बार किसी ऐसे से प्रोत्साहन मिले, जो मुझे प्यार करता हो।

मेरी भर्त्सना मत करो, लेकिन मुझे एक ऐसे इंसान के रूप में देखा, जो कभी-कभी फटने के कगार पर पहुँचता हो!

तुम्हारी, ऐन

सोमवार, 9 नवंबर, 1942

प्यारी किटी,

कल पीटर का सोलहवाँ जन्मदिन था। मैं आठ बजे तक ऊपर रही और मैंने व पीटर ने उसके उपहार देखे। उसे मोनोपॉली का खेल, एक रेज़ र और एक सिगरेट लाइटर मिला। वह इतना धूम्रपान नहीं करता, बिलकुल भी नहीं, बस यह बहुत ख़ास दिखता है।

सबसे बड़ी आश्चर्यजनक बात मि. फ़ॉन डान से सुनने को मिली, जिन्होंने एक बजे बताया कि अंग्रेज़ ट्यूनिस, अल्जीयर्स, कासाब्लांका और ओरान पहुँच गए हैं।

‘यह अंत की शुरुआत है,’ सभी कह रहे थे, ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल ने भी इंग्लैंड में इसी बात को दोहराए जाते सुना होगा, उन्होंने घोषणा की, ‘यह अंत नहीं है। यह अंत की शुरुआत भी नहीं है। लेकिन शायद यह शुरुआत का अंत है।’ क्या तुम्हें कुछ फ़र्क़ नज़ र आता है? हालाँकि आशावादी होने का कुछ कारण है। तीन महीने से आक्रमण झेल रहा रूसी शहर स्तालिनग्राद अब भी जर्मनी के हाथ नहीं आया है।

अनेक्स की असली भावना के मुताबिक़ मुझे तुम्हें खाने के बारे में बताना चाहिए (मुझे बताना चाहिए कि ऊपर वाली मंज़िल पर रहने वाले कितने पेटू हैं।)

मि. क्लेमन के एक दोस्त, बहुत अच्छे बेकर हर रोज़ डबलरोटी दे जाते हैं। वह उतनी नहीं होती, जितनी कि हमारे घर पर होती है, फिर भी वह काफ़ी है। हम ब्लैक मार्केट से राशन बुक्स लेते हैं। क़ीमत बढ़ती जा रही है: वह पहले ही 27 से 33 गिल्डर्स हो चुकी है। वह भी छपे हुए काग़ज़ के लिए!

हमने यहाँ खाने के काफ़ी टिन जमा किए हैं, उनके अलावा अपने पोषण के लिए हमने तीन सौ पाउंड बीन्स ख़रीदी हैं। न सिर्फ़ अपने लिए, बल्कि दफ़्तर में काम करने वालों के लिए भी। हमने बीन्स के बोरे अपने गुप्त प्रवेशद्वार के अंदर गलियारों में टाँगे थे, लेकिन वज़न के कारण कुछ सिलाइयाँ खुल गईं। इसलिए हमने उन्हें अटारी में ले जाने का फ़ैसला किया और पीटर को वज़न उठाने का काम सौंपा गया। वह छह में से पाँच बोरों को सही-सलामत ऊपर ले गया और आख़िरी बोरे को ले जा रहा था कि वह फट गया और हवा में बिखर गई भूरी बीन्स की बाढ़ या बरसात सी हो गई, जो सीढ़ियों तक फैल गई। उस बोरे में पचास पाउंड बीन्स होने के कारण इतनी ज़ोरदार आवाज़ हुई कि मुर्दे भी जाग जाएँ। नीचे मौजूद लोगों को लगा कि घर गिरने वाला है। पीटर भौंचक्का रहा गया, लेकिन फिर खिलखिलाकर हँस पड़ा, जब उसने मुझे सीढ़ियों में खड़ा देखा, बीन्स के समुद्र में भूरी लहरों के बीच मैं किसी द्वीप जैसी दिख रही थी। हमने तुरंत उन्हें उठाना शुरू किया, लेकिन बीन्स इतनी छोटी और फिसलन भरी थीं कि वे हर कोने व छेद में घुस रही थीं। हर बार ऊपर जाते हुए हम झुककर कोशिश कर रहे थे कि मिसेज़ फ़ॉन डान को मुट्ठी भर बीन्स दे सकें।

मैं यह बताना तो भूल ही गई कि पापा ठीक हो गए हैं।

तुम्हारी, ऐन

पुनःश्च। रेडियो में अभी घोषणा हुई है कि अल्जीयर्स हार गया है। मोरक्को, कासाब्लांका और ओरान कई दिनों से ब्रिटिश कब्जे़ में हैं। अब हमें ट्यूनिश का इंतज़ार है।

मंगलवार, 10 नवंबर, 1942

प्रिय किटी,

बढ़िया ख़बर है! हमारे साथ छिपने के लिए आठवाँ व्यक्ति आ रहा है!

हाँ, सचमुच। हमें हमेशा लगता था कि हमारे पास एक और व्यक्ति के लिए पर्याप्त जगह व खाना है, लेकिन हमें डर था कि कहीं मि. कुगलर और मि. क्लेमन पर अतिरिक्त बोझ न पड़े। लेकिन यहूदियों के साथ बढ़ते अत्याचार की घटनाओं के कारण पापा ने इन दो महाशयों की राय जानने की कोशिश की और उन्हें यह योजना बहुत अच्छी लगी। ‘लोग चाहें सात हों या आठ, उतना ही ख़तरनाक है,’ उन्होंने सही कहा। एक बार बात हो जाने पर हम सभी ने मिलकर अपनी जान-पहचान के लोगों पर विचार किया और एक ऐसे इंसान के बारे में सोचने की कोशिश की, जो हमारे विस्तृत परिवार में अच्छी तरह घुलमिल सके। यह मुश्किल नहीं था। पापा ने फ़ॉन डान परिवार के सभी सदस्यों को नकार दिया, उसके बाद हमने एक डेंटिस्ट अल्फ़्रेड डुसल को चुना। वे एक आकर्षक ईसाई महिला के साथ रहते हैं, जो उनसे कम उम्र की हैं। शायद उनकी शादी नहीं हुई है, लेकिन यह और बात है। वे शांत और शिष्ट इंसान के रूप में जाने जाते हैं और ऊपरी तौर पर उनके साथ मेरे परिचय से लगता है कि वे अच्छे हैं। मीप भी उन्हें जानती है, इसलिए वह आवश्यक व्यवस्था कर सकती है। अगर मि. दुसे आते हैं, तो मारगोट के कमरे के बजाय उन्हें मेरे कमरे में सोना होगा और फ़ोल्डिंग बिस्तर से काम चलाना होगा। हम उन्हें अपने साथ कुछ लाने को कहेंगे, जिससे कैविटीज़ यानी दाँतों में हुए छेदों को भरा जा सके।

तुम्हारी, ऐन

बृहस्पतिवार, 12 नवंबर, 1942

प्रिय किटी,

मीप हमें बताने आई कि वह डॉ. दुसे से मिलने गई थी। जैसे ही वह कमरे में घुसी, उन्होंने उससे पूछा कि क्या वह छिपने की किसी जगह के बारे में जानती है और जब मीप ने बताया कि कोई जगह है, तो वे बहुत ख़ुश हुए। मीप ने कहा कि उन्हें जितनी जल्दी हो सके, छिपने चले जाना चाहिए, हो सके तो शनिवार को, लेकिन उन्होंने सोचा कि यह तो असंभव है, क्योंकि उन्हें अपने रिकॉर्ड ठीक करने करने हैं, अपने हिसाब-किताब की व्यवस्था करनी है और कुछ मरीज़ देखने हैं। मीप ने सुबह हमें वही सब बता दिया। हमें नहीं लगा कि इतना इंतज़ार करना अक्लमंदी है। इन सभी तैयारियों के लिए हमें कई ऐसे लोगों को सफ़ाई देनी पड़ती है, हमारे मुताबिक़ जिन्हें अँधेरे में रखा जाना चाहिए। मीप डॉ. दुसे से यह पूछने गई कि क्या वे शनिवार को नहीं आ सकते, लेकिन उन्होंने मना कर दिया और अब उन्हें सोमवार को आना है।

मेरे ख़याल से यह अजीब है कि उन्होंने हमारे प्रस्ताव को तुरंत स्वीकार नहीं किया। अगर उन्हें सड़क से उठा लिया गया, तो उनके रिकॉर्ड्स या उनके मरीज़ कोई काम नहीं आएँगे। तो फिर देरी क्यों? अगर मुझसे पूछो तो मेरे ख़याल से उनकी बात मानना पापा की बेवकूफ़ी है।

वरना, कोई और ख़बर नहीं है।

तुम्हारी, ऐन

मंगलवार, 17 नवंबर, 1942

प्रिय किटी,

मि. दुसे पहुँच गए हैं। सब कुछ सही रहा। मीप ने उनसे डाकघर के आगे सुबह 11 बजे एक निश्चित स्थान पर रहने को कहा, जहाँ एक आदमी उन्हें मिलेगा, जो नियत समय पर नियत जगह पर होगा। मि. क्लेमन उसके पास जाकर कहेंगे कि जिस आदमी से उन्हें मिलना था, वह नहीं आ पाया और उससे कहेंगे कि वह दफ़्तर जाकर मीप से मिल ले। मि. क्लेमन ट्राम से वापस दफ़्तर चले गए, जबकि दुसे पैदल ही उनके पीछे चले।

ग्यारह बजकर बीस मिनट पर मि. दुसे ने हमारे दरवाज़े पर दस्तक दी। मीप ने उन्हें कोट उतारने को कहा, ताकि पीला सितारा न दिखे और उन्हें प्राइवेट ऑफ़िस में ले आई, जहाँ पर मि. क्लेमन ने उन्हें तब तक व्यस्त रखा, जब तक कि सफ़ाई करने वाली महिला नहीं चली गई। यह बहाना बनाकर कि प्राइवेट ऑफ़िस किसी और काम के लिए चाहिए, मीप मि. दुसे को ऊपर ले आई, किताबों की अलमारी खोली और अंदर आई, जबकि मि. दुसे हैरानी से देखते रहे।

इस बीच हम सातों डाइनिंग टेबल पर कॉफ़ी व कॉनियाक लेकर अपने परिवार में आने वाले व्यक्ति का इंतज़ार करने लगे। मीप पहले उन्हें फ़्रैक परिवार के कमरे में ले गई। उन्होंने तुरंत हमारे फ़र्नीचर को पहचान लिया, लेकिन उन्हें यह ख़याल नहीं आया कि हम ठीक उनके सिर के ऊपर वाली मंज़िल पर मौजूद थे। जब मीप ने उन्हें बताया, तो वह इतने हैरान हुए कि बेहोश होते-होते बचे। शुक्र है कि मीप ने उन्हें ज़्यादा देर अनिश्चितता में नहीं रखा और उन्हें ऊपर ले आई। मि. दुसे कुर्सी पर बैठे और हमें भौंचक्के होकर ख़ामोशी से घूरते रहे, जैसे कि वे हमारे चेहरों पर सच पढ़ सकते हों। फिर वे अटकते हुए बोले, 'अरे... लेकिन आपको तो बेल्जियम में होना था? अफ़सर, कार, वे नहीं आए? आपके निकल जाने की योजना कारगर नहीं रही?'

हमने उन्हें पूरी बात बताई कि कैसे हमने जानबूझकर अफ़सर और कार की अफ़वाह फैलाई, ताकि जर्मन या फिर हमारी तलाश में आने वाले किसी भी व्यक्ति को हमारा पता न चल सके। मि. दुसे इस चतुराई से अवाक रह गए और हमारे प्यारे और बहुत ही व्यावहारिक अनेक्स के बाक़ी हिस्सों में घूमते हुए हैरानी से देखते रहे। फिर हम सबने एक साथ खाना खाया। फिर उन्होंने एक झपकी ली और फिर उठकर हमारे चाय पी, मीप उनका कुछ सामान पहले से ले आई थी, वे उसे रखने लगे और सहज महसूस करने लगे। ख़ासकर तब जब हमने उन्हें सीक्रेट अनेक्स के नियमक़ायदों की टाइप की गई सूची (फ़ॉन डान की प्रस्तुति) पकड़ाई: सीक्रेट अनेक्स की जानकारी और मार्गदर्शक

यहूदियों और अन्य बेदख़ल लोगों के लिए
अस्थायी आवास की अनोखी सुविधा

पूरे साल खुला है: ऐम्स्टर्डम के बीचोंबीच सुंदर, शांत, जंगल से घिरा हुआ। आसपास कोई निजी आवास नहीं। ट्राम 13 व 17 से पहुँचा जा सकता है और कार व साइकिल से भी। जिन लोगों को जर्मन सत्ता द्वारा इस प्रकार के परिवहन का इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं है, वे पैदल भी यहाँ पहुँच सकते हैं। यहाँ साज़ - सामान सहित व उसके बिना और भोजन व उसके बिना भी कमरे व अपार्टमेंट्स उपलब्ध हैं।

क़ीमत: निःशुल्क।

भोजन: कम वसा वाला।

स्नानघर में लगातार पानी (माफ़ कीजिए, नहा नहीं सकते) और कई अंदरूनी व बाहरी दीवारों पर भी, गर्मी के लिए आरामदेह अंगीठी।

कई तरह की चीजें रखने के लिए पर्याप्त जगह। दो बड़ी, आधुनिक तिजोरियाँ।

निजी रेडियो, जिसकी डायरेक्ट लाइन लंदन, न्यू यॉर्क, तेल अवीव और अन्य कई स्टेशनों से जुड़ी हैं। शाम छह बजे के बाद सभी निवासियों के लिए उपलब्ध। कुछ अपवादों को छोड़कर निषिद्ध प्रसारण नहीं सुन सकते, यानी कुछ जर्मन स्टेशनों को क्लासिकल संगीत के लिए सना जा सकता है। जर्मन समाचार प्रसारणों को सुनना (चाहे वे कहीं से भी प्रसारित हो) और उन्हें दूसरों तक पहुँचना पूरी तरह निषिद्ध है।

आराम के घंटेः रात दस बजे से सुबह साढ़े सात बजे तक; रविवार को सवा दस बजे सुबह तक। परिस्थितियों के अनुसार रहने वालों को दिन के समय भी आराम के घंटों का पालन करना होगा, जब भी प्रबंधन द्वारा उन्हें निर्देश दिया जाए। सभी की सुरक्षा के लिए आराम के घंटों का सख्ती से पालन किया जाए!!!

खाली समय में गतिविधियाँ: घर के बाहर किसी गतिविधि की अनुमति नहीं, जब तक कि आगे कोई नोटिस नहीं आता।

भाषा का इस्तेमाल: हर समय बहुत धीरे से बात करना ज़रूरी है। केवल सभ्य लोगों की भाषा बोली जाए, इसलिए जर्मन नहीं बोली जाएगी।

पढ़ना व आराम: क्लासिकल और विद्वतापूर्ण किताबों को अलावा कोई जर्मन किताब न पढ़ी जाए। अन्य किताबें वैकल्पिक हैं।

व्यायाम: प्रतिदिन।

गाना: बहुत धीमे स्वर में, शाम छह बजे के बाद।

फ़िल्में: पहले से व्यवस्था करना ज़रूरी है।

पढ़ाई: शॉर्टहैंड में साप्ताहिक पत्रचार पाठ्यक्रम। अंग्रेज़ी, फ्रेंच, गणित और इतिहास दिन या रात में किसी भी समय। भुगतान अध्यापन के रूप में, उदाहरण, डच।

अलग विभाग छोटे घरेलू पालतुओं की देखभाल के लिए (कीटों के अलावा, जिनके लिए ख़ास परमिट की ज़रूरत है)।

भोजन का समय:

नाश्ता: प्रतिदिन सुबह 9 बजे, सार्वजनिक अवकाश व रविवार को छोड़कर; रविवार व सार्वजनिक अवकाश के दिनों में सुबह करीब 11:30 बजे।

दिन का भोजन: हल्का भोजन। 11:15 से 11:45 तक।

रात्रि भोजन: गर्म हो सकता है या फिर नहीं भी। खाने का समय समाचार प्रसारण पर निर्भर करता है।

आपूर्ति कोर के संदर्भ में दायित्व: निवासियों को दफ़्तर के काम में मदद के लिए हमेशा तैयार रहना होगा।

स्नान: रविवार सुबह 9 बजे के बाद सभी निवासियों को वाशटब उपलब्ध होगा। निवासी चाहें तो अपनी इच्छानुसार निचली मंज़िल पर मौजूद शौचालय, रसोईघर, प्राइवेट ऑफ़िस या फ्रंट ऑफ़िस का इस्तेमाल कर सकते हैं।

ऐल्कोहल: केवल चिकित्सा उद्देश्य के लिए।

समाप्त।

तुम्हारी, ऐन

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