सीढ़ी लगाकर बैंगन तोड़ना : डा. सिकरा दास तिर्की
Seedhi Lagakar Baingan Todna : Dr. Sikradas Tirkey
गाँव के नीचे के चौंरा खेतों का लेवा धान पक गया। लोगों ने उसे दीपावली के पहले ही काट लिया। फिर उन खेतों में बैंगन लगाने के लिए जल्दी से जोतकर तैयार कर लिया। तब उन्होंने उसमें बैंगन टमाटर रोपा। बैंगन को जिलाने के लिए चार-पाँच दिन सुबह में लोटा से पानी डाल-डालकर पटाया। अच्छी तरह पटा-जिला लेने के बाद दो-तीन बार उन्होंने उसे कोड़ा कर दिया। काँटेदार बैंगन जीने के बाद जैसा कोड़ा दिया वैसा ही बढ़ते गया। बाद में तो बिना पटाए ही साल भर फल देता रहता था। कभी-कभी अगहन और फाल्गुन मास में वर्षा होती थी, उस नमी से। जिस वर्ष जाड़े की ऋतु में वर्षा हुई तो दीपावली के पूर्व लगाया गया बैंगन फागुन मास के बाद सरहुल माह में भरखर फलने लगता था। इस वर्ष भी चौंराओं का बैंगन खूब फला हुआ था।
एक दिन बाजार था। धुचु अपने बैंगन बारी में बैंगन तोड़ रहा था। तोड़ते-तोड़ते उसको याद आई- “एक दिन मानव बैंगन को भी सीढ़ी लगाकर तोड़ेगा।” बुजुर्गों द्वारा कही गई इस बात को। फिर वह मन ही मन कहने लगा, “हाँ, यही तो बैंगन है जो जमीन में फला है और उन्होंने कहा है - "किसी युग में मनुष्य बैंगन को भी सीढ़ी लगाकर तोड़ेगा।"
बैंगन तोड़ते-तोड़ते सोचते विचारते वह कहने लगा, “वैसा तो कभी भी नही हो सकता है? भला, बैंगन को कोई सीढ़ी लगाकर तोड़ेगा? पता नहीं, किसी युग में शायद मनुष्य का आकार छोटा हो जाएगा। पर, वह कितना छोटा होगा। बैंगन तो जमीन में ही फला हुआ है। चीटियाँ भी सीढ़ी बेगर पहुँचेंगी।” वह इसी बात को सोचते जा रहा था और खोज-खोजकर तोड़ते जा रहा था। अचानक उसके ही बाँए हाथ में काँटा गड़ गया - “सूउ, हाय।" कहते हुए वह खड़ा हो गया। तब दाएं हाथ से काँटा नोच-नोचकर निकालने लगा। पर, वह नोच भी नहीं पा रहा था।
ठीक इसी समय धुचु के पिता मंगा स्नान करने के लिए बारी की ओर से ही उतर रहा था। कैसे देखा, वह खड़ा है। तब उसने कहा, “क्या हुआ बेटा?" तब धुचु बोला- “मुझको काँटा गड़ गया बाबा। आइए आप निकाल दीजिए! मैं नोच भी नहीं पा रहा हूँ। शायद आपका नाखून बढ़ा होगा तो। फिर उसके पिता ने बैंगन का काँटा उसकी उंगली से नोच कर निकाल दिया।
“तुम कैसे तोड़ रहे हो कि काँटा गड़ गया। एक छड़ी पकड़ो और बाँए हाथ से छड़ी से पौधों को पलटाओ, फिर दाएं हाथ से फल तोड़ो। तुमको काँटा कैसे गड़ेगा।" कहकर उसके पिताजी डोभा की ओर चला गया।
उसके बाद धुचु ने घेरा किया हुआ झाटी से छड़ी तोड़ लिया। अपने पिता के बताए जैसा ही बाएं हाथ से छड़ी से वह पौधों को उघराते जा रहा था और दाहिने हाथ से बैंगन तोड़ते जा रहा था। फिर विचार करते जा रहा था। किसी दिन..........बैंगन.........करके तोड़ेगा।"
यह सोचते-सोचते फिर मन में बोलने लगा- “हाँ, इसी छड़ी से पलट-पलटकर खोजने को ही शायद लोगों ने कहा है, किसी युग में मानव बैंगन को भी सीढ़ी लगाकर तोड़ेगा। परन्तु, इस छड़ी को भी तो सीढ़ी नहीं कहा जा सकता है।"
“यही बैंगन! तोड़ते समय भी काँटा गड़ता है, काटते समय भी काँटा गड़ता है। खाते समय भी काँटा गड़ता है। खाने में तो स्वादिष्ट होता है। बाद में खुजलाता है।” आगे फिर वह मन में सोचने-बोलने जा रहा था। इसी समय भाभी नातेदारी की एक मजाकिया महिला डाड़ी की ओर पानी लाने जा रही थी। वह मजाक से धुचु को बोली- “अरे धुचु बैंगन जादा मत तोड़ो, नहीं तो खुजलाएगा।"
“हाँ, यह तो सही बात है। परन्तु मुझे खुजलाएगा तो आप मुझको नहीं खुजला दीजिएगा?" जल्द ही मजाक से वह बोलते हुए जवाब दिया और दोनों हँस पड़े। “मेरे बाबा बजार ले जाएंगे। इसलिए मैं तोड़ने में व्यस्त हूँ।” धुचु ने फिर से बोला। परन्तु उसकी भाभी इस बात को सुन सकी या नहीं सुनी। वह डाड़ी की ओर चली गई।
पुनः कुछ देर में उसके पिताजी स्नान कर लौटे और धुचु से कहा“कहाँ बेटा, तुम ने तोड़ा या नहीं तोड़ा? मुझे बाजार के लिए देर हो रही है। सरहुल बाजार है। आज मैं जल्दी जाऊँगा, तब तो बैंगन जल्द बेचाएगा।"
“हाँ पिता जी, चलिए आप तैयार होते रहीए। मैं तुरन्त ही आता हूँ।" यह कहते हुए फिर मन ही मन तर्क करने लगा, “हाँ, सरहुल के लिए तो लोग बैंगन अवश्य ही खरीदते हैं। तब ही तो गाया गया है-
ढाल लो तुम, ढाल लो
कोचा का हड़िया, तुम ढाल लो।
परोस लो तुम, परोस लो
बैंगन का भूजा तुम परोस लो।।
कहते हुए उसने जल्द ही बैंगन तोड़ना बन्द किया और घर ले गया। उस, समय पहले बाजार दूर-दूर में हुआ करता था। वस्तुएं व धान-चावल तथा अन्य सामानों की खरीद-बिक्री के लिए दूर-दूर बाजार पैदल ही जाना-आना पड़ता था। धान-चावल आदि को बेचने के लिए सीका झोड़ी में खाँची और डालियों में जीतोड़ ढो-ढोकर ले जाना-आना पड़ता था। शरीर से पसीना होने तक। बार-बार मस्तक का पसीना पिंडली में पोंछते ले जाना पड़ता था। बेचाया तब तो लौटते हल्का पड़ता था, नहीं बेचाया तब तो दोबारा थक जाना पड़ता था। सिर्फ खरीदने के लिए बाजार जाना हो तो जाने में हल्का होता था और लौटने के समय भारी लगता था। खाली हाथ आने-जाने में भी चलने पर थकान तो होता ही था।
समय एक-सा नहीं रहता है। दिनों दिन बदलते चला गया है। धीरेधीरे साइकिल आ गई। घर-घर में साइकिल हो गई। बाजार हाट और मेले में लोग साइकिल से जाने लगे। ऐसा ही धीरे-धीरे से मोटर साइकिल या फटफटिया का प्रचार हुआ। गाँव-गाँव, घर-घर फटफटिया आ गई। फिर उसी प्रकार मोटर गाड़ी आई और आ रही है। धीरे-धीरे से सभी गाँव को पक्की सड़क से मिला दिया गया है, और मिलाया जा रहा है। शहर से गाँव और गाँव से शहर मोटर गाड़ी चलने लगी। सारे लोग मोटर गाड़ी से चलने लगे। पहले की तरह पैदल चलना, भार ढोना बन्द हो गया है। बाजार जाइए, मेला जाइए, शादी-विवाह जाइए, लोग मोटरगाड़ी व साइकिलों से आ-जा रहे हैं। और तो और सभी छोटे बड़े काम मशीनों के द्वारा होने लगा है।
वर्तमान युग में यह संसार छोटा गाँव सा बन गया है। आप अभी यहाँ हैं तो एक घंटा बाद दिल्ली में रहिएगा। थल में मोटर गाड़ी, रेल और आकाश में हवाई जहाज तथा समुद्र में पानी जहाज है। मनुष्य ने सर्वत्र विजय पा ली है। इस देश का आदमी दूसरे देश के व्यक्ति से परस्पर सीधे बातें कर रहा है। इस युग में मनुष्य कहाँ से कहाँ पहुँच गया है। वह चाँद तारों से बातें करने लगा है तो कैसे कहा जा सकता है कि “मानव किसी युग में बैंगन को भी सीढ़ी लगाकर तोड़ेगा।" वह मन ही मन सोचते जा रहा था।
अब तो धीरे-धीरे से और ही बदलने लगा। गाँव शहर बन गए। मनुष्य दिन-रात मेलों में सा दिखने लगे। उसी तरह मोटर गाड़ियों की वृद्धि हुई। दूसरे-दूसरे व्यापारियों और नौकरी करने वालों की वृद्धि हुई। सड़क किनारे मिठाई खाने वाले गाड़ी से ही खरीद खाने लगे हैं। उधर रास्ता बाधित है, कोई परवाह नहीं है। दूसरी ओर गाड़ीवाले, रिक्शावाले, साइकिल वाले व पैदल चलनेवाले परेशानी में हैं। वैसे तो गाड़ी को किनारे खड़ा कर मिठाइयाँ खरीदकर खायी जा सकती हैं। परन्तु गाड़ी के ऊपर से ही खरीदकर खाने की चाह है। रास्ता जाम है अथवा नहीं है, उसका कोई गम नहीं है। पहले साइकिल में चलता था। अब मोटरसाइकिल में चलने लगा। जो मोटर साइकिल में चलता था वो अब कार में चलने लगा। कितने लोग पैदल तो कितने लोग रिक्शा से चलने लगे।
फिर धुचु का मन सोचने लगा था हाँ! अब तो मैं समझ गया। बूढ़े-बुजुर्गों द्वारा कही गई बात, “किसी दिन आनेवाला मानव बैंगन को भी सीढ़ी लगाकर तोड़ेगा” का अर्थ । वह सत्य हुआ है इस कलयुग में। इन सारी बातों, यानी साइकिल, रिक्शा, मोटर गाड़ी, रेलगाड़ी वायुयान और पानी जहाज आदि के द्वारा खाद्य-पदार्थो को ले जाना और ले आना का मतलब ही है “सीढ़ी लगाकर बैंगन तोड़ना।” सरल से सरल काम भी जब मशीन के द्वारा ही होंगे तो उसका अर्थ है “सीढ़ी लगाकर बैंगन तोड़ना।"