Dr. Sikradas Tirkey डॉ. सिकरा दास तिर्की
भंडरा, खूटी के रहनेवाले डॉ. तिर्की मुंडारी भाषा-साहित्य में राँची विश्वविद्यालय से एम.ए. और पीएच.डी. करने के बाद रामलखन सिंह यादव
महाविद्यालय, राँची में व्याख्याता हैं। छात्र-जीवन से ही मुंडारी भाषा-साहित्य, संस्कृति एवं इतिहास के प्रति अगाध जिज्ञासा रखनेवाले डॉ. तिर्की उराँव
आदिवासी समुदाय से आते हैं, परंतु मुंडा क्षेत्र में पुरखौती निवास होने के कारण इनकी मातृभाषा मुंडारी है। साहित्य की सभी विधाओं में इनकी रचनाएँ
स्थानीय, क्षेत्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर के पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं मुंडारी एवं हिंदी दोनों ही भाषाओं में। इनकी प्रकाशित पुस्तकें हैं—बा चंडुअ
आन तोअउ, झारखंड के आदिवासी और उनके गोत्र, वन अधिनियम 2006 (अनुवाद), मुंडारी लोक साहित्य में इतिहास, मरङ गोमके जयपाल सिंह मुंडा (अनुवादित नाटक)।