पतझड़ अभी औेर भी है : वाल्टर भेंगरा ‘तरुण’

Patjhad Abhi Aur Bhi Hai : Walter Bhengra Tarun

दोपहर में बासी भात सनई और बोदी तियन के साथ खाने के बाद सुगनी अम्बा बगीचा आ गई थी।पतझड़ समाप्त होने को है, परंतु अभी भी सूखे पत्तों की कमी नहीं थी।पिछले साल घर के पिछवाड़े अरहर के बीज बोई थी, उनपर अच्छी फसल होने से चार पांच पइला दाल निकाल सकी थी वह।अरहर की सूखी टहनियों से बना झाड़ू पतुरा बटोरने के लिए बहुत उम्दा होता है।जल्दी ही उसने बांस की बनी अपनी बड़ी टोकरी सूखी पत्तियों से भर ली।

धान उबालने के लिए सूखे पत्ते बहुत सही होते हैं जलावन के रूप में।पास बैठे आग की गर्मी ठंडक भगाने में भी सहयोगी होती है।घर का कुत्ता ‘सेंदरा’ पास बैठा रहता है।जबसे रिमिल के आबा गुजरे, उनके खेतों में गांव का जोटो पालू काम कर रहा है।रिमिल के आबा जब तक थे तो आंगन में दो जोड़ी बैल हमेशा बंधे रहे।खूब मेहनत करते सभी और फसल भी होती भरपूर।खलिहान पूरा अगहन भरा रहता।

समय बदल गया है अब सुगनी का।बेटा रिमिल ने बुरूडीह की लड़की इपिल के साथ गांव के स्कूल में सातवीं तक पढ़ाई की।बाद में खूंटी से हाई स्कूल पूरी करने के बाद चाईबासा आई.टी.आई. की ट्रेनिंग के लिए चला गया।लेकिन इपिल से उसकी दोस्ती बनी रही।बड़े होने पर स्कूल की दोस्ती कब प्यार में बदल गई, पता ही नहीं चला।

‘रिमिल, तुम दिन भर इपिल के साथ समय गुजारते हो।क्यों नहीं हमेशा के लिए उसे अपने घर ले आते हो?’ एक दिन रिमिल की मां ने उससे कहा।

‘शादी की बात कर रही हो मां?’ रिमिल ने जवाब में सवाल ही दाग दिया। ‘अभी तो मैं अपने पैरों पर खड़ा भी नहीं हुआ हूँ, उसे पालूंगा कैसे?’

‘जिम्मेदारी तो निभानी पड़ेगी तुम्हें बेटा! लेकिन देर मत करना।बात बिगड़ते देर नहीं होती! दुनिया में जलने वालों की कमी नहीं आज।’ मां ने कहा।

‘रेलवे में नौकरी के लिए आवेदन भरा है।टेक्निकल पोस्ट है।उम्मीद है मुझे।परीक्षा के बाद इंटरव्यू देने कोलकाता जाना पड़ेगा।’

बात अई-गई हो गई।रिमिल दो बार कोलकाता हो भी आया।सुगनी घर में अकेली रह जाती, जब भी वह बाहर चला जाता।उसे तब रिमिल के आबा सुकन की याद बहुत आती।सुकन बहुत प्यार और जतन से रखता था उसे।जंगल से लकड़ी लाना हो या खेतों में काम, सुगनी के साथ हमेशा सुकन बगल में होता।लेकिन कुछ समय से सुकन काम की थकान के बहाने हंड़िया अधिक ही पीने लगा था।सुगनी ने कई बार कहा, ‘मैं घर में ही तुम्हारे लिए हंड़िया बना दूंगी, बाहर दूसरों के साथ मत जाना पीने के लिए।’

‘अरे सुगनी, तुम समझोगी नहीं।यह हंड़िया हमारे समाज में अकेले पीने की चीज नहीं है।इसे यार दोस्तों के साथ मिल बांट कर पिया जाता है।समझी!’ सुकन कहता।

‘लेकिन वहां जाकर हर रोज तुम हल्ला-शोर मचाते, गिरते-पड़ते घर लौटते हो।यह अच्छी बात नहीं है।मैं तुम्हें हंड़िया पीने से मना नहीं करती।मैं घर पर ही बना दिया करूंगी।खाना खाने के पहले दो-चार डुभा पी लेना।यहां-वहां भटकना भी नहीं पड़ेगा तुम्हें।खा-पीकर चुपचाप सो जाना!’ सुगनी ने उसे रोकने के लिए पूरी कोशिश की अपनी ओर से।

सुकन को बाहर जाकर पीने की लत लग गई थी।गांव के चार पांच बुजुर्ग शाम होते ही मंगरी के आंगन में जमा हो जाते।मंगरी हर रोज ताजा हंड़िया छानती साथ में अलग-अलग चखना का इंतजाम भी करती।कभी कटनौसी चना के साथ बनाती तो कभी खस्सी का मसालेदार भूना पचौनी परोसती हंड़िया के साथ।ऊपर से हँस हँस कर सबको हंडिया अपने हाथ से परोसती।ताजे सखुआ के पत्तों से बने दोना में।न धोने का झझट और न जूठा होने की बात।सबके लिए अलग-अलग दोना।

गांव के लोग हंड़िया पीते हुए सभी मसलों पर बहस करने लग जाते।चार दोना हंड़िया पीने के बाद तो सबकी आवाज ऊंची होने लगती।कई बार तो बहस में ताना-तानी हो जाती आपस में।मेरी बात सही कि तेरी बात! एक दो बार तो हाथापाई की नौबत भी आ गई।सोहराई को अपने शरीर की ताकत का हमेशा घमंड था।अकसर वह अपनी बाहें फड़फड़ाने लगता।अगर दो-चार लोग उसे काबू में न रखें, तो किसी को भी जमीन पर पटक सकता था वह।एक बार तो बिरसिंग को उठाकर पटक चुका था।सुगनी इसी बात से डरती थी कि किसी दिन अगर सोहराई के साथ सुकन की बहस हो गई, तो निश्चित रूप से रिमिल का आबा सुकन पटकनी खा जाएगा।इस आशंका के बीच एक दिन सचमुच मारपीट हो गई सोहराई और सुकन के बीच।

कराहता हुआ लौटा था उस शाम सुकन अपने घर।गिरता-पड़ता आंगन में पहुंच कर धड़ाम से गिर पड़ा।सुगनी मर्माहत हो उठी।बहुत मुश्किल से घर के अंदर किसी प्रकार ले आकर खजूर के पत्तों से बनी चटाई पर सुला पाई थी उसे।डोरी तेल हल्दी से मिलाकर वह हाथ व पैरों पर देर तक मालिश करती रही।पैरों में ज्यादा चोट थी, कहीं-कहीं नसें केंकड़े के पैरों की तरह खिंचकर मुड़ गई थीं।भेड़ी घी लेकर उंगलियों से मालिश करने पर भी चिहुंक उठता सुकन।कराहता रहा रात भर।इधर पास बैठी सुगनी सो नहीं पाई।पास बैठकर चूल्हे की आग में गमछा गर्म कर उसके पैरों को सेंकती रही।

अच्छा-सा घर परिवार चल रहा था।डायन-बिसाही पर विश्वास नहीं था, पर सुगनी को लगता किसी की बुरी नजर उसके परिवार को लग गई है।परेशान होकर चिंता में डूबती चली गई थी वह।उसकी यही चिंता कम होने के बदले बढ़ती चली जा रही थी।रिमिल का आबा सुकन किसी की बात नहीं सुनता! बात-बात पर चिड़चिड़ा हो जाता।चिल्ला उठता।हर किसी से लड़ने-भिड़ने लगता।रिमिल भी अपने आबा के बदले हुए रूप से खीजकर घर से दूर होने लगा था।किसी दोस्त के यहां जाकर रात बिताने लगा वह।

बुधवार की शाम थी।थोड़ी ठंडक थी हवा में।जलटंडा साप्ताहिक हाट से लौटते समय रास्ते में सुकन हंड़िया की जगह चुलाई दारू पी गया।गांव लौटते हुए शाम का धुंधलका गहरा चुका था।टोंगरी की पगडंडी पर लड़खड़ा कर चलते हुए वह चट्टान से फिसल कर नीचे गहराई में गिर कर बुरी तरह जख्मी हो गया।

कुछ लोगों ने उसे गड्ढे से निकाल कर घर पहुंचा दिया, वरना रात की ठंडक में उसी गड्ढे में पड़ा-पड़ा सिकुड़कर मर जाता वह।लेकिन सुगनी को भीतर-भीतर दिल में लगा कि सुकन के लिए यह अच्छा नहीं हुआ।बगल के सोमा को उसने पाण्डु गांव के वैद्य को बुला लाने के लिए कहा।

वैद्य ने आकर हड़जोड़ा और दूसरी जड़ी-बूटी पीस कर घुटने के पास पट्टी बांध दी।जाने से पहले वैद्य ने कहा कि सुबह पास के सरकारी अस्पताल ले जाना जरूरी है।

अगली सुबह मांझी के टेम्पो से रिमिल और उसके दोस्त सुकन को किसी तरह खूंटी सदर अस्पताल ले गए।तब तक डॉक्टर अपने चैंबर पर नहीं आए थे।इंतजार करना पड़ा।इस दौरान पीड़ा से कराहता रहा वह।डॉक्टर के आने पर एक्सरे किया गया।रिपोर्ट में अंदरूनी चोट के साथ दाहिने पैर में फ्रैक्चर मिला।प्राथमिक उपचार के बाद उसे रांची के बड़े अस्पताल रिम्स में आगे इलाज के लिए रेफर कर दिया।

‘चोट बहुत गंभीर है।’ डॉक्टर ने कहा। ‘बेहतर इलाज के लिए मैं इसे रिम्स रेफर कर रहा हूँ।’

रिमिल यह सुनकर असमंजस में पड़ गया कि किया क्या जाए!

‘आप लोग चिंता न करें।यहां से सरकारी अस्पताल के एंबुलेंस द्वारा रिम्स तक ले जाने की सुविधा मुफ्त है।मैंने इनके नि:शुल्क इलाज के लिए चिट्ठी लिख दी है।आपके साथ अस्पताल के दो स्टाफ रहेंगे।वे सारी व्यवस्था करने में वहां रांची में आपकी मदद करेंगे।आपको किसी बात की चिंता नहीं करनी पड़ेगी।’ डॉक्टर ने उन्हें आश्वस्त किया।

एंबुलेंस से रांची ले जाने के क्रम में जोड़ा पुल के निकट सुकन की हालत अचानक खराब हो गई।वह स्ट्रेचर पर एक ओर लुढ़क गया।वह चल बसा।

बहुत ही भारी मन से रिमिल और उसके साथी सुकन के निर्जीव शरीर को गांव ले आए।सुगनी ने यह देखा तो दहाड़ मार कर रोने लगी।

‘हाय ना गोड़े, तुमने मुझे अकेला छोड़ दिया।किसके साथ जियूंगी अब? हाय ना गोड़े! क्यों छोड़ दिया मुझे अकेले?’ गांव की महिलाएं सुगनी को संभालती रहीं।

जीवन का यह सबसे बड़ा पतझड़ था सुगनी के लिए।

आदिवासी समाज के पारंपरिक तरीके से सुकन के पार्थिव शरीर को उसके खेत में दफना दिया गया।उसकी कब्र में उसके कपड़े-लत्ते, कुछ रुपये, चावल-दाल और हंड़िया की एक छोटी हांडी भी डाली गई।पूरा गांव गमगीन था उस दिन।

रिमिल भी अब दोस्तों से कम ही मिलता।अपने कमरे में चुपचाप पड़ा रहता।रेलवे की नौकरी उसे नहीं मिली।कई दूसरी कंपनियों और फैक्ट्रियों में भी उसने आवेदन दे रखा था।लिखित परीक्षा में तो वह उत्तीर्ण हो जाता, लेकिन इंटरव्यू में असफल होता रहा।इन असफलताओं और अपने आबा के मरने के बाद वह अधिक मायूस-सा रहने लगा।

‘नौकरी तुम्हें कब मिलेगी यह तो पता नहीं, बेटा!’ एक शाम उसकी मां ने उससे कहा। ‘अपने खेत पड़े हैं।तुम मेहनत से खेती बारी का काम करो, तो हमारा अच्छा से गुजारा हो जाएगा।’

मां गो हम शहर में जाकर ही नौकरी करके कमाएंगे।खेती-बारी से अब तक कितना मिला हमें नौकरी करेंगे तो सब तरह की सुविधा पा सकते हैं हम। रिमिल को स्वयं पर इतना भरोसा था।

लेकिन महीनों गुजरते गए, नहीं मिली नौकरी उसे।गुमनाम अंधेरे जंगलों में भटकता रहा वह।उन्हीं दिनों कुछ लोग उनके गांव आए।वे गांव के लोगों को जागरूक कर रहे थे।हमें झारखंड में अपना जल, जंगल और जमीन बचाना है।अगर हमारे हाथों से यह जल, जंगल और जमीन चला गया, तो हम कहीं के नहीं रहेंगे।कुछ लोग जिनमें कल-कारखानों के दलालों के साथ सरकार के लोग भी हैं, हमारे गांवों को हमसे छीनकर यहां खदान कोड़ने लगेंगे।इसके लिए हम सभी गांव वासियों को एक होकर लड़ाई लड़नी पड़ेगी।हमारे खिलाफ चलाई जाने वाली योजनाओं का सामूहिक रूप से विरोध करना होगा।

बेरोजगार रिमिल को इन लोगों की बातें सही लगने लगीं।वह उन लोगों के आंदोलन में शामिल हो गया सक्रिय रूप से।आदिवासियों और ग्राम सभा के संवैधानिक अधिकारों को बड़े-बड़े पत्थरों पर लिखकर गांव के सीमान पर गाड़ा जाने लगा।यह ‘पत्थलगड़ी आंदोलन’ के रूप में गांव-गांव फैलने लगा।उस दिन आस-पास के बीस पड़हा गांवों की महा ग्रामसभा सेरेंगहातु में आयोजित की गई थी।नेताओं ने अपने जोशीले भाषणों में सरकारी योजनाओं का वहिष्कार करने की आवाज उठाई।कुछ लोगों ने उनकी बातों का समर्थन किया।लेकिन रिमिल को लगा कि संविधान की गरिमा को रखते हुए ही सरकारी योजनाओं को लेना चाहिए।वह असहमत था नेताओं की बातों से।

इसी बीच पास के थाने के सिपाहियों के आने से सभास्थल में व्यवधान पड़ गया।कुछ गर्म मिजाजी नौजवानों ने पुलिस को भगाने के लिए ढेला-पत्थर फेंकना शुरू कर दिया।पुलिस को भी हवा में गोली चलानी पड़ी।बंदूक की गोली चलते ही भगदड़ मच गई।अतिरिक्त पुलिस आने पर गांव के अनेक लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया।रिमिल को भी पकड़ कर पुलिस ले गई।

शांत सा गांव अशांत हो गया इस घटना के बाद।पुरुष अपने घरों को छोड़कर दूर के गांवों में छिप गए।इस तरह महीनों बीत गए।साल भी बिता।रिमिल का फिर कुछ पता नहीं चला।

बूढ़ी सुगनी बेबस अकेली पड़ गई थी गांव में।उसके लिए रिमिल का जाना मानो फिर से पतझड़ आ गया था उसके जीवन में!