Viswanatha Satyanarayana
विश्वनाथ सत्यनारायण

विश्वनाथ सत्यनारायण (10 सितंबर 1895 - 18 अक्टूबर 1976) 20 वीं शताब्दी तेलुगु लेखक थे। । उनकी रचनाओं में कविता , उपन्यास , नाटकीय नाटक , लघु कथाएँ और भाषण , की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है। इतिहास , दर्शन , धर्म , समाजशास्त्र , राजनीति विज्ञान , भाषा विज्ञान के विश्लेषण जैसे विषय। , मनोविज्ञान और चेतना अध्ययन , महामारी विज्ञान , सौंदर्यशास्त्र और आध्यात्मिकता । वह तिरुपति वेंकट कवलु की जोड़ी के शानदार तेलुगु लेखक चेल्लापिला वेंकट शास्त्री के छात्र थे। विश्वनाथ ने एक आधुनिक और शास्त्रीय शैली में जटिल तरीकों से लिखा है। उनकी लोकप्रिय रचनाओं में रामायण कल्पवरिक्षमु (रामायण इच्छा-अनुदान देने वाला दिव्य वृक्ष), किन्नरसनी पाटलु (मरमेड गीत) और उपन्यास वायुपदगालु (हज़ारों डाकू) । कई पुरस्कारों में, उन्हें 1970 में ज्ञानपीठ पुरस्कार , तेलुगु लेखक के लिए पहला, और 1971 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
विश्वनाथ सत्यनारायण की प्रतिभा बहुमुखी है। वे कवि, कहानीकार, नाटककार, समालोचक, पंडित, गुरु केरूप में सौ से अधिक ग्रंथों के लेखक हैं। प्राचीन संप्रदायों में उनका विकास हुआ, फिर भी वर्तमान युग के प्रभाव से अलग रहे। वे प्राचीन संस्कृति के चिह्न-वर्णाश्रम, धर्म, गुरु-भक्ति तथा अन्य प्राचीन संप्रदायों का प्रतिपादन करनेवाले कलाकार हैं। अपने सिद्धांतों और विश्वासों को निर्भयता के साथ पाठकों के सामने रखकर उसमें सफलता और यश प्राप्त करनेवाले बुद्धिमान् हैं। उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेकर कारावास की सजा भोगी है, अतः राष्ट्र-सेवक भी हैं। उनके 'वेयिपडगलु' नामक बृहत् उपन्यास को आंध्र विश्वविद्यालय से पुरस्कार प्राप्त हुआ है। उनके अन्य प्रसिद्ध उपन्यासों में 'एकवीर', 'जेबु दोंगलु', 'चेलियलिकट्ट', 'स्वर्गानिक निच्चेनलु', 'हाहा हूहू' इत्यादि हैं। उन्होंने कई छोटी कहानियाँ भी लिखी हैं। 'आंध्र प्रशस्ति', 'ऋतुसंहारम्', 'कोकिलम्म पेंडिल, 'किन्नेरसानि पाटलु', 'रामायण कल्पतरु' उनके काव्य-ग्रंथ हैं। उन्होंने नाटक लिखकर भी अपार यश प्राप्त किया है। आंध्रवासियों ने 'कवि-सम्राट' उपाधि देकर उनका उचित ही सम्मान किया है।