चामर-ग्राहिणी (कहानी) : विश्वनाथ सत्यनारायण
Chamar-Grahini (Telugu Story in Hindi) : Viswanatha Satyanarayana
शालिवाहन शक का 102वाँ वर्ष। रोम नगर में उस दिन एक महल के सामने लोगों की बड़ी भीड़ जमा थी। उस उत्सव का कारण हेलीना नामक एक रूपवती का दो मास–पर्यंत जनशून्य बड़े-बड़े मरुस्थलों को पार करते हुए यात्रा समाप्त कर रोम नगर में प्रवेश करना था। वह चार वर्ष पूर्व आंध्र-चक्रवर्ती गौतमी–पुत्र श्री शातकर्णी के यहाँ चामर-ग्राहिणी बनकर गई थी। उसके वापस लौटकर आने के उपलक्ष्य में ही इस उत्सव का आयोजन था।
जब वह चार वर्ष पूर्व आंध्र देश में गई थी, उस समय रोम नगर में एक शानदार जलसा मनाया गया था और उसे सम्मानित करके बिदा किया गया था। साधारणतः जो सुंदरियाँ चामर-ग्राहिणी बनकर जाती हैं, वे 15 वर्ष पर्यंत नहीं लौटतीं। परंतु हेलीना चार ही वर्षों में वापस लौट आई है। वह इतने अल्प समय में क्यो वापस आ गई, किसी को पता नहीं, पर उतने दूर देश से आई हुई महिला द्वारा भारत और आंध्र देश के समाचार जानने की उत्कट अभिलाषा से ही जनता उसके घर पर एकत्र हुई थी। वह बड़ी धनी होगी। आंध्र देश से मोती, हीरे-जवाहरात, रेशमी वस्त्र, दंत-सामग्री, कस्तूरी, इलायची, लवंग इत्यादि अपूर्व द्रव्य अपने साथ लाई होगी। इन अपूर्व द्रव्यों को आंध्र के व्यापारी साल में एक बार लाकर रोम में बेचा करते हैं। उनका मूल्य अधिक होने के कारण बड़े-बड़े रईस और श्रीमंत ही उन्हें खरीदा करते हैं। साधारण प्रजा ने उन्हें देख तक नहीं। लौंग और इलायची के स्वाद से भी वहाँ के अधिकांश लोग अपरिचित हैं। जायपत्ती और लौंग के सेवन से जिह्वा में होनेवाली रसास्वाद की अनुभूति का उन्हें अनुभव नहीं। इस स्वाद का परिचय देनेवाला शब्द भी उनकी भाषा में नहीं है। इसलिए जनता उसके स्वाद और सुगंधि से भी अपरिचित है।
हेलीना साधारण परिवार की लड़की है। उसे गुदड़ी में प्राप्त माणिक कह सकते हैं। रोम नगर के कई धनिकों ने उसे पाना चाहा; लेकिन चार वर्ष पूर्व आंध्र-चक्रवर्ती के अधिकारी चामर-ग्राहिणियों की खोज में आए थे। साधारणतः चामर-ग्राहिणियों के चुनाव में जमीदारों तथा राजवंशीय पुत्रियों को ही प्रधानता दी जाती है। पर हेलीना साधारण परिवार की कन्या होने पर भी अपूर्व सौंदर्यवती होने के कारण तथा अधिकांश लोगों की सिफारिश पर आंध्र साम्राज्य के अधिकारियों ने उसे ले जाना अंगीकार किया था। किंतु उन लोगों ने एक शर्त रखी थी। वह यह थी कि यदि चक्रवर्ती हेलीना को राजवंशिनी न होने के कारण स्वीकार करने से इनकार करें तो दूसरे वर्ष ही उसे व्यापारियों के काफिले के साथ वापस भेज दिया जाएगा। ये व्यापारी-जत्थे आंध्र देश से साल में एक बार रोम जाया करते थे।
आंध्र-चक्रवर्ती एक चामर-ग्राहिणी को स्वीकार करने पर उसके परिवार को 20 मन हीरे-जवाहरात तथा मोती दिया करते थे। शेष 40 मन सुगंधित द्रव्य दिया करते थे। वह साधारणत: 15 वर्ष चक्रवर्ती की चामर-ग्राहिणी बनकर रहा करती थी। चक्रवर्ती स्वीकार करते समय उसकी उम्र 16 वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए।
हेलीना को महाराज ने स्वीकार किया। उसका प्रधान कारण हेलीना का सौंदर्य ही है। उसकी देह-कांति सफेद नहीं-चंद्रमा को सान पर चढ़ा शहद में भिगोए जैसी है। भ्रमर जैसे केश। उसका समस्त सौंदर्य उसके विशाल नेत्रों में मूर्तिभूत है। उसकी पुतलियों की कांति अपूर्व एवं अद्भुत है। उस रूपसी को देखने पर चक्रवर्ती ने अंगीकार ही नहीं किया; बल्कि उसे प्रधान चामर-ग्राहिणी बनाया।
चामर-ग्राहिणियाँ अंत:पुर की स्त्रियाँ थीं। उनके भोग राज–भोग थे। वे बाहर निकलतीं तो पालकियों पर जातीं। कोई कभी आँख उठाकर उन्हें देख नहीं सकता। यदि कोई उन्हें चामर-ग्राहिणियाँ न समझे तो राज कन्याएँ ही मान लेगा। उनके शरीर पर शोभित होनेवाले आभूषण रत्नमय तथा उनके धारण करनेवाली साड़ियाँ स्वर्णमय हुआ करती थीं। चक्रवर्ती सदा उनकी इच्छाएँ पूर्ण करते थे। उन दिनों में नारी होकर जन्म लेने में दो चरितार्थ थे। प्रथम आंध्र–चक्रवर्ती की रानी होना और द्वितीय चामर-ग्राहिणी बनना। हेलीना गत चार वर्षों से अपने माता-पिता को अमूल्य रत्न, कस्तूरी, जायपत्ती, लौंग, इलायची, पान, तथा सुपारी इत्यादि भेजा करती थी। उनके माता-पिता भी उनका स्वाद रोमवासियों को चखाते थे। जिन लोगों ने स्वाद चखा, वे हेलीना के माता-पिता के भाग्य की सराहना करते थे। अन्य लोग उनके स्वाद से परिचित होने को लालायित रहते थे।
ऐसी स्थिति में हेलीना घर आई। लौटते समय दो ऊँटों पर अपना सामान लादकर लाई थी। लोगों की यह धारणा थी कि हेलीना उन सबको अपने नगरवासियों में बाँटनेवाली है। फिर जनता एकत्र क्यों न होगी?
हेलीना को चार दिन तक आराम नहीं मिला। अपने साथ लाई हुई भारतीय वस्तुओं के प्रदर्शन तथा थोड़ा सा उनका स्वाद चखाने में वह लगी रही। दस दिन तक यह कार्य चलता रहा।
इन दस दिनों से डार्टिमो बराबर हेलीना के घर आता रहा। डार्टिमो एक संपन्न जमींदार का पुत्र था। हेलीना चामर-ग्राहिणी बनकर जाने के पहले ही डार्टिमो ने उससे प्रेम किया था। हेलीना का प्रेम पाने को डार्टिमो ने अनेक प्रयत्न किए थे। हेलीना एक सामान्य परिवार की लड़की है। एक जमींदार के पुत्र का हेलीना से विवाह करने से बढ़कर उसके माता-पिता को और क्या चाहिए? सब इस संबंध को चाहते थे, पर हेलीना का हृदय विकल था। उसने डार्मिमो के प्रेम का तिरस्कार किया। वह इस बात को प्रकट भी नहीं कर सकती, न वह प्रेम का इनकार भी कर सकती और उसे स्वीकार ही कर सकती थी। वह यह मानती थी कि इस पृथ्वी पर उससे बढ़कर और कोई सौंदर्यवती शायद ही होगी।
सौंदर्य और विवेक के लिए आत्मज्ञान अधिक होता है और आत्माभिमान भी। उसके हृदय में एक उत्कट महत्त्वाकांक्षी थी—एक चक्रवर्ती की पत्नी बनने की। जब वह चामर-ग्राहिणी बनकर जा रही थी, उस समय उसने कल्पना की थी कि उसकी इच्छा अवश्य पूर्ण होगी। उसके माता-पिता को धन पाने की आशा थी, पर अपनी पुत्री का दूर देशों में जाना उतना पसंद नहीं था। हेलीना के हठ करते ही उन लोगों ने उसकी बात मान ली थी। उन्हें मालूम था कि चामर-ग्राहिणियाँ कदापि चक्रवर्ती की पत्नियाँ नहीं बन सकतीं। पुनः उसकी पुत्री वापस लौटकर आ भी सकती है, नहीं भी आ सकती है। कुछ चामर-ग्राहिणियाँ अपनी 35वीं अथवा 36वीं वर्ष की अवस्था में विवाह कर आंध्र—देश में ही रह जाती हैं। नृत्य-गीत इत्यादि का अभ्यास कर उस कला से ही जीवनयापन किया करती हैं। हेलीना यदि वापस लौटकर भी आती है तो उसकी अवस्था अधिक होगी। ऐसी दशा में यहाँ पर विवाह होना कठिन है; लेकिन जीवन–पर्यंत संपत्ति का सुखानुभव कर सकती है।
उस देश में डेल्फाव नामक ग्राम में एक भविष्यवक्ता ज्योतिषी रहता था। उससे हेलीना ने अपनी 15 साल की उम्र में जाकर अपना भविष्य पूछा था। कहा गया था कि वह एक चक्रवर्ती के यहाँ अंत:पुर में रहेगी। उसका मतलब हेलीना ने चक्रवर्ती पत्नी होना लगाया।
हेलीना के वापस लौट आने पर अकेले डार्टिमो ने ही संतोष प्राप्त किया। लड़की के माता-पिता को संपत्ति के आगम का द्वार बंद हो जाने का दुःख हुआ। लेकिन इस बात का उन्हें हर्ष था कि हेलीना वापस आते-आते बहुत सी संपत्ति लाएगी, जिससे वे अधिकांश जमींदारों की अपेक्षा ज्यादा धनी होंगे। उस धन से एक अच्छी सी जमींदारी खरीदी जा सकती है। फिर उन्होंने अपनी पुत्री के भाग्य के फूटने का अनुभव किया। डार्टिमो ने भी अपने भाग्य को फूटा हुआ सा अनुभव किया।
डार्टिमो के माता-पिता को यह कतई पसंद नहीं था। पहले हेलीना के सौंदर्य पर मुग्ध हो उन लोगों ने अपनी बहू के रूप में स्वीकार करने की संपत्ति भी दी थी। परंतु आज उन्हें यह पसंद नहीं था। उनका यह मनोभाव है कि चामर-ग्राहिणी चक्रवर्ती की पत्नी ही मानी जाती है। पूर्णरूप से पत्नी न हो, फिर भी पत्नी जैसी ही है। चामर-ग्राहिणी के माने वह राज-रानी नहीं। चामर मृग नामक एक जाति के हरिण भारत में हो हैं। उनकी पूँछे बड़े जूड़ों सी होती हैं। उन रत्नजटित सुवर्ण दंडों में बँधे हुए जूड़ों को लेकर नारियाँ चक्रवर्ती के दोनों तरफ खड़ी हो जाती हैं और चँवर डुलाती रहती हैं। सम्राट के सिंहासन पर विराजमान होते ही यह कार्य होता है। अन्य समयों में उन्हें कोई काम नहीं रहता। चामर-ग्राहिणियों की खोज में जब आंध्र के अधिकारी आए थे, उस समय उन लोगों ने कहा था कि चामर-ग्राहिणियों और चक्रवर्तियों के बीच कोई संबंध नहीं रहता। साधारण प्रजा इस पर विश्वास नहीं करती। इसलिए डार्टिमो के माता-पिता का उद्देश्य है कि हेलीना चक्रवर्ती की पत्नी ही है। यही कारण है कि वे डार्टिमो के विवाह में संपत्ति नहीं देते हैं।
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चाहती थी। मैं इस कहानी को तुम्हें सुनाकर तुमसे पुनः प्रेम न कर सकने के पाप का प्रायश्चित्त करूँगी।
"तुम्हें मालूम है कि मैं अत्यन्त रूपवती हूँ। इस पर मेरे अभिमान की सीमा नहीं है। इसलिए भगवान् ने मेरे घमंड का इस प्रकार दंड दिया है। जब से होश सँभाला, तभी से मैंने निश्चय किया कि मैं एक चक्रवर्ती की ही पत्नी हो सकती हूँ। किसी अन्य की कदापि नहीं। चामर-ग्राहिणी के कर्तव्य का परिचय देने पर मैंने अधिकारियों की बातों पर विश्वास नहीं किया। उस चक्रवर्ती के हृदय पर अधिकार कर सकने का अहंकार मेरे मन में था; लेकिन आंध्र देश में पहुँचने तक मेरे मन में यह भय बना रहा था कि वहाँ पर मुझसे भी बढ़कर रूपवतियाँ होंगी। पर मुझसे बढ़कर कोई सौंदर्यवती उस देश में न थी, इस बात के साक्षी स्वयं आंध्र-चक्रवर्ती ही हैं। मेरे सौंदर्य पर प्राकृत भाषा के कवियों ने कविता की। चित्रकारों ने मेरे चित्र तैयार किए। शिल्पियों ने मेरी मूर्तियाँ गढ़ीं। चक्रवर्ती के अंत:पुर में वसंत ऋतु में सौंदर्योत्सव मनाए जाते हैं। उन उत्सवों की रानी मैं ही थी। चक्रवर्तीत्व के प्रति जो सम्मान व मर्यादाएँ होती हैं, वे सब मेरे प्रति भी हुआ करती थीं। मेरे नेत्रों में आरती उतारते थे। मुझे देखने के लिए बड़े-बड़े राजा-महाराजा चक्रवर्ती की राजसभा में आया करते थे।
"मेरा मन चक्रवर्ती पर अनुरक्त था। भाई डार्टिमो! वे चक्रवर्ती केवल अधिकार-बल से ही चक्रवर्ती नहीं थे, वरन् वे समस्त पुरुष-सौंदर्य का मूर्तरूप थे। उनके सौंदर्य के सामने मेरा सौंदर्य ही क्या है? हे डार्टिमो! मैं अपने दुर्भाग्य का परिचय कैसे दूँ। वे चक्रवर्ती एक पत्नी-व्रती हैं। अकसर हम सुना करते हैं कि प्राच्य देश के राजा अनेक पत्नियाँ रखते हैं। यह बात सत्य नहीं। यदि किसी राजा के दो-तीन रानियाँ हों, तो भी उन पत्नियों को छोड़ अन्य स्त्रियों की वे कामना नहीं करते। वे महान् नीतिज्ञ हैं। उन देशों के संबंध में हम जो कुछ भी बुरा सोचा करते हैं, वह ठीक नहीं। वह एक दिव्य जाति है।
मुझे इस बात का आश्चर्य है कि वे चक्रवर्ती मेरे सौंदर्य की आराधना करते हुए मेरे प्रेम को नहीं पाते। मेरे सौंदर्य के वास्ते एक चक्रवर्ती की पत्नी के जैसा मेरा आदर करते थे। सौंदर्य नामक यदि कोई साम्राज्य है, तो मैं उसकी महाराज्ञी थी। अन्य विषयों में मैं किसी काम की नहीं। चक्रवर्ती और उनकी पत्नी दोनों मेरे सौंदर्य पर मुग्ध थे, पर चक्रवर्ती कभी भी मेरी तरफ प्रेम भरी दृष्टि नहीं दौड़ाते थे। मेरा स्पर्श करते हुए आगे न बढ़ते, मेरा हाथ पकड़ने का प्रयत्न न करते। मेरे पास बैठे रहने की इच्छा भी उनमें नहीं थी।
मैं अपनी बात क्या कहूँ? मेरा हृदय चक्रवर्तीमय हो गया था। मुझे निद्रा नहीं आती थी, भोजन करने की इच्छा तक नहीं होती थी। मेरा सारा जीवन अंधकारमय हो गया। मेरी इच्छा होती कि सदा चक्रवर्ती दरबार लगाए रहें। उसी समय उनके दर्शन होते हैं और वर्ष में एक बार वसंतोत्सव के समय में भी। भाई डार्टिमो! मैं अब तक मर जाती। नींद और अपनी कामना पूर्ति के अभाव में मेरा शरीर शुष्क हो गया था, पर दरबार में चक्रवर्ती के दर्शन होते ही मेरा शरीर प्रफुल्लता के मारे पुष्ट प्रतीत होता था। ऐसा लगता था, मानो उनके नेत्र अमृत की निधि ही हैं!
इस प्रकार चार वर्ष तक मैंने सहन किया। इसके बाद मुझ में सहनशीलता नहीं रही। डार्टिमो! तुम्हारी सहनशीलता के लिए शत-शत नमस्कार है। मुझसे इतना प्रेम-विधान कि आठ वर्ष तक सहन करते रहे, जीवन पर्यंत भी सहन कर सकते हो। इसलिए हम दोनों के प्रेम की तुलना नहीं हो सकती। हे भाई! इसलिए हम दोनों का संबंध उचित नहीं। तुम प्रेम से पूर्ण हो, मैं क्षमाविहीन नारी हूँ।
एक दिन मैं चक्रवर्ती के बिस्तर के पास पहुँची। अंत:पुर की स्त्रियाँ उस दिन उत्सव मना रही थीं। महारानी उस दिन चक्रवर्ती के यहाँ जानेवाली थीं। उन्होंने इस आशय की खबर भेज दी थी, पर आधी रात के समय महारानी को मालूम हुआ कि वह अब किसी कारणवश नहीं जा सकतीं। यह समाचार चक्रवर्ती तक पहुँचाने के लिए महारानी ने किसी को भेजा। उस समय मैं चक्रवर्ती के कमरे के पास थी। चक्रवर्ती सो रहे थे। मेरे मन में एक इच्छा पैदा हुई। मेरे आलिंगन के बंधन में तथा मेरे चुंबनों की गरमी में जाग्रत चक्रवर्ती ने कैसे पता लगा लिया कि उनके आलिंगन में स्थित मैं महारानी नहीं हूँ, मुझे ज्ञात नहीं। मैंने मणिमय दीपक पर गाढ़ा कपड़ा ओढ़ाकर सारे कमरे को अंधकारमय बना दिया।
दूसरे ही क्षण मैं दीपक के प्रकाश में खड़ी थी। वे चक्रवर्ती मेरे प्रति प्रेमविहीन थे, पर दयाविहीन नहीं। हे डार्टिमो! उस अपराध के लिए फाँसी की सजा दी जाती है। चक्रवर्ती छोड़ भी दें, पर महारानी नहीं छोड़तीं। सजा भोगनी ही पड़ती है।
मेरी चामर-ग्राहिणी की नौकरी चली गई। एक सप्ताह भर में पुत्री को ससुराल भेजने की भाँति मेरे साथ फौज का रक्षण देकर, दो ऊँटों पर बड़ी संपत्ति लदवाकर चक्रवर्ती और उनकी पत्नी ने मुझे अपने माता-पिता के घर भेज दिया।
इस समय सारा जगत् अंधकारावृत्त था। गिरि-शिखर के एक वृक्ष पर बैठा एक उल्लू बोल रहा था।