Kota Shivaram Karanth
कोटा शिवराम कारंत
कोटा शिवराम कारंत (10 अक्टूबर, 1902, कोटा, कर्नाटक; मृत्यु- 9 दिसम्बर, 1997, उडुपी) कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार थे।
अपने कला विषयक ज्ञान के बल पर उन्होंने यक्षगान के अंतरंग में प्रवेश करने का साहस किया। कला विषयक क्षेत्र में शिवराम कारंत का योगदान
महत्त्वपूर्ण माना जाता है। उन्होंने अपनी पैनी दृष्टि से बहुत पहले ही भांप लिया था कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली में क्या कमी और दोष हैं और फिर
अवसर आते ही अपने विचार को व्यावहारिक रूप देने के लिए वह स्वयं पाठ्य पुस्तकें लिखने, शब्दकोशों तथा विश्वकोशों को तैयार करने में जी
जान से जुट पड़े थे।
कृतियाँ- नाटक : कर्णार्जुन (1927), नारद गर्वभंग (1932), नवीन नाटकगलु (1946), मंगलारति (1956), कीचक सैरंध्री (1970).
कहानी : हसिवु (1931), हावु (1931), गद्य-ज्ञान (1932), मैगल्लन दिनचरियिंद (1951).
आत्मकथा : हुच्चु मनस्सिन हत्तु मुखगलु.
यात्रा-वृतांत : चित्रमय दक्षिण कन्नड़ (1934)
कला विषयक : भारतीय चित्रकले (1930), यक्षगान (1971), चालुक्य वास्तुशिल्प (1969), भारतीय वास्तुशिल्प (1975), कला प्रपंच (1978).
उपन्यास : देवदूतरु (1928), सरसम्मन समाधि (1937), मुगिद युद्ध(1945), कुडियर कूसु (1951), गोंडारण्य (1954), जगदोद्धारना (1960),
उक्किदा नोरे (1970), केवल मनुष्यरु (1971), मृत्युजन्म (1974), मूकज्जी (1979)
निबंध : ज्ञान, चिक्कदोड्डवरू, हल्लिय हत्तु समस्तरु
विश्व कोश, शब्दकोश व ज्ञान विषयक : बाल प्रपंच (1936), सिरिगन्नड अर्थकोश (1941), विज्ञान प्रपंच (1956), विचित्र खगोल(1965).
सम्मान और पुरस्कार : शिवराम कारंत को 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया गया था, किंतु उन्होंने आपात काल के दौरान इसे लौटा दिया।
वर्ष 1959 में उन्हें 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' से सम्मानित किया गया। इसके बाद वर्ष 1977 में 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' से भी उनका सम्मान किया गया था।