दुख (रूसी कहानी) : आंतोन चेखव
Grief (Russian Story) : Anton Chekhov
'मैं अपना दुखड़ा किसे सुनाऊँ?'
शाम के धुँधलके का समय है। सड़क के खंभों की रोशनी के चारों ओर बर्फ की एक गीली और मोटी परत धीरे-धीरे फैलती जा रही है। बर्फबारी के कारण कोचवान योना पोतापोव किसी सफेद प्रेत-सा दिखने लगा है। आदमी की देह जितनी भी मुड़ कर एक हो सकती है, उतनी उसने कर रखी है। वह अपनी घोड़ागाड़ी पर चुपचाप बिना हिले-डुले बैठा हुआ है। बर्फ से ढका हुआ उसका छोटा-सा घोड़ा भी अब पूरी तरह सफेद दिख रहा है। वह भी बिना हिले-डुले खड़ा है। उसकी स्थिरता, दुबली-पतली काया और लकड़ी की तरह तनी सीधी टाँगें ऐसा आभास दिला रही हैं जैसे वह कोई सस्ता-सा मरियल घोड़ा हो।
योना और उसका छोटा-सा घोड़ा, दोनों ही बहुत देर से अपनी जगह से नहीं हिले हैं। वे खाने के समय से पहले ही अपने बाड़े से निकल आए थे, पर अभी तक उन्हें कोई सवारी नहीं मिली है।
'ओ गाड़ी वाले, विबोर्ग चलोगे क्या?' योना अचानक सुनता है,
'विबोर्ग!'
हड़बड़ाहट में वह अपनी जगह से उछल जाता है। अपनी आँखों पर जमा हो रही बर्फ के बीच से वह धूसर रंग के कोट में एक अफसर को देखता है, जिसके सिर पर उसकी टोपी चमक रही है।
'विबोर्ग!' अफसर एक बार फिर कहता है। 'अरे, सो रहे हो क्या? मुझे विबोर्ग जाना है।'
चलने की तैयारी में योना घोड़े की लगाम खींचता है। घोड़े की गर्दन और पीठ पर पड़ी बर्फ की परतें नीचे गिर जाती हैं। अफसर पीछे बैठ जाता है। कोचवान घोड़े को पुचकारते हुए उसे आगे बढ़ने का आदेश देता है। घोड़ा पहले अपनी गर्दन सीधी करता है, फिर लकड़ी की तरह सख्त दिख रही अपनी टाँगों को मोड़ता है और अंत में अपनी अनिश्चयी शैली में आगे बढ़ना शुरू कर देता है। योना ज्यों ही घोड़ा-गाड़ी आगे बढ़ाता है, अँधेरे में आ-जा रही भीड़ में से उसे सुनाई देता है, 'अबे, क्या कर रहा है, जानवर कहीं का! इसे कहाँ ले जा रहा है, मूर्ख! दाएँ मोड़!'
'तुम्हें तो गाड़ी चलाना ही नहीं आता! दाहिनी ओर रहो!' पीछे बैठा अफसर गुस्से से चीखता है।
फिर रुक कर, थोड़े संयत स्वर में वह कहता है, 'कितने बदमाश हैं... सब के सब!' और मजाक करने की कोशिश करते हुए वह आगे बोलता है, 'लगता है, सब ने कसम खा ली है कि या तो तुम्हें धकेलना है या फिर तुम्हारे घोड़े के नीचे आ कर ही दम लेना है!'
कोचवान योना मुड़ कर अफसर की ओर देखता है। उसके होठ जरा-सा हिलते हैं। शायद वह कुछ कहना चाहता है।
'क्या कहना चाहते हो तुम? 'अफसर उससे पूछता है।
योना जबर्दस्ती अपने चेहरे पर एक मुस्कराहट ले आता है, और कोशिश करके फटी आवाज में कहता है, 'मेरा इकलौता बेटा बारिन इस हफ्ते गुजर गया साहब!'
'अच्छा! कैसे मर गया वह?'
योना अपनी सवारी की ओर पूरी तरह मुड़ कर बोलता है, 'क्या कहूँ, साहब। डॉक्टर तो कह रहे थे, सिर्फ तेज बुखार था। बेचारा तीन दिन तक अस्पताल में पड़ा तड़पता रहा और फिर हमें छोड़ कर चला गया... भगवान की मर्जी के आगे किसकी चलती है!'
'अरे, शैतान की औलाद, ठीक से मोड़!' अँधेरे में कोई चिल्लाया, 'अबे ओ बुड्ढे, तेरी अक्ल क्या घास चरने गई है? अपनी आँखों से काम क्यों नहीं लेता?'
'जरा तेज चलाओ घोड़ा... और तेज...' अफसर चीखा, 'नहीं तो हम कल तक भी नहीं पहुँच पाएँगे! जरा और तेज!' कोचवान एक बार फिर अपनी गर्दन ठीक करता है, सीधा हो कर बैठता है और रुखाई से अपना चाबुक हिलाता है। बीच-बीच में वह कई बार पीछे मुड़ कर अपनी सवारी की तरफ देखता है, लेकिन उस अफसर ने अब अपनी आँखें बंद कर ली हैं। साफ लग रहा है कि वह इस समय कुछ भी सुनना नहीं चाहता।
अफसर को विबोर्ग पहुँचा कर योना शराबखाने के पास गाड़ी खड़ी कर देता है, और एक बार फिर उकड़ूँ हो कर सीट पर दुबक जाता है। दो घंटे बीत जाते हैं। तभी फुटपाथ पर पतले रबड़ के जूतों के घिसने की 'चूँ-चूँ, चीं-चीं' आवाज के साथ तीन लड़के झगड़ते हुए वहाँ आते हैं। उन किशोरों में से दो लंबे और दुबले-पतले हैं जबकि तीसरा थोड़ा कुबड़ा और नाटा है।
'ओ गाड़ीवाले! पुलिस ब्रिज चलोगे क्या?' कुबड़ा लड़का कर्कश स्वर में पूछता है। 'हम तुम्हें बीस कोपेक देंगे।'
योना घोड़े की लगाम खींचकर उसे आवाज लगाता है, जो चलने का निर्देश है। हालाँकि इतनी दूरी के लिए बीस कोपेक ठीक भाड़ा नहीं है, पर एक रूबल हो या पाँच कोपेक हों, उसे अब कोई एतराज नहीं... उसके लिए अब सब एक ही है। तीनों किशोर सीट पर एक साथ बैठने के लिए आपस में काफी गाली-गलौज और धक्कम-धक्का करते हैं। बहुत सारी बहस और बदमिजाजी के बाद अंत में वे इस नतीजे पर पहुँचते हैं कि कुबड़े लड़के को खड़ा रहना चाहिए क्योंकि वही सबसे ठिगना है।
'ठीक है, अब तेज चलाओ! 'कुबड़ा लड़का नाक से बोलता है। वह अपनी जगह ले लेता है, जिससे उसकी साँस योना की गर्दन पर पड़ती है। 'तुम्हारी ऐसी की तैसी! क्या सारे रास्ते तुम इसी ढेंचू रफ्तार से चलोगे? क्यों न तुम्हारी गर्दन...!'
'दर्द के मारे मेरा तो सिर फटा जा रहा है,' उनमें से एक लंबा लड़का कहता है। 'कल रात दोंकमासोव के यहाँ मैंने और वास्का ने कोंयाक की पूरी चार बोतलें चढ़ा लीं।'
'मुझे समझ में नहीं आता कि आखिर तुम इतना झूठ क्यों बोलते हो? तुम एक दुष्ट व्यक्ति की तरह झूठे हो!' दूसरा लंबा लड़का गुस्से में बोला।
'भगवान कसम! मैं सच कह रहा हूँ!'
'हाँ, हाँ, क्यों नहीं! तुम्हारी बात में उतनी ही सच्चाई है जितनी इसमें कि सुई की नोक में से ऊँट निकल सकता है!'
'हें, हें, हें... आप सब कितने मजाकिया हैं!' योना खीसें निपोर कर बोलता है।
'अरे, भाड़ में जाओ तुम!' कुबड़ा क्रुद्ध हो जाता है। 'बुढ़ऊ, तुम हमें कब तक पहुँचाओगे? चलाने का यह कौन-सा तरीका है? कभी चाबुक का इस्तेमाल भी कर लिया करो! जरा जोर से चाबुक चलाओ, मियाँ! तुम आदमी हो या आदमी की दुम!'
योना यूँ तो लोगों को देख रहा है, पर धीरे-धीरे अकेलेपन का एक तीव्र एहसास उसे ग्रसता चला जा रहा है। कुबड़ा फिर से गालियाँ बकने लगा है। लंबे लड़कों ने किसी लड़की नादेज्दा पेत्रोवना के बारे में बात करनी शुरू कर दी है।
योना उनकी ओर कई बार देखता है। वह किसी क्षणिक चुप्पी की प्रतीक्षा के बाद मुड़कर बुदबुदाता है, 'मेरा बेटा... इस हफ्ते गुजर गया।'
'हम सबको एक दिन मरना है। 'कुबड़े ने ठंडी साँस ली और खाँसी के एक दौरे के बाद होठ पोंछे। 'अरे, जरा जल्दी चलाओ... खूब तेज! दोस्तो, मैं इस धीमी रफ्तार पर चलने को तैयार नहीं। आखिर इस तरह यह हम सबको कब तक पहुँचाएगा?'
'अरे, अपने इस घोड़े की गर्दन थोड़ी गुदगुदाओ!'
'सुन लिया... बुड्ढे! ओ नर्क के कीड़े! मैं तुम्हारी गर्दन की हड्डियाँ तोड़ दूँगा! अगर तुम जैसों की खुशामद करते रहे तो हमें पैदल चलना पड़ जाएगा! सुन रहे हो न बुढ़ऊ! सुअर की औलाद! तुम पर कुछ असर पड़ रहा है या नहीं?'
योना इन शाब्दिक प्रहारों को सुन तो रहा है, पर महसूस नहीं कर रहा।
वह 'हें, हें' करके हँसता है। 'आप साहब लोग हैं। जवान हैं... भगवान आपका भला करे!'
'बुढ़ऊ, क्या तुम शादी-शुदा हो?' उनमें से एक लंबा लड़का पूछता है।
'मैं? आप साहब लोग बड़े मजाकिया हैं! अब बस मेरी बीवी ही है... वह अपनी आँखों से सब कुछ देख चुकी है। आप समझ गए न मेरी बात। मौत बहुत दूर नहीं है... मेरा बेटा मर चुका है और मैं जिंदा हूँ... कैसी अजीब बात है यह। मौत गलत दरवाजे पर पहुँच गई... मेरे पास आने की बजाए वह मेरे बेटे के पास चली गई...'
योना पीछे मुड़कर बताना चाहता है कि उसका बेटा कैसे मर गया! पर उसी समय कुबड़ा एक लंबी साँस खींच कर कहता है, 'शुक्र है खुदा का! आखिर मेरे साथियों को पहुँचा ही दिया!' और योना उन सबको अँधेरे फाटक के पार धीरे-धीरे गायब होते देखता है। एक बार फिर वह खुद को बेहद अकेला महसूस करता है। सन्नाटे से घिरा हुआ... उसका दुख जो थोड़ी देर के लिए कम हो गया था, फिर लौट आता है, और इस बार वह और भी ताकत से उसके हृदय को चीर देता है। बेहद बेचैन हो कर वह सड़क की भीड़ को देखता है, गोया ऐसा कोई आदमी तलाश कर रहा हो जो उसकी बात सुने। पर भीड़ उसकी मुसीबत की ओर ध्यान दिए बिना आगे बढ़ जाती है। उसका दुख असीम है। यदि उसका हृदय फट जाए और उसका दुख बाहर निकल आए तो वह मानो सारी पृथ्वी को भर देगा। लेकिन फिर भी उसे कोई नहीं देखता। योना को टाट लादे एक कुली दिखता है। वह उससे बात करने की सोचता है।
'वक्त क्या हुआ है, भाई? 'वह कुली से पूछता है।
'नौ से ज्यादा बज चुके हैं। तुम यहाँ किसका इंतजार कर रहे हो? अब कोई फायदा नहीं, लौट जाओ।'
योना कुछ देर तक आगे बढ़ता रहता है, फिर उकड़ूँ हालत में अपने गम में डूब जाता है। वह समझ जाता है कि मदद के लिए लोगों की ओर देखना बेकार है। वह इस स्थिति को और नहीं सह पाता और 'अस्तबल' के बारे में सोचता है। उसका घोड़ा मानो सब कुछ समझ कर दुलकी चाल से चलने लगता है।
लगभग डेढ़ घंटे बाद योना एक बहुत बड़े गंदे-से स्टोव के पास बैठा हुआ है। स्टोव के आस-पास जमीन और बेंचों पर बहुत से लोग खर्राटे ले रहे हैं। हवा दमघोंटू गर्मी से भारी है। योना सोए हुए लोगों की ओर देखते हुए खुद को खुजलाता है... उसे अफसोस होता है कि वह इतनी जल्दी क्यों चला आया।
आज तो मैं घोड़े के चारे के लिए भी नहीं कमा पाया - वह सोचता है।
एक युवा कोचवान एक कोने में थोड़ा उठकर बैठ जाता है और आधी नींद में बड़बड़ाता है। फिर वह पानी की बाल्टी की तरफ बढ़ता है।
'क्या तुम्हें पानी चाहिए?' योना उससे पूछता है।
'यह भी कोई पूछने की बात है?'
'अरे नहीं, दोस्त! तुम्हारी सेहत बनी रहे! लेकिन क्या तुम जानते हो कि मेरा बेटा अब इस दुनिया में नहीं रहा... तुमने सुना क्या? इसी हफ्ते... अस्पताल में... बड़ी लंबी कहानी है।'
योना अपने कहे का असर देखना चाहता है, पर वह कुछ नहीं देख पाता। उस युवक ने अपना चेहरा छिपा लिया है और दोबारा गहरी नींद में चला गया है। बूढ़ा एक लंबी साँस ले कर अपना सिर खुजलाता है। उसके बेटे को मरे एक हफ्ता हो गया लेकिन इस बारे में वह किसी से भी ठीक से बात नहीं कर पाया है। बहुत धीरे-धीरे और बड़े ध्यान से ही यह सब बताया जा सकता है कि कैसे उसका बेटा बीमार पड़ा, कैसे उसने दुख भोगा, मरने से पहले उसने क्या कहा और कैसे उसने दम तोड़ दिया। दफ्न के वक्त की एक-एक बात बतानी भी जरूरी है और यह भी कि उसने कैसे अस्पताल जा कर बेटे के कपड़े लिए। उस समय उसकी बेटी अनीसिया गाँव में ही थी। उसके बारे में भी बताना जरूरी है। उसके पास बताने के लिए इतना कुछ है। सुनने वाला जरूर एक लंबी साँस लेगा और उससे सहानुभूति जताएगा। औरतों से बात करना भी अच्छा है, हालाँकि वे बेवकूफ होती हैं। उन्हें रुला देने के लिए तो भावुकता भरे दो शब्द ही काफी होते हैं।
चलूँ... जरा अपने घोड़े को देख लूँ - योना सोचता है। सोने के लिए तो हमेशा वक्त रहेगा। उसकी क्या परवाह!
वह अपना कोट पहन कर अस्तबल में अपने घोड़े के पास जाता है। साथ ही वह अनाज, सूखी घास और मौसम के बारे में सोचता रहता है। अपने बेटे के बारे में अकेले सोचने की हिम्मत वह नहीं जुटा पाता है।
'क्या तुम डटकर खा रहे हो?' योना अपने घोड़े से पूछता है... वह घोड़े की चमकती आँखें देखकर कहता है, 'ठीक है, जमकर खाओ। हालाँकि हम आज अपना अनाज नहीं कमा सके, पर कोई बात नहीं। हम सूखी घास खा सकते हैं। हाँ, यह सच है। मैं अब गाड़ी चलाने के लिए बूढ़ा हो गया हूँ... मेरा बेटा चला सकता था। कितना शानदार कोचवान था मेरा बेटा। काश, वह जीवित होता!'
एक पल के लिए योना चुप हो जाता है। फिर अपनी बात जारी रखते हुए कहता है, 'हाँ, मेरे प्यारे, पुराने दोस्त। यही सच है। कुज्या योनिच अब नहीं रहा। वह हमें जीने के लिए छोड़कर चला गया। सोचो तो जरा, तुम्हारा एक बछड़ा हो, तुम उसकी माँ हो और अचानक वह बछड़ा तुम्हें अपने बाद जीने के लिए छोड़कर चल बसे। कितना दुख पहुँचेगा तुम्हें, है न?'
उसका छोटा-सा घोड़ा अपने मालिक के हाथ पर साँस लेता है, उसकी बात सुनता है और उसके हाथ को चाटता है।
अपने दुख के बोझ से दबा हुआ योना उस छोटे-से घोड़े को अपनी सारी कहानी सुनाता जाता है।
(अनुवाद - सुशांत-सुप्रिय)
ई-मेल : sushant1968@gmail.com
मोबाइल : 8512070086।
व्यथा का भार : आंतोन चेखव
व्यथा का भार साँझ का झुटपुटा फैल चला है। घने और नम बर्फ़ के गाले सड़क के अभी-अभी जलाये गये लैम्पों के इर्द-गिर्द अलस भाव से मँडरा रहे हैं, और छतों पर, घोड़ों की पीठों पर, लोगों के कन्धों और टोपियों पर मुलायम तहों में छाते जा रहे हैं। कोचवान आयोना पोतापोव बर्फ़ से एकदम सफ़ेद हो गया है और प्रेत की भाँति मालूम होता है। उसका बदन, जहाँ तक मानव-शरीर के लिए सम्भव है, झुककर दोहरा हो गया है। वह अपने कोच-बक्स पर बैठा है और उसके बदन में ज़रा भी हरकत नहीं है। लगता है मानो बर्फ़ का पूरा ढूह भी आकर उसके ऊपर लद जाये, तब भी वह उसे झटकने की ज़रूरत न महसूस करेगा। उसका टुइयाँ-सा घोड़ा भी बिल्कुल सफ़ेद हो गया है और निश्चल खड़ा है। उसकी निश्चलता, उसकी उभरी हुई नोक-नुकीली हड्डियों, और सरकण्डे-ऐसी उसकी सीधी टाँगों की वजह से, नज़दीक से भी देखने पर वह पैसे-पैसे बिकने वाला साँचे में ढला खाण्ड का खिलौना-सा लगता है। निश्चय ही वह किसी गहरी सोच में डूबा हुआ है। अगर आपको हलमाची से, जीवन की परिचित बेरंग परिस्थितियों से, बरबस निकालकर भयावह रोशनियों, कभी न शान्त होने वाले शोर-ग़ुल और लोगों की इस चहल-पहल के भँवर के बीच पटक दिया जाये, तो चिन्ता से पीछा छुड़ाना आपके लिए भी कठिन हो जाये।
आयोना और उसका मरियल घोड़ा अपनी इस जगह से काफ़ी देर से हिले नहीं हैं। भोजन करने से पहले ही वे अपने बाड़े से बाहर निकल आये थे, और सवारी का अब तक नाम नहीं। साँझ की धुँध नगर के ऊपर छाती जा रही है। लैम्पों की सफ़ेद रोशनियों ने सूरज की उज्ज्वलतर किरनों की जगह सँभाल ली है और बाज़ार का शोर-शराबा बढ़ता जा रहा है।
"ऐ गाड़ीवाले!" सहसा आयोना के कानों में आवाज़ पड़ती है, "वाइबोर्ग चलोगे?"
आयोना चैंककर उछलता है और बर्फ़ की ढँकीं पलकों के भीतर से एक अफ़सर पर उसकी नज़र पड़ती है, जो अपने सिर पर कनटोप चढ़ाये हुए है।
"सो रहे हो क्या?" अफ़सर दोहराता है: "वाइबोर्ग चलोगे?"
सिर हिलाकर हामी भरते हुए आयोना रास सँभालता है, जिसके परिणामस्वरूप घोडे़ की पीठ और गर्दन पर लदी बर्फ़ की तहें खिसककर नीचे जा गिरती हैं। अफ़सर गाड़ी में बैठ जाता है। घोड़े को उत्साहित करने के लिए कोचवान अपने होंठों से चुमकारता है, अपनी गर्दन को हंस की भाँति तानता है, फिर सीधा-सतर हो जाता है, और, आवश्यकता से इतना नहीं जितना कि अपनी आदत से मजबूर, वह अपने हण्टर को फटकारता है। मरियल घोड़ा भी अपनी गर्दन तानता है, सरकण्डे ऐसी अपनी टाँगों को मोड़ता है और अनिश्चित से डग उठाता है।
"क्यों बे, क्या सिर पर ही चढ़ा देगा, भेड़िये की औलाद!" गाड़ी के हरकत में आते ही सड़क पर आते-जाते अँधेरे समूह में से किसी की चिल्लाहट आयोना ने सुनी।
"इधर कहाँ बढ़ा जा रहा है बे? दा-दा-दाहिने बाज़ू नहीं चला जाता!"
"तुझे गाड़ी तक हाँकना नहीं आता!" अफ़सर झुँझलाकर कहता है:
"दाहिने बाज़ू चल।"
प्राइवेट गाड़ी का एक कोचवान उस पर गालियों की बौछार करता गुज़र जाता है। एक राहगीर, जो दौड़कर सड़क पार कर गया है, और जिसका कन्धा घोड़े की थूथनी से टकरा गया था, अपनी आस्तीन से बर्फ़ झाड़ते हुए उसे ऐसे घूरकर देखता है मानो खा ही जायेगा। आयोना अपनी गद्दी पर कुछ इस तरह उचकता है मानो काँटों पर बैठा हो, अपनी कोहनियों को इस तरह हिलाता है मानो अपना सन्तुलन ठीक कर रहा हो और मुँहबाए इस तरह इधर-उधर देखता है, जैसे उसका दम घुट रहा हो और उसे यह समझ में न आ रहा हो कि वह क्यों और किसलिए यहाँ मौजूद है।
"बडे़ शैतान हैं ये लोग!" अफ़सर मज़ाक़ में कहता है; "ऐसा मालूम होता है जैसे इन लोगों ने तुमसे टकराने या तुम्हारे घोड़े के नीचे आने का एक साथ फ़ैसला कर लिया है।"
आयोना घूमकर अफ़सर ही ओर देखता है और उसके होंठ कुछ हिलते हैं। ज़ाहिर है कि वह कुछ कहना चाहता है, लेकिन एक झुनझुनाहट के सिवा उसके मुँह से और कुछ नहीं निकलता।
"क्या है?" अफ़सर पूछता है।
आयोना मुस्कुराने की कोशिश में मुँह बिचकाता है और बड़ी मुश्किल से, भरभराई आवाज़ में कहता है:
"मालिक, मेरा लड़का, बारिन, जाता रहा, इसी सप्ताह।"
"ओह! क्या हुआ था उसे?"
आयोना अपने समूचे शरीर के साथ सवारी की और घूमकर कहता है:
"भगवान ही जानता है! कहते हैं कि उसे तेज़ बुख़ार था। तीन दिन वह अस्पताल में पड़ा रहा और फिर मर गया... ईश्वर की ऐसी ही मर्ज़ी थी।"
"अबे ओ, सामने देख, शैतान!" अँधेरे में से आवाज़ आयी। "मर गया है क्या, बूढ़े कुत्ते? देखकर नहीं हाँकता!"
"अच्छा, अच्छा, अब चलने का नाम लो," अफ़सर ने कहा, "वरना तो हम कल तक वहाँ नहीं पहुँच सकेंगे। ज़रा फ़ुर्ती से, समझे!"
गाड़ीवान फिर अपनी गर्दन को तानता है, सीधा-सतर होकर बैठ जाता है और बेलिहाज़ हो अपने हण्टर को फटकारता है, अनेक बार वह घूमकर अपनी सवारी की ओर देखता है, लेकिन सवारी ने अपनी आँखें मूँद ली हैं और प्रत्यक्षतः गाड़ीवान की बात सुनने की उसमें कोई इच्छा नज़र नहीं आती है। अफ़सर को वाइबोर्ग उतारने के बाद वह कहवाख़ाने के बाहर अपनी गाड़ी को रोक लेता है, अपनी सीट पर दोहरा हो जाता है, और पहले की भाँति फिर निश्चल हो जाता है। बर्फ़ एक बार फिर उसे और उसके घोड़े को ढँकना शुरू कर देती है। एक घण्टा बीता, दूसरा भी बीत गया... फिर, फ़ुटपाथ पर अपने जूतों को चरमराते और आपस में उलझते-जूझते तीन युवक नज़र आये। उनमें दो तो लम्बे और दुबले-पतले थे और तीसरा नाटा तथा कुबड़ा था।
"ऐ गाड़ीवाले, पुलिस-पुल चलेगा?" कुबड़ा फटी-सी आवाज़ में चिल्लाता है। "तीनों के बीस कोपेक मिलेंगे!"
आयोना अपनी रास सँभालता है और होंठों को चटखारता है। बीस कोपेक कोई वाजिब भाड़ा नहीं, लेकिन उसे अब इसकी परवाह नहीं कि रूबल मिलता है या पाँच कोपेक - सवारी होनी चाहिए, उसके लिए अब सब बराबर है। एक-दूसरे को धकियाते और अश्लील बातों की बौछार करते युवक गाड़ी के पास आते हैं और तीनों एक साथ गद्दी पर बैठने का प्रयत्न करते हैं। फिर बहस छिड़ जाती है कि कौन दो उनमें से बैठेंगे और कौन खड़ा रहेगा। काफ़ी झगड़ने, एक-दूसरे को कोसने और आनाकानी करने के बाद अन्त में तय हुआ कि कुबड़ा खड़ा रहेगा क्योंकि वह सबसे नाटा है।
"हाँ, तो अब ज़रा जल्दी से लपक चलो!" अपनी जगह पर खड़े होते हुए कुबड़ा टँकारता है और गाड़ीवान की गरदन पर भभकारा छोड़ते हुए कहता है: "बूढ़ा खुर्राट! क्यों चचा, तुम्हारी यह टोपी भी ख़ूब है। पीटर्सबर्ग के किसी भी कबाड़ख़ाने में ऐसी गयी-गुज़री टोपी नहीं मिलेगी!"
"ही-ही-ही-ही," आयोना दाँत निपोरता है, "किसी भी कबाड़ख़ाने में..."
"अबे ओ कबाड़ख़ाने वाले, जल्दी कर। क्या सारा रास्ता इसी रफ़्तार से पार करेगा? क्यों, क्या यही इरादा है?... गरदन पर एक रद्दा लग जाये तो होश ठिकाने आ जायेंगे।"
"अरे बाप रे," छड़ी जैसा लम्बा युवक कहता है, "मेरा तो सिर फटा जा रहा है। कल रात दोन्कमासोव के यहाँ वास्किना और मैं बहुत पी गये - पूरी चार बोतलें ख़ाली कर डालीं!"
"समझ में नहीं आता कि तुम इतनी दूर की क्यों उड़ाते हो?" दूसरे दुबले-पतले युवक ने चिढ़कर कहा, "झुठ बोलने में तुम पूरे वहशी हो!"
"सच, मुझ पर गाज गिरे अगर यह झूठ हो!"
"यह उतना ही सच है जितना कि मेंढकी के जुकाम होना सच हो सकता है।"
"ही-ही-ही," आयोना फिर दाँत निपोरता है, "कितने मौजी युवक हैं ये!"
"ओह, कैसे शैतान से पाला पड़ा है!" कुबड़ा झल्लाकर कहता है।
"अब चलेगा भी या नहीं, खूसट की औलाद? क्या यही हाँकने का तरीक़ा है? ज़रा अपने हण्टर का जौहर दिखा। लगा, शैतान, लगा दो-चार ऐसे कि घोड़ा भी याद रखे!"
आयोना महसूस करता है कि उसकी पीठ पीछे नाटा युवक कसमसा रहा है और उसकी आवाज़ थरथरा रही है। गालियों की बौछार उसके कानों से आकर टकराती है, लोगों की चहल-पहल पर उसकी नज़र टिकती है और धीरे-धीरे सूनेपन की भावना जाती रहती है। कुबड़े की गालियों का प्रवाह उस समय तक ख़त्म न होता जब तक कि एक अच्छी-ख़ासी शैतान की आँत-सी लम्बी गाली में उलझकर उसकी ज़ुबान लड़खड़ा न जाती, या खाँसी से उसका दम न घुटने लगता। सींकिया युवक ने नादेज़्हदा पैगोवना नामक किसी युवती का सिलसिला छेड़ दिया है। आयोना अनेक बार घूमकर उनकी ओर देखता है। वह इस बात की प्रतीक्षा करता है कि उनकी चहचहाट में क्षण-भर के लिए कोई विराम आये, और फिर उनकी ओर घूमकर बुदबुदा उठता है:
"मेरा लड़का... इस सप्ताह जाता रहा।"
"जाना तो हम सभी को है," खाँसी के दौर के बाद अपने होंठों को पोंछते हुए कुबड़े युवक ने उसास भरी। "लेकिन अब ज़रा अपनी चाल दिखाओ, ओह! इस रफ़्तार ने तो जान ही ले ली। ख़ुदा जाने, हम कब तक वहाँ पहुँचेंगे।"
"और कुछ नहीं, बस इसकी गर्दन को ज़रा गुदगुदा दो!"
"सुना, ताऊ, अब तेरी गर्दन की ख़ैर नहीं। तेरे जैसों के साथ शराफ़त बरती जाये तो पैदल ही घिसटना पड़े। सुन रहा है न, सपोलेराम! या तुझ पर बातों का कोई असर नहीं होता?"
आयोना उनके प्रहारों को मानो सुनता है, अनुभव नहीं करता।
"हि, हि," वह गिलगिलाया। "कितने मौजी जवान हैं! ख़ुदा इन्हें सलामत रखे!"
"ऐ गाड़ीवान, क्या तू विवाहित है?" एक सींकिया युवक ने पूछा।
"मैं? हि, हि, आप लोग भी कितने मौजी व्यक्ति हैं! अब मेरे पास केवल एक पत्नी और नम धरती ही तो रह गयी है... हि, हो, हो,... यानी ढाई हाथ धरती जिसमें मैं चिर-विराम लूँगा... मेरा लड़का जाता रहा, और मैं अभी भी बना हूँ... कितनी अद्भुत बात है यह, मौत जैसे दरवाज़ा भूल गयी... मेरे पास आने के बजाय वह मेरे लड़के के पास पहुँच गयी..."
आयोना उनकी ओर घूमता है, और उन्हें बताना चाहता है कि उसका लड़का कैसे मरा, लेकिन तभी एक हल्की-सी उसास भरते हुए कुबड़ा युवक ऐलान करता है, "शुक्र है ख़ुदा का, आखि़र मंज़िल आ ही गयी," और आयोना उन्हें अँधेरे दरवाज़े में से विलीन होते देखता है। वह अब फिर अकेला है और निस्तब्धता ने उसे फिर घेर लिया है... उसकी व्यथा, कुछ क्षणों के लिए जो तिरोहित हो गयी थी, अब फिर लौट आयी है और उसके हृदय को और भी अधिक ज़ोरों से मथ रही है। सड़क के दोनों ओर लोग आ-जा रहे हैं। भीड़ पर उसकी व्यग्र और उतावली दृष्टि घूम जाती है - किसी ऐसे आदमी की खोज में जिससे वह अपने हृदय की बिथा कह सके। लेकिन लोग अपनी ही धुन में लपके जा रहे हैं। उसकी अथवा उसकी बिथा की ओर कोई ध्यान ही नहीं देता। इतनी भारी और इतनी सीमाहीन व्यथा पर भी किसी का ध्यान नहीं जाता। हृदय का बाँध तोड़ अगर यह व्यथा बह निकले तो लगता है समूची दुनिया उसमें डूब जायेगी। फिर भी कोई उसे देखता नहीं। कुछ इतने नगण्य घोंघे में वह छिपी है कि उसे कोई देख नहीं सकता, दिन के प्रकाश में और चिराग़ की रोशनी में भी नहीं देख सकता।
आयोना की नज़र बोरा लिये एक कुली पर पड़ती है और वह उससे बात करने का निश्चय करता है।
"कहो भाई, क्या बज गया होगा?" वह पूछता है।
"नौ बज चुके। लेकिन तुम यहाँ खड़े क्या कर रहे हो? चलते बनो!" आयोना कुछ क़दम आगे बढ़ जाता है, बदन को दोहरा कर लेता है और अपने शोक में पूर्णतया डूब जाता है। उसने देखा कि सहारे के लिए दूसरों का मुँह ताकना बेकार है। पाँच मिनट बीतते न बीतते वह फिर सीधा हो जाता है, अपने सिर को कुछ इस तरह अकड़ाता है मानो उसे कोई तेज़ दर्द हुआ हो, और रास को झटका देता है। अब व्यथा असह्य हो उठी है। "अब घर चलना चाहिए," वह सोचता है। मरियल घोड़ा मानो उसका आशय समझकर दुलकी चाल से घर की ओर बढ़ चलता है।
डेढ़ एक घण्टे के बाद आयोना एक भारी-भरकम तथा गन्दे तन्दूर की बग़ल में बैठा है। तन्दूर के इर्द-गिर्द, फ़र्श पर, बेंचों पर लोग खर्राटे ले रहे हैं, हवा इतनी भारी और गरम है कि दम घुटता है।
"आज तो घोड़े के चारे लायक़ भी पैसा नहीं जुटा," वह सोचता है। "यही तो सारी मुसीबत है। जो अपना काम जानता हो, और जो अपने घोड़े का पेट भर चुका हो, वह हमेशा चैन से सो सकता है।"
कोने में लेटा हुआ एक युवा गाड़ीवान आधा उठता है, उनींदी-सी आवाज़ में गुर्राता है और फिर पानी की बाल्टी की ओर हाथ बढ़ाता है।
"क्यों, गला तर करना चाहते हो?" आयोना उससे पूछता है।
"इसमें भला क्या शक है, दद्दा!" युवक ने कहा।
"ऐसी बात है? तुम्हारी सेहत सलामत रहे! लेकिन सुनो मेरे मित्र - पता है ना, मेरा लड़का जाता रहा... सुना तुमने? इसी सप्ताह, अस्पताल में... एक लम्बी कहानी है।"
अपने शब्दों का प्रभाव देखने के लिए आयोना युवक पर एक नज़र डालता है, लेकिन कुछ देख नहीं पाता - अपना मँुह दुबकाकर युवक फिर गहरी नींद में डूब गया है। वृद्ध एक उसास भरता है, अपने सिर को खुजलाता है; अपना गला तर करने के लिए जितनी प्रबल उत्कण्ठा उस युवक को थी, वृद्ध भी किसी से बात करने के लिए उतना ही बेताब था। उसके लड़के को मरे अब एक सप्ताह होने को आया है, लेकिन अभी तक वह किसी के सामने ढंग से अपना जी हल्का नहीं कर सका है। यह एक ऐसी बिथा है जिसे धीरे-धीरे, सावधानी के साथ ही किसी के सामने खोलकर रखा जा सकता है - यह कि किस प्रकार उसका लड़का बीमार पड़ा, किस प्रकार वह छटपटाया, मरने से पहले उसने क्या कहा और किस प्रकार उसने दम तोड़ा। फिर उसका अन्तिम संस्कार, मृतक के कपड़े लाने के लिए अस्पताल की यात्रा - पूरे विस्तार के साथ, एक बात भी छोड़े बिना, इस सबका वर्णन करना ज़रूरी था। उसकी लड़की अनीसिया गाँव से आ तक नहीं सकी - भला, उसे कैसे नज़रन्दाज़ किया जा सकता है? उसके बारे में भी कुछ कहना ही चाहिए। और यह सब सुनकर, निश्चय ही, श्रोता की साँस ऊपर का ऊपर और नीचे का नीचे रह जायेगी, वह आह भरेगा और सहानुभूति के दो शब्द उससे कहे बिना न रहेगा। स्त्रिायों से अपने मन की व्यथा कहना और भी अच्छा होता, हालाँकि वे मूर्ख होती हैं, बात सुनने से पहले ही वे सुबकने और आँसू बहाने लगती हैं।
"चलूँ ज़रा अपने घोड़े पर भी एक नज़र डाल आऊँ," आयोना सोचता है।
"सोने के लिए सारी रात पड़ी है। सो उसकी चिन्ता नहीं!"
वह अपना कोट बदन पर डालता है और अस्तबल में अपने घोड़े की ओर चल देता है। अनाज के, घास के, और मौसम के बारे में वह सोच रहा है। अकेले में अपने लड़के के बारे में सोचने का उसे साहस नहीं होता। वह उसके बारे में किसी से भी बातें कर सकता है, लेकिन उसके बारे में सोचना, अपनी कल्पना में उसका चित्र मूर्त करना, उसके लिए इतना दुःखद है कि वह सह नहीं सकता।
"क्यों, भोजन कर रहे हो क्या?" अपने घोड़े की चमकदार आँखों में देखते हुए आयोना उससे पूछता है; "अच्छी बात है, खाये जाओ। हालाँकि दाना आज नहीं मिला - न तुम्हें, न मुझे - लेकिन अपनी इस घास से हमें कौन वंचित कर सकता है? हाँ! मैं अब बुढ़ा गया हूँ, गाड़ी हाँकते मुझसे नहीं बनता - यह काम तो मेरे लड़के का था, मेरा नहीं। गाड़ी हाँकने में एक नम्बर था वह। काश कि वह जीवित होता!"
आयोना क्षण-भर के लिए चुप हो जाता है, फिर कहता जाता है:
"तो यह बात है, बूढ़े साथी। कुज़मा आयोनिच अब नहीं रहा। वह हमें इस घिसघिस में छोड़ गया, और ख़ुद हवा हो गया। तुम्हीं सोचो, अगर तुम्हारा कोई बछेड़ा होता, और तुम उसकी माँ होती और मान लो अगर वह बछेड़ा अचानक चल बसता और तुम्हें इस दुनिया में डाड़ तोड़ने के लिए छोड़ जाता तो... बोलो, कितनी व्यथा होती तुम्हें?"
मरियल घोड़ा घास के निवाले को दाँतों से कचरता है, कान खड़े करके सुनता और मालिक के हाथ पर गरम उसास छोड़ता है...।
आयोना अपने हृदय को सँभाल नहीं पाता, और अपने मरियल घोड़े को पूरी कहानी सुनाने लगता है।
(अनु. - नरोत्तम नागर)