अन्ना करेनिना (रूसी उपन्यास) : लेव तोल्सतोय

Anna Karenina (Russian Novel in Hindi) : Leo Tolstoy

अन्ना करेनिना : (अध्याय 11-भाग 1)

लेविन ने शराब का अपना जाम खत्म कर लिया और दोनों कछ देर तक खामोश रहे।

"मुझे तुमसे एक और बात कहना ज़रूरी है। तुम व्रोन्स्की को जानते हो ?" ओब्लोन्स्की ने लेविन से पूछा।

"नहीं, नहीं जानता। तुम यह क्यों पूछा रहे हो ?"

"एक और बोतल ले आओ," ओब्लोन्स्की ने तातार बैरे से कहा, जो जाम भरता हुआ ऐसे वक़्त उनके इर्द-गिर्द मँडरा रहा था, जब उसे वहाँ नहीं होना चाहिए था।

"क्या ज़रूरत है मुझे व्रोन्स्की को जानने की ?"

"क्या ज़रूरत है तुम्हें व्रोन्स्की को जानने की ! यह ज़रूरत है कि वह तुम्हारा प्रतिद्वन्द्वी है।"

"कौन है यह व्रोन्स्की ?" लेविन ने सवाल किया और उसके चेहरे का बाल-सुलभ खुशी का भाव, जिसे कुछ ही क्षण पहले ओब्लोन्स्की मुग्ध होकर देख रहा था, अचानक झल्लाहट और कटुता में बदल गया।

"व्रोन्स्की-यह काउंट किरील्ल इवानोविच व्रोन्स्की का बेटा और पीटर्सबर्ग के शानदार कुलीन युवाजन का एक बढ़िया उदाहरण है। मैं जब त्वेर में काम कर रहा था, तब वह नए फ़ौजी भर्ती करने के लिए वहाँ आया था और तभी मेरा उससे परिचय हुआ था। बहुत ही धनी और बड़ा सुन्दर व्यक्ति है, बड़े-बड़े लोगों से सम्पर्क हैं उसके, ज़ार का एड-डी. कैम्प और साथ ही बड़ा मधुर तथा दयाल जवान है। सिर्फ इतना ही नहीं, उसमें और भी बहुत कुछ है। जैसाकि मुझे यहाँ मालूम हुआ है, वह पढ़ा-लिखा और समझदार भी है। यह आदमी बहुत तरक्की करेगा।"

लेविन के माथे पर बल पड़ गए और वह खामोश रहा।

"हाँ, तो वह तुम्हारे जाने के फ़ौरन बाद ही यहाँ प्रकट हुआ और जहाँ तक मैं समझ सकता हूँ कीटी पर लट्टू है। तुम तो जानते ही हो कि कीटी की माँ..."

"माफ़ी चाहता हूँ, लेकिन मेरे पल्ले तो कुछ भी नहीं पड़ रहा है," लेविन ने उदासी से माथे पर बल डालकर कहा। इसी वक़्त उसे अपने भाई निकोलाई की याद आ गई, यह ध्यान आया कि वह कितना नीच है, जो उसके बारे में भूल गया।

"तुम ज़रा सुनो, मेरी बात को समझो तो," ओब्लोन्स्की ने मुस्कुराते और उसका हाथ छूते हुए कहा। "मैं जो कुछ जानता हूँ, मैंने तुम्हें वही बताया है और दोहराता हूँ कि इस मुश्किल तथा नाजुक मामले में जहाँ तक अनुमान लगाना सम्भव है, मुझे यही लगता है कि तुम्हारी सफलता की सम्भावना अधिक है।"

लेविन ने पीछे हटकर कुर्सी की टेक का सहारा ले लिया। उसके चेहरे का रंग उड़ा हुआ था।

"लेकिन मैं तुम्हें यह सलाह दूँगा कि जितनी जल्दी हो सके. इस मामले को निपटा डालो," लेविन का जाम भरते हुए ओब्लोन्स्की ने अपनी बात जारी रखी।

"नहीं, शुक्रिया, मैं और नहीं पी सकता," लेविन ने अपना जाम पीछे हटाते हुए कहा। "मुझे चढ़ जाएगी...तो यह बताओ कि तुम्हारा कैसा हालचाल है ?" शायद बातचीत का विषय बदलने की इच्छा से उसने कहा।

"दो शब्द और कहूँगा-कुछ भी हो, मैं तुम्हें इस मामले को जल्दी से तय करने की सलाह दूँगा। लेकिन आज तुम्हें ऐसा करने का परामर्श नहीं दूंगा," ओब्लोन्स्की ने कहा। "कल सुबह वहाँ जाना, रीति-रिवाज के मुताबिक ढंग से विवाह का प्रस्ताव करना और कामना करता हूँ कि भगवान तुम्हें सफलता प्रदान करें..."

"तुम मेरे यहाँ शिकार के लिए आने की कहते रहते हो? तो वसन्त में आ जाओ," लेविन बोला।

लेविन अब जी-जान से पूछता रहा था कि उसने ओब्लोन्स्की से यह बात शुरू की। पीटर्सबर्ग के किसी अफ़सर के साथ मुकाबले की चर्चा और ओब्लोन्स्की के अनुमानों तथा मशविरों से उसकी 'विशेष' भावना दूषित-सी हो गई थी। ओब्लोन्स्की मुस्कुराया। लेविन की आत्मा की इस समय क्या दशा थी, उससे यह छिपा नहीं था। "आ जाऊँगा कभी न कभी," उसने जवाब दिया। “हाँ, भाई, औरत ही वह धुरी है, जिसके इर्द-गिर्द सब कछ घूमता है। मेरा हाल भी बुरा है, बहुत बुरा है। सो भी औरतों की वजह से। तुम मुझसे लाग-लपेट के बिना बात करो," उसने सिगार निकाला और दूसरे हाथ से जाम थामते हुए कहना जारी रखा, "तुम मुझे सलाह दो।"

"किस बारे में ?"

"इस बारे में-मान लो कि तुम शादीशुदा हो, अपनी बीवी को प्यार करते हो, लेकिन किसी दूसरी औरत पर तुम्हारा दिल आ गया..."

"माफ़ी चाहता हूँ, लेकिन यह चीज़ तो मेरी समझ के बिल्कुल बाहर है। वैसे ही...जैसे, मैं यह नहीं समझ सकता कि अभी-अभी पेट भरकर खाने के बाद मैं नानबाई की दुकान के करीब से गुज़रूँ और उसके यहाँ से केक चुरा लूँ।"

ओब्लोन्स्की की आँखें सामान्य से कहीं अधिक चमक रही थीं।

"क्यों नहीं ! केक कभी-कभी इतना महकदार होता है कि आदमी अपने को काबू में नहीं रख पाता।

Himmlisch ist's, wenn ich bezwungen
Meine irdrshe Begier,
Aber doch wenn's nicht gelungen,
Hatt ich auch recht h iibsch Plasisir!"

(अच्छा है यदि भाव, भावना
वश में कर आवेश लिए,
अगर न ऐसा मैं कर पाया
तो भी मैंने मज़े किए !-जर्मन)

यह कहते हुए ओब्लोन्स्की तनिक मुस्कुराया। लेविन भी मुस्कुराए बिना न रह सका।

"खैर, मज़ाक़ को हटाओ," ओब्लोन्स्की कहता गया। "तुम इस बात को समझो कि प्यारी, छोटी सी, जी-जान से चाहनेवाली, लाचार और एकाकी नारी ने तुम पर अपना सब कुछ न्योछावर कर डाला। अब जब तुमने अपना मतलब निकाल लिया-तुम मेरी बात को समझो-तो क्या उसे उसके हाल पर छोड़ दिया जाए ? मान लो कि उससे नाता तोड़ना होगा, ताकि परिवार नष्ट न हो, तो क्या उस पर तरस न खाया जाए, उसे किसी किनारे न लगाया जाए, उसके दर्द को कुछ कम न किया जाए ?"

"तुम मुझे माफ़ करना, पर तुम्हें मालूम ही है कि मेरे लिए सभी औरतें दो किस्मों में बँटी हुई हैं...नहीं, ऐसे नहीं...शायद यह कहना अधिक सही होगा कि एक तो नारियाँ हैं और दूसरी...मुझे तो पाप में गिरनेवाली अच्छी नारियाँ न तो कभी देखने को मिली हैं और न मिल ही सकेंगी। और ऐसी औरतें, जैसीकि वह घुंघराले बालोंवाली रँगी-चुनी फ्रांसीसी महिला, जो काउंटर पर बैठी है, मेरे लिए कुतियों जैसी हैं। सभी पतिताएँ ऐसी ही हैं।"

“और मरियम मगदलीनी ?"

('इंजील में वर्णित एक पतिता। ईसा मसीह ने उससे घृणा नहीं की, उसे स्नेह दिया और वह कुपथ से सुपथ पर आ गई।-अनु.)

"ओह, हटाओ ! ईसा मसीह ने उसके बारे में कभी वे अच्छे शब्द न कहे होते, यदि उन्हें यह मालूम होता कि उनका इतना अधिक दुरुपयोग किया जाएगा। इंजील के केवल यही शब्द याद हैं सबको। वैसे, मैं वह नहीं कह रहा हूँ, जो सोचता हूँ, बल्कि जो अनुभव करता हूँ। मुझे पतित नारियों से घृणा है। तुम मकड़ियों से डरते हो और मैं इन नागिनों से। संभवतः तुमने मकड़ियों का अध्ययन नहीं किया और तुम उनके रंग-ढंग से परिचित नहीं हो। ऐसी औरतों के बारे में मेरा यही हाल है।"

"तुम्हारे लिए ऐसे कहना बहुत आसान है-यह तो डिकेंस के उस पात्रवाली ही बात है, जो हर मुश्किल मसले को चालाकी से टाल देता है। किन्तु तथ्य से इनकार करना तो प्रश्न का उत्तर नहीं माना जा सकता। तुम मुझे यह बताओ कि क्या किया जाए, क्या करना चाहिए ? पत्नी बुढ़ाती जा रही है और तुममें ज़िन्दगी हिलोरें ले रही है। तुम्हें पता भी नहीं चलता और तुम यह महसूस करने लगते हो कि अपनी प्यारी बीवी को, चाहे उसकी कितनी ही इज़्ज़त क्यों न करते हो, प्यार नहीं कर सकते। इसी वक़्त अचानक तुम्हारे जीवन में प्यार सामने आ जाता है और बस, तुम कहीं के नहीं रहे, मारे गए !" ओब्लोन्स्की ने उदासी-भरी हताशा के साथ कहा।

लेविन व्यंग्यपूर्वक मुस्कुराया।

"हाँ, मारे गए," ओब्लोन्स्की कहता गया। "लेकिन किया क्या जाए ?"

"केक न चुराए जाएँ।"

ओब्लोन्स्की खिलखिलाकर हँस दिया।

"ओ नैतिकता के पुजारी ! लेकिन तुम बात को समझो तो। तुम्हारे सामने दो औरतें हैं-एक केवल अपने अधिकारों की माँग करती है और ये अधिकार हैं तुम्हारा वह प्रेम, जो तुम उसे दे नहीं सकते। लेकिन दूसरी औरत तुम्हारे लिए सब कुछ कुर्बान कर देती है और किसी चीज़ की माँग नहीं करती। ऐसी हालत में तुम क्या करोगे ? क्या करना चाहिए तुम्हें ? यहाँ बड़ा भयानक ड्रामा हो जाता है।"

"अगर तुम इस मामले में मेरे दिल की बात जानना चाहते हो, तो मैं कहूँगा कि इसमें किसी तरह का ड्रामा नहीं है। इसका कारण बताता हूँ। इसलिए कि प्रेम...दोनों तरह के प्रेम, जैसा कि तुम्हें याद होगा, अफ़लातून जिनकी अपने 'सिम्पोज़ियम' में चर्चा करता है, लोगों के लिए कसौटी का काम देते हैं। कुछ लोग केवल एक प्रेम को समझते हैं और दूसरे दूसरे को। और वे लोग, जो दुनियावी प्रेम को समझते हैं, ये तो बेकार ही ड्रामे की बात करते हैं। ऐसी मुहब्बत में कोई ड्रामा-ब्रामा नहीं हो सकता। 'मज़ा देने के लिए तुम्हारा बहुत-बहुत शुक्रिया'-बस, खत्म ड्रामा। भावनात्मक प्रेम के लिए इस वजह से कोई ड्रामा नहीं हो सकता कि ऐसे प्रेम में सब कुछ स्पष्ट और निर्मल होता है...क्योंकि..."

इसी वक़्त लेविन को अपने पापों और उस मानसिक संघर्ष की याद आ गई, जिसे वह अनुभव कर चुका था। उसने अचानक इतना और कह डाला:

"वैसे, शायद तुम्हारी बात ही ठीक हो। बहुत सम्भव है...किन्तु मैं नहीं जानता, बिल्कुल नहीं जानता।"

"देखा न तुमने," ओब्लोन्स्की बोला, "तुम पूरी तरह एक ही साँचे के आदमी हो। यह तुम्हारा गुण भी है और अवगुण भी। खुद तुममें दोरंगापन नहीं है और चाहते हो कि पूरे जीवन का ऐसा ही ढंग हो। मगर ऐसा तो होता नहीं। तुम सार्वजनिक कार्यालयों की गतिविधियों का इसलिए मुँह चिढ़ाते हो कि उनकी करनी हमेशा ध्येय के अनुरूप होनी चाहिए, किन्तु ऐसा होता नहीं। इसी तरह तुम चाहते हो कि व्यक्ति की गतिविधियों का भी हमेशा कोई लक्ष्य होना चाहिए, ताकि प्यार और पारिवारिक जीवन सदा एक ही हों। मगर ऐसा होता नहीं। जीवन की सारी विविधता, सारी मधुरता और सारी सुन्दरता छाया और प्रकाश का परिणाम होती है।"

लेविन ने गहरी साँस ली और कोई जवाब नहीं दिया। वह अपने ही मसलों में खोया हुआ था और ओब्लोन्स्की की बातों की ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा था।

अचानक दोनों ने यह महसूस किया कि बेशक वे दोस्त हैं, बेशक उन्होंने साथ-साथ खाना खाया और शराब पी है, जिससे उन्हें एक-दूसरे के और अधिक निकट आ जाना चाहिए था, फिर भी हर कोई अपने में ही उलझा हुआ है और एक-दूसरे से कोई मलतब नहीं है। ओब्लोन्स्की खाने के बाद निकटता के बजाय इस अत्यधिक अलगाव को कई बार अनुभव कर चुका था और जानता था कि ऐसी हालत में उसे क्या करना चाहिए।

"बिल लाओ !" उसने बैरे को पुकारकर कहा और पास के कमरे में चला गया। वहाँ एक परिचित एड-डी. कैम्प से फ़ौरन उसकी भेंट हो गई और वह उसके साथ एक अभिनेत्री और उसके अन्नदाता के बारे में बातचीत करने लगा। एड-डी. कैम्प के साथ बातचीत करके ओब्लोन्स्की को उसी क्षण लेविन से हुई बातचीत से राहत और चैन मिला। लेविन के साथ बातचीत से वह हमेशा दिल-दिमाग पर बड़ा तनाव महसूस करता था।

तातार बैरा कुछ देर बाद छब्बीस रूबल और कुछ कोपेक का बिल लेकर आया। टिप के पैसे इसके अलावा थे। कोई और वक्त होता, तो देहात में रहनेवाले किसी भी व्यक्ति की तरह अपने हिस्से के चौदह रूबलों का बिल देखकर लेविन सन्नाटे में आ जाता। लेकिन इस वक्त उसने इसकी तरफ़ कोई ध्यान नहीं दिया, बिल चुकाया और श्चेर्बात्स्की परिवार के यहाँ जाने के लिए, जहाँ उसके भाग्य का निर्णय होनेवाला था, कपड़े बदलने को अपने घर चल दिया।

अन्ना करेनिना : (अध्याय 12-भाग 1)

प्रिंसेस कीटी श्चेर्बात्स्काया अठारह साल की थी। इस जाड़े में वह पहली बार दावतों-महफ़िलों में जाने लगी थी। ऊँचे समाज में उसे अपनी दोनों बड़ी बहनों की तुलना में तथा उसकी माँ की आशा से भी अधिक सफलता मिल रही थी। न केवल यह कि मास्को के बॉलों में नाचनेवाले लगभग सभी तरुण कीटी पर जान छिड़कते थे, बल्कि पहले ही जाड़े में विवाह का प्रस्ताव कर सकनेवाले ढंग के दो व्यक्ति-लेविन, और उसके जाने के फ़ौरन बाद काउंट व्रोन्स्की-सामने आए।

जाड़े के शुरू में लेविन के प्रकट होने, उसके अक्सर श्चेर्बात्स्की परिवार में आने और कीटी के प्रति साफ़ तौर पर प्यार करने के फलस्वरूप कीटी के भविष्य के बारे में उसके माँ-बाप के बीच पहली गम्भीर बातचीत और प्रिंस तथा प्रिंसेस में वाद-विवाद हुआ। प्रिंस लेविन के पक्ष में थे और उनका कहना था कि कीटी के लिए वे लेविन से बढ़कर और किसी की कामना नहीं कर सकते। प्रिंसेस मामले से दामन बचाकर निकल जाने की नारी-सुलभ अपनी आदत के मुताबिक़ यह कहती रहीं कि कीटी अभी बहुत छोटी उम्र की है, कि लेविन किसी तरह भी यह जाहिर नहीं करता कि इस सिलसिले में उसका कोई संजीदा इरादा है, कि कीटी उसके प्रति कोई अनुराग नहीं रखती तथा उन्होंने इसी तरह के कई दूसरे बहाने पेश किए। लेकिन प्रिंसेस ने मुख्य बात नहीं कही कि वे बेटी के लिए बेहतर वर की राह देख रही हैं, कि लेविन उसके मन को नहीं छूता, कि वे उसे समझ नहीं पातीं। जब लेविन अचानक ही चला गया, तो प्रिंसेस बहुत खुश हुई और बड़ी शान से अपने पति से बोली, "देखा, मैं ठीक कहती थी न।" जब व्रोन्स्की सामने आया, तो वे और भी ज्यादा खुश हुई और उनका यह विचार और भी अधिक पुष्ट हो गया कि कीटी को केवल अच्छा ही नहीं, बल्कि बहुत बढ़िया वर मिलना चाहिए।

माँ के मतानुसार तो व्रोन्स्की और लेविन के बीच कोई तुलना ही नहीं हो सकती थी। माँ को लेविन के अजीब और उग्र विचार, ऊँचे समाज में उसका अटपटापन, जो उनके अनुसार घमंड का नतीजा था, तथा, जैसाकि वे समझती थीं, पशुओं और किसानों से सम्बन्धित गाँव का जंगली-सा जीवन पसन्द नहीं था। उन्हें तो यह भी बहुत अच्छा नहीं लगता था कि उनकी बेटी के प्रेम में डूबा हुआ वह डेढ़ महीने तक घर में आता रहा, मानो किसी चीज़ की प्रतीक्षा करता रहा, ऐसे इधर-उधर देखता रहा मानो यह सोचकर डरता हो कि विवाह का प्रस्ताव करके वह बहुत बड़ा सम्मान प्रदान कर देगा, इतना भी नहीं समझता था कि अक्सर उस घर में आने पर, जहाँ ब्याह-शादी के लायक लड़की हो, उसे अपने मन का भाव प्रकट करना चाहिए। और फिर कुछ भी कहे-सुने बिना अचानक चला गया। 'यही गनीमत है कि वह कुछ खास आकर्षक नहीं है, कि कीटी उससे प्रेम नहीं करने लगी है,' माँ सोचती थीं।

व्रोन्स्की कीटी की माँ की सभी इच्छाओं के अनुरूप था। वह बहुत धनी था, समझदार था, खानदानी था, राज-दरबार के शानदार फ़ौजी रुतबे की ओर बढ़ रहा था तथा बड़ा मनमोहक व्यक्तित्व था उसका। उससे बेहतर किसी बात की कामना नहीं की जा सकती थी।

बॉलों में व्रोन्स्की स्पष्टतः कीटी के प्रति अपना लगाव दिखाता था, उसी के साथ नाचता था और कीटी के घर आता था। ऐसा मानना सम्भव था कि उसके इरादे की संजीदगी के बारे में कोई शक ही नहीं हो सकता। किंतु इसके बावजूद माँ इस पूरे जाड़े में बहुत बेचैन और विह्वल रहीं।

खुद प्रिंसेस की तो तीस साल पहले मौसी की मार्फत शादी हुई थी। वर, जिसके बारे में पहले से ही सब कुछ स्पष्ट था, लड़की के घर पहुँचा, उसने लड़की को देखा और उसके घरवालों ने उसे भी देखा। मौसी ने दोनों पक्षों पर पड़नेवाले आपसी प्रभाव की जानकारी प्राप्त करके उन्हें उसके बारे में बताया। प्रभाव अच्छा पड़ा था। इसके बाद एक नियत दिन वर ने लड़की के माता-पिता के सामने प्रस्ताव किया और इस प्रत्याशित प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया। सब कुछ बहुत आसानी और सीधे-सादे ढंग से हो गया। कम-से-कम प्रिंसेस को तो ऐसा ही प्रतीत हुआ। लेकिन अपनी बेटियों के मामले में उन्होंने यह अनुभव किया कि बेटी का विवाह करने का बहुत ही मामूली प्रकट होनेवाला मामला कुछ आसान और सीधा-सादा नहीं है। दोनों बड़ी बेटियों दार्या और नताल्या की शादी करने के मामले में ही कितनी तरह के डर-भय का सामना करना पड़ा था, कितने इरादे बनाए और बदले गए थे, कितना पैसा खर्च करना पड़ा था और कितनी बार पति से झगड़े हुए थे। अब सबसे छोटी बेटी के ब्याह के लायक होने पर फिर वैसे ही डर-भय, वैसे ही सन्देहों, बल्कि बड़ी बेटियों की तुलना में अधिक सन्देहों तथा पति के साथ अधिक झगड़ों का मुँह देखना पड़ा रहा था। सभी पिताओं की तरह, बूढ़े प्रिंस अपनी बेटियों की इज़्ज़त और पाकीज़गी के मामले में बहुत ही संवेदनशील थे। वे बेटियों, विशेषतः कीटी के सिलसिले में, जिसे सबसे ज्यादा प्यार करते थे, बेसमझी की हद तक भावुक थे और कदम-कदम पर पत्नी से इस बात के लिए झगड़ा करते थे कि वह बेटी की प्रतिष्ठा का पूरा ध्यान नहीं रखती। प्रिंसेस बड़ी बेटियों के वक्त से ही इस चीज़ की आदी हो चुकी थीं, लेकिन अब वह महसूस करती थीं कि प्रिंस की इतनी अधिक संवेदनशीलता सर्वथा साधार है। उन्होंने देखा कि पिछले कुछ समय में ऊँचे समाज के तौर-तरीकों में बहुत-सी चीजें बदल गई हैं, कि माँ के कर्तव्य और भी ज्यादा मुश्किल हो गए हैं। उन्होंने देखा कि कीटी की हमउम्र लड़कियाँ कुछ अपने संगठन बनाती हैं, कई तरह के कोर्सों में जाती हैं, मर्दों के साथ आजादी से मिलती-जुलती हैं, सड़कों पर अकेली सवारी करती हैं, बहुत-सी अभिवादन करते हुए घुटनों को नहीं झुकातीं और सबसे बड़ी बात तो यह है कि सभी ऐसा यकीन रखती हैं कि अपने लिए पति चुनना तो उनका अपना काम है और माँ-बाप का इससे कोई वास्ता नहीं। 'अब तो पहले की तरह लड़कियों की शादी नहीं की जाती,' ये सभी युवतियाँ ऐसे सोचती और कहती थीं और कुछ बड़े-बूढों का भी यही हाल था। लेकिन अब बेटियों की शादी कैसे की जाती है, प्रिंसेस किसी से भी यह मालूम नहीं कर सकती थीं। फ्रांसीसी प्रथा, जिसके मुताबिक़ माँ-बाप बच्चों के भाग्य का निर्णय करते हैं, मान्य नहीं थी, उसकी आलोचना की जाती थी। अंग्रेज़ी प्रथा कि लड़कियों को पूरी आज़ादी दी जाए, यह भी अमान्य थी और रूसी समाज में असम्भव थी। सगाई की रूसी प्रथा बेहूदा मानी जाती थी और उसका सभी, खुद प्रिंसेस भी मज़ाक उड़ाती थीं। लेकिन कैसे और किस तरह लड़की की शादी की जाए, यह कोई नहीं जानता था। प्रिंसेस जिस किसी से भी इस मामले पर विचार-विनिमय करती थीं, वे सभी उसे यही जवाब देते थे: “हे भगवान, हमारे वक़्तों में इस पुरानी रीति को छोड़ना चाहिए। आखिर तो युवाजन को शादी करनी है, न कि माँ-बाप को। इसका मतलब यह है कि युवाजन जैसा चाहें, उन्हें वैसा ही करने देना चाहिए।" हाँ, ऐसी बातें तो उनके लिए कहना बहुत आसान था, जिनकी अपनी बेटियों नहीं थीं। किन्तु प्रिंसेस तो यह सोचती थीं कि निकटता होने पर बेटी को किसी से प्रेम हो सकता है और सो भी ऐसे व्यक्ति से, जो शादी न करना चाहे या फिर ऐसे व्यक्ति से, जो उसका पति बनने के योग्य न हो। प्रिंसेस को लोग चाहे कितना भी यह उपदेश क्यों न दें कि हमारे ज़माने में युवाजन को खुद अपनी किस्मत का फैसला करना चाहिए, वे इसको किसी तरह भी मानने को तैयार नहीं थीं, ठीक उसी तरह, जैसे कि कोई भी ज़माना क्यों न हो, पाँच साल के बच्चे के लिए गोलियों से भरी हुई पिस्तौल सबसे बढ़िया खिलौना नहीं हो सकती। इसलिए बड़ी बेटियों की तुलना में उन्हें कीटी की कहीं ज्यादा फ़िक्र रहती थी।

प्रिंसेस को अब इस बात का डर था कि व्रोन्स्की कीटी के प्रति प्रेम-प्रदर्शन तक ही सीमित न रह जाए। वे देख रही थीं कि बेटी तो उसे प्यार भी करने लगी है, लेकिन अपने को यह कहकर तसल्ली दे लेती थीं कि वह ईमानदार आदमी है और इसलिए कोई गलत बात नहीं करेगा। लेकिन साथ ही वे यह भी जानती थीं कि आजकल मिलने-जुलने की आज़ादी की बदौलत मर्द लड़की का दिमाग कैसे भटका सकते हैं और इस क़सूर को कितना कम महत्त्व देते हैं। पिछले हफ्ते कीटी ने माँ को मार्का नाच के वक्त व्रोन्स्की से हुई अपनी बातचीत बताई। इस बातचीत ने माँ को कुछ हद तक तो शान्त कर दिया, लेकिन वे पूरी तरह से शान्त नहीं हो सकती थीं। व्रोन्स्की ने कीटी से कहा कि वे दोनों भाई सभी बातों में माँ का हुक्म बजाने के ऐसे आदी हो गए हैं कि उससे सलाह किए बिना कभी कोई महत्त्वपूर्ण निर्णय नहीं कर सकते। 'अब मैं एक विशेष सौभाग्य के रूप में पीटर्सबर्ग से माँ के आगमन की प्रतीक्षा कर रहा हूँ,' व्रोन्स्की ने कहा था।

कीटी ने इन शब्दों को कोई विशेष महत्त्व दिए बिना माँ के सामने इन्हें दोहराया था। लेकिन माँ ने इसे दूसरे ही ढंग से समझा। माँ को मालूम था कि बुढ़िया का हर दिन इन्तज़ार हो रहा है, जानती थीं कि बुढ़िया बेटे के चुनाव से खुश होगी और उन्हें यह बात अजीब-सी लगती थी कि व्रोन्स्की माँ को नाराज़ करने के डर से कीटी के साथ अपना भाग्य जोड़ने का प्रस्ताव नहीं करता था। फिर भी वे इस रिश्ते के हो जाने और इससे भी ज़्यादा, अपनी आशंकाओं से मुक्ति पाने को इतनी उत्सुक थीं कि वे इस बात पर विश्वास करती थीं कि व्रोन्स्की अवश्य प्रस्ताव करेगा। बेटी दार्या का बहुत अधिक दुःख होने पर भी जो अपने पति को छोड़ने का इरादा बना रही थी, छोटी बेटी के भाग्य-निर्णय से सम्बन्धित बेचैनी उनकी सारी भावनाओं पर छाई हुई थी। आज लेविन के प्रकट होने पर प्रिंसेस के लिए एक नई परेशानी बढ़ गई। उन्हें इस बात का डर था कि कीटी, जिसके मन में, जैसाकि माँ को लगता था, कभी लेविन के प्रति कुछ भावना थी, कहीं ज़रूरत से ज्यादा ईमानदारी बरतते हुए व्रोन्स्की को इनकार न कर दे, कि वैसे भी लेविन के आने से यह मामला उलझ न जाए, बस, सिरे चढ़ते-चढ़ते अटक न जाए।

"बहुत दिन हो गए क्या उसे यहाँ आए हुए ?" घर लौटने पर माँ ने बेटी से पूछा।

"आज ही आया है, maman."

"मैं एक बात कहना चाहती हूँ..." माँ ने कहना शुरू किया और उनके चेहरे पर गम्भीरता और सजीवता की झलक से कीटी ने फ़ौरन यह अनुमान लगा लिया कि माँ क्या कहेंगी।

"माँ," कीटी ने लज्जारुण होते और जल्दी से उनकी ओर मुड़ते हुए कहा, "कृपया इस बारे में कुछ भी, कुछ भी नहीं कहिए। मैं जानती हूँ, सब कुछ जानती हूँ।"

कीटी भी वही चाहती थी, जो माँ चाहती थीं। लेकिन माँ की इच्छा के पीछे छिपी भावनाओं से उसके दिल को ठेस लगती थी।

"मैं सिर्फ इतना कहना चाहती हूँ कि एक को उम्मीद बँधाकर..."

"माँ, प्यारी माँ, भगवान के लिए कुछ नहीं कहिए। बहुत भयानक लगता है इस बारे में बात करना।"

"अच्छी बात है, नहीं करूँगी, नहीं करूँगी," बेटी की आँखों में आँसू देखकर माँ ने कहा। "लेकिन सिर्फ इतना ही, मेरी लाड़ली, कि तुमने मुझसे अपनी कोई भी बात न छिपाने का वादा किया है। नहीं छिपाओगी न ?"

"कभी, और कोई भी बात नहीं छिपाऊँगी," कीटी ने पुनः लज्जारुण होते और माँ से नज़र मिलाते हए जवाब दिया। "लेकिन अभी तो मेरे पास बताने को कुछ नहीं है। मैं...मैं...अगर मैं चाहती, मुझे मालूम नहीं कि क्या और कैसे कहूँ...मैं नहीं जानती..."

'नहीं, ऐसी आँखों के साथ वह झूठ नहीं बोल सकती,' बेटी की बेचैनी और सुख पर मुस्कराते हुए माँ ने सोचा। प्रिंसेस इस बात पर मुस्कुराईं कि अब बेटी की आत्मा में जो उथल-पुथल हो रही है, उस बेचारी को वह कितनी बड़ी और महत्त्वपूर्ण प्रतीत होती है !

अन्ना करेनिना : (अध्याय 13-भाग 1)

दोपहर के खाने के बाद शाम होने तक कीटी ने कुछ वैसा ही अनुभव किया, जैसा कोई किशोर लड़ाई शुरू होने के पहले महसूस करता है। उसका दिल बहुत ज़ोर से धड़क रहा था और विचार किसी भी विषय पर टिक नहीं पा रहे थे।

वह महसूस कर रही थी कि आज की शाम, जब लेविन और व्रोन्स्की पहली बार मिलेंगे, उसके जीवन में निर्णायक होनी चाहिए। वह लगातार उन दोनों की कल्पना कर रही थी-कभी अलग-अलग तो कभी दोनों की एकसाथ। जब वह अतीत के बारे में सोचती, तो बड़ी खुशी और स्नेह से लेविन के साथ अपने सम्बन्धों की यादों को दोहराती। बचपन की स्मृतियाँ और दिवंगत भाई के साथ लेविन की दोस्ती इन सम्बन्धों को विशेष काव्यमय माधुर्य प्रदान करतीं। अपने प्रति लेविन का प्यार. जिसके बारे में उसे पूरा विश्वास था, गौरवपूर्ण और सुखद लगता। लेविन को याद करने में उसे कोई कठिनाई अनुभव नहीं होती थी। किन्तु व्रोन्स्की की स्मृतियों में कुछ अटपटा-सा घुल-मिल जाता था, यद्यपि वह अपने तरीके-सलीके में बहुत ही मँजा हुआ और शान्त व्यक्ति था। उसे कोई बनावट-सी प्रतीत होती-व्रोन्स्की में नहीं, वह तो बहुत सरल और मधुर था, बल्कि खुद अपने में। दूसरी ओर लेविन के साथ वह अपने को सर्वथा सरल और स्पष्ट अनुभव करती। जब वह व्रोन्स्की के साथ अपने भविष्य के बारे में सोचती, तो उसे उसके बहुत ही शानदार और सुखद होने की सम्भावना नज़र आती थी, लेकिन लेविन के साथ भविष्य धुंधला-सा प्रतीत होता था।

शाम के लिए जब वह कपड़े पहनने को ऊपर गई और उसने दर्पण में खुद को निहारा, तो उसे इस बात की खुशी हुई कि आज उसका एक सबसे अच्छा दिन है और वह अपने को परी तरह सँभाले हुए है। जो बात होनेवाली थी, इसके लिए उसे उसकी बहुत ही ज़रूरत थी। वह अपने को शान्त और गतिविधियों में घबराहट-मुक्त सुन्दरता अनुभव कर रही थी।

शाम के साढ़े सात बजे वह जैसे ही मेहमानख़ाने में आई, वैसे ही नौकर ने सूचना दी : 'कोन्स्तान्तीन मीत्रयेविच लेविन।' प्रिंसेस अभी अपने ही कमरे में थीं और प्रिंस भी बाहर नहीं आए थे। "वही बात है," कीटी ने सोचा और उसका दिल बहुत ही ज़ोर से धक-धक करने लगा। दर्पण में अपने चेहरे को बिल्कुल ज़र्द देखकर वह सन्नाटे में आ गई।

अब तो उसे अच्छी तरह मालूम था कि लेविन क्यों दूसरों से पहले आया है। वह उसे अकेली पाकर विवाह का प्रस्ताव करना चाहता है। केवल इसी वक्त पहली बार सारा मामला एक भिन्न तथा नए रूप में उसके सामने उभरा। केवल इसी वक़्त वह यह समझ पाई कि इस प्रश्न का-वह किसके साथ सुखी होगी और किसे प्यार करती है-खुद उसी से सम्बन्ध नहीं है, बल्कि इसी क्षण उसे उस व्यक्ति का अपमान करना होगा, जिसे वह प्यार करती है। और बड़ी कठोरता से अपमान करना होगा...सो भी किसलिए? इसलिए कि वह मधुर व्यक्ति है, उसे प्यार करता है, उसके प्यार में डूबा हुआ है। लेकिन दूसरा कुछ हो ही नहीं सकता, ऐसा करना ही ज़रूरी है, ऐसा ही होना चाहिए।

'हे भगवान, क्या ख़ुद मुझे ही उसे यह कहना होगा ?' कीटी ने सोचा। लेकिन क्या कहूँगी मैं उसे ? क्या मैं उससे यह कहूँगी कि किसी दूसरे को प्यार करती हूँ ? नहीं, यह सम्भव नहीं। मैं यहाँ से चली जाती हूँ, चली जाती हूँ।'

कीटी दरवाजे के पास पहुँच चुकी थी, जब लेविन के पैरों की आहट मिली। 'नहीं. यह बेईमानी होगी ! किस बात का डर है मुझे? मैंने कुछ भी तो बुरा नहीं किया। जो कुछ होना है, सो हो जाए। सच्चाई कह दूँगी। हाँ, उसके मामले में घबराने की कोई बात नहीं। लो, वह आ गया,' लेविन की चमकती और अपने चेहरे पर जमी आँखों, उसकी हृष्ट-पुष्ट और सहमी-सी आकृति को देखकर उसने अपने आपसे कहा। कीटी ने सीधे नज़र मिलाते हुए उसकी तरफ़ देखा मानो उससे दया करने की मिन्नत कर रही हो, और हाथ मिलाया।

"लगता है कि मैं समय से बहुत पहले आ गया हूँ," खाली मेहमानखाने में नजर दौड़ाकर लेविन ने कहा। जब उसने यह देखा कि जैसा उसने सोचा था, वैसा ही है, कि किसी भी तरह की बाधा के बिना अपनी बात कह सकता है, तो उसके चेहरे पर मुर्दनी-सी छा गई।

"नहीं, नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है," कीटी ने कहा और मेज़ के पास बैठ गई।

"लेकिन मैं यही चाहता था कि आप मुझे अकेली ही मिल जाएँ," लेविन ने बैठे बिना और उसकी तरफ़ देखे बिना ही, ताकि उसका साहस जवाब न दे जाए, कहना शुरू किया।

"माँ अभी आ जाएँगी। वे कल बहुत थक गई थीं। कल..."

कीटी खुद यह जाने बिना कि उसके होंठ क्या कह रहे हैं, कहती जा रही थी और उसकी मिन्नत करती तथा स्नेह-स्निग्ध दृष्टि उसके चेहरे पर जमी हुई थी। लेविन ने कीटी की तरफ़ देखा। कीटी के चेहरे पर लज्जा की लाली दौड़ गई और वह खामोश हो गई।

"मैंने आपसे कहा था कि न कि मैं बहुत दिन के लिए आया हूँ या नहीं...कि यह आप पर निर्भर है ..."

यह न समझ पाते हुए कि बहुत जल्द ही सामने आनेवाले सवाल का क्या जवाब देगी, वह अपने सिर को अधिकाधिक नीचे झुकाती जाती थी।

"कि यह आप पर निर्भर है," लेविन ने इन शब्दों को दोहराया। "मैं कहना चाहता था...मैं यह कहना चाहता था...मैं इसीलिए आया हूँ...कि...आप मेरी पत्नी बन जाएँ!" खुद यह न जानते हुए कि उसने क्या कहा है, किन्तु यह महसूस करते हुए कि सबसे भयानक बात कही जा चुकी है, वह रुका और उसने कीटी की तरफ़ देखा।

कीटी उसकी ओर देखे बिना हाँफ-सी रही थी। उसे अपार हर्ष की अनुभूति हुई। उसका हृदय गद्गद हो रहा था। उसने कभी ऐसी आशा नहीं की थी कि लेविन की प्रेम-स्वीकृति का उसके मन पर इतना गहरा सुखद प्रभाव पड़ेगा। किन्तु ऐसी स्थिति तो केवल क्षण-भर रही। उसे व्रोन्स्की का ध्यान आया। उसने अपनी हल्के रंग की निर्मल आँखें लेविन की ओर उठाईं और उसके हताश चेहरे पर जल्दी से नज़र डालकर यह जवाब दे दिया :

"ऐसा नहीं हो सकता...क्षमा चाहती हूँ..."

एक मिनट पहले कीटी उसके हृदय के कितने निकट थी, उसके जीवन के लिए कितना अधिक महत्त्व था उसका ! और अब वह कितनी परायी तथा उससे कितनी दूर हो गई थी !

"मुझे ऐसी ही उम्मीद थी," कीटी की ओर देखे बिना ही लेविन ने कहा।

उसने सिर झुकाया और जाना चाहा।

अन्ना करेनिना : (अध्याय 14-भाग 1)

किन्तु ठीक इसी समय प्रिंसेस बाहर आ गईं। उन्होंने जब इन दोनों को अकेले और उनके चेहरों पर परेशानी देखी, तो उनके चेहरे का रंग उड़ गया। लेविन ने सिर झुकाकर अभिवादन किया और कुछ भी नहीं कहा। कीटी नज़र झुकाए खामोश रही। 'भला हो भगवान का, इसने इनकार कर दिया, माँ ने सोचा और उनके चेहरे पर वही सामान्य मुस्कान खिल उठी, जिससे वे बृहस्पतिवार को मेहमानों का स्वागत करती थीं। लेविन भी मेहमानों के आने की राह देखते हुए, ताकि चुपचाप यहाँ से खिसक सके, फिर से बैठ गया।

पाँच मिनट बाद कीटी की सहेली काउंटेस नोर्डस्टोन आ गई। पिछले जाड़े में ही उसकी शादी हुई थी।

यह दुबली-पतली, पांडुवर्णी, काली चमकती आँखोंवाली अस्वस्थ तथा चिड़चिड़ी-सी औरत थी। यह कीटी को प्यार करती थी और उसके प्रति उसका प्यार वैसा ही था जैसाकि विवाहित नारियों का हमेशा अविवाहित लड़कियों के प्रति होता है यानी वह सुख के अपने आदर्श के अनुसार उसकी शादी करवाना चाहती थी, इसलिए कीटी को व्रोन्स्की की पत्नी देखने को ही उत्सुक थी। लेविन, जिससे वह जाड़े के शुरू में इस घर में अक्सर मिलती रही थी, उसे कभी भी अच्छा नहीं लगा था। उससे मुलाकात होने पर उसकी हमेशा और यही मनपसन्द दिलचस्पी रहती थी कि उसका मज़ाक उड़ाए।

"जब वह अपनी महानता की ऊँचाई से मेरी ओर देखता है या मेरे साथ अपनी बुद्धिमत्तापूर्ण बातें बन्द कर देता है, क्योंकि मैं बुद्धू हूँ, या मेरे स्तर पर उतरने की कृपा करता है, तो मुझे बहुत अच्छा लगता है। बहुत अच्छा लगता है और इस बात की बड़ी खुशी है कि मैं उसे फूटी आँखों नहीं सुहाती हूँ," वह उसके बारे में कहती।

काउंटेस नोर्डस्टोन की बात सही थी, क्योंकि लेविन को वह सचमुच ही फूटी आँखों नहीं सुहाती थी और काउंटेस अपने जिस चिड़चिड़ेपन और हर दिन के जीवन के खुरदरेपन के प्रति उदासीनता तथा तिरस्कार की भावना पर गर्व करती थी, इन्हें अपने लिए विशेष गरिमा की बात मानती थी, लेविन इन्हें ही तुच्छ समझता था।

नोर्डस्टोन और लेविन के बीच ऊँचे समाज में अक्सर पाए जानेवाले ऐसे सम्बन्ध कायम हो गए थे, जब दो व्यक्ति बाहरी तौर पर मैत्री भाव दिखाते हुए भी एक-दूसरे से इस हद तक नफ़रत करते हैं कि एक-दूसरे के साथ गम्भीर व्यवहार भी नहीं कर सकते और नाराज़ भी नहीं हो सकते।

काउंटेस नोर्डस्टोन ने फ़ौरन लेविन पर तीर छोड़ा।

“अरे, कोन्स्तान्तीन द्मीत्रियेविच ! फिर से आ गए हमारे पापभरे बैबिलोन में !" उसने लेविन से अपना छोटा-सा पीला हाथ मिलाते और जाड़े के शुरू में कभी लेविन द्वारा कहे गए ये शब्द कि मास्को दूसरा बैबिलोन है, याद दिलाते हुए कहा। "तो क्या बैबिलोन का सुधार हो गया या आप खराब हो गए ?" व्यंग्यपूर्ण मुस्कान के साथ कीटी की तरफ़ देखते हुए उसने इतना और जोड़ दिया।

"काउंटेस, मेरे लिए यह बड़ी प्रशंसा की बात है कि आप मेरे शब्दों को ऐसे याद रखती हैं," लेविन ने जवाब दिया, जो इसी बीच सँभल गया था और आदत के मुताबिक़ काउंटेस के साथ अपने हास्ययुक्त शत्रुतापूर्ण ढंग से बात करने लगा था। "हाँ, आप पर उनका बहुत ही गहरा असर होता है ।"

"अजी, असर कैसे नहीं होगा ! मैं तो उन्हें लिख लेती हैं। तो कीटी, तुमने आज फिर स्केटिंग की ?..."

और काउंटेस कीटी से बातचीत करने लगी। लेविन के लिए अब जाना बेशक बहुत अटपटा था, फिर भी सारी शाम यहाँ रुककर कीटी को, जो कभी-कभी उसकी तरफ़ देखती थी और उससे नज़र बचाती थी, देखने की तुलना में यह अटपटापन करना बेहतर था। लेविन ने उठना चाहा, मगर प्रिंसेस ने यह देखकर कि लेविन चुप है, उसे सम्बोधित किया :

"बहुत दिनों के लिए आए हैं क्या आप मास्को ? मेरे खयाल में तो आप ज़ेम्सत्वो-परिषद के काम में लगे हुए हैं और इसलिए बहुत दिनों तक यहाँ नहीं रह सकते।"

"नहीं, प्रिंसेस, मैं अब ज़ेम्सत्वो-परिषद के काम में हिस्सा नहीं लेता हूँ,” उसने जवाब दिया। “मैं कुछ दिनों के लिए आया हूँ।"

'कोई खास बात है आज इसके साथ,' काउंटेस नोर्डस्टोन ने लेविन के कठोर और गम्भीर चेहरे को गौर से देखते हुए सोचा। 'जाने क्यों, आज वह अपने तर्क-वितर्क के फेर में नहीं पड़ता। लेकिन मैं इसे ऐसे रहने नहीं दूँगी। कीटी के सामने इसका उल्लू बनाना मुझे बहुत अच्छा लगता है कि मैं ऐसा करके ही रहूँगी।

"कोन्स्तान्तीन द्मीत्रियेविच," काउंटेस नोर्डस्टोन बोली, “कृपया इस एक मामले पर रोशनी डालिए-आप यह सब कुछ जानते हैं-हमारे कालूगा प्रदेश के एक गाँव के किसानों और वहाँ की औरतों ने वह सभी कुछ पी डाला, जो उसके पास था और अब हमें कुछ भी नहीं देते। क्या मतलब है ऐसी हरकत का ? आप हमेशा किसानों की इतनी तारीफ़ करते रहते हैं।"

इसी वक्त एक अन्य महिला कमरे में आई और लेविन उठकर खड़ा हो गया।

"माफ़ी चाहता हूँ, काउंटेस, लेकिन सचमुच मुझे ऐसा कुछ मालूम नहीं है और इस बारे में कुछ भी नहीं कह सकता," लेविन ने कहा और महिला के पीछे-पीछे कमरे में दाखिल होनेवाले फ़ौजी अफ़सर की तरफ़ मुड़कर देखा।

'यही व्रोन्स्की होना चाहिए,' लेविन ने सोचा और इस बात का पक्का यक़ीन कर लेने के लिए उसने कीटी पर नज़र डाली। कीटी ने तो व्रोन्स्की को देख भी लिया था और अब उसने लेविन की ओर दृष्टि घुमाई। कीटी की इस एक नज़र, अपने आप ही चमक उठनेवाली उसकी आँखों से ही लेविन यह समझ गया कि वह इस व्यक्ति को प्यार करती है। वह उतनी ही अच्छी तरह यह समझ गया, जितना कि खुद कीटी द्वारा यही कह देने पर समझा होता। लेकिन किस क़िस्म का आदमी है यह ?

अब अच्छा हो या बुरा-लेविन यहाँ रुके बिना नहीं रह सकता था। उसके लिए यह जानना ज़रूरी था कि वह किस किस्म का आदमी है, जिसे कीटी प्यार करती है।

ऐसे लोग हैं, जो हर मामले में अपने से अधिक सौभाग्यशाली प्रतिद्वन्द्वी के सामने आने पर उसकी सभी अच्छाइयों की ओर से फ़ौरन आँख मूंद लेने और उसमें केवल बुराइयाँ ही देखने को तैयार होते हैं। दूसरी ओर, ऐसे भी लोग हैं, जो अपने इस भाग्यशाली प्रतिद्वन्द्वी में वे खूबियाँ ढूँढ़ने की कोशिश करते हैं, जिनकी बदौलत उसने उन्हें मात दी और टीसते हुए दिल से उसमें सिर्फ़ गुण ही गुण खोजते हैं। लेविन दूसरी श्रेणी के लोगों में से था। किन्तु उसे व्रोन्स्की में अच्छाई तथा आकर्षण ढूंढ़ पाने में कोई कठिनाई नहीं हुई। फ़ौरन ही उसे यह नज़र आ गया। मँझोला कद, काले बाल और तगड़ी-मज़बूत काठी, सुशील, सुन्दर तथा बहुत ही शान्त और दृढ़ चेहरा-ऐसा था व्रोन्स्की । उसके चेहरे और आकृति, छोटे-छोटे कटे काले बालों और ताज़ा बनाई गई दाढ़ी से लेकर चुस्त-दुरुस्त नई वर्दी तक हर चीज़ में सादगी के साथ-साथ नफासत भी थी। कमरे में दाखिल हो रही महिला को रास्ता देकर व्रोन्स्की प्रिंसेस और फिर कीटी के पास गया।

व्रोन्स्की जब कीटी के पास गया, तो उसकी सुन्दर आँखें विशेष स्नेह से चमक उठीं और वह तनिक प्रत्यक्ष सुखद तथा विनयी-विजयी मुस्कान (लेविन को ऐसा ही लगा) के साथ बड़े आदर तथा सावधानी से उसके ऊपर झुका और उसने अपना छोटा, किन्तु चौड़ा हाथ उसकी तरफ़ बढ़ाया।

सभी से हाथ मिलाने और कुछ शब्द कहने के बाद व्रोन्स्की अपने को टकटकी बाँध देखते हुए लेविन की तरफ़ एक बार देखे बिना ही बैठ गया।

“आइए, आपका परिचय करा दूँ," लेविन की ओर संकेत करते हुए प्रिंसेस ने कहा। "कोन्स्तान्तीन द्मीत्रियेविच लेविन, काउंट अलेक्सेई किरील्लोविच व्रोन्स्की।"

व्रोन्स्की उठा और मैत्रीपूर्ण ढंग से लेविन की आँखों में झाँकते हए उसने उससे हाथ मिलाया।

"लगता है कि इस जाड़े में मुझे आपके साथ खाना खाना था," अपनी सरल और निश्छल मुस्कान के साथ उसने कहा, "लेकिन आप अचानक गाँव चले गए।"

"कोन्स्तान्तीन द्मीत्रियेविच शहर और हम शहरी लोगों को तिरस्कार और घृणा की दृष्टि से देखते हैं," काउंटेस नोर्डस्टोन ने चुटकी ली।

"लगता है कि मेरे शब्द आप पर इतना ज़्यादा असर डालते हैं कि आप उन्हें इतनी अच्छी तरह से याद रखती हैं," लेविन ने कहा और यह याद करके कि वह पहले भी यही कह चुका है, शर्म से लाल हो गया।

व्रोन्स्की ने लेविन, फिर काउंटेस नोर्डस्टोन की तरफ़ देखा और मुस्कुरा दिया।

"आप हमेशा गाँव में ही रहते हैं ?" व्रोन्स्की ने पूछा। "मेरे ख़याल में जाड़े में वहाँ ऊब महसूस होती होगी।"

"अगर करने को कोई काम हो, तो ऊब महसूस नहीं होती और फिर अपने साथ भी ऊब का सवाल नहीं पैदा होता," लेविन ने उग्रता से जवाब दिया।

"मुझे गाँव अच्छा लगता है," व्रोन्स्की ने लेविन के अन्दाज़ को महसूस करते, किन्तु ऐसा दिखाते हुए मानो उसने कुछ महसूस नहीं किया, जवाब दिया।

"लेकिन काउंट, मैं यह उम्मीद करती हूँ कि हमेशा गाँव में रहने को आप कभी राज़ी न होते," काउंटेस नोर्डस्टोन ने कहा।

“मालूम नहीं, मैंने बहुत दिनों रहकर देखा नहीं। मुझे एक बार एक अजीब-सी अनुभूति हुई थी," व्रोन्स्की कहता गया। "जाड़े भर माँ के साथ नीस में रहने पर मुझे गाँव, छाल के जूतों और किसानोंवाले रूसी गाँव की जितनी याद आई, इतनी कभी और कहीं नहीं आई थी। आप जानते ही हैं, नीस तो खुद ऊब पैदा करनेवाली जगह है। वास्तव में निपल्स तथा सोरेंटो भी थोड़े समय के लिए ही अच्छे लगते हैं। वहाँ खासतौर पर रूस की, रूसी गाँव की बड़ी याद आती है। वे तो बिल्कुल ऐसे हैं कि..."

वह कीटी और लेविन को सम्बोधित करते तथा अपनी शान्त और मैत्रीपूर्ण दृष्टि कभी एक, तो कभी दूसरे की ओर घुमाता हुआ सम्भवतः वह सब कुछ कहता जाता था, जो उसके दिमाग में आ रहा था।

यह देखकर कि काउंटेस नोर्डस्टोन कुछ कहना चाहती है, वह बीच में ही चुप हो गया और बहुत ध्यान से उसकी बात सुनने लगा।

बातचीत क्षण-भर को भी बन्द नहीं हुई। इसलिए बूढ़ी प्रिंसेस को अपने तरकश में सँजोए हुए विषयों के उन दो भारी तीरों-क्लासिकल और विज्ञानों सम्बन्धी शिक्षा और अनिवार्य व्यापक सैनिक सेवा-में से किसी को नहीं चलाना पड़ा तथा काउंटेस नोर्डस्टोन को लेविन को चिढ़ाने का अवसर नहीं मिला।

लेविन आम बातचीत में हिस्सा लेना चाहता था, लेकिन ऐसा नहीं कर पा रहा था। हर क्षण अपने से यह कहते हुए 'मैं अब जा सकता हूँ, वह मानो किसी चीज़ की प्रतीक्षा करता हुआ गया नहीं।

घूमनेवाली मेज़ों और भूत-प्रेतों के बारे में बातचीत चल पड़ी और प्रेतविद्या में विश्वास रखनेवाली काउंटेस नोर्डस्टोन उन अजूबों की चर्चा करने लगी, जो उसने देखे थे।

"ओ, काउंटेस, भगवान के लिए अवश्य ही मुझे उनसे मिला दीजिए ! मैंने कभी और कहीं भी कुछ ऐसा असाधारण नहीं देखा, यद्यपि हर जगह उसे ढूँढ़ता रहता हूँ," व्रोन्स्की ने मुस्कुराते हुए कहा।

"अच्छी बात है, अगले शनिवार को," काउंटेस नोर्डस्टोन ने जवाब दिया। "और आप कोन्स्तान्तीन द्मीत्रियेविच, क्या आप इनमें विश्वास करते हैं ?" उसने लेविन से पूछा।

"किसलिए पूछ रही हैं आप मुझसे ? आप तो जानती ही हैं कि मेरा क्या जवाब होगा।"

"मगर मैं आपका मत जानना चाहती हूँ।"

"मेरा मत तो सिर्फ यही है कि घूमनेवाली मेजें यह साबित करती हैं," लेविन ने जवाब दिया, "कि हमारे पढ़े-लिखे समाज के लोग किसानों से बेहतर नहीं हैं। किसान नज़र लगने, शाप देने और जादू-टोना करने में यकीन करते हैं और हम..."

"तो आप विश्वास नहीं करते ?"

"नहीं कर सकता, काउंटेस।"

"लेकिन अगर मैंने अपनी आँखों से देखा हो, तो "

"देहाती औरतें भी ऐसा कहती हैं कि उन्होंने घर में रहनेवाले बौने भूतों को देखा है।"

"तो आप यह समझते हैं कि मैं झूठ बोल रही हूँ ?" और वह उदासी से हँस दी।

"नहीं, यह बात नहीं है, माशा। कोन्स्तान्तीन द्मीत्रियेविच तो यह कह रहे हैं कि वे विश्वास नहीं कर सकते," कीटी ने लेविन के लिए लज्जित होते हुए कहा। लेविन यह समझ गया और पहले से भी अधिक चिढ़कर उसने इसका जवाब देना चाहा, किन्तु व्रोन्स्की ने अपनी निश्छल और खुली मुस्कान से इस बातचीत को सँभाल लिया, जो सम्भवतः कट होने जा रही थी।

"आप इसकी सम्भावना को बिल्कुल स्वीकार नहीं करते ?" व्रोन्स्की ने पूछा।

"भला क्यों ? हम बिजली के अस्तित्व की सम्भावना को स्वीकार करते हैं, जिसके बारे में कुछ नहीं जानते हैं। भला ऐसी नई शक्ति क्यों नहीं हो सकती, जिससे हम अनजान हैं और जो..."

"बिजली जब खोजी गई," लेविन ने जल्दी से उसे टोका, “तो केवल एक प्राकृतिक व्यापार का पता चलाया गया था। तब यह मालूम नहीं था कि बिजली कहाँ से पैदा होती है और वह क्या पैदा करती है। उसकी व्यावहारिक उपयोग करने की बात सोचने के पहले सदियाँ बीत गई। इसके विपरीत, भूत-प्रेतों की बात तो यहाँ से शुरू हुई कि मेजें लोगों के लिए लिखती हैं और उनके पास आत्माएँ आती हैं, इसके बाद ही ऐसा कहा जाने लगा कि वह अनजानी शक्ति है।"

हमेशा की तरह व्रोन्स्की बहुत ध्यान से, स्पष्टतः बड़ी दिलचस्पी लेते हुए लेविन की बात सुन रहा था।

"हाँ, लेकिन भूतों-प्रेतों में विश्वास करनेवाले कहते हैं : अभी हमें इतना मालूम नहीं कि यह कौन सी शक्ति है, लेकिन ऐसी शक्ति है ज़रूर और वह इस तरह की परिस्थितियों में क्रियाशील होती है। यह पता लगाना वैज्ञानिकों का काम है कि इस शक्ति का क्या रूप है। नहीं, मेरी समझ में नहीं आता कि यह क्यों कोई नई शक्ति नहीं हो सकती अगर..."

"इसीलिए नहीं हो सकती," लेविन ने उसे टोका, "कि बिजली के मामले में जब भी हम सूखी राल को ऊन से रगड़ते हैं, तो हर बार एक खास नतीजा सामने आता है, मगर यहाँ हर बार ऐसा नहीं होता। इसलिए कहा जा सकता है, यह प्राकृतिक व्यापार नहीं है।"

सम्भवतः ऐसा अनुभव करते हुए कि मेहमानखाने की दृष्टि से यह बातचीत कुछ ज्यादा ही गम्भीर होती जा रही है, व्रोन्स्की ने कोई आपत्ति नहीं की और बातचीत का विषय बदलने के लिए उसने खुशमिज़ाजी से मुस्कुराकर महिलाओं को सम्बोधित किया।

"तो काउंटेस, आइए, हम अभी प्रेतों को बुलाने की कोशिश करें," उसने कहना शुरू किया, लेकिन लेविन जैसा समझता था, वह सब कहना चाहता था।

"मैं समझता हूँ," उसने अपनी बात जारी रखी, "कि भूतों-प्रेतों को माननेवालों की अपने करिश्मों को एक नई शक्ति के रूप में स्पष्ट करने की कोशिश एकदम नाकाम है। वे प्रत्यक्षतः आत्मिक शक्ति की बात करते हैं और उसे भौतिक तजरबे का विषय बनाना चाहते हैं।"

सभी इस बात की प्रतीक्षा कर रहे थे कि लेविन कब अपनी बात खत्म करता है और उसने यह अनुभव किया।

"और मेरे खयाल में आप भूतों-प्रेतों को बुलाने का बहुत ही बढ़िया माध्यम बन सकेंगे," काउंटेस नोर्डस्टोन ने लेविन से कहा, "आपमें कुछ खास उत्साहपूर्ण चीज़ है।"

लेविन ने मुँह खोला, कुछ कहना चाहा, लेकिन उसके चेहरे पर लाली दौड़ गई और उसने कुछ भी नहीं कहा।

"येकातेरीना अलेक्सान्द्रोव्ना, तो आइए, इसी वक़्त मेज़ों का तजरबा करें। मैं अनुरोध करता हूँ," व्रोन्स्की बोला। "प्रिंसेस, आपकी अनुमति है न ?"

और व्रोन्स्की आँखों से मेज़ को खोजता हुआ उठकर खड़ा हो गया।

कीटी मेज़ की ओर जाने के लिए उठी और लेविन के करीब से गुज़रते हुए उससे उसकी नज़रें मिलीं। उसे सच्चे दिल से लेविन के लिए अफ़सोस हो रहा था। खासतौर पर इस कारण कि उसे लेविन के उस दुःख के लिए अफ़सोस हो रहा था, जिसकी वजह वह खुद थी। 'अगर मुझे माफ़ कर सकते हैं, तो कर दीजिएगा, कीटी की नज़र कह रही थी। 'मैं कितनी सुखी हूँ।'

'सभी से नफ़रत है मुझे, आपसे और खुद अपने से भी,' लेविन की नज़र कह रही थी और उसने अपना टोप उठा लिया। लेकिन जाना उसके भाग्य में नहीं बदा था। बाकी लोग मेज़ के गिर्द बैठ रहे थे और लेविन जाना ही चाह रहा था कि तभी बूढ़े प्रिंस आ गए और महिलाओं का अभिवादन करने के बाद उन्होंने लेविन को सम्बोधित किया।

“अहा !" वे खुशी से कह उठे। “कब आए ? मुझे मालूम नहीं था कि तुम यहाँ हो। बहुत खुशी हुई आपके आने से।"

बूढ़े प्रिंस लेपिन को कभी 'तुम' और कभी 'आप' कहकर सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने उसे गले लगाया और उससे बात करते हुए व्रोन्स्की की तरफ़ कोई ध्यान नहीं दिया, जो खड़ा होकर शान्ति से इस बात का इन्तज़ार कर रहा था कि प्रिंस कब उसकी तरफ़ ध्यान देते हैं।

कीटी महसूस कर रही थी कि जो कुछ हो चुका था, उसके बाद पिता के स्नेह-प्रदर्शन से लेविन के मन पर कितनी भारी गुजर रही होगी। उसने यह भी देखा कि उसके पिता ने कैसी रुखाई से आखिर व्रोन्स्की के अभिवादन का उत्तर दिया और कैसे व्रोन्स्की मैत्रीपूर्ण असमंजस के साथ उसके पिता की ओर देखता हुआ यह समझने की कोशिश कर रहा था और समझ नहीं पा रहा था कि उसके प्रति क्यों और किस कारण ऐसी रुखाई हो सकती है। कीटी इसी वजह से लज्जारुण हो गई।

"प्रिंस, कोन्स्तान्तीन द्मीत्रियेविच को हमारे पास आ जाने दीजिए." काउंटेस नोर्डस्टोन ने कहा। "हम तजरबा करना चाहते हैं।"

"कैसा तजरबा ? मेजें घुमाने का ? देवियो और सज्जनो, क्षमा चाहता हूँ, लेकिन मेरे खयाल में तो अँगूठी का खेल खेलना कहीं ज्यादा रोचक है," बूढ़े प्रिंस ने व्रोन्स्की की ओर देखते तथा यह अनुमान लगाते हुए कहा कि ऐसा विचार उसी के दिमाग की उपज है। “अँगूठी का खेल तो फिर भी कोई माने रखता है।"

व्रोन्स्की ने हैरान होते हुए नज़र टिकाकर प्रिंस की तरफ़ देखा और तनिक मुस्कुराकर उसी क्षण काउंटेस नोर्डस्टोन के साथ अगले सप्ताह होनेवाले एक बड़े बॉल की चर्चा करने लगा।

"मैं आशा करता हूँ, आप वहाँ आएँगी ?" उसने कीटी से कहा।

बूढ़े प्रिंस का ज्यों ही दूसरी तरफ़ ध्यान हुआ, त्यों ही लेविन चुपके से बाहर चला गया। इस शाम की जो अन्तिम छाप वह अपने साथ ले गया, वह थी बॉल के बारे में व्रोन्स्की के सवाल के जवाब में कीटी का खुशी से मुस्कुराता हुआ चेहरा।

अन्ना करेनिना : (अध्याय 15-भाग 1)

महफ़िल खत्म हो जाने पर कीटी ने माँ को लेविन से हुई अपनी बातचीत कह सुनाई। लेविन पर चाहे उसे कितना भी तरस क्यों नहीं आ रहा था, फिर भी उसे इस ख्याल से खुशी हो रही थी कि उसने उससे शादी का प्रस्ताव किया था। उसने वही किया है, जो करना चाहिए था, इसके बारे में उसके मन में कोई सन्देह नहीं था। लेकिन उसे देर तक नींद नहीं आई। एक छाप उसे लगातार परेशान कर रही थी। यह छाप थी लेविन के चेहरे की और कैसे वह नाक-भौंह सिकोड़े हुए उसके पिता की बातें सुन रहा था तथा अपनी दयालु आँखों की बुझी-बुझी तथा उदास नज़र से उसे और व्रोन्स्की को देख रहा था ! इतनी अधिक दया आई उसे लेविन पर कि उसकी आँखें डबडबा आईं। किन्तु उसने उसी क्षण उसके बारे में सोचा, जिसने उसके दिल में लेविन की जगह ले ली थी। वह साहसपूर्ण और दृढ़, गरिमापूर्ण शान्ति तथा सभी बातों में और सभी के लिए खिला रहनेवाला चेहरा उसकी स्मृति में सजीव हो उठा। उसे अपने प्रति उस व्यक्ति का प्यार याद हो आया, जिसे वह खुद प्यार करती थी और फिर से उसका मन खुशी से भर गया तथा सुख-स्मृति लिए हुए उसने तकिए पर अपना सिर टिका दिया। 'मुझे दुःख है, बहुत दुःख है, लेकिन मैं कर ही क्या सकती थी ? मेरा कोई कसूर नहीं है, वह खुद से कह रही थी, किन्त उसके अन्तर से दूसरी ही आवाज़ आ रही थी। उसे इस बात का अफ़सोस हो रहा था कि उसने लेविन को क्यों प्रोत्साहन दिया या इस बात का कि उसे इनकार कर दिया-वह खुद यह नहीं जानती थी। किन्तु उसकी खुशी में सन्देहों का विष मिला हुआ था। 'हे भगवान, दया करें, दया करें, दया करें, भगवान, नींद आने तक वह मन-ही-मन यह कहती रही।

इसी वक़्त नीचे, प्रिंस के छोटे-से कमरे में प्यारी बेटी को लेकर अक्सर जो नाटक होता रहता था, उसी का एक दृश्य दोहराया जा रहा था।

"क्या हुआ है ? यह हुआ है !" प्रिंस बाँहों को जोरों से हिलाते-डुलाते और साथ ही गिलहरी की खाल का अपना गाउन कसते हुए चिल्ला रहे थे। “हुआ यह है कि आपमें आत्मसम्मान नहीं है, अपने गौरव की भावना नहीं है, कि आप ऐसे घटिया और कमीने ढंग से रिश्ता करने की कोशिश से बेटी की इज्जत कम कर रही हैं, उसे बर्बाद कर रही हैं।"

"भगवान के लिए दया करो, प्रिंस, मैंने क्या किया है ?" प्रिंसेस लगभग रोते हए कह रही थीं।

कीटी की माँ बेटी के साथ अपनी बातचीत के बाद बहुत सुखी और खुश होती हुई पति को सामान्य ढंग से शुभ रात्रि कहने आई। यद्यपि वे पति को लेविन के विवाह-प्रस्ताव और कीटी के इनकार के बारे में बताने का कोई इरादा नहीं रखतीं, तथापि उन्होंने अपना इतना संकेत ज़रूर कर दिया कि व्रोन्स्की के साथ कीटी का मामला लगभग सिरे चढ़ चुका है, कि जैसे ही उसकी माँ मास्को आएगी, वैसे ही सब कुछ तय हो जाएगा। बस, ये सब सुनते ही प्रिंस अचानक भड़क उठे और अशिष्ट शब्द कहते हुए चिल्लाने लगे:

"क्या किया है आपने ? आपने सबसे पहले तो यह किया है कि आप बेटी के लिए वर को फुसलाती हैं। सारा मास्को ऐसा कहेगा और बिल्कुल सही कहेगा। अगर आप महफ़िल जमाती हैं, तो सभी को बुलाइए, सिर्फ ऐसे चुने हुओं को नहीं, जो आपकी बेटी के लिए वर हो सकते हैं। उन सभी बाँके-छैलों (प्रिंस ने मास्को के युवाजन को ऐसी संज्ञा दी) को बुलाइए, पियानो-वादक को आमन्त्रित कीजिए और नाचने दीजिए सबको। ऐसे नहीं कीजिए, जैसे आज किया गया-वर का शिकार किया जाए। मुझे देखकर घिन आती है, नफ़रत होती है और आपने अपने मन की बात पूरी कर ली, बच्ची के दिमाग को चक्कर में डाल दिया। लेविन हज़ार गुना बेहतर आदमी है। और वह पीटर्सबर्ग का बाँका-छैला, ये सभी तो एक ही मशीन में तैयार होते हैं, सभी एक साँचे में ढलते हैं और सभी दो कौड़ी के हैं। अगर वह शाही खूनवाला शहज़ादा भी होता, तो भी मेरी बेटी को उसकी ज़रूरत नहीं है।"

"लेकिन मैंने क्या किया है ?"

"यह किया है..." प्रिंस गुस्से से चिल्लाए।

"मुझे मालूम है कि अगर मैं तुम्हारी बातों पर कान दूंगी, तो कभी बेटी की शादी नहीं कर पाऊँगी। अगर ऐसी बात है तो हमें गाँव चले जाना चाहिए।"

"यही करना बेहतर होगा।"

"लेकिन ज़रा रुको। मैं क्या किसी के आगे-पीछे घूम रही हूँ ? मैं बिल्कुल ऐसा नहीं कर रही हूँ। एक जवान, बहुत ही अच्छा जवान आदमी उसे प्यार करने लगा है और मुझे लगता है कि वह भी..."

"हाँ, आपको लगता है। वह वास्तव में ही उसे प्यार करने लगेगी, जबकि वह शादी करने के बारे में वैसा ही इरादा रखता हो, जैसाकि मैं सोचता हूँ, तब क्या होगा ? ओह ! मेरी आँखें फूट जाएँ .... आह भूत-प्रेतवाद, आह नीस, आह बॉल..." और प्रिंस पत्नी की नकल उतारते हुए हर बार घुटनों को झुकाते। “और ऐसे हम कीटी को दुर्भाग्य की ओर धकेल देंगे, उसके दिमाग में सचमुच यह चीज़ आ जाएगी..."

"लेकिन तुम ऐसा क्यों सोचते हो?"

"मैं सोचता नहीं, बल्कि जानता हूँ। इसके लिए हमारे पास आँखें हैं, औरतों के पास नहीं। मैं संजीदा इरादेवाले आदमी को देख रहा हूँ, यह आदमी लेविन है। और उस बाँके-छैले जैसे बटेर को भी देख रहा हूँ, जिसे सिर्फ रंगरलियों से ही मतलब है।"

"बस, तुम तो उल्टी-सीधी बातें भर लेते हो दिमाग में..."

"देख लेना, याद करोगी मेरी इन बातों को। लेकिन तब देर हो चुकी होगी, जैसेकि डॉली के मामले में।"

“खैर, हटाओ, हटाओ, हम इसकी चर्चा नहीं करेंगे," प्रिंसेस ने डॉली के दुर्भाग्य की याद आने पर पति को रोका।

“अच्छी बात है। शुभ रात्रि!"

और दोनों ने एक-दूसरे पर सलीब का निशान बनाकर तथा चूमकर, मगर यह महसूस करते हुए कि हर कोई अपनी जगह पर सही है, रात्रि विश्राम के लिए विदा ली।

प्रिंसेस को पहले तो इस बात का पूरा यकीन था कि आज की शाम ने कीटी की किस्मत का फ़ैसला कर दिया है और व्रोन्स्की के इरादों के बारे में शक की कोई गुँजाइश नहीं है। मगर पति के शब्दों ने उसे परेशान कर दिया। अपने कमरे में लौटकर उसने भी कीटी की तरह ही अज्ञात भविष्य से भयभीत होते हुए कई बार मन-ही-मन यह दोहराया-'हे भगवान, दया करें, दया करें, दया करें, हे भगवान !'

अन्ना करेनिना : (अध्याय 16-भाग 1)

व्रोन्स्की का पारिवारिक जीवन से कभी वास्ता नहीं रहा था। अपनी जवानी के दिनों में उसकी माँ ऊँचे समाज में खूब चमकती रही थी और दाम्पत्य जीवन तथा विशेषकर पति की मृत्यु के बाद उसके इश्क-मुहब्बत के बहुत से किस्से हुए थे, जिन्हें ऊँचे समाज के सभी लोग जानते थे। व्रोन्स्की को अपने पिता की लगभग याद नहीं थी और शाही सैनिक स्कूल में ही उसकी शिक्षा-दीक्षा हुई थी।

सैनिक स्कूल में बहुत जवान और बढ़िया फ़ौजी अफ़सर बनकर निकलते ही वह पीटर्सबर्ग के अमीर फ़ौजी अफ़सरों के दायरे में शामिल हो गया। पीटर्सबर्ग के कुलीन-समाज की महफ़िलों में बेशक वह कभी-कभार जाता था, फिर भी उसकी इश्क-मुहब्बत की सारी दिलचस्पियाँ इस घेरे के बाहर थीं।

पीटर्सबर्ग के ऐश्वर्यपूर्ण और अश्लील जीवन के बाद मास्को में उसने पहली बार ऊँचे समाज की एक प्यारी और भोली-भाली उस लड़की की निकटता का सुख अनुभव किया, जो उससे प्यार करने लगी थी। उसके दिमाग में तो यह खयाल तक नहीं आया कि कीटी के साथ उसके सम्बन्धों में कोई बुरी बात भी हो सकती थी। बॉलों में वह मुख्यतः उसके साथ नाचता था और उनके घर जाता था। उसके साथ वह उसी तरह की बेतुकी बातें करता था, जैसीकि ऊँचे समाज में आमतौर पर की जाती हैं, किन्तु अनजाने ही उन्हें कीटी के लिए विशेष अर्थ प्रदान कर देता था। इस बात के बावजूद कि उसने कीटी से ऐसा कुछ भी नहीं कहा था, जो सभी की उपस्थिति में न कह सकता हो, वह ऐसा महसूस करता था कि कीटी उस पर अधिकाधिक निर्भर होती जा रही है। वह जितना अधिक अनुभव करता था, उसे इससे उतनी ही अधिक खुशी होती थी और कीटी के प्रति उसकी भावना अधिक कोमल होती जा रही थी। उसे यह मालूम नहीं था कि कीटी के साथ उसके व्यवहार-बर्ताव के ढंग का एक विशेष नाम है, कि यह शादी का इरादा रखे बिना जवान लड़की पर डोरे डालकर उसे फुसलाना है और यह एक ऐसी बुरी हरकत है, जो उसके जैसे बढ़िया जवान लोगों में आमतौर पर पाई जाती है। व्रोन्स्की को लगता था कि उसने ही सबसे पहले इस खुशी की खोज की है और वह अपनी इस खोज का मज़ा लेता था।

कीटी के माता-पिता के बीच आज शाम को जो बातचीत हुई थी, अगर वह उसे सुन पाता, अगर वह इस परिवार के दृष्टिकोण से इस मामले को देखता और यह जान सकता कि कीटी के साथ उसके शादी न करने पर कीटी को बड़ा दुःख होगा, तो उसे बड़ी हैरानी होती और वह इस बात पर कभी यक़ीन न कर पाता। उसे कभी इस बात का विश्वास न होता कि वह चीज़, जिससे उसे, और सबसे बढ़कर तो यह कि कीटी को इतना अधिक सुख मिलता है, वह चीज़ बुरी हो सकती है। इस बात का तो उसे और भी कम विश्वास होता कि उसको शादी करनी चाहिए।

शादी करने की बात व्रोन्स्की के दिमाग में कभी आई ही नहीं थी। उसे पारिवारिक जीवन न केवल पसन्द ही नहीं था, बल्कि परिवार, खासतौर पर कुँवारों की जिस दुनिया में वह रहता था, उसके सामान्य दृष्टिकोण के अनुसार पति को अपने लिए एकदम पराया, शत्रुतापूर्ण और इससे भी बढ़कर, हास्यास्पद मानता था। कीटी के माता-पिता के बीच हुई बातचीत की व्रोन्स्की बेशक कल्पना तक नहीं कर सकता था, फिर भी उस शाम को श्चेर्बात्स्की परिवार के यहाँ से बाहर आने पर उसने यह महसूस किया कि कीटी और उसके बीच जो गुप्त मानसिक सम्बन्ध-सूत्र विद्यमान था, उसकी आज शाम को ऐसी जोरदार पुष्टि हो गई है कि उसे कोई-न-कोई क़दम उठाना चाहिए। लेकिन कैसा क़दम उठाया जा सकता है या उठाया जाना चाहिए, वह यह सोचने में असमर्थ था।

'यही बड़ी मधुर बात है,' श्चेर्बात्स्की परिवार के यहाँ से लौटते हुए वह सोच रहा था और हमेशा की तरह निर्मलता और ताज़गी का सुखद भाव, जो कुछ हद तक इसलिए भी था कि उसने सारी शाम सिगरेट नहीं पी थी, और साथ ही अपने प्रति कीटी के प्यार का नया भाव भी उसके मन को छू रहा था। यही बड़ी मधुर बात है कि न तो मैंने न उसने ही कुछ कहा, किन्तु नज़रों और बातों के अन्दाज़ की इस अदृश्य बातचीत से हम एक-दूसरे को ऐसे समझ जाते हैं कि पहले की तुलना में आज यह कहीं अधिक स्पष्ट हो गया कि वह मुझे प्यार करती है। और कितना माधुर्य, कितनी सरलता और सबसे बड़ी बात यह कि विश्वास है इसमें ! मैं खुद अपने को पहले से अच्छा और निर्मल अनुभव करता हूँ। मैं महसूस करता हूँ कि मेरे सीने में दिल है और मुझमें बहुत कुछ अच्छा है। वे प्यारी और प्रेम में डूबी हुई आँखें ! जब उसने कहा-और बहुत...

तो क्या बात है इसमें ? कोई खास बात नहीं। मेरे लिए यह सुखद है और उसके लिए भी।' और व्रोन्स्की यह सोचने लगा कि आज की बाक़ी शाम को कहाँ बिताए।

उसने अपनी कल्पना में उन जगहों के बारे में सोचा, जहाँ वह शाम बिता सकता था। 'क्लब चला जाए ? ताश की बाज़ी हो, इग्नातोव के साथ शेम्पेन पी जाए ? नहीं, नहीं जाऊँगा। Chateau des fleurs (पेरिसी ढंग के अश्लील मनोरंजन का स्थान), वहाँ ओब्लोन्स्की मिल जाएगा, फ्रांसीसी गाने होंगे, cancan नाच होगा। नहीं, ऊब गया हूँ इन सब चीज़ों से। श्चेर्बात्स्की परिवार को इसलिए प्यार करता हूँ कि खुद बेहतर हो जाता हूँ। घर चलता हूँ।' वह सीधा यूस्सो के होटल के अपने कमरे में चला गया, खाना लाने का आदेश दिया और इसके बाद कपड़े उतारकर तकिए पर सिर रखते ही सदा की भाँति गहरी और चैन की नींद सो गया।

अन्ना करेनिना : (अध्याय 17-भाग 1)

अगले दिन सुबह के ग्यारह बजे व्रोन्स्की पीटर्सबर्ग के स्टेशन पर माँ को लिवाने गया। बड़े जीने की पैड़ियों पर जिस पहले आदमी से उसकी मुलाक़ात हुई, वह ओब्लोन्स्की था, जो इसी गाड़ी से अपनी बहन के आने की राह देख रहा था।

“अरे ! हुजूर तुम !" ओब्लोन्स्की ने खुशी से चिल्लाते हुए कहा। "तुम किसे लिवाने आए हो?"

"मैं, माँ को," ओब्लोन्स्की से मिलनेवाले सभी लोगों की भाँति व्रोन्स्की ने मुस्कुराकर और उससे हाथ मिलाते हुए जवाब दिया। दोनों एक साथ जीने पर चढ़ने लगे। “वह आज पीटर्सबर्ग से आनेवाली है।"

"मैं रात के दो बजे तक तुम्हारा इन्तज़ार करता रहा। श्चेर्बात्स्की के यहाँ से तुम कहाँ चले गए थे ?"

“घर," व्रोन्स्की ने जवाब दिया। “सच तो यह है कि कल मुझे श्चेर्बात्स्की परिवार में इतना सुख मिला कि उसके बाद कहीं जाने को मन ही नहीं हुआ।"

"घोड़े की तेज़ी को पहचानता हूँ इसके ख़ास निशानों से, जवान प्रेमियों को पहचानता हूँ उनके नयन-बाणों से," ओब्लोन्स्की ने ये पंक्तियाँ वैसे ही सुना दीं, जैसे एक दिन पहले लेविन के सामने सुना चुका था।

व्रोन्स्की ऐसे ज़ाहिर करते हुए मुस्कुरा दिया कि वह इससे इनकार नहीं करता है, किन्तु उसी क्षण बातचीत का विषय बदल दिया।

"तुम किसको लिवाने आए हो ?" उसने पूछा।

"मैं ? मैं एक प्यारी-सी औरत को।" ओब्लोन्स्की ने कहा।

"अरे, वाह !"

"Honni soit qui maly pense ! (शर्म आए उसे, जो इसका बुरा मतलब निकाले !-फ्रांसीसी)) बहन आन्ना को।"

“ओ, कारेनिना को ?" व्रोन्स्की ने कहा।

"तुम तो शायद उसे जानते होगे ?"

"लगता है कि जानता हूँ। या नहीं...सच कहूँ, तो याद नहीं है," व्रोन्स्की ने कारेनिना का नाम सुनकर नियमनिष्ठ तथा ऊब-भरी नारी की अस्पष्ट-सी कल्पना करते हुए अनमनेपन से जवाब दिया।

“लेकिन मेरे जाने-माने बहनोई अलेक्सेई अलेक्सान्द्रोविच को तो तुम शायद जानते ही होगे। उसे तो सारी दुनिया जानती है।"

“हाँ, ख्याति और शक्ल-सूरत से तो जानता हूँ। जानता हूँ कि वह बड़ा बुद्धिमान, विद्वान और कुछ भगत किस्म का आदमी है...लेकिन तुम्हें मालूम ही है कि वह मेरी रुचि के...not in my line.(मेरी पसन्द के मुताबिक़ नहीं है।-अंग्रेज़ी)" व्रोन्स्की ने कहा।

“हाँ, वह बहुत बढ़िया आदमी है, कुछ रूढ़िवादी, मगर बढ़िया आदमी है," ओब्लोन्स्की ने कहा, "बढ़िया आदमी है।"

"बढ़िया है, तो अच्छी बात है," व्रोन्स्की ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया। “ओ, तुम आ गए," व्रोन्स्की ने माँ के बूढ़े और लम्बे नौकर को सम्बोधित किया, जो दरवाज़े के पास खड़ा था, “यहाँ, भीतर आ जाओ।"

ओब्लोन्स्की से सभी को प्राप्त होनेवाली सामान्य खुशी के अलावा व्रोन्स्की पिछले कुछ समय से उसके प्रति इसलिए भी विशेष लगाव महसूस करने लगा था कि वह कीटी का बहनोई था।

"तो क्या इतवार को उस सुन्दरी की दावत करेंगे ?" व्रोन्स्की ने मुस्कुराते हुए ओब्लोन्स्की की बाँह-में-बाँह डालते हुए पूछा।

"ज़रूर। मैं चन्दे जमा कर लूँगा। अरे हाँ, कल मेरे दोस्त लेविन से तुम्हारी जानपहचान हुई न ?" ओब्लोन्स्की ने पूछा।

“सो तो ज़ाहिर ही है। लेकिन वह कुछ जल्दी चला गया।"

“वह बहुत भला आदमी है," ओब्लोन्स्की ने कहा। "ठीक है न ?"

"मैं कुछ कह नहीं सकता," व्रोन्स्की ने जवाब दिया, “मालूम नहीं क्यों सभी मास्कोवालों में, ज़ाहिर है उनको छोड़कर, जिनसे बात कर रहा हूँ," उसने मज़ाक़ में इतना और जोड़ दिया, “कुछ तुनकमिज़ाजी पाता हूँ। वे मानो दुलत्तियाँ चलाते हैं, झल्लाते हैं, मानो हर वक़्त कुछ महसूस करवाना चाहते हैं..."

"हाँ, यह तो है, सच, ऐसा तो है..." ओब्लोन्स्की ने खुशी से मुस्कुराते हुए कहा।

"क्या जल्द ही आ रही है गाड़ी ?" व्रोन्स्की ने एक रेलवे कर्मचारी से पूछा।

"गाड़ी पिछले स्टेशन से चल चुकी है।" कर्मचारी ने जवाब दिया।

स्टेशन पर हो रही तैयारी और हलचल, कुलियों के इधर-उधर दौड़ने, जेनदार्मों और कर्मचारियों तथा स्वागत के लिए आनेवालों की बढ़ती संख्या से गाड़ी के निकट आने का आभास मिल रहा था। ठंडी हवा में उठनेवाली भाप में फ़र के आधे कोट और नमदे के नर्म जूते पहने मज़दूर टेढ़ी-मेढ़ी रेलवे लाइनों को लाँघते दिखाई दे रहे थे। दूर की लाइनों पर इंजन की सीटी और किसी भारी चीज़ की गति की आवाज़ सुनाई दी।

"नहीं," ओब्लोन्स्की ने कहा, जो व्रोन्स्की से कीटी के सम्बन्ध में लेविन के इरादों की चर्चा करने को बहुत उत्सुक था। “नहीं, तुमने मेरे दोस्त लेविन को सही तौर पर समझा नहीं। वह बहुत चिड़चिड़ा आदमी है और यह सही है कि अप्रिय लगता है, लेकिन दूसरी ओर कभी-कभी बहुत प्रिय भी हो सकता है। बहुत ही ईमानदार, बहुत ही सच्चा आदमी है वह और उसने दिल भी सोने का पाया है। लेकिन कल तो कुछ विशेष कारण थे," ओब्लोन्स्की ने अर्थपूर्ण मुस्कान के साथ कहा। वह उस सच्ची सहानुभूति के बारे में बिल्कुल भूल गया था, जो कल उसने अपने दोस्त के प्रति अनुभव की थी और अब सिर्फ़ व्रोन्स्की के प्रति अनुभव कर रहा था। “हाँ, एक कारण था, जिसकी वजह से वह अपने को विशेषतः सौभाग्यशाली या सौभाग्यहीन अनुभव कर सकता था।"

व्रोन्स्की रुका और उसने सीधे ही पूछ लिया :

"क्या मतलब है तुम्हारा ? तो क्या उसने कल तुम्हारी belle soeur (साली-फ्रांसीसी) से विवाह का प्रस्ताव किया है ?..."

“हो सकता है," ओब्लोन्स्की ने कहा। "मुझे कल कुछ ऐसा प्रतीत हुआ। हाँ, अगर कल वह वहाँ से जल्दी चला गया और उसका मूड ख़राब था, तब तो ऐसा ही है...बहुत अर्से से वह उसे प्यार करता है और मुझे बहुत अफ़सोस है उसके लिए।"

"तो यह मामला है !...वैसे, मेरे ख़याल में तो वह बेहतर वर पाने की आशा कर सकती है," व्रोन्स्की ने कहा और सीधा तनकर फिर से आगे चल दिया। “यों मैं उसे नहीं जानता हूँ,” उसने इतना और जोड़ दिया। “हाँ, यह बड़ी अटपटी स्थिति है ! इसीलिए तो अधिकतर लोग प्रेमिकाओं के फेर में रहना बेहतर समझते हैं। वहाँ असफलता यही सिद्ध करती है कि तुम्हारी जेब काफ़ी गर्म नहीं है और यहाँ-आदमी की गरिमा, उसकी इज़्ज़त तराजू पर होती है। लेकिन खैर, गाड़ी आ गई।"

सचमुच ही दूरी पर इंजन सीटी बजा रहा था। कुछ मिनट बाद प्लेटफ़ॉर्म काँप उठा और पाले द्वारा नीचे को दबा दी जानेवाली भाप छोड़ता तथा बीच के पहिये के लीवर को धीरे-धीरे तथा समगति से मोड़ता और फैलाता हुआ इंजन प्लेटफ़ॉर्म पर पहुँच गया। गर्म कपड़ों में लिपटा, पाले से ढका हुआ इंजन-ड्राइवर झुक-झुककर सलाम कर रहा था। इंजन के ईंधनवाले डिब्बे के पीछे अधिकाधिक धीमे तथा प्लेटफ़ॉर्म को ज़्यादा ज़ोर से कँपाता हुआ सामान का डिब्बा, जिसमें एक कुत्ता ज़ोर से कूँ-कूँ कर रहा था, आगे आने लगा। आख़िर को मुसाफ़िरों के डिब्बे ज़ोरदार झटके के साथ रुक गए।

चुस्त कंडक्टर सीटी बजाता हुआ धीरे-धीरे चलती गाड़ी से नीचे उतर गया और उसके पीछे-पीछे उतावले मुसाफ़िर-सीधा तना और इधर-उधर देखता हुआ गॉर्ड-सेना का अफ़सर, थैला लिए और खुशी से मुस्कुराता फुर्तीला व्यापारी, कन्धे पर बोरी डाले किसान, आदि-नीचे उतरने लगे।

ओब्लोन्स्की की बग़ल में खड़ा व्रोन्स्की डिब्बों और उनमें से बाहर आनेवाले मुसाफ़िरों को देख रहा था और माँ के बारे में बिल्कुल भूल गया था। कीटी के बारे में उसे अभी-अभी जो कुछ मालूम हुआ था, उससे वह उमंग में आ गया था और बहुत खुश था। उसकी छाती अपने आप ही तन गई थी और आँखें चमक उठी थीं। वह अपने को विजेता-सा अनुभव कर रहा था।

“काउंटेस बोन्स्काया इस डिब्बे में हैं," चुस्त कंडक्टर ने व्रोन्स्की के क़रीब आकर कहा।

कंडक्टर के शब्दों से व्रोन्स्की मानो नींद से जागा और उसे माँ तथा उससे होनेवाली भेंट का ध्यान आया। अपने मन की गहराई में वह माँ की इज़्ज़त और उसे प्यार भी नहीं करता था, यद्यपि वह ऐसा मानने को तैयार नहीं था। वैसे यह सही है कि जिस सामाजिक हलके में वह रहता था, उसकी धारणाओं और लालन-पालन के मुताबिक़ वह माँ के प्रति बहुत ही आज्ञाकारी और आदरपूर्ण सम्बन्धों के अतिरिक्त अन्य किसी तरह के सम्बन्धों की कल्पना नहीं कर सकता था। मन में वह उसका जितना ही कम आदर और उससे जितना कम प्यार करता था, बाहरी तौर पर ये सम्बन्ध उतनी ही अधिक आज्ञाकारिता और आदर के थे।

अन्ना करेनिना : (अध्याय 18-भाग 1)

व्रोन्स्की कंडक्टर के पीछे-पीछे डिब्बे की तरफ़ चल दिया और बाहर आती हुई एक महिला को रास्ता देने के लिए दरवाज़े के पास रुक गया। ऊँचे समाज के व्यक्ति के रूप में महिला के बाहरी रंग-ढंग पर एक नज़र डालते ही व्रोन्स्की ने यह तय कर लिया कि वह कोई कुलीन है। उसने क्षमा माँगी और डिब्बे में जाने को हुआ, किन्तु उसने उस पर एक बार फिर नज़र डाल लेने की आवश्यकता अनुभव की। इसलिए नहीं कि वह बहुत सुन्दर थी, उस लावण्य और विनम्र सजीलेपन के कारण भी नहीं, जो उसके पूरे व्यक्तित्व में झलक रहे थे, बल्कि इसलिए कि यह नारी जब उसके पास से गुज़री, तो उसके चेहरे के भाव में कुछ विशेष स्नेह और कोमलता की अनुभूति हुई। व्रोन्स्की जब मुड़ा तो महिला ने भी पीछे की तरफ़ देखा। चमकती, घनी बरौनियों के कारण काली प्रतीत होनेवाली उसकी भूरी आँखें मैत्रीपूर्ण और बहुत ध्यान से देखती हुई उसके चेहरे पर रुक गईं, मानो वह उसे पहचान रही हो, और क्षण-भर बाद ही निकट आ रही भीड़ की तरफ़ मुड़ गईं। वे तो जैसे किसी को ढूँढ़ रही थीं। क्षण-भर को उसके चेहरे पर टिकनेवाली इस नज़र में व्रोन्स्की ने उस संयत सजीवता को देख लिया, जो महिला के चेहरे पर क्रीड़ा कर रही थी और चमकती आँखों तथा उसके गुलाबी होंठों को ज़रा टेढ़ा-सा करती तनिक दिखाई देनेवाली मुस्कान के बीच झलक दिखा रही थी। किसी चीज़ की अधिकता ने उसके सारे व्यक्तित्व को मानो ऐसे सराबोर कर दिया था कि वह उसकी इच्छा की अवहेलना करते हुए कभी आँखों की चमक और कभी मुस्कान में प्रकट हो रही थी। उसने आँखों की चमक की लौ को तो जान-बूझकर बुझा दिया, मगर वह उसकी इच्छा के विरुद्ध तनिक नज़र आनेवाली मुस्कान में चमकती रही।

व्रोन्स्की डिब्बे में दाखिल हुआ। काली आँखों और घुंघराले बालोंवाली उसकी बहुत ही दुबली-पतली माँ ने बेटे को गौर से देखते हुए आँखें सिकोड़ी और अपने पतले होंठों से ज़रा मुस्कुराई। सोफ़े से उठने और नौकरानी को छोटा-सा थैला पकड़ाने के बाद उसने अपना छोटा-सा और सूखा हुआ हाथ बेटे की तरफ़ बढ़ा दिया और फिर उसके सिर को अपने हाथ से उठाकर उसका मुँह चूमा।

"तार मिल गया ? ठीक-ठाक हो ? भला हो भगवान का !"

"रास्ते में कोई तकलीफ तो नहीं हुई ?" बेटे ने उसके पास बैठते और अनचाहे ही दरवाजे के बाहर नारी-स्वर को सुनते हुए पूछा। उसे मालूम था कि यह उसी महिला की आवाज़ है, जिससे दरवाजे के करीब उसकी मुलाक़ात हुई थी।

"फिर भी मैं आपसे सहमत नहीं हूँ।" महिला कह रही थी।

"पीटर्सबर्गी दृष्टि ठहरी, श्रीमतीजी।"

"पीटर्सबर्गी नहीं, केवल नारी की दृष्टि।" महिला ने जवाब दिया।

"अपना हाथ चूमने की अनुमति देने की कृपा करें।"

"नमस्ते, इवान पेत्रोविच । हाँ, और ज़रा देखिए, मेरा भाई भी यहीं कहीं होगा। उसे मेरे पास भेज दीजिएगा।" महिला ने दरवाजे के करीब से कहा और फिर डिब्बे में आ गई।

"मिल गया आपका भाई ?" व्रोन्स्की की बूढ़ी माँ ने महिला से पूछा। व्रोन्स्की को अब तो याद आ गया कि यह कारेनिना है।

"आपका भाई यहीं है," व्रोन्स्की ने उठते हुए कहा। "माफ़ी चाहता हूँ, मैं आपको पहचान नहीं सका। हाँ, और हमारी जान-पहचान भी तो इतनी थोड़ी थी," व्रोन्स्की ने सिर झुकाकर अभिवादन करते हुए कहा, “कि आपको निश्चय ही मेरा ध्यान नहीं होगा।"

“हाँ," महिला ने जवाब दिया, “लेकिन फिर भी मैंने आपको पहचान लिया होता, क्योंकि लगता है कि आपकी माँ के साथ हम रास्ते-भर आपकी ही चर्चा करती रही हैं," महिला ने कहा और आख़िर उसने अपनी खुशी को मुस्कान के रूप में प्रकट हो जाने दिया। “लेकिन मेरा भाई अभी तक नहीं आया।"

"अल्योशा, उसे बुला लो।" बूढ़ी काउंटेस ने कहा। व्रोन्स्की ने बाहर प्लेटफ़ॉर्म पर जाकर आवाज़ दी :

"ओब्लोन्स्की ! यहाँ है वह ?" किन्तु कारेनिना ने भाई के निकट पहुँचने की प्रतीक्षा नहीं की और उसे देखने के बाद दृढ़ और चुस्त चाल से डिब्बे से बाहर चली गई। भाई ज्यों ही उसके निकट आया, त्यों ही उसने ऐसे दृढ़ और मनोरम ढंग से, जिसने व्रोन्स्की को चकित कर दिया, भाई की गर्दन में बाँह डालकर जल्दी से उसे अपनी तरफ़ खींच लिया और ज़ोर से चूमा। व्रोन्स्की उसे एकटक देख रहा था और खुद भी कारण न समझते हुए मुस्करा रहा था। लेकिन यह याद आने पर कि माँ उसकी राह देख रही है, वह फिर से डिब्बे में चला गया।

"बहुत ही प्यारी है न !" काउंटेस ने कारेनिना के बारे में कहा। “उसके पति ने उसे मेरे साथ बिठा दिया और मुझे इससे बहुत खुशी हुई। रास्ते-भर हम बातें करती रहीं। और तुम्हारे बारे में सुना है कि तुम...Vous filez le parfait amour. Tant mieux, mon cher, tant mieux."(आदर्श प्रेम के ही फेर में हो। अच्छी बात है, मेरे प्यारे, अच्छी बात है।-फ्रांसीसी)

"मुझे मालूम नहीं कि आप किस बात की ओर संकेत कर रही हैं, maman." बेटे ने रुखाई से जवाब दिया। “तो हम बाहर चलें, maman."

कारेनिना काउंटेस से विदा लेने के लिए फिर से डिब्बे में आई।

"तो काउंटेस, आपको अपना बेटा और मुझे मेरा भाई मिल गया," उसने खुशी-भरे अन्दाज़ में कहा। "मेरा किस्से-कहानियों का ख़ज़ाना भी ख़त्म हो गया, आगे और कुछ सुना भी न पाती।"

"नहीं, ऐसा नहीं कहिए," काउंटेस ने उसका हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा, "आपके साथ तो मैं दुनिया भर का चक्कर लगा आती और ऊब महसूस न करती। आप उन प्यारी नारियों में से हैं, जिनके साथ बात करने और चुप रहने में भी सुख मिलता है। हाँ, और अपने बेटे के बारे में परेशान नहीं हों-कभी तो उससे अलग भी होना चाहिए।"

आन्ना निश्चल और बिल्कुल सीधी खड़ी थी और उसकी आँखें मुस्कुरा रही थीं।

"आन्ना अर्काद्येवना का आठ साल का बेटा है," काउंटेस ने बेटे को बात साफ़ करते हुए बताया, "वह उससे कभी अलग नहीं हुई और इसीलिए परेशान है कि उसे वहाँ छोड़ आई।"

"हाँ, मैं रास्ते-भर अपने बेटे और काउंटेस अपने बेटे की बातें करती रही हैं," कारेनिना ने कहा और फिर मुस्कान से-स्नेहपूर्ण मुस्कान से, जो व्रोन्स्की के लिए थी-उसका चेहरा चमक उठा।

“सम्भवतः आपको इससे बहुत ऊब महसूस हुई होगी," व्रोन्स्की ने चुहलपन की यह गेंद, जो कारेनिना ने उसकी ओर फेंकी थी, फ़ौरन रोकते हुए कहा। किन्तु वह स्पष्टतः इसी अन्दाज़ में बातचीत जारी नहीं रखना चाहता थी और इसलिए बूढ़ी काउंटेस से बोली :

"बहुत-बहुत धन्यवाद । मुझे तो पता भी नहीं चला कि कल का दिन कैसे बीत गया। नमस्ते, काउंटेस !"

"नमस्ते, मेरी प्यारी," काउंटेस ने जवाब दिया। “अपना यह प्यारा-सा मुखड़ा तो चूमने दीजिए। बड़ी-बूढ़ी के नाते साफ़-साफ़ कहती हूँ कि मुझे तो आपसे प्यार हो गया है।"

यह वाक्य चाहे औपचारिक ही था, कारेनिना ने स्पष्टतः इस पर सच्चे दिल से विश्वास कर लिया और खुश हुई। उसके चेहरे पर लाज की लाली दौड़ गई। वह थोड़ा झुकी, अपना चेहरा काउंटेस के होंठों के निकट ले गई, फिर से सीधी हुई और उसी मुस्कान के साथ, जो होंठों और आँखों के बीच थिरक रही थी, उसने व्रोन्स्की की ओर हाथ बढ़ा दिया। व्रोन्स्की ने अपनी ओर बढ़े हुए छोटे-से हाथ से हाथ मिलाया और कारेनिना ने जिस उत्साह, ज़ोर तथा साहस के साथ उससे हाथ मिलाया, उससे उसे एक विशेष प्रकार की खुशी हुई। वह अपने खासे गदराए शरीर के बावजूद आश्चर्यचकित करनेवाली फुर्ती और हल्की चाल से बाहर चली गई।

"बड़ी प्यारी है।" बुढ़िया ने कहा।

उसका बेटा भी यही सोच रहा था। कारेनिना की मोहिनी आकृति आँखों से ओझल होने तक वह उसी पर नज़र टिकाए रहा और मुस्कान उसके चेहरे पर ज्यों-की-त्यों बनी रही। उसने खिड़की से देखा कि कैसे वह अपने भाई के पास पहुंची, उसकी बाँह में अपनी बाँह डाली और बड़ी ज़िन्दादिली से उससे कुछ कहने लगी, जिसका स्पष्टतः व्रोन्स्की से कोई सम्बन्ध नहीं था और यह उसे बुरा लगा।

"हाँ तो, maman, आप बिल्कुल स्वस्थ हैं न ?" उसने माँ को सम्बोधित करते हुए फिर से पूछा।

"सब कुछ बहुत अच्छा है, बहुत बढ़िया है। अलेक्सान्द्र बड़ा प्यारा है और मारिया बहुत अच्छी हो गई है। बड़ी सुन्दर है वह।"

काउंटेस फिर से वह सब कुछ बताने लगी, जो उसके लिए सबसे ज़्यादा रुचिकर था। उसने पोते के नामकरण-संस्कार की, जिसके लिए विशेष रूप से पीटर्सबर्ग गई थी, तथा बड़े बेटे पर ज़ार की ख़ास मेहरबानी की चर्चा की।

“लीजिए, लाब्रेन्ती भी आ गया,” खिड़की से बाहर देखते हुए व्रोन्स्की ने कहा। “अगर चाहें, तो अब हम बाहर चल सकते हैं।"

बूढ़े बटलर ने, जो काउंटेस के साथ पीटर्सबर्ग से आया था, डिब्बे में आकर यह बताया कि सब कुछ तैयार है और काउंटेस चलने के लिए उठी।

"आइए, चलें। अब ख़ास भीड़ नहीं रही।" व्रोन्स्की ने कहा।

नौकरानी ने थैला और कुत्ता ले लिया और बटलर तथा कुली ने बाक़ी सामान उठा लिया। व्रोन्स्की ने माँ की बाँह थाम ली, लेकिन जब वे डिब्बे से बाहर निकल रहे थे, तो अचानक डरे-सहमे चेहरोंवाले कुछ लोग इनके नज़दीक से भागते हुए गुज़रे। अजीब-से रंग की छज्जेदार टोपी पहने हुए स्टेशन-मास्टर भी भागा गया। स्पष्टतः कोई असाधारण बात हो गई थी। लोग गाड़ी से हटकर पीछे को भाग रहे थे।

क्या हुआ ?...क्या हुआ ?...कहाँ ?...रेलवे लाइन पर जा गिरा !...कुचला गया !" नज़दीक से गुज़रते लोग कहते जा रहे थे।

ओब्लोन्स्की भी अपनी बहन की बाँह थामे हुए वापस लौट आया। उन दोनों के चेहरों पर भय अंकित था और भीड़ से बचने के लिए वे गाड़ी के डिब्बे के क़रीब आकर खड़े हो गए। महिलाएँ डिब्बे में चली गईं और व्रोन्स्की तथा ओब्लोन्स्की दुर्घटना का ब्योरा जानने के लिए लोगों के पीछे-पीछे हो लिए।

चौकीदार नशे में धुत् था या बहुत ज़्यादा ठंड के कारण मुँह-सिर को लपेटे हुए था और इसलिए उसने पीछे हटती गाड़ी की आवाज़ नहीं सुनी और वह उसके नीचे आकर कुचला गया।

व्रोन्स्की और ओब्लोन्स्की के लौटने से पहले ही महिलाओं ने बटलर से ये सारी तफ़सीलें जान ली थीं।

ओब्लोन्स्की और व्रोन्स्की, दोनों ने ही बहुत बुरी तरह कुचली गई वह लाश देखी थी। ओब्लोन्स्की साफ़ तौर पर बहुत दुःखी था। उसके माथे पर बल पड़े हुए थे, मानो रोने को तैयार था।

"ओह, कैसी भयानक बात हो गई है ! ओह, आन्ना, अगर तुमने देखी होती वह लाश ! ओह, कैसी बुरी हालत है उसकी !" ओब्लोन्स्की ने कहा।

व्रोन्स्की चुप था और उसका सुन्दर चेहरा गम्भीर, किन्तु बिल्कुल शान्त था।

"ओह, अगर आपने उसे देखा होता, काउंटेस," ओब्लोन्स्की बोला, “और उसकी बीवी भी वहाँ है...उसे देखकर तो दिल को कुछ होता है...वह उसकी लाश पर जा गिरी। कहते हैं कि बहुत बड़े परिवार का वही एक अन्नदाता था। है न यह भयानक बात !"

"क्या उसकी बीवी की कुछ मदद नहीं की जा सकती ?" व्यथित फुसफुसाहट के साथ कारेनिना ने कहा।

व्रोन्स्की ने कारेनिना की तरफ़ देखा और उसी क्षण डिब्बे से बाहर चला गया। "मैं अभी आता हूँ, maman," व्रोन्स्की ने दरवाज़े पर पीछे मुड़कर कहा।

व्रोन्स्की जब कुछ मिनट बाद लौटा, तो ओब्लोन्स्की काउंटेस से नई गायिका की चर्चा कर रहा था और काउंटेस अपने बेटे की प्रतीक्षा करती हुई बेचैनी से दरवाज़े की तरफ़ देख रही थी।

"तो आइए, अब चलें।" व्रोन्स्की ने डिब्बे में लौटते हुए कहा।

सभी एकसाथ डिब्बे से बाहर निकले। व्रोन्स्की अपनी माँ के साथ आगे-आगे चल रहा था और इनके पीछे कारेनिना और उसका भाई आ रहे थे। ये स्टेशन से बाहर निकल रहे थे, जब स्टेशन-मास्टर भागता हुआ व्रोन्स्की के पास पहुँचा।

"आपने मेरे सहायक को दो सौ रूबल दिए हैं। कृपया यह बता दीजिए कि वे किसके लिए हैं ?"

"विधवा के लिए," व्रोन्स्की ने कन्धे झटकते हुए जवाब दिया। “मेरी समझ में नहीं आ रहा कि इसमें पूछने की बात ही क्या है ?"

“आपने दिए हैं ?" ओब्लोन्स्की ने पूछा और बहन का हाथ दबाकर इतना और जोड़ दिया, “बहुत नेक काम किया, बहुत नेक ! सच, बहुत भला आदमी है न यह ! नमस्ते, काउंटेस !"

और बहन की नौकरानी को ढूँढ़ते हुए ये दोनों यहीं रुक गए।

जब ये बाहर आए, तो व्रोन्स्की परिवार की बग्घी जा चुकी थी। स्टेशन से बाहर आते हुए लोग अभी भी दुर्घटना की चर्चा कर रहे थे।

“कैसी भयानक मौत हुई यह !" नज़दीक से गुज़रते हुए एक साहब ने कहा। “कहते हैं कि दो टुकड़े हो गए।"

“मेरे खयाल में तो यह सबसे आसान मौत थी, आन की आन में काम तमाम !" दूसरे व्यक्ति ने राय ज़ाहिर की।

"ये लोग सावधानी क्यों नहीं बरतते ?" तीसरे ने कहा।

कारेनिना बग्घी में बैठ गई और ओब्लोन्स्की को यह देखकर हैरानी हुई कि आन्ना के होंठ काँप रहे हैं और बड़ी मुश्किल से वह अपने आँसुओं पर काबू पा रही है।

"क्या बात है आन्ना ?" कुछ दूर जाने पर भाई ने पूछा।

"यह बहुत बुरा शगुन है।" बहन ने जवाब दिया।

"कैसी बेकार की बातें कर रही हो !" ओब्लोन्स्की ने कहा। "तुम आ गईं, यही सबसे बड़ी बात है। तुम तो कल्पना भी नहीं कर सकतीं कि मैं तुम पर कितनी उम्मीद लगाए हूँ।"

"क्या बहुत अर्से से जानते हो तुम व्रोन्स्की को ?" आन्ना ने पूछा।

"हाँ। जानती हो, हमें आशा है कि वह कीटी से शादी कर लेगा।"

"अच्छा !" आन्ना ने धीरे से कहा। “आओ, अब तुम्हारे बारे में बातचीत करें," उसने ऐसे सिर झटककर कहा, मानो किसी फ़ालतू और उसे परेशान करनेवाली चीज़ को दूर खदेड़ना चाहती हो। "आओ, तुम्हारे मामलों का ज़िक्र करें। मुझे तुम्हारा ख़त मिला और मैं चली आई।"

“हाँ, तुम्हीं पर सारा दार-मदार है।" ओब्लोन्स्की ने कहा।

"तो तुम मुझे सब कुछ बताओ।"

और ओब्लोन्स्की सभी कुछ बताने लगा।

घर के सामने पहुँचने पर ओब्लोन्स्की ने बहन को उतारा, गहरी साँस ली, उसका हाथ दबाया और उसी बग्घी में अपने दफ़्तर चला गया।

अन्ना करेनिना : (अध्याय 19-भाग 1)

आन्ना जब कमरे में दाखिल हुई, तो डॉली सुनहरे बालोंवाले गुदगुदे बेटे के साथ, जो अभी अपने बाप जैसा लगता था, छोटे मेहमानख़ाने में बैठी थी। डॉली उसे फ्रांसीसी भाषा पढ़ते हुए सुन रही थी। लड़का अपनी जाकेट पर जैसे-तैसे टिके बटन को हाथ में घुमाते और तोड़ने की कोशिश करते हुए फ्रांसीसी पढ़ रहा था। माँ ने कई बार बटन से उसका हाथ हटाया, लेकिन लड़के का गुदगुदा हाथ फिर बटन पर पहुँच जाता था। माँ ने आख़िर बटन तोड़कर अपनी जेब में डाल लिया।

"ग्रीशा, अपने हाथों को बस में रखो," डॉली ने कहा और फिर से उस कम्बल को बुनने लगी, जिसे उसने बहुत समय पहले बुनना शुरू किया था और परेशानी की घड़ियों में ही बुनती थी। अब वह उँगलियों को हिलाती-डुलाती और फन्दों को गिनती हुई चिड़चिड़ेपन से ऐसा कर रही थी। यह सही है कि एक दिन पहले उसने पति को यह कहलवा दिया था कि उसकी बहन आएगी या नहीं आएगी, उसे इससे कोई मतलब नहीं, फिर भी उसके लिए सभी तैयारी करवा दी थी और वह बड़ी उद्विग्नता से ननद के आने की राह देख रही थी।

डॉली के दुःख ने उसे पूरी तरह कुचल डाला था, वह उसमें डूबी हुई थी, फिर भी वह यह नहीं भूली थी कि उसकी ननद, आन्ना, पीटर्सबर्ग के एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण व्यक्ति की पत्नी और पीटर्सबर्ग की grand dame है। इसी कारण उसने पति से जो कहलवाया था, उसे किया नहीं, यानी यह नहीं भूली कि उसकी ननद आनेवाली है। 'आख़िर आन्ना का इसमें कोई दोष नहीं है,' डॉली सोच रही थी। 'मैं तो उसके बारे में अच्छाई के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं जानती तथा मुझे तो उससे स्नेह और मैत्री-भाव ही मिला है।' हाँ, यह सच है कि उनके यहाँ पीटर्सबर्ग में कारेनिन परिवार के अपने हृदय पर पड़नेवाले प्रभावों के बारे में उसे जो कुछ भी याद था, उसके अनुसार तो उनका घर अच्छा नहीं लगा था, उनके परिवार के हर रंग-ढंग में कुछ बनावट थी। लेकिन मैं किस कारण उसकी अवहेलना करूँ ? बस, यही चाहती हूँ कि वह मुझे दिलासा देने की कोशिश न करे !' डॉली सोच रही थी। 'इन सभी दिलासों, उपदेशों और ईसाई धर्म की क्षमादान की बातों पर मैं हज़ारों बार विचार कर चुकी हूँ और ये सब बेकार हैं।'

इन सभी दिनों के दौरान डॉली बच्चों के साथ ही रही थी। वह अपने दुःख की किसी से भी चर्चा नहीं करना चाहती थी, लेकिन दिल में ऐसे दुःख का बोझ लिए हुए अन्य बातों की चर्चा करना उसके लिए सम्भव नहीं था। वह जानती थी कि चाहे-अनचाहे वह आन्ना से सब कुछ कह देगी। उसे कभी तो इस विचार से खुशी होती कि कैसे वह उससे यह सब कुछ कहेगी और कभी उससे, पति की बहन से, अपने अपमान की चर्चा करने की आवश्यकता और उससे उपदेश तथों तसल्ली के गढ़े-गढ़ाए वाक्य सुनने के ख़याल से खीज भी आती।

वह घड़ी पर नज़र डालते हुए किसी भी क्षण आन्ना के आने की प्रतीक्षा कर रही थी और, जैसा कि अक्सर होता है, उसी क्षण में चूक गई, जब मेहमान आई, यानी उसने घंटी की आवाज़ नहीं सुनी।

दरवाज़े पर फ़ॉक की सरसराहट और हल्के क़दमों की आहट से उसने मुड़कर देखा और उसके व्यथित चेहरे पर अनचाहे ही खुशी के बजाय हैरानी झलक उठी। उसने उठकर ननद को गले लगाया।

"अरे, तुम आ भी गईं ?" डॉली ने उसे चूमते हुए कहा।

"डॉली, कितनी खुश हूँ मैं तुमसे मिलकर !"

“और मैं भी," तनिक मुस्कुराते और आन्ना के चेहरे के भाव से यह भाँपते हुए कि उसे मामले की जानकारी है या नहीं, डॉली ने कहा। 'जरूर जानती है,' आन्ना के चेहरे पर सहानुभूति का भाव देखकर डॉली ने सोचा। "चलो, मैं तुम्हें तुम्हारे कमरे में पहुँचा आऊँ,” डॉली ने मामले के स्पष्टीकरण के क्षण को यथासम्भव टालने का यत्न करते हुए अपनी बात जारी रखी।

“यह ग्रीशा है क्या ? हे भगवान, कितना बड़ा हो गया !" आन्ना ने कहा और उसे चूमा।

उसकी नज़र डॉली के चेहरे पर ही जमी हुई थी। वह रुकी और लज्जारुण होते हुए बोली :

“नहीं, कृपया, तुम मुझे अभी कहीं भी जाने को न कहो।"

आन्ना ने अपना दुपट्टा और टोपी उतारी और अपने सभी ओर लहराती काले बालों की लटें उसमें उलझ जाने पर सिर को इधर-उधर हिलाते-डुलाते हुए उन्हें टोपी से छुड़ाया।

"तुम तो सुख और स्वास्थ्य से चमचमा रही हो !" डॉली ने लगभग ईर्ष्या से कहा।

"मैं ? हाँ।" आन्ना ने जवाब दिया। "हे भगवान, यह तान्या है ! मेरे सेर्योझा की हमउम्र," भागकर कमरे में आनेवाली बालिका को सम्बोधित करते हुए उसने इतना और जोड़ दिया। आन्ना ने बालिका को गोद में लेकर चूमा। "बहुत अच्छी, बहुत ही प्यारी बच्ची है ! मुझे सभी बच्चे दिखाओ।"

आन्ना ने केवल उनके नाम ही नहीं लिए, बल्कि उनके जन्म के सालों, महीनों, उनके स्वभावों और इस बात का भी जिक्र किया कि उन्हें कब और कौन रोग हुआ था और डॉली उसकी ऐसी दिलचस्पी के लिए आभारी हुए बिना न रह सकी।

"तो आओ, उनके कमरे में चलें।" डॉली ने कहा। "अफ़सोस की बात है कि वास्या इस वक़्त सो रहा है।"

बच्चों से मिलने के बाद वे दोनों अकेली ही मेहमानख़ाने में आ बैठीं। उनके सामने कॉफ़ी थी। आन्ना ने ट्रे को अपनी ओर खींचा, मगर फिर परे खिसका दिया।

"डॉली," वह बोली, “उसने मुझे सब कुछ बता दिया है।"

डॉली ने रूखेपन से आन्ना की तरफ़ देखा। उसे उम्मीद थी कि अब वह सहानुभूति के ढोंग-भरे वाक्य कहेगी, लेकिन आन्ना ने ऐसा कुछ नहीं किया।

"डॉली, प्यारी डॉली !" उसने कहा, "मैं न तो उसकी ओर से तुम्हें कुछ कहना और न ही तसल्ली - देना चाहती हूँ। ऐसा करना सम्भव नहीं। लेकिन मेरी प्यारी, मुझे सच्चे दिल से तुम्हारे लिए अफ़सोस हो रहा है !"

उसकी चमकीली आँखों की घनी बरौनियों के पीछे से अचानक आँसू झलक उठे। वह अपनी भाभी के निकट हो गई और अपने छोटे से मज़बूत हाथ में उसका हाथ ले लिया। डॉली ने अपना हाथ छुड़ाया नहीं, लेकिन उसके चेहरे पर रुखाई का भाव बना रहा। वह बोली :

“मुझे तसल्ली देना बेकार है। जो कुछ हुआ है, उसके बाद सब कुछ ख़त्म हो गया, कुछ भी नहीं बचा !"

इतना कहते ही उसके चेहरे के भाव में अचानक नर्मी आ गई। आन्ना ने डॉली का मुरझाया हुआ और दुबला-पतला हाथ ऊपर उठाया, उसे चूमा और कहा :

"लेकिन किया क्या जाए, डॉली, किया क्या जाए ? ऐसी भयानक स्थिति में आदमी क्या करे ? सोचने की बात तो यही है।"

"सब कुछ ख़त्म हो चुका, इसके अलावा और कुछ भी नहीं," डॉली ने कहा। "और तुम समझो कि सबसे बुरी बात तो यह है कि मैं उसे छोड़कर जा भी नहीं सकती। बच्चे हैं, मैं उनके साथ बँधी हुई हूँ। लेकिन उनके साथ रह नहीं सकती, मैं तो उसे देखकर ही परेशान हो उठती हूँ।"

"मेरी प्यारी डॉली, उसने तो मुझे सब कुछ बताया है, लेकिन मैं तुमसे सुनना चाहती हूँ, तुम मुझे सारी बात बताओ।"

डॉली ने प्रश्नसूचक दृष्टि से आन्ना की तरफ़ देखा।

आन्ना के चेहरे पर सच्ची सहानुभूति और स्नेह दिखाई दे रहा था।

“अच्छी बात है," डॉली ने अचानक कहा। "लेकिन मैं शुरू से सारी बात कहूँगी। तुम तो जानती ही हो कि मेरी शादी कैसे हुई थी। Maman के पालन-शिक्षण की वजह से मैं भोली-भाली ही नहीं, बुद्धू भी थी। मैं कुछ नहीं जानती थी। सुनती हूँ, मैं जानती हूँ कि पति पत्नियों को शादी से पहले के अपने जीवन के बारे में बताते हैं, लेकिन स्तीवा ने..." उसने अपनी भूल सुधारी, "स्तेपान अर्काद्येविच ने मुझे कुछ भी नहीं बताया। तुम विश्वास नहीं करोगी, लेकिन मैं अभी तक ऐसा सोचती थी कि मेरे सिवा और किसी औरत से उसका निकट सम्बन्ध नहीं रहा। मैं आठ साल तक ऐसे ही जीती रही। तुम इस बात को समझो कि मैं न सिर्फ़ बेवफ़ाई के बारे में शक तक नहीं करती थी, बल्कि इसे असम्भव मानती थी। और तुम कल्पना करो कि इस तरह के विचार रखते हुए अचानक ऐसी भयानक बात, ऐसी गन्दगी का पता चले, तो...तुम मुझे समझो। किसी को पूरी तरह से अपने सुख का विश्वास हो और अचानक..." अपनी सिसकियों पर काबू पाते हुए डॉली कहती गई, “ख़त मिले...उसकी प्रेमिका, मेरे बच्चों की शिक्षिका के नाम लिखा हुआ उसका ख़त मिले। नहीं, यह तो बहुत ही भयानक बात है !" उसने जल्दी से रूमाल निकाला और उससे अपना मुँह ढक लिया। "मैं क्षणिक दीवानगी को भी समझ सकती हूँ," तनिक चुप रहने के बाद वह कहती गई, “लेकिन सोच-समझकर और चालाकी से मुझे धोखा देना...सो भी किसके फेर में पड़कर ?...फिर उसके साथ-साथ मेरा पति भी बने रहना... बड़ी भयानक बात है यह ! तुम इसे नहीं समझ सकतीं..."

"ओह, समझती क्यों नहीं, समझती हूँ ! समझती हूँ, मेरी प्यारी डॉली, समझती हूँ,” उसका हाथ दबाते हुए आन्ना से कहा।

“और तुम्हारे ख़याल में वह मेरी स्थिति की सारी भयानकता को समझता है ?" डॉली कहती गई। “ज़रा भी नहीं ! वह सुखी है, मज़े में है।"

"ओह, नहीं !" आन्ना ने जल्दी से उसे टोका। "वह बहुत दुःखी है, पश्चात्ताप से कुचला हुआ

वह पश्चात्ताप कर भी सकता है ?" ननद के चेहरे को बहुत गौर से देखते हुए डॉली ने उसकी बात काटी।

"हाँ, मैं उसे जानती हूँ। उसे देखकर मुझे बरबस दया आती थी। हम दोनों ही उसे जानती हैं। वह दयालु, किन्तु गर्वीला है और अब इतना तिरस्कृत है...मुख्य बात तो वह है, जिसने मेरे दिल को सबसे ज़्यादा छू लिया (यहाँ आन्ना ने उस मुख्य बात का अनुमान लगा लिया, जो डॉली के मन को छू सकती थी)...दो चीजें उसे यातना दे रही हैं कि बच्चों के सामने वह नज़र ऊपर नहीं उठा सकता और यह कि उसने तुम्हें प्यार करते हुए...हाँ, हाँ, दुनिया की हर चीज़ से ज़्यादा तुम्हें प्यार करते हुए," उसने आपत्ति करने को इच्छुक भाभी की बात जल्दी से बीच में ही काट दी, "तुम्हें ऐसी चोट पहुँचाई, तुम्हारी हत्या ही कर डाली। 'नहीं, नहीं, वह कभी माफ़ नहीं करेगी, वह यही रट लगाए हुए है।"

अपनी ननद के शब्द सुनती हुई सोच में डूबी-सी डॉली कहीं दूर देख रही थी।

"हाँ, मैं यह समझती हूँ कि उसकी स्थिति भयानक है," उसने कहा। “अगर वह ऐसा अनुभव करता है कि इस सारे दुर्भाग्य का कारण वही है, तो निरपराध की तुलना में अपराधी की हालत ज़्यादा खराब है। लेकिन मैं उसे माफ़ कैसे करूँ, कैसे मैं उस औरत के बाद उसकी बीवी रह सकती हूँ ? मेरे लिए अब उसके साथ रहना एक यातना होगी, क्योंकि मैं उसके प्रति अपने अतीत के प्यार को प्यार करती हूँ..."

और सिसकियों से उसके शब्द अधूरे ही रह गए।

लेकिन हर बार ही, जब वह कुछ नर्म पड़ती, फिर से उसी चीज़ की चर्चा करने लगती, जिससे उसमें झल्लाहट पैदा होती थी।

“वह औरत तो जवान है, वह सुन्दर है," डॉली कहती गई। “तुम तो समझती हो न कि मेरी जवानी, मेरी सुन्दरता किसकी नज़र हो गई ? उसकी और उसके बच्चों की। मैंने उसकी सेवा की और इस सेवा में मेरा सब कुछ चला गया और ज़ाहिर है कि अब उसे अधिक ताज़ा, घटिया औरत.ज्यादा अच्छी लगती है। इन दोनों ने सम्भवतः मेरे बारे में चर्चा की होगी या फिर इससे भी बुरा यह कि ख़ामोश रहे होंगे। तुम समझती हो ?" फिर से उसकी आँखों में नफ़रत की चिंगारी जल उठी। “और इसके बाद वह फिर से मुझे कहेगा कि...और क्या मैं यक़ीन कर लूँगी उस पर ? कभी नहीं। नहीं, वह सब, वह सब कुछ ख़त्म हो चुका, जो मुझे तसल्ली देता था, जो मेरे श्रम और पीड़ा का पुरस्कार था...तुम विश्वास करोगी ? मैं अभी ग्रीशा को पढ़ा रही थी-पहले मुझे इससे खुशी मिलती थी और अब यह यातना है...किसलिए मैं यह सब करती हूँ, किसलिए इतनी मुसीबत उठाती हूँ ? क्या लेना-देना है मुझे बच्चों से ? सबसे भयानक तो यह है कि मेरी आत्मा में आमूल परिवर्तन हो गया है और उसके लिए प्यार क्या कोमलता की जगह मेरे दिल में केवल क्रोध, हाँ, क्रोध ही रह गया है। मैंने तो उसकी हत्या कर दी होती और..."

"मेरी प्यारी डॉली, मैं सब कुछ समझती हूँ, लेकिन तुम अपने को ऐसे यातना नहीं दो। तुम्हें इतनी ठेस लगी है, तुम इतनी ज़्यादा परेशान हो कि बहुत कुछ सही रूप में नहीं देख पा रही हो।"

डॉली शान्त हो गई और ये दोनों कोई दो मिनट तक खामोश रहीं।

“क्या किया जाए, तुम सोचो, मदद करो, आन्ना ! मैं तो बहुत सोच चुकी हूँ और मुझे तो कुछ भी नहीं सूझता।"

आन्ना को भी कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा था, मगर भाभी का हर शब्द, उसके चेहरे का हर भाव उसके मन को छू रहा था।

“मैं एक बात कहूँगी," आन्ना ने कहना शुरू किया, "मैं उसकी बहन हूँ, मैं उसका स्वभाव जानती हूँ, जानती हूँ कि वह सब कुछ, हर चीज़ को भूल सकता है (उसने माथे की ओर संकेत किया), पूरी तरह किसी चीज़ में डूब सकता है, लेकिन पूरी तरह पछता भी सकता है। अब वह विश्वास ही नहीं करता, यह समझ नहीं पाता कि जो कुछ उसने किया है, वह कैसे कर पाया।"

"नहीं, वह समझता है, तब भी समझता था !" डॉली ने उसकी बात काटी। "लेकिन मैं...तुम मुझे भूल जाती हो...क्या मुझ पर भारी नहीं गुज़र रही है ?"

“ज़रा रुको। मैं तुम्हारे सामने स्वीकार करती हूँ कि जब उसने मुझसे यह चर्चा की थी, तो मैं तुम्हारी स्थिति की पूरी भयानकता को नहीं समझ पाई थी। तब सिर्फ वही मेरे सामने था और यह कि परिवार टूटने जा रहा है, मुझे उस पर तरस आया था, लेकिन तुम्हारे साथ बात करने पर मैं नारी के नाते दूसरी चीज़ देख रही हूँ। मैं तुम्हारी व्यथा को देख रही हूँ और कह नहीं सकती कि कितना अफ़सोस हो रहा है मुझे तुम्हारे लिए। मेरी प्यारी डॉली, मैं तुम्हारे दुःख को बहुत अच्छी तरह समझती हूँ, लेकिन एक बात मैं नहीं जानती-मैं नहीं जानती...नहीं जानती कि तुम्हारे दिल में उसके लिए कितना प्रेम बाक़ी है। यह केवल तुम्हें ही मालूम होगा-इतना प्रेम है या नहीं कि उसे क्षमा कर सको। अगर है, तो क्षमा कर दो !"

“नहीं," डॉली ने कहना शुरू किया, लेकिन आन्ना ने फिर से उसका हाथ चूमते हुए उसे बीच में ही टोक दिया।

"तुम्हारी तुलना में मैं सोसाइटी को ज़्यादा अच्छी तरह जानती हूँ," आन्ना ने कहा। "मैं जानती हूँ कि स्तीवा जैसे लोग इस मामले के प्रति कैसा रवैया रखते हैं। तुम कहती हो कि उसने उससे तुम्हारे बारे में बात की है। ऐसा नहीं हुआ। ऐसे लोग बेवफ़ाई करते हैं, लेकिन अपनी गिरस्ती और बीवी इनके लिए पावन रहती हैं। उनकी दृष्टि में ऐसी नारियाँ तिरस्कृत ही रहती हैं और परिवार में बाधा नहीं डालतीं। वे परिवार और ऐसी नारियों के बीच एक रेखा-सी खींचे रहते हैं। यह बात मेरी समझ में नहीं आती, लेकिन है ऐसा ही।"

“हाँ, लेकिन उसने उसे चूमा तो है..."

"डॉली, ज़रा रुको, मेरी रानी ! मैंने स्तीवा को तब भी देखा है, जब वह तुम्हारे प्रेम में दीवाना था। मुझे वह समय याद है, जब स्तीवा मेरे पास आया था और तुम्हारी चर्चा करते हुए रोता था। कैसी कविता और कितनी ऊँचाई पर थीं तुम उसके लिए ! मैं यह भी जानती हूँ कि जितना अधिक वह तुम्हारे साथ रहता गया, तुम उसके लिए और भी अधिक ऊँची होती गईं। कभी-कभी ऐसा भी होता था कि हम उस पर हँसते थे, क्योंकि वह हर शब्द के साथ 'डॉली अद्भुत नारी है' जोड़ देता था। तुम उसके लिए हमेशा आराध्य देवी थीं और अब भी हो और यह भटकाव उसके मन की..."

"लेकिन अगर यह भटकाव फिर से हुआ, तो ?"

"जहाँ तक मैं समझती हूँ, ऐसा नहीं हो सकता..."

"अच्छा, क्या तुम क्षमा कर देती ?"

"मालूम नहीं, कह नहीं सकती...नहीं, कह सकती," कुछ सोचकर आन्ना ने कहा; और सारी स्थिति को मन-ही-मन समझने और मन की तुला पर तौलने के बाद उसने इतना और जोड़ दिया, “कह सकती हूँ, कह सकती हूँ, कह सकती हूँ। हाँ, मैंने तो क्षमा कर दिया होता। मैं पहले जैसी तो न रही होती, लेकिन मैंने क्षमा कर दिया होता और ऐसे क्षमा कर दिया होता मानो कुछ हुआ ही न हो, बिल्कुल ही कुछ न हुआ हो।"

"सो तो ज़ाहिर ही है," डॉली ने झटपट बात का तार जोड़ा, मानो वही कह रही हो, जो अनेक बार सोच चुकी हो, "नहीं तो यह क्षमा करना ही न होता। अगर क्षमा किया जाए, तो पूरी तरह, पूरी तरह । चलो, मैं तुम्हें तुम्हारे कमरे में पहुँचा आऊँ," डॉली ने उठते हुए कहा और रास्ते में आन्ना को बाँहों में भरकर बोली, “कितनी खुश हूँ मैं, मेरी प्यारी, कि तुम आ गईं। मेरा मन हल्का हो गया, बहुत हल्का हो गया।"

अन्ना करेनिना : (अध्याय 20-भाग 1)

आन्ना ने यह सारा दिन घर पर यानी ओब्लोन्स्की परिवार में ही बिताया और किसी से भी नहीं मिली, यद्यपि उसके कुछ परिचित उसके आने की खबर सुनकर इसी दिन मिलने चले आए थे। आन्ना ने पूरी सुबह डॉली और बच्चों के साथ बिताई। हाँ, उसने अपने भाई को केवल यह रुक़्क़ा लिख भिजवाया कि वह दोपहर का खाना ज़रूर घर पर ही खाए। 'आओ, भगवान कृपा करेंगे,' उसने लिखा था।

ओब्लोन्स्की ने घर पर ही खाना खाया। आम बातचीत होती रही, बीवी उसे 'तुम' कहते हुए बात करती रही, जैसाकि पिछले दिनों में नहीं होता था। पति-पत्नी के सम्बन्धों में पहले जैसा परायापन बना रहा, लेकिन अब अलग होने की चर्चा नहीं रही थी और इसलिए ओब्लोन्स्की को अपनी सफ़ाई पेश करने और सुलह होने की सम्भावना दिखाई देती थी।

दोपहर के खाने के फ़ौरन बाद ही कीटी आ गई। वह आन्ना को जानती थी, लेकिन बहुत कम और दिल में यह डर लिए हुए बहन के घर आई थी कि पीटर्सबर्ग के ऊँचे समाज की यह महिला, जिसकी सभी तारीफ़ करते थे, उसके साथ कैसे पेश आएगी। लेकिन वह आन्ना को पसन्द आई, कीटी ने यहाँ आते ही यह अनुभव कर लिया। स्पष्टतः आन्ना कीटी के सौन्दर्य और जवानी पर मुग्ध थी तथा कीटी को तो पता भी नहीं चला और उसने अपने को न केवल आन्ना के प्रभाव में पाया, बल्कि यह अनुभव किया कि वह उससे प्रेम करती है। यह वैसा ही प्रेम था, जैसाकि लड़कियाँ विवाहित और अपने से बड़ी उम्र की महिलाओं के प्रति अनुभव कर सकती हैं। आन्ना न तो ऊँचे समाज की महिला और न ही आठ साल के बेटे की माँ जैसी लगती थी। अपनी गतिविधि की लोचशीलता, ताज़गी और चेहरे की सजीवता के कारण, जो कभी मुस्कान, तो कभी नज़र में व्यक्त होती थी, वह बीस की युवती ही लगती, अगर उसकी आँखों में गम्भीरता और कभी-कभी उदासी का भाव न झलकता, जो कीटी को चकित करता और अपनी तरफ़ खींचता था। कीटी ने महसूस किया कि आन्ना सर्वथा सीधी-सरल है और कुछ भी नहीं छिपाती है, लेकिन उसके भीतर जटिल और कवित्वपूर्ण रुचियों की कोई दूसरी और ऐसी ऊँची दुनिया भी थी, जो उसकी पहुँच के बाहर थी।

खाने के बाद डॉली जब अपने कमरे में चली गई, तो आन्ना झटपट उठकर भाई के पास गई, जो सिगार के कश खींच रहा था।

"स्तीवा," उसने खुशमिज़ाजी से उसे आँख मारते, उस पर सलीब का निशान बनाते और आँखों से दरवाज़े की तरफ़ इशारा करते हुए कहा, “जाओ, भगवान तुम्हारी मदद करें।"

बहन का इशारा समझकर ओब्लोन्स्की ने सिगार फेंक दिया और दरवाज़े के पीछे गायब हो गया। ओब्लोन्स्की के कमरे में चले जाने पर आन्ना उसी सोफे पर फिर से जा बैठी, जहाँ वह बच्चों से घिरी हुई पहले बैठी थी। शायद इस कारण कि बच्चों ने इस बूआ के प्रति माँ का स्नेह देखा या इस कारण कि खुद उन्हें उसमें कोई विशेष आकर्षण अनुभव हुआ, दोनों बड़े बच्चे और, जैसाकि अक्सर बच्चों के साथ होता है, उनकी देखादेखी छोटे बच्चे भी दोपहर के खाने के पहले ही इस नई बूआ के साथ चिपक गए थे और उससे दूर हटने का नाम नहीं लेते थे। उनके बीच मानो यह खेल-सा बन गया था कि वे बूआ के ज़्याद-से-ज़्यादा नज़दीक बैठ सकें, उसे छू पाएँ, उसके छोटे-से हाथ को अपने हाथ में ले सकें, उसे चूम सकें, उसकी अंगूठियों के साथ खिलवाड़ कर सकें या कम से कम उसके फ्रॉक की झालर को छू सकें।

"उसी तरह, सब उसी तरह बैठे, जैसे हम पहले बैठे थे," आन्ना ने अपनी जगह पर बैठते हुए कहा।

ग्रीशा ने फिर से अपना सिर उसके हाथ के नीचे रख दिया और उसके नॉक के साथ सिर सटाकर गर्व तथा खुशी से खिल उठा।

"तो बॉल कब है ?" आन्ना ने कीटी से पूछा।

"अगले हफ़्ते और सो भी बहुत शानदार। उन बॉलों में से एक, जिनमें हमेशा बड़ा मज़ा रहता है।"

"ऐसे बॉल भी हैं, जिनमें हमेशा मज़ा रहता है ?" कुछ मधुर व्यंग्य के साथ आन्ना ने कहा।

"बड़ी अजीब बात है, फिर भी ऐसे बॉल हैं। बोब्रीश्चेव के यहाँ हमेशा खुशी से छलछलाता बॉल होता है, निकीतिन के यहाँ भी, लेकिन मेज़्कोव के यहाँ नीरस मामला रहता है। आपने ऐसा महसूस नहीं किया ?"

"नहीं, मेरी प्यारी, मेरे लिए अब ऐसे बॉल नहीं रहे, जहाँ मुझे मज़ा आए," आन्ना ने कहा और कीटी को उसकी आँखों में उस विशेष दुनिया की झलक मिली, तो उसके लिए अभी तक खुली नहीं थी। "मेरे लिए ऐसे बॉल तो ज़रूर हैं, जहाँ मुझे परेशानी और ऊब अनुभव होती है..."

"आपको बॉल में ऊब कैसे अनुभव हो सकती है ?"

"क्यों मुझे ऊब अनुभव नहीं हो सकती ?" आन्ना ने पूछा।

कीटी ने ताड़ लिया कि इसका क्या जवाब होना चाहिए, आन्ना यह जानती है। "इसलिए कि आप हमेशा सबसे बढ़-चढ़कर होती हैं।"

आन्ना शर्म से लाल होना जानती थी। वह लज्जारुण हो गई और बोली :

“पहली बात तो यह है कि ऐसा कभी नहीं होता। दूसरे, अगर ऐसा होता भी, तो क्या ज़रूरत है मुझे इसकी ?"

“आप इस बॉल में जाएँगी न ?" कीटी ने पूछा।

"मेरे ख़याल में तो न जाना ठीक नहीं होगा। लो, यह ले लो," उसने तान्या से कहा, जो आन्ना की गोरी और सिरे पर पतली उँगली से आसानी से निकलनेवाली अंगूठी निकाल रही थी।

"अगर आप जाएँगी, तो मुझे बहुत खुशी होगी। मैं आपको बॉल में देखने को बहुत उत्सुक हूँ।"

“अगर जाना ही पड़ गया, तो कम-से-कम इस ख़याल से मुझे सन्तोष होगा कि आपको इससे खुशी हासिल होगी...ग्रीशा, कृपया मेरे बालों को नहीं खींचो। वे तो वैसे ही काफ़ी बिखरे हुए हैं।" आन्ना ने बाहर निकल आई उस लट को ठीक करते हुए कहा, जिससे ग्रीशा खिलवाड़ कर रहा था।

"मैं बॉल में बैंगनी रंग की पोशाक पहने हुए आपकी कल्पना करती हूँ।"

"अनिवार्य रूप से बैंगनी रंग की पोशाक में ही क्यों ?" आन्ना ने मुस्कुराते हुए पूछा। “तो बच्चो, जाओ, इधर जाओ। सुन रहे हो न ? मिस गूल चाय पीने के लिए बुला रही हैं," अपने को बच्चों से मुक्त करते और उन्हें भोजन-कक्ष में भेजते हुए उसने कहा।

"मैं जानती हूँ कि आप क्यों मुझे बॉल में आने को कह रही हैं। आप इस बॉल से बहुत-सी उम्मीदें लगाए हैं और चाहती हैं कि सभी वहाँ उपस्थित हों, सभी उसमें हिस्सा लें।"

"आपको कैसे मालूम है ? हाँ, यह सही है।"

"ओह, कितना अच्छा है आपका यह ज़माना," आन्ना कहती गई। "स्विट्ज़रलैंड के पहाड़ों जैसे इस नीले कुहासे की मुझे याद है, मैं उससे परिचित हूँ। यह कुहासा बचपन के खत्म होते-होते ही सभी कुछ को परम सुख से ढक देता है और यह सुखद तथा खुशी-भरा विराट घेरा अधिकाधिक सँकरे रास्ते में बदलता जाता है। यद्यपि यह तंग गलियारा रौशन और सुन्दर प्रतीत होता है, तथापि उसमें घुसते हुए खुशी के साथ-साथ घबराहट भी होती है। कौन नहीं गुज़रा इस गलियारे से ?"

कीटी चुपचाप मुस्कुरा दी। 'कैसे गुज़री है वह इस गलियार से ? कितनी उत्सुक हूँ मैं इसका पूरा रोमांच जानने को'-आन्ना के पति अलेक्सेई अलेक्सान्द्रोविच के गैररोमानी व्यक्तित्व को याद करते हुए कीटी ने सोचा।

“मुझे कुछ-कुछ मालूम है। स्तीवा ने मुझे बताया था और मैं आपको बधाई देती हूँ। वह मुझे बहुत पसन्द है," आन्ना कहती गई, "व्रोन्स्की से मेरी रेलवे स्टेशन पर मुलाक़ात हुई थी।"

"ओह, तो वह वहाँ गया था ?" कीटी ने शर्म से लाल होते हुए पूछा। “स्तीवा ने क्या बताया है आपसे ?"

“स्तीवा ने मुझे सब कुछ बता दिया है। मुझे तो बहुत ही खुशी होगी। मैं कल व्रोन्स्की की माँ के साथ ही गाड़ी में आई थी," आन्ना ने अपनी बात जारी रखी, "और माँ लगातार उसी की चर्चा करती रही। वह उसका चहेता बेटा है। बेशक मैं यह जानती हूँ कि माताएँ कितनी पक्षपातपूर्ण होती हैं, लेकिन..."

"उसकी माँ ने क्या बताया आपको ?"

"ओह, बहुत कुछ ! मैं जानती हूँ कि वह माँ का चहेता बेटा है, फिर भी यह साफ़ नज़र आता है कि उसमें एक सूरमा के लक्षण हैं...मिसाल के लिए, उसकी माँ ने बताया कि उसने अपनी सारी सम्पत्ति भाई को देनी चाही थी, कि उसने बचपन में ऐसा ही कोई दूसरा असाधारण कारनामा किया था, किसी औरत को डूबने से बचाया था। थोड़े में यह कि हीरो है," आन्ना ने मुस्कुराते और उन दो सौ रूबलों के बारे में याद करते हुए कहा, जो उसने स्टेशन पर दिए थे।

लेकिन इन दो सौ रूबलों का उसने ज़िक्र नहीं किया। न जाने क्यों उसे यह याद आने पर कुछ बुरा-सा महसूस हुआ। उसे अनुभव हुआ कि इस किस्से में उससे सम्बन्ध रखनेवाला भी कुछ था और सो भी ऐसा, जो नहीं होना चाहिए था।

"उसकी माँ ने मुझसे अपने यहाँ आने का बहुत अनुरोध किया था," आन्ना कहती गई, “मुझे बुढ़िया से मिलकर बहुत खुशी होगी और मैं कल उसके पास जाऊँगी। लेकिन खैर, भला हो भगवान का, स्तीवा देर तक डॉली के कमरे में ही रुका हुआ है," आन्ना ने, जैसाकि कीटी को लगा, किसी कारणवश असन्तोष से उठते और बातचीत का विषय बदलते हुए कहा।

"नहीं, मैं पहले ! नहीं, मैं !" चाय ख़त्म करके बूआ की ओर भागते हुए बच्चे चिल्ला रहे थे।

"सभी एकसाथ !" आन्ना ने कहा और हँसती हुई उनकी तरफ़ भाग चली, सबके गिर्द बाँहें डाल लीं और खुशी से किलकारियाँ भरते तथा उछलते-कूदते इन सभी बच्चों को नीचे गिरा दिया।

  • आन्ना करेनिना : (भाग 1, अध्याय 21-34 )
  • आन्ना करेनिना : (भाग 1, अध्याय 1-10 )
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