1984 (उपन्यास) : जॉर्ज ऑर्वेल

1984 (Novel in Hindi) : George Orwell

1984 (उपन्यास) : जॉर्ज ऑर्वेल-दूसरा भाग-5

साइम गायब हो गया था। कुछ लोगों ने बिना सोचे-समझे ही कह दिया : एक सुबह वह काम पर नहीं दिखा था। अगले दिन किसी ने उसका ज़िक्र ही नहीं किया। तीसरे दिन विंस्टन रिकॉर्ड विभाग के गलियारे में नोटिस बोर्ड देखने के लिए गया। एक नोटिस पर शतरंज कमेटी के सदस्यों के नाम छपे थे। साइम भी इस कमेटी में था। यह नोटिस देखने में बिलकुल वैसा ही लग रहा था जैसा पहले दिखता था कुछ भी काटा नहीं गया था केवल एक नाम कम था। समझने के लिए इतना ही काफ़ी था। साइम जा चुका था। साइम कभी था ही नहीं।

मौसम बहुत गरम हो रहा था। बिना खिड़कियों वाली मंत्रालय की उस पेचीदा इमारत के भीतर एयर कंडीशन कमरों का तापमान सामान्य रखता था लेकिन बाहर पत्थर के रास्तों पर पैर तपता था और भीड़ के वक़्त ट्यूब रेल में भयावह दुर्गंध आती थी। नफ़रत सप्ताह की तैयारियाँ ज़ोर-शोर से चालू थीं। हर मंत्रालय का स्टाफ ओवरटाइम काम कर रहा था। जलसे, बैठकें, फ़ौजी परेड, व्याख्यान, मोम के पुतले, झाँकियाँ, फ़िल्म शो, टेलिस्क्रीन के प्रोग्राम आदि का आयोजन करना था। मोरचे लगाने थे, पुतले बनाने थे, नारे गढ़े जाने थे, गीत लिखे जाने थे, अफ़वाहें फैलाई जानी थीं, तस्वीरों के साथ फ़र्जीवाड़ा किया जाना था। गल्प विभाग में जूलिया की यूनिट को उपन्यासों के काम से हटाकर यातना के परचे बनाने के काम में लगा दिया गया था। विंस्टन अपने नियमित काम के अलावा दि टाइम्स के पुराने अंकों को घंटों खंगालता था और उन खबरों को बदलता व सँवारता था जिन्हें भाषणों में बोला जाना था। देर रात जब उपद्रवी लड़के सड़कों पर घूमते तो ऐसा लगता कि पूरे शहर को ही बुखार चढ़ गया है। अब रॉकेट बम पहले से कहीं ज़्यादा जल्दी-जल्दी गिरते थे और कभी-कभार तो दूर से भयंकर धमाकों की आवाज़ आती थी जिसके बारे में अजीबोगरीब अफ़वाहें उड़ाई जाती थीं क्योंकि किसी को उसकी सच्चाई पता नहीं होती थी।

नफ़रत सप्ताह के लिए नया थीम सांग (जिसे दवेषराग कहते थे) पहले ही बन चुका था और लगातार टेलिस्क्रीनों पर दिन-रात बज रहा था। इसकी धुन बर्बर और कानफोड़ थी जिसे संगीत तो क़तई नहीं कहा जा सकता, बल्कि किसी ड्रम के पीटे जाने जैसा महसूस होता था। क़दमताल करते जूतों की आवाज़ के पार्श्व संगीत पर सैकड़ों लोगों का समवेत स्वर में चिल्लाना आतंकित करता था। जनता की ज़बान पर यह राग चढ़ गया था, हालाँकि आधी रात को सड़कों पर पिछले वाले द्वेषराग-“नाउम्मीद सी इक लज्जत..." के साथ इसकी होड़ मची रहती थी क्योंकि वह अब भी लोकप्रिय था। पारसन्स के बच्चे दिन-रात इसी धुन को बजाते रहते थे और सितम यह कि कागज़ और कंघी से बजाते थे जो असहनीय था। विंस्टन की शामें कभी इतनी आबाद नहीं हुई थीं। स्वयंसेवकों के दल पारसन्स की अगुवाई में नफ़रत सप्ताह की तैयारियों में जुटे हुए थे और सड़कों पर सजाने के लिए बैनर सी रहे थे, पोस्टर रँग रहे थे, छतों पर झंडे के लिए डंडे गाड़ रहे थे और स्ट्रीमरों का स्वागत करने के लिए सड़कों की ख़तरनाक बाड़बन्दी कर रहे थे। पारसन्स ने शेखी बघारते हुए कहा था कि अकेले विक्टरी मैंशन्स में चार सौ मीटर लम्बी झंडियाँ लगाई जाएँगी। यही सब उसके मन का काम था इसलिए वह खुशी के मारे किसी चंडूल की तरह चहचहा रहा था। ऊपर से गर्मी और शारीरिक काम के चलते उसे हर शाम हॉफ पैंट और ढीली शर्ट पहनने का मौक़ा मिल गया था। जहाँ देखो वही नज़र आता था एक साथ, चाहे सामान धकेलना हो, खींचना हो, लकड़ी काटनी हो, हथौड़ा चलाना हो, मरम्मत करनी हो और दोस्ताना प्रोत्साहन के साथ वह सभी का मनोरंजन करते हुए अपनी देह के हर कोने से कसैली गंध वाले पसीने की अनंत आपूर्ति जारी रखे हुए था।

पूरे लंदन में अचानक एक नया पोस्टर हर जगह उभर आया था। उस पर कोई कैप्शन नहीं लिखा था। केवल एक भयानक यूरेशियाई सैनिक की तीन से चार मीटर लम्बी तस्वीर बनी थी जो भावहीन मंगोलियाई चेहरा लिये भारी बूटों से आगे की ओर बढ़ता हुआ दिखता था और उसके पीछे से एक सबमशीनगन निकली हुई थी। इस पोस्टर को चाहे जिस भी कोण से देखा जाए, बन्दूक की नली हमेशा देखने वाले की ओर होती थी। दीवारों पर जहाँजहाँ खाली जगह बची थी सब जगह वही तस्वीर लगा दी गई थी। इतनी ज़्यादा तस्वीरें थीं कि मोटा भाई के पोस्टर उसके सामने कम पड़ गए थे। आम तौर से जंग को लेकर उदासीन रहने वाली जनता को आजकल देशभक्ति की खुराक पिलाई जा रही थी। इस माहौल को और अनुकूल बनाने के लिए रॉकेट बम अब पहले के मुकाबले ज़्यादा लोगों की जान ले रहे थे। ऐसा ही एक बम स्टेपनी में एक भीड़-भाड़ वाले फ़िल्म थिएटर के ऊपर गिरा था जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए और सारे के सारे उसी खंडहर में दफ़न हो गए थे। उस इलाके की समूची आबादी सामूहिक अन्त्येष्टि के लिए बाहर सड़कों पर निकल आई थी और अन्तिम यात्रा घंटों चलती रही और कल मिलाकर एक विशाल शोकसभा में तब्दील हो गई। एक और बम ख़ाली ज़मीन पर गिरा जहाँ बच्चे खेलते थे। कई दर्जन बच्चों के परखच्चे उड़ गए। इन घटनाओं की प्रतिक्रिया में लोगों ने और ज्यादा आक्रोश से जुलूस निकाले, गोल्डस्टीन के पुतले जलाए, यूरेशियाई सैनिक के सैकड़ों पोस्टर फाड़कर जला दिए गए और इसी के बीच तमाम दुकानें लूट ली गईं; फिर एक अफ़वाह उड़ी कि दुश्मन के जासूस अब बेतार तरंगों से निशाना लगाकर रॉकेट बम मारेंगे। इस चक्कर में विदेशी मूल का होने के सन्देह में एक बुजुर्ग दम्पती का घर ही फेंक दिया गया। दोनों उसमें घुटकर मर गए।

मिस्टर चारिंगटन की दुकान के ऊपर वाले कमरे में जब कभी जूलिया और विंस्टन जाते, वे खुली खिड़की के नीचे बिस्तर पर निर्वस्त्र होकर अगल-बग़ल लेट जाते थे ताकि देह को थोड़ी ठंडक पहुँचे। कमरे में चूहा दोबारा लौटकर नहीं आया लेकिन गर्मी के चलते खटमल की संख्या बढ़ गई। उससे उन्हें कोई फ़र्क नहीं पड़ता था। कमरा गन्दा हो या साफ़, लेकिन उनके लिए तो जन्नत था। वे जैसे ही पहँचते, सबसे पहले ब्लैक मार्केट से ख़रीदी काली मिर्च हर चीज़ पर छिड़क देते। फिर अपने कपड़े उतारकर एक-दूसरे को पसीने में भीगकर प्यार करते, फिर सो जाते। नींद खुलती तो वे देखते कि खटमल बाहर निकल आए हैं और पलटकर हमले की तैयारी कर रहे हैं।

जून में तो वे चार या पाँच बार, शायद छह बार-कुल सात बार वहाँ मिले। विंस्टन ने इस बीच हर वक़्त जिन पीने की अपनी आदत छोड़ दी थी। उसे अब इसकी ज़रूरत महसूस नहीं होती थी। उसके शरीर पर चर्बी चढ़ गई थी, उसका अल्सर भी जा चुका था और टखने पर केवल भूरे रंग का एक दाग बचा रह गया था। इसके अलावा सुबह उसे जो खाँसी के दौरे पड़ते थे वे भी रुक गए। ज़िन्दगी जैसी थी वैसी पहले उससे बरदाश्त नहीं होती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं रह गया था। उसे अब टेलिस्क्रीन को देखकर मुँह बनाने या ज़ोर-ज़ोर से गाली देने की इच्छा नहीं होती थी। अब उनके पास चूँकि छिपने का एक बढ़िया ठिकाना था, एकदम घर जैसा, तो यह भी अब मायने नहीं रख रहा था कि वे कम ही मिल पाते या महज़ कुछ घंटों के लिए। कुल मिलाकर महत्त्व इस बात का था कि कबाड़ी की दुकान के ऊपर वाला यह कमरा बचा रहे। बस इतना जानना ही काफ़ी था कि कमरा बचा हुआ है और उस पर किसी की निगाह नहीं पड़ी। यह उस कमरे में होने के जैसा ही था। यह कमरा एक पूरी दुनिया था, अतीत की एक ऐसी गठरी जहाँ दुर्लभ जीवजन्तु आ सकते थे। विंस्टन की नज़र में चारिंगटन भी एक दुर्लभ प्राणी ही था। ऊपर जाते वक्त वह चारिंगटन से बात करने के लिए कुछ देर ठहर जाता था। उस बुजुर्ग का कहीं आना-जाना नहीं होता था और उसके पास कोई ग्राहक भी आता नहीं दिखता था। इस छोटी-सी अँधेरी दुकान में उसका वजूद तक़रीबन एक प्रेत की तरह था। दुकान से भी छोटी उसकी पीछे वाली रसोई थी जहाँ वह खाना पकाता था। उस रसोई में तमाम और चीज़ों के अलावा एक अविश्वसनीय रूप से प्राचीन ग्रामोफ़ोन रखा था जिसका भोंपू बहुत बड़ा था। बात करने का मौक़ा मिलते ही ऐसा लगता कि चारिंगटन को इससे खुशी मिली है। लम्बी नाक पर मोटा चश्मा लगाए और मखमली जैकेट के भीतर झुके कन्धों के साथ वह जिस तरह से अपने कबाड़ के बीच मँडराता रहता था, उसे देखकर लगता था कि यह कोई व्यापारी नहीं बल्कि संग्राहक है। एक क़िस्म के चुके हुए उत्साह से वह अपनी उँगली एक या दूसरी चीज़ की ओर करता था जैसे, बोतल की ढक्कन खोलने वाला चीन का स्टॉपर, नसवार की टूटी हुई डिबिया का रंगीन ढक्कन, कोई नक़ली लॉकेट जिसमें बहुत पहले मर चुके किसी बच्चे के बाल की एक लड़ी गुंथी है -और कभी विंस्टन से इन्हें ख़रीदने को नहीं कहता, बस इतना कि वह इनकी तारीफ़ कर दे। उससे बात करना एक घिसी-पिटी पुरानी संगीत-पेटी से आती खनखनाहट को सुनने जैसा था। भुला दी गई कविताओं की कुछ और पंक्तियाँ उसने अपनी याददाश्त में से खोज निकाली थीं। एक कविता चार सौ बीस कस्तूरी चिड़ियों पर थी, एक और कविता सिलवटदार सींगों वाली एक गाय पर थी और एक कविता बेचारे कॉक रॉबिन की मौत के बारे में थी। जब कभी वह कोई नई पंक्ति लेकर आवे, मनुहार करती हुई हल्की सी हँसी के साथ बोले, “मुझे लगा कि शायद तुम्हारी दिलचस्पी इसमें हो।" कभी भी किसी कविता की दो-चार पंक्तियों से ज़्यादा उसे याद नहीं आती थीं।

विंस्टन और जूलिया दोनों ही अपने मन में इस बात को जानते थे-वास्तव में यह बात दिमाग से कभी गई ही नहीं कि फ़िलहाल जो चल रहा है वह ज़्यादा लम्बा नहीं चलने वाला। कभी-कभार तो आसन्न मौत की आहट इतनी साफ़ महसूस होती थी कि बिस्तर पर लेटे-लेटे दोनों किसी उदास कामुकतावश एक-दूसरे से लिपट जाते गोया फाँसी के लिए अभिशप्त कोई मुजरिम लटकाए जाने से पाँच मिनट पहले सुख के आखिरी निवाले पर टूट पड़ा हो। फिर कभी ऐसा भी होता कि उन्हें न सिर्फ अपने महफूज़ रहने की गलतफ़हमी होती, बल्कि इस स्थिति को वे शाश्वत मान लेते। फिर भी, जब तक वे इस कमरे के भीतर रहते उन्हें लगता कि उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता है। वहाँ पहुँचना अपने आप में ख़तरनाक और मुश्किल काम था, लेकिन एक बार पहँच गए तो समझिए वह कमरा अपने आप में एक गर्भगृह है। बिलकुल वैसे ही, जैसे विंस्टन ने पेपरवेट के भीतर इस अहसास के साथ झाँका था कि काँच की उस दुनिया के भीतर एक बार घुस जाने पर कैसे वक़्त को हमेशा के लिए ज़ब्त किया जा सकता है। अकसर वे दोनों भाग जाने का दिवास्वप्न देखते थे। वे सोचते थे कि उनकी किस्मत अनंतकाल तक इसी तरह साथ देती रहेगी और जितनी उम्र बची है इसी तरह कट जाएगी। यह भी, कि अगर कैथरीन मर गई तो किसी न किसी महीन जुगाड़ से दोनों शादी कर लेंगे। या फिर एक साथ जान दे देंगे। या दोनों एक साथ गायब हो जाएँगे अपना हलिया बदलकर कि कोई पहचान न पाए। एकदम आम लोगों की बोली को सीख लेंगे, कारखानों में काम करेंगे और बिना पकड़ में आए चुपचाप किसी गली में ज़िन्दगी काट देंगे। दोनों जानते थे कि ये सारे ख़याल वाहियात हैं और हक़ीक़त में बच के निकल पाना सम्भव नहीं है। साथ में खुदकुशी की योजना बेशक कारगर थी लेकिन उनकी ऐसी कोई मंशा नहीं थी। कुल मिलाकर हफ़्ते दर हफ़्ते एक-एक दिन करके ही जीना था, एक ऐसे वर्तमान में जिसका कोई मुस्तकबिल नहीं था और इस अहसास के पार कुछ भी नहीं था। जैसे फेफड़ों का अगली साँस लेना हवा के होने पर निर्भर है, वैसे ही।

कभी-कभार वे पार्टी के ख़िलाफ़ मुकम्मल बग़ावत की बात भी करते, लेकिन पहला कदम क्या होगा इसका कोई अन्दाज़ा नहीं था। यदि ब्रदरहुड नाम की शानदार चीज़ हक़ीक़त में है भी, तो उसमें घुसने का रास्ता कैसे खोजा जाए। विंस्टन ने जूलिया को ओ'ब्रायन की ओर अपने अजीब से आकर्षण के बारे में बताया था, कि कैसे उसे कभी-कभी लगता है उसके पास चला जाए और खुलकर बोल दे कि वह पार्टी का दुश्मन है और मदद के लिए आया है। आश्चर्यजनक रूप से जूलिया को यह काम उतना असम्भव नहीं लगा। वह दरअसल लोगों को उनके चेहरे से पढ़ने की आदी थी इसलिए उसे यह स्वाभाविक बात लगी कि विंस्टन को ओ'ब्रायन की आँखों पर भरोसा करना चाहिए। इतना ही नहीं, उसने इस बात को भी सामान्य माना कि सारे या ज़्यादातर लोग दिल ही दिल में पार्टी से नफ़रत करते हैं और अगर सुरक्षित महसूस हो तो वे भी नियम तोड़ सकते हैं। उसने हालाँकि यह कभी नहीं माना कि पार्टी के ख़िलाफ़ कोई व्यापक सांगठनिक विपक्ष मौजूद है या हो सकता है। उसका कहना था कि गोल्डस्टीन और उसकी भूमिगत फ़ौज से जुड़े तमाम बकवास क़िस्से खुद पार्टी ने अपने फ़ायदे के लिए गढ़े हैं और आपको उन पर भरोसा करने का दिखावा करना पड़ता है। खुद उसने पार्टी की रैलियों और स्वयंस्फूर्त विरोध प्रदर्शनों में अनगिनत बार उन लोगों की हत्या के हक़ में गला फाड़कर चिल्लाया है जिनके नाम उसने पहले कभी नहीं सुने थे और जिनके कथित जुर्म पर उसे हल्का सा भी विश्वास नहीं था। जब कभी जनता के बीच किसी अपराधी की सुनवाई हुई, वह हमेशा युवा संघ की उन सशस्त्र टुकड़ियों के बीच शामिल रही जो दिन-रात अदालत को घेरकर नारे लगाते थे-"देशद्रोहियों को फाँसी दो!” दो मिनट की नफ़रत के दौरान गोल्डस्टीन को गाली देने में वह हमेशा सबसे आगे रही है। इसके बावजूद उसे कोई अन्दाज़ा नहीं कि गोल्डस्टीन कौन है और किन सिद्धान्तों की वह बात करता है। जूलिया क्रान्ति के बाद बड़ी हुई थी इसलिए पचास और साठ के दशक के वैचारिक संघर्षों का उसे कोई अन्दाज़ा नहीं है। लिहाज़ा एक स्वतंत्र राजनीतिक आन्दोलन उसकी कल्पना में ही नहीं था। वह मानती थी कि पार्टी अमर है। पार्टी हमेशा रहेगी और ऐसे ही रहेगी। केवल दो ही तरीके हैं उसके ख़िलाफ़ बगावत करने के या तो गुप्त तरीके से नियम-कानूनों की नाफरमानी करते जाइए या बहुत से बहुत छिटपुट हिंसा की कार्रवाइयाँ सम्भव हैं जैसे किसी की हत्या या कोई धमाका।

समझदारी के मामले में जूलिया कुछ मायनों में विंस्टन से ज़्यादा धारदार और साफ़ थी। पार्टी के दुष्प्रचार में वह कम फँसती थी। एक बार ऐसे ही बातचीत के दौरान जब विंस्टन ने यूरेशिया के ख़िलाफ़ चल रही जंग का ज़िक्र किया, तब जूलिया ने बड़े सपाट ढंग से यह कहकर उसे चौंका दिया था कि उसकी राय में कोई जंग नहीं हो रही है। उसने कहा कि लंदन पर रोज़ाना जो रॉकेट बम गिरते हैं उन्हें शायद ओशियनिया की सरकार ही ख़ुद दाग़ती है “ताकि लोगों को डराए रखा जा सके!" यह बात तो विंस्टन की खोपड़ी में कभी आई ही नहीं थी। उसने एक ऐसी बात कही जिसने विंस्टन के दिल में थोड़ी ईर्ष्या सी पैदा कर दी-जूलिया बोली कि दो मिनट की नफ़रत के दौरान उसे सबसे ज़्यादा दिक़्क़त इसमें होती है कि कैसे अपनी हँसी को रोके। पार्टी की सिखाई चीज़ों पर हालाँकि वह तभी सवाल उठाती थी जब उससे उसकी ज़िन्दगी का कोई निजी लेना-देना होता, वरना अक्सर ही सरकारी कहानियों को स्वीकार करने को वह तैयार रहती थी। इसकी एक साधारण सी वजह यह थी कि उसके लिए सच और झूठ का फ़र्क कोई मायने नहीं रखता था। मसलन, स्कूल में बताई गई इस बात पर वह विश्वास करती थी कि पार्टी ने एरोप्लेन का आविष्कार किया है (विंस्टन को याद है कि पचास के दशक के अन्तिम वर्षों में उसके स्कूल में पढ़ाया जाता था कि पार्टी का दावा केवल हेलिकॉप्टर के आविष्कार का है; कोई सवा दशक बाद जब जूलिया स्कूल में रही होगी तब एरोप्लेन का दावा किया गया; एक पीढ़ी और बीत जाए पार्टी भाप के इंजन पर दावा ठोंक देगी)। उसने जब जूलिया को बताया कि एरोप्लेन तो उसकी पैदाइश से भी पहले के हैं और क्रान्ति से भी बहुत पहले से हैं, तो इस तथ्य में जूलिया की कोई दिलचस्पी नहीं जगी। आखिरकार इससे क्या फ़र्क पड़ता था कि एरोप्लेन का आविष्कार किसने किया? विंस्टन को ज्यादा अचरज संयोग से निकली उसकी एक टिप्पणी से यह जानकर हुआ कि उसे याद ही नहीं था कि चार साल पहले ओशियनिया की लड़ाई ईस्टेशिया के साथ चल रही थी और यूरेशिया के साथ अमन-चैन कायम था। यह सच है कि वह जंग के समूचे क़िस्से को ही मनगढंत बकवास मानती थी लेकिन उसका ध्यान इस ओर नहीं गया कि दुश्मन का नाम बदल चुका है। उसने अनमने ढंग से कहा, “मैं सोचती थी कि हम लोग हमेशा से यूरेशिया के साथ जंग लड़ रहे हैं।" हक़ीक़त जानकर वह थोड़ा सहम गई। एरोप्लेन का आविष्कार तो उसके जन्म से पहले का मामला ठहरा लेकिन दुश्मन की बदली तो महज़ चार साल पहले ही हुई थी, जब वह ठीक-ठाक बड़ी हो चुकी थी। इस बिन्दु को लेकर विंस्टन उससे कोई पौन घंटा बहस करता रहा। आख़िर वह उसे धुंधली-सी याद दिलाने में कामयाब रहा कि एक समय यूरेशिया नहीं, ईस्टेशिया दुश्मन था। इसके बावजूद यह मुद्दा उसके लिए अहम नहीं था। उसने अधीर होकर कहा, "किसको मतलब है? एक के बाद एक खूनी जंग चलती रहती है और जानने वाले जानते हैं कि ऐसी ख़बरें झूठी होती हैं।"

कभी-कभार वह उससे रिकॉर्ड विभाग में अपने किए फ़र्जीवाड़े की बात भी करता था। ये बातें उसके लिए परेशान करने वाली नहीं थीं। झूठ के सच बना दिए जाने का ख़याल उसके पैरों के नीचे से ज़मीन नहीं खींचता था। विंस्टन ने उसे जोन्स, आरनसन और रदरफोर्ड की कहानी भी सुनाई थी कि कैसे संयोगवश उसके हाथ एक कागज़ लग गया था थोड़ी देर के लिए, लेकिन जूलिया इस बात से बहुत प्रभावित नहीं हो सकी। अव्वल तो वह इस घटना को ही पकड़ नहीं पाई जब उसने पूछा :

“वे लोग तुम्हारे दोस्त थे क्या?"

"नहीं, उन्हें मैं नहीं जानता था। वे पार्टी के कार्यवाहक दल के सदस्य थे। इसके अलावा वे मुझसे काफ़ी बड़े थे। वे क्रान्ति से पहले पुराने ज़माने के लोग थे। उन्हें तो मैंने ठीक से देखा तक नहीं है।"

"फिर इसमें घबराने जैसी बात क्या है? लोग तो लगातार मारे ही जा रहे हैं, नहीं?"

विंस्टन ने उसे समझाने की कोशिश की। “यह मामला अपवाद था। केवल किसी के मारे जाने का सवाल नहीं है यहाँ। क्या तुम्हें इस बात का थोड़ा सा भी इल्म है कि कल से लेकर उसके पीछे तक का समूचा इतिहास ही वास्तव में उड़ा दिया गया है? अगर कहीं वह बचा है तो बस कुछ ठोस चीज़ों में, जिसे पढ़ा नहीं जा सकता क्योंकि वह शब्दों में दर्ज नहीं है। जैसे उस काँच के गोले में एक इतिहास पैबस्त है। हम लोग वैसे भी क्रान्ति के बारे में या उससे पहले के वर्षों के बारे में कुछ नहीं जानते। हर एक रिकॉर्ड को या तो नष्ट किया जा चुका है या झूठा बनाया जा चुका है। हर किताब दोबारा लिखी जा चुकी है। हर तस्वीर को दोबारा छापा जा चुका है। हर प्रतिमा, सड़क और इमारत का नाम बदल दिया गया है। हर तारीख़ बदली जा चुकी है। यह सिलसिला रोज़ ही मिनट दर मिनट चलते रहता है। इतिहास की गति रुक गई है। अब हमारे पास एक अन्तहीन वर्तमान के सिवा कुछ भी नहीं है। वर्तमान पर पार्टी का क़ब्ज़ा है और पार्टी हमेशा ही सही होती है। मैं बेशक यह जानता हूँ कि अतीत को झुठलाया जा चुका है, लेकिन इस बात को साबित करना मेरे लिए कभी मुमकिन नहीं होगा बावजूद इसके कि इस फ़र्जीवाड़े में खुद मेरा हाथ भी है। कोई भी काम पूरा हो जाने के बाद वे एक भी सबूत नहीं छोड़ते हैं। इकलौता सबूत जो है, वह मेरे दिमाग के भीतर है और यह बात मैं पक्के तौर से नहीं कह सकता कि एक भी ऐसा मनुष्य होगा जो मेरे साथ स्मृतियाँ साझा करता होगा। पूरी ज़िन्दगी में बस एक बार मेरे पास एक ठोस वास्तविक साक्ष्य आया था, वह भी घटना के कई बरस बाद।"

“और उससे क्या फ़ायदा हुआ?"

"कुछ नहीं, क्योंकि कुछ मिनट बाद ही उस काग़ज़ को मैंने नष्ट कर दिया था। अगर वही घटना आज हो जाए तो मैं उसे रख लेता।"

“मैं तो नहीं रखती!" जूलिया बोली, “जोखिम उठाने को मैं बिलकुल तैयार हैं, लेकिन केवल उसी चीज़ के लिए जिसका कोई मतलब हो, किसी पुराने अखबार के चंद टुकड़ों के लिए नहीं। वैसे भी तुम अगर उसे रख ही लेते तो कर क्या लेते उसका?"

"बहुत कुछ नहीं कर पाता, शायद। फिर भी वह सबूत था। हो सकता है कि उससे यहाँ-वहाँ एकाध लोगों के मन में मैं सन्देह पैदा कर पाता, बशर्ते किसी को दिखाने की हिम्मत कर लेता तो। मैं सोच ही नहीं पाता हूँ कि हम लोग अपने जीते-जी कुछ भी बदल पाएँगे। हाँ, छोटे-छोटे प्रतिरोध यहाँ-वहाँ खड़े हो सकते हैं बेशक-मसलन, छोटे-छोटे समूहों में लोग आपस में जुड़कर धीरे-धीरे खुद को फैलाएँ, बड़ा बनाएँ और अपने पीछे कुछ रिकॉर्ड छोड़ जाएँ ताकि आने वाली पीढ़ियाँ वहीं से शुरू कर सकें जहाँ हमने ये लड़ाई छोड़ी थी।"

“अगली पीढ़ी में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है, मेरी जान। मुझे बस हमसे मतलब है।"

विंस्टन बोला, “तुम बस कमर के नीचे वाली क्रान्तिकारी हो।"

जूलिया को यह बात बहुत मज़ेदार लगी और उसने उत्साह में विंस्टन को अपनी बाँहों में भर लिया।

पार्टी के जटिल सिदधान्तों में उसकी रत्ती भर भी रुचि नहीं थी। जब कभी वह इंगसॉक, डबलस्पीक, अतीत की परिवर्तनीयता, वस्तुगत यथार्थ के अस्वीकार और न्यूस्पीक की शब्दावली के बारे में बात शुरू करता, वह उसमें उलझकर बोर हो जाती और कहती कि उसने कभी ऐसी चीज़ों पर गौर ही नहीं किया था। जब पता है कि ये सब बकवास बातें हैं तो इन सब में क्यों उलझकर दिमाग ख़राब करना? उसे बस इतना पता था कि कब दाँत निपोरना है और कब मँह बिचकाना है, और इतना ही जानकर यहाँ किसी का भी काम चल जाता था। अगर वह इन विषयों पर बात करने पर जोर देता तो ऐसे में उसकी बड़ी खिजाने वाली आदत थी कि वह सो जाती थी। जूलिया उन लोगों में से थी जो कभी भी कहीं भी किसी भी मुद्रा में सो सकते हैं। इसीलिए उससे बात करने के बाद विंस्टन को इस चीज़ का अहसास होता था कि भक्ति और निष्ठा का अभिनय करना कितना आसान काम है जबकि ऐसा करते हुए उसके गहरे अर्थों को लोग बिलकुल नहीं समझते। पार्टी का नज़रिया उन लोगों के ऊपर सबसे कारगर असर करता था जो उसे समझने के क़ाबिल नहीं थे। ऐसे लोगों को सच्चाई के साथ जघन्यतम अपराधों के लिए राजी किया जा सकता था क्योंकि वे इस बात को पूरी व्यापकता और गम्भीरता में समझते ही नहीं थे कि उनसे किस चीज़ की अपेक्षा की जा रही है। न ही वे सार्वजनिक आयोजनों में खास दिलचस्पी रखते थे कि जान सकें कि वहाँ चल क्या रहा है। कम समझदारी उन्हें पागल होने से रोकती थी, वे मानसिक रूप से स्वस्थ बने रहते थे। वे किसी भी चीज़ को स्वीकार कर लेते थे क्योंकि उससे उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुँचता था। वे जो कुछ भी निगलते, उसका तिनका भी भीतर शेष नहीं रह जाता। सब बाहर निकल जाता था। जैसे मकई का एक दाना किसी पक्षी के शरीर में पचे बगैर जस का तस बीट के साथ निकल आता है।

1984 (उपन्यास) : जॉर्ज ऑर्वेल-दूसरा भाग-6

आख़िर वह दिन आ ही गया। जिस पैगाम की उम्मीद थी वह आ ही गया। उसे लगा कि ज़िन्दगी भर से उसे दरअसल इसी पल का इन्तज़ार था।

विंस्टन मंत्रालय के गलियारे से गुज़र रहा था और बिलकुल उसी जगह पर था जहाँ जूलिया ने उसे काग़ज़ की परची थमाई थी जब अचानक उसे लगा कि उससे बड़े आकार का कोई व्यक्ति उसके ठीक पीछे चला आ रहा है। उस शख़्स ने, वह चाहे जो भी रहा हो, हल्का सा खखारा, जैसे बात शुरू करने से पहले कुछ लोग करते हैं। विंस्टन वहीं रुका और पीछे मुड़ा। सामने ओ'ब्रायन था।

आख़िरकार वे रूबरू हुए। उसे लगा कि भाग जाए। उसका दिल हिंसक तरीके से धड़कने लगा। उसके मुंह से आवाज़ भी नहीं निकल सकती थी। ओ'ब्रायन उसी चाल में आगे बढ़ते हुए आया और उसने दोस्ताने अन्दाज़ में अपना हाथ एक पल के लिए उसकी बाँहों पर रखा और फिर दोनों साथ-साथ अगल-बग़ल चलने लगे। पार्टी के ज़्यादातर कार्यवाहकों के सामान्य लहज़े से एकदम हटकर वह उनसे विनम्रता से बोलना शुरू किया।

उसने कहा, “मैं काफी समय से तुमसे बात करने की सोच रहा था। कल मैं न्यूस्पीक में तुम्हारा एक लेख दि टाइम्स में पढ़ रहा था। मुझे ऐसा लगा कि न्यूस्पीक में तुम्हारी बौद्धिक दिलचस्पी है?"

विंस्टन थोड़ा काबू में आ चुका था। वह बोला, “बौदधिक तो क्या ही, मैं तो बस सीख रहा हूँ अभी। वह मेरा विषय नहीं है। उस भाषा के निर्माण से मेरा कभी कोई सम्बन्ध नहीं रहा है।"

ओ'ब्रायन ने कहा, "लेकिन तुम लिखते तो बहुत नज़ाकत से हो। यह अकेले मेरी राय नहीं है। हाल ही में तुम्हारे एक मित्र से मेरी बात हो रही थी जो इसका विशेषज्ञ है। फ़िलहाल उसका नाम याद नहीं आ रहा।"

विंस्टन को फिर से धक्का लगा। इसमें तो कोई शक ही नहीं कि वह साइम का ज़िक्र कर रहा है, लेकिन साइम न सिर्फ मर चुका है बल्कि मिट चुका है, unperson हो चुका है। इसलिए उसको पहचानने की ग़लती यहाँ जानलेवा साबित हो सकती है। बहुत मुमकिन है कि ओ'ब्रायन की यह टिप्पणी कोई संकेत हो, जैसे कोई कोडवर्ड। उसने तो ऐसी बात बोलकर ही विचार अपराध कर दिया है जिसमें अब दोनों के दोनों भागी बन चुके हैं। वे गलियारे में धीरे-धीरे बढ़ते रहे, फिर ओ'ब्रायन रुक गया। बिलकुल दोस्ताना हाव-भाव में उसने अपनी नाक पर चश्मे को सीधा किया और बोला :

“मैं दरअसल जो कहना चाह रहा था वह यह कि तुम्हारे लेख में मैंने गौर किया कि तुमने दो ऐसे शब्द लिखे हैं जो चलन से बाहर हो चुके हैं, हालाँकि ऐसा हाल ही में हुआ है। तुमने न्यूस्पीक शब्दकोश का दूसरा संस्करण देखा है क्या?"

"नहीं,” विंस्टन बोला, “मुझे नहीं लगता कि अब तक उसे जारी किया गया है। रिकॉर्ड विभाग में हम लोग अब भी नौवाँ संस्करण ही इस्तेमाल कर रहे हैं।"

"मेरे ख़याल से अगले कुछ महीने अभी दसवाँ संस्करण नहीं आने वाला लेकिन उसकी कुछ प्रतियाँ अग्रिम वितरित की गई हैं। एक प्रति मेरे पास भी है। शायद तुम देखना पसन्द करोगे?"

“जी जनाब बिलकूल," विंस्टन ने कहा और तभी सोच लिया कि यह मामला किस दिशा में जा रहा है।

"कुछेक नई प्रविष्टियाँ तो वाक़ई शानदार हैं उसमें। जैसे क्रियाओं की संख्या में कमी-मेरे ख़याल से इसमें तुम्हें मज़ा आएगा। रुको, देखता हूँ, क्या मैं किसी के हाथों शब्दकोश भिजवा दूँ तुम्हारे पास? लेकिन दिक़्क़त यह है कि ऐसी चीजें मैं अकसर भूल जाता हूँ। या बेहतर हो कि तुम मेरे घर से ही उठा लो जब तुम्हें मौक़ा मिले? ठहरो, मेरा पता लेते जाओ।"

दोनों टेलिस्क्रीन के सामने खड़े थे| ओ'ब्रायन ने लापरवाही से अपनी दो जेबों को खंगाला और चमड़े के जिल्द वाली एक छोटी-सी नोटबुक के साथ सुनहरी स्याही वाली क़लम निकाली। टेलिस्क्रीन के ठीक नीचे एक ऐसी मुद्रा में जिससे कि परदे के उस पार देख रहे व्यक्ति को पढ़ने में आ जाए कि वह क्या लिख रहा है, ओ'ब्रायन ने जल्दी से अपना पता लिखा, पन्ना फाड़ा और विंस्टन को थमा दिया।

“मैं शाम को घर पर ही रहता हूँ,” वह बोला, “अगर मैं नहीं मिला तो मेरा नौकर तुम्हें शब्दकोश दे देगा।"

इतना कहकर विंस्टन के हाथ में परची थमाकर वह चला गया। इस बार परची को छिपाने की कोई ज़रूरत नहीं थी फिर भी उसने अच्छे से उस पर लिखा पता याद कर लिया और दूसरे काग़ज़ों के साथ उसे स्मृतिनाशक बिल में डाल दिया।

बमुश्किल दो-चार मिनट की ही बातचीत हुई रही होगी। इस प्रकरण का एक ही मतलब बनता था कि विंस्टन को ओ'ब्रायन का पता देने के लिए यह सब रचा गया रहा होगा। यह ज़रूरी काम था क्योंकि बिना मुलाक़ात के यह पता करना मुश्किल था कि कोई कहाँ रहता है क्योंकि पतों की कहीं कोई सूची नहीं थी। विंस्टन को लगा कि ओ'ब्रायन ने उसे कहा है कि “अगर तुम कभी भी मुझसे मिलना चाहो तो मैं यहीं मिलूँगा।" उसने सोचा कि शायद शब्दकोश में कोई सन्देश छिपा होगा। चाहे जो हो, लेकिन एक बात पक्की थी कि आज तक जिस षड्यंत्र के बारे में वह सोचता रहा वह वास्तव में चल रहा था और आज उसका एक सिरा पकड़ में आ गया था।

वह जानता था कि आज नहीं तो कल उसे ओ'ब्रायन का फ़रमान मानना होगा। हो सकता है कल से ही, या फिर लम्बे इन्तज़ार के बाद कुछ पक्का नहीं था। फ़िलहाल जो चल रहा था वह बरसों पहले शुरू हुए एक सिलसिले का नतीजा था। इसका सबसे पहला क़दम था एक गोपनीय विचार, फिर दूसरा क़दम डायरी खोलने पर पूरा हुआ। इस तरह वह विचार से शब्दों तक पहँचा। अब वह शब्दों से आगे बढ़कर कार्रवाई के चरण में आ चुका है। आख़िरी क़दम प्रेम मंत्रालय में घटेगा। उसने अभी से इसे मान लिया था। अन्त शुरू से ही तय था। आगाज में ही अंजाम छिपा था, लेकिन यह भयावह था, जैसे पहले ही मौत का स्वाद चख लेना, थोड़ा कम-कम ज़िन्दा रहना। ओ'ब्रायन से बात करते वक़्त शब्दों के तमाम अर्थ जब गर्क हो जा रहे थे, तब उसकी देह एक ठंडी सी सिहरन में जकड़ गई थी। उसे लग रहा था जैसे वह किसी क़ब्र की सीलन भरी गहराइयों में उतर रहा हो। वह जानता था कि एक क़ब्र तो हमेशा से वहाँ उसके इन्तज़ार में मौजूद थी, लेकिन इसका अहसास होना कुछ ठीक नहीं था।

1984 (उपन्यास) : जॉर्ज ऑर्वेल-दूसरा भाग-7

विंस्टन नींद से जग चुका था। उसकी आँखों में आँसू थे। जूलिया ऊँघते हुए उसके बग़ल में पलट रही थी और कुछ बुदबुदा रही थी, जैसे पूछ रही हो, "क्या बात है?"

“मैंने सपना देखा कि...," शुरू करते ही विंस्टन रुक गया। शब्दों में उसे ढाल पाना बहुत मुश्किल था। एक तो सपना था। दूसरा उससे जुड़ी स्मृति, जो जगते ही उसके दिमाग में कौंध गई थी।

आँखें बन्द करके उसने पीठ टिका ली। सपना अब भी उसे घेरे हुए था। वह एक भव्य सपना था और उसमें गज़ब की रोशनी थी, जिसमें उसकी समूची ज़िन्दगी गर्मियों की शाम बरसात में भीगे किसी मैदान की तरह उसकी आँखों के सामने आकर पसर गई थी। यह सब कुछ काँच के उस पेपरवेट के भीतर घटा था| काँच की सतह आकाश का गुंबज थी और उस गुंबज के भीतर हर चीज़ एक साफ़ नरम रोशनी में डूबी हुई थी, जिसके पार अनंत तक दिखाई देता था। इस सपने के भीतर उसकी माँ की बाँहों की एक ख़ास मुद्रा भी घुली हुई थी-बिलकुल वही मुद्रा जो उसने तीस साल बाद एक फ़िल्म में देखी थी एक यहूदी महिला में, जो अपने बच्चे को गोलीबारी से बचाने के लिए अपने भीतर छिपाए जा रही थी, लेकिन बाद में हेलिकॉप्टर ने जिनके परखच्चे उड़ा दिए थे।

विंस्टन बोला, “तुमको पता है, अब तक मुझे लगता था कि मैंने अपनी माँ को मारा है?"

जूलिया ऊँघते हुए बुदबुदाई, “क्यों मारा?"

“मतलब हत्या नहीं, मौत की वजह की बात कर रहा हूँ।"

सपने में उसको माँ की अन्तिम झलक याद आई थी। उस झलक के आसपास की कुछेक छोटी-मोटी घटनाओं को बस टटोलने की देरी थी कि सब कुछ लौटकर वापस आ गया था। बरसों इस स्मृति को उसने जानबूझकर अपनी चेतना से धकेलकर दूर रखा था। उसे तारीख़ तो नहीं याद, लेकिन जब यह घटना हुई थी तब वह कम से कम दस साल का तो रहा ही होगा, या शायद बारह का।

उसके पिता इस घटना से पहले ही गायब हो चुके थे। कितना पहले, यह उसे याद नहीं। उस दौर का कोलाहल भरा माहौल उसे बेशक याद है-हवाई हमले से मचने वाली भगदड़ और लोगों का भागकर ट्यूब स्टेशनों में पनाह लेना, हर कहीं मलबे के ढेर, सड़क के किनारे लगे अबूझ किस्म के इश्तिहार, एक ही रंग की शर्ट पहने नौजवानों के गिरोह, बेकरी की दुकानों पर भीड़ की क़तारें, दूर से रुक-रुक कर आती मशीनगन की आवाजें और सबसे ज़्यादा यह बात कि कभी भी खाने के लिए पर्याप्त नहीं होता था उन दिनों। उसे याद थीं वे लम्बी दोपहरें, जब दूसरे लड़कों के साथ कचरे के गोल डब्बों और ढेर में से छाँटकर करमकल्ले की डंठल, आलू के छिलके और कभी-कभार बासी रोटी के टुकड़े चुनने पड़ते थे और वे बड़ी सावधानी से उसमें से राख को अलग करते थे; फिर उन ट्रकों का इन्तज़ार, जो एक तय रास्ते से मुर्गियों का चारा लेकर जाती थीं और जब सड़क में गड्ढे आने पर हिचकोले खाती तो चारे की थोड़ी खली छलककर नीचे गिर जाती थी।

पिता जब गायब हुए, तब माँ को न तो कोई अचम्भा हुआ और न ही बहुत गहरा दुख, बल्कि उनके व्यवहार में अचानक एक बदलाव आ गया। माँ एकदम से बेजान हो गई। विंस्टन को भी समझ में आ रहा था कि माँ किसी चीज़ के घटने का इन्तज़ार कर रही थी और वह जानती थी कि ये तो होना ही है। वैसे, ज़रूरत का हर काम वह करती खाना पकाना, कपड़े धोना, रफू-मरम्मत करना, बिस्तर लगाना, झाड़ लगाना, अँगीठी का ताखा साफ़ करना–लेकिन बहुत ही आहिस्ते-आहिस्ते, जैसे किसी शिल्पी का गढ़ा हुआ एक पुतला खुद-ब-खुद हिल रहा हो पर उसकी गति पकड़ में न आए। इसका नतीजा यह हुआ कि उसका पुष्ट सुडौल शरीर बीमार दिखने लगा। वह बिस्तर पर तक़रीबन बिना हिले-इले घंटों बैठी रहती थी विंस्टन की छोटी बहन को लेकर, जो उस वक़्त दो या तीन साल की एक नन्ही सी नाजुक और शान्त बच्ची थी जिसका चेहरा सूखकर बन्दर जैसा दिखने लगा था। बहुत कम मौक़ों पर ऐसा होता कि माँ विंस्टन को अपनी बाँहों में भरकर बिना कुछ कहे देर तक अपने से चिपटाए रहती। विंस्टन किशोर और स्वार्थी था. लेकिन इसका मतलब समझता था कि कहीं न कहीं आसन्न के साथ इसका कोई जुड़ाव था, जिसे बस कहा नहीं जाता था।

उसे वह कमरा याद है जहाँ वह रहता था-अँधेरा, घुटन भरा बदबूदार कमरा था जिसका आधा हिस्सा तो सफ़ेद पलंगपोश वाले एक बिस्तर ने घेर रखा था। अँगीठी के फेंडर के भीतर एक गैस-चूल्हा था, खाना रखने के लिए एक ताखा था और बाहर फ़र्श पर भूरे रंग का मिट्टी का हौज था जो कमरों में उन दिनों आम तौर से होता था। उसे अपनी माँ की वह मूर्तिवत् मुद्रा याद है जब वह गैस चूल्हे के ऊपर झुककर देगची में कुछ हिलाती रहती थी। सबसे ज़्यादा उसे अपनी भूख याद है जिसके चलते खाने के समय अकसर झगड़े हुआ करते थे। वह बार-बार माँ से खाने को और माँगता। खाना और क्यों नहीं है, सवाल करता। नहीं मिलने पर माँ के ऊपर वह बरस पड़ता था (उसे गुस्से वाली अपनी आवाज़ याद है जो कभी-कभी अजीब ढंग से फूट पड़ती थी क्योंकि समय से पहले ही उसकी घाटी फूट रही थी) या फिर और ज़्यादा के लिए रिरियाने का भी नाटक करता था। उसकी माँ हमेशा उसे उसके हिस्से में ज़्यादा देने को तैयार रहती थी। वह मानकर चलती थी कि उसे यानी 'लड़के' को ज़्यादा ही मिलना चाहिए। दिक़्क़त यह थी कि वह जितना देती, विंस्टन उतना ही ज़्यादा माँगता। इसलिए वे जब भी खाने बैठते, माँ हाथ जोड़कर मनुहार करती कि वह स्वार्थी न बने और याद रखे कि उसकी छोटी बहन बीमार है, उसे भी खाना चाहिए। इस सबका हालाँकि कोई फायदा नहीं होता था। जैसे ही वह देखता कि अब वह और नहीं दे रही है, विंस्टन गुस्से में चिल्ला उठता और उससे सॉसपैन या चम्मच छीनने लग जाता या फिर बहन की थाली से हड़प लेता। वह जानता था कि उसके चक्कर में दोनों भूखी रह जाएँगी लेकिन उससे खुद की भूख बरदाश्त नहीं होती थी। उसे यह भी लगता था कि ऐसा करने का उसे अधिकार है। उसके अन्दर भड़की भूख की आग हर चीज़ को सही ठहरा देती थी। माँ की नज़र कभी चूक जाए तो बीच-बीच में वह ताखे पर रखे खाने के मामूली भंडार पर भी हाथ साफ़ कर देता था।

उसी बीच एक दिन की बात है, जब कई महीनों या हफ़्तों से रुका हुआ चॉकलेट का राशन जारी हुआ था। चॉकलेट का वह छोटा सा अनमोल टुकड़ा उसे अब तक अच्छे से याद है। वह दो औंस का टुकड़ा था (उन दिनों औंस में तौल चलती थी) जो घर में इकलौता बचा था जबकि खाने वाले थे तीन। ज़ाहिर है उसे तीन बराबर हिस्सों में बाँटा जाना चाहिए था। अब, विंस्टन को जाने क्या हुआ कि वह बहुत ज़ोर से चिल्लाने लगा कि वह चॉकलेट पूरी की पूरी अकेले उसी को मिलनी चाहिए। ऐसा कहते हुए उसे महसूस हुआ था कि यह आवाज़ उसके भीतर से नहीं आई, बल्कि किसी और की है। गोया उसने यह बात खुद नहीं कही, बल्कि खुद से सनी। इस पर माँ ने उससे कहा कि लालच बुरी बला है। इसके बाद काफ़ी देर तक रोना-धोना, चीख़ना-चिल्लाना, रिरियाना मचा रहा और बात घूम-फिर कर तमाम बहसबाज़ी और सौदेबाज़ी के बाद वहीं पहुँच जाती। इस दौरान उसकी नन्ही सी बहन अपने दोनों नन्हे हाथों से माँ को ऐसे पकड़े हुए थी जैसे कोई छोटी-सी बन्दरिया अपनी माँ के कलेजे से चिपटी होती है। वह माँ के कन्धे से उचककर विंस्टन को बड़ी-बड़ी उदास आँखों से देखे जा रही थी। अन्त में हारकर माँ ने तीनचौथाई टुकड़ा विंस्टन को दिया और एक-चौथाई बच्ची को। बच्ची ने चॉकलेट को हाथ में लेकर ऐसे देखा जैसे उसे पता न हो कि यह क्या चीज़ है। कुछ पल विंस्टन वहाँ खड़ा उसे देखता रहा। फिर अचानक हरकत में आया और काफ़ी तेज़ी से बहन के हाथों से चॉकलेट का टुकड़ा छीनकर दरवाज़े की ओर लपका।

"विंस्टन! विंस्टन!" माँ चिल्लाई, “रुक जाओ! बहन का चॉकलेट उसे लौटाओ!"

वह रुका तो, लेकिन लौटकर नहीं आया। माँ की बेचैन निगाहें उसके चेहरे पर गड़ी हुई थीं। वह अब भी सोचे जा रहा था आखिर ऐसा क्या था जो एकदम घटने के कगार पर था और जिसका उसे पता नहीं था। उसकी बहन को अपना हक मारे जाने का अहसास हो चुका था शायद, वह सुबकने लगी थी। माँ ने बच्ची को बाँहों के घेरे में लिया और अपनी छाती से चिपका लिया। इस दृश्य में कुछ ऐसा था जिससे विंस्टन को लगा कि उसकी बहन अब मरने वाली है। वह मुड़ा और भागकर सीढ़ियाँ उतरने लगा। हाथ में चॉकलेट चिपचिपी हो चुकी थी।

उसने फिर कभी अपनी माँ को नहीं देखा। सारी चॉकलेट खा लेने के बाद उसे खुद पर शर्मिन्दगी महसूस हुई और वह सड़कों पर कई घंटे भटकता रहा। फिर भूख उसे वापस घर खींच लाई। घर आकर उसने पाया कि माँ गायब हो चुकी थी। उस समय तक ऐसी घटनाएँ आम हो चली थीं। कमरे में सब कुछ जस का तस था। बस माँ और बहन गायब थीं। वे अपने साथ कपड़े नहीं ले गई थीं; माँ का ओवरकोट तक नहीं। आज तक वह पक्के तौर पर नहीं कह सकता कि उसकी माँ मर चुकी है। बहुत सम्भव था कि उसे किसी श्रमिक शिविर में भेज दिया गया हो। बहन की जहाँ तक बात है, उसे बेघर बच्चों के लिए बनाई गई किसी रिहाइशी कॉलोनी (जिन्हें उद्धार केन्द्र कहा जाता था) में विंस्टन की ही तरह डाल दिया गया होगा, जिनकी संख्या गृहयुद्ध के चलते बढ़ गई थी। या फिर कहीं और ऐसे ही मरने के लिए उसे छोड़ दिया गया होगा।

अब भी उसके दिमाग में सपना लगातार बना हुआ था। खासकर अँकवार की माँ की वह मुद्रा, जिसमें ऐसा लगता था कि सपने का समूचा अर्थ छिपा है। इसी से उसे दो महीने पहले देखा एक और सपना याद हो आया। उसकी माँ उजले लिहाफ़ वाले गन्दे से बिस्तर पर बच्ची को चिपकाए जिस तरह बैठी रहती थी, बिलकुल वैसे ही वह एक जलमग्न जहाज़ पर बैठी हुई थी और मिनट दर मिनट और गहरे डूबती जाती थी, लेकिन गहराते पानी में से ऊपर विंस्टन को देखे जा रही थी।

उसने जूलिया को अपनी माँ के गायब होने की पूरी कहानी सुना दी थी। जूलिया ने बिना आँखें खोले ही करवट ली और थोड़ा आरामदेह मुद्रा में धंसते हुए बोली :

"मेरे हिसाब से उन दिनों पक्का तुम एकदम घटिया जंगली सूअर जैसे रहे होगे। वैसे भी, सारे बच्चे सुअर ही होते हैं।"

“हाँ, लेकिन इस कहानी का असली मौज़ूँ..." ।

उसकी साँस से समझ में आ गया कि वह फिर से सोने जा रही थी। विंस्टन चाहता था कि माँ के बारे में बोलता रहे। जहाँ तक उसकी स्मृति जाती थी, उसके हिसाब से वह यह तो नहीं मान सकता कि उसकी माँ कोई असाधारण महिला थी, बुद्धिमान तो उतनी भी नहीं। इसके बावजूद उसके भीतर एक किस्म की कुलीनता थी, एक तरह की शुद्धता, जिसकी वजह जीने के उसके निजी आदर्श थे। उसकी भावनाएँ निजी थीं, जिन्हें बाहर से बदला नहीं जा सकता था। उसको ये बात समझ में ही नहीं आ सकती थी कि अगर किसी काम का कोई नतीजा न निकले तो वह निरर्थक होता है। उसके जाने अगर आप किसी से प्यार करते हैं तो बस करते हैं, इतना ही काफ़ी है भले आपके पास उसे देने के लिए कुछ न हो। प्यार अपने आप में देय है। जब चॉकलेट का अन्तिम टुकड़ा भी जा चुका था, तब माँ ने बच्ची को अपने सीने से चिपटा लिया था। इसका कोई मतलब नहीं था, इससे कुछ भी बदल नहीं जाता, न कोई चॉकलेट पैदा हो जाती। इससे बच्चे की या उसकी खुद की मौत भी नहीं टल जाती, लेकिन उसने ऐसा किया क्योंकि उसे यही स्वाभाविक लगा। नाव वाली उस शरणार्थी महिला ने भी अपने बच्चे को अपनी बाँहों में छिपा लिया था, गोलियों के सामने जिसकी हैसियत कागज़ के एक पन्ने से ज्यादा नहीं थी। पार्टी ने जो सबसे बुरा काम किया था, वह लोगों को इस बात से राज़ी करना था कि महज़ भीतरी आवेग, भावनाएँ कोई मायने नहीं रखती हैं। साथ ही दुनियावी चीज़ों पर उसने लोगों का अख्तियार भी छीन लिया था। एक बार आप पार्टी की गिरफ्त में आ जाते तो फिर आप क्या महसूस करते हैं या नहीं करते, क्या करते हैं और क्या नहीं, इससे वाक़ई कोई फ़र्क नहीं पड़ता था। चाहे जो हो, हर क़ीमत पर आपको मिट जाना बदा था जिसके बाद न आप न आपका काम कभी कहा या सुना जाता। इतिहास की बहती धारा से जैसे आपको बाहर निकालकर अलग कर दिया जाता। फिर भी, केवल दो पीढ़ी पहले तक लोगों के लिए इस बात का कोई महत्त्व नहीं था क्योंकि वे इतिहास बदलने की कोशिश नहीं करते थे। उनकी ज़िन्दगी निजी वफ़ादारियों से संचालित होती थी जिन पर वे सवाल नहीं करते थे। तब कुल मिलाकर निजी रिश्ते मायने रखते थे-एक निहायत ही बेबस मुद्रा, एक अदद आगोश, एक क़तरा आँसू, मरते हुए किसी आदमी से कहा गया बस एक शब्द, अपने आप में मूल्यवान होता था। जनता अब भी इन चीज़ों का महत्त्व समझती है, ऐसे ही जी रही है, उसे अचानक ख़याल आया। ये लोग पार्टी, देश या विचार के प्रति नहीं, एक-दूसरे के प्रति वफ़ादार हैं। ऐसा सोचते हुए ज़िन्दगी में पहली बार विंस्टन को जनता तुच्छ नहीं लगी, या महज़ एक निष्क्रिय बल नहीं लगी जो किसी दिन अचानक ही जी उठेगी और दुनिया बदल देगी। यह जनता अब तक इनसान बनी हुई है। भीतर से कठोर नहीं हुई। वे अब तक उन आदिम भावनाओं से चिपके हुए हैं जो विंस्टन को बहुत प्रयास करके दोबारा सीखने पड़ रहे हैं। यहीं पर उसे बिना किसी ख़ास सन्दर्भ के अचानक याद आया कि कैसे कुछ हफ़्ते पहले उसने सड़क पर एक कटा हुआ हाथ पड़ा देखा था और उसे ऐसे लात मारकर गटर में फेंक दिया था गोया किसी करमकल्ले की डंठल रहा हो।

उसने ज़ोर से कहा, “जनता मानवीय है। हम लोग मनुष्य नहीं हैं।"

“क्यों नहीं?" जूलिया की झपकी टूट चुकी थी।

थोड़ी देर तक उसने सोचा। फिर बोला, “क्या कभी तुम्हें ऐसा लगा कि हमारे भले के लिए सबसे बेहतर यही होगा कि हम दोनों चुपचाप यहाँ से निकल लें और फिर कभी एक-दूसरे से न मिलें? इससे पहले कि और देर हो जाए?"

“हाँ, मेरी जान। कई बार ऐसा लगता है, लेकिन मैं ऐसा करने नहीं जा रही। सब कुछ ऐसे ही चलेगा।"

विंस्टन बोला, “हम लोग खुशकिस्मत हैं, लेकिन बहुत लम्बा ऐसे नहीं चलेगा। तुम जवान हो। सामान्य लगती हो, मासूम दिखती हो। मेरे जैसे लोगों से यदि दूर रहोगी तो हो सकता है अगले पचास साल तक जी जाओ।"

“नहीं। मैंने सब सोच लिया है। तुम जो करोगे, मैं भी वही करूँगी। और मन को छोटा मत करो। मुझे ज़िन्दा रहना अच्छे से आता है।" “बहुत हुआ तो हम लोग अगले छह महीने या साल भर साथ रह लेंगे, कौन जानता है। अन्त में तो हमें जुदा होना ही है। तुम्हें अन्दाज़ा भी है कि तब हम कितने अकेले रह जाएँगे? बस एक बार हम उनके हत्थे चढ़ गए तो कुछ नहीं बचेगा। कुछ नहीं मतलब कुछ नहीं, जो हम एक-दूसरे के लिए कर पाएँ। अगर मैंने क़बूल कर लिया, तो वे तुम्हें गोली मार देंगे। मैंने अगर इनकार किया, तब भी वे तुम्हें गोली मार देंगे। मैं कुछ भी कर लूँ, कह लूँ या कहने से खुद को रोक लूँ, लेकिन अगले पाँच मिनट में तुम्हें मरने से नहीं बचा पाऊँगा। हम दोनों यह भी नहीं जान पाएँगे कि दूसरा ज़िन्दा है या मर गया। हमारे हाथ में कुछ नहीं होगा तब। बस एक चीज़ यहाँ मायने रखती है कि हम एक-दूसरे को धोखा न दें, हालाँकि उससे भी रत्ती भर फ़र्क नहीं पड़ने वाला।"

“अगर इकबालिया बयान की बात है तो क़बूल हम दोनों ही करेंगे। हर कोई क़बूल करता है। इसे आप रोक नहीं सकते। वे इतना मारते हैं कि क़बूल करना ही पड़ता है।"

“मेरा मतलब केवल इकबालिया बयान से नहीं है। क़बूल करना धोखा देना नहीं है। कहने और न कहने के बीच कोई अन्तर नहीं है, केवल अहसास मायने रखते हैं। अगर वे मुझे रोक पाते हैं तुम्हें प्यार करने से, तब इसे असली विश्वासघात कहेंगे।"

जूलिया ने इस पर सोचा। फिर बोली, “यह काम वे नहीं कर पाएँगे। यही एक काम है जो वे नहीं कर सकते। आपको अगर इस बात का अहसास है कि मनुष्यता सार्थक चीज़ है भले ही इसका कोई नतीजा नहीं निकलता हो, तो समझो आपने उन्हें हरा दिया।"

उसने चौबीसों घंटे चौकन्ने टेलिस्क्रीन के बारे में सोचा। वे दिन-रात आपकी जासूसी कर सकते हैं लेकिन अगर आपकी खोपड़ी के भीतर सब कुछ दुरुस्त है तो आप उन्हें मात दे सकते हैं। वे चाहे कितने ही चतुर और माहिर क्यों न हों लेकिन अब भी उनका अख्तियार इस पर नहीं है कि सामने वाला क्या सोच रहा है। यह बात उनकी गिरफ्त में होने पर शायद उतनी सही न हो। कोई नहीं जानता कि प्रेम मंत्रालय के भीतर क्या चलता है, लेकिन अन्दाज़ा लगाया जा सकता है : यातना, ड्रग्स, स्नायु तंत्र को पढ़ने वाली नाजुक मशीनें, लगातार जगने और अकेलेपन और सवाल पूछे जाने से धीरे-धीरे टूटता हुआ आदमी। तथ्यों को आप किसी भी कीमत पर छिपा नहीं सकते। उनका पता तो जाँच-पड़ताल से लगाया जा सकता है। उसे आपको प्रताड़ित करके उगलवाया जा सकता है। लेकिन उद्देश्य अगर ज़िन्दा रहना नहीं बल्कि मानवीय बने रहना है, तो इससे क्या अन्तर आ जाता है? आपकी भावनाएँ तो नहीं बदल जाएँगी। वैसे आप ख़ुद चाहकर भी अपनी भावनाएँ नहीं बदल सकते। आपका किया, सोचा-विचारा और कहा हुआ तो वे एक-एक करके सामने रख देंगे लेकिन मन के भीतरी तहख़ाने तो अब भी अभेद्य हैं, जिनकी रहस्यमय लीला खुद आप ही नहीं जानते।

1984 (उपन्यास) : जॉर्ज ऑर्वेल-दूसरा भाग-8

वे कारगर रहे। आख़िरकार, उन्होंने कर ही दिखाया।

वे जिस कमरे में खड़े थे, वह लम्बाई में फैला था और वहाँ रोशनी मद्धम थी। टेलिस्क्रीन की आवाज़ बेहद धीमी कर दी गई थी; फ़र्श पर बिछे गाढ़े नीले कालीन की दमक से मलमल पर चलने का अहसास होता था। कमरे के दूसरे छोर पर ओ'ब्रायन हरी रोशनी वाले लैम्प के नीचे टेबल पर दोनों तरफ़ कागज़ों के गट्ठरों से घिरा बैठा था। नौकर जब जूलिया और विंस्टन को लेकर भीतर आया तो उसने सिर उठाकर देखना भी मुनासिब नहीं समझा।

विंस्टन का दिल ऐसे ज़ोर से धड़क रहा था कि उसे लग रहा था वह बोल नहीं पाएगा। वह बस इतना ही सोच पा रहा था कि वे कारगर रहे, आख़िरकार उन्होंने यह कर दिखाया। यहाँ आना ही अपने आप में एक बेअकली भरा क़दम था। ऊपर से दोनों का साथ आना निहायत ही मूर्खतापूर्ण नादानी थी, भले ही दोनों अलग-अलग रास्तों से वहाँ पहँचे थे और सीधे ओ'ब्रायन की चौखट पर मिले थे। फिर भी, ऐसी जगह टहलते हुए घुस आने के लिए ही ज़बरदस्त हिम्मत चाहिए। ऐसे मौके दुर्लभ ही होते थे जब किसी को पार्टी कार्यवाहकों के घर के भीतर या फिर शहर के उस हिस्से में जाने को मिलता जहाँ वे रहते थे। रिहाइशी फ़्लैटों के बड़े-बड़े ब्लॉक, रईसी और भव्यता से भरपूर हरेक चीज़, अच्छे व्यंजनों और उत्कृष्ट तम्बाकू की अनचीन्ही ख़ुशबुएँ, अविश्वसनीय रूप से द्रुत और एकदम शान्त तरीके से ऊपर-नीचे डोलती लिफ़्ट, यहाँ-वहाँ दौड़ लगाते सफ़ेद बंडी पहने नौकर-हर चीज़ यहाँ आतंकित करती थी। यहाँ आने की उसके पास भले एक जायज वजह थी, लेकिन हर क़दम पर वह इस डर से ठिठक जाता था कि कहीं किसी कोने से कोई काली वर्दीधारी गार्ड न निकल आए, उसके कागज़ माँग ले और वहाँ से भगा दे। ओ'ब्रायन के नौकर ने हालाँकि दोनों को बिना किसी एतराज़ के भीतर आने दिया। सफ़ेद बंडी पहने वह एक ठिंगना-सा गहरे बालों वाला व्यक्ति था जिसका भावशून्य चेहरा हीरे के चौखटे सा था, जो बहुत सम्भव है कि चीनी रहा हो। जिस गलियारे से वह उन्हें लेकर आया था उसमें नरम क़ालीन बिछी थी और उसकी दीवारों पर दूधिया सफ़ेद कागज़ की चादर थी और सब कुछ झक्क साफ़-शफ़्फ़ाफ़| यह भी डराने वाला था। विंस्टन को याद नहीं कि कभी उसने ऐसा गलियारा देखा हो जिसकी दीवारें लोगों के सम्पर्क के चलते मैली न हुई हों।

ओ'ब्रायन काग़ज़ की एक परची हाथ में लेकर बहुत गौर से पढ़ रहा था। उसका झुका हुआ भारी चेहरा-जिसमें केवल नाक की रेखा सामने वाले को दिखती थी-एक साथ भयावह और बुदधिमत्तापूर्ण लग रहा था। कोई बीस सेकंड तक वह हिला ही नहीं, वैसे ही बैठा रहा। फिर उसने श्रुतलेख मशीन पास खींची और मंत्रालयों की मिश्रित शब्दावली में एक सन्देश पढ़ा :

Items one comma five comma seven approved fullwise stop suggestion contained item six doubleplus ridiculous verging crimethink cancel stop unproceed constructionwise antegetting plusfull estimates machinery overheads stop and message message.

वह कुर्सी से उठा और कालीन पर शान्त क़दमों से चलते हुए उनकी तरफ़ आया। ऐसा लगा कि न्यूस्पीक का सन्देश निपटाने के साथ ही वहाँ कायम उसका दफ्तरी माहौल भंग हो गया था। उसके चेहरे पर सामान्य के मुक़ाबले थोड़ा सख़्त भाव था, जैसे काम में खलल डाला जाना उसे नागवार गुज़रा हो। एक तो विंस्टन पहले ही डरा हुआ था, अब उसे शर्मिन्दगी भी महसूस हो रही थी। उसे लग रहा था कि शायद उसने यहाँ आकर वाक़ई बेवकूफ़ाना गलती कर दी है। उसके पास आख़िर क्या सबूत है इस बात का कि ओ'ब्रायन राजनीतिक षड्यंत्रकारी है? सिवाय एक बार मिली निगाहों की चमक और एक अस्पष्ट टिप्पणी के? उसके आगे तो सब कछ विंस्टन की कोरी कल्पना ही थी, केवल एक सपने से उपजी गोपनीय सोच। अब तो वह यह दावा भी नहीं कर सकता कि यहाँ वह शब्दकोश लेने आया है क्योंकि फिर जूलिया के साथ होने को समझा पाना नामुमकिन होता। इतने में ओ'ब्रायन टेलिस्क्रीन के बगल से गुज़रा और जाने क्या कौंधा उसके मन में, कि वह रुका और बग़ल की दीवार पर लगे एक स्विच को दबा दिया। सहसा चटचटाहट की तेज़ आवाज़ के साथ टेलिस्क्रीन शान्त हो गया।

हतप्रभ जूलिया के मुँह से हल्की सी चिंचियाहट निकल गई। पहले ही चौतरफ़ा आतंक के बीच घिरा विंस्टन अबकी ऐसा अचम्भित हुआ कि अपनी ज़बान को काबू में नहीं रख पाया।

"इसे बन्द किया जा सकता है!" उसने कहा।

“हाँ," ओ'ब्रायन बोला, “हम लोग इसे बन्द कर सकते हैं। इतनी छूट हमें मिली हुई है।"

ओ'ब्रायन अब एकदम सामने खड़ा था। विंस्टन और जूलिया दोनों पर उसकी काया अकेले भारी जान पड़ती थी और अब भी उसके चेहरे के भावों को पढ़ा नहीं जा सकता था। थोड़ा रुख़ाई के साथ वह इन्तज़ार में था कि विंस्टन कुछ बोले, लेकिन क्या? अब भी बहुत साफ़ समझ में आ रहा था कि वह बहुत व्यस्त था और अपने काम में पड़े दखल से फ़िलहाल खीजा हुआ है। कोई कुछ नहीं बोला। टेलिस्क्रीन बन्द हो जाने के बाद कमरे में मरघटसी शान्ति पसर गई थी। बीतता हुआ एक-एक सेकंड भारी पड़ रहा था। विंस्टन को ओ'ब्रायन से आँख मिलाने में बहुत दिक्कत हो रही थी। अचानक ही ओ'ब्रायन का सख़्त चेहरा थोड़ा नरम पड़ा, जैसा मुस्कुराने के ठीक पहले होता है। अपने परिचित अन्दाज़ में उसने अपनी नाक पर चढ़ा चश्मा सीधा किया और बोला:

“मैं बोल दूँ, या तुम बोलोगे?"

"मैं बोलता हूँ," विंस्टन ने छूटते ही कहा, “वह वाक़ई बन्द है न?"

"हाँ, सब बन्द है। हम लोग अकेले हैं।"

“हम दोनों यहाँ इसलिए आए हैं क्योंकि..."

विंस्टन ठहर गया। उसे पहली बार अपने इरादों के धुंधलेपन का अहसास हुआ। यह बताना आसान नहीं था कि वह यहाँ क्यों आया है क्योंकि उसे वास्तव में यह नहीं मालूम था कि ओ'ब्रायन से वह कैसी मदद की उम्मीद कर रहा था। फिर भी उसने बोलना शुरू किया, इस अहसास के साथ कि उसका कहा धृष्टता और कमज़ोरी समझा जाएगा।

“हमारा मानना है कि कोई साज़िश हो रही है, पार्टी के ख़िलाफ़ कोई गोपनीय संगठन काम कर रहा है, और आप उसका हिस्सा हैं। हम भी उसमें शामिल होना चाहते हैं और उसके लिए काम करना चाहते हैं। हम लोग पार्टी के दुश्मन हैं। हमें इंगसॉक के सिद्धान्तों पर विश्वास नहीं है। हम लोग विचार अपराधी हैं। हम लोग जारकर्मी भी हैं। मैं आपको यह सब इसलिए बता रहा है क्योंकि अब हम आपके रहमो-करम पर हैं। यदि आप चाहते हैं कि हम खुद को किसी और तरीके से दोषी ठहरा दें, तो उसके लिए हम तैयार हैं।"

विंस्टन रुका और उसके कन्धे के ऊपर से झाँका। उसे लगा किसी ने दरवाज़ा खोला है। गेहँए चेहरे वाला ठिंगना नौकर बिना खटखटाए अन्दर आ गया था। विंस्टन ने देखा कि वह एक ट्रे में काँच की सुराही और कुछ प्याले लेकर आया था।

ओ'ब्रायन लापरवाह ढंग से बोला, "मार्टिन अपना ही आदमी है। ड्रिंक इधर ले आओ, मार्टिन। गोल वाली मेज़ पर रख दो। कुर्सियाँ काफ़ी हैं न? एक कुर्सी अपने लिए भी ले आओ, मार्टिन। फिर हम लोग बैठकर आराम से बात करते हैं। काम की बात है। इसलिए अगले दस मिनट तक खुद को नौकर समझने की ज़रूरत नहीं है।"

अपने जाने मार्टिन आराम से ही बैठा, लेकिन अब भी उसका हाव-भाव नौकर वाला ही था गोया भाग्य खुल गया हो और वह खुद को धन्य महसूस कर रहा हो। विंस्टन उसे कनखी से देख रहा था। उसे लगा कि इसकी तो पूरी ज़िन्दगी ही किसी अभिनय में बीत रही है और एक पल के लिए भी अपने किरदार से जुदा होने को वह ख़तरनाक समझता है। ओ'ब्रायन ने सुराही को गरदन से पकड़कर उठाया और प्यालों में गहरा लाल द्रव्य भर दिया। विंस्टन के मन में किसी दीवार या होर्डिंग पर बहुत पहले देखी किसी चीज़ की धुंधली-सी स्मृति उभर आई-एक विशाल बोतल थी, जिसमें रंगीन बत्तियाँ जड़ी हुई थीं जो ऊपर-नीचे करके ऐसे जल रही थीं कि लग रहा था बोतल से गिलास में कुछ उड़ेला जा रहा हो। यहाँ गिलास में पड़ा द्रव्य ऊपर से देखने में तक़रीबन काला लगता था लेकिन सुराही के भीतर किसी माणिक-सा दमकता था। इसकी गंध खट्टी-मीठी थी। उसने देखा कि जूलिया गिलास उठाकर बिना किसी संकोच के जिज्ञासा में उसे सूँघ रही थी।

हल्की सी मुस्कुराहट के साथ ओ'ब्रायन ने कहा, "इसे वाइन कहते हैं। बेशक, तुमने किताबों में इसके बारे में पढ़ा होगा। मुझे अफ़सोस है कि प्रचारकों तक यह ज़्यादा पहुँच नहीं पाती है।” उसका चेहरा फिर से गम्भीर हो उठा। उसने प्याला हवा में ऊपर उठाया, "मेरे ख़याल से इससे बेहतर क्या होगा कि ये जाम हम उनकी सेहत के नाम करें। हमारे नेता के नाम, इमैनुएल गोल्डस्टीन के नाम।"

विंस्टन ने थोड़ा उत्सुकता के साथ अपना प्याला उठाया। उसने वाइन के बारे में पढ़ रखा था और सपने में भी देखा था। काँच के पेपरवेट या मिस्टर चारिंगटन की अधूरी कविताओं की तरह वाइन भी मिटा दिए गए उस रूमानी अतीत का हिस्सा थी, जिसे अपने मन में वह गुज़रा हुआ ज़माना कहता था। जाने क्यों उसे हमेशा लगता रहा कि वाइन बहुत तेज़ मीठी चीज़ होती होगी, जैसे ब्लैकबेरी का जैम, और इसका नशा तुरन्त चढ़ता होगा। आज जब वाक़ई गटकने को मिली, तो इसके स्वाद से उसे बड़ी निराशा हुई है। सच्चाई तो यह है कि बरसों जिन पीने के बाद उसे इसका स्वाद हजम नहीं हो रहा था। उसने गिलास ख़ाली करके रख दिया।

उसने पूछा, “गोल्डस्टीन नाम का कोई व्यक्ति वास्तव में है?"

"हाँ, वाक़ई है और जिन्दा है। कहाँ, यह मैं नहीं जानता।"

"और षड्यंत्र–मने संगठन? वह भी सच है? केवल विचार पुलिस के दिमाग की पैदाइश नहीं?"

“ना, एकदम हक़ीक़त है। हम उसे ब्रदरहुड कहते हैं। ब्रदरहुड वास्तव में है और तुम उसका हिस्सा हो, इससे ज़्यादा तुम कभी नहीं जान पाओगे उसके बारे में। उस पर मैं आता हूँ।" ओ'ब्रायन ने कलाई घड़ी में समय देखा और बोला, “पार्टी के भीतरी हलके में कार्यवाहकों के लिए भी टेलिस्क्रीन को आधे घंटे से ज़्यादा बन्द रखना मुनासिब नहीं होता। तुम दोनों को यहाँ साथ नहीं आना चाहिए था। वापसी में तुम्हें अलग-अलग जाना होगा। आप, साथी"-उसने जूलिया को देखकर अभिवादन में सिर झुकाया-“पहले निकलेंगी। हमारे पास अब केवल बीस मिनट का वक्त है। आपको बता दूँ कि शुरुआत के लिए मुझे आपसे कुछ सवाल पूछने होंगे। वैसे, मोटा-मोटी आप लोग करना क्या चाहते हैं?"

विंस्टन ने कहा, "कुछ भी, जिसके लायक़ हम हों।" ओ'ब्रायन अपनी कुर्सी पर बैठे-बैठे हल्का सा विंस्टन की ओर मुड़ गया था। जूलिया को जैसे उसने अनदेखा ही किया मानो उसके सन्ती विंस्टन ही सब जवाब दे देगा। एक क्षण के लिए उसने अपनी पलकें झपकाईं, फिर हल्के भावशून्य स्वर में उसने सवाल पूछने शुरू किए गोया यह उसका रोज़ का काम हो। सवाल एकदम अदालती जिरह जैसे थे, जिनमें से अधिकतर के जवाब उसे पहले से पता थे।

"आप अपनी जान देने को तैयार हैं?"

"हाँ।"

"आप क़त्ल करने को तैयार हैं?"

"हाँ।"

“ऐसे विध्वंसक काम करने को, जिससे सैकड़ों बेगुनाह मासूमों की जान जा सकती है?"

"हाँ।"

“विदेशी ताक़तों के लिए अपने देश के साथ गद्दारी करने के लिए?"

"हाँ।"

"आप जालसाज़ी, फ़र्जीवाड़ा, ब्लैकमेल करने को, बच्चों के दिमाग दूषित करने को, लत लगाने वाले नशीले पदार्थ बाँटने को, वेश्यावृत्ति को बढ़ावा देने को, यौन रोगों का प्रसार करने को-यानी हर वह काम करने को तैयार हैं जो अनैतिकता को फैलाए और पार्टी की ताक़त को कमज़ोर करे?"

"हाँ।"

“मान लीजिए कि किसी बच्चे के चेहरे पर तेज़ाब फेंकना पड़ जाए क्योंकि इसमें हमारा हित छिपा हो, तो क्या आप ऐसा करने को तैयार होंगे?"

“हाँ।"

"क्या आप अपनी पहचान को गँवाकर बाक़ी की ज़िन्दगी किसी बैरे की तरह या जहाज़ की गोदी पर काम करने को तैयार होंगे?"

“हाँ।"

"हमने अगर कभी आदेश दिया तो क्या आप खुदकुशी करने को तैयार होंगे?"

"हाँ।”

“आप दोनों एक-दूसरे से अलग होने और फिर कभी न मिलने को तैयार हैं ?"

"नहीं!" जूलिया अचानक बीच में चीख़ पड़ी।

विंस्टन को लगा जवाब देने में उसे काफ़ी देर हो रही है। एक पल के लिए उसे ऐसा भी लगा कि उसके बोलने की शक्ति ही चली गई। उसके हलक़ में दो शब्द फँस गए थे और एक-एक करके उसकी ज़बान दोनों के पहले अक्षर को बार-बार बिना आवाज़ के गोल-गोल उलट-पलट रही थी। जब उसने मुँह खोला, उससे पहले तक उसे पता नहीं था कि वह कौन सा शब्द बोलने जा रहा है। आखिरकार उसने कह दिया, "नहीं।"

“अच्छा किया कि मुझे बता दिया तुमने,” ओ'ब्रायन बोला। "हमारे लिए हर चीज़ जानना ज़रूरी है।"

वह जूलिया से मुखातिब हुआ और अपनी आवाज़ में थोड़ा जज्बात घोलते हुए बोला, “तुम्हें अन्दाज़ा भी है कि अगर यह बच भी गया, तो यह बिलकुल अलग शख़्स होगा? हमारी मजबूरी हो जाएगी इसको नई पहचान देना। इसका चेहरा, चाल-ढाल, हाथों की बनावट, बालों का रंग यहाँ तक कि इसकी आवाज़ भी पहले से अलग होगी। और तुम खुद बदल चुकी होगी। हमारे सर्जन इतने क़ाबिल हैं कि उनका बदला हुआ आदमी पहचान में नहीं आ पाता। कभी-कभार यह ज़रूरी हो जाता है। कभी किसी के हाथ-पैर भी काटने पड़ जाते हैं।"

विंस्टन खुद को मार्टिन का मंगोल चेहरा देखने से रोक नहीं पाया। उस पर तिरछी नज़र डाली। चेहरे पर कोई निशान नहीं था। इधर जूलिया का चेहरा पीला पड़ चुका था और चेहरे की सलवटें नज़र आ रही थीं लेकिन ओ'ब्रायन के सामने वह तनकर बैठी हुई थी। उसने कुछ बुदबुदाकर कहा जिससे लगा कि हामी भर रही हो।

"बढ़िया है। फिर तो कोई दिक़्क़त ही नहीं है।"

टेबल पर चाँदी का एक सिगरेटदान रखा था। ओ'ब्रायन ने बिना कुछ सोचे उसमें से एक सिगरेट निकाली, उसे दूसरों की ओर सरका दिया और खड़े होकर धीरे-धीरे आगे-पीछे चलने लगा, जैसे कि खड़े में उसका दिमाग बेहतर काम करता हो। काफ़ी अच्छी सिगरेट थी। मोटी और ठस पैकिंग वाली, जिसका कागज़ रेशम की तरह चिकना था। ओ'ब्रायन ने फिर से कलाई घड़ी में समय देखा।

"बेहतर होगा अब तुम रसोई में चले जाओ, मार्टिन।" ओ'ब्रायन ने कहा। “मैं अभी पन्द्रह मिनट में स्विच ऑन कर दूंगा। जाने से पहले इन साथियों के चेहरे अच्छे से पहचान लो। तुम्हें शायद इनसे दोबारा मिलना पड़ेगा, मैं शायद ना मिलूँ।"

मार्टिन ने उनको देखा, बिलकुल वैसे ही जैसे वे बाहर दरवाज़े पर मिले थे। उसके देखने के तरीके में रत्ती भर भी परिचय या दोस्ताने का भाव नहीं था। वह उनके चेहरे को याद कर रहा था लेकिन उसकी दिलचस्पी उनमें बिलकुल नहीं थी या फिर देखने में ऐसा लगता था। विंस्टन को उसे देखकर लगा कि किसी का चेहरा यदि बनावटी है तो उसके हाव-भाव चाहकर भी नहीं बदल सकते। बिना कुछ बोले या अभिवादन किए मार्टिन बाहर चला गया और दरवाज़ा उसने धीरे से बन्द कर दिया। ओ'ब्रायन अब भी इधर-उधर चहलकदमी कर रहा था। उसका एक हाथ काली वर्दी की जेब में था और दूसरे में सिगरेट थी।

“तुम्हें यह बात समझनी होगी,” ओ'ब्रायन बोला, "कि तुम परदे के पीछे से लड़ोगे। तुम लोग हमेशा परदे के पीछे रहोगे। तुम्हें केवल निर्देश मिलेंगे और तुम्हें उसका पालन करना होगा, क्यों का जवाब जाने बगैर। बाद में मैं तुम्हें एक किताब भेजूंगा जिसे पढ़कर तुम इस समाज के असली चेहरे को समझ सकोगे और वह रणनीति जिससे हमें उसे नष्ट करना है। किताब पूरी पढ़ लेने के बाद तुम लोग ब्रदरहुड के पक्के सदस्य बन जाओगे। हमारे संघर्ष के सामान्य उद्देश्यों और हमारे तात्कालिक कार्यभारों के अलावा तुम कुछ भी और नहीं जान पाओगे। मैं तुम्हें बस इतना बता सकता है कि ब्रदरहड का वजूद है लेकिन मैं यह नहीं बता सकता कि इसमें सौ सदस्य हैं या एक करोड़। अपनी निजी जानकारी में तुम्हारे लिए ऐसे सदस्यों की संख्या बहुत से बहुत दर्जन भर होगी। आपके तीन या चार सम्पर्क होंगे बस, जो गायब होने पर समय-समय पर बदलते रहेंगे। चूँकि मैं तुम्हारा पहला सम्पर्क हँ तो इसे बचाकर रखा जाएगा। तुम्हारे पास जब भी निर्देश आएँगे, मेरे पास से ही आएँगे। अगर हमें सम्पर्क करना ज़रूरी लगा तो मार्टिन के माध्यम से ऐसा किया जाएगा। जब आप पकड़े जाओगे तो आप सब कुछ क़बूल कर लोगे। उससे बचा नहीं जा सकता, लेकिन अपनी कार्रवाइयों के अलावा आपके पास बहुत कुछ क़बूल करने को होगा नहीं। ज़्यादा से ज़्यादा मुट्ठी भर कुछ गैरज़रूरी लोगों को आप धोखा दे पाओगे। शायद आप मेरे साथ भी गद्दारी नहीं कर पाओगे क्योंकि उस वक़्त तक या तो मैं ज़िन्दा नहीं रहँगा या फिर मेरी अलग पहचान होगी और अलग शक्ल।"

नरम कालीन पर वह लगातार टहल रहा था। भारी शरीर के बावजूद उसकी चाल में एक शानदार आकर्षण था। जेब में हाथ डालने से लेकर उँगलियों में सिगरेट फँसाने तक से एक शिष्टता ज़ाहिर होती थी। ताक़त से ज़्यादा उसमें आत्मविश्वास और एक ऐसी समझदारी झलकती थी जिसमें व्यंग्य का पुट था। वह चाहे कितना ही गम्भीर क्यों न हो, लेकिन उसके भीतर किसी भक्त जैसी अन्धी एकनिष्ठता नहीं थी। वह जब क़त्ल, खुदकुशी, यौन रोगों, हाथ-पैर काटने, चेहरे बदलने जैसी बातें कर रहा था तो उसमें एक गप वाला भाव था। उसने कहा, "इससे बचा नहीं जा सकता। हमें बिना डरे यही करना होगा, लेकिन ज़िन्दगी जब जीने के लायक़ हो जाएगी तब हमें यह सब नहीं करना पड़ेगा।" विंस्टन के भीतर ओ'ब्रायन के लिए सराहना, बल्कि तक़रीबन श्रद्धा का भाव उमड़ आया। फ़िलहाल, वह गोल्डस्टीन की रहस्यमय छवि को भूल चुका था। ओ'ब्रायन के मज़बूत कन्धों और कठोर चेहरे–जो बदसूरत होते हुए भी कितना सभ्य था को देखकर यह मानना असम्भव था कि उसे हराया जा सकता है। ऐसी कोई युक्ति नहीं थी जो उसे न आती हो। ऐसा कोई खतरा नहीं था जिसे वह पहले से न भाँप ले। उससे जूलिया भी बहुत प्रभावित दिख रही थी, जिसकी सिगरेट बुझ चुकी थी और वह चुपचाप उसे सुन रही थी। ओ'ब्रायन कहता रहा:

“आपने ब्रदरहुड के बारे में तमाम अफ़वाहें सुन रखी होंगी। इसमें कोई शक नहीं कि आपके मन में उसकी कोई छवि भी होगी। आपने सोचा होगा कि शायद षड्यंत्रकारियों का एक विशाल भूमिगत तंत्र है जो तहख़ानों में अतिगोपनीय तरीके से मिलता होगा, दीवारों पर सन्देश लिखता होगा, एकदूसरे को कोडवर्ड से या हाथ की विशिष्ट मुद्राओं से पहचानता होगा। बता दूँ कि ऐसा कुछ भी नहीं है। ब्रदरहुड के सदस्यों के पास एक-दूसरे को पहचानने का कोई तरीक़ा नहीं है और किसी एक सदस्य के लिए बहुत मुश्किल है कि वह दो-चार से ज़्यादा को पहचानता हो। गोल्डस्टीन यदि खुद भी विचार पुलिस के हाथों लग जाएँ तो सारे सदस्यों की सूची या कोई भी ऐसी सूचना वे पुलिस को नहीं दे पाएँगे, जो सूची तैयार करने में मदद कर सके। ऐसी कोई सूची दरअसल है ही नहीं। ब्रदरहड का कभी सफ़ाया नहीं किया जा सकता क्योंकि परम्परागत अर्थों में यह कोई संगठन नहीं है। ब्रदरहड को केवल एक विचार आपस में जोड़े रखता है जो अपने आप में अटूट है, और कुछ भी नहीं।"

इतना बोलकर वह ठहरा और उसने तीसरी बार अपनी कलाई घड़ी में समय देखा।

“साथी, आपके निकलने का वक़्त अब हो चला है," जूलिया से उसने कहा। “ठहरिए, सुराही अभी आधी भरी हुई है।"

उसने प्यालों को भरा और अपना प्याला ऊपर उठाया। “ये जाम किसके नाम?" थोड़ा व्यंग्यात्मक लहजे में उसने पूछा, "विचार पुलिस की ऊहापोह के नाम? मोटा भाई की मौत के नाम? इनसानियत के नाम? मुस्तकबिल के नाम?"

विंस्टन ने जवाब दिया, "बीते हुए कल के नाम।"

ओ'ब्रायन तुरन्त राज़ी हो गया, “हाँ, अतीत ज़्यादा अहम होता है।"

उन्होंने अपने प्याले ख़ाली किए और पल भर बाद जूलिया जाने के लिए उठी। ओ'ब्रायन ने एक दराज से छोटा सा डिब्बा निकाला और उसे एक गोल चपटी टिकिया थमा दी और उसे जीभ पर रख लेने को कहा। उसने बताया कि ऐसा करना ज़रूरी है ताकि बाहर वाइन से मुंह न महके क्योंकि लिफ़्ट वाले नौकर बहुत चौकन्ने रहते हैं। जैसे ही जूलिया ने बाहर निकलकर दरवाज़ा बन्द किया, वह वापस ऐसे हो गया जैसे वह यहाँ कभी थी ही नहीं। एकाध क़दम चलकर वह रुक गया। फिर बोला :

"कुछ और बातें साफ़ करनी ज़रूरी हैं। मेरा ख़याल है कि तुम लोगों के पास छिपने की कोई न कोई जगह तो होगी ही?"

विंस्टन ने मिस्टर चारिंगटन की दुकान के ऊपर वाले कमरे के बारे में सब कुछ बता दिया।

"ठीक है, फ़िलहाल के लिए वह चलेगा। बाद में कुछ और इन्तज़ाम देख लेंगे हम लोग तुम्हारे लिए। छिपने की जगह को बदलते रहना ज़रूरी होता है। इस बीच मैं तुम्हें ग्रंथ की एक प्रति भिजवा दूँगा"-विंस्टन ने गौर किया कि ओ'ब्रायन ने ग्रंथ ऐसे कहा जैसे वह खुद में किताब का नाम हो–“मतलब गोल्डस्टीन की पुस्तक, समझे न। जल्द से जल्द। एक प्रति की व्यवस्था करने में मुझे थोड़ा वक़्त लग सकता है। तुम समझ ही सकते हो कि उसकी अधिक प्रतियाँ उपलब्ध नहीं हैं। हम लोग जैसे ही उसे छापते हैं, विचार पुलिस वैसे ही उसका पता लगाकर तुरन्त नष्ट कर डालती है। उससे बहुत मामूली फ़र्क पड़ता है। ग्रंथ को कभी नष्ट नहीं किया जा सकता। कभी यदि अन्तिम प्रति भी समाप्त हो गई तो हम शब्दश: उसे दोबारा छाप सकते हैं। यह बताओ, दफ्तर में तुम कोई ब्रीफ़केस लेकर जाते हो?"

"हाँ, नियम से।"

"देखने में कैसा है?"

"काला, एकदम फटा-पुराना। उसमें दो पट्टे हैं।"

“काला, दो पट्टे, फटा-पुराना सही है। थोड़े दिन बाद मतलब मैं तारीख़ तो नहीं बता सकता लेकिन किसी भी दिन सुबह तुम्हारे पास जो काम आएगा उसमें एक ऐसा सन्देश होगा जिसमें एक शब्द की वर्तनी गलत होगी और तुम दोबारा उसे माँगोगे। उसके अगले दिन तुम बिना ब्रीफ़केस के काम पर जाना। उस दिन किसी वक़्त सड़क पर एक आदमी तुम्हें टोककर कहेगा-“मेरे ख़याल से आप अपना ब्रीफ़केस भूल गए हैं।" फिर जो ब्रीफ़केस वह तुम्हें पकड़ाएगा, उसमें गोल्डस्टीन की पुस्तक की एक प्रति होगी। तुम्हें चौदह दिन के भीतर उसे लौटाना होगा।"

कुछ देर दोनों शान्त रहे।

फिर ओ'ब्रायन बोला, “तुम्हारे निकलने में एकाध मिनट और है। हम लोग फिर मिलेंगे-बशर्ते मिले तो।" विंस्टन ने सिर उठाकर उसे देखा और सकुचाते हुए बोल पड़ा-“उस जगह पर जहाँ कोई अँधेरा नहीं होगा?"

बिना चौंके ओ'ब्रायन ने हामी में सिर हिला दिया, जैसे इशारे को उसने पहचान लिया हो, “हाँ, वहीं जहाँ कोई अँधेरा नहीं होगा। और इस बीच, जाने से पहले कोई बात जो तुम कहना चाहो तो? कोई सन्देश? कोई सवाल?"

विंस्टन ने दिमाग पर जोर डाला। कोई सवाल नहीं सूझ रहा था पूछने के लायक़। वास्तव में उसके भीतर ऐसा कोई आवेग महसूस नहीं हो रहा था कि वह कोई सामान्य सी या फिर ऊँची लगने वाली बात ही कह डाले। ओ'ब्रायन या ब्रदरहुड से सीधे जुड़ी किसी बात के बजाय उसके दिमाग में एक मिश्रित छवि कौंधी जिसके भीतर वह अँधेरा कमरा था जिसमें उसकी माँ ने अन्तिम दिन गुज़ारे थे, चारिंगटन की दुकान के ऊपर वाला छोटा सा कमरा भी था, काँच वाला पेपरवेट था और शीशम के फ्रेम में स्टील की नक़्क़ाशी। तक़रीबन अचानक ही बोल पड़ा :

“आपने कभी वह पुरानी कविता सुनी है क्या जो कुछ यूँ शुरू होती है –'सेंट क्लीमेंट की घंटियाँ, बोलें नीबू और नारंगियाँ'?" ओ'ब्रायन ने फिर से हामी में सिर हिला दिया। काफ़ी भद्रता से उसने पंक्तियों को पूरा किया :

सेंट क्लीमेंट की घंटियाँ, बोलें नीबू और नारंगियाँ
सेंट मार्टिन की घंटियाँ, माँगें मेरी तीन दमड़ियाँ,
कब चुकाओगे मेरे पैसे? पूछे ओल्ड बेली की घंटियाँ
जब बनूँगा पैसेवाला, बोलें शोडिच की घंटियाँ।

“अरे, आपको तो अन्तिम लाइन पता है!" विंस्टन बोला।

“हाँ, पता है। मुझे लगता है कि अब तुम्हें निकल जाना चाहिए, लेकिन ठहरो। बेहतर है तुम भी यह टिकिया लेते जाओ।"

विंस्टन के खड़े होते ही ओ'ब्रायन ने अपना हाथ आगे बढ़ाया। उसकी मज़बूत पकड़ से विंस्टन की हथेली की हड्डियाँ कड़क गईं। लौटते हुए दरवाज़े पर विंस्टन ने पीछे मुड़कर देखा, लेकिन ओ'ब्रायन पहले ही उसे अपने दिमाग से बाहर करने की कोशिश करता दिखा। टेलिस्क्रीन के स्विच पर हाथ रख वह इन्तज़ार कर रहा था। पीछे उसका टेबल और उस पर हरी रोशनी वाला लैम्प, श्रुतलेख वाली मशीन और कागज़ों से ठसाठस भरी टोकरियाँ भी इन्तज़ार में थीं। मतलब प्रसंग पूरा हुआ। अब ओ'ब्रायन को अपने महत्त्वपूर्ण लेकिन अधूरे काम पर लौटना है, जो पार्टी का है। विंस्टन को यह समझने में कुल तीस सेकंड लगे।

1984 (उपन्यास) : जॉर्ज ऑर्वेल-दूसरा भाग-9

ज़बरदस्त थकान ने विंस्टन का फ़ालूदा बना दिया था। अपनी हालत पर सोचते हुए उसके दिमाग में फालूदा ही कौंधा था। उसका शरीर लुआब की तरह न केवल नाजुक, बल्कि पारदर्शी भी हो गया था। उसको खुद लग रहा था कि हाथ उठाकर देखेगा तो उसमें से रोशनी आर-पार जाती दिखेगी। काम की अति ने उसकी नसों का खून-पानी सोख लिया था। बस हड्डियों, नसों और चमड़ी का एक जर्जर ढाँचा बच रहा था। अंगों से चीज़ों को महसूस करने की क्षमता में ज़बरदस्त इज़ाफ़ा हुआ था। वर्दी उसके कन्धों को काट रही थी। पैदल चलने पर सड़क पैरों को गुदगुदा रही थी। यहाँ तक कि मुट्ठी बाँधने और खोलने में भी ताक़त लग रही थी और लगता था कि जोड़ चटक जाएँगे।

बीते पाँच दिनों में वह नब्बे घंटे से ज़्यादा काम कर चुका था। मंत्रालय में बाक़ी का भी यही हाल था। अब जाकर वह ख़ाली हुआ था और कम से कम अगली सुबह तक पार्टी का कोई काम उसके पास नहीं था। अभी छह घंटे वह अपने गुप्त ठिकाने पर और नौ घंटे अपने कमरे पर सोते हुए आराम से बिता सकता था। दोपहर की हल्की धूप में उसने चारिंगटन की दुकान की ओर जाने वाली गन्दी सी गली में धीरे-धीरे अपने क़दम बढ़ाए। गश्ती दलों को लेकर वह सतर्क था लेकिन मन ही मन आश्वस्त भी था कि कम से कम आज दोपहर तो उसे किसी के दखल का कोई खतरा नहीं है। उसके हाथ में जो भारी ब्रीफ़केस था वह बार-बार घुटनों से टकरा जा रहा था जिससे पैर में ऊपर से नीचे तक एक सिहरन-सी दौड़ जाती थी। उस ब्रीफ़केस में पिछले छह दिनों से ग्रंथ पड़ा था, जिसे उसने न एक बार भी खोला था न ही उसे एक नज़र देखा था।

जुलूसों, भाषणों, शोर-शराबे, गीतों, बैनरों, पोस्टरों, फ़िल्मों, मोम के पुतलों की झाँकियों, ढोल-तुरही की आवाज़ों, क़दमताल करते जूतों की धमक, रेंगते हुए टैंकों की धड़धड़ाहट, बड़े-बड़े हवाई जहाज़ों की गरज और बन्दूकों की तड़तड़ाहट से नफ़रत सप्ताह के लगातार छह दिनों तक जैसा भव्य उन्माद पैदा किया गया था, वह अपने चरम पर पहँचने वाला था। यूरेशिया के ख़िलाफ़ नफ़रत ऐसी सनक में बदल चुकी थी कि वे 2000 यूरेशियाई युद्ध अपराधी जिन्हें जलसे के आखिरी दिन सार्वजनिक फाँसी दी जानी थी, अगर भीड़ के हाथ लग गए होते तो कोई शक नहीं था कि लोग उन्हें चीर-फाड़ डालते। इससे पहले ही छठवें दिन घोषणा हो गई कि ओशियनिया की यूरेशिया के साथ तो कोई जंग चल ही नहीं रही थी। ओशियनिया की लड़ाई तो ईस्टेशिया से चल रही है और इस लड़ाई में यूरेशिया उसके साथ है।

ज़ाहिर है इस मुनादी में परिस्थिति के बदलने का कोई स्वर नहीं था। बस एक झटके में अचानक सबको सब जगह एक साथ पता चल गया था कि दुश्मन ईस्टेशिया है, यूरेशिया नहीं। जिस वक़्त यह ऐलान हुआ, विंस्टन मध्य लंदन के किसी चौक पर एक प्रदर्शन में हिस्सा ले रहा था। रात का वक़्त था, तमाम सफ़ेद चेहरे और लाल बैनर पीली रोशनी में नहाए हुए थे। हज़ारों-हज़ार लोग चौक पर उमड़े हुए थे। उनके बीच गुप्तचरों की वेशभूषा में कोई हज़ार स्कूली बच्चे भी थे। लाल रंग के कपड़े से सजे एक मंच पर पार्टी के भीतरी हलके का एक वक्ता-ठिंगना सा दुबला-पतला एक शख्स जिसकी बाँहें कुछ ज़्यादा ही लम्बी थीं और बड़ी सी खल्वाट खोपड़ी पर थोड़े से बाल छितराए हुए थे लोगों को अपने भाषण से उकसा रहा था। नफ़रत में ऐंठा हुआ वह किसी जर्मन लोककथा के बौने की तरह दिखता था, जो एक हाथ से माइक की गरदन पकड़े हुए था और दूसरे हाथ के विशालकाय पंजे से अपने सिर के ऊपर भयावह ढंग से हवा को जकड़े हुए था। माइक से निकलती उसकी गरजती खनखनाती आवाज़ एक के बाद एक यातना, क़त्लेआम, प्रत्यर्पण, लूट, बलात्कार, कैदियों की प्रताड़ना, जनता पर बमबारी, झूठ और दुष्प्रचार, हमले, टूटी हुई संधियों की अन्तहीन सूची गिनवाए जा रही थी। उसकी आवाज़ को तब तक बरदाश्त नहीं किया जा सकता था जब तक आप उसके कहे पर पहले यक़ीन न कर लें। उसके बाद तो पागल ही होना बचता था। रह-रह कर आक्रोशित भीड़ उबल पड़ती और हज़ारों कंठों से समवेत स्वर में उठते अनियंत्रित जंगली शोर में वक्ता की आवाज़ डूब जाती। स्कूली बच्चे जंगली वहशियों की तरह सबसे तेज़ चिल्ला रहे थे। कोई बीस मिनट हो चुका था भाषण चलते हुए, जब एक सन्देशवाहक तेज़ी से मंच पर चढ़ा और उसने एक परची वक्ता के हाथ में पकड़ाई। भाषण को बिना रोके उसने परची खोली और पढ़ी। उसकी आवाज़ और शैली में कुछ भी नहीं बदला, न ही उसकी बातों में कोई तब्दीली आई। बस नाम बदल गए अचानक। बिना कोई अतिरिक्त शब्द कहे ही भीड़ तक यह बात पहुँच गई कि ओशियनिया की लड़ाई तो ईस्टेशिया से चल रही है। इसका मतलब कि चौक पर लगे तमाम बैनर-पोस्टर गलत थे! कम से कम आधे पर तो गलत चेहरे बने हुए थे! यह समझते ही भीड़ में भयंकर हो-हल्ला मच गया। यह तो साज़िश है! सब गोल्डस्टीन के एजेटों का किया-धरा है! यह सब उन्होंने ही किया है! थोड़ी देर के लिए दंगे जैसी स्थिति बन गई। लोग दीवारों से पोस्टर फाड़ने लगे, बैनर उखाड़कर पैरों तले कुचल दिए गए। अचानक चमत्कारिक ढंग से गुप्तचरों ने छतों पर चढ़कर चिमनियों पर फड़फड़ा रही झंडियों को काट दिया। दो-तीन मिनट तक यह सब चलता रहा, फिर सब शान्त हो गया। वक्ता अब भी एक हाथ से माइक की गरदन को पकड़े आगे की ओर झुका हुआ था और उसका दूसरा हाथ हवा में लहरा रहा था। उसने भाषण जारी रखा। एक मिनट बाद ही फिर से आक्रोशित भीड़ बनैले शोर में फूट पड़ी। नफ़रत का प्रदर्शन जैसा पहले था वैसा ही बना रहा, बस उसका निशाना बदल चुका था।

इस पूरे प्रकरण को याद करते हुए विंस्टन को जिस एक बात ने प्रभावित किया वह यह कि वक्ता वास्तव में बोलते-बोलते बीच में ही एक वाक्य से दूसरे पर कूद गया था जबकि इस प्रक्रिया में न तो कोई ठहराव आया था और न ही वाक्य-विन्यास टूटा था। विंस्टन का ध्यान हालाँकि एक और चीज़ ने उस वक़्त भटका दिया था। जिस वक़्त अफरा-तफरी मची और पोस्टर फाड़े जा रहे थे, उसी बीच एक आदमी ने उसके कन्धे पर टहोका मारते हुए कहा था-"माफ़ कीजिएगा, लगता है आप अपना ब्रीफ़केस भूल गए थे।" विंस्टन ने उसका चेहरा नहीं देखा था। उसने चुपचाप बिना कुछ कहे ब्रीफ़केस ले लिया। वह जानता था कि ब्रीफ़केस के भीतर क्या है, यह जानने में उसे अभी कई दिन लग जाएँगे। जैसे ही जलसा ख़त्म हुआ वह सीधे सत्य मंत्रालय चला गया, हालाँकि रात के ग्यारह बज रहे थे। मंत्रालय के सारे स्टाफ ने भी यही किया। टेलिस्क्रीन से लगातार उन्हें काम पर लौटने के निर्देश जारी हो रहे थे, लेकिन उन्हें इसकी ज़रूरत नहीं थी।

(अधूरी रचना)

  • 1984 (उपन्यास) : जॉर्ज ऑर्वेल-दूसरा भाग-अध्याय 1-4
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