1984 (उपन्यास) : जॉर्ज ऑर्वेल

1984 (Novel in Hindi) : George Orwell

1984 (उपन्यास) : जॉर्ज ऑर्वेल-पहला भाग-4

दफ़्तर का काम शुरू होते ही विंस्टन ने अनजाने में एक गहरी उसाँस भरी। टेलिस्क्रीन की निकटता भी उसे ऐसा करने से रोक नहीं पाई। फिर उसने श्रुतलेख की मशीन अपने पास खींची और उसकी मुँहनली से धूल झाड़ने के लिए उसमें फूंक मारते हुए नाक पर चश्मा चढ़ा लिया। उसके डेस्क के दाहिनी ओर दीवार में एक हवानली थी जिसमें से गोलियाकर मोड़े गए बत्तीनमा चार परचे अभी-अभी बाहर निकले थे। उसने चारों को खोला और आपस में नत्थी कर दिया।

उसके क्यूबिकल की दीवारों में तीन सूराख थे। श्रुतलेख वाली मशीन के दाहिनी ओर लिखित सन्देशों को उगलने वाली सँकरी सी हवानली; बाएँ अख़बार उगलने वाली एक नली; और साइड वाली दीवार में विंस्टन की पहँच के भीतर एक लम्बा आयताकार सूराख, जिसके मुहाने पर तारों की जाली लगी हुई थी। ये वाला सूराख़ कचरे-कागज़ फेंकने के लिए था। ऐसे हज़ारों या दसियों हज़ार सूराख़ पूरी इमारत में थे। न केवल कमरों में बल्कि हर गलियारे में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर। इन्हें स्मृतिनाशक बिल कहते थे। इसकी कुछ ख़ास वजह थी। मसलन, अगर आपके पास कोई नष्ट करने लायक़ काग़ज़ हो जिसका अब कोई उपयोग नहीं रह गया हो या फिर किसी को कहीं कोई कागज़ का टुकड़ा पड़ा हुआ मिल जाए, तो यह रवायत थी कि आप अपने सबसे क़रीबी स्मृतिनाशक बिल का ढक्कन उठाकर कागज़ को उसके हवाले कर दें। भीतर जाते ही गर्म हवा के प्रवाह में खिंचते हुए वह अपने आप भट्ठी तक पहँच जाएगा। इमारत के कोने-अँतरों में ऐसी विशाल भट्ठियाँ कहीं छिपी बताई जाती थीं।। विंस्टन ने उन चारों परचों को ध्यान से देखा। हरेक में एक या दो पंक्ति का कोई सन्देश लिखा था कुट भाषा में ज़रूरी नहीं कि न्यूस्पीक ही हो लेकिन ज़्यादातर उसी के शब्द थे-जिसे आन्तरिक उद्देश्यों के लिए मंत्रालय में प्रयोग में लाया जाता था। सन्देश कुछ ऐसे थे :

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थोड़ी राहत के साथ विंस्टन ने चौथे परचे को कोने में रख दिया। वह थोड़ा जटिल काम था, ज़िम्मेदारी भरा, इसलिए उसे अन्त में किया जाना ही बेहतर था। बाक़ी तीन तो रोज़मर्रा जैसे काम थे, हालाँकि दूसरे वाले सन्देश के लिए आँकड़ों को क़ायदे से खंगालने की ज़रूरत पड़ती।

विंस्टन ने टेलिस्क्रीन पर पिछली तारीखें डायल की और दि टाइम्स के उन तारीख़ों के अंक मॅगाए। बमुश्किल कुछ मिनट बाद हवानली ने उन अख़बारों को उगल दिया। उसके पास परचों में जो सन्देश थे, उनका सम्बन्ध ऐसे अख़बारी लेखों या समाचारों से था जिन्हें किन्हीं कारणों से बदला जाना था या सरकारी भाषा में कहें तो दुरुस्त किया जाना था। मसलन, 17 मार्च के टाइम्स के हिसाब से मोटा भाई ने एक दिन पहले अपने भाषण में भविष्यवाणी की थी कि दक्षिण भारत के मोर्चे पर अमन होगा लेकिन उत्तरी अफ्रीका में यूरेशिया हमला करेगा। हुआ उलटा। यूरेशियाई हाई कमान ने दक्षिण भारत में हमला बोल दिया और उत्तरी अफ्रीका का मोर्चा छोड़ दिया। इसलिए यह ज़रूरी हो गया था कि मोटा भाई के भाषण के उस हिस्से को दोबारा लिखा जाए और इस तरह ताकि जो वास्तव में हुआ था, भविष्यवाणी भी वही बताए। इसी तरह 19 दिसम्बर के दि टाइम्स में 1983 की चौथी तिमाही में होने वाले उपभोग की विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन की आधिकारिक भविष्यवाणी प्रकाशित की गई थी। यह अवधि नौवीं त्रिवर्षीय योजना की छठी तिमाही भी थी। आज के अख़बार में वास्तविक उत्पादन के आँकड़े छपे थे जिससे साबित हो रहा था कि भविष्यवाणी पूरी तरह गलत थी। विंस्टन का काम मूल अनुमान को वास्तविक उत्पादन के आँकड़ों के बराबर बनाना था। तीसरा सन्देश तो बहुत साधारण सी गलती के बारे में था जिसे मिनटों में दुरुस्त किया जा सकता था। कुछ समय पहले ही फरवरी में श्री मंत्रालय ने वादा किया था (सरकारी भाषा में इसे 'वचन' देना कहते थे) कि 1984 में चॉकलेट के राशन में कोई कटौती नहीं होगी। विंस्टन को जहाँ तक पता था, इस हफ्ते के अन्त से चॉकलेट का राशन तीस ग्राम से घटकर बीस ग्राम होने जा रहा था। कुल मिलाकर बस इतना करना था कि पहले किए वादे की जगह एक चेतावनी डाल देनी थी कि ज़रूरी लगा तो अप्रैल में किसी भी वक्त राशन को कम किया जा सकता है।

सारे सन्देश देखने के बाद विंस्टन ने श्रुतलेख वाली मशीन में उन्हें दुरुस्त करके सही किए हिस्सों को अखबार की उपयुक्त प्रतियों के साथ नत्थी किया और हवानली में छोड़ दिया। फिर उतनी ही निरायास गति से उसने मूल परचों और उन्हें दुरुस्त करने के क्रम में अपने लिखे नोट्स को लपटों का ग्रास बनने के लिए स्मृतिनाशक बिल में डाल दिया।

हवानली की जटिल निचली सतहों में क्या होता था उसका ठीक-ठीक उसे पता नहीं था, एक मोटा-मोटी अन्दाज़ा ज़रूर था। एक बार दि टाइम्स के संस्करणों में छपी सूचनाएँ दुरुस्त करके एक साथ संकलित कर ली जातीं, फिर उन प्रतियों को दोबारा छापा जाता था। अख़बार की मूल प्रति को नष्ट कर दिया जाता और उसकी जगह दुरुस्त की हुई प्रति को फ़ाइल में लगा दिया जाता। लगातार बदलाव और दुरुस्तगी की यह प्रक्रिया केवल अख़बारों के साथ ही नहीं चलती थी। किताबें, पत्रिकाएँ, परचे, पोस्टर, सूचना पत्र, फ़िल्में, साउंडट्रैक, कार्टून, तस्वीरें हर क़िस्म के साहित्य या दस्तावेज़ के साथ ऐसा किया जाता जिसका कोई राजनीतिक या वैचारिक महत्त्व होता हो। इस तरह दिन-ब-दिन और तकरीबन मिनट दर मिनट बीते हुए कल को अद्यतन किया जाता था। इस तरीके से अव्वल तो पार्टी की किसी भी घोषणा को कागज़ी साक्ष्य के सहारे सही ठहरा दिया जाता, दूजे ऐसी किसी भी ख़बर, विचार आदि जो वक़्त की ज़रूरत के हिसाब से विरोधाभासी हो उसका रिकॉर्ड हमेशा के लिए मिटा दिया जाता। इतिहास का हर कतरा झाड़-पोंछ कर अपने मूल से अलग कर दिया जाता। ज़रूरत पड़ने पर उसे हबह दोबारा लिख दिया जाता था। एक बार यह हो गया, तो किसी भी तरीके से साबित करना मुश्किल था कि कोई फ़र्जीवाड़ा हुआ है। रिकॉर्ड विभाग का एक बड़ा हिस्सा, जहाँ विंस्टन काम करता था उससे भी कहीं ज़्यादा बड़ा हिस्सा, केवल ऐसे लोगों से भरा पड़ा था जिनका काम ऐसी किताबों, अख़बारों और अन्य दस्तावेज़ों की सभी प्रतियों को इकट्ठा करने का था जिन्हें नष्ट किया जाना था क्योंकि उन्हें बदला जा चुका था। दि टाइम्स अखबार की तमाम ऐसी प्रतियाँ मूल प्रकाशन तारीख के अन्तर्गत फ़ाइलों में दर्ज थीं जिन्हें सियासी समीकरणों में बदलाव या मोटा भाई की ग़लत भविष्यवाणियों के कारण दर्जनों बार फिर से लिखा गया था। उन्हें गलत ठहराने के लिए कोई और प्रति मौजूद थी ही नहीं। इसी तरह किताबों को भी वापस लेकर बार-बार दोबारा लिखा जाता था और फिर से जारी कर दिया जाता था बिना यह बताए कि उनमें कोई बदलाव किया गया है। यहाँ तक कि विंस्टन को जो लिखित निर्देश प्राप्त होते थे और जिनसे वह काम पूरा होते ही तुरन्त फारिग भी हो जाता था, उनमें यह घोषित या अघोषित आशय नहीं होता था कि यह किसी फ़र्जीवाड़े के लिए दिया गया है। इनमें केवल ग़लतियों, भूलों, ग़लत छपाई या ग़लत उद्धरणों का सन्दर्भ होता था जिसे तथ्यात्मक सटीकता के लिए दुरुस्त किया जाना ज़रूरी था।

श्री मंत्रालय के आँकड़ों को दुरुस्त करते हुए वह यही सोच रहा था कि दरअसल इसे फ़र्जीवाड़ा कहना भी सही नहीं था। ये दरअसल एक बेतुकी चीज़ को दूसरी से बदलना था क्योंकि जिन चीज़ों से आपका पाला पड़ा था वे वास्तविक दुनिया में तो थी ही नहीं। वास्तविकता से इसका उतना भी रिश्ता नहीं था जितना किसी झूठ का होता है। आँकड़े अपने मूल संस्करण में भी कपोल कल्पना थे और दुरुस्त करने के बाद भी। सारा खेल दिमाग का ही था और आपसे उम्मीद की जाती थी कि इसी में अपना ज़्यादातर वक़्त खपाएँ। मसलन, श्री मंत्रालय ने तिमाही के अन्त में बूटों के उत्पादन का अनुमान एक सौ पैंतालीस मिलियन जोड़े लगाया था जबकि वास्तविक उत्पादन केवल बासठ मिलियन बताया गया। विंस्टन ने भविष्य के उत्पादन अनुमान को दुरुस्त करके सत्तावन मिलियन कर दिया ताकि यह दावा किया जा सके कि कोटे से ज़्यादा बूट बनाए जा चुके हैं। ऐसा नहीं कि बासठ मिलियन का आँकड़ा सत्तावन मिलियन के मुक़ाबले सच के ज़्यादा क़रीब हो या फिर एक सौ पैंतालीस मिलियन के आसपास हो। बहुत मुमकिन है कि बूटों का उत्पादन हुआ ही न हो। इतना ही मुमकिन यह भी था किसी को पता ही नहीं हो कि कितने बूट बनाए गए। वास्तव में किसी को इसकी परवाह तक नहीं थी। कुल मिलाकर आप इतना जान सकते थे कि हर तिमाही कागज़ों पर भारी संख्या में बूट उत्पादित होते थे जबकि ओशियनिया की शायद आधी आबादी नंगे पैर चलने को मजबूर थी। दर्ज किए गए किसी भी तथ्य के साथ यही स्थिति थी। बड़ी हो या छोटी। यहाँ किसी भी चीज़ का कोई अर्थ नहीं था। चीजें इस हद तक निस्सार हो चुकी थीं कि आज की तारीख़ भी अनिश्चित थी।

विंस्टन ने हॉल में सरसरी निगाह दौड़ाई। दूसरी तरफ़ बराबर के क्यूबिकल में तीखे नैन-नक्श और दागदार ठुड्डी वाला एक छोटा सा व्यक्ति अपने घुटनों में अख़बार दबाए और श्रुतलेख मशीन की मुँहनली से मुँह सटाए बैठा था। यह टिलटसन था। उसकी आदत थी कि वह इतना धीरे बोलता था कि उसके अलावा केवल टेलिस्क्रीन को ही पता होता होगा। उसने सिर उठाकर देखा। चश्मे के भीतर से विंस्टन की ओर उसकी शत्रुवत् नज़र चमकी।

वह क्या काम करता था, इसका विंस्टन को कोई अन्दाज़ा नहीं था। टिलटसन से उसका परिचय शायद ही रहा होगा। रिकॉर्ड विभाग में लोग अपने काम के बारे में बमुश्किल ही एक-दूसरे से बात करते थे। बिना खिड़की वाले उस लम्बे से बन्द हॉल में क्यूबिकल की दो क़तारें थीं जिनसे लगातार पन्नों की फड़फड़ाहट और श्रुतलेख में की जाने वाली फुसफुसाहट की अन्तहीन मिश्रित आवाज़ आती रहती थी। कोई दर्जन भर तो इसमें ऐसे बैठते होंगे जिन्हें नाम से भी विंस्टन नहीं जानता होगा, हालाँकि रोज़ ही उन्हें वह गलियारे में इधर-उधर भागते-दौड़ते या दो मिनट की नफ़रत के दौरान हरकतें करते देखता था। हाँ, अपने ठीक बगल वाले क्यूबिकल में बैठी धूसर बालों वाली छोटी-सी महिला का काम वह ज़रूर जानता था। वह अख़बारों में छपे हुए ऐसे नामों को चुनने और मिटाने में दिन-रात जुटी रहती थी जिनका वजूद ख़त्म कर दिया गया था और इसलिए माना जाता था कि वे कभी इस धरती पर हुए ही नहीं थे। उसके लिए यह काम एक हद तक ठीक भी था क्योंकि खुद उसके पति को कुछेक साल पहले मिटा दिया गया था। कुछ ही क्यूबिकल की दूरी पर ऐम्पलफोर्थ बैठता था। यह एक स्वप्निल क़िस्म का नामालूम-सा आदमी था जिसके कानों में बाल के गुच्छे थे और वह तुकबन्दी और शब्दों से खेलने का ऐसा हनरमन्द था जो आपको चौंका सकता था। ऐसी पुरानी कविताएँ जो इस निजाम की वैचारिक तौहीन हो सकती थीं लेकिन जिन्हें किन्हीं कारणों से सँजोया भी जाना था, उन्हें वह तोड़नेमरोड़ने का काम करता था। इस प्रक्रिया से गुज़रने के बाद कविता से जो भी बरामद होता, उसे 'ब्रह्मवाक्य' कहते थे। यह कविता में से निकला हुआ नीति उपदेश जैसा कोई पद होता था।

इस हॉल में करीब पचास लोग बैठते थे। यह रिकॉर्ड विभाग का एक छोटा सा हिस्सा था, जैसे किसी खंड का उप-खंड। इसके ऊपर और नीचे अलग-अलग विभागों में ढेर सारे लोग तमाम किस्म के अकल्पनीय कामों में लगे हुए थे। मसलन, यहाँ विशालकाय छापेखाने थे जिनमें उप-सम्पादक और मुद्रण के जानकार लोग बैठा करते थे। उसी में नक़ली तस्वीरें बनाने के लिए तमाम यंत्रों से युक्त एक फ़ोटो स्टूडियो भी था। इसके अलावा एक टेली-प्रोग्राम खंड था जिसमें इंजीनियर और प्रोड्यूसर बैठा करते थे। वहाँ अभिनेताओं की एक टीम भी होती थी जिन्हें ख़ास तौर पर दूसरों की आवाज़ों की नक़ल निकालने के हुनर के चलते चुना गया था। इनके अलावा सन्दर्भकर्मियों की एक बहुत बड़ी फ़ौज यहाँ बैठती थी जिनका काम उन किताबों और पत्रिकाओं की सूची तैयार करना था जिन्हें बन्द करने की तारीख़ क़रीब आ रही है। वहाँ विशाल अभिलेखागार थे जिनमें दुरुस्त किए गए दस्तावेजों को जमा किया जाता था। विभाग में छिपी हुई कुछ भट्ठियाँ थीं जिनमें मूल प्रतियों को नष्ट किया जाता था। और इन्हीं के बीच कहीं शायद कुछ अज्ञात क़िस्म के लोग भी थे इस सब इंतज़ामिया को चलाने वाले दिमाग, जो यहाँ की व्यवस्था को सँभालते थे और नीतियाँ तैयार करते थे कि अतीत के कौन से हिस्से को बचाए रखना है, किसे झुठलाना है और किस चीज़ का वजूद ही मिटा देना है।

यह रिकॉर्ड विभाग सत्य मंत्रालय की केवल एक अदद शाखा था जिसका मूल काम अतीत को दोबारा गढ़ना नहीं, बल्कि ओशियनिया के नागरिकों को अख़बार, फ़िल्में, किताबें, टेलिस्क्रीन प्रोग्राम, नाटक, उपन्यास आदि हर क़िस्म की सूचना, निर्देश या मनोरंजन के साधन मुहैया कराना था मूर्तियों से लेकर नारों तक, कविता से लेकर किसी जीवविज्ञान सम्बन्धी लेख तक और बच्चों की इमला की पुस्तिका से लेकर न्यूस्पीक शब्दकोश तक। और ऐसा भी नहीं था कि मंत्रालय को केवल पार्टी की इन तमाम ज़रूरतों को ही पूरा करना था, बल्कि इस पूरे अभियान को बहुत सस्ते में निपटाना था क्योंकि यह सब कुछ जनता के फ़ायदे के लिए था। जनता के लिए साहित्य, संगीत, ड्रामा और मोटे तौर पर हर किस्म के मनोरंजन का उत्पादन करने के लिए अलग-अलग विभागों की एक पूरी श्रृंखला थी। इनमें घटिया अख़बार बनाए जाते थे जिनमें खेल, अपराध और ज्योतिष जैसी चीज़ों के अलावा और कुछ भी नहीं होता था। ऐसे ही पाँच सेंट में बिकने वाले रंगीन रोमांचक उपन्यास पैदा किए जाते थे, सेक्स से भरपूर फ़िल्में बनाई जाती थीं और भावनात्मक गीत रचे जाते थे। ये गीत कोई व्यक्ति नहीं लिखता था बल्कि यांत्रिक रूप से एक ख़ास क़िस्म के कलाइडोस्कोप से बनाए जाते थे। इसे वर्सिफिकेटर या छंदकार कहा जाता था। यहाँ अलग से सस्ती और अश्लील सामग्री पैदा करने वाला एक कामुकता विभाग था, जिसे न्यूस्पीक में पोर्नोसेक कहते थे। इस अश्लील सामग्री को सील किए गए पैकेटों में बाहर भेजा जाता था। पार्टी के किसी सदस्य को इसे देखने की मनाही थी, सिवाय उनके जो इस पर काम करते थे।

काम के बीच विंस्टन की हवानली से तीन और सन्देश निकल आए थे, हालाँकि वे आसान थे। दो मिनट का नफ़रत सत्र शुरू होने से पहले ही उसने उन्हें निपटा दिया था। नफ़रत सत्र ख़त्म होने के बाद वह अपने क्यूबिकल में लौटा, शेल्फ से न्यूस्पीक शब्दकोश उतारा, श्रुतलेख को मेज़ के एक कोने में धकेला, अपने चश्मे साफ़ किए और सुबह के सबसे ज़रूरी काम पर लग गया।

विंस्टन की ज़िन्दगी का सबसे बड़ा आनन्द उसका काम था। आम तौर से उसकी दिनचर्या बहुत एकरस सी होती थी, लेकिन उसी में कुछेक काम इतने जटिल और महीन निकल आते थे जिन्हें निपटाते वक़्त आप ऐसी गहराइयों में डूब जाएँ जैसे गणित का कोई सवाल हल कर रहे हों। इतने बारीक तरीके से झूठ और फ़र्जीवाड़े को कातना होता था जहाँ आपको यह बताने वाला कोई नहीं था कि क्या और कैसे करना है। केवल इंगसॉक के सिदधान्तों का ज्ञान वहाँ काम आता और आपका अपना अनुमान कि दरअसल पार्टी आपसे क्या करवाना चाहती है। इस तरह के काम में विंस्टन बहुत कुशल था। एकाध बार तो उस पर भरोसा करके उसे दि टाइम्स के प्रमुख लेख भी दुरुस्त करने को दिए जा चुके थे जो पूरी तरह न्यूस्पीक में लिखे गए थे। उसने शुरुआत में जिस चौथे परचे को बचाकर रखा था, उसे खोला। उस पर लिखा था :

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पुरानी अंग्रेज़ी में इसका आशय कुछ यूँ बनता था :

3 दिसम्बर, 1983 के दिटाइम्स में मोटा भाई के आज की बात की रिपोर्टिंग बेहद असन्तोषजनक है और उसमें ऐसे लोगों का सन्दर्भ है जो वजूद में नहीं हैं। इसे दोबारा पूरा लिखें और फ़ाइल करने से पहले अपने अधिकारी के पास उसका ड्राफ्ट जमा कराएँ।

विंस्टन ने वह आपत्तिजनक लेख पढ़ा। उस दिन मोटा भाई की आज की बात' मुख्य रूप से एफएफसीसी नाम के एक संगठन की सराहना को समर्पित थी जो जलमहल के नाविकों को सिगरेट और अन्य राहत सामग्री की आपूर्ति करता था। पार्टी के एक ख़ास कॉमरेड विदर्स का, जो पार्टी के अन्दरूनी हलके का सदस्य था, विशेष तौर पर जिक्र किया गया था और उसे एक पदवी से नवाजा गया था विशिष्ट प्रतिभा सम्मान, द्वितीय श्रेणी।

तीन महीने बाद बिना कोई कारण बताए एफएफसीसी को अचानक भंग कर दिया गया। माना जा सकता था कि विदर्स और उनके सहयोगियों के लिए यह शर्म की बात रही होगी और इसकी वजह से उनका अपमान हुआ होगा, लेकिन इस मसले पर न तो प्रेस में कोई रिपोर्ट आई और न ही टेलिस्क्रीन पर। यह अपेक्षित भी था, चूँकि राजनीतिक अपराधियों की न तो सुनवाई होती थी और न ही सार्वजनिक रूप से उन्हें आरोपित किया जाता था। महान सफाई अभियान के दौरान जो हज़ारों लोगों का सफाया किया गया था, उस वक़्त उन राजद्रोहियों और विचार अपराधियों पर बाकायदा मुकदमे चलाए गए थे जिन्होंने अपने अपराधों को स्वीकार किया था। बाद में उन्हें मार दिया गया। ये मुकदमे और सुनवाइयाँ केवल दिखाने के लिए थीं वरना ऐसा कुछ अब एकाध साल में शायद एक बार ही होता है। अब तो आम तौर से पार्टी के ख़िलाफ़ जाने वाले लोगों को गायब कर दिया जाता है जिनके बारे में आगे कोई खबर नहीं आती। किसी को भनक तक नहीं लगती कि उनके साथ क्या हुआ। कुछ मामलों में ज़रूरी नहीं कि वे मर ही गए हों। अपने माता-पिता के अलावा कम से कम ऐसे तीस लोगों को विंस्टन निजी रूप से जानता था जो अलग-अलग समय पर गायब हो गए।

उसने एक पेपर क्लिप से अपनी नाक को सहलाया। उधर दूसरी ओर कॉमरेड टिलटसन अपनी श्रुतलेख मशीन में अब भी कुछ गोपनीय शब्द बोल रहे थे। एक पल के लिए उन्होंने अपना सिर ऊपर उठाया और विंस्टन को फिर से वही वैरभाव उसके चश्मे के पार नज़र आया। उसे लगा कि कहीं टिलटसन भी तो वही काम नहीं कर रहे जो उसे मिला है। ऐसा मुमकिन था। यह इतना टेढ़ा काम था कि किसी एक आदमी के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता था और किसी कमेटी के सामने इस काम को रखने का मतलब होता खुले में फ़र्जीवाड़े को स्वीकार करना। बहुत सम्भव था कि कम से कम दर्जन भर लोग मोटा भाई के भाषण के उलटे संस्करण पर फ़िलहाल काम कर रहे हों। हो सकता है कि पार्टी के भीतरी हलके से कोई तेज़दिमाग कार्यवाहक इन्हीं में से किसी एक के किए काम को उठा ले, उसे सम्पादित करे, सन्दर्भो से क्रॉस चेक करने की जटिल प्रक्रिया से गुज़रे और अन्त में यह चुना हुआ झूठ स्थायी रिकॉर्ड का हिस्सा बनकर सच बन जाए।

विंस्टन को कोई अन्दाज़ा नहीं था कि विदर्स की बेइज्ज़ती क्यों हुई। हो सकता है भ्रष्टाचार या अक्षमता कोई का मामला रहा हो। यह भी सम्भव है कि मोटा भाई अपने एक अत्यधिक लोकप्रिय मातहत से छुटकारा पाना चाह रहे हों। ये भी मुमकिन है कि विदर्स या उसका कोई क़रीबी विधर्मी होने के सन्देह में आ गया हो। या फिर सबसे प्रबल सम्भावना यह थी कि ऐसा इसलिए ज़रूरी हो गया था क्योंकि सरकार चलाने के लिए सफ़ाया करना, किसी को उड़ा देना एक नियमित और ज़रूरी काम था। असल संकेत तो refs unpersons में छिपा हुआ था, जिससे मतलब निकलता था कि विदर्स पहले ही मर चुका है। लोगों के गिरफ़्तार होने पर वे मर जाएँ, ज़रूरी नहीं कि ऐसा मानकर ही चला जाए। कभी-कभार उन्हें रिहा भी कर दिया जाता था और एकाध साल आज़ाद छोड़ दिया जाता था, उसके बाद मारा जाता था। अकसर ऐसा होता कि जिसे आप मरा हुआ मानकर चल रहे थे वह किसी सार्वजनिक सुनवाई में प्रेत की तरह प्रकट हो जाता और अबकी हमेशा के लिए गायब हो जाने से पहले अपनी गवाही से सैकड़ों दूसरे लोगों को फँसा जाता। विदर्स के साथ हालाँकि ऐसा नहीं होगा। वह मिट चुका है, पहले ही unperson हो चुका है। वह अब नहीं है। वह कभी था ही नहीं। विंस्टन ने तय किया कि मोटा भाई के भाषण का स्वर महज़ उलट देने से काम नहीं बनेगा। बेहतर हो कि उसे किसी ऐसी अजनबी बात से जोड़ दिया जाए जिसका मूल विषय से कोई लेना-देना ही न हो।

वह बड़ी आसानी से उस भाषण को देशद्रोहियों और गददारों के ख़िलाफ़ नियमित भर्त्सना में बदल सकता था, लेकिन यह तो आसानी से पकड़ में आ जाता। अगर किसी मोर्चे पर फतह की बात इसमें डाली जाती या नौवीं तीन वर्षीय योजना में किसी कामयाबी का जिक्र किया जाता, तो भी बेवजह रिकॉर्ड बहुत जटिल हो जाते। एक विशुद्ध काल्पनिक बात चाहिए थी। अचानक उसके दिमाग में कौंधा एक नाम, गोया पहले से ही वहाँ पड़ा रहा हो -कॉमरेड ओगिल्वी! उसके सामने कॉमरेड ओगिल्वी की छवि भी आ गई, जो हाल ही में किसी जंग में बहुत साहसिक मौत मरे थे। दरअसल, मोटा भाई अकसर अपनी 'आज की बात' को पार्टी के किसी सदस्य की याद के नाम समर्पित कर देते थे और उसकी ज़िन्दगी व मौत को अनुकरणीय बताते थे। विंस्टन को लगा कि आज उन्हें कॉमरेड ओगिल्वी को याद करना चाहिए। ज़ाहिर है कॉमरेड ओगिल्वी नाम का कोई आदमी इस धरती पर नहीं था, लेकिन उसके बारे में एकाध लाइन छप जाती और एकाध फ़र्जी तस्वीरें जारी हो जाती तो उसका वजूद खड़ा होने में आख़िर कितनी देर लगती!

थोड़ी देर विंस्टन ने इस बारे में सोचा, फिर श्रुतलेख मशीन को अपनी ओर खींचकर मोटा भाई की चिर-परिचित अन्दाज़ में बोलने लगा। मोटा भाई की भाषण शैली किसी फ़ौजी अफ़सर जैसी थी जिसमें आडम्बर और शेख़ी झलकती थी क्योंकि वह सुनने वालों से एक सवाल पूछता था और बिना ठहरे झट से उसका जवाब भी खुद ही दे देता था। (मसलन, इस बात से हमें क्या सबक मिलता है मितरो? यह वह सबक है जो हमारे पार्टी के बुनियादी सिद्धान्तों में से एक है, यानी...)। यह ऐसी मक्कारी थी जिसकी नक़ल करना बड़ा आसान था। विंस्टन बोलता गया।

बचपन में तीन साल की उम्र में कॉमरेड ओगिल्वी खिलौनों से नहीं खेलते थे। खिलौने के नाम पर उन्हें बस एक ड्रम, एक सब-मशीनगन और एक मॉडल हेलिकॉप्टर प्यारा था। जब वे छह साल के हुए और ऐसा एक साल पहले ही हो गया क्योंकि उन्हें नियमों में साल भर की छूट दे दी गई थी -तो जासूसी विभाग में भर्ती हो गए; फिर नौ साल की उम्र में वे अपनी टुकड़ी के नेता बन गए। ग्यारहवें साल में उन्होंने अपने चाचा को कुछ ऐसी बातें करते सुना जिनसे उन्हें किसी जुर्म की बू आई, तो उन्होंने चाचा को पकड़कर विचार पुलिस के हवाले कर दिया। सत्रह बरस में वे सेक्स विरोधी युवा संघ के जिला प्रचार प्रमुख बन गए। उन्नीसवें बरस में उन्होंने खुद एक हथगोला बनाया जिसे शान्ति मंत्रालय ने अपना लिया। उस गोले ने पहले ही परीक्षण में एक झटके में 31 यूरेशियाई कैदियों को साफ़ कर डाला। तेईस बरस की अवस्था में जंग के मोर्चे पर वे खेत रहे। हिन्द महासागर के ऊपर वे ज़रूरी डाक लेकर हवाई जहाज़ से जा रहे थे। दुश्मनों ने उनका पीछा किया, तो वे मशीनगन लेकर डाक सहित समन्दर में नीचे कूद पड़े बहुत गहरे पानी में। मोटा भाई ने कहा कि इस अन्त की कल्पना तब तक नहीं की जा सकती जब तक आपको उनसे रश्क न हो। इसलिए मोटा भाई ने ओगिल्वी की ज़िन्दगी की शुचिता और संकल्प पर भी कुछ टिप्पणियाँ कीं। वे एकदम संन्यासी आदमी थे, सिगरेट तक नहीं पीते थे। रोज़ एक घंटा व्यायामशाला में वर्जिश के अलावा उनका कोई और शौक़ नहीं था। उन्होंने ब्रह्मचर्य का व्रत लिया था। वे मानते थे कि विवाह और परिवार अपने कर्तव्यों की चौबीस घंटे पूर्ति की राह में बाधा बनते हैं। वे इंगसॉक के सिदधान्तों के अलावा किसी और विषय पर बात नहीं करते थे। उनकी ज़िन्दगी का एकमात्र लक्ष्य यही था कि यूरेशियाई फ़ौज की हार हो और वे जासूसों, विघ्नकर्ताओं, विचार अपराधियों और हर तरह के गददारों का शिकार कर सकें।

इतने विवरण बोलने के बाद विंस्टन खुद से ही जिरह करने लगा कि कॉमरेड ओगिल्वी को विशिष्ट प्रतिभा सम्मान दिया जाए या नहीं, फिर अन्त में उसने सोचा कि ऐसा करना ठीक नहीं होगा क्योंकि उसके बाद अनावश्यक रूप से सन्दर्भ जाँच इत्यादि का काम बढ़ जाएगा।

एक बार फिर उसकी निगाह सामने वाले क्यूबिकल में अपने प्रतिस्पर्धी पर गई। कुछ तो था जिससे इस बार वह पक्का हो गया कि टिलटसन भी इसी काम में जुटा हुआ है। अब यह जानने का तो कोई तरीक़ा था ही नहीं कि किसका काम ऊपर स्वीकारा जाएगा, लेकिन उसे अपने काम पर ज़बरदस्त भरोसा था। घंटे भर पहले जो कॉमरेड ओगिल्वी नाम का प्राणी कल्पना में भी नहीं मौजूद था, अब वह तथ्य बन चुका था। उसे अचानक ही इस ज्ञान से अचरज हुआ कि कैसे आप मरे हुए लोगों को तो यहाँ गढ़ सकते हैं लेकिन ज़िन्दा लोगों को नहीं। जो कॉमरेड ओगिल्वी वर्तमान में कभी वजूद में ही नहीं था, वह अब अतीत में ज़िन्दा हो चुका था। एक बार इस फ़र्जीवाड़े को भुला दिया गया कि ऐसा कुछ किया गया था कभी, तो ओगिल्वी का होना प्रामाणिक बन जाएगा। बिलकुल उन्हीं साक्ष्यों के आधार पर उतना ही प्रामाणिक, जितना प्रामाणिक चार्ल्स महान या जूलियस सीज़र का अस्तित्व है।

1984 (उपन्यास) : जॉर्ज ऑर्वेल-पहला भाग-5

भूतल से काफ़ी नीचे, नीची छत वाली भूमिगत कैंटीन में खाने की लाइन झटका दे-देकर धीरे-धीरे आगे खिसक रही थी। ठसाठस भरे कमरे में चौतरफ़ा इतनी आवाजें हो रही थीं कि आदमी बहरा हो जाए। काउंटर पर लगे ग्रिल से उठ रही स्टू की भाप की धातु जैसी खट्टी गंध पूरे कमरे में फैल रही थी, हालाँकि विक्टरी जिन का धुआँ उस पर भारी पड़ रहा था जो कमरे के दूसरे छोर पर एक छोटे से बार से आ रहा था। बार क्या, वह दीवार में एक सूराख जैसा था जहाँ से दस सेंट में जिन का बड़ा पेग ख़रीदा जा सकता था।

"तुम्हीं को मैं खोज रहा था,” विंस्टन के पीछे से आवाज़ आई।

वह पीछे मुड़ा। उसका दोस्त साइम था जो शोध विभाग में काम करता था। 'दोस्त' भी क्या, आजकल तो वैसे भी दोस्त जैसा कुछ नहीं होता। केवल कॉमरेड होते हैं। हाँ, कुछेक कॉमरेड बेशक ऐसे होते हैं जिनका साथ अन्य के मुक़ाबले सुखद होता है। साइम उन्हीं में एक था भाषाविज्ञानी और न्यूस्पीक का विशेषज्ञ। न्यूस्पीक के विशेषज्ञों की उस टीम का वह हिस्सा था जो आजकल शब्दकोश का ग्यारहवाँ संस्करण तैयार करने में जुटी हुई थी। वह छोटे क़द का आदमी था, विंस्टन से भी ठिंगना। उसके बाल गहरे रंग के थे और आँखें बाहर को निकली हुईं, जो एक साथ उदास और उपहासपूर्ण जान पड़ती थीं। वह बात करता तो ऐसा लगता था कि उसकी आँखें आपके चेहरे को टटोल रही हों।

उसने कहा, "मैं पूछना चाहता था कि तुम्हारे पास रेजर का ब्लेड होगा क्या ?"

"एक भी नहीं है!" थोड़ा अपराधबोध और जल्दी में विंस्टन ने कहा, “सब जगह खोज लिए, कहीं नहीं मिल रहा।"

हर कोई एक-दूसरे से आजकल रेजर का ब्लेड माँगता फिरता था। विंस्टन के पास अब भी दो ब्लेड थे, एकदम नए जिन्हें उसने बचाकर रखा था। पिछले एक महीने से जैसे ब्लेड का अकाल पड़ा हुआ था। यहाँ कभी भी किसी भी वक़्त किसी भी ज़रूरी चीज़ की किल्लत हो जाती थी और पार्टी की दुकानें हाथ खड़ा कर देती थीं। चाहे बटन हो या धागा, और कभी-कभार तो जूते का फीता तक गायब हो जाता था। आजकल रेजर ब्लेड का अकाल था। केवल एक ही तरीक़ा था कि आप 'खुले' बाज़ार से जाकर ख़रीद लाएँ।

उसने झूठ बोल दिया, “मैं तो छह हफ्ते से एक ही ब्लेड इस्तेमाल कर रहा हूँ।"

लाइन एक झटके से थोड़ा आगे बढ़ी। स्थिर होते ही वह साइम की ओर पीछे मुड़ा। दोनों ने काउंटर के अन्त में एक के ऊपर एक रखी धातु की चिकनी ट्रे में से एक-एक उठा ली।

साइम ने पूछा, “कल तुम कैदियों की फाँसी देखने गए थे क्या?"

विंस्टन ने अनमने ढंग से जवाब दिया, “नहीं, मैं काम कर रहा था। बाद में फ़िल्म में देख लूँगा।"

“उसमें वह मज़ा नहीं आएगा," साइम बोला।

उसकी उपहासपूर्ण आँखें विंस्टन के चेहरे को खंगाल रही थीं। ऐसा लगता था वे कह रही हों, “मैं तुम्हारे बारे में जानती हूँ। मैं तुम्हारे आर-पार देख सकती हैं। मैं अच्छे से जानता हूँ कि तुम कैदियों की फाँसी देखने क्यों नहीं गए थे|" साइम भी भक्त था, लेकिन थोड़ा बौदधिक क़िस्म का, इसलिए कहीं ज़्यादा ख़तरनाक था। दुश्मन के गाँवों पर हेलिकॉप्टरों के छापे या विचार अपराधियों के मुकदमे और इक़बालिया बयानों से लेकर प्रेम मंत्रालय के तहखानों में की जाने वाली हत्याओं पर जब वह सामने वाले को घूरते हुए बोलता था, तब ऐसा लगता कि वह कितना सन्तुष्ट है और उससे असहमत नहीं हुआ जा सकता। उससे बात करने का एक ही तरीक़ा था कि ऐसे विषयों से उसे भटकाकर मुमकिन हो तो न्यूस्पीक पर ले आया जाए और उसके तकनीकी पहलुओं में उसे फँसा दिया जाए। यह उसकी दिलचस्पी का विषय था और इसमें उसे महारत भी हासिल थी। विंस्टन ने उसकी बड़ीबड़ी आँखों की गिरफ्त से बचने के लिए अपना सिर थोड़ा दूर किया।

साइम याद करते हुए बोला, “मस्त फाँसी थी। बस, सारा मज़ा इसलिए किरकिरा हो जाता है क्योंकि वे लोग दोनों पैर बाँध देते हैं। मुझे तो तड़पते हुए पैर फेंकते देखने में बड़ा आनन्द आता है। और अन्त में जब उनकी जीभ निकलकर बाहर आ जाती है और चेहरा एकदम नीला पड़ जाता है, चमकदार नीला। मुझे उसमें मज़ा आता है।"

सफ़ेद एप्रन पहने खाना दे रहा आदमी कलछी हिलाते हुए चीख़ा, “आगे।"

विंस्टन और साइम ने ग्रिल के नीचे अपनी ट्रे सरका दी। दोनों में अल्पाहार परोस दिया गया एक कटोरी गुलाबी स्टू, पाव का एक टुकड़ा, पनीर का एक टुकड़ा, बिना दूध वाली विक्टरी कॉफ़ी एक मग और सैकरीन की एक टिकिया।

"उधर एक टेबल ख़ाली है, वहाँ टेलिस्क्रीन के नीचे," साइम ने कहा, "उससे पहले एक-एक जिन ले लेते हैं।"

जिन बिना हैंडल वाले चाइना मग में दी जाती थी। भीड़ में से रास्ता बनाते हुए दोनों अपनी टेबल पर पहुँचे और ट्रे में से सामान बाहर निकाला। टेबल के एक कोने में किसी ने स्टू गिरा दिया था। ऐसा लग रहा था किसी ने उल्टी की हो। विंस्टन ने जिन का मग हाथ में लिया, एक पल को दम भरने के लिए ठहरा, फिर तेल जैसे जायके वाला वह द्रव्य हलक़ के नीचे उतार लिया। उसकी आँखों से आँसू निकल आए। अचानक उसे भूख का अहसास हुआ। वह चम्मच भर-भर के स्टू गटकने लगा। गीले शोरबे में कुछ चीमड़ गुलाबी टुकड़े थे, जो शायद मीट रहा हो। अपनी-अपनी कटोरी ख़ाली करने से पहले दोनों ने एक-दूसरे से कुछ नहीं कहा। विंस्टन की बाईं ओर थोड़ा पीछे एक टेबल से लगातार बोलने की कर्कश आवाज़ आ रही थी, जैसे कोई बतख़ बोलती हो। यह आवाज़ कमरे के कोलाहल को चीर रही थी।

उस आवाज़ को मात देने की कोशिश में विंस्टन ऊँचे स्वर में बोला, "और डिक्शनरी का काम कैसा चल रहा है?"

"धीरे-धीरे," साइम ने जवाब दिया, “अभी मैं विशेषणों पर काम कर रहा हूँ। अद्भुत है।"

न्यूस्पीक सुनते ही उसके चेहरे पर तुरन्त चमक आ गई थी। उसने अपनी कटोरी एक ओर खिसकाई, एक हाथ में नज़ाकत से पाव उठाया और दूसरे में पनीर, टेबल पर आगे की ओर झुका ताकि बिना चीखे आराम से बात कर सके।

वह बोला, “यह ग्यारहवाँ संस्करण एकदम ब्रह्मवाक्य जैसा है। हम लोग भाषा को एकदम आख़िरी शक्ल देने में लगे हैं—मने जब कोई इसके सिवा और कुछ नहीं बोलेगा, वैसा रूप। एक बार यह काम पूरा हो जाए, फिर तुम्हारे जैसे लोगों को इसे नए सिरे से सीखना होगा। ये मेरी धृष्टता होगी कहना, लेकिन तुम्हें क्या लगता है कि हमारा काम नए शब्द गढ़ना है। ना, बिलकुल नहीं। हम लोग तो शब्दों को नष्ट कर रहे हैं-रोज़ सैकड़ों शब्द। समझो कि भाषा में से सब कुछ निकालकर बस उसका कंकाल बच जाएगा। ग्यारहवें संस्करण में एक शब्द भी ऐसा नहीं होगा जो 2050 से पहले अप्रासंगिक हो जाए।"

भूख में उसने तेज़ी से पाव काटा और एकाध निवाले गटक गया, फिर लगातार बोलता रहा, जैसे कोई पंडित उपदेश दे रहा हो। उसका पतलासाँवला चेहरा उत्तेजित हो चुका था और मज़ाहिया आँखें अब स्वप्निल हो रही थीं।

"क्या खूबसूरत चीज़ है शब्दों को ख़त्म करना। शब्दों की सबसे ज़्यादा बरबादी तो क्रियाओं और विशेषणों में हुई है, लेकिन सैकड़ों संज्ञाएँ भी हैं जिनसे हम चाहें तो छुटकारा पा सकते हैं। केवल पर्यायवाची का मामला नहीं है, विलोम शब्द भी कई सारे बेमतलब के हैं। आखिर ऐसे शब्द के होने का क्या मतलब जो किसी का उलटा हो? किसी भी शब्द का विपरीत तो उसी शब्द में छिपा होता है। जैसे 'गुड' को ही लो। अगर आपके पास 'गुड' जैसा शब्द है तो उलटे अर्थ के लिए 'बैड' की क्या ज़रूरत? 'अनगुड' से भी तो काम चल जाएगा, बल्कि कहीं बेहतर क्योंकि यह एकदम सटीक विलोम है। अगर तुम्हें 'गुड' से भी बड़ा कोई सकारात्मक शब्द चाहिए, तो 'एक्सेलेंट' या 'स्प्लेंडिड' जैसे दुनिया भर के अवॉट-बवाँट शब्दों की क्या ज़रूरत है? 'प्लसगुड' कर दो। और अच्छा चाहिए तो 'डबल प्लसगुड' कर दो। वैसे भी मौजूदा संस्करण में हम लोग ये शब्द इस्तेमाल कर ही रहे हैं, लेकिन न्यूस्पीक के आख़िरी संस्करण में और कुछ नहीं होगा। अन्त में कुल मिलाकर अच्छाई और बुराई की पूरी अवधारणा के लिए केवल छह शब्द हमारे पास होंगे और क़ायदे से देखें तो केवल एक शब्द। तुम्हें इसकी खूबसूरती दिखाई नहीं देती, विंस्टन?" फिर थोड़ा सोचकर साइम ने कहा, "पता है न, इसका पहला आइडिया मोटा भाई ने ही दिया था।"

मोटा भाई का नाम सुनते ही विंस्टन के चेहरे पर जैसे बदमज़गी फैल गई। साइम ने तुरन्त उसके भीतर उत्साह की कमी को पकड़ लिया।

साइम तक़रीबन उदास होकर बोला, “लगता है तुम्हें न्यूस्पीक को लेकर कुछ ख़ास दिलचस्पी नहीं है। तुम लिखते समय भी ओल्डस्पीक में ही सोचते हो। मैंने दिटाइम्स में तुम्हारे लेख पढ़े हैं अकसर। अच्छा लिखते हो, लेकिन सब अनुवाद है। तुम अभी भी ओल्डस्पीक को ही अपने दिल में रखते हो, उसके तमाम बेकार शब्द और अटपटे अर्थ। तुम दरअसल शब्दों को नष्ट करने की खूबसूरती को समझ नहीं पा रहे हो। तुम्हें ये बात पता है कि न्यूस्पीक दुनिया की इकलौती भाषा है जिसकी शब्द-सम्पदा हर साल छोटी होती जा रही है?"

बेशक विंस्टन यह जानता था। कुछ बोलने के बजाय वह मुस्करा दिया, थोड़ा सहानुभूति के साथ। साइम ने पाव का एक निवाला और काटा, थोड़ी देर चबाया फिर बोलता रहा :

तुमको ये नहीं दिख रहा कि न्यूस्पीक दरअसल सोचने के पूरे दायरे को ही सीमित कर देना चाहता है? इससे अन्त में ये होगा कि विचार के स्तर पर अपराध एकदम नगण्य हो जाएगा, तक़रीबन नामुमकिन, क्योंकि उसे ज़ाहिर करने के लिए शब्द ही नहीं होंगे। कोई भी ऐसा विचार जिसकी ज़रूरत अगर कभी पड़ी भी तो उसे ज़ाहिर करने के लिए केवल एक शब्द होगा और उसका अर्थपहले से तय होगा। उसके इर्द-गिर्द के सारे अर्थ मिटा दिए गए होंगे। भला दिए गए होंगे। ग्यारहवें संस्करण में हम लोग उसके काफ़ीक़रीब पहुंच चुके हैं, लेकिन यह प्रक्रिया मेरे-तुम्हारे मरने के बाद भी जारी रहेगी। शब्द हर साल कम होते जाएंगे और चेतना भी उसी के हिसाब से सिकुड़ती चली जाएगी। वैसे तो अभी भी वैचारिक अपराध करने की कोई वजह या बहाना नहीं है। कुल मिलाकर मामला खुद को अनुशासित रखने का ही है, वास्तविकता पर नियंत्रण का, लेकिन अन्त में इसकी भी ज़रूरत नहीं रह जाएगी। भाषा एक बार आदर्श बन गई तो क्रान्ति मुकम्मल हो जाएगी। तब न्यूस्पीक और इंगसॉक का फ़र्क मिट जाएगा। समाजवाद का मतलब होगा नई भाषा। न्यूस्पीक अपने आप में समाजवाद होगा।

थोड़ा रहस्यमय सन्तोष के साथ उसने कहा, “कभी तुम्हारे मन में ख़याल आया है विंस्टन, कि कम से कम 2050 तक एक आदमी भी ऐसा नहीं बचेगा जो ये भाषा समझ ले जिसमें हम-तुम बात कर रहे हैं?"

“सिवाय...,” विंस्टन थोड़ा हिचकते हुए बोला, फिर उसने खुद को सँभाल लिया।

ज़बान पर आने ही वाला था “सिवाय जनता के," लेकिन इस शृबहे में खुद को उसने रोक लिया कि कहीं उसकी भक्ति पर सवाल न उठ जाए, लेकिन साइम को उसकी बात का इलहाम हो गया था। उसने बेपरवाही से कहा, “जनता तो मर चुकी है। वे इनसान थोड़े हैं। 2050 तक, या उससे पहले ही, ओल्डस्पीक का सारा ज्ञान लुप्त हो चुका होगा। पुराना सारा साहित्य नष्ट किया जा चुका होगा। चॉसर, शेक्सपियर, मिल्टन, बायरन, ये सब केवल न्यूस्पीक के संस्करण में बचे रहेंगे, वह भी किसी दूसरे रूप में नहीं बल्कि उन्होंने जो लिखा है ठीक उससे उलटे स्वरूप में। यहाँ तक कि पार्टी का साहित्य भी बदल जाएगा। इसके नारे बदलने होंगे। 'आज़ादी, गुलामी है। जैसे नारे का तब क्या मतलब रह जाएगा अगर आज़ादी के विचार को ही खत्म कर दिया गया तो? सोचने-विचारने का पूरा माहौल ही अलग हो जाएगा। क़ायदे से देखें तो विचार नाम की चीज़ ही नहीं बचेगी, जिस रूप में आज हम जानते-समझते हैं। भक्ति का अर्थ ही है सोचना बन्द–बल्कि सोचने की ज़रूरत ही न महसूस हो। भक्ति का मतलब है अचेत हो जाना।"

विंस्टन को बहुत गहरे कहीं महसूस हुआ कि किसी दिन साइम को भी निपटा ही दिया जाएगा। यह इतना बुदधिमान है। इसे कितना साफ़-साफ़ दिखाई देता है और इतने सपाट तरीके से यह सब कुछ बोल भी देता है। पार्टी ऐसे लोगों को पसन्द नहीं करती। एक न एक दिन यह गायब कर दिया जाएगा। इसके चेहरे पर लिखा है।

विंस्टन अपना भोजन निपटा चुका था। अपनी कुर्सी पर वह थोड़ा टेढ़ा होकर बैठा और कॉफ़ी पीने लगा। बाईं ओर की टेबल पर कर्कश आवाज़ वाला आदमी अब भी लगातार बोले जा रहा था। एक नौजवान लड़की जो शायद उसकी सेक्रेटरी थी और जिसकी पीठ विंस्टन की पीठ की ओर थी, उसे लगातार सुने जा रही थी और उसकी हाँ में हाँ मिलाए जा रही थी। बीच-बीच में विंस्टन के कान में लड़की की मूर्खतापूर्ण आवाज़ पड़ रही थी, “मेरे ख़याल से आप सही कह रहे हैं, हाँ, मैं आपसे सहमत हूँ।" दूसरी आवाज़ एक पल को भी नहीं ठहर रही थी, तब भी जब लड़की बोल रही होती। विंस्टन उस आदमी को चेहरे से पहचानता था, लेकिन बस इतना जानता था कि वह गल्प विभाग में किसी बड़े ओहदे पर है। कोई तीस साल का व्यक्ति रहा होगा वह, जिसके जबड़े काफ़ी मज़बूत थे और मुंह लगातार खुला ही रहता था। उसका सिर थोड़ा पीछे की ओर झुका हुआ था और जिस कोण पर वह बैठा था, उसके चश्मे रोशनी में दिख रहे थे। विंस्टन को लगा कि जैसे वे आँखें नहीं, दो खोखले कोटर हैं। ज़्यादा डरावनी बात यह थी कि उसके मुँह से जिस तरह ध्वनियों का परनाला बह रहा था, एक शब्द को दूसरे से अलगा पाना मुश्किल था। बस एक बार विंस्टन को इतना सुनाई दिया–“गोल्डस्टीनवाद का सम्पूर्ण और अन्तिम सफ़ाया।" यह इतनी तेज़ी से बोला गया था जैसे उसके मुँह से एक-एक करके शब्द नहीं, बल्कि पूरा वाक्य ही एक बार में बाहर निकल आया हो, किसी ठोस धातु की छड़ की तरह। इसके अलावा बाक़ी सारी बातें केवल बतख की तरह बक-बक बक-बक। भले ही उसका कहा सुनाई नहीं दे रहा था लेकिन वह क्या कह रहा था, मोटे तौर पर इसको लेकर कोई शक नहीं था। हो सकता है वह गोल्डस्टीन को गरिया रहा हो और विचार अपराधियों व गद्दारों के ख़िलाफ़ ज़्यादा कड़े कदम उठाए जाने की बात कर रहा हो। वह यूरेशियाई फ़ौज के अत्याचारों के ख़िलाफ़ भी बड़बड़ा सकता था। या हो सकता है वह मोटा भाई और मालाबार के मोर्चे पर मौजूद नायकों की बड़ाई कर रहा हो। चाहे जो हो, इन सब में कोई ख़ास अन्तर नहीं था। चाहे जो हो, इतना तय था कि उसका एक-एक शब्द भक्ति में पगा हुआ था-विशुद्ध इंगसॉक। बिना आँखों वाले उसके चेहरे पर लगातार ऊपर-नीचे हिलते जबड़ों को देखते हुए विंस्टन को लग रहा था कि यह किसी मनुष्य का चेहरा तो नहीं हो सकता, ऐसा तो कोई कठपुतला दिखता है। वह सीधे अपने कंठ से बोल रहा था, दिमाग से नहीं। उसके मुँह से जो निकल रहा था उसमें शब्द बेशक रहे होंगे लेकिन सही मायने में उसे बोलता हुआ नहीं कहा जा सकता था। यह अचेतावस्था में किया जा रहा शोरगुल था, जैसे कोई बतख़ बक-बक कर रहा हो।

थोड़ी देर के लिए साइम शान्त हो गया था। अपने चम्मच की डंडी से वह टेबल पर फैले हुए शोरबे में कुछ रेखाएँ बना रहा था। उधर दूसरे टेबल से बक-बक की आवाज़ और तेज़ हो गई। चौतरफ़ा हल्ले के बीच अब उसे आसानी से सुना जा सकता था।

साइम बोला, “न्यूस्पीक में एक शब्द है, पता नहीं तुम जानते हो या नहीं : डकस्पीक यानी बतख़वाणी। बतख़ की तरह बक-बक करना। यह बहुत दिलचस्प शब्द है। इसके दो विरोधी अर्थ हैं। किसी दुश्मन के लिए इस्तेमाल करो तो ये गाली है। किसी अपने आदमी को ये बोलो तो इसका मतलब प्रशंसा है।"

साइम को तो पक्का उड़ा दिया जाएगा, निस्सन्देह! विंस्टन के मन में फिर से यही बात कौंधी। और ऐसा उसने थोड़ा उदास होते हुए सोचा, हालाँकि वह जानता था कि साइम उसे पसन्द नहीं करता था और एक अदद बहाना या कारण भी हाथ लग गया तो वह विंस्टन को विचार अपराधी ठहराने में देरी नहीं लगाएगा। फिर भी कुछ चीज़ों की उसमें कमी थी, मसलन कहाँक्या-कब बोलना है इसकी समझदारी, दूसरों से दुराव और ऐसी बनावटी मूर्खता जो आपको बचा ले जाए। आप उसकी भक्ति में कोई कमी नहीं निकाल सकते। वह इंगसॉक के सिद्धान्तों में विश्वास करता था, मोटा भाई को पूज्य मानता था, हर जीत पर उत्साहित होता था, विधर्मियों से नफ़रत करता था और वह भी किसी ईमानदारी के चलते नहीं बल्कि एक क़िस्म की अन्दरूनी बेचैनी के साथ। सामान्य पार्टी मेंबरान के पास जो सूचनाएँ नहीं होती थीं उसके पास वे अद्यतन रहती थीं। इन सबके बावजूद एक क़िस्म की कुख्याति उसके साथ चिपकी रहती थी। मसलन, वह ऐसी बातें बोल देता था जिन्हें नहीं कहा जाता तो ही ठीक रहता। उसने कई किताबें पढ़ रखी थीं। वह अकसर चेस्टनट ट्री कैफ़े जाता था जो चित्रकारों और संगीतकारों का अड्डा है। ऐसा नहीं है कि उस कैफे में जाने के ख़िलाफ़ कोई क़ानून है। कोई अलिखित क़ानून भी नहीं है वैसे तो, लेकिन उस जगह को ठीक नहीं माना जाता। दरअसल, पार्टी के बदनाम हो चुके पुराने नेता वहीं इकट्ठा हुआ करते थे, जिन्हें बाद में मार दिया गया था। कहते हैं कि गोल्डस्टीन खुद बरसों या दशकों पहले वहाँ आया-जाया करता था। इसीलिए साइम की क़िस्मत को पढ़ पाना मुश्किल नहीं था। इसके बावजूद एक हक़ीक़त यह भी थी कि साइम को अगर केवल तीन सेकंड के लिए विंस्टन के मन की भनक लग गई कि वह क्या सोचता है तो वह तुरन्त धोखा देने में नहीं हिचकिचाएगा और उसे विचार पुलिस के सुपुर्द कर देगा। वही क्यों, कोई भी ऐसा ही करता, लेकिन साइम इस मामले में बाक़ी सबसे आगे है। इसलिए उत्साह अपने आप में काफ़ी नहीं है। भक्ति का मतलब है अचेतावस्था।

साइम ने ऊपर देखा और बोला, “ये देखो, पारसन्स भी आ गया।" उसके कहने के अन्दाज़ में 'चूतिया' छिपा हुआ था। विक्टरी मैंशन्स में विंस्टन का पड़ोसी था पारसन्स-मझोले क़द और सफ़ेद बालों वाला थुलथुल शख़्स, जिसका चेहरा मेढक की तरह था। भीड़ भरे कमरे से वह अपना रास्ता बना रहा था। महज़ पैंतीस साल की उम्र में उसकी गरदन और कमर पर चर्बी की सतहें जमा हो गई थी, लेकिन उसकी चाल में बालसुलभ फुर्ती थी। उसे देखकर लगता था कि छोटी उम्र में ही कोई लड़का आकार में फैल गया हो। वैसे तो उसने वर्दी पहन रखी थी, लेकिन उसकी कल्पना नीली शॉर्टस, ग्रे शर्ट और गुप्तचरों वाले लाल गुलूबन्द के बगैर मुश्किल से ही की जा सकती थी। दिमाग में उसकी जो छवि बनती थी उसमें उसके घुटनों में गड्ढे नज़र आते थे और गुदगुदे हाथों पर शर्ट की बाँह मुड़ी हुई दिखती थी। वैसे भी पारसन्स को बस बहाना मिलने की देरी थी, फिर चाहे सामुदायिक सैर-सपाटे पर जाना हो या कोई शारीरिक गतिविधि, वह शॉर्ट्स पहन लेता। काफ़ी उत्साह में उसने दोनों को 'हल्लो हल्लो' कहा और उसी टेबल पर बैठ गया। उसके बैठते ही पसीने की तेज़ बदबू आई। उसके गुलाबी चेहरे पर चौतरफ़ा पसीने की बूंदें चिपकी हुई थीं। वह असामान्य तरीके से पसीना छोड़ता था। सामुदायिक केन्द्र में बैट की हैंडिल के गीलेपन से आप अन्दाज़ा लगा सकते थे कि वह टेबल टेनिस खेलकर कब गया है। इस बीच साइम एक लम्बा फर्रा निकाल चुका था जिस पर एक के ऊपर एक कुछ शब्द लिखे हुए थे। वह उँगलियों में स्याही वाली पेंसिल दबाए उसे पढ़ रहा था।

विंस्टन को कुहनी मारते हुए पारसन्स ने कहा, “इसे देखो, लंच के समय भी काम में लगा हुआ है। काफ़ी तेज़, हम्म...क्या है उसमें बरखुरदार? मेरे लिए तो काला अक्षर ही होगा। अच्छा सुनो, स्मिथ, ऐसा है कि मैं किसी कारण से तुम्हारे पीछे लगा हुआ हूँ। बरखुरदार, तुम मुझे चंदा देना भूल गए हो।"

पैसे की बात आते ही विंस्टन ने पूछा, "कौन सा चंदा?" अपने वेतन का एक-चौथाई सभी को स्वैच्छिक रूप से अलग-अलग मदों में चंदे में देना होता था इसलिए याद रखना मुश्किल था कि क्या छूट गया।

“नफ़रत सप्ताह वाला चंदा, जो हर घर से जाता है। हमारे ब्लॉक की ट्रेजरी मैं देखता है। इस बार हम लोग ज़बरदस्त शो करने जा रहे हैं। अब सोच लो कि सड़क की सभी इमारतों पर झंडे के मामले में अगर अपना विक्टरी मैंशन्स अव्वल नहीं रहा तो इसमें मेरी गलती नहीं होगी। तुमने दो डॉलर देने का वादा किया था मुझसे।"

विंस्टन ने जेब टटोली और दो मुड़े-तुड़े गॅदले नोट उसे थमा दिए। पारसन्स ने एक छोटी-सी नोटबुक में ऐसी लिखावट में उसे दर्ज किया जैसे वह निरक्षर हो।

फिर बोला, “वैसे बरखुरदार, सुनने में आया कि कल मेरे छोटे लौंडे ने कल तुम्हें अपनी गुलेल से उड़ा दिया था। मैंने क़ायदे से उसकी मरम्मत की इसके लिए। मैं बोला कि अगर उसने दोबारा ऐसा किया तो उसकी गुलेल मैं छीन लूँगा।"

विंस्टन ने जवाब दिया, “मेरे ख़याल से फाँसी में न जा पाने के कारण वह थोड़ा उदास था।"

“हाँ, खैर मेरे कहने का मतलब है कि मिज़ाज के हिसाब से ये ठीक ही है, नहीं? मेरे दोनों बच्चे इतने शरारती हैं लेकिन उनका दिमाग बहुत तेज़ है। हमेशा दोनों जसूसी और जंग के बारे में सोचते रहते हैं। तुम्हें पता है पिछले शनिवार मेरी छोटी बेटी ने क्या किया, जब उसकी टुकड़ी बर्कहैम्सटेड की सैर को गई थी? उसने दो और लड़कियों को अपने साथ लिया और पूरी दोपहर एक अजनबी का पीछा करती रही। वे दो घंटे जंगल में उसके पीछे लगे रहे और जैसे ही वे ऐमरशैम पहुँचे, उन्होंने उसे गश्ती दलों के हवाले कर दिया।"

थोड़ा चौंकते हुए विंस्टन ने पूछा, “उसका फिर क्या हुआ?" पारसन्स उत्साह में बोलता गया :

“मेरी बेटी ने पक्का कर लिया था कि वह किसी दुश्मन का एजेंट है जो हो सकता है पैराशूट से नीचे उतारा गया रहा हो। बरखुरदार, लेकिन असल कहानी कुछ और है। तुम्हें क्या लगता है कि उस पर सबसे पहला शक क्यों हुआ रहा होगा? मेरी बेटी ने देखा कि वह कुछ अजीब क़िस्म के जूते पहने हुए था-कह रही थी कि उसने ऐसे जूते पहले कभी नहीं देखे। तो पूरी सम्भावना थी कि वह बाहर का आदमी था। सात साल की बच्ची के लिए ये गज़ब की बात नहीं है? हुएँ?

विंस्टन ने पूछा, “उस बन्दे का क्या हुआ?"

"ओह, ये मैं नहीं बता सकता, लेकिन ज़्यादा आश्चर्य नहीं होगा मुझे अगर...," पारसन्स ने उँगलियों से राइफल का निशाना लगाने जैसी हरकत की और जीभ को पलटकर मुँह से गोली चलने की आवाज़ निकाली। “बहुत सही," अपने काग़ज़ से सिर उठाए बगैर साइम ने हवा में हँकारी भरी।

विंस्टन ने भी अपना कर्तव्य समझते हुए हुँकारी भरी, “और क्या, हम कोई जोखिम नहीं मोल ले सकते।"

पारसन्स बोला, “मेरे कहने का मतलब कि जंग चल रही है।" ठीक इसी वक़्त उनके सिर के ऊपर लगी टेलिस्क्रीन से तुरही की आवाज़ निकली, गोया पारसन्स के कहे की पुष्टि हो रही हो। किसी सैन्य विजय का ऐलान नहीं था वह, बस एक छोटी-सी घोषणा थी श्री मंत्रालय की।

एक उत्तेजित युवा स्वर चीख़ा, “कॉमरेड। ध्यान दें साथी। हमारे पास आपके लिए एक शानदार ख़बर है। उत्पादन की जंग हमने जीत ली है। हर क़िस्म के उपभोक्ता सामान की वापसी पूरी होने के बाद पाया गया है कि बीते एक साल में जीवन स्तर कम से कम 20 फीसद ऊपर उठा है। आज सुबह पूरे ओशियनिया में स्वत:स्फूर्त प्रदर्शन हुए जब दफ्तरों और कारखानों से निकलकर मज़दूरों ने बैनर लेकर सड़क पर मार्च किया और हमारे नए सुखद जीवन के लिए मोटा भाई का आभार जताया, जो उनके कुशल नेतृत्व में हम सबको प्राप्त हुआ है। ये रहे कुछ आँकड़े। खाद्यान्न...”

'हमारा नया सुखद जीवन' कई बार दुहराया गया। श्री मंत्रालय का यह पसन्दीदा जुमला था। तुरही की आवाज़ से उधर आकर्षित हुआ पारसन्स किसी दैवीय आकाशवाणी की तरह पूरी गम्भीरता से उसे सुन रहा था। आँकड़ों को तो वह याद नहीं रख पाया लेकिन उसे इतना पता था कि इसमें कुछ न कुछ सन्तोष करने जैसी बात ज़रूर है। उसने एक बड़ी सी गन्दी पाइप निकाल ली जिसमें जली हुई तम्बाकू भरी हुई थी। तम्बाकू हफ़्ते में केवल 100 ग्राम मिलती थी इसलिए ऊपर तक पाइप को भरना सम्भव नहीं होता था। विंस्टन विक्टरी सिगरेट फूंक रहा था और बड़े ध्यान से उसे सीधा पकड़े हुए था। राशन की नई खेप कल तक नहीं शुरू होगी और उसके पास केवल चार सिगरेटें बची थीं। थोड़ी देर के लिए उसने बाक़ी आवाज़ों को कान देना बन्द किया और परदे से आ रही आवाज़ पर ध्यान लगाया। पता चला कि चॉकलेट का राशन हर हफ्ते 20 ग्राम करने को लेकर भी प्रदर्शन हुए थे और मोटा भाई का आभार जताया गया था। उसे याद पड़ा कि कल ही तो घोषणा हुई थी राशन कटौती की जिसके बाद उसे 20 ग्राम कर दिया गया था। केवल चौबीस घंटे बाद एकदम उलटी ख़बर को कोई कैसे पचा सकता है? लेकिन उन्होंने पचा लिया था। पारसन्स ने भी इसे पचा लिया, किसी मूर्ख पशु की तरह। दूसरी टेबल पर बैठा बिना आँख वाला आदमी भी उसे पचा गया, एकदम पागल की तरह, गोया उसका मन हो रहा हो कि अगर कोई भी ऐसा मिले जो बोले कि पिछले हफ़्ते तो यह राशन 30 ग्राम था तो उसे तत्काल मिटा दे, बरबाद कर दे। साइम ने भी इसे पचा लिया अपने ढंग से, थोड़ा जटिल प्रक्रिया से, डबलथिंक का इस्तेमाल करके। तो क्या विंस्टन अकेला था उनके बीच जिसकी स्मृति अब भी बाक़ी थी?

परदे से शानदार आँकड़े बरसते रहे। बीते साल के मुकाबले अब भोजन ज़्यादा था, ज़्यादा कपड़े, ज़्यादा मकान, ज़्यादा फ़र्नीचर, ज़्यादा बरतन, ज़्यादा ईंधन, ज़्यादा जहाज़, ज़्यादा हेलिकॉप्टर, ज़्यादा किताबें, ज़्यादा बच्चे हर चीज़ ज़्यादा ही ज़्यादा, सिवाय बीमारी, जुर्म और पागलपन के। साल दर साल मिनट दर मिनट हर चीज़ ज़्यादा से ज़्यादा बढ़ रही थी। विंस्टन ने चम्मच उठाया और टेबल पर फैले शोरबे को उससे हेरने लगा, जैसा साइम पहले कर रहा था। वह काफ़ी खीज में ज़िन्दगी के बारे में सोचने लगा। हमेशा से क्या ऐसा ही था? क्या खाना हमेशा से ही ऐसा बेस्वाद था? उसने कैंटीन में नज़र दौड़ाई। नीची छत वाला भीड़ भरा कमरा, जिसकी दीवारें अनगिनत लोगों के सम्पर्क से मैली हो गई थीं। टूटे-फूटे टेबल और कुर्सियाँ, जो इतने करीब रखे गए थे कि बैठते हुए आपकी कुहनी दूसरे से सटती थी। मुड़ी हुई चम्मचे, दागदार ट्रे, खुरदरे सफ़ेद मग, हर सतह चिकनी, हर दरार में जमी हुई कालिख। उस पर से बुरी जिन, बुरी कॉफ़ी और धात्विक स्टू और गन्दे कपड़ों की मिली-जुली खट्टी गंध। पता नहीं क्यों हमेशा पेट के भीतर और चमड़ी के नीचे एक आन्दोलन-सा चलता रहता था। एक अहसास सा कि आपका जिन चीज़ों पर अधिकार था उससे आपको महरूम किया गया है, छला गया है। यह सच है कि उसकी स्मृति में इन सबसे कुछ एकदम अलग जैसा मौजूद नहीं था। उसे जहाँ तक सही-सही याद पड़ता है, खाने को तो कभी भी पर्याप्त नहीं होता था। कभी ऐसा नहीं हुआ कि मोजे और अन्त:वस्त्रों में छेद न रहा हो। फ़र्नीचर हमेशा से ही टूटाफूटा जर्जर रहा। कमरे में कभी भी पर्याप्त गर्मी नहीं रही। ट्यूब ट्रेनों में हमेशा ही भीड़ रही। मकान हमेशा ढहते रहे। पाव हमेशा से भूरे रंग का ही था। चाय तो हमेशा ही दुर्लभ थी। कॉफ़ी का ज़ायका हमेशा से बकवास था। सिगरेट की भी हमेशा कमी ही रही। सिंथेटिक जिन के अलावा कुछ भी इतना सस्ता और पर्याप्त मात्रा में नहीं था। आप जैसे-जैसे बूढ़े होते जाते, यह स्थिति और ख़राब ही होती जाती थी। फिर भी यदि असुविधा, गन्दगी, अभाव, कभी न ख़त्म होने वाली ठंड, चिपकते मोजों, हमेशा बन्द रहने वाली लिफ़्ट, ठंडे पानी, किसकिसे साबुन, सीली हुई कमज़ोर सिगरेट, अजीब से बेस्वाद भोजन से आपको घिन आती हो तो क्या यह इस बात का संकेत नहीं कि यह सब स्वाभाविक नहीं है? आख़िर इसे क्यों न कोई बरदाश्त करे, जब तक कि उसके पास कोई पुरानी स्मृति हो किसी ऐसे समय की जब चीजें इससे अलग हुआ करती थीं?

उसने एक बार फिर कैंटीन में निगाह दौड़ाई। तक़रीबन हर कोई बदसूरत था। वर्दी के अलावा कोई दूसरा कपड़ा पहन लेते तब भी सारे बदसूरत ही नज़र आते। कमरे में दूर गुबरैले जैसा एक विचित्र आदमी टेबल पर अकेला बैठा कॉफ़ी पी रहा था। उसकी आँखें कनखिया के दोनों तरफ़ सन्देह की दृष्टि से नाच रही थीं। विंस्टन ने सोचा, अगर आप खुद को छोड़ दें, तो पार्टी दवारा तय की गई आदर्श दैहिक बनावट पर विश्वास करना कितना आसान काम है कि हृष्ट-पुष्ट लम्बे-तगड़े नौजवान व गहरे नदों और सुनहरे बालों वाली धूप में सुखाई गई साँवली जानदार बेलौस स्त्रियाँवाक़ई होती हैं और राज करती हैं। इसकी वजह ये थी कि एयरस्ट्रिप वन के ज़्यादातर लोग क़द में छोटे, काले और कुपोषित थे। हैरत होती थी कि ये गुबरैले लोग ही मंत्रालयों में क्यों भरे पड़े थे-ठिंगने मोटे लोग, जो छोटी उम्र में ही फैल जाते हैं, जिनके छोटे-छोटे पैर होते हैं, लेकिन चाल बहुत फुर्तीली होती है और छोटी-छोटी आँखों वाला फूला हुआ संवेदनहीन चेहरा, जिसे पढ़ पाना मुश्किल हो। पार्टी के राज में ऐसे ही लोग सबसे ज़्यादा फलते-फूलते थे।

एक और तुरही बजी और श्री मंत्रालय की घोषणा समाप्त हुई। परदे से कर्कश संगीत बजने लगा। आँकड़ों की बमबारी से किसी अज्ञात उत्साह में उत्तेजित पारसन्स ने मुँह से पाइप बाहर निकाला।

"इस साल श्री मंत्रालय ने अच्छा काम किया है," सिर हिलाते हुए वह बोला। “वैसे बरखुरदार स्मिथ, मेरे ख़याल से तुम्हारे पास रेजर ब्लेड तो होंगे नहीं मुझे देने के लिए?"

“एक भी नहीं, मैं खुद छह हफ़्ते से एक ही ब्लेड इस्तेमाल कर रहा हूँ।" विंस्टन ने कहा।

"ओह, कोई बात नहीं, मैंने सोचा पूछ ही एक बार।"

“सॉरी," विंस्टन ने कहा।

मंत्रालय की घोषणा के दौरान दूसरी वाली टेबल से आ रही बतख़ जैसी आवाज़ जो शान्त हो गई थी, फिर से चालू हो गई। उतनी ही तेज़। पता नहीं क्यों विंस्टन अचानक मिसेज पारसन्स के बारे में सोचने लगा और उसकी आँखों के सामने उनके कमज़ोर बाल और सिलवटों वाला चेहरा आ गया। उसने सोचा कि बस दो साल की बात है, उनके बच्चे उन्हें विचार पुलिस के हवाले कर देंगे। फिर मिसेज पारसन्स भाप बनकर उड़ जाएँगी। साइम का भी यही हश्र होगा। विंस्टन का भी। ओ'ब्रायन भी मार दिया जाएगा। पारसन्स के साथ ऐसा कभी नहीं होगा। वह बिना आँख वाला बतख़ भी बच जाएगा। ये जो ठिंगने गुबरैले लोग मंत्रालयों के तहदार गलियारों में फुर्ती से चहलकदमी किया करते हैं, उन्हें भी छोड़ दिया जाएगा। और वह गहरे बालों वाली लड़की, गल्प विभाग वाली, उसे भी कभी नहीं मारा जाएगा। उसे लगा कि वह उँगलियों पर गिन सकता है कि कौन बचेगा और कौन नहीं। ये बात अलग है कि बचने के लिए क्या करना होगा, यह कहना आसान नहीं था।

एक झटके में उसकी तन्द्रा टूटी। किसी ने धक्का दिया था। अगली टेबल पर बैठी लड़की अचानक पीछे मुड़ गई थी और उसे देख रही थी। ये तो वही गहरे बालों वाली लड़की थी। वह किनारे से उसे देख रही थी। उसकी नज़र में एक जिज्ञासा और तेज़ था। जैसे ही दोनों की नज़र लड़ी, उसने आँखें फेर लीं।

विंस्टन की रीढ़ में पसीना चू आया। आतंक की सुरसुरी-सी दौड़ गई उसके भीतर। फिर वह सामान्य भी हो गया लेकिन उसका असर अब तक था। वह असहज था। वह उसे देख क्यों रही थी? वह उसका पीछा क्यों कर रही थी? उसे याद नहीं पड़ रहा था कि वह वहाँ उसके आने से पहले से बैठी थी या बाद में आई। कल हालाँकि दो मिनट की नफ़रत के दौरान वह बेशक उसके ठीक पीछे आकर बैठ गई थी जबकि इसकी कोई ज़रूरत नहीं थी। पक्के तौर पर वह उसे सुनने के उद्देश्य से बैठी थी कि वह पर्याप्त तेज़ चिल्ला रहा है या नहीं।

उसके मन में फिर से पहले वाला ख़याल आया : हो सकता है वह विचार पुलिस का हिस्सा न हो, लेकिन सम्भव है कि गुप्तचर हो जो कि सबसे बड़ा ख़तरा है। पता नहीं वह कितनी देर से उसे देख रही थी, शायद कम से कम पाँच मिनट से। और बहुत सम्भव है कि उस बीच उसकी भाव-भंगिमाएँ नियंत्रण में न रही हों। किसी सार्वजनिक स्थल पर या टेलिस्क्रीन के दायरे में अपने ख़यालात को आवारा छोड़ देना बहुत जोखिम का काम हो सकता है। छोटी-सी बात आपका काम तमाम कर सकती है। पल भर की घबराहट, चेहरे पर अनजाने आने वाला तनाव, बड़बड़ाहट कुछ भी जो आपको असामान्य साबित करता हो गोया आप कुछ छिपा रहे हों। चेहरे पर अनुपयुक्त भाव लाना अपने आप में एक दंडनीय अपराध था (मसलन, जीत की किसी घोषणा के दौरान बदगुमानी का भाव)। न्यूस्पीक में बाकायदे इसके लिए एक शब्द था-भाव अपराध।

लड़की ने वापस पीठ उसकी ओर कर ली थी। हो सकता है कि वह पीछा न कर रही हो, बस संयोग हो कि लगातार दो दिन उसके क़रीब बैठ गई। विंस्टन की सिगरेट बुझ चुकी थी। उसने टेबल के किनारे उसे सावधानी से रख दिया। उसमें अगर तम्बाक बची रह गई तो वह काम के बाद उसे निपटाएगा। बहुत मुमकिन है कि दूसरी टेबल पर बैठा व्यक्ति विचार पुलिस का जासूस हो और उसे प्रेम मंत्रालय के तहखाने में तीन दिन बिताना पड़ जाए, लेकिन आख़िरी कश तक सिगरेट को बरबाद नहीं करना चाहिए। साइम ने परची मोड़कर वापस जेब के हवाले की। पारसन्स फिर से बोलने लगा।

पाइप गुड़गुड़ाते हुए उसने कहा, “अरे बरखुरदार, मैंने तुम्हें कभी बताया था कि नहीं जब मेरे दोनों बच्चों ने पुराने बाज़ार में एक औरत की स्कर्ट में आग लगा दी थी क्योंकि वह मोटा भाई के एक पोस्टर में सॉसेज लपेट रही थी। वे पीछे से चुपके से घुसे और माचिस की तीली लगा दी। मेरे ख़याल से वह औरत बहुत बुरी तरह जल गई थी। शैतान कहीं के...लेकिन कितने उत्साही हैं दोनों! ऐसा अव्वल दरजे का प्रशिक्षण देते हैं आजकल गुप्तचर वाले। मेरे ज़माने से तो कहीं बेहतर है। तुम्हारा क्या ख़याल है कि विभाग ने उन्हें सबसे आधुनिक चीज़ क्या दी होगी? ताले के छेद से उस पार की आवाज़ सुनने के लिए एक कान की मशीन। कल रात मेरी नन्ही बच्ची उसे घर लेकर आई और हमारे बैठके के दरवाज़े पर उसे आजमाया। उसका कहना था कि छेद के पास कान ले जाकर वह जितना सुन सकती है, मशीन से उसका दोगुना तेज़ सुन सकती है। वैसे बता दूँ कि वह है तो एक खिलौना ही, फिर भी उन्हें सिखा तो रहा ही है।"

इस बार टेलिस्क्रीन से सायरन की आवाज़ भेदती हुई निकली।

यह काम पर लौटने का संकेत था। तीनों आदमी लिफ़्ट के पास होने वाले अगले संघर्ष की तैयारी में उछलकर खड़े हुए और इस चक्कर में विंस्टन की सिगरेट में बची-खुची तम्बाक भी नीचे गिर गई।

1984 (उपन्यास) : जॉर्ज ऑर्वेल-पहला भाग-6

डायरी लिख रहा था :

तीन साल पुरानी बात है। एक बड़े रेलवे स्टेशन के पास सँकरी सी एक गली। शाम का वक़्त, अँधेरा हो चुका था। बमुश्किल रोशनी दे रहे एक स्ट्रीट लैम्प के नीचे दीवार से लगकर एक दरवाजे के सामने वह खड़ी थी। चेहरा जवान था, लेकिन ज़बरदस्त रंग-रोगन किया हुआ। मुझे वास्तव में उसकी रंगत ने ही अपनी ओर खींचा, किसी मुखौटे की सी सफ़ेदी और सुर्ख लाल होंठ। पार्टी की औरतें अपना चेहरा नहीं रँगतीं। सड़क पर और कोई नहीं था, न कोई टेलिस्क्रीन। उसने कहा दो डॉलर। मैं....

फ़िलहाल इससे आगे लिखना मुश्किल था। उसने आँखें बन्द की और अपनी उँगलियों से उन्हें दबाया, जैसे बार-बार आ-जा रही छवियों को बाहर खींच लाना चाह रहा हो। उसके भीतर ज़बरदस्त इच्छा जगी कि तेज़ आवाज़ में चीख़कर भददी-भददी गालियाँ निकाले। या दीवार पर अपना सिर दे मारे, टेबल को लात मार दे और स्याहीदान को खिड़की से बाहर उछाल दे-ऐसा कोई भी हंगामाखेज या दर्द देने वाला काम करे जिससे उस स्मृति से छुटकारा पा सके जो उसे परेशान कर रही थी।

उसने सोचा कि आदमी की सबसे बुरी दुश्मन उसकी नसें होती हैं। किसी भी पल आपके भीतर मौजूद तनाव किसी ज़ाहिर लक्षण में बदल जा सकता है। उसे एक आदमी की याद आई जो कुछ हफ्ते पहले उसके बगल से गुज़रा था सड़क पर : एक बेहद सामान्य आदमी था, पार्टी का सदस्य। पैंतीस से चालीस के बीच रहा होगा, लम्बा और दुबला, एक ब्रीफ़केस लिये हुए। वे कुछ ही मीटर की दूरी पर रहे होंगे कि उस शख़्स के चेहरे का बायाँ हिस्सा अचानक ऐंठकर विकृत हो गया। फिर वे एक-दूसरे के बग़ल से गुज़र रहे थे तब दोबारा ऐसा ही हुआ : वह एक हल्की सी झुरझुरी थी बस, हल्की सी फड़फड़ाहट, जैसे किसी कैमरे का याटर क्लिक हुआ हो और ज़ाहिर है वह आदतन ही रहा होगा। उसे याद आया उस वक़्त वह सोच रहा था : इस बेचारे का तो काम हो गया। भयावह बात यह थी कि उसके लिए यह सब अनजाने में हुआ था। ऐसे ही सबसे जानलेवा ख़तरा सोते वक़्त बड़बड़ाने का होता है। उससे बचने का तो कोई तरीक़ा ही नहीं है।

उसने साँस खींची और लिखने लगा :

दरवाजे के पार एक आँगन से गज़रते हुए उसके साथ मैं बेसमेंट के किचन में गया। दीवार के साथ वहाँ एक बिस्तर लगा हुआ था और मेज़ पर लैम्प था, बहुत मद्धम जलता हुआ। उसने...

उसे खीज हो रही थी। मन कर रहा था थूक दे। उस औरत के साथ-साथ उसे कैथरीन का भी ख़याल आ रहा था। कैथरीन विंस्टन की पत्नी थी। विंस्टन शादीशुदा था शादीशुदा ही रहा था, यह तो पक्का है। शायद अब भी ऐसा ही है क्योंकि जहाँ तक उसे जानकारी थी उसकी पत्नी मरी नहीं है। उसे अब भी किचन की वह गरम गंध आ रही थी कीड़ों, गन्दे कपड़ों और सस्ते इत्र की मिली-जुली महक जिसमें कुछ भी आकर्षक नहीं था क्योंकि पार्टी की औरतें कभी इत्र नहीं लगातीं और ऐसी कल्पना भी नहीं कर सकती थीं। केवल सामान्य जनता इत्र लगाती थी। उसके ख़याल में इस क़िस्म की गंध का व्यभिचार के साथ एक यौगिक रिश्ता होता है।

शायद दो साल में यह उसकी पहली चूक थी जब वह उस औरत के पास गया था। वेश्याओं के पास जाना वैसे तो वर्जित था लेकिन यह एक ऐसा नियम था जिसे आप एकाध बार तोड़ सकते थे। इसमें जोखिम था लेकिन ज़िन्दगी और मौत जैसा कोई मसला नहीं था। पकड़े गए तो पाँच साल की सश्रम कारावास होती थी किसी लेबर कैम्प में, उससे ज़्यादा नहीं अगर कुछ और जुर्म न किया हो। और इससे बचना आसान था बशर्ते आप पकड़े जाने से खुद को बचा सकें। गरीब बस्तियों में अपना जिस्म बेचने के लिए तैयार औरतों की भीड़ लगी रहती थी। कुछ को तो एक बोतल जिन के बदले आप ख़रीद सकते थे चूँकि जनता के लिए जिन वर्जित थी। पार्टी चुपचाप वेश्यावृत्ति को प्रोत्साहित भी करती थी ताकि आप अपनी उन प्रवृत्तियों को बाहर निकाल सकें जिन्हें दमित करना पूरी तरह मुमकिन नहीं था। विशुद्ध व्यभिचार में कोई ख़ास दिक़्क़त नहीं थी जब तक कि वह छिप-छिपाकर रंजीदा तरीके से किया जाए और उसमें तिरस्कृत तबके की औरतें शामिल हों। पार्टी सदस्यों के बीच स्वच्छंद संभोग को माफ़ नहीं किया जाता था। वैसे, ऐसा होता भी नहीं था और ऐसे किसी अपराध की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी क्योंकि महान सफाई अभियान के दौरान यही एक ऐसा जुर्म था जिसे लोग आसानी से क़बूल कर लेते थे।

पार्टी का लक्ष्य महज़ इतना नहीं था कि वह पुरुषों और स्त्रियों को एकदूसरे के प्रति इस क़दर वफ़ादार होने से रोके जो उसके नियंत्रण से बाहर चला जाए। वास्तव में पार्टी का अघोषित उददेश्य था कि यौनकर्म में निहित सारा आनन्द ही ख़त्म कर दिया जाए। प्रेम से भी इतनी दिक़्क़त नहीं थी, पार्टी की असली दुश्मन थी कामुकता विवाहित में हो या अविवाहित में। पार्टी के सदस्यों के बीच आपस में होने वाली सारी शादियों को एक कमेटी मंजूरी देती थी जिसे इसी काम के लिए बनाया गया था। अगर जोड़े से कमेटी को यह भनक लग जाती कि दोनों एक-दूसरे के प्रति शारीरिक रूप से आकर्षित हैं, तो मंजूरी देने से इनकार कर दिया जाता। यह कोई घोषित सिदधान्त नहीं था, न ही कभी इसके बारे में बताया जाता था। शादी का इकलौता मान्य उददेश्य था पार्टी की सेवा के लिए बच्चे पैदा करना। यौन संसर्ग एक छोटे से ऑपरेशन की शक्ल में होता था जो थोड़ा घिनौना था, जैसे एनीमा (गुदा के रास्ते द्रव्य या गैस भीतर डालना) में किया जाता है। इसे भी कभी साफ़ शब्दों में बताया नहीं जाता था बल्कि बचपन से ही पार्टी के हर सदस्य के दिमाग में इसे दूसरे तरीक़ों से डाल दिया जाता था। सेक्स विरोधी युवा संघ जैसे कुछ संगठन भी थे जो पुरुषों और स्त्रियों के लिए पूर्ण ब्रह्मचर्य तक की वकालत करते थे। सारे बच्चे कृत्रिम बिजाई से पैदा किए जाने होते थे (इसे न्यूस्पीक में आर्टसेम कहते थे) और उन्हें सार्वजनिक संस्थानों में पाला जाता था। विंस्टन को पता था कि व्यवहार में इसका बहुत खास मतलब नहीं है, फिर भी पार्टी की विचारधारा के लिहाज़ से यह उपयुक्त था। पार्टी दरअसल यौनवृत्ति को ही नष्ट कर देना चाहती थी और यदि ऐसा सम्भव न हो तो उसे किसी तरह विकृत कर दिया जाए। वह इसकी वजह तो नहीं जानता था लेकिन उसे यह स्वाभाविक जान पड़ता था कि ऐसा ही होना चाहिए। और जहाँ तक औरतों का सवाल था, पार्टी की यह कवायद उनके बीच बड़े पैमाने पर कामयाब हुई थी।

उसे फिर से कैथरीन की याद आई। शायद नौ, दस या क़रीब ग्यारह साल हो गए जब वे अलग हुए थे। अजीब बात थी कि उसकी याद अब कम ही आती थी। अकसर तो कई-कई दिनों तक वह इस बात से गाफ़िल रहता कि उसने कभी शादी भी की थी। वे कोई पन्द्रह महीना ही साथ रहे थे। पार्टी तलाक़ को मंजूरी नहीं देती है बल्कि बे-औलाद जोड़ों को अलग रहने को प्रोत्साहित करती है।

कैथरीन सुनहरे बालों वाली लम्बी लड़की थी। एकदम खरी, चमकीली अदाओं वाली। उसके नैन-नक्श तीखे थे और चेहरे पर तेज़ था। कोई भी उसे देखते ही कह सकता था कि ख़ानदानी चेहरा है, अगर पहले से पता न हो कि उस चेहरे के पीछे बसे भेजे में तक़रीबन कुछ भी नहीं था। शादी के बाद बहुत जल्द ही उसने यह बात स्वीकार कर ली थी हालाँकि अपने ज़्यादातर परिचित लोगों के मुकाबले इतना क़रीब से वह केवल उसी को जानता थाकि निरपवाद रूप से उसका दिमाग एकदम ख़ाली, बोदा और बेढब है। उसके दिमाग में एक भी विचार ऐसा नहीं था जो पार्टी का नारा न हो। पार्टी की सिखाई हुई कोई ऐसी मूर्खता नहीं थी, एक भी नहीं, जिसे अपने भीतर उतारने के वह क़ाबिल न रही हो। मन ही मन में विंस्टन ने उसका नाम रखा था 'इनसानी बाजा।' फिर भी वह उसके साथ निभा सकता था बशर्ते सारा मामला केवल एक चीज़ के इर्द-गिर्द केन्द्रित न होता सेक्स।

वह जैसे ही उसे छूता था वह सिमटकर सख्त हो जाती। गले लगाता, तो लगता किसी काठ की गुड़िया के गले पड़ गया है। अजीब बात यह थी कि जब वह खुद उसे अँकवार लेती थी तो विंस्टन को महसूस होता था कि वह पूरी ताक़त से उसे ऐन उसी वक़्त पीछे धकेल रही है। उसकी मांसपेशियों की अकड़न से ऐसा संकेत मिल जाता था। वह बस बिस्तर पर लेट जाती थी आँखें बन्द करके। न विरोध करती, न सहयोग| बस बिछ जाती थी, पूरे समर्पण-भाव से। यह बेहद शर्मनाक था, जो कुछ देर बाद भयावह हो जाता था। इन सबके बावजूद वह उसके साथ रह ही जाता अगर दोनों कम से कम इतना तय कर लेते कि ब्रह्मचर्य का ही पालन करना है, लेकिन अजीब बात थी कि कैथरीन को यह भी मंजूर नहीं था। वह कहती थी कि अगर वे सक्षम हैं तो उन्हें बच्चा पैदा करना ही चाहिए। लिहाज़ा हफ़्ते में एक बार कम से कम नियम से कार्यक्रम चलता, चाहे जब लह जाए। वह बाक़ायदे इसकी याद दिलाती थी कि भूलना नहीं है, आज शाम को करना है। इसके लिए दो नाम थे उसके पास एक, 'बच्चा बनाना है और दूसरा, 'पार्टी का फ़र्ज़ निभाना है' (उसने वाक़ई यही कहा था)। जैसे-जैसे वह दिन क़रीब आता, विंस्टन के मन में डर बैठता जाता। संयोग से उन्हें कोई बच्चा नहीं हुआ और अन्त में उसने हार मान ली। इसके बाद जल्द ही वे दोनों अलग हो गए। विंस्टन ने धीमी उसाँस छोड़ी, कलम उठाई और लिखने लगा :

उसने खुद को बिस्तर पर गिरा दिया और आप जितनी भी भयावह कल्पना कर सकते हैं, उतने ही उजड्ड तरीके से बिना किसी भूमिका के एक झटके में उसने अपनी स्कर्ट उठा दी। मैं...

वह खुद को वहाँ लैम्प की मद्धम रोशनी में कीड़ों और सस्ती इत्र की मिली-जुली बू के बीच खड़ा पा रहा था। उसके दिल में शिकस्त और अपमान का भाव था। और उस क्षण भी उसके मन में कैथरीन की सफ़ेद देह तैर रही थी जो पार्टी की सम्मोहन शक्ति से हमेशा के लिए जम चुकी थी। हमेशा ऐसा ही क्यों होता है? कुछ-कुछ वर्षों के अन्तराल पर ऐसी घिनौनी लपटझपट के बजाय उसे ऐसी स्त्री क्यों नहीं मिल पाती जो उसकी अपनी हो? अब वास्तव में किसी प्रेम-प्रसंग की कल्पना तो तक़रीबन बेकार ही ठहरी। पार्टी की सारी स्त्रियाँ एक जैसी हैं। उनके भीतर शुचिता को ऐसे कूट-कूट कर भरा गया है जैसे पार्टी की वफ़ादारी। शुरुआती उम्र में ही खेलों से, ठंडे पानी से, स्कूल से लेकर गुप्तचर संस्था और युवा संघ तक लेक्चर, परेड, गीत, नारों, मार्शल आर्ट के रास्ते भीतर भरे गए तमाम कचरों से उनका जैसा अनुकूलन किया जाता था, वह उनकी सहज भावनाओं को मार देता था। उसका दिमाग कहता था कि इसके अपवाद ज़रूर होंगे, लेकिन मन ऐसा मानने को तैयार नहीं था। ये सब अभेद्य स्त्रियाँ थीं और पार्टी भी यही चाहती थी कि ये ऐसी ही बनें। दरअसल, प्यार से भी ज़्यादा उसे इस बात की चाह थी कि पूरी ज़िन्दगी में बस एक बार सही, सदाचार की इस दीवार को वह तोड़ सके। बस एक बार एक सफल संभोग उसके लिए बग़ावत थी। चाहना एक वैचारिक अपराध है। वह चाहता तो कैथरीन को ही जगा सकता था। आख़िर उसकी पत्नी थी वह, फिर भी ऐसा उसने कर दिया होता तो यह फरेब ही होता।

कहानी अभी बाक़ी थी। उसने लिखा :

मैंने लैम्प की रोशनी बढ़ा दी। उसे रोशनी में देखा...

इतने अँधेरे के बाद तेल वाले लैम्प की रोशनी बहुत चुभ रही थी। पहली बार वह उस स्त्री को गौर से देख सका। उसने एक क़दम उसकी ओर आगे बढ़ाया, फिर ठिठक गया। कामुकता और आतंक ने उसे एक साथ जकड़ रखा था। यहाँ आकर उसने जो ख़तरा मोल लिया था उससे वह आगाह था।

बिलकुल मुमकिन है कि वह बाहर निकले तो गश्ती दल उसे पकड़ लें। वैसे तो यह भी हो सकता है कि वे दरवाज़े के बाहर ही खड़े इन्तज़ार में हों। ऐसे में वह जो करने आया था अगर वही किए बगैर निकल लिया तो...!

इस बात को लिखा जाना ज़रूरी था। पाप का स्वीकार ज़रूरी था। लैम्प की रोशनी में अचानक उसने पाया था कि वह स्त्री बूढ़ी है। उसके चेहरे पर इतना गाढ़ा रंग-रोगन किया गया था कि लगता था गत्ते के बने किसी मुखौटे की तरह दरक जाएगा। उसके बालों में चाँदी थी, लेकिन सबसे ज़्यादा भयावह दृश्य उसके हल्के खुले मुँह से ज़ाहिर हो रहा था जिसके भीतर गुहान्धकार था, और कुछ भी नहीं। उसके दाँत नहीं थे। एक भी नहीं।

उसने जल्दीबाज़ी में घिसटते हुए लिखा :

मैंने उसे जब रोशनी में देखा तो पाया कि वह काफ़ी उम्रदराज औरत थी, कम से कम पचास साल की। फिर भी मैं आगे बढ़ा और मैंने वही किया।

उसने फिर से अपनी आँखों को उँगलियों से दाब लिया। आख़िर को उसने सब कुछ लिख ही दिया था, फिर भी कोई फ़र्क नहीं पड़ा था। रेचन काम नहीं आया था। ऊँची आवाज़ में चीख़ते हुए भद्दी-भद्दी गाली देने की उसकी इच्छा अब और प्रबल हो गई थी।

  • 1984 (उपन्यास) : जॉर्ज ऑर्वेल-पहला भाग-अध्याय 7-8
  • मुख्य पृष्ठ : जॉर्ज ऑरवेल : उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां हिन्दी में
  • ब्रिटेन की कहानियां और लोक कथाएं
  • भारतीय भाषाओं तथा विदेशी भाषाओं की लोक कथाएं
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