युक्ति (कहानी) : गाय दी मोपासां
Yukti (French Story) : Guy de Maupassant
आग के पास बैठे अनुभवी डॉक्टर और उसकी युवा मरीज बातें कर रहे थे। वास्तव में उसे कोई बीमारी नहीं थी, सिवाय उन अल्प स्त्री रोगों में एक, जिनसे सुंदर स्त्रियाँ प्रायः पीडित रहती हैं थोड़ी रक्त की कमी, तंत्रिका आक्रमण और थकावट का संदेह; वह थकावट जो नव-विवाहित व्यक्ति को अपने दांपत्य जीवन के पहले महीने के अंत में, प्रेम के चातुरी खेल के बाद प्रायः पीडित करती है!
वह काऊच पर लेटी बातें कर रही थी। "नहीं डॉक्टर, " उसने कहा, "औरत द्वारा अपने पति को धोखा देने की बात मैं कभी नहीं मान सकती। यदि मान भी लिया जाए कि वह उसे प्रेम नहीं करती, अपनी कसमों और वायदों की परवाह नहीं करती, फिर भी यह कैसे हो सकता है कि वह अपने आपको किसी दूसरे पुरुष के हवाले कर दे? वह दूसरों की आँखों से इस कटु-षड्यंत्र को कैसे छिपा सकती है? झूठ और विद्रोह की स्थिति में प्रेम करना कैसे संभव हो सकता है?"
डॉक्टर हँसा और बोला, "यह बिलकुल आसान है, मैं तुम्हें विश्वास दिला सकता हूँ कि जब औरत सीधे रास्ते से भटकने का निश्चय कर लेती है तो वह ऐसी सूक्ष्म बातों का खयाल नहीं करती। मेरा तो निश्चय है कि कोई भी औरत सच्चे प्रेम के लिए तब तक परिपक्व नहीं होती, जब तक वह विवाहित जीवन की समस्त बेचैनियों और दुःखों से गुजर नहीं जाती; जो एक प्रसिद्ध व्यक्ति के मतानुसार दिन में दुर्भावनापूर्ण शब्दों के आदान-प्रदान और रात्रि में असावधानी से किए गए दुलार के अतिरिक्त कुछ नहीं है। इसमें अधिक सत्य नहीं है कि कोई भी औरत विवाह से पूर्व तीक्ष्णता से प्रेम कर सकती है।
"जहाँ तक बहानों का प्रश्न है, तो वे ऐसे अवसरों पर बड़ी मात्रा में औरतों की अंगुलियों पर रहते हैं, उनमें से अधिकतम सीधी-सादी विलक्षण रूप से युक्तिवान् होती हैं और बड़े-से-बड़े भ्रमजालों से अपने आपको अद्भुत ढंग से बचा लेती हैं।"
फिर भी युवा मरीज आश्वस्त नजर नहीं आई। "नहीं डॉक्टर, " उसने कहा, "घटना घट जाने के बाद कोई नहीं सोचता कि एक खतरनाक मामले में उसे क्या करना चाहिए था। ऐसे अवसरों पर, औरतों के विचारहीन होने का दायित्व आदमियों की अपेक्षा औरतों पर अधिक है।"
डॉक्टर ने अपने हाथ उठाए–“तुम कहती हो घटना घट जाने के बाद! अपनी एक मरीज, जिसको मैं निर्दोष स्त्री समझता था, के साथ क्या बीती, मैं तुम्हें सुनाता हूँ। यह घटना एक प्रदेशीय नगर में घटी। एक रात जब मैं गहरी नींद में सो रहा था, जिस पहली और गहरी नींद में उठना कठिन होता है, मझे स्वप्न में आभास हआ कि नगर में अग्निसूचक घंटियाँ बज रही हैं और मैं चौंककर उठ गया। वह मेरे घर की ही घंटी तीव्रता से बज रही थी और मेरी नौकरानी दरवाजे पर उत्तर देती दिखाई नहीं दे रही थी। फिर मैंने अपनी चारपाई के सिरहाने से घंटी बंद कर दी। शीघ्र ही मैंने खामोश घर में धडाके और कदमों की आवाज सुनी। फिर जीन ऊपर आई तथा मझे एक पत्र दिया जिसमें लिखा था-'मैडम लेलीवरे डॉ. साईमन से प्रार्थना करती है कि वह तत्काल उसके पास पहुँचे।'
मैंने कुछ क्षणों के लिए सोचा और अपने आपसे कहा, 'एक तांत्रिक आक्रमण, भाप, अनर्थक।' मैं बहुत थका हुआ था; मैंने उत्तर दिया, 'मैं, डॉ. साईमन, चूँकि ठीक नहीं हूँ, इसलिए मैडम लेलीवरे से प्रार्थना करता हूँ कि कृपया मेरे साथी एम. बोनेट को बुला लिया जाए।'
"मैंने पत्र को लिफाफे में डाला और फिर सो गया। आधा घंटे बाद ही गली में लगी मेरे मकान की घंटी फिर बजी। जीन मेरे पास आई और कहने लगी—'नीचे एक व्यक्ति है जिसने अपने आपको इस तरह लपेटा हुआ है कि मैं बता नहीं सकती कि वह पुरुष है या स्त्री। वह आपसे तत्काल बात करना चाहता है। वह कहता है कि दो आदमियों के जीवन-मृत्यु का प्रश्न है। मैं उठकर बैठ गया और कहा कि उस व्यक्ति को अंदर आने दो।'
"एक प्रकार की काली छाया सामने नजर आई और ज्यों ही जीन कमरे से बाहर गई, उसने चेहरे से परदा हटाया। वह मैडम लेलीवरे थी, जो पूरी तरह से जवान थी और तीन साल से नगर के बड़े दुकानदार की विवाहिता थी तथा अड़ोस-पड़ोस में सबसे सुंदर युवती मानी जाती थी।
"वह अत्यंत पीली पड़ गई थी और उसका चेहरा सिकडा हआ था, जैसे कभी-कभी पागल व्यक्तियों का हो जाता है। उसके हाथ तीव्रता से काँप रहे थे। उसने बिना आवाज निकाले दो बार बोलने की कोशिश की, परंतु अंत में वह हकलाई, 'चलो, जल्दी चलो, डॉक्टर! चलो...मेरा...प्रेमी...अभी-अभी मेरे शयनकक्ष में मर गया है।' वह रुक गई: वेदना से उसका गला अवरुदध हो गया। फिर कहना शुरू किया—'मेरा पति जल्दी ही क्लब से घर आ जाएगा।'
"बिना सोचे कि मैं रात की पोशाक पहने हुए हूँ, मैं चारपाई से कूदा और कुछ ही क्षणों में कपड़े पहन लिये। फिर मैंने पूछा, 'क्या कुछ समय पहले तुम ही यहाँ आई थीं?'
"नहीं', उसने भय से पत्थर के बुत की तरह खड़े-खड़े कहा, 'वह मेरी नौकरानी थी, वह जानती है।' फिर थोड़ी चुप्पी के बाद कहने लगी—'मैं वहीं उसके पास ही थी।' और उसने भय भरी चीख मारी और गला घुटने के आवेग से हाँफने के बाद, ऐंठनवाली सिसकियों को एक-दो मिनट तक रोकते हुए बुरी तरह से रोई। फिर अचानक उसके आँसू थम गए, जैसे आंतरिक ज्वाला से सूख गए हों और शोकजनक निश्चलता से कहने लगी—'आओ, जल्दी आओ।' मैं तैयार था परंतु चिल्लाया—'मैं अपनी गाड़ी का प्रबंध करना बिलकुल भूल गया हूँ।'
" 'गाड़ी मेरे पास है', उसने कहा, 'यह उसी की है जो उसका इंतजार कर रही थी।' उसने अपने चेहरे को पूरी तरह से ढक लिया और हम चल पड़े।
"जब वह गाड़ी के अंदर अँधेरे में मेरे साथ बैठी हुई थी, उसने अचानक मेरा हाथ थामा और अपनी कोमल अंगुलियों से पीसते हुए, अपने दिल से निकलती हुई काँपती आवाज में कहा, 'ओह, शायद तुम जानते हो, अगर तुम जानते कि मैं दुःखी क्यों हूँ! मैं उसे प्रेम करती थी, पिछले छह महीनों से मैंने उसे पागल औरत की तरह व्याकुलता से प्रेम किया है।'
' 'क्या तुम्हारे घर में और भी कोई है? ' मैंने पूछा।
' 'नहीं, रोज के सिवाय, जो सबकुछ जानती है।'
"हम दरवाजे पर रुके। स्पष्ट रूप से हर कोई सो रहा था, हम सिटकिनी की सहायता से अंदर गए और दबे पाँव ऊपर चले गए। भयभीत नौकरानी जलती हुई मोमबत्ती अपने बराबर रखे ऊपरी सीढ़ी पर बैठी थी, क्योंकि मृतक के पास बैठने से वह डरती थी। मैं कमरे में गया। वह अस्त-व्यस्त पड़ा था जैसे उसमें कोई झगड़ा हुआ हो। चारपाई गिरी हई थी और ऐसी लगती थी, जैसे किसी की प्रतीक्षा कर रही हो; चादर जमीन पर पड़ी थी और गीले रूमाल, जिनसे युवा आदमी की कनपटियों को धोया गया था, वाश-बेसिन और शीशे के निकट पड़े थे जबकि सिरके की तेज गंध कमरे में फैल रही थी।
"मृतक का शव कमरे के बीचोबीच अपनी पूरी लंबाई में पड़ा था। मैं उसके पास गया, उसको देखा और छुआ। मैंने उसकी आँखें खोलीं, हाथों को छुआ और औरतों की तरफ मुड़ा जो इस प्रकार काँप रही थीं जैसे सरदी में जम रही हों। मैंने उनसे कहा, 'इसे उठाकर चारपाई पर लिटाने में मेरी सहायता करो।' जब हमने धीरे से उसे चारपाई पर लिटा दिया तो मैंने उसके दिल की धड़कन को सुना, शीशे से उसके होंठ देखे और कहा, 'सब समाप्त हो गया है, अब जल्दी से इसे कपड़े पहनाने चाहिए।' अत्यंत भयानक दृश्य था!
"मैंने एक-एक करके उसके अवयवों को पकड़ा, जैसे वे किसी बड़ी गुडिया के हों और उनको कपड़ों में डाला जो औरतें लाई थीं। उन्होंने उसे जुराब, जाँघिया, पतलून और वास्केट पहनाए और अंत में कोट। उसके बाजुओं को कोट के बाजुओं में डालना अत्यंत कठिन था।
"जब जूतों के तसमे कसने की बारी आई तो औरतें झुकीं और मैंने बत्ती थामी। चूँकि उसके पैर सूजे हुए थे, इसलिए यह कठिन काम था। वे बटन-हुक नहीं देख पा रही थी, इसलिए उसने अपने बालों की सूइयों से काम लिया। ज्यों ही वह भयानक परिधान पहनाया गया, मैंने सारे काम को देखा और कहा, 'तुम्हें इसके बालों को सँवारना होगा।' नौकरानी जाकर अपनी मालकिन का बड़े दाँतोंवाला कंघा और ब्रुश ले आई लेकिन बालों की लंबी लटें निकालते हुए वह काँप भी रही थी। मैडम लेलीवरे ने उसके हाथ से कंघा ले लिया और बालों को इस प्रकार सँवारा जैसे वह उनसे दुलार कर रही हो। उसने माँग निकाली, दाढ़ी को ब्रुश किया, मूंछों को अपनी अंगुलियों की नरमी से गोल किया जैसा उनके षड्यंत्र में करने की उसकी आदत थी।
"इसपर उसने अचानक उसके बालों को छोड़ दिया और अपने प्रेमी के गतिहीन सिर को अपने हाथों में थाम लिया तथा निराशा से उसकी ओर काफी देर तक देखती रही जो अब उसके साथ हँस नहीं सकता था। फिर उससे लिपटकर और अपनी बाँहों में लेकर उत्सुकता से उसे चूमने लगी। इसके बाद मुँह और माथे पर, आँखों पर और कनपटियों पर उसके चुंबन झोंकों की तरह गिरने लगे और फिर उसके कानों के पास अपने होंठ रखते हुए, जैसेकि वह अभी सुन सकता हो, अपने आलिंगनों को और उत्सुकतापूर्ण बनाने के लिए, जैसे कान में कुछ कहना चाहती हो, उसने हृदय-विदारक आवाज में कई बार कहा, 'अलविदा, मेरे प्यारे, अलविदा!'
"उस समय घड़ी ने बारह बजाए और मैं चौंका, ‘बारह बज गए।' मैं चिल्लाया—'इसी समय क्लब बंद होता है, आओ, मैडम! हमें एक क्षण भी खोना नहीं चाहिए।'
"वह चौंकी और मैंने कहा, 'हमें इसे ड्राइंग रूम में ले जाना होगा।' जब हम यह कर चुके, मैंने उसे सोफे पर बैठा दिया और फानूस जला दिए। ठीक उसी समय सामने का दरवाजा खुला और जोर से बंद हो गया। उसका पति लौट चुका था और मैंने कहा, 'रोज, तौलिया और चिलमची ले आओ, कमरे को साफ-सुथरा बना दो। परमात्मा के लिए जल्दी करो, एम. लेलीवरे अंदर आ रहा है।'
"मैंने सीढियों पर उसके कदमों की आहट सुनी और दीवारों को छूते हुए उसके हाथ देखे। 'आओ मेरे दोस्त, ' मैंने कहा, 'यहाँ एक हादसा हो गया है।'
"मुँह में सिगार लगाए, हैरान पति दरवाजे पर नजर आया और कहने लगा—'क्या मामला है? क्या मतलब है इसका?'
“ 'मेरे प्यारे मित्र, ' उसके पास जाकर मैंने कहा, 'तुम हमें हड़बड़ाहट में देख रहे हो। मैं देर तक तुम्हारी पत्नी से बातें करता रहा और यह मेरा दोस्त जो अपनी गाड़ी में मुझे लाया था, अचानक बेहोश हो गया और तमाम यत्न करने के बाद भी दो घंटे से बेहोश है। मैं अजनबियों को बुलाना नहीं चाहता था और यदि इसे नीचे ले जाने में मेरी सहायता करो तो इसके अपने घर में मैं इसकी अच्छी देखभाल कर सकूँगा।'
"पति, जो हैरान था, परंतु शंकित नहीं, ने अपना हैट उतारा। फिर अपने रकीब को, जो भविष्य में उसके लिए दुःखदायी नहीं होगा, अपनी बाँहों में उठा लिया। धुरों के बीच घोड़े की तरह, मैंने उसे दोनों टाँगों के बीच से उठाया और हम सीढियों से नीचे ले आए जबकि उसकी पत्नी ने हमें रोशनी दिखाई। जब हम बाहर आए तो कोचवान को धोखा देने के लिए मैंने उसके शरीर को ऊपर उठाया और कहा, 'आओ प्यारे मित्र, यह कुछ नहीं; मेरे विचार से तुम पहले से अच्छे हो, हिम्मत करो और कोशिश करो, सब ठीक हो जाएगा।' लेकिन ज्यों ही मैंने महसूस किया कि वह मेरे हाथों से खिसक रहा है, मैंने उसके कंधे पर एक तमाचा मारा जिससे वह आगे हुआ तो उसे गाड़ी में गिरा दिया, तत्पश्चात् मैं गाड़ी में घुसा।
“एम. लेलीवरे, जो कुछ चौकन्ना हो गया था, मुझसे कहने लगा, "तुम क्या सोचते हो, कोई गंभीर बात है क्या?' इसपर मैंने मुसकराते हुए उत्तर दिया, "नहीं।" जब मैंने उसकी पत्नी की ओर देखा तो वह अपना हाथ अपने पति के हाथ में डाले हुए थी और गाड़ी के भीतर देखने का प्रयत्न कर रही थी।
"मैंने हाथ मिलाए और अपने कोचवान को गाड़ी चलाने के लिए कहा। सारे रास्ते मृतक मेरे ऊपर गिरता रहा। जब हम घर पहुँचे तो मैंने कहा कि वह घर आते-आते रास्ते में बेहोश हो गया है और ऊपर लाने में मैंने सहायता की थी जहाँ आकर मैंने प्रमाणित कर दिया कि वह मर गया है। और इस प्रकार उसके विचलित परिवार के लिए एक और हर्ष-प्रधान नाटक किया। अंत में, मैं प्रेमियों के बारे में कुछ दृढ़ता से बिना कहे, अपने बिस्तर पर आ गया।"
डॉक्टर ने कहना बंद किया, भले ही वह अब भी मुसकरा रहा था और जवान औरत, जो बहुत ही बेचैन थी, कहने लगी, "तुमने इतनी भयानक कहानी मुझे किसलिए सुनाई है?"
उसने वीरता से उसके सामने सिर झुकाया और उत्तर दिया, “ताकि जरूरत पड़ने पर मैं आपको अपनी सेवाएँ प्रदान कर सकूँ।"
(अनुवाद : भद्रसैन पुरी)