योग्य वर की तलाश : बिहार की लोक-कथा

Yogya Var Ki-Talash : Lok-Katha (Bihar)

जगदीशपुर में रमेश नामक सेठ था। लक्ष्मी उसकी इकलौती पुत्री थी। वह अत्यंत रूपवती थी। लक्ष्मी बड़ी हुई तो उसके पिता ने उसके लिए वर खोजना आरंभ किया। बहुत-से युवक लक्ष्मी से विवाह के लिए इच्छुक थे।

रमेश तथा उसकी पत्नी समान स्तर के संबंध के इच्छुक थे। लक्ष्मी आर्थिक अनुकूलता को कोई ख़ास महत्त्व नहीं देती थी। वह किसी पढ़े-लिखे युवक से विवाह करना चाहती थी। जगदीशपुर के समीप ही गंगापुर गाँव के करोड़पति ज़मींदार का इकलौता पुत्र था। ज़मींदार ने स्वयं आकर रमेश से उसकी पुत्री की अपने पुत्र के साथ विवाह करने की याचना की।

इसी प्रकार नगर प्रमुख वज्रवणिक सुवर्णपाल ने मध्यस्थों से अपने ज्येष्ठ पुत्र के लिए लक्ष्मी के साथ विवाह की इच्छा का संदेश भिजवाया।

जगदीशपुर में अध्यापनवृत्ति से जीविकायापन करने वाले देवनाथ का विद्याधर नामक पुत्र था। वह शास्त्रों में पारंगत था। उसने कृषि, वाणिज्य इत्यादि विषयों के बहुत-से ग्रंथों का अध्ययन किया हुआ था। बहुत-से लोग मार्गनिर्देश प्राप्त करने के लिए उसके पास आया करते थे। लक्ष्मी ने विद्याधर से विवाह करने की इच्छा प्रकट की तथा अपने माता-पिता को अपना निर्णय बता दिया।

रमेश ने पुत्री को समझाया कि विद्याधर पंडित है, लोकप्रिय है, परंतु वह ग़रीब है और इस समय समाज में धन की प्रमुखता है। यद्यपि देवनाथ का पुत्र पंडित नहीं है, फिर भी उनके पास पिता द्वारा अर्जित की गई प्रचुर संपत्ति है। उसके पास इतनी संपत्ति है कि तुम्हारे पुत्र-पौत्रादि तक सुखपूर्वक जीवन गुज़ार सकते हैं। इसलिए बेटी, विवाह के बारे में तुम पुनः विचार करके बताओ।

“पिताजी, आप जो कह रहे हैं वह ठीक नहीं है, ऐसा मैं नहीं कह रही हूँ। जग में ऐसा ही होता है। आप विद्याधर, करोड़पति के पुत्र तथा देवनाथ के पुत्र को घर आमंत्रित कीजिए। फिर उनको अलग-अलग बुलाकर मेरे बताए प्रश्न को पूछिए। उनके उत्तर सुनने के बाद, कौन योग्य वर है, इसका निर्णय आप करके बताइएगा।” यह कहकर लक्ष्मी ने अपने पिता को निर्धारित प्रश्न बता दिए।

पुत्री की सूचना के अनुसार रमेश ने तीनों को अपने घर आमंत्रित किया। उनके आने के बाद ज़मींदार के पुत्र को अपने कमरे में बुलाकर पत्नी-पुत्री के सम्मुख उससे प्रश्न पूछे। “आप पिता के एकमात्र पुत्र हैं। क्या आप में घर की सारी ज़िम्मेदारी वहन करने की क्षमता है? कितने दिन तक आप इस तरह व्यय करते रहेंगे, अथवा आप किसी दूसरे आधार पर जीवनयापन करेंगे?”

ज़मींदार के पुत्र ने कहा, “इस बारे में मैं नहीं सोचा करता। लिपिकार, नौकर, मार्गदर्शक आदि कई लोग हैं।”

रमेश ने पूछा, “आप देवनाथ के पुत्र विद्याधर को जानते हैं। यदि लक्ष्मी देवी आपसे विवाह करेगी तो आपको विद्याधर की भाँति पांडित्य प्राप्त करना पड़ेगा। क्या आप ऐसा कर सकेंगे?” ज़मींदार तथा बनिये के पुत्र ने एक ही जवाब दिया, “नहीं।” अब रमेश ने विद्याधर से पूछा, “आप कोटीश्वर पुत्र वणिज और सुवर्णपाल के पुत्र को जानते ही होंगे? यदि मैं आपके साथ अपनी पुत्री का विवाह करता हूँ तो आपको भी उनके समान ऐश्वर्यशाली होना पड़ेगा? क्या आप ऐसा करने में समर्थ हो सकेंगे?”

विद्याधर ने हँसते हुए कहा, “अपनी शक्ति से क्या, आपके ऐश्वर्य का स्वामी तो मैं आपकी पुत्री से विवाह करके हो ही जाऊँगा।” रमेश ने आश्चर्य से कहा, “कैसे?”

“संपत्ति में आप कोटीश्वर तथा सुवर्णपाल समान है। लक्ष्मी देवी आपकी एकमात्र पुत्री है। यदि मैं उससे विवाह करता हूँ तो सहज ही आपकी संपत्ति का उत्तराधिकारी हो जाऊँगा। इसीलिए मैंने कहा कि आपके जितने वैभव का स्वामी तो हो ही जाऊँगा।”

इस उत्तर से रमेश मन-ही-मन मंद-मंद मुस्कुराने लगा। विद्याधर के जाने के बाद लक्ष्मी ने पिता से कहा, “आपसे विद्याधर ने जो कहा, आपने जान ही लिया है। मुझसे विवाह के बाद वैभव में वह कोटीश्वर तथा सुवर्णपाल के पुत्रों के समान हो जाएगा। उन दोनों के पास विद्याधन नहीं है। वह केवल इसी के पास है। वे बहुत मेहनत और प्रयास करके भी विद्याधर के समान पांडित्य प्राप्त नहीं कर सकते। विद्याधर बिना किसी की सहायता के इतना वैभव प्राप्त कर लेगा। पंडित तो है ही। अब आप ही बताइए कि कौन योग्य वर है।”

“बेटी, तुम्हारा सोचना ठीक है। विद्याधर ही उपयुक्त वर है।” माता-पिता दोनों के यही विचार थे। शीघ्र ही शुभ मुहूर्त्त में देवनाथ के पुत्र विद्याधर के साथ धूमधाम से लक्ष्मी का विवाह हुआ।

(साभार : बिहार की लोककथाएँ, संपादक : रणविजय राव)

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