ये कैसी इजाज़त (कहानी) : कमलेश संजीदा

Yeh Kaisi Ijazat : Kamlesh Sanjida

राम प्रकाश का जन्म 1949 में शामली के एक छोटे से मोहल्ले में जिसका नाम शांति नगर है में हुआ था , उनके माता-पिता बहुत खुश थे, पिता का नाम महेश और माता का नाम रामेश्वरी था। राम प्रकाश के पैदा होने के बाद महेश और रामेश्वरी दौनों ने मिलकर राम प्रकाश का लालन-पालन बड़े ही प्यार से किया। राम प्रकाश पढ़ने में मध्यम था, ज्यादा पढ़ने-लिखने में दिमाग नहीं लगता था। धीरे-धीरे उसने हाई स्कूल (हायर सेकेंडरी) कर लिया इसके बाद शामली शुगर मिल में दसवीं के बाद काम करने लगा। राम प्रकाश के पापा महेश भी शुगर मिल में वर्कर की हैसियत से काम करते थे इस वजह से काम मिलना आसान हो गया राम प्रकाश भी वर्कर की हैसियत से काम करने लगा महेश और रामेश्वरी ने अपने बेटे के 3 साल काम करने के बाद राम प्रकाश की शादी करने के लिए पड़ोस और दोस्तों में कई लड़कियां देखी और फिर दूर के मामा के दोस्त के यहां उस लड़की का नाम किशोरी था, शादी तय कर दी और एक महीने बाद शादी करवा दी, अभी तक पूरा परिवार किराए के मकान में ही रह रहा था, राम प्रकाश और किशोरी बड़े प्यार से रह रहे थे लेकिन धीरे-धीरे वक्त गुजरता रहा, घर में किशोरी ने अपनी मन मानी शुरूं कर दी , और इस तरह से घर में हर रोज कलेश रहने लगा।

शादी के 2 साल बाद ही महेश जी का टेंशन की वजह से एक दिन दिल का दौरा पड़ने से देहांत हो जाता है रामेश्वरी अपने आप को अकेला महसूस करने लगी। बहू को तो बड़ा प्यार से रखती थी, लेकिन बहू को सास का प्यार नजर नहीं आता था, बिचारी रामेश्वरी क्या करती समझ नहीं पा रही थी, उसे भी बीपी और शुगर था वह भी दिल के दौरे से महेश के जाने के 3 महीने बाद ही स्वर्ग सिधार जाती है। अब क्या था? किशोरी को रोकने एवं टोकने वाला कोई बचा ही नहीं, राम प्रकश की तो सुनती ही नहीं थी इस बीच में राम प्रकाश ने किशोरी को समझाने का अथक प्रयास किया मगर राम प्रकाश के समझाने का कोई फर्क नहीं पड़ा किशोरी जिद्दी टाइप की लड़की थी वह अकेलापन पसंद करती थी और अपनी मर्जी से चलना चाहती थी अब तो ना सास रही थी ना ससुर, उसके घर में मजे थे लेकिन आगे क्या होता है सुनिए इसी तरह से वक्त ने भी अपनी रफ़्तार पकड़ी और शादी के 8 साल बीत गए लेकिन घर में कोई ओलाद नहीं थी आस-पड़ोस के लोगों ने , रिश्ते दारों ने ओलाद के लिए कहना शुरूं कर दिया, फिर दोनों डॉक्टर से मिलकर अपना इलाज कराने लगे और जाने कहाँ-कहाँ भटकने लगे इस तरह से जो जहां बता देता था वहीं पर चले जाते थे जैसे-तैसे उनके घर में एक बेटा पैदा होता है, उसका नाम कृष्णा रखा गया कृष्णा बचपन से ही बहुत ज्यादा जिद्दी स्वभाव का बच्चा था , धीरे-धीरे कृष्णा को स्कूल भेजने लगे वो स्कूल तो जाता था, लेकिन पढ़ने में उसका मन बिल्कुल भी नहीं लगता था, इधर-उधर की बातों में हमेशा लगा रहता था।

वक्त गुजरता रहा उसकी संगत कुछ ऐसे लोगों से होने लगी जो सिगरेट, बीडी, तमाखू, गुटका और शराब पीते थे और गली की लड़कियों को छेड़ने में लगे रहते थे बिल्कुल छिछोरा -बदमाश हो चुका था इसी बीच में राम प्रकाश ने 50 गज का प्लॉट लेकर टंकी मोहल्ले में एक घर इधर-उधर से उधार लेकर बनवा लिया और उसमें रहने लगे। आगे-आगे कृष्णा के कारण उनकी परेशानियां बढ़ती रहीं , कई बार बीच-बचाव के लिए राम प्रकाश को थाने भी जाना पड़ा, लेकिन कृष्णा की आदतें सुधरने का नाम नहीं ले रहीं थीं किसी तरह से हाथ-पैर जोड़कर राम प्रकाश ने थाने से कृष्णा को छुड़ावा तो लाया लेकिन राम प्रकाश की तो सुनता ही नहीं था न तो किशोरी की सुनता था बेचारा राम प्रकाश क्या करता? उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था क्या करे? क्या ना करे? अपने दोस्तों से भी कृष्णा को समझवाने की कोशिश करी लेकिन वह समझ न सका।

किसी दोस्त ने कृष्णा को समझाया कि तू एक काम कर इस मकान को बेंच दे और खूब सारे पैसे आएंगे उससे दारु पिएंगे मौज लेंगे जो मकान था वह तो राम प्रकाश के नाम पर था कृष्णा ने कई बार मकान बेचने की कोशिश करी किन्तु असफल रहा, अब कृष्णा 18 साल का हो चुका था उसके दिमाग में तरह-तरह के फितूर आने लगे और वह फितूर उसके दिमाग में मजबूत घर करने लगे एक दिन उसने अपने मां-बाप को पीटना शुरू कर दिया खूब झगड़ा किया कृष्णा ने घर में रखे सारे पैसे उठा लिए, और दो दिन में दोस्तों के संग सब उड़ा दिए झगड़े का काम तो हर रोज का होने लगा जिस दिन राम प्रकाश की तनख्वाह मिलती उसी दिन कृष्णा सारे पैसे छीन ले जाता अब तो ये सब हर महीने का होने लगा कृष्णा और उसके दोस्तों ने कोठे पर भी जाना शुरूं कर दिया धीरे-धीरे जैसे-तैसे चल रहा था जब राम प्रकाश से कृष्णा ने तनख्वाह छीन ली तो घर के खर्चे कैसे चलें? चार महीने इसी तरह से बीत गए।

एक दिन राम प्रकाश एवं किशोरी ने घर छोड़ने का फैसला लिया अब किशोरी को भी समझ आने लगा था कि मैंने अपने सास-ससुर के साथ जो बुरा व्यवहार करा था उसी का परिणाम मुझे अपने पुत्र के रूप में भोगना पड़ रहा है शायद जिंदगी में इसी तरह से होता है जो हम करते हैं वो हमारे सामने लौट कर जरूर आता चाहे किसी रूप में भी आए यह हमारी समझ में नहीं आता कि यह किस रूप में आ रहा है अब किशोरी के दिल में पछतावा तो था लेकिन कर क्या सकती थी? उस समय तो उसके दिमाग ने उसको चैन से बैठने ही नहीं दिया सबको परेशान करती रही थी जिसके कारण उसके सास-ससुर घुट-घुट कर रहते थे और जैसा कि अब वे छोड़ कर चले गए थे लेकिन राम प्रकाश किशोरी अब क्या करते? घर छोड़ने का फैसला समझ नहीं आ रहा था कि क्या सही है? या क्या गलत है? एक दिन कृष्णा ने दोनों को खूब मारा, राम प्रकाश के सिर में भी चोट आई और सिर में चोट आने से नॉर्मल नहीं रह गया था वह बहकी-बहकी बातें करने लगा और उसका दिमाग चल गया। किशोरी के भी टांग की हड्डी टूट गई थी दौनों ने सरकारी हस्पताल में थोडा बहुत इलाज़ कराया लेकिन पूरी तरह से ठीक न हो सके।

किशोरी क्या करती? उसके पास कोई रास्ता नहीं बचा था फिर उसने सोचा कि अब तो घर छोड़ना ही उचित रहेगा और दौनों ने घर छोड़ दिया घर छोड़कर दोनों दिल्ली में बदरपुर में जाकर रहने लगे कभी मंदिर में पड़े रहते हैं और कभी सड़कों पर रात गुजारने लगे लेकिन इलाज़ कराने के लिए पैसे नहीं थे उसी मारपीट में किशोरी की भी गिरने से टांग टूट चुकी थी वह ठीक नहीं हो सकती थी कई बरस गुजर चुके हैं धीरे-धीरे इसी तरह से दूसरों के घर काम करके गुजारा चल रहा था राम प्रकाश तो कुछ करने लायक नहीं था उसे अपने आप पर हर रोज पछतावा होने लगा यह मेरी ही करनीं के नतीजे हैं! जो मैंने अपने घर, बीवी और बच्चे को कंट्रोल नहीं कर पाया! इस वजह से उसकी तबियत सोच-सोच कर और भी ज्यादा खराब होने लगी ।

एक दिन राम प्रकाश सड़क पर घूम रहा था अचानक दूसरी तरफ से ट्रक एक्सीडेंट में हाथ और पैर टूट जाते हैं खूब खून निकलता है छोटे-मोटे इलाज से जान तो बच जाती है इलाज के लिए पैसे नहीं थे तो किशोरी इलाज कहां से करवाती? दोनों को इलाज़ की जरुरत थी दौनों ही अपाहिज हो चुके थे इलाज़ करा ही नहीं पा रहे थे। एक दिन राम प्रकाश किशोरी से बोला अब मुझे इज़ाज़त चाहिए किशोरी- कैसी इज़ाज़त चाहिए? राम प्रकाश इससे बेहतर है कि मर ही जाता! या मैं मर जाऊं! क्योंकि अब मैं ठीक नहीं हो सकता तेरे ऊपर ही बोझ बन रहा हूं और शायद ही मैं ठीक हो पाऊं हमारे पास पैसे भी नहीं हैं तो मैं ठीक नहीं हो सकता मेरा तो मर जाना ही बेहतर होगा! किशोरी जोर-जोर से रोने लगी ये कैसी इज़ाज़त है? ऐसे नहीं जाने दूंगी तुम्हें मेरे साथ ही जीना है ये मुझे हरगिज मंजूर नहीं है राम प्रकाश मेरे दर्द बढ़ते चले जा रहे हैं अब मुझे बहुत परेशानी हो रही है दवा के लिए भी पैसे नहीं है यह तुम भी जानती हो, किशोरी मैं किसी भी तरह से कोशिश करती हूं राम प्रकाश- मेरा इस दुनिया से दिल भर चुका है किशोरी- मुझे अपनी करनी का, सास-ससुर के लिए जो किया मुझे बहुत अफ़सोस हैं राम प्रकाश- अब क्या फायदा? अब मेरे मम्मी पापा वापस लौट कर नहीं आ सकते और हमारा बच्चा भी नहीं सुधर सकता बच्चा भी न जाने किस हालात में होगा? मुझे नहीं पता! इसलिए मेरा मरना ही उचित रहेगा किशोरी मना करती रही।

एक दिन राम प्रकाश घर से उठता है किशोरी काम पर गई हुई थी और बैसाखी के सहारे किसी तरह से ट्रेन की पटरी तक जा पहुंचता है और ट्रेन का इंतजार करने लगता है , थोड़ी देर में एक ट्रेन नजर आती है वह किनारे पर खड़े होकर सोच रहा था जैसे ही वह ट्रेन पास आती है उसी पटरी पर चला जाता है ट्रेन उसको काटती हुई आगे बढ़ जाती है ना जाने कितने टुकड़ों में राम प्रकाश बट जाता है और इस जिंदगी से मुक्ति पा जाता है मुझे नहीं पता! यह एक मुक्ति है या आत्महत्या आप लोग जो उचित समझें उसे समझना लेकिन यह तो सब मेरे सामने ही गुज़रा है अब किशोरी राम प्रकाश को इधर-उधर ढूंढती है पता चलता है कि एक एक्सीडेंट ट्रेन की पटरी पर हुआ है वह वहां दौड़ती हुई जाती है उसे राम प्रकाश की बैसाखी पड़ी मिल जाती है टुकड़े-टुकड़े में राम प्रकाश को देखकर अपना आपा खो देती है और जोर-जोर से रोने लगती है आस पड़ोस के लोगों ने उसकी लाश के टुकड़े इकठ्ठा करके शमशान घाट पहुंचा कर और फिर अंतिम संस्कार कर देते हैं।

और फिर क्या होता है? दो दिन भी नहीं बीते थे कि किशोरी वहीँ ट्रेन की पटरी पर जाती है जहां राम प्रकाश का एक्सीडेंट हुआ था वहीं पर ट्रेन की पटरी के पास जाती है और अपने पति राम प्रकाश से कहती है कि अब मुझे भी अपने पास आने की इज़ाज़त दे दो! मैं भी तुम्हारे पास ही आना चाहती हूं और ट्रेन का इंतजार कर रही होती उधर से एक माल गाड़ी आती हुई दिखती है किशोरी ट्रेन की पटरी के बीच में खड़ी हो जाती है माल गाडी किशोरी को रौंदती हुई चली जाती है मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि किस तरह की? ये कैसी इज़ाज़त है? क्या हुआ? कैसे हुआ? हजारों सवालों के जवाब मेरे पास भी नहीं है मैं तो राम प्रकाश और किशोरी की दास्ताँ ए हकीकत रख रहा हूं आपको उसके बारे में क्या लगता है? मुझे नहीं पता सबकी अपनी-अपनी सोच हो सकती है अपने-अपने विचार हो सकते हैं बस मैं तो इतना ही कहना चाहूंगा कि मुझे भी अब इजाज़त दें ।

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