जहाँ मैं रहती हूँ (जर्मन कहानी) : ईल्स् आईशिंगर; अनुवादक – शैलेश कुमार राय
Jahaan Main Rehti Hoon ('Wo ich wohne' German Story in Hindi) : Ilse Aichinger
कल से मैं एक मंजिल नीचे रहने लगी हूँ। मैं इसे ज़ोर से नहीं कहना चाहती, लेकिन मैं एक मंज़िल नीचे रहने लगी हूँ। मैं इसे इसलिए ज़ोर से नहीं कहना चाहती, क्योंकि मैंने अभी जगह नहीं बदली है। कल रात जब मैं संगीत समारोह से घर आयी - जैसा कि हर शनिवार शाम सामान्य रूप से करती हूँ- और दरवाजा खोली, बल्ब जलाया और फिर सीढ़ियां चढ़ने लगी। मैं बेखबर सीढ़ियां चढ़ी – युद्ध के बाद से ही लिफ्ट काम नहीं कर रही थी - और जैसे ही मैं तीसरी मंज़िल पर पहुंची मुझे लगा “काश, मैं पहले ही घर आ गयी होती!” और एक पल के लिए लिफ्ट के बाहर दरवाजे के पास दीवार के सहारे खड़ी रही। आमतौर पर जैसे मैं तीसरी मंज़िल पर पहुँचती हूँ। मुझे अजीब सी थकान महसूस होती है, जो कभी-कभी इतने देर तक महसूस होती है कि मुझे लगता है कि मुझे पहले ही ये चार सीढ़ियाँ चढ़ जानी चाहिए थी। लेकिन मैंने इस बार इस बारे में नहीं सोचा क्योंकि मुझे पता था कि अभी मेरे ऊपर एक मंज़िल और भी है। इसीलिए अंतिम सीढ़ी चढ़ने के लिए जैसे ही मैंने अपनी आँखें खोली उसी पल मैंने लिफ्ट के बायीं ओर दरवाजे पर लगा नेमप्लेट देखा। क्या मैंने कोई गलती की और चार सीढ़ियाँ चढ़ गयी? मैं चौथी मंज़िल लिखा हुआ साइनबोर्ड देखना चाहती थी, परंतु उसी पल बिजली गुल हो गयी।
चूँकि स्विच फर्श के दूरी तरफ है, मैं अंधेरे में ही अपने कमरे की ओर दो कदम बढ़ी और दरवाजा खोला। अपने दरवाजे तक? किसका दरवाजा होगा, जब नाम मेरा लिखा है? मैं शायद पहले ही चार सीढ़ियाँ चढ़ चुकी हूँ। दरवाजा बिना किसी प्रतिरोध के तुरंत खुल गया, मुझे स्विच मिल गया और मैं रोशनी भरी डेवढ़ी में खड़ी हो गयी, अपनी डेवढ़ी में, और सब कुछ हमेशा की तरह था। लाल वॉलपेपर जिसे मैं बहुत पहले बदलना चाहती थी, और उस बेंच को ले जाया गया था, और बायीं ओर रसोई में जाने का रास्ता। सब कुछ वैसे का वैसा ही था। रसोई में वह रोटी भी थी जिसे मैं रात्रि भोजन के समय नहीं खा सकी थी, और कुछ रोटी मेरे लंच बॉक्स में। सब कुछ अपरिवर्तित था। मैंने रोटी का एक टुकड़ा काटा और खाना शुरू कर दिया। लेकिन अचानक मुझे याद आया कि जब मैं हॉल में घुसी तो दरवाज़े बंद नहीं किया था। और फिर बंद करने के लिए डेवढ़ी में वापस गयी। उसी वक़्त, प्रकाशमय डेवढ़ी में मैंने चौथी मंज़िल वाला साइनबोर्ड देखा। उसके ऊपर लिखा था : तीसरा मंजिल। मैं भागकर बाहर गयी, गलियारे की बल्ब जलायी और इसे फिर से पढ़ा। उसके बाद मैं अन्य दरवाजों पर लगे नेमप्लेट पढ़ी। ये उन लोगों के नाम थे जो कल मेरे नीचे रहते थे। मैं तब सीढ़ियों से जाना चाहती थी यह देखने के लिए कि अब उन लोगों के बगल में कौन रह रहा था, जो कल तक मेरे बगल में रहते थे। वो डॉक्टर जो मेरे नीचे रहता था क्या वास्तव में वह अब मेरे ऊपर रहता था, लेकिन अचानक मुझे इतनी कमजोरी महसूस हुई कि मुझे बिस्तर पर जाना पड़ा। जब से बिस्तर पर आयी हूँ तब से मैं जाग रही हूँ और कल के बारे में ही सोच रही हूँ कि कल क्या होगा! समय-समय पर मैं ऊपर जाकर पता करने के लिए उतावली हो जाती हूँ। लेकिन मैं बहुत कमजोर महसूस करती हूँ, और यह भी हो सकता है कि गलियारे के प्रकाश में कोई जागा हुआ इंसान निकल आए और मुझसे पूछे : "आप यहाँ क्या कर रही हैं?" और यह सवाल, अगर मेरे पिछले पड़ोसियों ने पूछा तो, मुझे इसका डर इतना सताने लगा कि वहीं पड़ी रही, हालांकि मुझे पता है कि दिन के उजाले में ऊपर जाना कितना कठिन होगा।
बगल वाले कमरे से मैं उस छात्र की साँसें सुन रही थी जो मेरे साथ रहता है ; वह मरीन इंजीनीयरिंग की पढ़ाई कर रहा है और वह लगातार गहरी खर्राटे ले रहा है। उसे पता नहीं है कि क्या हुआ है! उसे यह भी पता नहीं है कि मैं यहाँ जाग रही हूँ। मैं सोच रही हूँ कि क्या मैं उससे कल पूछूंगी। वह कभी-कभार ही बाहर जाता है, और संभवतः वह घर में ही था जब मैं संगीत कार्यक्रम में थी। उसे पता होना चाहिए। शायद मैं सफाई वाली महिला से भी पूछूंगी।
नहीं। मैं नहीं पूछूंगी। मैं किसी से कैसे पूछ सकती हूँ अगर कोई मुझसे नहीं पूछता है? कैसे मैं किसी के पास जाऊँ और पूछूँ, "क्या आप जानते हैं कि मैं कल तक एक मंज़िल ऊपर रहती थी?" और कोई इसके जवाब में क्या कहेगा? मुझे उम्मीद है कि कोई मुझसे पूछेगा : "माफ़ कीजिये, लेकिन आप तो कल तक एक मंजिल ऊपर रहती थी?" लेकिन यदि मैं अपनी सफाई वाली महिला को जानती हूँ, वह नहीं पूछेगी। या मेरे पूर्व पड़ोसियों में से कोई : "क्या आप कल तक हमारे बगल में नहीं रहती थीं?" या मेरे नए पड़ोसियों में से कोई। लेकिन अगर मैं उन्हें जानती हूँ, उनमें से कोई नहीं पूछेगा। और अब मुझे ऐसा बर्ताव करना होगा जैसा कि मैं जीवन भर एक मंजिल नीचे ही रह रही हूँ। मैं सोच रही हूँ क्या हुआ होता अगर मैं कॉन्सर्ट में नहीं गयी होती। लेकिन यह प्रश्न भी आज से अन्य सभी प्रश्नों की तरह बेकार हो गया है। मुझे सोने की कोशिश करनी चाहिए।
मैं अब तहखाने में रहती हूँ। इसका एक फायदा यह है, कि मेरे सफाई वाली को कोयला के लिए नीचे नहीं आना पड़ता है। कोयला हमारे बगल में ही है, और सफ़ाईवाली इससे काफी संतुष्ट है। मुझे संदेह है कि वह इसलिए नहीं पूछती क्योंकि उसका काम अब आसान हो गया है। उसको सफाई में अच्छी दक्षता हासिल नहीं है ; निश्चित रूप से नहीं। लेकिन उससे इसका उम्मीद करना काफी हास्यास्पद होगा कि फर्नीचर से कोयले की धूल प्रति घंटा साफ करे। उसके चेहरे से लगता है कि वह काफी संतुष्ट है। वह छात्र हर दिन सिटी बजाते सीढ़ियों से ऊपर जाता है और शाम को वापस नीचे आता है। मैं उसे रोज रात में नियमित रूप से खर्राटे लेते सुनती हूँ। मेरी इच्छा है कि वह किसी दिन कोई लड़की लाएगा, जिसको अजीब लगे कि वह तहखाने में रहता है, लेकिन वह किसी लड़की को लाता ही नहीं है। और किसी को कोई फर्क भी नहीं पड़ता। कोयलाखनक, जो अपनी बोझ गड़गड़ाहट के साथ तहखाने में बायीं और दायीं ओर उतारते हैं, जब मैं उन्हें सीढ़ियों पर मिलती हूँ। टोपी उतारकर मुझे हैलो कहते हैं।
अक्सर वे बोरे नीचे रख देते हैं। और इंतज़ार करते हैं, जब तक मैं उन्हें पास नहीं कर जाती। चौकीदार भी मुझे मित्रवत हैलो कहता है, जब कभी मैं दरवाजे से बाहर जाती हूँ। एक पल के लिए मैंने सोचा था कि वह पहले से ज्यादा दोस्ताना अभिवादन करता है, लेकिन मेरी सोच एक कल्पना मात्र थी। जब कोई तहखाने से बाहर निकलता है तो यह बहुत मित्रवत लगता है।
मैं गली में रुक जाती हूँ। और कोयले की धूल को अपने कोट से हटाती हूँ। लेकिन फिर भी कुछ कोट पर रह ही जाती है। यह मेरा सर्दियों का कोट है, और यह काला भी है। ट्राम में मुझे आश्चर्य होता है कि कंडक्टर मुझसे दूसरे यात्रियों की तरह व्यवहार करता है और मेरे आस-पास कोई सीट भी नहीं बदलता है। मैं सोचती हूँ, क्या होगा जब मैं नाला में रहूँगी! धीरे-धीरे मैं इस सोच के साथ जीना सीख रही थी।
जबसे मैं तहखाने में रहती हूँ, मैं अक्सर शाम को संगीत कार्यक्रम में फिर से जाती हूँ। अधिकांश शनिवार को, लेकिन सप्ताह के दौरान भी कई बार। आखिरकार वहां नहीं जाकर, मैं अपने आप को तहखाने में रहने से भी तो नहीं रोक पाती हूँ। जिस तरह से मैं अब अपने आप को कोसती हूँ मुझे कभी-कभी इस पर आश्चर्य होता है। मुझे उन सारी चीजों पर आश्चर्य होता है जिनके वजह से मेरे इस गिरावट की शुरुआत हुई।
शुरुआत में मैं सोचती थी। अगर मैं संगीत कार्यक्रम में नहीं गयी होती या शराब पीने! मैं अब ऐसा नहीं सोचती हूँ। जब से मैं तहखाने में रहती हूँ, मैं पूरी तरह से आश्वस्त हूँ। और शराब भी पीती हूँ, जब भी मुझे इच्छा होती है। नाला के अंदर गन्ध से डरने का कोई मतलब नहीं बनता। क्योंकि अगर मुझे उस गन्ध से डर लगता है, तो फिर मुझे पृथ्वी के भीतर वाले आग से भी डरना शुरू करना होगा। और भी बहुत कुछ है, जिससे मुझे डरना होगा। और यहां तक कि अगर मैं हमेशा घर में ही रहती हूँ और एक कदम भी चलकर गली में नहीं गयी, तो मुझे एक दिन नाला में रहना ही होगा। मैं बस सोच रही हूँ कि मेरी कामवाली इस बारे में क्या कहेगी! किसी तरह उसको इन कामों से अवकाश मिल जाएगा। और वह छात्र नाला के छिद्र से सिटी बजाते बाहर जाएगा और अंदर आएगा।
मैं यह भी सोचती हूँ कि संगीत कार्यक्रम और मेरे शराब के साथ क्या होगा! और क्या उस छात्र को अचानक लगेगा कि उसे किसी लड़की को लाना है! मैं इस विषय में भी सोचती हूँ कि क्या नाला में मेरे कमरे समान होंगे। अब तक तो ऐसा ही है, लेकिन नाला में घर नहीं होंगे। और मैं कल्पना भी नहीं कर सकती कि धरती के नीचे कमरे और रसोईघर में, उस छत्र के सलोन और कमरे में बँटवारा संभव है।
लेकिन अभी तक सब कुछ अपरिवर्तित है। लाल दीवार की खिड़की और उसके सामने छतरी, रसोई के तरफ का गलियारा, दीवार पर हर तस्वीर, पुरानी लाउंज, कुर्सियां और किताबों का रैक- उसके अंदर की हर किताब, बाहर लंच बॉक्स और खिड़कियों पर पर्दे। खिड़कियाँ, हालांकि खिड़कियाँ बदल गयी हैं। लेकिन उस समय मैं आमतौर पर रसोईघर में रहती थी, और रसोई की खिड़की जमीन तक पहुँच चुकी थी। यह हमेशा प्रतिबंधित था। मेरे पास कोई कारण नहीं जिसके वजह से मैं चौकीदार के पास जाऊँ, बदले हुए दृश्य के कारण तो और भी नहीं। वह मुझे ठीक से बता सकता है कि अपार्टमेंट का किराया उसके सुंदरता से नहीं बल्कि उसके आकार से तय किया जाता है। वह कह सकता है कि मैं अपनी नज़र अपने पास रखूँ।
और मैं उसके पास भी नहीं जाऊँगी, मुझे खुशी होती है जब तक वह मैत्रीपूर्ण रहता है। मैं केवल यही कह सकती हूँ कि खिड़कियां आधी छोटी हैं, लेकिन फिर वह मुझे फिर से जवाब दे सकता है कि तहखाने में बड़ी खिड़कियाँ संभव नहीं हैं। और उसके बाद मेरे पास कोई जवाब नहीं होगा। मैं यह भी नहीं कह सकती कि मैं इसकी आदी नहीं हूँ, क्योंकि मैं थोड़े दिन ही चौथी मंजिल पर रही हूँ। मुझे तीसरी मंजिल पर ही शिकायत करनी चाहिए थी अब तो बहुत देर हो चुकी है।
अनुवादक – शैलेश कुमार राय।
शोधार्थी, जर्मन भाषा
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली
साभार : अपनी माटी