वायरस (विज्ञान कथा) : जयन्त विष्णु नार्लीकर

Virus (Story in Hindi) : Jayant Vishnu Narlikar

बाल्टीमोर में जॉन्स हॉकिंस यूनिवर्सिटी का खुशनुमा कैंपस। कैंपस में ही एक मामूली सी दिखनेवाली इमारत और इस इमारत में है स्पेस टेलीस्कोप साइंस इंस्टीट्यूट, जिसे सन् 1981 में बनाया गया था। इस इंस्टीट्यूट ने हबल स्पेस टेलीस्कोप को विकसित करने में अहम भूमिका निभाई थी। अनेक बार टालने के बाद आखिरकार सन् 1990 में हबल टेलीस्कोप को अंतरिक्ष में छोड़ा गया था। स्पेस टेलीस्कोप साइंस इंस्टीट्यूट अब 75 साल का हो चुका है और हबल श्रृंखला में तीसरी पीढ़ी के टेलीस्कोप एच.एस.टी. III के विकास में जुटा हुआ है। सन् 1609 में गैलीलियो ने खगोलशास्त्र का टेलीस्कोप से परिचय कराया था, जिससे ब्रह्मांड को देखने के कार्य में क्रांति आ गई थी। पहले हबल टेलीस्कोप को बनाते समय भी वैज्ञानिकों ने आशा प्रकट की थी कि इससे भी वैसी ही क्रांति आ जाएगी। उम्मीद को याद कर जूलियो रैंजा के चेहरे पर मुसकान आ जाती थी। वास्तव में हबल टेलीस्कोप अंतरिक्ष के अनेक रहस्यों का पर्दाफाश करने में एक बड़ा उपकरण साबित हुआ। इसके आकार और तकनीकी की तुलना में गैलीलियो का एक इंच का टेलीस्कोप बच्चा लगता था और आज एच.एस.टी. ||| तुलना करने पर 1990 का हबल टेलीस्कोप भी बाबा आदम के जमाने का लगता है। तकनीकी की तीव्र गति यात्रा के कारण ही यह मुमकिन हो पाया है।

रैंजा अपने टर्मिनल के सामने बैठा हुआ था। टर्मिनल, जो एक बड़े परदे की तरह था, की-बोर्ड पर एक कमांड द्वारा ही तुरंत उसको कार्यालय के रूप में बदला जा सकता था। इस परदे की सफाई और रेजलूशन के आगे पिछली सदी के अंत में उपलब्ध सबसे अच्छे मॉनीटर भी शरमा जाएँ। की-बोर्ड पर कुछ और  बटन दबाकर रँजा एच.एस.टी. III से संपर्क कर सकता था और इस वक्त वह ठीक यही कर रहा था। उसका उद्देश्य था बृहस्पति के आस-पड़ोस में घट रही घटनाओं को वास्तविक रूप में देखना।

दोपहर बाद करीब तीन बजे का वक्त था। 'रात्रिकालीन आकाश' की धारणा अंतरिक्ष टेलीस्कोपों के आगमन से इतिहास बन चुकी थी। अब खगोलीय प्रेक्षणों के लिए रात का इंतजार नहीं करना पड़ता था। दिन हो या रात, किसी भी वक्त प्रेक्षण कर सकते थे, क्योंकि टेलीस्कोप वायुमंडल से ऊपर अंतरिक्ष में ऐसी जगह पर लगाया गया था जहाँ हमेशा अँधेरा रहता था। केवल सूर्य के आस-पास ही रोशनी का छोटा सा घेरा नजर आता था। उतनी ऊँचाई पर वायुमंडल की गैसों और धूल-कणों का अभाव रहता है, जो वायुमंडल की रोशनी को छितरा देते हैं और जिसके कारण आसमान नीला नजर आता है। इस तरह यह प्रेक्षक के लिए फायदे की बात थी।

रैंजा का टर्मिनल फोटोनिक तकनीकी से चलता था। इस तकनीकी ने बीसवीं सदी की इलेक्ट्रॉनिक तकनीक को काफी हद तक विस्थापित कर दिया था। इलेक्ट्रॉनों की तुलना में फोटॉन से काम लेना कहीं अधिक सुविधाजनक था। एक बार आप जान जाएँ कि इनसे कैसे काम लिया जाता है, तो ढेर सारी सूचनाएँ पल भर में एकत्रित कर सकते थे। रैंजा के आगे कॉपी के आकार का टर्मिनल बॉक्स आधी सदी पहले आनेवाले सुपर-कंप्यूटरों के मुकाबले कहीं ज्यादा कार्यकुशल था। 'बीप-बीप', टर्मिनल से आनेवाले खतरों के संकेतों से रैंजा की नींद उड़ गई। भारी इतालवी खाना खाने से वह कुछ उनींदा-सा हो रहा था। कंप्यूटर उसे यू.एफ.ओ. की मौजूदगी के बारे में चौकन्ना कर रहा था। यू.एफ.ओ. यानी उड़नेवाली अनजानी चीजें, यह उसका अपना प्रोग्राम था जो संकेत भेज रहा था। एक समय था जब कोई अनुभवी प्रेक्षक आसमान में असाधारण वस्तु को केवल देखकर ही पहचान सकता था, जो आम आदमी की नजर में नहीं आती। ऐसे ही प्रेक्षकों ने बिलकुल सही पहचाना था कि आसमान में अस्पष्ट-सी दिखनेवाली चीज असल में धूमकेतु था या कोई चमकदार धब्बा अथवा असल में कोई फटता हुआ सितारा! लेकिन मनुष्य की आँखों और उनकी पहचानने की शक्ति की भी सीमाएँ होती हैं, जिन्हें यांत्रिक, इलेक्ट्रॉनिक और अब फोटोनिक डिटेक्टर आसानी से पार कर सकते हैं। इसलिए रैंजा ने एक डिटेक्टर प्रणाली स्थापित की थी, जो किसी ऐसे यू.एफ.ओ. को भी खोज निकाले, जिसे सबसे अच्छी तरह प्रशिक्षित मानव प्रेक्षक भी न देख सके।

बीप-बीप कर आनेवाले संकेत बता रहे थे कि आसमान में कोई अनजाना सा घुसपैठिया है। रैंजा ने कमांड दी- 'सर्च डी डी।' (SEARCH DD) इस कमांड से कंप्यूटर सक्रिय हो गया और आसमान में घुसपैठिए की तलाश करने लगा। जल्द ही जूलियो के सामने परदे पर दिख रही आसमान में एक खिड़की खुल गई। उस चौरस खिड़की के भीतर घुसपैठिए की तलाश कर ली गई थी। अब जूलियो ने 'एम' वाला बटन दबाया, यानी कि घुसपैठिए को बड़ा करके दिखाओ। चौरस खिड़की ने फैलकर पूरे परदे को घेर लिया, लेकिन उसके भीतर वैसी ही एक छोटी खिड़की और खुल गई।

जूलियो ने दोबारा बटन दबाया। उसके चेहरे पर जिज्ञासा के भाव साफ झलक रहे थे। बटन दबाते ही दूसरी खिड़की भी पूरे परदे पर फैल गई। अब परदे पर एक-दूसरे की ओर मुँह किए चार तीर नजर आने लगे। इनमें एक पूरब- पश्चिम वाले तीरों की जोड़ी थी और दूसरी उत्तर-दक्षिणवाले तीरों का फर्क इतना था कि चारों तीरों का मुँह एक-दूसरे की ओर था। इनके बीचोबीच कोई चीज रह-रहकर चमक रही थी। कंप्यूटर ने अपनी पूरी ताकत के साथ यू.एफ.ओ. को खोज निकाला था। इसे चारों तीरों के बीच कहीं होना चाहिए था।

मगर वह चीज अभी भी जूलियो की नजरों से ओझल थी। अब इसे बनावटी तरीकों से चमकदार बनाना था, ताकि वह नजर आ सके। उसके की-बोर्ड पर एक ओर उपकरण लगा था। उपकरण को चालू करते ही परदे पर एक रंगीन तसवीर उभर आई। जूलियो जानता था कि तसवीर में रंग कैमरे के फोटोग्राफ की तरह असली नहीं हैं। तसवीर साफ भी नहीं दिख रही थी। वे रंग असल में तीव्रता के सूचक थे। अगली कमांड में जूलियो के सामने कुछ अंक प्रकट हुए, जिनसे वह चमक की गणना कर सकता था।

उस अनजानी वस्तु की स्थिति बृहस्पति के दूसरे और तीसरे चंद्रमा के बीच में पता चली थी। क्या वह चीज बृहस्पति का ही एक और चंद्रमा था, जो बहुत छोटा होने के कारण अंत तक देखा नहीं गया था या कोई क्षुद्र ग्रह था, जो बृहस्पति के गुरुत्वाकर्षण में फँस गया? रैंजा का मन एक तीसरी संभावना पर भी विचार कर रहा था कि शायद वह चीज कोई छोटा सा धूमकेतु है। ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिनमें सूरज की ओर गमन करते धूमकेतु बृहस्पति के गुरुत्वाकर्षण में फँस जाते हैं या अपना रास्ता बदल लेते हैं।

जूलियो ने कंप्यूटर पर सभी ज्ञात धूमकेतुओं की जाँच-पड़ताल की, पर यह यू.एफ.ओ. उनमें नहीं मिला। इसका क्या मतलब है कि जूलियो ने कोई नया धूमकेतु खोज निकाला?

कॉमेट रैंजा या कॉमेट जूलियो? किसी भी नतीजे पर पहुंचने से पहले उसे किस चीज की बारीकी से जाँच-पड़ताल करनी पड़ेगी, इसलिए उसने कंप्यूटर को निर्देश दिया-'मॉनीटर डीडी।' अब टेलीस्कोप अगले 24 घंटे तक यू.एफ.ओ. के मार्ग पर कड़ाई से नजर रखेगा और शायद इस तरह वह बृहस्पति के नए चंद्रमा, जिसे जूलियस कहा जाए या एक छुद्र ग्रह एस्टीरॉयड रैंजा या कॉमेट जूलियो खोज निकाले?

रैंजा को नतीजों का बेसब्री से इंतजार होने लगा। इन तीनों में से कोई भी चीज निकली तो उसका नाम खगोलशास्त्रियों के इतिहास में दर्ज हो जाएगा। फिलहाल उसके दिमाग में कोई चौथी संभावना नहीं थी, जो कि वास्तव में सच होने जा रही थी, हालाँकि वह इसे कपोल-कल्पना ही मानता।

"मामा मिया!" 24 घंटे बाद जूलियो रँजा ने अपने कंप्यूटर पर नतीजों को पढ़ा तो उसका मुँह हैरानी से खुला रह गया।

"निगरानी की जा रही वस्तु बृहस्पति के पास से आगे निकल गई है। इसके मार्ग पर पक्की तौर पर बृहस्पति के गुरुत्वाकर्षण बल का कोई असर नहीं पड़ रहा है, इसलिए अगले चौबीस घंटों तक या तब तक जबकि इस वस्तु की गति का नियंत्रण करनेवाले बल का पता नहीं चल जाता, उसकी निगरानी की जाएगी।" जूलियो रैंजा की समझ से बाहर था कि कोई चीज बृहस्पति के इतना करीब होने के बावजूद उसके गुरुत्वाकर्षण बल से बेअसर कैसे रह सकती है! उसकी सोची हुई तीनों संभावनाएँ यहाँ गलत सिद्ध हुईं। यानी यहाँ एक चौथी संभावना है कि वह वस्तु अपनी स्वयं की ताकत से चल रही है, जो बृहस्पति के गुरुत्व बल का भी मुकाबला कर सकती है। इसका मतलब यह है कि वह चीज कोई अंतरिक्ष यान है जो अपनी शक्ति से चल रहा है।

और चौबीस घंटे के भीतर ही कंप्यूटर ने इस नई संभावना पर अपनी मुहर लगा दी। अब मामला गंभीर हो गया था। उसे आशंका थी कि कोई अंतरिक्ष यान इतना छोटा होगा कि बृहस्पति जितनी दूरी पर हबल स्पेस टेलीस्कोप एच.एस.टी. III भी उसे न देख पाए और उसी कारण से उसने इस संभावना को पहले खारिज कर दिया था। पर अब लगता है कि यह कोई विशाल अंतरिक्ष यान है या अंतरिक्ष यानों का पूरा बेड़ा। आगे के प्रेक्षणों ने इस दूसरी संभावना की पुष्टि की। कंप्यूटर ने खबर दी कि उस वस्तु ने अपना आकार बदल लिया है। मोटी गणनाओं से जूलियो ने निष्कर्ष निकाला कि उसमें करीब सौ अंतरिक्ष यान शामिल हो सकते हैं और अब वे मंगल की कक्षा के निकट पहुँच गए थे।

तो क्या वे पृथ्वी की ओर आ रहे थे? जूलियो इस नतीजे पर पहुँचा कि अब इस मामले से निपटना अकेले उसके वश की बात नहीं है। उसे अपने से ऊँचे वैज्ञानिकों को इन तमाम जानकारियों से अवगत कराना होगा। उसने कम्युनिकेटर बटन दबाया और अपनी पहचान बताई-"मैं निदेशक से बात करना चाहता हूँ, अभी! यह बेहद जरूरी है।"

एस.टी. एस.सी.आई. में काम करते हुए यह पहला मौका था जब जूलियो निदेशक से बात कर रहा था।

संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् में एक गोपनीय बैठक बुलाई गई। जब से रैंजा ने निदेशक को अपनी खोज के बारे में सूचित किया था, तब से बमुश्किल पाँच घंटे ही बीते होंगे, लेकिन उसके बाद से तमाम चीजें आनन-फानन में ही हो गईं।

सुरक्षा परिषद् में बीस सदस्य थे। हालाँकि उनके प्रतिनिधि नियमित रूप से चलनेवाली बैठकों के लिए न्यूयॉर्क में ही थे, मगर अत्यधिक संवेदनशील मसलों पर आयोजित बैठकों में राष्ट्र प्रमुखों का शामिल होना जरूरी था। यह और बात है कि विभिन्न राष्ट्र प्रमुख अपने देश में ही अपने-अपने दफ्तरों में बैठे-बैठे ऐसी बैठकों में शरीक हो सकते थे। यहाँ उन्हें डिस्टेंस कॉन्फ्रेंसिंग का लाभ मिलता था। यहाँ परदे पर इन राष्ट्र प्रमुखों की तसवीरों को जोड़-जोड़कर एक बड़ी तसवीर बनाई गई, जिसमें प्रत्येक भागीदार उसी वक्त बैठक में शरीक हो सकता था। यही परदा प्रत्येक भागीदार को अपने दफ्तर में भी दिखाई देता। इस तरह वे बैठक में ऐसे शरीक होते जैसे एक ही छत के नीचे इकट्ठा हो गए हों।

सुरक्षा परिषद् में प्रत्येक महाद्वीप से तीन-तीन सदस्य थे और कुल मिलाकर बीस सदस्य थे। ये सदस्य राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करने की बजाय राष्ट्र संघों का प्रतिनिधित्व करते थे। किसी संघ में शामिल राष्ट्र मिलकर अपने राष्ट्र प्रमुखों में से किसी एक का चुनाव करते थे। भारतीय उपमहाद्वीप से अमरजीत सिंह वर्तमान में चेयरमैन थे।

इस गोपनीय बैठक का आरंभ भी अमरजीत सिंह के इन शब्दों के साथ हुआ-"दोस्तो, अपनी परिषद् के इतिहास में हम पहली बार सुरक्षा के ऐसे मसले पर चर्चा कर रहे हैं जिसका संबंध हमारी समूची धरती से है। यह चर्चा है- बाहरी आक्रमण के बारे में। आपको ताजा घटनाक्रमों की जानकारी तो मिल ही गई होगी। कुछ घंटे पहले ही वैज्ञानिक जूलियो रँजा ने अंतरिक्ष में तैरते हुए अंतरिक्ष यानों के बेड़े के बारे में सावधान किया था। अंतरिक्ष में तैनात दूरबीन एच.एस.टी. III ने इस बेड़े को देखा था, तब से हम अपने रेडियो और शीशेवाली दूरबीनों से इस बेड़े की प्रगति पर लगातार नजर रख रहे हैं। पृथ्वी-चंद्रमा रेडियो आधार-रेखा का उपयोग कर उस तैरते हुए बेड़े के उच्च आवर्द्धनवाले नक्शे निकाले जा रहे हैं। ये तमाम विस्तृत जानकारियाँ मिलते ही हमें इनके बारे में सूचित किया जाएगा। पर हमें तब तक इंतजार नहीं करना है : हमें अपनी संभावित काररवाई के बारे में अभी से चर्चा शुरू कर देनी चाहिए।"

बैठक के नियमों के अनुसार जो कोई भी पहले लाल बटन दबा देता उसे पहले बोलने का मौका मिलता। लेकिन जिन लोगों की शारीरिक प्रतिक्रियाएँ कुछ मंद थीं, उन्हें भी बोलने का मौका देने के लिए हरे बटन लगे थे, जिन्हें दबाकर वे चेयरमैन के सामने अपनी हस्तक्षेप करने की इच्छा' को प्रकट कर सकते थे। फिर चेयरमैन उपयुक्त अवसर पर संबंधित प्रतिनिधि को अपने विचार व्यक्त करने का अवसर देता।

आज रूस के स्टारोबिंस्की ने लाल बटन सबसे पहले दबाया। उन्होंने अपनी विचारणीय मुद्रा में बोलना शुरू किया, "क्या ये लोग सीधे हमारी ओर आ रहे हैं? अगर हाँ, तो क्या हमें तनिक भी आभास है कि वे हमारे दोस्त हैं या दुश्मन? अगर हम अभी कुछ भी नहीं जानते तो इन जानकारियों को जल्द-से-जल्द हासिल करने के लिए हम क्या कर रहे हैं?"

अगर उनका रुख दोस्ताना है तो ज्यादा जानकारी हासिल करने के लिए जल्दबाजी नहीं मचानी चाहिए।" मध्य-पूर्व के अबुल हसन ने दखल दिया, "पर जब तक पक्के तौर पर पता न चल जाए, हमें अपनी फौज को चौकस कर देना चाहिए।"

"जैसा कि मैं समझता हूँ, सबसे बढ़िया हथियारों से लैस हमारी बहुक्षेत्रीय फौजें धरती से 200 किलोमीटर दूर ऐसी जगह पर तैनात हैं, जहाँ से बाहरी घुसपैठिए गुजरेंगे। हमारी फौज के पास सबसे बढ़िया हथियार हैं।" तभी रोशनी की चमक से चेयरमैन को रुकना पड़ गया। उन्होंने रिसीवर उठाया और कुछ देर सुनते रहे। उनकी गंभीरता बढ़ती जा रही थी। रिसीवर रखकर उन्होंने दोबारा बोलना शुरू किया, "हमें स्टारोबिंस्की के पहले सवाल का जवाब मिल गया। अंतरिक्ष यानों का बेड़ा मंगल के पास से अपनी रफ्तार और दिशा बदलकर सीधे पृथ्वी की ओर आ रहा है। उस बेड़े की रफ्तार भी चकरानेवाली है। अनुमान है कि इस रफ्तार से तो वे तीस घंटे के भीतर यहाँ पहुँच जाएँगे।"

स्टारोबिंस्की ने फुरती से हिसाब लगाया। धरती का कोई भी अंतरिक्ष यान इस रफ्तार का मुकाबला नहीं कर सकता था। धरती से मंगल को भेजे गए तथाकथित अत्याधुनिक उच्च तकनीकी यान ने भी यह यात्रा एक पखवाड़े में पूरी की थी।

"आप कहते हैं कि हमारी सेनाएँ अच्छी तरह हथियारों से लैस हैं। उनके पास कौन-कौन से हथियार हैं?" जर्मनी के बैटन फ्रिट्जहॉफ ने सवाल उठाया। बेशक उनका मतलब था कि फौजें किस हद तक हथियारों से लैस हैं।

चेयरमैन ने अपने नोट्स को देखा और जवाब दिया, "हमारी फौज के पास नाभिकीय हथियार हैं;प्रत्येक एक-एक मेगा टन शक्ति का और 10,000 किलोमीटर तक मार कर सकनेवाला। मेरा मानना है कि बाहरी घुसपैठियों के एक-एक जहाज से निपटने के लिए तीन-तीन हथियार हैं। लेकिन याद रखिए कि यह पहला मौका है जब शायद इनके इस्तेमाल की जरूरत.पड़े।"

"उम्मीद करनी चाहिए कि इन हथियारों पर जंग नहीं लगी होगी।" यह टिप्पणी थी अमरीका के एल्सवर्थ जॉन की। यह इस बात की ओर इशारा था कि धरती पर पिछले पच्चीस वर्षों से कोई जंग नहीं लड़ी गई थी। और धरती पर रह रही नई पीढ़ी के लिए जंग एवं झड़प इतिहास की बातें थीं।

यह बैठक करीब एक घंटे तक चली। उसके बाद बैठक स्थगित कर दी गई, इस सूचना के साथ कि आपात स्थिति की गंभीरता के मद्देनजर बैठक किसी भी समय दोबारा बुलाई जाएगी।

लेकिन दोबारा बैठक बुलाने की नौबत नहीं आई, क्योंकि चौबीस घंटों के भीतर ही अंतरिक्ष यानों का बेड़ा धरती से केवल 20, 000 किलोमीटर के दायरे में आ गया। अब भी वह आसमान में तैनात धरती की सेनाओं के घातक हथियारों की मार से बाहर सुरक्षित था। अंतरिक्ष यानों ने खुद को एक विशालकाय त्रिकोण में तैनात कर लिया। इस त्रिकोण की नोक पर उनमें से सबसे प्रभावशाली यान था। धरती के यानों में टेलीविजन के परदों पर यह तसवीर साफ दिखाई दे रही थी। एलन ब्रॉडबेंट, जिन्हें सभी ए.बी. कहते थे, धरती के तमाम अंतरिक्ष यानों के कमानदार थे। वे चुपचाप त्रिकोण को बनते देख रहे थे। अब क्या होगा? कि तभी इंटरकॉम बज उठा। उन्होंने बटन दबाया।

"ए बी, मैं वायरलेस रूम से जॉनी बोल रहा हूँ, ओवर!"
उस तनावपूर्ण माहौल में भी ए बी को मजाक सूझा यह शब्द 'ओवर', जो बाबा आदम के जमाने से वायरलेस संवाद की प्रगति से चिपका हुआ है।

"बोलते जाओ, मैं सुन रहा हूँ, ओवर!"

"वे 21 सें.मी. वेवबैंड पर कुछ संदेश भेज रहे हैं। कोई कोलाहल नहीं, बिलकुल साफ; लेकिन वे क्या कह रहे हैं, मुझे एक भी शब्द समझ में नहीं आ रहा है, ओवर!"

"तुम्हें क्यों कर समझ आने लगा? तुम क्या सोचते हो कि वे तुम्हारी ऑक्सफोर्ड अंग्रेजी बोलेंगे!" एलन जॉनी की ऑक्सफोर्ड डिग्री को लेकर उसकी टाँग खींचने का कोई भी मौका ए बी हाथ से जाने नहीं देते थे। उन्होंने आगे कहना जारी रखा, अलबत्ता तुम उनके संदेशों को रिकॉर्ड करते रहो। मेरा सुझाव है कि लिटिल मास्टर को बुला लो और उसे संदेश सुनाओ।"

लिटिल मास्टर शिवरामकृष्णन का कद मुश्किल से पाँच फीट होगा। गूढ- से-गूढ़ सूचनाओं को समझने में वह माहिर था। कुछ लोगों का कहना है कि उसके कंधों पर सिर नहीं बल्कि सुपर कंप्यूटर रखा है। अंतर केवल इतना है कि यह सोच सकता है।

जॉनी ने लिटिल मास्टर को तलब किया। छह फुटा जॉनी लिटिल मास्टर से झुककर बात करता था। अपने साथियों की तरह ही वह भी लिटिल मास्टर की लाजवाब बौद्धिक क्षमता का कायल था।

"शिवा, तुम्हारे दिमाग के लिए अच्छी-खासी खुराक है।" संदेशों को रिकॉर्ड कर रहे उपकरण की ओर इशारा करते हुए जॉनी ने कहा।

"मैं तो समझा था कि आपने मुझे अपने खिलौनों की साफ-सफाई करने के लिए बुलाया है।" शिवा ने कंप्यूटर का मजाक उड़ाते हुए कहा।

"यह कोई मामूली मसला नहीं है। ये संदेश एलियन लोगों से मिल रहे हैं। तुम हमें बताओगे कि वे क्या कह रहे हैं।"

"वाह ! यह है न काम की बात। चलो, दिखाओ मुझे।" शिवा की-बोर्ड के सामने जमकर बैठ गया।

अगले एक घंटे तक लिटिल मास्टर चुपचाप अपने काम में डूबा रहा। एक बार उसने जॉनी से ट्रांसमीटर चालू कर अंतरिक्ष में इंतजार कर रहे एलियन लोगों तक एक संदेश भेजने को कहा। उसके बाद वह कंप्यूटर के परदे पर गोले जैसे बनाने लगा।

'क्या? तुम्हारा दिमाग फिर गया?" जॉनी ने पूछा।
"जरा रुको और देखो तो सही।" शिवा ने जवाब दिया।

थोड़ी देर इंतजार करने के बाद जॉनी अपने नियमित कामकाज में जुट गया। बीच-बीच में वह शिवा पर उड़ती नजर डाल लेता। लगता था जैसे शिवा गहरी नींद में डूबा हो। क्या वह ध्यानमग्न था?

अचानक ही करीब आधे घंटे बाद कंप्यूटर के परदे पर जैसे जान आ गई हो। इस बार जो संदेश था, जॉनी उसे समझ सकता था, क्योंकि यह अंग्रेजी में था-'अभिवादन धरतीवासियो, हमारे पास तुम्हारे लिए संदेश है।'

अब सुरक्षा परिषद् की दूसरी बैठक बुलाई गई। सभी के मन में एक अजीब किस्म का डर समाया हुआ था। बैठक बुलाते वक्त चेयरमैन ने सबको चेता दिया कि हालात अच्छे नहीं हैं। दरअसल, हालात विनाश के कगार पर पहुँच चुके थे सभी राष्ट्र प्रमुखों के अपने-अपने आसन पर बैठ जाने के पश्चात् चेयरमैन ने बोलना शुरू किया-"दोस्तो, हमारे सामने अजीबो-गरीब हालात बन गए हैं। अपने पूरे अस्तित्व के दौरान धरती पर मनुष्य ने ऐसे हालात नहीं देखे थे। आप सभी जानते हैं कि एलियन अंतरिक्ष यानों का पूरा बेड़ा हमारे सामने खड़ा है। वे हमसे क्या चाहते हैं ? पिछले तीन घंटों से वे 21 सें.मी. वेवबैंड पर संदेश भेज रहे हैं। हालाँकि उनके संदेश साफ-साफ सुनाई दे रहे हैं; पर हमारा स्टाफ उनकी भाषा नहीं समझ पा रहा था, इसलिए उन्होंने हमारे बेहतरीन विशेषज्ञ डॉ. शिवरामकृष्णन को बुलाया। गूढ़ संदेशों को समझने में उनका कोई जवाब नहीं है। उनके साथी उन्हें 'लिटिल मास्टर' के नाम से पुकारते हैं।

"अपने आम तरीकों को नाकामयाबी के साथ आजमाने के बाद लिटिल मास्टर के दिमाग में शानदार विचार आया। उन्हें महसूस हुआ कि गूढ़ संकेत भेजनेवालों के इतिहास, संस्कृति और पर्यावरण के बारे कुछ जानने से बात बन सकती है। पर चूँकि उन एलियन के बारे में तो ये सब जानकारियाँ नहीं थीं, इसलिए उनका तरीका विफल हो ही जाता। तभी उन्हें खयाल आया कि क्यों न इन एलियन को अपनी भाषा सिखाई जाए!

'इसलिए उन्होंने पूरा विश्वकोश, एक बड़ा शब्दकोश और तसवीरवाली एक बड़ी सी किताब, जिसमें तसवीरों के नाम और अन्य जानकारियाँ दी गई थीं, हमारे ट्रांसमीटर के जरिए उन एलियन को मेल कर दी। अपने बेहतरीन दिमाग और बेहतर तकनीकी के बल पर वे बेशक इस जानकारी से कुछ काम की चीजें  निकाल सकते थे, इसलिए लिटिल मास्टर सब्र के साथ उनके उत्तर का इंतजार करने लगे।

"परंतु उन्हें लंबा इंतजार नहीं करना पड़ा। करीब आधे घंटे के भीतर ही पहले अंग्रेजी लिखित और फिर मौखिक संदेश आने लगे। लेकिन शुरुआती अभिवादनों और शुभेच्छाओं के बाद उन्होंने जो इरादे जाहिर किए उन्हें नेक तो नहीं कहा जा सकता है।

"हमारे कमांडर एलन ब्रॉडबेंट यानी ए बी ने उनके अभिवादनों का जवाब दिया और उनसे उनके ठिकाने, स्थिति एवं धरती के पास आने का कारण पूछा तो उन्हें ये सूचनाएँ मिलीं-वे मैंडा नामक ग्रह से आए हैं, जो मिराड नामक तारे का चक्कर लगाता है। इस तारे को हम 'बर्नार्ड तारे' के नाम से जानते हैं। यह हमसे छह प्रकाश वर्ष की दूरी पर है। हमारे एच.एस.टी. || ने ही करीब बीस साल पहले उस ग्रह को खोजा था। इस ग्रह तक अंतरिक्ष यान भेजने की योजना भी बनाई थी। लेकिन खर्चीला होने के कारण उसे ताक पर रख दिया गया। इस ग्रह तक की यात्रा बहुत लंबी है और उस वक्त की तकनीकी सीमा से कहीं बाहर थी।

'लेकिन पिछली दो सदियों से हमने जो उन्नति की, उस पर मैंडावासियों ने अपने ग्रह से पूरी निगरानी रखी। अपने प्रेक्षणों के आधार पर उन्होंने तय किया कि यहाँ आने का एकदम सही समय है। धरती के पच्चीस साल के बराबर समय में उन्होंने यहाँ तक की यात्रा पूरी की है।

"यह समय मैंडा पर औसत जीवन काल का करीब आठवाँ भाग है। वे मिराड से प्राप्त की गई ऊर्जा पर जिंदा रहते हैं। यही ऊर्जा उस बेड़े को चला रही है, जो वे यहाँ लेकर आए हैं। रास्ते में उन्होंने कुछ ऊर्जा बृहस्पति से भी ली। इन सबको देखकर लगता है कि ज्ञान और ऊर्जा-स्रोतों के लिहाज से वे हमसे कहीं आगे हैं। उनके मुकाबले हम अभी उन्नीसवीं सदी के शुरुआती दौर में ही हैं। "उनका इस धरती पर स्वागत कर हमें खुशी ही होती; पर बदकिस्मती से वे यहाँ पर कब्जा जमाने के इरादे से आए हैं। वे हमारी धरती को अपने जैविक परीक्षणों के लिए इस्तेमाल करना चाहते हैं। इस मकसद से वे चाहते हैं कि हम अफ्रीका महाद्वीप को पूरी तरह खाली कर दें। अगर हमने ऐसा किया और उस इलाके से दूर रहे तो वे भी वादा करते हैं कि वे हमसे छेड़छाड़ नहीं करेंगे।

"उन्होंने हमें विचार-विमर्श करके जवाब देने के लिए सात दिनों का समय दिया है। अगर हम मान गए तो ठीक, वरना"

इन शब्दों में छिपी धमकी किसी भी साफ शब्द से ज्यादा साफ थी। कुछ देर तक सारे प्रतिनिधि खामोश बैठे रहे, जैसे इन शब्दों में छिपे मतलब को हजम करने की कोशिश कर रहे हों। अंत में मध्य अफ्रीका के प्रतिनिधि संडे वांपा ने बोलना शुरू किया, "तो हमें एक बार फिर से दो सदी पहलेवाले औपनिवेशिक दिनों में फेंका जा रहा है। इस बार हमें गुलाम बनानेवाली ताकतें दूसरे ग्रह से आई हैं। हमारी भारी-भरकम अंतरिक्ष सेना इस पिद्दी से बेड़े को नष्ट क्यों नहीं कर पा रही है?"

"हमें अपने कमांडर से पूछना चाहिए।" चेयरमैन ने कुछ बटन दबाए और सभी प्रतिनिधियों के सामने मौजूद परदों पर ए बी प्रकट हुआ। चेयरमैन ने उसे वांपा के विचारों से अवगत कराया और उससे उसकी प्रतिक्रिया माँगी ए बी खोखली सी हँसी हँसा और बोला, "मि. वांपा, मैं आपके गुस्से से सहमत हूँ। लेकिन आपका सुझाव मुझे मंजूर नहीं। इन बाहरी दुनिया के लोगों की कद-काठी बहुत कमजोर है, लेकिन उनके सिर बहुत बड़े-बड़े हैं। इसका कारण यह हो सकता है कि उनका दिमाग हमसे ज्यादा बड़ा और दक्ष है। वे शारीरिक श्रम करने के आदी नहीं हैं। उन्होंने हमारे मिसाइल छोड़नेवाले सभी रॉकेटों को बेकार कर दिया है। हम अभी यह पता लगा रहे हैं कि उन्होंने बिना किसी प्रयास के ऐसा कैसे किया? पक्के तौर पर उनकी सूचना-प्रौद्योगिकी हमसे कहीं आगे है; इसलिए इस बात का तो सवाल ही नहीं उठता कि हम उनका बाल भी बाँका कर सकें।"

"और अगर हम उनकी शर्ते मान लें तो?" स्टारोबिंस्की ने पूछा। "उन्होंने अभी जाहिर नहीं किया है कि वे क्या करेंगे। लेकिन उनकी ताकत देखकर लगता है कि हमारे पास कोई और चारा नहीं है।"

"तो क्या हम कायरों की तरह उनकी शर्ते मान लें?" चीन के ली झाओ ने पूछा। आमतौर पर झाओ शांत रहता था, लेकिन इस वक्त वह गुस्से में उबल रहा था।

चेयरमैन ने बीच में ही टोका, "अभी हमारे पास सात दिनों का समय है। कल हमारे जिनेवा कार्यालय में मैंडा के तीन प्रतिनिधि हमसे मिलेंगे। यह फैसला करने के लिए कि क्या किया जा सकता है। अभी भी मोल-भाव करने की काफी गुंजाइश है।"

"वे अपनी शर्ते हम पर थोपने जा रहे हैं और वे शर्ते हमें माननी ही पड़ेंगी!" झाओ ने तीखे अंदाज में कहा।

"हो सकता है कि हम इन सात दिनों में अपनी इस समस्या का कोई समाधान ढूँढ़ लें।" चेयरमैन ने संयत होने की नाकामयाब कोशिश की। उन्होंने ए बी से पूछा,. "ए बी, क्या तुम्हारे पास कोई सुझाव है?"

श्रीमान, मनुष्य इस ब्रह्मांड का सबसे बड़ा बुद्धिमान प्राणी नहीं रह गया है। लेकिन मनुष्य की समझदारी पर मुझे अब भी भरोसा है। हमें कोशिश जारी रखनी चाहिए।" ए बी ने उत्तर दिया। हालाँकि उसके पास किसी तरह का कोई तरीका नहीं था कि इसे कैसे हल किया जाए!

"एक सवाल है, श्रीमान चेयरमैन!" बैरन फीट्जऑफ ने पूछा।
"हाँ बैरन, बोलो!"

"अभी तक हमने इस घटनाचक्र से मीडिया को दूर रखा है। लेकिन मेरा सुझाव है कि हम सच्चाई बताते हुए एक औपचारिक प्रेस रिलीज जारी कर दें। मगर उसमें ऐसे शब्द रखें जिससे जनता में भगदड़ न मच जाए।'

"मैं बैरन फ्रीट्जऑफ के सुझाव का समर्थन करता हूँ।" ऑस्ट्रेलियाई प्रतिनिधि ने कहा।

'ठीक है। हम अपनी पूरी कोशिश करेंगे; पर मुझे कोई खास उम्मीद नहीं है।" चेयरमैन ने कहा और प्रेस रिलीज लिखवाने लगा। उन तनावपूर्ण क्षणों में भी सदस्य चेयरमैन की भाषा व शैली की प्रशंसा किए बिना नहीं रह सके।

'धरती पर दूसरे ग्रह के प्राणियों का आक्रमण।'

'मनुष्य की नस्ल अपने पूरे अस्तित्व पर गंभीर खतरे का सामना कर रही है।' वगैरह-वगैरह। एक बार तो चीजों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने की मीडिया की कलाबाजी भी सच्चाई को उजागर करने में कम पड़ गई। ऐसी सच्चाई, जिससे कुछ मुट्ठी भर लोग ही परिचित थे। अलबत्ता इसके बाद से विशेषज्ञों और जानकारों के बीच लंबी चर्चाओं का सिलसिला शुरू हो गया कि आगे क्या होगा?

चर्चा के लिए तीन मैंडावासियों को छिपाकर ले जाने की जिम्मेदारी ए बी को सौंपी गई। उसने यह काम इतनी सफाई से किया कि मीडिया के लोगों को कुछ भी पता नहीं चला। यह बात अलग है कि बातचीत में उसकी कोई भूमिका नहीं थी।

पाँच घंटे तक बातचीत चलती रही। उसके बाद ए बी को सभागार में बुलाया गया। सुरक्षा परिषद् के सदस्य दस मीटर लंबी मेज के एक तरफ बैठे थे और उनके सामने बैठे थे तीन मैंडावासी। तीन मैंडावासी बीस धरतीवासियों पर भारी पड़ रहे थे और तुरुप के सभी पत्ते उनके हाथों में थे। बातचीत में शामिल हुए बिना ए बी इस बात को भाँप गया।

चेयरमैन ने मेज के एक सिरे पर उसके लिए लगाई गई खाली कुरसी की ओर इशारा करते हुए कहा, "बैठो ए बी, और सुनो कि अंत में हम किस नतीजे पर पहुँचे हैं।"

चेयरमैन ने बोलना जारी रखा। मगर उनके साथियों के चेहरों से ए बी ने अनुमान लगाया कि जो कुछ भी सहमति हुई है, वह दरअसल फिजूल की बात है। "मैंडावासी अफ्रीका पर चरणबद्ध तरीके से नियंत्रण स्थापित करने को सहमत हो गए हैं, एक ही बार में नहीं। महाद्वीप को चरणों में खाली किया जाएगा, पूरे दो साल में।"

'क्या समझौता है !' ए बी ने मुँह बिचकाते हुए सोचा और शर्तों को सुनता रहा।

"पहले सात दिनों में वे नील घाटी माँगते हैं, ताकि वहाँ अपने बेड़े को उतार सकें। आगे का काम सुनियोजित और समय सारणी के अनुसार पूरा किया जाएगा। हमारी तरह वे भी इस बात पर चिंतित हैं कि इतनी बड़ी आबादी को अच्छी तरह से और बिना किसी परेशानी के दूसरी जगह बसाया जाए। लेकिन यह पक्का करने के लिए कि हम अपनी ओर से समझौते का पालन करने में कोई कोताही न बरतें, मैंडावासियों ने दो बंधकों की माँग रखी है।" यह कहकर चेयरमैन चुप हो गए। जाहिर है कि अब कोई अप्रिय बात आ गई थी, जिसे वे ए बी को बताने में हिचक रहे थे।

चेयरमैन ने खखारकर गला साफ किया और आगे बोलना शुरू किया- "पहले बंधक के रूप में वे शिवरामकृष्णन को चाहते हैं। जिस तरीके से उसने उनसे संपर्क स्थापित किया उससे वे बेहद प्रभावित हैं।"

'और दूसरे के लिए?" ए बी को लगा कि वह जवाब जानता है और शायद इसीलिए उसे वहाँ बुलाया गया था।

"तुम स्वयं ! वे तुम्हारी नेतृत्व-क्षमता से प्रभावित हैं। कल सुबह ठीक आठ बजे वे शिवा और तुम्हारे लिए एक अंतरिक्ष यान भेज देंगे।"

इन शब्दों के साथ चेयरमैन ने इशारा किया कि बैठक खत्म हो गई। मैंडावासियों ने भी सिर हिलाया।

"घुटने टेक दिए। हमारी मानव जाति में जरा भी साहस नहीं है, बिलकुल भी संघर्ष की क्षमता नहीं बची है।" शिवा ने तीखे शब्दों में कहा, जब उसे इस एकतरफा बातचीत की सूचना दी गई।

पर ए बी सहमत नहीं था-"देखो शिवा! उन्होंने सहज ही हमें निहत्था बना दिया। हम उन्हें किसी भी तरीके से नष्ट नहीं कर सकते हैं, और मुझे भी इस एकतरफा जंग में शहीद होने का शौक नहीं चढ़ा है। हाँ, अगर हम जिंदा रहे तो कुछ कर भी सकते हैं।"

"हाँ, गुलामों की तरह जिंदा रहने की उम्मीद तो कर ही सकते हैं।" "एक पल के लिए सोचो तो सही! हो सकता है, आखिरकार हमें वहाँ से बाहर निकलने का रास्ता मिल जाए।"

"जैसे कि हमारे तेज दिमाग हमसे कहीं ज्यादा इन बुद्धिमान प्राणियों को मूर्ख बना देंगे।" शिवा ने कटाक्ष किया।

"बुद्धिमान भले ही हों, मगर क्या वे चालाक भी हैं ?" ए बी ने पूछा।

"ठीक है, तुम चालाक बनते रहो। हम भी देखते हैं कि तुम कहाँ तक जा पाते हो। जहाँ तक मेरा संबंध है, तो मुझे किसी मशहूर विज्ञान कथा लेखक की दो सौ या सौ साल पुरानी लिखी कहानी याद आती है, जिसे मैंने काफी पहले पढ़ा था। उसमें मंगलवासियों ने धरती पर हमला किया था। तब भी मनुष्यों में भगदड़ मच गई थी और उन्होंने जल्द ही घुटने टेक दिए थे।" शिवा ने कहा।

"वह लेखक था एच.जी. वेल्स। परंतु कहानी का अंत भी याद करो, अंत में मंगलवासियों की हार हुई थी।" ए बी ने याद दिलाया।

वह इसलिए, क्योंकि मंगलवासी धरती के जीवाणुओं और विषाणुओं के आगे टिक नहीं सके थे। उसमें मनुष्यों की चालाकी ने कौन सा तीर मार लिया था।" शिवा ने कहा।

ए बी ने कोई जवाब नहीं दिया। पर अचानक ही वह खामोशी के साथ कमरे में तेज कदमों से चहलकदमी करने लगा।

शिवा समझ गया कि ए बी का महान् दिमाग अपनी पूरी ताकत से काम कर रहा है।

"हाँ, शायद यह काम कर जाए, इसे आजमाना चाहिए।" अचानक ही ए बी जोर से चिल्लाया।

शिवा मुसकराया-"हाँ, अनुमान लगा सकता हूँ कि तुम्हारी सोचनेवाली मशीन किस प्रकार काम कर रही है। पर मैं बता दूं कि इससे काम बननेवाला नहीं। तुम्हारा विचार प्रारंभ से ही विफल होनेवाला है।"

"क्या काम नहीं करेगा?" ए बी ने पूछा। वह अब भी सोच-विचार में डूबा हुआ था।

"तुम यही सोच रहे हो न कि धरती के सूक्ष्म जीवों की चपेट में आकर मैंडावासी भी धराशायी हो जाएँगे। पर यह मत भूलो कि उनमें से तीन जिनेवा तक हो आए हैं और उन्हें कुछ भी नहीं हुआ। इसलिए अपने विचार को भूल जाओ।" शिवा उठकर खड़ा हो गया। अब एक घंटे बाद ही उन्हें बंधकों के रूप में अपनी भूमिकाएँ शुरू करनी थीं।

मगर ए बी प्रसन्नचित्त और तनावमुक्त लग रहा था। उसने शिवा की पीठ ठोंकी और बोला, "मैं भी इतना मूर्ख नहीं हूँ, मेरे प्यारे वॉटसन ! मेरे पास वह नायाब तरकीब है जो केवल तुम्हीं चला सकते हो। आओ, अभी भी कुछ उम्मीद बाकी है।"

और जब उसने अपनी तरकीब समझानी शुरू की तो शिवा के चेहरे की रंगत बदलने लगी। अब वह बहमी कम और खुद पर भरोसा रखनेवाला ज्यादा लग रहा था।

शिवा और ए बी को बंधक बनाकर मैंडा के अंतरिक्ष यान में ले जाया गया। वहाँ रहते हुए उन्हें दो दिन बीत गए। उनके साथ सभ्य व्यवहार किया गया। वे विशाल अंतरिक्ष यान के भीतर अपनी मरजी से कहीं भी घूम-फिर सकते थे। जाहिर है कि मैंडावासी इन बंधकों से कोई खतरा महसूस नहीं कर रहे थे ए बी ने यान के चालक के साथ दोस्ती गाँठ ली, जबकि शिवा कंप्यूटर प्रणाली के इंचार्ज जोरो का दोस्त बन गया।

तीसरे दिन शिवा ने जोरो से कहा, "जोरो, क्या तुम मुझे दिखा सकते हो कि तुम्हारा कंप्यूटर कैसे काम करता है?"

'क्यों नहीं, अगर तुम चाहो तो अभी चलें।" जोरो ने मुसकराकर कहा।

वह शिवा को अपने साथ एक आयताकार बक्से के पास ले गया, जो करीब एक मीटर लंबा, एक मीटर चौड़ा और आधा मीटर ऊँचा रहा होगा।

'यह क्या है?" शिवा ने पूछा।

हमारा कंप्यूटर। यह तुम्हारे सबसे अच्छे हाइपर कंप्यूटर से सौ गुना ज्यादा तेज है और इसमें दस लाख गुना ज्यादा मेमोरी है। हमारे बेड़े में यही सब चीजों पर नियंत्रण रखता है।"

"पूरे बेड़े पर?" शिवा ने अविश्वास से पूछा।

"हाँ! और तुम्हारे सभी लोगों से भी यही निबट रहा था। यह वास्तव में एक चमत्कार है; पर हमारे ग्रह पर इससे भी बड़ी-बड़ी प्रणालियाँ हैं।" कंप्यूटर को थपथपाते हुए जोरो गर्वीले स्वर में बोल रहा था। उसने बोलना जारी रखा- यह 'खिलौना' हमारे ग्रह पर मास्टर कंप्यूटर से जुड़ा है।"

" लेकिन वह तो छह प्रकाशवर्ष दूर है।"

"हाँ, दुर्भाग्य से हम प्रकाश से भी तेज गति से संदेश नहीं भेज सकते हैं।

मगर फिर भी यह कंप्यूटर हमारे मास्टर कंप्यूटर के संपर्क में रहता है। अगर यह आज कोई संदेश भेजे तो वह मास्टर कंप्यूटर को छह साल बाद मिलेगा-एकदम साफ और ऊँचे स्वर में। पर तुम मेरी बातों पर शक क्यों कर रहे हो?"

सवाल सुनकर शिवा के चेहरे पर संदेह के भाव तैरने लगे। उसने जल्दी से जोरो को आश्वस्त किया, "बेशक, तुम जो बता रहे हो, उस पर मुझे विश्वास है; पर" वह कुछ पलों के लिए रुका और फिर दोबारा बोला, "क्या मैं इसका इम्तहान ले सकता हूँ? मेरे पास एक समस्या है, जिसे हमारा हाइपर कंप्यूटर एक मिली सेकंड के दस लाखवें भाग में हल कर देता है। क्या मैं देख सकता हूँ कि तुम्हारा यह साथी उसे कितनी देर में सुलझाता है?"

'बिलकुल, मुझे बताओ, मैं पहले तुम्हारी प्रोग्रामिंग भाषा को अपनी भाषा में बदल दूं।" पहले तो उसकी पेशकश पर शिवा थोड़ा ठिठक गया; लेकिन फिर अपने ब्रीफकेस तक गया और उसमें से एक गोल डिस्क निकाल लाया। फिर बोला, "देखें, तुम्हारा कंप्यूटर इस छोटी पहेली को हल करने में कितना वक्त लेता है।"

जोरो ने डिस्क अपने हाथ में ली और एक विशेष उपकरण से उसे स्कैन किया। यह उपकरण डिस्क की भाषा का विश्लेषण कर इसके प्रोग्राम की मैंडानी कंप्यूटर की भाषा में बदल डालता है।

उपकरण पर जलती लाल बत्ती बताती है कि काम पूरा हो गया। जोरो मुसकराया और बोला, "अब तुम्हारा प्रोग्राम हमारी भाषा में आ गया है; हमारे कंप्यूटर के लिए इसे सुलझाना मामूली सी बात है।"

यह कहकर उसने एक बटन दबाकर कंप्यूटर को काम पर लगा दिया। उधर शिवा ने राहत की साँस ली और आगे के घटनाक्रम का इंतजार करने लगा।

"यह रहा तुम्हारा जवाब।" जोरो ने प्रिंटर से निकले प्रिंटआउट को लहराते हुए गर्वीले स्वर में कहा। एग्जीक्यूशन टाइम ढाई माइक्रो सेकंड, तुम्हारे मानक से यानी तुम्हारे कंप्यूटर से करीब 400 गुना ज्यादा तेज।

ठीक है, श्रीमान ! मैं हार स्वीकार करता हूँ।" शिवा ने कुछ-कुछ पराजित स्वर में कहा। लेकिन भीतर-ही-भीतर वह उत्तेजना से काँप रहा था। क्या अंत में उसकी जीत होने वाली थी?

उसके बाद घटनाक्रम तेजी से बदला। कुछ रहस्यमय कारणों से एलियन बेड़े की सभी स्वचालित प्रक्रियाएँ ध्वस्त होने लगीं। कुछ भी ठीक से काम करता दिखाई नहीं दे रहा था, क्योंकि लगता था कि सब चीजों पर नियंत्रण रखनेवाला कंप्यूटर पगला गया है। जब तक हो सका, मैंडा ग्रह पर संदेश भेजे गए। लेकिन इन संदेशों को वहाँ पहुँचने और वहाँ से किसी तरह की मदद आने में बारह साल लगेंगे। बेड़े के कमांडर ने तय किया कि अपने कंप्यूटर के बिगड़ने से उनका जिंदा बच पाना मुश्किल है। तेजी से खराब होते संदेश प्रसारण के बीच उसने धरती के बेड़े को एस.ओ.एस. यानी आपातकालीन संदेश जैसा ही कुछ भेजा। धरती के बेड़ों ने आनन-फानन में काररवाई करते हुए सभी मैंडावासियों को पकड़ लिया और उन्हें निरस्त्र कर धरती पर ले आए।

"शिवा, तुमने तो कमाल कर दिया। इसका विचार तुम्हें कैसे आया?" दोनों बंधकों के साथ निजी गुफ्तगू करते हुए अमरजीत सिंह ने पूछा।

शिवा ने ए बी की ओर देखते हुए जवाब दिया, "यह विचार मेरा नहीं था श्रीमान, ए बी के उपजाऊ दिमाग से आया था।"

और मुझे यह तरकीब सूझी एच.जी. वेल्स की कहानी से, जिसमें मंगल ग्रहवासी धरती पर आक्रमण करते हैं। लेकिन यहाँ पर इस मामले में थोड़ा अंतर था। मंगलवासी, जो धरती के सूक्ष्म जीवों का हमला नहीं झेल सके थे, के विपरीत मैंडावासी इन सूक्ष्म जीवों से बेअसर थे। लेकिन उनका कंप्यूटर वायरसों का अभ्यस्त नहीं था।" ए बी ने बताया।

"कंप्यूटर में वायरस ! वह क्या होता है ?" सिंह ने पूछा।

शिवा जोर से हँसा-"बहुत मामूली चीज है, श्रीमान ! बीसवीं सदी के आखिरी वर्षों में कंप्यूटर प्रकट होने लगे थे। ये वायरस असल में छोटे-छोटे प्रोग्राम होते थे, जिन्हें चोरी-छिपे कंप्यूटर प्रोग्राम में डाल दिया जाता था और जो कंप्यूटर के सामान्य कामकाज में गंभीर व्यवधान पैदा कर देते थे। नतीजा? उनका कंप्यूटर सौंपे गए एक भी काम को ठीक से नहीं कर पाया।"

ए बी ने बताया, "लेकिन हमें अपनी प्रणालियों में वायरसों की जरा भी परवाह करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि अब हमारे पास सुरक्षा के तमाम उपाय हैं। लेकिन मैंने सोच-समझकर खतरा उठाया है कि हो सकता है, मैंडावासी इस संभावना से बेखबर हों और उन्होंने इस चीज से निपटने की तैयारी न कर रखी हो।"

"तो इस तरह मैंडावासियों को जैविक वायरसों से परेशान करने के बजाय एक अदने से कंप्यूटर वायरस ने उनकी भारी-भरकम प्रणाली को ध्वस्त कर दिया!" सिंह ने गद्गद होते हुए कहा, "पर तुमने वायरस को उनकी प्रणाली में डाला कैसे?"

अपना गला साफ करते हुए शिवा ने बताया, "करीब पचास साल पहले मुझे एक घातक वायरस का पता चला। अब यह पुराने प्रोग्रामों और वायरसों के संग्रहालय में संरक्षित है। यह काम हालाँकि गैर-कानूनी है, लेकिन फिर भी मैंने इसे अपनी आधुनिक प्रणाली में अपना लिया और गणित के एक सवाल के साथ जोड़ दिया। इस तरीके से कि इसे आसानी से अलग न किया जा सके। मैंडावासियों के कंप्यूटर इंचार्ज के बड़बोलेपन को चकमा देना आसान था। उसने जोश में आकर यह पहेली अपनी प्रणाली में डाल दी और फिर जो कुछ हुआ, आपको पता ही है, श्रीमान!"

और फिर वायरस के हमले से घबराए मैंडावासियों ने बिना जाने कि यह क्या चीज है, अपने ग्रह पर रखे मुख्य कंप्यूटर से संपर्क साध लिया। तो इस तरह शिवा का वायरस अंतरिक्ष की अनंत दूरियों को नापता हुआ छह साल में मैंडावासियों के मुख्य कंप्यूटर को भी बिगाड़ देगा।" ए बी ने बात पूरी की।

"तो तुम दोनों ने उस भारी खतरे को टाल दिया जो हमारे सिर पर मँडरा रहा था। अब हम धरतीवासी चैन की नींद सो सकेंगे।" अमरजीत सिंह ने कृतज्ञता से कहा। साथ ही उसने निश्चय किया कि उन दोनों बहादुर नायकों को विशेष 'विश्व सम्मान' दिया जाएगा।

लेकिन वे दोनों नायक स्वयं पूरी तरह से बेफिक्र नहीं थे। सच है कि खतरा फिलहाल टल गया था और वे छह जमा पच्चीस यानी इकतीस साल के लिए सुरक्षित थे। लेकिन यह भी तय था कि मैंडावासी इस समस्या से उबर जाएँगे और दोबारा धरती पर आक्रमण करेंगे, तब उस आक्रमण को टालने के लिए धरतीवासी क्या करेंगे?

उनके पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं था, कम-से-कम फिलहाल तो नहीं।

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